Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं
SST Guide for Class 10 PSEB गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Textbook Questions and Answers
(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखिए
प्रश्न 1.
किस घटना को ‘सच्चा सौदा’ का नाम दिया गया है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार करने के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन कराना।
प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की पत्नी कहां की रहने वाली थीं ? उनके पुत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी बटाला (ज़िला गुरदासपुर) की रहने वाली थीं। उनके पुत्रों के नाम श्री चन्द तथा लक्षमी दास थे।
प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद क्या शब्द कहे तथा उनका क्या भाव था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान पाप्ति के बाद ये शब्द कहे-‘न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान।’ इसका भाव था कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही अपने धर्म के मार्ग से भटक चुके हैं।
प्रश्न 4.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने किसके पास क्या काम किया?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने वहां के फ़ौजदार दौलत खाँ लोधी के अधीन मोदी खाने में भण्डारी का काम किया।
प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी की चार बाणियां कौन-सी हैं?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की चार बाणियां हैं-‘वार मल्हार’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी साहिब’ तथा ‘बारह माहा’।
प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी ने कुरुक्षेत्र में क्या उपदेश दिए?
उत्तर-
कुरुक्षेत्र में गुरु जी ने यह उपदेश दिया कि मनुष्य को सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण जैसे अंधविश्वासों में पड़ने की बजाय प्रभु भक्ति और शुभ कर्म करने चाहिएं।
प्रश्न 7.
गोरखमता में गुरु नानक देव जी ने सिद्धों तथा योगियों को क्या उपदेश दिया?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने उन्हें उपदेश दिया कि शरीर पर राख मलने, हाथ में डंडा पकड़ने, सिर मुंडाने, संसार त्यागने जैसे व्यर्थ के आडम्बरों से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त नहीं होता।
प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा कैसा है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा निराकार, सर्वशक्तिमान् , सर्वव्यापक तथा सर्वोच्च है।
प्रश्न 9.
‘सच्चा सौदा’ से क्या भाव है?
उत्तर-
सच्चा सौदा से भाव है-पवित्र व्यापार जो गुरु नानक साहिब ने अपने 20 रु० से फ़कीरों को रोटी खिला कर किया था।
(ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखो
प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का वर्णन इस प्रकार है
- परमात्मा एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को बताया कि परमात्मा एक है। उसे बांटा नहीं जा सकता। उन्होंने एक ओंकार का सन्देश दिया।
- परमात्मा निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को निराकार बताया और कहा कि परमात्मा का कोई आकार व रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार परमात्मा स्वयंभू तथा अकालमूर्त है। अतः उसकी मूर्ति बना कर पूजा नहीं की जा सकती।
- परमात्मा सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया। उनके अनुसार वह सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मन्दिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बन्द नहीं रखा जा सकता।
- परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है। वह अद्वितीय है। उसकी महिमा तथा महानता का पार नहीं पाया जा सकता।
- परमात्मा दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है।
प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी दूसरी उदासी (यात्रा) के समय कहां-कहां गए?
उत्तर-
अपनी दूसरी उदासी के समय गुरु साहिब सर्वप्रथम आधुनिक हिमाचल प्रदेश में गए। यहां उन्होंने बिलासपुर, मंडी, सुकेत, ज्वाला जी, कांगड़ा, कुल्लू, स्पीति आदि स्थानों का भ्रमण किया और कई लोगों को अपना श्रद्धालु बनाया। इस उदासी में गुरु साहिब तिब्बत, कैलाश पर्वत, लद्दाख तथा कश्मीर में अमरनाथ की गुफा में भी गए। तत्पश्चात् उन्होंने हसन अब्दाल तथा सियालकोट का भ्रमण किया। वहां से वह अपने निवास स्थान करतारपुर चले गए।
प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की जनेऊ की रस्म का वर्णन करो।
उत्तर-
अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल रही थी कि उन्हें जनेऊ पहनाने का निश्चय किया गया। इसके लिए रविवार का दिन निश्चित हुआ। सभी सगे सम्बन्धी इकट्ठे हुए और ब्राह्मणों को बुलाया गया। प्रारम्भिक मन्त्र पढ़ने के पश्चात् पण्डित हरदयाल ने गुरु नानक देव जी को अपने सामने बिठाया और उन्हें जनेऊ पहनने के लिए कहा। परन्तु उन्होंने इसे पहनने से स्पष्ट इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि मुझे अपने शरीर के लिए नहीं बल्कि आत्मा के लिए एक स्थायी जनेऊ चाहिए। मुझे ऐसा जनेऊ चाहिए जो सूत के धागे से नहीं बल्कि सद्गुणों के धागे से बना हो।
प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी ने अपने प्रारम्भिक जीवन में क्या-क्या व्यवसाय अपनाए?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब जी पढ़ाई तथा अन्य सांसारिक विषयों की उपेक्षा करने लगे थे। उनके व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहां भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिन्तन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू राम जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने गुरु नानक देव जी को 20 रुपए देकर व्यापार करने भेजा, परन्तु गुरु जी ने ये रुपये भूखे संतों को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी पहली उदासी (यात्रा) के समय कौन-कौन से स्थानों पर गए?
