This PSEB 12th Class History Notes Chapter 22 प्रथम ऐंग्लो-सिख युद्ध : कारण एवं परिणाम will help you in revision during exams.
PSEB 12th Class History Notes Chapter 22 प्रथम ऐंग्लो-सिख युद्ध : कारण एवं परिणाम
→ प्रथम ऐंग्लो-सिख युद्ध के कारण (Causes of the First Anglo-Sikh War)-अंग्रेज़ों ने पंजाब को अपने अधीन करने के लिए उसके इर्द-गिर्द घेरा डालना आरंभ कर दिया था-
→ पंजाब की डावांडोल राजनीतिक स्थिति भी अंग्रेजों को निमंत्रण दे रही थी-1843 ई० में अंग्रेजों के सिंध अधिकार से परस्पर संबंधों में कड़वाहट और बढ़ गई-
→ अंग्रेजों ने जोरदार सैनिक तैयारियाँ आरंभ कर दी थींलुधियाना के नवनियुक्त पोलिटिकल एजेंट मेजर ब्रॉडफुट ने अनेक ऐसी कारवाइयां कीं जिससे सिख भड़क उठे-लाहौर के नये वज़ीर लाल सिंह ने भी सिख सेना को अंग्रेज़ों के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया था।
→ युद्ध की घटनाएँ (Events of the War)-सिखों तथा अंग्रेज़ों के मध्य हुए प्रथम युद्ध की प्रमुख घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है-
→ मुदकी की लड़ाई (Battle of Mudki)-यह लड़ाई 18 दिसंबर, 1845 ई० को लड़ी गई थीइसमें सिख सेना का नेतृत्व लाल सिंह तथा अंग्रेज़ सेना का नेतृत्व लॉर्ड ह्यूग गफ़ कर रहा था इस लड़ाई में लाल सिंह की गद्दारी के कारण सिख सेना पराजित हुई।
→ फिरोजशाह की लड़ाई (Battle of Ferozeshah)-यह लड़ाई 21 दिसंबर, 1845 ई० को लड़ी गई थी-इस लड़ाई में एक स्थिति ऐसी भी आई कि अंग्रेजों ने बिना शर्त शस्त्र फेंकने का विचार कियापरंतु लाल सिंह की गद्दारी के कारण सिखों को पुनः हार का सामना करना पड़ा।
→ बद्दोवाल की लड़ाई (Battle of Baddowal)-बद्दोवाल की लड़ाई रणजोध सिंह के नेतृत्व में 21 जनवरी, 1846 ई० को हुई-इस लड़ाई में अंग्रेज़ों को हार का सामना करना पड़ा।
→ अलीवाल की लड़ाई (Battle of Aliwal)-अलीवाल की लड़ाई 28 जनवरी, 1846 ई० को हुई-इसमें अंग्रेज़ सेना का नेतृत्व हैरी स्मिथ कर रहा था-रणजोध सिंह की गद्दारी के कारण सिख इस लड़ाई में हार गए।
→ सभराओं की लड़ाई (Battle of Sobraon)-सभराओं की लड़ाई सिखों एवं अंग्रेजों के मध्य प्रथम युद्ध की अंतिम लड़ाई थी-इसमें सिख सेना का नेतृत्व लाल सिंह तथा तेजा सिंह और अंग्रेज़ सेना का नेतृत्व लॉर्ड ह्यूग गफ़ तथा लॉर्ड हार्डिंग कर रहे थे-यह लड़ाई 10 फरवरी, 1846 ई० को हुई-
→ लाल सिंह और तेजा सिंह ने इस लड़ाई में पुनः गद्दारी की इस लड़ाई में शाम सिंह अटारीवाला ने अपनी बहादुरी के कारनामे दिखाए-अंततः इस लड़ाई में अंग्रेज़ विजयी रहे।
→ युद्ध के परिणाम (Results of the War)-इस युद्ध के परिणामस्वरूप लाहौर दरबार और अंग्रेज़ी सरकार के मध्य 9 मार्च, 1846 ई० को ‘लाहौर की संधि’ हुई-इसके अनुसार लाहौर के महाराजा ने सतलुज दरिया के दक्षिण में स्थित सभी प्रदेशों पर हमेशा के लिए अपना अधिकार छोड़ दिया-
→ युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में अंग्रेज़ों ने 1.50 करोड़ रुपए की मांग की-अंग्रेजों ने दलीप सिंह को लाहौर का महाराजा, रानी जिंदां को उसका संरक्षक तथा लाल सिंह को प्रधानमंत्री मान लिया-
→ 16 दिसंबर, 1846 को हुई ‘भैरोवाल की संधि’ से अंग्रेजों ने राज्य की शासन व्यवस्था कौंसिल ऑफ़ रीजेंसी के हवाले कर दी-महारानी जिंदां को शासन प्रबंध से अलग कर दिया गया।