PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 कामना

Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Chapter 1 कामना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Hindi Chapter 1 कामना

Hindi Guide for Class 7 PSEB कामना Textbook Questions and Answers

(क) भाषा-बोध:

1. शब्दार्थ

शब्दार्थ-शब्दों के अर्थ सरलार्थ के साथ दे दिए गए हैं।
कामना = इच्छा
आधार = सहारा
ज्योतिर्मय = प्रकाशमन
अमित = अत्यधिक
भार = बोझ
मृक्त = आजाद
करुणामय = (करुणा + मय ) दयालु
पतवार = चपपू
संहार = नाश
सुखद = सुख देने वाली
गुणागार = (गुण + आगार ) सब गुणों वाला
निर्द्धद्व = ( द्वन्द रहित) समरस शान्तु स्तिति

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 कामना

2. ‘विपरीतार्थक शब्द लिखें:

आधार = निराधार
दुःखी = ……………
गुणी = ……………
मानवता = …………….
सद्गुण = …………….
सुखद = ……………
मुक्त = …………….
द्वन्द्व = …………….
उत्तर:
शब्द विपरीत शब्द
आधार = निराधार
दु:खी = सुखी
गुणी = निर्गुणी
मानवता = दानवता
सद्गुण = दुर्गुण
सुखद = दुःखद
मुक्त   = बद्ध
द्वन्द्व    = निर्द्वन्द्व

3. पर्यायवाची शब्द लिखें:

कामना = ………………
दुःख = ……………….
गुणी = ………………
नौका = ……………..
इन्सान = …………………
उत्तर:
शब्द पर्यायवाची शब्द
कामना = इच्छा, अभिलाषा
दुःख = कष्ट, क्लेश
नौका = नाव, तरणि
इन्सान = मानव,मनुष्य
माँ = माता, जननी

4. नये शब्द बनाएँ:

करुणा+मय = करुणामय
प्रकाश+मय = ……………
ज्योतिः +मय = …………….
अन्धकार+मय = ……………..
दुःख+मय = ……………..
सुख+मय = …………….
पाप+मय = …………….
उत्तर:
नये     शब्द
करुणा+मय = करुणामय
प्रकाश+मय = प्रकाशमय
ज्योतिः+मय = ज्योतिर्मय
अन्धकार+मय = अन्धकारमय
दुःख+मय = दुःखमय
सुख+मय = सुखमय
पाप+मय = पापमय

5. शुद्ध रूप लिखें:

करूणा = ………….
विदवान = ………….
निरदवन्द = ………….
उत्तर
अशुद्ध शुद्ध
करूणा = करुणा
विदवान = विद्वान्
निरदवन्द = निर्द्वन्द्व

6. मानव जातिवाचक संज्ञा शब्द है। इसके अन्त में ‘ता’ लगाने से मानवता भाववाचक संज्ञा शब्द बना ।।

वीर = ……………..
दीन = ……………..
सुन्दर = ………….
मित्र = …………..
दास = …………..
एक = …………..
अमर = …………..
दानव = …………….
उत्तर:
वीर = वीरता
दीन = दीनता
सुन्दर = सुन्दरता
मित्र = मित्रता
दास – दासता
एक = एकता
अमर = अमरता
दानव = दानवता

(ख) विचार-बोध:

1. रिक्त स्थानों में समुचित शब्द भरें:

  1. दुखियों का …………….. बनूँ। (नेता, बन्धु, आसरा)
  2. मैं …………….. इन्सान बनूँ। (मजबूत, सच्चा, ईमानदार)
  3. जग में …………. सुगन्ध भरूं। (सुखद, भारी, मीठी)
  4. शक्तिमान दो …………… शक्ति। (बहुल, भारी, अमित)

उत्तर:

  1. आसरा
  2. सच्चा
  3. सुखद
  4. अमित

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 कामना

2. इन प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखें:

(1) कवि करुणा का वरदान किस लिए माँगता है ?
उत्तर:
कवि करुणा का वरदान इसलिए माँगता है कि वह दीन-दुखियों का सहारा बनकर उनकी सहायता करे और उन के दुःखों को दूर कर सके।

(2) वह सच्चा इन्सान क्यों बनना चाहता है ?
उत्तर:
कवि सच्चा इन्सान बन कर मनुष्य मात्र की सेवा करना चाहता है।

(3) कवि शक्तिमान बनाकर कौन-से तीन काम करना चाहता है ?
उत्तर:
कवि शक्तिमान बन कर दुष्टों का नाश, दीन-दुखियों की सहायता तथा भारत माता के कष्टों के भार को दूर करना चाहता है।

(4) वह सद्गुणों की कामना क्यों करता है ?
उत्तर:
कवि सद्गुणों की कामना इसलिए करता है, जिससे वह संसार में सब को सुखी तथा चिन्ताओं से मुक्त कर सके।

3. इन काव्य-पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या करें:

(1) हे ज्योतिर्मय ज्ञान ज्योति दो,
गुणी और विद्वान बनूं।
मानवता की सेवा करके,
मैं सच्चा इन्सान बनूँ।
उत्तर:
सप्रसंग व्याख्या के लिए सरलार्थ क्रमांक दो देखिए।

(2) कवि की कामनाओं को अपने शब्दों में व्यक्त करें।
उत्तर:
कवि कामना करता है कि परमात्मा उसे करुणा से भर दे, उसे ज्ञान का प्रकाश
दे, उसे बहुत शक्ति दे और उसे सद्गुणों से भर दें; जिससे वह संसार के दीन
दुखियों के दुःख-दर्द को दूर करके उन्हें सुखी कर सके।

(3) भगवान एक है। कवि ने उसे किन-किन नामों से पुकारा है?
उत्तर:
कवि ने भगवान को करुणामय, ज्योतिर्मय, शक्तिमान और गुणागार नामों से पुकारा है।

(ग) आत्म-बोध:

(1) नित्य प्रार्थना करें। भगवान से जो भी माँगें, प्राप्त होने पर उस परम सत्ता का धन्यवाद अवश्य करें।
(2) आप भगवान से क्या मांगेंगे? अपनी कल्पना से लिखें।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

PSEB 7th Class Hindi Guide कामना Important Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर उचित विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
कवि स्वयं में क्या भरने को कहता है ?
(क) दया
(ख) खून
(ग) पसीना
(घ) अकड़
उत्तर:
(क) दया

प्रश्न 2.
‘कामना’ शब्द का क्या अर्थ है ?
(क) अच्छा
(ख) इच्छा
(ग) करुणा
(घ) काम
उत्तर:
(ख) इच्छा

प्रश्न 3.
कवि मानवता की सेवा करके क्या बनना चाहता है ?
(क) पुलिस
(ख) सैनिक
(ग) सच्चा इंसान
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) सच्चा इंसान

प्रश्न 4.
कवि सारे संसार को किससे भरना चाहता है ?
(क) पानी से
(ख) काले बादलों से
(ग) दुःख की सुगंध से
(घ) सुख की सुगंध से
उत्तर:
(घ) सुख की सुगंध से

प्रश्न 5.
मनुष्य किससे परेशान है ?
(क) चिंता से
(ख) सुख से
(ग) सैर से
(घ) घर से
उत्तर:
(क) चिंता से

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित विकल्पों से कीजिए

प्रश्न 1.
जीवन नाव डूब रही लोगों के लिए कवि ……….. बनना चाहता है ?
(क) चप्पू
(ख) बम्बू
(ग) कलम
(घ) दवात
उत्तर:
(क) चप्पू

प्रश्न 2.
कवि ज्ञानी और गुणी बनकर ………. की सेवा करना चाहता है।
(क) कायरता
(ख) मानवता
(ग) बच्चों
(घ) घायलों
उत्तर:
(ख) मानवता

प्रश्न 3.
कवि ………… का नाश करना चाहता है।
(क) कष्टों
(ख) नेत्रों
(ग) दुष्टों
(घ) नाखूनों
उत्तर:
(ग) दुष्टों

प्रश्न 4.
कवि चिंता से परेशान मनुष्य को ………. जीवन व्यतीत करने में मदद करना चाहता है।
(क) आज़ाद
(ख) अमीर
(ग) गरीब
(घ) घायल
उत्तर:
(क) आज़ाद

कामना सप्रसंग व्याख्या

1. हे करुणामय! करुणा भर दो,
दुखियों का आधार बनें।
डूब रही हो जिनकी नौका,
मैं उनकी पतवार बनूँ॥

शब्दार्थ:
करुणामय = दयालु। करुणा = दया। आधार = सहारा । नौका = नाव। पतवार = चप्पू।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश ‘कामना’ नामक कविता से लिया गया है। इसमें कवि परमात्मा से प्रार्थना करते हुए उन्हें अपनी इच्छा बताता है।

सरलार्थ:
कवि परमात्मा को कहता है कि हे दयालु! मुझे दया से भर दो जिससे मैं दुखियों का सहारा बनूँ। जिन की जीवन की नाव डूब रही हो उन के लिए मैं चप्पू बन जाऊँ।

भाव:
कवि दुखी और जीवन से निराश लोगों का सहारा बन कर उनकी सहायता करने की कामना परमात्मा से करता है।

2. हे ज्योतिर्मय! ज्ञान ज्योति दो,
गुणी और विद्वान बनूँ।
मानवता की सेवा करके,
मैं सच्चा इन्सान बनूँ॥

शब्दार्थ:
ज्योतिर्मय = प्रकाशमान, प्रकाश देने वाले। ज्ञान = जानकारी, बोध। ज्योति = प्रकाश। गुणी = गुणों वाला।

प्रसंग:
यह पद्यांश ‘कामना’ नामक कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने परमात्मा से प्रार्थना करते हुए उन्हें अपने मन की इच्छा बताई है।

सरलार्थ:
कवि परमात्मा से प्रार्थना करता है कि हे प्रकाश देने वाले! मुझे ज्ञान का प्रकाश दीजिए, जिससे मैं गुणी और ज्ञानी बनकर मानवता की सेवा करके सच्चा इन्सान बन जाऊँ।

भाव:
कवि परमात्मा से उसे सद्गुणी तथा ज्ञानी बनाने की प्रार्थना करता है, जिससे वह मानव मात्र की सेवा कर सके।

3. शक्तिमान! दो अमित शक्ति,
मैं दुष्टों का संहार करूँ।
दीन-दुःखी का बनूं आसरा,
भारत माँ का भार हरूँ॥

शब्दार्थ-शक्तिमान = ताकतवाला। अमित = बहुत अधिक। संहार = नाश । दीन = गरीब। भार = बोझ, कष्ट।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश ‘कामना’ नामक कविता में से लिया गया है। इसमें कवि ने परमात्मा से प्रार्थना करते हुए उन्हें अपनी इच्छा बताई है।

सरलार्थ:
कवि परमात्मा से कहता है कि हे शक्तिशाली! आप मुझे बहुत अधिक शक्ति दो, जिससे मैं दुष्टों का नाश करूँ, गरीबों और दुखियों का सहारा बनूँ और भारत माता के कष्टों को दूर कर सकूँ।

भाव:
कवि परमात्मा से उसे शक्ति प्रदान करने के लिए कहता है, जिससे वह दीनदुखियों की सहायता करते हुए भारत माता के कष्टों को भी दूर कर सके।

4. गुणागार! सब सद्गुण भर दो,
जग में सुखद सुगन्ध भरूँ।
चिन्ता में घुलते मानव को,
मुक्त और निर्द्वन्द्व करूँ॥

शब्दार्थ:
गुणागार = गुणों का भण्डार। सद्गुण = अच्छे गुण। सुखद = सुख देने वाला। सुगन्ध = खुशबू। चिन्ता में घुलते = चिन्ता से परेशान । मानव = मनुष्य। मुक्त = आज़ाद, स्वच्छंद। निर्द्वन्द्व = द्वन्द्व रहित, संघर्ष से रहित, शान्त।

प्रसंग:
यह पद्यांश ‘कामना’ नामक कविता में से लिया गया है। इसमें कवि ने परमात्मा से प्रार्थना करते हुए उन्हें अपनी इच्छा बताई है।

सरलार्थ:
कवि कहता है कि हे गुणों के भंडार! मुझ में सभी अच्छे गुण भर दो जिससे मैं सारे संसार को सुख की सुगन्ध से भर दूं। मैं चिन्ता से परेशान मनुष्य को आज़ाद और शान्त जीवन व्यतीत करने में सहायता कर सकूँ।

भाव:
कवि परमात्मा से अच्छे गुण प्राप्त कर मानव को सुखी बनाना चाहता है।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 कामना

कामना Summary

कामना कविता का सार

‘कामना’ शब्द का अर्थ है-‘इच्छा’। कवि परमात्मा से प्रार्थना करते हुए कहता है कि हे दयालु! आप मेरे हृदय में दया भर दो जिससे मैं दुखियों का सहारा बन सकूँ। हे प्रकाशमान! आप मुझे ज्ञान दो जिससे मैं गुणी और ज्ञानी बनकर सच्चा इन्सान बन कर मानवता की सेवा कर सकूँ। हे शक्तिशाली ! मुझे असीम शक्ति दो जिससे मैं दुष्टों को नष्ट करके दीनदुखियों का सहारा बनूँ तथा भारत माता के संतापों का भार दूर कर सकूँ। हे गुणों के भंडार! मुझ में अच्छे गुणों को भर दो जिससे मैं संसार में सुख रूपी सुगन्ध भर सकूँ तथा चिन्ताओं से परेशान लोगों को स्वतन्त्र और शान्त जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दे सकूँ।

PSEB 11th Class Hindi रचना अनुच्छेद-लेखन

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Hindi रचना अनुच्छेद-लेखन Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class Hindi रचना अनुच्छेद-लेखन

(ख) अनच्छद लखन

यदि आप किसी भी छपी गद्य रचना को ध्यान से देखें तो आप पाएँगे कि प्रत्येक लेख, अध्याय, कहानी, उपन्यास आदि अनुच्छेदों में बंटा है । प्रत्येक अनुच्छेद पंक्ति से थोड़ा दाएँ हट कर शुरू किया जाता है । ऐसा उस गद्य रचना को पढ़ने और समझने में सहायक होता है।

परिभाषा:
अनुच्छेद लेखन का अर्थ है कि किसी कथन, निजी अनुभव अथवा संस्मरण को संक्षेप में किन्तु सार गर्भित ढंग से लिखना । मान लीजिए आपने कोई विशेष घटना देखी हो, किसी नेता का भाषण सुना हो अथवा कोई निजी अनुभव या कथन पर कुछ लिखना हो तो उसे एक ही अनुच्छेद में लिखना अनुच्छेद लेखन कहलाता है ।

अनुच्छेद लेखन और सार में अन्त:
अनुच्छेद लेखन सार लेखन से बिल्कुल विपरीत है । सार लेखन में एक अनुच्छेद दिया गया होता है उसका लगभग एक तिहाई शब्दों में संक्षेपीकरण या सार लिखना होता है, जबकि अनुच्छेद लेखन के लिए कोई एक विषय दिया गया होता है । जिस पर आपको केवल एक अनुच्छेद लिखना होता है । अनुच्छेद विषयानुसार छोटा बड़ा हो सकता है ।

अनुच्छेद लेखन का उद्देश्य:
परीक्षा में अनुच्छेद लेखन का प्रश्न विद्यार्थी की मौलिक सूझ-बूझ, स्मरण शक्ति और कल्पना शक्ति के विकास में सहायता करने के लिए रखा जाता है । भावी जीवन में इसका बहुत बड़ा महत्त्व होता है ।

अनुच्छेद लेखन के भेद:
अनुच्छेद लेखन दो प्रकार का होता है
(1)निजी अनुभव पर(किसी घटना आदि से सम्बन्धित) संस्मरणात्मक अनुच्छेद:
ऐसे अनुच्छेद में लेखक आपबीती उत्तम पुरुष एकवचन में लिखता है । जैसे भीड़ भरी बस की यात्रा, मतदान केन्द्र का दृश्य आदि विषयों पर लिखे अनुच्छेद।

(2) विचारात्मक अनुच्छेद:
ऐसे अनुच्छेद किसी महापुरुष के कथन, किसी मुहावरे या विचारात्मक विषय पर लिखे जाते हैं । जैसे परहित सरिस धर्म नहिं भाई, सवै दिन जात न एक समान, नेता नहीं नागरिक चाहिए, बढ़ते फैशन और युवावर्ग आदि।

अनुच्छेद लेखन में ध्यान देने योग्य बातें

  1. अनुच्छेद लेखन में सारी बात एक ही अनुच्छेद में लिखनी चाहिए
  2. अनुच्छेद लेखन में भाव या विचार की एकता होनी चाहिए ।
  3. अनुच्छेद लेखन में ऐसा कोई वाक्य नहीं होना चाहिए जो मूल विषय या कथन से सम्बन्ध न रखता हो । सारे वाक्य एक ही भाव से परस्पर जुड़े हुए होने चाहिएं । इसमे इधर-उधर की बातों के लिए कोई गुंजाइश नहीं है ।
  4. निजी अनुभव पर आधारित अनुच्छेद उत्तम पुरुष एकवचन में लिखना चाहिए जैसे कोई आत्मकथा लिख रहा हो ।
  5. शब्दों में चित्रात्मकता का गुण होना चाहिए । जैसे मैं पढ़ने बैठा ही था कि अचानक बादल घिर आए, बिजली कड़कने लगी, तेज़ हवा भी चलने लगी और घर की बिजली अचानक बन्द हो गई—आदि ।
  6. वाक्य रचना ऐसी होनी चाहिए कि अनुच्छेद रोचक बन जाए ।
  7. अनुच्छेद की भाषा सरल, स्पष्ट और व्याकरण की अशुद्धियों से रहित होनी चाहिए । भाषा ऐसी हो जो विषय को स्पष्ट कर दे।
  8. अनुच्छेद जहाँ तक हो सके संक्षिप्त होना चाहिए । यदि परीक्षा में अनुच्छेद लेखन की कोई शब्द-सीमा निर्धारित की गई हो तो उसका ध्यान भी रखना चाहिए ।

विशेष:
यहाँ आपकी जानकारी एवं मार्ग दर्शन के लिए निजी अनुभव पर आधारित तथा कुछ विचारात्मक विषयों पर प्रसिद्ध साहित्याकरों, महापुरुषों द्वारा लिखे गए निबन्धों या आत्मकथाओं से अलग-अलग उदाहरण दे दिए गये हैं ।

प्रस्तुत पुस्तक में अनुच्छेद लेखन को दो भागों में प्रस्तुत किया गया है–(क) निजी अनुभव पर आधारित संस्मरणात्मक अनुच्छेद (ख) विचारात्मक विषयों, कथनों पर आधारित अनुच्छेद। परीक्षा की दृष्टि से सभी सम्भावित विषयों पर अनुच्छेद लेखन के उदाहरण दिये गये हैं । अभ्यास से आप किसी भी विषय पर आसानी से अनुच्छेद लिख सकते हैं ।

(क) निजी अनुभव पर आधारित संस्मरणात्मक अनुच्छेद

1. हीरो बनने के चक्कर में

अपने मित्र के कहने पर एक दिन मैंने भान्जे साहब से, क्योंकि वे मुझ से काफ़ी खुल गये थे, अपनी इच्छा प्रकट की । मित्र ने भी रद्दा जमाया । मेरी एक्टिंग, मेरे गले और मेरी बॉडी की प्रशंसा की और कहा कि इस बार यदि कैमरा टैस्ट हो जाए तो मेरे हीरो बनने के रास्ते में कोई बाधा नहीं हो सकती । मेरा ख्याल था कि मेरी इच्छा सुनते ही मामा का वह भान्जा झट मेरे साथ पूना की गाड़ी पर जा बैठेगा । इतने दिन मेरे पैसे पर उसने गुलछर्रे उड़ाए थे । लेकिन नहीं, ऐसी कोई बात नहीं हुई । बड़े इत्मीनान से उसने कहा कि यदि उसे पचास रुपए दिये जाएं तो वह मामा से मिलायेगा और पचास और दिये जाएं तो कैमरा टैस्ट का प्रबन्ध करेगा । मेरे लगभग सात-आठ सौ रुपए उन पन्द्रह बीस दिनों में खर्च हो चुके थे, पाँच-छ: सौ रुपए बचे थे । सौ-डेढ़ सौ का नुस्खा उसने बता दिया, लेकिन मैं चुप रहा । बोला कुछ नहीं । हां, मेरे होटल वाले मित्र को बड़ा क्रोध आया। उसने उसे डॉटा । बड़ी खिट-खिट हुई । आखिर वह पच्चीस रुपए उस समय, पच्चीस मामा से मिलाने पर ओर पचास टैस्ट करा देने और काम बनवा देने के बाद लेने को तैयार हो गया । खैर साहब, हम तीनों पूना के लिए दक्खन क्वीन में सवार हुए ।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण वाक्य विचार : वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

ट्रेन फर्राटे भरती उड़ चली और साथ ही मेरी कल्पना दक्खन क्वीन से भी तेज़ फर्राटे भरती उड़ चली। मुझे लगा कि मंज़िल अब बहुत दूर नहीं । माइक और साऊँड टैस्ट हुआ कि मैं हीरो बना । पूना पहुँच कर स्टेशन के पास ही एक होटल में टिका। नाश्ता-वाश्ता करके हम स्टूडियो को चले। गेट पर चौकीदार ने रोक दिया। तब मामा के उस भान्जे ने एक चिट्ठी लिखी । कुछ देर बाद उत्तर आ गया हमें बाहर ही रोक कर वह अन्दर गया । कोई पन्द्रह मिनट बाद वापस आया तो बोला मामा जी स्टूडियो में व्यस्त हैं, फिल्म की शूटिंग हो रही है। कल सुबह मिलने का टाइम उन्होंने दिया है। मैंने कहा, हमें शूटिंग ही दिखा दो । उसने कहा तुमने पहले कहा होता तो मैं तय कर आता, लेकिन अब कल ही दिखा दूंगा, बात पक्की हुई समझो। खुश-खुश हम लौटे। रात को मित्र ने सुझाया कि भान्जे को खुश रखना चाहिए ताकि यह टैस्ट ही न कराये, बल्कि तुम्हें हीरो का कांट्रेक्ट ले दे । बात उसकी ठीक थी । पूरी बोतल मेज़ पर आ गई । वह खत्म हुई तो दूसरी आयी । बस इतना ही याद है और कुछ याद नहीं । सुबह उठा तो देखा कमरा खाली है । बस जो कपड़े तन पर हैं, वही हैं, बाकी सब कुछ गायब हैं।
(-उपेन्द्रनाथ अश्क द्वारा लिखित एक रिपोर्ताज से)

2. सहानुभूति दिखाना भी मुसीबत मोल लेना है

एक और जाति को सहानुभूति दिखाकर मुझे भारी नुकसान उठाना पड़ा है । यह जाति परीक्षा में बैठने वाले स्टूडेंट्स की है जो अपने नम्बर बढ़वाने के लिए पहुँच जाते हैं । इस बारे में एक पुरानी घटना याद आ रही है । एक बार एक लड़की ने मुझे यहाँ तक धमकी दे दी कि अगर मैं उसे पास नहीं करता तो वह नदी में छलांग लगा देगी । मैं इतना डर गया कि मैंने सहानुभूति दिखाने का उसे वचन भी दे डाला । वह बिना सहायता के पास थी, लेकिन एक महीने के बाद मेरे बारे में जांच पड़ताल शुरू हो गई क्योंकि उस लड़की ने अपनी सहेलियों से शोखी मैं आकर यह कह दिया कि वह मेरी सहानभूति से पास हुई है । उसकी एक सहेली ने मेरे बारे में गुमनाम शिकायत लिख कर भेज दी । तब से कानों को हाथ लगाया और तय किया कि इनसे सहानुभूति करना कितना खतरनाक हो सकता है। अब भी कभी कभार स्टूडेंट्स आ टपकते हैं और यही दलील देते हैं कि सब परीक्षक सहानुभूति दिखाते हैं, मैं इतना कठोर क्यों हो गया हूँ ? मेरा एक ही जबाव होता है कि इस तरह की सहानुभूति दिखाने से मेरी नौकरी छूटने का भय है और मैं एक डरपोक आदमी हूँ। वह मेरी बात मानते तो नहीं लेकिन निराश होकर चले अवश्य जाते हैं ।।
(—श्री इन्द्रनाथ मदान द्वारा लिखित निबन्ध ‘सहानुभूति दिखाने पर’ में से)

3. आँखों देखा गोली काण्ड

दोपहर होते-होते नौजवानों की भीड़ ‘नहीं रखनी सरकार भाइयों नहीं रखनी, यह अंग्रेज़ी सरकार भाइयो नहीं रखनी’ के नारे लगाते हुए तिरंगा झण्डा लिए सचिवालय की ओर बढ़ने लगे। गोरखा फौज उनके सामने दीवार की तरह आकर खड़ी हो गई । जिलाधीश ने नौजवानों से पूछा, ‘तुम क्या चाहते हो ? ‘उन्होंने उत्तर दिया हम सचिवालय पर तिरंगा झण्डा फहरायेंगे । ज़िलाधीश ने कहा, वहाँ तो यूनियन-जैक लहरा रहा है । नौजवानों ने कहा-अब वहाँ तिरंगा लहरायेगा । अंग्रेज़ तमतमा उठा, बोला ऐसा कभी भी नहीं हो सकता । भाग जाओ । नौजवानों ने कहा हम तो आज तिरंगा झण्डा फहराकर ही लौटेंगे । अंग्रेज़ का अहंकार गुर्रा उठा, बोला, तुम में से जो झण्डा फहराना चाहता है वह आगे आए । ग्यारह विद्यार्थी भीड़ में से एक साथ आगे बढ़ कर आए। इन ग्यारह में सब से आगे जो विद्यार्थी था, उसकी देह ने अभी चौदहवीं वर्षगांठ भी न मनाई थी, पर उसके कंधों का तनाव ऐसा प्रचण्ड था कि पहाड़ के शिखिर भी देखकर शरमा जाएँ ? अंग्रेज़ ज़िलाधीश ने राक्षसी क्रूरता से उस किशोर से पूछा ‘तुम भी फहराओगे झण्डा ?’ ‘हाँ क्यों नहीं ?’ भारत की आत्मा उस बालक के कण्ठ से कूक उठी।

तभी अंग्रेज़ ने अपने गोरखा सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया ग्यारह राइफलें उभर कर गरी—’धड़ाम’ । जीते जागते ग्यारह राम-लक्ष्मण पलक मारते धरती पर गिर पड़े, खून से लथपथ, पर शान्त। ‘फायर’ अंग्रेज़ अफ़सर फिर चिल्लाया और सिपाहियों ने गोलियाँ दागीं। बहुत से लोग घायल हो कर गिर पड़े पर भागा कोई नहीं । पीछे कोई नहीं हटा । ‘इन्कलाब ज़िन्दाबाद’, ‘अंग्रेज़ो भारत छोड़ो’ के नारों से आकाश गूंज उठा । तभी न जाने किधर से एक विद्यार्थी सचिवालय के गुम्बद पर जा चढ़ा और उसने तिरंगा झण्डा फहरा कर वहीं से नारे लगाये । अंग्रेज़ अफसर का मुँह एक बार तो काला पड़ गया था तब उसने दांत किटकिटा कर कहा—फायर तब वह किशोर टूटते तारे-सा धरती पर आ गिरा । अस्पताल की मेज़ पर उसने पूछा मेरे गोली कहाँ लगी है ? छाती में डॉक्टर ने कहा । तब ठीक है मैंने पीठ पर गोली नहीं खाई उसने कहा और हमेशा के लिए आँख मूंद ली ।
(— कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर के एक लेख से)

4. जब मैं घर से बाहर पढने गया

इस कमरे में भी मैं तो बहुत परेशान हाल में रहा । देश बहुत याद आता था । माता का प्रेम आँखों के सामने नाचा करता । रात हुई कि रोना शुरू हुआ । घर की अनेक प्रकार की स्मृतियों की चढ़ाई के कारण नींद कहां से आ पाती ? यह दुःख गाथा किसी से कह भी न सकता था । कहने से फायदा भी क्या था ? मैं स्वयं नहीं जानता था कि क्या करने से मेरा चित्तन्त होगा। मनुष्य विचित्र, रहन-सहन विचित्र, घर भी विचित्र । घरों में रहने की रीति-नीति भी वैसी ही विचित्र । क्या बोलने और क्या करने में यहाँ का शिष्टाचार भंग होता है, इस का भी बहुत कम पता था । तिस पर से खाने-पीने का बराव-बचाव । जो चीजें खा सकता वे रूखी और नीरस लगती थीं । इस से मेरी दशा सौते में सुपारी की सो हो गई । विलायत रुच नहीं रहा था और देश को लौटा नहीं जा सकता । विलायत आया था तो तीन साल पूर करने ही थे ।
(-महात्मा गान्धी की आत्म कथा से)

5. जब दाखिला लेने गया

एक महीने के बाद मैं फिर मि० रिचर्डसन से मिला और सिफारिशी चिट्ठी दिखाई । प्रिंसिपल ने मेरो ओर तीव्र नेत्रों से देख कर पूछा ‘इतने दिन कहाँ थे’ ? ‘बीमार हो गया था’ मैंने कहा। क्या बीमारी थी ? मैं इस प्रश्न के लिए तैयार न था। अगर ज्वर बताता हूँ तो शायद साहब मुझे झुठा समझें । ज्वर मेरी समझ में हल्की चीज़ थी, जिसके लिए इतनी लम्बी गैर हाजिरी अनावश्यक थी। कोई ऐसी बीमारी बतानी चाहिए जो अपनी कष्ट साध्यता के कारण दया भी उभारे । उस वक्त मुझे नाम याद न आया । ठाकुर इन्द्रनारायण सिंह से जब मैं सिफारिश के लिए मिला था तब उन्होंने अपने दिल की धड़कन की बीमारी की चर्चा की थी। वह शब्द याद आ गया मैंने कहा, पेलपिटेशन आफ हार्ट (दिल की धड़कन) सर ।

साहब ने विस्मित होकर मेरी ओर देखा और कहा, अब तुम बिल्कुल अच्छे हो ? जी हाँ, मैंने कहा । उन्होंने कहा, अच्छा प्रवेश पत्र लाओ । मैंने समझा बेड़ा पार हुआ । फार्म लिया, खाना पुरी की और पेश कर दिया । साहब उस समय कोई क्लास ले रहे थे । तीन बजे मुझे फार्म वापस मिला । उस पर लिखा था-इसकी योग्यता की जाँच की जाए । यह नई समस्या उपस्थित हुई। मेरा दिल बैठ गया । अंग्रेज़ी के सिवा और किसी विषय में पास होने की आशा न थी और बीजगणित से मेरी रूह काँपती थी । जो कुछ याद था वह भी भूल गया था, परन्तु दूसरा उपाय ही क्या था ।(-प्रेमचंद की आत्मकथा से)

(ख) विचारात्मक अनुच्छेद

1. मजदूरी का महत्व

खेद का विषय है कि हमारे और अन्य पूर्वी देशों में लोगों को मज़दूरी से लेश मात्र भी प्रेम नहीं है, पर वे तैयारी कर रहे हैं काली मशीनों का आलिगंन करने की । पश्चिम वालों के तो यह गले पड़ी हुई बहती नदी की काली कमली हो रही है । वे छोड़ना चाहते हैं, परन्तु काली कमली उन्हें नहीं छोड़ती । देखेंगे पूर्व वाले इस कमली को छाती से लगाकर कितना आनन्द अनुभव करते हैं। यदि हम में से हर आदमी अपनी दस उंगलियों की सहायता से साहसपूर्वक अच्छी तरह काम करे तो हम मशीनों की कृपा से बढ़े हुए पश्चिम वालों को, वाणिज्य के जातीय संग्राम में सहज ही पछाड़ सकते हैं । इंजनों की वह मज़दूरी किस काम की जो बच्चों, स्त्रियों और कारीगरों को ही भूखा और नंगा रखती है और केवल सोने, चाँदी, लोहे आदि धातुओं का ही पालन करती है। पश्चिम को विदित हो चुका है इससे मनुष्य का दुःख दिन पर दिन बढ़ता है ।

भारतवर्ष जैसे दरिद्र देश में मनुष्यों के हाथों की मज़दूरी के बदले कलों के काम लेना काल का डंका बजाना होगा । दरिद्र प्रजा और भी दरिद्र होकर मर जाएगी । चेतन से चेतन की वृद्धि होती है । मनुष्य को तो मनुष्य सुख दे सकता है। परस्पर की निष्कपट सेवा से मनुष्य जाति का कल्याण हो सकता है । धन एकत्र करना तो मनुष्य के आनन्द मण्डल का एक साधारण सा और महातुच्छ उपाय है । धन की पूजा करना नास्तिकता है, ईश्वर को भूल जाना है। अपने भाई-बहनों तथा मानसिक सुख और कल्याण के देने वालों को मार कर अपने सुख के लिए शारीरिक राज्य की इच्छा करना हैं। जिस डाल पर बैठे हैं, उसी डाल को स्वयं ही कुल्हाड़े से काटना है । अपने प्रियजनों से रहित राज्य किस काम का ? आओ, यदि हो सके तो, टोकरी उठा कर कुदाली हाथ में लें । मिट्टी खोंदे और अपने हाथ से उस के प्याले बनावें । फिर एक-एक प्याला घर-घर में, कुटियाकुटिया में रख आयें और सब लोग उसी में मजदूरी का प्रेमामृत पान करें ।
(सरदार पूर्ण सिंह के लेख ‘मज़दूरी और प्रेम से’ )

2. अंग्रेज़ी हटाओ, राष्ट्रभाषा और प्रान्तीय भाषा लाओ

संविधान के निर्णयानुसार 15 वर्षों के भीतर, अर्थात् सन् 1965 तक हिन्दी का राज भाषा विषयक रूप विकसित हो जाना चाहिए था अर्थात् उस समय तक कानून की सभी पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद हो जाना चाहिए, साहित्य एवं विज्ञान की इतनी पुस्तकें प्रकाशित हो जानी चाहिएं कि हिन्दी के माध्यम से विश्वविद्यालयों में ऊंची-से-ऊंची शिक्षा दी जा सके तथा न्यायालयों एवं महान्यायालयों में हिन्दी के माध्यम से विचार और विमर्श किया जा सके । साथ ही हिन्दी प्रान्तों में तब तक हिन्दी का इतना प्रचार भी कर देना है कि उन प्रान्तों के साथ केन्द्रीय एवं अन्य प्रान्तीय शासनों का पत्राचार हिन्दी में चल सके तथा जो व्यक्ति सार्वदेशीय धरातल से देश के साथ हिन्दी में बोलना चाहें, उन्हें शिक्षा साधनों के सीमित होने के कारण कोई कठिनाई नहीं हो । प्रायः लोग इस भ्रम में पड़ जाते हैं कि अंग्रेज़ी के हटने पर जो स्थान रिक्त होगा वह सब का सब हिन्दी को मिल जाएगा। यह हिन्दी के पक्ष में अनुचित उत्साह है। अंग्रेजी केवल हिन्दी का अधिकार दबा कर नहीं बैठी है। वह अधिक स्थान तो क्षेत्रीय भाषाओं के ही दबाए हुए हैं । अंग्रेज़ी के हटने पर भी प्रान्तीय शासन और जनता चाहे तो, शिक्षा के भी काम वहाँ की प्रान्तीय भाषाओं में ही चलेंगे ।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण वाक्य विचार : वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

अतएव आवश्यकता है कि प्रत्येक क्षेत्र की जनता में अपनी मातृभाषा के लिए अनुराग उत्पन्न किया जाए । इसी अनुराग को जगाकर हम अंग्रेज़ी को वर्तमान पद से हटा सकते हैं । जब तक जनता में मातृभाषा के लिए प्रेम नहीं जागता, तब तक प्रान्तीय भाषाओं के क्षेत्रों में राष्ट्रभाषा का मार्ग भी वंचित रहेगा। प्रसन्नता की बात है कि हिन्दी प्रान्तों में शासन के कार्यों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ने लगा है। इसका अनुकरण अन्य भाषा अनुच्छेद लेखन भाषी क्षेत्रों में भी होना चाहिए जिससे वहाँ के भी शासन सम्बन्धी कार्य क्षेत्रीय भाषाओं में किये जा सकें। प्रान्तों में जब क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग होना आरम्भ हो जाएगा, तभी वहाँ की जनता अंग्रेज़ी के स्थान पर अपनी राष्ट्रभाषा सीखने के महत्त्व को सरलता से समझेगी और तभी यह आशंका भी दूर हो जाएगी जिस से ग्रसित होने के कारण कहीं-कहीं लोग यह समझ रहें हैं कि राष्ट्रभाषा के प्रचार से क्षेत्रीय भाषाओं का दलन होने वाला है ।
(श्री रामधारी सिंह दिनकर के राष्ट्रभाषा शीर्षक लेख से-)

3. अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी

हिन्दू नारी का घर और समाज इन्हीं दो से विशेष सम्पर्क रहता है । परन्तु इन दोनों ही स्थानों में उसकी स्थिति कितनी करुण है उसके विचार मात्र से ही किसी भी सहृदय का हृदय काँपे बिना नहीं रहता । अपने पितृ गृह में उसे वैसे ही स्थान मिलता है जैसा किसी दुकान में उस वस्तु को प्राप्त होता है जिसके रखने और बेचने दोनों में ही दुकानदार को हानि की सम्भावना रहती है । जिस घर में उसके जीवन को ढलकर बनना पड़ता है, उसके चरित्र को एक विशेष रूप रेखा धारण करनी पड़ती है जिस पर वह शैशव का सारा स्नेह ढुलकाकर भी तृप्त नहीं होती उसी घर में वह भिक्षुक के अतिरिक्त और कुछ नहीं हैं । दुःख के समय अपने आहत हृदय और शिथिल शरीर को लेकर वह उसमें विश्राम नहीं पाती, भूल के समय वह अपना लज्जित मुख उसके स्नेहांचल में नहीं छिपा सकती और आपत्ति के समय एक मुट्ठी अन्न की भी उस घर से आशा नहीं रख सकती।

ऐसी ही है उसकी वह अभागी जन्म भूमि, जो जीवित रहने के अतिरिक्त और कोई अधिकार नहीं देती । पति गृह, जहाँ उस उपेक्षित प्राणी को जीवन का शेष भाग व्यतीत करना पड़ता है, अधिकार में उससे कुछ अधिक परन्तु सहानुभूति में उससे बहुत कम है इसमें सन्देह नहीं । यहाँ उसकी स्थिति पल-भर भी आशंका से रहित नहीं । यदि वह विद्वान पति की इच्छानुकूल विदुषी नहीं तो उसका स्थान दूसरी को दिया जा सकता है । यदि वह सौंदर्योपासक पति की कल्पना के अनुरूप अप्सरा नहीं है तो उसे अपना स्थान रिक्त कर देने का आदेश दिया जा सकता है । यदि वह पति कामना का विचार करके संतान या पुत्रों की सेना नहीं दे सकती, यदि वह रुग्ण है या दोषों का नितांत अभाव होने पर भी पति की अप्रसन्नता की दोषी है तो भी उसे घर में दासत्व स्वीकार करना पड़ेगा ।
(महादेवी वर्मा द्वारा लिखित ‘नारीत्व का अभिशाप’ शीर्षक निबन्ध से )

4. जीवन युद्ध है आराम नहीं

जीवन को जो आराम मानते हैं, वे जीवन को नहीं जानते । वे जीवन का स्वाद नहीं पाएँगे। जीवन युद्ध है आराम नहीं और अगर आराम है तो वह उसी को प्राप्य है जो उस युद्ध में पीछे कुछ न छोड़ अपने पूरे अस्तित्व से उस में जूझ पड़ता है । जो सपने लेते हैं वे सपने लेते रहेंगे । वे आराम नहीं, आराम के ख्याल में ही भरमाये रहते हैं । पर जो सदानन्द है, वह क्या सपने से मिलता है ? आदमी सोकर सपने लेता है । पर जो जागेगा वही पाएगा । सोने का पाना झूठा पाना है । सपना सपने से बाहर खो जाता है । असल उपलब्धि वहाँ नहीं । इससे मिलेगा वही जो कीमत देकर लिया जाएगा । जो आनन्दरूप है, वह जानने से जान लिया नहीं जाएगा । उसे तो दुःख पर दुःख उठाकर उपलब्ध करना होगा । इसलिए लिखने-पढ़ने और मनन करने से उसकी स्तुति अर्चना ही की जा सकती है, उपलब्धि नहीं की जा सकती । उपलब्धि तो उसे होगी जो जीवन के प्रत्येक क्षण योद्धा है, जो अपने को बचाता नहीं है, और बस अपने इष्ट को ही जानता है, कहो कि उसके लिए अपने को भी नहीं रखता है ।
(-जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित निबन्ध ‘युद्ध’ से)

5. सांस्कृतिक कार्यक्रम कितने असांस्कृतिक

आज हमारे देश में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की सर्वत्र धूम है । पंजाब में सभ्याचारक मेलों के नाम पर ऐसे कार्यक्रम सरकार द्वारा भी जगह-जगह करवाये जा रहे हैं । इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लचरपने को देखकर हमारा सिर शर्म से झुक जाता है और हम यह सोचने पर विवश हो जाते हैं कि क्या यही हमारी संस्कृति है जिसके बूते पर हम संसार का गुरु होने का दावा सदियों तक करते रहे हैं । आज किसी शिक्षण संस्था को देखिए, किसी राष्ट्रीय पर्व में शामिल होइए या किसी विदेशी अतिथि के स्वागत समारोह में जाइए-आपको सर्वत्र पायलों की झंकार और नुपुरों की मधुर रुनझुन सुनाई देगी। आज प्राइमरी स्कूलों के नन्हें-मुन्ने बालक-बालिकाओं से लेकर विश्वविद्यालयों के विकसित मस्तष्कि वाले युवक-युवतियां भी इन तथाकथित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मग्न दिखाई दे रही हैं। प्रश्न उठता है कि हमारे देश की संस्कृति केवल नृत्य, गीत, राग-रस तक ही सीमित रह गयी है । संस्कृति के उदात्त तत्व को केवल संगीत और अभिनय तक ही सीमित कर देना कहां तक न्याय है ? हमारे देश के विद्यालयों के अधिकांश छात्रों का पर्याप्त समय इन कार्यक्रमों की तैयारी में ही नष्ट हो जाता है । आज 15 अगस्त है तो कल 26 जनवरी !

आज युवक समारोह (Youth Festival) है तो कल कुछ और । छात्रों को शिक्षा और उनके चरित्र के विषय में कुछ भी अवगत न कराया जाए परन्तु एक रसिक आयोजन अवश्य होगा। इन आयोजनों की तैयारी में छात्रों का अमूल्य समय और उससे भी मूल्यवान चरित्र कितना नष्ट होता है, इसकी ओर किसी का ध्यान ही नहीं है । आज विदेशी अतिथि आते हैं, हमारी सभ्यता, विचारधारा और जीवन निर्वाह के साधन देखने के लिए, परन्तु हम भारत की वास्तविकता दिखाने की अपेक्षा ‘कल्चरल प्रोग्राराम’ के नाम पर उन्हें दिखाते हैं अपनी जवान बहिन-बेटियों का नाच ? क्या हमारे पास कोई अच्छी वस्तु दिखाने को नहीं है । क्या हम उन्हें अरविन्द आश्रम, शान्ति-निकेतन और गुरुकुलों की सैर नहीं करा सकते? जो लोग इन नाचों को कराते हैं, चाहे वे माता-पिता हों या शिक्षक हों या सरकारी अधिकारी हों अथवा मन्त्री हों वे अवश्य ही पापों को प्रोत्साहन देने वाले हैं । हम शिक्षकों और शिक्षिकाओं से निवेदन करते हैं कि कृपया वे बालिकाओं को नाचना न सिखायें और उनका जीवन विलासिताप्रिय न बनाएं । प्रसिद्ध आचार्य श्री क्षति मोहन सेन ने ठीक ही कहा था कि मुझे तो ऐसा लगता है कि हम लोग संस्कृति शब्द का अर्थ ही भूल गये हैं ।
(कल्याण मासिक’ के वर्ष 62 के वार्षिकांक में प्रकाशित श्री भवानी लाल जी भारतीय के एक लेख से)

2. (क) निजी अनुभव पर आधारित संस्मरणात्मक अनुच्छेद

1. मेले में दो घंटे

भारत एक त्योहारों का देश है । इन त्योहारों को मनाने के लिए जगह- जगह मेले लगते हैं । इन मेलों का महत्त्व कुछ कम नहीं है किन्तु पिछले दिनों मुझे जिस मेले को देखने का सुअवसर मिला वह अपने आप में अलग ही था । इस मेले में बिताए दो घंटों का विवरण यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ । भारतीय मेला प्राधिकरण तथा भारतीय कृषि और अनुसंधान परिषद् के सहयोग से हमारे नगर में एक कृषि मेले का आयोजन किया गया था । भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों का इस मेले में सहयोग प्राप्त किया गया था । इस मेले में विभिन्न राज्यों ने अपने-अपने मंडप लगाए थे । उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार और महाराष्ट्र के मंडपों में गन्ने और गेहूँ की पैदावार से सम्बन्धित विभिन्न चित्रों का प्रदर्शन किया गया था। केरल, गोवा के काजू और मसालों, असम में चाय, बंगाल में चावल, गुजरात, मध्य प्रदेश और पंजाब में रुई की पैदावार से संबंधित सामग्री प्रदर्शित की थी ।

अनेक व्यावसायिक एवं औद्योगिक कम्पनियों ने भी अपने अलग-अलग मंडप सजाए थे । इसमें रासायनिक खाद , ट्रैक्टर, डीज़ल पम्प, मिट्टी खोदने के उपकरण, हल, अनाज की कटाई और छटाई के अनेक उपकरण प्रदर्शित किए गए थे । इसी मेले में मुझे यह जानकारी प्राप्त कर खुशी हुई कि पंजाब में बने ट्रैक्टरों की बिक्री और मांग देश में सबसे अधिक है । यह मेला एशिया में अपनी तरह का पहला मेला था । इसमें अनेक एशियाई देशों ने भी अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए मण्डप लगाए थे । इनमें जापान का मंडप सबसे विशाल था । इस मंडप को देख कर हमें पता चला कि जापान जैसा छोटासा देश कृषि के क्षेत्र में कितनी उन्नति कर चुका है । हमारे प्रदेश के बहुत-से कृषक यह मेला देखने आए थे । मेले में उन्हें अपनी खेती के विकास संबंधी काफी जानकारी प्राप्त हुई । इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण था मेले में आयोजित विभिन्न प्रान्तों के लोकनृत्यों का आयोजन । सभी नृत्य एक से बढ़ कर एक थे । मुझे पंजाब और हिमाचल प्रदेश के लोकनृत्य सबसे अच्छे लगे । इन नृत्यों को आमने-सामने देखने का मेरा यह पहला ही अवसर था । लगभग दो घंटे मेले में बिताने के बाद मैं घर लौट आया और अपने साथ ढेर सारी सूचना एकत्र करके लाया ।

2. प्रदर्शनी अवलोकन

पिछले महीने मुझे दिल्ली में अपने किसी मित्र के पास जाने का अवसर प्राप्त हुआ । संयोग से उन दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में एक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी चल रही थी । मैंने अपने मित्र के साथ इस प्रदर्शनी को देखने का निश्चय किया । शाम अनुच्छेद लेखन को लगभग पांच बजे हम प्रगति मैदान पर पहुंचे । प्रदर्शनी के मुख्य द्वार पर हमें यह सूचना मिल गई कि इस प्रदर्शनी में लगभग तीस देश भाग ले रहे हैं । हमने देखा की सभी देशों ने अपने-अपने पंडाल बड़े कलात्मक ढंग से सजाए हुए हैं। उन पंडालों में उन देशों की निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का प्रदर्शन किया जा रहा था। अनेक भारतीय कम्पनियों ने भी अपने-अपने पंडाल सजाए हुए थे । प्रगति मैदान किसी दुल्हन की तरह सजाया गया था । प्रदर्शनी में सजावट और रोशनी का प्रबन्ध इतना शानदार था कि अनायास ही मन से वाह निकल पड़ती थी ।

प्रदर्शनी देखने आने वालों की काफी भीड़ थी। हमने प्रदर्शनी के मुख्य द्वार से टिकट खरीद कर भीतर प्रवेश किया। सबसे पहले हम जापान के पंडाल में गए । जापान ने अपने पंडाल में कृषि, दूर संचार, कम्प्यूटर आदि से जुड़ी वस्तुओं का प्रदर्शन किया था । हमने वहां इक्कीसवीं सदी में टेलीफोन एवं दूर संचार सेवा कैसी होगी इस का एक छोटा-सा नमूना देखा । जापान ने ऐसे टेलिफोन का निर्माण किया था जिसमें बातें करने वाले दोनों व्यक्ति एक-दूसरे की फोटो भी देख सकेंगे । वहीं हमने एक पॉकेट टेलीविज़न भी देखा जो माचिस की डिबिया जितना था। सारे पंडाल का चक्कर लगाकर हम बाहर आए ।

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उसके बाद हमने दक्षिण कोरिया,ऑस्ट्रेलिय और जर्मनी के पंडाल देखे । उस प्रदर्शनी को देख कर हमें लगा कि अभी भारत को उन देशों का मुकाबला करने के लिए काफ़ी मेहनत करनी होगी । हमने वहां भारत में बनने वाले टेलीफोन, कम्प्यूटर आदि का पंडाल भी देखा । वहां यह जानकारी प्राप्त करके मन बहुत खुश हुआ कि भारत दूसरे बहुत-से देशों को ऐसा सामान निर्यात करता है । भारतीय उपकरण किसी भी हालत विदेशों में बने सामान से कम नहीं थे । कोई घण्टा भर प्रदर्शनी में घूमने के बाद हमने प्रदर्शनी में ही बने रस्टोरेंट में चाय-पान किया और इक्कीसवीं सदी में दुनिया में होने वाली प्रगति का नक्शा आँखों में बसाए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में होने वाली अत्याधुनिक जानकारी प्राप्त करके घर वापस आ गए ।

3. नदी किनारे एक शाम

गर्मियों की छुट्टियों के दिन थे । कॉलेज जाने की चिंता नहीं थी और न ही होमवर्क की । एक दिन चार मित्र एकत्र हुए और सभी ने यह तय किया कि आज की शाम नदी किनारे सैर करके बिताई जाए । कुछ तो गर्मी से राहत मिलेगी कुछ प्रकृति के सौन्दर्य के दर्शन करके जी खुश होगा। एक ने कही दूजे ने मानी के अनुसार हम सब लगभग छ: बजे के करीब एक स्थान पर एकत्र हुए और पैदल ही नदी की ओर चल पड़े । दिन अभी ढला नहीं था बस ढलने ही वाला था । ढलते सूर्य की लाललाल किरणें पश्चिम क्षितिज पर ऐसे लग रही थीं मानो प्रकृति रूपी युवती लाल-लाल वस्त्र पहने मचल रही हो । पक्षी अपने-अपने घौंसलों की ओर लौटने लगे थे । खेतों में हरियाली छायी हुई थी । ज्यों ही हम नदी किनारे पहुंचे सूर्य की सुनहरी किरणें नदी के पानी पर पड़ती हुई बहुत भली प्रतीत हो रही थीं । ऐसे लगता था मानों नदी के जल में हजारों लाल कमल एक साथ खिल उठे हों। नदी तट पर लगे वृक्षों की पंक्ति देख कर ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’ कविता की पंक्ति याद हो आई । नदी तट के पास वाले जंगल से ग्वाले पशु चरा कर लौट रहे थे । पशुओं के पैरों से उठने वाली धूलि एक मनोरम दृश्य उपस्थित कर रही थी ।

हम सभी मित्र बातें कम कर रहे थे, प्रकृति के रूप रस का पान अधिक कर रहे थे । हमने देखा कुछ शहरी लोग नदी किनारे सूर्यास्त का दृश्य देखने के लिए आ रहे हैं । हमने उन लोगों से दूर रहना ही उचित समझा क्योंकि वे लोग बातें अधिक कर रहे थे, प्रकृति का रूप कम निहार रहे थे। थोड़ी ही देर में सूर्य अस्तांचल की ओर जाता हुआ प्रतीत हुआ । नदी का जो जल पहले लाल-लाल लगता था अब धीरे-धीरे नीला पड़ना शुरू हो गया था । उड़ते हुए बगुलों की सफेद-सफेद पंक्तियाँ उस धूमिल वातावरण में और भी अधिक सफेद लग रही थीं । नदी तट पर सैर करते-करते हम गांव से काफी दूर निकल आए थे। प्रकृति की सुन्दरता निहारते-निहारते ऐसे खोये थे कि समय का ध्यान ही न रहा । हम सब गांव की ओर लौट पड़े और हम सब ने एक-दूसरे को यह बताया कि हमने क्या देखा, क्या अनुभव किया । सभी एक मत थे कि नदी तट पर नृत्य करती हुई प्रकृति रूपी नदी की यह शोभा विचित्र थी, अनोखी थी जिसे कोई दिल वाला ही अनुभव कर सकता है। नदी किनारे सैर करते हुए बितायी वह शाम ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी।

4. छुट्टी का दिन

छुट्टी के दिन की हर किसी को प्रतीक्षा होती है । विशेषकर विद्यार्थियों को तो इस दिन की प्रतीक्षा बड़ी बेसबरी से होती है। उस दिन न तो जल्दी उठने की चिन्ता होती है; न कॉलेज जाने की। स्कूल में भी छुट्टी की घण्टी बजते ही विद्यार्थी कितनी प्रसन्नता से ‘छुट्टी ओए’ का नारा लगाते हुए कक्षाओं से बाहर आ जाते हैं । प्राध्यापक महोदय के भाषण का आधा वाक्य ही उनके मुँह में रह जाता है और विद्यार्थी कक्षा छोड़ कर बाहर की ओर भाग जाते हैं और जब यह पता चलता है कि आज दिन भर की छुट्टी है तो विद्यार्थी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता । छुट्टी के दिन का पूरा मज़ा तो लड़के ही उठाते हैं। वे उस दिन खूब जी भर कर खेलते हैं, घूमते हैं । कोई सारा दिन क्रिकेट के मैदान में बिताता है तो कोई पतंग बाज़ी में सारा दिन बिता देते हैं । सुबह के घर से निकले शाम को ही घर लौटते हैं । कोई कुछ कहे तो उत्तर मिलता है कि आज तो छुट्टी है।