उत्तर-
अपनी पहली उदासी के समय गुरु नानक साहिब निम्नलिखित स्थानों पर गए
- सुल्तानपुर से चलकर वह सैय्यदपुर गए जहां उन्होंने भाई लालो को अपना श्रद्धालु बनाया।
- तत्पश्चात् गुरु साहिब तुलुम्बा (सज्जन ठग के यहां), कुरुक्षेत्र तथा पानीपत गए। इन स्थानों पर उन्होंने लोगों को शुभ कर्म करने की प्रेरणा दी।
- पानीपत से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार गए। इन स्थानों पर उन्होंने अन्ध-विश्वासों का खण्डन किया।
- इसके पश्चात् गुरु साहिब ने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गोरखमता, बनारस, पटना, हाजीपुर, धुबरी, कामरूप, शिलांग, ढाका, जगन्नाथपुरी तथा दक्षिण भारत के कई स्थानों का भ्रमण किया।
अंततः पाकपट्टन से दीपालपुर होते हुए वह सुल्तानपुर लोधी पहुंच गए।
प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी (यात्रा) के महत्त्वपूर्ण स्थानों के बारे में बताओ।
उत्तर-
गुरु साहिब ने अपनी तीसरी उदासी का आरम्भ पाकपट्टन से किया। अन्ततः वह सैय्यदपुर से आ गए। इस बीच उन्होंने निम्नलिखित स्थानों की यात्रा की
- मुल्तान
- मक्का
- मदीना
- बग़दाद
- तेहरान
- कंधार
- पेशावर
- हसन अब्दाल तथा
- गुजरात।
प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी द्वारा करतारपुर में बिताए गए जीवन का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर-
1521 ई० के लगभग गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के किनारे एक नया नगर बसाया। इस नगर का नाम ‘करतारपुर’ अर्थात् ईश्वर का नगर था। गुरु जी ने अपने जीवन के अन्तिम 18 वर्ष परिवार के अन्य सदस्यों के साथ यहीं पर व्यतीत किये।
कार्य-
- इस काल में गुरु नानक देव जी ने अपने सभी उपदेशों को निश्चित रूप दिया और ‘वार मल्हार’ और ‘वार माझ’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी’, ‘पट्टी’, ‘ओंकार’, ‘बारहमाहा’ आदि वाणियों की रचना की ।
- करतारपुर में उन्होंने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ (लंगर) की संस्था का विकास किया।
- कुछ समय पश्चात् अपने जीवन का अन्त निकट आते देख उन्होंने भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। भाई लहना जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे जो गुरु अंगद देव जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।
(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए
प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की किन्हीं छः शिक्षाओं के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं उतनी ही आदर्श थीं जितना कि उनका जीवन। वह कर्म-काण्ड, जाति-पाति, ऊंच-नीच आदि संकीर्ण विचारों से कोसों दूर थे। उन्हें तो सतनाम से प्रेम था और इसी का सन्देश उन्होंने अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक प्राणी को दिया। उनकी मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है —
- ईश्वर की महिमा–गुरु साहिब ने ईश्वर की महिमा का बखान अपने निम्नलिखित विचारों द्वारा किया है
- एक ईश्वर में विश्वास-श्री गुरु नानक देव जी ने इस बात का प्रचार किया कि ईश्वर एक है। वह अवतारवाद को स्वीकार नहीं करते थे। उनके अनुसार संसार का कोई भी देवी-देवता परमात्मा का स्थान नहीं ले सकता।
- ईश्वर निराकार तथा स्वयं-भू है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनके अनुसार परमात्मा स्वयं-भू है। अत: उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जानी चाहिए।
- ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् बताया। उनके अनुसार ईश्वर संसार के कण-कण में विद्यमान है। सारा संसार उसी की शक्ति पर चल रहा है।
(iv) ईश्वर दयालु है-श्री गुरु नानक देव जी का कहना था कि ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है। जो लोग अपने सभी काम ईश्वर पर छोड़ देते हैं, ईश्वर उनके कार्यों को स्वयं करता है।
- सतनाम के जाप पर बल-श्री गुरु नानक देव जी ने सतनाम के जाप पर बल दिया। वह कहते थे कि जिस प्रकार शरीर से मैल उतारने के लिए पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मन का मैल हटाने के लिए सतनाम का जाप आवश्यक है।
- गुरु का महत्त्व-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु को बहुत आवश्यकता है। गुरु रूपी जहाज़ में सवार होकर संसार रूपी सागर को पार किया जा सकता है। उनका कथन है कि “सच्चे गुरु की सहायता के बिना किसी ने भी ईश्वर को प्राप्त नहीं किया।” गुरु ही मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है।
- कर्म सिद्धान्त में विश्वास-गुरु नानक देव जी का विश्वास था कि मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार बार-बार जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। उनके अनुसार बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भुगतने के लिए बार-बार जन्म लेना पड़ता है। इसके विपरीत, शुभ कर्म करने वाला व्यक्ति जन्म-मरण के चक्कर से छूट जाता है और निर्वाण प्राप्त करता है।
- आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल दिया। उन्होंने इस धारणा को सर्वथा ग़लत सिद्ध कर दिखाया कि संसार माया जाल है और उसका त्याग किए बिना व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। उनके शब्दों में, “अंजन माहि निरंजन रहिए” अर्थात् संसार में रहकर भी मनुष्य को पृथक् और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।
- मनुष्य-मात्र के प्रेम में विश्वास-गुरु नानक देव जी रंग-रूप के भेद-भावों में विश्वास नहीं रखते थे। उनके अनुसार एक ईश्वर की सन्तान होने के नाते सभी मनुष्य भाई-भाई हैं।
- जाति-पाति का खण्डन-गुरु नानक देव जी ने जाति-पाति का घोर विरोध किया। उनकी दृष्टि में न कोई हिन्दू था और न कोई मुसलमान। उनके अनुसार सभी जातियों तथा धर्मों में मौलिक एकता और समानता विद्यमान है।
- समाज सेवा-गुरु नानक देव जी के अनुसार जो व्यक्ति ईश्वर के प्राणियों से प्रेम नहीं करता, उसे ईश्वर की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती। उन्होंने अपने अनुयायियों को नि:स्वार्थ भावना से मानव प्रेम और समाज सेवा करने का उपदेश दिया। उनके अनुसार मानवता के प्रति प्रेम, ईश्वर के प्रति प्रेम का ही प्रतीक है।
- मूर्ति-पूजा का खण्डन-गुरु नानक देव जी ने मूर्ति-पूजा का कड़े शब्दों में खण्डन किया। उनके अनुसार ईश्वर की मूर्तियां बनाकर पूजा करना व्यर्थ है, क्योंकि ईश्वर अमूर्त तथा निराकार है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर की
