Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 4 दोहे Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 4 दोहे
Hindi Guide for Class 11 PSEB दोहे Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
मानव शरीर की नश्वरता का प्रतिपादन करते हुए रहीम ने क्या कहा है ?
उत्तर:
रहीम जी मानव शरीर की नश्वरता के विषय में कहते हैं कि जब तक मनुष्य का शरीर चलता है तब तक उसके परिजन, मित्र आदि उसे अच्छी तरह पूछते हैं परन्तु जब वह बूढ़ा हो जाता है तब उसे कोई नहीं पूछता है। शरीर का मोल तब तक है जब तक काम आता है इसीलिए इसे नाशवान कहा गया है जिसका मोह नहीं करना चाहिए। इस नाशवान शरीर को तो मिटना ही है पर ईश्वर ही इसकी सदा सहायता करते हैं इसलिए उसे प्रभु को कभी नहीं भुलाना चाहिए।
प्रश्न 2.
रहीम जी ने कुपुत्र को सदैव कुल के लिए अपमान का कारण क्यों कहा है ?
उत्तर:
रहीम जी ने कुपुत्र को कुल के लिए अपमान का कारण इसलिए कहा है क्योंकि उसके बड़ा होने पर कुल में अँधेरा छा जाता है। कुल के दुःख बढ़ जाते हैं और उसके बुरे कर्म कुल के लिए अपमानजनक बनते हैं। जैसे-जैसे वह बढ़ता है वैसे-वैसे उसके द्वारा किए गए कुकर्म भी बढ़ते जाते हैं जिस कारण माता-पिता और परिवार की प्रतिष्ठा मिटती चली जाती है। कुपुत्र अपने पूरे वंश की ख्याति को मिट्टी में मिलाने का कार्य करता है।
प्रश्न 3.
रहीम जी ने मनुष्य को सोच समझ कर बोलने की शिक्षा देते हुए क्या कहा है ?
उत्तर:
रहीम जी कहते हैं कि मनुष्य को सोच समझकर बोलना चाहिए क्योंकि जीभ तो बुरा-भला बोल कर मुँह के अन्दर जाकर छिप जाती है और जूते सिर को खाने पड़ते हैं। बुरा बोलकर मनुष्य अपने रिश्ते-नाते खराब कर लेता है। जिह्वा से निकले हुए ग़लत बोल कभी भी दूसरे भुला नहीं पाते। किसी भी व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति से लड़ाई का मूल कारण सदा बातचीत ही होती है। कड़वा और झगड़ालू व्यवहार बोलने से ही आरंभ होता है इसलिए सोच-समझ कर ही बोलना चाहिए।
प्रश्न 4.
प्रेमपूर्वक खिलाये जाने वाले भोजन को रहीम जी ने उत्तम क्यों माना है ?
उत्तर:
रहीम जी के अनुसार प्रेमपूर्वक खिलाया गया भोजन उत्तम है क्योंकि उसके सादे भोजन में भी मिठास होती है और तन और मन दोनों को तृप्त कर देता है अपितु मैले मन से खिलाए गए पकवान पेट और मन दोनों खराब कर देते हैं। प्रेमपूर्वक किया गया व्यवहार और बातचीत सदा संबंधों को बढ़ाती है और पारस्परिकता को समृद्ध करती है।
प्रश्न 5.
प्रभु के प्रति विनय-भावना व्यक्त करते हुए रहीम ने क्या कहा ?
उत्तर:
रहीम जी ने प्रभु के प्रति विनय-भावना व्यक्त करते हुए कहा है प्रभु की मन से भक्ति करनी चाहिए और आदर भाव से उन्हें देखना चाहिए तभी वे वश में होते हैं। ईश्वर सदा भक्त की भक्ति ही चाहते हैं। ईश्वर तो दया की खान है। वह तो भक्त की पुकार पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाता है और उसकी क्षमा याचना से पहले ही क्षमा कर देता है।
प्रश्न 6.
रहीम जी के अनुसार प्रभु को किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है ?
उत्तर:
रहीम जी के अनुसार प्रभु को प्राप्त करने के लिए मन से स्मरण करना चाहिए, आँखों में आदर लेकर पूर्ण रूप से उनके प्रति समर्पित होना ज़रूरी है। प्रभु की प्राप्ति उसे पुकारने से अवश्य हो जाती है। उसके प्रति मन में सच्चे भाव होने चाहिए। छल-फरेब और लालच से रहित मानव उसे सच्चे मन से चाहने पर अवश्य प्राप्त कर लेता है।
प्रश्न 7.
रहीम के अनुसार जीवन में सत्संगति का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
रहीम जी के अनुसार सत्संगति का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्त्व है। मनुष्य जिस संगति में बैठता है उसमें वैसे ही गुण आ जाते हैं। सत्संगति में बैठने से मनुष्य सज्जन पुरुष बन जाता है तथा चारों ओर प्रशंसा का पात्र बनता है। सत्संगति से मनुष्य अपने सहायक स्वयं प्राप्त कर लेता है जो सुख-दुःख में उसके सहायक बनते हैं।
PSEB 11th Class Hindi Guide दोहे Important Questions and Answer
अति लघूतरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि रहीम का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:
सन् 1553 में।
प्रश्न 2.
रहीम का पूरा नाम क्या था ?
उत्तर:
अब्दुर्ररहीम खान खाना।
प्रश्न 3.
कवि रहीम के अनुसार प्रेम में किसका स्थान नहीं है ?
उत्तर:
कवि रहीम के अनुसार प्रेम में दिखावे का स्थान नहीं है।
प्रश्न 4.
किसे इधर-उधर खोजना व्यर्थ है ?
उत्तर:
परमात्मा को इधर-उधर खोजना व्यर्थ है।
प्रश्न 5.
हाथी किस धूल को ढूँढ़ रहा था ?
उत्तर:
हाथी उस धूल को ढूँढ़ रहा था जिससे गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार हुआ था।
प्रश्न 6.
