Punjab State Board PSEB 9th Class Hindi Book Solutions Chapter 5 मैंने कहा, पेड़ Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 9 Hindi Chapter 5 मैंने कहा, पेड़
Hindi Guide for Class 9 PSEB मैंने कहा, पेड़ Textbook Questions and Answers
(क) विषय-बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1.
पेड़ आँधी-पानी में भी किस तरह से अपनी जगह खड़ा है?
उत्तर:
पेंड आँधी-पानी में भी अपनी जगह मिट्टी के कारण खड़ा है जिसमें उसकी जड़ें दूर-दूर तक फैली हुई हैं। मिट्टी उन्हें जकड़ कर पेड़ को स्थिरता और मज़बूती प्रदान करती है। मिट्टी पेड़ को जल और पोषण भी देती है।
प्रश्न 2.
सूरज, चाँद, मेघ और ऋतुओं के क्या-क्या कार्य-कलाप हैं?
उत्तर:
सूरज धरती को प्रकाश और गर्मी प्रदान करता है जिनके कारण पेड़-पौधे अन्य सभी प्राणी अपना-अपना जीवन सुख से बिता सकते हैं। सूर्य ही जीवन का वास्तविक आधार है। चाँद स्वयं घटता-बढ़ता है और धरती को रात्रि के समय हल्का उजाला देता है और ज्वार-भाटा का कारण बनता है। मेघ (बादल) वर्षा लाते हैं। वे ही जीवन के आधार जल को सबके लिए धरती पर बरसाते हैं। पेड़-पौधे तक अन्य सभी प्राणी उन्हीं से जीवन प्राप्त करते हैं। ऋतुएँ बदलबदल कर धरती को भिन्न-भिन्न गर्म-सर्द आदि वातावरण प्रदान करती हैं जो जीवन के लिए आवश्यक होती हैं।
प्रश्न 3.
पेड़ में सहनशक्ति के अतिरिक्त और कौन-कौन से गुण हैं?
उत्तर:
पेड़ में सहनशक्ति के अतिरिक्त अत्यंत मज़बूती, लंबी आयु, विपरीत परिस्थितियों का आसानी से सामना करने की क्षमता, समझदारी, दूरदृष्टि और कृतज्ञता प्रकट करने के गुण हैं।
प्रश्न 4.
पेड़ के बढ़ने और जड़ों के धरती में समाने का क्या संबंध है?
उत्तर:
पेड़ के बढ़ने और जड़ों के धरती में समाने का आपस में गहरा संबंध है। जैसे-जैसे पेड़ की जड़ें धरती में बढ़ती जाती हैं; फैलती जाती हैं वैसे-वैसे पेड़ की ऊँचाई और फैलावट भी बढ़ती जाती है क्योंकि जड़ें ही उसे पोषण देती हैं और वे ही उसे स्थिरता प्रदान करती हैं।
प्रश्न 5.
पेड़ मिट्टी के अतिरिक्त और किस-किस को श्रेय देता है?
उत्तर:
पेड़ मिट्टी के अतिरिक्त सूर्य, चंद्रमा, बादलों और ऋतुओं को श्रेय देता है।
प्रश्न 6.
पेड़ ने क्या सीख प्राप्त की है?
उत्तर:
पेड़ ने सीख प्राप्त की है कि ‘जो मरण-धर्मा हैं वे ही जीवनदायी हैं।
2. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
प्रश्न 1.
सूरज उगता-डूबता है, चाँद मरता-छीजता है
ऋतुएँ बदलती हैं, मेघ उमड़ता-पसीजता है,
और तुम सब सहते हुए
सन्तुलित शान्त धीर रहते हुए
विनम्र हरियाली से ढंके, पर भीतर ठोठ कठैठ खड़े हो।
उत्तर:
कवि कहता है कि उसने पेड़ से पूछा कि अरे पेड़, तुम इतने बड़े हो, इतने सख्त और मज़बूत हो। पता नहीं कि कितने सौ बरसों से खड़े हो। तुम ने सैंकड़ों वर्ष की आँधी-तूफ़ान, पानी को अपने ऊपर झेला है पर फिर भी अपनी जगह पर सिर ऊँचा करके वहीं रुके हुए हो। प्रातः सूर्य निकलता है और शाम को फिर डूब जाता है। रात के
प्रश्न 2.
