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PSEB 12th Class History Notes Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839
→ प्रथम चरण (First Stage)-महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य संबंधों का प्रथम चरण 1800 से 1809 ई० तक चला-1800 ई० में अंग्रेजों ने यूसुफ अली के अधीन एक सद्भावना मिशन रणजीत सिंह के दरबार में भेजा-
→ 1805 में मराठा सरदार जसवंत राव होल्कर ने महाराजा से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता माँगी परंतु महाराजा ने इंकार कर दिया-
→ प्रसन्न होकर अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह के साथ 1 जनवरी, 1806 ई० को लाहौर की संधि की-महाराजा रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति को रोकने के लिए अंग्रेजों ने चार्ल्स मैटकॉफ को 1808 ई० में बातचीत के लिए भेजा-
→ बातचीत असफल रहने पर दोनों ओर से युद्ध की तैयारियाँ आरंभ हो गईं-अंतिम क्षणों में महाराजा अंग्रेज़ों के साथ संधि करने के लिए तैयार हो गया।
→ अमतृसर की संधि (Treaty of Amritsar)-अमृतसर की संधि महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य 25 अप्रैल, 1809 ई० को हुई-इस संधि के अनुसार सतलुज नदी को लाहौर दरबार और अंग्रेजों के मध्य सीमा रेखा मान लिया गया-
→ इस संधि से महाराजा रणजीत सिंह का समस्त सिख कौम को एक झंडे तले एकत्रित करने का सपना धूल में मिल गया-परंतु इस संधि से उसने अपने राज्य को पूर्णत: नष्ट होने से बचा लिया-अमृतसर की संधि अंग्रेजों की बड़ी कूटनीतिक विजय थी।
→ द्वितीय चरण (Second Stage)-महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य संबंधों का दूसरा चरण 1809 से 1839 ई० तक चला-1809 से 1812 ई० तक दोनों पक्षों के मध्य संदेह और अविश्वास का वातावरण बना रहा-
→ 1812 से 1821 ई० तक का काल दोनों पक्षों के मध्य शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का काल रहा-1832 में अंग्रेज़ों तथा सिंध में हुई व्यापारिक संधि से महाराजा रणजीत सिंह को गहरा आघात लगा-
→ अंग्रेज़ों द्वारा 1835 ई० में शिकारपुर और फ़िरोज़पुर पर अधिकार करने पर भी महाराजा रणजीत सिंह खामोश रहा-अंग्रेज़ों ने 26 जून, 1838 ई० को महाराजा को त्रिपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया-
→ महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के प्रति जो नीति अपनाई उसकी कुछ इतिहासकारों ने निंदा की है जबकि कुछ ने प्रशंसा।