Punjab State Board PSEB 9th Class Hindi Book Solutions Chapter 7 पंच परमेश्वर Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 9 Hindi Chapter 7 पंच परमेश्वर
Hindi Guide for Class 9 PSEB पंच परमेश्वर Textbook Questions and Answers
(क) विषय-बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिये
प्रश्न 1.
जुम्मन शेख की गाढ़ी मित्रता किसके साथ थी?
उत्तर:
जुम्मन शेख की गाढ़ी मित्रता अलगू चौधरी के साथ थी।
प्रश्न 2.
रजिस्ट्री के बाद जुम्मन का व्यवहार ख़ाला के प्रति कैसा हो गया था?
उत्तर:
रजिस्ट्री के बाद जुम्मन का व्यवहार ख़ाला के प्रति अत्यंत निष्ठुर हो गया था। वह ख़ाला का तनिक भी ध्यान नहीं रखता था।
प्रश्न 3.
ख़ाला ने जुम्मन को क्या धमकी दी?
उत्तर:
ख़ाला ने जुम्मन को पंचायत में जाने की धमकी दी।
प्रश्न 4.
बूढ़ी ख़ाला ने पंच किसको बनाया था?
उत्तर:
बूढ़ी ख़ाला ने पंच अलगू चौधरी को बनाया था।
प्रश्न 5.
अलगू के पंच बनने पर जुम्मन को किस बात का पूरा विश्वास था?
उत्तर:
अलगू के पंच बनने पर जुम्मन को पूर्ण विश्वास था कि फैसला उसी के पक्ष में आएगा।
प्रश्न 6.
अलगू ने अपना फैसला किसके पक्ष में दिया?
उत्तर:
अलगू के अपना फैसला बूढ़ी मौसी के पक्ष में दिया।
प्रश्न 7.
एक बैल के मर जाने पर अलगू ने दूसरे बैल का क्या किया?
उत्तर:
एक बैल के मर जाने पर अलगू ने दूसरे बैल को बेच दिया।
प्रश्न 8.
समझू साहू ने बैल का कितना दाम चुकाने का वादा किया?
उत्तर:
समझू साहू ने बैल का दाम डेढ़ सौ रुपये चुकाने का वादा किया था।
प्रश्न 9.
पंच परमेश्वर की जय-जयकार किस लिए हो रही थी?
उत्तर:
पंच परमेश्वर की जय-जयकार इसलिए हो रही थी क्योंकि अलगू चौधरी ने निष्पक्ष रूप से फैसला सुनाया था।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिये
प्रश्न 1.
जुम्मन और उसकी पत्नी द्वारा ख़ाला की ख़ातिरदारी करने का क्या कारण था?
उत्तर:
जुम्मन और उसकी पत्नी इसलिए खाला की खातिरदारी कर रहे थे क्योंकि ख़ाला के पास कुछ जायदाद थी। वे दोनों उस जायदाद को पाना चाहते थे। ख़ाला का निकट संबंधी भी कोई नहीं था। ख़ाला की सेवा करके तथा उसे अपना प्यार दिखाकर जुम्मन तथा उसकी पत्नी ख़ाला की सारी धन-सम्पत्ति अपने नाम करवा लेना चाहते थे।
प्रश्न 2.
बूढ़ी ख़ाला ने पंचों से क्या विनती की?
उत्तर:
ख़ाला ने बड़े ही विनम्र भाव से पंचों से कहा कि तीन वर्ष पहले उसने अपनी सारी जायदाद अपने भानजे जुम्मन के नाम लिख दी थी। इसके बदले जुम्मन ने उम्र भर उसे रोटी, कपड़ा देने का वादा किया था। साल भर किसी तरह रो-धोकर दिन बिताए हैं। अब जुम्मन के साथ नहीं रहा जाता क्योंकि न वह पेट भर भोजन देता है और न ही तन ढकने को कपड़ा देता है। मैं विधवा कचहरी नहीं जा सकती। मुझे आप पंचों के फैसले पर पूर्ण विश्वास है।
प्रश्न 3.
अलगू ने पंच बनने के झमेले से बचने के लिए बूढ़ी ख़ाला से क्या कहा?
उत्तर:
अलगू जुम्मन का मित्र था। दोनों में गहरी दोस्ती थी। वह अपनी दोस्ती में सरपंच बनकर खटास नहीं लाना चाहता था। इसलिए बूढी ख़ाला से कहा कि “ख़ाला, तुम जानती हो कि मेरी जम्मन से गाढी दोस्ती है।”
प्रश्न 4.
अलगू चौधरी ने अपना क्या फैसला सुनाया?
उत्तर:
अलगू चौधरी ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि उन्हें नीति और न्याय-संगत ज्ञान होता है कि बूढ़ी ख़ाला को माहवार खर्च दिया जाए। ख़ाला की जायदाद से इतना लाभ अवश्य ही होता है कि माहवार खर्च दिया जा सके। यदि जुम्मन को फैसला नामंजूर हो तो संपत्ति की वह रजिस्ट्री रद्द समझी जाए।
प्रश्न 5.
अलगू चौधरी से खरीदा हुआ समझू साहू का बैल किस कारण मरा?
उत्तर:
समझू साहू ने अलगू चौधरी से बैल खरीदकर उसे अपनी इक्का गाड़ी में खूब जोतने लगे। पहले जहाँ वह दिन में सामान की एक खेप लाते थे, अब वह तीन-तीन, चार-चार खेप लाने लगे थे। बैलों के चारे तथा पानी की तरफ उनका कोई ध्यान नहीं था। भोजन, पानी के अभाव में बैल कमज़ोर होता जा रहा था। एक दिन अधिक बोझ उठाने के कारण वह रास्ते में ही मर गया।
प्रश्न 6.
