Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Samas समास Exercise Questions and Answers, Notes.
PSEB 7th Class Hindi Grammar समास
प्रश्न 1.
समास किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित लिखो।
उत्तर:
परस्पर सम्बन्ध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दों के मेल को समास कहा जाता है। जैसे-माता-पिता (माता और पिता)।
विग्रह :
समास के नियम हटाकर पूर्वपद तथा उत्तरपद को पुनः अलग-अलग करने और विभक्तियाँ आदि फिर से जोड़ने की क्रिया को विग्रह कहते हैं; जैसे-‘माता-पिता’ समस्तपद का विग्रह होगा-माता और पिता।
समास के भेद-
समस्त शब्दों में कभी दोनों पद (पूर्वपद तथा उत्तरपद) प्रधान होते हैं, कभी पूर्वपद प्रधान होते हैं, कभी उत्तरपद और कभी दोनों को ही छोड़कर कोई अन्य होता है। समास के निम्नलिखित चार भेद हैं
1. तत्पुरुष समास
2. बहुब्रीहि समास
3. द्वंद्व समास
4. अव्ययीभाव समास
1. तत्पुरुष समास :
जिस समास में सम्मिलित शब्दों में अर्थ की दृष्टि से पूर्वपद गौण और उत्तरपद प्रधान हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। इस समास में दोनों के मध्य आने वाले परसर्गों का लोप हो जाता है।
कर्म : स्वर्ग को प्राप्त-स्वर्गप्राप्त। यश को प्राप्त-यशप्राप्त। परलोक को गमनपरलोकगमन । ग्राम को गत (गया)-ग्रामगत। गिरह को काटने वाला-गिरहकट। देश को गत-देशगत। ग्रन्थ को करने वाला-ग्रन्थकार।
करण :
तुलसी द्वारा कृत-तुलसीकृत। रचना को करने वाला-रचनाकार। दुर्दशा से ग्रस्त-दुर्दशाग्रस्त। हस्त से लिखित-हस्तलिखित। भाग्य द्वारा कृत-भाग्यकृत। मन से माना-मनमाना। प्रेम से आतुर-प्रेमातुर। दया से आर्द्र-दयार्द्र । रेखा से अंकित-रेखांकित। अकाल से पीड़ित-अकालपीड़ित। मन से गढ़ा-मनगढंत। मन से चाहा-मनचाहा। मद से माता-मदमाता।
सम्प्रदान :
रसोई के लिए घर-रसोईघर। मार्ग के लिए व्यय-मार्गव्यय। पाठ के लिए शाला-पाठशाला। यज्ञ के लिए शाला-यज्ञशाला। देश के लिए अर्पण-देशार्पण। देश के लिए भक्ति-देशभक्ति । गुरु के लिए दक्षिणा-गुरुदक्षिणा। युद्ध के लिए भूमियुद्धभूमि। डाक के लिए गाड़ी-डाकगाड़ी। राह के लिए खर्च-राहखर्च। सत्य के लिए आग्रह-सत्याग्रह।
अपादान :
ऋण से मुक्त-ऋणमुक्त। पद से च्युत-पदच्युत। भय से भीत-भयभीत। धन से हीन-धनहीन। पथ से भ्रष्ट-पथभ्रष्ट। देश से निकाला-देशनिकाला। देश से निर्वासित-देशनिर्वासित।
सम्बन्ध :
गंगा का जल-गंगाजल। देव का स्थान–देवस्थान। देश का वासीदेशवासी। गंगा का जल-गंगाजल । घोड़ों की दौड़-घुड़दौड़। राजा का कुमार-राजकुमार। पवन का पुत्र-पवनपुत्र। राज्य का दूत-राजदूत। बैलों की गाड़ी-बैलगाड़ी। सेना का पति-सेनापति। उद्योग का पति-उद्योगपति। देवों का आलय-देवालय।
अधिकरण :
गृह में प्रवेश-गृहप्रवेश। शरण में आगत-शरणागत। शोक में मग्नशोकमग्न। सिर में दर्द-सिरदर्द। हर फन में मौला-हरफनमौला। शरम में आगत शरणागत। दान में वीर-दानवीर। घोड़े पर सवार-घुड़सवार। आप पर बीती-आपबीती। वन में वास-बनवास।
