Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
राजनीति शास्त्र के अर्थ और क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
(Discuss the definition and scope of political science.)
अथवा
राजनीति शास्त्र की परिभाषा दें तथा इसके क्षेत्र का वर्णन करें।
(Define political science and describe its scope.)
उत्तर-
राजनीति शास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में जन्म लेता है और समाज में ही रह कर अपने जीवन का पूर्ण विकास करता है। समाज के बिना वह रह नहीं सकता। संगठित समाज में जब एक ऐसी संस्था की स्थापना हो जाए जिसके द्वारा उस समाज का शासन चलाया जा सके तथा वह समाज सत्ता सम्पन्न हो और एक निश्चित भाग पर निवास करता हो तो वह राज्य बन जाता है।
राज्य के अन्दर रहकर ही मनुष्य अपना विकास कर सकता है। राज्य की एजेंसी सरकार द्वारा राज्य की इच्छा को व्यक्त किया जाता है और वही इस इच्छा को लागू करती है। वह शास्त्र जो राज्य और सरकार की जानकारी देता है, उसे हम राजनीति शास्त्र कहते हैं।
राजनीति शास्त्र को अंग्रेज़ी में पोलिटिकल साइंस (Political Science) कहते हैं । यह शब्द पोलिटिक्स (Politics) से निकला है। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द पोलिस (Polis) से हुई है जिसका अर्थ है नगर-राज्य। ग्रीक लोग नगर-राज्यों में रहते थे, इसलिए उस समय पोलिटिक्स का अर्थ नगर-राज्य के अध्ययन से होता था परन्तु आज बड़े-बड़े राज्यों की स्थापना हो गई है, इसलिए अब हम इसका अर्थ राज्य के अध्ययन से लेते हैं। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में राजनीति शास्त्र वह विषय है जो राज्य का अध्ययन करता है। राजनीति विज्ञान के अर्थ को समझने के लिए विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं का अध्ययन करना अति आवश्यक है।
राजनीति विज्ञान की परम्परागत परिभाषाएं (Traditional definitions of Political Science)-राजनीति विज्ञान की परम्परागत परिभाषाओं को हम तीन भागों में बांट सकते हैं :-
(क) उन विद्वानों की परिभाषाएं जो राजनीति शास्त्र को केवल राज्य का अध्ययन करने वाला विषय मानते हैं।
(ख) उन विद्वानों की परिभाषाएं जो राजनीति शास्त्र को केवल सरकार से सम्बन्धित विषय मानते हैं।
(ग) उन विद्वानों की परिभाषाएं जो राजनीति शास्त्र को राज्य तथा सरकार दोनों से सम्बन्धित मानते हैं।
(क) राजनीति विज्ञान राज्य से सम्बन्धित है (Political Science is concerned with the state only)कुछ विद्वानों के मतानुसार, राजनीति शास्त्र का सम्बन्ध केवल राज्य से है। ब्लंटशली (Bluntschli), प्रो० गार्नर (Prof. Garner), गैटेल (Gettell), गैरीज़ (Garies) आदि इस विचार के मुख्य समर्थक हैं :-
- ब्लंटशली (Bluntschli) के मतानुसार, “राजनीति शास्त्र उस विज्ञान को कहा जाता है जिसका सम्बन्ध राज्य से है और जिसमें राज्य की मूल प्रकृति, उसके रूपों, विकास तथा उसकी आधारभूत स्थितियों को समझने और जानने का प्रयत्न किया जाता है।”
- प्रो० गार्नर (Prof. Garner) के मतानुसार, “राजनीति शास्त्र का आरम्भ तथा अन्त राज्य के साथ होता है।” (“Political Science begins and ends with the State.”)
- लॉर्ड एक्टन (Lord Acton) के शब्दों में, “राजनीति शास्त्र और राज्य उसके विकास की आवश्यक अवस्थाओं के साथ सम्बन्धित है।” (Political Science is concerned with the State and with the conditions essential for its development.)
(ख) राजनीति विज्ञान सरकार के साथ सम्बन्धित है (Political Science is concerned with the Government)-कुछ विद्वान् राजनीति विज्ञान को सरकार के अध्ययन तक सीमित मानते हैं। सीले, लीकॉक आदि विद्वान् इसी विचार के समर्थक हैं।
1. सीले (Seeley) का कहना है कि “जिस प्रकार राजनीतिक अर्थव्यवस्था सम्पत्ति का, प्राणिशास्त्र जीवन का, बीजगणित अंकों का और रेखागणित स्थान और इकाई का अध्ययन करता है उसी प्रकार राजनीति शास्त्र शासन-प्रणाली का अध्ययन करता है।” (“Political Science investigates the phenomena of government, or Political Economy deals with wealth, Biology with life, Algebra with number and Geometry with space and magnitude.”)
2. डॉ० लीकॉक (Dr. Leacock) के अनुसार, “राजनीति शास्त्र केवल सरकार से सम्बन्धित है।” (“Political Science deals with Government only.)”.
(ग) राजनीति विज्ञान राज्य तथा सरकार से सम्बन्धित (Political Science is concerned with State and Government)-कुछ विद्वानों के विचारानुसार राजनीति विज्ञान में राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन किया जाता है। गैटेल, गिलक्राइस्ट, पाल जैनेट तथा लॉस्की ने इसी विचार का समर्थन किया है।
- फ्रांसीसी लेखक पाल जैनेट (Paul Janet) के अनुसार, “राजनीति शास्त्र समाज शास्त्र का वह भाग है जो राज्य के आधारों तथा सरकार के सिद्धान्तों का अध्ययन करता है।” (“Political Science is that part of Social Science which treats the foundations of the State and principles of government.”)
- गैटेल (Gettell) के अनुसार, “राजनीति शास्त्र को राज्य का विज्ञान कहा जा सकता है। इसका सम्बन्ध उन व्यक्तियों के समुदायों से है जो राजनीतिक संगठन का निर्माण करते हैं, उनकी सरकारों के संगठन से है और सरकारों के कानून बनाने तथा लागू करने और अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों वाली गतिविधियों से है। इसके मुख्य विषय राज्य सरकार तथा कानून हैं।”
- गिलक्राइस्ट (Gilchrist) के अनुसार, “राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का विवेचन करता है।” (“Political Science deals with the general problems of the State and Government.”)
