Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 12 ग्रामीण जीवन तथा समाज Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 12 ग्रामीण जीवन तथा समाज
SST Guide for Class 8 PSEB ग्रामीण जीवन तथा समाज Textbook Questions and Answers
I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखें:
प्रश्न 1.
स्थायी बन्दोबस्त किसने, कब तथा कहां आरंभ किया ?
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त लार्ड कार्नवालिस ने 1793 ई० में बंगाल में आ म किया। बाद में यह व्यवस्था बिहार, उड़ीसा, बनारस तथा उत्तरी भारत में भी लागू की गई।
प्रश्न 2.
रैयतवाड़ी व्यवस्था किसने, कब तथा कहां-कहां शुरू की गई ? (P.B. 2009 Set-B)
उत्तर-
रैयतवाड़ी व्यवस्था 1820 ई० में अंग्रेज़ अधिकारी थॉमस मुनरो ने मद्रास (चेन्नई) तथा बम्बई (मुम्बई) में शुरू की।
प्रश्न 3.
महलवाड़ी व्यवस्था कौन-से तीन क्षेत्रों में लाग की गयी?
उत्तर-
महलवाड़ी व्यवस्था उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा मध्य भारत के कुछ प्रदेशों में लागू की गयी।
प्रश्न 4.
कृषि का वाणिज्यीकरण कैसे हुआ ?
उत्तर-
अंग्रेजी शासन से पूर्व कृषि गांव के लोगों की जरूरतों को ही पूरा करती थी। परन्तु अंग्रेजों द्वारा नई भूमिकर प्रणालियों के बाद किसान मण्डी में बेचने के लिए फसलें उगाने लगे ताकि अधिक-से-अधिक धन कमाया जा सके। इस प्रकार गांवों में कृषि का वाणिज्यीकरण हो गया।
प्रश्न 5.
वाणिज्यीकरण की मुख्य फ़सलें कौन-सी थीं ?
उत्तर-
वाणिज्यीकरण की मुख्य फ़सलें गेहूँ, कपास, तेल के बीज, गन्ना, पटसन आदि थीं।
प्रश्न 6.
कृषि के वाणिज्यीकरण के दो मुख्य लाभ बतायें।
उत्तर-
- कृषि के वाणिज्यीकरण के कारण भिन्न-भिन्न प्रकार की फ़सलें उगाई जाने लगीं। इससे पैदावार में भी वृद्धि हुई।
- फ़सलों को नगर की मण्डियों तक ले जाने के लिए यातायात के साधनों का विकास हुआ।
प्रश्न 7.
कृषि के वाणिज्यीकरण के दो मुख्य दोष लिखें।
उत्तर-
- भारतीय किसान पुराने ढंग से कृषि करते थे। अतः मण्डियों में उनकी फ़सलें विदेशों में मशीनी कृषि द्वारा उगाई गई फ़सलों का मुकाबला नहीं कर पाती थीं। परिणामस्वरूप उन्हें अधिक लाभ नहीं होता था।
- मण्डी में किसान को अपनी फ़सल आढ़ती की सहायता से बेचनी पड़ती थी। आढ़ती मुनाफ़े का एक बड़ा भाग अपने पास रख लेते थे।
प्रश्न 8.
स्थायी बन्दोबस्त क्या था तथा उसके क्या आर्थिक प्रभाव पड़े ?
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त एक भूमि प्रबन्ध था। इसे 1793 ई० में लार्ड कार्नवालिस ने बंगाल में लागू किया था। बाद में इसे बिहार, उड़ीसा, बनारस तथा उत्तरी भारत में लागू कर दिया गया। इसके अनुसार ज़मींदारों को सदा के लिए भूमि का स्वामी बना दिया गया। उनके द्वारा सरकार को दिया जाने वाला लगान निश्चित कर दिया गया। वे लगान की निश्चित राशि सरकारी खजाने में जमा करवाते थे। परन्तु किसानों से वे मनचाहा लगान वसूल करते थे। यदि कोई ज़मींदार लगान नहीं दे पाता था तो सरकार उसकी ज़मीन का कुछ भाग बेच कर लगान की राशि पूरी कर लेती थी।
आर्थिक प्रभाव-स्थायी बन्दोबस्त से सरकार की आय तो निश्चित हो गई, परन्तु किसानों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। ज़मींदार उनका शोषण करने लगे। ज़मींदार भूमि-सुधार की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे। फलस्वरूप किसान की पैदावार दिन-प्रतिदिन घटने लगी।
प्रश्न 9.