कौन पहले ही अपनी स्थिति के कारण मरा हुआ होता है ?
उत्तर:
माँगने वाला व्यक्ति।
प्रश्न 7.
मनुष्य पर किसका प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
मनुष्य पर अच्छी बुरी संगति का प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 8.
पेट भरने के लिए बलशाली को भी क्या करना पड़ता है ?
उत्तर:
पेट भरने के लिए बलशाली को भी दूसरों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है।
प्रश्न 9.
ईश्वर स्वयं किनकी चिंता करते हैं ?
उत्तर:
ईश्वर स्वयं उपयोगी तथा अनुपयोगी वस्तुओं की चिंता करते हैं।
प्रश्न 10.
कवि रहीम के अनुसार किसकी जीभ बड़ी पगली है ?
उत्तर:
मनुष्य की जीभ बड़ी पगली है।
प्रश्न 11.
कौन-सा शासक अच्छा होता है ?
उत्तर:
जो शासक चंद्रमा के समान सुख देता है वह अच्छा होता है।
प्रश्न 12.
अधिकतर व्यक्ति किसके साथी होते हैं ?
उत्तर:
अधिकतर व्यक्ति दुःखों के साथी न होकर सुखों के साथी होते हैं।
प्रश्न 13.
कौन-से लोग मृत समान होते हैं ?
उत्तर:
जो लोग होने के बाद भी दान नहीं देते।
प्रश्न 14.
रहीम जी ने अपने दोहों में ……………… दिया है ।
उत्तर:
गहन संकेत।
प्रश्न 15.
माँगने वाला चाहे कितना ही हो वह ……………….. रहता है ।
उत्तर:
छोटा।
प्रश्न 16.
ईश्वर का वास ……….. में होता है ।
उत्तर:
मन।
प्रश्न 17.
प्रेम में किसका स्थान नहीं होता है ?
उत्तर:
दिखावे का।
प्रश्न 18.
रहीम जी किस स्थान पर रहना चाहते हैं ?
उत्तर:
जिस स्थान पर लोग चरित्रवान हों।
प्रश्न 19.
सच्ची सेवा, आवभगत और उपकार किससे संभव है ?
उत्तर:
प्रेमभाव से।
प्रश्न 20.
गौतम ऋषि की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर:
अहिल्या।
प्रश्न 21.
मनुष्य को अपनी …………. की रक्षा करनी चाहिए ।
उत्तर:
मान-मर्यादा।
प्रश्न 22.
तालाब में पानी के साथ और क्या होता है ?
उत्तर:
कीचड़।
प्रश्न 23.
मनुष्य को अपनी जुबान पर क्या रखना चाहिए ?
उत्तर:
संयम।
प्रश्न 24.
ताड़ और खजूर के पेड़ कैसे होते हैं ?
उत्तर:
बहुत बड़े।
प्रश्न 25.
कौन-से लोग पशु समान होते हैं ?
उत्तर:
जो दूसरों के गुणों पर रीझकर भी उसे कुछ नहीं देते।
प्रश्न 26.
परिवार में अंधेरा कब छा जाता है ?
उत्तर:
जब पुत्र कपूत निकल जाता है।
बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
रहीम किसके नवरत्नों में से एक थे ?
(क) अकबर
(ख) शाहजहाँ
(ग) बीरबल
(घ) नूरजहां।
उत्तर:
(क) अकबर
प्रश्न 2.
रहीम किसके भक्त माने जाते हैं ?
(क) श्री राम के
(ख) श्री कृष्ण के
(ग) रहीम के
(घ) करीम के।
उत्तर:
(ख) श्री कृष्ण के
प्रश्न 3.
रहीम के कौन से दोहे सुप्रसिद्ध हैं ?
(क) गीति के
(ख) रीति के
(ग) नीति के
(घ) प्रीति के।
उत्तर:
(ग) नीति के
प्रश्न 4.
रहीम के अनुसार ईश्वर का वास कहां होता है ?
(क) तन में
(ख) मन में
(ग) ब्रहम में
(घ) जगत में।
उत्तर:
(ख) मन में।
दोहों सप्रसंग व्याख्या
1. अमर बेलि बिनु मूल की, प्रति पालत जो ताहि ॥
रहिमन ऐसे प्रभुहि तजि, खोजत फिरिये काहि॥1॥
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ से लिया गया है। इसमें कवि ने मनुष्य को उपदेश दिया है कि उसे ईश्वर की खोज में व्यर्थ नहीं भटकना चाहिए। वह तो स्वयं सहायक बनकर उसके साथ ही मन में रहता
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि हे मनुष्य ! जो, ईश्वर बिना जड़ की अमर बेल का पालन-पोषण करते हैं तथा जिन पौधों की कोई रखवाली नहीं करता, उन्हें भी ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। तू ऐसे ईश्वर को छोड़कर व्यर्थ में उसकी खोज में इधर-उधर भटकता रहता है। वे तो स्वयं ही तेरा ध्यान रखते हैं।
विशेष :
- ईश्वर सब पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। उन्हें इधर-उधर खोजना व्यर्थ है। इसलिए सच्चे मन से उनकी आराधना करनी चाहिए।
- भाषा सरल तथा सामान्य बोलचाल की है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण है।
- अनुप्रास अलंकार है।
काम न काहू आवई, मोल रहीम न लेई।
बाजू टूटे बाज को, साहब चारा देइ ॥2॥
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ से लिया गया है। इसमें में कवि ने कहा है कि जो वस्तु काम में आने वाली न हो उसे कभी भी खरीदना नहीं चाहिए।
व्याख्या :
कवि कहते हैं कि जो वस्तु हमारे काम में आने वाली नहीं होती उसे खरीदना नहीं चाहिए। बेकार की वस्तुओं की चिन्ता ईश्वर स्वयं करते हैं। जैसे टूटे पंख वाले बाज के पेट को भरने की चिन्ता ईश्वर करते हैं। वही उसे खाना प्रदान कराते हैं। उसके लिए किसी को चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है।
विशेष :
- ईश्वर उपयोगी तथा अनुपयोगी वस्तुओं की चिन्ता स्वयं करते हैं।
- भाषा सरल, सहज तथा आम बोलचाल की है।
- प्रसाद गुण है।
- शान्त रस है।
- गेयता का गुण है।
- अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
धूरि धरत नित सीस पै, कह रहीम केहि काज।
जेहि रज मुनि-पतनी तर, सो ढूंढत गजराज॥3॥
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ से लिया गया है। इसमें कवि ने उस हाथी का वर्णन किया है जो सती अनसूया के चरणों की रज को ढूंढ़ रहा है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि हाथी प्रति दिन अपने सिर पर संड से धरती की धूल धारण करता है। वह ऐसा क्यों कर रहा है क्योंकि हाथी का अपने मस्तक पर धूल लगाने के पीछे भी कुछ कारण होगा। रहीम जी अपने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि हाथी उस धूल को ढूंढ रहा है जिस धूल के स्पर्श से गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार हो गया। हाथी श्रीराम जी के चरणों की धूल ढूंढ रहा है जिससे उसका उद्धार हो सके।