राजनीति विज्ञान की आधुनिक परिभाषाएं (Modern Definitions of Political Science)-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राजनीति शास्त्र की परिभाषा के सम्बन्ध में एक नवीन दृष्टिकोण का उदय हुआ है, जो निश्चित रूप से अधिक व्यापक और अधिक यथार्थवादी है। व्यवहारवादी क्रान्ति ने राजनीति शास्त्र की परिभाषाओं को नया रूप दिया है। कैटलिन, लासवैस, मेरियम, राबर्ट डाहल, डेविड ईस्टन, आल्मण्ड तथा पॉवेल, मैक्स वेबर आदि राजनीति शास्त्र के आधुनिक दृष्टिकोण के प्रतिनिधि विद्वान् हैं।
- बैन्टले (Bentley) का कहना है कि राजनीति में महत्त्वपूर्ण ‘शासन’ और उसकी संस्थाएं नहीं हैं, बल्कि शासन के कार्य की प्रक्रिया है और उस पर प्रभाव डालने वाले ‘दबाव समूह’ हैं। अतः राजनीति विज्ञान शासन की प्रक्रिया और दबाव समूहों के अध्ययन का शास्त्र है।
- लासवैल और कैपलॉन (Lasswell and Kaplan) के अनुसार, “एक आनुभाविक खोज के रूप में राजनीति विज्ञान शक्ति के निर्धारण और सहभागिता का अध्ययन है।” (“Political Science as an empirical inquiry is the study of the shaping and sharing of power.”)
- डेविड ईस्टन (David Easton) के अनुसार, “राजनीति मूल्यों का सत्तात्मक निर्धारण है जैसा कि यह शक्ति के वितरण और प्रयोग से प्रभावित होता है।” (“Politics is the study of authoritative allocation of values, as it is influenced by the distribution and use of power.”) ईस्टन ने राजनीति शास्त्र के अध्ययन-क्षेत्र में तीन बातों-नीति, सत्ता और समाज (Policy, Authority and Society) को प्रमुख माना है।
- आलमण्ड और पॉवेल (Almond and Powell) ने कहा है कि आधुनिक राजनीति विज्ञान में हम ‘राजनीतिक व्यवस्था’ का अध्ययन और विश्लेषण करते हैं।
स्पष्ट है कि आधुनिक विद्वान् राजनीति शास्त्र की परिभाषा पर एक मत नहीं हैं। कोई उसे मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन का शास्त्र मानता है, कोई उसे शक्ति के अध्ययन का और कोई सत्ता के अध्ययन का। इन समस्त आधुनिक दृष्टिकोणों का समन्वय करते हुए राबर्ट डाहल (Robert Dahl) ने कहा है कि “राजनीतिक विश्लेषण का शक्ति , शासन अथवा सत्ता के सम्बन्ध है।” (“Political analysis deals with power, rule or authority.”)
आधुनिक राजनीतिक विद्वानों में कई मतभेदों के बावजूद भी इस सम्बन्ध में विचार साम्य है कि वे राजनीति शास्त्र को अब राज्य या सरकार का विज्ञान नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार का, शक्ति का, सत्ता का तथा मानव समूह की अन्तः क्रियाओं का विज्ञान है।
निष्कर्ष (Conclusion)-राजनीति शास्त्र की परिभाषा के सम्बन्ध में अपनाया गया यह आधुनिक दृष्टिकोण भी एकांगी ही है। शक्ति राजनीति शास्त्र के विभिन्न अध्ययन विषयों में से केवल एक है, एकमात्र नहीं। अतः राजनीति शास्त्र के कुछ विद्वानों विशेषतया वी० ओ० के (V.0. Key), जे० रोलैण्ड, पिनॉक और डेविड जी० स्मिथ आदि के द्वारा इस विषय की परिभाषा के सम्बन्ध में परम्परागत और आधुनिक दृष्टिकोण में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया गया है।
पिनॉक और स्मिथ (Penock and Smith) ने पूर्णतया सन्तुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए लिखा है कि, “इस प्रकार राजनीति विज्ञान किसी भी समाज में उन सभी शक्तियों, संस्थाओं तथा संगठनात्मक ढांचों से सम्बन्धित होता है जिन्हें उस समाज में सुव्यवस्था की स्थापना और उसको बनाए रखने, अपने सदस्यों के अन्य सामूहिक कार्यों के उत्पादन तथा उनके मतभेदों का समाधान करने के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और अन्तिम सत्ता माना जाता है।”
राजनीति शास्त्र का विषय क्षेत्र (Scope of Political Science)-
राजनीति शास्त्र के क्षेत्र में तीन विचारधाराएं प्रचलित हैं :
- पहली विचारधारा के अनुसार, राजनीति शास्त्र का विषय राज्य है।
- दूसरी विचारधारा के अनुसार, राजनीति शास्त्र का विषय-क्षेत्र सरकार के अध्ययन तक ही सीमित है।
- तीसरी विचारधारा के अनुसार, राजनीति शास्त्र राज्य तथा सरकार का अध्ययन करता है।
कुछ विद्वानों के अनुसार राजनीति शास्त्र राज्य तथा सरकार का ही अध्ययन नहीं, बल्कि मनुष्य का भी अध्ययन करता है। प्रो० लॉस्की ने ऐसा ही मत प्रकट किया है। उन्होंने लिखा है कि “राजनीति शास्त्र के अध्ययन का सम्बन्ध संगठित राज्यों से सम्बन्धित मनुष्यों के जीवन से है।”
संयुक्त राष्ट्र शौक्षणिक, वैज्ञानिक-सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) के नेतृत्व में सितम्बर, 1948 में राजनीतिक वैज्ञानिकों का एक सम्मेलन हुआ जिसमें उन्होंने राजनीति शास्त्र के क्षेत्र को निम्नलिखित शीर्षकों के अधीन निश्चित किया :
- राजनीतिक सिद्धान्त (Political Theory)—इसमें राजनीतिक सिद्धान्त और राजनीतिक विचारों के इतिहास का अध्ययन शामिल है।
- राजनीतिक संस्थाएं (Political Institutions)—इसमें संविधान, प्रान्तीय और स्थानीय सरकार के प्रशासनिक, आर्थिक और सामाजिक कार्यों का अध्ययन शामिल है।
- राजनीतिक दल (Political Parties)—इसमें राजनीतिक दलों, समूहों, जनमत इत्यादि का अध्ययन शामिल है।
- अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध (International Relation)—इसमें अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय कानून इत्यादि शामिल हैं।
इस विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि राजनीति शास्त्र निम्नलिखित विषयों का अध्ययन करता है :