कृषि वाणिज्यीकरण पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना से पहले गांव आत्मनिर्भर थे। लोग कृषि करते थे जिसका उद्देश्य गांव की ज़रूरतों को पूरा करना होता था। फ़सलों को बेचा नहीं जाता था। गांव के अन्य कामगार जैसे कुम्हार, बुनकर, चर्मकार, बढ़ई, लुहार, धोबी, बारबर आदि सभी मिलकर एक-दूसरे की ज़रूरतों को पूरा करते थे। परन्तु अंग्रेज़ी शासन की स्थापना के बाद गांवों की आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था समाप्त हो गई। नई भूमि-कर प्रणालियों के अनुसार किसानों को लगान की निश्चित राशि निश्चित समय पर चुकानी होती थी। पैसा पाने के लिए किसान अब मण्डी में बेचने के लिए फ़सलें उगाने लगे ताकि समय पर लगान चुकाया जा सके। इस प्रकार कृषि का उद्देश्य अब धन कमाना हो गया। इसे कृषि का वाणिज्यीकरण कहा जाता है। इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के बाद भारत में कृषि के वाणिज्यीकरण की प्रक्रिया और भी जटिल हो गई। अब किसानों को ऐसी फ़सलें उगाने के लिए विवश किया गया जिनसे इंग्लैण्ड के कारखानों को कच्चा माल मिल सके।
प्रश्न 10.
नील विद्रोह पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
नील विद्रोह नील की खेती करने वाले किसानों द्वारा नील उत्पादन पर अधिक लगान के विरोध में किये गये। 1858 ई० से 1860 ई० के बीच बंगाल तथा बिहार के एक बहुत बड़े भाग में नील विद्रोह हुआ। यहां के किसानों ने नील उगाने से इन्कार कर दिया। सरकार ने उन्हें बहुत डराया-धमकाया। परन्तु वे अपनी जिद्द पर अड़े रहे। जब सरकार ने कठोरता से काम लिया तो वे अंग्रेज़ काश्तकारों की फैक्टरियों पर हमला करके लूटमार करने लगे। उन्हें रोकने के लिए सभी सरकारी प्रयास असफल रहे।
1866-68 ई० में नील की खेती के विरुद्ध बिहार के चम्पारण जिले में विद्रोह हुआ। यह विद्रोह 20वीं शताब्दी के आरम्भ तक जारी रहा। उनके समर्थन में गांधी जी आगे आए। तभी समस्या का समाधान हो सका।
प्रश्न 11.
महलवाड़ी व्यवस्था पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
महलवाड़ी व्यवस्था रैयतवाड़ी प्रबन्ध के दोषों को दूर करने के लिए की गयी। इसे उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा मध्य भारत के कुछ प्रदेशों में लागू किया गया। इस प्रबन्ध की विशेषता यह थी कि इसके द्वारा भूमि का सम्बन्ध न तो किसी बड़े ज़मींदार के साथ जोड़ा जाता था और न ही किसी कृषक के साथ। यह प्रबन्ध वास्तव में गांव के समूचे भाईचारे के साथ होता था। भूमि-कर देने के लिए गांव का समूचा भाईचारा ही उत्तरदायी होता था। भाई-चारे में यह निश्चित कर दिया गया था कि प्रत्येक किसान को क्या कुछ देना है। यदि कोई किसान अपना भाग नहीं देता था तो उसकी प्राप्ति गांव के भाई-चारे से की जाती थी। … इस प्रबन्ध को सबसे अच्छा प्रबन्ध माना जाता है क्योंकि इसमें पहले के दोनों प्रबन्धों के गुण विद्यमान थे। इस प्रबन्ध में केवल एक ही दोष था कि इसके अनुसार लोगों को बहुत अधिक भूमि-कर (लगान) देना पड़ता था।
प्रश्न 12.