सरपंच बनने पर भी जुम्मन शेख अपना बदला क्यों नहीं ले सका?
उत्तर:
सरपंच बनने पर जुम्मन शेख अपना बदला इसलिए नहीं ले सके क्योंकि जब वह सरपंच बने तो उनके दिल में सरपंच के उच्च स्थान की ज़िम्मेदारी का भाव उत्पन्न हो गया। उनके मुख से निकलने वाला प्रत्येक वाक्य देव-वाक्य होगा। ऐसे में कुटिल विचारों का कदापि समावेश नहीं होना चाहिए। ये सभी बातें उनके मन में घर कर गई जिस कारण वह अलगू से अपना बदला न ले सके।
प्रश्न 7.
जुम्मन ने क्या फैसला सुनाया?
उत्तर:
जुम्मन ने अलगू के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि जब समझू ने अलगू से बैल खरीदा था, उस समय बैल एकदम स्वस्थ था। यदि उसी समय बैल के दाम दे दिए होते तो आज यह दिन न देखना पड़ता, बैल की मृत्यु बीमारी से न होकर अपितु अत्यधिक परिश्रम से हुई है। अतः समझू साहू को अलगू को बैल की कीमत देनी ही होगी।
प्रश्न 8.
‘मित्रता की मुरझाई हुई लता फिर हरी हो गई’-इस वाक्य का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इस वाक्य का अभिप्राय है कि जुम्मन और अलगू की मित्रता जो दुश्मनी की कड़वाहट से मुरझा गई थी वह अब मन-मुटाव समाप्त हो जाने के बाद फिर से दोस्ती में बदल गईं। दोनों के दिलों में एक-दूसरे के प्रति जो ग़लत फहमियाँ थीं वे दूर हो गईं। इसलिए प्यार और सौहार्द से मित्रता रूपी लता फिर से हरी हो गई।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छ:-सात पंक्तियों में दीजिये
प्रश्न 1.
‘पंच परमेश्वर’ कहानी का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
पंच परमेश्वर’ कहानी एक आदर्शवादी कहानी है। इस कहानी में लेखक ने समाज में इस आदर्शवादी धारणा को प्रस्तुत करना चाहा है कि पंच में परमेश्वर का वास होता है। पंच के मुख से निकलने वाला प्रत्येक वाक्य एवं शब्द परमात्मा का शब्द होता है। पंच की कुर्सी पर बैठने वाला व्यक्ति किसी का दोस्त, दुश्मन तथा हितैषी नहीं होता। वह तो केवल न्याय का हितैषी होता है। उसे न्याय तथा अपने कर्तव्य पालन की चिंता रहती है। अतः स्पष्ट है कि कहानी हमें न्याय संगत होने तथा कभी भी स्वार्थी न बनकर निष्पक्ष भाव से रहने तथा निर्णय लेने को कहती है।
प्रश्न 2.
अलगू, जुम्मन और ख़ाला में से आपको कौन-सा पात्र अच्छा लगा और क्यों?
उत्तर:
अलगू, जुम्मन और ख़ाला में से मुझे अलगू अच्छा लगा क्योंकि ‘पंच परमेश्वर’ कहानी में वह एक ऐसा पात्र है जो पूर्णत: स्थिर है। वह एक सच्चा मित्र है। मित्र धर्म का पालन करना उसे आता है लेकिन कर्त्तव्यपरायणता के रास्ते में वह दोस्ती की परवाह न करते हुए फैसला बूढी ख़ाला के पक्ष में सुनाता है। वह अपने अधिकारों के प्रति सचेत है। वह अपने बैल की कीमत समझू साहू से लेने के लिए पंचायत तक करता है। वह अपने गुणों तथा कर्मों के कारण इस कहानी का एक आदर्श पात्र है। उसमें कर्त्तव्य का पालन तथा अपने उत्तरदायित्व को निभाने की पूर्ण योग्यता है, इसी कारण वह कहानी के अन्य पात्रों से एक दम अलग है।
प्रश्न 3.
दोस्ती होने पर भी अलगू ने जुम्मन के खिलाफ फैसला क्यों दिया और दुश्मनी होने पर भी जुम्मन ने अलगू के पक्ष में फैसला क्यों दिया?
उत्तर:
अलग चौधरी कहानी में जम्मन शेख का परम मित्र है किंतु जब वह न्याय करने के लिए सरपंच चुन लिया जाता है तो वह दोस्ती को भलकर सरपंच के कर्त्तव्य का पालन करता है। वह निष्पक्ष भाव से फैसला बढी ख़ाला के पक्ष में सुना देता है। जब से अलगू ने जुम्मन के विरोध में फैसला सुनाया तब से दोनों में मटमुटाव बढ़ता जा जुम्मन बदला लेना चाहता था। एक दिन जब वह अलगू और समझू साहू के झगड़े का निपटारा करने के लिए सरपंच बना तो सहसा उसे सरपंच के पद तथा कर्त्तव्य का ज्ञान हो आया। वह सोचने लगा कि सरपंच के मुख से निकलने वाला प्रत्येक वाक्य देववाणी के समान होता है। अत: वह सत्य के पथ से तनिक भी नहीं हटेगा। अन्ततः जुम्मन ने निष्पक्ष भाव से फैसला अलगू के पक्ष में सुना दिया।
प्रश्न 4.
अलगू के पंच बनने पर जुम्मन के प्रसन्न होने और जुम्मन के पंच बनने पर अलगू के निराश होने का क्या कारण था?