1. राज्य का अध्ययन (Study of State)-राजनीति शास्त्र राज्य का विज्ञान है और इसमें मुख्यतः राज्य का अध्ययन किया जाता है। गैटल के मतानुसार राजनीति शास्त्र राज्य के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन करता है।
(क) राज्य के अतीत का अध्ययन (The State as it had been)-राज्य वह धुरी है जिसके इर्द-गिर्द राजनीति शास्त्र घूमता है। परन्तु राज्य का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए इसमें राज्य की उत्पत्ति, उसके विस्तार, राजनीतिक संस्थाओं, विचारधाराओं के बदलते हुए स्वरूप का अध्ययन किया जाता है।
(ख) राज्य के वर्तमान का अध्ययन (The State as it is)-राजनीति शास्त्र राज्य के वर्तमान स्वरूप का अध्ययन भी करता है। इसमें राज्य क्या है, राज्य के तत्त्व कौन-से हैं, राज्य की प्रकृति, राज्य के उद्देश्य, राज्य के अपने नागरिकों के साथ सम्बन्ध तथा राज्य अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए क्या-क्या साधन प्रयोग करता है आदि का अध्ययन किया जाता है। इसके अध्ययन का सीमा क्षेत्र बहुत विस्तृत है।
(ग) राज्य के भविष्य का अध्ययन (The State as it ought to be)-राज्य का अध्ययन इसके वर्तमान रूप के अध्ययन के साथ ही समाप्त नहीं हो जाता। परिवर्तन प्रकृति का नियम है, इसलिए राज्य प्रगतिशील है। राज्य का लगातार विकास हो रहा है। राज्य जन-कल्याण के लिए है, इसलिए भविष्य में भी राज्य का ढांचा इस प्रकार का होना चाहिए कि जनता को अधिक-से-अधिक लाभ मिले। राज्य-शास्त्री का यह कर्त्तव्य है कि वह राज्य के अतीत तथा वर्तमान का पूर्ण ज्ञान लेकर भविष्य के लिए सुझाव दे ताकि राज्य की मशीनरी इस ढंग की हो कि जनता का अधिकसे-अधिक कल्याण हो सके। इसमें हम यह देखते हैं कि भविष्य में राज्य कैसा होना चाहिए तथा क्या एक अन्तर्राष्ट्रीय राज्य की स्थापना हो सकेगी कि नहीं।
2. सरकार का अध्ययन (Study of Government)-सरकार राज्य का अभिन्न भाग है। सरकार के बिना राज्य की स्थापना नहीं की जा सकती। सरकार राज्य की ऐसी एजेंसी है जिसके द्वारा राज्य की इच्छा को प्रकट तथा कार्यान्वित किया जाता है। राज्य के उद्देश्यों की पूर्ति सरकार द्वारा ही की जाती है। राजनीति शास्त्र में हम अध्ययन करते हैं किसरकार क्या है, इसके अंग कौन-से हैं, इसके कार्य क्या हैं तथा इसके विभिन्न रूप कौन-से हैं।
3. शासन प्रबन्ध का अध्ययन (Study of Administration)-राजनीति शास्त्र लोक प्रशासन से सम्बन्धित है। शासन प्रबन्ध एक जटिल क्रिया है। राज्य प्रबन्ध में सरकारी कर्मचारी योगदान देते हैं और इन्हीं सरकारी कर्मचारियों से सम्बन्धित शास्त्र को लोक प्रशासन कहा जाता है। कर्मचारियों की नियुक्ति, स्थानान्तरण, अवकाश आदि सभी बातें जोकि लोक प्रशासन में आती हैं, राजनीति शास्त्र से सम्बन्धित होती हैं, अतः उन सबके लिए राजनीति शास्त्र का अध्ययन आवश्यक है।
4. मनुष्य का अध्ययन (Study of Man)-मनुष्यों को मिलाकर राज्य बनता है। राजनीति शास्त्र, जिसमें मुख्यतः राज्य का अध्ययन किया जाता है, मनुष्य का अध्ययन भी करता है। इसमें मनुष्यों का राज्य के साथ क्या सम्बन्ध है, उनके अधिकार और कर्त्तव्य तथा नागरिकता की प्राप्ति तथा लोप इत्यादि बातों का अध्ययन किया जाता है।
5. समुदायों और संस्थाओं का अध्ययन (Study of Associations and Institutions)-राज्य के अन्दर कई प्रकार के समुदाय और संस्थाएं होती हैं जिनके द्वारा मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है। राजनीति शास्त्र इन विभिन्न समुदायों और संस्थाओं का अध्ययन भी करता है। इसके अतिरिक्त चुनाव प्रणाली, जनमत का संगठन, दबाव गुट, लोक-सम्पर्क की व्यवस्था, प्रसारण के साधन आदि के बारे में भी राजनीति शास्त्र में अध्ययन किया जाता है।
6. राजनीतिक विचारधारा का अध्ययन (Study of Political Thought)-राज्य क्या है, राज्य के पास कौनकौन से अधिकार और शक्तियां हैं और उनकी क्या सीमाएं हो सकती हैं ? राज्य की आज्ञाओं को लोग क्यों माने, किन-किन व्यवस्थाओं में लोगों को राज्य की आज्ञाओं की अवहेलना करने का अधिकार होना चाहिए, राज्य की शक्ति व लोगों के अधिकारों के मध्य कहां लकीर खींची जाए जैसे बहुत-से महत्त्वपूर्ण और मौलिक प्रश्नों के उत्तर समयसमय पर विभिन्न राजनीतिक विद्वान् विचारकों ने दिए हैं। अतः इन सब बातों का अध्ययन हम राजनीति शास्त्र में करते हैं। आदर्शवाद, व्यक्तिवाद, उपयोगितावाद, फासिज्म, गांधीवाद आदि का अध्ययन राजनीति शास्त्र में किया जाता है।
7. राजनीतिक संस्कृति का अध्ययन (Study of Political Culture)-राजनीति शास्त्र में राज्य और सरकार का ही नहीं बल्कि राजनीतिक संस्कृति के अध्ययन पर भी विशेष बल दिया जाता है। राजनीति के विद्वान् इन बातों का विश्लेषण करते हैं कि भौगोलिक परिस्थितियों, जातीय और भाषायी विभिन्नताओं, परम्पराओं और जनता के विश्वासों का राजनीतिक प्रक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ता है।
8. नेतृत्व का अध्ययन (Study of Leadership)-राजनीति शास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण विषय नेतृत्व है। जब लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति और हितों की रक्षा के लिए संगठित होते हैं तब उन्हें नेतृत्व की आवश्यकता अनुभव होती है। कोई भी संगठन अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाता जब तक उस संगठन का अच्छा नेतृत्व नहीं किया जाता। नेतृत्व के बिना कोई संगठन सफल नहीं हो सकता। समाज में सदा कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जो अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक योग्यता रखते हैं और दूसरे व्यक्तियों को शीघ्र प्रभावित कर लेते हैं। ऐसे लोगों को नेतागण कहा जाता है। राजनीति शास्त्र में नेतृत्व और अच्छे नेता के गुणों का अध्ययन किया जाता है।