रैयतवाड़ी व्यवस्था के लाभ लिखें।
अथवा
रैयतवाड़ी प्रबन्ध पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
1820 ई० में थॉमस मुनरो मद्रास (चेन्नई) का गवर्नर नियुक्त हुआ। उसने भूमि का प्रबन्ध एक नये ढंग से किया, जिसे रैयतवाड़ी व्यवस्था के नाम से पुकारा जाता है। इसे मद्रास तथा बम्बई में लागू किया गया। इसके अनुसार सरकार ने भूमि-कर उन लोगों से लेने का निश्चय किया जो स्वयं कृषि करते थे। अतः सरकार तथा कृषकों के बीच जितने भी मध्यस्थ थे उन्हें हटा दिया गया। यह प्रबन्ध स्थायी प्रबन्ध की अपेक्षा अधिक अच्छा था। इसमें कृषकों को भूमि का स्वामी बना दिया गया। उनका लगान निश्चित कर दिया गया जो उपज का 40% से 55% तक था। इससे सरकारी आय में भी वृद्धि हुई।
इस प्रथा में कुछ दोष भी थे। इस प्रथा के कारण गांव का भाई-चारा समाप्त होने लगा और गांव की पंचायतों का महत्त्व कम हो गया। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा किसानों का शोषण होने लगा। कई ग़रीब किसानों को लगान चुकाने के लिए साहूकारों से धन उधार लेना पड़ा। इसके लिए उन्हें अपनी ज़मीनें गिरवी रखनी पड़ी।
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
1. ठेकेदार किसानों को अधिक-से-अधिक …………… थे।
2. स्थायी बंदोबस्त के कारण …………… भूमि के मालिक बन गए।
3. ज़मींदार किसानों पर ………….. करते थे।
4. भारत में अंग्रेज़ी शासन की स्थापना से पूर्व भारतीय लोगों का प्रमुख कार्य………….करना था।
उत्तर-
- लूटते,
- ज़मींदार,
- बहुत जुल्म/अत्याचार,
- कृषि।
III. प्रत्येक वाक्य के आगे ‘सही’ (✓) या ‘गलत’ (✗) का चिन्ह लगाएं :
1. भारत में अंग्रेज़ी शासन हो जाने से गांवों की आत्मनिर्भर व्यवस्था को बहुत लाभ हुआ। (✗)
2. महलवाड़ी प्रबन्ध गांव के सामूहिक भाईचारे से किया जाता था। (✓)
3. बंगाल के स्थायी बन्दोबस्त अनुसार अंग्रेज़ों ने बिक्री कानून लागू किया। (✓)
IV. सही जोड़े बनाएं:
PSEB 8th Class Social Science Guide ग्रामीण जीवन तथा समाज Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)
सही विकल्प चुनिए:
प्रश्न 1.
महलवाड़ी व्यवस्था कहां लागू की गई ?
(i) उत्तर प्रदेश
(ii) पंजाब
(iii) मध्य भारत
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
उपरोक्त सभी
प्रश्न 2.
थामस मुनरो द्वारा लागू भूमि व्यवस्था कौन-सी थी ?
(i) रैय्यतवाड़ी
(ii) महलवाड़ी
(iii) स्थायी बंदोबस्त
(iv) ठेका व्यवस्था।
उत्तर-
रैय्यतवाड़ी
प्रश्न 3.
नील विद्रोह कहाँ फैला ?
(i) पंजाब तथा उत्तर प्रदेश
(ii) बंगाल तथा बिहार
(iii) राजस्थान तथा मध्य भारत
(iv) दक्षिणी भारत।
उत्तर-
बंगाल तथा बिहार।
अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
अंग्रेजों द्वारा अपनाई गई आर्थिक नीतियों से भारतीय उद्योग क्यों तबाह हो गए ?
