PSEB 12th Class History Notes Chapter 19 महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 19 महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति

→ महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध (Maharaja Ranjit Singh’s Relations with Afghanistan)-महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंधों को चार चरणों में विभाजित किया जा सकता है-

→ प्रथम चरण (First Stage)-यह चरण 1797 से 1812 ई० तक चला-जब रणजीत सिंह ने 1797 ई० में शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली तो उस समय अफ़गानिस्तान का बादशाह शाह जमान था-

→ रणजीत सिंह ने उसकी जेहलम नदी में गिरी तोपें वापिस भेज दी–प्रसन्न होकर उसने रणजीत सिंह के लाहौर अधिकार को मान्यता दे दी-

→ 1803 ई० में शाह शुजा अफ़गानिस्तान का शासक बना-उसकी अयोग्यता का लाभ उठाते हुए महाराजा रणजीत सिंह ने कसूर, झंग तथा साहीवाल आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।

→ दूसरा चरण (Second Stage)-यह चरण 1813-1834 ई० तक चला-1813 ई० में रोहतासगढ़ में हुए समझौते के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह और अफ़गान वज़ीर फ़तह खाँ की संयुक्त सेनाओं ने कश्मीर पर आक्रमण किया-फ़तह खाँ ने महाराजा के साथ छल किया-

→ 13 जुलाई, 1813 ई० को हज़रो के स्थान पर अफ़गानों तथा सिखों के मध्य प्रथम लड़ाई हुई-इसमें फ़तह खाँ पराजित हुआमहाराजा के पेशावर अधिकार के परिणामस्वरूप 14 मार्च, 1823 ई० को नौशहरा की भयंकर लड़ाई हुई-इसमें भी अफ़गान पराजित हुए-

→ 6 मई, 1834 ई० को पेशावर पूर्ण रूप से सिख राज्य में सम्मिलित कर लिया गया।

→ तीसरा चरण (Third Stage)-यह चरण 1834 से 1837 ई० तक चला-महाराजा के पेशावर अधिकार से अफ़गानिस्तान का शासक दोस्त मुहम्मद खाँ क्रोधित हो उठा-परिणामस्वरूप उसने जेहाद की घोषणा कर दी-

→ परंतु रणजीत सिंह की कूटनीति के कारण उसे बिना युद्ध किए वापिस जाना पड़ा-1837 ई० को सिखों तथा अफ़गानों के मध्य जमरौद की लड़ाई हुई-इस लड़ाई में सिख विजयी हुए परंतु हरि सिंह नलवा शहीद हो गया इसके बाद अफ़गान सेनाओं ने पुनः कभी पेशावर की ओर मुख न किया।

→ चौथा चरण (Fourth Stage)-यह चरण 1838 से 1839 ई० तक चला-रूस के बढ़ते हुए प्रभाव को देखते हुए अंग्रेजों ने शाह शुजा को अफ़गानिस्तान का नया शासक बनाने की योजना बनाई-

→ 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेज़ों, शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के मध्य त्रिपक्षीय संधि हुई-

→ 27 जून, 1839 ई० को महाराजा रणजीत सिंह स्वर्ग सिधार गया-इस प्रकार सिख-अफ़गान संबंधों में महाराजा रणजीत सिंह का पलड़ा हमेशा भारी रहा।

→ महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति (North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh)-उत्तर-पश्चिमी सीमा की समस्या पंजाब तथा भारत के शासकों के लिए सदैव एक सिरदर्द बनी रही-

→ यहीं से विदेशी आक्रमणकारी भारत आते रहे-यहाँ के खंखार कबीले सदा ही अनुशासन के विरोधी रहे-

→ महाराजा ने 1831 ई० से 1836 ई० के दौरान डेरा गाजी खाँ, टोंक, बन्नू और पेशावर आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया-

→ महाराजा ने अफ़गानिस्तान पर कभी भी अधिकार करने का प्रयास नहीं किया-खूखार अफ़गान कबीलों के विरुद्ध अनेक सैनिक अभियान भेजे गए-

→ उत्तर-पश्चिमी सीमा पर कई नए दुर्ग बनाए गए-वहाँ पर विशेष प्रशिक्षित सेना रखी गई-सैनिक गवर्नरों की नियुक्ति की गई-कबीलों की भलाई के लिए विशेष प्रबंध किए गए-

→ महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा. नीति काफ़ी सीमा तक सफल रही।

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