9. राजनीतिक दलों का अध्ययन (Study of Political Parties)-लोकतन्त्रीय प्रणाली बिना राजनीतिक दलों के नहीं चल सकती। राजनीतिक दल क्या हैं, राजनीतिक दलों के प्रकार, राजनीतिक दलों की भूमिका इत्यादि का राजनीति शास्त्र में अध्ययन किया जाता है।
10. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और अन्तर्राष्ट्रीय संगठन का अध्ययन (Study of International Politics and Organisation) वर्तमान समय में कोई भी राज्य आत्मनिर्भर नहीं है। प्रत्येक राज्य को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए एक राज्य दूसरे राज्यों से सम्बन्ध स्थापित करता है, जिससे कई समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। राजनीति शास्त्र अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का भी अध्ययन करता है। राजनीति शास्त्र में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का भी अध्ययन किया जाता है। राजनीति शास्त्र में युद्ध, शान्ति तथा शक्ति-सन्तुलन की समस्याओं पर विचार किया जाता है। प्रथम महायुद्ध के पश्चात् राष्ट्र संघ और द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी। राजनीति शास्त्र में राष्ट्र संघ और संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन, कार्यों, सफलताओं एवं असफलताओं आदि का अध्ययन किया जाता है।
11. शक्ति तथा सत्ता का अध्ययन (Study of Power and Authority)-मैक्स वैबर, मैरियम, लासवैल, राबर्ट डाहल, डेविड ईस्टन आदि विद्वानों के मतानुसार राजनीति शास्त्र में सभी प्रकार की शक्ति तथा सत्ता का भी अध्ययन किया जाता है। शक्ति तथा सत्ता के क्या अर्थ हैं ? शक्ति तथा सत्ता किस प्रकार प्राप्त होती है, व्यक्ति और व्यक्ति समूह किस प्रकार से शासन संचालन और सार्वजनिक नीतियों के निर्माण को अपनी शक्ति तथा सत्ता से प्रभावित करते हैं इत्यादि ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर राजनीति शास्त्र से ही प्राप्त किया जा सकता है।
12. राजनीति शास्त्र के क्षेत्र के सम्बन्ध में आधुनिक दृष्टिकोण (Scope of Political Science-Most Modern Point of View)-आधुनिक दृष्टिकोण का राजनीतिक क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। आधुनिक विद्वानों ने राजनीति शास्त्र की नई दिशाएं निर्धारित की हैं। डॉ० वीरकेश्वर प्रसाद सिंह के शब्दों में, “इसे वैज्ञानिकता प्रदान करने के दृष्टिकोण से रूढ़िवादी विषयों, जैसे-राज्य के लक्ष्य, सर्वश्रेष्ठ सरकार, औपचारिक संस्थाओं का अध्ययन, ऐतिहासिक पद्धति आदि को इससे अलग कर दिया गया है। मूल्यों, राज्यों एवं उसकी संस्थाओं के बदले मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार तथा राजनीतिक गतिविधियों का अध्ययन राजनीति शास्त्र के अन्तर्गत किया जाने लगा है।” 1967 में अमेरिकन पोलिटिकल साइंस एसोसिएशन ने राजनीति शास्त्र के विषय क्षेत्र का निर्धारण करते समय इसके 27 उपक्षेत्रों की चर्चा की। जिनमें मुख्य हैं-मनुष्य और उसका राजनीतिक व्यवहार, समूह, संस्थाएं, प्रशासन, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, सिद्धान्त, विचारवाद, मूल्य, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, सांख्यिकीय सर्वेक्षण, शोध पद्धतियां आदि।
आर्नल्ड ब्रेश्ट (Arnold Brecht) ने ‘International Encyclopaedia of Social Sciences’ 1968 में राजनीतिक सिद्धान्त के अन्तर्गत अग्र अध्ययन इकाइयां बताई हैं :
–
(1) समूह (Group), (2) सन्तुलन (Equilibrium), (3) शक्ति, नियन्त्रण एवं प्रभाव (Power, Control and Influence), (4) क्रिया (Action), (5) विशिष्ट वर्ग (Elite), (6) निर्णय (Decision) तथा विनिश्चय-प्रक्रिया, (7) पूर्वाभासित प्रतिक्रिया (Anticipated Action) तथा (8) कार्य (Function)।
13. नई धारणाओं का अध्ययन (Study of New Concepts)-राजनीति शास्त्र में कुछ नई धारणाओं ने जन्म लिया है। इसमें राजनीतिक प्रणाली (Political System), शक्ति की धारणा (Concept of Power), राजनीतिक समाजीकरण (Political Socialization), राजनीतिक सत्ता की धारणा (Concept of Political Authority), उचितता की धारणा (Concept of Legitimacy), प्रभाव की धारणा (Concept of Influence) आदि कुछ नई धारणाएं हैं। इन धारणाओं का अध्ययन राजनीति शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में शामिल है।
इसके अतिरिक्त कुछ समाज-शास्त्र से सम्बन्ध रखने वाली अवधारणाओं का अध्ययन भी इसके अन्तर्गत करते हैं। जैसे-राजनीति, संस्थाएं, सरकार, न्याय, स्वतन्त्रता, समानता आदि। कुछ नवीन अवधारणाएं-समाजीकरण, राजनीतिक विकास, राजनीतिक संचार आदि हैं। अब अत्यधिक वैज्ञानिकता पर बल दिया जाता है।
निष्कर्ष (Conclusion)-राजनीति शास्त्र के विषय क्षेत्र के अध्ययन से पता चलता है कि इसका क्षेत्र बहुत विशाल है। इसमें राज्य, सरकार, मनुष्य, समुदाय तथा संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है। इसमें कानून तथा विश्व समस्याओं का भी अध्ययन किया जाता है।
प्रश्न 2.
राजनीति शास्त्र पढ़ने से क्या लाभ हैं?
(What are the advantages of studying Political Science ?)
अथवा
राजनीति विज्ञान के अध्ययन के महत्त्व की व्याख्या करें। (Discuss the significance of the study of Political Science.)
