PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन

PSEB 12th Class Economics पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में जनसंख्या के आकार में परिवर्तन का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 2 करोड़ 77 लाख थी।

प्रश्न 2.
पंजाब में साक्षरता अनुपात पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
2011 में साक्षरता अनुपात बढ़ कर 75.8% हो गई है। साक्षर लोगों में पुरुषों का अनुपात 75.63% है, जबकि स्त्रियों में साक्षरता अनुपात 71.3% है।

प्रश्न 3.
पंजाब की जनसंख्या के लिंग अनुपात का वर्णन करें।
उत्तर-
2011 में पंजाब में स्त्री-पुरुष अनुपात 897 था।

प्रश्न 4.
पंजाब की वन सम्पत्ति के सम्बन्ध में क्या स्थिति है?
उत्तर-
पंजाब में वन सम्पत्ति संतोषजनक नहीं है।

प्रश्न 5.
पंजाब में शहरों, तहसीलों तथा गांवों की संख्या बताएं।
उत्तर-
पंजाब में 5 डिवीज़न, 22 जिले, 91 तहसीलें, 81 सब तहसीलें, 150 विकास खण्ड, 74 शहर, 143 कस्बे तथा 12581 गांव हैं।

प्रश्न 6.
पंजाब में ऊर्जा के जल साधनों की व्याख्या करें।
उत्तर-
जल विद्युत्-पंजाब में सतलुज, ब्यास तथा रावी तीन दरिया बहते हैं। इनके जल से विद्युत् उत्पन्न की जाती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन

प्रश्न 7.
पंजाब का क्षेत्रफल 50362 वर्ग किलोमीटर है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 8.
पंजाब में स्त्री पुरुष लिंग अनुपात ……………. है।
उत्तर-
895.

प्रश्न 9.
पंजाब में जंगल सन्तोषजनक हैं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 10.
पंजाब की जनसंख्या 2011 की जनगणना अनुसार …………………… .
(a) 267 लाख
(b) 277 लाख
(c) 287 लाख
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) 277 लाख।

प्रश्न 11.
पंजाब के खनिज पदार्थों का वर्णन करो।
उत्तर-
पंजाब में कोई खनिज पदार्थ नहीं मिलता।

प्रश्न 12.
पंजाब में जल बिजली और ताप बिजली ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 13.
पंजाब में शक्ति के साधन ………………..
(a) भाखड़ा नंगल प्रोजैक्ट
(b) ब्यास प्रोजैक्ट
(c) आनंदपुर साहिब प्रोजैक्ट
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 14.
पंजाब की मुख्य फसलें गेहूँ और चावल हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 15.
पंजाब में अधिक कृषि उत्पादन का कारण बताएँ।
उत्तर-
पंजाब में कृषि के लिए उचित और उपयुक्त वातावरण।

प्रश्न 16.
पंजाब में वर्ष 2019-20 में प्रति व्यक्ति आय ₹ 166830 थी।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में जनसंख्या की वृद्धि के दो कारण बताएं।
उत्तर-
पंजाब में जनसंख्या वृद्धि के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. ऊंची जन्म दर-पंजाब में जन्म दर ऊंची है जो कि 19.9 प्रति हज़ार है। इस कारण पंजाब की जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
  2. कम मृत्यु दर-एक हज़ार व्यक्तियों के पीछे जितने व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है उसको मृत्यु दर कहा जाता है।

पंजाब में मृत्यु दर निरन्तर कम हो रही है। इसके मुख्य कारण डॉक्टरी सुविधाओं में वृद्धि, अच्छी खुराक, विवाह की अधिक आयु इत्यादि है। 1971 में मृत्यु दर 11.4 प्रति हज़ार थी। 2018-19 में मृत्यु दर कम होकर 6 प्रति हज़ार है। इस कारण जनसंख्या की वृद्धि हो रही है।

प्रश्न 2.
पंजाब में जनसंख्या के व्यवसाय का विवरण दें।
उत्तर-
पंजाब में जनसंख्या के व्यवसाय का विवरण इस प्रकार है-

व्यवसाय उत्पादन प्रतिशत
(1) सुविधाएं कृषि (प्राथमिक क्षेत्र) 26.16
(2) उद्योग तथा निर्माण (सैकण्डरी क्षेत्र) 24.70
(3) टर्शरी क्षेत्र 35.14
14.00
कुल कार्यशील जनसंख्या 100%

प्रश्न 3.
पंजाब में वन सम्पत्ति की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
वन मनुष्यों के लिए महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक साधन हैं। एक राज्य की जलवायु, रोजगार, वर्षा, बाढ़ नियन्त्रण इत्यादि पर वनों का बहुत प्रभाव पड़ता है। एच० कालबर्ट के अनुसार, “पंजाब की खुशहाली बहुत हद तक वनों पर निर्भर करती है क्योंकि यह भूमि कटाव को रोकते हैं।” पंजाब में वन साधन बहुत कम हैं। 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के कारण वन वाला क्षेत्र हिमाचल प्रदेश का भाग बन गया इसलिए पंजाब में वनों के अधीन क्षेत्र बहुत कम है। पंजाब में 3054 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों के अधीन है जो कि कुल क्षेत्रफल का 5.7% भाग है।

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प्रश्न 4.
पंजाब में स्त्री-पुरुष अनुपात पर रोशनी डालें।
उत्तर-
स्त्री-पुरुष अनुपात निरन्तर कम हो रहा है। इसका विवरण निम्नलिखित सूची पत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
स्त्री-पुरुष अनुपात

वर्षों 1951 1961 1971 1981 1991 2011
भारत 946 942 930 934 929 940
पंजाब 844 854 865 879 888 895

प्रश्न 5.
पंजाब में वनों के दो प्रत्यक्ष लाभ बताएं।
उत्तर-
प्रत्यक्ष लाभ (Direct Advantages)-

  1. इमारती लकड़ी-पंजाब के वनों से कई प्रकार की इमारती लकड़ी प्राप्त होती है जैसे कि शीशम, टाहली, आम, सफ़ेदा इत्यादि जो फर्नीचर तथा इमारतें बनाने के लिए प्रयोग की जाती है।
  2. कच्चे माल की प्राप्ति-पंजाब के वनों से कच्चे माल की प्राप्ति भी होती है। इससे खेलों का सामान बनाने वाले उद्योग, काग़ज़ उद्योग इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त रंग-रोगन बनाने के लिए कच्चा माल भी वनों से प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 6.
पंजाब में वनों के दो अप्रत्यक्ष लाभ बताएं।
उत्तर-
अप्रत्यक्ष लाभ (Indirect Advantages)-वनों में अप्रत्यक्ष लाभ इस प्रकार हैं –

  1. वनों द्वारा बाढ़ की रोकथाम होती है। वन जल की रफ़्तार काफ़ी कम कर देते हैं।
  2. वनों द्वारा भूमि के कटाव (Soil Erosion) की समस्या का हल होता है। पेड़ों की जड़ों में मिट्टी फंस जाती है इसलिए भूमि के कटाव की समस्या उत्पन्न नहीं होती।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में जनसंख्या की वृद्धि के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
पंजाब में जनसंख्या वृद्धि के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. ऊंची जन्म दर-पंजाब में जन्म दर ऊंची है जो कि 29.8 प्रति हज़ार है। इस कारण पंजाब की जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
  2. कम मृत्यु दर-एक हज़ार व्यक्तियों के पीछे जितने व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है उसको मृत्यु दर कहा जाता है। पंजाब में मृत्यु दर निरन्तर कम हो रही है। इसके मुख्य कारण डॉक्टरी सुविधाओं में वृद्धि, अच्छी खुराक, विवाह की अधिक आयु इत्यादि है। 1971 में मृत्यु दर 11.4 प्रति हज़ार थी। 2011 में मृत्यु दर कम होकर 7.4 प्रति हज़ार है। इस कारण जनसंख्या की वृद्धि हो रही है।
  3. अशिक्षा- पंजाब – 75.8% लोग गांवों में रहते हैं। इनमें से अधिक लोग अशिक्षित तथा अज्ञानी हैं। वे छोटे परिवार के महत्त्व को नहीं समझते इसलिए परिवार नियोजन की तरफ कम ध्यान देते हैं। पुत्र प्राप्ति के लिए परिवार में लोग वृद्धि करते हैं।
  4. सर्वव्यापी विवाह-पंजाब में विवाह करना सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक दृष्टि से आवश्यक माना जाता है। यद्यपि कोई बच्चों का पालन-पोषण न कर सके, परन्तु विवाह करना पसन्द करता है।
  5. गर्म जलवायु-पंजाब की जलवायु गर्म है। इसलिए लड़के-लड़कियां छोटी आयु में ही विवाह योग्य हो जाते हैं। इस कारण बच्चे अधिक होते हैं।

प्रश्न 2.
पंजाब में जनसंख्या की सघनता पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
जनसंख्या की सघनता का अर्थ है कि राज्य में प्रति वर्ग किलोमीटर में कितनी जनसंख्या निवास करती है
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन 1
पंजाब में जनसंख्या की सघनता बढ़ रही है 1961 में पंजाब की सघनता 221 थी, जोकि 2011 में बढ़कर 551 हो गई है। पंजाब में जनसंख्या की सघनता भारत में जनसंख्या की सघनता से अधिक है। इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं-

  1. भूमि की उपजाऊ शक्ति-जिस राज्य में भूमि की उपजाऊ शक्ति अधिक होती है। वर्षा उचित मात्रा में ठीक समय पर होती है तथा सिंचाई की सुविधाएं प्राप्त होती हैं, उन क्षेत्रों में जनसंख्या की सघनता अधिक होगी।
  2. उद्योगों का विकास-औद्योगिक विकास तथा व्यापारिक केन्द्रों में जनसंख्या की सघनता अधिक होती है। उद्योग विकसित होने के कारण रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं, इसलिए जनसंख्या की सघनता बढ़ जाती है।
  3. सुरक्षा का वातावरण-जिन क्षेत्रों में सुख-शान्ति का वातावरण पाया जाता है तथा जान-माल की सुरक्षा होती है, उन क्षेत्रों में जनसंख्या की सघनता अधिक पाई जाती है।
  4. राजधानियां तथा धार्मिक स्थान-साधारणतया राजधानियों तथा धार्मिक स्थानों पर जनसंख्या की सघनता अधिक होती है, क्योंकि श्रद्धालु लोग धार्मिक स्थानों पर बस जाते हैं। राजधानियों में शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाएं होने के कारण ऐसे स्थानों पर लोग निवास करना पसन्द करते हैं।

प्रश्न 3.
पंजाब में जनसंख्या के व्यावसायिक विभाजन को स्पष्ट करें।
उत्तर-
जनसंख्या के व्यावसायिक विभाजन से अभिप्राय : एक राज्य के लोग अपनी आजीविका कमाने के लिए कौन-से कार्य करते हैं। 2011 की जनसंख्या के अनुसार पंजाब की जनसंख्या 277 लाख है जिसमें से 30% जनसंख्या कार्यशील है। जनसंख्या के व्यावसायिक विभाजन को तीन भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया जा सकता है-
1. प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector)-इस क्षेत्र में कृषि तथा कृषि कार्यों से सम्बन्धित सब कार्य शामिल किए जाते हैं।
2. गौण क्षेत्र (Secondary Sector)-इस क्षेत्र में उद्योग, निर्माण इत्यादि कार्यों को शामिल किया जाता है।
3. तृतीय क्षेत्र (Tertiary Sector)–इस क्षेत्र में व्यापार, यातायात, बैंकिंग इत्यादि सेवाओं को शामिल किया जाता हैं।

पंजाब में जनसंख्या के व्यवसाय का विवरण इस प्रकार है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन 2

इस सूची-पत्र से स्पष्ट होता है कि –

  • कृषि-पंजाब में कार्यशील जनसंख्या का 56% भाग कृषि में कार्य करता है। इसमें 26.16% उत्पादन होता है।
  • उद्योग तथा निर्माण-पंजाब में औद्योगिक विकास बहुत कम हुआ है जो कि पंजाब की कम उन्नति का सूचक है। उद्योगों में पंजाब की कार्यशील जनसंख्या का 18% भाग कार्य करता है। इसमें 24.70% उत्पादन होता है।
  • सेवाएं-पंजाब की जनसंख्या का 28% भाग व्यापार तथा यातायात में लगा हुआ है। इसमें 49.14% उत्पादन होता है।

प्रश्न 4.
पंजाब में जनसंख्या को रोकने के लिए उठाए गए पग बताएं।
उत्तर-
पंजाब सरकार ने जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए निम्नलिखित पग उठाए हैं-
स्वास्थ्य तथा डॉक्टरी सुविधाओं में वृद्धि-जनसंख्या को कम करने के लिए पंजाब सरकार ने शिक्षा के प्रसार का कार्य आरम्भ किया है। पंजाब सरकार की तरफ से परिवार नियोजन को सफल बनाने के लिए डॉक्टरी सुविधाओं का विस्तार किया है। गांवों में डिस्पेंसरियां तथा छोटे अस्पताल स्थापित किए हैं। इस प्रकार परिवार सीमित रखने के लिए लोगों को उत्साहित किया जाता है।

प्रश्न 5.
पंजाब की भौगोलिक स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब भारत का एक कृषि प्रधान राज्य है। इसका पुनर्गठन 1 नवम्बर, 1966 को किया गया। यह प्रान्त उत्तर में जम्मू-कश्मीर, दक्षिण में हरियाणा तथा राजस्थान से लगता है। इसके पूर्व में हिमाचल है तथा पश्चिम में पाकिस्तान का क्षेत्र है। यह प्रान्त उत्तर में 29° से 32° तथा पूर्व में 75° से 77° तक फैला हुआ है। इसको कृषि तथा जलवायु के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  • पहाड़ी क्षेत्र
  • मैदानी क्षेत्र
  • रेतीला क्षेत्र।

पंजाब के पुनर्गठन के पश्चात् इसका क्षेत्रफल 50362 वर्ग किलोमीटर अथवा 5036 हज़ार हेक्टेयर है। पंजाब भारत के कुल क्षेत्रफल का 1.5% भाग है। पंजाब की जनसंख्या 2001 की जनगणना के अनुसार 243.6 लाख है। इसमें 5 डिवीजन, 22 ज़िले, 90 तहसीलें, 81 सब-तहसीलें, 150 विकास खण्ड, 74 शहर, 143 कस्बे तथा 12581 गांव हैं। पंजाब में मुख्य तीन दरिया –

  • सतलुज
  • ब्यास
  • रावी बहते हैं।

इनके अतिरिक्त घग्गर नदी भी जल साधन का स्रोत है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन

प्रश्न 6.
पंजाब में बन सम्पत्ति की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
वन मनुष्यों के लिए महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक साधन हैं। एक राज्य की जलवायु, रोज़गार, वर्षा, बाढ़ नियन्त्रण इत्यादि पर वनों का बहुत प्रभाव पड़ता है। एच० कालबर्ट के अनुसार, “पंजाब की खुशहाली बहुत हद तक वनों पर निर्भर करती है क्योंकि यह भूमि कटाव को रोकते हैं।’ पंजाब में वन साधन बहुत कम हैं। 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के कारण वन वाला क्षेत्र हिमाचल प्रदेश का भाग बन गया इसलिए पंजाब में वनों के अधीन क्षेत्र बहुत कम है। पंजाब में 3600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों के अधीन है जो कि कुल क्षेत्रफल का 5.7% भाग है।

पंजाब में वन सम्पत्ति की विशेषताएं (Features of Forest Wealth of Punjab)-

  1. वनों के अधीन कम क्षेत्र-पंजाब में वनों के अधीन बहुत कम क्षेत्र है। पंजाब के कुल क्षेत्रफल का केवल 5.7% भाग वनों के अधीन है। प्रत्येक क्षेत्र की जलवायु को सन्तुलित रखने के लिए 33% क्षेत्रफल वनों के अधीन होना चाहिए किन्तु पंजाब में वनों के अधीन कम क्षेत्र होने के कारण इसकी जलवायु नीम शुष्क है।
  2. क्षेत्रीय असमानता-पंजाब के वनों की एक विशेषता यह है कि इसमें क्षेत्रीय असमानता पाई जाती है अर्थात् पंजाब के वनों का क्षेत्रीय विभाजन असमान है। पंजाब में अधिकतर वन होशियारपुर जिले में पाए जाते हैं जो कि कुल वनों का 33% भाग है। रोपड़ में 23% क्षेत्र वनों के अधीन है, शेष जिलों में वन बहुत कम हैं।

प्रश्न 7.
पंजाब सरकार की वन नीति पर नोट लिखें।
उत्तर-
पंजाब में भारत की स्वतन्त्रता से पूर्व वनों सम्बन्धी कोई नीति नहीं बनाई गई थी। परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् वन नीति की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। इसकी मुख्य विशेषताएं अनलिखित हैं-

  1. वन क्षेत्र विकास (Increase in Forest Area)-पंजाब का पुनर्गठन 1 नवम्बर, 1966 को किया गया। उस समय वनों के अधीन क्षेत्र 1872 वर्ग किलोमीटर था। इस समय लगभग 3054 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वन हैं जो कि कुल क्षेत्रफल का 5.7% भाग हैं।
  2. नर्सरियों की स्थापना (Establishment of Nursaries)-पंजाब सरकार ने नर्सरियों की स्थापना की है। इस समय लगभग 150 नर्सरियां हैं जिनमें पेड़ों के बीज लगा कर छोटे पेड़ तैयार किए जाते हैं।
  3. नए पेड़ लगाना (New Plantation)-पंजाब सरकार ने अधिक पेड़ लगाओ (Grow More Trees) की नीति अपनाई है जिसके अधीन लोगों को बहुत कम कीमत पर सरकारी नर्सरियों से पौधे दिए जाते हैं।
  4. घास लगाना (Grass Plantation)-पंजाब के नीम पहाड़ी क्षेत्रों में घास लगाया जाता है। इस प्रकार भूमि के कटाव को रोकने का प्रयत्न किया जाता है। वन सम्बन्धी खोज का कार्य पंजाब कृषि विद्यालय लुधियाना में किया जाता है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में वन लगाने के लिए सुझाव तथा प्रशिक्षण दिया जाता है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना में वनों के विकास पर 5400 लाख रुपए व्यय किए गए थे। पंजाब में 3011 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों के अधीन हैं।

प्रश्न 8.
पंजाब सरकार की वन नीति पर नोट लिखें।
उत्तर-
पंजाब में भारत की स्वतन्त्रता से पूर्व वनों सम्बन्धी कोई नीति नहीं बनाई गई थी। परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् वन नीति की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. वन क्षेत्र विकास (Increase in Forest Area)-पंजाब का पुनर्गठन 1 नवम्बर, 1966 को किया गया। उस समय वनों के अधीन क्षेत्र 1872 वर्ग किलोमीटर था। इस समय लगभग 3054 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वन हैं जो कि कुल क्षेत्रफल का 5.7% भाग हैं।
  2. नर्सरियों की स्थापना (Establishment of Nursaries)-पंजाब सरकार ने नर्सरियों की स्थापना की है। इस समय लगभग 150 नर्सरियां हैं जिनमें पेड़ों के बीज लगा कर छोटे पेड़ तैयार किए जाते हैं।
  3. नए पेड़ लगाना (New Plantation)-पंजाब सरकार ने अधिक पेड़ लगाओ (Grow More Trees) की नीति अपनाई है जिसके अधीन लोगों को बहुत कम कीमत पर सरकारी नर्सरियों से पौधे दिए जाते हैं।
  4. घास लगाना (Grass Plantation)-पंजाब के नीम पहाड़ी क्षेत्रों में घास लगाया जाता है। इस प्रकार भूमि के कटाव को रोकने का प्रयत्न किया जाता है। वन सम्बन्धी खोज का कार्य पंजाब कृषि विद्यालय लुधियाना में दिया जाता है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में वन लगाने के लिए सुझाव तथा प्रशिक्षण दिया जाता है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना में वनों के विकास पर 5400 लाख रुपए व्यय किए गए थे। पंजाब में 3011 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों के अधीन हैं।