- यज्ञ, बलि तथा व्यर्थ के कर्म-काण्डों में अविश्वास-गुरु नानक देव जी ने व्यर्थ के कर्मकाण्डों का घोर खण्डन किया और ईश्वर की प्राप्ति के लिए यज्ञों तथा बलि आदि को व्यर्थ बताया। उनके अनुसार बाहरी दिखावे का प्रभु भक्ति में कोई स्थान नहीं है।
- सर्वोच्च आनन्द (सचखण्ड) की प्राप्ति-गुरु नानक देव जी के अनुसार मनुष्य जीवन का उद्देश्य सर्वोच्च आनन्द की (सचखण्ड) प्राप्ति है। सर्वोच्च आनन्द वह मानसिक स्थिति है जहां मनुष्य सभी चिन्ताओं तथा कष्टों से मुक्त हो जाता है। उसके मन में किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता और उसका दुखी हृदय शान्त हो जाता है। ऐसी अवस्था में मनुष्य की आत्मा पूरी तरह से परमात्मा में लीन हो जाती है।
- नैतिक जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने लोगों को नैतिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आदर्श जीवन के लिए ये सिद्धान्त प्रस्तुत किए-
- सदा सत्य बोलना।
- चोरी न करना।
- ईमानदारी से अपना जीवन निर्वाह करना।
- दूसरों की भावनाओं को कभी ठेस न पहुंचाना।
सच तो यह है कि गुरु नानक देव जी एक महान् सन्त और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपनी मधुर वाणी से लोगों के मन में नम्र भाव उत्पन्न किये। उन्होंने लोगों को सतनाम का जाप करने और एक ही ईश्वर में विश्वास रखने का उपदेश दिया। इस प्रकार उन्होंने भटके हुए लोगों को जीवन का उचित मार्ग दिखाया।
नोट-विद्यार्थी इनमें से कोई छ: शिक्षाएं लिखें।
प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की पहली उदासी (यात्रा) के बारे में विस्तार से लिखिए।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी अपनी पहली उदासी में भारत की पूर्वी तथा दक्षिणी दिशाओं में गए। यह यात्रा लगभग 1500 ई० में आरम्भ हुई। उन्होंने अपने प्रसिद्ध शिष्य भाई मरदाना को अपने साथ लिया। मरदाना रबाब बजाने में कुशल था। इस यात्रा के दौरान गुरुजी ने निम्नलिखित स्थानों का भ्रमण किया
- सैय्यदपुर-गुरु साहिब सुल्तानपुर लोधी से चल कर सबसे पहले सैय्यदपुर गए। वहाँ उन्होंने लालो नामक बढ़ई को अपना श्रद्धालु बनाया।
- तुलम्बा अथवा तालुम्बा-सैय्यदपुर से गुरु नानक देव जी मुल्तान जिला में स्थित तुलम्बा नामक स्थान पर पहुंचे। यहां सज्जन नामक एक व्यक्ति रहता था जो बड़ा धर्मात्मा कहलाता था। परन्तु वास्तव में वह ठगों का नेता था। गुरु नानक देव जी के प्रभाव में आकर उसने ठगी का धन्धा छोड़ धर्म प्रचार की राह अपना ली। तेजा सिंह ने ठीक ही कहा है कि गुरु जी की अपार कृपा से “अपराध की गुफ़ा ईश्वर की उपासना का मन्दिर बन गई।” (“The criminal’s den became a temple for God worship.”)
- कुरुक्षेत्र-तुलम्बा से गुरु साहिब हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान कुरुक्षेत्र पहुंचे। उस वर्ष वहां सूर्य ग्रहण के अवसर पर हज़ारों ब्राह्मण, साधु-फ़कीर तथा हिन्दू यात्री एकत्रित थे। गुरु जी ने एकत्र लोगों को यह उपदेश दिया कि मनुष्य को बाहरी अथवा शारीरिक पवित्रता की बजाय मन तथा आत्मा की पवित्रता पर बल देना चाहिए।
- पानीपत, दिल्ली तथा हरिद्वार-कुरुक्षेत्र से गुरु जी पानीपत पहुँचे। यहाँ से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार पहुँचे। यहाँ गुरु जी ने लोगों को सूर्य की ओर मुँह करके अपने पूर्वजों को पानी देते देखा। इस अन्धविश्वास को दूर करने के लिए गुरु साहिब ने उल्टी ओर पानी देना आरम्भ कर दिया। लोगों के पूछने पर गुरु जी ने बताया कि वह पंजाब में अपने खेतों को पानी दे रहे हैं। लोगों ने उनका मजाक उड़ाया। इस पर गुरु जी ने उनसे यह प्रश्न पूछा कि यदि मेरा पानी कुछ मील दूर नहीं जा सकता तो आप का पानी करोड़ों मील दूर पूर्वजों तक कैसे जा सकता है ? इस उत्तर से अनेक लोग प्रभावित हुए।
- गोरखमता-हरिद्वार के बाद गुरु जी केदारनाथ, बद्रीनाथ, जोशीमठ आदि स्थानों का भ्रमण करते हुए गोरखमता पहुंचे। वहाँ उन्होंने गोरखनाथ के अनुयायियों को मोक्ष प्राप्ति का सही मार्ग दिखाया।
- बनारस-गोरखमता से गुरु जी बनारस पहुँचे। यहाँ उनकी भेंट पण्डित चतुरदास से हुई। वह गुरु जी के उपदेशों से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह अपने शिष्यों सहित गुरुजी का अनुयायी बन गया।
- गया-बनारस से चल कर गुरु जी बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान ‘गया’ पहुँचे। यहाँ उन्होंने बहुत-से लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया और उन्हें अपना श्रद्धालु बनाया।
यहाँ से वह पटना तथा हाजीपुर भी गए तथा लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया। - आसाम-गुरु नानक देव जी बिहार तथा बंगाल होते हुए आसाम पहुँचे। वहाँ उन्होंने कामरूप की एक जादूगरनी को उपदेश दिया कि सच्ची सुन्दरता सच्चरित्र में है।
- ढाका, कटक तथा जगन्नाथपुरी-तत्पश्चात् गुरु जी ढाका पहुँचे। वहाँ पर उन्होंने विभिन्न धर्मों के नेताओं से मुलाकात की। ढाका से कटक होते हुए गुरु जी उड़ीसा में जगन्नाथपुरी गए। पुरी के मन्दिर में उन्होंने बहुत-से लोगों को विष्णु जी की मूर्ति पूजा तथा आरती करते देखा। वहाँ पर गुरु जी ने उपदेश दिया कि मूर्ति पूजा व्यर्थ है। ईश्वर सर्वव्यापक है।
- दक्षिणी भारत-पुरी से गुरु नानक देव जी दक्षिण की ओर गए। वह गंटूर, कांचीपुरम, त्रिचन्नापल्ली, नागापट्टम, रामेश्वरम, त्रिवेन्द्रम होते हुए लंका पहुँचे। वहाँ का राजा शिवनाभ गुरु जी के व्यक्तित्व तथा वाणी से बहुत प्रभावित हुआ और वह गुरु जी का शिष्य बन गया। लंका में गुरु साहिब ने झंडा बेदी नामक एक श्रद्धालु को ईश्वर का प्रचार करने के लिए भी नियुक्त किया। · ।
वापसी यात्रा-लंका से वापसी पर गुरु जी कुछ समय के लिए पाकपट्टन पहुँचे। वहाँ पर उनकी भेंट शेख फरीद के दसवें उत्तराधिकारी शेख ब्रह्म अथवा शेख इब्राहिम के साथ हुई। वह गुरु जी के विचार सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ।
पाकपट्टन से दीपालपुर होते हुए गुरु साहिब वापिस सुल्तानपुर लोधी आ गए।
प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी के बचपन (जीवन) के बारे में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
जन्म तथा माता-पिता-श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को हुआ। उनके पिता का नाम मेहता कालू राम जी तथा माता का नाम तृप्ता जी था।