विशेष :
- मानव तो मानव पशु भी श्रीराम के चरणों की धूल प्राप्त करके अपना जीवन सफल बनाना चाहते हैं।
- भाषा सरल, सहज तथा आम बोलचाल की है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण है।
बडे पेट के भरन में है रहीम दख बाढ़ि॥
यातें हाथि हहरि कै, दिये दाँत द्वै काढ़ि ॥4॥
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने खाने और दिखाने के दांत का वर्णन किया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि बड़े पेट को भरने के लिए बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं। इसी बड़े पेट को भरने के लिए हाथी जैसे विशाल शरीर वाले जानवर को भी भूख से घबराकर अपने लम्बे दाँत दिखाने पड़ते हैं। दूसरों के सामने सहायता के लिए सभी को प्रार्थना करनी पड़ती है; गिड़गिड़ाना पड़ता है।
विशेष :
- पेट भरने के लिए शक्तिशालियों को भी दूसरों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है; सहायता पाने की इच्छा करनी पड़ती है।
- भाषा सरल, सहज तथा आम बोलचाल की है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
- ‘दाँत निकलना’ मुहावरे का प्रयोग सार्थक है।
रहिमन अपने पेट सों, बहुत कहयो समुझाइ।
जो तू अनखाये रहै, तोसों तो अनखाई॥5॥
शब्दार्थ : कहयो = कहना। अन खाना (अन्न + खाना) = पेट भरा हो। अनखाना = क्रुद्ध होकर बुरा मानना।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने अपने पेट को समझाने की बात कही है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि उन्होंने अपने पेट को बहुत समझाया है कि यदि तेरे साथ अन्य सभी का भी पेट भरा रहेगा तो किसी को किसी से मांगना नहीं पड़ेगा। भाव है कि जब कोई किसी से मांगने जाता है तो उसे बुरा मालूम होता है पर यदि पेट भरा हुआ हो न कोई मांगेगा और न किसी को बुरा लगेगा।
विशेष :
- कवि ने पेट की आग को ही सम्बन्धों के अच्छे या बुरे होने का आधार माना है।
- भाषा सरल, सहज तथा आम बोलचाल की है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
रहिमन रहिला की भली, जो परसै चित लाइ।
परसत मन मैला करै, सो मैदा जरि जाई॥6॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
रहिला = चना। मैदा = आटे की एक बारीक प्रकार, जिगर। जरि जाइ = जल जाता है। परसत = स्पर्श से।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ पाठ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने हृदय के प्रेम की निर्मलता की ओर संकेत किया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि यदि कोई प्रेमपूर्वक सच्चे हृदय से चने की रोटी खिलाता है तो वह भी अच्छी लगती है। परन्तु यदि कोई बुरे मन से मैदे से बने अनेक व्यंजन खिलाता है तो उससे कोई लाभ नहीं होता अपितु मनुष्य का मैदा खाने से उसका जिगर जल जाता है। सच्ची सेवा, आवभगत और उपकार तो प्रेमभाव से ही संभव होती
मभाव से ही संभव हो
विशेष :
- प्रेम में दिखावे का स्थान नहीं है।
- भाषा सहल, सहज है। अनुप्रास तथा श्लेष अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।
उनतै पहिल वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं 7 ॥
प्रसंग :
यह दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि कहते हैं कि माँगना बुरा है परन्तु द्वार पर मांगने आए व्यक्ति को इनकार करना उससे भी अधिक बुरा है।।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि वे मनुष्य मरे हुए के समान हैं जो किसी से कुछ भी मांगने जाते हैं। मांगने वाला व्यक्ति अपना स्वाभिमान त्याग कर दूसरों से सहायता रूप में कुछ मांगने जाता है। परन्तु मांगने वाले से पहले वे व्यक्ति मर गए होते हैं जिनके पास सब कुछ होते हुए भी मांगने वाले को कुछ भी देने से इनकार कर देते हैं।
विशेष :
- माँगने वाला तो पहले ही अपनी स्थिति के कारण मरा हुआ होता है परन्तु जिसके पास सब कुछ है और वह देने से इनकार कर दे तो वह मांगने वाले से पहले मर चुका है।
- भाषा आम बोलचाल की है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
रहिमन-रहिबो वाँ भलो, जो लौं सील समच।
सील-ढील जब देखिये, तुरत कीजिए कूच।।8॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
रहिबो = रहना। सील = शील, चरित्र। समूच = पूर्ण रूप से। तुरत = तुरन्त, उसी समय, फौरन। कूच करना = चल पड़ना।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें रहीम जी कहते हैं कि जिसका चरित्र, स्वभाव और व्यवहार ठीक नहीं। उनका वहां से चले जाना ही ठीक रहता है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि उस स्थान पर रहना अच्छा होता है जहां पर लोग पूर्ण रूप से चरित्रवान हों। अच्छे चरित्र वाले लोगों की संगति अच्छी रहती है। परन्तु जब ऐसा अनुभव हो कि लोगों के चरित्र में गिरावट आ गई है तो वहां से चले जाना ही अच्छा है। बुरे लोगों की संगति मनुष्य को बुरा बना देती है।
विशेष :