परन्तु हम लड़कियों के लिए छुट्टी का दिन घरेलू काम-काज का दिन होता है । हाँ यह ज़रूर है कि उस दिन पढ़ाई से छुट्टी होती है । छुट्टी के दिन मुझे सुबह सवेरे उठ कर अपनी माता जी के साथ कपड़े धोने में सहायता करनी पड़ती है । मेरी माता जी एक स्कूल में पढ़ाती हैं अत: उनके पास कपड़े धोने के लिए केवल छुट्टी का दिन ही उपयुक्त होता है। कपड़े धोने के बाद मुझे अपने बाल धोने होते हैं बाल धोकर स्नान करके फिर रसोई में माता जी का हाथ बटाना पड़ता है । छुट्टी के दिन ही हमारे घर में विशेष व्यंजन पकते हैं ।

दूसरे दिनों में तो सुबह सवेरे सब को भागम भाग लगी होती है। किसी को स्कूल जाना होता है तो किसी को दफ्तर । दोपहर के भोजन के पश्चात् थोड़ा आराम करते हैं । फिर माता जी मुझे लेकर बैठ जाती हैं । कुछ सिलाई, बुनाई या कढ़ाई की शिक्षा देने । उनका मानना है कि लड़कियों को ये सब काम आने चाहिएं । शाम होते ही शाम की चाय का समय हो जाता है । छुट्टी के दिन शाम की चाय में कभी समोसे, कभी पकौड़े बनाये जाते हैं । चाय पीने के बाद फिर रात के खाने की चिन्ता होने लगती है और इस तरह छुट्टी का दिन एक लड़की के लिए छुट्टी का नहीं अधिक काम का दिन होता है । सोचती हूं काश मैं लड़का होती तो मैं भी छुट्टी के दिन का पूरा आनन्द उठाती ।

5. वर्षा ऋतु की पहली वर्षा

जून का महीना था । सूर्य अंगारे बरसा रहा था । धरती तप रही थी । पशु-पक्षी तक गर्मी के मारे परेशान थे । हमारे यहां तो कहावत प्रचलित है कि ‘जेठ हाड़ दियाँ धुपां पोह माघ दे पाले’ । जेठ अर्थात् ज्येष्ठ महीना हमारे प्रदेश में सबसे अधिक तपने वाला महीना होता है । इसका अनुमान तो हम जैसे लोग ही लगा सकते हैं । मजदूर और किसान ही इस तपती गर्मी को झेलते हैं । पंखों, कूलरों या एयर कंडीशनरों में बैठे लोगों को इस गर्मी की तपश का अनुमान नहीं हो सकता । ज्येष्ठ महीना बीता, आषाढ़ महीना शुरू हुआ इस महीने में ही वर्षा ऋतु की पहली वर्षा होती है । सब की दृष्टि आकाश की ओर उठती है । किसान लोग तो ईश्वर से प्रार्थना के लिए अपने हाथ ऊपर उठा देते हैं । सहसा एक दिन आकाश में बादल छा गये । बादलों की गड़गड़ाहट सुन कर मोर अपनी मधुर आवाज़ में बोलने लगे । हवा में भी थोड़ी शीतलता आ गई । मैं अपने कुछ साथियों के साथ वर्षा ऋतु की पहली वर्षा का स्वागत करने की तैयारी करने लगा । धीरे-धीरे हल्की-हल्की बूंदा-बंदी शुरू हो गयी । हमारी मण्डली की खुशी का ठिकाना न रहा । मैं अपने साथियों के साथ गांव की गलियों में निकल पड़ा । साथ ही हम नारे लगाते जा रहे थे, ‘कालियाँ इट्टां काले रोड़ मीह बरसा दे जोरो जोर’। कुछ साथी गा रहे थे ‘बरसो राम धड़ाके से, बुढ़िया मर गई फाके से’ ।

किसान लोग भी खुश थे । उनका कहना था – ‘बरसे सावन तो पाँच के हों बावन’ नववधुएं भी कह उठी ‘बरसात वर के साथ’ और विरहिणी स्त्रियां भी कह उठीं कि ‘छुट्टी लेके आजा बालमा, मेरा लाखों का सावन जाए ।’ वर्षा तेज़ हो गयी थी । हमारी मित्र मंडली वर्षा में भीगती गलियों से निकल खेतों की ओर चल पड़ी । खुले में वर्षा में भीगने, नहाने का मजा ही कुछ और है । हमारी मित्र मंडली में गांव के और बहुत से लड़के शामिल हो गये थे । वर्षा भी उस दिन कड़ाके से बरसी । मैं उन क्षणों को कभी भूल नहीं सकता । सौन्दर्य का ऐसा साक्षात्कार मैंने कभी न किया था। जैसे वह सौंदर्य अस्पृश्य होते हुए भी मांसल हो । मैं उसे छू सकता था, देख सकता था और पी सकता था । मुझे अनुभव हुआ कि कवि लोग क्योंकर ऐसे दृश्यों से प्रेरणा पाकर अमर काव्य का सृजन करते हैं । वर्षा में भीगना, नहाना, नाचना, खेलना उन लोगों के भाग्य में कहां जो बड़ी-बड़ी कोठियों में एयरकंडीशनर कमरों में रहते हैं।

6. रेलवे प्लेटफार्म का दृश्य

एक दिन संयोग से मुझे अपने बड़े भाई को लेने रेलवे स्टेशन पर जाना पड़ा । मैं प्लेटफार्म टिकट लेकर रेलवे स्टेशन के अन्दर गया। पूछताछ खिड़की से पता लगा कि दिल्ली से आने वाली गाड़ी प्लेटफार्म नं० 4 पर आएगी । मैं रेलवे पुल पार करके प्लेटफार्म नं० 4 पर पहुंच गया। वहां यात्रियों की काफ़ी बड़ी संख्या मौजूद थी । कुछ लोग मेरी तरह अपने प्रियजनों को लेने के लिए आये थे तो कुछ लोग अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराने के लिए आये हुए थे । जाने वाले यात्री अपने-अपने सामान के पास खड़े थे । कुछ यात्रियों के पास कुली भी खड़े थे । मैं भी उन लोगों की तरह गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगा । इसी दौरान मैंने अपनी नज़र रेलवे प्लेटफार्म पर दौड़ाई ।

मैंने देखा कि अनेक युवक और युवितयाँ अनुच्छेद लेखन अत्याधुनिक पोशाक पहने इधर-उधर घूम रहे थे । कुछ युवक तो लगता था यहाँ केवल मनोरंजन के लिए ही आए थे । वे आने-जाने वाली लड़कियों, औरतों को अजीब-अजीब नज़रों से घूर रहे थे । ऐसे युवक दो-दो, चार-चार के ग्रुप में थे । कुछ यात्री टी-स्टाल पर खड़े चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, परन्तु उनकी नज़रे बार-बार उस तरफ उठ जाती थीं, जिधर से गाड़ी आने वाली थी। कुछ यात्री बड़े आराम से अपने सामान के पास खड़े थे, लगता था कि उन्हें गाड़ी आने पर जगह प्राप्त करने की कोई चिन्ता नहीं । उन्होंने पहले से ही अपनी सीट आरक्षित करवा ली थी ।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण वाक्य विचार : वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

कुछ फेरी वाले भी अपना माल बेचते हुए प्लेटफार्म पर घूम रहे थे । सभी लोगों की नज़रें उस तरफ थीं जिधर से गाड़ी ने आना था । तभी लगा जैसे गाड़ी आने वाली हो । प्लेटफार्म पर भगदड़-सी मच गई । सभी यात्री अपना-अपना सामान उठा कर तैयार हो गये । कुलियों ने सामान अपने सिरों पर रख लिया । सारा वातावरण उत्तेजना से भर गया । देखते ही देखते गाड़ी प्लेटफार्म पर आ पहुंची । कुछ युवकों ने तो गाड़ी के रुकने की भी प्रतीक्षा न की । वे गाड़ी के साथ दौड़ते-दौड़ते गाड़ी में सवार हो गये । गाड़ी रुकी तो गाड़ी में सवार होने के लिए धक्कम-पेल शुरू हो गयी । हर कोई पहले गाड़ी में सवार हो जाना चाहता था। उन्हें दूसरों की नहीं केवल अपनी चिन्ता थी। मेरे भाई मेरे सामने वाले डिब्बे में थे । उनके गाड़ी से नीचे उतरते ही मैंने उनके चरण स्पर्श किये और उनका सामान उठाकर स्टेशन से बाहर की ओर चल पड़ा । चलते-चलते मैंने देखा जो लोग अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराकर लौट रहे थे उनके चेहरे उदास थे और मेरी तरह जिनके प्रियजन गाड़ी से उतरे थे उनके चेहरों पर रौनक थी, खुशी थी।

7. बस अड्डे का दृश्य

आजकल पंजाब में लोग अधिकतर बसों से ही यात्रा करते हैं । पंजाब का प्रत्येक गांव मुख्य सड़क से जुड़ा होने के कारण बसों का आना-जाना अब लगभग हर गांव में होने लगा है । बस अड्डों का जब से प्रबन्ध पंजाब रोडवेज़ के अधिकार क्षेत्र में आया है बस अड्डों का हाल दिनों-दिन बरा हो रहा है । हमारे शहर का बस अड्डा भी उन बस अड्डों में से एक है जिसका प्रबन्ध हर दृष्टि से बेकार है । इस बस अड्डे के निर्माण से पूर्व बसें अलग-अलग स्थानों से अलगअलग अड्डों से चला करती थीं । सरकार ने यात्रियों की असुविधा को ध्यान में रखते हुए सभी बस अड्डे एक स्थान पर कर दिये । शुरू-शुरू में तो लोगों को लगा कि सरकार का यह कदम बड़ा सराहनीय है किन्तु ज्यों-ज्यों समय बीतता गया जनता की कठिनाइयां, परेशानियां बढ़ने लगीं। हमारे शहर के बस अड्डे पर भी अन्य शहरों की तरह अनेक दुकानें बनाई गई हैं । जिनमें खान-पान, फल-सब्जियों आदि की दुकानों के अतिरिक्त पुस्तकों की, मनियारी आदि की भी अनेक दुकानें हैं । हलवाई की दुकान से उठने वाला धुआँ सारे यात्रियों की परेशानी का कारण बनता है । चाय पान आदि की दुकानों की साफ सफाई की तरफ कोई ध्यान नहीं देता । वहाँ माल भी महँगा मिलता है और गंदा भी।

बस अड्डे में अनेक फलों की रेहड़ी वालों को भी माल बेचने की आज्ञा दी गई है । ये लोग काले लिफाफे रखते हैं जिनमें वे सड़े गले फल पहले से ही तोल कर रखते हैं और लिफाफा इस चतुराई से बदलते हैं कि यात्री को पता नहीं चलता । घर पहुंच कर ही पता चलता है कि उन्होंने जो फल चुने थे वे सब बदल दिये गये हैं । अड्डा इन्चार्ज इस सम्बन्ध में कोई कार्यवाही नहीं करते। बस अड्डे की शौचालय की साफ-सफ़ाई न होने के बराबर है । यात्रियों को टिकट देने के लिए लाइन नहीं लगवाई जाती । बस आने पर लोग भाग दौड़ कर बस में सवार होते हैं । औरतों, बच्चों और वृद्ध लोगों का बस में चढ़ना ही कठिन होता है । बहुत बार देखा गया है कि जितने लोग बस के अन्दर होते हैं उतने ही बस के ऊपर चढ़े होते हैं । पंजाब में एक कहावत प्रसिद्ध है कि रोडवेज़ की लारी न कोई शीशा न कोई बारी । पर बस अड्डों का हाल तो उनसे भी बुरा है । जगह-जगह खड्डे, कीचड़, मक्खियां, मच्छर और न जाने क्या-क्या । आज यह बस अड्डे जेब कतरों और नौसर बाजों के अड्डे बने हुए हैं । हर यात्री को अपने-अपने घर पहुंचने की जल्दी होती है इसलिए कोई भी बस अड्डे की इस दुर्दशा की ओर ध्यान नहीं देता ।

8. मतदान केन्द्र का दृश्य

प्रजातन्त्र में चुनाव अपना विशेष महत्त्व रखते हैं । गत 13 फरवरी को हमारे कस्बे में नवांशहर विधानसभा क्षेत्र के लिए भी चुनाव हुआ । चुनाव से कोई महीना भर पहले विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा बड़े जोर-शोर से चुनाव प्रचार किया गया । धन और शराब का खुलकर वितरण किया गया । पंजाब में एक कहावत प्रसिद्ध है कि चुनाव के दिनों में यहाँ नोटों की वर्षा की जाती है और शराब की नदियां बहती हैं । चुनाव आयोग ने लाख सिर पटका पर ढाक के तीन पात ही रहे । आज मतदान का दिन है । मतदान से एक दिन पूर्व ही मतदान केन्द्रों की स्थापना की गई है । मतदान वाले दिन जनता में भारी उत्साह देखा गया ।

इस बार पंजाब में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक मशीनों का प्रयोग किया जा रहा था । अब मतदाताओं को मतदान केन्द्र पर मत-पत्र नहीं दिये जाने थे और न ही उन्हें अपने मत मतपेटियों में डालने थे । अब तो मतदाताओं को अपनी पसन्द के उम्मीदवार के नाम और चुनाव चिह्न के आगे लगे बटन को दबाना भर था । इस नए प्रयोग के कारण भी मतदाताओं में काफी उत्साह देखने में आया। मतदान प्रात: आठ बजे शुरू होना था किन्तु मतदान केन्द्रों के बाहर विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने-अपने पंडाल समय से काफ़ी पहले सजा लिये । उन पंडालों में उन्होंने अपनी-अपनी पार्टी के झण्डे एवं उम्मीदवार के चित्र भी लगा रखे थे । दो तीन मेजें भी पंडाल में लगाई गई थीं जिन पर उम्मीदवार के कार्यकर्ता मतदान सूचियाँ लेकर बैठे थे और मतदाताओं को मतदाता सूची में से उनकी क्रम संख्या तथा मतदान केन्द्र की संख्या तथा मतदान केन्द्र का नाम लिखकर एक पर्ची दे रहे थे ।

आठ बजने से पूर्व ही मतदान केन्द्रों पर मतदाताओं की लम्बी-लम्बी कतारें लगनी शुरू हो गई थीं । मतदाता विशेषकर स्त्री मतदाता खूब सज-धज कर आए थे । ऐसा लगता था कि वे किसी मेले में आए हों । दोपहर होते-होते मतदाताओं की भीड़ में कमी आने लगी । राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता मतदाताओं को घेर-घेर कर ला रहे थे । हालांकि चुनाव आयोग ने मतदाताओं को किसी प्रकार के वाहन में लाने की मनाही की है किन्तु सभी उम्मीदवार अपने-अपने मतदाताओं को रिक्शा, जीप या कार में बिठा कर ला रहे थे । सायं पांच बजते-बजते यह मेला उजड़ने लगा। भीड़ मतदान केन्द्र से हट कर उम्मीदवारों के पंडालों में जमा हो गयी थी और सभी अपने-अपने उम्मीदवार की जीत के अनुमान लगाने में मस्त थे ।

9. रेल यात्रा का अनुभव

हमारे देश में रेलवे ही एक ऐसा विभाग है जो यात्रियों को टिकट देकर सीट की गारण्टी नहीं देता । रेल का टिकट खरीद कर सीट मिलने की बात तो बाद में आती है पहले तो गाड़ी में घुस पाने की भी समस्या सामने आती है । और यदि कहीं आप बाल-बच्चों अथवा सामान के साथ यात्रा कर रहे हों तो यह समस्या और भी विकट हो उठती है । कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि टिकट पास होते हुए भी आप गाड़ी में सवार नहीं हो पाते और ‘दिल की तमन्ना दिल में रह गयी’ गाते हुए या रोते हुए घर लौट आते हैं । रेलगाड़ी में सवार होने से पूर्व गाड़ी की प्रतीक्षा करने का समय बड़ा कष्टदायक होता है । मैं भी एक बार रेलगाड़ी में मुम्बई जाने के लिए स्टेशन पर गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था । गाड़ी कोई दो घंटे लेट थी । यात्रियों की बेचैनी देखते ही बनती थी । गाड़ी आई तो गाड़ी में सवार होने के लिए जोर आज़माई शुरू हो गयी । किस्मत अच्छी थी कि मैं गाड़ी में सवार होने में सफल हो सका । गाड़ी चले अभी घंटा भर ही हुआ था कि कुछ यात्रियों के मुख से मैंने सुना कि यह डिब्बा जिसमें मैं बैठा था अमुक स्थान पर कट जाएगा ।

यह सुनकर मैं तो दुविधा में पड़ गया । गाड़ी रात के एक बजे उस स्टेशन पर पहुंची जहाँ हमारा वह डिब्बा मुख्य गाड़ी से कटना था और हमें दूसरे डिब्बे में सवार होना था । उस समय अचानक तेज़ वर्षा होने लगी । स्टेशन पर कोई भी कुली नज़र नहीं आ रहा था। सभी यात्री अपना-अपना सामान उठाये वर्षा में भीगते हुए दूसरे डिब्बे की ओर भागने लगे । मैं भी ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का स्मरण करते हुए अपना सामान स्वयं ही उठाने का निर्णय करते हुए अपना सामान गाड़ी से उतारने लगा । मैं अपना अटैची लेकर उतरने लगा कि एक दम से वह डिब्बा चलने लगा । मैं गिरते-गिरते बचा और अटैची मेरे हाथ से छूट कर प्लेटफार्म पर गिर पड़ा और पता नहीं कैसे झटके के साथ खुल गया । मेरे कपड़े वर्षा में भीग गये। मैंने जल्दी-जल्दी अपना सामान समेटा और दूसरे डिब्बे की ओर बढ़ गया । गर्मी का मौसम और उस डिब्बे के पंखे बन्द । खैर गाड़ी चली तो थोड़ी हवा लगी और कुछ राहत मिली । बड़ी मुश्किल से मैं मुम्बई पहुँचा ।।

10. बस यात्रा का अनुभव

पंजाब में बस-यात्रा करना कोई आसान काम नहीं है । एक तो पंजाब की बसों के विषय में पहले ही कहावत प्रसिद्ध है कि रोडवेज़ दी लारी न कोई शीशा न कोई बारी’ दूसरे 52 सीटों वाली बस में ऊपर-नीचे कोई सौ सवा सौ आदमी सवार होते हैं । ऐसे अवसरों पर कंडक्टर महाश्य की तो चांदी होती है । वे न किसी को टिकट देते हैं और न किसी को बाकी पैसे । मुझे भी एक बार ऐसी ही बस यात्रा करने का अनुभव हुआ । मैं बस अड्डे पर उस समय पहुँचा जब बस चलने वाली ही थी अतः मैं टिकट खिड़की की ओर न जाकर सीधा बस की ओर बढ़ गया। बस ठसा ठस भरी हुई थी । मुझे जाने की जल्दी थी इसलिए मैं भी उस बस में घुस गया । बड़ी मुश्किल से खड़े होने की जगह मिली । मेरे बस में सवार होने के बाद भी बहुत से यात्री बस में चढ़ना चाहते थे । कंडक्टर ने उन्हें बस की छत्त के ऊपर चढ़ने के लिए कहा । पुरुष यात्री तो सभी अनुच्छेद लेखन छत पर चढ़ गये परन्तु स्त्रियां और बच्चे न चढ़े। बस चली तो लोगों ने सुख की सांस ली। थोड़ी देर में बस कंडक्टर टिकटें काटता हुआ मेरे पास आया । मुझे लगा उसने शराब पी रखी है । मुझ से पैसे लेकर उसने बकाया मेरी टिकट के पीछे लिख दिया और आगे बढ़ गया ।

मैंने अपने पास खड़े एक सज्जन से कंडक्टर के शराब पीने की बात कही तो उन्होंने कहा कि शाम के समय ये लोग ऐसे ही चलते हैं । हराम की कमाई है शराब में नहीं उड़ाएंगे तो और कहाँ उड़ाएंगे । थोड़ी ही देर में एक बूढ़ी स्त्री का उस कंडक्टर से झगड़ा हो गया । कंडक्टर उसे फटे हुए नोट बकाया के रूप में वापस कर रहा था और बुढ़िया उन नोटों को लेने से इन्कार कर रही थी । कंडक्टर कह रहा था ये सरकारी नोट हैं हमने कोई अपने घर तो बनाये नहीं । इसी बीच उसने उस बुढ़िया को कुछ अपशब्द कहे । बुढ़िया ने उठ कर उसको गले से पकड़ लिया । सारे यात्री कंडक्टर के विरुद्ध हो गये। कंडक्टर बजाए क्षमा मांगने के और भी गर्म हो रहा था । अभी उन में यह झगड़ा चल ही रहा था कि मेरे गांव का स्टाप आ गया । बस रुकी और मैं जल्दी से उतर गया । बस क्षण भर रुकने के बाद आगे बढ़ गयी। मेरी सांस में सांस आई । जैसे मुझे किसी ने शिकंजे में दबा रखा हो। इसी घबराहट में मैं कंडक्टर से अपने बकाया पैसे लेना भी भूल गया।

11. परीक्षा भवन का दृश्य

अप्रैल महीने की पहली तारीख थी । उस दिन हमारी वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो रही थीं । परीक्षा शब्द से वैसे सभी मनुष्य घबराते हैं परन्तु विद्यार्थी वर्ग इस शब्द से विशेष रूप से घबराता है । मैं जब घर से चला तो मेरा दिल भी धक-धक कर रहा था । रात भर पढ़ता रहा। चिन्ता थी कि यदि सारी रात के पढ़े में से कुछ भी प्रश्न पत्र में न आया तो क्या होगा । परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिन्तित से नज़र आ रहे थे । कुछ विद्यार्थी किताबें लेकर अब भी उनके पन्ने उलट पुलट रहे थे। कुछ बड़े खुश-खुश नज़र आ रहे थे। लड़कों से ज्यादा लड़कियां अधिक गम्भीर नज़र आ रही थीं । कुछ लड़कियाँ तो इसी आत्मविश्वास के कारण ही शायद हर परीक्षा में लड़कों से बाजी मार जाती हैं। मैं अपने सहपाठियों से उस दिन के प्रश्न पत्र के बारे में बात कर ही रहा था कि परीक्षा भवन में घंटी बजनी शुरू हो गई । यह संकेत था कि हमें परीक्षा भवन में प्रवेश कर जाना चाहिए। सभी विद्यार्थियों ने परीक्षा भवन में प्रवेश करना शुरू कर दिया । भीतर पहुँच कर हम सब अपने अपने रोल नं० के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गये ।

थोड़ी ही देर में अध्यापकों द्वारा उत्तर पुस्तिकाएं बांट दी गईं और हम ने उस पर अपना-अपना रोल नं० आदि लिखना शुरू कर दिया । ठीक नौ बजते ही एक घंटी बजी और अध्यापकों ने प्रश्न पत्र बाँट दिये । कुछ विद्यार्थी प्रश्न पत्र प्राप्त करके उसे माथा टेकते देखे गये। मैंने भी ऐसा ही किया। माथा टेकने के बाद मैंने प्रश्न पत्र पढ़ना शुरू किया । मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि प्रश्न पत्र के सभी प्रश्न मेरे पढ़े हुए या तैयार किये हुए प्रश्नों में से थे । मैंने किये जाने वाले प्रश्नों पर निशान लगाये और कुछ क्षण तक यह सोचा कि कौन-सा प्रश्न पहले करना चाहिए और फिर उत्तर लिखना शुरू कर दिया । मैंने देखा कुछ विद्यार्थी अभी बैठे सोच ही रहे थे शायद उनके पढ़े में से कोई प्रश्न न आया हो । तीन घण्टे तक मैं बिना इधर-उधर देखे लिखता रहा । परीक्षा भवन से बाहर आकर ही मुझे पता चला कि कुछ विद्यार्थियों ने बड़ी नकल की परन्तु मुझे इसका कुछ पता नहीं चला । मेज़ से सिर उठाता तो पता चलता । मैं प्रसन्न था कि उस दिन मेरा पर्चा बहुत अच्छा हुआ था।

12. मेरे जीवन की अविस्मरणीय घटना

आज मैं बी० ए० प्रथम वर्ष में हो गया हूँ । माता-पिता कहते हैं कि अब तुम बड़े हो गये हो । मैं भी कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ । हां, मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ । मुझे बीते दिनों की कुछ बातें आज भी याद हैं जो मेरा मार्गदर्शन कर रही हैं । एक घटना ऐसी है जिसे मैं आज भी याद करके आनन्द विभोर हो उठता हूँ । घटना कुछ इस तरह से है । कोई दो तीन साल पहले की घटना है । मैंने एक दिन देखा कि हमारे आंगन में लगे वृक्ष के नीचे एक चिड़िया का बच्चा घायल अवस्था में पड़ा है । मैं उस बच्चे को उठा कर अपने कमरे में ले आया। मेरी माँ ने मुझे रोका भी कि इसे इस तरह न उठाओ यह मर जाएगा किन्तु मेरा मन कहता था कि इस चिड़िया के बच्चे को बचाया जा सकता है । मैंने उसे चम्मच से पानी पिलाया । पानी मुँह में जाते ही उस बच्चे ने जो बेहोश-सा लगता था पंख फड़फड़ाने शुरू कर दिये । यह देख कर मैं प्रसन्न हुआ । मैंने उसे गोद में लेकर देखा कि उस की टांग में चोट आई है । मैंने अपने छोटे भाई से माँ से मरहम की डिबिया लाने को कहा । वह तुरन्त मरहम की डिबिया ले आया। उस में से थोड़ी सी मरहम मैंने उस चिड़िया के बच्चे की चोट पर लगाई ।

मरहम लगते ही मानो उसकी पीड़ा कुछ कम हुई । वह चुपचाप मेरी गोद में ही लेटा था । मेरा छोटा भाई भी उस के पंखों पर हाथ फेर कर खुश हो रहा था । कोई घण्टा भर मैं उसे गोद में ही लेकर बैठा रहा । मैंने देखा कि बच्चा थोड़ा उड़ने की कोशिश करने लगा था । मैंने छोटे भाई से एक रोटी मंगवाई और उसकी चूरी बनाकर उसके सामने रखी । वह उसे खाने लगा । हम दोनों भाई उसे खाते हुए देख कर खुश हो रहे थे । मैंने उसे अब अपनी पढ़ाई की मेज़ पर रख दिया । रात को एक बार फिर उस के घाव पर मरहम लगाई । दूसरे दिन मैंने देखा चिड़िया का वह बच्चा मेरे कमरे में इधर-उधर फुदकने लगा है । वह मुझे देख चींची करके मेरे प्रति अपना आभार प्रकट कर रहा था । एक दो दिनों में ही उस का घाव ठीक हो गया और मैंने उसे आकाश में छोड़ दिया । वह उड़ गया । मुझे उस चिड़िया के बच्चे के प्राणों की रक्षा करके जो आनन्द प्राप्त हुआ उसे मैं जीवन भर नहीं भुला पाऊँगा ।

13. आँखों देखी दुर्घटना का दृश्य

पिछले रविवार की बात है मैं अपने मित्र के साथ सुबह-सुबह सैर करने माल रोड पर गया। वहाँ बहुत से स्त्री-पुरुष और बच्चे भी सैर करने आये हुए थे। जब से दूरदर्शन पर स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रम आने लगे हैं अधिक-से-अधिक लोग प्रातः भ्रमण के लिए इन जगहों पर आने लगे हैं। रविवार होने के कारण उस दिन भीड़ कुछ अधिक थी । तभी मैंने वहाँ एक युवा दम्पति को अपने छोटे बच्चे को बच्चा गाड़ी में बिठा कर सैर करते देखा । अचानक लड़कियों के स्कूल की ओर एक तांगा आता हुआ दिखाई पड़ा। उस में चार पाँच सवारियाँ भी बैठी थीं । बच्चा गाड़ी वाले दम्पत्ति ने तांगे से बचने के लिए सड़क पार करनी चाही। जब वे सड़क पार कर रहे थे तो दूसरी तरफ से बड़ी तेज़ गति से आ रही एक कार उस तांगे से टकरा गई। तांगा चलाने वाला और दो सवारियां बुरी तरह से घायल हो गये थे। बच्चा गाड़ी वाली स्त्री के हाथ से बच्चा गाड़ी छूट गयी किन्तु इस से पूर्व कि वह बच्चे समेत तांगे और कार की टक्कर वाली जगह पर पहुँच कर उन से टकरा जाती मेरे साथी ने भागकर उस बच्चा गाड़ी को सम्भाल लिया। कार चलाने वाले सज्जन को भी काफ़ी चोटें आई थीं पर उस की कार को कोई खास क्षति नहीं पहुंची थी।

माल रोड पर गश्त करने वाली पुलिस के तीन चार सिपाही तुरन्त घटना स्थल पर पहुँच गये । उन्होंने वायरलैस द्वारा अपने अधिकारियों और हस्पताल को फोन किया। कुछ ही मिनटों में वहाँ एम्बुलैंस गाड़ी आ गई । हम सब ने घायलों को उठा कर एम्बुलैंस में लिटाया। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी तुरन्त वहाँ पहुँच गये। उन्होंने कार चालक को पकड़ लिया था। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि सारा दोष कार चालक का था। इस सैर सपाटे वाली सड़क पर वह 100 कि० मी० की स्पीड से कार चला रहा था और तांगा सामने आने पर ब्रेक न लगा सका। दूसरी तरफ बच्चे को बचाने के लिए मेरे मित्र द्वारा दिखाई फुर्ती और चुस्ती की भी लोग सराहना कर रहे थे। उस दम्पति ने उस का विशेष धन्यवाद किया । बाद में हमें पता चला कि तांगा चालक ने हस्पताल में जाकर दम तोड़ दिया । जिसने भी इस घटना के बारे में सुना वह दु:खी हुए बिना न रह सका ।

14. कैसे मनायी हम ने पिकनिक

पिकनिक एक ऐसा शब्द है जो थके हुए शरीर एवं मन में एक दम स्फूर्ति ला देता है । मैंने और मेरे मित्र ने परीक्षा के दिनों में बड़ी मेहनत की थी । परीक्षा का तनाव हमारे मन और मस्तिष्क पर विद्यमान था अतः उस तनाव को दूर करने के लिए हम दोनों ने यह निर्णय किया कि क्यों न किसी दिन माधोपुर हैडवर्क्स पर जाकर पिकनिक मनायी जाए । अपने इस निर्णय से अपने मुहल्ले के दो-चार और मित्रों को अवगत करवाया तो वे भी हमारे साथ चलने को तैयार हो गये। माधोपुर हैडवर्क्स हमारे शहर से लगभग 10 कि० मि० दूरी पर था अतः हम सब ने अपने-अपने साइकलों पर जाने का निश्चय किया । पिकनिक के लिए रविवार का दिन निश्चित किया गया क्योंकि उस दिन वहाँ बड़ी रौनक रहती है ।

रविवार वाले दिन हम सब ने नाश्ता करने के बाद अपने-अपने लंच बाक्स तैयार किये तथा कुछ अन्य खाने का सामान अपने-अपने साइकलों पर रख लिया । मेरे मित्र के पास एक छोटा टेपरिकार्डर भी था उसे भी उसने साथ ले लिया तथा साथ में कुछ अपने मन पसन्द गानों की टेपस् भी रख ली । हम सब अपनी-अपनी साइकल पर सवार हो, हँसते गाते एक-दूसरे को चुटकले सुनाते पिकनिक स्थल की ओर बढ़ चले । लगभग 45 मिनट में हम सब माधोपुर हैडवर्क्स पर पहुँच गये। वहां हम ने प्रकृति को अपनी सम्पूर्ण सुषमा के साथ विराजमान देखा । चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे, शीतल, और मन्द-मन्द हवा बह रही थी । हम ने एक ऐसी जगह चुनी जहाँ घास की प्राकृतिक कालीन बिछी हुई थी । हमने वहाँ एक दरी, जो हम साथ

अनुच्छेद लेखन लाये थे, बिछा दी । साइकिल चलाकर हम थोड़ा थक गये थे अत: हमने पहले थोड़ी देर विश्राम किया । हमारे एक साथी ने हमारी कुछ फोटो उतारी । थोड़ी देर सुस्ता कर हमने टेप रिकार्डर चला दिया और गीतों की धुन पर मस्ती में भर कर नाचने लगे । कुछ देर तक हम ने इधर-उधर घूम कर वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों का नज़ारा किया । दोपहर को हम सब ने अपनेअपने टिफन खोले और सबने मिल बैठ कर एक दूसरे का भोजन बांट कर खाया । उस के बाद हम ने वहां स्थित कैनाल रेस्ट हाऊस रेस्टोरों में जाकर चाय पी । चाय पान के बाद हम ने अपने स्थान पर बैठ कर ताश खेलनी शुरू की । साथ में हम संगीत भी सुन रहे थे । ताश खेलना बन्द करके हमने एक दूसरे को कुछ चुटकले और कुछ आप बीती हंसी मज़ाक की बातें बताईं । हमें समय कितनी जल्दी बीत गया इसका पता ही न चला । जब सूर्य छिपने को आया तो हम ने अपना-अपना सामान समेटा और घर की तरफ चल पड़े । सच ही वह दिन हम सबके लिए एक रोमांचकारी दिन रहा।

15. पर्वतीय स्थान की यात्रा

आश्विन महीने के नवरात्रों में पंजाब के अधिकतर लोग देवी दुर्गा माता के दरबार में हाजिरी लगवाने और माथा टेकने जाते हैं। पहले हम हिमाचल प्रदेश में स्थित माता चिन्तापूर्णी और माता ज्वाला जी के मंदिरों में माथा टेकने आया करते थे। इस बार हमारे मुहल्ले वासियों ने मिल कर जम्मू क्षेत्र में स्थित माता वैष्णों देवी के दर्शनों को जाने का निर्णय किया । हमने एक बस का प्रबन्ध किया था, जिसमें लगभग पचास के करीब बच्चे-बूढ़े और स्त्री-पुरुष सवार होकर जम्मू के लिए रवाना हुए । सभी परिवारों ने अपने साथ भोजन आदि सामग्री भी ले ली थी । पहले हमारी बस पठानकोट पहुँची, वहां कुछ रुकने के बाद हम ने जम्मू क्षेत्र में प्रवेश किया । हमारी बस टेढ़े-मेढ़े पहाड़ी रास्ते को पार करती हुई जम्मू तवी पहुँच गयी । सारे रास्ते में दोनों तरफ अद्भुत प्राकृतिक दृश्य देखने को मिले जिन्हें देख कर हमारा मन प्रसन्न हो उठा । बस में सवार सभी यात्री माता की भेंटें गा रहे थे और बीच में माँ शेरा वाली का जयकारा भी बुला रहे थे । लगभग 6 बजे हम लोग कटरा पहुँच गये । वहाँ एक धर्मशाला में हम ने अपना सामान रखा और विश्राम किया और वैष्णो देवी जाने के लिए टिकटें प्राप्त की। दूसरे दिन सुबह सवेरे हम सभी माता की जय पुकारते हुए माता के दरबार की ओर चल पड़े। कटरा से भक्तों को पैदल ही चलना पड़ता है । कटरे से माता के दरबार तक जाने के दो मार्ग हैं । एक सीढ़ियों वाला मार्ग तथा दूसरा साधारण ।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण वाक्य विचार : वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

हमने साधारण मार्ग को चुना । इस मार्ग पर कुछ लोग खच्चरों पर सवार होकर भी यात्रा कर रहे थे । यहाँ से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर माता का मन्दिर है । मार्ग में हमने बाण गंगा में स्नान किया । पानी बर्फ-सा ठंडा था फिर भी सभी यात्री बड़ी श्रद्धा से स्नान कर रहे थे। कहते हैं यहाँ माता वैष्णो देवी ने हनुमान जी की प्यास बुझाने के लिए बाण चलाकर गंगा उत्पन्न की थी । यात्रियों को बाण गंगा में नहाना ज़रूरी माना जाता है अन्यथा कहते हैं कि माता के दरबार की यात्रा सफल नहीं होती । चढ़ाई बिल्कुल सीधी थी । चढ़ाई चढ़ते हुए हमारी सांस फूल रही थी परन्तु सभी यात्री माता की भेंटें गाते हुए और माता की जय जयकार करते हुए बड़े उत्साह से आगे बढ़ रहे थे । सारे रास्ते में बिजली के बल्ब लगे हुए थे और जगह-जगह पर चाय की दुकानें और पीने के पानी का प्रबंध किया गया था । कुछ ही देर में हम आदक्वारी नामक स्थान पर पहुँच गये । मन्दिर के निकट पहुँच कर हम दर्शन करने वाले भक्तों की लाइन में खड़े हो गये । अपनी बारी आने पर हम ने माँ के दर्शन किये । श्रद्धा पूर्वक माथा टेका और मन्दिर से बाहर आ गए । आजकल मन्दिर का सारा प्रबन्ध जम्मू-कश्मीर की सरकार एवं एक ट्रस्ट की देख-रेख में होता है । सभी प्रबन्ध बहुत अच्छे एवं सराहना के योग्य थे । घर लौटने तक हम सभी माता के दर्शनों के प्रभाव को अनुभव करते रहे ।

16. ऐतिहासिक स्थान की यात्रा

यह बात पिछली गर्मियों की है । मुझे मेरे एक पत्र मित्रं का पत्र प्राप्त हुआ जिसमें मुझे कुछ दिन उसके साथ आगरा में बिताने का निमंत्रण दिया गया था । यह निमन्त्रण पाकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ । किसी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान को देखने का मुझे अवसर मिल रहा था । मैंने अपने पिता से बात की तो उन्होंने खुशी-खुशी मुझे आगरा जाने की अनुमति दे दी। मैं रेल द्वारा आगरा पहुँचा। मेरा मित्र मुझे स्टेशन पर लेने आया हुआ था । वह मुझे अपने घर लिवा ले गया । यह मात्र संयोग की बात थी या फिर मेरा सौभाग्य कि उस दिन पूर्णिमा थी और कहते हैं पूर्णिमा की चाँदनी में ताजमहल को देखने का आनन्द ही कुछ और होता है । रात के लगभग नौ बजे हम घर से निकले ।

दूर से ही ताजमहल के मीनारों और गुम्बदों का दृश्य दिखाई दे रहा था । हमने प्रवेश द्वार से टिकट खरीदे और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगे। भारत सरकार ने ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए कई उपाय किये हैं जिन में यात्रियों की संख्या को नियन्त्रित करना भी एक है। ताजमहल के चारों ओर लाल पत्थर की दीवारें हैं जिसमें एक बहुत बड़ा और सुन्दर उद्यान है जिस की सजावट और हरियाली देख कर मन मोहित हो उठता है । हमने ताजमहल परिसर में जब प्रवेश किया तो देखा कि अन्दर देशी कम विदेशी पर्यटक अधिक थे । ताजमहल तक जाने के लिए सब से पहले एक बहुत ऊँचे और सुन्दर द्वार से होकर जाना पड़ता है ।

ताजमहल उद्यान के एक ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है जो सफेद संगमरमर का बना है । इसका गुम्बद बहुत ऊँचा है उस के चारों ओर बड़ीबड़ी मीनारें हैं । ताजमहल के पश्चिम की ओर यमुना नदी बहती है । यमुना जल में ताज की परछाई बहुत सुंदर व मोहक लग रही थी । हम ने ताजमहल के भीतर प्रवेश किया। सबसे नीचे के भवन में मुग़ल सम्राट शाहजहां और उस की पत्नी और प्रेमिका मुमताज महल की कब्रे हैं । उन पर अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ है और बहुत से रंग बिरंगे बेलबूटे बने हुए हैं। इस कमरे के ठीक ऊपर एक ऐसा ही भाग है । सौन्दर्य की दृष्टि से भी उसका विशेष महत्त्व है। कहते हैं इस में बनी संगमरमर की जाली की जगह पहले सोने की बनी जाली थी जिसे औरंगजेब ने हटवा दिया था । कहते हैं कि ताजमहल के निर्माण में बीस वर्ष लगे थे और उस युग में तीस लाख रुपए खर्च हुए थे । इसे बनाने में तीस हज़ार मजदूरों ने योगदान किया था । यह स्मारक बादशाह ने अपनी पत्नी की याद में बनवाया था ।

आज इसे संसार का आठवां अजूबा भी कहा जाता है । दुनिया भर से हर वर्ष लाखों लोग इसे देखने के लिए आते हैं । आज ताजमहल भी प्रदूषण का शिकार हो रहा है इसे बचाने के हर सम्भव उपाय किये जाने चाहिए । इसे देखकर हमारे मन में यह भाव जाग्रत होते हैं कि सच्चा प्रेम सदा अमर रहता है । जी न करते हुए भी हमें वहाँ से लौटकर वापस घर आना पड़ा।

17. तेते पाँव पसारिये जेती लाम्बी सौर

बड़े बुजुर्गों ने ठीक ही कहा है कि लेते पाँव पसारिये जेती लाम्बी सौर। अर्थात् व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए अथवा खर्च करना चाहिए। अपनी सामर्थ्य से बाहर खर्च करने पर व्यक्ति को कष्ट तो उठाना ही पड़ता है बाद में दुःख भी झेलना पड़ता है। आज महंगाई बढ़ने का एक कारण यह भी है कि मध्यम वर्ग ने अपनी चादर से बाहर पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। अमीर बनने या अमीरी का दिखावा करने के कारण वह सामर्थ्य से बाहर खर्च करने का आदी बन गया है। घर में दिखावे की प्रत्येक वस्तु फ्रिज, टी० वी०, कूलर, ए० सी० आदि पर खर्च कर वह चादर से बाहर पैर पसारने का यत्न करता है। आजकल कार रखना भी एक स्टेटस सिम्बल बन गया है।

मध्यवर्गीय व्यक्ति ब्याह-शादी में भी अमीरों की नकल करते हुए खर्च करता है चाहे उसका बाल-बाल कर्जे में बिंध जाए पर अपनी नाक रखने के लिए समाज में अपने रुतबे को ध्यान में रखते हुए वह आखा, ढाका, सगाई और विवाह जैसी दिखावे की रस्मों पर अपनी सामर्थ्य से बढ़कर खर्च करता है। पुराने समय में एक कमाता था तो दस खाते थे क्योंकि वे अपनी चादर के भीतर ही पैर पसारते थे और सुखी रहते थे। आज के ज़माने में दस के दस कमाते हैं फिर भी घर का खर्च नहीं चलता। कारण लोगों को चादर से बाहर पैर पसारने की आदत पड़ गई है। इसी कारण आज गृहस्वामिनी को भी नौकरी करनी पड़ रही है। चादर से बाहर पैर पसारने की आदत ने लोगों को पैसे की दौड़ में शामिल होने पर विवश कर दिया है और पैसा कमाने के लिए लोगों को कई प्रकार के अनैतिक कार्य भी करने पड़ रहे हैं। बड़ों की मानें तो चादर के भीतर ही पैर पसारने में सुख है।

18. जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत
अथवा
सत्संगति

अंग्रेज़ी में एक कहावत है कि “A man is known by the company he keeps”. अर्थात् मनुष्य अपनी संगति से जाना जाता है। कबीर जी ने बुरी संगति को काजल की कोठरी से उपमा देते हुए कहा है कि इसमें कितना ही सयाना जाए उसे एक न एक काली लकीर अवश्य लग जाएगी। इसलिए उन्होंने साधु संगति पर बल दिया है। साधु संगति अर्थात् सत्संगति मनुष्य के स्वभाव को निर्मल ही नहीं बनाती बल्कि उसके कई दोष अथवा विकार भी दूर करती है। इसके अनुच्छेद लेखन विपरीत कोयले की दलाली में हमेशा मुँह काला ही होता है। मनुष्य को सबसे पहले संगति अपने माता-पिता की मिलती है। माता-पिता यदि सज्जन होंगे तो बच्चे का स्वभाव भी अच्छा होगा।

माता-पिता से ही बच्चे गालियाँ निकालना, सिगरेट-शराब आदि पीना, झूठ बोलना, चोरी करना जैसी बुरी आदतें सीखते हैं। व्यक्ति के सम्पर्क में दूसरा व्यक्ति मित्र आता है। मित्र यदि सच्चरित्र, लायक, प्रतिभावान होगा तो व्यक्ति विशेष भी चरित्रवान और प्रतिभावान होगा। इसके विपरीत यदि मित्रगण अच्छे नहीं हैं तो व्यक्ति बुरी आदतें जैसे नशा करना आदि सीखते हैं। कुसंगति वैसी ही है, जैसे एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है और सत्संगति वैसी ही है जैसे चन्दन का वृक्ष जो अपने आस-पास के वृक्षों को भी सुगन्धित बना देता है। सत्संगति के कारण ही ढाक का पत्ता राजा तक पहुँचने का गौरव प्राप्त करता है क्योंकि पान का बीड़ा उसी में बाँधा जाता है। अतः यह ठीक ही कहा गया है कि”जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत”।

19. बोए पेड़ बबूल के आम कहाँ ते होय

यदि कोई व्यक्ति काँटेदार वृक्ष बबूल को बो कर उस पर मीठे आम लगने की आशा करता है तो निश्चय ही वह मूर्ख है। जो बोया जाता है अन्त में उसे ही काटना पड़ता है। इस नियम में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। हिन्दू विश्वास के अनुसार व्यक्ति के कर्म फल को टाला नहीं जा सकता। जो व्यक्ति दूसरों को दुःखी करता है, कष्ट पहुँचाता है वह कैसे दूसरों से सुख की कामना कर सकता है। उसे तो जीवन में दुःख ही मिलेगा। हिरण्यकश्यप, रावण, कंस आदि ने सुख और महत्त्व पाने की आशा से बुरे कर्म किए, लोगों को सताया, वे लोग दूसरों से सुख की आशा रखते थे जो दुराशा ही सिद्ध हुई और उन्हें अपने बुरे कर्मों का फल भोगना भी पड़ा। दुर्योधन ने भी सुखों की आशा में अपने भाई पाण्डवों पर अत्याचार किए, उनके अधिकार छीने किन्तु अन्त में जैसी करनी वैसी भरनी वाली बात ही हुई, दुर्योधन युद्ध में पराजित ही नहीं हुआ अपने प्राणों से भी हाथ धो बैठा।

अंग्रेजों ने भी भारत पर अधिकार बनाए रखने के लिए लाठी, गोली का प्रयोग किया। निरपराध और निहत्थे लोगों की हत्याएँ की, परन्तु अंग्रेजों के इन अत्याचारों ने क्रांति की भावना को न केवल जन्म दिया बल्कि उसे भड़काया भी। परिणामस्वरूप अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा। इससे यह स्पष्ट है कि व्यक्ति के अच्छे कर्म का फल सदा अच्छा ही होता है। आम बो कर ही आम खाए जा सकते हैं। बबूल बोकर आमों की आशा करना असम्भव तो है ही प्रकृति के नियमों के विरुद्ध भी है।

20. परिवर्तन प्रकृति का नियम है
अथवा
सब दिन न होत एक समान

संसार परिवर्तनशील है। कुछ परिवर्तन हमें नज़र आते हैं, कुछ सूक्ष्म रूप से होते रहते हैं। जैसे फूलदान में रखे फूल, आज ताज़े हैं पर कल वे मुरझा जाएँगे। यह हुआ सामने नज़र आने वाला परिवर्तन। वह फूलदान जिस मेज़ पर रखा है उस मेज़ में होने वाले परिवर्तन सूक्ष्म होते हैं। कल जहाँ सुन्दर भवन था आज वहाँ खण्डहर नज़र आता है। कल का शिशु आज का युवक बन जाता है। आज का युवक कल बूढ़ा हो जाएगा। अत: यह कहा जा सकता है कि परिवर्तन का नाम ही संसार है। हमारा जीवन भी परिवर्तनशील है। उसमें सुख-दुःख आते-जाते रहते हैं। यदि सदा ही सुख या सदा ही दुःख रहें तो मनुष्य जीवन की इस एकरसता से ऊब जाएगा। पंत जी ने ठीक ही कहा है

जग पीड़ित है अति दुःख से,
जग पीड़ित रे अति सुख से।

सब दिन सदा एक समान नहीं रहते। रहीम जी ने ठीक ही कहा है “जब नीके दिन आइ हैं, बनत न लगि है देर।” अगर सभी के दिन एक जैसे रहते तो मनुष्य का जीवन आकर्षणहीन हो जाता। संसार में जहाँ सृजन है वहाँ संहार भी है। वही भारत जो एक दिन सोने की चिड़िया कहलाया करता था आज एक निर्धन देश कहलाता है। यह परिवर्तन की ही तो माया है। राजा हरिशचन्द्र को चाण्डाल का दास बनना पड़ा। भगवान् राम को चौदह बरस का बनवास हुआ। सीता जी का गर्भावस्था में परित्याग हुआ। यह सभी घटनाएँ परिवर्तन की सूचक हैं। यही परिवर्तन प्रकृति में सदा गतिशीलता बनाए रखता है।

21. अनुशासन

अपने ऊपर शासन करना अनुशासन है। अपने को वश में करना अनुशासन है। सत्ता, संस्था, समाज, वर्ग के नियमानुसार आचरण करना अनुशासन है। कुछ लोग माता-पिता और गुरुओं की आज्ञा का पालन करने को भी अनुशासन मानते हैं। नियमपूर्वक जीवन बिताना अर्थात् समय पर सोना, समय पर जागना, समय पर भोजन करना आदि नित्य कर्म करना भी अनुशासन में ही गिने जाते हैं। अनुशासन व्यक्ति के मन को निडर और निर्मल बनाता है। अनुशासन व्यक्ति के वचनों में मधुरता लाता है। अनुशासन में रहता हुआ व्यक्ति ही सत् कर्म करने की ओर प्रवृत्त होता है। उसके अन्तःकरण में दिव्य चेतना का प्रकाश होता है। आज देखने में आ रहा है कि समाज के प्रत्येक वर्ग में अनुशासनहीनता घर किए हुए है।

हमारी राय में इसके लिए सर्वप्रमुख उत्तरदायी माता-पिता हैं। क्योंकि वे आरम्भ में ही बच्चों को अनुशासन का प्रशिक्षण नहीं देते। अनुशासनहीनता का दूसरा बड़ा कारण हमारी शिक्षा प्रणाली है। आज की शिक्षा विद्यार्थी को निश्चित भविष्य का आश्वासन नहीं देती। अनिश्चित भविष्य होने के कारण युवा पीढ़ी में असन्तोष के साथसाथ अनुशासनहीनता भी बढ़ती जा रही है। अतः देश में अनुशासन की स्थापना के लिए शिक्षा व्यवस्था में नैतिक और चारित्रिक शिक्षा पर बल दिया जाना चाहिए। अनुशासित राष्ट्र विकास के पथ पर अग्रसर होगा। अनुशासित समाज सभ्यता और संस्कृति का उत्तम प्रतीक बनेगा।

22. कथनी से करनी भली

कहने का सम्बन्ध केवल जिह्वा से है। इसलिए यह कह देना बहुत आसान है, किन्तु जुबानी जमा खर्च से कुछ नहीं भरता जब तक उस कथन को क्रियात्मक रूप न दिया जाए। इसीलिए यह कहा जाता है कि कथनी से करनी भली। जो व्यक्ति केवल कहता है किन्तु आप उस बात का पालन नहीं करता उसका प्रभाव दूसरों पर कदापि नहीं पड़ सकता। दूसरों को गुड़ न खाने का उपदेश देने वाले के कथन का तभी प्रभाव होगा जब वह स्वयं गुड़ खाना छोड़ देगा। गाँधी जी प्रायः जिस बात का उपदेश दिया करते थे उसे वह अपनी जीवनचर्या के अंग के रूप में अपनाये होते थे। उन्होंने कताई का कोरा उपदेश ही नहीं दिया अपितु संध्या वंदना आदि की तरह ही उसे अपनी दैनिकचर्या का अंग बनाया।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण वाक्य विचार : वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

आजकल के साधु उपदेश देते समय प्राय: माया के मिथ्या होने की और उसके जाल में न फंसने की बात कहते हैं, किन्तु स्वयं बड़े-बड़े मठ और भवन बनाते हैं। गुरु गद्दी के लिए नित्य लड़ाई-झगड़े होने की बात आम है। क्या यह अच्छा होता यदि प्रत्येक साधु झोंपड़ी में रहकर जीवन बिताए और सेवा भाव को अपनाकर समाज कल्याण में जुट जाए। देश के दूसरे प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का उदाहरण हमारे सामने है जिन्होंने देश के लिए जो कहा वह कर भी दिखाया। कथनी और करनी में एकता के लिए मन, वचन, कर्म की एकाग्रता होनी जरूरी है। कहने से कर दिखाना कहीं श्रेष्ठ है।

23. निर्धनता एक अभिशाप है

धन सम्पत्ति का न होना ही निर्धनता है। यह मनुष्य जीवन के लिए एक भयानक अभिशाप है। भले ही यह कहा जाता है कि निर्धन व्यक्ति चैन से सोते हैं। किन्तु यह सत्य है कि निर्धनता भरा जीवन नरक के समान दुःखदायी होता है। निर्धन व्यक्ति का सारा जीवन रोटी, कपड़ा और मकान की दौड़-धूप में ही बीत जाता है। कड़ी मेहनत करने पर भी उसे भर-पेट रोटी नसीब नहीं होती। न तन ढाँपने को पूरे वस्त्र मिलते हैं और न ही सिर छुपाने के लिए कोई जगह। बीमारी की दशा में उनके पास दवाई तक खरीदने के पैसे नहीं होते। निर्धनता के कारण वे बच्चों का ठीक ढंग से पालन पोषण भी नहीं कर सकते। उनका भविष्य बनाने की बात तो दूर रही। अन्ततः निर्धनता ही बच्चों में चोरी की आदत डालती है अथवा अन्य अपराधों को जन्म देती है। निर्धनता एक ऐसा दुःख है, जिसको बटाने के लिए कोई आगे नहीं आता।

यहाँ तक कि उसके सगे-सम्बन्धी भी उससे मुँह फेर लेते हैं। निर्धन व्यक्ति न तो इस लोक को संवार सकता है न ही परलोक को। वह बेचारा तो अपनी मन की इच्छाओं को अपने मन में ही दबाए रखता है। कई बार निर्धनता अनुच्छेद लेखन व्यक्ति को आत्महत्या तक करने को विवश कर देती है। आंध्र प्रदेश का उदाहरण हमारे सामने है। वहाँ कितने ही किसानों ने निर्धनता से तंग आकर आत्महत्या कर ली है। कभी-कभी ऐसे समाचार भी सुनने में आते हैं कि निर्धनता से तंग आकर व्यक्ति ने अपने पूरे परिवार को समाप्त कर दिया। जो जीवन की सारी इच्छाओं का गला घोंट दे वह निर्धनता अभिशाप नहीं तो क्या है।