उत्तर-
कुछ विद्वान् आज के वैज्ञानिक युग में राजनीति विज्ञान के सिद्धान्तों के अध्ययन का कोई मूल्य नहीं समझते, परन्तु उनकी यह धारणा ठीक नहीं है। आइवर ब्राउन (Ivor Brown) ने ठीक ही कहा है कि, “यदि इसे सामाजिक जीवन के यथार्थ मूल्यों के प्रति सहज बुद्धि के दृष्टिकोण से तथा उचित रीति से अध्ययन किया जाए तो राजनीतिक सिद्धान्त ठोस भी हैं और लाभप्रद भी।” प्रत्येक व्यक्ति, व्यक्ति होने के साथ-साथ राज्य का नागरिक भी है। उसका राज्य के साथ अटूट सम्बन्ध है। अतः प्रत्येक के लिए राजनीति शास्त्र का अध्ययन करना अनिवार्य है। इसके अध्ययन के अनेक लाभ हैं जिनमें से मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं
1. राजनीतिक शब्दावली का ठीक ज्ञान प्राप्त होता है (The Knowledge of the Political Terminology)राजनीति शास्र के अध्ययन का पहला लाभ यह है कि इससे राजनीतिक शब्दावली का ठीक-ठीक ज्ञान प्राप्त होता है। इसके अध्ययन के बिना राज्य, सरकार, समाज, राष्ट्र, राष्ट्रीयता इत्यादि शब्दों के अर्थों का ठीक-ठीक ज्ञान प्राप्त नहीं होता। साधारण मनुष्य राज्य तथा राष्ट्र, राज्य तथा सरकार में कोई अन्तर नहीं करता। राजनीति शास्त्र के अध्ययन से पता चलता है कि इन सब शब्दों में अन्तर है और एक शब्द को दूसरे शब्द के स्थान पर प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसके अध्ययन से नागरिकों को स्वतन्त्रता तथा समानता के अर्थों का ठीक-ठीक पता चलता है।
2. राज्य तथा सरकार का ज्ञान (Knowledge of State and Government)-राजनीति शास्त्र का मुख्य विषय राज्य तथा सरकार है। राजनीति शास्त्र के अध्ययन से यह पता चलता है कि राज्य की उत्पत्ति कैसे हुई, राज्य क्या है, राज्य के उद्देश्य क्या हैं, इन उद्देश्यों की पूर्ति किस तरह की जा सकती है, सरकार क्या है, सरकार के कौनसे अंग हैं और इन अंगों का आपस में क्या सम्बन्ध है।
3. राज्य का व्यक्ति से सम्बन्ध दर्शाता है (It shows relationship between the State and Man)राजनीति शास्त्र के अध्ययन से राज्य तथा व्यक्ति के सम्बन्ध का ज्ञान होता है। प्राचीन काल से यह प्रश्न चला आ रहा है कि राज्य तथा व्यक्ति में क्या सम्बन्ध है ? राज्य व्यक्ति के लिए या व्यक्ति राज्य के लिए है? पहले यह समझा जाता था कि राज्य ही सब कुछ है। राज्य व्यक्ति पर मनमाने अत्याचार कर सकता है, इसलिए व्यक्ति पर बहुत अत्याचार किए गए। परन्तु आज हमें राजनीति शास्त्र के अध्ययन से राज्य तथा व्यक्ति के ठीक सम्बन्ध का ज्ञान होता है।
4. अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान (Knowledge of Rights and Duties)-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य को अपना विकास करने में सहायता देने के लिए राज्य की तरफ से अधिकार दिए तथा उसके कर्त्तव्य निश्चित किए जाते हैं। मनुष्य तभी अपना विकास कर सकता है जब उसे अधिकारों तथा कर्तव्यों का पूरा ज्ञान प्राप्त हो। यह ज्ञान राजनीति शास्त्र से प्राप्त होता है।
5. सहनशीलता (Toleration)-आज के युग में नागरिकों के अन्दर सहनशीलता की भावना का होना बहुत आवश्यक है। राजनीति शास्त्र लोगों को सहनशीलता का पाठ सिखाता है। राजनीति शास्त्र यह शिक्षा देता है कि प्रत्येक राज्य एक दूसरे की अखण्डता, प्रभुसत्ता का आदर करे। लोकतन्त्र में तो सहनशीलता की भावना का होना विशेष रूप में अनिवार्य है, क्योंकि लोकतन्त्र में यदि एक व्यक्ति को अपने विचार प्रकट करने व भाषण देने की स्वतन्त्रता है तो उसका कर्त्तव्य भी है कि दूसरे के अच्छे न लगने वाले विचारों को भी सहनशीलता से सुने और समझे। अत: यह भावना राजनीति शास्त्र के अध्ययन से उत्पन्न होती है।
6. विभिन्न देशों की शासन-प्रणालियों का ज्ञान (Knowledge of the Governmental Systems of Various countries) राजनीति शास्त्र के अध्ययन से विभिन्न देशों की शासन प्रणालियों का ज्ञान होता है। इसमें विश्व के संविधानों का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार हमें इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका, स्विट्ज़लैण्ड, जर्मनी, जापान, पाकिस्तान इत्यादि देशों के संविधानों का ज्ञान मिलता है। दूसरे देशों के शासन सम्बन्धी ज्ञान से हम अपने देश के शासन में सुधार कर सकते हैं।
7. लोगों में जागरूकता उत्पन्न करता है (Promotes Vigilance among the People)-राजनीति शास्त्र के अध्ययन से नागरिकों के अधिकारों तथा कर्त्तव्य के ज्ञान, विश्व के दूसरे देशों की शासन प्रणाली के ज्ञान, राज्य तथा सरकार के ज्ञान से नागरिकों में जागरूकता उत्पन्न होती है जिससे वे देश के शासन को कार्य कुशल बनाने का प्रयत्न करते हैं। वे शासन कार्यों में दिल से भाग लेते हैं, सरकार की नीतियों की आलोचना करते तथा अपने सुझाव देते हैं। प्रजातन्त्र शासन प्रणाली की सफलता के लिए नागरिकों में जागरूकता होनी अति आवश्यक है। यह सत्य है कि सतत् चौकसी स्वतन्त्रता का मूल्य है (Enternal vigilance is the price of liberty)। यदि नागरिक अपनी स्वतन्त्रता को कायम रखना चाहते हैं तो उन्हें हमेशा ही जागरूक रहना होगा और जागरूकता राजनीति शास्त्र के अध्ययन से आती है।
8. स्वस्थ राजनीतिक दलों की उत्पत्ति (Growth of Healthy Political Parties)–लोकतन्त्र शासन के लिए स्वस्थ राजनीतिक दलों का होना अनिवार्य है। अच्छे व स्वस्थ राजनीतिक दल किसे कहा जा सकता है, इसका पता राजनीति शास्त्र से चल सकता है। हमें राजनीति शास्त्र से ही पता चलता है कि देश के अन्दर स्वार्थ सिद्धि के लिए उत्पन्न हुए छोटे-छोटे गुट व राजनीतिक दल नहीं अपितु इनका ढांचा तो राजनीतिक तथा आर्थिक आधार पर खड़ा होना चाहिए। राजनीति शास्र का ज्ञान रखने वाले नागरिक ही स्वस्थ दलों का निर्माण कर पायेंगे और ऐसे दल सदैव राष्ट्र हित के लिए कार्य करेंगे।
9. राजनीतिज्ञों तथा शासकों के लिए विशेष उपयोगिता (Special advantages to Politicians and Administrators)-राजनीति शास्त्र के अध्ययन से राजनीतिज्ञों तथा शासकों को विशेष लाभ है। देश के शासन को किस प्रकार चलाया जाए, किस प्रकार के कानून बनाए जाएं कि जनता के लिए अधिक लाभदायक हों? दूसरे देशों के साथ किस प्रकार की नीति को अपनाया जाए? नागरिकों को कौन-से अधिकार दिए जाएं? सरकार के कार्यों में किस प्रकार कुशलता लाई जाए? सार्वजनिक वित्त (Public Finance) के क्या सिद्धान्त हैं ? जनता पर किस प्रकार के टैक्स लगाने चाहिएं? वे कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका सामना प्रत्येक राजनीतिज्ञ तथा शासक को करना पड़ता है और इन प्रश्नों के स्पष्ट उत्तर राजनीति शास्र देता है।
