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PSEB 12th Class History Notes Chapter 10 गुरु गोबिंद सिंह जी : खालसा पंथ की स्थापना, उनकी लड़ाइयाँ एवं व्यक्तित्व
→ प्रारंभिक जीवन (Early Career)-गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर, 1666 ई० को पटना में हुआ-उनके पिता जी का नाम गुरु तेग बहादुर जी और माता जी का नाम गुजरी था-
→ गुरु जी के नाबालिग काल में उनकी सरपरस्ती उनके मामा श्री कृपाल चंद जी ने की-गुरु तेग़ बहादुर ने शहीदी देने से पूर्व उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-
→ 11 नवंबर, 1675 ई० को सिख परंपरा के अनुसार उन्हें गुरुगद्दी पर बैठाया गया-गुरु साहिब को चार साहिबजादों-साहिबजादा अजीत सिंह जी, साहिबजादा जुझार सिंह जी, साहिबजादा जोरावर सिंह जी तथा साहिबजादा फतह सिंह जी की प्राप्ति हुई थी।
→ पूर्व खालसा काल की लड़ाइयाँ (Battles of Pre-Khalsa Period)-गुरुगद्दी पर बैठने के पश्चात् गुरु साहिब ने सेना का संगठन करना आरंभ कर दिया-उनकी गतिविधियों से पहाड़ी राजा उनके विरुद्ध हो गए-गुरु साहिब और पहाड़ी राजाओं के मध्य प्रथम लड़ाई 22 सितंबर, 1688 ई० को हुई-
→ इसे भंगाणी की लड़ाई कहा जाता है-इस लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी ने शानदार विजय प्राप्त की-भंगाणी की लड़ाई के पश्चात् गुरु साहिब ने श्री आनंदपुर साहिब में आनंदगढ़, लोहगढ़, फतहगढ़ और केशगढ़ नामक चार दुर्गों का निर्माण करवाया-
→ 20 मार्च, 1690 ई० को हुई नादौन की लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुग़लों को पराजित किया-औरंगज़ेब ने गुरु जी की बढ़ती हुई शक्ति को कुचलने के लिए अनेक सैनिक अभियान भेजे परंतु वह असफल रहा।
→ खालसा पंथ की स्थापना और महत्त्व (Creation and Importance of the Khalsa Panth)-मुग़ल अत्याचारों का अंत करने के लिए और समाज को एक नया स्वरूप प्रदान करने के लिए गुरु साहिब ने खालसा पंथ की स्थापना 30 मार्च, 1699 ई० को बैसाखी वाले दिन श्री आनंदपुर साहिब में केशगढ़ नामक स्थान पर की-
→ गुरु गोबिंद सिंह जी ने भाई दयाराम जी, भाई धर्मदास जी, भाई मोहकम चंद जी, भाई साहिब चंद जी और भाई हिम्मत राय जी को पाँच प्यारे चुनाखालसा की पालना के लिए कुछ विशेष नियम बनाए गए-
→ खालसा पंथ की स्थापना से ऊँच नीच से रहित एक आदर्श समाज का जन्म हुआ इससे सिखों में अद्वितीय वीरता और निडरता की भावनाओं का संचार हुआ-खालसा पंथ की स्थापना से सिखों के इतिहास में एक नए युग का आरंभ हुआ।
→ उत्तर-खालसा काल की लड़ाइयाँ (Battles of Post-Khalsa Period) खालसा पंथ की स्थापना से पहाड़ी राजाओं के मन की शांति भंग हो गई थी-
→ 1701 ई० में पहाड़ी राजाओं और गुरु गोबिंद सिंह जी के मध्य श्री आनंदपुर साहिब की पहली लड़ाई हुई यह लड़ाई अनिर्णीत रही1704 ई० में श्री आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई हुई-
→ सिखों के निवेदन पर गुरु जी ने श्री आनंदपुर साहिब का दुर्ग छोड़ दिया-1704 ई० में ही हुई चमकौर साहिब की लड़ाई में गुरु जी के दो बड़े साहिबजादे अजीत सिंह जी तथा जुझार सिंह ज़ी लड़ते-लड़ते शहीद हो गए-
→ 1705 ई० में खिदराना की लड़ाई गुरु जी तथा मुग़लों में लड़ी जाने वाली अंतिम निर्णायक लड़ाई थी-इसमें गुरु गोबिंद सिंह जी ने शानदार विजय हासिल की।
→ ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-1708 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी नांदेड आए-यहाँ पर सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ के भेजे गए दो पठानों में से एक पठान ने उन्हें छुरा घोंप दिया-
→ 7 अक्तूबर, 1708 ई० में गुरु जी ज्योति-जोत समा गए-ज्योति-जोत समाने से पूर्व उन्होंने सिखों को आदेश दिया कि अब के बाद वे गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानें।
→ गुरु गोबिंद सिंह जी का चरित्र और व्यक्तित्व (Character and Personality of Guru Gobind Singh Ji)-गुरु गोबिंद सिंह जी का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली और आकर्षक थावह बड़े आज्ञाकारी पुत्र, विचारवान पिता और आदर्श पति थे-वह एक उच्चकोटि के कवि और साहित्यकार थे-
→ वह अपने समय के महान योद्धा और सेनापति थे-उन्होंने युद्धकाल में भी अपने धार्मिक कर्तव्यों को कभी नहीं भूला था-वह एक महान् समाज सुधारक और उच्चकोटि के संगठनकर्ता थे।