24. परिश्रम सफलता की कुंजी है

मनुष्य अपनी बुद्धि और परिश्रम द्वारा जो खजाना चाहे खोज ले और जहाँ तक चाहे उन्नति के शिखर पर पहुँच जाए। परिश्रम करना उसके अपने हाथ में है और सफलता रूपी देवी भी उसी के सामने प्रकट होती है जो परिश्रम करता है। एक साधारण किसान से लेकर बड़े-बड़े विज्ञान वेत्ताओं तक की सफलता का मूल कारण परिश्रम ही है। जो काम देखने में बड़े कठोर और भयंकर दिखाई देते हैं परिश्रम रूपी मंत्र उन्हें सरल बना देता है। यह एक ऐसी चमत्कारपूर्ण शक्ति है जिसके आगे असफलता का भूत टिक ही नहीं सकता। पूरे मनोयोग से किया हुआ परिश्रम मनुष्य को अपने ध्येय तक पहुँचा देता है। किसान के कठोर परिश्रम से ही धरती अनाज से भर जाती है। वैज्ञानिकों के कठोर परिश्रम के परिणामस्वरूप ही अनेक उपग्रह छोड़े जा चुके हैं। अन्तरिक्ष में मनुष्य की विजय वैज्ञानिकों के परिश्रम का ही परिणाम है। अपने परिश्रम द्वारा ही महान् वैज्ञानिक डॉक्टर ए० पी० जे० अब्दुल कलाम हमारे देश के राष्ट्रपति के पद पर आसीन हए थे। परिश्रम रूपी कुँजी को लेकर ही मनुष्य उन रहस्यों का ताला खोल सकता है जिनमें न जाने कितनी अमूल्य निधियाँ भरी पड़ी हैं। मनुष्य अपने जीवन का लक्ष्य पूरा करने में सफल तभी हो सकता है जब वह परिश्रम को अपने जीवन का मूल मन्त्र बना ले।

25. समय का सदुपयोग

समय सबसे मूल्यवान् वस्तु है। संसार की अन्य समस्त वस्तुएँ एक बार खो जाने पर पुनः प्रयास करके प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन एक बार जो समय गुजर गया उसे किसी भी स्थिति में दोबारा नहीं पाया जा सकता। ‘समय’ के बारे में विदेशी लेखकों व समीक्षकों ने अपने विचारों में कहा है-Time is precious’ ; “Time is gold.’ भारतीय मनीषियों ने समय की महत्ता को जानते हुए कहा है कि आज का काम कल पर मत छोड़ो।

“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में प्रलय होयगी बहुरि करेगा कब।”

कल किसने जाना है, किसने देखा है। जो है बस यही एक पल है। इतिहास साक्षी है कि संसार में जिन लोगों ने समय के महत्त्व को समझा वे जीवन में सफल रहे और जिन्होंने समय के पालन में जरा सी भी चूक की, समय ने उसे भी कहीं का नहीं रखा। पृथ्वीराज चौहान समय के मूल्य को न समझने के कारण ही गौरी से पराजित हुआ। नेपोलियन भी वाटरलू के युद्ध में पाँच मिनटों के महत्त्व को न समझ पाने के कारण पराजित हुआ। इसके विपरीत जर्मन के महान् दार्शनिक कांट, जो अपना जीवन समय के बंधन में बाँधकर कुछ इस तरह बिताते थे कि लोग उन्हें दफ्तर आते देखकर अपनी घड़ियाँ मिलाया करते थे।

आधुनिक जीवन में तो समय का महत्त्व
और भी बढ़ गया है। आज जीवन में दौड़-भाग और व्यस्तता इतनी अधिक हो गई है कि यदि हम समय के साथ-साथ कदम मिलाकर न चलें तो जीवन की दौड़ में अवश्य पीछे रह जाएंगे। समय की दौड़ के साथ हमारे कदम न मिले तो यही सुनने को मिलेगा

‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।’ ।
अत: आज के युग में सच्चे कर्मयोगी की यही पहचान है ‘वर्तमान पर नज़र रखो और हर पल का भरपूर प्रयोग करो।’ अतः जब तक सांस है तब तक समय का सदुपयोग करो।

26. मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना

इस संसार में अनेकों धर्म, सम्प्रदाय और पंथ प्रचलित हैं, किन्तु कोई भी धर्म एक-दूसरे से ईर्ष्या, द्वेष या वैर-भाव रखने का उपदेश नहीं देता। प्रत्येक धर्म आपसी भाईचारे और प्रेम सौहार्द का संदेश देता है। धर्म का आधार केवल मनुष्य को ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बताना भर है। आज मनुष्य ने अपनी बौद्धिक क्षमता से प्रकृति के समस्त रहस्यों को जान लिया है, आकाश की ऊँचाइयों को छू लिया है, लेकिन खेदजनक है कि इक्कीसवीं सदी में पदार्पण करके भी हम आज भी मजहब के नाम पर रक्त बहाने को तत्पर हैं। हमारी अभी भी यह मानसिकता नहीं बदली। आज भी हमने धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर कई दीवारें खड़ी कर रखी हैं।

यह जानते हुए भी कि ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’, हम छोटी-छोटी बातों में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। इसी साम्प्रदायिकता के विष के परिणामस्वरूप देश में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए जिनमें हज़ारों बेकसूर लोग आहत हुए। इससे भी खेदजनक है जब पढ़े-लिखे लोग ही यह घोषणा करते फिरें कि यह प्रान्त मेरा है, यह धर्म मेरा है, इस पर दूसरों का कोई हक नहीं। अरे चाहिए तो यह कि हम सब यह कहें, यह सोचें कि यह देश हमारा है, इसकी प्रगति कैसे करें। हम सब मानव ही बने रहें यही सबसे बड़ी बात होगी। सभी धर्म एक हैं। सभी मनुष्य समान हैं। सभी में उसी अव्वल अल्लाह का नूर बसता है। सभी धर्म ‘सरबत का भला’ चाहते हैं। भारतीय सभ्यता तो आरम्भ से ही ‘जीयो और जीने दो’ के सिद्धान्त को मानने वाली रही है। अतः हमें भारत देश के विकास के लिए धर्म, मजहब के बन्धनों से मुक्त होकर एक राष्ट्र का नागरिक बनना होगा।

27. व्यायाम के लाभ

महर्षि चरक के अनुसार शरीर की जो चेष्टा देह को स्थिर करने एवं उसका बल बढ़ाने वाली हो, उसे व्यायाम कहते हैं। महाकवि कालिदास ने भी कहा है ‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्’ अर्थात् धर्म का सर्वप्रथम साधन स्वस्थ शरीर है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं तो मन भी स्वस्थ नहीं रह सकता। मन स्वस्थ नहीं तो विचार भी स्वस्थ नहीं हो सकते। इसलिए शरीर को स्वस्थ रखना व्यक्ति का परम कर्त्तव्य है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम नितान्त आवश्यक है। पुराने समय में हमारे बड़े-बुजुर्गों ने हमारी दिनचर्या कुछ ऐसी निश्चित की थी कि जिससे हमारा व्यायाम भी नियमित होता रहे और हमें पता भी न चले। सूर्योदय से पहले उठना, सैर को जाना, कसरत करना, बग़ीचे की सैर करना, खुली हवा में विचरना ये सब क्रियाएँ हमारे शरीर को स्वस्थ रखने का ही उपाय था।

लेकिन आज भौतिक सुख लिप्सा में ग्रस्त मानव इन सब नियमों की तिलांजलि देकर दिन-रात केवल धन के चक्कर में अपना स्वास्थ्य बिगाड़ने पर उतारू है। उसे अपने स्वस्थ और निरोग शरीर की परवाह उतनी नहीं जितनी धन को बचाने और कमाने की है। आराम पसन्द व्यक्ति हर काम पैसे के बल पर बैठे-बैठे ही कर लेना चाहता है। सारा दिन कुर्सी पर बैठकर काम करने वाला व्यक्ति यदि कोई व्यायाम नहीं करेगा तो स्वयं ही बीमारियों को आमन्त्रण देने का काम करेगा। आज अधिकतर लोग मधुमेह, उच्च रक्तचाप, आदि अनेक बीमारियों से ग्रस्त हैं उनके पीछे मूल कारण ही अव्यवस्थित दिनचर्या और अपौष्टिक खान-पान है। मनीषियों के साथ-साथ अब तो डॉक्टर भी सबको स्वस्थ रहने के लिए प्रातः भ्रमण और व्यायाम करने की सलाह देने लगे हैं। नीरोग रहने के लिए वे भी व्यायाम को ही आवश्यक और अचूक औषधि मानने लगे हैं। अतः नीरोगी काया के लिए व्यायाम अपरिहार्य है।

28. संगठन में शक्ति है

कहते हैं अकेला चना भाड़ भी नहीं झोंक सकता। पानी की एक बूंद का भी कुछ महत्त्व नहीं होता। जब तक पानी की अनेक बँदें मिलकर धारा का रूप धारण नहीं करती तो वे बड़े-बड़े पर्वतों को काटकर भी अपने लिए रास्ता बना लेती हैं। पानी की एक बूंद असमर्थ और तुच्छ होती है और यही बूंद मिलकर जब सागर बन जाती है तो वह शक्तिशाली बन जाती है। उसकी एक लहर बड़े-बड़े जहाजों को डूबोने की शक्ति रखती है। सागर की लहरें तटवर्ती नगरों को पल भर में वीरान बना सकती हैं। व्यक्ति अकेला एक कण की तरह है और उसका संगठित रूप सागर की शक्ति का रूप धारण कर लेता है। एक अकेला होता है दो ग्यारह होते हैं। भारतवासियों की संगठन शक्ति का ही यह परिणाम था कि उन्होंने शक्तिशाली अंग्रेज़ को देश छोड़ने पर विवश कर दिया। रूस में भी मज़दूर और किसान संगठन द्वारा ही ज़ार के राज्य को पलटने में समर्थ हो गए।

आज भी हम देखते हैं कि जिन मजदूरों या कर्मचारियों का मज़बूत संगठन होता है वे अपनी माँगें तुरन्त मनवा लेते हैं। जाल में बँधे हुए कबूतरों ने अपनी संगठित शक्ति द्वारा ही अपनी जान बचाई थी। अकेली लकड़ी को हर कोई तोड़ सकता है, किन्तु लकड़ियों के गढे को तोड़ना मुश्किल ही नहीं असम्भव भी है। अत: यह निश्चित ही है कि अकेला व्यक्ति चाहे कितना भी बुद्धिमान, धनवान्, शक्तिमान क्यों न हो वह संगठन के बिना सफल नहीं हो सकता क्योंकि संगठन में ही शक्ति है।

29. जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है

ज़िन्दादिली से जिया गया जीवन अल्पकालीन भले ही हो किन्तु आदर्श जीवन होता है। बंदा वैरागी से जब बादशाह ने पूछा कि बोल तुझे कैसी मौत चाहिए तो उसने निर्भीकता से बादशाह को गीता का ज्ञान सुनाते हुए कहा, तू कौन होता है मुझे पूछने वाला ? मेरा शरीर भले ही नाशवान है पर आत्मा अमर है। मैं मरकर भी नहीं मरूँगा। महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवा जी महाराज जितनी देर तक जीवित रहे ज़िन्दादिली से जिए। उन्होंने मुग़लों की अधीनता स्वीकार नहीं की। गुरु गोबिन्द सिंह जी के दोनों साहबजादों ने भी जिन्दादिली दिखाई। दीवारों में चुना जाना तो स्वीकार किया पर झुकना नहीं। ऐसी ही ज़िन्दादिली बाल हकीकत राय ने भी दिखाई। वे लोग अमर हो गए।

मरकर भी वे मरे नहीं। वे मृत्यु से भयभीत नहीं हुए। मृत्यु पर जैसे उन्होंने विजय पा ली हो। इसके विपरीत जो लोग मुर्दादिल होते हैं उनका जीवन पशुओं के समान व्यतीत होता है। जीवित रहकर भी वे मरे हुओं के समान होते हैं। उनका जीवन लोहार की धौंकनी की तरह होता है जो साँस लेती हुई भी मुर्दा होती है। आज की महानगरीय सभ्यता ने मनुष्य को मुर्दादिल बना दिया है। उसका हृदय संवेदना शून्य हो गया है। उसे हरदम अपने स्वार्थ साधन की चिन्ता होती है। वे समाज के लिए कोई आदर्श स्थापित नहीं कर पाते। जबकि जिन्दादिल मनुष्य जो कुछ भी कर जाता है वह आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श बन जाता है। मृत्यु तो एक दिन सबको आनी है लेकिन जब तक जिओ ज़िन्दादिली से जिओ जीवन का वास्तविक आनन्द इसी में है।

30. आँखों देखा हॉकी मैच

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं। परन्तु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सब से आगे रहा, किन्तु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यन्त रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला। यह मैच नामधारी एकादश और रोपड़ हॉक्स की टीमों के बीच रोपड़ के खेल परिसर में खेला गया। दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए पंजाब भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के कुछ खिलाड़ी भाग ले रहे थे। रोपड़ हॉक्स की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने नामधारी एकादश को मैच के आरम्भिक दस मिनटों में दबाए रखा उसके फारवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किये। परन्तु नामधारी एकादश का गोलकीपर बहुत चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। तब नामधारी एकादश ने तेजी पकड़ी और देखते ही देखते रोपड़ हॉक्स के विरुद्ध एक गोल दाग दिया।

गोल होने पर रोपड़ हॉक्स की टीम ने भी एक जुट होकर दो-तीन बार नामधारी एकादश पर कड़े आक्रमण किये, परन्तु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा। इसी बीच रोपड़ हॉक्स को दो पनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। नामधारी एकादश ने कई अच्छे मूव बनाये उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था। इसी बीच नामधारी एकादश को भी एक पनल्टी कार्नर मिला जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी हताश हो गये। रोपड़ के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए। मध्यान्तर के समय नामधारी एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यान्तर के बाद खेल बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ। रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दायें कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर नामधारी एकल पर एक गोल कर दिया। इस गोल से रोपड़ हॉक्स के जोश में ज़बरदस्त वृद्धि हो गयी। उन्होंने अगले पांच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी के मारे नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने अपने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनन्द आ गया।

31. परीक्षा शुरू होने से पहले

वैसे तो हर मनुष्य परीक्षा से घबराता है, किन्त विद्यार्थी इससे विशेष रूप से घबराता है। परीक्षा में पास होना ज़रूरी है नहीं तो जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाएगा। अपने साथियों से बिछड़ जाएंगे। ऐसी चिन्ताएं हर विद्यार्थी को रहती हैं। परीक्षा शुरू होने से पूर्व जब मैं परीक्षा भवन पहुँचा तो मेरा दिल धक-धक् कर रहा था। परीक्षा शुरू होने से आधा घंटा पहले मैं वहां पहुंच गया था। मैं सोच रहा था कि सारी रात जाग कर जो प्रश्न तैयार किए हैं यदि वे प्रश्नपत्र में न आए तो मेरा क्या होगा ? इसी चिंता में अपने सहपाठियों से खुलकर बात नहीं कर रहा था। परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य बड़ा विचित्र था। परीक्षा देने आए कुछ विद्यार्थी बिल्कुल बेफिक्र लग रहे थे। वे आपस में ठहाके मारमार कर बातें कर रहे थे। कुछ ऐसे भी विद्यार्थी थे जो अभी तक किताबों या नोट्स से चिपके हुए थे। कुछ विद्यार्थी आपस में नकल करने के तरीकों पर विचार कर रहे थे।

मैं अकेला ऐसा विद्यार्थी था जो अपने साथ घर से कोई किताब या सहायक पुस्तक नहीं लाया था। क्योंकि मेरे पिता जी कहा करते हैं कि परीक्षा के दिन से पहले की रात को ज्यादा पढ़ना नहीं चाहिए। सारे साल का पढ़ा हुआ भूल नहीं जाता, यदि आप ने कक्षा में अध्यापक को ध्यान से सुना हो। वे परीक्षा के दिन से पूर्व की रात को जल्दी सोने की भी सलाह देते हैं ताकि सवेरे उठकर विद्यार्थी ताज़ा दम होकर परीक्षा देने जाए न कि थका-थका महसूस करे। परीक्षा भवन के बाहर लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ अधिक खुश नज़र आ रही थीं। उनके खिले चेहरे देखकर ऐसा लगता था मानो परीक्षा के भूत का उन्हें कोई डर नहीं। उन्हें अपनी स्मरण शक्ति पर पूरा भरोसा था।

इसी आत्मविश्वास के कारण तो लड़कियां हर परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करती हैं। दूसरे, लड़कियाँ कक्षा में दत्तचित्त होकर अध्यापक का भाषण सुनती हैं जबकि लड़के शरारतें करते रहते हैं। थोड़ी देर में घंटी बजी। यह घंटी परीक्षा भवन में प्रवेश की घंटी थी । इसी घंटी को सुनकर सभी ने परीक्षा भवन की ओर जाना शुरू कर दिया। हंसते हुए चेहरों पर भी अब गम्भीरता आ गई थी। परीक्षा भवन के बाहर अपना रोल नं० और सीट नं० देखकर मैं परीक्षा भवन में दाखिल हुआ और अपनी सीट पर जाकर बैठ गया। कुछ विद्यार्थी अब भी शरारतें कर रहे थे। मैं मौन हो धड़कते दिल से प्रश्न-पत्र बंटने की प्रतीक्षा करने लगा।

32. नशाबन्दी

भारत में नशीली वस्तुओं का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। विशेषकर हमारी युवा पीढ़ी इस लत की अधिक शिकार हो रही है। यह चिन्ता का कारण है। उपन्यास सम्राट् प्रेमचन्द जी ने कहा था कि जिस देश में करोड़ों लोग भूखों मरते हों वहां शराब पीना, गरीबों का रक्त पीने के बराबर है। किन्तु शराब ही नहीं अन्य नशीले पदार्थों के सेवन का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। कोई भी खुशी का मौका हो शराब पीने पिलाने के बिना वह अवसर सफल नहीं माना जाता। होटलों, क्लबों में खुले आम शराब पी-पिलाई जाती है। पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए। शराब को दारू अर्थात् दवाई भी कहा जाता है किन्तु कौन ऐसा है जो इसे दवाई की तरह पीता है। यहाँ तो बोतलों की बोतलें चढ़ाई जाती हैं। शराब महंगी होने के कारण नकली शराब का धन्धा भी फल-फूल रहा है। इस नकली शराब के कारण कितने लोगों को जान गंवानी पड़ी है। यह हर कोई जानता है कितने ही राज्यों की सरकारों ने सम्पूर्ण नशाबन्दी लागू करने का प्रयास किया।

किन्तु वे असफल रहीं। ऐसा उदाहरण हरियाणा का लिया जा सकता है। कितने ही होटल बन्द हो गए और नकली शराब बनाने वालों की चांदी हो गई। विवश होकर सरकार को नशाबन्दी समाप्त करनी पड़ी। पंजाब में भी टेकचन्द कमेटी ने नशाबन्दी लागू करने का बारह सूत्री कार्यक्रम दिया था। किन्तु जो सरकार शराब की बिक्री से करोड़ों रुपए कमाती हो, वह इसे कैसे लागू कर सकती है। आप शायद हैरान होंगे कि पंजाब में शराब की खपत देश भर में सब से अधिक है, किसी ने ठीक ही कहा है बुरी कोई भी आदत हो वह आसानी से नहीं जाती। किन्तु सरकार यदि दृढ़ निश्चय कर ले तो क्या नहीं हो सकता। सरकार को ही नहीं जनता को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि नशा अनेक झगड़ों को ही जन्म नहीं देता बल्कि वह नशा करने वाले के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। ज़रूरत है जनता में जागरूकता पैदा करने की। नशाबन्दी राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है। शराब की बोतलों पर चेतावनी लिखने से काम न चलेगा, कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।

PSEB 11th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Hindi रचना पत्र-लेखन Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

(क) पत्र-लेखन

पत्र लिखना भी एक कला है। जिस प्रकार संगीत, नृत्य इत्यादि के लिए अभ्यास की आवश्यकता है, उसी प्रकार पत्र लिखने के अभ्यास से ही अच्छा पत्र लिखा जा सकता है। एक विद्वान् ने कहा है जिस प्रकार कुंजी बक्स खोलने में सहायक होती है उसी प्रकार पत्र भी हृदय के अनेक द्वारों को खोलने में सहायक होते हैं। मनुष्य अपनी अनुभूतियों को पत्र द्वारा ही अभिव्यक्त (प्रकट) कर सकता है। यह दो व्यक्तियों के बीच हृदय सम्बन्धों को दृढ़ बनाने में सहायक होता है। अतः पत्र का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है। इसका अनुभव आप इसी एक बात से लगा सकते हैं कि आज बहुत-से उपन्यास भी पत्र-शैली में लिखे जाने लगे हैं। उदाहरणस्वरूप, आप हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार श्री उग्र जी का “चन्द हसीनों के खतूत” उपन्यास देख सकते हैं। पत्र में जितनी स्वाभाविकता होगी, वह उतना ही प्रभावशाली होगा। एक अच्छे पत्र से लेखक की भावनाएं ही व्यक्त नहीं होतीं, बल्कि उससे उसका व्यक्तित्व भी उभर कर सामने आता है।

अच्छे पत्र के गुण

अच्छे पत्र में निम्नलिखित गुण होने चाहिएँ

1. सरल भाषा-शैली:
पत्र में साधारणतः सरल और बोल-चाल की भाषा होनी चाहिए। शब्द बड़ी सावधानी से प्रयोग में लाए जाएं। थोड़े-से बहुत कहने की रीति को अपनाया गया हो। बात सीधे-साधे ढंग से कही जाए। घुमा-फिरा कर लिखने से पत्र की शोभा बिगड़ जाती है।

2. संक्षेप विवरण:
पत्र में व्यर्थ की व्याख्या नहीं होनी चाहिए। जितनी बात प्रश्न में पूछी गई है, उसकी व्याख्या करनी चाहिए। इधर-उधर की हांकने से पत्र में दोष आ जाता है। पत्र को पढ़ने वाले के दिमाग में सारी बात स्पष्ट हो जानी चाहिए, यह न हो कि वह किसी प्रकार की उलझन में फँसा रहे।

3. प्रभावोत्पादक:
पत्र ऐसा होना चाहिए कि जिसको पढ़कर पढ़ने वाले पर प्रभाव पड़े। इसके लिए उसे पत्र के आरम्भ और अन्त को ध्यानपूर्वक लिखना चाहिए। इसके लिए पत्र लिखने के नियमों का पूरा पालन किया गया हो।

पत्रों के प्रकार:
मुख्यतः पत्र दो तरह के होते हैं

  1. अनौपचारिक पत्र
  2. औपचारिक पत्र।

1.अनौपचारिक पत्र-ऐसे पत्रों में निजी या पारिवारिक पत्र आते हैं। इन पत्रों को लिखते समय व्यक्ति को खुली छूट होती है कि वह जैसा चाहे पत्र लिख सकता है। ऐसे पत्र प्रायः अपने परिवार के सदस्यों-भाई, बहन, माता-पिता आदि तथा मित्रों को लिखे जाते हैं। ऐसे पत्रों का विषय प्रायः व्यक्तिगत होता है। कभी-कभी ऐसे पत्रों में उपदेश या सलाह भी दी जाती है। बधाई पत्र, शोक पत्र तथा सांत्वना पत्र भी इसी कोटि में आते हैं।

2. औपचारिक पत्र-निजी या पारिवारिक पत्रों को छोड़कर हम जितने भी पत्र लिखते हैं, वे सब औपचारिक पत्र होते हैं। ऐसे पत्र प्रायः उन लोगों को लिखे जाते हैं जिनसे हमारा व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं होता।
औपचारिक पत्रों के प्रकारऔपचारिक पत्र कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे

1. प्रशासनिक पत्र या अधिकारियों को पत्र-ऐसे पत्र उच्च अधिकारियों या शासकीय अधिकारियों को लिखे जाते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं
(क) आवेदन-पत्र
(ख) अधिकारियों को शिकायत सम्बन्धी पत्र
(ग) अधिकारियों या समाचार-पत्र के सम्पादक को सुझाव सम्बन्धी पत्र।

2. कार्यालयी पत्र:
ऐसे पत्र प्रायः एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय को लिखे जाते हैं। राज्य सरकार अपने अधीनस्थ कार्यालयों या केन्द्र सरकार को ऐसे पत्र लिखती है। केन्द्र सरकार के कार्यालय भी जो पत्र राज्य सरकारों या अपने कार्यालय के अधिकारियों को लिखते हैं वे भी इसी कोटि में आते हैं।

3. व्यावहारिक पत्र:
ऐसे पत्र किसी व्यापारिक संस्थान द्वारा अथवा किसी व्यापारिक संस्थान को उपभोक्ता या ग्राहक द्वारा लिखे जाते हैं।

ध्यान रहे कि औपचारिक पत्रों की भाषा नियमबद्ध और परम्परागत होती है। ऐसे पत्र अति संक्षिप्त होते हैं। पारिवारिक पत्र लिखते समय ध्यान में रखने योग्य बातें पारिवारिक या व्यक्तिगत पत्र लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है

(1) लिखने की शैली उत्तम हो अर्थात् पत्र में उचित स्थान पर ठीक शब्दों का प्रयोग किया जाए जिससे पढ़ने वाले को पत्र में लिखी बातें आसानी से समझ में आ जाएं।
(2) पत्र की भाषा सरल होनी चाहिए। मुश्किल शब्दों का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए।
(3) पत्र संक्षिप्त होना चाहिए। (4) पत्र में छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।
(5) पत्र में केवल प्रसंग की ही बात लिखनी चाहिए। कहानियां लिखने नहीं लग जाना चाहिए।

पारिवारिक पत्र के अंग

पारिवारिक पत्र लिखते समय पत्र के निम्नलिखित अंगों पर विशेष ध्यान देना चाहिए

1. पत्र का आरम्भ:
पत्र के आरम्भ में सबसे ऊपर दाहिनी ओर पत्र लिखने वाले का अपना पता लिखना चाहिए। पते के नीचे तिथि भी लिखनी चाहिए। जिस पंक्ति में तिथि लिखो जाए उससे अगली पंक्ति में पत्र के बायीं ओर हाशिया छोड़ कर जिसे पत्र लिखा जा रहा है उसे यथा विधि सम्बोधन करना चाहिए। आगे सम्बोधन शब्द अलग से दिये गये हैं। सम्बोधन से अगली पंक्ति में ऊपर की पंक्ति से कुछ अधिक स्थान छोड़कर अभिवादन सूचक लगाना चाहिए।

2. पत्र का कलेवर:
पत्र का कलेवर बहुत बड़ा नहीं चाहिए। पत्र में हर विचार अलग-अलग पैरा में लिखना चाहिए।

3. पत्र का अन्त:
पत्र समाप्त होने पर लिखने वाले को पत्र के अन्त में दायीं ओर अपना नाम, पारिवारिक सम्बन्ध का स्वनिर्देश भी लिखना चाहिए।

पत्र के आरम्भ तथा अन्त में लिखने वाली
कुछ याद रखने वाली बातें

पत्र लिखने वाला जिसे पत्र लिखता है उसके पारिवारिक सम्बन्ध के अनुसार पत्र में सम्बोधन, अभिवादन और स्वनिर्देश में परिवर्तन हो जाता है, जैसे-नीचे दिये ब्योरे में दिया गया है

1. अपने से बड़ों को-जैसे माता, पिता, बड़ा भाई, बड़ी बहन, चाचा, अध्यापक, गुरु आदि।
सम्बोधन-पूज्य, पूजनीय, परमपूज्य, आदरणीय,
अभिवादन-प्रणाम, नमस्कार, नमस्ते, सादर प्रणाम
स्वनिर्देश-आपका आज्ञाकारी, आपका स्नेह पात्र, आपका प्रिय भाई, आपका प्रिय भतीजा, आपका प्रिय शिष्य

याद रखिए

स्त्री सम्बन्धी या परिचितों के लिए भी ‘पूज्य’ और ‘आदरणीय’ सम्बोधन का प्रयोग होगा। जैसे पूज्य माता जी, आदरणीय मुख्याध्यापिका जी आदि। ‘पूज्य’ या ‘आदरणीया’ का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

2. अपने से छोटों को – जैसे छोटा भाई, मित्र आदि।
सम्बोधन – प्रिय, प्रियवर, चिंरजीव, प्यारे।।
अभिवादन – खुश रहो, शुभाशीष, शुभाशीर्वाद, स्नेह भरा प्यार, प्यार।
स्वनिर्देश – तुम्हारा शुभचिन्तक, शुभाभिलाषी, हितचिन्तक।

3. मित्रों को या हम उमर को

सम्बोधन – प्रिय भाई, प्रिय दोस्त (मित्र का नाम), प्रियवर, बन्धुवर, प्रिय बहन, प्रिय सखी, प्रिय-(सखी का नाम)
अभिवादन – नमस्ते, जयहिन्द, सप्रेम नमस्ते, मधुर स्मरण, स्नेह भरा नमस्ते, प्यार।
स्वनिर्देश – तुम्हारा मित्र, तुम्हारा स्नेही मित्र, तुम्हारा दोस्त, तुम्हारी सखी, तुम्हारी स्नेह पात्र, तुम्हारी अपनी, तुम्हारी अभिन्न सखी।

पत्र शुरू किन वाक्यों से करना चाहिए

  1. आपका कृपा पत्र प्राप्त हुआ। धन्यवाद।
  2. तुम्हारा हिन्दी में लिखा पत्र मिला। पढ़कर बड़ी खुशी हुई।
  3. आपका कुशल समाचार बड़ी देर से नहीं मिला। क्या बात है ?
  4. आपका पत्र पाकर कृतज्ञ हूँ।
  5. आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि.
  6. यह जानकर हार्दिक हर्ष हुआ कि………
  7. खेद के साथ लिखना पड़ता है कि….
  8. यह जानकर अत्यन्त दुःख हुआ कि..
  9. आपको एक कष्ट देना चाहता हूं, आशा है कि आप क्षमा करेंगे।
  10. एक प्रार्थना है, आशा है आप उस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे।

ध्यान रखें:
आजकल पत्र का आरम्भ ऐसे वाक्यों में नहीं किया जाता
‘हम यहां पर कुशलपूर्वक हैं आपकी कुशलता श्री भगवान् से शुभ चाहते हैं।’ यह फैशन पुराना हो गया है। अतः सीधे वर्ण्य विषय का आरम्भ कर देना चाहिए।

पत्र समाप्त करने के लिए वाक्य

  1. कृपया पत्र का उत्तर शीघ्र देने का कष्ट करें।
  2. पत्र का उत्तर शीघ्र दें/लौटती डाक से दें।
  3. भेंट होने पर और बातचीत होगी।
  4. कभी-कभी पत्र लिखते रहा करें।
  5. तुम्हारे पत्र का इंतज़ार रहेगा।
  6. यहां सब कुशल हैं। माँ-पिता की ओर से ढेर सारा प्यार।
  7. अपने पूज्य पिता जी तथा माता जी को मेरा प्रणाम/नमस्ते कहिए।
  8. आपके उत्तर की प्रतीक्षा में हूं।
  9. सब मित्रों को मेरी ओर से नमस्ते कहना।
  10.  इसके लिए मैं सदा आपका आभारी रहूंगा।

प्रशासकीय या अधिकारियों को लिखे जाने वाले पत्र में ध्यान रखने वाली बातें

ऐसे पत्र शासकीय काम-काज से सम्बन्धित होते हैं। कभी-कभी ऐसे पत्र आम आदमी भी लिखता है, जैसे-आवेदन पत्र या उच्च अधिकारियों को की जाने वाली शिकायत सम्बन्धी। ऐसे पत्रों में पत्र लिखने वाला कोई प्रार्थना या शिकायत अथवा सुझाव प्रस्तुत करता है। याद रखिए अधिकारियों को शिकायत भी प्रार्थना के रूप में ही की जानी चाहिए।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

अधिकारियों को लिखे जाने वाले औपचारिक पत्र के अंग
उच्च अधिकारियों को लिखे जाने वाले पत्र के निम्नलिखित अंग होते हैं

  1. शीर्षक
  2. पत्र संख्या एवं दिनांक
  3. प्रेषित का नाम और पता
  4. विषय
  5. सन्दर्भ
  6. सम्बोधन
  7. पत्र का मूल भाग
  8. प्रशंसात्मक अन्त
  9. स्वनिर्देश एवं हस्ताक्षर
  10. प्रेषक का नाम और पता

औपचारिक पत्र लिखते समय ध्यान में रखने योग्य बातें

1. पत्र का आरम्भ:
औपचारिक पत्र लिखते समय सब से पहले पत्र के बायें कौने में हाशिये के साथ सेवा में, लिखना चाहिए। उसके बाद कुछ जगह छोड़ कर दूसरी पंक्ति में जिस अधिकारी को पत्र लिखा जाना है उसका पदनाम, फिर उससे अगली पंक्ति में उसका पता लिखना चाहिए।
औपचारिक पत्र पदनाम से ही लिखने चाहिएँ। उसके बाद जहां आपने सेवा में लिखा है उसके ठीक नीचे विषय शब्द लिख कर (:) विराम चिह्न लगाना चाहिएइसी पंक्ति में जहां से आपने अधिकारी का पदनाम लिखा है उसके ठीक नीचे पत्र का विषय लिखना चाहिए।
औपचारिक पत्रों में अभिवादन शब्द अनौपचारिक पत्रों के समान अलग-अलग नहीं होता बल्कि सब पत्रों में एक-जैसा ही होता है, जैसे–महोदय, प्रिय महोदय।

2. पत्र का मूल भाग:
पत्र में जहाँ से आपने अधिकारी का पदनाम लिखा है उसके ठीक नीचे से सम्बोधन सूचक शब्द के बाद वाली पंक्ति में-पत्र लिखना आरम्भ करना है। पत्र की दूसरी पंक्ति आप ने वहां से शुरू करनी है जहाँ से आप ने सेवा में लिखा था। पत्र में पहले अनुच्छेद को क्रम नहीं दिया जाता। उसके बाद के अनुच्छेदों में 2, 3, 4 क्रम दिया जा सकता है।

औपचारिक पत्र लिखने की एक खास विधि होती है जिसका ध्यान रखना ज़रूरी है। ऐसे पत्र बहुत लम्बे नहीं होते। मतलब की बात कम-से-कम शब्दों में लिखनी चाहिए। भाषा में भी औपचारिकता बरतनी चाहिए।

3. प्रशंसात्मक अन्त:
अनौपचारिक पत्र यदि आम आदमी की तरफ से-जो स्वयं अधिकारी नहीं है-लिखा जाता है तो पत्र के मूल भाग के प्रशंसात्मक शब्द लिख कर समाप्त करना चाहिए। यह प्रशंसात्मक शब्द नयी पंक्ति में लिखना चाहिए। सभी ऐसे पत्रों में प्रशंसात्मक शब्द समान होता है, जैसे-‘धन्यवाद सहित’।

4. समाप्ति निर्देश:
औपचारिक पत्रों में समाप्ति निर्देश आपका आज्ञाकारी या भवदीय लिख कर नीचे पत्र भेजने वाला अपना हस्ताक्षर करता है तथा अपना पूरा पता लिखता है।
ऐसा पत्र की बायीं ओर लिखा जाता है। नीचे आपकी जानकारी के लिए अनौपचारिक तथा औपचारिक पत्रों की रूपरेखा दी जा रही है।

अनौपचारिक (पारिवारिक या सामाजिक) पत्र की रूपरेखा

अपने से बड़ों को पत्र-पिता को पत्र

18-लाजपतराय नगर,
जी० टी० रोड,
जालन्धर।
दिसम्बर, 18…
पूज्य पिता जी,
सादर प्रणाम।
आपका कृपा पत्र मिला, समाचार ज्ञात हुआ। निवेदन है कि……………………………………..
…………………………………………………………………….
……………………………………………………………………
………………………………………………………………………
पूज्य माता जी को मेरा प्रमाण कहना।
आपका आज्ञाकारी पुत्र
…………………………..
……………………………

प्रशासनिक पत्र की रूपरेखा

उच्च अधिकारियों को लिखा जाने वाला पत्र
सेवा में
कलक्टर,
ज़िला…………………………………..
पंजाब।
विषय:
लाऊडस्पीकर के प्रयोग पर पाबन्दी लगाये जाने बारे।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि…………………………………………
2. ………………………………………..
3…………………………………………
धन्यवाद सहित,
आपका विश्वासी
(हस्ताक्षर)
नाम-पता……………………………
………………………….
दिनांक ……………………….

विशेष रूप से ध्यान देने योग्य बातें

ऊपर दी गई रूप-रेखा के अनुसार ही पत्र लिखने चाहिएँ, चाहे वे व्यक्तिगत पत्र हों या प्रशासनिक (प्रार्थना-पत्र आदि)। प्रायः देखने में आता है कि लोग इन नियमों का पालन नहीं करते हैं। हालांकि इस छोटी-सी बात को दफ्तरों का साधारण कर्मचारी जानता है। वह ऊपर दिये गये नियमों के अनुसार ही पत्र लिखता अथवा टाइप करता है। आगे चलकर इन नियमों का पालन करते हुए लिखे गये पत्र को ही अच्छे अंक दिये जाते हैं। आशा है आप पत्र लिखते समय इन नियमों का पूरी तरह पालन करेंगे।

1. कुकिंग गैस की अनियमित आपूर्ति की शिकायत।
सेवा में
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति अधिकारी
रामनगर,
जालन्धर।
विषय-कुकिंग गैस की अनियमित आपूर्ति बारे।
महोदय,
इस पत्र के द्वारा मैं आप का ध्यान नगर की एकमात्र कुकिंग गैस वितरण की ऐजेंसी द्वारा कुकिंग गैस की अनियमित आपूर्ति की ओर दिलाना चाहता हूँ।
महोदय, उपर्युक्त ऐजेंसी ने गैस के कनक्शन देते समय सभी उपभोक्ताओं को भरोसा दिलाया था कि गैस बुक करवाने के एक सप्ताह के भीतर कुकिंग गैस उपभोक्ता के घर पर पहुंचा दी जाएगी। भारतीय तेल कम्पनी ने भी ऐसी ही सुविधा की घोषणा कर रखी है, किन्तु खेद के साथ कहना पड़ता है कि ऊपरिलिखित गैस एजेंसी के मालिक बार-बार याद दिलाने पर भी गैस की आपूर्ति में दो से तीन सप्ताह का समय लगाते हैं। कुकिंग गैस के उपभोक्ताओं को कितना कष्ट झेलना पड़ता है, इसका आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं।

आप से प्रार्थना है कि आप समय-समय पर उक्त गैस ऐजेंसी का निरीक्षण करें और गैस की आपूर्ति को नियमित करने के आवश्यक निर्देश जारी करें। सुनने में आया है कि ऐजेंसी के मालिक गैस ब्लैक में बेचते हैं, भले ही हमारे पास इसका कोई प्रमाण नहीं है, किन्तु यदि आप नियमित रूप से इस गैस एजेंसी के स्टॉक और वितरण प्रणाली का निरीक्षण करते रहेंगे तो गैस की ब्लैक रुक जाएगी।

हम आशा करते हैं कि नगर निवासियों को पेश आने वाली असुविधाओं को ध्यान में रखते हुए आप इस दिशा में तुरन्त व उचित कार्रवाई करेंगे। हम आपके आभारी होंगे।

धन्यवाद सहित,
आपका विश्वासी,
(सुजान सिंह कालरा)
512-नेहरू नगर,
जालन्धर शहर।
दिनांक 2 जनवरी, 20…..

2. किसी समाचार पत्र के सम्पादक को केबल नेटवर्क एवं वीडियो खेलों के दुष्परिणामों के बारे में।
113, कर्णपुरी,
मोहाली।
5 जनवरी, 20….
सेवा में
सम्पादक,
दैनिक जागरण
चंडीगढ़।
विषय : केबल नेटवर्क एवं वीडियो खेलों के दुष्परिणामों के बारे।
महोदय,
मैं आपके लोकप्रिय दैनिक की नियमित पाठिका हूँ। आपके समाचार-पत्र के माध्यम से मैं केबल नेटवर्क एवं वीडियो गेम्स के दुष्परिणामों से आपके पाठकों को अवगत करवाना चाहती हूँ।
भवदीय
मारिया
आशा है आप मेरे इन विचारों को अपने पत्र में प्रकाशित करके मुझे अनुगृहीत करेंगे। इस लेख में आपको उचित संशोधन करने की पूरी छूट है।

आज का युग विज्ञान का युग होने के कारण नए-नए आविष्कार हो रहे हैं। इसी कारण देश के कोने-कोने में सुखसुविधाओं के अनेक साधन उपलब्ध हैं, किन्तु जब से दूरदर्शन पर केबल नेटवर्क का प्रसारण शुरू हुआ है शहरों के साथसाथ गाँव भी इसकी लपेट में आते जा रहे हैं। भले ही दूरदर्शन का प्रसार हमारे राष्ट्र की उन्नति का प्रतीक है परन्तु केबल नेटवर्क पर जो विदेशी चैनलों द्वारा जो अश्लील कार्यक्रम दिखाये जा रहे हैं उनका बुरा असर हमारी सभ्यता और संस्कृति पर भी हो रहा है।

इन कार्यक्रमों का सब से बुरा असर छोटे बच्चों पर हो रहा है, क्योंकि छोटे बच्चों पर बुरी बातों का जल्दी असर होता है। बच्चे अधिकतर अपने टी० वी० सैट के सामने बैठे रहते हैं। पढ़ाई की तरफ ध्यान देना तो दूर की बात वे खेलों की ओर भी ध्यान नहीं देते। अधिक देर तक टी० वी० सैट के सामने बैठने पर वे अनेक रोगों का शिकार हो रहे हैं। जिन में उनकी नेत्र ज्योति कमजोर होना सब से बड़ी बीमारी है। सोने पर सुहागा वीडियो गेम्स ने किया है। छोटे बच्चे घंटों तक इस खेल में मस्त रहते हैं।

हमारे यहाँ लगभग 40 चैनलों पर कार्यक्रम दिखाये जाते हैं जिस में ‘एफ’ चैनल जैसे चैनल तो फैशन-परेड ही दिखाते हैं। नग्न, अर्धनग्न लड़कियों को देख कर शहरों के ही नहीं, गाँवों के लड़के-लड़कियां भी बिगड़ने लगे हैं। इस दिशा में सरकार कुछ नहीं कर सकती। जो कुछ करना है हमें ही करना है। यदि हम यह प्रतिज्ञा कर लें कि अपने घरों में ऐसे गन्दे, बेहूदा कार्यक्रम नहीं देखेंगे तो समाज और देश का भला हो सकता है।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

3. निदेशक, शिक्षा निदेशालय को बोर्ड की वार्षिक परीक्षा के दौरान परीक्षा भवन में हो रही नकल की शिकायत करते हुए।
108, संत नगर
अमृतसर।
सेवा में
निदेशक,
शिक्षा निदेशालय,
चण्डीगढ़।

विषय:
परीक्षा भवन में नकल होने बारे। महोदय,

मैं इस पत्र द्वारा आपका ध्यान बोर्ड की वार्षिक परीक्षाओं के दौरान अपने क्षेत्र के उच्च माध्यमिक विद्यालय में हो रही नकल की ओर दिलाना चाहता हूँ। महोदय, आज वार्षिक परीक्षा शुरू हुए मात्र तीन ही दिन हुए हैं। इन तीन दिनों में मैंने देखा है कि परीक्षा भवन में खुले आम नकल हो रही है। कुछ गुंडा टाइप के विद्यार्थी तो खुले आम पुस्तकें खोलकर प्रश्न-पत्र हल करते हैं। उन्हें निरीक्षक दल का कोई भी अध्यापक कुछ नहीं कहता। देखा देखी दूसरे विद्यार्थी भी नकल करने लगे हैं।

महोदय, नकल के कारण मेरे जैसे कुछ विद्यार्थी काफ़ी घाटे में रहेंगे, क्योंकि जो मेहनत करता है, ईमानदारी से परीक्षा देता है उसके अंक तो कम आएँगे और नकल करने वाले विद्यार्थी अधिक अंक प्राप्त करने में सफल हो जाएंगे।

आप से विनम्र प्रार्थना है कि अपने निदेशालय की ओर से कुछ अधिकारियों को उड़न दस्ते के रूप में भेजकर उक्त विद्यालय में ही नहीं अन्य परीक्षा केन्द्रों पर भी छापे मारे जाएँ और दोषी विद्यार्थियों और अध्यापकों को कड़ी-से-कड़ी सज़ा दी जाए।

मैं आपसे अपना नाम और पता गुप्त रखने की प्रार्थना के साथ परीक्षा में नकल की रोकथाम किये जाने की उचित कार्रवाई किये जाने की भी प्रार्थना करता हूँ।
आपका विश्वासी,
अमरजीत सिंह

4. महाप्रबन्धक, राज्य परिवहन निगम को अपने गाँव में बस स्टॉप की मंजूरी के लिए पत्र लिखती लिखता है।
513, सेक्टर-6
मोहाली।
5 जून 20….
सेवा में
महाप्रबन्धक
पंजाब राज्य परिवहन निगम,
चण्डीगढ़।

विषय-गाँव दोनापावला में बस स्टाप की मंजूरी की प्रार्थना
महोदय,
मैं इस पत्र के माध्यम से दोनापावला गाँव के समस्त निवासियों, विशेषकर छात्रों की ओर से आपकी सेवा में यह निवेदन करना चाहता हूँ कि हमारे गाँव में एक नियमित बस स्टॉप बनाया जाए।

आपका ध्यान गाँववासियों की इस तकलीफ की ओर भी दिलाना चाहता हूँ कि नियमित बस-स्टॉप न होने के कारण सभी बसें हमारे गाँव में नहीं रुकती हैं। कभी कभार यदि कोई बस पीछे से खाली आ रही हो तो रुकती है नहीं तो नहीं रुकती। गाँववासियों को विशेषकर छात्रों को कई-कई घंटे बस की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। कभी-कभी तो दिन भर कोई भी बस हमारे गाँव में रुकती ही नहीं। यदि आप हमारे गाँव में एक नियमित बस स्टॉप मंजूर करके उसकी मंजूरी की सूचना अपने सभी बस चालकों और कण्डक्टरों को प्रसारित कर सूचित कर दें तो हम आपके अति आभारी होंगे।

यहाँ यह बात भी आपके ध्यान में लाना ज़रूरी समझता हूँ कि हमारी ग्राम पंचायत ने इस आशय का एक प्रस्ताव पारित करके तथा बस स्टॉप के लिए पंचायत के खर्चे पर शैड बनाने के भरोसे की सूचना आपको पहले ही भेजी जा चुकी है।
आशा है आप गाँववासियों के कष्ट का निवारण करने हेतु उचित एवं शीघ्र कार्रवाई करेंगे।
धन्यवाद सहित,
विश्वजीत

5. मुख्य अभियन्ता राज्य विद्युत् बोर्ड को बिजली का बिल बढ़ा-चढ़ा कर भेजने की शिकायत बारे।
13, विधि नगर
मोहाली।
13 जनवरी, 20…..
सेवा में
मुख्य अभियंता,
चंडीगढ़।
विषय-बिजली के बिल में गड़बड़ी के विषय में।
महोदय,
मैं इस पत्र के माध्यम से आपके कार्यालय द्वारा भेजे गए जनवरी-फरवरी 2018 के बिजली के बिल में कुछ गड़बड़ी होने की ओर दिलाना चाहता हूँ।

मैं शान्ति नगर के मकान नं0 521 का निवासी हूँ। मेरा खाता नं० ए० डी० 1563 है। इस बार बिजली का बिल 2000/रुपए का भेजा गया है और अन्तिम मीटर रीडिंग 51007 दिखाई गई है। इस बिल में कोई गड़बड़ी लगती है। हमारा बिजली । का बिल कभी दो-तीन सौ से ऊपर नहीं आया। इस तथ्य की जांच आप मेरे खाते को देखकर कर सकते हैं। हमारा मीटर आज भी रीडिंग 41047 दिखा रहा है जबकि आपके बिल में 51007 दिखाया है। लगता है मीटर पढ़ने वाले कर्मचारी ने भूल से 4 के स्थान पर 5 अंक लिख दिया है।

आप से नम्र निवेदन है कि आप मामले की व्यक्तिगत स्तर पर जाँच करके मेरे बिजली के बिल को सही करके दोबारा भेजें ताकि मैं बिजली का किराया समय पर आपके कार्यालय में जमा करा सकूँ।
आपसे तुरन्त एवं उचित कार्रवाई करने की पुन: प्रार्थना की जाती है।
भवदीय
शिवराज।

6. पुलिस अधीक्षक को नगर में चोरी की बढ़ती घटनाओं की रोकथाम करने के उपाय करने की प्रार्थना करते हुए।
525, आदर्श नगर
अमृतसर,
13 जून, 20….
सेवा में
पुलिस अधीक्षक,
अमृतसर।
विषय-नगर में बढ़ती चोरी की घटनाओं की रोकथाम करने के बारे में। महोदय,
मैं आपके पुलिस क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले रामनगर मुहल्ले का निवासी हूं। इस पत्र द्वारा इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाना चाहता हूं कि हमारे मुहल्ले में पिछले कुछ दिनों से कई चोरियां हुई हैं। समाचार-पत्रों के माध्यम से हमें ऐसी जानकारी मिली है कि हमारे ही मुहल्ले में नहीं बल्कि नगर के अनेक क्षेत्रों में चोरी की घटना हुई है।

मुझे खेद के साथ कहना पड़ता है कि इस सम्बन्ध में पुलिस विभाग ने कोई उचित कार्रवाई नहीं की है। ऐसे भी समाचार मिले हैं कि नगर में कोई ससंगठित चोरों का गिरोह आया हुआ है जो इन चोरियों के लिए उत्तरदायी है, पर लगता है आपका विभाग घोड़े बेचकर सो रहा है। नगर में इतनी घटनाएं हो गईं और पुलिस विभाग के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।

मान्यवर, आप तो जानते ही हैं पुलिस विभाग पर आम नागरिकों की जान-माल की सुरक्षा का उत्तरदायित्व होता है पर पुलिस ही ऐसी घटनाओं के प्रति उदासीनता दिखाए तो आम आदमी का पुलिस विभाग और लोकतन्त्र में विश्वास कैसे बहाल किया जा सकता है।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप इस सम्बन्ध में अपने विभाग को अधिक चुस्त-दुरुस्त करें और अपराधियों को पकड़ने के उचित उपाय करें ताकि आम जनता भयमुक्त होकर राहत की सांस ले सके और अपने आपको सुरक्षित समझ सके।
आपसे उचित और शीघ्र कार्रवाई के लिए पुनः प्रार्थना की जाती है।
धन्यवाद सहित,
भवदीय,
समर सिंह।

7. मुहल्ले में प्रदूषित जल की आपूर्ति के सम्बन्ध में नगरपालिका के स्वास्थ्य अधिकारी को शिकायती-पत्र लिखिए
मकान संख्या-1303
गांधी नगर,
लुधियाना।
13 अगस्त, 20….
सेवा में
स्वास्थ्य अधिकारी।
लुधियाना।
विषय- मुहल्ला गाँधी नगर में प्रदूषित जल की आपूर्ति के बारे में।
महोदय,
मैं मुहल्ला गाँधी नगर के निवासियों की ओर से आपका ध्यान, नगरपालिका द्वारा घरों में सप्लाई किये जाने वाले प्रदूषित जल के बारे में आकर्षित करना चाहता हूं। हमारे मुहल्ले में पिछले कई दिनों से नगरपालिका के नलों में गन्दा पानी आ रहा है। कभी-कभी उसमें कुछ कीड़े-मकोड़े भी देखे गए हैं। ऐसा जल पीने के योग्य नहीं है। ऐसे जल से तो लोग कपड़े तक धोने में भी झिझक महसूस करते हैं।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप जल आपूर्ति विभाग के कर्मचारियों को उचित आदेश देकर जहाँ-जहाँ से पानी की पाइप फटी हुई है और उनमें गन्दा पानी प्रवेश कर रहा है, उन पाइपों की तुरन्त मरम्मत करवाएं।
आपका ध्यान मैं इस बात की ओर भी दिलाना चाहता हूं कि ऐसा पानी पी कर लोगों का स्वास्थ्य तो बिगड़ेगा ही नगर में संक्रामक रोग फैलने का भी डर है।

मैं आशा करता हूं कि मुहल्ला वासियों के स्वास्थ्य का ध्यान करके तुरन्त शुद्ध एवं प्रदूषण रहित जल की आपूर्ति करने के लिए उचित व शीघ्र कार्रवाई करेंगे।
धन्यवाद सहित,
भवदीय,
अमरजीत सिंह।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

8. कलेक्टर महोदय, को पत्र लिखकर लाउडस्पीकरों के प्रयोग पर पाबन्दी लगाने की प्रार्थना।
103, रामनगर,
नवांशहर,
2 मार्च, 20….
सेवा में
उपायुक्त महोदय,
नवांशहर।
विषय-ऊँची आवाज़ में लाउडस्पीकर बजाने को बन्द करने के बारे में।
महोदय,
मैं आपकी सेवा में समूह छात्र वर्ग की ओर से प्रार्थना करना चाहता हूं कि आजकल हमारी वार्षिक परीक्षाएं शुरू हैं, किन्तु नगर में आए दिन किसी-न-किसी बात को लेकर लाउडस्पीकरों पर ऊँची-ऊँची आवाज़ में फिल्मी गाने बजाए जाते हैं। इस शोर से हमारी पढ़ाई में बाधा पड़ती है। लाउडस्पीकर की आवाज़ में घरों में एक-दूसरे से बात करना भी कठिन होता जाता है। कुछ सुनाई ही नहीं देता। घरों में बच्चे विशेषकर बूढ़े लोग काफ़ी परेशान होते हैं। रोगियों की दशा का तो अन्दाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है।

आपसे विनम्र, निवेदन है कि आप लाउडस्पीकर बजाने पर पाबन्दी लगा दें। यदि आप ऐसा न कर सकते हों तो कमसे-कम रात दस बजे के बाद हर हालत में लाउडस्पीकर का प्रयोग करने पर पाबन्दी लगा दें। ऐसी पाबन्दी लगाना आपके अधिकार क्षेत्र में है। समूह नगर निवासी आपके आभारी होंगे। नागरिक शोर प्रदूषण के भयंकर परिणामों से भी सुरक्षित रहेंगे।

आपसे उचित एवं शीघ्र कार्रवाई की पुनः प्रार्थना करता हूं।
धन्यवाद सहित,
भवदीय
विश्वास सिंह

9. महाप्रबन्धक, पंजाब राज्य सड़क, परिवहन निगम चण्डीगढ़ को बस कंडक्टर की पैसे लेकर टिकट न देने की शिकायत करते हुए।
202, कृष्ण कुंज
संत नगर,
अमृतसर।
2 अगस्त, 20…..
सेवा में
महाप्रबन्धक,
पंजाब राज्य सड़क परिवहन निगम,
चण्डीगढ़।
विषय- बस कंडक्टर के भ्रष्टाचार के बारे में शिकायत।
महोदय,
इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान आपके परिवहन निगम की बस नं० 1313 के कंडक्टर के भ्रष्टाचार की ओर दिलाना चाहती हूँ।