उत्तर:
बूढ़ी ख़ाला तथा जुम्मन शेख के झगड़े का निपटारा करने के लिए जब बूढी ख़ाला ने अलगू चौधरी को सरपंच चुना तो जुम्मन मारे खुशी के फूला न समा रहा था, क्योंकि अलगू चौधरी जुम्मन शेख का परम मित्र था। अब उसे पूर्ण विश्वास हो गया था कि फैसला उसी के पक्ष में आएगा। कहानी के अंत में जब जुम्मन समझू साहू और अलगू चौधरी के झगड़े का निपटारा करने के लिए सरपंच चुना गया तो अलगू चौधरी इसलिए निराश हो गए क्योंकि उन्होंने पहले जुम्मन के विरोध में फैसला सुनाया था। उन्हें महसूस हो रहा था कि आज जुम्मन अवश्य ही उनसे बदला लेगा और फैसला समझू साहू के पक्ष में सुनाएगा।
(ख) भाषा-बोध
1. निम्नलिखित तत्सम शब्दों के तद्भव रूप लिखिए
तत्सम – तद्भव
मुख – …………………
पंच – …………………
मित्र – …………………
ग्राम – …………………
उच्च – …………………
गृह – …………………
मृत्यु – …………………
संध्या – …………………
मास – …………………
निष्ठुर – …………………
उत्तर:
तत्सम – तद्भव
मुख – मुँह
पंच – पाँच
मित्र – मीत
ग्राम – गाँव
उच्च – ऊँचा
गृह – घर
मृत्यु – मौत
संध्या – शाम
मास – महीना
निष्ठुर – निठुर (कठोर)
2. विराम चिह्न
प्रेमचंद ने ठीक ही कहा है, “खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है। जीवन नाम है सदैव आगे बढ़ते रहने की लगन का।” उपर्युक्त वाक्य में हिंदी विराम चिह्नों में से ‘उद्धरण चिह्न’ का प्रयोग हुआ है।
किसी के द्वारा कहे गए कथन या किसी पुस्तक की पंक्ति या अनुच्छेद को ज्यों का त्यों उद्धृत करते समय दुहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है।
पूर्ण विराम तथा अल्प विराम पिछली कक्षाओं में करवाए गए हैं।
निम्नलिखित वाक्यों में उपयुक्त स्थान पर उचित विराम चिह्न लगाएँ
- जुम्मन ने क्रोध से कहा अब इस वक्त मेरा मुँह न खुलवाओ
- ख़ाला ने कहा बेटा क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ..
- अलगू बोले ख़ाला तुम जानती हो कि मेरी जुम्मन से गाढ़ी दोस्ती है
- उन्होंने पान इलायची हुक्के तंबाकू आदि का प्रबंध भी किया था।
उत्तर:
- जुम्मन ने क्रोध से कहा, “अब इस वक्त मेरा मुँह न खुलवाओ”।
- ख़ाला ने कहा, “बेटा क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?”
- अलगू बोले, “ख़ाला तुम जानती हो कि मेरी जुम्मन से गाढ़ी दोस्ती है”
- उन्होंने पान, इलायची, हुक्के-तंबाकू आदि का प्रबंध भी किया था।
3. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर इनका अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए
मुहावरा – अर्थ – वाक्य
- राह निकालना – युक्ति निकालना – ……………..
- मौत से लड़कर आना – मृत्यु न होना – ……………
- कमर झुककर कमान होना – बूढ़ा हो जाना – ……………….
- दुःख के आँसू बहाना – दुःख के कारण रोना – ………….
- मुँह न खोलना – चुप रहना – ………………….
- रात दिन का रोना – दु:खी रहना (हर पल का कष्ट) – ………
- राह निकालना – युक्ति निकालना – ………………..
- हुक्म सिर माथे पर चढ़ाना – बात मानना – …………..
- मुँह खुलवाना – बात उगलवाना – ………………
- कन्नी काटना – बचना – …………..
- ईमान बेचना – बेईमान होना – ……………
- मन में कोसना – मन में बुरा-भला कहना – ……………….
- जड़ खोदना – बात को बार-बार कुरेदना – ……………
- सन्नाटे में आना – स्तब्ध या सुन्न हो जाना – ……………..
- दूध का दूध पानी का पानी – पूरा-पूरा न्याय करना – ……………….
- जड़ हिलाना – नष्ट करना/अति कमजोर करना – …………………..
- तलवार से ढाल मिलना – शत्रुता के भाव से मिलना – ………………
- आठों पहर खटकना – हमेशा बुरा लगना – ……………….