उत्तर-
अंग्रेज़ों ने भारत में कुछ नये उद्योग स्थापित किए। इनका उद्देश्य अंग्रेजी हितों को पूरा करना था। परिणामस्वरूप भारतीय उद्योग तबाह हो गए।
प्रश्न 2.
अंग्रेजों ने भारत में लगान (भूमि-कर) के कौन-कौन से तीन नए प्रबन्ध लागू किए ?
उत्तर-
(1) स्थायी बन्दोबस्त (2) रैयतवाड़ी प्रबन्ध तथा (3) महलवाड़ी प्रबन्ध।
प्रश्न 3.
अंग्रेज़ों की भूमि सम्बन्धी नीतियों का मुख्य उद्देश्य क्या था ? .
उत्तर-
भारत से अधिक-से-अधिक धन इकट्ठा करना।
प्रश्न 4.
अंग्रेजों को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी कब प्राप्त हुई ? वहां लगान इकट्ठा करने का काम किसे सौंपा गया ?
उत्तर-
अंग्रेजों को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी 1765 ई० में प्राप्त हुई। वहां से लगान इकट्ठा करने का काम आमिलों को सौंपा गया।
प्रश्न 5.
इज़ारेदारी किसने लागू की थी ? इसका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
इज़ारेदारी लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्ज़ ने लागू की थी। इसका अर्थ है-ठेके पर भूमि देने का प्रबन्ध।
प्रश्न 6.
रैयतवाड़ी प्रबन्ध में लगान की राशि कितने वर्षों बाद बढ़ाई जाती थी ?
उत्तर-
20 से 30 वर्षों बाद।
प्रश्न 7.
महलवाड़ी प्रबन्ध का मुख्य दोष क्या था ?
उत्तर-
इसमें किसानों को बहुत अधिक लगान देना पड़ता था।
प्रश्न 8.
कृषि का वाणिज्यीकरण कौन-कौन से पांच क्षेत्रों में सबसे अधिक हुआ ?
उत्तर-
पंजाब, बंगाल, गुजरात, खानदेश तथा बरार में।
प्रश्न 9.
बंगाल में स्थायी बन्दोबस्त के अनुसार लागू किया गया बिक्री कानून क्या था ?
उत्तर-
बिक्री कानून के अनुसार जो ज़मींदार हर साल 31 मार्च तक लगान की राशि सरकारी खज़ाने में जमा नहीं करवाता था, उसकी ज़मीन किसी दूसरे ज़मींदार को बेच दी जाती थी।
प्रश्न 10.
किसान विद्रोहों का मुख्य कारण क्या था ?
उत्तर-
किसान विद्रोहों का मुख्य कारण अधिक लगान तथा इसे कठोरता से वसूल करना था। इससे किसानों की दशा खराब हो गई। इसलिए उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
छोटे उत्तर वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
लॉर्ड वारेन हेस्टिग्ज़ द्वारा लागू इजारेदारी प्रथा पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
इज़ारेदारी का अर्थ है-ठेके पर भूमि देने का प्रबन्ध। यह प्रथा वारेन हेस्टिग्ज़ ने आरम्भ की। इसके अनुसार भूमि का पांच साला ठेका दिया जाता था। जो ज़मींदार भूमि की सबसे अधिक बोली देता था उसे उस भूमि से पांच साल तक लगान वसूल करने का अधिकार दे दिया जाता था। 1777 ई० में पांच साला ठेके के स्थान पर एक साला ठेका दिया जाने लगा। परन्तु ठेके पर भूमि देने का प्रबन्ध बहुत ही दोषपूर्ण था। ज़मींदार (ठेकेदार) किसानों को बहुत अधिक लूटते थे। इसलिए किसानों की आर्थिक दशा खराब हो गई।
प्रश्न 2.
स्थायी बन्दोबस्त से किसानों की अपेक्षा ज़मींदारों को अधिक लाभ कैसे पहुंचा ?