काँपा पेड़, मर्मरित पत्तियाँ
बोली मानो, नहीं, नहीं, नहीं, झूठा
श्रेय मुझे मत दो !
मैं तो बार-बार झुकता, गिरता, उखड़ता
या कि सूखा दूंठा हो के टूट जाता,
श्रेय है तो मेरे पैरों-तले इस मिट्टी को
जिसमें न जाने कहाँ मेरी जड़ें खोयी हैं
उत्तर:
जैसे ही कवि ने सैंकड़ों वर्ष पुराने, मज़बूत और हरे-भरे पेड़ की प्रशंसा की वैसे ही पेड़ काँपा और उसकी हरी-भरी पत्तियाँ मर्मर ध्वनि करती हुई मानो बोल पड़ीं। उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं। मेरी लंबी आयु और मज़बूती का झूठा यश मुझे मत दो। मैं कब का नष्ट हो चुका होता। मैं तो बार-बार झुकता, गिरता, उखड़ कर नष्ट होता या सूख कर पूरी तरह ढूंठ बन कर टूट चुका होता। पर ऐसा हुआ नहीं- इसका श्रेय तो मेरे पैरों के नीचे की उस मिट्टी को है जिसमें मेरी जड़ें खोयी हुई हैं; न जाने कहाँ-कहाँ तक वे दूर तक फैली हुई हैं। मैं तो उन्हीं की आशा में उतना ही ऊपर उठा जितनी दूरी तक मेरी जड़ें नीचे मिट्टी में समायी हुई हैं; फैली हुई हैं। पेड़ ने कहा कि उसकी मज़बूती और हरे-भरेपन का कोई श्रेय उसको नहीं है। इसका श्रेय तो केवल उस नामहीन मिट्टी को है जिसमें वह उगा था; अब खड़ा हुआ है।
(ख) भाषा-बोध
1. निम्नलिखित शब्दों का वर्ण-विच्छेद कीजिए
शब्द – वर्ण-विच्छेद
पेड़ – ———–
चाँद – ———–
मेघ – ———–
मिट्टी – ———–
सूरज – ———–
ऋतुएँ – ———–
पत्तियाँ – ———–
जीवनदायी – ———–
उत्तर:
शब्द – वर्ण-विच्छेद
पेड़ – प् + ए + डू + अ
चाँद – च् + आ + द् + अ
मेघ – म् + ऐ + घ् + अ
मिट्टी – म् + इ + ट् + ट् + ई
सूरज – स् + ऊ + र् + अ + ज् + अ
ऋतुएँ – ऋ + त् + उ + एँ
पत्तियाँ – प् + अ + त् + त् + इ + य् + आं
जीवनदायी – ज् + ई + व् + अ + न् + अ + द् + आ + य् + ई।
2. निम्नलिखित तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
तद्भव – तत्सम
मिट्टी – ———–
सूरज – ———–
सिर – ———–
पानी – ———–
चाँद – ———–
पत्ता – ———–
सीख – ———–
सूखा – ———–
उत्तर:
तद्भव – तत्सम
मिट्टी – मृतिका
सूरज – सूर्य
सिर – शिरः (शिरस्)
पानी – वारि
चाँद – चंद्र
पत्ता – पत्र
सीख – शिक्ष
सूखा – शुष्क।
(ग) पाठेत्तर सक्रियता
प्रश्न 1.
‘पेड़ लगाओ’ इस विषय पर चार्ट पर स्लोगन लिखकर कक्षा में लगाइए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
प्रत्येक विद्यार्थी अपने जन्म-दिन पर अपने विद्यालय में पौधा लगाइए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 3.
भिन्न-भिन्न पौधों की जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 4.