- मन लहराना – खुशी होना – ………………
- लाले पड़ना – मुश्किल में पड़ना – ………………
- मोल तोल करना – कीमत तय करना – ………………
- लहू सूखना – अत्यधिक डर लगना – ………………
- नींद को बहलाना – जाग-जाग कर रात काटना – ………………
- हाथ धो बैठना – गँवा बैठना – ………………
- कलेजा धक-धक् करना – व्याकुल होना – ………………
- फूले न समाना – अत्यंत प्रसन्न होना – ………………
- गले लिपटना – आलिंगन करना – ………………
- मैल धुलना – दुश्मनी खत्म होना – ………………
उत्तर:
- रुक्साना अपनी ख़ाला को कोसते हुए कहती थी कि वह मौत लड़कर आई है।
- गाँव-गाँव घूमने के कारण बूढ़ी ख़ाला की कमर झुककर कमान हो गई थी।
- गाँव में शायद ही कोई बचा था जिसके सामने रघू चाचा ने दुःख के आँसू न बहाए हों।
- रमेश ने कहा कि वह पंचायत में आएगा तो अवश्य लेकिन मुँह न खोलेगा।
- गुप्ता परिवार का अत्याचार अब बूढ़ी नौकरानी के लिए दिन-रात का रोना हो गया था।
- झगड़े को समाप्त करने के लएि पंचायत करने की राह निकाली गई।
- रोहन और राखी ने पंचायत के हुक्म को सिर माथे चढ़ा लिया।
- लोग तरह-तरह के प्रश्न करके नरेश का मुँह खुलवाना चाहते थे।
- पापा आगरा जाने से कन्नी काट रहे थे।
- बूढ़ी ख़ाला ने कहा कि दोस्ती के लिए ईमान बेचना ठीक बात नहीं।
- जब बूढ़ी ख़ाला ने अलगू चौधरी को सरपंच चुना तो राम धन और अन्य लोग उसे मन ही मन कोसने लगे।
- सब को हैरानी थी कि राघव उसकी जड़ क्यों खोद रहा है।
- अपने विरोध में फैसला सुनने के बाद मोहन सन्नाटे में आ गया।
- न्यायमंत्री ने अपना फैसला सुनाकर दूध का दूध पानी का पानी कर दिया।
- गाँववासियों ने नेता जी की जड़ हिलाने की ठान ली थी।
- पंचायत के बाद जब कही राम और शाम मिलते थे तो वे ऐसे मिलते थे जैसे तलवार से ढाल मिल रही हो।
- माँ को नौकर अब आठों पहर खटकने लगा था।
- वह घोड़ा देखकर डाकू का मन उस पर लहरा उठा था।
- नेता जी को एक-एक खेप के लाले पड़ रहे थे।
- बातचीत करने के बाद कोठी का मोल-तोल कर लिया गया।
- भूखा-प्यासा नौकर जब जूठे बर्तनों का ढेर देखता तो उसका लहू सूख जाता था।
- मार्ग में बैल के मर जाने के कारण जगदीश सेठ अपनी नींद को बहला रहे थे।
- रात में सो जाने के कारण गुप्ता जी को धन की थैली से हाथ धो बैठना पड़ा।
- डाकुओं के देख सबका कलेजा धक्-धक् करने लगा था। पत्र के न्यायाधीश बनते ही पिता फला न समा रहा था।
- अपनी गलती का अहसास होने पर नरेश अपने मित्र के गले लिपट गया।
- उन की आँखों से गिरने वाले आँसुओं ने दोनों के दिलों के मैल को धो दिया।
(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति
प्रश्न 1.
यदि अलगू जुम्मन के पक्ष में फैसला सुना दता तो ख़ाला पर क्या गुज़रती?
उत्तर:
यदि अलगू जुम्मन के पक्ष में फैसला सुना देता तो ख़ाला का पंचायत के ऊपर से विश्वास उठ जाता। वह सोचती कि गरीब की सुनने वाला कोई नहीं होता। प्रत्येक पद तथा व्यक्ति अपने हितैषियों के लिए काम करता है।
प्रश्न 2.
यदि जुम्मन शेख-समझू साहू के पक्ष में फैसला सुना देता तो अलगू क्या सोचता?
उत्तर:
यदि जुम्मन शेख-समझू साहू के पक्ष में फैसला सुना देता तो अलगू चौधरी को लगता कि जुम्मन ने अलगू द्वारा उसके विरोध में किए फैसले का बदला लिया है।
प्रश्न 3.
‘दूध का दूध पानी का पानी’ पर कोई घटना या कहानी लिखें।
उत्तर:
एक व्यक्ति दो महीने के लिए किसी दूसरे नगर जा रहा था। उसने अपने घर के सोने-चांदी सभी बर्तन एक बड़े थैले में भर कर अपने मित्र को दे दिए। उसने उसे कहा कि जब वह वापस आएगा तो वह उन्हें उससे ले लेगा। सने घर में उन्हें रखने से उसे चोरी का डर लगा ही रहेगा। मित्र ने उन्हें ले लिया। बहुमूल्य बर्तनों को देख उसकी नीयत खराब हो गई। दो महीने जब उसका मित्र वापस आया। उसने अपने बर्तन वापस मांगे तो मित्र ने उदासी का नाटक करते हुए कहा कि उसने बर्तनों से भरा थैला कमरे में रख दिया था। उसने आज सुबह ही देखा था कि उन सभी बर्तनों को चूहे खा गए थे। मित्र कुछ देर उसके उदास चेहरे को देखता रहा। वह उससे बोला कि कोई बात नहीं। जो भगवान को स्वीकार था वही हुआ। अब रोने धोने से बर्तन तो वापस नहीं आएंगे। कुछ घंटे बाद उसने अपने मित्र से पूजा करने के लिए मंदिर जाने की बात कही। जब वह बाहर निकलने ही लगा था कि मित्र के चार-पांच वर्ष आयु के पुत्र न उस उँगली पकड़ ली। उसने जिद्द की कि वह भी उसके साथ मंदिर जाएगा। मित्र के आग्रह पर वह उसके पुत्र को मंदिर ले गया। लगभग एक घंटे बाद मित्र घबराया हुआ वापस आया। उसने बताया कि जब वह मंदिर के तालाब में स्थान कर रहा था तो एक बड़ा-सा बाज उसके पुत्र को अपनी चोंच में उठा कर उड़ गया। बहुत ढूंढने पर भी वह नहीं मिला। उसका मित्र क्रोध में भर कर बोला कि क्या कभी बाज इतने बड़े बच्चे को चोंच में उठा कर उड़ सकता था उसके मित्र ने कहा कि यदि चूहे सोने-चांदी के बर्तन खा सकते थे तो बाज भी इतने बड़े बच्चे को उठा सकता था। उस का मित्र एक दम ही उस का आशय समझ गया। वह अपने घर के भीतर गया और उसका बर्तनों से भरा थैला ले आया। उस का मित्र भी मंदिर गया और वहां छिपाए हुए लड़के को वापस लौटाते हुए बोला कि यह लो वापस अपना पुत्र। अब हुआ दूध का दूध और पानी का पानी।