बाल्यकाल तथा शिक्षा-बालक नानक को 7 वर्ष की आयु में उन्हें गोपाल पण्डित की पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया। वहाँ दो वर्षों तक उन्होंने देवनागरी तथा गणित की शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्हें पण्डित बृज लाल के पास संस्कृत पढ़ने के लिए भेजा गया। वहाँ गुरु जी ने ‘ओ३म’ शब्द का वास्तविक अर्थ बताकर पण्डित जी को चकित .कर दिया। सिक्ख परम्परा के अनुसार उन्हें अरबी तथा फ़ारसी पढ़ने के लिए मौलवी कुतुबुद्दीन के पास भी भेजा गया।
जनेऊ की रस्म-अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल ही रही थी कि उनके माता पिता ने सनातनी रीति-रिवाजों के अनुसार उन्हें जनेऊ पहनाना चाहा। परन्तु गुरु साहिब ने जनेऊ पहनने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें सूत के बने धागे के जनेऊ की नहीं, बल्कि सद्गुणों के धागे से बने जनेऊ की आवश्यकता है।
विभिन्न व्यवसाय-पढ़ाई में गुरु नानक देव जी की रुचि न देख कर उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहाँ भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिन्तन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू राम जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी को 20 रुपये देकर व्यापार करने भेजा, परन्तु गुरु जी ने ये रुपये भूखे साधुओं को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
विवाह-अपने पुत्र की सांसारिक विषयों में रुचि न देखकर मेहता कालू राम जी निराश हो गए। उन्होंने इनका विवाह बटाला के खत्री मूलराज की सुपुत्री सुलखनी से कर दिया। इस समय गुरु जी की आयु केवल 15 वर्ष की थी।
उनके यहां श्री चन्द और लक्षमी दास नामक दो पुत्र भी पैदा हुए। मेहता कालू राम जी ने गुरु जी को नौकरी के लिए सुल्तानपुर लोधी भेज दिया। वहाँ उन्हें नवाब दौलत खाँ के अनाज घर में नौकरी मिल गई। वहाँ उन्होंने ईमानदारी से काम किया। फिर भी उनके विरुद्ध नवाब से शिकायत की गई। परन्तु जब जांच-पड़ताल की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक था।
ज्ञान-प्राप्ति-गुरु जी प्रतिदिन प्रातःकाल ‘काली बेईं’ नदी पर स्नान करने जाया करते थे। वहां वह कुछ समय प्रभु चिन्तन भी करते थे। एक प्रातः जब वह स्नान करने गए तो निरन्तर तीन दिन तक अदृश्य रहे। इसी चिन्तन की मस्ती में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। अब वह जीवन के रहस्य को भली-भान्ति समझ गए। उस समय उनकी आयु 30 वर्ष की थी। शीघ्र ही उन्होंने अपना प्रचार कार्य आरम्भ कर दिया। उनकी सरल शिक्षाओं से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गये।
प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी के सुल्तानपुर लोधी के समय का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1486-87 ई० में गुरु साहिब को उनके पिता मेहता कालू राम जी ने स्थान बदलने के लिए सुल्तानपुर लोधी में भेज दिया। वहाँ वह अपने बहनोई (बीबी नानकी के पति) जैराम के पास रहने लगे।
मोदीखाने में नौकरी-गुरु जी को फ़ारसी तथा गणित का ज्ञान तो था। इसलिए उन्हें जैराम की सिफ़ारिश पर सुल्तानपुर लोधी के फ़ौजदार दौलत खाँ के सरकारी मोदीखाने (अनाज का भण्डार) में भण्डारी की नौकरी मिल गई। वहाँ वह अपना काम बड़ी ईमानदारी से करते रहे। फिर भी उनके विरुद्ध शिकायत की गई। शिकायत में कहा गया कि वह अनाज को साधुसन्तों में लुटा रहे हैं। परन्तु जब मोदीखाने की जांच की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक निकला।
गृहस्थ जीवन तथा प्रभु सिमरण-कुछ समय पश्चात् गुरु नानक साहिब ने अपनी पत्नी को भी सुल्तानपुर में ही बुला लिया। वह वहाँ सादा तथा पवित्र गृहस्थ जीवन बिताने लगे। प्रतिदिन सुबह वह शहर के साथ बहती हुए बेई नदी में स्नान करते, परमात्मा के नाम का स्मरण करते तथा आय का कुछ भाग ज़रूरतमन्दों को सहायता के लिए देते थे।
ज्ञान-प्राप्ति-जन्म साखी के अनुसार एक दिन गुरु नानक साहिब प्रतिदिन की तरह बेई नदी पर स्नान करने गए। परन्तु वह तीन दिन तक घर वापस न पहुँचे। इस पर सुल्तानपुर लोधी में गुरु जी के बेईं नदी में डूब जाने की अफवाह फैल गई। नानक जी के सगे सम्बन्धी तथा अन्य सज्जन चिन्ता में पड़ गए। लोग तरह-तरह की बातें भी बनाने लगे। परन्तु गुरु नानक जी ने वे तीन दिन गम्भीर चिंतन में बिताए। इसी बीच उन्होंने अपने आत्मिक ज्ञान को अन्तिम रूप देकर उसके प्रचार के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया।
ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् जब गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी वापस पहुँचे तो वे चुप थे। जब उन्हें बोलने के लिए विवश किया गया तो उन्होंने केवल ये शब्द कहे-‘न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान।’ लोगों ने गुरु साहिब से इस वाक्य का अर्थ पूछा। गुरु साहिब ने इसका अर्थ बताते हुए कहा कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही अपने-अपने धर्म के सिद्धान्तों को भूल चुके हैं। इन शब्दों का अर्थ यह भी था कि हिन्दुओं और मुसलमानों में कोई भेद नहीं है। वे एक समान हैं । उन्होंने इन्हीं महत्त्वपूर्ण शब्दों से अपने सन्देश का प्रचार आरम्भ किया। इस उद्देश्य से उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे कर लम्बी यात्राएँ आरम्भ कर दी।
प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी के प्रारम्भिक जीवन का वर्णन कीजिए ।
उत्तर-
इसके लिए 100-120 शब्दों वाला प्रश्न नं0 3 पढ़ें।
प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर के बारे में विचारों का वर्णन करो।
उत्तर-
ईश्वर का गुणगान गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मूल मन्त्र है। ईश्वर के विषय में उन्होंने निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किए हैं
- ईश्वर एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को ‘एक ओंकार’ का सन्देश दिया। यही उनकी शिक्षाओं का मूल मन्त्र था। उन्होंने लोगों को बताया कि ईश्वर एक है और उसे बांटा नहीं जा सकता। इसलिए गुरु नानक देव जी ने अवतारवाद को स्वीकार नहीं किया। गोकुलचन्द नारंग का कथन है कि गुरु नानक साहिब के विचार में, “ईश्वर विष्णु , शिव, कृष्ण और राम से बहुत बड़ा है और वह इन सबको पैदा करने वाला है।”