‘पेड़ धरा का आभूषण, करता दूर प्रदूषण’ इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
(घ) ज्ञान-विस्तार
1. भारत का राष्ट्रीय पेड़ बरगद है।
2. एक साल में एक पेड़ इतनी कार्बन डाइऑक्साइड सोख लेता है जितनी एक कार से 26,000 मील चलने के बाद निकलती है।
3. एक एकड़ में फैला जंगल सालभर में 4 टन ऑक्सीजन छोड़ता है जो 18 लोगों के लिए एक साल की ज़रूरत
4. एक व्यक्ति द्वारा जीवन भर में फैलाए गए प्रदूषण को खत्म करने के लिए 300 पेड़ों की ज़रूरत होती है।
5. 25 फुट लम्बा पेड़ एक घर के सालाना बिजली खर्च को 8 से 12 फीसदी तक कम कर देता है।
6. सबसे चौड़ा पेड़ : दुनिया का सबसे चौड़ा पेड़ 14,400 वर्ग मीटर में फैला है। कोलकाता में आचार्य जगदीशचंद्र बोस बोटेनिकल गार्डन में लगा यह बरगद का पेड़ 250 वर्ष से अधिक समय में इतने बड़े क्षेत्र में फैल गया है। दूर से देखने में यह अकेला बरगद का पेड़ एक जंगल की तरह नज़र आता है। दरअसल बरगद के पेड़ की शाखाओं से जटाएँ पानी की तालाश में नीचे ज़मीन की ओर बढ़ती हैं। ये बाद में जड़ के रूप में पेड़ को पानी और सहारा देने लगती हैं। फिलहाल इस बरगद की 2800 से अधिक जटाएँ जड़ का रूप ले चुकी हैं।
PSEB 9th Class Hindi Guide मैंने कहा, पेड़ Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘अज्ञेय’ का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।
प्रश्न 2.
पाठ्यक्रम में संकलित अज्ञेय के द्वारा रचित कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
‘मैंने कहा, पेड़’।
प्रश्न 3. ‘मैंने कहा, पेड़’ नामक कविता में वर्णित पेड़ आयु में कितना बड़ा था?
उत्तर:
सौ वर्ष से अधिक।
प्रश्न 4.
कवि ने पेड़ से क्या प्रश्न किया था?
उत्तर:
कवि ने पेड़ से प्रश्न किया था कि वह कितने ही सौ बरसों से अधिक आयु का था। सब तरह की कठोर प्राकृतिक कठिनाइयों को झेलने के बाद भी वह बाहर से हरा-भरा और भीतर से इतना कठोर कैसे था?
प्रश्न 5.
पेड़ ने किसे श्रेय देने से कवि को रोका था?
उत्तर:
पेड ने कवि को उसे (पेड़ को) श्रेय देने से रोका था।
प्रश्न 6.
पेड़ ने अपने जीवन के लिए मुख्य रूप से श्रेय किसे और क्यों दिया था?
उत्तर:
पेड ने अपने जीवन के लिए मिट्टी को मुख्य रूप से श्रेय दिया था क्योंकि उसकी जड़ों को मिट्टी ने मज़बूती से जकड़ रखा था । दूर-दूर तक फैली उसकी जड़ें यदि मिट्टी में मजबूती से जकड़ी हुई न होती तो वह धूप में सूख जाता या आंधियों के वेग से उखड़ जाता। वह अब तक ढूँठ में बदल चुका होता।
प्रश्न 7.
पेड़ को बाहर से किसने ढका हुआ था?
उत्तर:
पेड़ को बाहर से ‘विनम्र हरियाली’ ने ढका हुआ था।
प्रश्न 8.
पेड़ ने उस मिट्टी को कौन-सा विशेषण दिया था जिसमें उसकी जड़ें दबी हुई थी?
उत्तर:
पेड़ ने उस मिट्टी को ‘नामहीन’ विशेषण दिया था।
एक शब्द/एक पंक्ति में उत्तर दें
प्रश्न 1.
‘मैंने कहा, पेड़’ किस कवि की रचना है?
उत्तर:
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की।
प्रश्न 2.
कौन उगता-डूबता है?
उत्तर:
सूरज।
प्रश्न 3.
कवि ने मरता-छीजता किसे बताया है?
उत्तर:
चाँद को।
प्रश्न 4.
पेड़ अपनी मज़बूती का श्रेय किसे देता है?
उत्तर:
उस नामहीन मिट्टी को, जिसमें उसकी जड़ें दबी हुई हैं।
प्रश्न 5.
‘जो मरण-धर्मा हैं वे ही जीवनदायी हैं’ कथन किसका है?
उत्तर:
पेड़ का।
हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए
प्रश्न 6.