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त के कारण ज़मींदारों को बहुत लाभ हुआ। अब वे भूमि के स्थायी स्वामी बन गए। उनको भूमि बेचने या बदलने का अधिकार मिल गया। वे निश्चित लगान कम्पनी को देते थे परन्तु वे किसानों से अपनी इच्छानुसार लगान वसूल करते थे। यदि कोई किसान लगान न दे पाता तो उससे भूमि छीन ली जाती थी। अधिकतर जमींदार शहरों में विलासी जीवन बिताते थे जबकि किसान ग़रीबी और भूख के वातावरण में अपने दिन बिताते थे। अत: हम कह सकते थे कि स्थायी बन्दोबस्त से किसानों की अपेक्षा ज़मींदारों को अधिक लाभ पहुंचा।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अंग्रेजों द्वारा लागू की गई नई भू-राजस्व व्यवस्थाओं के क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर-
अंग्रेजों द्वारा लागू की गई नई भू-राजस्व व्यवस्थाओं के बहुत बुरे प्रभाव पड़े-
- ज़मींदार किसानों का बहुत अधिक शोषण करते थे। लगान वसूल करते समय उन पर तरह-तरह के अत्याचार भी किये जाते थे। सरकार उन्हें अत्याचार करने से नहीं रोकती थी।
- ज़मींदार सरकार को निश्चित लगान देकर भूमि के स्वामी बन गए। वे किसानों से मनचाहा कर वसूल करते थे। इससे ज़मींदार तो धनी होते गए, जबकि किसान दिन-प्रतिदिन ग़रीब होते गए।
- जिन स्थानों पर रैयतवाड़ी तथा महलवाड़ी प्रबन्ध लागू किए गए, वहां सरकार स्वयं किसानों का शोषण करती थी। इन क्षेत्रों में उपज का 1/3 भाग से लेकर 1/2 भाग तक भूमि-कर के रूप में वसूल किया जाता था। लगान की दर हर साल बढ़ती जाती थी।
- भूमि के निजी सम्पत्ति बन जाने के कारण इसका परिवार के सदस्यों में बंटवारा होने लगा। इस प्रकार भूमि छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटती गई।
- किसानों को निश्चित तिथि पर लगान चुकाना होता था। अकाल, बाढ़, सूखे आदि की दशा में भी उनका लगान माफ़ नहीं किया जाता था। इसलिए लगान चुकाने के लिए उन्हें अपनी ज़मीन साहूकार के पास गिरवी रख कर धन उधार लेना पड़ता था। इस प्रकार वे अपनी ज़मीनों से भी हाथ धो बैठे और उनका ऋण भी लगातार बढ़ता गया जिसे वे जीवन भर नहीं उतार पाये।
- सच तो यह है कि अंग्रेज़ी सरकार की कृषि-भूमि सम्बन्धी नीतियों का मुख्य उद्देश्य अधिक-से-अधिक धन प्राप्त करना तथा अपने प्रशासनिक हितों की पूर्ति करना था। अतः इन नीतियों ने किसानों को ग़रीबी तथा ऋण की जंजीरों में जकड़ लिया।
प्रश्न 2.
भारत में अंग्रेजों के शासन के समय लागू किये गए स्थायी बन्दोबस्त, रैयतवाड़ी प्रबन्ध ( व्यवस्था) तथा महलवाड़ी प्रबन्ध (व्यवस्था) का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त, रैयतवाड़ी तथा महलवाड़ी प्रबन्ध अंग्रेजों द्वारा लागू नई लगान प्रणालियां थीं। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है :
1. स्थायी बन्दोबस्त- भूमि का स्थायी बन्दोबस्त 1793 ई० में लार्ड कार्नवालिस ने बंगाल में लागू किया था। बाद में इसे बिहार, उड़ीसा, बनारस तथा उत्तरी भारत में भी लागू कर दिया गया। इसके अनुसार ज़मींदारों को सदा के लिए भूमि का स्वामी मान लिया गया। उनके द्वारा सरकार को दिया जाने वाला लगान निश्चित कर दिया गया। वे लगान की निश्चित राशि सरकारी खजाने में जमा करवाते थे। परन्तु किसानों से वे मनचाहा लगान वसूल करते थे। यदि कोई ज़मींदार लगान नहीं दे पाता था तो सरकार उसकी ज़मीन का कुछ भाग बेच कर लगान की राशि पूरी कर लेती थी।