- मनुष्य पर अच्छी-बुरी संगति का प्रभाव पड़ता है। इसलिए बुरी संगति वाले लोगों से दूरी अच्छी होती है।
- भाषा सरल, सहज तथा आम बोलचाल की है।
- अनुप्रास तथा श्लेष अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून॥
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुस चून॥9॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
पानी = इज्जत, मान-मर्यादा जल, चमक । राखिये = रक्षा करनी चाहिए। पानी = जल, चमक, इज्जत । सून = सूना होना। चून = आटा, सफेदी।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित रहीम सतसई, के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि कहता हैं कि मनुष्य को अपनी मान-मर्यादा की रक्षा करनी चाहिए।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि मनुष्य को पानी, अपनी इज्जत अथवा मान मर्यादा की रक्षा करनी चाहिए। पानी के बिना सब सूना है; व्यर्थ है। चमक (पानी) के चले जाने से मोती का, मनुष्य का और जल (पानी) न रहने से आटा किसी काम का नहीं रहता।
विशेष :
- पानी अर्थात् इज्जत मनुष्य के लिए, पानी अर्थात् चमक मोती के लिए और पानी अर्थात् जल आटे को गूंथने के लिए जरूरी है। मान-मर्यादा और सम्मान के बिना मनुष्य, चमक के बिना मोती तथा जल के बिना सूखा आटा सब बेकार है।
- भाषा आम बोलचाल की है।
- अनुप्रास तथा श्लेष अलंकार है।
- प्रसाद गुण तथा शांत रस हैं।
- संगीतात्मकता विद्यमान है।
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग-पतार।
आप तो कहि भीतर भयी, जूती खात कपार॥10॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
जिह्वा = जीभ। बावरी = पगली। सरग = स्वर्ग। पतार = पाताल। कपार = सिर।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने जीभ की महिमा का वर्णन किया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि मनुष्य की जीभ बड़ी पगली है। वह स्वर्ग से लेकर पाताल तक की सभी बातें कह जाती हैं। मनुष्य का अपनी जीभ पर नियन्त्रण नहीं होता है। जीभ अच्छी बुरी बात कहकर स्वयं तो मुंह के अन्दर चली जाती है और जिनके विषय में बुरा-भला कहा होता है उनकी मार सिर को खानी पड़ती है।
विशेष :
- मनुष्य को अपनी जुबान पर संयम रखना चाहिए।
- भाषा आम बोलचाल की है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- प्रसाद गुण तथा शांतरस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
होइ न जाकी छाँह ढिग, फल रहीम अति दूर।
बाढ़ेउ सो बिनु काज ही, जैसे तार-खजूर॥11॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
छाँह = छाया। ढिग = पास में। अति = बहुत । तार = ताड़ का वृक्ष।
प्रसंग :
यह दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि का बड़े होने से अभिप्राय यह है कि पहुंच से दूर किसी अच्छी वस्तु का भी कोई लाभ नहीं होता।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि जिस पेड़ की छाया पास नहीं होती और उस पर फल भी बहुत ऊंचे लगते हों तो उस पेड़ का फलदार होना व्यर्थ है। जिसकी छाया या फल लोगों की पहुंच से दूर होते हैं उनका बड़ा होना व्यर्थ है। जो किसी भी काम नहीं आते जैसे ताड़ और खजूर के पेड़ हैं। ताड़ और खजूर के पेड़ ऊँचाई में बहुत बड़े होते हैं परन्तु न तो उसकी छाया काम आती है और उसका फल लोगों की पहुंच से दूर होता है।
विशेष:
- उन लोगों का बड़ा होना व्यर्थ है जो किसी के भी काम नहीं आते।
- भाषा आम बोलचाल की है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत-समेत।
ते रहीम पसु ते अधिक, रीझेहु कछू न देत॥12॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
नाद = शब्द, संगीत। मृग = हिरण। हेत = हित। पसु = पशु। रीझेहु = प्रसन्न होकर।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि न उन लोगों का वर्णन किया है जो दूसरों के गुणों पर प्रसन्न होने के बाद भी पुरस्कार स्वरूप भी कुछ नहीं देते।।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि वीणा की मधुर ध्वनि पर प्रसन्न होकर हिरण जैसा पशु भी अपना शरीर त्यागने को तैयार हो जाता है, मनुष्य प्रसन्न होकर दूसरे के भले के लिए अपना सारा धन दे देता है। रहीम जी के अनुसार वे लोग पशु के समान हैं जो दूसरों के गुणों पर रीझने और प्रसन्न होने पर भी पुरस्कार स्वरूप किसी को कुछ नहीं देते।
विशेष :
- जो लोग प्रसन्न होकर दूसरों को कुछ देते हैं उन लोगों का जीना अच्छा रहता है लेकिन जो लोग प्रसन्न होने पर भी किसी को कुछ नहीं देते, वे लोग पशु के समान हैं।
- कवि की ब्रज भाषा आम बोलचाल की है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
रहिमन अँसुआ नयन ढरि, जिय दःख प्रकट करेड़।
जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ ॥13॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
ढरि = ढलकना। नयन = आँखों से। जिय = मन, हृदय। जाहि = जिसे। निकारो = निकालो। गेह ते = घर से। कस = क्यों।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने उन लोगों का वर्णन किया है जो घर से निकाले जाने पर घर का भेद दूसरों पर प्रकट कर देते हैं।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि आंखों से निकले आँसू मनुष्य के दिल की हर बात कह देते हैं। मनुष्य के आंसू उसके सुख या दुःख को छिपा नहीं पाते। जैसे घर से निकाला गया मनुष्य, घर के सारे भेद कैसे एक-एक करके प्रकट कर देता है। आंख के आंसू तथा घर से निकाला गया मनुष्य दोनों ही अन्दर के भेद बाहर प्रकट कर ही देते हैं।