कल मैं सुबह सात बजे के करीब ऊपर लिखी बस में अमृतसर के लिए जाने पर सवार हुई। मैंने नोट किया कि बस कंडक्टर यात्रियों से पैसे तो ले रहा है पर टिकट नहीं दे रहा। जब वह मेरे पास आया तो मैंने पैसे देकर उसे टिकट देने की मांग की। इस पर वह कंडक्टर भड़क उठा और मुझ से अशिष्ट भाषा में बात करने लगा। उसने कहा जब अन्य यात्री टिकट की मांग नहीं कर रहे हैं तो आप क्यों ऐसा कर रही हैं। उसने मुझे जो कुछ कहा वह मैं लिख नहीं सकती। मैंने उसे कहा कि तुम्हें महिलाओं से बात करने की भी तमीज़ नहीं है तो उसने कहा सारी तमीज़ तुम्हीं में है। बस में सवार अन्य यात्रियों ने उसे सभ्य व्यवहार करने को कहा पर उस पर कोई असर नहीं हुआ।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप उस कंडक्टर के विरुद्ध उचित अनुशासनिक कार्रवाई करें। उसके द्वारा टिकट के पैसों में घपला करने की भी जाँच कारवाई जाए। यह देखा जाए कि 52 यात्रियों वाली बस में उसने कितनी टिकटों के पैसे निगम के कार्यालय में जमा करवाये हैं। एक जागरूक नागरिक के नाते आपको इस भ्रष्टाचार की सूचना देना मैं अपना कर्तव्य समझ कर दे रही हूँ।
भवदीय,
सिमरनजीत कौर।

10. पिता जी के स्थानान्तरण पर प्राचार्य को पाठशाला त्याग प्रमाण-पत्र प्रदान करने हेतु आवेदन पत्र लिखिए।
सेवा में
प्राचार्य,
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
पटेल नगर।
विषय-पाठशाला त्याग प्रमाण-पत्र जारी किए जाने हेतु।
महोदय,
निवेदन है कि मैं आपकी पाठशाला में ग्यारहवीं कक्षा के अनुभाग ‘ख’ का विद्यार्थी हूं। मेरे पिताजी भारतीय स्टेट बैंक में मैनेजर के पद पर नियुक्त हैं। कुछ ही दिन पूर्व उनका स्थानान्तरण भोपाल हो गया है। हम सब भी उनके साथ भोपाल जा रहे हैं। आपसे विनम्र निवेदन है कि मुझे पाठशाला त्याग प्रमाण-पत्र प्रदान करने की कृपा करें। ताकि मैं भोपाल में किसी पाठशाला में प्रवेश ले सकूँ।
मैं आपका हृदय से आभारी रहूंगा।
आपका आज्ञाकारी छात्र
सतनाम सिंह

11. मुख्य अभियन्ता को अपने गाँव के रास्ते की मरम्मत के लिए प्रार्थना-पत्र लिखते हुए।
संत सदन,
राम नगर,
चंडीगढ़।
13 मई, 20….
सेवा में
मुख्य अभियन्ता,
सार्वजनिक बांधकाम विभाग,
पंजाब सरकार, चण्डीगढ़।
विषय-गाँव रामनगर की सड़क की मरम्मत बारे।
महोदय,

मैं इस पत्र के माध्यम से आपका ध्यान गाँव रामनगर के रास्ते की खस्ता हालत की ओर दिलाना चाहता हूँ। गत दो वर्षों से इस रास्ते की मरम्मत की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। सारे रास्ते पर कई-कई फुट चौड़े और गहरे खड्डे बने हुए हैं, जिससे अक्सर यहाँ दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। यह रास्ता वर्षा के दिनों में तो एक नहर का रूप धारण कर लेता है। आपका ध्यान इस बात की ओर भी दिलाना चाहता हूँ कि जगह-जगह पानी जमा हो जाने पर उस पर मच्छर पलते हैं जो बीमारी फैलाने का कारण बन सकते हैं।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि अपने विभाग को इस रास्ते की मरम्मत पहल के आधार पर किये जाने के उचित एवं तुरन्त आदेश जारी किया जाएं ताकि आम जनता सुख की साँस ले सके और उनकी किसी संक्रामण रोग से रक्षा हो सके। सभी गाँव वासी आपके अति आभारी होंगे।
भवदीय
अक्षर।

12. प्राचार्य महोदय को रुग्णावकाश हेतु प्रार्थना-पत्र लिखते हुए।
सेवा में
प्राचार्य,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
बालघाट
फरीदकोट।
विषय-रुग्णावकाश के लिए प्रार्थना।
महोदय,
मैं आपकी विद्यालय में कक्षा ग्यारह का विद्यार्थी हूं। गत एक सप्ताह से मुझे थोड़ा-थोड़ा बुखार था। बुखार की हालत में मैं विद्यालय आता रहा। आज बाद दोपहर से मुझे 102 डिग्री बुखार हो गया है। डॉक्टर को दिखाया है। उसने मुझे कमसे-कम चार दिनों के लिए आराम करने की सलाह दी है। अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि मुझे दिनांक 4 जनवरी से 7 जनवरी 20…… तक के लिए अवकाश की मंजूरी प्रदान की जाए। मैं आपका अति आभारी रहूंगा।
आपका आज्ञाकारी,
अंकेश भण्डारी
कक्षा XI, क्रम संख्या-642 अनुभाग ‘ख’

13. पुलिस थाने के थानेदार को अपने घर में हुई चोरी की खबर देते हुए।
म.नं. 513
गोविंदपुर
5 मई, 2018
सेवा में
थाना अधिकारी,
पुलिस थाना, गोविंद पुर
गोविंदगढ़।
विषय-घर में चोरी के बारे में प्रथम सूचना रिपोर्ट। महोदय,

निवेदन है कि मैं मोहन लाल सुपुत्र श्री सोहन लाल वासी मकान नं0 513 अपने घर में कल रात हुई चोरी के बारे प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाना चाहता हूँ। घटना का ब्योरा नीचे दिया जा रहा है-कल रात दिनांक 24 फरवरी सन् 20…. रात्रि के समय मेरे घर में चोरी हो गई है। यह घटना रात्रि के 2 बजे से 4 बजे के बीच होने की सम्भावना है क्योंकि रात एक बजे तक तो परिवार के सभी सदस्य दूरदर्शन पर एक फिल्म देख रहे थे। हमें चोरी का ज्ञान प्रायः 5 बजे के करीब हुआ जब मैं प्रातः प्रार्थना के लिए उठा। सोने के कमरे के अतिरिक्त सारे घर का सामान बिखरा पड़ा था। घर का बहुत-सा सामान और नकद पाँच हज़ार रुपए जो मेरे मेज़ की दराज़ में पड़े थे गायब पाये गये हैं।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप स्वयं हमारे घर पधार कर पंचनामा तैयार कर लें तथा चोरों के पैरों या हाथों के निशान उतारने के उपकरण भी साथ लाएं।
आपसे प्रार्थना है कि शीघ्र अति शीघ्र मामले की जाँच करके चोरों को पकड़ने और हमारा चोरी हो गया सामान बरामद करने के लिए उचित कार्रवाई करें। मैं आपका आभारी हूँगा।
धन्यवाद सहित,
भवदीय मोहनलाल

14. अधिक बस सेवा के लिए प्रार्थना-पत्र।
131, कबीर नगर,
मुक्तसर।
13 जनवरी, 20…..
सेवा में
सम्पादक,
पंजाब केसरी
अमृतसर।
विषय- ज्यादा बसें चलाए जाने के बारे राज्य परिवहन निगम से प्रार्थना।
महोदय,
आपके लोकप्रिय दैनिक पत्र द्वारा मैं राज्य परिवहन निगम से यह प्रार्थना करना चाहती हूँ कि प्रातः स्कूल एवं कॉलेज के खुलने तथा सायं इन शिक्षा संस्थाओं के बन्द होने के समय नगर-निगम की ओर से कुछ अतिरिक्त बसें चलाई जाएँ।

हमने अपने विद्यालय के प्राचार्य महोदय के द्वारा भी परिवहन विभाग के निदेशक महोदय को एक प्रत्यावेदन भिजवाया था किन्तु न तो उस पत्र की कोई पावती सूचना प्राचार्य महोदय को दी गई और न ही कोई वांछित कार्रवाई की गई। इसी कारण मैंने आपके पत्र द्वारा राज्य परिवहन निगम विभाग तक अपनी मांग पहुंचाने का निर्णय लिया है।

हमारी प्रार्थना है कि प्रातः 7 बजे से नौ बजे के बीच तथा सायं चार बजे से छ: बजे के बीच अतिरिक्त बसें चलाई जाएँ। इस अवधि में स्कूल-कॉलेज एवं दफ्तरों को जाने वाले यात्रियों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। प्राय: बसें पीछे से ठसा ठस भरी आती हैं तथा वे निश्चित बस स्टॉप पर रुकती ही नहीं। यदि रुकती भी है तो उनमें चढ़ना विशेषकर लड़कियों एवं महिलाओं के लिए भारी मुसीबत का कारण बनता है। ऐसी भीड़ भरी बसों में चढ़ने पर लड़कियों और महिलाओं को अभद्र व्यवहार या छेड़खानी जैसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है। कुछ ऐसी ही समस्याओं से महिलाओं को संध्या के समय चलने वाली बसों में दो-चार होना पड़ता है।

हमारी प्रार्थना है कि यदि नगर निगम और परिवहन विभाग इन समयों में कुछ अतिरिक्त बस सेवा चालू कर दें तो बहुतसी समस्याओं का समाधान हो सकता है। हमारी उचित एवं शीघ्र कार्रवाई के लिए विभाग से प्रार्थना है।
भवदीय,
नवनीत।

15. मुहल्ले में फैले मलेरिया से बचाव के लिए प्रार्थना-पत्र।
मकान नं. 13
नेहरू नगर
जालन्धर।
13 मई, 20….
सेवा में
मुख्याधिकारी,
स्वास्थ्य केन्द्र,
जालंधर।
विषय-नेहरू नगर, में फैले मलेरिया की रोकथाम बारे।
महोदय,

निवेदन है कि आप का ध्यान मुहल्ला नेहरू नगर, में फैले मलेरिया के फैलाव और उसकी रोकथाम के लिए उचित एवं शीघ्र कार्रवाई करने की ओर दिलाना चाहता हूँ।

हमारे मुहल्ले में मलेरिया जैसा भयानक रोग फैलने के दो मुख्य कारण हैं जिनकी ओर आपका ध्यान दिलाना ज़रूरी समझता हूँ। पहला कारण यह है कि मुहल्ले की सफ़ाई का कोई उचित प्रबन्ध नहीं है। जगह-जगह कूड़े-कर्कट के ढेर लगे हैं जिनसे बदबू फैलने के साथ-साथ मक्खी और मच्छर भी पलते हैं। दूसरा कारण मुहल्ले की गलियों और सड़कों की काफ़ी देर से मुरम्मत न होना है जिसके कारण जगह-जगह गड्ढे बन गये हैं। जिनमें बरसात का पानी जमा हो जाता है जो मच्छरों की संख्या में वृद्धि करने में सहायक होता है।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि मलेरिया की रोकथाम के लिए सबसे पहले मुहल्ले की सफ़ाई की ओर ध्यान दिया जाए तथा दूसरे डी० डी० टी० जैसी कीटाणु नाशक दवाइयों का सारे मुहल्ले में, और अगर हो सके तो सारे शहर में छिड़काव किया जाए। नगर के सभी अस्पतालों में मलेरिया से पीड़ित रोगियों के लिए अलग से एवं उचित प्रबन्ध किए जाएं। सभी स्वास्थ्य केन्द्रों में दवाइयों का समुचित स्टॉक उपलब्ध करवाया जाए।

महोदय आपको विदित ही है कि कुछ वर्ष पहले नवम्बर मास में बिहार तथा आन्ध्र प्रदेश में इस रोग से कितने लोगों की जानें गयी थीं। ऐसा न हो कि पंजाबवासियों के लिए और आपके लिए यह बीमारी भी एक रोग बन जाए। इसे फैलने से पूर्व ही इसके उचित उपाय करने की आप से पुनः प्रार्थना की जाती है।
धन्यवाद सहित,
अभिजीत सिंह

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

16. नगरपालिका को बिल्डिंग के सामने पड़े कचरे से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से अवगत करवाते हुए नगरपालिका स्वास्थ्य अधिकारी को इस कचरे को तुरन्त उठाने की प्रार्थना करते हुए।
1056, देवनगर
मोहाली।
1 मार्च, 20…..
सेवा में
स्वास्थ्य अधिकारी,
मोहाली।

विषय-लक्ष्मी बिल्डिंग मोहाली के सामने पड़े कचरे के ढेर को हटाये जाने के बारे।
महोदय,

इस पत्र के द्वारा मैं आपका ध्यान नगर में लक्ष्मी बिल्डिंग के सामने पड़े कचरे के ढेर की तरफ दिलाना चाहता हूँ। गन्दगी का यह ढेर गत एक महीने से यूँ ही पड़ा है, बल्कि इसमें दिन-प्रतिदिन और वृद्धि होती जा रही है। नगरपालिका का कोई भी सफ़ाई कर्मचारी इसे हटाने का प्रबन्ध नहीं करता। इस क्षेत्र में सफाई कर्मचारी को कई बार इस ढेर को उठाने की प्रार्थना की गई पर उस पर हमारी प्रार्थना का कोई असर नहीं होता। कई बार क्षेत्र के नगर पिता के ध्यान में भी यह बात लायी गयी है। उनका कहना है कि मैं चूंकि विरोधी दल का सदस्य हूँ, इसलिए मेरे क्षेत्र की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।

महोदय नगरवासियों के स्वास्थ्य एवं नगर की सफ़ाई का उत्तरदायित्व समूची नगरपालिका पर है न कि किसी एक नगर पिता पर । इस बिल्डिंग के सामने पड़े कचरे से इतनी दुर्गन्ध उठने लगी है कि बिल्डिंग में रहने वालों का जीना तो दूभर हो ही गया है, यहां से गुजरने वाले राहगीरों की परेशानी का कारण भी है। यदि आपने तुरन्त इस कचरे के ढेर को हटाने का प्रबन्ध न किया तो मुहल्ले में ही नहीं नगर में भी किसी संक्रामक रोग के फैलने का डर पैदा हो सकता है।

हम आशा करते हैं कि इस, सम्बन्ध में शीघ्र कार्रवाई करके आप बिल्डिंग वासियों की कठिनाई को दूर करने की कृपा करेंगे। हम सब आपके आभारी होंगे।
भवदीय,
सर्वजीत सिंह।

17. महाप्रबन्धक, पंजाब रोडवेज़, लुधियाना को बस कंडक्टर के अशिष्ट व्यवहार की शिकायत है।
1050, संतपुरी,
लुधियाना।
11 फरवरी, 20…….
सेवा में
महाप्रबन्धक,
पंजाब रोडवेज़,
लुधियाना।
विषय: बस कंडक्टर के अशिष्ट व्यवहार की शिकायत।
महोदय,
मैं आपका ध्यान आपके परिवहन की बस नं० PBN 2627 के कंडक्टर के अशिष्ट व्यवहार की ओर दिलाना चाहती हूँ। घटना दिनांक 4 मार्च की है। मैं अपने विद्यालय जाने के लिए सराभा नगर बस-स्टैण्ड से बस स्टैण्ड की ओर जाने वाली बस में सुबह के करीब 7 बजे सवार हुई। बस में काफ़ी भीड़ थी। बहुत-से लोग खड़े थे। बस कंडक्टर टिकटें काटते समय जहाँ लड़की बैठी थी उसकी सीट के साथ सटकर टिकट काट रहा था। जब वह मेरे पास टिकट देने के लिए आया तो वह कुछ आपत्तिजनक मुद्रा में मेरे साथ सटकर खड़ा हो गया।

पहले तो मैं अपने आपको बचाने के लिए कुछ परे खिसकी पर कंडक्टर भी उसी ओर बढ़ने लगा। मैंने उसे चेतावनी देते हुए सही ढंग से खड़े होने को कहा तो वह अनाप-शनाप बकने लगा। मैंने उसे कहा कि तुम्हें लड़कियों से बात तक करने की तमीज़ नहीं तो उसने कहा अपनी तमीज़ अपने पास रखो यहाँ तो ऐसे ही चलेगा। बस में सवार अन्य यात्रियों ने भी उसे मना किया कि वह लड़कियों से छेड़खानी क्यों करता है और सही ढंग से क्यों नहीं बोलता।

महोदय, बस से उतरने पर मेरी सहपाठिनों ने मुझे बताया कि वह कंडक्टर लड़कियों से आए दिन बदतमीज़ी करता है। आपसे विनम्र प्रार्थना है कि उस कंडक्टर के विरुद्ध उचित और शीघ्र अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए। किसी दिन विद्यार्थी वर्ग ने सामूहिक रूप से उसके विरुद्ध स्वयं कार्यवाही करने की ठान ली तो प्रशासन के लिए कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो जाएगी।

मैं आशा करती हूँ कि आप उक्त कंडक्टर के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करेंगे एवं उसे भविष्य में यात्रियों से विशेषकर महिलाओं से अशिष्ट व्यवहार न करने की चेतावनी दी जाएगी।
धन्यवाद सहित,
भवदीया
सिमर कौर

18. परीक्षा में विशेष सफलता पाने पर माता की ओर से पुत्री को पत्र लिखो।
सी-17, शक्ति विहार,
लुधियाना।
तिथि : 2 जुलाई, 20….
चिरंजीव मालती,
स्नेहाशीष।
आज प्रात: जैसे ही समाचार-पत्र हाथ में लिया तो ऊपर ही मोटे-मोटे अक्षरों में तुम्हारी बारहवीं कक्षा के परीक्षापरिणाम सम्बन्धी खबर पढ़ी। जब रोल नम्बरों की सूची में तुम्हारा रोल नं० ढूंढ रही थी तो मेरी धड़कन तेज़ हो गई थी। यद्यपि मुझे पूरा विश्वास था कि तुम दसवीं के परीक्षा-परिणामों के अनुरूप यहां भी प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण होगी। तुम्हारा रोल नं० पाकर कुछ सन्तुष्टि हुई फिर उसी समय तुम्हारे पापा को गजट में तुम्हारा परिणाम देखने को भेजा। अंकों के आधार पर पता चला कि तुम 75 प्रतिशत अंक प्राप्त कर प्रथम श्रेणी में पास हुई हो।

प्यारी बिटिया, तुम्हारे जन्म से ही मुझे तुमसे कुछ आशाएँ बंध गई थी कि जो लक्ष्य जीवन में मैं न पा सकी उन्हें तुम प्राप्त करो। मेरा आशीर्वाद सदा-सदा तुम्हारे साथ है, तुम जीवन में हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करो और अपना तथा परिवार का नाम रोशन करो। तुम्हारे पापा भी आज बहुत खुश हैं। तुम्हारा छोटा भाई तो खुशी से फूला ही नहीं समा रहा। वह तो अपने दोस्तों को भी बता आया है।

तुम्हारे पिता जी की ओर से तुम्हें ढेर सारा प्यार। निशांत की ओर से प्यार। पत्र का उत्तर शीघ्र देना।
तुम्हारी माता,
सुनीता।

19. कुसंगति में फंसे अपने छोटे भाई को पत्र लिखो जिसमें सदाचार के गुण बताते हुए उसे बुरी संगति से दूर रहने की प्रेरणा हो।
317-आदर्श नगर,
जालन्धर शहर।
दिनांक : 6 फरवरी, 20….
प्रिय भाई संजीव,
आयुष्मान रहो।
पिछले दो सप्ताह से तुम्हारा कुछ भी संवाद नहीं मिल रहा, क्या कारण है। सारा परिवार तुम्हारी ही चिन्ता में पड़ा हुआ है। कभी-कभी तो मन सोचने लगता है कि हमने तुम्हें दूर होस्टल में पढ़ने भेजकर कहीं कुछ ग़लत तो नहीं किया। हमने तो ऐसा केवल इसलिए किया कि तुम अच्छे विद्यालय में पढ़कर अच्छी विद्या ग्रहण कर सको ताकि तुम्हारा भविष्य सुन्दर हो जाए। लेकिन हमें निरन्तर डर लगा रहता है कि तुम कहीं पढ़ाई से विमुख होकर कुसंगति का शिकार न हो जाओ। जीवन की उन्नति का आधार सदाचार है। सदाचार का अर्थ है-श्रेष्ठ आचरण। इसमें सत्य, उच्च विचार, नैतिकता आदि गुण आते हैं। वस्तुत: नैतिक मूल्यों के बिना, मनुष्य-जीवन ही व्यर्थ है। सदाचारहीन व्यक्ति अपना तो सर्वनाश कर ही लेता है, वह अपने समाज और राष्ट्र को भी कलंकित कर देता है। उसका विवेक नष्ट हो जाता है। उसे भले-बुरे का ज्ञान ही नहीं रहता।

प्रिय राजीव ! विद्या की देवी सदाचारी पर ही रीझती है। आज तक जितने भी महापुरुष हुए हैं, वे सदाचार के बल पर ही ऊंचे उठे हैं। विद्या प्राप्ति के लिए जीवन में कठोर तप और साधना करनी पड़ती है। तप और साधना सदाचारी ही कर सकता है। आचारहीन तो हाथ ही मलता रह जाता है, विद्या रूपी सुवासित फूल उसे कभी प्राप्त नहीं हो पाता। वह प्रख्यात उक्ति एक बार फिर तुम्हें याद दिलाना चाहता हूँ कि-‘आचारहीन न पुनन्ति वेदाः’ अर्थात् चरित्रहीन व्यक्ति को देव भी पवित्र नहीं कर सकते।

प्रिय भाई ! शिक्षा-काल में तो सदाचार की महती आवश्यकता रहती है क्योंकि संयम, धैर्य, सहिष्णुता, गुरु सेवा, व्रत आदि गुणों से ही पूर्ण शिक्षा उपलब्ध होती है। सदाचार का सूर्य शिक्षा का प्रकाश फैला सकता है। इसलिए मेरा बार-बार तुम से यही अनुरोध है कि जीवन में सदाचार को अपनाओ। गुरुजनों की आज्ञा से सदाचारी रहते हुए विद्या प्राप्ति के लिए जुट जाओ। किसी चीज़ की आवश्यकता हो तो नि:संकोच लिख भेजो। पत्र का उत्तर शीघ्र दे दिया करो।
तुम्हारा बड़ा भाई, राकेश।

20. पुत्र के विवाह के अवसर पर अपने मित्र को निमन्त्रण देते हुए पत्र लिखो।
47-बी, किशनपुरा,
गोल मार्किट, फगवाड़ा।
दिनांक : 12 जनवरी, 20….
प्रिय बन्धु ज्ञानेश्वर,
सादर नमस्कार।

आपको यह जानकर हार्दिक आनन्द का अनुभव होगा कि मेरे पुत्र संजीव का शुभ विवाह जालन्धर निवासी और उद्यमी पंकज आर्य की सुपुत्री संगीता के साथ 6 फरवरी, 20…. को होना निश्चित हुआ है। अतः आपसे निवेदन है कि इस शुभ अवसर पर आप सपरिवार हमारे निवास स्थान पर पधारें और नव वर-वधू को आशीर्वाद प्रदान कर कृतार्थ करें।

कार्यक्रम

सेहरा बन्दी-5 बजे शाम।
बारात रवानगी-7 बजे रात्रि।
(जालन्धर के लिए)

उत्तरापेक्षी
समस्त परिवारगण।

तुम्हारा अभिन्न।
राजशेखर।

21. पुलिस अधीक्षक दिल्ली को यात्रा में सामान खो जाने पर रिपोर्ट दर्ज करवाने के बाद भी पुलिस की अकर्मण्यता के सम्बन्ध में आवेदन पत्र लिखें।
ए-13, शांतिपुरम
रोहिणी, दिल्ली।
3 जून, 20…..
सेवा में
पुलिस अधीक्षक,
रोहिणी, दिल्ली।
विषय-यात्रा में खोए सामान और पुलिस की अकर्मण्यता सम्बन्धी।
महोदय,

विनम्र निवेदन यह है कि मैं दिनांक 13 अगस्त को जालन्धर से दिल्ली (रोहिणी सैक्टर 12) में अपनी बहन की लड़की की शादी में सपरिवार जा रहा था। कंडक्टर ने मुझे सामान बस के ऊपर रखने के लिए कहा। मेरे मना करने पर भी वह जिद्द में अड़ गया कि आपका सामान ज्यादा है इसे आप बस के ऊपर ही रखें। बेबसी में मुझे अपना सामान ऊपर ही रखना पड़ा। रास्ते में अम्बाला से कुछ आगे चलकर बस जब एक स्थान पर खाना खाने के लिए रुकी तो मैं बस पर चढ़कर अपना सामान देख आया। तब तक तो सारा सामान ठीक रखा हुआ था। इसके बाद जब बस दिल्ली पहुँची तो मैंने कुली को कहकर अपना सामान उतरवाया तो बाकी सामान तो मिल गया, लेकिन मेरा एक सूटकेस गायब
था जिसमें हमारा कीमती सामान और कुछ रुपए थे।

मैंने जब कंडक्टर से पूछा तो उसने भी सीधे मुँह कोई बात नहीं की। मैंने फिर इस चोरी की सूचना तुरन्त ही पुलिस थाना, दिल्ली में की किन्तु आज आठ दिन हो गए हैं, लेकिन कोई भी उचित कार्रवाई नहीं की गई। इस सम्बन्ध में जब भी थानेदार महोदय से मिलने की कोशिश की तो वह ठीक से बात ही नहीं करता।

साहब, इस चोरी से मेरा बहुत बड़ा नुक्सान हुआ है। मेरे सारे कीमती जेवर चोरी चले गए हैं। अतः आपसे निवेदन है कि आप व्यक्तिगत रूप से रुचि लेकर इसकी जाँच करवाएँ ताकि मुझ ग़रीब को न्याय जल्दी-से-जल्दी मिल सके।
आशान्वित।
भवदीय
दिव्यम भारती

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

22. हिन्दी की पुस्तकें मँगवाने के लिए पुस्तक प्रकाशक को पत्र लिखिए।
अ-111, संत नगर
नवांशहर।
10 मई, 20…..
सेवा में
प्रबन्धक,
मल्होत्रा बुक डिपो,
रेलवे रोड,
जालन्धर।
महोदय,

हमारे विद्यालय के पुस्तकालय के लिए हमें हिन्दी की निम्नलिखित पुस्तकें वी०पी०पी० द्वारा शीघ्रातिशीघ्र भेजकर अनुगृहीत करें। पुस्तकें भेजते समय इस बात का ध्यान रखें कि कोई पुस्तक मैली और फटी न हो। आपके नियमानुसार पाँच सौ रुपए मनीआर्डर द्वारा पेशगी के रूप में भेज रहा हूँ।

ये पुस्तकें पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के नये पाठ्यक्रम पर आधारित होनी चाहिएं।
पुस्तकें
1. हिन्दी साहित्यिक निबन्ध 8 प्रतियाँ
2. ऐम०बी०डी० नूतन पत्रावली 8 प्रतियाँ
3. ऐम०बी०डी० साहित्य रत्नाकर 8 प्रतियाँ
4. ऐम०बी०डी० हिन्दी व्याकरण बोध 8 प्रतियाँ
भवदीय,
मोहन लाल।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 34 टूटते परिवेश

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 34 टूटते परिवेश Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 34 टूटते परिवेश

Hindi Guide for Class 11 PSEB टूटते परिवेश Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें –

प्रश्न 1.
‘टूटते परिवेश’ एकांकी में एक मध्यवर्गीय परिवार को टूटते हुए दिखाकर प्राचीन और नवीन पीढ़ी के सम्बन्ध को व्यक्त किया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
वैसे तो आदिकाल से ही प्राचीन और नवीन पीढ़ी में संघर्ष चला आ रहा है किन्तु बीसवीं शताब्दी तक आते-आते इस संघर्ष ने इतना भीषण रूप धारण कर लिया कि सदियों से चले आ रहे संयुक्त परिवार टूटने लगे। विशेषकर मध्यवर्गीय परिवारों पर इस टूटन की गाज सबसे अधिक गिरी। ‘टूटते परिवेश’ एकांकी में विष्णु प्रभाकर जी ने इसी समस्या को उठाया है। एकांकी में विश्वजीत और उसकी पत्नी करुणा पुरानी पीढ़ी तथा एकांकी के शेष सभी पात्र नई पीढ़ी के। एकांकी के आरम्भ में ही विश्वजीत की मंझली बेटी मनीषा के प्रस्तुत संवाद इसी संघर्ष को दर्शाता है-‘मैं पूछती हूँ कि मैं क्या आपको इतनी नादान दिखाई देती हूँ कि अपना भला-बुरा न सोच सकूँ ? जी नहीं, मैं अपना मार्ग आपको चुनने का अधिकार नहीं दे सकती, कभी नहीं दे सकती। मैं जा रही हूँ, वहाँ जहाँ मैं चाहती हूँ।’

अपने अधिकारों की आड़ में नई पीढ़ी धर्म, सभ्यता, संस्कृति, नैतिकता, सच्चरित्रता सभी का मज़ाक उड़ाती है। विवेक कहता है-पूजा में देर कितनी लगती है। बस पाँच मिनट …. और दीप्ति का यह कहना-‘गायत्री मंत्र ही पढ़ना है तो वह यहाँ भी पढ़ा जा सकता है। फिर पूजा की ज़रूरत ही क्या है।’ नई पीढ़ी की यह बातें धर्म का मज़ाक उड़ाने के बराबर है।

पुरानी पीढ़ी के विश्वजीत चाहते हैं कि दीवाली के अवसर पर तो सारा परिवार मिल बैठ कर लक्ष्मी पूजन कर ले, किन्तु नई पीढ़ी के पास तो इस बात के लिए समय ही कहाँ हैं। वह क्लब में, होटल में दीवाली नाइट मनाने जा सकते। पिता के होटल में जाने से मना करने पर विवेक उसे गुलाम बनाना चाहता है। पुरानी पीढ़ी कहती है कि युग बीत जाता है, नैतिकता हमेशा जीवित रहती है।’ जबकि नई पीढ़ी करती है-‘जीवन भर नैतिकता की दुहाई देने के सिवा आपने किया ही क्या है।’ चरित्र के विषय में नई पीढ़ी का विचार है कि जिसने सचरित्रता का रास्ता छोड़ा उसी ने सफलता प्राप्त की। नई पीढ़ी नेता और पिता को एक छद्म के दो मुखौटे कहती है। नई पीढ़ी मुक्त यौनाचार में विश्वास रखती है। तो पुरानी पीढ़ी सचरित्रता को ही सब से बड़ा मानती है। पुरानी पीढ़ी सब कुछ हो जाने पर भी सन्तान का हित, उसका मोह नहीं त्यागती, किन्तु नई पीढ़ी स्वार्थ में अन्धी होकर अपने पिता, अपने परिवार तक की परवाह नहीं करती।

इस प्रकार एकांकीकार ने संयुक्त परिवार टूटने का सबसे बड़ा कारण नई पीढ़ी के स्वार्थान्ध हो जाने को बताया है। प्रस्तुत एकांकी में लेखक ने इसी संघर्ष का सजीव चित्रण किया है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 34 टूटते परिवेश

प्रश्न 2.
‘टूटते परिवेश’ एकांकी का सार लिखें।
उत्तर:
टूटते परिवेश’ एकांकी के लेखक विष्णु प्रभाकर हैं। इसमें उन्होंने देश में नवयुवकों की बदल रही सोच को दिखाया है। ज्ञान-विज्ञान और नागरीकरण का जो प्रभाव हमारे धार्मिक, सामाजिक या नैतिक जीवन पर पड़ा है, उसे एक परिवार की जीवन स्थितियों के माध्यम से दिखाया गया है। इसमें पुरानी पीढ़ी नैतिकता, सिद्धान्त, त्याग, मानवीयता धर्म और चरित्र के परिवेश में रहना चाहती है और नई पीढ़ी उच्छंखल, अनैतिक, अव्यवहारिक तथा स्वच्छंद वातावरण में रहना चाहती है। इसी से परिवार में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है और परिवार टूटकर बिखर जाता है। प्रस्तुत एकांकी तीन अंकों में बँटा हुआ है। किन्तु घटनास्थल एक ही है।

एकांकी की कथावस्तु एक मध्यवर्गीय परिवार की नई पुरानी दो पीढ़ियों के संघर्ष और परिवार टूटने की कहानी है। नाटक के आरम्भ में परिवार के मुखिया विश्वजीत और उसकी पत्नी करुणा तथा बेटियों मनीषा और दीप्ति का परिचय दिया गया है। दीवाली का शुभ दिन है और विश्वजीत चाहते हैं कि सारा परिवार मिल बैठकर पूजा करे किन्तु नई पीढ़ी तो पूजा अर्चना को एक ढोंग समझती है। यही नहीं नई पीढ़ी भारतीय सभ्यता का मज़ाक भी उड़ाती है। परिवार का कोई भी सदस्य पूजा करने घर नहीं पहुँचता। सब को अपनी-अपनी पड़ी है। सभी दीवाली घर पर नहीं होटलों और क्लबों में मनाने चले जाते हैं। . एकांकी के दूसरे अंक में नई और पुरानी पीढ़ी का संघर्ष उग्र रूप धारण कर लेता है। मनीषा किसी विधर्मी से विवाह कर लेती है। दीप्ति हिप्पी बनी आवारा घूमती है और सिगरेट भी पीने लगी है। विवेक, जो सिवाए अर्जियाँ लिखने के कोई दूसरा काम नहीं जानता, विद्रोह करने पर उतारू हो जाता है और उनका साथ देने की बात कहता है।

विश्वजीत परिवार के सदस्यों (नई पीढ़ी) के व्यवहार से दुःखी होकर आत्महत्या करने घर से निकल जाते हैं घर पर सारा परिवार एकत्र होता है किन्तु किसी के पास अपने परिवार के मुखिया को ढूँढ़ने का समय नहीं है। हर कोई न कोई बहाने बनाता है। किन्तु विश्वजीत स्वयं ही लौट आते हैं कि यह सोचकर कि आत्महत्या का अर्थ है मौत और मौत का एक दिन निश्चित है। तब आत्महत्या क्यों की जाए।
विश्वजीत के लौट आने पर उसका बड़ा बेटा शरद् तो उनसे हाल-चाल भी नहीं पूछता है और अपने काम की जल्दी बता कर चला जाता है। परिवार के दूसरे सदस्य भी चले जाते हैं और पुरानी पीढ़ी के लोग विश्वजीत और उसकी पत्नी अकेले रह जाते हैं इस आशा में कि उनके बच्चे एक-न-एक दिन लौट आएँगे।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित की चारित्रिक विशेषताएँ लिखें-
(क) विश्वजीत
(ख) विवेक
(ग) दीप्ति उत्तर

(क) विश्वजीत :

परिचय-विश्वजीत पुराने विचारों का व्यक्ति है, परिवार का मुखिया है। उसके तीन बेटे-दीपक, शरद् और विवेक हैं तथा तीन बेटियाँ-इन्दू, मनीषा और दीप्ति। उसकी आयु 60-70 वर्ष की है।

निराश पिता :
दीवाली का दिन है और विश्वजीत चाहता है कि परिवार के सभी सदस्य मिलकर पूजा करें। तीन घंटे की प्रतीक्षा के पश्चात् भी कोई भी पूजा करने नहीं आता। जब उसकी पत्नी यह कहती है कि कोई नहीं आएगा तो विश्वजीत कहता है “कोई कैसे नहीं आएगा। घर के लोग ही न हों तो पूजा का क्या मतलब। यही तो मौके हैं, जब सब मिल बैठ पाते हैं।” मनीषा बिना बताए, बिना पूछे अपने किसी मित्र के साथ दीवाली मनाने जा चुकी होती है। इन्दू अपने पति के साथ दीवाली नाइट देखने जा रही है। दीपक दीवाली की शुभकामनाएँ देने मुख्यमन्त्री के घर गया है। रह गए दीप्ति और विवेक। उन्हें भी घर में होने वाली लक्ष्मी पूजा में कोई रुचि नहीं है। विश्वजीत के चेहरे की निराशा और उभर आती है, वह कहता है-“क्या हो गया है दुनिया को ? सब अकेले-अकेले अपने लिए ही जीना चाहते हैं। दूसरे की किसी को चिन्ता ही नहीं रह गई है। एक हमारा ज़माना था कि बड़ों की इजाजत के बिना कुछ कर ही न सकते थे।”

संतान से दुःखी :
विश्वजीत एक दुःखी पिता है, जिसकी सन्तान उसके कहने में नहीं है। विवेक के बेकार होने का उसे दुःख है। वह कहता है-“कुछ काम करता तो मेरी सहायता भी होती।” बेटों के व्यवहार से विश्वजीत को जो कष्ट होता है उसे वह निम्न शब्दों में व्यक्त करता है-“कैसा वक्त आ गया है ? एक हमारा ज़माना था, कितना प्यार, कितना मेल, एक कमाता दस खाते । हरेक एक-दूसरे से जुड़ने की कोशिश करता था और अब सब कुछ फट रहा है। सब एक-दूसरे से भागते हैं।”

उसकी पत्नी भी इस सम्बन्ध में व्यंग्य करती है “…… अपनी औलाद तो सम्भाले सम्भलती नहीं, बात करते हो भारत माता की।”

मानसिक असंतुलन :
विश्वजीत अपनी सन्तान के व्यवहार से दुःखी होकर जड़ हो जाता है। उसे जीवन में कोई रस नहीं दिखाई देता। गुस्से में आकर वह अपने आपको गालियाँ निकालने लगता है। हीन भावना और घोर निराशा का शिकार होकर वह आत्महत्या करने के लिए घर से बाहर चला जाता है, किन्तु यह सोचकर लौट आता है कि जब मौत का एक दिन निश्चित है तो आत्महत्या करके जान क्यों दी जाए। अन्तिम क्षण तक उसे बचा रखना चाहिए।

पिता का विश्वास :
जब विश्वजीत की पत्नी कहती है कि जब बच्चे उसे छोड़ कर चले गए तो वह भी बच्चों को छोड़ दे। तब विश्वजीत कहता है कि वह अपनी मजबूरियों का क्या करें। स्वभाव की, बच्चों को प्यार करने की. इनका बाप होने की तथा उनको खो देने पर यह आशा रखने की मजबूरी की एक दिन वे लौट आएंगे।

(ख) विवेक :

टूटते परिवेश एकांकी में विवेक पश्चिमी सभ्यता में रंगी नई युवा पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है। उसमें पुरानी पीढ़ी के प्रति घृणा है, बुजुर्गों के बनाए हुए नियमों का उल्लंघन करने में अपनी बहादुरी समझता है, उसके सामने न तो देश का हित है न ही अपने परिवार का। वह अपने माता-पिता की इज्जत भी नहीं करता। उसे अपनी सभ्यता, संस्कृति के प्रति कोई रुचि नहीं है। बस बात-बात में बड़ों से बहस करनी जानता है। नई पीढ़ी के बिगड़े हुए युवकों के सभी अवगुण उसमें मौजूद हैं।

परिचय :
विवेक, विश्वजीत का सब से छोटा बेटा है। उसकी आयु चौबीस वर्ष के लगभग हो गई है, किन्तु अभी तक बेकार है। बस अर्जियाँ लिखता रहता है। दूसरों को सफ़ाई की शिक्षा देने वाला विवेक अपनी अर्जियाँ तक भी सम्भाल कर नहीं रख सकता। वह घर में उन्हें इधर-उधर बिखेर देता है।

अव्यावहारिक :
विवेक एक ऐसा युवक है, जिसने किसी का आदर करना सीखा ही नहीं। उसे पुराने लोगों से चिढ़ है। चाहे वह उसका अपना बाप ही क्यों न हो। वह अपने बाप से कहता है-”पापा आप का ज़माना कभी का बीत गया। अब बीते जीवन की धड़कनें सुनने से अच्छा है कि वर्तमान की साँसों की रक्षा की जाए।” विवेक के पिता जब उसे दीवाली मनाने होटल पैनोरमा जाने से रोकते हैं तो वह उन्हें कहता है–“आप हमारे पिता हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं। लेकिन इसलिए ही आप हमें रोक नहीं रहे हैं। आप हमें इसलिए रोक रहे हैं कि आप हमें पैसे देते हैं। पिता तो आप शरद्, इन्दू, मनीषा सभी के हैं। उन्हें रोक सके आप ? मैं आप पर आश्रित हूँ लेकिन गुलाम नहीं।”

सभ्यता संस्कृति से दूर :
विवेक एक ऐसा युवक है, जिसे अपनी सभ्यता-संस्कृति का कोई लिहाज़ नहीं, जो बड़ों का मज़ाक उड़ा सकता है वह भला धर्म और देवी-देवताओं का आदर कैसे कर सकता है। दीवाली के दिन होने वाली लक्ष्मी पूजा का मजाक उड़ाता हुआ वह कहता है-“पूजा में देर कितनी लगती है-पाँच मिनट। पंडित जी तो आए नहीं बस आप तीन बार गायत्री मंत्र पढ़ लीजिए।”

चरित्रहीन तथा कायर :
विवेक की दृष्टि में चरित्र का कोई महत्त्व नहीं। चरित्र हीनता ने उसे कायर भी बना दिया है। उसकी छोटी बहन हिप्पी बनी अनेक युवकों के साथ आवारागर्दी करती है; सिगरेट पीती है। उसकी मर्दानगी नहीं
जागती। उसकी बड़ी बहन एक विधर्मी से, बिना सूचना दिए, बिना आज्ञा विवाह कर लेती है, उसे जोश नहीं आता। उल्टे वह अपनी बड़ी बहन के कृत्य को उचित ठहराता है।

संयुक्त परिवार में विश्वास :
विवेक संयुक्त परिवार की प्रणाली में विश्वास नहीं रखता। जब उसके पिता कहते हैं कि देश और समाज के प्रति तुम्हारे भी कुछ कर्त्तव्य हैं तो विवेक कहता है-“कर्त्तव्य की दुहाई दे देकर आप लोगों ने सदा अपना स्वार्थ साधा है। संयुक्त परिवार में बाँधे रखा है। अब भी आप चाहते हैं कि हम आपकी वैसाखी बने रहें। नहीं पापा! वैसाखियों का युग अब बीत गया।”

घुटन का अनुभव :
विवेक को अपने घर में अपने देश में घुटन महसूस होती है। इस घुटन से छुटकारा पाने का साधन वह विदेश जाकर प्राप्त करना चाहता है।

इस प्रकार लेखक ने विवेक के चरित्र द्वारा आज की युवा पीढ़ी के उन युवकों का चरित्र प्रस्तुत किया है, जिन्हें आता-जाता कुछ नहीं, डींगें बड़ी-बड़ी हांकते हैं। हर बात में दोष निकालते हैं करते-धरते कुछ नहीं। जैसे थोथा चना बाजे घना।

(ग) दीप्ति :

परिचय :
दीप्ति नई पीढ़ी की उस युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है जो मध्यवर्गीय परिवारों की होती हुई भी अमीर लोगों की नकल करना अपना धर्म समझती है। आधुनिक बनने के चक्कर में वह चरित्र भी गँवा बैठती है।

नारी स्वतन्त्रता का दुरुपयोग :
दीप्ति विश्वजीत की सब से छोटी लड़की है। मध्यवर्गीय परिवार में जन्म लेकर भी वह हिप्पी बनी घूमती है, ‘सिगरेट पीती है’, आवारागर्दी करती है। लड़कों से दोस्ती करती है और वयस्क होने से पूर्व ही नितिन नाम के लड़के से विवाह करने का निश्चय कर लेती है। अपने ईश्क की बात वह निधड़क होकर अपनी माँ से कहती है।

परम्पराओं से दूर :
दीप्ति अपने भाई की तरह त्योहार, धर्म, पूजा आदि में कोई रुचि नहीं रखती उसकी रुचि घर पर दीवाली की पूजा करने से अधिक क्लब या होटल में दीवाली नाइट मनाने की है। धर्म और पूजा का मज़ाक उड़ाना वह अपना अधिकार समझती है। वह कहती है-‘गायत्री मंत्र पढ़ना है तो यहाँ भी पढ़ा जा सकता है। फिर पूजा की ज़रूरत ही क्या है।’ पूजा करने को वह लकीर पीटना कहती है। वह कहती है-‘चलो भैया लकीर पीटनी है, पीट लो जब तक पीटी जा सके।

अपनी बड़ी बहन मनीषा द्वारा किसी विधर्मी से विवाह करने को वह बुरा नहीं समझती बल्कि वह अपनी बहन को बधाई देने को तैयार हो जाती है।

आधुनिक विचारधारा का दुरुपयोग :
दीप्ति आवारागर्दी करने का भी अपना अधिकार समझती है। वह अपने भाई से कहती है-मैं कहाँ जाती हूँ ? कहाँ नहीं जाती ? तुम्हें इससे मतलब ? दीप्ति आधुनिकता की झोंक में अपनी माँ तक का भी निरादर कर देती है। अपनी माँ के चूल्हा चौंका करना, दूसरों का इन्तज़ार करना कर्त्तव्य नहीं आदत लगती है।

इस तरह हम देखते हैं कि दीप्ति आधुनिकता की झोंक में एक बिगड़ी हुई लड़की के रूप में हमारे सामने आती है जो न बड़ों की इज्जत करती है, न धर्म, सभ्यता, संस्कृति की कोई परवाह करती है।

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प्रश्न 4.
‘आज की नारी स्वतन्त्रता की सीमा लाँध रही है’ एकांकी के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
टूटते परिवेश एकांकी में आधुनिकता की आड़ में नारी स्वतन्त्रता की सीमा लाँघती दिखाई गई है। एकांकी के आरम्भ में ही मनीषा का दर्शकों को सम्बोधन करके कहा गया निम्न कथन इसका एक उदाहरण है ………. मैं पछती हूँ कि मैं आपको इतनी नादान दिखाई देती हूँ कि अपना भला-बुरा न सोच सकूँ ? जी नहीं, मैं अपना मार्ग आपको चुनने का अधिकार नहीं दे सकती, नहीं दे सकती, कभी नहीं दे सकती। मैं जा रही हूँ, वहीं मैं जाना चाहती हूँ।” वही मनीषा अपने प्रेमी से विवाह रचा लेती है तो घरवालों को केवल फ़ोन पर सूचना भर देती है। वही मनीषा जब उसके पापा घर से गायब हो जाते हैं तो वह क्षण भर भी वहाँ ठहर नहीं सकती। नारी स्वातंत्र्य का वह अनुचित लाभ उठाती है।

इसी तरह का एकांकी का दूसरा पात्र दीप्ति का है जो अभी वयस्क नहीं हुई कि हिप्पी बनी घूमती है, आवारागर्दी करती है; सिगरेट पीती है। वह यह नहीं समझती कि वैश्या और देवी में कोई अन्तर होता है। दीप्ति को धार्मिक त्योहारों, धर्म में, पूजा इत्यादि में कोई रुचि नहीं है। दीवाली के दिन उसका ध्यान लक्ष्मी पूजा में न होकर क्लब या होटल में मनाई जा रही दीवाली नाइट की तरफ अधिक है। वह आधुनिकता की आँधी में बहती हुई राजनीतिक सिद्धान्तों से, धन का परिश्रम से, आनन्द का आत्मा से, ज्ञान का चरित्र से, व्यापार का नैतिकता से, विज्ञान का मानवीयता से और पूजा का त्याग से कोई सम्बन्ध नहीं मानती। दीवाली पूजा को वह लकीर पीटना कहती है। वह अभी वयस्क भी नहीं हुई कि अपने किसी प्रेमी से विवाह करने की बात अपनी माँ के मुँह पर ही कह देती है। इस पर अकड़ यह है कि अपनी माँ से कहती है………. फिर भी आप नाराज़ हैं तो मुझे इसकी चिन्ता नहीं। दीप्ति होस्टल में भी इसी उद्देश्य से भर्ती होती है कि उसे वहाँ हर तरह की आज़ादी मिल सके और कोई उसे रोकने-टोकने वाला न रहे।

इस प्रकार एकांकीकार ने नारी स्वातंत्र्य की आड़ में नारी को अपनी सीमाएँ लाँघते हुए दिखाया है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
विवेक और दीप्ति अपने पिता विश्वजीत से किस प्रकार व्यवहार करते हैं ?
उत्तर:
विवेक और दीप्ति अपने पिता से अच्छा व्यवहार नहीं करते। दीवाली की पूजा वे पिता के कहने पर घर पर करने को तैयार नहीं। पिता की बातें उन्हें बुजुर्गाई भाषा लगती है। वे पिता से बात-बात में बहस करते हैं। विवेक अपने पिता का गुलाम नहीं बनना चाहता। उसे सचरित्रता से कोई सरोकार नहीं और दीप्ति हिप्पी बनना, सिगरेट पीना, आवारागर्दी करना अपना अधिकार समझती है। उसने नितिन से विवाह करने का निश्चय करके एक तरह से विश्वजीत के मुँह पर तमाचा मारा है।

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प्रश्न 2.
विवेक विदेश क्यों जाना चाहता है ?
उत्तर:
विवेक अपने पिता को विदेश जाने का कारण बताते हुए कहता है कि वह विदेश में जाकर लोगों से यह जानने का प्रयास करेगा कि नैतिकता क्या है ? कर्त्तव्य और अधिकार की परिभाषा क्या है ? फिर एक पुस्तक लिखेगा और ईश्वर ने चाहा तो कुछ कर भी सकेगा। किन्तु वास्तविकता यह थी कि संयुक्त परिवार में रहकर उसका दम घुटता है। उस घर से उसे बदबू आती है। वह इस यंत्रण से छटपटाना नहीं चाहता, उससे मुक्ति चाहता है। वह अपने मातापिता के प्रति कर्त्तव्य की वैसाखी नहीं बनना चाहता इसीलिए वह मुक्ति के नाम पर भागना चाहता है।

प्रश्न 3.
देश के भीतर एक और देश बनाए बैठे हैं हम। भीतर के देश का नाम है स्वार्थ, जो प्रान्त, प्रदेश, धर्म और जाति-इन रूपों में प्रकट होता है।’ दीप्ति के इस कथन से किस समस्या की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियों में देश में फैले भ्रष्टाचार की समस्या को उठाया गया है। दलबदलु विधानसभा के सदस्य अपने स्वार्थ के कारण दल बदलते हैं और नाम लेते हैं देश भक्ति का कि उन्होंने यह कार्य देश हित में किया है। स्वार्थ समाज के हर क्षेत्र में व्याप्त है चाहे वह धर्म हो या जाति । सत्ता में भी बना रहना राजनीतिज्ञों का स्वार्थ हो गया है।

प्रश्न 4.
‘स्वभाव की मजबूरी, बच्चों को प्यार करने की मजबूरी इन का बाप होने की मजबूरी, इनको खो देने पर यह आशा रखने की मजबूरी कि एक दिन लौट आएंगे।’ इन पंक्तियों में विश्वजीत का अन्तर्द्वन्द्व स्पष्ट उभर कर आया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
विश्वजीत पुरानी पीढ़ी का है नयी पीढ़ी की उसकी सन्तान उसे छोड़कर चली गई है। परिवार टूट गया है अत: वह निराश होकर अपने को जीवित नहीं मानता है और अपनी गिनती मूर्यों में नहीं करता। उसकी पत्नी ने कहा भी था कि बच्चों के जाने के बाद वे स्वतन्त्र हो गए हैं, बच्चों के दायित्व से स्वतन्त्र हो गए हैं किन्तु विश्वजीत एक ऐसा बाप है, जिसे अपने बच्चों से मोह है, बच्चे उसे पुरानी पीढ़ी का मानते हैं जो उनके आधुनिक जीवन में फिट नहीं बैठता। परन्तु विश्वजीत पुरानी मान्यताओं के कारण मजबूर है कि एक दिन बच्चे उसे समझेंगे और उसे विश्वास है एक-न-दिन उसके बच्चे अवश्य लौट आएंगे। प्रस्तुत पंक्तियों में विश्वजीत के इस मानसिक द्वन्द्व की ओर संकेत किया गया है।

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प्रश्न 5.
इस एकांकी के माध्यम से लेखक ने नई पीढ़ी को क्या सन्देश दिया है ?
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी के माध्यम से लेखक ने यह सन्देश दिया है कि बड़े बुजुर्ग नई पीढ़ी को जो कहते हैं वह उनके भले के लिए कहते हैं। घर के बुजुर्गों के पास जीवन का बहुत बड़ा अनुभव होता है इसीलिए आधुनिक विचारधारा को अपनाते समय पुरानी परम्पराओं को नहीं भूलना चाहिए। परम्पराएं हमारे अस्तित्व की जड़े हैं इसीलिए बड़ों का कहना मानना ही उनका धर्म होना चाहिए। हर काम में मन मर्जी नहीं करनी चाहिए और सबसे बड़ा सन्देश यह है कि नई पीढ़ी को कभी भी अपनी सभ्यता और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए।

प्रश्न 6.
इस एकांकी का शीर्षक कहाँ तक सार्थक है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘टूटते परिवेश’ एकांकी का शीर्षक अत्यन्त उपयुक्त, सार्थक और सटीक बन पड़ा है। एकांकी में नई और पुरानी पीढ़ी के बीच हो रहे संघर्ष को परिवारों के टूटने का कारण बताया।

पुरानी पीढ़ी के आदमी अपने स्वभाव को नई पीढ़ी के स्वभाव के साथ बदल नहीं पाते। इसीलिए दोनों में टकराहट होती है। विश्वजीत पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है। वह नैतिकता, सिद्धान्त, त्याग, मानवीयता, धर्म तथा चरित्र निर्माण के परिवेश में रहना चाहता है जबकि उसकी संतान इस परिवेश से मुक्ति चाहती है। फलस्वरूप जीवन मूल्य ही बदल गए हैं। एकांकी के आरम्भ में ही मनीषा के कथन से इस तथ्य की ओर संकेत किया गया है। नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी का आदर नहीं करती है और उन्हें अपनी सभ्यता संस्कृति का सही ज्ञान नहीं है। ऐसे परिवेश टूटने से कैसे बच सकते हैं।

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PSEB 11th Class Hindi Guide टूटते परिवेश Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘टूटते परिवेश’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
टते परिवेश विष्णु प्रभाकर की रचना है।

प्रश्न 2.
‘टूटते परिवेश’ में लेखक ने क्या दर्शाया है ?
उत्तर:
टते परिवेश में लेखक ने देश में नवयुवकों की बदल रही सोच को दिखाया है।