पेड़ न जाने कितने सौ बरसों से सिर ऊँचा किए खड़ा है।
उत्तर:
हाँ।
प्रश्न 7.
ऋतुएँ बदलती नहीं हैं, मेघ उमड़ता-पसीजता नहीं है।
उत्तर:
नहीं।
सही-गलत में उत्तर दीजिए
प्रश्न 8.
पेड़ संतुलित, शांत, धीर रहता है।
उत्तर:
सही।
प्रश्न 9.
विनम्र हरियाली से ढका होने पर भी पेड़ भीतर से खोखला है।
उत्तर:
गलत।
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 10.
या कि………. दूंठ हो के ……. जाता।
उत्तर:
या कि सूखा दूंठ हो के टूट जाता।
प्रश्न 11.
जो …………. हैं वे ही ……. हैं।
उत्तर:
जो मरणधर्मा हैं वे ही जीवनदायी हैं।
बहुविकल्पी प्रश्नों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखें
प्रश्न 12.
पेड़ की आयु कितने वर्षों से अधिक है
(क) दस
(ख) बीस
(ग) पचास
(घ) सौ।
उत्तर:
(घ) सौ।
प्रश्न 13.
‘कठैठ’ का अर्थ है
(क) खोखला
(ख) मज़बूत
(ग) लकड़ी का
(घ) लट्ठ।
उत्तर:
(ख) मज़बूत।
प्रश्न 14.
पेड़ के काँपने पर पत्तियों की क्या दशा थी?
(क) हर्षित
(ख) हरियाली
(ग) मर्मरित
(घ) फड़फड़ाती।
उत्तर:
(ग) मर्मरित।
प्रश्न 15.
मेघ क्या करता है?
(क) उगता-डूबता है
(ख) मरता-छीजता है
(ग) शांत-धीर है
(घ) उमड़ता-पसीजता है।
उत्तर:
(घ) उमड़ता-पसीजता है।
मेने कहा, पेड़ सप्रसंग व्याख्या
1. मैंने कहा, “पेड़, तुम इतने बड़े हो,
इतने कड़े हो,
न जाने कितने सौ बरसों के आँधी-पानी में
सिर ऊँचा किये अपनी जगह अड़े हो।
सूरज उगता-डूबता है, चाँद मरता-छीजता है
ऋतुएँ बदलती हैं, मेघ उमड़ता-पसीजता है,
और तुम सब सहते हुए
सन्तुलित शान्त धीर रहते हुए
विनम्र हरियाली से ढंके, पर भीतर ठोठ कठैठ खड़े हो।
शब्दार्थ:
कड़ा = सख्त, कठोर। अड़े = रुके हुए। बरसों = वर्षों, सालों। छीजता = नष्ट होता। मेघ = बादल। पसीजता = दया भाव उमड़ता। सहते = झेलते। सन्तुलित = समान भाव वाला। धीर = शांत स्वभाव वाला। विनम्र = विनीत। ठोठ = ठेठ, निरा, बिना बिगड़े हुए। कठैठ = सख्त, मज़बूत।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अज्ञेय के द्वारा रचित कविता ‘मैंने कहा, पेड़’ से ली गई हैं। कवि किसी मज़बूत और बहुत बड़े पेड़ को देख कर उसकी मज़बूती के बारे में जानना चाहता है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि उसने पेड़ से पूछा कि अरे पेड़, तुम इतने बड़े हो, इतने सख्त और मज़बूत हो। पता नहीं कि कितने सौ बरसों से खड़े हो। तुम ने सैंकड़ों वर्ष की आँधी-तूफ़ान, पानी को अपने ऊपर झेला है पर फिर भी अपनी जगह पर सिर ऊँचा करके वहीं रुके हुए हो। प्रातः सूर्य निकलता है और शाम को फिर डूब जाता है। रात के
समय चाँद निकलता है-वह कभी नष्ट होता है तो कभी उसका आकार कम होता है। लगातार ऋतुएँ बदलती रहती हैं। कभी आकाश में बादल उमड़-घुमड़ कर आ जाते हैं और कभी वे बरसने के बाद अपना दया-भाव प्रकट कर देते हैं। ऋतुएँ आती हैं; अपने रंग दिखा कर चली जाती हैं लेकिन तुम उन सबको अपने ऊपर सह लेते हो। विपरीत स्थितियों को तुम अत्यंत धैर्य से शांत रह कर झेल लेते हो। तुम अपने आपको विनीत और धैर्यवान बन कर हरे-भरे पत्तों रूपी हरियाली से ढके रहते हो, लेकिन भीतर से मज़बूत हो; कठोर हो।
विशेष:
- कवि ने पेड़ की कठोरता और सहनशीलता की प्रशंसा की है।
- खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है जिसमें तत्सम, तद्भव और देशज शब्दों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है।
- मुक्त छंद है।
2. काँपा पेड़, मर्मरित पत्तियाँ
बोली मानो, नहीं, नहीं, नहीं, झूठा
श्रेय मुझे मत दो !