10. वर्तमान समस्याओं का हल (Solution of Current Problems)-राजनीति शास्त्र ठोस सिद्धान्तों पर आधारित है और उन सिद्धान्तों को वर्तमान समस्याओं पर लागू करके समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। यदि नागरिकों और शासकों को यह पता है कि अमुक दशा में कौन-से कानून लागू करने चाहिएं तो देश में राजनीतिक प्रगति बड़ी सन्तोषप्रद होगी। यदि शासक अच्छी प्रकार सोच-विचार कर कदम उठाएं तो कोई कारण नहीं कि देश-विदेश की वर्तमान समस्याएं हल न हों।
11. प्रजातन्त्र की सफलता (Success of Democracy)-लोकतन्त्र की सफलता बहुत हद तक राजनीति शास्त्र के अध्ययन पर निर्भर है। लोकतन्त्र जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन होता है। प्रतिनिधियों का सुयोग्य होना अथवा न होना जनता पर निर्भर करता है। जनता को अच्छी सरकार प्राप्त करने के लिए अच्छे प्रतिनिधि चुनने होंगे और यह तभी हो सकता है जब जनता को राजनीतिक शिक्षा मिली हो।
लोकतन्त्र की सफलता में राजनीति शास्त्र का अध्ययन काफ़ी सहयोग देता है, क्योंकि इससे नागरिकों को अपने अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का, सरकार के संगठन कार्यों तथा सरकार के उद्देश्यों का, शासन की विभिन्न समस्याओं का ज्ञान प्राप्त होता है।
12. विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं का ज्ञान (Knowledge of Various Political Ideology)राजनीति शास्त्र के अन्तर्गत विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं आदर्शवाद (Idealism), व्यक्तिवाद (Individualism), गांधीवाद (Gandhism), समाजवाद (Socialism), अराजकतावाद (Anarchism), साम्यवाद (Communism) आदि का अध्ययन होता है। इन विचारधाराओं के भिन्न-भिन्न उद्देश्य होते हैं।
13. विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की जानकारी (Knowledge of Various International Organisations)-राजनीति शास्त्र के अन्तर्गत विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं का भी अध्ययन किया जाता है। इन संस्थाओं में संयुक्त राष्ट्र (United Nations), संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organisation), विश्व स्वास्थ्य संघ (World Health Organisation), अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संघ (I.L.O.) आदि महत्त्वपूर्ण संगठन हैं।
14. छात्र वर्ग के लिए उपयोगी (Useful for Student-Class)-राजनीति शास्त्र विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी तथा अनिवार्य है। आज का छात्र भविष्य का नागरिक व शासक है। अतः छात्र वर्ग को राजनीतिक विचारधाराओं, राजनीतिक प्रणालियों, अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान होना अनिवार्य है।
निष्कर्ष (Conclusion)-अन्त में, हम यह कह सकते हैं कि राजनीति शास्त्र के अध्ययन के अनेक लाभ हैं। भारत में लोकतन्त्र की सफलता तभी हो सकती है जब जनता को शासन के बारे में ज्ञान प्राप्त हो और वे अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का उचित प्रयोग करें। इसके लिए राजनीति शास्त्र का अध्ययन अति आवश्यक है। भारत में राजनीति शास्त्र के विद्यार्थियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। सरकार भी विद्यार्थियों में राजनीतिक शिक्षा का प्रचार करने के लिए प्रयत्नशील है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
राजनीति शास्त्र का शाब्दिक अर्थ बताओ।
अथवा
राजनीति (Politics) शब्द की उत्पत्ति तथा इसका अर्थ बताओ।
उत्तर-राजनीति शास्त्र को अंग्रेज़ी में पोलिटिकल साईंस (Political Science) कहते हैं। यह शब्द पोलिटिक्स (Politics) से निकला है। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द पोलिस (Polis) से हुई है जिसका अर्थ है नगरराज्य। ग्रीक लोग नगर-राज्यों में रहते थे, इसलिए उस समय पोलिटिक्स का अर्थ नगर-राज्य के अध्ययन से होता था परन्तु आज बड़े-बड़े राज्यों की स्थापना हो गई है। इसलिए अब हम इसका अर्थ राज्य के अध्ययन से लेते हैं। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में राजनीति शास्त्र वह विषय है जो राज्य का अध्ययन करता है।
प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान की चार परम्परागत परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र की महत्त्वपूर्ण परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-
- प्रो० गार्नर के मतानुसार, “राजनीति शास्त्र का आरम्भ तथा अन्त राज्य के साथ होता है।”
- लीकॉक के अनुसार, “राजनीति शास्त्र केवल सरकार से सम्बन्धित है।”
- गैटेल के अनुसार, “राजनीति शास्त्र को राज्य का विज्ञान कहा जा सकता है। इसका सम्बन्ध व्यक्तियों के उन समुदायों से है जो राजनीतिक संगठन का निर्माण करते हैं, उनकी सरकारों के संगठन से है और सरकारों के कानून बनाने तथा लागू करने और अन्तर्राज्यीय सम्बन्धों वाली गतिविधियों से है। इसके मुख्य विषय राज्य, सरकार तथा कानून हैं।”
- गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का विवेचन करता है।”
प्रश्न 3.
राजनीति विज्ञान की चार आधुनिक परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
- बैन्टले का कहना है कि राजनीति में महत्त्वपूर्ण ‘शासन’ और उसकी संस्थाएं नहीं हैं बल्कि शासन के कार्य की प्रक्रिया है और उस पर प्रभाव डालने वाले दबाव समूह हैं। अत: राजनीति विज्ञान शासन प्रक्रिया और दबाव समूहों के अध्ययन का शास्त्र है।
- लासवैल और कैपलॉन के अनुसार, “एक आनुभाविक खोज के रूप में राजनीति विज्ञान शक्ति के निर्धारण और सहभागिता का अध्ययन है।”
- डेविड ईस्टन के अनुसार, “राजनीति मूल्यों का सत्तात्मक निर्धारण है जैसे कि यह शक्ति के वितरण और प्रयोग से प्रभावित होता है।”
- आलमण्ड और पॉवेल के अनुसार, “आधुनिक राजनीति विज्ञान में हम राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन और विश्लेषण करते हैं।”
प्रश्न 4.