विशेष :
- यदि कोई बात दूसरों पर प्रकट करनी हो तो आंख के आंसू और घर से निकाला गया मनुष्य इस काम को अच्छी तरह से पूरा कर देते हैं।
- ब्रज भाषा सरल, सहज एवं आम बोलचाल की है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण है।
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाइ॥
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पियासो जाई॥14॥
कठिन शब्दों के अर्थ-पंक = कीचड़। लघु = छोटा। जिय = हृदय में। आघाई = तृप्त होना।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने छोटे होने की भी महत्ता का वर्णन किया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि तालाब में कीचड़ युक्त पानी भी धन्य है जो छोटे होने पर भी लोगों की प्यास बुझाता है परन्तु समुद्र आकार में बड़ा है। उसका पानी खारा होने के कारण वह लोगों की प्यास बुझाने में असमर्थ है और लोग वहां से प्यासे लौटते हैं। बड़ा होने पर भी खारे पानी की उपस्थिति के कारण सारा संसार उसे पीकर अपनी प्यास नहीं बुझा सकता और प्यासा ही रह जाता है। ऐसे बड़प्पन का भी क्या लाभ जो दूसरों के सुख का कारण नहीं बनता।
विशेष :
- कभी-कभी बड़ा होना महत्त्वपूर्ण नहीं है। क्योंकि जो काम करने में वह असमर्थ है वह छोटी-सी वस्तु कर देती है।
- भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमय है।
- तत्सम और तद्भव शब्दावली है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
रहिमन राज सराहिये, ससि सम सुखद जो होइ।
कहा बापुरो भानु है तपै तरैयनि खोइ ॥15॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
राज = शासन। सराहिये = प्रशंसा करो। ससि सम = चन्द्रमा के समान। भानु = सूर्य। बापुरो = बेचारा। तरैयनि = नदियां।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने शांत रहने की महत्ता का वर्णन किया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि शासक वह अच्छा है जो चन्द्रमा के समान सुख प्रदान करता है। जिस प्रकार चन्द्रमा की शीतलता मनुष्य को शांति प्रदान करती है उसी प्रकार अच्छे शासक की प्रजा भी सुख से रहती है और एक बेचारा सूरज है जो अपनी गर्मी से नदियों के जल को सुखा देता है। क्रोधी स्वभाव वाले शासक की प्रजा सदा दुःखी रहती है।
विशेष :
- चन्द्रमा और सूरज के द्वारा मनुष्य को समझाया गया है कि चन्द्रमा के समान शांत रहने से ही वह प्रशंसा का पात्र बन सकता है।
- भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमयी है।
- तत्सम और तद्भव शब्दावली है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
ज्यों रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोइ।
बारे उजियारो करै, बढ़े अँधेरो होइ॥16॥
कठिन शब्दों के अर्थ : कपूत = बुरा पुत्र। बारे = जलने पर। उजियारो = उजाला।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इन पंक्तियों में कवि ने कपूत की तुलना उस दीपक से की है जिसके बुझने से उसके नीचे ही अँधेरा छा जाता है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि वंश में पैदा हुआ कपूत उस दीपक की तरह है जो जलने पर उजाला तो देता है । पुत्र के पैदा होने पर घर में खुशियों का उजियारा फैल जाता है परन्तु जब दीपक की ज्योति बढ़ जाती है अर्थात् बुझ जाती है तो चारों ओर अँधेरा छा जाता है। उसी प्रकार पुत्र के बड़े होने पर कपूत निकलने पर कुल में परिवार में अंधेरा छा जाता है।
विशेष :
- एक पुत्र ही घर का नाश कर देता है या फिर उसे दीपक की रोशनी की तरह संसार में चमका देता है।
- भाषा सरल है।
- तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
- अनुप्रास, श्लेष अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण है।
माँगे घटत रहीम पद, कितौ करौ बड़काम।
तीन पैंड बसुधा करी, तऊ बावनै नाम17॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
पद = पदवी। कितौ = कितना ही। पैंड = कदम। बसुधा = धरती। बावनै = छोटा कद।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इन पंक्तियों में कवि ने मांगने वाले को छोटा बताया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि मनुष्य के द्वारा किसी से भी कुछ मांगने पर उसकी पदवी कम हो जाती है। वह मनुष्य चाहे कितना बड़ा ही काम क्यों न करे, बड़े से बड़ा मनुष्य जब मांगने पर आता है तो उसे भी नीचा होना पड़ता है जैसे भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पैर धरती मांगी थी और उन्होंने तीन पैर में पूरा ब्रह्मांड नाप लिया था उनके जैसा महान कार्य और दूसरा नहीं कर सकता था परन्तु फिर भी उन्हें वामन नाम से जाना जाता रहा है।
विशेष :
- मांगने वाला मनुष्य कितना ही बड़ा काम क्यों न कर ले, वह मांगने के कारण छोटा ही रहेगा।
- भाषा सरल, सहज एवं सरस है।
- तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
रहिमन मनहि लगाई कै,देख लेहु किन कोय।
नर को बस करबिो कहा, नारायण बस होय॥18॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