(घ) पाठेत्तर सक्रियता
1. अपने गाँव में लगने वाली ग्राम पंचायत के बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।
2. सरपंच बनकर फैसला करते समय आप अपने मित्र को महत्त्व देते या फिर न्याय व्यवस्था को इस पर अपने विचार कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।
3. यदि आप ख़ाला की जगह होते तो क्या आप भी न्याय के लिए इतनी ही हिम्मत और साहस दिखाते या अन्याय सहते-इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
4. पुस्तकालय में प्रेमचंद के कहानी-संग्रह ‘मानसरोवर’ में से ‘मित्र’, ‘नशा’, ‘नमक का दारोगा’ आदि कहानियाँ पढ़िए।
(ङ) ज्ञान-विस्तार
1. हज : हज एक इस्लामी तीर्थ यात्रा और मुस्लिमों के लिए सर्वोच्च इबादत है। हज यात्रियों के लिए काबा पहुँचना जन्नत के समान है। काबा शरीफ मक्का में है। हज मुस्लिम लोगों का पवित्र शहर मक्का में प्रतिवर्ष होने वाला विश्व का सबसे बड़ा जमावड़ा है।
2. उर्दू में रिश्तों के नाम
अम्मी (माता) – अब्बू (पिता)
वालिदा (माता) – वालिद (पिता)
वालिदेन – माता-पिता दोनों के लिए
बीवी (पत्नी) – शौहर (पति)
ख़ाला (मौसी) – ख़ालू (मौसा)
ख़ालाजाद – मौसी के बच्चे
मुमानी (मामी) – मामू (मामा)
सास – ससुर
भाबी – भाई
बहन – बहनोई
बेटी – दामाद
PSEB 9th Class Hindi Guide पंच परमेश्वर Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
अलगू चौधरी के बैल की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
अलगू चौधरी ने बैल बटेसर से खरीदे थे। उनके बैलों की जोड़ी बहुत अच्छी थी। बैल पछाही जाति के थे। उनके सींग बड़े-बड़े थे, जो देखने में बहुत ही सुंदर लगते थे। महीनों तक आसपास के गाँव के लोग उनके दर्शन करने के लिए आते रहे थे। बैल शरीर से भी हृष्ट-पुष्ट थे। उन्हें जो देखे वह देखता ही रह जाता था।
प्रश्न 2.
समझू साहू बैल के साथ कैसा बर्ताव करता था?
उत्तर:
समझू साहू एक व्यापारी था। उसे केवल अपने मुनाफे से मतलब था। वह बैल को एक जानवर ही समझता था। वह उसे जब चाहे तब काम में दौड़ाए रहना चाहता था। उसे अपने पेट की तो चिंता रहती थी लेकिन वह बैल . की भूख प्यास का ध्यान नहीं रखता था। वह न तो बैल को समय पर चारा देता था और न ही पानी पिलाता था। कभी कभी सूखा भूसा बैल के सामने डाल दिया करता था। थकान के कारण जब कभी बैल धीरे चलने लगता था तो समझू साहू उसे चाबुक से मारता भी था।
प्रश्न 3.
लेखक ने कहानी के बैल की घटना का वर्णन किस लिए किया है?
उत्तर:
लेखक केवल कथा लिखने वाला नहीं होता। वह एक समाज सुधारक तथा समाज को नवीन दिशा देने वाला होता है। अपनी इसी सोच के कारण लेखक ने समाज में जानवरों के प्रति होने वाले अत्याचार को उजागर के है। मानव अपने स्वार्थ में इतना अधिक रम चुका है कि उसे किसी की संवेदना से कोई लेना-देना नहीं। जानवर मानव का सदैव हितकारी रहा लेकिन एक मनुष्य है जो उसके प्रति अपनी दुर्भावना को समाप्त ही नहीं करना चाहता।
एक शब्द/एक पंक्ति में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
‘पंच परमेश्वर’ कहानी के लेखक का नाम लिखें।
उत्तर:
मुंशी प्रेमचंद।
प्रश्न 2.
अलगू चौधरी की किसके साथ गाढ़ी मित्रता थी?
उत्तर:
जुम्मन शेख के साथ।
प्रश्न 3.
बूढ़ी खाला की कमर को क्या हो गया था?
उत्तर:
बूढी खाला की कमर झुककर कमान हो गई थी।
प्रश्न 4.
अलगू चौधरी के नीति-परायण फैसले की किसने प्रशंसा की?
उत्तर:
रामधनमिश्र तथा अन्य पंचों ने।
प्रश्न 5.
कितने रुपयों से हाथ धो लेना अलगू चौधरी के लिए आसान नहीं था?
उत्तर:
डेढ़ सौ रुपए से।
हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए
प्रश्न 6.
अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधार होता है।
उत्तर:
हाँ।
प्रश्न 7.
रामधन ने कहा-“समझू के साथ कुछ रिआयत होनी चाहिए।”
उत्तर:
नहीं।
सही-गलत में उत्तर दीजिए
प्रश्न 8.
पंच की जुबान से खुदा बोलता है।
उत्तर:
सही।
प्रश्न 9.
बूढी खाला अलगू चौधरी को गालियाँ देने लगी-“निगोड़े ने ऐसा कुलच्छनी बैल दिया कि जन्म-भर की कमाई लुट गई।”
उत्तर:
गलत।
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 10.
समझू साहू ने नया ……… पाया, तो लगे उसे ………….।
उत्तर:
समझू साहू ने नया बैल पाया, तो लगे उसे रगेदने।
प्रश्न 11.
क्या ……….. के डर से ……. की बात न कहोगे?
उत्तर:
क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे।
बहुविकल्पी प्रश्नों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखें
प्रश्न 12.
बूढ़ी खाला ने किसे सरपंच बनाया?
