Punjab State Board PSEB 3rd Class Hindi Book Solutions रचना-भाग Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB 3rd Class Hindi रचना-भाग
प्रस्ताव
1. मेरी गाय
यह मेरी गाय है। मैंने इसका नाम श्यामा रखा हुआ है। यह बहुत ही सुशील है। इसके छोटे-छोटे दो सींग हैं। इसके दो बड़े-बड़े कान तथा एक लम्बी पूँछ है। यह घास और चारा खाती है। इसे खली भी डाली जाती है। मेरी गाय का बछड़ा 2577 बहुत ही सुन्दर है। मैंने उसका नाम सोनू रख दिया है। मेरी गाय दूध बहुत अधिक देती है। इसका दूध पीकर मैं बलवान् बना हूँ। इसके दूध से हमें दही, मक्खन, छाछ भी मिलता है। भगवान् ऐसी गाय सब को प्रदान करे।
2. मेरा घर
मेरा घर मुझे बहुत प्यारा है। यह मोहल्ले के बीचोंबीच स्थित है। मेरा घर पक्की ईंटों से बना है। इसमें चार कमरे हैं। एक रसोई घर है। मेरे घर का स्नानगृह भी बहुत खूबसूरत है। मेरे घर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह हवादार है और यहाँ सूर्य की पूरी रोशनी मिलती है। मैं अपने घर में अपने मातापिता के साथ रहता हूँ। मेरा घर एक आदर्श घर है। मुझे इस पर गर्व है।
3. मेरा अध्यापक
मेरे स्कूल में बहुत-से अध्यापक हैं, लेकिन उन सब में से मुझे श्री वेद प्रकाश जी बहुत अच्छे लगते हैं। वे हमें हिंदी पढ़ाते हैं। उनके पढ़ाने का ढंग बहुत अच्छा है उन्होंने एम० ए०, बी० एड० पास किया हुआ है। वे सभी विद्यार्थियों से स्नेह का व्यवहार करते हैं और पाठ को बड़ी अच्छी तरह समझाते हैं। वे नम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं। वे सादगी को बहुत पसन्द करते हैं और बच्चों को भी सादा रहने का उपदेश देते हैं। वे सदा सच बोलते हैं । वे हमेशा समय पर स्कूल आते हैं। वे अन्य सभी अध्यापकों का तथा मुख्याध्यापक का बहुत सम्मान करते हैं। उनकी वाणी में मिठास है। वे किसी बच्चे को डांटते-पीटते नहीं हैं बल्कि उन्हें प्यार से समझाते हैं। ईश्वर उन्हें लम्बी आयु प्रदान करे।
4. मेरी साइकिल
यह मेरी साइकिल है। इसका रंग काला है। यह बहुत तेज़ चलती है। यह मुझे समय पर स्कूल पहुँचाती है। शाम के समय मैं इस पर घूमने जाता हूँ। अपनी साइकिल पर मैंने सुन्दर घंटी भी लगवा रखी है। जब भी कोई सामने आता है तो मैं घंटी बजा देता हूँ। मेरी साइकिल की ब्रेक भी ठीक है। मेरे पिता जी ने मुझे मेरे जन्मदिन पर यह साइकिल दी थी। मेरे मित्र भी इसकी खूब तारीफ करते हैं। मैं इसको खूब संभाल कर रखता हूँ। मैं इस पर ज़रा भी धूल नहीं जमने देता।
5. मेरी कक्षा
मैं तीसरी कक्षा का छात्र हूँ। मेरी कक्षा में लगभग 50 छात्र हैं। मैं अपने सभी साथी छात्रों से बेहद प्यार करता हूँ। मेरी कक्षा में दो पंखे लगे हुए हैं। कक्षा में रोशनी का भी पूरा प्रबन्ध है। कक्षा में लगी खिड़कियों से रोशनी और हवा आती है। मेरी कक्षा में बच्चों के बैठने के लिए पूरा प्रबन्ध है। मेरी कक्षा में हमारे अध्यापक के बैठने के लिए कुर्सी तथा मेज़ भी है। हमारी कक्षा में एक काला श्याम पट्ट भी है। कक्षा में सुन्दर-सुन्दर चार्ट भी लगे हुए हैं। कक्षा की दीवारों पर रंग भी सुन्दर ढंग से किया गया है। मुझे अपनी क क्षा का कमरा बड़ा अच्छा लगता है।