प्रश्न 9.
पंजाब में शक्ति साधनों के महत्त्व पर नोट लिखें।
उत्तर-

  1. कृषि के लिए महत्त्व-पंजाब कृषि प्रधान प्रान्त है। कृषि उत्पादन अधिक होने के कारण इसको भारत का अन्न भण्डार कहा जाता है। कृषि के विकास के लिए बिजली का विकास बहुत महत्त्वूपर्ण है।
  2. बहु-उद्देशीय योजनाएं-पंजाब में बहु-उद्देशीय योजनाएं स्थापित की गई हैं। इन योजनाओं द्वारा बाढ़ को रोकना, भूमि की सुरक्षा, जल बिजली पैदा करना इत्यादि बहुत से उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।
  3. यातायात तथा संचार के लिए महत्त्व-बिजली का विकास यातायात तथा संचार के लिए भी महत्त्वपूर्ण होता है। पंजाब में टेलीविज़न, फ्रिज, डाक तथा तार विभाग में बिजली का प्रयोग किया जाता है।
  4. उद्योगों के लिए महत्त्व-पंजाब में उद्योगीकरण की बहुत आवश्यकता है। विशेषतया घरेलू तथा छोटे पैमाने के कृषि आधरित उद्योगों का विकास करना चाहिए। इस लक्ष्य के लिए बिजली का योगदान महत्त्वपूर्ण है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब की जनसंख्या की विशेषताएं बताएं। (Explain the features of Population (Demographic features) of Punjab.)
अथवा
पंजाब की जनसंख्या पर विस्तारपूर्वक नोट लिखें। (Write a detailed note as the Population of Punjab.)
उत्तर-
पंजाब प्रान्त की जनसंख्या की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. जनसंख्या का आकार तथा वृद्धि (Size and Growth of Population)-पंजाब राज्य का पुनर्गठन भाषा के आधार पर 1 नवम्बर, 1966 में किया गया। पंजाब का क्षेत्रफल सारे भारत का 1.5% भाग है।
2011 में पंजाब की जनसंख्या बढ़कर 277 लाख हो गई है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण निम्नलिखित हैं –

  • पंजाब में जन्म दर बहुत अधिक है जो कि इस समय 24.2 प्रति हज़ार है।
  • पंजाब में मृत्यु दर तीव्रता से कम हो रही है।
  • पंजाब की प्रति व्यक्ति आय अधिक होने से जनसंख्या में वृद्धि हुई है।
  • पंजाब के 62.5% लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। गांव के लोग अशिक्षित तथा अज्ञानी होने के कारण जनसंख्या वृद्धि की दर अधिक है।

2. जन्म दर तथा मृत्यु दर (Birth Rate and Death Rate)-जनसंख्या में वृद्धि जन्म दर तथा मृत्यु दर पर निर्भर करती है। एक वर्ष में एक हज़ार मनुष्यों के पीछे जितने बच्चे जन्म लेते हैं उसको जन्म दर कहा जाता है तथा जितने व्यक्ति मर जाते हैं, उसको मृत्यु दर कहते हैं। 1970 में पंजाब की जन्म दर 33.8 प्रति हज़ार थी जो कि 2011 में कम होकर 24.2 प्रति हज़ार रह गई है। मृत्यु दर 1970 में 11.4 प्रति हज़ार थी। 2020-21 में मृत्यु दर कम होकर 7.1 प्रति हज़ार रह गई है। इस कारण जनसंख्या में वृद्धि तीव्र गति से हुई है।

3. जनसंख्या की सघनता (Density of Population)-एक वर्ग किलोमीटर में जितनी जनसंख्या रहती है, उसको जनसंख्या की सघनता कहते हैं।
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पंजाब में 2011 की जनगणना के अनुसार सघनता 551 प्रति वर्ग किलोमीटर है। यदि हम भिन्न-भिन्न जिलों में सघनता के आंकड़े देखते हैं तो लुधियाना जिले की सघनता 648 है जो कि सब जिलों से अधिक है तथा मुक्तसर जिले की सघनता 252 है जो कि सबसे कम है।

4. स्त्री-पुरुष अनुपात (Sex Ratio)-पंजाब में स्त्री-पुरुष अनुपात में निरन्तर वृद्धि हो रही है। स्त्री-पुरुष अनुपात से अभिप्राय है एक हजार पुरुषों के पीछे कितनी स्त्रियां हैं। पंजाब में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों का अनुपात निरन्तर कम हो रहा है। इसका विवरण निम्नलिखित सूची पत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
स्त्री-पुरुष अनुपात

वर्ष 1951 1961 1971 1981 1991 2011
भारत 946 942 930 934 929 940
पंजाब 844 854 865 879 888 895

सूची पत्र से ज्ञात होता है कि पंजाब में स्त्री पुरुष अनुपात में निरन्तर कमी हो रही है। इसलिए पंजाब सरकार ने गर्भावस्था के समय बच्चों के परीक्षण पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। इसके सम्बन्ध में कड़े कानून बनाए गए हैं।

5. औसत आयु (Average Age)-पंजाब में औसत आयु में वृद्धि हो रही है। 1991 की जनगणना के अनुसार पंजाब में औसत आयु 66 वर्ष आंकी गई थी। 2011 में पंजाब में औसत आयु परुष 71 वर्ष तथा स्त्रियां 74 होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

6. ग्रामीण तथा शहरी जनसंख्या (Rural and Urban Population)-पंजाब 2011 की जनगणना अनुसार 62.51% लोग गांवों में रहते हैं तथा 37.49% लोग शहरों में रहते हैं। नवम् पंचवर्षीय योजना के ड्रॉफ्ट के अनुसार, “राज्य के आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप ग्रामीण तथा शहरी खुशहाली के कारण शहरीकरण का रुझान बढ़ा है। इसके मुख्य कारण यह हैं कि पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योग विकसित हुए हैं, किसानों की आय में वृद्धि हुई है। इसलिए पंजाब में लोगों का रुझान शहरों की तरफ बढ़ रहा है। अगर हम विकसित देशों जैसे कि जापान, अमेरिका, इंग्लैण्ड, कैनेडा को देखते हैं तो इनमें अधिकतर लोग शहरों में रहते हैं। परन्तु पंजाब कृषि प्रधान राज्य है इसलिए गांवों में अधिक लोग रहते हैं।

7. साक्षरता अनुपात (Literacy Ratio)-साक्षरता अनुपात से अभिप्राय है कि एक क्षेत्र में कितने प्रतिशत लोग शिक्षित हैं। किसी देश का आर्थिक विकास उस देश में साक्षरता अनुपात पर निर्भर करता है। 2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब में 75.8% जनसंख्या शिक्षित है। इसमें पुरुषों का साक्षरता अनुपात अधिक है क्योंकि पंजाब के 81.5% पुरुष शिक्षित हैं तथा स्त्रियों में 71.3% स्त्रियां साक्षर हैं। अगर हम अन्य राज्यों से पंजाब की साक्षरता अनुपात की तुलना करते हैं तो अन्य राज्यों के मुकाबले पंजाब की साक्षरता अनुपात 10वें स्थान पर है। अर्थात् 10 राज्यों में साक्षरता अनुपात पंजाब से अधिक है। पंजाब में 72% शहरी जनसंख्या तथा 28% ग्रामीण जनसंख्या साक्षर है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन

प्रश्न 2.
पंजाब में ऊर्जा के मुख्य स्रोत कौन-कौन से हैं ? पंजाब की मुख्य ऊर्जा परियोजनाओं पर प्रकाश डालें।
(What are main two sources of Energy in Punjab ? Explain the energy Projects of Punjab.)
उत्तर-
पंजाब की आर्थिक उन्नति के लिए शक्ति की बहुत आवश्यकता है। पंजाब में शक्ति का प्रति व्यक्ति उपभोग 684 किलोवाट घंटे प्रति वर्ष है जो कि भारत में प्रति व्यक्ति उपभोग से लगभग दो गुणा है। पंजाब में शक्ति के मुख्य दो साधन हैं-
A. जल बिजली (Hydro Electricity)
B. ताप बिजली (Thermal Electricity)

पंजाब में बिजली के उत्पादन सामर्थ्य में बहुत वृद्धि हुई है। 1966-67 में बिजली का उत्पादन सामर्थ्य 2364 मैगावाट थी। वर्ष 2020-21 में उत्पादन सामर्थ्य बढ़ कर 45713 मिलियन किलोवाट घण्टे हो गई है। बिजली के शक्ति साधनों का मुख्य विवरण इस प्रकार है-

A. जल बिजली (Hydro Electricity)-पंजाब में स्वतन्त्रता के पश्चात् विद्युत् उत्पादन के लिए निम्नलिखित परियोजनाएं स्थापित की गईं। जल बिजली द्वारा 8415 kWh बिजली पैदा की जाती है।
1. भाखड़ा-नंगल प्रोजैक्ट (Bhakhra Nangal Project)-भाखड़ा-नंगल प्रोजैक्ट 1948 में आरम्भ किया गया था। यह भारत का सबसे बड़ा पन बिजली प्रोजैक्ट है जो कि पंजाब, राजस्थान, हरियाणा तथा दिल्ली प्रान्त के संयुक्त प्रयत्न से स्थापित किया गया। इस प्रोजैक्ट में बिजली घर बनाए गए हैं जो कि कोटला, गंगूवाल तथा भाखड़ा डैम पर स्थित हैं। इस डैम की उत्पादन शक्ति 1258 मैगावाट है। इसमें से पंजाब को 736 मैगावाट बिजली का भाग मिलता है।

2. ब्यास प्रोजैक्ट (Bias Project)-यह प्रोजैक्ट पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान का संयुक्त उपक्रम है। इस प्राजैक्ट के दो भाग हैं-

  • ब्यास यूनिट I
  • ब्यास यूनिट II ।

इन दोनों यूनिटों का अब विस्तार किया गया है। इस प्रोजैक्ट की उत्पादन सामर्थ्य में से पंजाब को 566 मैगावाट बिजली मिलती है।

3. शानन प्रोजैक्ट (Shanan Project)-यह प्रोजैक्ट पंजाब का सबसे पुराना बिजली घर है जो कि जोगिन्द्र नगर में स्थित है। इस प्रोजैक्ट की स्थापना 1932 में 10 करोड़ की लागत से की गई थी। शानन प्रोजैक्ट की बिजली उत्पादन सामर्थ्य 10 मैगावाट है।

4. मुकेरियां हाइडल प्रोजैक्ट (Mukerian Hydle Project)-यह प्रोजैक्ट तलवाड़ा के निकट मुकेरियां के स्थान पर स्थापित किया गया है। इस प्रोजैक्ट पर 357 करोड़ रुपए व्यय होने का अनुमान है। इस प्रोजैक्ट में चार पावर हाउस तथा पेट्रोल पावर हाऊस में तीन इकाइयां बनाने की योजना है। इस प्रोजैक्ट के द्वितीय चरण पर कार्य हो रहा है। पूर्ण होने पर इसकी उत्पादन शक्ति 207 मैगावाट होने का अनुमान है।

5. आनन्दपुर साहिब हाइडल प्रोजैक्ट (Anandpur Sahib Hydle Project)-यह प्रोजैक्ट सतलुज नदी पर बनाया गया है। इसमें नंगल डैम से पानी लेकर बिजली बनाने का प्रयत्न किया गया है। इस प्रोजैक्ट द्वारा 134 मैगावाट बिजली का उत्पादन किया जाता है।

6. अपर-बारी दोआब बिजली घर (Uppar Bari Doab Power House)-यह बिजली घर मलिकपुर के स्थान पर बनाया गया है। बिजली घर के दो यूनिट हैं। प्रथम यूनिट 1973 में पूर्ण हो गया है जिसकी उत्पादन शक्ति 45 मैगावाट है। दूसरे यूनिट पर काम चल रहा है।

7. थीन डैम (Thein Dam)-इस डैम को महाराजा रणजीत सिंह के नाम पर रणजीत सिंह सागर डैम भी कहा जाता है। थीन डैम माधोपुर के स्थान पर रावी नदी पर स्थित है। इस प्रोजैक्ट के चार यूनिट स्थापित किए जाएंगे जिनकी कुल उत्पादन शक्ति 600 मैगावाट होगी। इस प्रोजैक्ट पर 1.132 करोड़ रुपए व्यय होने की सम्भावना है।

B. ताप बिजली (Thermal Electricity)-ताप बिजली घरों में कोयले अथवा डीज़ल का प्रयोग करके बिजली पैदा की जाती है। पंजाब में ताप बिजली द्वारा 5204 kWh मिलियन बिजली की पैदावार की जाती है।

ताप बिजली की स्थिति इस प्रकार है –

  1. भटिण्डा ताप बिजली घर (Bathinda Thermal Plant)-भटिण्डा में गुरु नानक देव ताप बिजली घर का निर्माण 1974 में आरम्भ हुआ था। इस प्लांट की चार इकाइयां लगाई गई थीं जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 440 मैगावाट है। सातवीं योजना में इस बिजली घर की दो अन्य इकाइयां लगाने की आज्ञा दी गई थी जिनकी उत्पादन क्षमता 2748 मैगावाट होगी। यह यूनिट अब बंद हो गया है।
  2. रोपड़ थर्मल प्रोजैक्ट (Ropar Thermal Project)-यह थर्मल प्लांट रोपड़ में स्थापित किया गया है। इसकी पांच इकाइयां लगाई गई हैं जिनकी उत्पादन क्षमता 9224 मैगावाट है।

प्रश्न 3.
पंजाब की वन सम्पत्ति का विवरण दें। इसके महत्त्व को स्पष्ट करें। (Discuss the forest wealth of Punjab and Explain its Importance.)
उत्तर-
वन प्रकृति की नि:शुल्क तथा महान् देन माने जाते हैं। प्रत्येक देश के विकास के लिए वनों का विकास महत्त्वपूर्ण माना जाता है। वातावरण को ठीक रखने के लिए कुल भूमि का 33% भाग वनों के अधीन होना चाहिए। इससे जलवायु ठीक रहती है। पंजाब में वन साधनों की कमी पाई जाती है। पंजाब का कुल क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर है जिसमें से 3050 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों के अधीन है जो कि कुल क्षेत्रफल का 6% भाग है।

अगर हम पंजाब की वन सम्पत्ति को देखते हैं तो वन सम्पत्ति की स्थिति सन्तोषजनक नहीं है। पंजाब के वनों का 33% भाग होशियारपुर में पाया जाता है जबकि जालन्धर, मानसा, संगरूर, कपूरथला इत्यादि में वन बहुत कम पाए जाते हैं।
वनों का वर्गीकरण (Classification of Forests)पंजाब में वनों का वर्गीकरण दो प्रकार से किया जा सकता है-
1. कानूनी आधार के अनुसार (According to Legal Status)-पंजाब सरकार ने कानून के आधार पर वनों की तीन श्रेणियां बनाई हैं

  • आरक्षित वन (Reserve Forest)-आरक्षित वन वे वन हैं जिनको सरकार की आज्ञा के बिना कोई मनुष्य काट नहीं सकता। पंजाब सरकार ने 44 वर्ग किलोमीटर भूमि में आरक्षित वन स्थापित किए हैं। ये वन जलवायु ठीक रखने, बाढ़ की रोकथाम के लिए आवश्यक हैं।
  • सुरक्षित वन (Protective Forest)-इन वनों से औद्योगिक लकड़ी पाई जाती है। यह वन विशेष शर्तों पर व्यक्तियों को ठेके पर दिए जाते हैं। 2020-21 में 2711 वर्ग किलोमीटर पर सुरक्षित वन थे।
  • अवर्गीकृत वन (Unclassified Forest)-यह वन सरकार द्वारा निजी प्रयोग के लिए प्रयोग होने वाली लकड़ी के रूप में आते हैं। इन वनों का सरकार ठेका देती है।

2. स्वामित्व के आधार अनुसार (According to Ownership)-इस आधार पर वनों को दो भागों में विभाजित किया जाता है-

  • सरकारी वन (State Forest)-यह वन सरकार के अधीन क्षेत्र में पाए जाते हैं। 1965-66 में 748 वर्ग किलोमीटर में सरकारी वन थे जोकि 2020-21 में 3315 वर्ग किलोमीटर में पाए जाते हैं।
  • निजी वन (Private Forest)-निजी स्वामित्व के अधीन 1965-66 में 1124 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र था जो 2020-21 में बढ़ कर 166 वर्ग किलोमीटर हो गया है।

वनों की किस्में (Types of Forests) वनों की मुख्य किस्में इस प्रकार हैं-

  1. पहाड़ी वन-यह वन पहाड़ी क्षेत्रों होशियारपुर में पाए जाते हैं। इन वनों में चील की लकड़ी प्राप्त होती है जो कि निर्माण के कार्य में प्रयोग की जाती है।
  2. बाँस के वन-ये वन भी होशियारपुर के क्षेत्र में स्थित हैं। इनसे बाँस को लकड़ी प्राप्त होती है।
  3. शुष्क वन-पंजाब में बबूल, टाहली, इत्यादि के पेड़ जो शिवालिक पर्वत श्रेणी में पाए जाते हैं। इनको कांटेदार वन भी कहा जाता है।
  4. फल वाले वन-ऐसे वनों की पंजाब में कमी है। इनमें आम, अंगूर, अमरूद के फल वाले पेड शामिल हैं। इसका कुछ भाग रोपड़ जिले में पाया जाता है।
  5. अन्य वन-इनमें सफेदा, शीशम, थोहर इत्यादि शामिल किए जाते हैं। ये वन पंजाब में भिन्न-भिन्न स्थानों पर पाए जाते हैं।

वनों का महत्त्व अथवा लाभ (Importance or Advantages of Forest) पंजाब में वनों से दो प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं –
A. प्रत्यक्ष लाभ (Direct Advantages)
1. इमारती लकड़ी-पंजाब के वनों से कई प्रकार की इमारती लकड़ी प्राप्त होती है जैसे कि शीशम, टाहली, आम, सफ़ेदा इत्यादि जो फर्नीचर तथा इमारतें बनाने के लिए प्रयोग की जाती है।

2. कच्चे माल की प्राप्ति-पंजाब के वनों से कच्चे माल की प्राप्ति भी होती है। इससे खेलों का सामान बनाने वाले उद्योग, काग़ज़ उद्योग इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त रंग-रोगन बनाने के लिए कच्चा माल भी वनों से प्राप्त किया जाता है।

3. चारा-वनों से पशुओं के लिए चारा प्राप्त किया जाता है। यह चारा हरी तथा सूखी घास, पत्तेदार झाड़ियों द्वारा प्राप्त होता है।

4. रोज़गार-वनों द्वारा लोगों को रोज़गार भी प्राप्त होता है। 2020-21 में लगभग 13068 लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। यह लोग ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई इत्यादि कामों में लगे हुए हैं। 1966-67 की तुलना में वनों द्वारा रोज़गार में दो-गुणा वृद्धि हो गई है।

