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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 17 वन: हमारी जीवन रेखा
→ पौधों, जंतुओं तथा सूक्ष्मजीवों से बनी एक प्रणाली को वन कहते हैं।
→ वनों की परतें चंदोया (Canopy) बीच की परत ताज (Crown) तथा निम्न परत (Understory) होते हैं।
→ वन भूमि-अपरदन से रक्षा करते हैं।
→ भूमि वृक्षों के उगने तथा बढ़ने में सहायता करती है।
→ ह्यूमस से पता लगता है कि मृत पौधे तथा जंतुओं के शरीर से पोषक, मिट्टी में शामिल हुए हैं।
→ वन हरे फेफड़ों की भांति कार्य करते हैं तथा इनसे कई उत्पाद प्राप्त होते हैं। इसलिए वन बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
→ वन एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी सबसे ऊपरी सतह वृक्ष शिखर बनाते हैं।
→ वन हमेशा हरे रंग के होते हैं।
→ विभिन्न प्रकार के जंतु, पौधे तथा कीट जंगलों में पाए जाते हैं।
→ सभी वन्य जंतु, शाकाहारी या मांसाहारी, किसी-न-किसी रूप में वन में पाए जाने वाले भोजन के लिए पौधों पर निर्भर करते हैं।
→ वन बढ़ते और विकास करते रहते हैं तथा पुनर्स्थापित (Regenerate) हो सकते हैं।
→ वन जलवायु, जल-चक्र और हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
→ वृक्ष, झांड़ियां, वनस्पति, जड़ी-बूटियां आदि जंगल से प्राप्त होते हैं।
→ वृक्षों और पौधों की ऊंचाई के अनुसार वनों को तीन श्रेणियों-
- चंदोया
- ताज तथा
- निम्न परत में । रखा गया है।
→ वनों की मृदा/मिट्टी पुनउत्पत्ति में सहायक होती है।
→ वन भूमि को अपरदन (Soil Erosion) से बचाते हैं।
→ वन के पौधे वाष्पोत्सर्जन करते हैं तथा वर्षा लाने में सहायक होते हैं।
→ वन जंगली कई पौधों, जंतुओं तथा सूक्ष्म-जीवों से मिलकर बनी एक प्रणाली है।
→ वन में वनस्पति की भिन्न-भिन्न परतें जंतुओं, पक्षियों और कीटों को भोजन और सहारा प्रदान करती हैं।
→ वन में मिट्टी, जल, हवा तथा सजीवों का आपस में आदान-प्रदान होता है।
→ क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के लिए वन उनके जीवन के लिए ज़रूरी सामग्री उपलब्ध करवाते हैं।
→ वन जलवायु, जल-चक्र और हवा की खूबी को बनाए रखते हैं और नियमित करते हैं।
→ अपघटक पौधों और जीव-जंतुओं के मृत शरीरों पर निर्भर करते हैं और उनको सरल पदार्थों में अपघटित करते हैं।
→ वनों की कटाई से विश्व तापन होता है, वर्षा कम होती है, प्रदूषण बढ़ता है और भूमि अपरदन होता है।
→ प्रकृति में संतुलन कायम करने और वन्य जीवों तथा पौधों का निवास बनाए रखने के लिए वन का संरक्षण आवश्यक है।
→ वन : वन एक ऐसा क्षेत्र होता है जहां जीव-जन्तुओं समेत बहुत घने पौधे, वृक्ष, झाड़ियां तथा बूटियां प्रकृतिक रूप से उगी होती हैं।
→ चंदोया : वृक्षों की डोलियां ऊपरी परत पृथ्वी पर वृक्षों की घनी छत बनाती हैं, जिसे चंदोया कहते हैं।
→ ताज या मुकुट : वह परत जिसमें डालियां तथा तने आते हैं, उसे ताज कहते हैं।
→ निम्न परत : निचला छाया वाला क्षेत्र जहां बहुत कम प्रकाश होता है।
5. पारिस्थितिक प्रबंध : सजीव और उनका वातावरण मिलकर पारिस्थितिक प्रबन्ध बनाते हैं। पौधे, जंतु तथा सूक्ष्मजीव पारिस्थितिक प्रबंध के जैविक अंश हैं। इन्हें विभिन्न श्रेणियों उत्पादक, खपतकार तथा अपघटक में बांटा गया है।
→ भोजन-चक्र : ऐसा चक्र जिसमें उत्पादक को शाकाहारी खाता है और शाकाहारी को मांसाहारी खाता है, को भोजन-चक्र कहते हैं।
→ भोजन जाल : एक भोजन जाल में बहुत-से भोजन-चक्र जुड़े होते हैं। एक भोजन-चक्र अगले भोजन स्तर के जीवों को भोजन उपलब्ध करवाने में सहायता करते हैं।
→ वन लगाना : बड़े स्तर पर वृक्ष लगाने की प्रक्रिया को वन लगाना/रोपण कहते हैं।
→ अपघटक : सूक्ष्मजीव जो पौधों तथा जंतुओं के मृत शरीर को ह्यूमस में परिवर्तित करते हैं, अपघटक कहलाते हैं।
→ भूमि अपरदन : वृक्षों और पौधों की अनुपस्थिति में मिट्टी का वर्षा के साथ बहाव में बह जाना भूमि अपरदन कहलाता है।
→ वन की प्रतिपर्ति : अधिक मात्रा में पौधों को लगाना वनों की प्रतिपूर्ति कहलाता है।