6. प्रातःकाल की सैर
प्रातःकाल की सैर स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है। इससे शरीर नीरोग व स्वस्थ बना रहता है। शरीर चुस्त रहता है और काम करने में मन लगता है। मैं हर रोज़ सुबह अपने मित्र के साथ सैर करने के लिए जाता हूँ। हम दोनों सुबह पाँच बजे सैर के लिए निकल जाते हैं। हम एक पार्क में सैर करते हैं। वहाँ बहुत से लोग सैर के लिए आते हैं। सुबह के समय हवा भी ठण्डी और शुद्ध होती है। हम हरी घास पर तेज़-तेज़ चलते हैं। हरी घास पर चलने से आँखों की रोशनी बढ़ती है। फूलों और घास पर पड़ी ओस की बूंदें बड़ी अच्छी लगती हैं । थोड़ी देर बाद सूर्य देवता के दर्शन होने लगते हैं। तब हम अपने घर को लौट आते हैं।
7. मेरी पाठशाला
( मेरा स्कूल) मैं लब्भू राम दोआबा प्राइमरी स्कूल में पढ़ता हूँ। यह शहर के बीच में स्थित है। हमारे स्कूल में 15 कमरे हैं। सभी कमरे खुले और हवादार हैं। सभी कमरों में रोशनदान भी हैं। हमारे स्कूल में दो खेल के मैदान भी हैं। हमारे स्कूल में एक बगीचा भी है। उसमें रंग-बिरंगे फूल खिले रहते हैं। हमारे स्कूल में 15 अध्यापक हैं। सभी अध्यापक बड़े योग्य और परिश्रमी हैं। सभी अध्यापक सुशिक्षित हैं । हमारे स्कूल में लगभग 600 विद्यार्थी पढ़ते हैं। हमारे स्कूल का परिणाम हर वर्ष बहुत अच्छा निकलता है। मुझे अपने स्कूल पर बड़ा गर्व है। ईश्वर करे मेरा स्कूल खूब उन्नति करे।
8. मेरा मित्र
मेरे कई मित्र हैं परंतु विशाल शर्मा मेरा प्रिय मित्र | है। उसका घर मेरे घर के पास ही है। उसके पिता जी सरकारी दफ्तर में काम करते हैं। उसकी माता जी भी स्कूल में पढ़ाती है। वे विशाल से खूब प्रेम करते हैं। विशाल अपने माता-पिता की आज्ञा मानता है। हम दोनों एक ही स्कूल तथा एक ही कक्षा में पढ़ते हैं। वह बड़ा योग्य तथा परिश्रमी है। वह अपनी श्रेणी में सदा प्रथम आता है। वह सभी अध्यापकों का सम्मान करता है। सब अध्यापक उससे प्रसन्न हैं। हम दोनों हर रोज़ प्रातः इकट्ठे सैर करने जाते हैं। हम शाम को इकट्ठे ही खेलते हैं। वह सदा बढ़िया और साफ़-सुथरे कपड़े पहनता है। वह अपने मित्रों की सहायता भी करता है। अपने इन गुणों के कारण ही वह मुझे बहुत अच्छा लगता है।
9. चिड़ियाघर की सैर