5. राज्य सरकार को आय-पंजाब सरकार को वनों द्वारा आय प्राप्त होती है। 2020-21 में वनों द्वारा 12 करोड़ 95 लाख की आय होने का अनुमान था।

6. वस्तुओं का उत्पादन-पंजाब के वनों से कई प्रकार की वस्तुएं उत्पादित की जाती हैं जैसे कि गोंद, कत्था, बांस, गन्दा बिरोजा इत्यादि। 2020-21 में 4 करोड़ 95 लाख रुपए की वस्तुएं प्राप्त होने का अनुमान था।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 32 पंजाब की मानवीय शक्ति और भौतिक साधन

B. अप्रत्यक्ष लाभ (Indirect Advantages)वनों में अप्रत्यक्ष लाभ इस प्रकार हैं-
1. वनों द्वारा बाढ़ की रोकथाम होती है। वन जल की रफ्तार काफ़ी कम कर देते हैं।

2. वनों द्वारा भूमि के कटाव (Soil Erosion) की समस्या का हल होता है। पेड़ों की जड़ों में मिट्टी फंस जाती है इसलिए भूमि के कटाव की समस्या उत्पन्न नहीं होती।

3. वन रेगिस्तान को बढ़ने से रोकते हैं। वन होने के कारण रेत के टीले आगे नहीं बढ़ सकते।

4. वन जलवायु को अच्छा बनाने के लिए भी लाभदायक होते हैं, गर्मियों में मौसम ठंडा रखने में सहायक होते हैं क्योंकि वनों के कारण वर्षा होती है। सर्दियों में शीत लहर को भी वन रोकते हैं।

5. तेज़ हवाएं, आंधी, तूफ़ान को रोकने के लिए भी वन सहायक होते हैं। जे० एस० कोलिन्स के शब्दों में “पेड़ पहाड़ों को रोकते हैं, वर्षा तथा तूफान को दबाते हैं, दरियाओं को सुचारु बनाते हैं, झरनों को बनाए रखते हैं, पक्षियों का पालन करते हैं।” पंचवर्षीय योजनाओं में वनों का विकास-पांचवीं पंचवर्षीय योजना में वनों पर 608 लाख रुपये खर्च किए गए। ग्यारहवीं योजना में वनों के विकास पर 2000 लाख रुपए खर्च किये गए। 2020-21 में वनों के विकास पर 1200 लाख रुपए खर्च किए गए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 35 पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 35 पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 35 पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति

PSEB 12th Class Economics पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब सरकार की आय के मुख्य कर साधन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
पंजाब सरकार की आय के मुख्य साधनों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है कर साधन-इन साधनों में बिक्री कर, उत्पादन कर, भूमि लगान, स्टैम्प ड्यूटी तथा रजिस्ट्री, मोटर गाड़ियों पर कर, विद्यत कर, यात्रा कर इत्यादि शामिल किए जाते हैं।

प्रश्न 2.
पंजाब सरकार के विकासवादी व्यय की दो मुख्य मदों का वर्णन करें।
उत्तर-
कृषि (Agriculture)-कृषि, सहकारिता तथा पशुपालन की उन्नति के लिए सरकार व्यय करती है। वर्ष 2020-21 में इस मद पर ₹ 13267 करोड़ व्यय होने का अनुमान लगाया गया।

प्रश्न 3.
पंजाब सरकार के गैर-विकासवादी व्यय की मदों का वर्णन करें।
उत्तर-
राज्य प्रबन्ध (Administration)-पंजाब सरकार को राज्य प्रबन्ध, पुलिस तथा शान्ति स्थापित करने के लिए व्यय करना पड़ता है। वर्ष 2020-21 में इस मद पर व्यय करने के लिए ₹ 6954 करोड़ रखे गए।

प्रश्न 4.
पंजाब में सरकार की आय के मुख्य साधन बिक्री कर, उत्पादन कर, भूमि लगान स्टैम्प ड्यूटी आदि
उत्तर-
सही।

प्रश्न 5.
पंजाब सरकार की आय व्यय से अधिक है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 6.
पंजाब सरकार द्वारा विकासवादी व्यय ……………….. पर किया जाता है।
(a) शिक्षा
(b) कृषि
(c) स्वास्थ्य
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 7.
वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार की कुल आय ………. करोड़ रुपए होने का अनुमान था।
(a) 151048
(b) 152048
(c) 153048
(d) 164048
उत्तर-
(c) 153048

प्रश्न 8.
सन् 2020-21 में पंजाब सरकार का कुल व्यय ₹ …………. करोड़ होने का अनुमान था।
(a) 152805
(b) 162805
(c) 172805
(d) 1828808
उत्तर-
(a) 152805

प्रश्न 9.
पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति सन्तोषजनक है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 10.
पंजाब सरकार को सामाजिक कल्याण की योजनाओं पर कम व्यय करना चाहिए।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 11.
पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए सुझाव दें।
उत्तर-
पंजाब को विकासवादी व्यय अधिक करना चाहिए और ग्रांटें देनी बन्द करनी चाहिए।

प्रश्न 12.
पंजाब सरकार पर 2020-21 का कुल ऋण ₹ 20 लाख करोड़ था।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब सरकार की आय के दो कर साधनों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब सरकार को करों द्वारा तथा गैर-कर साधनों द्वारा आय प्राप्त होती है। वर्ष 2020-21 में लगभग ₹ 153048 करोड़ की कुल आय प्राप्त होने का अनुमान था। पंजाब सरकार के कर साधन निम्नलिखित हैं-

  1. बिक्री कर (Sale Tax)-बिक्री कर पंजाब सरकार की आय का मुख्य साधन है। यह कर वस्तुओं तथा सेवाओं की बिक्री के समय लगाया जाता है। वर्ष 2020-21 में बिक्री द्वारा ₹ 5575 करोड़ की आय होने की सम्भावना थी।
  2. राज्य उत्पादन कर (State Excise Duty)-यह कर नशीले पदार्थों पर लगाया जाता है और 2020-21 में इस कर से ₹ 6550 करोड़ प्राप्त होने की संभावना थी।

प्रश्न 2.
पंजाब सरकार की आय के दो गैर-कर साधनों की व्याख्या करें।
उत्तर-
पंजाब सरकार को गैर-कर साधनों द्वारा भी आय प्राप्त होती है। इसके मुख्य साधन निम्नलिखित हैं-

  • साधारण सेवाएं (General Services)-पंजाब द्वारा साधारण सेवाओं जैसे कि पुलिस, जेल, लोक सेवा से प्राप्त होती है। इस प्रकार ₹ 6754 करोड़ की आय पंजाब सरकार को प्राप्त होने की सम्भावना थी।
  • आर्थिक विकास (Economics Services)-आर्थिक सेवाओं का अर्थ सिंचाई, भूमि सुधार, पशु पालन, मछली पालन, यातायात इत्यादि सेवाओं से प्राप्त होने वाली आय से होता है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार को आर्थिक सेवाओं द्वारा ₹ 898 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

प्रश्न 3.
पंजाब सरकार के दो विकास व्यय बताएं।
उत्तर-
विकास व्यय (Development Expenditure)-विकास व्यय में मुख्यतः शिक्षा, स्वास्थ्य उद्योग, सड़कें, विद्युत् इत्यादि पर व्यय को शामिल किया जाता है।
1. शिक्षा (Education)-पंजाब सरकार द्वारा स्कूलों, कॉलेजों तथा तकनीकी संस्थाओं के संचालन पर व्यय किय जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा ₹ 13037 करोड़ व्यय किए जाने का अनुमान था।

2. स्वास्थ्य सुविधाएं (Medical Facilities)-पंजाब सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इसके लिए गांवों में प्राइमरी स्वास्थ्य केन्द्र, शहरों तथा कस्बों में अस्पताल स्थापित किए गए हैं। 2020-21 में स्वास्थ्य सुविधाओं पर व्यय करने के लिए ₹ 4532 करोड़ रखे गए थे।

प्रश्न 4.
पंजाब सरकार के दो गैर विकास व्यय बताएं।
उत्तर-
गैर-विकास व्यय (Non-Development Expenditure)-पंजाब सरकार को गैर-विकास व्यय जैसे कि राज्य प्रशासन, पुलिस, कर्मचारियों को वेतन तथा पेंशन देने पर काफ़ी धन व्यय करना पड़ता है। इसको गैर-विकास व्यय कहा जाता है।

  1. राज्य प्रशासन (Civil Administration)-पंजाब सरकार प्रशासन पर व्यय करती है जैसे कि पुलिस, सरकारी कर्मचारी तथा मन्त्रियों के लिए रखे गए कर्मचारियों पर काफ़ी व्यय करना पड़ता है। 2020-21 में राज्य प्रशासन पर पंजाब सरकार ने ₹ 27629 करोड़ व्यय किए।
  2. ऋण सेवाएं (Debts Services)-पंजाब सरकार द्वारा प्राप्त किए गए ऋण पर ब्याज दिया जाता है। यह ऋण केन्द्र सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक से प्राप्त किया जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा ब्याज के रूप में ₹ 19075 करोड़ व्यय करने का अनुमान था।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब सरकार की आय के कर साधनों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब सरकार को करों द्वारा तथा गैर-कर साधनों द्वारा आय प्राप्त होती है। वर्ष 2017-18 में लगभग ₹ 60080 करोड़ की कल आय प्राप्त होने का अनमान था। पंजाब सरकार के कर साधन निम्नलिखित हैं –
1. जी० एस० टी० (G.S.T.)-बिक्री कर पंजाब सरकार की आय का मुख्य साधन है। यह कर वस्तुओं तथा सेवाओं की बिक्री के समय लगाया जाता है। वर्ष 2020-21 में बिक्री द्वारा ₹ 5578 करोड़ की आय होने की सम्भावना थी जोकि कुल आय का 39.56% भाग थी।

2. राज्य उत्पादन कर (Excise Duty)-इस कर को आबकारी कर भी कहा जाता है। यह कर नशीली वस्तुओं जैसे कि अफीम, शराब, भांग इत्यादि पर लगाया जाता है। आबकारी कर द्वारा 2020-21 में ₹ 6250 करोड़ की आय होने की सम्भावना थी जोकि कुल आय का 9.17% भाग थी।

3. केन्द्रीय करों में भाग (Share from Central Taxes)-कुछ कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाते हैं जैसे कि आय कर, उत्पादन कर, मृत्यु कर इत्यादि। इन करों में से राज्य सरकार को भाग दिया जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार को केन्द्रीय करों से ₹ 14021 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

4. भूमि लगान (Land Revenue)-भूमि के मालिए द्वारा भी सरकार को आय प्राप्त होती है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार को इस कर द्वारा ₹ 78 करोड़ की आय होने का अनुमान था।

प्रश्न 2.
पंजाब सरकार के विकासवादी व्यय की संक्षेप व्याख्या करो।
उत्तर-
पंजाब सरकार द्वारा किए जाने वाले व्यय को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –
(A) विकासवादी व्यय
(B) गैर-विकासवादी व्यय।

विकासवादी व्यय की मुख्य मदें इस प्रकार हैं-
1. शिक्षा (Education)-पंजाब सरकार को शिक्षा अर्थात् स्कूल, कॉलेज तथा तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिए व्यय करना पड़ता है। प्राइवेट स्कूलों तथा कॉलेजों को आर्थिक सहायता दी जाती है। वर्ष 2020-21 में शिक्षा पर ₹ 13037 करोड़ व्यय होने का अनुमान था।

2. स्वास्थ्य सुविधाएं (Medical Facilities)-लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए पंजाब सरकार को व्यय करना पड़ता है। गांवों तथा शहरों में बीमार लोगों को इलाज की सुविधाएं प्रदान करने के लिए अस्पताल स्थापित किए गए हैं। वर्ष 2021 में स्वास्थ्य सुविधाओं पर पंजाब सरकार ने ₹ 4532 करोड़ व्यय करने के लिए रखे थे।

3. कृषि, सहकारिता तथा पशु-पालन (Agriculture, co-operation and Animal Husbandary) – पंजाब सरकार द्वारा कृषि के विकास के लिए बहुत व्यय किया जाता है। किसानों को आधुनिक औजार, बढ़िया बीज तथा रासायनिक उर्वरक प्रदान की जाती है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार ने ₹ 13067 करोड़ कृषि के विकास पर व्यय करने के लिए रखे थे।

4.सिंचाई तथा बहुमुखी योजनाएं (Irrigation and Multipurpose Projects)-पंजाब में सिंचाई की तरफ अधिक ध्यान दिया जाता है। इसलिए पंजाब सरकार सिंचाई तथा बहुमुखी योजनाओं पर बहुत व्यय करती है। इसलिए नहरें, ट्यूबवैल, विद्युत् घरों के विकास पर काफ़ी व्यय किया जाता है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार ने ₹ 2510 करोड व्यय करने के लिए रखे थे।

प्रश्न 3.
पंजाब सरकार की आय के गैर-कर साधनों की व्याख्या करें।
उत्तर-
पंजाब सरकार को गैर-कर साधनों द्वारा भी आय प्राप्त होती है। इसके मुख्य साधन निम्नलिखित हैं –
1. साधारण सेवाएं (General Services)-पंजाब द्वारा साधारण सेवाओं जैसे कि पुलिस, जेल, लोक सेवा कमीशन इत्यादि से प्राप्त होती है। वर्ष 2020-21 में कुल आय का ₹ 6754 करोड़ साधारण सेवाओं से प्राप्त होने का अनुमान था।

2. आर्थिक विकास (Economics Services)-आर्थिक सेवाओं का अर्थ सिंचाई, भूमि सुधार, पशु पालन, मछली पालन, यातायात इत्यादि सेवाओं से प्राप्त होने वाली आय से होता है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार को आर्थिक सेवाओं द्वारा ₹ 898 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

3. ऋण सेवाएं, लाभांश तथा लाभ (Debt Services, Dividends and Profits)-पंजाब सरकार को ऋण देने के बदले में ब्याज प्राप्त होता है। यह ऋण नगर पालिकाओं अथवा व्यक्तियों को दिया जाता है। इससे सरकार को ब्याज प्राप्त होता है। पंजाब सरकार को 2020-21 में इस मद द्वारा ₹ 5.2 करोड़ की आय प्राप्त होने की सम्भावना थी।

4. केन्द्रीय सरकार से प्राप्त सहायता (Aid from central Government)-राज्य सरकार को केन्द्रीय सरकार से सहायता प्राप्त होती है जोकि योजनाओं को लागू करने पर व्यय की जाती है। पंजाब सरकार को वर्ष 2020-21 में केन्द्र सरकार से ₹ 30113 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब सरकार की आय के मुख्य साधन तथा व्यय की मदों का वर्णन करें।
(Explain the main sources of Revenue and Heads of Expenditure of the Punjab Government.)
उत्तर-
पंजाब सरकार की आय के मुख्य साधन तथा व्यय की मदों का विवरण इस प्रकार है-
आय के मुख्य साधन (Main Sources of Revenue) –
पंजाब सरकार ने बजट 2020-21 के अनुसार पंजाब की कुल आय ₹ 153048 करोड़ होने का अनुमान था तथा कुल व्यय का अनुमान ₹ 154805 करोड़ था। पंजाब सरकार की आय के ढांचे (Pattern) को हम अग्रलिखित अनुसार स्पष्ट कर सकते हैं-
अनुसार स्पष्ट कर सकते हैं-
1. बिक्री कर (Sales Tax)- यह कर पंजाब सरकार की आय का मुख्य साधन है। इसको वस्तुओं की खरीदबेच के समय लगाया जाता है। इसको अप्रत्यक्ष कर कहते हैं। इसका अधिभार निर्भर लोगों पर अधिक पड़ता है। 2020-21 के बजट में इस कर से आय का अनुमान ₹ 5575 करोड़ था।

2. राज्य उत्पादन कर (State Excise Tax)-इसको आबकारी कर भी कहा जाता है। राज्य सरकारों की आय का यह एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। यह कर नशीले पदार्थों जैसे कि शराब, अफीम, भांग, चरस इत्यादि पर लगाया जाता है। इस कर से 2020-21 में पंजाब सरकार को ₹ 6250 करोड़ की आय होने का अनुमान था।

3. भूमि मालिया (Land Revenue)-भूमि मालिए को मालगुजारी भी कहा जाता है। यह कर किसानों पर लगाया जाता है। प्रत्येक भूमि के स्वामी को अपनी भूमि के अनुसार मालिया देना पड़ता है। मालिए की दर समय-समय पर परिवर्तित की जाती है। 2020-21 में इससे ₹ 78 करोड़ की आय होने का अनुमान था।

4. स्टैंप ड्यूटी तथा रजिस्ट्रेशन (Stamp Duty and Registration) यह कर मुकद्दमेबाजी द्वारा एकत्रित किया जाता है। जब कोई मनुष्य कोई निवेदन देता है तो इस पर स्टैम्प लगाई जाती है, इसको कोर्ट फीस कहते हैं तथा रजिस्ट्री करवाते समय सरकार को फीस देनी पड़ती है। यह भी सरकार की आय का एक महत्त्वपूर्ण साधन होता है। 2020-21 में पंजाब सरकार को इससे ₹ 2625 करोड़ की आय होने का अनुमान था।

5. मोटर गाड़ियों पर कर (Tax on Vehicles)- राज्य में चलने वाली कारों, ट्रकों, ट्रैक्टरों, स्कूटरों इत्यादि पद कर लगाया जाता है। इसके द्वारा भी सरकार को आय प्राप्त होती है। 2020-21 में इससे ₹ 2376 करोड़ की आय होने का अनुमान है।

6. विद्युत् कर (Electricity Duty)-पंजाब सरकार विद्युत् करने वालों पर कर लगाती है। इस कर द्वारा 2020-21 में पंजाब सरकार को ₹ 2915 करोड़ आय होने का अनुमान है।

7. केन्द्रीय करों में भाग (Share in Central Taxes)-केन्द्रीय सरकार बहुत से कर लगाती है जैसे कि आय कर, उत्पादन कर, मृत्यु कर इत्यादि। इन करों के द्वारा जो आय प्राप्त होती है इसका कुछ भाग राज्य सरकारों को विभाजित किया जाता है। पंजाब सरकार को 2020-21 में केन्द्रीय करों से ₹ 14021 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

8. केन्द्र सरकार से सहायता (Aid from Central Government) – केन्द्र सरकार समय-समय पर राज्य सरकारों को सहायता प्रदान करती है। 2020-21 में पंजाब सरकार को ₹ 30133 करोड़ की सहायता प्राप्त होने का अनुमान था।

9. अन्य साधन (Other Sources)-आय के कर साधनों के अतिरिक्त गैर-कर साधन भी हैं जिनके द्वारा पंजाब सरकार को आय प्राप्त होती है जैसे कि ऋण सुविधाएं, साधारण सेवाएं, आर्थिक सेवाएं, लाभांश तथा लाभ इत्यादि द्वारा भी पंजाब सरकार को आय प्राप्त होती है। सामाजिक सेवाओं द्वारा ₹ 1466 करोड़, ब्याज प्राप्ति, लाभ तथा लाभांश द्वारा ₹ 398 करोड़ आय होने का अनुमान था। G.S.T. द्वारा ₹ 15659 करोड़ की आय प्राप्त होने की संभावना थी।

