This PSEB 9th Class Social Science Notes History Chapter 3 Development of Sikh Religion (1539-1581) will help you in revision during exams.
Development of Sikh Religion (1539-1581) PSEB 9th Class SST Notes
Guru Angad Dev Ji:
- The second Sikh Guru, Guru Angad Dev Ji collected the teachings of Guru Nanak Dev Ji and wrote them in Gurmukhi script.
- This contribution of Guru Angad Dev Ji proved to be the first step towards the writing of ‘Adi Granth Sahib’ by Guru Arjan Dev Ji.
- Guru Angad Dev Ji also wrote ‘Vani’ in the name of Guru Nanak Dev Ji.
- The institutions of Sangat and Pangat were well maintained during the period of Guru Angad Dev Ji.
Guru Amar Das Ji:
- Guru Amar Das Ji was the third Sikh Guru who remained on Guru gaddi for twenty-two years.
- Guru ‘Sahib shifted his headquarters from Khadoor Sahib to Goindwal.
- At Goindwal, Guru Sahib constructed a large well (Baoli) where his followers (Sikhs) took a bath on religious festivals.
- Guru Amar Das Ji introduced a simple marriage ceremony which is called ‘Anand Karaj’.
- The number of his Sikh followers increased rapidly during his period.
Guru Ram Das Ji:
- The fourth Guru, Guru Ram Das Ji started the work of preaching his faith from Ramdaspur (present Amritsar).
- The foundation of Amritsar was laid during the last years of Guru Amar Das Ji.
- Guru Ram Das Ji got dug a large pond called Amritsar or Amrit Sarovar.
- The Guru Sahib needed a large sum of money to construct the Sarovar at Amritsar and Santokhsar.
- For this purpose, Guru Sahib started Masand System.
- Guru Sahib also made Guru-gaddi hereditary.
Improvement in Gurmukhi Script:
- Guru Angad Dev Ji made certain improvements in Gurmukhi Script.
- It is said that to spread Gurmukhi, Guru Ji wrote ‘Balbodh’ for children in Gurmukhi.
- Because it was the language of the common masses, it helped in the spreading of Sikhism.
- Presently, all the religious books of the Sikhs are in this language.
Manji System:
- During the times of Guru Amar Das Ji, the number of devotee Sikhs was increasing.
- But due to his old age, it was not possible for Guru Ji to move from one place to another to spread his teachings.
- So, he divided his spiritual empire into 22 parts and each part was called ‘Manji’.
- Each Manji was a centre for spreading Sikhism and it was kept under a scholar devout follower.
Creation of Anand Sahib:
- Guru Amar Das Ji composed a new Bani called ‘Anand Sahib’.
- With its creation, the importance of Vedic hymns completely came to an end among the Sikhs.
Foundation of Goindwal:
- Guru Angad Dev Ji laid the foundation of a new city called Goindwal.
- During the times of Guru Amar Das Ji, it became one of the famous religious places.
- Even today, it is one of the religious places of Sikhs.
Langar System:
- Guru Angad Dev Ji continued the Langar system.
- In the Langar system, everyone took food without any discrimination.
- It discouraged the caste system and helped in the expansion of Sikhism.
→ 31 March 1504-Birth of Guru Angad Dev Ji.
→ 1539-1552 – Guru Angad Dev Ji remained on Guru-gaddi.
→ 1546 – Foundation of Goindwal
→ 1552 – Guru Angad Dev Ji left the world.
→ 1552 – Guru Amar Das ji became the third Guru.
→ 1559 – The work of the construction of Baoli at Goindwal was completed.
→ 1574 – Amar Das Ji left the world.
सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०) PSEB 9th Class SST Notes
→ गुरु अंगद देव जी – दूसरे सिक्ख गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक साहिब की बाणी एकत्रित की और इसे गुरुमुखी लिपि में लिखा। उनका यह कार्य गुरु अर्जन साहिब द्वारा संकलित ‘ग्रंथ साहिब’ की तैयारी का पहला चरण सिद्ध हुआ।
→ गुरु अंगद देव जी ने स्वयं भी गुरु नानक देव जी के नाम से बाणी की रचना की। इस प्रकार उन्होंने गुरु पद की एकता को दृढ़ किया। संगत और पंगत की संस्थाएं गुरु अंगद साहिब के अधीन भी जारी रहीं।
→ गुरु अमरदास जी – गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु थे। वह 22 वर्ष तक गुरुगद्दी पर रहे। वह खडूर साहिब से गोइंदवाल साहिब चले गए। वहां उन्होंने एक बाउली बनवाई जिसमें उनके सिक्ख (शिष्य) धार्मिक अवसरों पर स्नान करते थे।
→ गुरु अमरदास जी. ने विवाह की एक सरल विधि प्रचलित की और उसे आनंद-कारज का नाम दिया। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ गई।
→ गुरु रामदास जी – चौथे गुरु रामदास जी ने रामदासपुर (आधुनिक अमृतसर) में रह कर प्रचार कार्य आरंभ किया। इसकी नींव गुरु अमरदास जी के जीवन-काल के अंतिम वर्षों में रखी गई थी।
→ श्री रामदास जी ने रामदासपुर में एक बहुत बड़ा सरोवर बनवाया जो अमृतसर अर्थात् अमृत के सरोवर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्हें अमृतसर तथा संतोखसर नामक तालाबों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने मसंद प्रथा का श्रीगणेश किया। उन्होंने गुरुगद्दी को पैतृक रूप भी प्रदान किया।
→ गुरुमुखी लिपि को मानकीकरण – गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि का मानकीकरण किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में बच्चों के लिए ‘बाल बोध’ की रचना की।
→ आम लोगों की बोली होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रंथ इसी भाषा में हैं।
→ मंजी प्रथा-गुरु अमरदास जी के समय में सिक्खों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी। परंतु वृद्धावस्था के कारण गुरु साहिब जी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था।
→ अत: उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक साम्राज्य को 22 प्रांतों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक प्रांत को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी सिक्ख धर्म के प्रचार का एक केंद्र थी जिसके संचालन का कार्यभार गुरु जी ने अपने किसी विद्वान् श्रद्धालु शिष्य को सौंप रखा था।
→ अनंदु साहिब की रचना – गुरु अमरदास जी ने एक नई बाणी की रचना की जिसे ‘अनंदु साहिब’ कहा जाता है। इस बाणी से सिक्खों में वेद-मंत्रों के उच्चारण का महत्त्व बिल्कुल समाप्त हो गया।
→ गोइंदवाल साहिब का निर्माण – गुरु अंगद देव जी ने गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास जी के समय में यह नगर एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।
→ लंगर प्रथा का विस्तार – श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी द्वारा आरम्भ की गई लंगर प्रथा का विस्तार किया। उन्होंने यह आज्ञा दी कि जो कोई उनके दर्शन को आए, वह पहले लंगर में भोजन करे।
→ यहां प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव के भोजन करता था। इससे जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
→ 31 मार्च, 1504-श्री गुरु अंगद देव जी का जन्म।
→ 2 सितंबर, 1539 ई० से 29 मार्च 1552 ई०-गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।
→ 1546 ई०-श्री गुरु अंगद देव जी द्वारा गोइंदवाल साहिब नगर की स्थापना।
→ 29 मार्च, 1552-श्री गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत समाए।
→ 5 मई, 1479 ई०-श्री गुरु अमरदास जी का जन्म।
→ मार्च 1552 ई०-श्री गुरु अमरदास जी गुरुगद्दी पर विराजमान।
→ मार्च 1559 ई०- श्री गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में बाउली का निर्माण कार्य पूरा किया।
→ 1574 ई०- श्री गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत समाए।
→ 24 सितंबर, 1534 ई०-श्री गुरु रामदास जी का जन्म।
→ 1574 ई० से 1581 ई०-श्री गुरु रामदास जी गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।
→ 1 सितंबर, 1581 ई०-श्री गुरु रामदास जी ज्योति-जोत समाए।
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ (1539 ਈ:- 1581 ਈ:) PSEB 9th Class SST Notes
→ 2 ਸਤੰਬਰ, 1539 ਈ: ਤੋਂ 29 ਮਾਰਚ, 1552 ਈ:-ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ ।
→ 1546 ਈ:-ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸ਼ਹਿਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ।
→ 29 ਮਾਰਚ, 1552 ਈ:-ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਜੋਤੀ ਜੋਤ ਸਮਾਏ ।
→ 5 ਮਈ, 1479 ਈ:-ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ।
→ ਮਾਰਚ, 1552 ਈ: -ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਂਜਮਾਨ ॥
→ ਮਾਰਚ, 1559 ਈ:-ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਚ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਸੰਪੂਰਨ ।
→ 1574 ਈ:-ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਜੋਤੀ ਜੋਤ ਸਮਾਏ ।
→ 24 ਸਤੰਬਰ, 1534 ਈ:-ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ।
→ 1574 ਈ: ਤੋਂ 1581 ਈ:-ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ ।
→ 1 ਸਤੰਬਰ, 1581 ਈ:-ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਜੋਤੀ ਜੋਤ ਸਮਾਏ ।