(क) अलगू चौधरी को
(ख) रामधनमिश्र को
(ग) समझू साहू को
(घ) झगड़ साहू को।
उत्तर:
(क) अलगू चौधरी को।
प्रश्न 13.
समझू साहू का नया बैल एक दिन में कितनी खेप में जोतने से मर गया?
(क) पहली
(ख) दूसरी
(ग) तीसरी
(घ) चौथी।
उत्तर:
(घ) चौथी।
प्रश्न 14.
अलगू चौधरी पूरा कानूनी आदमी था क्योंकि उसे हमेशा किससे काम पड़ता था?
(क). पुलिस
(ख) नेता
(ग) कचहरी
(घ) कमेटी।
उत्तर:
(ग) कचहरी।
प्रश्न 15.
जुम्मन की पत्नी का क्या नाम था?
(क) करीमन
(ख) ज़रीना
(ग) सकीना
(घ) महज़ीन।
उत्तर:
(क) करीमन।
कठिन शब्दों का अर्थ
गाढ़ी = गहरी, बहुत मेहनत से। आदर-सत्कार = मान सम्मान। अटल = दृढ़, पक्का। मिलकियत = संपत्ति। रजिस्ट्री = ज़मीन-जायदाद बेचने-खरीदने के लिए की जाने वाली कानूनी लिखा-पढ़ी। नित्य = प्रतिदिन। ख़ातिरदारी = सत्कार। सालन = साग आदि की मसालेदार तरकारी। निष्ठुर = कठोर। ऊसर = बंजर। बघारी = तड़का, छौंक। दखल देना = हस्तक्षेप करना। कन्नी काटना = बचकर निकलना। नम्रता = कोमलता से, आराम से। प्यार से। कोसना = भला-बुरा कहना। गृहस्वामिनी = घर की मालकिन। निर्वाह = गुज़ारा। धृष्टता = ढिठाई, ढीठपन। अनुग्रह = कृपा। ऋणी = कर्जदार। फ़रिश्ता = देवदूत। बिरला = बहुत कम मिलने वाला। गौर से = ध्यान से। भला आदमी = अच्छा आदमी। सांत्वना देना = ढाढ़स देना। ललकारना = चुनौती देना। दीन वत्सल = दीनों से प्रेम करने वाले। दमभर = पल भर। ईमान = अच्छी नीयत । ता-हयात = जीवन भर। क़बूल = स्वीकार। बेकस = निस्सहाय। बेवा = जिसका पति मर चुका हो। दीख पड़े = दिखाई दिए। वैमनस्य = वैर, विरोध। असामी = किसी महाजन या दुकानदार से लेन-देन रखने वाला। वक्त = समय। मुग्ध = मोहित। अर्ज़ = प्रार्थना, बाज़ी = दाँव, बारी। ख़िदमत = सेवा। फ़र्ज़ = कर्त्तव्य। मुनाफा = लाभ। जिरह = बहस। चकित = हैरान। कसर निकालना = बदला लेना। कायापलट = बहुत बड़ा परिवर्तन। संकल्प-विकल्प = सोच-विचार में। नीति संगत = नीति के अनुरूप। माहवार = महीने भार का। नीति परायणता = नीति का पालन करना। रसातल = पाताल। बालू = रेत। शिष्टाचार = सभ्य व्यवहार। आवभगत = आदर-सत्कार। चित्त = हृदय। कुटिलता = धोखेबाज़ी, दुष्टता। दैवयोग = भाग्य से। चित्त = हृदय, दगाबाजी = छल बाज़ी, धोखा। सब्र = सहन, धैर्य। नेक-बद = भला-बुरा। बेखटके = बिना संकोच के बेधड़क। खेप = एक फेरा, एक बार में ढोया जाने वाला बोझ। गरज = मतलब। रगेदने = भगाना, दौड़ाना। रतजगा = रातभर जागना। नदारद = गायब, लुप्त। सुनावनी = ख़बर, सूचना। बर्राना = क्रोध में बोलना। परामर्श = सलाह। ताड़ जाना = भाँप जाना, लहु = खून। पग = पाँव। दूभर = मुश्किल। झल्ला उठना = क्रोधित होना। अशुभ चिंतक = किसी का बुरा सोचने वाले। उक़ा = आपत्ति, एतराज । संकुचित = तंग। पथ प्रदर्शक = राह दिखाने वाला। सर्वोच्च = सबसे ऊँचा। देववाणी = देवताओं की वाणी। सदृश = समान, तुल्य! भलमनसी = सज्जनता। सराहना = प्रशंसा, प्राण घातक = जाने लेने वाला। दिलासा = ढाढस बाँधना। हामी भरना = स्वीकार करना। टलना = हटना।
पंच परमेश्वर Summary
मुंशी प्रेमचन्द लेखक-परिचय
जीवन परिचय:
मुंशी प्रेमचन्द हिन्दी-साहित्य के ऐसे प्रथम कलाकार हैं जिन्होंने साहित्य का नाता जन-जीवन से जोड़ा। उन्होंने अपने कथा-साहित्य को जन-जीवन के चित्रण द्वारा सजीव बना दिया है। वे जीवन भर आर्थिक अभाव की विषमं चक्की में पिसते रहे। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक एवं सामाजिक विषमता को बड़ी निकटता से देखा था। यही कारण है कि जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति का सजीव चित्रण उनके उपन्यासों एवं कहानियों में उपलब्ध होता है।
प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई, सन् 1880 ई० में वाराणसी जिले के लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। आरम्भ में वे नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखते थे। युग के प्रभाव ने उनको हिन्दी की ओर आकृष्ट किया। प्रेमचन्द जी ने कुछ पत्रों का सम्पादन भी किया। उन्होंने सरस्वती प्रेस के नाम से अपनी प्रकाशन संस्था भी
स्थापित की।
