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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 7 पौधों को जानिए
→ पौधों को आम तौर पर उनकी ऊंचाई, तने और शाखाओं के आधार पर जड़ी-बूटीयों, झाड़ियों, पेड़ों और लताओं में वर्गीकृत किया जाता है।
→ जड़ी-बूटीयाँ एक मीटर से कम ऊँचे पौधे होते हैं और इनके तने मुलायम और हरे रंग के होते हैं।
→ झाड़ियाँ मध्यम आकार के (1-3 मीटर लम्बे) पौधे होते हैं। उनके तने सख्त होते हैं और उनकी शाखाएँ तने के आधार पर (जमीन के बहुत करीब) होती हैं।
→ पेड लम्बे और बड़े पौधे (ऊंचाई 3 मीटर से अधिक) होते हैं। उनका तना मजबूत होता है और उनकी शाखाएँ तने के आधार (जमीन से कुछ ऊंचाई) के ऊपर निकलती हैं।
→ पौधे के प्रत्येक भाग का एक विशिष्ट कार्य होता है।
→ पौधे की संरचना को दो भागों में बाँटा गया है-जड़ प्रणाली और तना प्रणाली।
→ जड़ प्रणाली जमीन के नीचे होती है और तना प्रणाली जमीन के ऊपर होती है।
→ जड़ और तना दोनों प्रणालियाँ भोजन का भंडारण करती हैं।
→ तना प्रणाली में तना, पत्तियाँ, फूल आदि आते हैं।
→ तने को गाँठों और अंतर-गाँठों में विभाजित किया जाता है।
→ तने का वह भाग जहाँ से नई शाखाएँ और पत्तियाँ निकलती हैं, गाँठ कहलाती है।
→ दो गाँठों के बीच के स्थान को अंतर-गाँठ कहते हैं।
→ तने पर छोटे-छोटे उभारों को कलियाँ कहते हैं।
→ पौधे का तना पानी को जड़ से पत्तियों और अन्य भागों तक और भोजन को पत्तियों से पौधे के अन्य भागों तक ले जाता है।
→ कमजोर तने वाले पौधे जो सीधे खड़े नहीं हो सकते और बढ़ने के लिए आसपास की वस्तुओं की सहायता से ऊपर चढ़ते हैं उन्हें आरोही अथवा कलाईंबर बेलें कहा जाता है।
→ कुछ जड़ी-बूटीयों के तने कमजोर होते हैं जो अपने आप सीधे खड़े नहीं हो सकते और जमीन पर फैल जाते हैं। ऐसे पौधों को क्रीपर बेलें कहा जाता है।
→ पत्ता पौधे का एक पतला, चपटा और हरा भाग होता है जो तने की गाँठ से निकलता है। विभिन्न पौधों के पत्ते आकार और रंग में भिन्न होते हैं।
→ पत्तों का हरा रंग क्लोरोफिल की उपस्थिति के कारण होता है, जो एक हरा वर्णक है।
→ पत्ता तने से पतले डंडी से जुड़ा होता है।
→ पत्ते के उभरे हुए भाग को ब्लेड या फलक या लैमिना कहते हैं।
→ पत्ते में शिराओं का जाल होता है जिसे शिरा विन्यास भी कहते हैं।
→ शिरा विन्यास दो प्रकार का होता है अर्थात जालीदार एवं समानांतर।
→ विभिन्न पौधों में अलग-अलग प्रकार के शिरा विन्यास होते हैं।
→ पत्ते वाष्पोत्सर्जन विधि द्वारा वायु में जल छोड़ते हैं।
→ हरे पत्ते सूर्य के प्रकाश में जल और कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करके प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन बनाते हैं।
→ पत्तों की सतह पर बहुत छोटे छिद्र होते हैं जिन्हें रंध्र कहते हैं।
→ जड़ें आमतौर पर दो प्रकार की होती हैं – पेशीय जड़ें और रेशेदार जड़ें।
→ शिराओं और पौधों की जड़ों के बीच घनिष्ठ संबंध है।
→ जिन पौधों के पत्तों में जालीदार शिराएँ होती हैं, उनमें पेशीय जड़ें होती हैं।
→ जिन पौधों की पत्तियों में समानांतर शिराएँ होती हैं उनमें रेशेदार जड़ें होती हैं।
→ फूल एक पौधे का सबसे सुंदर, आकर्षक और रंगीन हिस्सा होता है जो पौधे का प्रजनन अंग होता है।