(i) कर्मधारय तत्पुरुष का भेद है। इसमें भी उत्तरपद प्रधान होता है। जब पर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य अथवा एक पद उपमान तथा दूसरा उपमेय हो तब कर्मधारय समास होता है; जैसे-
विशेषण-विशेष्य : नीली है जो गाय-नीलगाय। महान् है जो देव-महादेव। पीत है जो अम्बर– पीताम्बर। लाल है जो टोपी-लालटोपी।
उपमान-उपमेय : कमल के समान नयन-कमलनयन। चन्द्र के समान मुख-चन्द्रमुख। घन के समान श्याम-घनश्याम।
उपमेय-उपमानमुख : रूपी चन्द्र-मुखचन्द्र। विद्या रूपी धन-विद्याधन।
(ii) द्विगु समास, कर्मधारय का भेद है।
इस समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है। विशेष्य-विशेषण भाव के अतिरिक्त यह समास समूहवाची भी होता है; जैसे
नव (नौ) रत्नों का समूह-नवरत्न। चार मासों का समूह-चौमासा। सात सौ (दोहों) का समूह-सतसई। शत अब्दों (वर्षों) का समूह-शताब्दी। चार राहों का समूह-चौराहा। पाँच वटों का समूह-पंचवटी।
(iii) नञ् समास भी तत्पुरुष का ही भेद है। जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो, उसे नञ् समास कहते हैं; जैसे
न सत्य-असत्य। नस्थिर-अस्थिर। न आस्तिक-नास्तिक। न हिंसा-अहिंसा। न वैरअवैर। न देखी-अनदेखी। न होनी-अनहोनी।
2. बहुब्रीहि समास :
जिस समास के समस्तपदों में कोई भी प्रधान न होकर कोई अन्य (बाहर का) पद प्रधान हो, उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं। बहुब्रीहि समास द्वारा रचित शब्द विशेषण का कार्य करता है; जैसे-
पीत (पीले) हैं अम्बर (वस्त्र) जिसके-पीतांबर। नीला है कंठ जिसका-नीलकंठ। उदार है हृदय जिसका-उदारहृदय। दस आनन (मुख) हैं जिसके-दशानन (रावण)। चन्द्र है शिखर (माथे) पर जिसके-चन्द्रशेखर (शिव)। विष को धारण करने वालाविषधर (सर्प) । घन (बादल) के समान श्याम-घनश्याम (कृष्ण)। चार हैं आनन (मुख) जिसके-चतुरानन (ब्रह्मा) । कुसुमों का आकर (खज़ाना) जो-कुसुमाकर (बसंत)। नाक कटी है जिसकी-नकटा। महान् है आत्मा जिसकी-महात्मा। बारह हैं सींग जिसकेबारहसिंगा।
3. द्वंद्व समास :
जिस समास में दोनों खंड समान हों, कोई प्रधान-गौण न हो, उसे द्वंद्व समास कहते हैं। इनको मिलाने वाले समुच्चयबोधक अव्यय का लोप हो जाता है; जैसे
सुख और दुःख-सुख-दुःख। माता और पिता-माता-पिता। नर और नारी-नरनारी। पाप और पुण्य-पाप-पुण्य। राम और लक्ष्मण-राम-लक्ष्मण। सीता और रामसीता-राम । दाल और रोटी-दाल-रोटी। दाल और भात-दाल-भात । वेद और पुराणवेद-पुराण। जन्म और मरण-जन्म-मरण। खरा और खोटा-खरा-खोटा। अन्न और जल-अन्न-जल। हाथ और पाँव-हाथ-पाँव। राधा और श्याम-राधेश्याम। राजा और प्रजा-राजा-प्रजा। गुरु और शिष्य-गुरु-शिष्य।
4. अव्ययीभाव समास :
जब समास में सम्मिलित पूर्वपद अव्यय हो तथा उसके योग से पूर्ण समस्तपद अव्यय बन जाए तो अव्ययीभाव समास होता है; जैसे-
स्थान के अनुसार-यथास्थान। दिन-दिन-प्रतिदिन। एक एक-प्रत्येक। जैसे संभव हो-यथासंभव। शक्ति के अनुसार-यथाशक्ति। रूप के योग-अनुरूप। मरने तक – आमरण। वर्ष वर्ष-प्रतिवर्ष। जन्म से लेकर-आजन्म। हाथ ही हाथ में-हाथोंहाथ। जीवन भर-आजीवन । आँखों के सामने प्रत्यक्ष। पेट भर कर-भरपेट। आदर के सहितसादर। डर से रहित-निडर। खटके के बिना-बेखटके। समुद्र पर्यंत-आसमुद्र।