व्यय की मुख्य मदें (Main Heads of Expenditure)
पंजाब सरकार के व्यय के ढांचे को दो भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया जा सकता है –
A. विकास 274 (Development Expenditure)
B. गैर-विकास व्यय (Non-Development Expenditure)

A. विकास व्यय (Development Expenditure)-विकास व्यय में मुख्यतः शिक्षा, स्वास्थ्य उद्योग, सड़कें, विद्युत् इत्यादि पर व्यय को शामिल किया जाता है।
1. शिक्षा (Education)-पंजाब सरकार द्वारा स्कूलों, कॉलेजों तथा तकनीकी संस्थाओं के संचालन पर व्यय किया जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा ₹ 13267 करोड़ व्यय किए जाने का अनुमान था।

2. स्वास्थ्य सुविधाएं (Medical Facilities)-पंजाब सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इसके लिए गांवों में प्राइमरी स्वास्थ्य केन्द्र, शहरों तथा कस्बों में अस्पताल स्थापित किए गए हैं। 2020-21 में स्वास्थ्य सुविधाओं पर व्यय करने के लिए ₹ 4532 करोड़ रखे गए थे।

3. कृषि तथा ग्रामीण विकास (Agriculture & Rural Development)-पंजाब का मुख्य व्यवसाय कृषि है। सरकार द्वारा कृषि के विकास के लिए व्यय किया जाता है। किसानों को आधुनिक औज़ार, बीज तथा रासायनिक उर्वरक प्रदान किए जाते हैं। इसके लिए 2020-21 में ₹ 6547 करोड़ व्यय का अनुमान लगाया गया तथा ग्रामीण विकास पर ₹ 678 करोड़ व्यय होने का अनुमान था।

4. सामाजिक सुरक्षा तथा कल्याण (Social Security and Welfare)- पंजाब सरकार सामाजिक सुरक्षा तथा लोगों के कल्याण के लिए भी व्यय करती है। अनुसूचित जातियों, पिछड़े वर्गों तथा निर्धन लोगों को बुढ़ापा पेंशन दी जाती है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा सामाजिक सुरक्षा तथा कल्याण पर व्यय करने के लिए ₹ 4728 करोड़ रखे गए थे।

5. उद्योग तथा खनिज (Industries and Minerals) पंजाब सरकार छोटे तथा बड़े पैमाने के उद्योगों को सुविधाएं प्रदान करती है। इन उद्योगों को कम कीमत पर प्लाट, मशीनें, कच्चा माल तथा विद्युत् आपूर्ति की जाती है। सरकार उद्योगों के माल की बिक्री का प्रबन्ध भी करती है। 2020-21 में उद्योगों तथा खनिज पर ₹ 2473 करोड़ व्यय करने का अनुमान था।

B. गैर-विकास व्यय (Non-Development Expenditure)-
पंजाब सरकार को गैर-विकास व्यय जैसे कि राज्य प्रशासन, पुलिस, कर्मचारियों को वेतन तथा पेंशन देने पर काफ़ी धन व्यय करना पड़ता है। इसको गैर-विकास व्यय कहा जाता है।
1. राज्य प्रशासन (Civil Administration)-पंजाब सरकार प्रशासन पर व्यय करती है जैसे कि पुलिस, सरकारी कर्मचारी तथा मन्त्रियों के लिए रखे गए कर्मचारियों पर काफ़ी व्यय करना पड़ता है। 2020-21 में राज्य प्रशासन पर पंजाब सरकार ने ₹ 24639 करोड़ व्यय किए गए।

2. ऋण सेवाएं (Debts Services)-पंजाब सरकार द्वारा प्राप्त किए गए ऋण पर ब्याज दिया जाता है। यह ऋण केन्द्र सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक से प्राप्त किया जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा ब्याज के रूप ₹ 19075 करोड़ व्यय करने का अनुमान था।

3. कर वसूली पर व्यय (Direct Demand on Revenue) – पंजाब सरकार द्वारा बहुत से कर लगाए जाते हैं जैसे कि बिक्री कर, राज्य उत्पादन कर, मनोरंजन कर इत्यादि। इन करों को एकत्रित करने के लिए सरकार को व्यय करना पड़ता है। 2020-21 में करों को एकत्रित करने के लिए ₹ 1800 करोड़ व्यय होने का अनुमान था। .

4. पेंशन तथा अन्य सेवाएं (Pension and other services)-पंजाब सरकार द्वारा पेंशन तथा अन्य सेवाएं प्रदान करने पर व्यय किया जाता है। 2020-21 में ₹ 122067 करोड़ पेंशन तथा अन्य सेवाओं पर व्यय होने का अनुमान था।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

PSEB 12th Class Economics 1966 से पंजाब में कृषि का विकास Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में औद्योगिक ढांचे के विकास का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में अधिक उद्योग घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योग हैं। मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की कमी पाई जाती है।

प्रश्न 2.
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों की क्या स्थिति है ?
उत्तर-
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योग अधिक विकसित हुए हैं। 2018-19 में छोटे पैमाने के उद्योगों की कार्यशील इकाइयां 1:98 लाख थीं।

प्रश्न 3.
छोटे पैमाने के उद्योगों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
छोटे उद्योग तथा सहायक उद्योग वे उद्योग हैं, जिनमें एक करोड़ रुपए की अचल पूंजी का निवेश होता है।

प्रश्न 4.
जिन उद्योगों में एक करोड़ रुपए तक की पूंजी लगी होती है उनको …………. उद्योग कहा जाता है।
(a) कुटीर
(b) छोटे पैमाने के
(c) मध्यम आकार के
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) छोटे पैमाने के।

प्रश्न 5.
पंजाब में औद्योगिक प्रगति सन्तोषजनक है।
उत्तर-
ग़लत।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

प्रश्न 6.
पंजाब में अधिक मात्रा में …………….. उद्योग लगे हुए हैं।
(a) छोटे पैमाने के
(b) मध्यम आकार के
(c) बड़े पैमाने के
(d) उपरोक्त सभी प्रकार के।
उत्तर-
(a) छोटे पैमाने के।

प्रश्न 7.
पंजाब में औद्योगिक विकास की प्रगति ………….. है।
उत्तर-
धीमी।

प्रश्न 8.
पंजाब में बड़े पैमाने के उद्योगों की कमी का कारण ……………….. है।
(a) खनिज पदार्थों की कमी
(b) बिजली की कमी
(c) सीमावर्ती राज्य
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 9.
पंजाब में वित्त की कमी के कारण औद्योगिक विकास नहीं हुआ।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 10.
पंजाब में अल्प उद्योगों का कम विकास हुआ है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 11.
पंजाब में औद्योगिक विकास की ज़रूरत नहीं।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में औद्योगीकरण की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखें।
अथवा
पंजाब में औद्योगीकरण के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर-
पंजाब में औद्योगीकरण की आवश्यकता निम्नलिखित तत्त्वों से स्पष्ट हो जाती है-
1. संतुलित विकास (Balanced Growth)-पंजाब की अर्थ-व्यवस्था का संतुलित विकास नहीं हुआ क्योंकि पंजाब के अधिकतम लोग कृषि में लगे हुए हैं। इसलिए उद्योगों का विकास आवश्यक है तो जो पंजाब का संतुलित विकास हो सके।

2. रोज़गार में वृद्धि (Increase in Employment)-पंजाब में शहरों तथा गांवों में बेरोजगारी पाई जाती है। उद्योगों के विकास से पंजाब में शहरी बेरोज़गारी तथा गांवों में छुपी बेरोज़गारी कम होगी। उद्योगों के विकास से पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 2.
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास का विवरण दें।
उत्तर-
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों का विकास-

वर्ष कार्यशील इकाइयां (लाखों में) अचल पूंजी  (करोड़ ₹) उत्पादन (करोड़ ) रोज़गार (लाखों में)
1978-79 0.42 271 751 2.50
2017-18 1.72 86324 201590 15.26

प्रश्न 3.
पंजाब के कोई दो छोटे पैमाने के उद्योगों पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
पंजाब के मुख्य छोटे पैमाने के उद्योग अग्रलिखित हैं-
1. हौज़री उद्योग (Hosiery Industry)-पंजाब का हौज़री उद्योग लुधियाना में केन्द्रित है। यह उद्योग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी मशहूर है। 2015-16 इस उद्योग द्वारा ₹ 3711 करोड़ वार्षिक मूल्य का माल उत्पादित किया जाता है। इसमें 78 हज़ार लोगों को रोज़गार प्राप्त होता है।

2. साइकिल उद्योग (Cycle Industry)-पंजाब में साइकिल उद्योग छोटे स्तर तथा बड़े स्तर दोनों पर ही कार्य कर रहा है। साइकिल तथा साइकिल के पुर्जे बनाने का उद्योग लुधियाना, जालन्धर, राजपुरा तथा मालेरकोटला में स्थित है। 2015-16 में ₹ 12966 करोड़ मूल्य के साइकिल तथा साइकिल के पुों का उत्पादन किया गया। इसमें 78.4 हज़ार लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

प्रश्न 4.
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की मंद प्रगति के दो कारण लिखें।
उत्तर-
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की मंद प्रगति के कारण (Causes of Slow Progress of Medium & Large Scale Industries in Punjab) –
1. खनिज पदार्थों की कमी (Lack of Mineral Resources)-पंजाब में खनिज पदार्थ बिलकुल नहीं मिलते। मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों को काफ़ी मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता होती है। पंजाब में खनिज पदार्थों की कमी के कारण इनको अन्य राज्यों से मंगवाना पड़ता है। इस कारण बड़े तथा मध्यम पैमाने के उद्योगों का विकास नहीं हुआ।

2. सीमावर्ती राज्य (Border State)-पंजाब में मध्यम तथा बड़े आकार के उद्योगों की मंद प्रगति का सबसे बड़ा कारण पंजाब का सीमावर्ती राज्य होना है। पंजाब की सीमाएं पाकिस्तान से मिलती हैं। पाकिस्तान का भारत से हमेशा झगड़ा रहता है। अब तक दो युद्ध हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में उद्यमी इस क्षेत्र में उद्योग स्थापित नहीं करना चाहते।

प्रश्न 5.
पंजाब सरकार द्वारा उद्योगों के विकास के लिए उठाए गए कोई दो कदम बताएं।
उत्तर-
1. करों में छूट (Exemption From Taxes)-नई औद्योगिक नीति में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए करों में छूट देने का कार्यक्रम बनाया गया है। वर्ग A के क्षेत्रों में जो नए उद्योग स्थापित किए जाते हैं उनको बिक्री कर (Sales Tax) से 10 वर्ष के लिए तथा वर्ग B के क्षेत्रों में नए स्थापित उद्योगों के लिए बिक्री कर से 7 वर्ष के लिए छूट दी जाएगी।

2. भूमि के लिए आर्थिक सहायता (Land Subsidy)-नई औद्योगिक नीति में भूमि के लिए आर्थिक सहायता की घोषणा की गई है। कोई भी उद्यमी किसी फोकल प्वाइंट पर भूमि की खरीद उद्योग स्थापित करने के लिए करता है तो भूमि की कीमत का 33% भाग आर्थिक सहायता के रूप में दिया जाएगा। जालन्धर के स्पोर्टस काम्पलैक्स में भूमि के लिए आर्थिक सहायता 25% दी जाएगी।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में औद्योगीकरण की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखें।
अथवा
पंजाब में औद्योगीकरण के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर-
पंजाब में औद्योगीकरण की आवश्यकता निम्नलिखित तत्त्वों से स्पष्ट हो जाती है-
1. संतुलित विकास (Balanced Growth)-पंजाब की अर्थ-व्यवस्था का संतुलित विकास नहीं हुआ क्योंकि पंजाब के अधिकतम लोग कृषि में लगे हुए हैं। इसलिए उद्योगों का विकास आवश्यक है तो जो पंजाब का संतुलित विकास हो सके।

2. रोज़गार में वृद्धि (Increase in Employment)-पंजाब में शहरों तथा गांवों में बेरोज़गारी पाई जाती है। उद्योगों के विकास से पंजाब में शहरी बेरोज़गारी तथा गांवों में छुपी बेरोज़गारी कम होगी। उद्योगों के विकास से पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त की जा सकती है।

3. सरकार की आय में वृद्धि (Increase in Income of Government)-औद्योगीकरण द्वारा भिन्न-भिन्न उद्योगों का विकास होगा। सरकार को करों द्वारा अधिक आय प्राप्त होगी इसको लोगों के कल्याण पर व्यय किया जा सकता है।

4. कृषि पर जनसंख्या के दबाव में कमी (Less Pressure of Population on Agriculture)-पंजाब में 759% जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। इसलिए प्रति व्यक्ति भूमि निरंतर कम हो रही है। उद्योगों के विकास से कृषि से जनसंख्या के दबाव को कम किया जा सकता है।

5. श्रमिकों के जीवन स्तर में वृद्धि (Increase in Standard of Living of Labourers)-पंजाब में औद्योगिक विकास से श्रमिकों की मांग बढ़ेगी परिणामस्वरूप श्रमिकों के व्यय में वृद्धि होगी। इससे श्रमिक ऊँचा जीवन स्तर व्यतीत कर सकेंगे।

प्रश्न 2.
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास के कारण तथा महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास के कारण तथा महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. खनिज पदार्थों की कमी (Lack of Minerals)-पंजाब में खनिज पदार्थ नहीं पाए जाते परिणामस्वरूप बड़े पैमाने के उद्योग विकसित नहीं हो सके। इसलिए छोटे पैमाने के उद्योगों को विकसित किया गया है।
  2. बड़े उद्योगों की कमी (Lack of Large Scale Industries)-पंजाब में बड़े पैमाने के उद्योग बहुत कम हैं। उद्यमी पंजाब में उद्योग स्थापित नहीं करना चाहते क्योंकि यह सीमावर्ती राज्य है। इसलिए बड़े उद्योगों की कमी को छोटे उद्योगों द्वारा पूर्ण किया गया है।
  3. परिश्रमी लोग (Hardworking People)-पंजाब के श्रमिक मेहनती तथा कुशल हैं। इन्होंने छोटे-छोटे उद्योग स्थापित किए हैं जिससे श्रमिकों का जीवन स्तर ऊँचा हो रहा है।
  4. वित्त की कमी (Lack of Finance)-पंजाब में व्यापारिक बैंक तथा वित्तीय संस्थाओं द्वारा वित्त की सहूलतें कम प्रदान की गई हैं जबकि अन्य राज्यों में अधिक सहूलतें प्रदान की जाती हैं। वित्त की कमी के कारण बड़े पैमाने के उद्योग विकसित नहीं हो सके। इसलिए छोटे उद्योगों का महत्त्व बढ़ गया है।
  5. पंजाब सरकार की नीति (Policy of the Punjab Government)-पंजाब सरकार की औद्योगिक नीति में छोटे पैमाने के उद्योगों की तरफ विशेष ध्यान दिया गया है। इसलिए पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योग अधिक विकसित हो गए हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

प्रश्न 3.
पंजाब के छोटे उद्योगों की समस्याओं का वर्णन करें।
अथवा
पंजाब में छोटे उद्योगों के मंद विकास के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
पंजाब में छोटे उद्योगों की मुख्य समस्याएं निम्नलिखित हैं-

  1. वित्त की समस्या (Problem of Finance)-पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों को उचित मात्रा में वित्त प्राप्त नहीं होता। वित्त की कमी के कारण छोटे उद्योगों की विकास की गति मंद है।
  2. उत्पादन के पुराने ढंग (Old Methods of Production)-पंजाब के उद्योगों में पुराने ढंग से उत्पादन किया जाता है। इसलिए उत्पादन कम होता है तथा लागत अधिक आती है।
  3. कच्चे माल की समस्या (Problem of Raw Material)-पंजाब में उद्योगों के लिए कच्चा माल अन्य प्रान्तों से मंगवाना पड़ता है। इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है तथा उत्पादन कम होता है।
  4. बिक्री की समस्याएं (Problems of Marketing)-पंजाब के छोटे उद्योगों को अपना तैयार माल बेचने की समस्या का सामना करना पड़ता है। इन उद्योगों को बड़े उद्योगों द्वारा तैयार माल से मुकाबला करना पड़ता है क्योंकि बड़े पैमाने पर तैयार माल सस्ता तथा बढ़िया होता है। इसलिए छोटे उद्योगों की बिक्री के समय कठिनाई होती है।
  5. शक्ति की समस्या (Problem of Power)-पंजाब सरकार उद्योगों से कृषि को प्राथमिकता देती है। इसलिए समय-समय पर बिजली बंद (Power cut) का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 4.
पंजाब में प्रमुख छोटे पैमाने के उद्योगों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब के प्रमुख छोटे पैमाने के उद्योग निम्नलिखित हैं-
1. हौज़री उद्योग (Hosiery Industry)-पंजाब का हौजरी उद्योग लुधियाना में केन्द्रित है। यह उद्योग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी मशहूर है। 2015-16 में इस उद्योग में 78 हज़ार लोग कार्य करते थे तथा ₹ 3711 करोड़ का माल बनाया जाता था।

2. साइकिल उद्योग (Cycle Industry)-पंजाब में साइकिल उद्योग छोटे तथा बड़े दोनों स्तरों पर कार्य करता है। इस उद्योग में साइकिल तथा इसके पुर्जे बनाए जाते हैं। यह उद्योग लुधियाना, जालन्धर तथा मलेरकोटला में स्थित है। वर्ष 2015-16 में, इसमें 78.4 हज़ार लोगों को रोजगार प्राप्त है। वार्षिक ₹ 12966 करोड़ का माल तैयार किया जाता है।

3. सिलाई मशीन उद्योग (Sewing Machine Industry)-सिलाई मशीन उद्योग पंजाब में लुधियाना, सरहिन्द, बटाला तथा जालन्धर में है। 2015-16 में सिलाई मशीनों के लगभग 57 कारखाने थे। जिनमें 13464 मजदूरों को रोज़गार प्राप्त होता था। इस उद्योग में ₹ 1254 करोड़ का वार्षिक माल तैयार होता था।

4. खेलों का सामान बनाने का उद्योग (Sports Goods Industries)-पंजाब में खेलों का सामान बनाने का उद्योग जालन्धर में है। पंजाब में बनाया गया खेलों का सामान न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी भेजा जाता है। इस उद्योग में 4561 श्रमिकों को रोजगार प्राप्त है। इसमें वार्षिक ₹ 267.57 लाख करोड़ का सामान बनाया जाता है।

प्रश्न 5.
पंजाब में बड़े तथा मध्यम उद्योगों की मंद गति के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
पंजाब में बड़े तथा मध्यम उद्योगों की धीमी गति के कारण निम्नलिखित हैं-
1. खनिज पदार्थों की कमी (Lack of Mineral Resources)-पंजाब में खनिज पदार्थ बिलकुल नहीं मिलते इसलिए मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों ने काफ़ी मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता पड़ती है। पंजाब में खनिज पदार्थ न होने के कारण इनको अन्य राज्यों से मंगवाना पड़ता है। इस कारण बड़े तथा मध्यम पैमाने के उद्योगों का विकास नहीं हुआ।

2. सीमावर्ती राज्य (Border State)-पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने की मंद प्रगति का सबसे बड़ा कारण पंजाब का सीमावर्ती राज्य होना है। पंजाब की सीमाएं पाकिस्तान से मिलती हैं। पाकिस्तान से भारत का हमेशा झगड़ा रहता है। अब तक दो युद्ध हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में उद्यमी इस क्षेत्र में उद्योग स्थापित नहीं करना चाहते।