→ जिस भाग से फूल तने से जुड़ा होता है, उसे पेडिकल केहते हैं।
→ फूलों के अलग-अलग भाग होते हैं- हरी पत्तियाँ, पंखुड़ियाँ, पुंकेसर और मादा केसर।
→ फूल की बाहरी हरी पत्ती जैसी संरचनाओं को हरी पत्तियाँ और सामूहिक रूप से उन्हें कैलेक्स कहा जाता है।
→ एक फूल की हरी पत्तियों के अंदर मौजूद रंगीन, पत्ती जैसी संरचनाओं को पंखुड़ी कहा जाता है और सामूहिक रूप से उन्हें कोरोला भी कहा जाता है।
→ पंखुड़ियाँ कीड़ों को आकर्षित करती हैं और प्रजनन में मदद करती हैं।
→ पुंकेसर, नर प्रजनन अंग है और मादा केसर मादा प्रजनन अंग है।
→ प्रत्येक पुंकेसर में एक पतला तना होता है जिसे तंतु कहा जाता है और इसके शीर्ष पर दो भागों में विभाजित संरचना होती है जिसे पराग कोशिका कहा जाता है।
→ पराग कोशिकाएं पराग का निर्माण करती हैं और प्रजनन में भाग लेती हैं।
→ मादा केसर एक पतली, बोतल के आकार की संरचना होती है जो फूल के बीच में मौजूद होती है।
→ महिला केसर को आगे तीन भागों में बांटा गया है-
- अंडाशय
- वर्तिका
- वर्तिकाग्र।
मादा केसर का निचला भाग अंडाशय कहलाता है। इसमें बीज और अंडे होते हैं जो प्रजनन में भाग लेते हैं।
→ मादा केसर के संकीर्ण, मध्य भाग को वर्तिका कहा जाता है।
→ वर्तिका के शीर्ष पर चिपचिपा भाग वर्तिकाग्र कहलाता है।
→ जड़ी-बूटी- एक मीटर से कम ऊंचाई वाले और मुलायम एवं हरे तने वाले पौधे जड़ी-बूटी अथवा खरपतवार कहलाते हैं।
→ आरोही या कलाईंबर लताएँ-कमजोर तने वाले पौधे होते हैं जो सीधे खड़े नहीं हो सकते हैं और बढ़ने के लिए आसपास की वस्तुओं पर निर्भर रहते हैं। उन्हें आरोही या कलाईंबर लताएँ कहा जाता है।
→ क्रीपर या लता बेल-कुछ जड़ी-बूटीयों या खरपतवारों के तने कमजोर होते हैं जो अपने आप सीधे खड़े नहीं हो पाते और जमीन पर फैल जाते हैं। ऐसे पौधों को क्रीपर या लता बेलें कहा जाता है।
→ जड़ प्रणाली-जड़ वाले पौधे के भूमिगत भाग को जड़ प्रणाली कहा जाता है।
→ तना प्रणाली-जड़ वाले पौधे की जमीन के ऊपरी भाग को तना प्रणाली कहा जाता है।
→ डंडी-पत्ते की लंबी संरचना जो पत्ते को तने से जोड़ता है।
→ फलक या लैमिना-पत्ते का सपाट, हरा भाग।
→ गाँठ-तने पर वह स्थान जहाँ पत्तियाँ निकलती हैं।
→ अंतर-गाँठ-दो गांठों के बीच का तने का भाग।
→ विन्यास- एक पत्ती में शिराओं की व्यवस्था।
→ एक्सिल-पत्ते का तने से बना कोण।
→ वाष्पोत्सर्जन-पत्तों से जलवाष्प का वाष्पीकरण।
→ रंध्र-पत्तों की सतह पर महीन छिद्र।
→ पंखुड़ियाँ-एक फूल की हरी पंखुड़ियों के अंदर रंगीन, पत्ती जैसी संरचनाओं को पंखुड़ियाँ कहा जाता है।
→ कोरोला-पंखुड़ियों के समूह जिसे कोरोला कहा जाता है।
→ हरी पत्तियाँ-फूल की बाहरी हरी पत्ती जैसी संरचनाओं को हरी पत्तियाँ कहते हैं।
→ कैलेक्स-हरी पत्तियों के समूह को कैलेक्स कहते हैं।
→ पुंकेसर-फूल का नर भाग।
→ पराग कोशिकाएँ-पुंकेसर के दो भागों वाले शीर्ष को पराग कोशिका कहते हैं।
→ मादा केसर-फूल का मादा भाग।
→ अंडाशय-मादा केसर का नीचे वाला चौड़ा भांग जिसमें बीज होते हैं, अंडाशय कहलाता है।
→ वर्तिका-मादा केसर के संकीर्ण, मध्य भाग को वर्तिका कहा जाता है।
→ वर्तिकाग्र-वर्तिका के शीर्ष पर चिपचिपा भाग वर्तिकाग्र कहलाता है।