चिड़ियाघर में अनेक प्रकार के पशु-पक्षी होते हैं। चिड़ियाघर देखने की मेरी बहुत देर से चाह थी। इस बार छुट्टियों में चिड़ियाघर देखने की मेरी चाह पूरी हो गई। मैं मामा जी से मिलने दिल्ली गया था। वहाँ | सुन्दर चिड़ियाघर होने की चर्चा सुनी। मन देखने को मचल उठा मैं अपने मामा जी के साथ चिड़ियाघर के लिए रवाना हुआ। बस द्वारा थोड़ी ही देर में हम चिड़ियाघर पहुँच गए। हम दोनों टिकट लेकर अंदर दाखिल हो गए। सबसे पहले हमने शेर को दहाडते हए देखा। (फिर एक बड़े पिंजरे में बंद बाघ को देखा। उछलते| कूदते बंदर और लंगूर भी देखे। बाद में अनेक रंगों के पक्षी भी देखे। चिड़ियाघर में अनेक जीव-जन्तुओं को देखकर मैं तो आश्चर्यचकित रह गया।
10: दीपावली
दीपावली हमारा प्रसिद्ध त्योहार है। इस दिन श्री राम 14 वर्ष पश्चात् अयोध्या लौट कर आए थे। लोगों ने इस दिन खुशी से भर कर घर पर घी के दीए जलाए थे। लोग इस दिन अपने घरों और दुकानों की सफाई करते हैं और सजाते हैं। बाजारों में खूब रौनक होती है। मिठाइयों व पटाखों की दुकानें लगती हैं। बच्चे नए-नए कपड़े पहनते हैं। बच्चे बाज़ारों से पटाखे खरीदते हैं। शाम को लोग लक्ष्मी की पूजा करते हैं और मोमबत्तियाँ जलाते हैं। लोग एक दूसरे को मिठाइयाँ खिलाते हैं। बच्चे तथा जवान सभी बड़े खुश होते हैं और बच्चे रात को पटाखे चलाते हैं।
11. रंगों का त्योहार
होली होली का त्योहार हमारा प्रसिद्ध त्योहार है। यह फरवरी या मार्च महीने में आता है। यह त्योहार खुशियों का त्योहार है। बच्चे, बूढ़े तथा जवान सभी इस दिन एक दूसरे पर रंग लगाते हैं। कहीं पानी के गुब्बारे भी मारे जाते हैं। हर तरफ से ‘होली है-होली है’ का शोर आता है। सभी के कपड़े रंग-बिरंगे हो जाते हैं। लोग आपस में गले मिलते हैं। यह त्योहार प्रेम का त्योहार है। हमें यह त्योहार अच्छा लगता है। इस दिन घर में खूब पकवान बनते हैं।
12. मेरे पिता जी
मेरे पिता जी का नाम श्री मोहन राम है।
वह एक डॉक्टर हैं।
उनकी आयु तीस वर्ष है।
उनका कद 5 फुट 7 इंच है।
उनका रंग साफ है।
वह अपने मरीजों से हँसकर बोलते हैं।
उन्हें कभी गुस्सा नहीं आता।
वह अपने परिवार से भी बहुत प्यार करते हैं।
शाम को वह हमारे साथ होते हैं।
वह हमारी हर इच्छा पूरी करते हैं।
उन्हें अपने काम से बहुत प्यार हैं।
वह सदा सच बोलते हैं।
वह ग़रीबों की सहायता करते हैं।
मुझे अपने पिता जी पर गर्व है।
ईश्वर उन्हें लम्बी आयु दें।
13. महात्मा गाँधी
राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी को सारे भारत में बापू के नाम से पुकारा जाता है। आपका जन्म 2 अक्तूबर, सन् 1869 को गुजरात प्रान्त में पोरबन्दर नामक नगर में हुआ था। आपका पूरा नाम मोहन दास कर्मचन्द गाँधी था। आपके पिता राजकोट रियासत के दीवान थे। आप बच्चों से बहुत प्यार करते थे। आप सदा सत्य बोलते थे। आप अपने देश तथा देशवासियों से बहत प्रेम करते थे। आप हर समय देश की सेवा में लगे रहते थे। देश को स्वतंत्र करवाने में आपका बहुमूल्य | योगदान रहा है। आपके प्रयासों से ही हमारा देश 15 अगस्त, सन् 1947 को स्वतंत्र हुआ। आपका जीवन सादा था। 30 जनवरी, सन् 1948 को नाथू राम गोडसे ने आपको गोली मार दी। गोली लगने पर तीन बार आपके मुँह से ‘हे राम’ शब्द निकला। उसके बाद आपने प्राण त्याग दिए।