3. विद्युत् की कमी (Lack of Power)-विद्युत् औद्योगिक विकास के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है। पंजाब में विद्युत् का प्रयोग कृषि में अधिक होता है। किन्तु बड़े उद्योगों के लिए काफ़ी मात्रा में विद्युत् की आवश्यकता होती है। विद्युत् की कमी के कारण बड़े तथा मध्यम उद्योगों की गति मंद है।

4. केन्द्र सरकार का कम योगदान (Less Investment by Central Government)-पंजाब में केन्द्रीय सरकार द्वारा बहुत कम निवेश किया गया है। पंजाब में केन्द्र सरकार का कुल निवेश 2.5% है। परन्तु केन्द्र सरकार ने 75% बिहार में, 12% कर्नाटक में निवेश किया है। इस कारण भी उद्योगों का विकास नहीं हो सका।

IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब के छोटे, मध्य तथा बड़े स्तर के उद्योगों की प्रकृति तथा ढांचे का वर्णन करें। (Explain the nature and structure and small, medium and large scale industries of Punjab.)
अथवा
पंजाब के प्रमुख छोटे आकार के उद्योगों की व्याख्या करें। (Explain the main Small Scale Industries of Punjab.)
उत्तर-
पंजाब का औद्योगिक ढांचा (Structure of Industries in Punjab)-
पंजाब में औद्योगिक ढांचे को दो भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया जा सकता है –
A. छोटे पैमाने के उद्योग (Small Scale Industries)
B. मध्य तथा बड़े पैमाने के उद्योग (Medium & Large Scale Industries)

A. छोटे पैमाने के उद्योग (Small Scale Industries)-वर्ष 1997 के पश्चात् छोटे पैमाने के उद्योगों में उन उद्योगों को शामिल किया जाता है जिनमें ₹ 3 करोड़ तक का निवेश किया होता है। इससे पूर्व स्थिर पूंजी के निवेश की सीमा केवल ₹ 60 लाख थी। पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों का विकास कार्यशील इकाइयां अचल पूंजी उत्पादन-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास 1
सूची पत्र से ज्ञात होता है कि 1978-79 में छोटे पैमाने के उद्योगों की संख्या 0.42 लाख थी जिनमें ₹ 271 करोड़ की अचल पूंजी लगी हुई थी। इन उद्योगों ₹ 751 करोड़ का उत्पादन किया जाता था तथा लगभग 2.50 लाख श्रमिक काम पर लगे हुए थे। वर्ष 2018-19 में छोटे पैमाने के उद्योगों की इकाइयों की संख्या बढ़कर 1.72 लाख हो गई है। इन उद्योगों में ₹ 86324 करोड़ की अचल पूंजी लगी हुई है जिनमें ₹ 201590 करोड़ का उत्पादन किया जाता है। यह उद्योग 16.21 लाख श्रमिकों को रोजगार प्रदान करते हैं।

पंजाब के मुख्य छोटे उद्योग
(Main Small Scale Industries of Punjab)
पंजाब के मुख्य छोटे पैमाने के उद्योग निम्नलिखित हैं-
1. हौज़री उद्योग (Hosiery Industry)-पंजाब का हौज़री उद्योग लुधियाना में केन्द्रित है। यह उद्योग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी मशहूर है। 2018-19 इस उद्योग द्वारा ₹ 3711 करोड़ वार्षिक मूल्य का माल उत्पादित किया जाता है। इसमें 82 हजार लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।

2. साइकिल उद्योग (Cycle Industry)-पंजाब में साइकिल उद्योग छोटे स्तर तथा बड़े स्तर दोनों पर ही कार्य कर रहा है। साइकिल तथा साइकिल के पुर्जे बनाने का उद्योग लुधियाना, जालन्धर, राजपुरा तथा मलेरकोटला में स्थित है। 2018-19 में ₹ 13 हज़ार करोड़ मूल्य के साइकिल तथा साइकिल के पुजों का उत्पादन किया गया। इसमें 88.5 हज़ार लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।

3. सिलाई मशीन उद्योग (Sewing Machine Industry)-सिलाई मशीन बनाने का उद्योग लुधियाना, सरहिन्द, बटाला तथा जालन्धर में स्थित है। 2015-16 पंजाब में सिलाई मशीनों के लगभग 57 कारखाने हैं। इस उद्योग में ₹ 1356 करोड़ का माल हर वर्ष तैयार होता है तथा लगभग 13464 मजदूरों को रोजगार प्राप्त होता है।

4. खेलों का सामान बनाने का उद्योग (Sports Goods Industry)-खेलों का सामान बनाने का उद्योग जालन्धर में केन्द्रित है। पंजाब में तैयार किया खेलों का सामान न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी भेजा जाता है। 2018-19 में इस उद्योग की 529 इकाइयां लगी हुई हैं जिनमें 9561 मजदूरों को रोजगार प्राप्त है। वार्षिक ₹ 276.57 करोड़ का माल तैयार किया जाता है।

5. मोटर गाड़ियों के पुर्जे बनाने का उद्योग (Automobile Industry)-पंजाब में यह उद्योग लुधियाना, जालन्धर, पटियाला तथा कपूरथला में स्थित है। इस उद्योग में मोटर गाड़ियों के पुर्जे तैयार किए जाते हैं। 2019-20 इस उद्योग में ₹ 5022 लाख का माल प्रत्येक वर्ष तैयार किया जाता है। इसमें 52857 श्रमिक कार्य करते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

पंजाब में मध्यम तथा बड़े स्तर के उद्योग (Medium & Large Scale Industries of Punjab)-
जिन उद्योगों में ₹ 10 करोड़ से कम पूँजी लगी होती है उसको मध्य आकार का उद्योग कहा जाता है और जिसमें ₹ 10 करोड़ से अधिक अचल पूंजी लगी होती है, उनको बड़े पैमाने के उद्योग कहा जाता है। पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योग अधिक विकसित नहीं हो सके। इन उद्योगों की स्थिति का विवरण इस प्रकार है|
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योग
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास 2
सूची-पत्र से स्पष्ट होता है कि 1978-79 में पंजाब में मध्यम तथा बड़े आकार के उद्योगों की 188 इकाइयां थीं जिनमें ₹ 379 करोड़ स्की अचल पूंजी लगी हुई थी। उस वर्ष ₹ 711 करोड़ का उत्पादन किया गया था तथा 91 हज़ार लोग रोज़गार पर लगे हुए थे। वर्ष 2017-18 में इन उद्योगों की संख्या बढ़ कर 898 हो गई है जिनमें ₹ 69591 करोड़ की अचल पूंजी लगी हुई है। इन उद्योगों में ₹ 104973 करोड़ का उत्पादन किया गया। इनमें 2.84 लाख श्रमिक कार्य पर लगे हुए थे।

पंजाब के मुख्य मध्यम आकार तथा बड़े पैमाने के उद्योग (Medium & Large Scale Industries of Punjab)
पंजाब के मुख्य मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योग निम्नलिखित हैं-
1. चीनी के कारखाने (Sugar Industry)-पंजाब में चीनी के 17 बड़े कारखाने हैं। यह उद्योग जालन्धर, कपूरथला, संगरूर, फरीदकोट, गुरदासपुर तथा रोपड़ जिलों में स्थित हैं। इस उद्योग में 2018-19 में ₹ 19823 करोड़ चीनी का उत्पादन हुआ। इसमें 5487 व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त था।

2. सूती कपड़े के कारखाने (Cotton Textile Industry)-पंजाब में 2018-19 धागा बनाने के 140 कारखाने हैं। एक कारखाने में धागे से कपड़ा भी बनाया जाता है। यह कारखाने फगवाड़ा, अमृतसर, बरनाला, मलेरकोटला तथा अबोहर में स्थित हैं। इस उद्योग में 16849 श्रमिक कार्य करते हैं। 166.27 मिलियन मीटर कपड़ा वार्षिक तैयार किया जाता है।

3. स्वराज व्हीकलज लिमिटेड (Swaraj Vehicles Limited)-यह कारखाना जनतक क्षेत्र में वर्ष 1985 में ₹ 60 करोड़ की लागत से स्थापित किया गया था। इसमें माल की ढुलाई के लिए टैंपू बनाए जाते हैं। यह कारखाना 9 हज़ार मज़दूरों को रोजगार प्रदान करता है। इसकी स्थापना मोहाली में की गई है।

4. गर्म कपड़े के कारखाने (Wollen Cloth Industry)- पंजाब में गर्म कपड़ा बनाने के कारखाने धारीवाल, और छहरटा अमृतसर में हैं। इस उद्योग में 1 लाख 8 हज़ार श्रमिकों को रोजगार प्राप्त है। इसमें वार्षिक ₹ 354 करोड़ का माल तैयार किया जाता है।

प्रश्न 2.
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों के विकास को स्पष्ट करें। पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की मंद प्रगति के क्या कारण हैं ?
(Explain the development medium and Large Scale Industries in Punjab. What are the cause of slow progress of medium and Large Scale Industries ?)
उत्तर-
पंजाब में मध्यम तथा बड़े आकार के उद्योग अधिक विकसित नहीं हो सके। इन उद्योगों के विकास का अनुमान निम्नलिखित सूची-पत्र द्वारा लगाया जा सकता है|
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योग-

वर्ष कार्यशील इकाइयां(करोड़ ₹) अचल पूंजी (लाख ₹) उत्पादन रोज़गार (लाख में)
1978-79 188 379 711 0.91
2018-19 898 69591 104973 2.84

2.84 सूची-पत्र से ज्ञात होता है कि वर्ष 2018-19 में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की संख्या 469 है। इन उद्योगों में ₹ 69591 करोड़ की अचल पूंजी लगी हुई है। इनमें उत्पादन ₹ 104973 लाख का किया गया। यह उद्योग 2.84 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करता है परन्तु अन्य औद्योगिक राज्यों जैसे कि महाराष्ट्र, कर्नाटक इत्यादि की तरह पंजाब में इन उद्योगों की प्रगति बहुत कम रही है। मध्यम तथा बड़े उद्योगों की कम प्रगति के मुख्य कारण निम्नलिखित अनुसार हैं-

पंजाब में मध्यम तथा बडे पैमाने के उद्योगों की मंद प्रगति के कारण (Causes of Slow Progress of Medium & Large Scale Industries in Punjab)-
1. खनिज पदार्थों की कमी (Lack of Mineral Resources)-पंजाब में खनिज पदार्थ बिलकुल नहीं मिलते। मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों को काफ़ी मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता होती है। पंजाब में खनिज पदार्थों की कमी के कारण इनको अन्य राज्यों से मंगवाना पड़ता है। इस कारण बड़े तथा मध्यम पैमाने के उद्योगों का विकास नहीं हुआ।

2. सीमावर्ती राज्य (Border State)-पंजाब में मध्यम तथा बड़े आकार के उद्योगों की मंद प्रगति का सबसे बड़ा कारण पंजाब का सीमावर्ती राज्य होना है। पंजाब की सीमाएं पाकिस्तान से मिलती हैं। पाकिस्तान का भारत से हमेशा झगड़ा रहता है। अब तक दो युद्ध हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में उद्यमी इस क्षेत्र में उद्योग स्थापित नहीं करना चाहते।

3. विद्युत् की कमी (Lack of Power)-विद्युत् औद्योगिक विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। पंजाब में विद्युत् का प्रयोग कृषि क्षेत्र में अधिक होता है। बड़े उद्योगों के लिए अधिक मात्रा में विद्युत् की आवश्यकता होती है किन्तु विद्युत् की कमी के कारण मध्यम तथा बड़े स्तर के उद्योगों की प्रगति धीमी है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 34 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

4. केन्द्रीय सरकार का कम योगदान (Less Investment by Central Government)-पंजाब में केन्द्रीय सरकार द्वारा बहुत कम निवेश किया गया है। पंजाब में केन्द्र सरकार का कुल निवेश 2.5% है। परन्तु केन्द्र सरकार ने 15% निवेश बिहार में, 12% निवेश कर्नाटक में लगाया है। इस कारण भी पंजाब में उद्योगों का विकास नहीं हो सका।

5. कृषि प्रधान अर्थ-व्यवस्था (Agricultural Economy)-पंजाब कृषि प्रधान राज्य है। राज्य सरकार ने भी पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि के विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया है। उद्योगों के विकास को आंखों से ओझल किया गया है। कृषि का महत्त्व अधिक होने के कारण लघु पैमाने के उद्योगों को प्राथमिकता दी गई ताकि रोज़गार के अधिक अवसर उपलब्ध हो सकें।

6. पूंजी की कमी (Lack of Capital)-बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। पंजाब में पूंजी की कमी है क्योंकि सरकार की आंतरिक सुरक्षा पर बहुत व्यय करना पड़ता है। इसलिए निवेश करने के लिए पूंजी की कमी है। निजी क्षेत्र के उद्योग विकसित नहीं हुए क्योंकि ब्याज की दर बहुत अधिक है। इसलिए मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों में निवेश कम हुआ है।

7. औद्योगिक लड़ाई-झगड़े (Industrial Disputes)-पंजाब में अगर स्वतन्त्रता के पश्चात् औद्योगिक विकास में वृद्धि हुई है तो इससे औद्योगिक लड़ाई-झगड़े भी बढ़ गए हैं। तालाबंदी, हड़ताल आम नज़र आती है। इस कारण उत्पादन लागत बढ़ जाती है।

प्रश्न 3.
पंजाब सरकार की आधुनिक उद्योग नीति का वर्णन करें। (Explain the new Industrial Policy of Government of Punjab.)
उत्तर-
पंजाब सरकार की नई औद्योगिक नीति (New Industrial Policy of Government of Punjab)-
पंजाब में औद्योगिक विकास के लिए औद्योगिक नीति की घोषणा 16 फरवरी, 1972 को की गई। इसके पश्चात् सरकार ने 1979, 1987, 1989, 1991 में औद्योगिक नीति में परिवर्तन किए। पंजाब सरकार की नई औद्योगिक नीति की घोषणा 14 मार्च, 1996 में की गई। नई औद्योगिक नीति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
1. मुख्य उद्देश्य (Main Objectives)-

  • औद्योगिक विकास की दर में वृद्धि करके 12% की जाएगी।
  • राज्य के घरेलू उत्पादन में उद्योगों का भाग बढ़ाकर 25% किया जाएगा।
  • उद्योगों के विकास के लिए आवश्यक ढांचा अर्थात् सड़कें, विद्युत्, वित्त, श्रमिक, कच्चे माल की पूर्ति के लिए सहूलतें दी जाएंगी।
  • ग्रामीण बेरोज़गारों को उद्योगों तथा सम्बन्धित उद्यमों में रोजगार की सहूलतें दी जाएंगी।
  • पंजाब में पर्यटन को उद्योग का दर्जा दिया जाएगा।
  • पंजाब के छोटे, मध्यम तथा बड़े स्तर के उद्योगों के लिए फोकल प्वाइंट्स स्थापित किए जाएंगे।
  • निर्यात को उत्साहित करने के लिए नई मण्डियाँ ढूंढ़ी जाएंगी।
  • आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया जाएगा।
  • नए उद्योग स्थापित किए जाएंगे तथा पुराने स्थापित उद्योगों का नवीनीकरण तथा आधुनिकीकरण किया जाएगा।
  • छोटे स्तर के उद्योगों को विकसित करके रोजगार के अधिक अवसर प्रदान किए जाएंगे।

2. विकास क्षेत्र (Growth Areas)-पंजाब के भिन्न-भिन्न जिलों को औद्योगिक विकास के पक्ष से चार वर्गों में विभाजित किया गया-

  1. वर्ग A (Category A)-इस वर्ग में शामिल किए गए क्षेत्रों को सबसे अधिक रियायतें देने की घोषणा की गई। इसमें अमृतसर, गुरदासपुर, फिरोजपुर, फरीदकोट तथा मानसा के ज़िले शामिल किए गए हैं।
  2. वर्ग B (Category B)-इस वर्ग में जिन क्षेत्रों में शामिल किया गया है उनको वर्ग A के क्षेत्रों से कम रियायतें दी जाएंगी। इस वर्ग में राज्य के अन्य जिलों को शामिल किया गया है।
  3. वर्ग C (Category C)-इस वर्ग में लुधियाना तथा जालन्धर के फोकल प्वाइंट्स छोड़ कर पंजाब के सब फोकल प्वाइंट्स को शामिल किया गया है। फोकल प्वाइंट्स पर अधिक-से-अधिक उद्योग स्थापित करने के प्रयत्न किए जाएंगे।
  4. वर्ग D (Category D) इस वर्ग में शामिल उद्योगों को कोई प्रोत्साहन तथा अनुदान नहीं दिया जाएगा। इस वर्ग में जालन्धर तथा लुधियाना की निगम सीमाओं के फोकल प्वाइंट्स तथा उनके ब्लाकों को शामिल किया गया है। वर्ग A तथा वर्ग B के क्षेत्रों को बहुत-सी रियायतों की घोषणा की गई है ताकि पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों का विकास हो सके।

3. कृषि आधारित उद्योगों का विकास (Incentives to Agro Based Industries)-पंजाब कृषि प्रधान राज्य है। इसलिए कृषि विकास को बनाए रखने के लिए उन उद्योगों को विकसित किया जाएगा जिनके लिए कच्चा माल कम कीमत पर राज्य में से ही प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे उद्योगों को 10 वर्ष के लिए बिक्री कर से मुक्त किया गया है। ऋण पर ब्याज का 5% भाग सरकार द्वारा दिया जाएगा तथा स्थायी पूंजी का 30% भाग आर्थिक सहायता के रूप में दिया जाएगा जो कि अधिकतम 50 लाख रुपए तक हो सकती है।

4. करों में छूट (Exemption From Taxes)-नई औद्योगिक नीति में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए करों में छूट देने का कार्यक्रम बनाया गया है। वर्ग A के क्षेत्रों में जो नए उद्योग स्थापित किए जाते हैं उनको बिक्री कर (Sales Tax) से 10 वर्ष के लिए तथा वर्ग B के क्षेत्रों में नए स्थापित उद्योगों के लिए बिक्री कर से 7 वर्ष के लिए छूट दी जाएगी।

5. भूमि के लिए आर्थिक सहायता (Land Subsidy)-नई औद्योगिक नीति में भूमि के लिए आर्थिक सहायता की घोषणा की गई है। कोई भी उद्यमी किसी फोकल प्वाइंट पर भूमि की खरीद उद्योग स्थापित करने के लिए करता है तो भूमि की कीमत का 33% भाग आर्थिक सहायता के रूप में दिया जाएगा। जालन्धर के स्पोर्टस काम्पलैक्स में भूमि के लिए आर्थिक सहायता 25% दी जाएगी।

6. छोटे उद्योगों का आधुनिकीकरण (Modernisation of Small Scale Industries)-पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों को विकसित करने के लिए एक विशेष फंड की स्थापना की गई है। जो उद्यमी पुराने स्थापित किए यूनिटों का आधुनिकीकरण करना चाहते हैं उनको विशेष आर्थिक सहायता दी जाएगी।

7. मध्यम तथा बड़े उद्योगों को प्रोत्साहन (Incentives to medium & Large Scale Industries)-नई औद्योगिक नीति में यह घोषणा भी की गई कि वर्ग A के क्षेत्रों में जो उद्यमी निवेश करते हैं उनके द्वारा किए गए बड़े स्तर के उद्योगों पर अचल पूंजी पर आर्थिक सहायता दी जाएगी जहां तक A तथा B वर्ग में स्थापित उद्योगों का सम्बन्ध है अगर वहां पुराने उद्योगों का विस्तार करना चाहते हैं तो मध्यम तथा बड़े उद्योगों के विस्तार पर आर्थिक सहायता दी जाएगी।