मैं तो बार-बार झुकता, गिरता, उखड़ता
या कि सूखा दूंठ हो के टूट जाता,
श्रेय है तो मेरे पैरों-तले इस मिट्टी को
जिसमें न जाने कहाँ मेरी जड़ें खोयी हैं :
ऊपर उठा हूँ. उतना ही आश
में जितना कि मेरी जड़ें नीचे दूर धरती में समायी हैं।
श्रेय कुछ मेरा नहीं, जो है इस नामहीन मिट्टी का।
शब्दार्थ:
मर्मरित = मर्मर ध्वनि करता हुआ ; हल्की आवाज़ करता हुआ। श्रेय = यश। दूंठ = पेड़ का बचा हुआ हिस्सा ; सूखा हुआ पेड़। पैरों-तले = पैरों के नीचे। आश = उम्मीद । नामहीन = नाम के बिना।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अज्ञेय के द्वारा रचित कविता ‘मैंने कहा, पेड़’ से ली गई हैं। कवि ने पेड़ की मज़बूती और धैर्य की प्रशंसा की थी लेकिन पेड़ अपना बड़प्पन दिखाते हुए इसका श्रेय उस मिट्टी को देता है जिसमें उसकी जड़ें दबी हुई हैं।
व्याख्या:
जैसे ही कवि ने सैंकड़ों वर्ष पुराने, मज़बूत और हरे-भरे पेड़ की प्रशंसा की वैसे ही पेड़ काँपा और उसकी हरी-भरी पत्तियाँ मर्मर ध्वनि करती हुई मानो बोल पड़ीं। उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं। मेरी लंबी आयु और मज़बूती का झूठा यश मुझे मत दो। मैं कब का नष्ट हो चुका होता। मैं तो बार-बार झुकता, गिरता, उखड़ कर नष्ट होता या सूख कर पूरी तरह ढूंठ बन कर टूट चुका होता। पर ऐसा हुआ नहीं- इसका श्रेय तो मेरे पैरों के नीचे की उस मिट्टी को है जिसमें मेरी जड़ें खोयी हुई हैं; न जाने कहाँ-कहाँ तक वे दूर तक फैली हुई हैं। मैं तो उन्हीं की आशा में उतना ही ऊपर उठा जितनी दूरी तक मेरी जड़ें नीचे मिट्टी में समायी हुई हैं; फैली हुई हैं। पेड़ ने कहा कि उसकी मज़बूती और हरे-भरेपन का कोई श्रेय उसको नहीं है। इसका श्रेय तो केवल उस नामहीन मिट्टी को है जिसमें वह उगा था; अब खड़ा हुआ है।
विशेष:
- पेड़ ने अपनी लम्बाई-ऊँचाई और मज़बूती का श्रेय उस मिट्टी को प्रदान किया है जिसमें उसकी जड़ें धंसी हुई हैं।
- खड़ी बोली का प्रयोग है।
- तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग है। मुक्त छंद है।
3. और, हाँ, इन सब उगने-डूबने, भरने-छीजने,
बदलने, गलने, पसीजने,
बनने-मिटने वालों का भी;
शतियों से मैंने बस एक सीख पायी है;
जो मरण-धर्मा हैं वे ही जीवनदायी हैं।”
शब्दार्थ:
छीजने = नष्ट होना। पसीजने = दया भाव उमड़ना। शतियों = सैंकड़ों वर्षों। सीख = शिक्षा। मरणधर्मा = नष्ट होने वाले। जीवनदायी = जीवन देने वाला।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘मैंने कहा, पेड़’ नामक कविता से ली गई हैं जिसके रचयिता अज्ञेय जी हैं। कवि ने पेड़ से जब पूछा था कि उसकी मज़बूती और लंबी आयु का कारण क्या था तो पेड ने इसका श्रेय मिट्टी को दिया था जिसमें उसकी जड़ें दूर-दूर तक फैली हुई थीं। उसने प्रकृति को भी अपने होने का कारण माना था।
व्याख्या:
पेड़ कवि से कहता है कि मिट्टी के अतिरिक्त उन सब को भी श्रेय देता है जिनके कारण वह लंबी आयु और सुदृढ़ता प्राप्त कर पाया था। वह सूर्य को भी यश देता है जो सुबह होते ही उगता है; उसे धूप के रूप में प्रकाश और गर्मी देता है और फिर सांझ होते ही डूब जाता है। वह चंद्रमा को भी श्रेय देता है जो रात्रि के अंधकार में कभी मरता है तो कभी छीजता है। वह सभी ऋतुओं को भी श्रेय देता है जो लगातार बदलती रहती है; बादल उमड़ते-घुमड़ते हुए आते हैं और अपनी दया के कारण पानी बरसाते हैं। वह उन बनने-मिटने वाले बादलों की देन को स्वीकार करता है। पेड़ कहता है कि मैंने अपने पिछले सैंकड़ों वर्षों से यही एक शिक्षा प्राप्त की है कि जो मरण-धर्मा है, वे ही सच्चे जीवन देने वाले हैं। वे आते हैं, दूसरों का भला करते हैं और चले जाते हैं। उन्हीं के कारण अन्य जीवन के सुखों को प्राप्त करते हैं।
विशेष:
- कवि ने पेड़ के माध्यम से जीवन के सुखों का कारण प्रस्तुत किया है। प्रकृति ही प्राणियों के लिए वास्तविक सुखों की आधार है।
- तत्सम और तद्भव शब्दावली का सहज प्रयोग किया जाता है।
- छंद मुक्त रचना है जिसमें लय नहीं है।
मेने कहा, पेड़ Summary
अज्ञेय कवि-परिचय
जीवन-परिचय:
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी-साहित्य के प्रसिद्ध कवि, कथाकार, ललित निबंधकार, संपादक और सफल अध्यापक के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। आप हिंदी-साहित्य के प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रवर्तक माने जाते हैं। आपका जन्म 7 मार्च, सन् 1911 ई० में देवरिया जिले में स्थित कुशीनगर (कसया पुरातत्व खुदाई शिविर) में हुआ था। आपके पिता पंडित हीरानंद शास्त्री पुरातत्व विभाग में थे और स्थान-स्थान पर घूमते रहते थे। इनका बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर में हुई थी। इन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। इन्होंने लाहौर से सन् 1929 में बीएस०सी० की परीक्षा पास की थी और फिर अंग्रेजी विषय में एम०ए० करने के लिए प्रवेश लिया था लेकिन क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण इनकी पढ़ाई बीच में छूट गई थी। इन्हें सन् 1936 तक अनेक बार जेल-यात्रा करनी पड़ी थी। ‘चिंता’ और ‘शेखर : एक जीवनी’ नामक पुस्तकों को इन्होंने जेल में लिखा था। इन्होंने जापानी हाइफू कविताओं का अनुवाद किया था। साहित्यकार होने के साथ-साथ यह अच्छे फ़ोटोग्राफर और पर्यटक भी थे।
अज्ञेय ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से लेकर जोधपुर विश्वविद्यालय तक पढ़ाया था। यह ‘दिनमान’ और ‘नवभारत टाइम्स’ के संपादक भी रहे थे। इन्हें सन् 1964 में ‘आंगन के पार द्वार’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और ‘कितनी नावों में कितनी बार’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ था। इनका देहांत 4 अप्रैल, सन् 1987 में हो गया था।
रचनाएँ:
अज्ञेय ने अपने जीवन में निम्नलिखित रचनाओं को रचा था-
काव्य:
‘भग्नदूत’, ‘चिन्ता’, ‘इत्यलम्’, ‘हरी घास पर क्षण-भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘इन्द्रधनुष रौंदे हुए ये’, ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’, ‘आँगन के पार द्वार’, ‘पूर्वी’, ‘सुनहरे शैवाल’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’, ‘क्योंकि मैं उसे पहचानता हूँ’, ‘सागर मुद्रा’, ‘सन्नाटा बुनता हूँ।
नाटक : ‘उत्तर प्रियदर्शी’।
कहानी संग्रह : ‘विपथगा’, ‘परम्परा’, ‘ये तेरे प्रतिरूप’, ‘कोठरी की बात’, ‘शरणार्थी’, ‘जिज्ञासा और अन्य कहानियाँ।
उपन्यास : शेखर एक जीवनी’ (दो भागों में), ‘नदी के द्वीप’, ‘अपने-अपने अजनबी’।
भ्रमण : वृत्त-‘अरे यायावर रहेगा याद’, ‘एक बूंद सहसा उछली’ ।
निबन्ध : संग्रह-‘त्रिशंकु ‘, ‘सबरंग’, ‘आत्मनेपद’, ‘हिंदी साहित्यः एक आधुनिक परिदृश्य सब रंग और ‘कुछ राग आलवाल’ ।
अनुदित:
श्रीकांत’, (शरत्चंद्र का उपन्यास), टू इज़ हिज़ स्ट्रेंजर (अपने-अपने अजनबी)।
विशेषताएँ:
अज्ञेय ने अपने साहित्य में विश्व भर की पीड़ा को समेटने का प्रयत्न किया था। वे अहंवादी नहीं थे। उन्होंने प्रेम और विद्रोह को एक साथ प्रस्तुत करने की कोशिश की थी। वे मानते थे कि प्रेम ऐसे पेड़ के रूप में है जो जितना ऊपर उठता है उतनी ही उसकी गहरी जड़ें ज़मीन में धंसती जाती हैं। उन्होंने छोटी-छोटी कविताओं के द्वारा जीवन की गहरी बातों को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की। उन्होंने अपने साहित्य में गरीब लोगों के प्रति सहानुभूति प्रकट की थी। उनकी कविता में प्रकृति के सुंदर रंगों की शोभा विद्यमान है। इनके साहित्य में परिवार, समाज, जीवन मूल्यों की गिरावट, राजनीतिक पैंतरेबाजी, जीवन की विषमता आदि को स्थान दिया गया है।
लेखक की भाषा अनगढ़ नहीं है पर वह इतनी सहज है कि बोझिल महसूस नहीं होती। इनकी कविता में लोक शब्दों का प्रयोग हुआ है। इसमें प्रवाहात्मकता है।
मेने कहा, पेड़ कविता का सार
‘मैंने कहा, पेड़’ नामक कविता में पेड़ की सहनशीलता और मज़बूती को प्रकट किया गया है। पेड़ तरह-तरह की मुसीबतें झेलता है पर फिर भी शांत खड़ा रहता है। कवि ने पेड़ की प्रशंसा करते हुए कहा है कि वह बहुत बड़ा है। वह मज़बूत भी बहुत है। न जाने कितने सैंकड़ों वर्ष से वह अपनी जगह पर खड़ा है। तरह-तरह की ऋतुएँ उस पर अपना प्रभाव दिखाती हैं। गर्मी-सर्दी-वर्षा सब उस पर अपने रंग दिखाती हैं पर फिर भी वह उनसे अप्रभावित ही बना रहता है। यह सुनकर पेड़ की पत्तियाँ कांपती हुई बोली कि ऐसा नहीं है। मुझे इस मज़बूती का श्रेय मत दो। मैं गिरता, झुकता, उखड़ता और अब तक तो मैं ढूँठ बन कर टूट गया होता। मेरे इस प्रकार खड़े रहने का श्रेय तो मेरे नीचे की मिट्टी को है जिस में मेरी जड़ें धंसी हुई हैं। मैं जितना ऊँचा उठा हुआ हूँ उतनी ही गहराई में मेरी जड़ें समायी हुई हैं। श्रेय तो केवल इस मिट्टी को ही है। अपने सैंकड़ों वर्ष लंबे जीवन में मैंने बस इतना ही सीखा है कि जो मरण-धर्मा हैं वे ही जीवनदायी हैं।