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PSEB 12th Class History Notes Chapter 23 द्वितीय एंग्लो-सिख युद्ध : कारण, परिणाम तथा पंजाब का विलय
→ द्वितीय एंग्लो-सिख युद्ध के कारण (Causes of the Second Anglo-Sikh War)-सिख प्रथम ऐंग्लो-सिख युद्ध में हुई अपनी पराजय का प्रतिशोध लेना चाहते थे-
→ लाहौर तथा भैरोवाल की संधियों ने सिख राज्य की स्वतंत्रता को लगभग समाप्त कर दिया था-सेना में से हजारों की संख्या में निकाले गए सिख सैनिकों के मन में अंग्रेज़ों के प्रति भारी रोष था-
→ अंग्रेजों द्वारा महारानी जिंदां के साथ किए गए दुर्व्यवहार के कारण समूचे पंजाब में रोष की लहर दौड़ गई थी-मुलतान के दीवान मूलराज द्वारा किए गए विद्रोह को अंग्रेजों ने जानबूझ कर फैलने दिया-चतर सिंह और उसके पुत्र शेर सिंह द्वारा किए गए विद्रोह ने ऐंग्लो-
→ सिख युद्ध को और निकट ला दिया-लॉर्ड डलहौज़ी की साम्राज्यवादी नीति द्वितीय एंग्लो-सिख युद्ध का तत्कालीन कारण बनी।
→ युद्ध की घटनाएँ (Events of the War)-सिखों तथा अंग्रेज़ों के मध्य हुए द्वितीय ऐंग्लो-सिख युद्ध की प्रमुख घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है—
→ रामनगर की लड़ाई (Battle of Ramnagar)-रामनगर की लड़ाई 22 नवंबर, 1848 ई० को लड़ी गई थी-इसमें सिख सेना का नेतृत्व शेर सिंह तथा अंग्रेज़ सेना का नेतृत्व लॉर्ड ह्यूग गफ़ कर रहा था-द्वितीय एंग्लो-सिख युद्ध की इस प्रथम लड़ाई में सिखों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए।
→ चिल्लियाँवाला की लड़ाई (Battle of Chillianwala)-चिल्लियाँवाला की लड़ाई 13 जनवरी, 1849 ई० को लड़ी गई थी-इसमें भी सिख सेना का नेतृत्व शेर सिंह तथा अंग्रेज़ सेना का नेतृत्व लॉर्ड ह्यूग गफ़ कर रहा था-इस लड़ाई में अंग्रेजों को भारी पराजय का सामना करना पड़ा।
→ मुलतान की लड़ाई (Battle of Multan)-दिसंबर, 1848 ई० में जनरल विश ने मुलतान के किले को घेर लिया-अंग्रेजों द्वारा फेंके गए एक गोले ने मुलतान के दीवान मूलराज की सेना का बारूद नष्ट कर दिया-
→ परिणामस्वरूप मूलराज ने 22 जनवरी, 1849 ई० को आत्म-समर्पण कर दिया।
→ गुजराते की लड़ाई (Battle of Gujarat)-गुजरात की लड़ाई द्वितीय ऐंग्लो-सिख युद्ध की सबसे महत्त्वपूर्ण और निर्णायक लड़ाई थी-इसमें सिखों का नेतृत्व कर रहे शेर सिंह की सहायता के लिए चतर सिंह, भाई महाराज सिंह और दोस्त मुहम्मद खाँ का पुत्र अकरम खाँ आ गए थे-अंग्रेज़ सेना का नेतृत्व लॉर्ड गफ कर रहा था-
→ इस लड़ाई को ‘तोपों की लड़ाई’ भी कहा जाता है-यह लड़ाई 21 फरवरी, 1849 ई० को हुई-इस लड़ाई में सिख पराजित हुए और उन्होंने 10 मार्च, 1849 ई० को हथियार डाल दिए।
→ युद्ध के परिणाम (Consequences of the War)-दूसरे ऐंग्लो-सिख युद्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि 29 मार्च, 1849 ई० को पंजाब को अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिला दिया गया-
→ सिख सेना को भंग कर दिया गया-दीवान मूलराज और भाई महाराज सिंह को निष्कासन का दंड दिया गया पंजाब का प्रशासन चलाने के लिए 1849 ई० में प्रशासनिक बोर्ड की स्थापना की गई।
→ पंजाब के विलय के पक्ष में तर्क (Arguments in favour of Annexation of the Punjab) लॉर्ड डलहौज़ी का आरोप था कि सिखों ने भैरोवाल की संधि की शर्ते भंग की-
→ लाहौर दरबार ने संधि में किए गए वार्षिक 22 लाख रुपए में से एक पाई भी न दी-लॉर्ड डलहौज़ी का आरोप था कि मूलराज तथा चतर सिंह का विद्रोह पुनः सिख राज्य की स्थापना के लिए था अतः पंजाब का अंग्रेज़ी साम्राज्य में विलय आवश्यक था।
→ पंजाब के विलय के विरोध में तर्क (Arguments against Annexation of the Punjab) इतिहासकारों का मानना है कि अंग्रेजों ने सिखों को जानबूझ कर विद्रोह के लिए भड़काया-मूलराज के विद्रोह को समय पर न दबाना एक सोची समझी चाल थी-
→ लाहौर दरबार ने संधि की शर्तों का पूरी निष्ठा से पालन किया था-विद्रोह केवल कुछ प्रदेशों में हुआ था इसलिए पूरे पंजाब को दंडित करना पूर्णतः अनुचित था।