8. पर्यटन उद्योग को प्रोत्साहन (Incentive to Tourism)-नई औद्योगिक नीति के अनुसार पंजाब में पर्यटन उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए उद्योग का दर्जा दिया गया है। पर्यटन उद्योग को वह सब सहूलतें दी जाएंगी जो अन्य साधारण उद्योगों को दी जाती हैं।

9. इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं की इकाइयों को विशेष छूट (Special Incentive to Electronics Units)-पंजाब में जो इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं का उत्पादन करने वाली इकाइयों को लगाया जाएगा उन उद्योगों को पूंजी निवेश के सम्बन्ध में आर्थिक सहायता तथा बिक्री कर की छूट दी जाएगी। इन उद्योगों को चुंगी करों में भी 6 वर्ष के लिए छूट देने के लिए कहा गया है।

10. ऊर्जा सुविधाएं (Power Facilities)-पंजाब में जो ओद्योगिक इकाइयां लगाई जाएंगी उनको बिजली कनेक्शन में प्राथमिकता दी जाएगी। ऐसी इकाइयों को पांच साल के लिए बिजली कर से मुक्त रखा जाएगा तथा जेनरेटिंग सैंट लगाने पर 25% की आर्थिक सहायता दी जाएगी।

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11. भूमि के लिए आर्थिक सहायता (Land Subsidy)-पंजाब में जो नई औद्योगिक इकाइयां लगाई जाएंगी उनको भूमि की खरीद में आर्थिक सहायता दी जाएगी। यदि यह इकाइयां फोकल प्वाइंट्स पर लगाई जाती हैं तो भूमि की खरीद में 33 प्रतिशत आर्थिक सहायता दी जाएगी।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

PSEB 12th Class Economics 1966 से पंजाब में कृषि का विकास Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब की किसी एक व्यापारिक फसल का वर्णन करें।
उत्तर-
गन्ना (Sugarcane)-पंजाब में गन्ना फरवरी-अप्रैल में बोआ जाता है। गन्ने की फसल जनवरी-अप्रैल में काटी जाती है। पंजाब में गन्ना सभी जिलों में पैदा किया जाता है।

प्रश्न 2.
पंजाब में हरित क्रान्ति का कोई एक कारण बताएं।
उत्तर-
पंजाब में हरित क्रान्ति के कारण इस प्रकार हैं नई कृषि नीति-पंजाब में नई कृषि नीति में उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक, आधुनिक मशीनों तथा सिंचाई की सहूलतों में वृद्धि की गई है।

प्रश्न 3.
पंजाब को भारत का अनाज भण्डार क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
2018-19 में पंजाब द्वारा केन्द्रीय भण्डार में गेहूं का योगदान 35% तथा चावल का योगदान 25% रहा।

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प्रश्न 4.
पंजाब कृषि में पिछड़ा प्रान्त है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 5.
पंजाब में 2019-20 में कुल उपज 315 लाख मीट्रिक टन हुई।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 6.
पंजाब में कृषि विकास का कारण ……………..
(a) सिंचाई के साधन
(b) मेहनती लोग
(c) हरित क्रान्ति
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति का कोई दोष नहीं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 8.
पंजाब को भारत के अनाज का ………………… कहा जाता है।
उत्तर-
अन्न भण्डार।

प्रश्न 9.
पंजाब की दो खाद्य फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
(i) गेहूँ,
(ii) चावल।

प्रश्न 10.
पंजाब की दो व्यापारिक फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
(i) कपास,
(ii) गन्ना।

प्रश्न 11.
पंजाब में अधिक कृषि उत्पादन के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर-
(i) सिंचाई का विस्तार,
(ii) आधुनिक खाद्य तथा बीजों का प्रयोग।

प्रश्न 12.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हरित क्रान्ति का अर्थ है कृषि पैदावार में होने वाली भारी वृद्धि जो कि नई कृषि नीति के अपनाने से प्राप्त है।

प्रश्न 13.
पंजाब में हरित क्रान्ति का कोई एक कारण बताएं।
उत्तर-
पंजाब में नई कृषि नीति के कारण उचित बीजों और रासायनिक खादों का प्रयोग करने के कारण हरित क्रान्ति प्राप्त होती है।

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प्रश्न 14.
पंजाब में सिंचाई के मुख्य तीन साधन बताएं।
उत्तर-

  • नहरें,
  • ट्यूबवैल,
  • कुएँ।

प्रश्न 15.
हरित क्रान्ति के मुख्य दोष बताएँ।
उत्तर-
हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप हवा और पानी के प्रदूषण के कारण, कैंसर का रोग फैल गया है।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में सिंचाई की स्थिति तथा महत्त्व स्पष्ट करें।
उत्तर-
कृषि के विकास के लिए सिंचाई का महत्त्व बहुत अधिक है। पंजाब में वर्ष 1966 के पश्चात् सिंचाई सुविधाओं में काफ़ी वृद्धि हुई है। 1965-66 में 26.46 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सहूलतें प्राप्त थी जो कि कुल क्षेत्र का 56% भाग था। वर्ष 2015-16 में सिंचाई के अधीन क्षेत्र बढ़कर 41.37 लाख हेक्टेयर हो गया है जोकि कुल कृषि के अधीन क्षेत्र का 97.4% भाग है। पंजाब में लुधियाना, जालन्धर, पटियाला, भटिंडा, अमृतसर, फिरोज़पुर तथा फरीदकोट जिलों में सिंचाई की अधिक सुविधाएं हैं। किन्तु रोपड़ तथा नवांशहर में सिंचाई की सुविधाओं की कमी है। बारहवीं योजना में सिंचाई सुविधाओं पर 1052 करोड़ रुपये व्यय किए गए।

प्रश्न 2.
पंजाब में कृषि विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
पंजाब में कृषि विकास की प्रकृति निम्नलिखित तत्त्वों द्वारा स्पष्ट हो जाती है-
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि-पंजाब में कृषि उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि हुई है। कुल अनाज का उत्पादन 1965-66 में 33 लाख टन था। 2019-20 में अनाज का उत्पादन बढ़कर 315 लाख मीट्रिक टन हो गया है। अनाज के उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि को हरित क्रान्ति (Green Revolution) कहा जाता है।

2. उन्नत कृषि-पंजाब की कृषि बहुत उन्नत तथा अधिक प्रगतिशील है। पंजाब को प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भारत की औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादकता से अधिक है। पंजाब में वर्ष 1965-66 में गेहूँ की उत्पादकता 1236 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की उत्पादकता 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। 2019-20 में गेहँ की उत्पादकता बढकर 5188 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की 4132 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है।

प्रश्न 3.
पंजाब में हरित क्रान्ति के मुख्य दोष बताएं।
अथवा
पंजाब में हरित क्रान्ति के दुष्प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में हरित क्रान्ति के केवल अच्छे प्रभाव ही नहीं पड़े बल्कि इसके कुछ दुष्प्रभाव भी पड़े हैं जोकि इस प्रकार हैं –

  1. असंतुलित विकास की समस्या-हरित क्रान्ति का मुख्य दोष यह है कि समूचे राज्य में एक समान संतुलित विकास नहीं हुआ। कुछ जिले उत्पादन क्षेत्र में आगे बढ़ गए हैं जबकि कुछ जिलों में कृषि का विकास कम हुआ है। जैसे कि फरीदकोट, भटिंडा, फिरोज़पुर में कृषि विकास अधिक हुआ है।
  2. बेरोज़गारी की समस्या-हरित क्रान्ति से बेरोज़गारी की समस्या उत्पन्न हुई है। गांवों में भूमिहीन श्रमिकों में बेरोज़गारी बढ़ गई है इसलिए रोज़गार की तलाश में प्रतिदिन शहरों में आते हैं।

प्रश्न 4.
पंजाब में हरित क्रान्ति का अर्थ बताएं।
उत्तर-
हरित क्रान्ति का अर्थ (Meaning of Green Revolution)-प्रो० एफ० आर० फ्रैक्ल के अनुसार, “हरित क्रान्ति एक सुन्दर नारा है जिसके द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि विज्ञान तथा तकनीकी विकास द्वारा कृषि के क्षेत्र में शान्तिपूर्वक रूपान्तर किया जा सकता है अथवा क्रान्ति लाई जा सकती है।” हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली वृद्धि से है जो कृषि में नई नीति के अपनाने के कारण हुआ है। इसलिए हम कह सकते हैं कि कृषि के क्षेत्र में जो थोड़े समय में असाधारण विकास तथा वृद्धि हुई है, उसको हरित क्रान्ति कहा जाता है। पंजाब में 1965-66 में 33 लाख टन कृषि उत्पादन किया गया जो कि 2019-20 में बढ़कर 315 लाख मीट्रिक टन हो गया है।

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III. लयु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में सिंचाई के भिन्न-भिन्न साधन कौन-से हैं ? पंजाब में सिंचाई क्षेत्र के विस्तार के कारण बताएं।
उत्तर-
कृषि के विकास के लिए सिंचाई का महत्त्व बहुत अधिक है। पंजाब में वर्ष 1966 के पश्चात् सिंचाई सुविधाओं में काफ़ी वृद्धि हुई है। वर्ष 2019-20 में सिंचाई के अधीन क्षेत्र बढ़कर 29% हो गया है जोकि कुल कृषि के अधीन क्षेत्र का 97.96% भाग है। पंजाब में लुधियाना, जालन्धर, पटियाला, भटिंडा, अमृतसर, फिरोज़पुर तथा फरीदकोट जिलों में सिंचाई की अधिक सुविधाएं हैं। किन्तु रोपड़ तथा नवांशहर में सिंचाई की सुविधाओं की कमी है। बारहवीं योजना में सिंचाई सुविधाओं पर ₹ 493564 करोड़ व्यय किए गए।

सिंचाई के साधन (Means of Irrigation)-पंजाब में सिंचाई के साधन निम्नलिखित हैं-
1. नहरें (Canals)-पंजाब में कुल सिंचाई क्षेत्र के 43% भाग में नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है। यह सिंचाई का मुख्य साधन है। पंजाब की मुख्य नहरें-

  • भाखड़ा-नंगल नहर
  • अपर बारी दोआब नहर
  • सरहिन्द नहर
  • बिस्त दोआब नहर
  • बीकानेर नहर
  •  शाह नहर इत्यादि हैं।

इन नहरों के अतिरिक्त पंजाब में सतलुज यमुना लिंक, थीन डैम, कंडी नहर, शाह नहर, फीडर, मेलवाहा डैम तथा राष्ट्रीय परियोजना पर कार्य चल रहा है।

2. ट्यूबवैल (Tubewell) पंजाब में 50% क्षेत्र पर ट्यूबवैलों द्वारा सिंचाई की जाती है। इस समय 2019-20 में लगभग 14.76 लाख ट्यूबवैल हैं जिनमें से 13.36 लाख ट्यूबवैल विद्युत् से तथा शेष डीज़ल से चलते हैं।

3. कुएँ (Wells)-पंजाब में पहले कुओं का महत्त्व अधिक था। परन्तु अब कुओं का स्थान ट्यूबवैलों ने ले लिया है किन्तु कुछ क्षेत्रों में आज भी कुओं द्वारा सिंचाई की जाती है।

इसके अतिरिक्त तालाब इत्यादि साधनों द्वारा भी सिंचाई की जाती है। फरीदकोट जिले में सिंचाई का मुख्य साधन नहरें हैं। इसके अतिरिक्त फिरोज़पुर, अमृतसर तथा लुधियाना ज़िलों में भी नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है। ट्यूबवैल लगभग सभी जिलों में सिंचाई के साधन हैं किन्तु संगरूर जिले में ट्यूबवैल सबसे अधिक हैं।

प्रश्न 2.
पंजाब में कृषि विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
पंजाब में कृषि विकास की प्रकृति निम्नलिखित तत्त्वों द्वारा स्पष्ट हो जाती है-
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि-पंजाब में कृषि उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि हुई है। कुल अनाज का उत्पादन 1965-66 में 33 लाख टन था। 2019-20 में अनाज का उत्पादन बढ़कर 315 लाख मीट्रिक टन हो गया है। अनाज के उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि को हरित क्रान्ति (Green Revolution) कहा जाता है।

2. उन्नत कृषि-पंजाब की कृषि बहुत उन्नत तथा अधिक प्रगतिशील है। पंजाब को प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भारत की औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादकता से अधिक है। पंजाब में वर्ष 1965-66 में गेहूँ की उत्पादकता 1236 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की उत्पादकता 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। 2019-20 में गेहूँ की उत्पादकता बढ़कर 5188 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की 4132 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है।

3. कृषि की उन्नत विधि-पंजाब में कृषि करने की उन्नत विधियों का प्रयोग किया गया है। पंजाब में 2019-20 में गेहूँ तथा चावल के अधीन 100% क्षेत्रफल नए बीजों के प्रयोग से बोआ गया है। मक्की अधीन 90% तथा बाजरे अधीन 60% क्षेत्रफल नए बीजों के प्रयोग द्वारा बोआ गया था।

4. व्यापारिक कृषि-पंजाब में कृषि जीवन निर्वाह के लिए नहीं की जाती बल्कि उत्पादन को मण्डियों में बेचकर अधिक लाभ प्राप्त करने का यत्न किया जाता है। इसलिए कृषि विकास के परिणामस्वरूप व्यापारिक कृषि का प्रचलन हो गया है।

प्रश्न 3.
पंजाब में हरित क्रान्ति के मुख्य दोष बताएं।
अथवा
पंजाब में हरित क्रान्ति के दुष्प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में हरित क्रान्ति के केवल अच्छे प्रभाव ही नहीं पड़े बल्कि इसके कुछ दुष्प्रभाव भी पड़े हैं जोकि इस प्रकार हैं-

  1. असंतुलित विकास की समस्या–हरित क्रान्ति का मुख्य दोष यह है कि समूचे राज्य में एक समान संतुलित विकास नहीं हुआ। कुछ ज़िले उत्पादन क्षेत्र में आगे बढ़ गए हैं जबकि कुछ जिलों में कृषि का विकास कम हुआ है। जैसे कि फरीदकोट, भटिंडा, फिरोजपुर में कृषि विकास अधिक हुआ है।
  2. बेरोज़गारी की समस्या–हरित क्रान्ति से बेरोज़गारी की समस्या उत्पन्न हुई है। गांवों में भूमिहीन श्रमिकों में बेरोज़गारी बढ़ गई है इसलिए रोज़गार की तलाश में प्रतिदिन शहरों में आते हैं।
  3. अधिक व्यय की समस्या-हरित क्रान्ति के कारण कृषि में प्रयोग होने वाले साधनों की लागत बहुत अधिक हो गई है। छोटे किसान आधुनिक मशीनों, उर्वरकों तथा नए उन्नत बीजों का प्रयोग नहीं कर सकते।
  4. अमीर किसानों को लाभ-हरित क्रान्ति का लाभ बड़े अमीर किसानों को हुआ है। इससे अमीर किसान और अमीर हो गए हैं। निर्धन किसानों की हालत और बिगड़ गई है। इस प्रकार अमीर तथा गरीब किसानों में असमानता बढ़ गई है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वर्ष 1966 से पंजाब की कृषि के विकास की प्रकृति की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(Explain the main features of the nature of Agricultural development in Punjab Since 1966.)
उत्तर-
पंजाब में कृषि विकास की प्रकृति (Nature of Agricultural Development in Punjab)पंजाब का पुनर्गठन 1 नवम्बर, 1966 को भाषा के आधार पर किया गया। इसके पश्चात् पंजाब की कृषि में तकनीकी क्रान्ति का आरम्भ हुआ, जिसको हरित क्रान्ति कहा जाता है। डॉ० आर० एस० जौहर तथा परमिन्द्र के अनुसार, “पंजाब में विशेषतया छठे दशक के मध्य से नई कृषि तकनीक के कारण तीव्रता से रूपांतर हुआ है।” (“The Punjab Agriculture underwent a rapid transformation particularly after the mid sixties in the wake of new farm Technology.” -Dr. R.S. Johar & Parminder Singh)
पंजाब में खनिज पदार्थ प्राप्त नहीं होते। कृषि ही अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। पंजाब की कृषि विकास की प्रकृति का अनुमान निम्नलिखित तत्त्वों से लगाया जा सकता है –
1. उन्नत कृषि (Progressive Agriculture)-पंजाब की कृषि देश के अन्य राज्यों की तुलना में उन्नत तथा प्रगतिशील है। पंजाब में पैदा होने वाली मुख्य फसलों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन भारत की उत्पादन शक्ति से बहुत अधिक है। वर्ष 2019-20 में पंजाब में गेहूँ तथा चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्रमानुसार 5188 किलोग्राम तथा 4132 किलोग्राम था।

2. आर्थिक विकास का आधार (Basis of Economic Development) पंजाब में कृषि आर्थिक विकास का मुख्य आधार बन गई है। वर्ष 1980-81 में पंजाबी कुल आय 5,025 करोड़ में कृषि का योगदान ₹ 2,422 करोड़ था। 2019-20 में पंजाब की आय ₹ 644321 करोड़ हो गई है जिसमें कृषि का योगदान 68% है। इस प्रकार पंजाब के आर्थिक विकास में कृषि आर्थिक विकास का मुख्य साधन है।

3. कृषि का मशीनीकरण (Mechanised Agriculture)-पंजाब की कृषि में मशीनों का योगदान दिन प्रतिदिन बढ़ा है। पंजाब में ट्रैक्टर, हारवैस्टर, ट्यूबवैल आम नज़र आते हैं। राज्य में 85% बोए गए शुद्ध क्षेत्रफल पर एक से अधिक बार फसलें उगाई जाती हैं परिणामस्वरूप कृषि की उत्पादन शक्ति में वृद्धि हुई है।

4. कृषि साधनों का उत्तम प्रयोग (Proper Utilisation of Agricultural Resources)-पंजाब में कृषि के साधनों का उत्तम प्रयोग किया जाता है। कृषि के लिए उचित मिट्टी तथा जलवायु की आवश्यकता होती है। पंजाब में धरती समतल है। इसमें दोमट मिट्टी प्राप्त होती है जो कि फसलों की बोआई के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। पंजाब में जल के लिए तीन नदियां सतलुज, ब्यास तथा रावी बहती हैं। इसलिए गहन कृषि की जाती है। वर्ष में एक-से-अधिक फसलें प्राप्त की जाती हैं।

5. कृषि का अधिक उत्पादन (More Agricultural Production)-पंजाब में कृषि का उत्पादन बहुत अधिक होता है। यह उत्पादन न केवल पंजाब राज्य की आवश्यकताएं पूर्ण करता है बल्कि देश के लिए अन्न भण्डार का साधन है। 1966 के पश्चात् हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप पंजाब में उत्पादन शक्ति में बहुत वृद्धि हुई है। 1965-66 में चावल का उत्पादन 292 हज़ार टन किया गया जो 2019-20 में बढ़ कर 315 लाख टन हो गया है।

6. मुख्य फसलें (Main Crops)-पंजाब की कृषि मुख्यतः दो फसलों गेहूँ तथा चावल पर निर्भर है। पंजाब में बोए गए कुल क्षेत्र का 70% गेहूँ तथा चावल के लिए प्रयोग किया जाता है जबकि अन्य फसलों में वृद्धि सन्तोषजनक नहीं है।