किन कोय = चाहे कोई। नारायण = प्रभु, ईश्वर। प्रस्तुत-प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ में से लिया गया है। इसमें में कवि ने मन को एकाग्र करके प्रभु को प्राप्त करने के लिए कहा है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि कोई भी इसे देख ले; परख ले कि यदि कोई व्यक्ति मन लगाकर काम करता है तो वह मनुष्य को नहीं अपितु प्रभु को भी अपने वश में कर सकता है, प्राप्त कर सकता है।
विशेष :
- एकाग्रचित और प्रेमपूर्वक व्यवहार करने वाले मनुष्य के सभी कार्य सफल होते हैं।
- भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमयी है।
- तत्सम और तद्भव शब्दावली है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- प्रसाद गुण है शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय।
सुन अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लेहैं कोई ॥19॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
व्यथा = दु:ख। गोय = गुप्त, छिपाकर। अठिलैहैं = हँसी-मजाक करना।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने अपने दुःखों को दूसरों के सामने प्रकट करने से मना किया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि अपने मन के दुःखों को मन ही मन में छिपाकर रखना अच्छा होता है। यदि लोगों के सामने अपने दुःखों को सुनाओगे तो वे उन्हें सुनकर दुःख बांटने की अपेक्षा उनका मजाक उड़ाएंगे, अपना दुःख सदा छिपाकर रखना चाहिए। कोई भी किसी के दुःख को बांटने को तैयार नहीं होता।
विशेष :
- अधिकतर व्यक्ति दुःखों के नहीं अपितु सुखों के साथी होते हैं इसलिए हमें अपना दुःख दूसरों से छिपाकर रखना चाहिए।
- भाषा सरल है।
- तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसे संगति बैठिये, तैसोई फल दीन ॥20॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
कदली = केले का वृक्ष। सीप = मोती। भुजंग = साँप। स्वाति = नक्षत्र।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ से लिया गया है। इसमें कवि ने संगति के परिणाम का वर्णन किया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि केले का पेड़, सीप और साँप का मुख-ये तीनों एक-दूसरे से अलग अलग हैं। स्वाति नक्षत्र में बरसी हुई वर्षा की एक बूंद यदि केले के पत्ते पर पड़ती है तो वह कर्पूर बन जाती है; सीप के खुले मुख में जाती है मोती बन जाती है और यदि सांप के मुख में जाती है तो विष बन जाती है। इस प्रकार स्वाति नक्षत्र में बरसी किसी एक बूंद के गुण तीन हैं परन्तु वह जैसी संगति में जाती है वैसा ही रूप धारण कर लेती है।
विशेष :
- मनुष्य जैसी संगति में बैठता है वह वैसे ही अच्छे बुरे. गुण धारण कर लेता है।
- भाषा सरल एवं सहज है।
- तत्सम तद्भव शब्दावली है।
- श्लेष अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
- काव्य रूढ़ि का प्रयोग किया गया है।
कमला थिर न, रहीम कहि, यह जानत सब कोई।
पुरुष पुरातन की वधू, क्यों न चंचला होई॥21॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
कमला = लक्ष्मी, धन की देवी। थिर न = एक जगह टिक कर नहीं रहती। पुरुष पुरातन = बूढ़ा व्यक्ति, भगवान विष्णु। वधू = पत्नी। चंचला = धन की देवी लक्ष्मी।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने धन को देवी लक्ष्मी को चंचला कहा है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि सब जानते हैं कि लक्ष्मी जी धन की देवी है जो एक जगह टिक कर कभी भी नहीं रहती है। जैसे किसी बूढे पुरुष की जवान पत्नी चंचल होती है और वह एक जगह स्थिर नहीं रहती है। भगवान विष्णु की पत्नी होने के कारण लक्ष्मी को चंचला कहा गया है।
विशेष :
- चंचल प्रकृति वाले मनुष्य या वस्तु को आप अधिक देर तक एक स्थान पर नहीं रोक सकते।
- भाषा सरल है।
- तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
जो रहीम ओछो बढै, तो अति ही इतराइ।
प्यादा सों फरजी भयो, टेढ़ी-टेढ़ी जाइ॥22॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
ओछौ = नीच व्यक्ति। इतिराइ = इतराना, घमण्ड करना। प्यादा = शतरंज के खेल की गोट। फर्जी = शतरंज के खेल की गोट-घोड़ा।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने निम्न व्यक्ति को सम्मान देने पर उसकी चाल बदलने का वर्णन किया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि जब किसी छोटे व्यक्ति को सम्मान मिलता है तो उसमें घमंड आ जाता है। दूसरों को अपने से छोटा समझने लगता है। जैसे शतरंज के खेल में छोटा-सा प्यादा जब फरजी बन जाता है तो वह घोड़े के समान टेढ़ा-मेढ़ा चलने लगता है।
विशेष :
- छोटे व्यक्ति को सम्मान मिलने पर उसे घमण्ड नहीं करना चाहिए।
- भाषा सरल है। आम बोलचाल की भाषा है।
- पुनरुक्ति प्रकाश, उदाहरण अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
रहिमन सूधी चाल सो, प्यादो होत वजीर।
फरजी मीर न लै सके, गति टेढ़ी तासीर ॥23।।
कठिन शब्दों के अर्थ :
सूधी चाल = सीधी चाल। तासीर = गुण, असर।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने मनुष्य को अपनी चाल सीधी रखने के लिए कहा है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि शतरंज के खेल में प्यादा सीधी चाल चलने के कारण वजीर बन जाता है और जब प्यादा घोड़ा बन जाता है तो उसकी चाल टेढ़ी हो जाती है जिसके कारण वह वजीर नहीं बन पाता है। मनुष्य को जितना मिले उतने में ही शांति रखनी चाहिए नहीं तो मिला हुआ भी समाप्त हो जाता है।