प्रश्न 3.
विश्वजीत क्यों दुःखी था ?
उत्तर:
विश्वजीत परिवार के सदस्यों के व्यवहार से दुःखी था।

प्रश्न 4.
विश्वजीत के बड़े बेटे का क्या नाम है ?
उत्तर:
विश्वजीत के बड़े बेटे का नाम शरद है।

प्रश्न 5.
‘टूटते परिवेश’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
एकांकी।

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प्रश्न 6.
‘टूटते परिवेश’ में किस सोच को दिखाया गया है ?
उत्तर:
नवयुवकों की बदल रही सोच को।

प्रश्न 7.
पुरानी पीढ़ी ……….. में रहना चाहती है।
उत्तर:
नैतिकता एवं मानवीयता के धर्म।

प्रश्न 8.
‘टूटते परिवेश’ एकांकी कितने अंकों में बंटी है ?
उत्तर:
तीन अंकों में।

प्रश्न 9.
नयी पीढ़ी भारतीय सभ्यता का ………. उड़ाती है।
उत्तर:
मज़ाक।

प्रश्न 10.
नयी पीढ़ी के लोग दीपावली मनाने कहाँ जाते हैं ?
उत्तर:
होटलों एवं क्लबों में।

प्रश्न 11.
एकांकी के दूसरे अंक में पुरानी पीढ़ी का संघर्ष कैसा रूप धारण कर लेता है ?
उत्तर:
उग्र रूप।

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प्रश्न 12.
दीप्ति क्या बनकर घूमती है ?
उत्तर:
हिप्पी।

प्रश्न 13.
मनीषा किसी ……….. से विवाह कर लेती है।
उत्तर:
विधर्मी।

‘प्रश्न 14.
दीप्ति ने क्या पीना शुरू कर दिया था ?
उत्तर:
सिगरेट।

प्रश्न 15.
विवेक क्या लिखता रहता था ?
उत्तर:
अर्जियाँ।

प्रश्न 16.
विश्वजीत क्या करने के लिए घर से निकल जाता है ?
उत्तर:
आत्महत्या करने के लिए।

प्रश्न 17.
पुरानी पीढ़ी किसे बड़ा मानती है ?
उत्तर:
सचरित्रता को।

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प्रश्न 18.
पुरानी पीढ़ी सब कुछ हो जाने पर भी क्या नहीं त्यागती है ?
उत्तर:
संतान का मोह।

प्रश्न 19.
संयुक्त परिवार के टूटने का सबसे बड़ा कारण क्या है ?
उत्तर:
स्वार्थ में अंधा होना।

प्रश्न 20.
विश्वजीत की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर:
करुणा।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘टूटते परिवेश’ एकांकी के लेखक कौन हैं ?
(क) प्रेमचन्द
(ख) विष्णु प्रभाकर
(ग) देव प्रभाकर
(घ) मनु भंडारी।
उत्तर:
(ख) विष्णु प्रभाकर

प्रश्न 2.
इस एकांकी में लेखक ने किसकी बदलती सोच का चित्रण किया है ?
(क) लोगों की
(ख) नवयुवकों की
(ग) नेताओं की
(घ) लेखकों की।
उत्तर:
(ख) नवयुवकों की

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प्रश्न 3.
पुरानी पीढ़ी किसके परिवेश में रहना चाहती है ?
(क) नैतिकता के
(ख) त्याग के
(ग) मानवता के
(घ) इन सभी के।
उत्तर:
(घ) इन सभी के

प्रश्न 4.
नई पीढ़ी किसके परिवेश में रहना चाहती है ?
(क) अनैतिकता
(ख) उच्छृखलता
(ग) स्वच्छंदता
(घ) इन सभी के।
उत्तर:
(घ) इन सभी के।

कठिन शब्दों के अर्थ :

आलोकित करना-दिखाना। अर्जी-प्रार्थना-पत्र। बदइन्तजामी-ठीक से प्रबन्ध न होना। बुर्जुआई भाषा-सीधी और साफ़ बात कहना। इश्तहार-विज्ञापन। लकीर पीटना-बनी-बनाई परम्पराओं पर चलना। विध्वंस करना-नष्ट करना। सीलन-चिपचिपापन, गीला और सूखे के बीच की स्थिति। यन्त्रणाकष्ट, दुःख। निरर्थक-जिसका काई अर्थ न हो।

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टूटते परिवेश Summary

टूटते परिवेश एकांकी का सार

टूटते परिवेश’ एकांकी के लेखक विष्णु प्रभाकर हैं। इसमें उन्होंने देश में नवयुवकों की बदल रही सोच को दिखाया है। ज्ञान-विज्ञान और नागरीकरण का जो प्रभाव हमारे धार्मिक, सामाजिक या नैतिक जीवन पर पड़ा है, उसे एक परिवार की जीवन स्थितियों के माध्यम से दिखाया गया है। इसमें पुरानी पीढ़ी नैतिकता, सिद्धान्त, त्याग, मानवीयता धर्म और चरित्र के परिवेश में रहना चाहती है और नई पीढ़ी उच्छंखल, अनैतिक, अव्यवहारिक तथा स्वच्छंद वातावरण में रहना चाहती है। इसी से परिवार में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है और परिवार टूटकर बिखर जाता है। प्रस्तुत एकांकी तीन अंकों में बँटा हुआ है। किन्तु घटनास्थल एक ही है।

एकांकी की कथावस्तु एक मध्यवर्गीय परिवार की नई पुरानी दो पीढ़ियों के संघर्ष और परिवार टूटने की कहानी है। नाटक के आरम्भ में परिवार के मुखिया विश्वजीत और उसकी पत्नी करुणा तथा बेटियों मनीषा और दीप्ति का परिचय दिया गया है। दीवाली का शुभ दिन है और विश्वजीत चाहते हैं कि सारा परिवार मिल बैठकर पूजा करे किन्तु नई पीढ़ी तो पूजा अर्चना को एक ढोंग समझती है। यही नहीं नई पीढ़ी भारतीय सभ्यता का मज़ाक भी उड़ाती है। परिवार का कोई भी सदस्य पूजा करने घर नहीं पहुँचता। सब को अपनी-अपनी पड़ी है। सभी दीवाली घर पर नहीं होटलों और क्लबों में मनाने चले जाते हैं। . एकांकी के दूसरे अंक में नई और पुरानी पीढ़ी का संघर्ष उग्र रूप धारण कर लेता है। मनीषा किसी विधर्मी से विवाह कर लेती है। दीप्ति हिप्पी बनी आवारा घूमती है और सिगरेट भी पीने लगी है। विवेक, जो सिवाए अर्जियाँ लिखने के कोई दूसरा काम नहीं जानता, विद्रोह करने पर उतारू हो जाता है और उनका साथ देने की बात कहता है।

विश्वजीत परिवार के सदस्यों (नई पीढ़ी) के व्यवहार से दुःखी होकर आत्महत्या करने घर से निकल जाते हैं घर पर सारा परिवार एकत्र होता है किन्तु किसी के पास अपने परिवार के मुखिया को ढूँढ़ने का समय नहीं है। हर कोई न कोई बहाने बनाता है। किन्तु विश्वजीत स्वयं ही लौट आते हैं कि यह सोचकर कि आत्महत्या का अर्थ है मौत और मौत का एक दिन निश्चित है। तब आत्महत्या क्यों की जाए।
विश्वजीत के लौट आने पर उसका बड़ा बेटा शरद् तो उनसे हाल-चाल भी नहीं पूछता है और अपने काम की जल्दी बता कर चला जाता है। परिवार के दूसरे सदस्य भी चले जाते हैं और पुरानी पीढ़ी के लोग विश्वजीत और उसकी पत्नी अकेले रह जाते हैं इस आशा में कि उनके बच्चे एक-न-एक दिन लौट आएँगे।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 33 अधिकार का रक्षक

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 33 अधिकार का रक्षक Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 33 अधिकार का रक्षक

Hindi Guide for Class 11 PSEB अधिकार का रक्षक Textbook Questions and Answers

(क) लिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
अधिकार का रक्षक’ एकांकी का सार लिखें।
उत्तर:

प्रस्तुत एकांकी एक सशक्त व्यंग्य है। लेखक ने आज के राजनीतिज्ञों की कथनी और करनी के अन्तर को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। सेठ घनश्याम एक समाचार-पत्र के मालिक हैं। वे विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वोट प्राप्त करने के लिए वे हरिजनों-विद्यार्थियों, घरेलू नौकरों, बच्चों, स्त्रियों और मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करने का आश्वासन देते हैं किन्तु उनकी करनी उनकी कथनी के बिलकुल विपरीत है। वह अपने बच्चे को पीटते हैं। नौकर को गाली-गलौच करते हैं।

अपने नौकर भगवती और सफाई सेवादार को कई-कई महीने का वेतन नहीं देते। भगवती के द्वारा अपना वेतन माँगने पर उस का झूठा मुकदमा या चोरी का दोष लगाने की धमकी भी देते हैं। चुनाव भाषणों में वह मजदूरों के कार्य समय घटाने का आश्वासन देते हैं जबकि अपने समाचार-पत्र में अधिक समय तक काम करने के लिए कहते हैं। वेतन बढ़ाने की माँग करने पर वह उसे नौकरी छोड़ देने तक की धमकी भी देते हैं। वह विद्यार्थियों के वोट प्राप्त करने के लिए उन्हें तरह-तरह के आश्वासन देते हैं किन्तु उनके ब्यान को अपने समाचार-पत्र में छापने के लिए तैयार नहीं होते। स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करने का आश्वासन देने वाले वह घर पर अपनी पत्नी को डाँट फटकार करते हैं। तंग आकर उसकी पत्नी घर छोड़कर अपने मायके चली जाती है।

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प्रश्न 2.
‘अधिकार का रक्षक’ जन प्रतिनिधियों की कथनी और करनी में व्याप्त अन्तर स्पष्ट करता है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
वोट प्राप्त करने के लिए जन प्रतिनिधि तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। वे जनता के हर वर्ग को आश्वासन देते हैं कि उनके अधिकारों की रक्षा करेंगे। किन्तु उनकी कथनी और करनी में भारी अन्तर होता है। एकांकी में सेठ घनश्याम जो विधान सभा का चुनाव लड़ रहे हैं, वह हरिजनों के कल्याण का वायदा करता है किन्तु अपनी सफाई सेवादार को कई-कई महीने वेतन नहीं देता। वह चुनाव सभाओं में घरेलू नौकरों के अधिकारों की रक्षा करने का वायदा करता है किन्तु अपने घरेलू नौकर को वेतन तक नहीं देता।

मांगने पर उसे झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी देता है। मजदूरों से अधिकारों की रक्षा करने का वायदा करने वाला अपने ही समाचार-पत्र के मैनेजर को अधिक समय तक काम करने की बात कहता है। वह विद्यार्थियों के अधिकारों की रक्षा करने की बात कहता है किन्तु उनके बयान को अपने समाचार-पत्र में छापने को तैयार नहीं है। वह बच्चों और स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करने का वायदा करता है किन्तु अपने ही पुत्र और पत्नी को पीटता एवं डॉटता है। इस तरह प्रस्तुत एकांकी में जन-प्रतिनिधियों की कथनी और करनी में अन्तर को स्पष्ट किया गया। वोट प्राप्त करने के लिए वे खोखले आश्वासन ही देते हैं जबकि यथार्थ जीवन में उनकी करनी कथनी के बिल्कुल विपरीत होती है।

प्रश्न 3.
‘अधिकार का रक्षक’ एकांकी में अधिकार का रक्षक कौन है ? क्या वह वास्तव में अधिकारों का रक्षक है?
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी में सेठ घनश्याम को अधिकार का रक्षक चित्रित किया गया है। वह वास्तव में अधिकारों का रक्षक नहीं है। वह केवल आश्वासन ही देता है। बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने का वायदा करने वाला, अपने ही बच्चे को मेले में जाने के लिए पैसे मांगने पर पीटता है, डाँटता है। कथनी में वह बच्चों को शारीरिक दण्ड दिए जाने के विरुद्ध है। पर करनी में इसके बिलकुल विपरीत। वह हरिजनों के अधिकारों की रक्षा करने का आश्वासन देता है किन्तु अपनी ही सफ़ाई सेवादार को कई-कई महीने वेतन नहीं देता।

चुनाव में घरेलू नौकरों के अधिकारों की रक्षा करने का वायदा करता है। परन्तु अपने घरेलू नौकर को एक तो कई महीने वेतन नहीं देता ऊपर से उसे धमकाता भी है। वह स्त्रियों और बच्चों, विद्यार्थियों और मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करने का आश्वासन देता है। किन्तु यथार्थ में उसके बिल्कुल विपरीत व्यवहार करता है। वास्तव में घनश्याम अधिकारों का रक्षक नहीं है। वह तो मात्र चुनाव जीतने के लिए भोले-भाले लोगों को झूठे आश्वासन देकर उनके वोट प्राप्त करना चाहता है जो आज का प्रत्येक नेता करता है। चुनाव जीत जाने के बाद नेता जी सारे वायदे सारे आश्वासन भूल जाते हैं।

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प्रश्न 4.
‘अधिकार का रक्षक’ एक सफल रंगमंचीय एकांकी है-सिद्ध करें।
उत्तर:
एकांकी को रंगमंच के अनुरूप बनाने के लिए संवादों का प्रभावोत्पादक होना तो जरूरी है ही साथ ही उचित रंग निर्देश होना भी जरूरी है जिससे एकांकी को सफलतापूर्वक अभिनीत किया जा सके। अश्क जी ने प्रस्तुत एकांकी में पात्रों के हाव-भाव प्रकट करने के लिए यथेष्ठ रंग संकेत दिये हैं जैसे विद्यार्थियों से बात करते हुए कुछ प्रोत्साहित होकर, गिरी हुई आवाज़ में, अन्यमनस्कता से आदि। इसी प्रकार क्रोध से अखबार को तख्तपोश पर पटककर क्रोध से पागल होकर पत्नी को ढकेलते हुए आदि।

एकांकी में संकलन अथवा स्थान, कार्य और समय की एकता का भी ध्यान रखा गया है। एकांकी की घटनाएं सेठ घनश्याम के ड्राइंग रूप में ही घटती हैं। मंच सज्जा भी जटिल नहीं है। इसी कारण आजकल यह एकांकी अनेक बार स्कूलों और कॉलेजों के रंगमंच पर सफलतापूर्वक अभिनीत किया गया है।

प्रश्न 5.
(i) अधिकार का रक्षक’ के आधार पर मि० सेठ का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी में सेठ घनश्याम मुख्य पात्र है, अन्य पात्र बहुत थोड़ी देर के लिए रंगमंच पर आते हैं। सेठ घनश्याम अमीर आदमी है, एक दैनिक समाचार-पत्र का मालिक है। अमीर होने के कारण वह विधान सभा का चुनाव लड़ रहा है। किन्तु वह कंजूस भी है। अपने नौकर भगवती को तथा सफ़ाई सेवादार को कई महीनों का वेतन नहीं देता हालांकि चुनाव पर लाखों खर्च करने की क्षमता रखता है। बेटे को मेला देखने जाने पर पैसे माँगने पर भड़क उठता है। उसे मारतापीटता और डाँटता है। अपने सम्पादक का वेतन पाँच रुपए तक बढ़ाने को तैयार नहीं।

सेठ घनश्याम की करनी और कथनी में अन्तर है। वह समाज के हर वर्ग को झूठे आश्वासन देता है किन्तु यथार्थ जीवन में इसके विपरीत व्यवहार करता है। सेठ घनश्याम आज के नेता वर्ग का सच्चा प्रतिनिधित्व करता है। चुनाव आने पर जनता से झूठे वायदे करना और चुनाव जीत जाने के बाद जनता को मुँह तक न दिखाना।

प्रश्न 5
(ii) भगवती तथा राम-लखन के चरित्र की विशेषताएँ लिखो।
उत्तर :
भगवती :
भगवती सेठ घनश्याम का रसोइया है। भगवती ईमानदार नौकर है जी-जान से अपने मालिक की सेवा करता है। परन्तु जब उसे महीनों वेतन नहीं मिलता तो वह मुँहफट हो जाता है। अपना पूरा वेतन पाने के लिए सेठ से ज़िद्द करता है और जब सेठ उसे चोरी के अपराध में कैद कराने की धमकी देता है तो भगवती कहता है-गरीब लाख ईमानदार हो तो भी चोर है, डाकू है और वह सेठ को चन्दे के नाम पर हज़ारों डकार जाने की खरी-खरी भी सुना देता है।

रामलखन :
रामलखन सेठ घनश्याम का नौकर है। वह स्वामी भक्त है, बच्चों से स्नेह करने वाला है। सेठ द्वारा अपने बेटे को पीटे जाने पर वह उसे छुड़ाता है। रामलखन से गरीबों का दुःख नहीं देखा जाता। इसी कारण वह सफ़ाई सेवादार को मज़दूरी माँगने सेठ के कमरे में जाने देता है।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
अधिकार का रक्षक’ एकांकी का नामकरण कहाँ तक सार्थक है-स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी एक व्यंग्य एकांकी है। इसमें राजनीतिज्ञों या जन प्रतिनिधि कहलाने वाले व्यक्तियों की कथनी और करनी को स्पष्ट करते हुए उनके द्वारा भोली-भाली जनता को झूठे आश्वासन देकर वोट प्राप्त करने की कला पर व्यंग्य किया गया है। जो व्यक्ति चुनाव सभाओं में दूसरों के अधिकारों की रक्षा करने की बड़ी-बड़ी डींगें हाँकता है, वही अपने यथार्थ जीवन में उनकी अवहेलना करता है अतः अधिकार का रक्षक न केवल सार्थक नामकरण है बल्कि एकांकी के कथ्य को भी स्पष्ट करने वाला है।

प्रश्न 2.
‘अधिकार का रक्षक’ श्री उपेन्द्रनाथ अश्क’ का सफल सामाजिक व्यंग्य है, सिद्ध करें।
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी अश्क जी ने सन् 1938 में लिखा था किन्तु इस एकांकी को पढ़कर हमें ऐसा लगता है कि मानो यह आज के राजनीतिज्ञों पर पूरा उतरता है। प्रस्तुत एकांकी में अश्क जी ने सेठ घनश्याम के माध्यम से नेताओं की पोल खोली है। नेता लोग चुनाव आने पर ही जनता को मुँह दिखाते हैं। उन्हें हाथ जोड़ते हैं। उन्हें झूठे आश्वासन देते हैं। चाहे ग़रीबी हटाओ का नारा हो चाहे सामाजिक अन्याय को दूर करने की बात हो। ये सब चुनाव तक ही सीमित रहते हैं। सेठ घनश्याम भी बच्चों, स्त्रियों, हरिजनों, घरेलू नौकरों, विद्यार्थियों और मज़दूरों से उनके अधिकारों की रक्षा करने की बात करते हैं जब अपने ही घर में यथार्थ जीवन में वे इन अधिकारों का हनन करते हैं। एकांकी में यही व्यंग्य छिपा है जिसे अश्क जी ने पूरी तरह चित्रित किया है।

प्रश्न 3.
‘अधिकार का रक्षक’ व्यंग्य के माध्यम से मानवीय नैतिक मूल्यों की स्थापना का प्रयास किया गया है, सिद्ध करें।
उत्तर:
‘अधिकार का रक्षक’ में व्यंग्य के माध्यम से जनता के प्रतिनिधियों के कच्चे चिट्टे को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया गया है। चुनाव आने पर जिस तरह राजनीतिज्ञ जनता से झूठे वायदे करते हैं उसकी पोल खोली गयी है। चुनाव के दिनों में हर नेता जनता के प्रत्येक वर्ग से अपना भाई-चारा जताता हुआ हाथ जोड़ता है। इसका यथार्थ रूप हमारे सामने प्रस्तुत किया गया है। इस व्यंग्य के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि जनता को पहचानना चाहिए कि उनके अधिकारों का रक्षक वास्तव में कौन है। ग़रीबी हटाओ या सामाजिक अन्याय दूर करने के नारे क्या वोट हथियाने के हत्थकंडे तो नहीं हैं। आज के युग में राजनीति का जो अपराधीकरण हो रहा है उसकी रोकथाम केवल वोटर ही कर सकता है।

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PSEB 11th Class Hindi Guide अधिकार का रक्षक Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सेठ घनश्याम कौन थे ?
उत्तर:
सेठ घनश्याम एक समाचार-पत्र के मालिक थे।

प्रश्न 2.
सेठ घनश्याम किस चीज़ का चुनाव लड़ रहे थे ?
उत्तर:
सेठ घनश्याम विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे।

प्रश्न 3.
वोट प्राप्त करने के लिए सेठ ने क्या किया ?
उत्तर:
सेठ ने तरह-तरह के हथकंडे अपनाए।

प्रश्न 4.
‘अधिकार का रक्षक’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
एकांकी।

प्रश्न 5.
‘अधिकार का रक्षक’ एकांकी मुख्य रूप से क्या है ?
उत्तर:
सशक्त व्यंग्य है।

प्रश्न 6.
‘अधिकार का रक्षक’ एकांकी में लेखक ने क्या उजागर किया है?
उत्तर:
आज के राजनीतिज्ञों की कथनी-करनी में अंतर को स्पष्ट किया है।

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प्रश्न 7.
सेठ घनश्याम किन लोगों के अधिकारों की रक्षा का आश्वासन देते हैं ?
उत्तर:
हरिजनों, विद्यार्थियों, बच्चों, स्त्रियों, मजदूरों आदि।

प्रश्न 8.
सेठ घनश्याम अपने बच्चे को ……. थे।
उत्तर:
पीटते।

प्रश्न 9.
सेठ घनश्याम के नौकर का क्या नाम था ?
उत्तर:
भगवती।

प्रश्न 10.
सेठ घनश्याम ने भगवती को क्या धमकी दी ?
उत्तर:
झूठा मुकद्दमा तथा चोरी का दोष लगाने की।

प्रश्न 11.
सेठ घनश्याम अपनी पत्नी को ……….. थे।
उत्तर:
डाँटते फटकारते।

प्रश्न 12.
सफाई सेवादार को कई-कई महीनों का ……. नहीं देते थे।
उत्तर:
वेतन।

प्रश्न 13.
सेठ घनश्याम चुनाव सभाओं में ………… करता है।
उत्तर:
घरेलू नौकरों की रक्षा करने का वादा।

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प्रश्न 14.
चुनाव आने पर अधिकतर राजनीतिज्ञ ………….. करते हैं।
उत्तर:
जनता से झूठे वादे।

प्रश्न 15.
सेठ घनश्याम की कथनी और करनी में ……….. है।
उत्तर:
अंतर।

प्रश्न 16.
सेठ घनश्याम आज के नेता वर्ग का ……….. करता है।
उत्तर:
सच्चा प्रतिनिधित्व।

प्रश्न 17.
सेठ घनश्याम ने मजदूर की किस मांग का समर्थन किया ?
उत्तर:
काम समय की कमी।

प्रश्न 18.
सेठ घनश्याम ने मजदूरों की माँग का किससे समर्थन किया ?
उत्तर:
होजरी यूनियन के मन्त्री से एसेम्बली में।

प्रश्न 19.
मजदूरों से कितने घंटे काम लिया जाता था ?
उत्तर:
तेरह-तेरह घंटे।

प्रश्न 20.
व्यक्ति भले ही बूढ़ा हो किंतु उसके विचार…… नहीं होने चाहिए।
उत्तर:
बूढ़े।

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बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘अधिकार का रक्षक’ रचना की विधा है।
(क) कथा
(ख) लघुकथा
(ग) कहानी
(घ) एकांकी।
उत्तर:
(घ) एकांकी

प्रश्न 2.
‘अधिकार का रक्षक’ कैसी रचना है ?
(क) व्यंग्य प्रधान
(ख) भाव प्रधान
(ग) प्रेम प्रधान
(घ) रस प्रधान।
उत्तर:
(क) व्यंग्य प्रधान

प्रश्न 3.
इस एकांकी में लेखक ने राजनीतिज्ञों के किस अंत का चित्रण किया है ?
(क) कथनी-करनी
(ख) करनी-भरनी
(ग) जैसा-तैसा
(घ) धन-धान्य।
उत्तर:
(क) कथनी-करनी।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

सुगमता = आसानी से। शोचनीय = खराब। पद्धति = नियमावली, परम्परा। दकियानूसी = पुराने विचार । निरीह = बेचारे । हिमायत करना = पक्ष लेना, सिफ़ारिश करना। प्रोपेगेंडा = किसी के पक्ष में प्रचार करना। वक्तव्य = भाषण। श्रमजीवियों = मज़दूरी करने वाले। सोलह आने = एक रुपया (पहले एक रुपए में सोलह आने होते थे, एकदम सही। प्रवाहिका = बहाने वाली। वैधानिक = कानूनी। जूं न रेंगना = सुनकर अनसुना कर देना। आफत आना = मुसीबत आना। सलीका = ढंग। मृदुलता = नम्रता। माधुर्य = मिठास।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) वास्तव में मैंने अपना समस्त जीवन पीड़ितों, पद दलितों और गिरे हुओं को ऊपर उठाने में लगा दिया है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम ने टेलीफोन पर मंत्री हरिजन सभा से बात करते हुए कही हैं।

व्याख्या :
जब मंत्री हरिजन सभा सेठ घनश्याम को यह बताता है कि उनके भाषण से सारे हरिजन उनके पक्ष में हो गए हैं तो वह अपनी प्रशंसा करता हुआ कहता है कि असल में मैंने अपना सारा जीवन पीड़ितों, पद दलितों और गिरे हुओं को ऊपर उठाने में लगा दिया है।

विशेष :
यह कह कर सेठ हरिजनों की वोट पक्की करना चाहता है।

(2) सच है बाबू जी ग़रीब लाख ईमानदार हो तो भी चोर है, डाकू है और अमीर यदि आँखों में धूल झोंक कर हज़ारों पर हाथ साफ कर जाए, चन्दे के नाम पर सहस्त्रों।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम के रसोइए भगवती ने सेठ से उस समय कही हैं जब अपना पिछला वेतन माँगने पर सेठ उस पर चोरी का दोष लगा कर जेल भिजवाने की धमकी देता है।

व्याख्या :
सेठ की धमकी सुनकर भगवती ने कहा कि बाबू जी यह सच है कि ग़रीब लाख ईमानदार हो तब भी वह चोर-डाकू कहलाता है जबकि अमीर व्यक्ति दूसरों की आँखों में धूल झोंक कर हज़ारों रुपयों पर हाथ साफ कर जाता है। वह चन्दे के नाम पर हजारों रुपए खा जाए तो भी चोर नहीं ईमानदार बना रहता है। गरीब व्यक्ति की कोई नहीं सुनता।

विशेष :
भगवती के उत्साह और मुँहफट होने का प्रमाण मिलता है। उनकी कथनी और करनी एक है।

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(3) इस ओर से आप बिल्कुल निश्चिन्त रहें। मैं उन आदमियों में से नहीं, जो कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। मैं जो कहता हूँ वही करता हूँ और जो करता हूँ वही कहता हूँ।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम ने टेलीफोन पर होजरी यूनियन के मन्त्री से कही हैं।

व्याख्या :
सेठ घनश्याम मजदूरों की दशा सुधारने सम्बन्धी अपने आश्वासन के विषय में होजरी यूनियन के मन्त्री से कहते हैं कि आप निश्चिन्त रहें क्योंकि मैं चुनाव जीतकर मजदूरों के लिए अवश्य काम करूँगा। मैं उन आदमियों में से नहीं जो कहते कुछ हैं और करते कुछ। मैं जो कहता हूँ वही करता हूँ और जो करता हूँ वही कहता हूँ। उनकी कथनी और करनी एक है।

विशेष :
सेठ के चरित्र की विशेषता की ओर संकेत किया गया है जो चुनाव आने पर हर वर्ग को झूठे आश्वासन देता है।

(4) सप्ताह में 42 घंटे काम की माँग कोई अनुचित नहीं। आखिर मनुष्य और पशु में कुछ तो अन्तर होना चाहिए। तेरहतेरह घंटे की ड्यूटी। भला काम की कुछ हद भी है।

प्रसंग :
यह अवतरण श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से अवतरित है। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम ने होजरी यूनियन के मन्त्री से मजदूरों के काम के समय कम करवाने सम्बन्धी आश्वासन देते हुए कही हैं।

व्याख्या :
सेठ घनश्याम ने होजरी यूनियन के मन्त्री से एसेम्बली में मजदूरों के काम समय में कमी की माँग का समर्थन करने का आश्वासन देते हुए कहा कि सप्ताह में 42 घंटे काम की माँग कोई अनुचित माँग नहीं है। आखिर मनुष्य और पशु में कोई तो अन्तर होना चाहिए। मनुष्यों की तुलना पशुओं से नहीं की जानी चाहिए। विशेषकर काम समय को लेकर। मज़दूरों से जो तेरह-तेरह घण्टे काम लिया जाता है यह अनुचित है। इसलिए काम की भी कोई सीमा होनी चाहिए।

विशेष :
सेठ घनश्याम के चरित्र की विशेषता पर प्रकाश डाला गया है जो वोट प्राप्त करने के लिए मज़दूर वर्ग को भी समर्थन देने का आश्वासन देते हैं।

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(5) जिन लोगों का मन बूढ़ा हो चुका है वे नवयुवकों का प्रतिनिधित्व क्या खाक करेंगे ? युवकों को तो उस नेता की आवश्यकता है जो शरीर से चाहे बूढ़ा हो चुका हो, पर जिसके विचार बूढ़े न हों, जो रिफोर्म से खौफ न खाये, सुधारों से कभी न कतराये।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम ने छात्र प्रतिनिधियों से कही हैं जो उनका वक्तव्य पढ़कर उन्हें अपना समर्थन देने आए थे।

व्याख्या :
सेठ घनश्याम छात्रों से कहते हैं कि उन्होंने अपने वक्तव्य में ठीक ही लिखा था कि जिन लोगों का मन बूढा हो चुका है वे नवयुवकों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते। व्यक्ति भले ही शरीर से बूढ़ा हो किन्तु उसके विचार बूढ़े नहीं होने चाहिएँ तथा वह सुधारों से डरे नहीं और न ही उन से कभी कतराये।

विशेष :
सेठ घनश्याम के चरित्र की विशेषता पर प्रकाश डाला गया है जो वोट पाने के लिए हर किसी की चिरौरी करना चाहता है।

(6) आप के पास हमारी बात सुनने के लिए कभी वक्त होता भी है ? मारने और पीटने के लिए जाने कहाँ से समय निकल आता है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ से सेठ घनश्याम की पत्नी ने सेठ से उसके द्वारा बच्चे को पीटने पर कही हैं।

व्याख्या :
सेठ घनश्याम ने अपनी पत्नी को जब कहा कि उसके पास समय नहीं है, वह वहाँ से चली जाए तो उसने बच्चे के लाल हुए कान दिखाते हुए कहा कि आप के पास हमारी बात सुनने का कभी समय नहीं होता किन्तु बच्चे को मारनेपीटने के लिए न जाने कहाँ से समय मिल जाता है। वह अपने परिवार के प्रति क्रूर है।।

विशेष :
बच्चों को शारीरिक दण्ड दिए जाने का विरोध करने वाले सेठ घनश्याम अपने ही बच्चे को पीटते हैं। इससे उनकी कथनी और करनी में अन्तर स्पष्ट होता है।

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(7) ये बाप नहीं दुश्मन हैं। लोगों के बच्चों से प्रेम करेंगे, उनके सिर पर प्यार का हाथ फेरेंगे, उनके स्वास्थ्य के लिए बिल पास करायेंगे, उनकी उन्नति के लिए भाषण झाड़ते फिरेंगे और अपने बच्चों के लिए भूलकर भी प्यार का एक शब्द जबान पर न लाएँगे।

प्रस्तुत :
पंक्तियाँ श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम की पत्नी ने सेठ से उस समय कही हैं जब वह बच्चे को पीटने की शिकायत लेकर आती है और सेठ उसे वहाँ से चले जाने को कहते हैं तो वह सिर चढ़ कर बच्चे को थप्पड़ लगाती हुई कहती है।

व्याख्या :
सेठ घनश्याम की पत्नी अपने बच्चे को पति के सिर चढ़कर पीटती हुई कहती है कि तू उस कमरे में न आया कर वे बाप नहीं दुश्मन हैं। ये दूसरें के बच्चों से तो प्यार करेंगे, उनके सिर पर प्यार भरा हाथ फेरेंगे, उनकी सेहत के लिए विधानसभा में बिल पास करायेंगे, उनको उन्नति के लिए भाषण देते फिरेंगे। किन्तु अपने बच्चों के लिए भूलकर भी इनकी जुबान पर एक शब्द न आएगा।

विशेष :
सेठ घनश्याम की कथनी और करनी में अन्तर को स्पष्ट किया गया है।

(8) आप निश्चिय रखें। मैं जी जान से स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करूँगा। महिलाओं के अधिकारों का मुझ से बेहतर रक्षक आप को वर्तमान उम्मीदवारों में कहीं नज़र नहीं आएगा।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम ने महिला समाज की प्रधान से टेलीफोन पर बात करते हुए उस समय कहीं हैं जब उनकी अपनी पत्नी उनसे दुखी होकर मायके जाने की तैयारी करती है।

व्याख्या :
सेठ घनश्याम महिला समाज की प्रधान से आश्वासन देते हुए कहते हैं कि आप निश्चय रखें। मैं जी जान से स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करूँगा। वर्तमान उम्मीदवारों में मुझ से बेहतर महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने वाला दूसरा न मिलेगा। अतः वोट मुझे ही दें।

विशेष :
सेठ घनश्याम की कथनी और करनी में अन्तर को स्पष्ट किया गया है जो जन प्रतिनिधियों का विशेष गुण माना जाता है। एकांकी के कथ्य की ओर भी संकेत किया गया है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 33 अधिकार का रक्षक

अधिकार का रक्षक Summary

अधिकार का रक्षक एकांकी का सार

प्रस्तुत एकांकी एक सशक्त व्यंग्य है। लेखक ने आज के राजनीतिज्ञों की कथनी और करनी के अन्तर को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। सेठ घनश्याम एक समाचार-पत्र के मालिक हैं। वे विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वोट प्राप्त करने के लिए वे हरिजनों-विद्यार्थियों, घरेलू नौकरों, बच्चों, स्त्रियों और मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करने का आश्वासन देते हैं किन्तु उनकी करनी उनकी कथनी के बिलकुल विपरीत है। वह अपने बच्चे को पीटते हैं। नौकर को गाली-गलौच करते हैं।

अपने नौकर भगवती और सफाई सेवादार को कई-कई महीने का वेतन नहीं देते। भगवती के द्वारा अपना वेतन माँगने पर उस का झूठा मुकदमा या चोरी का दोष लगाने की धमकी भी देते हैं। चुनाव भाषणों में वह मजदूरों के कार्य समय घटाने का आश्वासन देते हैं जबकि अपने समाचार-पत्र में अधिक समय तक काम करने के लिए कहते हैं। वेतन बढ़ाने की माँग करने पर वह उसे नौकरी छोड़ देने तक की धमकी भी देते हैं। वह विद्यार्थियों के वोट प्राप्त करने के लिए उन्हें तरह-तरह के आश्वासन देते हैं किन्तु उनके ब्यान को अपने समाचार-पत्र में छापने के लिए तैयार नहीं होते। स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करने का आश्वासन देने वाले वह घर पर अपनी पत्नी को डाँट फटकार करते हैं। तंग आकर उसकी पत्नी घर छोड़कर अपने मायके चली जाती है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 32 नई नौकरी

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 32 नई नौकरी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 32 नई नौकरी

Hindi Guide for Class 11 PSEB नई नौकरी Textbook Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें।

प्रश्न 1.
यशोदा अपने बेटे का घर क्यों छोड़ आई थी ?
उत्तर:
यशोदा अपने पति की मृत्यु के बाद अपने बेटे सुबोध के पास रहने लगी थी। परन्तु सुबोध की पत्नी ने यशोदा को अपने पास ज्यादा देर रहने नहीं दिया। दोनों में प्रतिदिन झगड़े होने लगे थे। एक दिन जब झगड़ा सीमा से बाहर हो गया तो यशोदा बेटे सुबोध का घर छोड़कर वापिस आ गई थी।

प्रश्न 2.
सुबोध यशोदा को लेने क्यों आया था ?
उत्तर:
सुबोध यशोदा, अपनी माँ, को लेने स्वार्थवश आया था। उसकी पत्नी को नौकरी मिल गई थी और घर तथा छोटे बेटे की सँभाल की समस्या उसके सामने खड़ी हो गयी थी। उसने घर के खर्चे में कमी करने के लिए नौकरानी को भी हटा दिया था। सुबोध यशोदा को ममतावश नहीं, स्वार्थवश अपने साथ शहर ले जाने के लिए आया था।

प्रश्न 3.
नई नौकरी लघु कथा आज के टूटते परिवारों व भौतिकवादी परिवेश की कहानी है, 60 शब्दों में स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत लघु कथा आधुनिक जीवन के स्वार्थमय परिवेश की कहानी है। इसी स्वार्थ ने संयुक्त परिवार परम्परा को छिन्न-भिन्न करके रख दिया है। बेटा सुबोध अपनी माँ यशोदा को अपने स्वार्थ के कारण लेने आया है। उसकी पत्नी ने पहले उसकी माँ को नहीं रखा था परन्तु जब उसकी नौकरी लग गई और बच्चे और घर सम्भालने की बात आई तो उसने माँ को अपने पास बुलवाने के लिए सुबोध को माँ के पास भेज दिया। इससे परिवारों में आए स्वार्थ और भौतिकवादी परिवेश का पता चलता है। आज रिश्तों की बुनियाद केवल स्वार्थ पर आधारित होकर रह गई है। माँ बेटे का प्यार हो या भाई-भाई का प्यार सभी स्वार्थ की बलि चढ़ गए हैं।

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PSEB 11th Class Hindi Guide नई नौकरी Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यशोदा अपना गुज़ारा कैसे करती थी ?
उत्तर:
लोगों के घर में बर्तन साफ करके।

प्रश्न 2.
यशोदा के बेटे का क्या नाम था ?
उत्तर:
सुबोध।

प्रश्न 3.
सुबोध को यशोदा को लाने के लिए किसने भेजा था ?
उत्तर:
सुबोध को उसकी पत्नी ने भेजा था ।

प्रश्न 4.
‘नई नौकरी’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
लघु कथा।

प्रश्न 5.
‘नई नौकरी’ लघुकथा किसके द्वारा रचित है ?
उत्तर:
विनोद शर्मा द्वारा।

प्रश्न 6.
‘नई नौकरी’ लघुकथा में लेखक ने किस बात का उल्लेख किया है ?
उत्तर:
आधुनिक जीवन के स्वार्थमय परिवेश का।

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प्रश्न 7.
आज के जीवन में रिश्तों की अहमियत किस बात पर टिकी है ?
उत्तर:
स्वार्थ के आधार पर।

प्रश्न 8.
सुबोध यशोदा को लेने क्यों आया था ?
उत्तर:
स्वार्थ के कारण।

प्रश्न 9.
सुबोध की पत्नी को ……… मिल गई थी।
उत्तर:
नौकरी।

प्रश्न 10.
सुबोध की पत्नी के समक्ष कौन-सी समस्या थी ?
उत्तर:
घर-परिवार तथा बच्चे को संभालने की।

प्रश्न 11.
घर के खर्चे में कमी के लिए सुबोध की पत्नी ने क्या किया ?
उत्तर:
घर की नौकरानी को हटा दिया।

प्रश्न 12.
सुबोध यशोदा को कहाँ ले जाना चाहता था ?
उत्तर:
अपने साथ शहर में।

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प्रश्न 13.
स्वार्थ के कारण आजकल …….. टूट रहे हैं।
उत्तर:
संयुक्त परिवार।

प्रश्न 14.
आज रिश्तों की नींव किस पर आधारित है ?
उत्तर:
स्वार्थ पर।

प्रश्न 15.
आज सभी रिश्ते ……….. की बलि चढ़ गए हैं।
उत्तर:
स्वार्थ की।

प्रश्न 16.
यशोदा किस बात को सुनकर सन्न रह जाती है ?
उत्तर:
नौकरानी को हटाने की बात को सुनकर।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘नई नौकरी’ किस विधा की रचना है ?
(क) लघु कथा
(ख) कथा
(ग) कहानी
(घ) उपन्यास।
उत्तर:
(क) लघु कथा

प्रश्न 2.
‘नई नौकरी’ लघुकथा में कैसे परिवेश का चित्रण है ?
(क) प्रेमपूर्ण
(ख) स्वार्थपूर्ण
(ग) धनी
(घ) निर्धन।
उत्तर:
(ख) स्वार्थपूर्ण

प्रश्न 3.
‘नई नौकरी’ लघुकथा में किस काल का वर्णन है ?
(क) आदिकाल
(ख) आधुनिक काल
(ग) भक्ति काल
(घ) पुरातन काल।
उत्तर:
(ख) आधुनिक काल।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

डूब मरना-अपमान अनुभव करना। कहा-सुनी-वाद-विवाद। खुशी से पागल होना-बहुत अधिक खुश होना। चौका बर्तन-रसोई घर का काम। सन होना-सोचने समझने की शक्ति समाप्त होना। लुप्त होना-समाप्त होना।

नई नौकरी Summary

नई नौकरी कथा सार

‘नई नौकरी’ लघुकथा विनोद शर्मा द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने आधुनिक जीवन के स्वार्थमय परिवेश का वर्णन किया है। आज के जीवन में रिश्तों की अहमियत स्वार्थ के आधार पर टिक-सी गई है। यशोदा लोगों के घरों में बर्तन साफ़ करके अपना गुजारा कर रही है। एक दिन उसका बेटा सुबोध उसे लेने आता है यशोदा खुश हो जाती है। अचानक उसे सुबोध की पत्नी की याद आती है कि वह उसे पसंद नहीं करती। वह बेटे से कहती है कि उसकी पत्नी उसे पसंद नहीं करती है तब सुबोध उसे बताता है कि उसकी पत्नी ने ही उसे माँ को लाने भेजा है। उसकी नौकरी लग गई है हार और बच्चे की ज़िम्मेदारी सम्भालने के लिए वह उसे लेने आया है। उन्होंने अपनी नौकरानी को भी हटा दिया है। यह सुनकर यशोदा सन्न रह जाती है। उसे लगता है कि अब उसे नई नौकरी मिल गई है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 31 रिश्ते

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 31 रिश्ते Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 31 रिश्ते

Hindi Guide for Class 11 PSEB रिश्ते Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
ड्राइवर बस धीमी गति से क्यों चला रहा था ?
उत्तर:
ड्राइवर की नौकरी का वह अन्तिम दिन था। इस सफर के समाप्त होते ही उसे रिटायर हो जाना था। रास्ते से एक रिश्ता स्थापित हो जाने के कारण वह अधिक-से-अधिक समय उस रास्ते पर बिताना चाहता था। इसी कारण वह बस धीमी गति से चला रहा था।

प्रश्न 2.
सवारियों की झल्लाहट का क्या कारण था ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
ड्राइवर द्वारा बस धीमी गति से चलाने पर सवारियाँ झल्ला उठी थीं। उनका कहना था कि उन्हें आगे भी जाना है। बीस-तीस किलोमीटर प्रति घंटा की गति के कारण सवारियाँ परेशान हो उठती हैं।

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प्रश्न 3.
रिश्ते लघुकथा मानवीय संवेदना की कहानी है, स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत लघु कथा मानवीय सम्बन्धों की भावमयता पर आधारित है। मनुष्य मनुष्यों से ही नहीं पेड़-पौधों एवं रास्तों से भी रिश्ता स्थापित कर लेता है। कथानायक ड्राइवर सरूप सिंह भी रोज़ जिस रास्ते बस चला कर जाता है उससे रिश्ता स्थापित कर लेता है। रास्ते से अधिक देर तक सम्बन्ध बनाए रखने के लिए वह बस धीरे-धीरे चलाता है क्योंकि उसकी नौकरी का यह अन्तिम दिन था । बरसों से जुड़े उस रास्ते से आज का रिश्ता टूट-सा जाने वाला था। आज के बाद उसे रिटायर हो जाना है। फिर कभी वह इस रास्ते पर बस लेकर नहीं आएगा।

प्रश्न 4.
सरूप सिंह का चरित्र-चित्रण लगभग साठ शब्दों में करें।
उत्तर:
सरूप सिंह एक बस ड्राइवर है। वह प्रतिदिन जिस रास्ते से जाता था, उस रास्ते से उसने एक रिश्ता स्थापित कर लिया था। नौकरी के अन्तिम दिन उस रास्ते से अधिक से अधिक निकटता बनाए रखने के लिए वह बस धीमी गति से चलाता है। सवारियाँ परेशान थीं पर सरूप सिंह बड़ी मिठास से सब से बातें करता था। उसने सवारियों को यह भी बताया कि आज तक उसकी बस का एक्सीडेंट नहीं हुआ। इस बात से उसकी कार्यकुशलता का भी पता चलता है। भावुक होने के कारण ही वह रिटायर होने वाले दिन रास्ते पर अधिक देर तक बना रहना चाहता है।

प्रश्न 5.
सप्रसंग व्याख्या करें बात यह है कि इस रास्ते से मेरा तीस सालों का रिश्ता है। आज मैं यहाँ आखिरी बार बस चला रहा हूँ। बस के मुकाम पर पहुँचते ही मैं रिटायर हो जाऊँगा। इसलिए ……..
उत्तर:
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री अशोक भाटिया द्वारा लिखित लघु कथा ‘रिश्ते’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में ड्राइवर सरूप सिंह बस धीमी गति से चलाने का कारण बता रहा है।

व्याख्या :
सरूप सिंह द्वारा बस धीमी गति से चलाने पर सवारियाँ उत्तेजित हो उठती हैं। उन को शान्त करते हुए अपने आँसुओं से छलकते चेहरे को घुमाकर वह सवारियों से कहता है कि इस रास्ते से पिछले तीस वर्षों से मेरा रिश्ता है, अर्थात् मैं पिछले तीस सालों से इस रास्ते पर बस चला रहा हूँ, किन्तु आज मैं आखिरी बार इस रास्ते पर बस चला रहा हूँ, क्योंकि बस के मुकाम पर पहुँचते ही मैं रिटायर हो जाऊँगा। इसी कारण सरूप सिंह भावुक होने के कारण, इस से आगे कुछ न कह सका। वह कहना चाहता था कि इस रास्ते से रिश्ता स्थापित होने के कारण ही वह बस धीमी गति से चला रहा था।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 31 रिश्ते

PSEB 11th Class Hindi Guide रिश्ते Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘रिश्ते’ लघुकथा किसकी रचना है ?
उत्तर:
अशोक भाटिया।

प्रश्न 2.
ड्राइवर का क्या नाम था ?
उत्तर:
ड्राइवर का नाम सरूप सिंह था।

प्रश्न 3.
सरूप सिंह का सड़क से कितना पुराना संबंध था ?
उत्तर:
तीस साल पुराना संबंध था।

प्रश्न 4.
रिटायर होने वाले दिन सरूप सिंह ……… पर अधिक देर तक बना रहता है।
उत्तर:
रास्ते।

प्रश्न 5.
रास्ते से सरूप सिंह ने क्या बना लिया था ?
उत्तर:
एक रिश्ता।

प्रश्न 6.
मंजिल पर पहुँचने पर सरूप सिंह का रास्ते से ………. छूट जाना था।
उत्तर:
संबंध।

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प्रश्न 7.
‘रिश्ते’ लघुकथा किस बात पर आधारित है ?
उत्तर:
मानवीय संबंधों की भावमयता पर।

प्रश्न 8.
मानव मानव के अतिरिक्त किस-से रिश्ता रखता है ?
उत्तर:
समस्त प्रकृति से।

प्रश्न 9.
सरूप सिंह पेशे से क्या था ?
उत्तर:
बस ड्राइवर।

प्रश्न 10.
सरूप सिंह कितने वर्षों की सेवा के बाद रिटायर हो रहा था ?
उत्तर:
तीस वर्षों की सेवा के बाद।

प्रश्न 11.
सरूप सिंह बस धीरे-धीरे क्यों चला रहा था ?
उत्तर:
क्योंकि वह आज रिटायर होने वाला था।

प्रश्न 12.
बस की सवारियाँ क्यों नाराज थीं ?
उत्तर:
बस की धीमी रफ्तार से।

प्रश्न 13.
सरूप सिंह क्यों रोने लगता है ?
उत्तर:
अपनी मजबूरी बताते हुए भावुक होने के कारण।

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प्रश्न 14.
सरूप सिंह किस प्रकार सवारियों से बातें कर रहा था ?
उत्तर:
बड़ी मिठास से।

प्रश्न 15.
लघुकथा में ‘मुकाम’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
अंतिम मंजिल।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रिश्ते लघु कथा किन संबंधों पर आधारित है ?
(क) मानवीय
(ख) अमानवीय
(ग) प्रेम
(घ) विरह।
उत्तर:
(क) मानवीय

प्रश्न 2.
ड्राइवर का सड़क से कितने साल पुराना रिश्ता था ?
(क) 20
(ख) 30
(ग) 40
(घ) 50.
उत्तर:
(ख) 30

प्रश्न 3.
मानव का मानव के साथ-साथ किससे रिश्ता होता है ?
(क) प्रकृति से
(ख) जल से
(ग) थल से
(घ) गगन से।
उत्तर:
(क) प्रकृति से।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

ढीचम-ढीचम-धीरे-धीरे। छलकता चेहरा-आँसुओं से भरा चेहरा । मुकाम-मंज़िल।

रिश्ते Summary

रिश्ते कथा सार

“रिश्ते’ लघुकथा अशोक भाटिया द्वारा लिखित है। यह मानवीय सम्बन्धों की भावमयता पर आधारित है। मानव हाँड-माँस के जीवित व्यक्तियों से ही नहीं अपितु पेड़, पौधों, रास्तों से भी रिश्ता रखता है। ड्राइवर सरूप सिंह आज रिटायर होने वाला था। उसका सड़क से तीस साल पुराना सम्बन्ध था। इसलिए आज वह उस रास्ते पर आखिरी बार बस चला रहा था। इसलिए वह धीरे-धीरे बस चला रहा था। बस की सवारियाँ बस की रफ्तार से नाराज हो गई थीं उन्हें मंजिल पर पहुंचना था। परन्तु मंजिल पर पहुंच कर सरूप सिंह का उस रास्ते से संबंध छूट जाना था। इसलिए वह धीरे-धीरे सभी रास्तों, पेड़-पौधों से विदा लेता जा रहा था। वह सवारियों को अपनी मज़बूरी बताता है और रोने लगता है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 30 जन्मदिन

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 30 जन्मदिन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 30 जन्मदिन

Hindi Guide for Class 11 PSEB जन्मदिन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मन्नू का जन्मदिन क्यों नहीं मनाया जाता ? अपने शब्दों में उत्तर दें।
उत्तर:
मन्नू का जन्मदिन इसलिए नहीं मनाया जाता क्योंकि वह लड़की थी। हमारे समाज में ऐसा माना जाता था कि लड़कियाँ लड़कों के बराबर नहीं होती। लड़के के जन्म-दिन को धूम-धाम से मनाते हैं और लड़की के जन्मदिन की अवहेलना की जाती है। लड़का पैदा होने पर सभी लड्डू बांटते हैं जबकि लड़की पैदा होने पर ऐसा नहीं होता। पंजाब में लोहड़ी लड़कों की मनायी जाती है, लड़कियों की नहीं।

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प्रश्न 2.
मन्नू की बातें सुन कर लेखक की पत्नी की आँखों में आँसू क्यों आ गए ?
उत्तर:
मन्नू ने जब बताया कि उसके माता-पिता उसके भाई का जन्मदिन तो बड़ी धूमधाम से मनाते हैं, किन्तु लड़की होने के कारण उसका जन्मदिन कभी नहीं मनाया जाता। मन्नू जिस आग्रह से लेखक की पत्नी से अपना जन्मदिन मनाने के लिए कहती है, उसे सुन कर लेखक की पत्नी की आँखों में आँसू आ गए। उसे लड़का-लड़की में भेद किया जाना बहुत खला था।

प्रश्न 3.
सप्रसंग व्याख्या करेंबेटी तू हर साल आया कर, हम तेरा जन्मदिन मनाया करेंगे।
उत्तर:
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री कमलेश भारतीय द्वारा लिखित लघु कथा ‘जन्मदिन’ में से ली गई हैं। मन्नू लड़की है इसलिए उसके घर में उसका जन्मदिन नहीं मनाया जाता, तब उसकी बड़ी माँ ने उसे अपना घर पर जन्मदिन मनाने के लिए बुलाती है।

व्याख्या ;
मन्नू द्वारा यह बताए जाने पर कि लड़की होने के कारण उसके माता-पिता उसका जन्मदिन नहीं मनाते जबकि उसके भाई का जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है । मन्नू की बड़ी माँ कहती है कि बेटी तू हर साल हमारे पास आया कर, हम तुम्हारा जन्मदिन उसी तरह मनाया करेंगे जैसे तुम्हारे भाई का मनाया जाता है।

प्रश्न 4.
‘जन्मदिन’ कथा भारतीय समाज में व्याप्त एक कुरीति की ओर संकेत करती है-क्या भारतीय समाज में लड़की के जन्म के सम्बन्ध में कुछ और भी कुरीतियाँ हैं-स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत लघु कथा में भारतीय समाज में लड़के और लड़की में भेद किये जाने की कुरीति की ओर संकेत किया गया है। हम लड़कों का जन्मदिन तो बड़ी धूमधाम से मनाते हैं, लड़कियों का नहीं। इस कुरीति के अतिरिक्त कुछ अन्य कुरीतियाँ भी हमारे समाज में प्रचलित थीं जैसे लड़कियों को कम खाना देना लड़कियों के पैदा होने पर शोक मनाना, उन्हें बोझ समझना, उनकी पढ़ाई-लिखाई में भेद-भाव करना। लड़कियों को लड़कों की तुलना में निम्न स्तर का मानना आदि। यहाँ प्रेमचंद के उपन्यास ‘निर्मला’ से निम्न पंक्तियाँ उद्धत कर रहे हैं-‘लड़के हल के बैल हैं, भूसे खली पर पहला हक उनका है, उनके खाने से जो बचे वह गायों का।’ शायद पंजाब में लड़कियों को निमानी गाएँ इसी कारण कहा जाता है।

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PSEB 11th Class Hindi Guide जन्मदिन Important Questions and Answers

अति लघत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘जन्मदिन’ नामक लघुकथा में क्या दर्शाया गया है ?
उत्तर:
भारतीय समाज में व्याप्त लड़के और लड़कियों के भेदभाव को दर्शाया गया है।

