Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Chapter 10 बढ़े चलो, बढ़े चलो Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 7 Hindi Chapter 10 बढ़े चलो, बढ़े चलो (2nd Language)
Hindi Guide for Class 8 PSEB बढ़े चलो, बढ़े चलो Textbook Questions and Answers
बढ़े चलो, बढ़े चलो अभ्यास
1. नीचे गुरुमुखी और देवनागरी लिपि में दिये गये शब्दों को पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखने का अभ्यास करें :
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
2. नीचे एक ही अर्थ के लिए पंजाबी और हिंदी भाषा में शब्द दिये गये हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखें:
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
3. इन प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखें:
(क) कवि किन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा है? कोष्ठक में दिए संकेतों पर निशान लगाइए। (बालकों को, युवाओं को, देशवासियों को, स्वतंत्रता सेनानियों को)
उत्तर :
स्वतन्त्रता सेनानियों को।
(ख) कवि अस्त्र-शस्त्र के बिना लड़ने का सुझाव क्यों देता है ?
उत्तर :
कवि गांधीवादी विचारों का समर्थक है। अत: वह बिना अस्त्र – शस्त्रों के लड़ने का सुझाव देता है। सत्य, अहिंसा और प्रेम गांधी जी के शस्त्र थे।
(ग) यह कविता देश के आजाद होने से पहले लिखी गयी थी अथवा बाद में ?
उत्तर :
‘बढ़े चलो, बढ़े चलो’ कविता देश के आजाद होने से पहले लिखी गई थी।
4. इन प्रश्नों के उत्तर चार या पाँच वाक्यों में लिखें:
(क) कवि अपने पाठकों को मशाल बन कर जलने की प्रेरणा क्यों देता है?
उत्तर :
कवि स्वतन्त्रता सेनानियों को मशाल बनकर जलने की प्रेरणा इसलिए देता है ताकि आजादी के रास्ते का अन्धकार दूर हो सके। देश के अन्य लोग भी कदम से कदम मिला कर आगे बढ़ सकें। मशाल बन कर जलने वाला सबकी प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।
(ख) जियो चलो, मरे चलो,-कवि जीवन और मृत्यु को साथ लेकर चलता है क्यों?
उत्तर :
स्वतन्त्रता प्राप्त करने का मार्ग बड़ा कठिन होता है। इस रास्ते पर जीवन भी है और मरण भी। आज़ादी प्राप्त होना जीवन है और आज़ादी के लिए कुर्बान हो जाना मरण है। संघर्ष मार्ग पर बढ़ता हुआ वीर जीवन – मरण की परवाह नहीं करता। वह जीता भी है, मरता भी है।
(ग) कविता का सार लिखें।
उत्तर :
‘बढ़े चलो, बढ़े चलो’ कविता श्री सोहन लाल द्विवेदी की देश की स्वतन्त्रता से पूर्व की रचना है। यह कविता देश – भक्ति से ओत – प्रोत है। इसमें स्वतन्त्रता सेनानियों को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी गई है। कवि कहता है चाहे तुम्हारे पास कोई शस्त्र नहीं है और खाने को भी कुछ नहीं फिर भी आज़ादी के मार्ग पर बढ़ते चलो। तुम अपने मार्ग की बड़ी से – बड़ी बाधा को भी चीर कर आगे बढ़ो। झुकने का नाम न लो। इसके लिए तुम अपने रक्त की एक – एक बूंद बहा दो। युगों की परतन्त्रता को समाप्त कर दो। कभी भी भयभीत नहीं होना चाहिए। व्यक्ति को सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिए।
5. इन शब्दों के अर्थ लिखते हुए वाक्यों में प्रयोग करें:
- समक्ष __________ _____________________________
- कालकूट __________ _____________________________
- सुधा __________ _____________________________
- फाग __________ _____________________________
- अशेष __________ _____________________________
उत्तर :
- समक्ष = सामने – व्यक्ति को हमेशा अपने समक्ष ऊँचा आदर्श रखना चाहिए।
- कालकूट = तेज़ ज़हर – आज़ादी पाने के लिए व्यक्ति को कालकूट भी पीना पड़ता है।
- सुधा = अमृत – स्वतन्त्रता सेनानी बलिदान को सुधा समझकर पी जाते हैं।
- फाग = होली – सैनिकों का काम ही रक्त से फाग खेलना है।
- अशेष = सम्पूर्ण – आज़ादी के लिए अपना अशेष रक्त अर्पित कर दो।
6. विपरीतार्थक शब्द लि:
- स्वतंत्रता = _____________
- मरण = _____________
- कालकूट = _____________
उत्तर :
- स्वतन्त्रता = परतन्त्रता
- मरण = जीवन