जीवन में निरन्तर विकट परिस्थितियों का सामना करने के कारण प्रेमचन्द जी का शरीर जर्जर हो रहा था। देशभक्ति के पथ पर चलने के कारण उनके ऊपर सरकार का आतंक भी छाया रहता था, पर प्रेमचन्द जी एक साहसी सैनिक के समान अपने पथ पर बढ़ते रहे। उन्होंने वही लिखा जो उनकी आत्मा ने कहा। वे बम्बई (मुम्बई) में पटकथा लेखक के रूप में अधिक समय तक कार्य नहीं कर सके क्योंकि वहाँ उन्हें फ़िल्म निर्माताओं के निर्देश के अनुसार लिखना पड़ता था। उन्हें स्वतन्त्र लेखन ही रुचिकर था। निरन्तर साहित्य साधना करते हुए 8 अक्तूबर, सन् 1936 को उनका स्वर्गवास हो गया। :
रचनाएँ: प्रेमचन्द की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
उपन्यास: वरदान, सेवा सदन, प्रेमाश्रय, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, गोदान एवं मंगलसूत्र (अपूर्ण)।
कहानी संग्रह: प्रेमचन्द जी ने लगभग 400 कहानियों की रचना की। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं।
नाटक: कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी। निबन्ध संग्रह- कुछ विचार।
साहित्यिक विशेषताएँ:
प्रेमचन्द जी प्रमुख रूप से कथाकार थे। उन्होंने जो कुछ भी लिखा, वह जन-जीवन का मुँह बोलता चित्र है। वे आदर्शोन्मुखी-यथार्थवादी कलाकार थे। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया पर निर्धन, पीड़ित एवं पिछड़े हुए वर्ग के प्रति उनकी विशेष सहानुभूति थी। उन्होंने शोषक एवं शोषित दोनों वर्गों का बड़ा विशद् चित्रण किया है। ग्राम्य जीवन के चित्रण में प्रेमचन्द जी सिद्धहस्त थे।
भाषा शैली:
हिन्दी कथा साहित्य में कथा सम्राट के नाम से प्रसिद्ध प्रेमचन्द ने अपना समस्त साहित्य बोलचाल की हिन्दुस्तानी भाषा में लिखा है जिसमें लोक-प्रचलित उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत भाषाओं के सभी शब्दों का मिश्रित रूप दिखायी देता है। इनकी शैली वर्णनात्मक है जिसमें कहीं-कहीं संवादात्मक, विचारात्मक, चित्रात्मक, पूर्वदीप्ति आदि शैलियों के दर्शन भी हो जाते हैं। कहीं-कहीं इनकी शैली काव्यात्मक भी हो जाती है।
पंच परमेश्वर कहानी का सार/परिपाद्य
‘पंच-परमेश्वर’ मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित एक सुविख्यात कहानी है जिसका प्रकाशन सन् 1915 में हुआ था। हिन्दी साहित्य जगत में कुछ आलोचक पंच परमेश्वर’ कहानी को हिन्दी की प्रथम कहानी मानते हैं। सच्चे अर्थों में यह कहानी एक आदर्शवादी कहानी है।
जुम्मन शेख और अलगू चौधरी दोनों में बचपन से बहुत गहरी मित्रता थी। दोनों मिलकर साझे में खेती करते थे। दोनों को एक-दूसरे पर गहरा विश्वास था। दोनों एक-दूसरे के भरोसे अपना घर, सम्पत्ति छोड़ देते थे। उनकी मित्रता का मूल मंत्र उनके आपसी विचारों का मिलना था। जुम्मन शेख की एक बूढ़ी मौसी थी। मौसी के पास उसके अपने नाम से थोड़ी-सी ज़मीन थी। किंतु उसका कोई निकट संबंधी नहीं था। जुम्मन ने मौसी से लम्बे-चौड़े वादे किए और ज़मीन को अपने नाम लिखवा लिया। जब तक ज़मीन की रजिस्ट्री नहीं हुई थी तब तक जुम्मन तथा उसके परिवार ने मौसी का खूब आदर-सत्कार किया। मौसी को तरह-तरह के पकवान खिलाए जाते थे। जिस दिन से रजिस्ट्री पर मोहर लगी, उसी समय से सभी प्रकार की सेवाओं पर भी मोहर लग गई। जुम्मन की पत्नी अब मौसी को रोटियां देने के साथ साथ कड़वी बातों के कुछ तेज सालन भी देने लगी थी। बात-बात में वह मौसी को कोसती रहती थी। जुम्मन शेख भी मौसी का कोई ध्यान नहीं रखते थे। सभी बूढ़ी मौसी के मरने का इंतजार कर रहे थे। एक दिन जब मौसी से सहा नहीं गया तो उसने जुम्मन से कहा कि वह उसे रुपये दे दिया करे ताकि वह स्वयं अपना भोजन पकाकर खा सके। उसके परिवार के साथ अब उसका निर्वाह नहीं हो सकेगा। जब जुम्मन ने मौसी की बात को नकार दिया तो मौसी ने पंचायत करने की धमकी दे डाली। जुम्मन पंचायत करने की धमकी का स्वर सुनकर मन ही मन खूब प्रसन्न था। उसे पूर्ण विश्वास था कि पंचायत में उसी की जीत होगी।