राजनीति शास्त्र के किन्हीं चार क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र निम्नलिखित विषयों का अध्ययन करता है
- राज्य का अध्ययन-राजनीति शास्त्र में राज्य की उत्पत्ति, उसके विस्तार, राज्य का है, राज्य के तत्त्व, राज्य की प्रकृति और राज्य के भविष्य आदि का अध्ययन किया जाता है।
- सरकार का अध्ययन–राजनीति शास्त्र में हम अध्ययन करते हैं कि सरकार क्या है ? इसके कौन-कौन से अंग हैं ? इसके कार्य क्या-क्या हैं तथा इसके विभिन्न रूप कौन-से हैं ?
- शासन प्रबन्ध का अध्ययन-कर्मचारियों की नियुक्ति, स्थानान्तरण, अवकाश सभी बातें जोकि लोक प्रशासन में आती हैं, राजनीति शास्त्र से सम्बन्धित होती हैं।
- समुदायों और संस्थाओं का अध्ययन-राजनीति शास्त्र में चुनाव प्रणाली, राजनीतिक दल, दबाव समूह, लोक सम्पर्क की व्यवस्था तथा अन्य समुदायों का अध्ययन किया जाता है।
प्रश्न 5.
राजनीति विज्ञान के अध्ययन के चार लाभ बताइये।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान के अध्ययन से अनेक लाभ हैं जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं-
- राजनीतिक शब्दावली का ठीक ज्ञान प्राप्त होता है-राजनीति शास्त्र के अध्ययन का पहला लाभ यह है कि इससे राजनीतिक शब्दावली का ठीक-ठाक ज्ञान प्राप्त होता है। इसके अध्ययन के बिना राज्य, सरकार, राष्ट्र, राष्ट्रीयता आदि शब्दों के अर्थों का सही ज्ञान प्राप्त नहीं होता।
- राज्य तथा सरकार का ज्ञान-राजनीति शास्त्र का मुख्य विषय राज्य तथा सरकार है। राजनीति शास्त्र के अध्ययन से यह पता चलता है कि राज्य की उत्पत्ति कैसे हुई ? राज्य क्या है ? राज्य के उद्देश्य क्या हैं ? इन उद्देश्यों की पूर्ति किस प्रकार की जा सकती है ? सरकार क्या है ? सरकार के कौन-से अंग हैं और उनका आपस में क्या सम्बन्ध है ?
- अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य को अपना विकास करने में सहायता देने के लिए उसे राज्य की तरफ से अधिकार व कर्त्तव्य दिए गए हैं। मनुष्य तभी अपना पूर्ण विकास कर सकता है जब उसे अपने अधिकारों व कर्त्तव्यों का ज्ञान हो। यह ज्ञान उसे राजनीति शास्त्र से प्राप्त होता है।
- राजनीति विज्ञान लोगों को सहनशीलता का पाठ सिखाता है।
प्रश्न 6.
राजनीति शास्त्र एक विज्ञान है। इसके पक्ष में चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र के विज्ञान होने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं.-
- राजनीति शास्त्र में प्रयोग सम्भव है-राजनीति शास्त्र में प्राकृतिक विज्ञानों की तरह प्रयोग, प्रयोगशाला में नहीं होते बल्कि इतिहास राजनीति शास्त्र के लिए एक प्रयोगशाला है। ऐतिहासिक घटनाएं एक प्रयोग हैं जिनसे राज्यशास्त्री अपने परिणाम निकालते हैं।
- राजनीति शास्त्र में कार्य-कारण का सिद्धान्त-यह ठीक है कि प्राकृतिक विज्ञानों की तरह राजनीति शास्त्र में कार्य-कारण में सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जा सकता, परन्तु फिर भी यदि घटनाओं का अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से किया जाए तो घटनाओं के ऐसे कारण ढूंढ निकाले जा सकते हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि समान कारणों का काफ़ी सीमा तक समान प्रभाव होता है। विद्वानों ने यह परिणाम निकाला है कि यदि किसी देश की जनता अधिक ग़रीब होती जाएगी तो इसका परिणाम उस देश में क्रान्ति है।
- तुलनात्मक तथा निरीक्षण पद्धति सम्भव-राजनीति शास्त्र विज्ञान है क्योंकि इसमें भौतिक विज्ञानों की तरह तुलनात्मक प्रणाली का प्रयोग किया जा सकता है। अरस्तु ने 158 संविधानों का अध्ययन करके अपने जो सिद्धान्त प्रस्तुत किए उनमें आज बहत हद तक सच्चाई है।
- राजनीति विज्ञान में भी भविष्यवाणी की जा सकती है।
प्रश्न 7.
राजनीति शास्त्र एक विज्ञान नहीं है। इस कथन के पक्ष में चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र एक विज्ञान नहीं है। इस विषय में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं-
- राजनीति शास्त्र के सिद्धान्तों में एकता नहीं है-रसायन शास्त्र तथा भौतिक शास्त्र के सिद्धान्तों पर वैज्ञानिकों के एक ही विचार होते हैं अर्थात् इनके सिद्धान्तों में एकता पाई जाती है। परन्तु राजनीति शास्त्र में ऐसे सिद्धान्तों की कमी है जिनके विषय में विद्वानों के समान विचार हों।
- राजनीति शास्त्र में कार्य-कारण सिद्धान्त का न लागू होना-राजनीति शास्त्र को इस आधार पर भी विज्ञान नहीं माना जा सकता क्योंकि इसमें रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान या अन्य किसी विज्ञान की तरह कार्य-कारण का सिद्धान्त पूर्ण रूप से लागू नहीं होता।
- राजनीति शास्त्र के सिद्धान्तों का प्रयोग असम्भव है-राजनीति शास्त्र विज्ञान नहीं है क्योंकि इसमें उस ढंग से प्रयोग नहीं किए जा सकते जिस ढंग से प्राकृतिक विज्ञानों में किए जाते हैं। राजनीति शास्त्र में रसायन विज्ञान की तरह ऐसे प्रयोग सम्भव नहीं हैं जिनका परिणाम सब समयों पर एक जैसा हो।
- राजनीति विज्ञान में भविष्यवाणी करने में कठिनाई आती है।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
राजनीति शास्त्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
राजनीति शास्त्र को अंग्रेज़ी में पोलिटीकल साईंस (Political Science) कहते हैं। यह शब्द पोलिटिक्स (Politics) से निकला है। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द पोलिस (Polis) से हुई है जिसका अर्थ है नगरराज्य। ग्रीक लोग नगर-राज्यों में रहते थे, इसलिए उस समय पोलिटिक्स का अर्थ नगर-राज्य के अध्ययन से होता था। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में राजनीति शास्त्र वह विषय है जो राज्य का अध्ययन करता है।
प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान की दो परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
- प्रो० गार्नर के मतानुसार, “राजनीति शास्त्र का आरम्भ तथा अन्त राज्य के साथ होता है।”
- गैटेल के अनुसार, “राजनीति शास्त्र को राज्य का विज्ञान कहा जा सकता है। इसका सम्बन्ध व्यक्तियों के उन समुदायों से है जो राजनीतिक संगठन का निर्माण करते हैं, उनकी सरकारों के संगठन से है और सरकारों के कानून बनाने तथा लागू करने और अन्तर्राज्यीय सम्बन्धों वाली गतिविधियों से है। इसके मुख्य विषय राज्य, सरकार तथा कानून हैं।”
प्रश्न 3.