- कालकूट = सुधा
7. संज्ञा शब्द बनायें:
- रुकना = _____________
- झुकना = _____________
- जलना = _____________
- निखरना = _____________
- बिखरना = _____________
उत्तर :
- रुकना = रुकावट
- झुकना = झुकाव
- जलना = जलन
- निखरना = निखार
- बिखरना = बिखराव
8. इन शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें:
- वस्त्र = _________, _________
- शिखर = _________, _________
- अटूट = _________, _________
- राग = _________, _________
- मशाल = _________, _________
- मिसाल = _________, _________
- नीर = _________, _________
उत्तर :
- वस्त्र = कपड़ा, चीर, पट,
- शिखर = चोटी, शृंग
- अटूट = मज़बूत, अभंगुर
- राग = सुर, प्रेम
- मशाल = मुराड़ा, लौ
- मिसाल = उदाहरण, नमूना
- नीर = जल, पानी, वारी
बढ़े चलो, बढ़े चलो Summary in Hindi
बढ़े चलो, बढ़े चलो कविता का सार
‘बढ़े चलो, बढ़े चलो’ कविता श्री सोहन लाल द्विवेदी की देश की स्वतन्त्रता से पूर्व की रचना है। यह कविता देश – भक्ति से ओत – प्रोत है। इसमें स्वतन्त्रता सेनानियों को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी गई है। कवि कहता है चाहे तुम्हारे पास कोई शस्त्र नहीं है और खाने को भी कुछ नहीं फिर भी आज़ादी के मार्ग पर बढ़ते चलो। तुम अपने मार्ग की बड़ी – से बड़ी बाधा को भी चीर कर आगे बढ़ो। झुकने का नाम न लो। इसके लिए तुम अपने रक्त की एक – एक बूंद बहा दो। युगों की परतन्त्रता को समाप्त कर दो। कभी भी भयभीत नहीं होना चाहिए। व्यक्ति को सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिए।
बढ़े चलो, बढ़े चलो काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या
1. न हाथ एक शस्त्र हो,
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न नीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डटो वहीं।
बढ़े चलो, बढ़े चलो।
शब्दार्थ :
- शस्त्र = हाथ में पकड़ा हुआ निकट से चलाया जाने वाला हथियार जैसे तलवार, भाला, डंडा आदि।
- अस्त्र = दूर से चलाया जाने वाला हथियार जैसे – तीर, गोला, मिसाइल आदि।
- अन्न = अनाज।
- नीर = पानी।
- वस्त्र = कपड़ा।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य – पुस्तक में संकलित श्री सोहन लाल द्विवेदी द्वारा रचित ‘बढ़े चलो, बढ़े चलो’ नामक कविता से लिया गया है। इस कविता में कवि ने देश की आज़ादी के लिए स्वतन्त्रता सेनानियों को पथ पर निरन्तर आगे बढ़ने का आह्वान किया है।
व्याख्या – कवि स्वतन्त्रता सेनानियों को सम्बोधित करते हुए कहता है – यदि तुम्हारे हाथ में एक भी अस्त्र – शस्त्र नहीं है और न ही तुम्हारे पास भोजन, जल और कपड़ा है। फिर भी तुम अपने रास्ते से न हटो। वहीं पर डट जाओ और आगे ही आगे बढ़ते चलो।
विशेष –
- कवि ने देशवासियों को देश की आजादी के लिए आगे बढ़ने का आह्वान किया है।
- भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल है।
2. रहे समक्ष हिम शिखर,
तुम्हारा प्रण उठे निखर,
भले ही जाये तन बिखर,
रुको नहीं, झुको नहीं।
बढ़े चलो, बढ़े चलो।
शब्दार्थ :
- समक्ष = सामने।
- हिम शिखर = बर्फ की चोटी।
- निखर = चमक।
- तन = शरीर।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश सोहन लाल द्विवेदी द्वारा रचित कविता ‘बढ़े चलो, बढ़े चलो’ से लिया गया है। इस कविता में कवि ने देश की आजादी के लिए स्वतन्त्रता सेनानियों को पथ पर निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या – कवि वीरों को स्वतन्त्रता की बलि वेदी पर अपना बलिदान देने की प्रेरणा देता हुआ कहता है – चाहे तुम्हारे रास्ते में बर्फ की चोटी भी आ जाए, तुम्हारे रास्ते में हिमालय भी आकर क्यों न खड़ा हो जाए, कितनी भी कठिनाइयों का सामना क्यों न करना पड़े फिर भी तुम्हें घबराना नहीं चाहिए।
तुम्हें साहस से काम लेना चाहिए। उसे देखकर तुम्हारी प्रतिज्ञा निखर उठे। चाहे तुम्हारा शरीर टुकड़े – टुकड़े हो जाए पर तुम्हें रुकना नहीं चाहिए और न ही झुकना चाहिए। तुम्हें निरन्तर बढ़ते रहना चाहिए।
विशेष :