प्रश्न 2.
मन्नू का जन्मदिन क्यों नहीं मनाया जाता था ?
उत्तर:
क्योंकि वह एक लड़की थी।

प्रश्न 3.
मन्नू की बातें सुनकर किसकी आँखों में आँसू आ गए ?
उत्तर:
मन्नू की बातें सुनकर लेखक की पत्नी की आँखों में आँसू आ गए।

प्रश्न 4.
‘जन्मदिन’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
लघुकथा।

प्रश्न 5.
मन्नू किसके समक्ष अपनी इच्छा व्यक्त करती है ?
उत्तर:
अपनी बड़ी माँ के समक्ष।

प्रश्न 6.
मन्नू की इच्छा क्या थी ?
उत्तर:
उसका जन्मदिन मनाया जाए।

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प्रश्न 7.
मन्नू के भाई का जन्मदिन किस प्रकार मनाया जाता था ?
उत्तर:
बड़ी धूमधाम से।

प्रश्न 8.
मन्नू जन्मदिन मनाने के लिए किसे वस्तुएँ लाने को कहती है ?
उत्तर:
बड़ी माँ को।

प्रश्न 9.
मन्नू बड़ी माँ से क्या लाने को कहती है ?
उत्तर:
केक, मोमबत्ती तथा गिफ्ट।

प्रश्न 10.
मन्नू जन्मदिन पर किसे बुलाने के लिए कहती है ?
उत्तर:
मेहमानों को।

प्रश्न 11.
मन्नू की बड़ी माँ उससे क्या वादा करती है ?
उत्तर:
प्रत्येक वर्ष मन्नू का जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा।

प्रश्न 12.
मन्नू किस बात को सुनकर खुश हुई ?
उत्तर:
अपने जन्मदिन को मनाने की बात सुनकर।

प्रश्न 13.
हमारे समाज में लड़की के जन्मदिन की ……. होती है।
उत्तर:
अवहेलना।

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प्रश्न 14.
‘जन्मदिन’ लघुकथा के रचयिता कौन हैं ?
उत्तर:
कमलेश भारतीय।

प्रश्न 15.
पंजाब में लोहड़ी ….. की मनाई जाती है।
उत्तर:
लड़कों की।

प्रश्न 16.
हमारे समाज में लड़के-लड़कियों में ………….. किया जाता है।
उत्तर:
भेदभाव।

प्रश्न 17.
लड़कियों को लड़कों की तुलना में ……. माना जाता है।
उत्तर:
निम्न स्तर का।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जन्मदिन लघु कथा के कथाकार कौन हैं ?
(क) कमलेश भारतीय
(ख) सुभाष भारती
(ग) दिव्यम भारती
(घ) सुदेश भारती।
उत्तर:
(क) कमलेश भारतीय

प्रश्न 2.
मन्नू का जन्मदिन मनाने का वादा किसने किया ?
(क) माँ ने
(ख) बड़ी माँ ने
(ग) पिता ने
(घ) दादा जी ने।
उत्तर:
(ख) बड़ी माँ ने

प्रश्न 3.
हमारे समाज में किसकी उपेक्षा की जाती है ?
(क) लड़की की
(ख) लड़के की
(ग) दोनों की
(घ) किसी की नहीं।
उत्तर:
(क) लड़की की।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 30 जन्मदिन

कठिन शब्दों के अर्थ :

विनती-प्रार्थना। आंखों में इन्द्रधनुषी रंग-बहुत खुश होना।

जन्मदिन Summary

जन्मदिन कथा सार

‘जन्मदिन’ नामक लघुकथा कमलेश भारतीय द्वारा लिखित है। इसमें भारतीय समाज में व्याप्त लड़के और लड़कियों के भेदभाव को दर्शाया गया। मन्नू अपनी बड़ी माँ के पास आती है तो वह अपनी इच्छा व्यक्त करती है कि उसका जन्मदिन मनाया जाए। उसके घर में उसका जन्मदिन नहीं मनाया जाता है। उसके भाई का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाता है। वह अपनी बड़ी माँ से जन्मदिन पर केक, मोमबत्ती और गिफ्ट लाने तथा मेहमान बुलाने के लिए कहती है। बड़ी माँ उसे वायदा करती है कि अब से हर साल उसका जन्मदिन धूम-धाम से मनाया जाएगा यह सुनकर मन्नू खुश हो जाती है।

PSEB 11th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास भक्तिकाल

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions हिन्दी साहित्य का इतिहास भक्तिकाल Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास भक्तिकाल

प्रश्न 1.
भक्तिकाल की परिस्थितियों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
किसी भी युग का साहित्य एवं साहित्यकार तत्कालीन राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी का मानना है कि-‘प्रत्येक देश का साहित्य वहां की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है। जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के रूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। जनता की चित्तवृत्ति बहुत कुछ राजनीतिक, सामाजिक, साम्प्रदायिक तथा धार्मिक परिस्थितियों के अनुसार होती है।’ इसी बात को ध्यान में रखकर हम यहां भक्तिकालीन परिस्थितियों की चर्चा कर रहे हैं

1. राजनीतिक परिस्थितियाँ:
राजनीतिक इतिहास की दृष्टि से भक्तिकाल को हम दो भागों में बाँट सकते हैं। पहले भाग में तुगलक और लोधी वंश का शासन दिल्ली पर रहा (सं० 1375 से सं० 1583 तक) और दूसरे भाग में मुग़ल वंश के बाबर, हुमायूँ, अकबर जहांगीर और शाहजहां का शासन रहा (सं० 1583 से सं० 1700 तक) इस दृष्टि से यह काल विक्षुब्ध, अशान्त तथा संघर्षमय काल कहा जा सकता है। पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के पश्चात् भारत में कोई भी दृढ़ हिन्दू राज्य नहीं रह गया था। परिणामतः मुहम्मद गौरी ने यहाँ शासन करने की ठानी, जबकि इससे पूर्व सभी मुसलमान आक्रमणकारी लूट मार कर के लौट जाते थे। कुतुबुद्दीन ऐबक ने यहाँ गुलामवंश की नींव रखी फिर खिलजी वंश के अलाउद्दीन ने केन्द्रीय शासन को सुदृढ़ बनाने का प्रयत्न किया। किन्तु उसके आँख मूंदते ही बहुत-से हिन्दू राजा उठ खड़े हुए और उन्होंने अपने-अपने राज्यों की स्थापना की और 15वीं शताब्दी तक पहुँचते-पहुँचते राजपूताना एक प्रमुख शक्ति बन गया। सन् 1526 में पानीपत के मैदान में बाबर ने इब्राहीम लोधी को पराजित करके मुग़ल शासन की नींव डाली जिसके अकबर, जहांगीर और शाहजहां बड़े पराक्रमी शासक हुए।

इस काल के आरम्भ में कट्टर तथा साम्प्रदायिक मुसलमान शासकों द्वारा हिन्दू जनता पर अकथनीय अत्याचार ढाए गए और हिन्दू आपस में बंटे हुए होने के कारण पिसते रहे । किन्तु बाद में जब हिन्दुओं में कुछ संगठन हुआ तो अकबर सरीखे बादशाहों ने उनकी महत्ता को समझ हिन्दुओं को मन्त्री पदों पर भी आसीन किया तथा संस्कृत तथा देशी भाषाओं के साहित्य संगीत और कला को प्रोत्साहन दिया। इन परिस्थितियों से साहित्य भी प्रभावित हुआ। उस समय राजाओं के अत्याचार का मुकाबला संतों की वाणी ने किया और गुरु नानक सरीखे कवि ने ‘राजे सिंह मुकदम कुत्ते’ तक शब्द कह डाले।

सामाजिक परिस्थितियाँ:
मुसलमानों का शासन स्थापित हो जाने के कारण यहाँ हिन्दुओं और मुसलमानों में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आदान-प्रदान हुआ वहां हिन्दुओं में आत्मलघुता के कारण जात-पात और शादी-ब्याह के नियम और कड़े हो गए। मुसलमानों ने हिन्दू लड़कियों से शादियों करनी शुरू की। परिणामस्वरूप एक ही परिवार के कुछ लोग मुसलमान और कुछ हिन्दू रह गए। जाति-पाति के जो बन्धन कठोर हो रहे थे उनके विरुद्ध आवाज़ भी उठनी शुरू हो गयी थी। कबीर, गुरु नानक इत्यादि संत कवियों ने इसका खुलकर विरोध किया ‘हरि को भजे सो हरि का होई’ का नारा उन्होंने लगाया। शेरशाह ने ज़मींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया था किन्तु मुग़लों ने इसे फिर आरंभ कर दिया जिससे उस वर्ग में भोग-विलास तथा ऐश्वर्यपूर्ण जीवन बिताने की आदत सी पड़ गई। इसी विलासिता से बचने के लिए हिन्दुओं में पर्दे और बाल-विवाह का प्रचलन हुआ।

हिन्दुओं के पास धन संचित करने के कोई साधन नहीं रह गए थे और उनमें से अधिकांश को निर्धनता, अभावों एवं आजीविका के लिए निरन्तर संघर्ष में जीवन व्यतीत करना पड़ता था। प्रजा के रहन-सहन का स्तर बहुत निम्न कोटि का था। करों का सारा भार उन्हीं पर था। राज्य पद उनको अप्राप्त थे। धार्मिक परिस्थितियाँ-उस समय के भारत में तीन प्रकार की धार्मिक परिस्थितियाँ थीं। पहली बौद्ध-धर्म की विकृत अवस्था, दूसरी वैष्णव धर्म की परम्परागत अवस्था तथा तीसरी विदेशी धार्मिक अवस्था जिसने सूफी धर्म को जन्म दिया।

महात्मा बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म दो गुटों में बँट गया। हीनयान और महायान। हीनयान में दार्शनिक पक्ष की दार्शनिक जटिलता थी अतः कम लोगों की आस्था उस पर टिक सकी। महायान में सिद्धान्त के स्थान पर व्यवहार पक्ष की प्रधानता थी। उसमें सभी वर्गों के लोगों को शामिल होने की आज्ञा थी। पहला अधिक कट्टरता के कारण संकुचित होता गया तो दूसरा अधिक उदारता के कारण विकृत। शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट ने बौद्ध-धर्म पर प्रखर प्रहार किया और वैदिक-धर्म का पुनरुद्धार किया। सुसंस्कृत जनता शंकर धर्म के उपदेशों से प्रभावित हुई। महायान सम्प्रदाय ने जनता के असंस्कृत वर्ग को जन्त्र-मन्त्र, अभिचार और चमत्कार से वशीभूत किए रखा। यही सम्प्रदाय आगे चलकर मन्त्रयान के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी से चौरासी सिद्ध दीक्षित हुए। सिद्धों ने जन्त्र-मन्त्र को अपनाते हुए भी इसमें बहुत-से सुधार किए। इन्हीं सिद्धों का विकसित रूप नाथ सम्प्रदाय हुआ। इन्हीं सिद्धों और नाथों की मुख्य-मुख्य रूढ़ियाँ सन्त मत की धार्मिक पृष्ठ-भूमि बनीं।

भक्ति की लहर दक्षिण से आई। शंकराचार्य ने बौद्ध-धर्म के विरोध में अद्वैतवाद का प्रचार किया। इसकी प्रतिक्रिया में अनेक दार्शनिक सम्प्रदाय चल निकले, जिनमें नारायण की भक्ति पर अधिक बल दिया गया। विष्णु के अवतार राम और कृष्ण की कल्पना की गई। रामानन्द ने भक्ति का मार्ग सबके लिए खोला और जन-भाषा में अपने सिद्धान्तों पर प्रचार किया।

PSEB 11th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास भक्तिकाल

प्रश्न 2.
भक्तिकालीन काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
भक्ति-काल के आरम्भ होने से पूर्व ही प्रान्तीय भाषाएँ अपने-अपने अपभ्रंशों का अनुसरण करते हुए हिन्दी के समान्तर साहित्य रचना में प्रवृत्त थीं। इनमें वर्ण्य विषयों, काव्य रूपों तथा रचना शैलियों की विविध परम्पराएँ प्रचलित थीं जो कुछ अटपटी और अनगढ़-सी प्रतीत होती थीं। धीरे-धीरे इनमें निखार आने लगा। भक्ति-काल के आते-आते इनमें और अधिक निखार आया तथा नवीन संस्कारों का प्रवेश हुआ जिसका परिणाम यह हुआ कि सिद्धों, नाथों और सूफियों की परम्पराओं का विकास होने लगा और साहित्य निर्माण की नवीन पद्धतियों और प्रवृत्तियों के रूप उभरने लगे। इस क्षेत्र में हिन्दी भाषा सब से आगे रही।

सूफी कवियों ने जैन कवियों की शील-वैराग्य परंपरा को विकसित किया। ज्ञानमार्गी सन्तों ने प्राकृत साहित्य में प्रचलित सूक्तियों के अनुकरण में ‘दूहा’ छन्द अपनाया जिसे बाद में ‘साखियों के लिए अपना लिया गया। बौद्ध सिद्धों द्वारा अपनायी शैली जिसमें संवाद शैली और लोक प्रचलित गीतों की परम्परा प्रमुख थी-का विकास निर्गुण सन्तों के काव्य में देखने को मिलता है-यथा बारहमासा आदि के रूप में साहित्य रचना।
निर्गुण भक्ति-काव्य ने नाथ साहित्य से अधिक प्रभाव ग्रहण किया। सन्त कवियों की वाणी में नाथ पंथ के योग साधना और निवृत्ति मार्ग का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। दूसरी ओर सूफी कवियों में पौराणिक आख्यानों का प्रयोग न करते हुए प्रेमाख्यानों का अपने मत के प्रचार के लिए उपयोग किया।

अमीर खुसरो और फैज़ी ने फ़ारसी साहित्य में भारतीय विषयों का समावेश कर परवर्ती फ़ारसी कवियों को प्रेरणा दी। भारतीय ग्रन्थों के अनुवाद फ़ारसी भाषा में होने लगे। फ़ारसी साहित्य के अनुकरण पर सूफी मार्गी सन्तों ने मसनवी शैली को हिन्दी साहित्य रचना में अपनाया। उपर्युक्त साहित्यिक प्रवृत्तियों की पृष्ठभूमि में भक्ति-काव्य की रचना प्रारम्भ हुई जिसकी सामान्य प्रवृत्तियाँ अग्रलिखित हैं

1. सदाचार तथा नैतिक भावना पर बल:
निर्गुण साहित्य की प्रेरणा प्राचीन काल से ही विद्यमान रही है जिसे बौद्ध धर्म की श्रमण संस्कृति से बल और बढ़ावा मिला। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत उत्कर्ष के लिए आध्यात्मिक दृष्टि का सहारा लेना था। कालान्तर में महायानियों द्वारा उसे ‘बहुजन हिताय’ का नया मोड़ दिया जिसमें वैदिक आदर्श सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की ध्वनि प्रतिध्वनित थी। भक्ति-काल में इसी सिद्धान्त की पूर्ति के लिए सदाचार तथा नैतिक भावना पर बल दिया गया। कबीर की साखियाँ उस संदर्भ में विशेष महत्त्व रखती हैं।

2. व्यक्तिगत साधना की अपेक्षा सामूहिक पूजन अर्चन पर बल:
विदेशी एवं विजातीय मुसलमानों के आक्रमणों और शासन के फलस्वरूप हिन्दुओं ने आत्म रक्षार्थ उपाय खोजने शुरू किये। हिन्दू जनता मुसलमानों से भयभीत होने की अपेक्षा अधिक सजग और सचेत हो गई। हिन्दुओं के काशी और मथुरा जैसे स्थानों पर बड़े-बड़े मन्दिर गिरा दिये जाने के फलस्वरूप छोटे-छोटे मन्दिरों की बाढ़-सी आ गई। घर-घर देवताओं की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हो गयीं। यह अपने ढंग की एक सामूहिक जागृति थी जिसके फलस्वरूप व्यक्तिगत साधना की अपेक्षा सामूहिक पूजन-अर्चन, भजन-कीर्तन की प्रवृत्ति ज़ोर पकड़ने लगी। सगुण भक्त कवियों ने अपने काव्य द्वारा इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया। राम भक्त कवियों ने टकराव की स्थिति को दूर कर वैष्णव, शैव और शाक्तों को एक करने का प्रयास कर आपसी भेदभाव दूर किये। उन परिस्थितियों में जातीय एकता अत्यावश्यक थी।

3. लोक भाषाओं का महत्त्व:
भक्ति कालीन कवियों ने आम आदमी तक अपने विचार पहुँचाने के उद्देश्य से लोक भाषाओं को अति उत्तम साधन माना। उन्होंने मौखिक परम्परा की स्तरीय रचनाओं को भी लिपिबद्ध कर उन्हें सुरक्षित रखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया। लोक भाषाओं को महत्त्व दिये जाने का ही यह फल है कि भक्ति-काल में जहाँ महाकाव्यों के माध्यम से शास्त्रीय शैली में राजपुरुषों तथा दिव्य नायकों को महत्त्व मिलने लगा, वहाँ जन जीवन की उपेक्षित अनुभूतियों को भी अभिव्यक्ति मिलने लगी। साथ ही इस काल में लोक गीतों, लोक कथाओं आदि को भी यथेष्ठ सम्मान मिलने लगा। ये सभी रचनाएँ लोक रुचि के अनुरूप थीं। अतः ये जनसाधारण में अत्यधिक लोकप्रिय हुईं। ज्ञान मार्गी सन्त कवियों ने आम बोलचाल की भाषा को अपनाया तो प्रेम मार्गी सूफी सन्त कवियों में अवधी भाषा को और कृष्ण भक्त कवियों ने ब्रज भाषा और राम भक्त कवियों में अवधी और ब्रज दोनों ही भाषाओं में अपना साहित्य रचा। यही कारण है कि इस युग का साहित्य सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ क्योंकि यह मूल रूप में जनसाधारण के लिए उन्हीं की भाषा में लिखा गया था।

4. समन्वयात्मक दृष्टि को बढ़ावा:
लोगों में आत्म विश्वास बढ़ने का यह परिणाम हुआ कि पारस्परिक सहयोग के लिए समन्वयात्मक दृष्टि से काम लिया जाने लगा। सूफी सन्तों की समन्वयात्मक प्रवृत्ति ज्ञान मार्गी सन्तों ने भी अपनाई। तुलसी का तो समूचा काव्य ही समन्वय की जीती जागती तस्वीर है। समन्वय की इस भावना से जो साहित्य रचा गया उससे धार्मिक साम्प्रदायिकता का स्वर क्षीण हो गया। सन्त कवियों-कबीर और गुरु नानक को तथा सूफी सन्त कवियों को हिन्दू और मुसलमान समान रूप से आदर की दृष्टि से देखते हैं। नानक पन्थी और कबीर पन्थी हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी।

5. नाम की महत्ता:
जप कीर्तन आदि निर्गुणधारा के एवं सगुण धारा के कवियों में समान रूप से मान्य है। कबीर ‘नाम’ को सभी रसायनों से उत्तम समझते हैं – “सभी रसायन हम करौ, नहीं नाम सम कोय” सूफी कवि और कृष्ण भक्त कवि कीर्तन की महत्ता को स्वीकार करते हैं। सूर कहते हैं – “भरोसौ नाम को भारी” तुलसी ने तो नाम को राम से भी बड़ा माना है।

संक्षेप में, कहें तो ‘नाम’ में निर्गुण और सगुण दोनों का समन्वय हो गया है। एक उदाहरण प्रस्तुत है

‘अगुन सगुन दुई ब्रह्म स्वरूपा। अकथ अगाध अनादि अनुपा॥
मोरे मत बढ़ नाम दुहुँ ते। किये जेहि जुग निज बस निज बूते॥

कबीर ने भी कहा-‘निर्गुण की सेवा करो सगुण का धरि ध्यान।’

6. गुरु की महिमा:
गुरु के महत्त्व को निर्गुण और सगुण दोनों धाराओं के कवियों ने स्वीकार किया है। कबीर कहते हैं- “गरु हैं बड़े गोबिन्द से मन में देख विचारि।’ जायसी ने भी पद्मावत में गुरु के महत्त्व को दर्शाने वाला पात्र ‘सुआ’ का निर्माण किया-‘गुरु सुआ जेहि पन्थ दिखावा’ ! सूरदास ने लिखा-‘बल्लभ नख चन्द्र छटा बिन सब जग माहिं अँधेरा’ और तुलसी ने ‘मानस’ के आरम्भ में गुरु वन्दना करते हुए लिखा-‘बन्दउँ गुरु पद पद्म परागा’। भक्ति-कालीन कवियों ने गुरु को ईश्वर से मिलाने वाला या ईश्वर से मिलने का मार्ग बताने वाला तथा जीवन पथ में सही राह दिखाने वाला माना है।

7. भक्ति-भावना की प्रधानता-भक्ति-काल की निर्गुण और सगुण दोनों धाराओं में भक्ति-भावना पर अधिक बल दिया गया। कबीर ने कहा-‘हरि भक्ति जाने बिना बुडि मुआ संसार’। सूफी सन्तों का प्रेम भी भक्ति का ही रूप है और सगुण भक्त तो भक्त हैं ही। सगुण भक्त-कवियों ने ज्ञान का नहीं भक्ति-विरोधी ज्ञान का विरोध किया। सूरदास और नन्ददास ने भ्रमर गीत के माध्यम से यही बात कहनी चाही है। तुलसी तो थे ही समन्वयवादी। उन्होंने ज्ञान और भक्ति में कोई भेद नहीं किया। वे कहते हैं-‘ज्ञानहिं भक्तिहिं नहिं कछु भेदा, उभय हरिह भव सम्भव खेदा।’ तुलसी दास ने ज्ञान और भक्ति का समन्वय करते हुए भक्ति को प्रधानता दी है। उन्होंने भक्ति को चिन्तमणि कहा है और ज्ञान को दीपक, जो माया की हवा में बुझ जाता है।

8. शास्त्र ज्ञान की अपेक्षा निजी अनुभव पर विशेष बल-भक्ति-कालीन कवियों ने शास्त्र ज्ञान की अपेक्षा निजी अनुभव को अधिक महत्त्व दिया। कबीर जी ‘ढाई अक्षर प्रेम के’ का महत्त्व देते हुए शास्त्र ज्ञान को निरर्थक बताते हुए कहते हैं-‘पोथी पढ़ि जग मुआ, पण्डित हुआ न कोय।’ तुलसी जी ने भी केवल वाक्य ज्ञान को अपर्याप्त मानते हुए कहा है – ‘वाक्य ज्ञान अत्यन्त निपुण, भव पार न पावे कोई।’ सूर और नन्ददास की गोपियाँ तो अपने प्रेम के निजी अनुभव के आधार पर उद्धव जैसे ज्ञानी को भी यह कहने पर विवश कर देती हैं-

जे ऐसे मरजाद मेटि मोहन को ध्यावें।
काहे न परमानन्द प्रेम पदवी सबु पावें ॥
ज्ञान जोग सब कर्म ते प्रेम परे हैं साँच।
हौं या पटतर देत हौं हीरा आगे काँच॥

उपर्युक्त समान प्रवृत्तियों के होते हुए भी निर्गुण और सगुण भक्ति धारा के कवियों के दृष्टिकोण में थोड़ा बहुत अन्तर था किन्तु लक्ष्य दोनों का एक ही था-जीवन को ऊँचा उठाना, भक्ति द्वारा ईश्वर की प्राप्ति। साधन अथवा मार्ग भले ही अलग-अलग थे, पर लक्ष्य एक ही था।

भक्तिकाल के प्रमुख कवि

1. कबीर प्रश्न

1. कबीर जी का संक्षिप्त जीवन परिचय देकर उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन परिचय-हिन्दी-साहित्य में भक्तिकाल की निर्गुण काव्यधारा का कबीर जी को प्रवर्तक माना जाता है। कबीर जी भक्तिकाल के उन जन कवियों में से हैं जिन्होंने जन-भाषा में भक्ति का प्रकाश फैलाकर लोक मानस को पवित्र किया। उनकी प्रेममयी वाणी जहाँ मानव मन को मानवीय गरिमा से भर देती है, वहाँ उनकी ओजस्वी वाणी मानसिक और दिमागी संकीर्णताओं के बन्धन से मुक्त करती है। किन्तु खेद का विषय है कबीर जी के वास्तविक नाम, जन्म, मृत्यु, निवास स्थान एवं पारिवारिक जीवन के सम्बन्ध में निर्विवाद रूप में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कबीर पन्थी साहित्य में ‘कबीर चरित्र बोध’ में कबीर जी का जन्म वि० सम्वत् 1455 में ज्येष्ठ सुदी पूर्णिमा दिन सोमवार को हुआ लिखा गया है। इसके प्रमाण में निम्नलिखित दोहा दिया गया है
चौदह सौ पचपन साल गये, चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
जेठ सुदी बरसायत को, पूरनमासी प्रकट भए।

अनेक विद्वानों ने इसी तिथि को कबीर जी का जन्म होना स्वीकार किया है।
अनन्त दास की परचई के अनुसार कबीर जी की मृत्यु सं० 1575 में हुई। इस तरह उन्होंने 120 वर्ष की दीर्घ आयु पाई। प्रमाणस्वरूप अग्रलिखित दोहा प्रस्तुत किया जाता है

संवत् पन्द्रह सौ पचहत्तर कियौ मगहर को गौन।
अगहन सुदी एकादसी रलौ पौन में पौन॥

रचनाएँ:
इस तथ्य से सभी परिचित हैं कि कबीर जी ने पुस्तकीय शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। उन्होंने स्वयं कहा है ‘मसि कागद छुओ नहिं कलम गहि नहि हाथ।’ उन्होंने शास्त्रीय ज्ञान की अपेक्षा अनुभव ज्ञान को महत्त्व दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनके शिष्यों ने कबीर जी की समस्त वाणी का संग्रह ‘बीजक’ नाम से किया। इसके तीन भाग हैं
1. साखी 2. सबद 3. रमैणी।

डॉ० श्याम सुन्दर दास जी ने कबीर जी की सभी रचनाओं को ‘कबीर ग्रंथावली’ के रूप में प्रकाशित किया है। काव्यगत विशेषताएँ-कबीर वाणी का अध्ययन करने पर हम उसमें निम्नलिखित विशेषताएँ पाते हैं
1. निर्गुण उपासना–कबीर जी ने ईश्वर के निर्गुण रूप की उपासना पर बल दिया। उनका मानना था कि ईश्वर एक है और वह निर्गुण निराकार है। वह पंच भौतिक तत्वों से परे अनाम और अजन्मा है। कबीर जी कहते हैं

जाके मुँह माथा नहीं, नाही रूप कुरूप।
पहुंप वास ते पातरा, ऐसा तत अनूप॥

निराकार निर्गुण ब्रह्म ही इस सारी सृष्टि का कर्ता है, परन्तु वह अजन्मा है, अनित्य है

जन्म मरन से रहित है, मेरा साहिब सोय।
बलिहारी वह पीव की, जिन सिरजा सब कोय॥

कबीर वाणी में अनेक स्थानों पर ‘राम’ शब्द आया है। इससे कबीर जी का आशय दशरथ पुत्र श्रीराम से न होकर ‘पूर्ण ब्रह्म’ ही है।

2. एकेश्वरवाद-कबीर जी ऐसे पहले भारतीय थे जिन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करने का प्रयास किया। उनके बाद सभी सन्त कवियों ने उनका अनुसरण किया। मुसलमान भी एकेश्वर तथा उसके निराकार रूप में विश्वास रखते थे और हिन्दुओं में भी बहुत-से लोग बहुदेववाद में विश्वास नहीं रखते थे बल्कि सभी देवी-देवताओं को एक ही ईश्वर का रूप मानते थे – ‘एकं सत्यं विद्या बहुधा वदन्ति’ हिन्दुओं का निर्गुणवाद खुदावाद के बहुत निकट आ जाता था। इसलिए कबीर जी ने एकेश्वरवाद का प्रचार कर–‘राम और रहीम’, ‘कृष्ण और करीम’ को एक ही ईश्वर का रूप बताया। उन्होंने कहा जिस प्रकार काली गाय और गोरी गाय के दूध में कोई अन्तर नहीं, उसी तरह अल्लाह और ईश्वर में भी कोई अन्तर नहीं है। दोनों एक ही रूप हैं। वे कहते हैं–

खालिक खलक खलक में खालिक सब घट रहयौ समाई॥

3. भक्ति-भावना-कबीर जी ने ईश्वर प्राप्ति के लिए प्रेम-भक्ति को मूलाधार माना है। कबीर के अनुसार, ‘ढाई अक्षर’ प्रेम के पढ़ने वाला पण्डित हो जाता है किन्तु यह प्रेम का मार्ग बड़ा कठिन है। इसमें जो आत्म-त्याग करता है वही प्रभु को पाता है। कबीर जी कहते हैं

यह तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाही नाहिं।
सीस उतारै भुईं धरै, तब पहुँचो घर माहिं॥

यह प्रेम न तो खेतों में उगता है और न हाट पर बिकता है। इसका मोल तो सिर है जो दे वह ले जाए

प्रेम न बाड़ी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रुचे, सीस देइ लै जाय॥

कबीर की भक्ति निर्गुण राम की भक्ति है। कबीर जी कहते हैं कि संसार में जन्म लेकर जिसने ईश्वर की भक्ति नहीं की, जिसने प्रेम का स्वाद नहीं लिया उस मनुष्य का जीवन व्यर्थ है

कबीर प्रेम न चाखिया, चषि न लीया साव।
सूने घर का पाहुणां, ज्यूं आया त्यूं जाव॥

कबीर की यह भक्ति ईश्वर के प्रति अनन्य भाव से, बिना किसी शर्त आत्म-समर्पण की भावना है। वे कहते हैं

फाड़ि पुटोला धज करौ, कामलड़ी पहिराउं।
जिहि जिहि भेषां हरि मिलै, सोइ सोइ भेष कराऊं॥

कबीर जी कहते हैं कि आराध्य के प्रति पूर्ण समर्पण भावना और एकान्तनिष्ठा कुत्ते जैसी होनी चाहिए.

कबीर कूता राम का, मुतिया मेरा नाऊँ।
ज्यूं हरि राखे त्यू रहौं, जो देवे सो खाऊँ॥

PSEB 11th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास भक्तिकाल

4. गुरु महिमा-सभी भक्तिकालीन कवियों ने गुरु की महिमा का गुण-गान किया है। कबीर जी की मान्यता है कि गुरु कृपा बिना ईश्वर की भी प्राप्ति नहीं हो सकती। इसीलिए वे गुरु को ईश्वर से भी बड़ा मानते हुए कहते हैं

गुरु गोबिन्द दोऊ खड़े, काके लागू पायं।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोबिन्द दियो बताय॥

कबीर एक स्थान पर गुरु और गोबिन्द को एक मानते हुए कहते हैं कि सतगुरु से मिलन या साक्षात्कार उसी अवस्था में हो सकता है जब शिष्य अपने आपे (अहंभाव) को त्याग दे।

गुरु गोबिन्द तो एक हैं, दूजा यहु आकार।
आपा मेट जीवत मरौ, तो पावे करतार॥

कबीर के अनुसार, ‘सतगुरमिलिआ मारगु दिखाइआ’ तथा गुरु की कृपा से ही हरि रूपी धन को पाया है-‘गुर प्रसादि हरि धन पायो।’

5. नाम-स्मरण पर बल-कबीर जी कहते हैं कि ईश्वर के नाम-स्मरण में बड़ी शक्ति है। नाम- स्मरण से ही व्यक्ति की मुक्ति सम्भव हो सकती है। कबीर जी कहते हैं

मेरा मन सुमिरै राम कुँ मेरा मन रामहि आहि।
अब मन रामहि द्वै रह्या सीस नवावौ काहि॥

कबीर शरीर रहते नाम भजन करने की सलाह देते हुए कहते हैं

लूटि सकै तौ लूटियौ, राम नाम है लूटि।
पीछे ही पछताहुगे, यहु मन जैहे छूटि॥

नाम जपने से ही त्रिगुणात्मक माया के बन्धन कट जाते हैं। कबीर जी कहते हैं

गुण गायें गुण नाम कटैं, रटै न राम वियोग।
अह निसि हरि ध्यावै नहीं, क्यूं पावे दुर्लभ योग॥

कबीर जी कहते हैं कि नाम-स्मरण से भक्ति और मुक्ति दोनों की प्राप्ति होती है

चरण कंवल चित्त लाइये, राम नाम गुन गाइ रे।
कहै कबीर संसा नहीं, भक्ति, मुक्ति गति पाइ रे॥

6. माया का विरोध-ज्ञानमार्गी सन्त कवियों ने माया को ईश्वर भक्ति और प्राप्ति में बाधक मानते हुए उसे महाठगनि कहा और इससे बचकर रहने का उपदेश दिया। कबीर जी कहते हैं कि माया ही सारे संसार के दुःखों का कारण है

माया तरवर त्रिविध का, साखा दुःख संताप।
सीतला सपनै नहीं, फल फीको तनि ताप॥

कबीर जी इस माया से बचने का एक ही उपाय, सतगुरु की कृपा बताते हुए कहते हैं

कबीर माया मोहिनी, जैसी मीठी खाँड।
सत गुरु की कृपा भई, नहीं तो करती भाँड॥

7. रहस्यवाद-कबीर जी की भक्ति-साधना प्रेम मूलक है। प्रेम ही भक्ति का समुद्र है। कबीर की प्रेम भावना ने राम के निर्गुण रूप को मधुर और सहज ग्राह्य बना दिया है। निर्गुण ब्रह्मवाद की यह वैयक्तिक साधना कबीर के काव्य में रहस्यवाद का रूप लेकर जगमगाई है। उनके रहस्यवाद में आत्मा के भावात्मक तादाम्य की साधना का प्रकाशन है। प्रेम की चरम परिणति दाम्पत्य प्रेम में देखी जाती है। अत: रहस्यवाद की अभिव्यक्ति सदा प्रियतम और विरहिणी के आश्रय में होती है। इसीलिए कबीर ने आत्मा को परमात्मा की पत्नी माना है जो पिया मिलन की आस में दिन-रात तड़पती रहती है। जब आत्मा का परमात्मा से तादात्मय हो जाता है, दोनों मिलकर एक हो जाते हैं तभी रहस्यवाद का आदर्श पूर्णता को प्राप्त होता है। कबीर जी कहते हैं

लाली मेरे लाल की, जित देखू तित लाल।
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल॥

कबीर जी कहते हैं-‘राम मेरे पीव मैं तो राम की बहुरिया’ किन्तु उस ‘प्रियतम’ से मिलन कब होगा ? उसके विरह में तो जिया नहीं जाता

विरह भुवंगम तन बसै, मन्त्र न लागै कोई।
राम वियोगी न जिवै, जिवै तो बौरा होई॥

उसकी राह देखते-देखते तो आँखों में झांइयां भी पड़ गई हैं

अंखड़ियाँ झईं पड़ी, पंथ निहारि निहारि।
जीभड़िया छाला पड़या, राम पुकारि पुकारि॥

आखिर वह दिन कब आयेगा जब प्रियतम से मिलन होगा

वे दिन कब आवेंगे भाई।
का कारनि हम देह धरि है मिलिवा अंग लगाई।

8. पाखण्ड एवं आडम्बर का विरोध-कबीर प्रगतिशील समाज सुधारक थे। उनके युग में हिन्दुओं और मुसलमानों में धार्मिक पाखण्ड एवं आडम्बर अपनी चरम सीमा पर थे। कबीर ने समाज सुधार की भावना से इन सब का विरोध किया। उन्होंने हिन्दुओं को कहा

पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहार।
ताते वह चाकी भलि, पीस खाय संसार॥

और मुसलमानों से कहा

मसजिद भीतर मुला पुकारे, क्या साहब तेरा बहरा है।
चिउंटी ने पर तेवर बाजे, तो भी साहब सुनता है।

जातिपाति का खण्डन करते हुए उन्होंने कहा

एक जोति से सबै उत्पन्ना, का बामन का सूदा।

इस प्रकार कबीर ने कपटी साधुओं, ढोंगी पण्डितों की निन्दा भी की और तीर्थ, व्रत, नियम आदि आडम्बरों की भी

2. मलिक मुहम्मद जायसी

प्रश्न 2.
मलिक मुहम्मद जायसी का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उसके काव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
मलिक मुहम्मद जायसी का हिन्दी-साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
उत्तर:
मलिक मुहम्मद जायसी हिन्दी-साहित्य के भक्तिकाल की प्रेम मार्गी शाखा अथवा सूफ़ी सन्त परम्परा में अपना विशेष स्थान रखते हैं। जायसी जी के जन्म के बारे में आज तक विद्वानों में मतभेद बना हुआ है। सभी विद्वानों के मतों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि इनका जन्म वि० सं० 1550 के लगभग और मृत्यु वि० सं० 1600 के करीब हुई थी। जायसी का वास्तविक नाम मुहम्मद था। मलिक शब्द एक उपाधि का परिचायक है जो सम्भवतः उन्हें वंश-परम्परा से प्राप्त हुई थी। परम्परा के अनुसार आप अरब से आए मुसलमान थे, भारतीय नहीं किन्तु जायस-ज़िला रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में आकर बस गए थे। अतः उनको जायसी कहा जाने लगा। जायसी ने स्वयं लिखा है

जायस नगर मोर अस्थानू। नगर क नाम आदि उदयानू॥

जायसी अपने बाल्यकाल में ही अपने माता-पिता से विमुक्त हो गये। उनका विवाह भी हुआ था। उनके पुत्रों की एक दुर्घटना में मकान की दीवार के नीचे दबकर मर जाने की दन्तकथा प्रसिद्ध है। तब विरक्त होकर जायसी अपना अधिकांश समय साधु-सन्तों की संगति में बिताने लगे। कहा जाता है कि उस समय के प्रसिद्ध सूफ़ी सन्त मुबारक शाह बोदले ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया। आगे चलकर एक-दूसरे सन्त शेख मुहीउद्दीन भी जायसी के गुरु के नाम से जाने जाते हैं।

अंत: साक्ष्य सामग्री के अनुसार जायसी एक आँख से काने थे, मुंह पर चेचक के दाग थे, बायीं टांग, बायां हाथ और भुजा भी काम नहीं करते थे। कहते हैं कि एक बार शेरशाह सूरी इनकी कुरूपता को देखकर हँस पड़े थे। तब जायसी ने तुरन्त कहा-“मोहि को हंसाति कि कुम्हारहि” अर्थात् मुझ पर नहीं उस कुम्हार (खुदा) पर हँसो जिसने मुझे बनाया है। यह सुन शेरशाह सूरी शर्मिन्दा भी हुए और जायसी से क्षमा याचना भी की।
जायसी अपने जीवन के अधिकांश भाग में अमेठी के राजा के आश्रय में रहे। वहीं उनकी मृत्यु सन् 1542 ई० सम्वत् 1600 के आसपास हुई। आज भी उनकी कब्र वहीं विद्यमान है।

रचनाएं:
कुछ विद्वान् जायसी की रचनाओं की संख्या 20-21 के करीब मानते हैं परन्तु केवल 6 रचनाओं को ही प्रमाणिक माना जाता है जो निम्नलिखित हैं.

  1. अखरावट,
  2. आखिरी कलाम,
  3. मसलनामा,
  4. कहरनामा,
  5. चित्रलेखा तथा
  6. पद्मावत

इनमें ‘पद्मावत’ हिन्दी साहित्य का प्रथम प्रमाणिक महाकाव्य माना जाता है। यह ग्रन्थ दोहा चौपाई शैली में लिखा गया है, जिसे आगे चलकर गोस्वामी तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ में अपनाया।
पद्मावत निश्चय ही हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधि है। यह ग्रन्थ इतना लोकप्रिय हुआ कि इसका अनुवाद बंगला, उर्दू, फारसी, फ्रैंच और अंग्रेज़ी भाषाओं में भी हो चुका है।

काव्यगत विशेषताएँ:
जायसी के काव्य में हम निम्नलिखित विशेषताएँ देखते हैं

1. हिन्दू-मुस्लिम एकता:
मुसलमानों का शासन स्थायी हो जाने के फलस्वरूप हिन्दू और मुसलमानों में आपसी वैमनस्य को भंग करने का प्रयास सन्त कवियों ने आरम्भ किया। उसे सूफ़ी मुसलमान फकीरों ने पूरा किया। इन मुसलमान फकीरों (सन्तों) ने अहिंसा और प्रेम का मार्ग अपनाया। जायसी जैसे अनेक सूफ़ी सन्त प्रेम की पीर की कहानियाँ लेकर साहित्य क्षेत्र में उतरे। ये कहानियाँ हिन्दुओं के घरों की थी जिसे उन्होंने मुस्लिम शैली के अनुसार आम लोगों के सामने रखा। ‘पदमावत’ में जायसी ने हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों जातियों के तत्वों का सहारा लिया है। इस प्रकार यह ग्रन्थ इन जातियों के आपसी वैमनस्य को दूर कर उन्हें एक-दूसरे के निकट करने में समर्थ हुआ। जायसी स्वयं कहते हैं

बिरछि एक लगी दुइ डारा, एकहिं ते नामा परकारा।
मातु कै रकत पिता के बिन्दु, उपजै दुवै तुरक और हिन्दू॥

सन्त कवियों की शुष्क साधना (ज्ञान मार्ग) से जो बात सम्भव न हो सकी, जायसी के प्रेम मार्ग ने उसे सरलता से पूरा कर दिया।

PSEB 11th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास भक्तिकाल

2. लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना-जायसी ने पद्मावत में राजा रत्नसेन और रानी पद्मावती की प्रेम कहानी को आधार बनाकर सूफ़ी मत की पारमार्थिक साधना का प्रचार किया। सूफ़ी मत के अनुसार ईश्वर एक है और सर्वव्यापक है। आत्मा पति है तो ईश्वर पत्नी (सन्त कवि आत्मा को परमात्मा की पत्नी मानते थे।) जिस प्रकार लौकिक संसार में पति अपनी पत्नी को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता है उसी प्रकार आत्मा रूपी पति परमात्मा रूपी पत्नी को प्राप्त करने के लिए साधना करता है। मिलन के मार्ग में शैतान अनेक बाधाएँ खड़ी करता है। गुरु की सहायता से आत्मा रूपी पति इन बाधाओं को पार करने में सफल होता है। सूफ़ी सिद्धान्तों के अनुसार भी ‘इश्क हकीकी’ को प्राप्त करने के हिन्दी साहित्य का इतिहास लिए ‘इश्क मजाज़ी’ की सीढ़ी को पार करना पड़ता है। भाव यह है कि जो व्यक्ति ईश्वर के बनाये बन्दों से प्यार नहीं करता, वह ईश्वर से प्यार करने का अधिकारी नहीं है। जायसी ने पद्मावत के अन्त में ‘तन चित उर मन राजा कीन्हा’ आदि कह कर लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना की है।

3. श्रृंगार वर्णन-रति भाव से परिपुष्ट श्रृंगार रस ही ‘पद्मावत’ का अंगी रस है, जिसके दोनों पक्षों संयोग और वियोग का मनोहारी और रमणीय वर्णन कवि ने किया है।

(i) संयोग वर्णन-जायसी के संयोग में हमें श्रृंगार के अनुभावों और संचारी भावों की योजना तो देखने को न मिलेगी परन्तु श्रृंगार के आधारभूत आलम्बन (नायिका) का चित्रण, प्रेमाश्रय (नायक) का वर्णन और संयोग की नाना अनुभूतियों की नितान्त भाव प्रवण, सजीव और रसात्मक व्यंजना अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हुई है। निम्नलिखित पंक्तियाँ जायसी के आलम्बन चित्रण-कौशल का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करती हैं, जिसमें कवि ने यौवन के भार से झुकी किशोरी पद्मावती के अंग-प्रत्यंग का ललित, रमणीय, सजीव और मनमोहक वर्णन प्रस्तुत किया है

जग बेधा तेहि अंग सुवासा। भंवर आइ लुब्धै चहु पासा॥
बेनी नाग मलैगिरि पैठी।ससि माथे दइज होई बैठी॥
भौं धनुष साधे सर फेरे। नयन कुरंग भूलि जनु है॥
नासिक कीर कँवल मुख सोहा। पदमिनि रूप देखि जग मोहा॥
मानिक अधर दसन जनु हीरा। हियहुलसैं कुच कनक गंभीरा॥

जायसी द्वारा रचित पद्मावत के ‘लक्ष्मी समुद्र-खण्ड’ तथा ‘पद्मावती-रत्न सेन भेंट खण्ड’ में संयोग वर्णन उत्कृष्ट कोटि का हुआ है। यहाँ यह बात ध्यान देने की है कि पद्मावत में संयोग के जो चित्र दिये गये हैं उनमें सामान्य रूप से मानसिक और भावात्मक पक्ष की प्रधानता है।

(i) वियोग वर्णन-जायसी ने वियोग पक्ष की अत्यन्त मार्मिक अनुभूति ‘पद्मावत’ में प्रस्तुत की है। यों तो कवि ने नागमती और पद्मावती दोनों का वियोग वर्णन प्रस्तुत किया है, किन्तु नागमति का वियोग वर्णन तो बेजोड़ है जो हिन्दी साहित्य में अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता। ‘. जायसी ने नागमती की जिस परिस्थिति का चित्रण किया है उसकी एक दारुण पृष्ठभूमि भी उन्होंने दी है। नागमती का पति राजा रत्न सेन तोते के मुख से दूसरी स्त्री के सौन्दर्य की बात सुनकर सात समुद्र पार सिंहल द्वीप में उसे प्राप्त करने के लिए राज-पाट, घर-बार सब कुछ छोड़कर योगी बन कर चला गया लेकिन नागमती की गोद सूनी है। नागमती की इस दारुण स्थिति का चित्र कवि निम्नलिखित पंक्तियों में प्रस्तुत करता है

सुआ काल होइ लेइगा पीऊ। पिऊ नहिं जात, जात वर जीऊ॥
थमए नरायन बावन करा। राज करत राजा बलि छरा॥

जायसी ने नागमती के विरह में सामान्य हृदय तत्व की सृष्टिव्यापिनी भावना की व्यंजना की है। इस भावना में कवि ने मनुष्य और पशु-पक्षी को एक सूत्र में पिरोकर देखा है। रानी नागमती पक्षियों से अपनी विरह-व्यथा कहती फिरती है, वृक्षों के नीचे रात-रात भर रोती रहती है। इस तरह जायसी ने मनुष्य के हृदय में पशु-पक्षियों से सहानुभूति प्राप्त करने की सम्भावना के साथ-साथ पक्षियों के हृदय में भी सहानुभूति का संचार किया है। जैसे निम्नलिखित पंक्तियों में

फिरि फिर रोव, कोई नहीं डोला। आदि राति विहंगम बोला॥
तू फिरि फिर दाहै सब पांखी। केहि दुख रैनि न लावसि आँखि॥

जायसी ने विरह वर्णन के अन्तर्गत विरहजन्य कृशता का भी स्वाभाविक चित्रण किया है। उनकी अत्युक्तियों में भी गम्भीरता नज़र आती है। उदाहरणस्वरूप निम्नलिखित पंक्तियाँ देखी जा सकती हैं

दहि कोयला भइ कंत सनेहा। तोला मांसु रही नहिं देहा॥
रकत न रहा विरह तन जरा। रती रती होइ नैन्ह ढरा॥
अथवा
हाड़ भए सब किंगरी, नसैं भई सब तांति।
रोव रोंव ते धुनि उठे, कहौ विथा केही भांति।

जायसी ने एक स्थान पर पद्मावती की कृशता का भी करुण चित्र प्रस्तुत किया है

कंवल सूख पंखुरी बेहरानी। गलि गलि कै मिलि छार हिरानी।

नागमती के विरह वर्णन का सर्वाधिक मर्मस्पर्शी प्रसंग वह बारहमासा है जिसमें जायसी ने क्रम से बारह महीनों में नागमती की वियोग व्यथा का सजीव चित्र प्रस्तुत किया है। उपर्युक्त विवेचना के आधार पर हम नि:संकोच कह सकते हैं कि जायसी ने विरह वर्णन में अपनी प्रतिभा और रसप्रवणता का पूर्ण परिचय दिया है।

4. रहस्यवाद-जायसी सूफ़ी सम्प्रदाय से थे जिसमें ईश्वर की कल्पना प्रेम के रूप में की जाती है। प्रेम के द्वारा साधक परम सत्ता तक पहुँचने का प्रयास करता है और अन्त में उसी में लीन होकर परमानन्द को प्राप्त करता है। जायसी के काव्य में वर्णित इसी भावना को रहस्यवाद कहा जाता है।

किन्तु भारतीय परिवेश अपनाने के कारण उनके रहस्यवाद पर भारतीय अद्वैतवाद का प्रभाव भी स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। ‘पद्मावत’ में इस परमानन्द की अनुभूति के अनेक चित्र देखने को मिलते हैं, यथा
हीरामन तोते के मुँह से पद्मावती का नख-शिख वर्णन सुनकर राजा रत्न सेन मूर्छित हो जाता है। इस मूर्छित अवस्था में उसे मिलन की आनन्दमयी अनुभूति होती है। मूर्छा भंग होने पर राजा रोने लगता है, जैसे आत्मा पुनः मृत्यु लोक में आने पर रोने लगती है

जब भा चेत उठा वैरागा। बउर जनौं सोई उठि जागा॥
आवत जग बालक जस रोआ। उठा रोइ हा ज्ञान सो खोआ॥
हौं तौं अहा अमरपुर जहाँ। इहां मरनपुर आएहुँ कहाँ।

जायसी ने प्रकृति के बीच ईश्वरीय सत्ता के रहस्यमय-आभास का बड़ा मर्मस्पर्शी चित्र प्रस्तुत किया है

रवि ससि नखत दिपहिं आहि जोति। रतन पदारथ मानक मोती।
जहँ-जहँ बिहँसि सुभावहि हँसी। तहँ तहँ छिटकि जोति परगसी॥
नयन जो देखा कँवल भा, निरमल नीर समीर॥
हँसत जो देखा हँ सभा, दसन जोति नग हीर॥

5. इतिहास और कल्पना का मिश्रण-जायसी ने पद्मावत में इतिहास और कल्पना का सुन्दर समन्वय किया है। इतिहास में हमें अलाउद्दीन खिलजी की चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई और रानी पद्मिनी की आकृति दर्पण में देखने आदि की घटनाएँ ही मिलती हैं। इसके अतिरिक्त जायसी ने राजस्थान और पंजाब की लोक कथाओं को आधार बनाकर तथा अनेक काल्पनिक घटनाओं का समावेश कर पद्मावत की रचना की। इसके लिए जायसी ने अनेक कथानक रूढ़ियों का भी प्रयोग किया है।

6. भाषा, छन्द और अलंकार-जायसी की भाषा ठेठ अवधी है। यद्यपि उनकी भाषा तुलसीदास की भाषा के समान साहित्यिक एवं पाण्डित्यपूर्ण नहीं है, फिर भी अपनी स्वाभाविकता, सरलता तथा प्रसाद एवं माधुर्य गुणों से ओत-प्रोत है। जायसी ने दोहा-चौपाई छन्द का प्रयोग किया और लगभग सभी सादृश्यमूलक अलंकारों का प्रयोग अपने काव्य में किया है। आगे चलकर गोस्वामी तुलसीदास ने इस शैली को अपनाया। जायसी को हम लोकभाषा और लोक जीवन के कवि कह सकते हैं।

पद्मावत में कवि ने मसनवी शैली का प्रयोग किया है। इस शैली में सारी कथा एक ही छन्द में कही जाती है। जायसी से पूर्व भारतीय साहित्य में यह परम्परा नहीं मिलती। निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि जायसी भक्तिकालीन प्रेममार्गी शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। उनके काव्य में प्रेम अभिव्यंजना, प्रबन्ध कुशलता, रहस्य भावना, विरह वर्णन तथा अभिव्यंजना कौशल आदि गुण होने के कारण इन्हें हिन्दी साहित्य के उच्च कोटि के कवि माना जाता है।

3. सूरदास

प्रश्न 3.
सूरदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
सूरदास का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
भक्तिकालीन कृष्ण भक्ति-शाखा के प्रमुख कवि के जन्म एवं जीवन वृत्त के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। विद्वानों में इनके जन्म समय में काफ़ी मतभेद है। कुछ विद्वान् इनका जन्म सम्वत् 1535 मानते हैं तो कुछ 1540 स्वीकार करते हैं। इसी प्रकार इनकी मृत्यु भी सं० 1620 और सं० 1640 मानी जाती है। अतः हम कह सकते हैं कि इनका जन्म सं० 1535-40 के बीच तथा मृत्यु सं० 1620-40 के बीच हुई होगी।

सूरदास के जन्म स्थान के विषय में भी विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान् मथुरा के पास ‘रुनकता’ नामक गाँव को तथा कुछ विद्वान् दिल्ली के निकट ‘सीही’ गाँव को इनका जन्म स्थान मानते हैं। इनका अन्धे होना भी विवाद का विषय है। यह तो निश्चित है कि ये अन्धे थे, पर क्या जन्म से ? इस प्रश्न का दो टूक उत्तर नहीं मिलता। इनकी कविता में प्रकृति की शोभा और रूप वर्णन को देखते हुए इस धारणा की पुष्टि होती है कि इन्होंने जीवन और जगत् को अपनी आँखों से देखा था। जनश्रुति के आधार पर यह स्वीकार किया जाता है कि ये यौवन काल में अन्धे हुए।

सूरदास जी के माता-पिता के सम्बन्ध में भी कोई जानकारी प्राप्त नहीं है। डॉ० ब्रजेश्वर वर्मा इन्हें ब्रह्म भाट मानते हैं तो डॉ० दीनदयाल गुप्त इन्हें सारस्वत ब्राह्मण मानते हैं। जो बात प्रमाणित है वह यह है कि आप दिल्ली-मथुरा के बीच गऊघाट पर रहते थे। यहीं इनकी भेंट महाप्रभु वल्लभाचार्य जी से हुई। सूरदास जी वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित होकर वहीं श्रीनाथ जी के मन्दिर में कीर्तन करने लगे। मन्दिर के समीप ही ‘पसौली’ नामक स्थान पर आप निवास करते थे। श्रीनाथ जी के मन्दिर में भजन-कीर्तन आप अन्तिम समय तक करते रहे। कहते हैं कि मृत्यु के समय भी आप ‘खंजन नयन रूप रस माते’ पद गा रहे थे।

रचनाएँ:
काशी नागरी प्रचारिकी सभा की खोज रिपोर्ट के अनुसार आपकी 25 के करीब रचनाएँ बतायी गई हैं। किन्तु इनमें से तीन रचनाएँ (1) सूरसागर, (2) सूर सारावली तथा (3) साहित्य लहरी ही प्रमाणित मानी जाती हैं। इनमें सूरसागर सर्वाधिक लोकप्रिय है। यह रचना ‘ श्रीमद्भागवत्’ की काव्यमयी छाया है, अनुवाद नहीं। इसमें लगभग 5000 पद संग्रहीत हैं।