स्थायी बन्दोबस्त से सरकार की आय तो निश्चित हो गई, परन्तु किसानों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। ज़मींदार उनका शोषण करने लगे।
2. रैयतवाड़ी व्यवस्था-1820 ई० में थॉमस मुनरो मद्रास (चेन्नई) का गवर्नर नियुक्त हुआ। उसने भूमि का प्रबन्ध एक नये ढंग से किया, जिसे रैयतवाड़ी व्यवस्था के नाम से पुकारा जाता है। इसे मद्रास तथा बम्बई में लागू किया गया। सरकार ने भूमि-कर उन लोगों से लेने का निश्चय किया जो स्वयं कृषि करते थे। अतः सरकार तथा कृषकों के बीच जितने भी मध्यस्थ थे उन्हें हटा दिया गया। यह प्रबन्ध स्थायी प्रबन्ध की अपेक्षा अधिक अच्छा था। इसमें कृषकों के अधिकार बढ़ गये तथा सरकारी आय में भी वृद्धि हुई।
इस प्रथा में कुछ दोष भी थे। इस प्रथा के कारण गांव का भाई-चारा समाप्त होने लगा और गांव की पंचायतों का महत्त्व कम हो गया। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा किसानों का शोषण होने लगा। कई गरीब किसानों को लगान चुकाने के लिए साहूकारों से धन उधार लेना पड़ा। इसके लिए उन्हें अपनी ज़मीनें गिरवी रखनी पड़ी।
3. महलवाड़ी व्यवस्था (प्रबंध)-महलवाड़ी प्रबन्ध रैयतवाड़ी व्यवस्था के दोषों को दूर करने के लिए किया गया। इसे उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा मध्य भारत के कुछ प्रदेशों में लागू किया गया। इस प्रबन्ध की विशेषता यह थी कि इसके द्वारा भूमि का सम्बन्ध न तो किसी बड़े ज़मींदार के साथ जोड़ा जाता था और न ही किसी कृषक के साथ। यह प्रबन्ध वास्तव में गांव के समूचे भाई-चारे के साथ होता था। भूमि-कर देने के लिए गांव का समूचा भाई-चारा ही उत्तरदायी होता था। भाई-चारे में यह निश्चित कर दिया गया था कि प्रत्येक किसान को क्या कुछ देना है। यदि कोई किसान अपना भाग नहीं देता था तो उसकी प्राप्ति गांव के भाई-चारे से की जाती थी। इस प्रबन्ध को सबसे अच्छा प्रबन्ध माना जाता है क्योंकि इसमें पहले के दोनों प्रबन्धों के गुण विद्यमान थे। इस प्रबन्ध में केवल एक ही दोष था कि इसके अनुसार लोगों को बहुत अधिक भूमि कर (लगान) देना पड़ता था।
प्रश्न 3.
स्थायी बन्दोबस्त क्या है तथा इसके मुख्य लाभ तथा हानियां भी बताएं।
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त एक भूमि प्रबन्ध था। इसे 1793 ई० में लार्ड कार्नवालिस ने बंगाल में लागू किया था। बाद में इसे बिहार, उड़ीसा, बनारस तथा उत्तरी भारत में लागू कर दिया गया। इसके अनुसार ज़मींदारों को सदा के लिए भूमि का स्वामी बना दिया गया। उनके द्वारा सरकार को दिया जाने वाला लगान निश्चित कर दिया गया। वे लगान की निश्चित राशि सरकारी खज़ाने में जमा करवाते थे, परन्तु किसानों से वे मनचाहा लगान वसूल करते थे। यदि कोई ज़मींदार लगान नहीं दे पाता था तो सरकार उसकी ज़मीन का कुछ भाग बेच कर लगान की राशि पूरी कर लेती थी। इससे किसान की पैदावार दिन-प्रतिदिन घटने लगी।
स्थायी बन्दोबस्त के लाभ-स्थायी बंदोबस्त का लाभ मुख्यतः सरकार तथा ज़मींदारों को पहुंचा –
- इस बन्दोबस्त द्वारा ज़मींदार भूमि के स्वामी बन गए।
- अंग्रेजी सरकार की आय निश्चित हो गई।
- ज़मींदार धनी बन गए। उन्होंने अपना धन उद्योग स्थापित करने तथा व्यापार के विकास में लगाया।
- भूमि का स्वामी बना दिए जाने के कारण ज़मींदार अंग्रेजों के वफ़ादार बन गए। उन्होंने भारत में अंग्रेज़ी शासन की नींव को मज़बूत बनाने में सहायता की।
- लगान को बार-बार निश्चित करने की समस्या न रही।