- कवि ने स्वतन्त्रता सेनानियों से मार्ग में आने वाली बाधाओं से न डरने का आह्वान किया है।
- भाषा भावों के अनुरूप है।
3. घटा घिरी अटूट हो,
अधर पै कालकूट हो,
वही सुधा का चूंट हो,
जिये चलो मरे चलो।
बढ़े चलो, बढ़े चलो।
शब्दार्थ :
- अटूट = बिना टूटे, लगातार।
- अधर = होंठ।
- कालकूट = ज़हर।
- सुधा = अमृत।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश सोहन लाल द्विवेदी द्वारा रचित कविता ‘बढ़े चलो, बढ़े चलो’ से लिया गया है। इस कविता में कवि ने देश की आजादी के लिए स्वतन्त्रता सेनानियों को. पथ पर निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या – कवि वीरों से कहता है कि चाहे तुम्हारे रास्ते पर दुःख की अखण्ड घटाएँ घिर आई हों, तुम्हारे होठों पर भयंकर विष लगा हो, परन्तु तुम्हें उसे अमृत का चूंट समझ कर पी लेना चाहिए। जीते हुए और मरते भी तुम आगे की तरफ बढ़ते जाओ।
विशेष –
- कवि ने वीरों को बाधाओं का सामना करने का संदेश दिया है।
- भाषा सरल, सहज तथा सरस है।
4. गगन उगलता आग हो,
छिड़ा मरण का राग हो,
लहू का अपना फाग हो,
अड़ो वहीं, गड़ो वहीं।
बढ़े चलो, बढ़े चलो।
शब्दार्थ :
- गगन = आकाश।
- लहू = खून।
- फाग = होली का रंग खेलना।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश सोहन लाल द्विवेदी द्वारा रचित कविता ‘बढ़े चलो, बढ़े चलो’ से लिया गया है। इस कविता में कवि ने देश की आज़ादी के लिए स्वतन्त्रता सेनानियों को पथ पर निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या – कवि वीरों से स्वतन्त्रता के पथ पर निरन्तर आगे बढ़ने का आह्वान करते हुए कहता है कि चाहे तुम्हारे रास्ते में आकाश आग उगल रहा हो या मृत्यु का गीत शुरू हो गया हो, मृत्यु तुम्हारे सामने खडी हो, फिर भी तुम्हें अपना लहू बहाते हए वहीं पर अड़ जाना चाहिए और बलिदान हो जाना चाहिए। अपने रास्ते पर आगे ही आगे बढ़ते चलो।
विशेष –
- कवि ने देश की स्वतन्त्रता के लिए वीरों को बलिदान देने के लिए प्रेरित किया है।
- भाषा भावानुकूल है।
5. चलो, नयी मिसाल हो,
जलो, नयी मशाल हो,
बढ़ो, नया कमाल हो,
झुको नहीं, रुको नहीं।
बढ़े चलो, बढ़े चलो।
शब्दार्थ :
- मिसाल = नमूना, उदाहरण।
- कमाल = चमत्कार।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश सोहन लाल द्विवेदी द्वारा रचित कविता ‘बढ़े चलो, बढ़े चलो’ से लिया गया है। इस कविता में कवि ने निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या – कवि वीरों को कहता है कि हे वीरो! तुम आगे इस प्रकार बढ़ो कि एक नया उदाहरण कायम हो जाए और एक नई मशाल की तरह जलते हुए देश को रास्ता दिखाओ। तुम अपने पथ पर इस प्रकार आगे बढ़ो जिससे कि एक नया चमत्कार हो जाए। तुम शत्रु के सामने झुको नहीं और आगे बढ़ने से रुको नहीं बस आगे ही बढ़ते चलो।
विशेष –
- कवि ने वीरों से नया कीर्तिमान स्थापित करने के लिए कहा है।
- भाषा सरल, सहज तथा भावानकल है।
6. अशेष रक्त तोल दो,
स्वतन्त्रता का मोल दो,
कड़ी युगों की खोल दो,
डरो नहीं, मरो वहीं।
बढ़े चलो, बढ़े चलो।
शब्दार्थ :
- अशेष रक्त = सारा खून।
- स्वतन्त्रता = आज़ादी।
- कड़ी = बन्धन।
- युगों की = सदियों की।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश सोहन लाल द्विवेदी द्वारा रचित कविता ‘बढ़े चलो, बढ़े चलो’ से लिया गया है। इस कविता में कवि ने निरन्तर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या – कवि वीरों को स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर अपने प्राण न्योछावर करने का आह्वान करते हुए कहता है – हे वीरो अपने शरीर का सारा रक्त तुम देश पर न्योछावर कर दो। इस प्रकार आज़ादी की कीमत चुका दो। तुम सदियों से पड़ी गुलामी की जंजीरों को तोड़ दो। तुम्हें डरना नहीं चाहिए और वहीं बलिदान हो जाओ। इस प्रकार तुम्हें आगे बढ़ते रहना चाहिए।
विशेष –
- कवि ने देशवासियों से देश हित के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की बात कही है।
- भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल है।