14. श्री गुरु नानक देव जी
श्री गुरु नानक देव जी सिक्खों के पहले गुरु कहलाते हैं। आपका जन्म सन् 1469 ई० में तलवंडी गाँव (पाकिस्तान) में हुआ। आपके पिता का नाम मेहता | कालू राय जी और माता का नाम तृप्ता देवी जी था। आप बचपन से ही प्रभु भक्ति में लीन रहते थे। आपने साधुओं को खाना खिलाकर सच्चा सौदा किया। आपके | दो पुत्र श्रीचन्द जी और लखमीदास जी थे। आप स्थान-स्थान पर घूमे और अपना सारा जीवन लोगों की भलाई में लगा दिया। आप मक्का-मदीना भी गए। आपने कहा, “ईश्वर एक है। हम सब भाई-भाई हैं। सदा सच बोलना’ चाहिए।” अन्त में आप करतारपुर (पाकिस्तान) में आ गए और वहीं ईश्वर का भजन करते हुए ज्योति-जोत समा गए।
15. श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के दसवें और अन्तिम गुरु कहलाते हैं। आपका जन्म सन् 1666 ई० में पटना में हुआ। आपके पिता का नाम श्री गुरु तेग़ बहादुर जी और माता का नाम गुजरी जी था। नौ वर्ष की आयु में आपने गुरु की पदवी प्राप्त की। आपको बचपन से ही तीर चलाने और घुड़सवारी का शौक था। आपने मुग़लों का जुल्म रोकने के लिए सन् 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना करते हुए सिक्खों को तैयार किया। आपके पुत्रों ने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण तक दे दिए। आप सारे सिक्खों को अपने पुत्रों के समान समझते थे तथा उनसे प्रेम का व्यवहार करते थे। सन् 1708 ई० में आप ज्योति-जोत समा गये।
कहानियाँ
1. प्यासा कौआ
गर्मियों के दिन थे। एक कौवे को बहुत प्यास लगी। वह पानी की तलाश में काफ़ी देर इधर-उधर घूमता रहा। अन्त में उसे एक बाग में पानी का घड़ा दिखाई दिया, परन्तु घड़े में पानी बहुत कम था। उसकी चोंच पानी तक नहीं पहुँच सकती थी।
उसने घड़े के समीप ही कुछ कंकर पड़े हुए देखे। अब उसे एक उपाय सूझा। उसने कंकर उठाकर घड़े में डालने शुरू कर दिए। इस प्रकार पानी घड़े के ऊपर तक आ गया। कौवे ने जी भर कर पानी पीया और अपनी राह ली।
शिक्षा-जहाँ चाह वहाँ राह।
अथवा
युक्ति से मुक्ति मिलती है।
2. अंगूर खट्टे हैं
एक बार एक लोमड़ी बहुत भूखी थी। वह भोजन की तलाश में इधर-उधर भटकती रही पर कहीं से भी उसे भोजन न मिला। अन्त में वह एक बाग में पहुँची। वहां उसने अंगूरों के गुच्छे लगे देखे। अंगूर देखकर उसके मुँह में पानी भर आया। वह उन्हें खाना चाहती थी। अंगूर थोड़ी ऊँचाई पर लगे हुए थे। वह उन्हें पाने के लिए उछली। बार-बार उछलने पर भी वह अंगूर पा नहीं सकी। अन्त में थक हार कर वह निराश होकर बाग से यह कहते हुए चली गई, अंगूर खट्टे हैं। यदि मैं इन्हें खाऊँगी तो बीमार पड़ जाऊँगी।
शिक्षा-हाथ न पहुँचे थू कौड़ी।
3. लोभ का फल