विशेष :
- छोटा व्यक्ति अपने गुणों से बड़ा बन जाता है। परन्तु उस समय उसे अपना स्वभाव नहीं बदलना चाहिए। नहीं तो मिला हुआ सम्मान चला जाता है।
- भाषा सरल एवं स्वाभाविक है। आम बोलचाल की भाषा है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण है।
काज परे कछु और है, काज सरे कछु और।
रहिमन भाँवरि के परे, नदी सिरावत मौर॥24॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
काज = काम। सरे = पूरा होने पर। सिरावत = प्रवाहित करना।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने संसार के चाल चलन का वर्णन किया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि संसार में काम पड़ने पर व्यक्ति का स्वभाव भिन्न प्रकार का हो जाता है और काम पूरा हो जाने पर वह किसी और प्रकार का हो जाता है। जब मनुष्य को किसी से काम पड़ता है तो वह उसकी मिन्नतें करता है और जब काम पूरा हो जाता है तो वह परवाह भी नहीं करता और अपना मुंह भी नहीं दिखाता है। रहीम जी ने उदाहरण देते हुए कहा कि विवाह के समय दूल्हे के सिर पर सजा मोर मुकुट भांवर (फेरे और सप्तपदी) तक बहुत सहेज-सम्भाल कर रखा जाता है पर विवाह होने के शीघ्र बाद ही उसे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।
विशेष :
- संसार का नियम है कि जब किसी को ज़रूरत पड़ती है तो वह आगे-पीछे चक्कर काटता है परन्तु जब उसका काम निकल जाता है तो वह दिखाई भी नहीं पड़ता।
- भाषा स्वाभाविक है।
- तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
- अनुप्रास, उदाहरण अलंकार है।
- प्रसाद गुण, शांत रस एवं गेयता का गुण विद्यमान है।
आवत काज, रहीम कहि, गाढ़े बन्धु सनेह।
जीरन होत न पेड़ ज्यों, थामै बरहि बरेह ॥25॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
काज = काम। आवत = आना। गाढ़े = मुसीबत, संकट। बन्धु = साथी। जीरन = कमज़ोर, पुराना। बरेह-वट वृक्ष की डालों से भूमि तक आने वाली जटाएँ जो पुराने हो जाने पर वट वृक्ष को सहारा देती हैं।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ से लिया गया है। इसमें कवि कहता है कठिनाई में अपने ही साथ देते हैं।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि जीवन में विपत्ति आ जाने पर अपने सगे-सम्बन्धी और मित्र ही काम आते हैं। वही कष्टों-विपत्तियों से मुक्ति पाने में सहायक सिद्ध होते हैं। बरगद (वट) वृक्ष भी भूमि तक लटककर नीचे आने वाली हवाई जटाएं ही उसके मूल तने के कमजोर हो जाने पर आंधियों तूफ़ानों से उसकी रक्षा करती हैं और उसे गिरने से बचा लेती हैं।
विशेष :
- कष्ट के समय अपने ही साथ देते हैं और मुसीबत से बचा लेते हैं।
- भाषा सरल एवं स्वाभाविक है।
- तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
दादुर मोर किसान मन, लग्यो रहै घन माहिं।
रहिमन चातक-रटनि कै, सरवरि को कोउ नाहि ॥26॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
दादुर = मेंढक। घन = बादल। रटनि = पुकारा। सरवरि = तालाब।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने सभी लोग अपने-अपने स्वार्थ को देखते हैं,का वर्णन किया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि मेंढक, मोर और किसान का मन बादलों में लगा रहता है। तीनों पानी से भरे बादलों की प्रतीक्षा अपने-अपने स्वार्थ के लिए करते हैं। किन्तु चातक की पुकार से सरोवर को कोई लेना देना नहीं
विशेष :
- मनुष्य अपने स्वार्थ की पूर्ति करके प्रसन्न होता है। उसे दूसरों के सुख-दुःख से कोई लेना-देना नहीं है।
- भाषा सरल है।
- तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
मन सो कहाँ रहीम प्रभु, दुग सो कहाँ दिवान।
देखि दृगन जो आदरै, मन तेहि हाथ बिकान ॥27॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
दुगन = आंखों। हाथ बिकान = बिक जाना, वश में होना।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने प्रभु को वश में करने का वर्णन किया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि मानव के मन में कैसा भाव-विचार होगा-यह उस पर प्रायः निर्भर नहीं करता। वह ईश्वर की ओर लगता है या नहीं, यह उस के मन पर निर्भर नहीं करता अपितु आँखों पर निर्भर करता है। कवि ने मन को राजा और आँख को दीवान की उपमा देकर कहा है कि जिस प्रकार मन्त्री के परामर्श से राजा काम करता है उसी प्रकार आँख के प्रिय को मन भी अपनाता है; उसी को स्वीकार कर लेता है। भाव है कि मनुष्य अधिकतर आँखों देखी बात पर शीघ्रता से विश्वास कर लेता है।
विशेष :
- मनुष्य अपनी आँखों देखी बातों को मन में अधिक जल्दी बिठा लेता है और उन्हीं पर विश्वास करने लगता है।
- भाषा सरल है।
- तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- प्रसाद गुण है शांत रस है।
- गेयता का गुण विद्यमान है।
जो रहीम करिबौ हतौ, ब्रज को इहै हवाल।
तो काहे कर पर धरयौ, गोवर्धन गोपाल ॥28॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
इहै = यह। हवाल = वर्तमान अवस्था। कर = हाथ। गोवर्धन = एक पर्वत जिसे ब्रजवासियों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने एक उंगली पर धारण किया था।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने काम करने की महिमा का वर्णन किया है।
व्याख्या:
रहीम जी श्रीकृष्ण के वियोग से पीड़ित ब्रजवासियों से कहते हैं कि यदि श्रीकृष्ण ने ब्रज-क्षेत्र की हालत को वास्तव में ही दुखदायी बनाना था तो वे गाँवों के रक्षक श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ पर उठाकर उसकी इन्द्र के प्रकोप से रक्षा ही न करते। श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की इन्द्र के क्रोध से रक्षा की थी। उन्होंने ब्रज क्षेत्र के वासियों को सुख दिया था न कि दुःख।
विशेष :
- भाषा सरल एवं सरस है।
- तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- प्रसाद गुण एवं शांत रस है।
- गेयता का गुण है।
हरि रहीम ऐसी करी, ज्यों कमान सर पूरि।
बैंचि आपनी ओर को, डारि दियो पुनि दूरि॥29॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
हरि = ईश्वर। सर = तीर।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने ईश्वर की व्यवस्था का वर्णन किया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि ईश्वर ने ऐसी व्यवस्था की है जैसे तीर और कमान के साथ है। कमान अथवा धनुष की डोरी को जितना ही हम अपनी ओर खींचते हैं तीर उतनी ही दूर जाकर गिरता है अर्थात् जितना हम मोह माया में खींचते जाते हैं उतने ही ईश्वर से दूर हो जाते हैं।
विशेष :
- ईश्वर ने मनुष्य के स्वभाव के अनुसार व्यवस्था कर रखी है।
- मनुष्य जितनी मोह माया में उलझता है उतना ही ईश्वर से दूर हो जाता है।
- ब्रज भाषा का प्रयोग है।
- तद्भव शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
सर सूखे पंछी उहै, और सरन्ह समाहिं।
दीन मीन बिन पच्छ के, कह रहीम कहँ जाँहि ॥30॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
सर = तालाब। मीन = मछली। पच्छ = पंख।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने असमर्थ प्राणियों का वर्णन किया है।
व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि सरोवर के सूख जाने पर पक्षी किसी दूसरे सरोवर पर चले जाते हैं परन्तु सूखे सरोवर की मछलियां बहुत लाचार हैं; दीन हैं। वे तो उड़कर कहीं जा भी नहीं सकतीं। इसका कारण यह है कि उनके पंख नहीं हैं। उन्हें तो मृत्यु प्राप्ति तक वहीं तड़पना है।
विशेष :
- असमर्थ प्राणी अपनी असमर्थता के कारण स्वयं को लाचार अनुभव करता है।
- भाषा सरल है।
- तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- प्रसाद गुण है।
- शांत रस है।
- गेयता का गुण है।
दोहे Summary
दोहे जीवन परिचय
रहीम जी का जन्म सन् 1553 में हुआ था। उनका पूरा नाम अब्दुर्ररहीम खानखाना था। वे मुग़ल सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे। उनके पिता बैरमखां अकबर के अभिभावक थे। रहीम जी अकबर के दरबारी कवि ही नहीं थे अपितु सेनापति और मंत्री भी रहे थे। अकबर की मृत्यु के बाद जहांगीर ने भी इन्हें अपना सेनानायक और जागीरदार बनाया था। परन्तु राजनैतिक कुचक्रों ने भी उन्हें बड़ा परेशान किया था। उन्हें जहाँगीर को लड़ाई में धोखा देने का झूठा आरोप भी सहना पड़ा था और कुछ समय तक कारावास का दंड भुगतना पड़ा था। उनके जीवन का अन्त अत्यन्त गरीबी में हुआ। इनकी मृत्यु सन् 1627 में हुई।
रहीम जी की रचनाओं में रहीम सतसई, बरवै नायिका भेद, शृंगार सोरठ, मदनाष्टक, रासपंचाध्यायी, नगर शोभा, फुटकल बरवै, फुटकल सवैये प्रसिद्ध हैं। वे जन्म से मुसलमान थे परन्तु उन्होंने भगवान् कृष्ण के संबंध में पूर्ण भक्ति-भाव से युक्त रचनाएं प्रस्तुत की थीं। उनके नीति सम्बन्धी दोहे भी अद्वितीय हैं। उनके दोहे केवल उपदेशप्रद ही नहीं, काव्य गुणों से भी सम्पन्न हैं।
दोहों का सार
रहीम जी ने अपने द्वारा रचित दोहों में जीवन से संबंधित तरह-तरह के गहन संकेत दिए हैं। उन्होंने जीवन के सूक्ष्म से सूक्ष्म अनुभव को बहुत कम शब्दों में व्यक्त है। उनके अनुसार मनुष्य ईश्वर की खोज में इधर-उधर भटकता रहता है जबकि ईश्वर तो स्वयं अपनी बनाई सृष्टि की सभी रचनाओं की देखभाल करते हैं। मनुष्य तो मनुष्य पशु भी ईश्वर की प्राप्ति के लिए उनके भक्तों के चरणों की धूल अपने मस्तक पर लगाने को तत्पर हैं। प्रेमपूर्वक खिलाई गई चने की रोटी भी अच्छे से अच्छे पकवान से उत्तम है। रहीम जी मानते हैं कि मांगने वाले से पहले वे लोग मृत के समान हैं जो होते हुए भी मांगने वाले को देने से इनकार कर देते हैं।
मनुष्य को सदा अच्छे लोगों की संगति करनी चाहिए। मनुष्य को अपनी जिह्वा को नियन्त्रित करना आना चाहिए नहीं तो बेकाबू जिह्वा के कारण भरे बाज़ार में अपनी इज्जत गंवानी पड़ती है। बड़े के आगे छोटे की महत्ता से इनकार नहीं करना चाहिए क्योंकि कई बार छोटी-सी वस्तु के आगे बड़ेबड़े हार मान जाते हैं। सूरज की गर्मी से जहां सभी लोग परेशान होते हैं वही चन्द्रमा की शीतलता सभी को शांति प्रदान करती है । कपूत कुल के नाश का कारण बनता है। मांगने वाला कितना ही बड़ा क्यों न हो वह छोटा ही रहता है। काम के प्रति लगन भी असम्भव काम को सम्भव कर देती है। रहीम जी मानते हैं कि अपने गुणों के कारण छोटा-सा प्यादा भी वजीर बन जाता है। संसार के नियम बड़े अनोखे हैं जब किसी को कोई काम पड़ता है तो वह गिड़गिड़ाने लगता है परन्तु काम निकल जाने पर पूछता भी नहीं है। सच्ची भक्ति से प्रभु को भी वश में किया जा सकता है। समय पड़ने पर असमर्थ प्राणी के विषय में कोई नहीं सोचता।