- ईश्वर निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनका कहना था कि ईश्वर का कोई आकार अथवा रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। वह स्वयंभू, अकाल अगम्य तथा अकाल मूर्त है। अत: उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जा सकती।
- ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया है। उनके अनुसार ईश्वर सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मन्दिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बन्द नहीं रखा जा सकता। तभी तो वह कहते हैं
“दूजा काहे सिमरिए, जन्मे ते मर जाए।
एको सिमरो नानका जो जल थल रिहा समाय।” - ईश्वर दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों को अवश्य सहायता करता है। वह उनके हृदय में निवास करता है। जो लोग अपने आपको ईश्वर के प्रति समर्पित कर देते हैं, उनके सुख-दुःख का ध्यान ईश्वर स्वयं रखता है। वह अपनी असीमित दया से उन्हें आनन्दित करता रहता है।
- ईश्वर महान् तथा सर्वोच्च है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सबसे महान् और सर्वोच्च है। मनुष्य के लिए उसकी महानता का वर्णन करना कठिन ही नहीं, अपितु असम्भव है। अपनी महानता का रहस्य स्वयं ईश्वर ही जानता है। इस विषय में नानक जी लिखते हैं, “नानक वडा आखीए आप जाणै आप।” अनेक लोगों ने ईश्वर की महानता का बखान करने का प्रयास किया है, परन्तु कोई भी उसकी सर्वोच्चता को नहीं छू सका।
- ईश्वर की आज्ञा का महत्त्व-गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में ईश्वर की आज्ञा अथवा हुक्म का बहुत महत्त्व है। उनके अनुसार सृष्टि का प्रत्येक कार्य उसी (ईश्वर) के हुक्म से होता है। अतः हमें उसकी प्रत्येक आज्ञा को ‘मिट्ठा भाणा’ समझकर स्वीकार कर लेना चाहिए।
PSEB 10th Class Social Science Guide गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में
प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी का जन्म कहां हुआ था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का जन्म लाहौर के दक्षिण-पश्चिम में 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तलवण्डी नामक गाँव में हुआ था। आजकल इसे ननकाना साहिब कहते हैं।
प्रश्न 2.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने क्या किया?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने दौलत खाँ लोधी के मोदीखाने में दस वर्ष तक कार्य किया।
प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर क्यों भेजा गया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी को उनकी बहन नानकी तथा जीजा जैराम के पास इसलिए भेजा गया ताकि वह कोई कारोबार कर सकें।
प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ कहां किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ करतारपुर में किया।
प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ किन दो संस्थाओं द्वारा किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने इसका श्री गणेश संगत तथा पंगत नामक दो संस्थाओं द्वारा किया।
प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उन यात्राओं से है जो उन्होंने एक उदासी के वेश में की।
प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों का उद्देश्य अन्ध-विश्वासों को दूर करना तथा लोगों को धर्म का उचित मार्ग दिखाना था।
प्रश्न 8.
करतारपुर की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर-
करतारपुर की स्थापना 1521 ई० के लगभग श्री गुरु नानक देव जी ने की।
प्रश्न 9.
करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि कहां से प्राप्त हुई?
उत्तर-
इसके लिए दीवान करोड़ीमल खत्री नामक एक व्यक्ति ने भूमि भेंट में दी थी।
प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी की सज्जन ठग से भेंट कहां हुई?
उत्तर-
सज्जन ठग से गुरु नानक देव जी की भेंट तुलम्बा में हुई।
प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी और सज्जन ठग की भेंट का सज्जन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
गुरु जी के सम्पर्क में आकर सज्जन ने बुरे कर्म छोड़ दिए और वह गुरु जी की शिक्षाओं का प्रचार करने लगा।
प्रश्न 12.
गोरखमता का नाम नानकमता कैसे पड़ा?
उत्तर-
गोरखमता में गुरु नानक देव जी ने नाथ योगियों को जीवन का वास्तविक उद्देश्य बताया था और उन्होंने गुरु जी की महानता को स्वीकार कर लिया था। इसी घटना के बाद गोरखमता का नाम नानकमता पड़ गया।
प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी के अन्तिम वर्ष कहां व्यतीत हुए?
उत्तर-
गुरु जी के अन्तिम वर्ष करतारपुर में धर्म प्रचार करते हुए व्यतीत हुए।
प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी की कोई एक शिक्षा लिखो।
उत्तर-
ईश्वर एक है और हमें केवल उसी की पूजा करनी चाहिए।
अथवा
ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु का होना आवश्यक है।
प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर सम्बन्धी विचार क्या थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है और वह निराकार, स्वयं-भू, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान्, दयालु तथा महान् है।
प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी की माताजी का नाम क्या था?
उत्तर-
तृप्ता जी।
प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी को पढ़ने के लिए किसके पास भेजा गया?
उत्तर-
पण्डित गोपाल के पास।
प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी द्वारा 20 रुपये से फ़कीरों को भोजन खिलाने की घटना को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर-
सच्चा सौदा।
प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
श्रीचन्द और लक्ष्मीदास।
प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, (वैशाख मास) 1469 ई० को हुआ।
प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कब हुई?
उत्तर-
1499 ई० में।
प्रश्न 22.
पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी (रबाबी) कौन थे?
उत्तर-
भाई मरदाना।
प्रश्न 23.
गुरु नानक देव जी के प्रताप से किस स्थान का नाम ‘नानकमता’ पड़ा?
उत्तर-
गोरखमता।
प्रश्न 24.
अपनी दूसरी उदासी में गुरु नानक देव जी कहाँ गए?
उत्तर-
भारत के उत्तर में।
प्रश्न 25.
‘धुबरी’ नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात किस से हुई?
उत्तर-
सन्त शंकर देव से।
प्रश्न 26.
गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी कब आरम्भ की?
उत्तर-
1517 ई० में।
प्रश्न 27.