सारा इलाका उसका ऋणी था, इसलिए उसे फैसले की तनिक भी चिंता न थी। वह पूर्णत: आश्वस्त था कि फैसला उसी के पक्ष में होगा। बूढ़ी मौसी कई दिनों तक लकड़ी का सहारा लिए गाँव-गाँव घूमती रही, वह सभी को अपनी दुःख भरी कहानी सुनाती रही। गाँव में दीन-हीन बुढ़िया का दुखड़ा सुनने वाले और उसे सांत्वना देने वाले लोग बहुत ही कम थे। सारे गाँव में घूमने के बाद अंत में घूमते-घूमते मौसी अलगू चौधरी के पास जाकर उसे पंचायत में आने का निमंत्रण देने लगी। अलगू चौधरी पंचायत में आने को तैयार हो गया। उसने मौसी से कहा कि जुम्मन उसका पक्का मित्र है इसलिए वह उसके विरोध में कुछ नहीं बोलेगा, वह वहाँ चुप चाप बैठा रहेगा। मौसी ने प्रतिवार करते हुए कहा कि-“क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?” मौसी द्वारा कहे गए इन शब्दों का अलगू के पास कोई उत्तर नहीं था। आखिरकार एक दिन शाम के समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी। जुम्मन शेख ने पहले से ही फ़र्श बिछाया हुआ था। पंचायत में आने वाले सभी लोगों के सत्कार का उसने पूरा प्रबंध कर रखा था। उनके खाने के लिए पान, इलायची, हुक्के-तंबाकू आदि का पूर्ण प्रबंध कर रखा था।
पंचायत में जब कोई आता था तो वह दबे हुए सलाम के साथ उनका आदर-सत्कार करते हुए स्वागत करता था। पंचों के बैठने के बाद बूढ़ी मौसी अपनी करुण कहानी सुनाते हुए कहने लगी कि तीन वर्ष पहले उसने अपनी सारी जायदाद जुम्मन शेख के नाम लिखी थी। जुम्मन शेख ने भी उसे उम्र भर रोटी कपड़ा देना स्वीकार किया था। साल भर तो किसी तरह रो-पीट कर दिन निकाल लिए लेकिन अब अत्याचार नहीं सहे जाते। आप पंचों का जो भी आदेश होगा वह मैं स्वीकार करूँगी। सभी ने मिलकर अलगू चौधरी को सरपंच बना दिया। अलगू के सरपंच बनते ही जुम्मन आनंद से भर गए। उन्होंने अपने भाव अपने मन में रखते हुए कहा कि उन्हें अलगू का सरपंच बनना स्वीकार है। अलगू के सरपंच बनने पर रामधन मिश्र और जुम्मन के अन्य विरोधी-जन बुढ़िया को अपने मन ही मन कोसने लगे। जुम्मन को अब फैसला अपनी तरफ आता दिखाई दे रहा था। पं द्वारा पूछा गया एक-एक प्रश्न जुम्मन को हथौड़े की एक-एक चोट के समान लग रहा था। अंततः अलगू चौधरी ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि बूढ़ी मौसी की जायदाद से इतना लाभ अवश्य होगा कि उसे महीने का खर्च दिया जा सके। इसलिए जुम्मन को मौसी को महीने का खर्च देना ही होगा। यदि जुम्मन को फैसला अस्वीकार है तो जायदाद की रजिस्ट्री रद्द समझी जाए। सभी ने अलगू के फैसले को खूब सराहा। फैसला सुनते ही जुम्मन सन्नाटे में आ गए।
अलगू के इस फैसले ने जुम्मन के साथ उसकी दोस्ती की जड़ों को पूरी तरह से हिला दिया था। जुम्मन दिन-रात बदला लेने की सोचता रहता था। शीघ्र ही जुम्मन की कुटिल सोच की प्रतिक्षा समाप्त हुई। – अलगू चौधरी पिछले वर्ष ही बटेसर से बैलों की एक जोड़ी मोल खरीद लाया था। बैल पछाही जाति के थे। दुर्भाग्यवश पंचायत के एक महीने बाद अलगू का एक बैल मर गया। अब अकेला बैल अलगू के किसी काम का नहीं था। उसने बैल समझू साहू को बेच दिया। बैल की कीमत एक महीने बाद देने की बात निश्चित हुई। अब समझू साहू दिन में नया बैल मिलने से तीन-तीन, चार-चार खेपे करने लगे। उन्हें केवल काम से मतलब था। बैलों की देख-रेख तथा चारे से उन्हें कोई लेना-देना नहीं था। भोजन-पानी के अभाव में एक दिन सामान लाते हुए रास्ते में बैल ने दम तोड़ दिया। समझू साहू को मार्ग में ही रात बितानी पड़ी। सुबह जब वह उठे तो उनकी धन की थैली तथा तेल के कुछ कनस्तर चोरी हो चुके थे। समझू साहू रोते-पीटते घर पहुँचे। काफी दिनों के बाद अलगू चौधरी अपने बैल की कीमत लेने समझू साहू के घर गए, किंतु साहू ने पैसे देने के स्थान पर अलगू को भला बुरा कहना शुरू कर दिया। अंतत: पंचायत बैठी। सरपंच जुम्मन शेख को चुना गया। सरपंच के रूप जुम्मन ने न्याय संगत फैसला सुनाया। उसने समझू साहू को कसूरवार मानते हुए अलगू को बैल की कीमत लेने का हकदार बताया। क्योंकि जिस समय समझू साहू ने बैल खरीदा था। उस समय वह पूर्णत: स्वस्थ था। बैल की मृत्यु का कारण बीमारी न होकर अधिक परिश्रम करना था, जुम्मन के फैसले को सुनकर चारों तरफ ‘पंच परमेश्वर की जय’ का उद्घोष होने लगा। अलगू ने जुम्मन को गले से लगा लिया। दोनों के नेत्रों से गिरते आँसुओं ने दोनों के दिलों के मैल को धो दिया। दोनों की दोस्ती रूपी लता जो कभी मुरझा गई थी वह अब हरी-भरी हो गई थी।