7. व्यापारिक कृषि (Commercial Agriculture)-पंजाब की कृषि अब केवल जीवन निर्वाह कृषि नहीं है बल्कि कृषि उत्पादन आवश्यकता से अधिक प्राप्त किया जाता है जिसको बाज़ार में बेच कर अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए यत्न किए जाते हैं अर्थात् पंजाब की कृषि व्यापारिक कृषि हो गई है।

8. रोज़गार का साधन (Source of Employment)-पंजाब की कृषि में प्रत्यक्ष तौर पर 65.5% जनसंख्या निर्भर करती है जिसमें कुल कार्यशील जनसंख्या का 56% भाग कृषि में कार्य करता है। इस प्रकार कृषि तथा इससे सम्बन्धित उद्योग राज्य के लोगों को रोज़गार की सुविधाएं प्रदान करते हैं।

प्रश्न 2.
पंजाब में हरित क्रान्ति के क्या कारण हैं ? इसकी सफलताओं अथवा प्रभावों की व्याख्या करें।
(What are the causes of Green Revolution in Punjab ? Discuss the achievements and effects of Green Revolution.)
अथवा
नए कृषि ढांचे से क्या अभिप्राय है ? इसके कारण तथा प्राप्तियों को स्पष्ट करें। (What is new Agricultural Strategy ? Explain its causes and achievements.)
उत्तर-
पंजाब का 1 नवम्बर, 1966 को पुनर्गठन किया गया है। इस समय में नए कृषि ढांचे (New Agicultural Strategy) को अपनाया गया है। इसके परिणामस्वरूप पंजाब में कृषि का उत्पादन बहुत बढ़ गया तथा हरित क्रान्ति उत्पन्न हुई।

हरित क्रान्ति का अर्थ (Meaning of Green Revolution)-प्रो० एफ० आर० फ्रैक्ल के अनुसार, “हरित क्रान्ति एक सुन्दर नारा है जिसके द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि विज्ञान तथा तकनीकी विकास द्वारा कृषि के क्षेत्र में शान्तिपूर्वक रूपान्तर किया जा सकता है अथवा क्रान्ति लाई जा सकती है।” हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली वृद्धि से है जो कृषि में नई नीति के अपनाने के कारण हुआ है। इसलिए हम कह सकते हैं कि कृषि के क्षेत्र में जो थोड़े समय में असाधारण विकास तथा वृद्धि हुई है, उसको हरित क्रान्ति कहा जाता है। पंजाब में 1965-66 में 33 लाख टन कृषि उत्पादन किया गया जो कि 2019-20 में बढ़ कर 315.35 लाख मीट्रिक टन हो गया है।

हरित क्रान्ति के कारण (Causes of Green Revolution)-पंजाब में हरित क्रान्ति के मुख्य कारण इस प्रकार हैं
1. भमि सधार (Land Reform)-पंजाब में कृषि क्षेत्र में कई प्रकार के सुधार किए गए हैं। जैसे कि भूमि की चकबन्दी की गई है। छोटे-छोटे टुकड़ों को एक स्थान पर एकत्रित किया गया है। सिंचाई साधनों का विस्तार तथा मशीनों के प्रयोग के कारण हरित क्रान्ति के लिए भूमिका तैयार की गई है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

2. कृषि अधीन क्षेत्रों का विस्तार (Extent in area Under Cultivation)-पंजाब में कृषि अधीन क्षेत्र में काफ़ी वृद्धि हुई है। 1965-66 में 38 लाख हेक्टेयर भूमि कृषि अधीन थी जोकि 2019-20 में बढ़ कर 80 लाख हेक्टेयर की गई है।

3. कृषि का मशीनीकरण (Mechanisation of Agriculture)-कृषि में आधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जाता है जैसे कि ट्रैक्टर, कंबाइन, हारवैस्टर, डीज़ल इंजन इत्यादि यन्त्रों का प्रयोग होने के कारण उत्पादन शक्ति में बहुत वृद्धि हुई है 1966-67 में पंजाब में 10,000 ट्रैक्टर थे जिनकी संख्या 2019-20 में बढ़कर 5.15 लाख हो गई है।

4. उन्नत बीज (High yielding varieties of seeds)-पंजाब में हरित क्रान्ति का एक और कारण उन्नत बीजों का अधिक प्रयोग किया जाना है। गेहूँ, चावल, बाजरा, मक्की तथा ज्वार की फसलों के लिए बीजों की उन्नत किस्में बनाई गई हैं। गेहूं तथा चावल के लिए 100%, मक्की के लिए 90% तथा बाजरे के लिए 60% अधिक पैदावार देने वाले बीजों का प्रयोग 1999-2000 में किया गया।

5. रासायनिक उर्वरक (Fertilizers)-पंजाब में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण अनाज के उत्पादन में काफ़ी वृद्धि हुई है। हरित क्रान्ति आने का एक कारण उर्वरकों का अधिक प्रयोग करना है। 1966-67 में 51 हज़ार टन रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया गया था। 2019-20 में 1750 हजार टन रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया गया है।

6. सिंचाई (Irrigation)-पंजाब में सिंचाई की अधिक सहूलतों के कारण हरित क्रान्ति पर बहुत प्रभाव पड़ा है। पंजाब में सारा वर्ष चलने वाले तीन दरिया सतलुज, ब्यास तथा रावी हैं जिनसे विद्युत् पैदा की जाती है तथा सिंचाई के लिए नहरें निकाली गई है। ट्यूबवैल, कुएं तथा तालाब की सिंचाई के साधन हैं। 1965-66 में 59% क्षेत्र पर सिंचाई की जाती थी। 2019-20 में 78.3 लाख हैक्टर क्षेत्र पर सिंचाई की जाती है।

7. साख सहूलतें (Credit Facilities) हरित क्रान्ति के लिए साख सहूलतों का योगदान बहुत अधिक है। 1967-68 में सहकारी समितियों द्वारा ₹ 75 करोड़ की साख सहूलतें प्रदान की गई थीं जो कि 2019-20 में बढ़ कर ₹ 6515 करोड़ हो गई हैं।

8. खोज (Research)-पंजाब में कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना में खोज का कार्य किया जाता है। कृषि यूनिवर्सिटी में नए बीज, भूमि की परख, उर्वरकों का प्रयोग, कीट नाशक दवाइयों के प्रयोग सम्बन्धी अल्प अवधि के कोर्स आरम्भ किए जाते हैं। इससे किसानों को फसलों की देख रेख करने सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है। परिणामस्वरूप कृषि के उत्पापर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

हरित क्रान्ति की प्राप्तियां (Achievements of Green Revolution)
अथवा
हरित क्रान्ति के प्रभाव (Effects of Green Revolution)
हरित क्रान्ति की मुख्य प्राप्तियां इस प्रकार हैं –
1. उत्पादन में वृद्धि (Increase in Production) हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप कृषि के उत्पादन में काफ़ी वृद्धि हुई है। 1965-66 में 33 लाख टन अनाज पैदा किया गया था। हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप वर्ष 2019-20 में कृषि का उत्पादन 315.33 लाख मीट्रिक टन हो गया है।

2. रोज़गार में वृद्धि (Increase in Employment) हरित क्रान्ति के कारण मशीनों का प्रयोग बढ़ गया है। परन्तु फिर भी वर्ष में कई फसलें पैदा होने लगी हैं इसलिए रोज़गार में वृद्धि हुई है।

3. उद्योगों में वृद्धि (Increase in Industries) हरित क्रान्ति का प्रभाव उद्योगों के विकास पर अच्छा पड़ा है। पंजाब में कृषि यन्त्र हारवैस्टर, थ्रेशर इत्यादि की मांग बढ़ने के कारण बहुत से उद्योग स्थापित किए गए हैं।

4. उत्पादकता में वृद्धि (Increase in Productivity) हरित क्रान्ति के पश्चात् गेहूँ तथा चावल की उत्पादन शक्ति बहुत बढ़ गई है। यद्यपि गेहूँ, मक्की, ज्वार, कपास की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में काफ़ी वृद्धि हुई है जिसका मुख्य कारण अच्छे बीजों, रासायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग है।

5. ग्रामीण विकास (Rural Development) हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप ग्रामीण लोगों की आय में वृद्धि हो गई है इसलिए ग्रामीण लोगों में उच्च जीवन स्तर व्यतीत करने की इच्छा पैदा हो गई है।

प्रश्न 3.
पंजाब की प्रमुख फसलों का वर्णन करें। पंजाब में पुनर्गठन के पश्चात् फसलों के ढांचे में कौन-से परिवर्तन हुए हैं ?
उत्तर-
पंजाब में कई प्रकार की फसलों का उत्पादन किया जाता है। इन फसलों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
A. खाद्य फसलें (Food Crops)-ये वह फसलें हैं जोकि भोजन के रूप में खाने के लिए प्रयोग की जाती हैं जैसे कि गेहूँ, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्की, दालें तथा चने इत्यादि।
B. व्यापारिक फसलें (Commercial Crops)-व्यापारिक फसलें वे हैं जिनका प्रयोग उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। जैसे कि गन्ना, कपास, तिलहन इत्यादि।

A. खाहा फसलें (Food Crops)-पंजाब की खाद्य फसलों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है –
1. गेहूँ (Wheat)-पंजाब में गेहूँ भोजन के लिए मुख्य फसल है। गेहूँ की बिजाई नवम्बर-दिसम्बर के महीने में की जाती है जोकि अप्रैल-मई के महीने में काटी जाती है। पंजाब के सब ज़िलों में गेहूँ की बिजाई की जाती है परन्तु संगरूर, फिरोज़पुर तथा लुधियाना जिले में अन्य जिलों से गेहूँ अधिक होती है। 2019-20 में गेहूँ की उत्पादन शक्ति पंजाब में 5188 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। जबकि भारत में गेहूँ की औसत उत्पादकता 3600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। स्पष्ट है कि पंजाब में गेहूँ का उत्पादन 17613 हज़ार मीट्रिक टन है जो अन्य राज्यों से अधिक है।

2. चावल (Rice)- पंजाब में चावल की खाद्य फसलों में से प्रमुख फसल है। इसकी बिजाई मई-जून में की जाती है तथा यह अक्तूबर-नवम्बर तक तैयार हो जाती है। चावल का उत्पादन पंजाब के सब जिलों में होता है परन्तु सबसे अधिक उत्पादन अमृतसर, पटियाला, लुधियाना तथा संगरूर ज़िलों में होता है। 2019-20 में पंजाब में चावल की प्रति हेक्टेयर उपज 4132 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी जबकि समूचे भारत में औसत उत्पादकता 2708 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। पंजाब में चावल का उत्पादन 13311 हज़ार मीट्रिक टन था।

3. जौ (Barley)-पंजाब में जौ रबी की फसल है। इसको पंजाब में सितम्बर-अक्तूबर के महीने में बोआ जाता है तथा यह अप्रैल में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसका उत्पादन भटिंडा, होशियारपुर इत्यादि जिलों में होता है। 1965-66 में जौ की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1030 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर था। 2019-20 में इसकी उत्पादन शक्ति बढ़कर 3017 किलोग्राम हो गई है। जौ का उत्पादन 117 हजार मीट्रिक टन हुआ था।

4. मक्की (Maize)-पंजाब में मक्की खरीफ की फसल है। मक्की जून-जुलाई के महीने में बोई जाती है तथा मक्की की फसल सितम्बर, अक्तूबर तक तैयार हो जाती है। पंजाब में अधिकतर मक्की लुधियाना, जालन्धर, होशियारपुर जिलों में पैदा होती है। 1970-71 में प्रति हेक्टेयर उत्पादन शक्ति 1555 किलोग्राम थी। 2019-20 में इसकी उत्पादन शक्ति बढ़कर 3515 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। मक्की का उत्पादन 396 लाख मीट्रिक टन हुआ था।

5. ज्वार तथा बाजरा (Jowar and Bazra)-ज्वार तथा बाजरा खरीफ की फसलें हैं। ज्वार मुख्यतः रूपनगर तथा मुक्तसर जिलों में पैदा की जाती है। बाजरे की फसल, गुरदासपुर, फिरोजपुर, फरीदकोट तथा संगरूर में होती है। बाजरे की उत्पादन शक्ति 1965-66 में 548 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी जोकि 2019-20 में बढ़कर 987 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। ज्वार का उत्पादन 800 मीट्रिक टन तथा बाजरे का उत्पादन 800 मीट्रिक टन हुआ था।

6. चने (Gram)-यह रबी की फसल है जोकि अक्तूबर-नवम्बर में बोई जाती है। यह फसल अप्रैल-मई तक तैयार हो जाती है। यह फसल भटिंडा तथा मुक्तसर जिलों में होती है क्योंकि रेतीली भूमि इसके लिए अधिक उपयुक्त होती है। इसकी उत्पादकता 1245 kg प्रति हैक्टेयर और उत्पादन 3 हज़ार मीट्रिक टन था।

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7. दालें (Pulses) पंजाब में लोगों के भोजन का मुख्य अंग दालें हैं। पंजाब में मांह, मोठ, मूंगी, मसर इत्यादि दालों का प्रयोग किया जाता है। दालों की उत्पादकता में भी वृद्धि हुई है। 2019-20 में दालों की पैदावार 25 हज़ार मीट्रिक टन थी।

B. व्यापारिक फसलें अथवा नकदी फसलें (Commercial Crops or Cash Crops)-पंजाब में व्यापारिक फसलें मुख्यतः निम्नलिखित है –
1. गन्ना (Sugarcane) पंजाब में गन्ना व्यापारिक खाद्य फसल है। इसका प्रयोग गुड़, शक्कर तथा चीनी तैयार करने के लिए किया जाता है। इसका बिजाई मार्च-अप्रैल तथा कटाई दिसम्बर-मार्च में की जाती है। गन्ना मुख्यतः जालन्धर, गुरदासपुर तथा रूपनगर जिलों में बोआ जाता है। पंजाब में चीनी बनाने के उद्योग के लिए कच्चा माल पंजाब में ही तैयार किया जाता है। 2019-20 में गन्ने का उत्पादन 7744 लाख मीट्रिक टन हुआ था।

2. कपास (Cotton) कपास खरीफ की फसल है। यह अप्रैल से जून तक बोई जाती है जोकि सितम्बर से दिसम्बर तक तैयार हो जाती है। पंजाब में भटिंडा, फरीदकोट, फिरोजपुर में कपास की अमेरिकन किस्म बोई जाती है जबकि अन्य जिलों में देशी कपास बोई जाती है। 2019-20 में कपास का उत्पादन 1283 हज़ार गांठें हुआ।

3. तेलों के बीज (Oil Seeds)-पंजाब में तेलों के बीज मुख्य नकदी फसल है। इसमें सरसों, तारामीरा, अलसी, तिल इत्यादि का उत्पादन होता है। इनमें से कुछ फसलें रबी की हैं तथा कुछ खरीफ की हैं। भटिंडा, फिरोजपुर तथा पटियाला में सरसों तथा तारामीरा, संगरूर में मुख्यतः तारामीरा, लुधियाना में मूंगफली का उत्पादन किया जाता है। 2019-20 में 59.6 हज़ार मीट्रिक टन तेलों के बीज का उत्पादन हुआ।

प्रश्न 4.
पंजाब में कृषि उपज बिक्री के दोष बताएं और इन दोषों को दूर करने के लिये सुझाव दें।
(Discuss the defects of Agricultural Marketing on Punjab. Suggest measures to remove the defects.)
उत्तर-
पंजाब में कृषि उपज बिक्री के मुख्य दोष इस प्रकार हैं –
1. ग्रेडिंग का अभाव (Lack of Grading)-पंजाब में किसान अपनी फसल की ग्रेडिंग नहीं करते। जो फसल बाज़ार में बिक्री के लिए भेजी जाती है उसमें मिलावट होने के कारण उपज का ठीक मूल्य प्राप्त नहीं होता।

2. उपज के भण्डार का अभाव (Lack of Storage Facilities)-किसान को अपनी उपज कटाई के बाद शीघ्र बेचनी पड़ती है क्योंकि फसलों के संग्रह करने के लिये उचित भण्डार साधन नहीं होते। इसलिए घर पर फसल रखने से उसके नष्ट होने का डर रहता है।

3. संगठन का अभाव (Lack of Organisation) पंजाब में किसानों का कोई संगठन नहीं है जो कि उपज का उचित मूल्य दिला सके। किसान अपनी-अपनी फसल मण्डियों में बेचते हैं जिस कारण उनको उपज की कम कीमत प्राप्त होती है।

4. मण्डियों में अधिक मध्यस्थ (Many Intermediaries in Mandies)-मण्डी में मध्यस्थों की अधिकता के कारण भी किसान को उपज का ठीक मूल्य प्राप्त नहीं होता। किसान और उपभोक्ता के बीच कच्चा आढ़तिया, पक्का आढ़तिया, दलाल आदि बहुत-से मध्यस्थ होते हैं। मध्यस्थों के कारण किसान को उपज की पूरी कीमत प्राप्त नहीं होती।

5. मण्डियों में अनुचित ढंग (Malpractices in Mandies) मण्डियों में किसान को कम कीमत देने के लिये कई प्रकार के अनुचित ढंगों का प्रयोग किया जाता है। किसान की उपज को तुरन्त खरीदा नहीं जाता और किसान को कई दिन उपज की सम्भाल करनी पड़ती है। उसको उपज की उचित कीमत का ज्ञान भी नहीं दिया जाता।

6. मण्डियों के बारे में सूचना (Knowledge about Mandies) किसानों को बाज़ार की विभिन्न मण्डियों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती। इसलिये किसान अपनी उपज गांव के पास ही मण्डियों में कम कीमत पर बेच देता है।

7. वित्त का अभाव (Lack of Finance)-किसानों को फसल बीजने से लेकर, इस की कटाई होने तक बहुतसे वित्त की ज़रूरत होती है। पंजाब में बहुत-से किसान वित्त के लिये महाजनों तथा आढ़तियों पर निर्भर होते हैं। इसलिए किसान को अपनी उपज महाजनों तथा आढ़तियों को ही बेचनी पढ़ती है। इसलिए उपज की ठीक कीमत प्राप्त नहीं होती।

8. यातायात सुविधाओं का अभाव (Lack of Transport Facilities)-पंजाब में गांव में यातायात की असुविधाएं होने के कारण किसान को अपनी उपज गांव में या नज़दीक मण्डियों में ही बेचनी पड़ती है। इसलिये किसान को अपने उत्पादन को बहुत ही प्रतिकूल समय, प्रतिकूल दरों पर, प्रतिकूल बाज़ार में बेचना पड़ता है।

9. स्वेच्छा बिक्री का अभाव (Lack of Freedom of Sale)-पंजाब में किसान अपनी उपज स्वेच्छा से बिक्री नहीं कर सकता। उसको बैंक का कर्ज, साहूकार और आढ़तियों का कर्ज देना होता है। इसलिए फसल काटने के तुरन्त बाद उसको अपनी उपज बेचनी पड़ती है।

कृषि उपज की बिक्री के दोषों को दूर करने के लिए सुझाव (Suggestions to Remove the Defects of Agricultural Marketing) कृषि उपज की बिक्री में बहुत से दोष हैं। इन दोषों को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जाते हैं –
1. वित्त की सुविधा (Facilities of Finance)-पंजाब के किसानों को वित्त की सुविधा प्रदान करनी चाहिए। भारत सरकार ने इस वित्त की सुविधा को ध्यान में रखते हुए किसानों पर से 2019-20 में ₹ 2000 करोड़ का कर्ज माफ़ कर दिया है और बैंकों में किसानों को अधिक साख देने के लिये कहा है।