गुरु नानक देव जी ने किस स्थान पर एक जादूगरनी को उपदेश दिया?
उत्तर-
कामरूप।
प्रश्न 28.
गुरु नानक देव जी द्वारा मक्का में काबे की ओर पांव करके सोने का विरोध किसने किया?
उत्तर-
काज़ी रुकनुद्दीन ने।
प्रश्न 29.
गुरुद्वारा पंजा साहिब कहाँ स्थित है?
उत्तर-
सियालकोट में।
प्रश्न 30.
गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी का आरम्भ किस स्थान से किया?
उत्तर-
पाकपट्टन से।
प्रश्न 31.
बाबर ने किस स्थान पर गुरु नानक देव जी को बन्दी बनाया?
उत्तर-
सैय्यदपुर।
प्रश्न 32.
गुरु नानक देव जी ने अपनी किस रचना में बाबर के सैय्यदपुर पर आक्रमण की निन्दा की है?
उत्तर-
बाबर-वाणी में।
प्रश्न 33.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अन्तिम 18 साल कहाँ व्यतीत किए?
उत्तर-
करतारपुर में।
प्रश्न 34.
परमात्मा के बारे में गुरु नानक देव जी के विचारों का सार उनकी किस वाणी में मिलता है?
उत्तर-
जपुजी साहिब में।
प्रश्न 35.
लंगर प्रथा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
सभी लोगों द्वारा बिना किसी भेदभाव के एक स्थान पर बैठ कर भोजन करना।
प्रश्न 36.
सिक्ख धर्म के संस्थापक अथवा सिक्खों के पहले गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।
प्रश्न 37.
गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत कब समाए?
उत्तर-
22 सितम्बर, 1539।
प्रश्न 38.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पंजाब की जनता पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
उनकी शिक्षाओं के प्रभाव से मूर्ति पूजा तथा अनेक देवी-देवताओं की पूजा कम हुई और लोग एक ईश्वर की उपासना करने लगे।
अथवा
उनकी शिक्षाओं से हिन्दू तथा मुसलमान अपने धार्मिक भेद-भाव भूल कर एक-दूसरे के समीप आए।
प्रश्न 39.
गुरु नानक देव जी ने बाबर के किस हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने बाबर के भारत पर तीसरे हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है।
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति
- गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन कराने को ………….. नामक घटना के नाम से जाना जाता है।
- …………… गुरु नानक देव जी की पत्नी थीं।
- गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम …………… तथा …………
- गुरु नानक देव जी की ‘वार मल्हार’, ‘वार आसा’ …………… और ……….. नामक चार वाणियां हैं।
- गुरु नानक जी का जन्म लाहौर के समीप …………… नामक गांव में हुआ।
- गुरुद्वारा पंजा साहिब …………… में स्थित है।
उत्तर-
- सच्चा सौदा,
- बीबी सुलखनी,
- श्रीचंद तथा लक्षमी दास,
- जपुजी साहिब, बारह माहा,
- तलवंडी,
- सियालकोट।
III. बहुविकल्पीय
प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी रहने वाली थीं
(A) बटाला की
(B) अमृतसर की
(C) भठिण्डा की
(D) कीरतपुर साहिब की।
उत्तर-
(A) बटाला की
प्रश्न 2.
करतारपुर की स्थापना की
(A) गुरु अंगद देव जी ने
(B) श्री गुरु नानक देव जी ने
(C) गुरु रामदास जी ने
(D) गुरु अर्जन देव जी ने।
उत्तर-
(B) श्री गुरु नानक देव जी ने
प्रश्न 3.
सज्जन ठग से श्री गुरु नानक देव जी की भेंट हुई
(A) पटना में
(B) सियालकोट में
(C) तुलम्बा में
(D) करतारपुर में।
उत्तर-
(C) तुलम्बा में
प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी की माता जी थीं
(A) सुलखनी जी
(B) तृप्ता जी
(C) नानकी जी
(D) बीबी अमरो जी।
उत्तर-
(B) तृप्ता जी
प्रश्न 5.
बाबर ने गुरु नानक देव जी को बन्दी बनाया
(A) सियालकोट में
(B) कीरतपुर साहिब में
(C) सैय्यदपुर में
(D) पाकपट्टन में।
उत्तर-
(C) सैय्यदपुर में
IV. सत्य-असत्य कथन
प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं
- करतारपुर की स्थापना 1526 ई० के लगभग श्री गुरु नानक देव जी ने की थी।
- श्री गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति 1499 ई० में हुई।
- गुरुद्वारा पंजा साहिब अमृतसर में स्थित है।
- श्री गुरु नानक देव जी 22 सितम्बर 1539 ई० को ज्योति जोत समाए।
- श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी 1499 ई० में आरम्भ की।
उत्तर-
- (✗),
- (✓),
- (✗),
- (✓),
- (✗).
V. उचित मिलान
- गुरु नानक देव जी — भाई मरदाना
- करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि — करतारपुर की स्थापना
- पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी — संत शंकर देव
- धुबरी नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात हुई — दीवान करोड़ी मल खत्री।
उत्तर-
- गुरु नानक देव जी-करतारपुर की स्थापना,
- करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि-दीवान करोड़ी मल खत्री,
- पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी-भाई मरदाना,
- धुबरी नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात हुई-संत शंकर देव।
छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
गुरु नानक साहिब की यात्राओं अथवा उदासियों के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने अपने संदेश के प्रसार के लिए कुछ यात्राएं की। उनकी यात्राओं को उदासियां भी कहा जाता है। इन यात्राओं को चार हिस्सों अथवा उदासियों में बांटा जाता है। यह समझा जाता है कि इस दौरान गुरु नानक साहिब ने उत्तर में कैलाश पर्वत से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक तथा पश्चिम में पाकपट्टन से लेकर पूर्व में असम तक की यात्रा की थी। वे सम्भवतः भारत से बाहर श्रीलंका, मक्का, मदीना तथा बग़दाद भी गये थे। उनके जीवन के लगभग बीस वर्ष ‘उदासियों’ में गुजरे। अपनी सुदूर ‘उदासियों’ में गुरु साहिब विभिन्न धार्मिक विश्वासों वाले अनेक लोगों के सम्पर्क में आए। ये लोग भांति-भांति की संस्कार विधियों और रस्मों का पालन करते थे। गुरु नानक साहिब ने इन सभी लोगों को धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया।
प्रश्न 2.