काव्यगत विशेषताएँ:
सूरदास जी भक्ति-कालीन सगुण भक्ति-धारा की कृष्ण भक्ति-शाखा के प्रमुख कवि हैं। इनके उच्च कोटि के भक्त होने का यह प्रमाण है कि गोसाईं विट्ठलनाथ ने इन्हें ‘अष्टछाप’ भक्तों में मूर्धन्य स्थान पर रखा था। इनके काव्य का अध्ययन करने पर हमें निम्नलिखित विशेषताएँ देखने को मिलती हैं

1. भक्ति-भावना-सूरदास सगुण के उपासक थे। विशेषकर भगवान् विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को अपना इष्ट मानते थे। ऐसा वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित होने का प्रभाव था। वल्लभ सम्प्रदाय में कृष्ण भक्ति की व्यवस्था है। श्रीमद्भागवत् में वर्णित कृष्ण भक्ति के अनुरूप ही सूरदास जी ने लीला गान किया है। आचार्य शुक्ल ने सूर की इस प्रवृत्ति को ‘लोक रंजन’ कहा है। सूरदास सगुण भक्त थे तथा निर्गुण के प्रति उदासी वे कहते हैं

रूप रेख गुण जाति जुगाति बिनु निरालम्ब कित धावै।
सब विधि अगम विचारहिं ताते ‘सूर’ सगुण पद गावै॥

सूरदास अपनी दीनता प्रभु के आगे विनीत भाव से प्रकट करते हुए कहते हैं

प्रभु हौं सब पतितनि को टीको।
मोहि छांड़ि तुम और उधारे, मिटे सूल क्यों जी को।
कोऊ न समरथ अध करिवे को, खेंचि कहत हौं लीकौ॥

आत्म-निवेदन करते हुए सूर प्रभु से कहते हैं कि हे प्रभु! आप जैसे रखोगे वैसे ही रहूँगा। आप तो सबके हृदय की बात जानते हैं । अतः मुख से क्या कहूँ

जैसेहिं राखहु तैसेहि रहि हौं।
जानत हों दुख-सुख सब जन को मुख करि कहा कहौ॥
………………………………………..
कमलनयन घनस्याम मनोहर अनुचर भयौ रहौं।
‘सूरदास’ प्रभु भगत कृपानिधि तुम्हरे चरण गहौं।

सूरदास ने भी सन्त कवियों की तरह नाम जपने अथवा नाम स्मरण के महत्त्व को स्वीकार किया है। वे कहते हैं

सोई रसना जो हरि गुन गावै।
………………………………………..
कर तेई जे स्याम सेवै, चरननि चलि वृन्दावन जावै।
‘सूरदास’ जैहै बलि बाकी जो, हरिजू सों प्रीति बढ़ावे॥

2. सख्य भाव-सूरदास जी ने प्रमुख रूप से सख्य, वात्सल्य और मधुरा-भक्ति को प्रकट करने वाले पद लिखे हैं। सूरदास आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध पति-पत्नी का सम्बन्ध नहीं बल्कि सखि-सखा का सम्बन्ध मानते हैं। दो मित्रों में जैसा खुलापन होता है, ऐसा सूरदास अपने प्रभु में खुलापन रखते हैं। इसीलिए भगवान् को गोपियों के मुख से खरी-खोटी कहलाने में नहीं चूके। प्रेमाधिक्य में खरा-खोटा कहना स्वाभाविक ही है। सूरदास का ‘भ्रमरगीत’ तो है ही उपालम्भ साहित्य का एक रूप। गोपियाँ उपालम्भ देती हुई कहती हैं

हरि काहे के अन्तर्जामी ?
जो हरि मिलत नहीं यही औसर, अवधी बतावत लामी।
तथा
ऊधो जाके माथे भाग।
कुब्जा को पटरानी कीन्हीं, हमहिं देत वैराग।

ऐसे उपालम्भ व्यक्ति उसी को दे सकता है जिसके प्रति उसे अथाह प्रेम हो।

डॉ० हरिवंश लाल शर्मा कहते हैं- “सूरदास के सखा भाव में विशेषता यह है कि उसमें एक ओर तो मनोवैज्ञानिक रूप से मानवीय सम्बन्धों का निर्वाह किया गया है और दूसरी ओर उसमें भक्ति-भाव की पूर्ण तल्लीनता और भावात्मकता की अनुभूति है।”

3. वात्सल्य वर्णन-सूर के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है-वात्सल्य वर्णन जो बेजोड़ तो है ही अत्यन्त स्वाभाविक भी है। इस रस का कोई भी रूप, भाव इनकी लेखनी से अछूता नहीं रह पाया। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ठीक ही कहते हैं कि, ‘सूरदास वात्सल्य रस का कोना-कोना झांक आये हैं।’ डॉ० हरिवंश लाल शर्मा लिखते हैं- “यदि कहा जाए कि सूर ने पुरुष होते हुए भी माता का हृदय पाया तो असंगत नहीं होगा।” सूरदास ने वात्सल्य भाव की भक्ति का जो हिन्दी साहित्य का इतिहास निष्काम और इन्द्रिय सुख की कामना से रहित होती है-माता यशोदा के माध्यम से ऐसा सरल, स्वाभाविक और हृदयग्राही चित्र खींचा है कि आश्चर्य होता है। श्री कृष्ण की बाल लीलाओं और गोचारण लीलाओं के कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं

(i) कर पग गहि अंगूठा मुख मेलत।
प्रभु पौढ़े पालने अकेले हरषि-हरषि अपने रंग खेलत॥

(ii) जसोदा हरि पालने झुलावै।
हल्रावै दुलराई मल्हावै, जोई-सोई कछु गावै॥
मेरे लाल को आउ निदरिया, काहे न आनि सुवावै॥

(iii) चंद खिलौना लैहों मैया मेरी, चंद खिलौना लैहौँ।
धौरी को पयपान न करिहौँ बेनी सिर न गुंथैहौं।

इसी प्रकार ‘मैया मैं नहीं माखन खायो’, ‘मैया कबहि बढ़ौगी चोटी’ तथा ‘मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ’ आदि पदों में माता और पुत्र के स्नेह का चित्रण किया गया है। हमारा विश्वास है कि संसार की किसी भी भाषा के साहित्य में ऐसी बाल लीलाओं का वर्णन नहीं मिलेगा। श्री कृष्ण की बाल चेष्टाओं के चित्रण में सूरदास ने कमाल की होशियारी और सूक्ष्म निरीक्षण का परिचय दिया है।

4. श्रृंगार वर्णन-सूर के काव्य में शृंगार रस का चित्रण भी खूब बेजोड़ है। शृंगार भावना को भक्ति-भावना से अनुरंजित कर वास्तव में सूर ने उसे भक्ति का उज्ज्वल रस ही बना दिया है। सूरदास ने शृंगार रस का चित्रण राधा तथा गोपियों के प्रेम के रूप में किया है। बचपन में साथ-साथ खेलने वाले सखा-सखियां यौवन में प्रिय-प्रिया बन गये। गोपियों का प्रेम ‘लरिकाई का प्रेम है’ सो कैसे छूट सकता है। उन्हें तो श्रीकृष्ण के सिवा और कुछ अच्छा ही नहीं लगता

‘सूर स्याम बिनु और न भावै, कोऊ कितनौ समुझावै।’

राधा और श्रीकृष्ण की लीला वास्तव में गोपिकाओं रूपी भक्त-जनों के लिए प्रेम के चरम आदर्श का प्रतीक है। इसलिए कवि ने राधा और श्रीकृष्ण की प्रेम लीला का व्यापक चित्रण अपनी कवित्व शक्ति के समस्त उपकरणों द्वारा किया है। राधा श्रीकृष्ण से प्रेम करने पर श्रीकृष्णमय हो गई है। उसकी सखियां कहती हैं

सुनि राधा यह कहा विचार।
वै तैरे तू उनकै रंग, अपनो मुख क्यों न निहारे॥

और श्रीकृष्ण भी तो राधा के बस में हो गये हैं

स्याम भये राधा बस ऐसे।
चातक स्वाति, चकोर चंद ज्यौं, चक्रवाक रवि जैसे॥

सूर के श्रृंगार रस में संयोग की अपेक्षा वियोग वर्णन में अधिक प्रखरता है। सूर सागर’ में लीला वर्णन के बाद ‘भ्रमर गीत’ की रचना वास्तव में वियोग वर्णन के लिए ही की गई है। श्रीकृष्ण के मथुरा गमन के बाद गोपियों को कालिन्दी ‘अति कारी’ दिखाई देती हैं तथा रात ‘काली नागिन’ जैसी प्रतीत होती है, रात जागते जागते कटती है

आजु रैनि नहिं नींद परी।
जागत गिनत गगन के तारे, रसना रटत गोबिन्द हरी॥

विरह की पीड़ा ही ऐसी होती है

मिलि विछुरन की वेदन न्यारी।
जाहि लगै सोई पे जाने, विरह-पीर अति भारी॥
जब यह रचना रची विधाता, तब ही क्यों न संभारी।
सूरदास प्रभु काहे जिवाई, जनमत ही किन मारी॥

उद्धव जी मथुरा लौटकर राधा की वियोगावस्था का जिस प्रकार वर्णन करते हैं उससे पत्थर भी पिघल जाता है। निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं सूर का काव्य अपने लोक रंजक रूप के कारण, अपनी भक्ति-भावना के कारण, वात्सल्य और श्रृंगार के कारण इतना श्रेष्ठ है कि किसी कवि को यह कहना पड़ा था-सूर सूर तुलसी ससि।

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4. तुलसीदास

प्रश्न 4.
गोस्वामी तुलसीदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
तुलसीदास का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
सर जॉर्ज ग्रियर्सन ने गोस्वामी तुलसीदास जी को भगवान् तथागत बुद्ध के बाद भारत का पहला लोकनायक कहा है। तुलसी का जन्म समय और जीवन आज तक विवाद का विषय बने हुए हैं। अधिकतर विद्वान् तुलसीदास जी का जन्म सं0 1589 मानते हैं तथा मृत्यु सं0 1680 में होना स्वीकार करते हैं। इनके जन्म स्थान के विषय में भी मतभेद है। कुछ विद्वान् इनका जन्म राजापुर तो कुछ विद्वान् सूकर खेत (वर्तमान सोरों) को स्वीकार करते हैं किन्तु इतना निश्चित और निर्विवाद है कि आप इन दोनों स्थानों पर रहे।

प्रचलित धारणा के अनुसार तुलसी के पिता का नाम आत्माराम दूबे तथा माता का नाम हुलसी था। गंडमूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण इनके माता-पिता ने इन्हें बचपन में ही त्याग दिया था। जन्म से अभागे तुलसी को न माता-पिता का दुलार मिला, न कुटुम्ब का सुख । जीविका के लिए इन्हें द्वार-द्वार भटकना पड़ता था। संयोग से इनकी बाबा नरहरिदास से भेंट हो गई। बाबा राम भक्त थे। उन्होंने ही तुलसी को वेद-वेदान्त और शास्त्रों का ज्ञान दिया और संस्कृत भाषा की शिक्षा दी।

तुलसी जी का जवान होने पर विवाह दीनबन्धु पाठक की कन्या रत्नावली से हो गया। परन्तु भाग्य ने यहाँ भी इनका साथ नहीं दिया। चारों ओर से प्रेम-प्यार से वंचित भावुक युवक तुलसी पत्नी के प्रति आवश्यकता से अधिक आसक्त रहने लगे। एक बार उसके मायके चले जाने पर उसके पीछे-पीछे वहाँ पहुँच गये। वहाँ पत्नी की फटकार सुनकर तुलसी ने घर-बार के माया बन्धनों को तोड़ दिया। वे श्री राम के अनन्य भक्त बन गये। गृहस्थ त्याग और वैराग्य धारण कर तुलसी जी ने भारत के सभी तीर्थों की यात्रा की। तत्पश्चात् काशी के महान् पण्डित शेष सनातन से अन्यान्य शास्त्रों का अध्ययन किया। खपकर दो जून भोजन जुटाने वाले तुलसी को रूढ़ि जर्जर सामन्ती समाज ने अभाव और विपन्नता का जो विष दिया उसने तुलसी को विषपायी नीलकण्ठ बना दिया।

इसी नीलकंठ ने ‘रामचरितमानस ‘ के रूप में मानो लोक मंगल की गंगा बहा दी। उन्होंने श्रीराम के पावन-चरित्र में शील, शक्ति और सौन्दर्य का समन्वय करके उन्हें नारायण से नर बता कर और नर में नारायण का रूप दिखा कर अपनी जीवन साधना से एक ऐसी प्राणवान् लोक क्रान्ति का सृजन और पोषण किया जिससे निराशा और निस्पन्द हिन्दू जाति की शिथिल धमनियों में उत्साह और आशा का संचार कर जीने का नया सहारा दिया।

रचनाएँ:
नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित ‘तुलसी ग्रन्थावली’ के अनुसार इनकी निम्नलिखित 12 रचनाएँ ही प्रमाणिक हैं। तुलसी ग्रन्थावली के अनुसार इनका क्रम इस प्रकार है

  1. रामचरितमानस,
  2. रामलला नहछू,
  3. वैराग्य संदीपनी,
  4. बरवै रामायण,
  5. पार्वती मंगल,
  6. जानकी मंगल,
  7. रामाज्ञा प्रश्न,
  8. कवितावली,
  9. गीतावली,
  10. कृष्ण गीतावली,
  11. विनय पत्रिका,
  12. दोहावली।

काव्यगत विशेषताएँ-तुलसी जैसा व्यक्ति युगों में एक पैदा होता है। तुलसीदास जी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अनन्य भक्त थे और सारे संसार को ‘सियाराममय’ देखते थे। भक्त होने के साथ-साथ तुलसी दार्शनिक, पण्डित, कवि, नीतिज्ञ, समाज सुधारक और विचारक के रूप में बहुमुखी प्रतिभा रखने वाले थे। तुलसीदास जी भक्तिकाल के पहले ऐसे कवि थे जिन्होंने भारतीय समाज, भारतीय जनता की समस्याओं को भली प्रकार समझा और सही ढंग से उनका समाधान प्रस्तुत किया।

गोस्वामी तुलसीदास जी के काव्य का अध्ययन करने पर हमें निम्नलिखित विशेषताएँ देखने को मिलती हैं

1. भक्ति-भावना:
तुलसीदास जी श्रीराम के अनन्य भक्त थे। उन्होंने वाल्मीकि के मर्यादा पुरुषोत्तम राम को भगवान् विष्णु के अवतार के रूप में स्वीकार किया। तुलसी के श्रीराम विश्व की समस्त चेतना के मूल स्रोत हैं, विश्व के सब प्राणी हिन्दी साहित्य का इतिहास मात्र में वे जीव होकर व्याप्त हैं। श्री राम परमब्रह्म और परमात्मा हैं। तुलसी के अनुसार निर्गुण और सगुण ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। भक्त के प्रेम के कारण ही निर्गुण ब्रह्म सगुण का रूप धारण करता है

सगुनहि आगुनहिं नहीं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध वेदा॥
अगुण अरूप अलख अज जोई। भगत प्रेम बस सगुण सो होई॥

तुलसीदास ने भक्ति और प्रेम पिपासा में चातक को आदर्श माना है। मर्यादा के अनुकूल अन्य देवी-देवताओं से प्रार्थना करते हुए उन्होंने उनसे राम भक्ति की याचना कर अपनी अनन्यता की रक्षा की है। उनकी भक्ति सेवक सेव्य भाव की थी। इसके बिना वे मुक्ति को असम्भव मानते हैं

सेवक सेव्य भाव बिन, भवन तरिये उरगारि।

तुलसी श्रीराम की भक्ति के मार्ग को अत्यन्त सीधा, सरल और सहज मानते हैं। जो भी इस पर निष्कपट भाव से चलता है वह ही मुक्ति को प्राप्त करता है।

सूधे मन सूधे वचन सुधी सब करतूति।
तुलसी सूधी सकल विधि, रघुवर प्रेम-प्रसूति॥

तुलसी पूर्ण रूप से श्रीराम के प्रति समर्पित हैं। उनके लिए तो श्रीराम के चरणों का अनुराग ही सब कुछ है

तुलसी चाहत जन्म भरि, राम चरण अनुराग।

तुलसीदास की भक्ति की एक विशेषता उनका दैन्य भाव है। ‘विनय पत्रिका’ और ‘कवितावली’ में अपनी दीनता को उन्होंने अनेक स्थानों पर प्रकट किया है। वे कहते हैं

राम सो बड़ो है कौन, मो सो कौन छोटो।
राम सो खरो है कौन, मो सो कौन खोटो॥

तुलसीदास जी ने ईश्वर प्राप्ति के मार्गों, ज्ञान और भक्ति को भिन्न नहीं माना

ज्ञानहि भक्ति हि नहिं कछु भेदा। उभय हरिहिं भव सम्भव खेदा॥

ऐसा लिखते हुए भी उन्होंने भक्ति को प्रधानता दी है। भक्ति को प्रधानता देने का काव्यमय कारण भी दिया है। वह यह कि भक्ति माया से मोहित नहीं हो सकती

मोहि न नारि नारि के रूपा। पन्नगारि यह नीति अनूपा॥

ज्ञान में प्रत्यूह भी अधिक हैं। इसलिए ज्ञान मार्ग की अपेक्षा भक्ति ही सुलभ हैं। तुलसी ने ज्ञान को दीपक माना है जो संसार की हवा से बुझ सकता है और भक्ति को चिन्तामणि माना है, जिस पर हवा का असर नहीं पड़ता। भक्ति साधना ही नहीं साध्य भी है। इसी भक्ति-भावना के कारण उन्होंने सगुणोपासना को प्रधानता दी और वे ब्रह्म के सगुण अवतार श्रीराम’ के वर्णन में सफल हुए।

2. जनभाषा का प्रयोग:
तुलसी के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है कि उन्होंने अपना काव्य जन भाषा में रचा, संस्कृत में नहीं, क्योंकि तुलसी जानते थे कि जनता की बात जनता तक उसी की भाषा में जितनी शीघ्रता से पहुँचती है, समझी जाती है उतनी शीघ्रता से किसी दूसरी भाषा में कही बात नहीं। उन्होंने उस समय की दोनों जन भाषाओं-अवधी और ब्रज में अपने काव्य की रचना की। ‘बरवै रामायण’, ‘राम लला नहछू’ आदि में पूर्वी अवधी, ‘रामचरितमानस’ में पश्चिमी अवधी तथा ‘गीतावली’, ‘कवितावली’, ‘विनय पत्रिका’ आदि की रचना ब्रज भाषा में की। संस्कृत कठिन भाषा होने के कारण तुलसी को लगा कि वे अपनी बात जन साधारण तक इस भाषा में न पहुँचा पायेंगे, हालांकि पंडित समाज में इसका विरोध भी हुआ किन्तु उनका मानना था

का भाषा का संस्कृत, भाव चाहिए साँच।
काम जो आवे कामरी, का लै करै कमाँच॥

3. हिन्दू धर्म और जाति के रक्षक-तुलसी के काव्य ने हिन्दू धर्म और जाति की रक्षा करने का जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया उसे कोई भी हिन्दू भुला नहीं सकता। उन्होंने ‘रामचरितमानस’ के द्वारा भक्ति के साथ शील, आचार, मर्यादा और लोक संग्रह का सन्देश सुनाकर हिन्दू जाति में एक अपूर्व दृढ़ता उत्पन्न कर दी। सर्वप्रथम तुलसीदास ने हिन्दुओं में प्रचलित वैष्णव, शैव और शाक्त गुटों को एक करने का प्रयास किया। तुलसी से पूर्व इन तीनों गुटों या सम्प्रदायों में लड़ाई-झगड़े ही नहीं, मार-काट तक की नौबत आ जाया करती थी। तुलसीदास जी ने ‘मानस’ की कथा शंकर भगवान् द्वारा पार्वती जी को सुनाई है। शंकर भगवान् प्रभु श्रीराम को अपना इष्ट कहते हैं। इससे कहीं वैष्णवों को अधिमान न हो जाए इसलिए तुलसी श्रीराम के मुख से कहलाते हैं कि शंकर भगवान् मेरे इष्ट हैं, पूज्य हैं। सेतुबन्ध से पूर्व श्रीराम विधिवत् शंकर भगवान् की पूजा अर्चना करते हैं। साथ ही तुलसीदास जी ने श्रीराम के मुख से कहलवाया

शिवद्रोही मम दास कहावा।
सो नर सपनेहुं मोहि नहिं भावा॥
औरउ एक गुपुत मत सबहि कहहूँ कर जोरि।
संकर भजन बिना नर, भगति न पावै मोरि॥

‘रामचरितमानस’ के बालकाण्ड में दशरथ, मुनि वशिष्ठ, कौशल्या आदि सभी पात्र शंकर भगवान् की सौगन्ध खाते हैं-मानो वे उनके इष्ट हों। अब रह गयी शाक्तों की बात। ‘मानस’ की कथा में शिव पत्नी सती जी श्रीराम की परीक्षा लेने सीता जी के वेश में जाती है। इसी बात पर शंकर भगवान् अपनी पत्नी का त्याग कर देते हैं । ‘एति तन सतिहिं भेंट मोहि नाहि’ क्योंकि उन्होंने प्रभु पत्नी जगत् माता सीता जी का रूप धारण किया था। इसी तरह श्रीराम भी शंकर पत्नी को माता कहते हैं। सती दूसरे जन्म में पार्वती जी बनी जो आज भी हिन्दुओं में शक्ति का रूप मानी जाती है। मानस’ के प्रभाव के कारण ही आज हर हिन्दू घर में समान रूप से भगवान् विष्णु, भगवान् शंकर और शक्ति-दुर्गा माता की पूजा होती है। तुलसी यदि ‘मानस’ की रचना न करते तो शायद हिन्दू जाति का आज नामोनिशान भी न होता।

तुलसीदास जी ने श्रीराम का चरित्र शील, शक्ति और सौन्दर्य का समन्वित रूप में चित्रित किया है। श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम भी हैं और भगवान् भी। वह एक आदर्श पुत्र, भाई, पति, मित्र, स्वामी, पिता एवं शत्रु हैं। तुलसी ने उनके चरित्र द्वारा समाज में व्यक्ति के सुधार की ओर ध्यान दिया जबकि उससे पूर्व सभी भक्त एवं सन्त कवियों ने समाज सुधार की ओर ही ध्यान दिया था-‘मानस’ के सभी पात्र आदर्श हैं।

तुलसी ने वर्ण व्यवस्था का पक्ष लेकर, राम राज्य जैसे आदर्श समाज की कल्पना हिन्दू जाति को एक कवच समान प्रदान की जिससे इस्लाम धर्म के प्रचार को रोका जा सका। अकेले ‘मानस’ ने ही हिन्दू जाति को मुस्लिम बनने से रोक लिया। तुलसी के काव्य की यह सबसे बड़ी विशेषता है। उन्होंने जो लिखा वह कोरी कल्पना न था बल्कि ‘नाना पुराण निगमागम’ का निचोड़ था, ज्ञान और भक्ति का समन्वित रूप था। हम भी तुलसी के साथ यह कहने में कोई संकोच नहीं करते सियाराममय सब जग जानी। करो प्रणाम जोरि जुग पाणी॥

4. समन्वयवादिता:
तुलसी के काव्य में समन्वयवादिता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। उनके काव्य में लोक और शास्त्र ही नहीं, वैराग्य और गार्हस्थ्य का, ज्ञान, भक्ति और कर्म का, भाषा और संस्कृति का, निर्गुण और सगुण का, पंडित और अपण्डित का, आदर्श और व्यवहार का समन्वय देखने को मिलता है। सामाजिक, धार्मिक, साहित्यिक सभी क्षेत्रों में उनका समन्वय रूप उजागर हुआ है।

5. मुक्तक काव्य:
तुलसीदास की दोहावली, गीतावली, कृष्ण गीतावली, विनय पत्रिका आदि कृतियाँ मुक्तक काव्य की कोटि में आती हैं। हिन्दी-साहित्य के मुक्तक साहित्य की ये उत्कृष्ट रचनाएँ हैं। इन रचनाओं में कवि की आत्मानुभूतियों का चित्रण हुआ है। किन्तु तुलसीदास ने राम कथा को जिस रूप में ग्रहण किया है उसमें भावुकता के लिए स्थान बहुत कम है, जहाँ वह है भी वह मर्यादित है। उनके कृष्ण काव्य में सूर जैसी भावुकता उत्पन्न नहीं हो सकी। हाँ, उनकी ‘विनय पत्रिका’ आत्म-निवेदन साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखती है।

6. प्रबन्ध कौशल:
तुलसी प्रमुखतः प्रबन्ध काव्यकार हैं। ‘रामचरितमानस’ प्रबन्ध कौशल की दृष्टि से हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। ‘मानस’ की कथा का आधार आध्यात्मक रामायण’ और ‘वाल्मीकि रामायण’ है, किन्तु उस कथा हिन्दी साहित्य का इतिहास के निर्वाह में अनेक मौलिक एवं नवीन प्रसंगों की उद्भावना कर, तुलसी ने अपनी मौलिकता एवं कलात्मकता का परिचय दिया है। यथा श्रीराम सीता जी के प्रथम मिलन का फुलवारी दृश्य, धनुष भंग के समय परशुराम जी का तुरन्त जनक सभा में प्रकट होना आदि के दृश्य। मानस की कथा चार-चार वक्ताओं और श्रोताओं के माध्यम से कही गई है किन्तु कहीं भी रोचकता में बाधा नहीं पड़ती। ‘मानस’ में महाकाव्य के सभी लक्षण विद्यमान हैं। श्रीराम धीरोदात्त नायक हैं, शृंगार, वीर आदि सभी रसों से ‘मानस’ अनुप्राणित है और सबसे बड़ी बात ‘मानस’ का चरित्र-चित्रण इतना स्वाभाविक एवं सशक्त बन पड़ा है कि लगता है तुलसी मनोविज्ञान के भी कुशल ज्ञाता थे। मानस के सभी पात्र अलौकिक होते हुए भी लौकिक प्रतीत होते हैं-मानवीय संवेदना से युक्त एवं सुख-दुःख को अनुभव करने वाले।

वस्तुत:
तुलसी के काव्य की आत्मा बड़ी विराट है। उनके भावना लोक की परिधि बड़ी व्यापक और विशाल है और इसे भावभूमि में जितना व्यापक संचरण तुलसी के कवि हृदय ने किया है, उतना और किसी ने नहीं।

PSEB 11th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास भक्तिकाल

लघु प्रश्नोत्तर

भक्ति काल

प्रश्न 1.
भक्ति काल का समय कब से कब तक का माना जाता है।
उत्तर:
भक्ति काल का समय संवत् 1375 से संवत् 1700 तक माना जाता है।

प्रश्न 2.
भक्ति काल में कौन-सी दो प्रमुख धाराएँ प्रचलित हुई?
उत्तर:
निर्गुण भक्ति धारा तथा सगुण भक्ति धारा।

प्रश्न 3.
निर्गुण भक्ति धारा की कितनी शाखाएँ थीं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
निर्गुण भक्ति धारा की दो शाखाएं थीं-ज्ञान मार्गी भक्ति शाखा तथा प्रेम मार्गी भक्ति शाखा।

प्रश्न 4.
सगुण भक्ति धारा की कितनी शाखाएँ थीं ? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
सगुण भक्ति धारा की दो शाखाएँ थीं-कृष्णा भक्ति शाखा तथा राम भक्ति शाखा।

प्रश्न 5.
ज्ञान मार्गी शाखा के किन्हीं चार कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कबीर दास, गुरु नानक देव, रैदास तथा मलूक दास।

प्रश्न 6.
प्रेम मार्गी काव्य के प्रमुख दो कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मलिक मुहम्मद जायसी तथा कुतुबन।

प्रश्न 7.
कृष्ण भक्ति शाखा के दो प्रमुख कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सूरदास, नन्द दास।

प्रश्न 8.
भक्ति काल की प्रत्येक शाखा तथा उसके प्रतिनिधि कवि का नाम लिखें।
उत्तर:
ज्ञान मार्गी शाखा-कबीर प्रेम मार्गी शाखा-जायसी कृष्ण मार्गी शाखा-सूरदास राम मार्गी शाखा–तुलसीदास

प्रश्न 9.
अष्टछाप के कवियों के नाम लिखें।
उत्तर:
सूरदास, कृष्णदास, परमानन्ददास, कुम्भनदास यह चारों कवि महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य थे। नन्ददास, चतुर्भुज दास, छीत स्वामी तथा गोविन्द स्वामी यह चारों महाप्रभु वल्लभाचार्य के पुत्र गोस्वामी विट्ठलदास के शिष्य थे।

प्रश्न 10.
दो कृष्ण भक्त कवियों के नाम लिखें जो किसी सम्प्रदाय से सम्बन्धित नहीं थे?
उत्तर:

  1. रसखान
  2. मीराबाई

प्रश्न 11.
अवधी भाषा के दो ग्रन्थों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. पद्मावत
  2. रामचरितमानस।

प्रश्न 12.
कवित्त और सवैये लिखने वाले प्रसिद्ध कवि का नाम लिखिए।
उत्तर:
रसखान।

प्रश्न 13.
भ्रमर गीत रचने वाले दो कवियों के नाम लिखें।
उत्तर:
सूरदास, नन्ददास।

प्रश्न 14.
भ्रमर गीत का प्रमुख प्रतिपाद्य क्या है?
उत्तर:
भ्रमर गीत का प्रमुख प्रतिपाद्य निर्गुण का खण्डन और सगुण का मण्डन है।

प्रश्न 15.
ब्रज भाषा के दो ग्रन्थों के नाम लिखें।
उत्तर:
विनय पत्रिका, सूरसागर।

प्रश्न 16.
रामचरितमानस में प्रयुक्त छन्दों के नाम लिखें।
उत्तर:
दोहा, सोरठा, चौपाई।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित रचनाओं के कवियों के नाम लिखें। रामचरितमानस, बीजक, सूरसागर, पद्मावत
उत्तर:
तुलसी, कबीर, सूरदास, जायसी।

प्रश्न 18.
भक्ति काल हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग क्यों है? केवल दो कारण बताएं।
उत्तर:
(क) समन्वय की व्यापक भावना।
(ख) शील और सदाचार का महत्त्व।

प्रश्न 19.
भक्ति काल की दो सामान्य प्रवृत्तियों का उल्लेख करें?
उत्तर:
(क) नाम की महत्ता
(ख) भक्ति-भावना की प्रधानता।

प्रश्न 20.
सन्त काव्य की चार प्रवृत्तियों के नाम लिखें?
उत्तर:

  1. निर्गुण ब्रह्म की उपासना पर जोर देना।
  2. रूढ़ियों एवं आडम्बरों का विरोध करना।
  3. जाति-पाति के भेदभाव का खण्डन।

प्रश्न 21.
प्रेममार्गी सूफ़ी काव्य धारा के प्रमुख कवियों तथा उनकी रचनाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
कुतुबन-मृगावती। मंझन-मधुमालती। जायसी-पद्मावत। उसमान-चित्रावली। कासिमशाह-हंसजवाहिर। नूरमुहम्मद–इन्द्रावती।

प्रश्न 22.
सूफ़ी काव्य की दो प्रमुख प्रवृत्नियों का उल्लेख करें।
उत्तर:

  1. मसनवी पद्धति।
  2. हिन्दू संस्कृति का चित्रण।

प्रश्न 23.
निम्नलिखित ग्रन्थों की भाषा लिखिएपद्मावत, गीतावली, बीजक, अखरावट
उत्तर:
पद्मावत-अवधी गीतावली-ब्रजभाषा बीजक-सधुक्कड़ी अखरावट-अवधी।

प्रश्न 24.
हिन्दी साहित्य का इतिहास सर्वप्रथम किसने लिखा?
उत्तर:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल।

प्रश्न 25.
तुलसीदास किस मुग़ल सम्राट् के समकालीन थे?
उत्तर:
सम्राट अकबर।

प्रश्न 26.
संत काव्य परम्परा में आने वाले उत्तर प्रदेश के दो कवियों के नाम लिखें।
उत्तर:
कबीरदास, रैदास।

प्रश्न 27.
कबीर वाणी का संग्रह किस ग्रन्थ में हुआ है ? इसके कितने भाग हैं ?
उत्तर:
कबीर वाणी का संग्रह बीजक नामक ग्रन्थ में हुआ है। इसके साखी, सबद तथा रमैणी तीन भाग हैं।

प्रश्न 28.
भ्रमर गीत में गोपियों ने ईश्वर के किस रूप को श्रेष्ठ कहा है?
उत्तर:
सगुण रूप।

प्रश्न 29.
जायसी भक्तिकाल की कौन-सी धारा एवं शाखा के कवि हैं?
उत्तर:
जायसी भक्तिकाल निर्गुण भक्ति धारा की प्रेममार्गी शाखा के कवि हैं।

प्रश्न 30.
मीरा की भक्ति किस प्रकार की है?
उत्तर:
माधुर्य भाव की।

प्रश्न 31.
जायसी का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
मलिक मुहम्मद जायसी।

प्रश्न 32.
सूरदास की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
सूरसागर एवं सूरसारावली।

प्रश्न 33.
तुलसीकृत ब्रज भाषा के किन्हीं दो ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कृष्ण गीतावली, दोहावली।

प्रश्न 34.
सूरदास को किस रस का सम्राट माना जाता है?

PSEB 11th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास भक्तिकाल
उत्तर:
वात्सल्य रस।।

प्रश्न 35.
पद्मावत की रचना किस शैली में हुई है?
उत्तर:
पद्मावत की रचना दोहा-चौपाई शैली में हुई है।

प्रश्न 36.
कबीर दास के गुरु का नाम लिखें।
उत्तर:
श्री रामानन्द जी कबीर दास के गुरु थे।

भक्तिकालीन प्रमुख कवि

1. कबीर

प्रश्न 1.
कबीर किस काल के और किस धारा के कवि हैं ?
उत्तर:
कबीर भक्तिकालीन निर्गुण भक्ति धारा के कवि हैं।

प्रश्न 2.
कबीर ने ईश्वर की उपासना किस रूप में की?
उत्तर:
कबीर ने ईश्वर के निर्गुण रूप की उपासना की।

प्रश्न 3.
कबीर आत्मा और परमात्मा को किस रूप में मानते हैं ?
उत्तर:
कबीर आत्मा को पत्नी और परमात्मा को पति रूप में मानते हैं।

प्रश्न 4.
कबीर की भाषा को सधुक्कड़ी भाषा क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे। उनकी भाषा में अनेक भाषाओं के शब्दों का मिश्रण है, इसलिए उनकी भाषा को सधुक्कड़ी भाषा कहते हैं। वैसे भी कबीर साधुओं की तरह कई जगह घूमे जिस कारण उनकी भाषा पर अनेक भाषाओं का प्रभाव है।

प्रश्न 5.
कबीर ने गुरु को गोबिन्द से बड़ा क्यों माना है?
उत्तर:
गुरु की कृपा से ही गोबिन्द के दर्शन होते हैं।

2. जायसी

प्रश्न 1.
जायसी का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
जायसी का पूरा नाम मलिक मुहम्मद जायसी है।

प्रश्न 2.
जायसी भक्तिकाल की कौन-सी धारा एवं शाखा के कवि हैं?
उत्तर:
जायसी भक्तिकालीन निर्गुण भक्ति धारा की प्रेम मार्गी शाखा के कवि हैं।

प्रश्न 3.
जायसी की रचनाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
पद्मावत्, अखरावट, चित्रलेखा, आखिरी कलाम

प्रश्न 4.
हिन्दी का प्रथम प्रमाणिक महाकाव्य किसे माना जाता है ?
उत्तर:
जायसी कृत पद्मावत।

प्रश्न 5.
पद्मावत की कोई-सी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(क) विरहवर्णन
(ख) लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यक्ति।

प्रश्न 6.
जायसी आत्मा और परमात्मा को किस रूप में मानते हैं?
उत्तर:
जायसी आत्मा को पति तथा परमात्मा को पत्नी मानते हैं।

प्रश्न 7.
जायसी के काव्य की किन्हीं दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
खण्डात्मक प्रवृत्ति से परहेज़ तथा रहस्यवाद।

3. सूरदास

प्रश्न 1.
सूरदास भक्तिकाल की कौन-सी धारा एवं शाखा के कवि हैं ?
उत्तर:
सूरदास भक्तिकालीन सगुण भक्तिधारा की कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि हैं।

प्रश्न 2.
सूरदास की रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
सूरसागर, साहित्य लहरी तथा सूरसारावली।

प्रश्न 3.
सूरदास की रचनाओं की भाषा कौन-सी है?
उत्तर:
सूरदास की रचनाओं की भाषा ब्रज है।

प्रश्न 4.
सूरदास किस रस के सम्राट माने जाते हैं ?
उत्तर:
सूरदास वात्सल्य रस के सम्राट् माने जाते हैं।

प्रश्न 5.
सूरदास आत्मा और परमात्मा को किस रूप में मानते हैं ?
उत्तर:
सूरदास आत्मा और परमात्मा को सखा मानते हैं।

प्रश्न 6.
सूरदास के काव्य की किन्हीं दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
वात्सल्य वर्णन और श्रृंगार वर्णन।।

प्रश्न 7.
भ्रमरगीत का प्रमुख प्रतिपाद्य क्या है?
उत्तर:
भ्रमरगीत में गोपियों के विरह का वर्णन कर कवि ने निर्गुण पर सगुण की विजय दिखाई है।

4. तुलसीदास

प्रश्न 1.
तुलसीदास भक्तिकाल की कौन-सी धारा एवं शाखा के कवि हैं?
उत्तर:
तुलसीदास भक्तिकालीन सगुण भक्ति धारा की राम भक्ति शाखा के प्रमुख कवि हैं।

प्रश्न 2.
तुलसीदास द्वारा रचित किन्हीं चार रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
रामचरित मानस, कवितावली, विनय पत्रिका, पार्वती मंगल।

प्रश्न 3.
तुलसीदास द्वारा रचित काव्य मुख्यतः किस भाषा में हैं ?
उत्तर:
अवधी।

प्रश्न 4.
तुलसीदास द्वारा रचित किन्हीं दो ब्रज भाषा की रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
गीतावली तथा दोहावली।

प्रश्न 5.
तुलसी काव्य की कोई-सी दो विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
जनभाषा का प्रयोग तथा समन्वयवादिता।

प्रश्न 6.
तुलसी द्वारा लिखित प्रबन्ध काव्य का नाम लिखिए।
उत्तर:
रामचरितमानस।

प्रश्न 7.
तुलसी द्वारा लिखित मुक्तक काव्य का नाम लिखिए।
उत्तर:
विनयपत्रिका।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भक्तिकाल का समय माना जाता है ?
(क) सं० 1350 से 1700 ई०
(ख) संवत 1350 से 1600
(ग) सं० 1700 से 1900 ई०
(घ) सं० 1900 से आज तक
उत्तर:
(क) सं० 1350 से 1700 ई०

प्रश्न 2.
निर्गुण भक्ति काव्य के प्रतिनिधि माने जाते हैं ?
(क) संत कबीरदास
(ख) तुलसीदास
(ग) सूरदास
(घ) विद्यापति
उत्तर:
(क) संत कबीरदास

प्रश्न 3.
रामभक्ति काव्य के प्रतिनिधि कवि हैं ?
(क) कबीरदास
(ख) सूरदास
(ग) तुलसीदास
(घ) केशव
उत्तर:
(ग) तुलसीदास

प्रश्न 4.
कृष्णभक्ति काव्यधारा के प्रमुख एवं प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं ।
(क) सूरदास
(ख) तुलसीदास
(ग) कबीरदास
(घ) केशवदास
उत्तर:
(क) सूरदास

प्रश्न 5.
महात्मा बुद्ध की मृत्यु के बाद बौद्ध धर्म किन भागों में बंट गया ?
(क) हीनयान
(ख) महायान
(ग) हीनयान और महायान
(घ) कौई नहीं
उत्तर:
(ग) हीनयान और महायान

प्रश्न 6.
पद्मावत काव्य के रचयिता कौन हैं ?
(क) कबीरदास
(ख) तुलसीदास
(ग) सूरदास
(घ) जायसी
उत्तर:
(घ) जायसी

PSEB 11th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास आदिकाल

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions हिन्दी साहित्य का इतिहास आदिकाल Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास आदिकाल

प्रश्न 1.
हिन्दी-साहित्य के आदिकाल के नामकरण सम्बन्धी विभिन्न विद्वानों के मतों का उल्लेख करते हुए अपना मत व्यक्त कीजिए।
अथवा
हिन्दी-साहित्य के आदिकाल को वीरगाथा काल कहना कहाँ तक उचित है ? अपना मत व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
हिन्दी-साहित्य के प्रारम्भिक काल की साहित्य-सामग्री की प्रामाणिकता का कोई ठोस आधार अभी तक भी नहीं मिल सका है जिसके कारण इस काल के नामकरण की समस्या अभी तक सुलझ नहीं सकी है। साधारणतया इतिहासकारों ने दसवीं से चौदहवीं शताब्दी तक के साहित्य रचनाकाल को हिन्दी साहित्य का आरम्भिक काल’ कहा है। विभिन्न विद्वानों ने इस काल का नामकरण अपने-अपने तौर पर किया है। कुछ प्रसिद्ध इतिहासकारों के मत यहाँ प्रस्तुत हैं

1. मिश्र बन्धुओं का नामकरण :
आदिकाल : मिश्र बन्धुओं ने ‘मिश्रबन्धु विनोद’ में हिन्दी-साहित्य के इस आरम्भिक युग को ‘आदिकाल’ की संज्ञा दी है। उन्होंने अपने नामकरण के सम्बन्ध में कोई पुष्ट प्रमाण नहीं दिया, चूंकि यह युग हिन्दी-साहित्य का आदि युग था। अत: उन्होंने इसे आदिकाल की संज्ञा से विभूषित किया। इस नामकरण में वैज्ञानिक पद्धति का सर्वथा अभाव था।

2. आचार्य शुक्ल का नामकरण :
वीरगाथा काल : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी-साहित्य का प्रथम इतिहास ग्रन्थ लिखा। उसमें उन्होंने हिन्दी-साहित्य के आरम्भिक काल को ‘वीरगाथा काल’ की संज्ञा दी। अपने मत के पक्ष में उन्होंने रासो ग्रन्थों को आधार बनाया, किन्तु इनमें से अधिकांश ग्रन्थ या तो इस काल के बाद की रचनाएँ सिद्ध हुए या फिर उनकी प्रामाणिकता संदिग्ध थी तथा कुछ रचनाएँ केवल नोटिस मात्र थीं। शुक्ल जी ने विद्यापति पदावली और खुसरो की पहेलियों को छोड़ अन्य सभी ग्रन्थों को वीरगाथात्मक मानते हुए ही इस काल का नामकरण वीरगाथा काल किया।

डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी और श्री मेनारिया जी ने अधिकांश आधार ग्रन्थों की प्रामाणिकता को संदिग्ध मानते हुए शुक्ल जी के नामकरण से असहमति प्रकट की। मेनारिया जी ‘खुमान रासो’ को आदिकालीन रचना नहीं मानते। श्री नाहटा जी ने तो इसका रचना काल संवत् 1730 और संवत् 1760 के बीच दिया है। इसके अतिरिक्त वर्तमान रूप में पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता भी सिद्ध नहीं हो सकी।

शुक्ल जी ने ‘विजयपाल रासो’ को वीरगाथात्मक रचना माना है जबकि यह एक श्रृंगार परक काव्य है। सम्पूर्ण ग्रन्थ प्रेम प्रसंगों से भरा है। साथ ही खुमान रासो, हम्मीर रासो, जयचन्द्र प्रकाश, जय-मयंक-जस-चन्द्रिका, पृथ्वीराज रासो तथा परमाल रासो आदि ग्रन्थ एकदम अनैतिहासिक हैं। अत: हम कह सकते हैं कि जिन रचनाओं के आधार पर शुक्ल जी ने इस काल का नामकरण ‘वीरगाथा काल’ किया वह निम्नलिखित कारणों से अनुपयुक्त है

(i) इस नामकरण में इस युग के धार्मिक साहित्य की पूर्णतः अपेक्षा की गई है, जो इसकी एक व्यापक प्रवृत्ति का परिचायक है।
(ii) इस युग का नामकरण जिन रचनाओं को आधार मान कर किया गया, इनमें अधिकांश अप्रामाणिक हैं, कुछ नोटिस मात्र हैं तथा कुछ का रचना काल बाद का सिद्ध हो चुका है।
अत: शुक्ल जी के नामकरण ‘वीर गाथाकाल’ को हम उपयुक्त नहीं मान सकते।

3. डॉ० श्याम सुन्दर दास जी ने भी आचार्य शुक्ल के मत का समर्थन किया है।

4. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का नामकरण :
बीजवपन काल : आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने हिन्दी साहित्य के आरम्भिक काल को ‘बीजवपन काल’ की संज्ञा दी है। उनके हिन्दी साहित्य का इतिहास नामकरण का आधार यह था कि इस युग में क्योंकि अनेकानेक प्रवृत्तियों का उद्भव हुआ। अत : इसे ‘बीजवपन काल’ कहना चाहिए। सूक्षमता से विचार करने पर हम पाते हैं कि इस युग के हिन्दी साहित्य में किसी भी नई साहित्यिक प्रवृत्ति ने जन्म नहीं लिया बल्कि इस युग की सारी ही प्रवृत्तियाँ अपभ्रंश आदि के पूर्ववर्ती साहित्य की परम्परा का विकास थीं। अत: द्विवेदी जी का नामकरण भी उपयुक्त नहीं माना जा सकता।

5. डॉ० रामकुमार वर्मा का नामकरण : संधिकाल तथा चारण काल :
डॉ० वर्मा का मत था कि इस युग में क्योंकि अपभ्रंश की समाप्ति और प्राचीन हिन्दी का उद्भव हुआ अत: इस काल को ‘संधिकाल’ कहना चाहिए। आपने सं० 750-1000 तक की रचनाओं को संधिकाल में रखा है। सं० 1000 से 1375 तक के काल को आपने ‘चारण काल’ की संज्ञा दी, क्योंकि इस काल में चारणों द्वारा अपने आश्रयदाताओं के प्रशस्ति गान की प्रवृत्ति अधिक होने की बात, वे मानते हैं।

हमारे मत में किसी भी युग को दो नाम देना उचित नहीं है और न ही इस युग की शैलियों और व्यक्तियों को बांटना युक्ति संगत है। दूसरे यह नामकरण भाषा के आधार पर किया गया है। ऐसा करने से हिन्दी साहित्य का विकास और परिवर्तन क्रम का अध्ययन असम्भव हो जाएगा। तीसरे इस युग के जैन साहित्य को कहीं भी स्थान न मिल पायेगा। अतः डॉ० रामकुमार वर्मा का नामकरण भी उपयुक्त नहीं।

6. श्री राहुल सांकृत्यायन का नामकरण : सिद्ध-सामन्त काल :
महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने हिन्दी-साहित्य के आरम्भिक काल को ‘सिद्ध सामन्त काल’ की संज्ञा दी है। इस नामकरण के मूल में उन्होंने शुक्ल जी की भान्ति ही प्रवृत्ति विशेष को आधार बनाया है। उनके विचारानुसार यह नाम अधिक सार्थक है, क्योंकि इस युग में एक ओर सिद्धों की वाणी गूंज रही थी तो दूसरी ओर सामन्तों की स्तुति हो रही थी। राहुल जी का यह नामकरण भी सार्थक नहीं है, क्योंकि एक तो सिद्ध साहित्य अपभ्रंश में है और सामन्त साहित्य हिन्दी में, दूसरे भाषा-वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह नाम अनुपयुक्त है। राहुल जी ने अपभ्रंश और पुरानी हिन्दी को एक भाषा माना है, जो सही नहीं है।

7. डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी का नामकरण : आदिकाल :
डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी-साहित्य के आरम्भिक काल के नामकरण में निर्णयात्मक योगदान दिया है। उनके मतानुसार यह काल-खण्ड विविध विकासोन्मुख प्रवृत्तियों का युग है। जिस साहित्य को शुक्ल जी ने धार्मिक और साम्प्रदायिक कह कर उपेक्षा कर दी है उसमें भी सहज और उदात्त मानवीय भावनाओं के दर्शन होते हैं तथा धर्म, अध्यात्म या सम्प्रदाय विशेष का नाम साहित्य की सहज प्रेरणा में बाधक नहीं हो सकता। यदि हम ऐसा मान लें तो भक्तिकाल का समूचा साहित्य हमें एक तरफ रख देना होगा। इसके अतिरिक्त श्रृंगार, लोक रुचियों में विविधता भी इस युग में देखी जा सकती है। अत: डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी जी इस काल को वीरगाथा काल न कह कर ‘आदिकाल’ कहना अधिक संगत मानते हैं। यद्यपि वे स्वयं इस नामकरण से सन्तुष्ट नहीं हैं, क्योंकि यह नामकरण भ्रामक धारणा की सृष्टि करने वाला है। किन्तु उन्होंने कहा है कि यह नाम बुरा नहीं है।

द्विवेदी जी ने इस काल को बहुत अधिक परम्परा प्रेमी, रूढ़िग्रस्त, सजग और सचेत कवियों का काल माना है जो उनके यथार्थवादी दृष्टिकोण का परिचायक है। अत: द्विवेदी जी का नामकरण ‘आदिकाल’ ही अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है। इसी नाम को अधिकांश इतिहासकारों, विद्वानों ने मान्यता दी है। हिन्दी साहित्य में आज तक जो प्रवृत्तियाँ देखने को मिलती हैं उन सबका आदिम बीज हमें इस युग ‘आदिकाल’ के साहित्य में खोज सकते हैं। इस युग की आध्यात्मिक, शृंगारिक तथा वीरता की प्रवृत्तियों का विकास हम परवर्ती ‘युगों के साहित्य’ में देखते हैं। द्विवेदी जी के मत से सहमत होते हुए हम हिन्दी-साहित्य के आरम्भिक काल को ‘आदिकाल’ नामकरण अधिक संगत मानते हैं।

PSEB 11th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास आदिकाल

प्रश्न 2.
आदिकालीन परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
साहित्य समाज का दर्पण होता है, इसलिए किसी भी काल के साहित्य को समझने के लिए उन परिस्थितियों का ठीक-ठीक अवलोकन करना ज़रूरी होता है, जो उस युग के साहित्य को जन्म देती हैं। इसलिए आदिकाल के साहित्य के इतिहास को जानने के लिए उस युग की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक परिस्थितियों का जानना ज़रूरी है।

1. राजनीतिक परिस्थितियाँ:
आदिकाल की सीमा आचार्य शुक्ल जी ने सम्वत् 1050 से सम्वत् 1375 तक मानी है, जिसे अधिकांश इतिहासकारों ने मान्यता दी है। इस काल की राजनीतिक परिस्थितियां भारत के अन्तिम शक्ति सम्पन्न हिन्दू शासक हर्ष वर्धन की मृत्यु से आरम्भ होती हैं। हर्ष वर्धन जितनी देर जीवित रहे, उन्होंने मुसलमानों को भारत पर आक्रमण करने से रोके रखा किन्तु उनके उत्तराधिकारी इसमें सफल न हो पाए क्योंकि उनकी मृत्यु के साथ ही भारत की संगठित राजसत्ता टुकड़े-टुकड़े हो गई थी। परिणामस्वरूप अव्यवस्था, विश्रृंखलता, गृहकलह सिर उठाने लगी थी। आपस में लड़लड़ कर यहाँ के राजा इतने कमज़ोर हो गए थे कि बाहरी आक्रमण का मिल कर मुकाबला न कर सके। फलस्वरूप यहाँ मुसलमानों का शासन स्थापित हो गया। इस प्रकार के वातावरण में किसी विशेष प्रकार की साहित्यिक प्रवृत्ति पनप एवं विकसित नहीं हो सकी।

मुसलमानों के आक्रमण उन स्थानों पर अधिक हो रहे थे, जहाँ हिन्दी विकसित हो रही थी। इसलिए उन क्षेत्रों के साहित्य में युद्ध के बादलों की छाया स्पष्ट देखने को मिलती है। इस काल में एक ओर तो मुसलमानों के आक्रमण हो रहे थे तो दूसरी ओर यहाँ के राजा भी जनता के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे थे। जनता पर उनके अत्याचार दिनों-दिन बढ़ते ही जा रहे थे। ऐसे वातावरण में कवियों का एक वर्ग लड़ मरकर जीना चाहता था तो दूसरा आध्यात्मिक पक्ष के बारे में सोचता था। इस युग के राजाओं के आश्रय में पल रहे कवियों ने अपने आश्रयदाताओं का बहुत बढ़ा-चढ़ा कर यशोगान किया। स्वतन्त्र रूप से रचना करने वाले कवियों के लिए उस युग का वातावरण उपयुक्त नहीं था।

2. सामाजिक परिस्थितियाँ:
इस युग की राजनीतिक परिस्थितियों ने सामाजिक परिस्थितियों को भी प्रभावित किया। जनता धर्म और राज्य दोनों ओर से पीड़ित थी। दोनों ही उसका शोषण कर रहे थे। जाति-पाति के बन्धन कड़े होते जा रहे थे। नारी का सम्मान कम हो गया था। उसे मात्र भोग की वस्तु समझा जाने लगा था, स्त्रियों का खरीदना बेचना, उनका अपहरण कर लेना साधारण सी बात थी। सती प्रथा अपना विकराल रूप धारण कर चुकी थी। साधारण गृहस्थियों पर योगियों का आतंक छाया रहता था। जन्त्र-तन्त्र, जादू टोना भी अकाल और महामारी को दूर करने में असमर्थ हो रहे थे। लोगों को अपनी रोटी रोज़ी के लिए नाना प्रकार की मुसीबतें उठानी पड़ती थीं।

ऐसी विकट सामाजिक परिस्थितियों में हिन्दी कवियों को अपनी रचनाओं के लिए सामग्री जुटानी पड़ी।

