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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 16 जल: एक बहुमूल्य संसाधन
→ सभी जीवों को जीवित रहने के लिए जल की आवश्यकता होती है।
→ जल की तीन अवस्थाएँ–ठोस, द्रव तथा गैस हैं।
→ दुनिया के कुल ताजे पानी का 1% से भी कम या धरती/पृथ्वी पर उपलब्ध संपूर्ण जल का लगभग 0.003% जल ही मनुष्य के प्रयोग के लिए उपलब्ध है।
→ पृथ्वी पर उपलब्ध लगभग संपूर्ण जल समुद्रों तथा महासागरों, नदियों, तालाबों, ध्रुवीय बर्फ, भूमि जल तथा वायुमंडल में मिलता है।
→ उपयोग के लिए उपयुक्त जल ताज़ा पानी है।
→ पृथ्वी पर नमक रहित जल पृथ्वी पर उपलब्ध जल की मात्रा का 0.006% है।
→ जल की तीन अवस्थाएं हैं-
- ठोस,
- द्रव,
- गैस।
→ ठोस अवस्था में जल बर्फ तथा हिम के रूप में पृथ्वी के ध्रुवों पर बर्फ से ढके पहाड़ों तथा ग्लेशियरों में मिलता है।
→ द्रव अवस्था में जल महासागरों, झीलों, नदियों के अतिरिक्त भूमि तल के नीचे भूमि जल के रूप में मिलता है।
→ गैसी अवस्था में जल हवा में जलवायु के रूप में उपलब्ध रहता है।
→ वर्षा का जल सबसे शुद्ध जल समझा जाता है।
→ जल-चक्र द्वारा जल का स्थानांतरण होता है।
→ जल का मुख्य स्रोत भूमि-जल है।
→ स्थिर कठोर चट्टानों की पर्तों में भूमि जल इकट्ठा हो जाता है।
→ जनसंख्या में वृद्धि, औद्योगिक तथा खेती गतिविधियों आदि भूमि-जल स्तर को प्रभावित करने वाले कारक हैं।
→ भूमि-जल का अधिक उपयोग तथा जल का कम रिसाव होने के कारण भूमि-जल का स्तर कम हो गया है।
→ भूमि-जल स्तर को प्रभावित करने वाले कारक हैं-जंगलों (वनों) का कटना तथा पानी को सोखने के लिए आवश्यक क्षेत्रों की कमी।
→ बावड़िया तथा बूंद (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली जल की कमी को पूर्ण करने की तकनीकें हैं।
→ पौधों को कुछ दिनों तक पानी/जल न देने से वह मुरझा जाते हैं तथा अंत में सूख जाते हैं।
→ पंजाब सरकार ने वर्ष 2009 में “पंजाब भूमि-जल संरक्षण कानून 2009” पास (लागू) किया था जिसके तहत पहली बार धान की खेती लगाने की तारीख 10 जून निर्धारित की गई। बाद में वर्ष 2015 में इसे 15 जून किया गया।
→ मृत सागर एक नमकीन झील है जो पूर्व से जार्डन तथा पश्चिम से इसराईल तथा फिलस्तीन से घिरा हुआ है। यह दूसरे महासागरों से 8.6 गुणा अधिक क्षारक है। अधिक क्षारीय होने से जलीय पौधे तथा जलीय जंतुओं को उत्पन्न होने से रोकता है, जिस कारण इसे मृत सागर कहते हैं।
→ जल चक्र : कई प्रक्रियाएँ जैसे कि पानी का वायु में वाष्पीकरण, संघनन क्रिया द्वारा बादलों का बनना तथा वर्षा का आना जिससे पृथ्वी पर जल का कायम रहना, भले ही पूरी दुनिया इसका प्रयोग करती है, जल चक्र कहलाता है।
→ ताज़ा जल : जो जल पीने के लिए उचित होता है, वह ताज़ा जल है। इसमें कम मात्रा में नमक (लवण) घुले होते हैं। यह पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का लगभग 3% है जो नदियों, झीलों, ग्लेशियरों, बर्फ से ढकी चोटियों तथा पृथ्वी के नीचे होता है।
→ जल-स्तर या वॉटर-टेबल : जलीय स्रोत के समीप गहराई में जहाँ चट्टानों के बीच की जगह जल से भरी होती है, को पृथ्वी के नीचे का क्षेत्र या संतृप्त क्षेत्र कहते हैं। इस जल की ऊपरी सतह को जल स्तर या वॉटर टेवल कहते हैं।
→ जलीय चट्टानी पर्त : पृथ्वी के नीचे का जल वाटर लेबल से भी नीचे सख्त चट्टानों की पर्तों के बीच होता है जिसे जलीय चट्टानी पर्त कहते हैं। यह जल नलों तथा ट्यूबवैलों द्वारा निकाला जाता है।
→ इनफिल्ट्रेशन (अंकुइफिर) : जल के भिन्न-भिन्न स्रोतों जैसे-वर्षा, नदी तथा छप्पड़ों का पानी गुरुत्वाकर्षण के कारण रिस-रिस कर पृथ्वी के अंदर के रिक्त स्थान पर भरने को इनफिल्ट्रेशन कहते है।
→ जल प्रबंधन : जल को उचित ढंग से बाँटना जल प्रबंधन है।
→ बूंद सिंचाई प्रणाली : यह सिंचाई की ऐसी तकनीक है जिसमें पानी पाइपों के द्वारा पौधों तक बूंद-बूंद करके पहुँचता है।
→ जल भंडारण : वर्षा जल को आवश्यकता के समय उपयोग में लाने के लिए जमा करने की विधि को जल भंडारण कहते हैं। इसको जल स्तर की प्रतिपूर्ति के लिए किया जाता है।
→ बाउली (बावड़ी) : यह पुरातन (प्राचीन) काल की जल भंडारण की विधि है। भारत में कई स्थानों पर यह विधि जल-भंडारण के लिए प्रयोग होती है।