गुरु नानक साहिब ने किन प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं का खण्डन किया?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब का विचार था कि बाहरी कर्मकाण्डों में सच्ची धार्मिक श्रद्धा-भक्ति के लिए कोई स्थान नहीं था। इसलिए गुरु साहिब ने कर्मकाण्डों का खण्डन किया। ये बातें थीं-वेद, शास्त्र, मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा और मानव जीवन के महत्त्वपूर्ण अवसरों से सम्बन्धित संस्कार विधियां और रीति-रिवाज। गुरु नानक देव जी ने जोगियों की पद्धति को भी अस्वीकार कर दिया। इसके दो मुख्य कारण थे-जोगियों द्वारा परमात्मा के प्रति व्यवहार में श्रद्धा-भक्ति का अभाव और अपने मठवासी जीवन में सामाजिक दायित्व से विमुखता। गुरु नानक देव जी ने वैष्णव भक्ति को भी स्वीकार नहीं किया और अपनी विचारधारा में अवतारवाद को भी कोई स्थान नहीं दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने मुल्ला लोगों के विश्वासों, प्रथाओं तथा व्यवहारों का खण्डन किया।
प्रश्न 3.
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ क्या थे?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ बड़े महत्त्वपूर्ण थे। उनका सन्देश सभी के लिए था। प्रत्येक स्त्री-पुरुष उनके बताये मार्ग को अपना सकता था। इसमें जाति-पाति या धर्म का कोई भेद-भाव नहीं था। इस प्रकार वर्ण व्यवस्था के जटिल बन्धन टूटने लगे और लोगों में समानता की भावना का संचार हुआ। गुरु साहिब ने अपने आपको जनसाधारण के साथ सम्बन्धित किया। इसी कारण उन्होंने अपने समय के शासन में प्रचलित अन्याय, दमन और भ्रष्टाचार का बड़ा ज़ोरदार खण्डन किया। फलस्वरूप समाज अनेक कुरीतियों से मुक्त हो गया।
प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने लोगों को ये शिक्षाएं दी –
- ईश्वर एक है। वह सर्वशक्तिमान् और सर्वव्यापी है।
- जाति-पाति का भेदभाव मात्र दिखावा है। अमीर-ग़रीब, ब्राह्मण, शूद्र सभी समान हैं।
- शुद्ध आचरण मनुष्य को महान् बनाता है।
- ईश्वर भक्ति सच्चे मन से करनी चाहिए।
- गुरु नानक देव जी ने सच्चे गुरु को महान् बताया। उनका विश्वास था कि प्रभु को प्राप्त करने के लिए सच्चे गुरु का होना आवश्यक है।
- मनुष्य को सदा नेक कमाई खानी चाहिए।
- नारी का स्थान बहुत ऊंचा है। वह बड़े-बड़े महापुरुषों को जन्म देती है। इसलिए सभी को स्त्री का सम्मान करना चाहिए।
बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
एक शिक्षक तथा सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में गुरु नानक देव जी का वर्णन करो ।
उत्तर-
(क) महान् शिक्षक के रूप में
- सत्य के प्रचारक-गुरु नानक देव जी एक महान् शिक्षक थे। कहते हैं कि लगभग 30 वर्ष की आयु में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके पश्चात् उन्होंने देश-विदेश में सच्चे ज्ञान का प्रचार किया। उन्होंने ईश्वर के संदेश को पंजाब के कोने-कोने में फैलाने का प्रयत्न किया। प्रत्येक स्थान पर उनके व्यक्तित्व तथा वाणी का लोगों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। गुरु नानक देव जी ने लोगों को मोह-माया, स्वार्थ तथा लोभ को छोड़ने की शिक्षा दी और उन्हें आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरणा दी। गुरु नानक देव जी के उपदेश देने का ढंग बहुत ही अच्छा था। वह लोगों को बड़ी सरल भाषा में उपदेश देते थे। वह न तो गूढ़ दर्शन का प्रचार करते थे और न ही किसी प्रकार के वाद-विवाद में पड़ते थे। वह जिन सिद्धान्तों पर स्वयं चलते थे उन्हीं का लोगों में प्रचार भी करते थे।
- सब के गुरु-गुरु नानक देव जी के उपदेश किसी विशेष सम्प्रदाय, स्थान अथवा लोगों तक सीमित नहीं थे, अपितु उनकी शिक्षाएं तो सारे संसार के लिए थीं। इस विषय में प्रोफैसर करतार सिंह के शब्द भी उल्लेखनीय हैं। वह लिखते हैं-“उनकी (गुरु नानक देव जी) शिक्षा किसी विशेष काल के लिए नहीं थी। उनका दैवी उपदेश सदा अमर रहेगा। उनके उपदेश इतने विशाल तथा बौद्धिकतापूर्ण थे कि आधुनिक वैज्ञानिक विचारधारा भी उन पर टीका टिप्पणी नहीं कर सकती।” उनकी शिक्षाओं का उद्देश्य मानव-कल्याण था। वास्तव में, मानवता की भलाई के लिए ही उन्होंने चीन, तिब्बत, अरब आदि देशों की कठिन यात्राएं कीं।
(ख) सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में गुरु नानक देव जी ने सिक्ख धर्म की नींव रखी। टाइनबी (Toynbee) जैसा इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं है। वह लिखता है कि सिक्ख धर्म हिन्दू तथा इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों का मिश्रण मात्र था, परन्तु टाइनबी का यह विचार ठीक नहीं है। गुरु जी के उपदेशों में बहुत-से मौलिक सिद्धान्त ऐसे भी थे जो न तो हिन्दू धर्म से लिए गए थे और न ही इस्लाम धर्म से। उदाहरणतया, गुरु नानक देव जी ने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ की संस्थाओं को स्थापित किया। इसके अतिरिक्त गुरु नानक देव जी ने अपने किसी भी पुत्र को अपना उत्तराधिकारी न बना कर भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। ऐसा करके गुरु जी ने गुरु संस्था को एक विशेष रूप दिया और अपने इन कार्यों से उन्होंने सिक्ख धर्म की नींव रखी।
