Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Sandhi सन्धि Exercise Questions and Answers, Notes.
PSEB 7th Class Hindi Grammar सन्धि
प्रश्न 1.
सन्धि किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
दो वर्गों के मेल को सन्धि’ कहते हैं। सन्धि संस्कृत का शब्द है। दो शब्द जब पास-पास होते हैं तब उच्चारण की सुविधा के लिए पहले शब्द के अन्तिम और दूसरे शब्द के आरम्भिक अक्षर आपस में एक-दूसरे से मिल जाते हैं। सन्धि में जब दो अक्षर मिलते हैं तब शब्दों में भी विकार उत्पन्न हो जाता है।
सन्धि के तीन भेद हैं-
(क) स्वर सन्धि
(ख) व्यंजन सन्धि
(ग) विसर्ग सन्धि।
स्वर सन्धि स्वर वर्णों के साथ स्वर वर्णों के मेल को स्वर-सन्धि कहते हैं। इनके पाँच भेद हैं
स्वर सन्धि : (अक: सवर्ण दीर्घः) :
दो समान स्वर वर्ण, परस्पर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं। यदि ह्रस्व या दीर्घ, अ, इ, उ, ऋ वर्ण के पश्चात् ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ या ऋ आवें तो इन दोनों वर्गों के स्थान पर उन्हीं का दीर्घ वर्ण अर्थात् आ, ई, या ऋ हो जाता है।
उदाहरण-
(क) अ + अ = आ = परम + अर्थ = परमार्थ ।
अ + आ = आ = भोजन + आलय = भोजनालय।
आ + अ = आ = विद्या + अर्थी – विद्यार्थी ।
आ + आ = आ = महा + आशय = महाशय।
(ख) इ + इ = ई = गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र।
इ + ई = ई = वारि + ईश = वारीश।
ई + इ = ई = मही + इन्द्र = महीन्द्र।
उ + उ = ऊ = भानु + उदय =भानूदय।
उ + ऊ = ऊ = लघु + ऊर्मि = लघूर्मि।
ऊ + उ = ऊ = वधू + उत्सव = वधूत्सव।
ऊ + ऊ = ऊ = भू + उर्ध्व = भूल।
गुण स्वर-सन्धि :
(क) यदि अ अथवा आ के पश्चात् इ अथवा ई आती है तो दोनों के स्थान पर ‘ए’ हो जाता है; जैसे
अ + इ = ए = नर + इन्द्र =नरेन्द्र।।
अ + ई = ए = परम + ईश्वर =परमेश्वर।
आ + इ = ए = महा + इन्द्र = महेन्द्र।
आ + इ = ए = महा + ईश = महेश।
(ख) अब अ या आ के बाद उ या ऊ आते हैं तो दोनों के स्थान में ‘ओ’ हो जाता है; जैसे
अ + उ = ओ = हित + उपदेश = हितोपदेश।
अ + ऊ = ओ = जल + ऊर्मि = जलोर्मि।
आ + उ = ओ = गंगा — उदक = गंगोदक।
आ + ऊ = ओ = गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि।
(ग) यदि अ अथवा आ के परे ऋ हो तो दोनों मिलकर ‘अर्’ हो जाते हैं; जैसे
अ + ऋ = अर् = देव + ऋषि = देवर्षि
आ + ऋ = अर् = महा + ऋषि = महर्षि
वृद्धि स्वर-सन्धि :
(क) यदि अ अथवा आ के बाद ए या ऐ हो तो दोनों मिलकर ‘ऐ’ हो जाते हैं; जैसे
अ + ए = ऐ = एक + एक = एकैक।
अ + ऐ = ऐ = मत + ऐक्य = मतैक्य।
आ + ए = ऐ = सदा + एव = सदैव।
ऐ = ऐ = महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य।
(ख) यदि अ अथवा आ के बाद ओ या औ आए तो दोनों मिलकर ‘औ’ हो जाते हैं;
जैसे
अ + ओ = औ = जल + ओध = जलौध।
अ + औ = औ = परम + औषधि = परमौषधि।
आ + ओ = औ = महा + ओजस्वी = महौजस्वी।
आ + औ = औ = महा + औदार्य = महौदार्य।
यण स्वर-सन्धि :
(क) इ अथवा ई के बाद यदि इ या ई को छोड़कर कोई दूसरा स्वर हो तो इ या ई के स्थान पर ‘य्’ हो जाता है; जैसे
इ + अ = य = यदि + अपि = यद्यपि।
इ + आ = या = इति + आदि = इत्यादि।
इ + उ = य = अति + उत्तम = अत्युत्तम।