राजनीति शास्त्र के क्षेत्र की व्याख्या करो।
उत्तर-
- राज्य का अध्ययन-राजनीति शास्त्र में राज्य की उत्पत्ति, उसके विस्तार, राज्य का है, राज्य के तत्त्व, राज्य की प्रकृति और राज्य के भविष्य आदि का अध्ययन किया जाता है।
- सरकार का अध्ययन-राजनीति शास्त्र में हम अध्ययन करते हैं कि सरकार क्या है ? इसके कौन-कौन से अंग हैं ? इसके कार्य क्या-क्या हैं तथा इसके विभिन्न रूप कौन-से हैं ?
प्रश्न 4.
विद्यार्थियों के लिए राजनीति शास्त्र का अध्ययन किस प्रकार महत्त्व रखता है ?
उत्तर-
विद्यार्थियों को राजनीतिक विचारधाराओं, राजनीतिक प्रणालियों और अपने अधिकारों, कर्तव्यों व सरकार की समस्याओं की जानकारी प्राप्त होना आवश्यक है। राजनीति शास्त्र के अध्ययन के द्वारा विद्यार्थियों को इन सभी विषयों की जानकारी प्राप्त होती है। राजनीति शास्त्र विद्यार्थियों को सूझवान व सचेत नागरिक बनने में मदद करता है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-
प्रश्न 1. राजनीति शास्त्र का पिता किसे माना जाता है ?
उत्तर-अरस्तु को।
प्रश्न 2. ‘Polis’ किस भाषा का शब्द है ?
उत्तर-ग्रीक भाषा का।
प्रश्न 3. ‘Polis’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर-‘Polis’ का अर्थ है-नगर राज्य (City State)।
प्रश्न 4. ग्रीक लोग कहाँ रहते थे ?
उत्तर-ग्रीक लोग नगर राज्यों में रहते थे।
प्रश्न 5. ‘Political Science’ शब्द किस शब्द से निकला है ?
उत्तर-Politics से ।।
प्रश्न 6. ‘Politics’ शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है?
उत्तर-Politics शब्द की उत्पत्ति ‘Polis’ से हुई है।
प्रश्न 7. अरस्तु ने कितने संविधानों का अध्ययन किया?
उत्तर-158 संविधानों का।
प्रश्न 8. किसी एक विद्वान् का नाम लिखें, जो राजनीति शास्त्र को विज्ञान मानता है?
उत्तर-अरस्तु।
प्रश्न 9. किसी एक विद्वान् का नाम बताएं, जो राजनीति शास्त्र को विज्ञान नहीं मानता है ?
उत्तर-मैटलैंड।
प्रश्न 10. “जब मैं ऐसे परीक्षा प्रश्नों के समूह को देखता हूँ, जिनका शीर्षक राजनीतिक विज्ञान होता है, तो मुझे प्रश्नों पर नहीं, बल्कि शीर्षक पर खेद होता है।” यह कथन किसका है?
उत्तर-मैटलैंड।
प्रश्न 11. राजनीति शास्त्र की कोई एक उपयोगिता लिखें।
उत्तर-राजनीति शास्त्र के अध्ययन से राज्य तथा सरकार का ज्ञान मिलता है।
प्रश्न 12. नगर राज्यों का अध्ययन करने वाले विषय को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-राजनीति शास्त्र।।
प्रश्न II. खाली स्थान भरें-
1. रिपब्लिक पुस्तक के लेखक ………… हैं
2. मैटलैंड राजनीति विज्ञान को विज्ञान ………….. मानता है।
3. राजनीति शास्त्र में राज्य और …………का अध्ययन किया जाता है।
4. अरस्तु ने …………. संविधानों का अध्ययन किया।
उत्तर-
- प्लेटो
- नहीं
- सरकार
- 158.
प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-
1. राजनीति शास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय मशीन को ही समझा जाना चाहिए क्योंकि राजनीति शास्त्र की समस्त मशीनरी मशीन के इर्द-गिर्द ही घूमती है।
2. राजनीति शास्त्र को अंग्रेज़ी में अर्थशास्त्र (Economics) कहते हैं। यह शब्द पोलिटिक्स से निकला है।
3. पोलिस (Polis) का अर्थ है-नगर-राज्य।
4. गार्नर के अनुसार, “राजनीति शास्त्र केवल सरकार से संबंधित है।”
5. राजनीति शास्त्र के क्षेत्र के संबंध में तीन विचारधाराएं प्रचलित हैं।
उत्तर-
- ग़लत
- ग़लत
- सही
- ग़लत
- सही।
प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
Political Science शब्द किस शब्द से निकला है ?
(क) State से
(ख) Right से
(ग) Politics से
(घ) Freedom से।
उत्तर-
(ग) Politics से।
प्रश्न 2.
यह कथन किसका है, “राजनीति शास्त्र का आरम्भ तथा अंत राज्य के साथ होता है।”
(क) लॉस्की
(ख) गार्नर
(ग) विलोबी
(घ) गैरीज।
उत्तर-
(ख) गार्नर ।
प्रश्न 3.
राजनीति शास्त्र तथा राजनीति विज्ञान में क्या अंतर पाया जाता है ?
(क) राजनीति शास्त्र का जन्म राजनीति से पहले हुआ।
(ख) राजनीति विज्ञान नैतिकता पर आधारित है, जबकि राजनीति सुविधा पर।
(ग) दोनों के लक्ष्य अलग-अलग हैं।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 4.
राजनीति शास्त्र के विषय-क्षेत्र में शामिल हैं-
(क) राज्य का अध्ययन
(ख) सरकार का अध्ययन
(ग) राजनीतिक विचारधारा का अध्ययन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।