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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 3 रेशों से वस्त्र तक
→ ऊन और रेशम के रेशे प्रकृति में जन्तुओं से प्राप्त होते हैं।
→ ऊन के रेशे भेड़, बकरी या याक से प्राप्त होते हैं।
→ भेड़ की पतली चमड़ी के ऊपर दो प्रकार के रेशे होते हैं-
- दाढ़ी के रुखे बाल तथा
- त्वचा के निकट मौजूद तन्तु रूपी मुलायम बाल।
→ वर्णात्मक प्रजनन विधि द्वारा जनकों का चयन करके अनिवार्य विशेष गुण जैसे मुलायम बालों वाली भेड़ें या घनी जत वाली भेड़ें पैदा की जा सकती हैं।
→ विभिन्न प्रकार की ऊन होती है, जैसे-भेड़ की ऊन, अंगोरा ऊन तथा कश्मीरी ऊन।
→ ऊन प्राप्ति के लिए भेड़ों को पाला जाता है।
→ सौर्टम रोग, एंथैक्स जीवाणु द्वारा संक्रमित होता है।
→ रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम के कीड़ों को पालना रेशम कीट पालन (सेरी कल्चर) कहलाता है।
→ मादा रेशम कीट सैंकड़ों अंडे देती हैं।
→ अंडों से निकलने वाले लारवा कैटरपिलर कहलाते हैं।
→ कैटरपिलर अपने आकार में वृद्धि करते हैं तथा प्यूपा (बालिग) बन जाते हैं।
→ प्यूपा अपने इर्द-गिर्द एक 8 की शक्ल का प्रोटीन का जाल बुन लेता है। जो हवा के संपर्क में आकर सख्त होकर रेशम का फाइबर बन जाता है।
→ प्यूपा इन रेशों से अपने आप को ढक लेता है तथा इस आकृति को कोकून कहते हैं।
→ सबसे सामान्य रेशम कीट ‘शहतूत रेशम’ कीट है। रेशम की अन्य किस्में टस्सर रेशम, मूंगा रेशम तथा कोसा रेशम हैं।
→ जिस प्रक्रिया द्वारा कोकून को उबालकर या भाप देकर रेशे निकाले जाते हैं, उसे रेशम की रीलिंग कहते हैं।
→ रीलिंग विशेष मशीनों से की जाती है।
→ रेशमी कपड़े बुनने के लिए रेशमी धागे का प्रयोग करते हैं।
→ जत : भेड़ के शरीर के बालों का गुच्छा ।
→ रीलिंग : रेशम के कोकून को पानी में उबाल कर या भाप देकर रेशम के रेशे निकालने की प्रक्रिया रीलिंग कहलाती है।
→ सकोरिंग या अभिमार्जन : कटी हुई चमड़ी सहित बालों को टैंकियों में डालकर चिकनाई, धूल, मैल तथा पसीना आदि हटाने के लिए अच्छी तरह धोना, सकोरिंग या अभिमार्जन कहलाता है।
→ कोकून : रेशम के रेशों से बनी हुई परत जो कैटरपिलर को ढक लेती है, कोकून कहलाती है।
→ सेरी कल्चर (रेशम के कीड़े को पालना) : रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम के कीड़ों को पालना सेरी कल्चर कहलाता है।
→ शियरिंग या कटाई : भेड़ के बालों और चमड़ी की पतली परत को भेड़ के शरीर से हटाने की प्रक्रिया को शियरिंग या ऊन की कटाई कहा जाता है।
→ थ्रोइंग : कच्चे रेशम को या काते हुए रेशम को मज़बूत (मोटा) करने के लिए काता जाता है। इस प्रक्रिया को थ्रोइंग कहते हैं। यह अलग-अलग रेशों को टूटने से बचाता है।
→ कोंबिंग या कंघी करना : छोटे फूले हुए रेशे जिन्हें गांठे कहा जाता है, को हटाने की प्रक्रिया कोंबिंग या कंघी करना कहलाता है।
→ डाईंग या रंगाई करना : भेड़ों की ऊन को भिन्न-भिन्न रंगों में रंगा जा सकता है क्योंकि जो कुदरती या प्राकृतिक रंग केवल काला, भूरा या सफ़ेद होता है।
→ वर्णात्मक प्रजनन : विशेष आवश्यक गुणों की दो भेड़ों को उत्पन्न करने के लिए जनकों का चयन कर लिया जाता है फिर दोनों जनकों को प्रजनन में शामिल किया जाता है, इस प्रक्रिया को वर्णात्मक प्रजनन कहते हैं।