इ + ए = ये = प्रति + एक = प्रत्येक।
(ख) उ या ऊ के पश्चात् उ या ऊ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये तो उ या ऊ के स्थान पर ‘व्’ हो जाया करता है; जैसे
उ + अ = व = अनु + अय = अन्वय
उ + आ = वा = सु + आगतम् = स्वागतम्।
उ + ए = वे = अनु + एषण = अन्वेषण।
(ग) ऋ या ऋ के पश्चात् कोई असवर्ण स्वर (ऋया ऋ) को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये तो ऋ अथवा ऋ के स्थान पर ‘र’ हो जाता है; जैसे
ऋ + अ = र = पितृ + अनुमति = पित्रनुमति ।
ऋ + आ = रा = पित + आज्ञा = पित्राज्ञा।
ऋ + इ = रि = पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा।
ऋ + उ = रु = पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश।
अयादि स्वर-सन्धि :
(क) ए अथवा ऐ के पश्चात् जब कोई स्वर हो तो ए के स्थान पर ‘अय्’ और ऐ के स्थान पर ‘आय’ हो जाता है; जैसे
ए + अ = अय् = ने + अन = नयन।।
ऐ + अ = आय = नै + अक = नायक।
ऐ + ई = आयि = नै + इका = नायिका।
(ख) ओ अथवा औ के पश्चात् जब कोई स्वर हो तो ओ के स्थान पर ‘अव्’ और औ के स्थान पर ‘आव्’ हो जाता है; जैसे
ओ + अ = अव् = पो + अन = पवन।
औ + अ = आव् = पौ + अक = पावक।
व्यंजन सन्धि :
(क) त् या द् के परे च या छ हो अथवा ज या झ हो तो त् या द् के स्थान में क्रम से च् और ज् हो जाते हैं; जैसे-
उत् + चारण = उच्चारण।
शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र।
विपद् + जाल = विपज्जाल।
सत् + जन = सज्जन ।
(ख) यदि पद के अन्त में त् या द् और इनके परे श वर्णन हो तो त् या द् के स्थान में ‘च’ हो जाता है और श बदलकर ‘छ’ हो जाता है; जैसे-
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र।
उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट।
तद् + शरीर = तच्छरीर।
(ग) यदि पद के अन्त में त् या द् हो और इनके परे ह हो तो त् या द् के स्थान पर ‘द’ और ह के स्थान में ‘ध्’ हो जाता है। जैसे-
उत् + हत = उद्धत।
तत् + हित = तद्धित।
(घ) पदान्त त् के बाद यदि कोई स्वर आये अथवा ग, घ, द, ध, व, भ, य,र व इनमें कोई वर्ण हो, तो त् बदलकर ‘द्’ हो जाता है; जैसे-
जगत् + ईश = जगदीश।
महत् + ऐश्वर्य = महदैश्वर्य।
जगत् + इन्द्र = जगदिन्द्र।
महत् + औषध = महदौषध।
विसर्ग-सन्धि :
(क) यदि विसर्ग के परे च या छ हो, तो विसर्ग का श् हो जाता है। जैसे
निः + चल = निश्चल।
निः + छल = निश्छल।
(ख) यदि विसर्ग के बाद ट या ठ आवे,तो विसर्ग का ष् हो जाता है। जैसे
धनुः + टकार = धनुष्टंकार।
स्थिरः + ठक्कुर = स्थिरष्ठक्कुर।
(ग) यदि विसर्ग के पहले अ हो और आगे किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ अथवा पंचम वर्ण अथवा य, र, ल,व, ह इनमें से कोई वर्ण हो तो विसर्ग और पूर्ववर्ती अ दोनों मिलकर ओ हो जाते हैं; जैसे
मनः + योग = मनोयोग।
तेजः + राशि = तेजोराशि।
मनः + रथ = मनोरथ।
मनः + हर = मनोहर।
मनः + विकार = मनोविकार।
(घ) यदि विसर्ग के पहले अ, आ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर हो और आगे किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण य, र, ल, व, ह या अन्य कोई स्वर हो, तो विसर्ग के स्थान में र हो जाता है; जैसे-
निः + धन = निर्धन।
निः + गुण = निर्गुण।