- ज़मींदारों के प्रयत्नों से कृषि का बहुत विकास हुआ।
हानियां अथवा दोष-स्थायी बन्दोबस्त में निम्नलिखित दोष थे-
- ज़मींदार किसानों पर बहुत अधिक अत्याचार करने लगे।
- सरकार की आय निश्चित हो गई थी, परन्तु उसका खर्चा लगातार बढ़ रहा था। इसलिए सरकार को लगातार हानि होने लगी।
- करों का बोझ उन लोगों पर पड़ने लगा जो खेती नहीं करते थे।
- सरकार का किसानों के साथ कोई सीधा सम्पर्क न रहा।
- इस बन्दोबस्त ने बहुत से ज़मींदारों को आलसी तथा ऐश्वर्यप्रिय बना दिया।
प्रश्न 4.
किसान विद्रोहों का वर्णन करो।
उत्तर–
किसान विद्रोहों के निम्नलिखित कारण थे-
1. अधिक लगान-अंग्रेजों ने भारत के जीते हुए प्रदेशों में अलग-अलग लगान-प्रणालियां लागू की थीं। इनके अनुसार किसानों को बहुत अधिक लगान देना पड़ता था। इसलिए वे साहूकारों के ऋणी हो गए जिससे उनकी आर्थिक दशा खराब हो गई।
2. बिक्री कानून-बंगाल के स्थायी बन्दोबस्त के अनुसार सरकार ने बिक्री कानून लागू किया। इसके अनुसार जो जमींदार हर साल अपना लगान मार्च तक सरकारी खजाने में जमा नहीं करवाता था, उस की भूमि छीन कर किसी और ज़मींदार को बेच दी जाती थी। इसके कारण ज़मींदारों तथा उनकी भूमि पर खेती करने वाले किसानों में रोष फैला हुआ था।
3. ज़मीनें जब्त करना-मुग़ल बादशाहों द्वारा राज्य के जागीरदारों को कुछ ज़मीनें ईनाम में दी गई थीं। ये ज़मीनें कर-मुक्त थीं। परन्तु अंग्रेजों ने ये ज़मीनें जब्त कर ली और इन पर फिर से कर लगा दिया। इतना ही नहीं लगान में वृद्धि भी कर दी गई। उनसे लगान वसूल करते समय कठोरता से काम लिया जाता था।
मुख्य किसान विद्रोह-
(1) अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना के पश्चात् शीघ्र ही बंगाल में एक विद्रोह हुआ। इसमें किसानों, संन्यासियों तथा फ़कीरों ने भाग लिया। उन्होंने शस्त्र धारण करके जत्थे बना लिये। इन जत्थों ने अंग्रेजी सैनिक टुकड़ियों को बहुत अधिक परेशान किया। इस विद्रोह को दबाने में अंग्रेज़ी सरकार को लगभग 30 वर्ष लग गये।
(2) 1822 ई० में रामोसी किसानों ने चित्तौड़, सतारा तथा सूरत में अधिक लगान के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। 1825 में सरकार ने सेना तथा कूटनीति के बल पर विद्रोह को दबा दिया। उनमें से कुछ विद्रोहियों को पुलिस में भर्ती कर लिया गया, जबकि अन्य विद्रोहियों को ग्रांट में ज़मीनें देकर शांत कर दिया गया।
(3) 1829 में सेंडोवे जिले के किसानों ने अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। उन्होंने अपने नेता के नेतृत्व में अंग्रेज़ी पुलिस पर हमले किये और बड़ी संख्या में उन्हें मार डाला।
(4) 1835 ई० में गंजम जिले के किसानों ने धनंजय के नेतृत्व में विद्रोह किया। यह विद्रोह फरवरी, 1837 ई० तक चलता रहा। विद्रोहियों ने वृक्ष गिरा कर अंग्रेज़ी सेना के रास्ते बन्द कर दिए। अन्त में सरकार ने एक बहुत बड़े सैनिक बल की सहायता से विद्रोह का दमन कर दिया।
(5) 1842 ई० में सागर में अन्य किसान विद्रोह हुआ। इसका नेतृत्व बुन्देल ज़मींदार माधुकर ने किया। इस विद्रोह में किसानों ने कई पुलिस अफसरों को मौत के घाट उतार दिया तथा अनेक कस्बों में लूटमार की।
सरकार द्वारा अधिक लगान लगाने तथा ज़मीनें जब्त करने के विरोध में देश के अन्य भागों में भी किसान विद्रोह हुए। इन विद्रोहों में पटियाला तथा रावलपिंडी (आधुनिक पाकिस्तान में) के किसान विद्रोहों का नाम लिया जा सकता है।
प्रश्न 5.