किसी नगर में एक गरीब व्यक्ति रहता था। मजदूरी से उसके परिवार का गुज़ारा बड़ी ही मुश्किल से होता था। उसकी गरीबी पर दया करके एक यक्ष ने उसे मुर्गी दी और कहा कि यह मुर्गी रोज़ाना सोने का एक अंडा देगी। तुम इस अंडे को बाज़ार में बेच कर अपना गुजारा कर सकते हो। ऐसा कह कर वह चले गए। मुर्गी रोज़ाना सोने का एक अंडा देने लगी। वह इसे बाज़ार में बेच आता और अपना परिवार चलाता। धीरे-धीरे वह परिवार धनी होने लगा। एक बार उसके मन में लालच आ गया। सोचने लगा कि क्या रोज़- रोज़ एक अंडे का इंतजार करो और फिर उसे जाकर बाज़ार में बेचो । क्यों न मैं इसे मार कर एक ही बार में सारे अंडे निकाल लूँ ताकि जल्दी ही अमीर बन जाऊँ। ऐसा सोचकर उसने छुरे से मुर्गी का पेट काट डाला। लेकिन उसे कोई भी अंडा नहीं मिला बल्कि मुर्गी मारी गई। अब वह अपने किए पर पछताने लगा कि लोभ में पड़कर रोजाना मिलने वाले अंडे से भी हाथ धोना पड़ा। शिक्षा-लालच का फल बुरा होता है।
4. चालाक लोमड़ी
गर्मियों के दिन थे। एक लोमड़ी भूख के कारण भोजन की तलाश में इधर-उधर भटक रही थी। थक हार कर वह बाग में पहुँची और वृक्ष की छाया में आराम करने लगी। अचानक उसकी नज़र वृक्ष पर बैठे एक कौए पर पड़ी। उसने देखा कौए के मुँह में रोटी का टुकड़ा है। रोटी देखकर उसकी भूख जाग पड़ी। उसने कौए से रोटी का टुकड़ा लेने की सोची। उसने कौए को कहा, “कौए भैया! कौए भैया ! तुम कितने सुन्दर हो। तुम्हारा रंग भी कितना प्यारा है।
तुम्हारी आवाज़ भी बहुत मीठी है। क्या तुम मुझे अपनी मीठी आवाज़ में एक गाना सुनाओगे ?” अपनी तारीफ सुनकर कौआ बहुत खुश हुआ। जैसे ही उसने काँव-काँव करने के लिए मुँह खोला कि चोंच में पकड़ा हुआ रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया। लोमड़ी ने झट से टुकड़ा उठाया और खा गई। फिर जाते-जाते कहने लगी. “आज तो तुम्हारी आवाज़ ठीक नहीं है। तुम्हारा गाना फिर कभी सुनूँगी। कौआ मुँह देखता रह गया।”
शिक्षा-किसी की चिकनी-चुपड़ी बातों में नहीं आना चाहिए।
5. झूठा गडरिया
किसी गाँव में एक गडरिया रहता था। वह रोजाना सवेरे भेड़-बकरियों को चराने के लिए पास के जंगल में ले जाता था और शाम को लौट आता। एक बार उसे गाँव वालों से मज़ाक करने की सूझी। उसने शोर मचाना शुरू किया, “बचाओ। बचाओ। भेड़िया आया, भेड़िया आया।” उसका शोर सुनकर गाँव वाले इकट्ठे होकर आ गए। उन्हें देखकर वह हँसने लगा। गाँव वाले समझ गए कि वह मज़ाक कर रहा है। वे वापिस लौट गए। एक बार सचमुच में ही भेड़िया उधर आ निकला। भेड़िये को देखकर गडरिया चिल्लाया, “बचाओ। बचाओ। भेड़िया आया, भेड़िया आया।” गाँव वालों ने इस आवाज़ को सुनकर सोचा कि वह फिर मज़ाक कर रहा होगा और कोई भी उसकी सहायता को न आया। भेड़िया उसकी कुछ बकरियाँ मार कर खा गया। गडरिये ने छिप कर अपनी जान बचाई। शिक्षा-झूठे पर कोई विश्वास नहीं करता ।
6. परिश्रम का फल