3. धार्मिक परिस्थितियाँ:
आदिकाल के आरम्भ होने से पूर्व भारत का धार्मिक वातावरण शान्त था। अनेक उपासना पद्धतियाँ एक साथ चल रही थीं, किन्तु सातवीं शताब्दी के आरम्भ से जैन और शैव मत आपस में टकराने लगे। 12वीं शती तक वैष्णव धर्म भी शक्तिशाली हो गया था। बौद्ध धर्म भी जन्त्र-मन्त्र, जादू टोने की भूल-भुल्लैयों में खो गया था। जनता में आत्मविश्वास की कमी आने लगी थी। धार्मिक स्थलों की दुर्दशा हो चली थी। क्या हिन्दू मन्दिर और क्या बौद्ध विहार सभी व्यभिचार, आडम्बर, धन लोलुपता आदि दोषों से ग्रस्त हो चुके थे। पुजारी और महन्त धर्म के वास्तविक रूप को भूल कर धन के मोह में फँस चुके थे।

इसी युग में देश में इस्लाम धर्म का भी प्रवेश हुआ। शासक बन जाने पर इस्लाम ने हिन्दू धर्म के लिए एक बहुत बड़ा खतरा खड़ा कर दिया किन्तु धार्मिक नेता अपने स्वार्थ को त्याग कर जनता को सही दिशा न दिखा सके। शूद्र कही जाने वाली जाति को उन्होंने गले नहीं लगाया जिसके फलस्वरूप उनमें से बहुत लोगों ने इस्लाम धर्म को अपना लिया। धार्मिक परिस्थितियाँ अत्यन्त विषम और असन्तुलित होने के कारण जनसाधारण में गहरा असन्तोष, क्षोभ और भ्रम छाया हुआ था। इस युग के कवियों ने भी इसी मानसिक स्थिति के अनुरूप खण्डन मण्डन, हठयोग, वीरता एवं श्रृंगार का साहित्य लिखा।

4. आर्थिक परिस्थितियाँ:
सम्राट हर्षवर्धन के बाद कोई दृढ़ हिन्दू राज्य स्थापित न हो सकने के कारण हर राजा अपनी सत्ता को बढ़ाने के लिए ललायित हो उठा। नित्य लड़ाइयाँ लड़ी जाने लगी, जिससे राजाओं की आर्थिक दशा क्षीण हिन्दी साहित्य का इतिहास हुई। राजाओं ने अपने खजाने भरने के लिए जनता से धन प्राप्त करने के लिए अत्याचार शुरू किए और धीरे-धीरे आम आदमी की हालत इतनी खस्ता हो गई कि उसने पेट की आग बुझाने के लिए अपनी सन्तान तक को बेचना शुरू कर दिया। मुसलमानों के आक्रमण शुरू हुए। उन्होंने जो लूटमार की इससे देश की जनता और ग़रीब हो गई।

5. सांस्कृतिक परिस्थितियाँ:
भारतीय संस्कृति में चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत कला और वास्तुकला का बड़ा गौरवमय स्थान था किन्तु मुसलमानों ने आकर इस परम्परा को छिन्न-भिन्न कर के रख दिया। उन्होंने हर कला में हस्तक्षेप शुरू किया। यहां तक कि भारतीय उत्सवों, मेलों, परिधानों और विवाह आदि सभी पर मुस्लिम रंग छाने लगा। इस प्रकार हम इस युग को भारतीय कलाओं के ह्रास का युग भी कह सकते हैं।

प्रश्न 3.
आदिकालीन राज्याश्रित काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय देते हुए इसकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
आदिकालीन चारण काव्य की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
आदिकालीन वीर गाथा काव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हिन्दी-साहित्य के आदिकाल में राजपूत राजाओं के आश्रित चारण कवियों द्वारा निर्मित काव्य ‘चारण काव्य’ कहलाता है। इसका प्रधान विषय वीर गाथाओं से सम्बद्ध है। अतः इसे वीरगाथा काव्य भी कहते हैं। राज्याश्रित कवियों द्वारा लिखे साहित्य को ही राज्याश्रित काव्यधारा कहा जाता है। . इसी युग में भारत पर मुसलमानों के आक्रमणों में तेजी आई। अत: इसके प्रतिरोध के लिए एवं राजाओं की शक्ति प्रदर्शन में निहित वैयक्तिक प्रतिष्ठा की भावना की पूर्ति हेतु वीर रस प्रधान काव्य रचनाओं का होना नितान्त स्वाभाविक था। चूंकि राजनीतिक प्रशासन की दृष्टि से यह युग राजे महाराजाओं और सामन्तों का युग था। इस कारण उनके आश्रय में रहने वाले कवियों, चारणों ने ही अधिकांश रूप में वीर रस प्रधान काव्य की रचना की।

इस युग के वीरगाथा काव्य ग्रन्थों की प्रामाणिकता को लेकर काफ़ी वाद-विवाद हुआ और हो रहा है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आदिकाल का नामकरण ‘वीरगाथा काल’ करते हुए जिन बारह पुस्तकों का सहारा लिया उनमें से केवल चार ग्रन्थ ही उपलब्ध हैं-खुमान रासो, बीसलदेव रासो, पृथ्वीराज रासो और परमाल रासो। इनमें से खुमानरासो और पृथ्वीराज रासो प्रबन्ध काव्य हैं तथा अन्य दोनों वीर गीतिकाव्य । इन ग्रन्थों की प्रामाणिकता के साथ-साथ इनकी ऐतिहासिकता भी संदिग्ध है। इसके कई कारण हैं। एक तो यह कि ये सभी ग्रन्थ अपने मूल रूप में आज प्राप्त नहीं हैं। इनकी भाषा शैली तथा विषय सामग्री को देखते हुए लगता है कि लगातार शताब्दियों तक इनमें परिवर्तन एवं परिवर्द्धन होता रहा। यथा परमाल रासो किसी भी सूरत में मूल प्राचीन ‘आल्हाखण्ड’ नहीं हो सकता। खुमान रासो में 16वीं शती तक की घटनाओं का संकलन है। पृथ्वीराज रासो की भी यही स्थिति है। केवल बीसलदेव रासो में कम हेर-फेर हुआ है परन्तु इसकी कथा में भी असम्बद्ध घटनाओं की भरमार है।

इन रचनाओं की ऐतिहासिकता संदिग्ध होने का एक कारण यह भी हो सकता है कि चारण कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की प्रशस्ति गान में अपनी कल्पना और अतिशयोक्ति का प्रयोग किया। इस तरह उन्होंने अपने चरित नायकों को सर्वविजेता और उनके चरित्र को उदात्त और उत्कृष्ट सिद्ध करने का प्रयास किया है। पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज को उन राजाओं पर भी विजय प्राप्त करते बताया गया है जो उसके कई शताब्दी पूर्व या बाद में विद्यमान् थे तथा जिन समकालीन राजाओं का इस ग्रन्थ में उल्लेख हुआ है उनके अस्तित्व से ही इतिहास इन्कार करता है। यदि चारण काव्य अथवा वीर गाथा काव्य की ऐतिहासिकता, प्रामाणिकता और प्रक्षिप्तता को नजर अन्दाज कर दिया जाए तो साहित्यिक दृष्टि से इस काव्यधारा का साहित्य अति सुन्दर है। इसमें वीर रस का प्रौढ़ परिपाक हुआ है। युद्ध वीररस की काव्यशास्त्रीय सम्पूर्ण सामग्री का ऐसा एकत्र अभिनव समन्वय भारतीय आधुनिक भाषाओं के किसी भी काव्य में शायद ही उपलब्ध हो सके।

PSEB 11th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास आदिकाल

काव्यगत विशेषताएँ:
राज्याश्रित काव्यधारा के वीरगाथा काव्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

1. वीर और श्रृंगार रस का समन्वय:
आदिकाल में अनेक ‘रासो’ ग्रन्थों की रचना हुई। रासो शब्द वीरता का परिचायक है। इन ग्रन्थों में वीर रस की प्रधानता है। अपने आश्रयदाताओं की वीरता को उभारना और प्रशंसा कर पारितोषिक प्राप्त करना कवियों का मुख्य लक्ष्य था। किसी भी दृष्टि से क्यों न हो वीर रस का पूर्ण और प्रभावशाली वर्णन इस युग के साहित्य में हुआ है। उस युग का वातावरण पूर्णतया युद्ध एवं शस्त्रों की झंकार का था। अतः वीर रस का परिपाक स्वाभाविक ही है। इस युग के साहित्य में वीर रस के सहायक माने जाने वाले रौद्र, भयानक आदि रसों का भी उचित वर्णन हुआ है। आदिकाल में वीरता का ताण्डव नृत्य शृंगार के प्रांगण में हुआ। यह इस युग के साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता है। इस युग में अधिकांश युद्ध किसी-न-किसी नारी के लिए होते थे अथवा कवियों ने किसी सुन्दर नारी की कल्पना कर ली।

फलस्वरूप इस युग के काव्य में कंगना की झंकार और तलवार की खनखनाहट एक साथ सुनाई देती है। कहीं-कहीं तो श्रृंगार और वीर रस का समन्वय इतना अधिक मुखरित हो गया है कि वीरता की मूल भावनाएँ प्रायः दब-सी गई हैं। इन वीरगाथाओं में श्रृंगार कभी-कभी वीरता का सहकारी और कभी-कभी उसका उत्पादक बनकर आया है। वीरगाथा काव्य में श्रृंगार का वर्णन वासना के आंगन से बाहर नहीं झांक पाया। वह उत्तेजित तो कर सकता है पर प्रेम भंगार की सहज भावना को मिटा नहीं सकता। यह स्वीकार करना होगा कि वीर और श्रृंगार रसों का समन्वय इस युग के कलाकारों की जागरूकता और कुशाग्रता का परिचायक है। उन्होंने श्रृंगार और वीर रस के अन्तर्गत परम्पराओं का पूर्ण रूप से निर्वाह किया है।

2. युद्धों का सजीव वर्णन:
वीरगाथा काव्य या चारण काव्य में युद्धों और युद्धों के काम आने वाली सामग्री का संजीव वर्णन हुआ है। वीरता और युद्धों की प्रमुख प्रवृत्ति के कारण इस सजीवता का रहस्य स्पष्ट है। इस युग का कवि राज्याश्रित था। राजदरबारों में नित्य युद्ध की चर्चा होती रहती थी। दूसरे कवि लोग एक हाथ में कलम और दूसरे हाथ में तलवार रखते थे। प्रायः युद्धों में भाग भी लिया करते थे। अतः उनके युद्ध वर्णन में सजीवता आना स्वाभाविक था। इस युग के कवियों ने चूंकि स्वयं युद्धों में भाग लिया था, अतः युद्ध के साथ-साथ प्रयुक्त सामग्रियों के सजीव वर्णनों में भी सजीवता स्वाभाविक रूप से आ गई। हिन्दी साहित्य में ऐसा सजीव वर्णन अन्य कोई कवि न कर सका। केवल रीतिकालीन कवि भूषण की कविता में ऐसी झलक अवश्य देखने को मिलती है। चतुरंगिनी सेना की साज सज्जा, दोनों एक समान प्रबल दलों की गुत्थम-गुत्थी तथा दर्पपूर्ण शब्दावली, सेना प्रस्थान असि-प्रहार एवं शस्त्रों की झंकार और ‘शत्रुपक्ष’ के पलायन का प्रभावपूर्ण चित्रण इस युग के काव्य की प्रमुख विशिष्टता है। सजीव शब्द गुम्फ वीर रस तथा तदनुकूल ओज गुण और गौड़ी वृत्ति का पोषक है।

3. सामन्ती जीवन और सभ्यता संस्कृति का सजीव चित्रण:
चारण काव्य अथवा वीरगाथा काव्य में सामन्ती जीवन और सभ्यता संस्कृति का भी सजीव चित्रण हुआ है। इसकी प्रत्येक क्रिया-प्रतिक्रिया का सजीव वर्णन उनके काव्य में देखने को मिलता है। इस युग के कवि क्योंकि राजदरबारों तक ही सीमित थे। अत: उन्होंने सामन्ती जीवन को बहुत निकट से देखा था। पृथ्वीराज रासो ऐसे चित्रों से भरा पड़ा है।

4. सामान्य जन-जीवन के चित्रण का अभाव:
सामन्ती राजतन्त्रवादी परम्पराओं वाले इस युग में आम आदमी का राजाओं, सामन्तों की आज्ञाओं का आँख मूंद कर पालन करने के सिवा अन्य कोई मान और मूल्य नहीं था। ऐसी दशा में राज्याश्रित कविजन जनसाधारण की ओर ध्यान देते तो कैसे देते? फलस्वरूप जन-जीवन इस काल के काव्यों में कहीं भी उभर नहीं पाया, बस उसकी एक झलक मात्र ही उसमें देखने को मिलती है। जीवन-समाज के प्रति दायित्व निर्वाह में इस युग के कवि पूर्णतः असफल रहे।

5. आश्रयदाताओं की अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशस्ति:
चारण कवियों को अपने आश्रयदाताओं से अनेक प्रकार की जागीरें और उपाधियाँ आदि प्राप्त होती थीं। इस कारण अपने आश्रयदाताओं को प्रसन्न करने के उद्देश्य से इन कवियों ने अपनी कल्पना और अतिशयोक्ति के बल पर अपने आश्रयदाताओं के चरित्र को अधिक उदात्त और उत्कृष्ट चित्रित किया। उन्हें अपनी आजीविका के लिए यह सब करना पड़ा। इसी उद्देश्य से उन्होंने अनेक युद्धों के लिए उत्तरदायी किसी-न हिन्दी साहित्य का इतिहास किसी सुन्दर नारी की कल्पना की, क्योंकि वीरों को युद्ध के उपरान्त विश्रामकाल में मन बहलाने के लिए प्रेम की आवश्यकता होती है इसलिए चारण कवियों ने अपने आश्रयदाताओं के अनेक विवाह करने की गाथा भी कही है। तब हर विवाह युद्ध में विजय प्राप्त करने पर ही होता था। पृथ्वीराज रासो में चन्दबरदाई ने पृथ्वीराज के 12 विवाह होने का वर्णन किया है।

6. संकुचित राष्ट्रीयता:
वीरगाथा काव्य या चारण काव्य के अध्ययन के उपरान्त ऐसा प्रतीत होता है कि उस युग में राष्ट्रीयता का अर्थ संकुचित था। ‘राष्ट्र’ शब्द समूचे देश का सूचक न होकर अपने-अपने प्रदेश एवं छोटे-छोटे राज्यों का सूचक था। अजमेर और दिल्ली के राजकवि को कन्नौज, कालिंजर अथवा किसी अन्य राज्य के समृद्ध होने अथवा नष्ट होने का कोई सुख अथवा दुःख नहीं था। एक राजा का आश्रय छोड़ देने पर सम्भवतः वे उस राज्य को पराया समझने लग जाते होंगे। मिथ्याभिमान तथा प्रतिशोध भावना से पूर्ण उस युग के राजाओं से परिपालित कवियों की इस संकुचित प्रवृत्ति पर न आश्चर्य होता है और न उनके प्रति घृणा के भाव जागृत होते हैं। हाँ, दुर्भाग्य पर अवश्य दया आती है।

डॉ० श्याम सुन्दर दास ने ठीक ही कहा है कि, ‘हिन्दी के आदि युग में अधिकांश ऐसे ही कवि हुए जिन्हें समाज को संगठित तथा सुव्यवस्थित कर उसे विदेशी आक्रमणों से रक्षा करने में समर्थ बनाने की उतनी चिन्ता नहीं थी जितनी अपने आश्रयदाताओं की प्रशंसा द्वारा स्वार्थ साधन करने की थी।’ उस युग के कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की सेना में तो वीरता के भाव भरे किन्तु उनकी वाणी राष्ट्र के कोटि-कोटि जनों में वीरता की भावना न भर सकी। कारण इस युग का कवि जन-जीवन से कटा हुआ था। वे राष्ट्र भक्त नहीं राज भक्त थे।

7. कल्पना प्राचुर्य एवं ऐतिहासिकता का अभाव-इस युग के चारण कवियों ने अपने आश्रयदाता की प्रशंसा और पारितोषिक पाने के लोभ में उनके चरित काव्य को अतिशयोक्तिपूर्ण कल्पना का सहारा लेकर लिखा। इन कवियों ने अपने आश्रयदाताओं का शौर्य प्रदर्शित करने के लिए ऐसे ऐतिहासिक पुरुषों से उनका युद्ध करवाया जो उस युग के नहीं थे। ऐसे में ऐतिहासिकता की रक्षा कैसे हो सकती थी ? डॉ० श्याम सुन्दर दास के अनुसार कुछ रचनाओं में तो इतिहास की तिथियों तथा घटनाओं का इतना अधिक विरोध मिलता है कि उन्हें समसामयिक रचना मानने में बहुत ही असमंजस होता है………….। इन पुस्तकों की भाषा भी इतनी बेठिकाने की और अनियमित है कि तथ्य निरूपण में उसकी सहायता नहीं ली जा सकी।

8. प्रकृति चित्रण:
वीरगाथा काव्य की एक विशेषता यह है कि इस युग के कवियों ने अपनी रचनाओं में प्रकृति का चित्रण उसके आलम्बन और उद्दीपन दोनों रूपों में किया है। वस्तु वर्णन भी पर्याप्त उपयुक्त है। हाँ, प्रकृति के स्वतन्त्र चित्रण की ओर कवियों ने प्रायः नहीं या बहुत कम ध्यान दिया है। कहीं-कहीं तो प्रकृति चित्रण नीरसता का ही संचार करता है। कहीं-कहीं प्रकृति चित्रण वस्तु गणना मात्र बनकर रह गया है। हाँ, प्रकृति का उद्दीपन रूप अधिक है और पर्याप्त सजीव भी बन पड़ा है।

9. डिंगल भाषा का प्रयोग:
वीरगाथा काव्य की एक उल्लेखनीय विशेषता है-उसकी भाषा। विद्वानों ने इसे ‘डिंगल भाषा’ का नाम दिया है। साहित्यिक राजस्थानी मिश्रित पुरानी हिन्दी को ‘डिंगल’ कहते हैं। वीर विषय की दृष्टि से, यह भाषा अत्यधिक उपयुक्त मानी गई है। ब्रज भाषा का भी ‘पिंगल’ नाम से प्रयोग इस युग में हुआ। इस्लामी प्रभाव के फलस्वरूप अरबी, फ़ारसी और तुर्की भाषाओं के भी कुछ शब्द इस काल के काव्य में देखने को मिलते हैं। तत्सम, तद्भव और देशज शब्दों का भी खूब प्रयोग हुआ है। वास्तव में हम कह सकते हैं कि भले ही ऐतिहासिकता की कसौटी पर इस युग का काव्य खरा न उतरा हो लेकिन साहित्यिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

आदिकाल के प्रमुख कवि

1. विद्यापति

जीवन परिचय-विद्यापति का जन्म बिहार प्रान्त के दरभंगा जिले के अन्तर्गत विसपी गाँव में हआ। इस गाँव को गढ़ विपसी भी कहा जाता है। कहते हैं यह गाँव राजा शिव सिंह ने सिंहासन रूढ़ होने पर इन्हें उपहारस्वरूप भेंट किया था। विद्यापति के जन्म काल के विषय में विद्वानों में काफ़ी मतभेद है किन्तु हम रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा बताए इनके जन्म काल सन् 1350 ई० को सही मानते हैं, क्योंकि विद्यापति को विसपी गाँव दान दिये जाने का जो ताम्रपत्र उपलब्ध है उसमें दान देने की तिथि 293 लक्ष्मणाब्द लिखा है, जो सन् 1402 से 1403 बैठता है। विद्यापति उस समय 52 वर्ष के थे।

विद्यापति मैथिल ब्राह्मण थे और ठाकुर इनका आस्पद था, इनके पिता गणपति ठाकुर राजमन्त्री थे। वे एक अच्छे कवि भी थे। उन्होंने ‘गंगा भक्ति तरंगिनी’ नामक पुस्तक की रचना भी की थी। विद्यापति अपने पिता के साथ राजा गणेश्वर के दरबार में जाया करते थे। राजा गणेश्वर के बाद कीर्ति सिंह गद्दी पर बैठे। विद्यापति ने अपनी प्रथम कृति ‘कीर्तिलता’ का नामकरण उन्हीं के नाम पर किया। कीर्ति सिंह के बाद देव सिंह राजा हुए। उनके बाद राजा शिव सिंह ने शासन भार सम्भाला। विद्यापति और राजा शिव सिंह का साथ अन्त तक बना रहा। विद्यापति ने राजा शिव सिंह और उनकी पत्नी लखिमादई के प्रेम को अपनी पदावली में स्थान देकर उन्हें अमर कर दिया। विद्यापति की मृत्यु के सम्बन्ध में निम्नलिखित पद प्रचलित है

विद्यापति क आयु अक्सान।
कार्तिक धवल त्रयोदसि जान॥

इस पद के अनुसार विद्यापति की मृत्यु कार्तिक शुक्ला पक्ष त्रयोदशी को हुई। इनकी मृत्यु सन् 1440 में हुई मानी जाती है। इसकी चिता पर एक शिव मन्दिर की स्थापना की गई जो आज भी वहाँ मौजूद है।

रचनाएँ:
विद्यापति ने संस्कृत, अपभ्रंश और प्रारम्भिक मैथिली में रचनाएँ की हैं। उनको सर्वाधिक ख्याति पदावली के कारण प्राप्त हुई इनकी अन्य उपलब्ध रचनाओं के नाम इस प्रकार हैं

  1. कीर्तिलता
  2. कीर्ति पताका
  3. भू-परिक्रमा
  4. पुरुष परीक्षा
  5. लिखनावली
  6. शैव सर्वस्व सार
  7. गंगावाक्यावली
  8. विभागसार
  9. दान वाक्यावली
  10. दुर्गा भक्ति तरंगिनी

ये सभी रचनाएँ कवि ने किसी-न-किसी राजा की प्रशस्ति में लिखी हैं। साहित्यिक परिचय-विद्यापति को हिन्दी का आदि गीतकार कहा जाता है। ये मैथिल कोकिल के नाम से भी प्रसिद्ध है। मधुर गीतों के रचयिता होने के कारण उन्हें ‘अभिनव जयदेव’ भी कहा जाता है। चूंकि इन्होंने मैथिली लोकभाषा में पद रचना की अतः उन्हें मैथिल कवि भी कहा जाता है। विद्यापति की कीर्ति का आधार उनकी अपभ्रंश में लिखी कीर्तिलता तथा कीर्ति पताका नामक रचनाएँ तथा पदावली हैं।

कीर्तिलता-कीर्ति पताका-इन रचनाओं में कवि ने राजा कीर्ति सिंह की वीरता, उदारता, गुण-ग्राहकता आदि का वर्णन किया है। बीच-बीच में कुछ देशी भाषा के पद्य रखे हुए हैं। अपभ्रंश के दोहा, चौपाई, छप्पय, धन्द, गाथा आदि छन्दों का प्रयोग किया गया है।

पदावली-मैथिली में लिखी ‘पदावली’ विद्यापति की अत्यन्त लोक प्रिय रचना है। इसकी पहुँच झोंपड़ी से लेकर राजाओं के महल तक है। कहते हैं प्रसिद्ध कृष्ण भक्त चैतन्य महाप्रभु तो पदावली के पदों का कीर्तन करते-करते मूर्छित हो जाया करते थे। बंगाल वासियों में इनके अनेक पदों को बंगला रूप प्रदान कर दिया है। बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में नववधु की सखियाँ पदावली के पद गाकर शिक्षा देती हैं। डॉ० ग्रियसन विद्यापति पदावली के सम्बन्ध में “The songs of Vidyapati’ नामक पुस्तक में लिखते हैं-जिस प्रकार ईसाई पादरी सालमन के गान गाते हैं इसी प्रकार हिन्दू भक्त विद्यापति के अनूठे पदों का गान करते हैं।

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पदावली में विद्यापति ने राधा-कृष्ण की प्रणय लीलाओं का बड़ा ही हृदयस्पर्शी चित्रण किया है। इसमें भक्ति कम शृंगारिक भावनाएँ अधिक हैं। इनके वयःसन्धि आदि के वर्णन तो अत्यन्त चमत्कारपूर्ण बन पड़े हैं। जैसे-

सैसव यौवन दुहु मिलि गेल।
स्रवन क पथ दुहु लोचन लेल॥
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मुकुर लई अब करई सिंगार।
सखि पूछई कइसे सुरत-बिहार॥

विद्यापति को इसी कारण कुछ विद्वान् शृंगारी कवि मानते हैं भक्त नहीं। यह ठीक है कि पदावली के अनेक पद भक्ति की मर्यादा से बाहर हो गए हैं किन्तु ऐसा तो कहीं-कहीं सूरदास ने भी किया है फिर भी सूरदास की गणना भक्त कवियों में ही होती है।

आचार्य रामचन्द्रशुक्ल भी विद्यापति को श्रृंगारी कवि मानते हुए कहते हैं-“विद्यापति के पद अधिकतर श्रृंगार के ही हैं, जिनमें नायिका और नायक राधा-कृष्ण हैं । इन पदों की रचना जयदेव के गीत गोबिन्द के अनुकरण पर ही शायद की गई हो। इनका माधुर्य अद्भुत है। विद्यापति शैव थे। उन्होंने इन पदों की रचना श्रृंगार काव्य की दृष्टि से की है, भक्त के रूप में नहीं। विद्यापति को कृष्ण भक्तों की परंपरा में न समझना चाहिए।”

विद्यापति के पदों में आध्यात्मिकता का रंग देखने वालों पर व्यंग्य करते हुए शुक्ल जी आगे कहते हैं–आध्यात्मिक रंग के चश्मे आजकल बहुत सस्ते हो गए हैं उन्हें चढ़ा कर जैसे कुछ लोगों ने ‘गीत गोबिन्द’ के पदों को आध्यात्मिक संकेत बताया है, वैसे ही विद्यापति के इन पदों को भी। सूर आदि कृष्ण भक्तों के श्रृंगारी पदों को भी ऐसे लोग आध्यात्मिक व्याख्या कहते हैं। पता नहीं बाल लीला के पदों को वे क्या कहेंगे कुछ भी हो विद्यापति ने पदावली में शृंगार के दोनों रूपों-संयोग और वियोग का यथोचित रूप में चित्रण किया है। इनमें से संयोग श्रृंगार को चित्रण करने में उनकी तूलिका तन्मय हो गई है। भाषा का माधुर्य और भावों की सुकुमारिता-इन दोनों का अलौकिक संगम पदावली में देखने को मिलता है। रूप वर्णन का एक चित्र देखिए-

सहजहि आनन सुन्दर रे, भँउह सुरेखल आँखि।
पंकज मधुपिवि मधुकर, उड़ए पसारय पाँखि।

वयः सन्धि का एक सुन्दर पद देखिए-नायिका के शरीर में आने वाले परिवर्तन के बारे में कवि कहते हैं

कटि का गौरव पाओल नितम्ब, एक क खीन अओक अबलम्ब।
प्रगट हास अब गोपाल भेल, उरज प्रकट अब तन्हिक लेल॥

सद्यःस्नाता का एक नयनाभिराम चित्र देखिए –

कामिनी करए सनाने, हेरितहि हृदय हनए पँचवाने।
चिकुर गरए जलधारा, जानि मुख ससि उर रोए अँधारा॥

विद्यापति ने कृष्ण की भक्ति के भी कुछ अच्छे पद लिखे हैं । एक पद यहाँ प्रस्तुत है –

तातल सैकत वारि बिन्दु सम, सुत मित रमनि समाजे।
तोहे बिसारि मद ताहे समरपितु अब मुझु होवे कोन काजे॥

संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि विद्यापति में भक्ति भावना थी किन्तु उस पर शृंगार भावना ने विजय पा ली थी। श्रीकृष्ण के रूप वर्णन, उनकी वंशी माधुरी के ठन्हों पर अनेक सुन्दर पद लिखे हैं। वस्तुतः विद्यापति संक्रमण काल के कवि थे। एक ओर वे आदिकाल का प्रतिनिधित्व करते हैं, तो दूसरी ओर हिन्दी में वे भक्ति और शृंगार परम्परा के प्रवर्तक माने जाते हैं। वे ‘शैव सर्वस्वसार’ रचनाओं में भक्तिभाव में झूमते हुए दिखाई देते हैं और ‘पदावली’ में वे शृंगार और प्रणय के रस में आकण्ठ मग्न हैं। इस प्रकार विद्यापति को आप वीर कवि, भक्ति कवि या शृंगारी कवि जिस भी रूप से देखें वे उसी में परिपूर्ण दिखाई देते हैं। एक ओर उनकी कीर्ति लता’, ‘कीर्ति पताका’ चारण काव्य की वीर गाथाओं की याद दिलाती है तो दूसरी ओर उनकी ‘पदावली’ कृष्ण भक्त कवियों तथा रीतिकालीन कवियों की श्रृंगारपरक सुकोमल भाव सामग्री की मूल प्रेरक सिद्ध हो जाती है।

2. अमीर खुसरो

‘अमीर खुसरो का वास्तविक नाम अबुलहसन था। खुसरो इनका उपनाम था और अनेक बादशाहों से इनाम पाने के कारण अमीर कहलाते थे। इनका उपनाम इतना प्रसिद्ध हुआ कि असली नाम लुप्तप्राय हो गया। इनका जन्म ऐटा जिले के पटियाली गाँव में सन् 1253 ई० को हुआ । इनका अधिकांश जीवन शासकीय सेवा में बीता। इन्होंने अपनी आँखों से गुलाम वंश का पतन, खिलजी वंश का उत्थान-पतन तथा तुग़लक वंश का आरम्भ देखा। इनके जीवन में दिल्ली के सिंहासन पर ग्यारह सुल्तान बैठे जिनमें से सात की इन्होंने सेवा की।

अमीर खुसरो बड़े प्रसन्नचित्त, मिलनसार और उदार थे। सुल्तानों और सरदारों से इन्हें जो कुछ धन मिलता था वे उसे बाँट देते थे। प्रशासन के अमीर होने पर और कवि सम्राट् होने पर भी ये अमीर ग़रीब सभी से बराबर मिलते थे। आप दूसरे, मुसलमानों की तरह धार्मिक कट्टरपन से कोसों दूर थे। इनकी रचनाओं से पता चलता है कि इनके एक पुत्री और तीन पुत्र थे।

रचनाएँ:
अमीर खुसरो अरबी, फारसी, तुर्की और हिन्दी भाषाओं के पूरे विद्वान् थे। थोड़ा बहुत संस्कृत भाषा भी जानते थे। कहा जाता है कि खुसरो ने 99 पुस्तकें लिखी थीं जिनमें कई लाख अशआर’ (काव्य पंक्तियाँ) थे परन्तु आज इनके केवल 20-22 ग्रन्थ ही प्राप्त हैं। इन ग्रन्थों में ‘खालिक बारी’ और ‘किस्सा चहार दरवेश’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनकी लिखी पहेलियाँ, दोसुखने और मुकरियाँ आज भी बच्चे-बच्चे की जुबान पर हैं।

साहित्यिक परिचय:
जिस युग में कविगण या चारण केवल वीर प्रशस्तियाँ गा कर ही अपने कर्त्तव्य से मुक्त होने की बात सोचते थे और समाज के चित्तरंजन के लिए कुछ भी लिखने का प्रयत्न नहीं करते थे, उस युग में हमें केवल खुसरो ही एक ऐसा कवि दिखाई देता है जिसने केवल ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों में लोक हृदय को आकृष्ट करने वाली सरल, सरस रचनाएँ लिखीं। खुसरो को खड़ी बोली का प्रथम कवि होने का गौरव प्राप्त है।

खालिकबारी:
यह ग्रंथ तुरकी, अरबी, फ़ारसी और हिन्दी का पर्याय-कोश है। यह कोश लिखकर खुसरो ने हिन्दी से अरबी-फारसी और अरबी-फ़ारसी से हिन्दी सीखने वालों का मार्ग अत्यन्त प्रशस्त कर दिया। इनकी यह रचना फ़ारसी के आरम्भिक छात्रों में अत्यन्त लोकप्रिय है। इस विदेशी, विधर्मी लेखक की हिन्दी भाषा की पवित्रता और श्रेष्ठता पर अगाध श्रद्धा देखकर हमें आज के ‘हिन्दुस्तानी’ भाषा के उपासकों पर दया-सी आती है। वे लोग हिन्दी के स्थान पर हिन्दुस्तानी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाये जाने के पक्ष में प्रचार करते हैं । महात्मा गाँधी जैसे महान् नेता भी एक बार तो उनके झांसे में आकर हिन्दुस्तानी की वकालत कर बैठे थे। यह मुस्लिम कवि या लेखक हिन्दी की इसलिए महत्ता या श्रेष्ठता स्वीकार करता है कि उस पर विदेशी प्रभाव नहीं है। वह सर्वथा स्वतन्त्र शुद्ध और सुसंस्कृत भाषा है। खालिकबारी का एक उदाहरण देखिए-

खलिकबारी सिरजनहार।
बाहिद एक विदा कर्तार ॥
मुश्क काफूर अस्त कस्तूरी कपूर ।
हिंदवी आनंद शादी और सरूर ॥
मूश चुहा गुर्वः बिल्ली मार नाग ।
सोजनो रिश्तः बहिंदी सुई ताग ॥
गंदुम गेहूँ नखूद चना शाली है धान ।
ज़रत जोन्हरी असद मसूर बर्ग है पान ॥

क्या हिन्दुस्तानी के समर्थक इस शुद्ध हिन्दी को विदेशी तत्वों से लाद कर इसे ‘वर्णन संकर’ बना देने के लिए कमर नहीं कसे बैठे हैं। हमें उन पर दया भी आती है और रोष भी।

खुसरो की पहेलियाँ:
खुसरो अपनी पहेलियों के भी काफ़ी लोकप्रिय हुए । शायद ही कोई ऐसा हिन्दी भाषा-भाषी व्यक्ति हो जिसके मुख पर खुसरो की कोई-न-कोई पहेली न विराजती हो। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि हिन्दी साहित्य का इतिहास खुसरो के नाम पर प्रचलित कुछ पहेलियाँ बाद में उनके नाम से जोड़ दी गई हैं तथा उनकी स्व-रचित पहेलियों की भाषा में कुछ हद तक बदल गई हैं। कुछ पहेलियाँ बानगी रूप में यहाँ प्रस्तुत हैं-

तरवर से इक तिरिया उतरी उसने बहुत रिझाया।
बाप का उसके नाम जो पूछा आधा नाम बताया।
आधा नाम पिता पर प्यारा बूझ पहेली मेरी।
अमीर खुसरो यो कहें अपने नाम न बोली ॥
उत्तर:
‘निबोली’ (नीम का फल)।

(ii) फारसी बोले आईना, तुरकी सोचे पाईना।
हिन्दी बोलते आरसी आए, मुँह देखे जो इसे बताए ।।
उत्तर:
‘आईना’ (दर्पण)।

(ii) आदि कटे तो सब को पार, मध्य कटे तो सब को मारे।
अन्त कटे तो सबको मीठा, सो खुसरो मैं आँखो दीहा ॥
उत्तर:
‘काजल’।

(iv) बीसों का सिर काट लिया, न मारा न खून किया ॥
उत्तर:
‘नाखून’।

(v) खेत में उपजे सब कोई खाय, घर में उपजे घर को खाय॥
उत्तर:
‘फूट’ (खरबूजे जैसा एक फल जो फीका होता है, ज़रा बड़ा होने पर फट जाता है। इसलिए पंजाबी में उसे फुट कहते हैं)

(vi) एक नार दो को लै बैठी, टेढ़ी हो के बिल में बैठी।
जिस के बैठे उसे सुहाय, खुसरो उसके बल जाय।
उत्तर:
‘पायजामा’।

(vii) एक नार ने अचरज कीन्हा, साँप पकड़ ताल में दीन्हा।
ज्यों-ज्यों साँप ताल को खाए, ताल सूख साँप मर जाए।
उत्तर:
‘दिया बाती’।
दोसुखने-खुसरो के दोसुखने भी जन-जन में आज तक प्रचलित हैंकुछ दोसुखने यहाँ प्रस्तुत हैं
जूता क्यों न पहना – समोसा क्यों न खाया ? – तला न था।
अनार क्यों न चखा – वजीर क्यों न रखा ? – दाना न था।
(दाना का अर्थ अक्लमंद होता है)
पण्डित क्यों पियासा- गदहा क्यों उदासा ? – लोटा न था।
पण्डित क्यों न नहाया – धोबिन क्यों मारी गई ? – धोती न थी।
पान सड़ा क्यों — घोड़ा अड़ा क्यों ? – फेरा न था।

मुकरनियाँ : खुसरो की मुकरनियाँ तो गाँवों में बहुत ही प्रचलित हैं। कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं

PSEB 11th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास आदिकाल

(1) सिगरी रैन मोहि संग जागा, भोर भई तब बिछुड़ न लागा।
उसके बिछुड़े फाटत हिया, क्यों सखि, साजन ? ना सखि, ‘दिया’ ।

(2) सरब सलोना सब गुन नीका।
वा बिन सब दिन लागे फीका।
वाके सर पर होवै कौन।
ए सखि,साजन ? ना सखि, ‘लौन’ ।।

(3) वह आवे तब शादी होय।
उस बिन दूजा और न कोय।
मीठे लागे बाके बोल।
क्यों सखि, साजन ? ना सखि, ‘ढोल’॥

लोकगीत : अमीर खुसरो ने ऐसे बहुत-से गीत लिखे हैं जो ग्रामीण स्त्रियों में लोक गीतों के रूप में आज भी प्रचलित हैं। कुछ गीतों की पंक्तियाँ यहाँ दी जा रही हैं-

(1) अम्मा, मेरे बाबा को भेजो जी, कि सावन आया।
बेटी, तेरा बाबा तो बुड्ढा री, कि सावन आया।
(2) चूक भई कुछ वासो ऐसी, देश छोड़ भयो पर देशी।
(3) मेरा जोवना नवेलरा भयो है गुलाल।
कैसे दर दीनी बकस मोरी लाल ॥
नुस्खे:
खुसरो ने आयुर्वेद और यूनानी उपचार पद्धति के अनुसार अनेक नुस्खे भी लिखे हैं जिनका प्रयोग गाँवों में बड़ी बूढ़ियाँ आज भी करती हैं। आँखों का एक नुस्खा यहाँ प्रस्तुत है

लोध फिटकरी मुर्दासंग । हल्दी, जीरा एक एक टंग॥
अफीम चना भर मिर्च चार । उरद बराबर थोथा डार ।।
पोस्त के पानी पोटली करे। तुरत पीर नैनों की हरे॥

कव्वाली और सितार के आविष्कारक-अमीर खुसरो प्रसिद्ध गवैये भी थे। ध्रुपद के स्थान पर कव्वाली बनाकर उन्होंने बहुत से नए राग निकाले थे, जो आज तक प्रचलित हैं। कहा जाता है कि उन्होंने बीन में कुछ परिवर्तन करके ‘सितार’ बनाया था। सन् 1324 ई० में खुसरो के गुरु निज़ामुद्दीन औलिया की मृत्यु हो गयी। खुसरो उस समय बंगाल में बादशाह गियासुद्दीन तुग़लक के साथ दौरे पर थे। समाचार सुनते ही तुरन्त वहाँ से चल दिये। उनकी कब्र के पास पहुँचकर उन्होंने यह दोहा पढ़ा-

गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केश।
चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस॥

कहते हैं कि गुरु की मृत्यु के बाद खुसरो ने अपना सब कुछ ग़रीबों में बाँट दिया और स्वयं उनकी मजार पर जा बैठे। उसी वर्ष अर्थात् सन् 1324 ई० में उनकी मृत्यु हो गयी। उनको भी इनके गुरु की कब्र के करीब दफनाया गया। सन् 1605 ई० में ताहिर बेरा नामक अमीर ने वहाँ पर मकबरा बनवा दिया। संक्षेप में, हम इतना ही कहना चाहेंगे कि खुसरो हिन्दी खड़ी बोली के पहले कवि हुए हैं जिन्होंने बोल-चाल की भाषा का प्रयोग कर हिन्दी कविता को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

3. चन्दबरदाई

आदिकाल के प्रमुख और प्रतिनिधि कवि चन्दबरदाई का जन्म लाहौर में हुआ था। इसके पिता का नाम रावमल्ह था। ये जगाति गोत्र के ब्रह्मभट्ट थे। पृथ्वीराज चौहान के जन्म से पूर्व इनके पिता इन्हें लेकर महाराज सोमेश्वर के दरबार में आ गए थे। चन्द से महाराज बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अपने दरबार में रख लिया। धीरे-धीरे वे महाराज के विश्वासपात्र बन गए। इस घटना से यह सिद्ध होता है कि चन्द पृथ्वीराज चौहान से बड़े थे। पृथ्वीराज का जन्म सम्वत् 1205 माना जाता है। मिश्र बन्धुओं ने पृथ्वीराज और चन्दबरदाई की आयु में 23 वर्ष का अन्तर बताया है। इस आधार पर चन्द का जन्म सं० 1183 के लगभग बैठता है किन्तु चन्द की प्रसिद्ध रचना पृथ्वीराज रासो के कुछ छन्दों के अनुसार पृथ्वीराज, संयोगिता और चन्द का जन्म एक ही साथ हुआ था। इस कारण चन्द की जन्म तिथि के सम्बन्ध में अभी तक कोई निश्चय नहीं हो पाया।

किन्तु इतना तो सर्वमान्य है कि चन्द और पृथ्वीराज जीवनपर्यन्त साथ रहे। आखेट में, मंत्रणा में, राज्यसभा में, सर्वत्र पृथ्वीराज के लिए चन्द की उपस्थिति अपेक्षित थी।

‘रासो’ के अनुसार पृथ्वीराज और चन्द की मृत्यु भी एक ही दिन हुई थी। जब शहाबुद्दीन गौरी के हाथों पराजित पृथ्वीराज बन्दी के रूप में गज़नी ले जाए गए थे तो चन्द भी योगी का भेष धारण कर गज़नी पहुँच गया। किसी-न-किसी तरह चन्द ने गौरी के कानों तक यह बात पहुँचा दी कि पृथ्वीराज शब्दबेधी बाण चलाने की कला जानता है। गौरी ने पृथ्वीराज की आँखें फोड़ दी थीं, इसलिए उसके लिए यह एक तमाशे से बढ़कर कुछ न था। उसने इस तमाशे को सबको दिखाने का प्रबन्ध किया। भरी सभा में चन्द ने पृथ्वीराज को यह समझा दिया कि गौरी कहाँ है।

चार बांस चौबीस गज़ अष्ट अंगुल प्रमान।
ता ऊपर सुल्तान है मत चूकियो चौहान॥

इस संकेत को पाकर महाराज पृथ्वीराज ने शब्दबेधी बाण चलाया और वह गौरी के तालू को बेधता हुआ निकल गया। इधर गौरी के सैनिकों से अपमानित होने की अपेक्षा चन्द ने पहले पृथ्वीराज को छुरा घोंप दिया और फिर स्वयं भी उसी छुरे से आत्महत्या कर ली। इस प्रकार सं० 1249 में इस महान् कवि का प्राणान्त हुआ।

रचनाएँ:
चन्दबरदाई द्वारा केवल एक ही ग्रंथ लिखा गया माना जाता है। जिसका नाम है ‘पृथ्वीराज रासो’- इस ग्रन्थ की आज तक चार प्रतियाँ प्राप्त हुई हैं। इन चारों में अनेक घटनाओं, नामों और तिथियों का अन्तर होने के कारण इस ग्रन्थ की प्रामाणिकता अभी तक विद्वानों में वाद-विवाद का विषय बनी हुई है।

प्रसिद्ध फ्रांसीसी इतिहासवेत्ता ‘गार्सा दि तासी’ के अनुसार चन्दबरदाई ने ‘जै चन्द्र प्रकाश या जयचन्द्र का इतिहास’ नामक एक और ग्रन्थ लिखा है। जिसका उल्लेख वार्ड महोदय ने भी किया है परन्तु सर एच० इलियट का अनुमान है कि चन्द्रकृत जयचन्द्र प्रकाश कोई भिन्न ग्रन्थ नहीं वरण पृथ्वीराज रासो का कन्नौज खण्ड भाग है जिसका अनुवाद कर्नल टाड ने ‘संगोप्तानेम’ के नाम से एशियाटिक जर्नल में प्रकाशित किया था।

रासो का काव्य सौन्दर्य:
अपनी कृति के साहित्यिक सौन्दर्य पर प्रकाश डालता हुआ कवि स्वयं आदि पर्व में कहता है-

अति ढक्यौ न उधार सलिल जिमि जानि सिवालह।
वरन वरन सुवृत हार चतुरंग विसालह॥
……. ………….. …………….
…………. . …………. ………………
जुत अजुत अग्गि विचार बहुवचन छन्द छुटयौ न कहि।
घटि बढ़ि कोई मच्यह पढ़े चन्द दोस दिज्जोन चहि।

अर्थात्:
“इस रासो का अर्थ न तो अत्यन्त ढका हुआ है और न ही सवर्था स्पष्ट तथा बोधगम्य है, किन्तु जल के मध्य में सिवार के समान है। तात्पर्य यह है कि अर्थ अनुगंधान करने पर प्रतीत होता है। प्रत्येक वर्ण से युक्त अर्थ लाल, पीले, सफ़ेद आदि अनेक प्रकार के पुष्पों से, चारों ओर से गूंथे हुए विशाल हार की तरह शोभायमान है। रासो में विमल-अमल वाणी का विलास है, अर्थात् छन्दोंभंग आदि दोषों से रहित है, सुन्दर वचनों से युक्त उत्कृष्ट वर्णन है। मन को आनन्दित करने वाले मनोहर शब्द हैं, अर्थात् वीर रस में ओजस्वी शब्द हैं।”

अपनी कृति के सम्बन्ध में चन्दबरदाई का यह कथन सत्य प्रतीत होता है। रासो’ का काव्य सौन्दर्य और साहित्यिक सौष्ठव बेजोड़ है। रासो में उत्कृष्ट भाव व्यंजना और सुन्दर अलंकारों की छटा, रसभरी कल्पनाओं का विलास, मन को मोहने वाली उक्तियां, उसे हिन्दी के उत्कृष्ट काव्य ग्रन्थों की श्रेणी में ला खड़ा करती हैं। ‘रासो’ एक सफल महाकाव्य है। इसमें, प्रधानतः दो रस हैं-श्रृंगार और वीर। पृथ्वीराज जितना रणबांकुरा है, उतना सजीला-कटीला, बांका जवान भी है। कवि ने उसके इन दोनों रूपों को बड़ी सुघड़ता से निभाया है। रासो में ऋतु, नखशिख, नगर, आखेट, वन, सेना युद्धादि के वर्णन बड़े मोहक और मुंह बोलते रूपचित्र जैसे लगते हैं। रूप और सौन्दर्य के चित्रण में तो कवि ने कमाल ही कर दिया है। पृथ्वीराज की रानियों ने नखशिख, रूप सौन्दर्य और शृंगार के चित्रण में तो कवि ने अपना हृदय खोल कर रख दिया है।

युद्ध के प्रसंगों से रासो भरा पड़ा है। कवि ने अपने ग्रन्थ में पृथ्वीराज के शौर्य का प्रदर्शन करने के अनेक कल्पना प्रसूत युद्ध प्रसंगों को स्थान दिया है। रासो’ के सभी युद्ध वर्णन बड़े सजीव और अद्वितीय हैं। भाव पक्ष के अतिरिक्त रासो का कला पक्ष भी चमत्कारपूर्ण है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, प्रतीप, उदाहरण, अतिश्योक्ति इत्यादि अलंकारों को सर्वाधिक स्थान मिला है। रासो में लगभग 72 छन्द देखने में आते हैं जिनमें 32 मात्रिक और 30 वार्णिक हैं। रासो की भाषा अभी तक विवाद का विषय बनी हुई है। कुछ विद्वान् इसे राजस्थानी या डिंगल कहते हैं तो कुछ अपभ्रंश। किन्तु हिमाचल के प्रसिद्ध कहानीकार श्री चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी इसे पुरानी हिन्दी मानते हैं। हमें उनका तर्क ही संगत प्रतीत होता है।

लघु प्रश्नोत्तर

आदिकाल

प्रश्न 1.
आदिकाल का समय कब से कब तक माना जाता है?
उत्तर:
आदिकाल का समय संवत् 1050 से संवत् 1375 तक माना जाता है।

प्रश्न 2.
आचार्य राम चन्द्र शुक्ल ने आदिकाल को कौन-सा नाम दिया है ?
उत्तर:
आचार्य शुक्ल जी ने आदिकाल को वीरगाथा काल कहा है।

प्रश्न 3.
आचार्य शुक्ल ने वीरगाथा काल नामकरण किस आधार पर किया है?
उत्तर:
आचार्य शुक्ल जी ने वीरगाथा काल नामकरण का आधार रासो ग्रन्थों को बनाया है।

प्रश्न 4.
कन्हीं दो रासो ग्रन्थों के नाम उनके रचनाकारों के नाम सहित लिखें।
उत्तर:

  1. पृथ्वी राज रासो-चन्दबरदाई
  2. परमाल रासो-जगनिक

प्रश्न 5.
आचार्य महावीर-प्रसाद द्विवेदी ने आदिकाल को कौन-सा नाम दिया है ?
उत्तर:
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने आदिकाल को बीजवपन काल की संज्ञा दी है।

प्रश्न 6.
डॉ० रामकुमार वर्मा ने आदिकाल को कौन-सी संज्ञा दी है ?
उत्तर:
डॉ० राजकुमार वर्मा ने आदिकाल को संधिकाल तथा चारणकाल कहा है।

प्रश्न 7.
श्री राहुल सांकृत्यायन ने हिन्दी के आदिकाल को कौन-सा नाम दिया है?
उत्तर:
राहुल जी ने आदिकाल को सिद्ध सामन्त काल की संज्ञा दी।

PSEB 11th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास आदिकाल

प्रश्न 8.
हिन्दी साहित्य के आदिकाल को यह नामकरण किस विद्वान् ने दिया है?
उत्तर:
हिन्दी साहित्य के आदिकाल को आदिकाल की संज्ञा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने दी है।

प्रश्न 9.
सन्, ई० और विक्रमी संवत् में कितने वर्षों का अन्तर है?
उत्तर:
सन्, ई० और संवत् में 57 वर्षों का अन्तर है।

प्रश्न 10.
हिन्दी साहित्य के आदिकाल की किन्हीं चार प्रवृत्तियों का उल्लेख करें।
उत्तर:

  1. वीर रस की प्रधानता
  2. चरित काव्यों की प्रधानता
  3. आश्रयदाताओं का गुणगान
  4. इतिहास की अपेक्षा कल्पना की प्रचुरता

प्रश्न 11.
आदिकाल का आरम्भ किस शक्ति सम्पन्न हिन्दू शासक की मृत्यु के बाद हुआ?
उत्तर:
आदिकाल का आरम्भ सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद हुआ।

प्रश्न 12.
आदिकाल में मुसलमानी शासन किस कारण से आरम्भ हुआ?
उत्तर:
सम्राट् हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद मुसलमानी आक्रमण और तेज़ हो गए। भारतीय राजाओं की आपसी फूट और अव्यवस्था के कारण भारत में मुसलमानों का शासन स्थापित हो गया।

प्रश्न 13.
आदिकाल में स्त्री की दशा कैसी थी? ।
उत्तर:
आदिकाल में स्त्री की दशा बड़ी शोचनीय थी। उसे मात्र भोग की वस्तु समझा जाता था। स्त्री का बेचना, खरीदना या अपहरण करना साधारण बात थी।

प्रश्न 14.
आदिकाल में कौन-कौन से नए धर्म प्रचलित हए?
उत्तर:
आदिकाल में बौद्ध और जैन धर्म प्रचलित हुए।

प्रश्न 15.
पृथ्वीराजरासो के रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर:
पृथ्वीराजरासो के रचनाकार कवि चन्दबरदाई हैं।

प्रश्न 16.
आदिकालीन किन्हीं दो प्रमुख कवियों के नाम उनकी कृतियों सहित लिखें।
उत्तर:
आदिकाल में नरपतिनाल्ह द्वारा लिखित बीसल देव रासो तथा अब्दुल रहमान द्वारा लिखित संदेश रासक।

प्रश्न 17.
रासो ग्रन्थों की प्रमुख विशेषता क्या है ?
उत्तर:
रासो ग्रन्थों में वीर और शृंगार रस का समन्वय देखने को मिलता है।

प्रश्न 18.
आदिकालीन साहित्य में किस बात की कमी दिखाई पड़ती है?
उत्तर:
आदिकालीन साहित्य में राष्ट्रीयता की कमी दिखाई पड़ती है। उस युग में राष्ट्र शब्द समूचे देश का सूचक न होकर अपने-अपने प्रदेश या राज्य का सूचक था।

प्रश्न 19.
आदिकालीन लोकाश्रित काव्य धारा की प्रमुख रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
खुसरो की पहेलियां, विद्यापति पदावली, ढोलामारूश दूहा तथा आलाहखण्ड।

प्रश्न 20.
विद्यापति की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
कीर्तिलता, कीर्ति पताका।

प्रश्न 21.
अमीर खुसरो की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखो।
उत्तर:
खालिक बारी और किस्सा चार दरवेश।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘भू-परिक्रमा’ रचना के रचनाकार कौन हैं ?
(क) विद्यापति
(ख) केशव
(ग) अज्ञेय
(घ) चंदवरदाई
उत्तर:
(क) विद्यापति

प्रश्न 2.
आदिकाल को वीरगाथा काल की संज्ञा किसने दी ?
(क) विद्यापति
(ख) रामचन्द्र शुक्ल
(ग) केशव
(घ) मिश्रबंधु
उत्तर:
(ख) रामचन्द्र शुक्ल

प्रश्न 3.
आरंभिक युग को आदिकाल की संज्ञा किसने दी ?
(क) रामचंद्र शुक्ल
(ख) मिश्रबंधु
(ग) विद्यापति
(घ) अज्ञेय।
उत्तर:
(ख) मिश्रबंधु

प्रश्न 4.
संधि काल और चारण काल की संज्ञा किसने दी ?
(क) रामचंद्र शुक्ल
(ख) रामकुमार वर्मा
(ग) विद्यापति
(घ) अज्ञेय
उत्तर:
(ख) रामकुमार वर्मा

प्रश्न 5.
विजयपाल रासो रचना को वीर गाथात्मक माना है?
(क) शुक्ल ने
(ख) अज्ञेय ने
(ग) मिश्रबंधु ने
(घ) विद्यापति ने
उत्तर:
(क) शुक्ल ने

प्रश्न 6.
‘पदावली’ रचना के लेखक कौन हैं ?
(क) विद्यापति
(ख) केशव
(ग) शुक्ल
(घ) घनानंद
उत्तर:
(क) विद्यापति

प्रश्न 7.
मुकरियां और पहेलियां के सर्वप्रसिद्ध रचनाकार हैं ।
(क) अज्ञेय
(ख) अमीर खुसरो
(ग) सिसरो
(घ) घनानंद
उत्तर:
(ख) अमीर खुसरो