भारत में अंग्रेजों के राज्य के समय हुए कृषि के वाणिज्यीकरण के बारे में लिखो।
उत्तर-
भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना से पहले गांव आत्मनिर्भर थे। लोग कृषि करते थे जिसका उद्देश्य गांव की ज़रूरतों को पूरा करना होता था। फ़सलों को बेचा नहीं जाता था। गांव के अन्य कामगार जैसे कुम्हार, जुलाहे, चर्मकार, बढ़ई, लुहार, धोबी, बार्बर आदि सभी मिलकर एक-दूसरे की ज़रूरतों को पूरा करते थे। परन्तु अंग्रेज़ी शासन की स्थापना के बाद गांवों की आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था समाप्त हो गई। नई भूमि-कर प्रणालियों के अनुसार किसानों को लगान की निश्चित राशि निश्चित समय पर चुकानी होती थी। पैसा पाने के लिए किसान अब मंडी में बेचने के लिए फ़सलें उगाने लगे ताकि समय पर लगान चुकाया जा सके। इस प्रकार कृषि का उद्देश्य अब धन कमाना हो गया। इसे कृषि का वाणिज्यीकरण कहा जाता है। इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के बाद भारत में कृषि के वाणिज्यीकरण की प्रक्रिया और भी जटिल हो गई। अब किसानों को ऐसी फ़सलें उगाने के लिए विवश किया गया जिनसे इंग्लैंड के कारखानों को कच्चा माल मिल सके।
वाणिज्यीकरण के प्रभाव –
लाभ-
- भिन्न-भिन्न प्रकार की फ़सलें उगाने से उत्पादन बढ़ गया।
- फ़सलों को नगरों की मण्डियों तक ले जाने के लिए यातायात के साधनों का विकास हुआ।
- नगरों में जाने वाले किसान कपड़ा तथा घर के लिए अन्य ज़रूरी वस्तुएँ सस्ते मूल्य पर खरीद कर ला सकते थे।
- शहरों के साथ सम्पर्क हो जाने से किसानों का दृष्टिकोण विशाल हुआ। परिणामस्वरूप उनमें धीरे-धीरे राष्ट्रीय जागृति उत्पन्न होने लगी।
हानियां-
- भारतीय किसान पुराने ढंग से कृषि करते थे। अतः मण्डियों में उनकी फ़सलें विदेशों में मशीनी कृषि द्वारा उगाई गई फ़सलों का मुकाबला नहीं कर पाती थीं। परिणामस्वरूप उन्हें अधिक लाभ नहीं मिल पाता था।
- मण्डी में किसान को अपनी फ़सल आढ़ती की सहायता से बेचनी पड़ती थी। आढ़ती मुनाफ़े का एक बड़ा भाग अपने पास रख लेते थे। इसके अतिरिक्त कई बिचौलिए भी थे। इस प्रकार किसान को उसकी उपज का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता था।