किसी गाँव में एक बूढ़ा किसान रहता था। उसके चार पुत्र थे। वे चारों ही निकम्मे थे। वे खेती-बाड़ी में अपने पिता का हाथ नहीं बँटाते थे। किसान अपने पुत्रों से बहुत दुखी था। बूढ़े पिता ने अपने बेटों को बहुत समझाया, परन्तु उन पर कोई असर न पड़ा। एक दिन किसान बहुत बीमार हो गया। उसने अपने चारों बेटों को पास बुलाया। उसने उन्हें कहा कि अब मेरे बचने की कोई आशा नहीं। मैं मरने से | पहले तुम्हें एक पते की बात बताना चाहता हूँ। मेरे पिता ने अपने खेत में एक खज़ाना छिपा कर रखा था। वह स्थान जहाँ उन्होंने उस खज़ाने को दबाया था मैं भूल गया हूँ। तुम खेत खोद कर उस खज़ाने को निकाल लेना। इन शब्दों के साथ ही बूढ़ा परलोक सिधार गया।
पिता की मृत्यु के बाद बेटों ने खेत खोदना शुरू | कर दिया, परन्तु उन्हें कहीं भी छिपा हुआ खज़ाना दिखाई न दिया। एक दिन निराश होकर उन्होंने खेत को खोदना बन्द कर दिया। गाँव के सरपंच ने उन्हें बताया कि तुम खेत में अनाज बो दो। उस वर्ष उनके खेत में बहुत फसल हुई। उनका घर अनाज से भर गया। उन्होंने फसल बाज़ार में बेचकर खूब धन कमाया। अब उनकी समझ में आया कि अच्छी फसल ही भूमि में दबा हुआ खज़ाना था। इस प्रकार परिश्रम करतेकरते चारों भाई खूब अमीर हो गए।
शिक्षा-परिश्रम का फल मीठा होता है।
7. जैसे को तैसा
एक राजा के पास एक हाथी था। महावत उस हाथी को नहलाने के लिए नदी पर ले जाता था। रास्ते में एक दर्जी की दुकान पड़ती थी। दर्जी उस हाथी को हमेशा कुछ न कुछ खाने को अवश्य देता था। इससे हाथी और दर्जी में दोस्ती हो गई। एक बार दर्जी किसी कारण से गुस्से में था। उसी समय हाथी आ गया। उसने अपनी सूंड दर्जी की दुकान के अन्दर कर दी। गुस्से से भरे दर्जी ने उसकी सूंड में सुई चुभो दी। हाथी को दर्द हुआ पर वह चुपचाप वहाँ से चला गया। नदी में नहाने के बाद उसने अपनी सूंड में नदी के किनारे का कीचड़ भरा गंदा पानी भर लिया और आकर दर्जी की दुकान पर सारा गंदा पानी फेंक दिया। दर्जी के सिलाई किए हुए सारे कपड़े गंदे हो गए। वह अपनी करनी पर पछताने लगा।
शिक्षा-कर बुरा हो बुरा।
8. मूर्ख सेवक
किसी नगर में एक सेठ रहता था। उसने राजू नाम का एक सेवक रखा । वह बड़ा परिश्रमी और स्वामिभक्त था, परन्तु वह बहुत मूर्ख था। सेठ जी उसके काम से खुश नहीं थे। गर्मियों के दिन थे। एक दिन दोपहर के समय सेठ जी आराम कर रहे थे। राजू उनकी सेवा कर रहा था।इतने में सेठ जी की आँख लग गई। एक मक्खी सेठ जी के मुँह पर आ बैठी। राजू मक्खी को उड़ाता, परन्तु वह फिर सेठ जी के मुँह पर आ बैठती। अन्त में राजू मक्खी से तंग आ गया। उसे एक उपाय सूझा।
उसके पास ही एक डण्डा पड़ा था। मक्खी सेठ जी के | मुँह पर फिर आ बैठी। राजू ने मक्खी पर ज़ोर से डंडा | दे मारा। मक्खी तो उड़ गई पर डंडा सेठ जी के मुँह पर जोर से लगा। उनकी आँखें खुल गईं। सेठ जी दर्द के मारे कराहने लगे। अब उन्हें राजू की मूर्खता का पता चला। उन्होंने राजू को नौकरी से निकाल दिया।
शिक्षा-मूर्ख मित्र या सेवक से बुद्धिमान् शत्रु अच्छा होता है।