प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की दूसरी उदासी का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपनी दूसरी उदासी (यात्रा) 1514 ई० में आरम्भ की। इस बार वह उत्तर दिशा में गए। इस यात्रा के दौरान गुरु जी निम्नलिखित स्थानों पर गए —
- हिमाचल प्रदेश-गुरु जी ने पंजाब के प्रदेशों में से गुजरते हुए आधुनिक हिमाचल प्रदेश में प्रवेश किया। वहाँ पर सबसे पहले उनकी भेंट पीर बुड्डन शाह से हुई। वह पीर गुरु जी का अनुयायी बन गया। हिमाचल में गुरु जी बिलासपुर, मंडी, सुकेत, रिवालसर, ज्वाला जी, कांगड़ा, कुल्लू, स्पीति आदि स्थानों पर गए और वहाँ के विभिन्न सम्प्रदायों के लोगों को अपना शिष्य बनाया।
- तिब्बत-स्पीति घाटी पार करके गुरु नानक साहिब ने तिब्बत में प्रवेश किया। जब वह मानसरोवर झील तथा कैलाश पर्वत पर पहुँचे तो यहां पर उन्होंने अनेक सिद्ध योगियों से भेंट की। गुरु जी ने उन्हें उपदेश दिया कि पहाड़ों पर बैठने से कोई लाभ नहीं। उन्हें मैदानों में जाकरं अज्ञान के अन्धेरे में भटक रहे लोगों को ज्ञान का मार्ग दिखाना चाहिए।
- लद्दाख-कैलाश पर्वत के पश्चात् गुरु जी लद्दाख गए। वहाँ पर अनेक श्रद्धालुओं ने उनकी याद में एक गुरुद्वारे का निर्माण किया।
- कश्मीर-सकारदू तथा कारगिल होते हुए गुरु जी कश्मीर में अमरनाथ की गुफ़ा में गए। इसके बाद वह पहलगांव तथा मटन नामक स्थानों पर पहुंचे। मटन में उनकी भेंट पण्डित ब्रह्मदास से हुई जो वेद-शास्त्रों का बहुत बड़ा ज्ञानी माना जाता था। गुरु जी ने उसे उपदेश दिया कि केवल शास्त्रों को पढ़ लेने मात्र से ही मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता। यहाँ से गुरु जी बारामूला, अनंतनाग तथा श्रीनगर भी गए।
- हसन अब्दाल-कश्मीर से वापस आते हुए गुरु जी रावलपिंडी के उत्तर-पश्चिम में स्थित हसन अब्दाल नामक स्थान पर ठहरे। वहाँ उन्हें एक अहंकारी मुसलमान फ़कीर वली कंधारी ने पहाड़ी से पत्थर फेंक कर मारने का प्रयास किया। परन्तु गुरु जी ने उस पत्थर को अपने पंजे से रोक लिया। आजकल वहां एक सुन्दर गुरुद्वारा पंजा साहिब बना हुआ है।
- सियालकोट-जेहलम तथा चिनाब नदियों को पार करने के पश्चात् गुरु नानक साहिब सियालकोट पहुँचे। वहाँ पर भी उन्होंने अपने प्रवचनों से अपने श्रद्धालुओं को प्रभावित किया। अंत में गुरु जी अपने निवास स्थान करतारपुर में चले गए।
प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने तीसरी उदासी (यात्रा) 1517 ई० में आरम्भ की। इस बार उन्होंने एक मुस्लिम हाजी वाला नीला पहरावा धारण किया। इस बार वह पश्चिमी एशिया की ओर गए। मरदाना भी उनके साथ था। इस यात्रा में वह निम्नलिखित स्थानों पर गए
- पाकपट्टन तथा मुल्तान-सर्वप्रथम गुरु साहिब पाकपट्टन पहुंचे। यहाँ शेख ब्रह्म से मिलने के उपरान्त वह मुल्तान पहुँचे। यहाँ पर उनकी भेंट प्रसिद्ध सूफ़ी सन्त शेख बहाउद्दीन से हुई जो गुरु जी के विचारों से अत्यन्त प्रभावित हुआ।
- मक्का-गुरु नानक देव जी उच्च शुकर, मियानी तथा हिंगलाज नामक स्थानों पर प्रचार करते हुए हजरत मुहम्मद के जन्म स्थान मक्का पहुँचे। वहाँ गुरु जी काबे की ओर पाँव करके सो गए। वहाँ के काज़ी रुकनुद्दीन ने गुरु जी के ऐसा करने पर आपत्ति प्रकट की। परन्तु गुरु जी शांत रहे। उन्होंने काजी से प्रेमपूर्वक ये शब्द कहे- “आप मेरे पाँव उठा कर उस ओर कर दें, जिधर अल्लाह नहीं है।” काजी तुरन्त समझ गया कि अल्लाह का निवास हर जगह है।
- मदीना-मक्का के बाद गुरु जी मदीना पहुँचे। यहाँ पर उन्होंने हज़रत मुहम्मद की कब्र देखी। गुरु जी ने यहाँ इमाम आज़िम खान से धार्मिक विषय पर बातचीत भी की और अनेक लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया।
- बग़दाद-मदीना से गुरु जी ने बग़दाद की ओर प्रस्थान किया। वहां वह शेख बहलोल लोधी से मिले। वह उनकी वाणी से प्रभावित होकर उनका शिष्य बन गया। गुरु जी की इस यात्रा की पुष्टि नगर से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित शेख बहलोल के मकबरे पर अरबी भाषा में अंकित शब्दों से होती है।
- काबुल-बग़दाद से गुरु जी तेहरान तथा कन्धार होते हुए काबुल पहुँचे। काबुल में उस समय बाबर (मुग़ल बादशाह) का राज्य था। यहाँ पर गुरुजी ने अपने उपदेशों का प्रचार किया और अनेक लोगों को अपना श्रद्धालु बनाया।
- सैय्यदपुर-काबुल से दर्रा खैबर पार करके गुरु नानक देव जी पेशावर, हसन अब्दाल तथा गुजरात होते हुए सैय्यदपुर पहुंचे। उस समय सैय्यदपुर पर बाबर ने आक्रमण किया हुआ था। इस आक्रमण के समय बाबर ने सैय्यदपुर के लोगों पर बड़े अत्याचार किए। उसने अनेक लोगों को बन्दी बना लिया। गुरु नानक साहिब भी इन में से एक थे। जब बाबर को इस बात का पता चला तो वह स्वयं गुरु जी को मिलने के लिए आया। वह गुरु जी के व्यक्तित्व से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने गुरु जी सहित अनेक बंदियों को मुक्त कर दिया। गुरु नानक देव जी ने ‘बाबरवाणी’ में बाबर के इस आक्रमण की घोर निन्दा की है। उन्होंने इसकी तुलना पाप की बारात से की है।
गुरु नानक देव जी ने अपनी अन्तिम उदासी (यात्रा) 1521 ई० में पूर्ण की। इसके बाद वह पंजाब के आस-पास ही यात्राएं करते रहे। उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम 18 वर्ष करतारपुर में अपने परिवार के साथ एक आदर्श गृहस्थी के रूप में ही व्यतीत किए।