2. यातायात की सुविधा (Facilities of Transport)-पंजाब में किसान की उपज को बेचने के लिये सस्ती, कुशल तथा पर्याप्त सुविधाएं होनी चाहिएं। इस प्रकार किसान अपनी उपज को उचित बाज़ार, उचित समय तथा उचित कीमत पर बेच सकता है।

3. संग्रह की सुविधा (Facilities of Storage)-संग्रह की सुविधा भी कृषि उपज की बिक्री के लिए बहुत • ज़रूरी है। किसान के पास गांव में फसलों को संग्रह करने के लिये गड्ढ़े या कोठियां मिट्टी के बने होते हैं। इस कारण बहुत-सी फसल नष्ट हो जाती है। इसलिए संग्रह की सुविधा सरकार द्वारा प्रदान करनी चाहिए।

4. मध्यस्थों पर नियन्त्रण (Control over Middleman)-कृषि उपज की उचित बिक्री के लिये मध्यस्थों पर नियन्त्रण आवश्यक है। मध्यस्थों पर नियन्त्रण करके किसान को उसकी उपज की ठीक कीमत दिलाई जा सकती है।

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5. उचित कीमत (Suitable Price)-किसान द्वारा उपज की कीमत दूसरे खरीदार लगाते हैं जबकि उत्पादक अपनी वस्तु की कीमत स्वेच्छा से निर्धारित करते हैं। इसलिए किसान को अपनी उपज की कीमत स्वेच्छा से निर्धारित करने का अधिकार होना चाहिए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 27 भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बेरोजगारी

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 27 भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बेरोजगारी Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बेरोजगारी

PSEB 12th Class Economics भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बेरोजगारी Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में साक्षरता की क्या स्थिति है ?
उत्तर-
भारत में 1951 में साक्षरता दर 18.3% थी। 2019 में साक्षरता दर बढ़कर 75% प्रतिशत हो गई है।

प्रश्न 2.
भारत में शिक्षा संस्थाओं की संख्या पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
भारत में 2019-20 में 828 यूनिवर्सिटियां, 25938 प्रोफैशनल कॉलेज, 40,000 कॉलेज, 92275 सैकेण्डरी स्कूल, 139539 हाई स्कूल, 2 लाख 74 हज़ार से अधिक मिडिल स्कूल तथा 7 लाख 48 हज़ार से अधिक प्राइमरी स्कूल थे।

प्रश्न 3.
शिक्षा के व्यवसायीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
शिक्षा के व्यवसायीकरण से अभिप्राय है शिक्षा के साथ किसी व्यवसाय की शिक्षा देना।

प्रश्न 4.
1986 की नई शिक्षा नीति के उद्देश्य बताओ।
उत्तर-
शत-प्रतिशत प्राइमरी शिक्षा प्रदान करना। ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा का प्रसार करना।

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प्रश्न 5.
भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् जन्म दर तथा मृत्यु दर में क्या परिवर्तन हुआ है ?
उत्तर-
भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् जन्म दर तथा मृत्यु दर में बहुत कमी हुई है। 1951 में मृत्यु दर 18 प्रति हज़ार थी जोकि कम होकर 7.3 प्रति हज़ार रह गई है।

प्रश्न 6.
भारत में जीवन प्रत्याशा को स्पष्ट करो।
उत्तर-
भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् जीवन प्रत्याशा में काफ़ी वृद्धि हुई है। 1951 में भारत में लोगों की औसत आयु 41 वर्ष थी। 2019 में लोगों की औसत आयु बढ़कर 70.4 वर्ष हो गई है।

प्रश्न 7.
रोज़गार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
वे सभी व्यक्ति (पुरुष तथा स्त्रियां) जो पारिश्रमिक के लिए किसी प्रकार की नौकरी अथवा अपना कार्य करते हैं, उनको रोज़गार पर लगे गिना जाता है।

प्रश्न 8.
श्रम शक्ति (Labour Force) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जो व्यक्ति असल में काम करते हैं अथवा काम करने के इच्छुक हैं, उनको श्रम शक्ति कहा जाता है। श्रम शक्ति में 15 वर्ष से अधिक तथा 60 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को गिना जाता है।

प्रश्न 9.
सामाजिक संरचना के तीन महत्त्वपूर्ण घटक बताएं।
उत्तर-

  1. शिक्षा
  2. स्वास्थ्य
  3. आवास।

प्रश्न 10.
लोगों के पढ़ने-लिखने तथा समझने की योग्यता को शिक्षा कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 11.
भारत में शिक्षित बेरोज़गारी का मुख्य कारण शिक्षा को व्यवसाय से नहीं जोड़ा जाना है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 12.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता दर ………… प्रतिशत हो गई है।
(a) 64%
(b) 74.04%
(c) 84%
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) 74.04%.

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प्रश्न 13.
भारत में औसत जीवन अवधि …………….. वर्ष है।
(a) 53.5 वर्ष
(b) 63.5 वर्ष
(c) 73.5 वर्ष
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) 63.5 वर्ष।

प्रश्न 14.
सम्भोग द्वारा जो बीमारियां एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल जाती हैं उनको कहा जाता है।
उत्तर-
रजित रोग (Sexually Transmitted Diseases)

प्रश्न 15.
HIV से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ह्यूमन इमयुनो डैफीशेन्सी वायरस (HIV) का अर्थ शरीर में सफेद सैलज की कमी हो जाना जिनसे बीमारियों की रोकथाम होती है।

प्रश्न 16.
भारत में प्रारंभिक शिक्षा का कुल दाखिलों के अनुपात का अनुमान कैसे लगाया जाता है ?
उत्तर-
प्रारंभिक शिक्षा का कुल शिक्षा अनुपात-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 27 भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बेरोजगारी 1

प्रश्न 17.
सैकेण्डरी शिक्षा में शिक्षा के व्यवसायीकरण के लिए विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई है ?
उत्तर-
सही।

प्रश्न 18.
भारत में उच्च शिक्षा पर नियंत्रण तथा मार्गदर्शन कौन करता है ?
(a) केंद्र सरकार
(b) राज्य सरकार
(c) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(c) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग।

प्रश्न 19.
भारत में बेरोज़गारी का एक कारण शिक्षा का व्यवसायीकरण न होना है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 20.
भारत में शिक्षा पर सरकार द्वारा किया जाने वाला व्यय संतोषजनक है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 21.
भारत में शिक्षा पर अधिक व्यय कौन करता है ?
(a) केंद्र सरकार
(b) राज्य सरकार
(c) निजी संस्था
(d) माता-पिता।
उत्तर-
(b) राज्य सरकार।

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प्रश्न 22.
एड्ज़ (AIDS) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एड्ज़ से अभिप्राय (एकुआयर्ड इमीनियो डैफीसेन्सी सिंड्रोम) रोगों से लड़ने की शक्ति की घाट।

प्रश्न 23.
औद्योगीकरण सेहत के लिए कैसे हानिकारक होता है ?
उत्तर-
औद्योगीकरण द्वारा वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण फैलता है जो कि सेहत के लिए हानिकारक होता है।

प्रश्न 24.
भारत में बेरोज़गारी कितनी है ?
उत्तर-
भारत में 6.1% बेरोज़गार हैं।

प्रश्न 25.
भारत में शिक्षत बेरोज़गार कितने है ?
उत्तर-
भारत में 11.4% शिक्षत बेरोज़गार हैं।

II. अति लयु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में शिक्षा की स्थिति पर संक्षेप नोट लिखो।
उत्तर-
इस समय भारत में 74.04 प्रतिशत लोग साक्षर हैं। स्वतन्त्रता के पश्चात् शिक्षा के प्रसार की ओर अधिक ध्यान दिया गया है।

  1. साधारण शिक्षा का प्रसार-शिक्षित लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है। भारत में 82.14% पुरुष तथा 65.46% स्त्रियां साक्षर हैं।
  2. शिक्षा संस्थाएं-भारत में स्कूल, कॉलेज तथा यूनिवर्सिटियों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है।

प्रश्न 2.
श्रम शक्ति तथा मानवीय शक्ति में अन्तर बताओ।
उत्तर-

  • श्रम शक्ति उन व्यक्तियों की संख्या होती है जो वास्तव में काम पर लगे होते हैं अथवा काम करने के लिए तैयार होते हैं। कार्य शक्ति उन व्यक्तियों की संख्या होती है, जोकि वास्तव में कार्य पर लगे हुए होते हैं। उनमें उन व्यक्तियों को शामिल नहीं किया जाता, जो कार्य करने के लिए तैयार होते हैं।
  • श्रम शक्ति में उन व्यक्तियों को शामिल करते हैं, जो देश में कार्य करने के लिए उपलब्ध होते हैं। कार्य शक्ति में उन व्यक्तियों को शामिल किया जाता है, जो वास्तव में काम पर लगे होते हैं।

प्रश्न 3.
रोज़गार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
रोज़गार का अर्थ है आर्थिक क्रिया में लगे होना। वह सभी व्यक्ति (पुरुष तथा स्त्रियां) जो किसी प्रकार के पारिश्रमिक के लिए किसी प्रकार की नौकरी अथवा अपना कार्य करते हैं को रोज़गार पर लगे हुए गिना जाता है। जब हम रोज़गार पर लगे व्यक्तियों की बात करते हैं तो उन व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जो 15-60 वर्ष की आयु के हैं। 15 वर्ष से कम तथा 60 वर्ष से ऊपर की आयु के लोगों को कार्य शक्ति (Work Force) में शामिल नहीं किया जाता।

प्रश्न 4.
शहरी बेरोज़गारी पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
शहरी बेरोज़गारी-भारत में 2017-18 में 991 लाख रजिस्टर्ड बेरोज़गार थे। इनमें औद्योगिक क्षेत्र के बेरोज़गार, शिक्षित बेरोज़गार जिनमें लड़के तथा लड़कियां शामिल हैं, उनमें बेरोज़गारी पाई जाती है। ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र में निम्नलिखित किस्म की बेरोज़गारी पाई जाती है –

  1. खुली बेरोज़गारी-जब काम करने योग्य श्रम शक्ति काम करना चाहती है परन्तु उनको काम नहीं मिलता तो उसको खुली बेरोज़गारी कहा जाता है।
  2. अल्प बेरोज़गारी-नैशनल सैम्पल सर्वे अनुसार यदि किसी व्यक्ति को साप्ताहिक 28 घण्टे काम प्राप्त होता है तो उसको अति अल्प बेरोजगार कहा जाता है। 29 से 42 घण्टे साप्ताहिक काम करने वाले श्रमिक को सीमित अल्प बेरोज़गार कहते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी अन्य कार्य में अधिक उत्पादन कर सकता है तो वह वर्तमान कार्य में अल्प बेरोज़गार है।
  3. संरचनात्मक बेरोज़गारी-किसी देश में संरचनात्मक ढांचे में परिवर्तन हो जाए अर्थात् तकनीक तथा मांग में परिवर्तन के कारण बेरोज़गारी उत्पन्न हो जाए तो इसको संरचनात्मक बेरोज़गारी कहते हैं।

प्रश्न 5.
बेरोज़गारी के आर्थिक प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
बेरोज़गारी के आर्थिक प्रभाव-

  • जब बेरोज़गारी होती है तो मानवीय शक्ति का पूर्ण प्रयोग नहीं होता।
  • देश में उत्पादन कम हो जाता है।
  • देश में प्रति व्यक्ति पैदावार कम हो जाती है।
  • पूंजी निर्माण के कम होने से निवेश पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 27 भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बेरोजगारी

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Question)

प्रश्न 1.
भारत में शिक्षा की स्थिति पर संक्षेप नोट लिखो।
उत्तर-
सन् 2011 में भारत में 74.04 प्रतिशत लोग साक्षर थे। स्वतन्त्रता के पश्चात शिक्षा प्रणा की ओर अधिक ध्यान दिया गया है।

  1. साधारण शिक्षा का प्रसार-शिक्षित लोगों की संख्या 74.04% हो गई है। भारत में 82.14%, पुरुष तथा 65.46% स्त्रियां साक्षर हैं।
  2. शिक्षा संस्थाएं-भारत में स्कूल, कॉलेज तथा यूनिवर्सिटियों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है।
  3. विद्यार्थियों की संख्या-विद्यार्थियों की संख्या 2011 में बढ़कर 2 करोड़ हो गई है।
  4. शिक्षा का व्यवसायीकरण-शिक्षा को व्यवसाय आधारित बनाया जा रहा है।

प्रश्न 2.
भारत में स्वास्थ्य स्थिति का संक्षेप वर्णन करो।
उत्तर-
भारत की स्वास्थ्य स्थिति के सूचक इस प्रकार हैं –

  • जन्म दर-भारत में 1951 में जन्म दर 40 प्रति हज़ार से घट कर 2019-20 में 17 प्रति हज़ार रह गई है।
  • मृत्यु दर-मृत्यु दर 1951 में 18 प्रति हज़ार थी जोकि 2019-20 में घटकर 7.3 प्रति हज़ार रह गई है।
  • जीवन स्तर-भारत में औसत आयु 1951 में 41 वर्ष प्रति हज़ार थी जोकि 2019-20 में 70.4 वर्ष हो गई है।
  • अस्पताल तथा डॉक्टरों की संख्या-भारत में 70000 अस्पताल हैं, जिनमें कुल 8 लाख 890130 डॉक्टर तथा 19 लाख 4 हज़ार नर्से हैं।

प्रश्न 3.
श्रम पूर्ति तथा श्रम शक्ति में अन्तर बताओ।
उत्तर-

  1. श्रम पूर्ति का अर्थ मज़दूरी की दर के विभिन्न स्तर पर काम करने के लिए तैयार होते हैं। श्रम शक्ति का अर्थ वह मजदूरों की संख्या है जोकि काम कर रही है अथवा काम करने को तैयार है, परन्तु श्रम शक्ति का सम्बन्ध मज़दूरी की दर से नहीं होता।
  2. श्रम पूर्ति अधिक अथवा कम हो सकती है, जब मज़दूरी में परिवर्तन होता है, इसका माप मानवीय दिन (8 घण्टे) के अनुसार किया जाता है। श्रम शक्ति का अर्थ मज़दूरों की संख्या से होता है। इसको मानवीय दिन (8 घण्टे) द्वारा मापा नहीं जाता।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में शिक्षा के विकास की व्याख्या करो। (Explain the status of Education in India after Independence.)
अथवा
भारत में वर्तमान शिक्षा स्थिति का वर्णन करो। शिक्षा सम्बन्धी सरकार की नीति को स्पष्ट करो।
(Explain the present education condition of India. Discuss the Policy of the Government regarding Educations.)
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में शिक्षा के विकास को बहुत महत्त्व दिया गया है। 1950-51 में शिक्षा पर 114 करोड़ रुपए व्यय किए गए थे। 2019-20 में शिक्षा के क्षेत्र के लिए 1.78 लाख करोड़ रुपए व्यय करने का लक्ष्य है। भारत में शिक्षा प्रणाली की वर्तमान स्थिति अग्रलिखित अनुसार है –

  1. साधारण शिक्षा का प्रसार-भारत में 1951 में कुल जनसंख्या का 16% भाग शिक्षित था। 2019-20 में शिक्षित लोगों की संख्या बढ़कर 74.4% हो गई है। इस प्रकार शिक्षा का प्रसार अधिक हुआ है। पुरुषों में शिक्षित लोग 82.14% तथा स्त्रियों में 65.46% प्रतिशत हैं।
  2. शिक्षा संस्थाएं तथा विश्वविद्यालय-भारत में इस समय (2019-20) 900 विश्वविद्यालय (Universities) तथा अनुसन्धान केन्द्र हैं। 25938 प्रोफेशनल शिक्षा संस्थाएं तथा 40000 कॉलेज हैं। सीनियर सैकेण्डरी स्कूलों की संख्या 233517, मिडिल स्कूल 18 लाख 10 हज़ार तथा प्राइमरी स्कूलों की संख्या 18 लाख 12 हज़ार से अधिक है। भारत में प्राइमरी शिक्षा निःशुल्क तथा अनिवार्य है।
  3. विद्यार्थियों की संख्या-1951 में 6 वर्ष से 11 वर्ष की आयु के 42 प्रतिशत विद्यार्थी स्कूल जाते थे। अब 80 प्रतिशत से अधिक विद्यार्थी स्कूल जाते हैं। विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विद्याथिर्यों की संख्या 1951 में 3.5 लाख थी जोकि 2019 में बढ़कर 2.9 करोड़ हो गई है।
  4. शिक्षा का व्यवसायीकरण-भारत में केन्द्र सरकार ने 1986 की नई शिक्षा नीति अनुसार सैकेण्डरी स्तर पर शिक्षा के व्यवसायीकरण की योजना आरम्भ की है। व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त विद्यार्थियों के लिए निजी क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र तथा उनके स्व-रोज़गार के लिए योजनाबद्ध नीतियां बनाई गई हैं।
  5. प्रौढ़ तथा स्त्रियों की शिक्षा-भारत में बड़ी आयु के अनपढ़ पुरुषों तथा स्त्रियों के लिए शिक्षा को प्रौढ़ शिक्षा कहा जाता है। भारत में 15 वर्ष से 35 वर्ष के 11 करोड़ अनपढ़ हैं। सन् 2019-20 में 5.2 लाख लोगों के लिए शिक्षा का प्रबन्ध किया है। भारत में स्त्रियों की संख्या की ओर विशेष ध्यान दिया गया है।
  6. स्कूलों में विज्ञान का विषय-1988 के पश्चात् स्कूलों में विज्ञान की शिक्षा आरम्भ की गई है। इसका उद्देश्य शिक्षा के स्तर का सुधार करना तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न करना है।

सरकार की शिक्षा नीति-भारत में नई शिक्षा नीति की घोषणा 1986 में की गई। इस नीति अनुसार केन्द्र तथा राज्य सरकारें शिक्षा पर व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत करेंगी। दसवीं योजना में शिक्षा पर 24908 करोड़ रु० व्यय किए गए। 2020-21 में शिक्षा पर 360000 करोड़ रु० व्यय होने का अनुमान है। नई नीति में निम्नलिखित बातों पर जोर दिया गया है-

  1. देश में सभी लोगों के लिए प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना। इस उद्देश्य के लिए सर्वशिक्षा अभियान नवम्बर 2000 में आरम्भ किया गया। इस उद्देश्य के लिए 2020 में GDP का 3.9% भाग व्यय किया गया।
  2. जुलाई 2019 में लड़कियों की शिक्षा के लिए सर्व शिक्षा अभियान के स्थान पर “प्राथमिक स्तर पर लड़कियों की शिक्षा के लिए राष्ट्रीय प्रोग्राम” की घोषणा की है । इस योजना के अधीन पिछड़े क्षेत्रों में जहां स्त्री संख्या कम है, उन क्षेत्रों में स्त्री शिक्षा का विस्तार किया जाएगा।
  3. पिछड़ी जातियों तथा जनजाति की लड़कियों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में रिहायशी स्कूल स्थापित करने का निर्णय लिया गया है। इस उद्देश्य के लिए 2014-15 में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय स्थापित करने के लिए बाहरवीं के वर्ष 2019-20 में 27 हज़ार करोड़ रु० व्यय करने का लक्ष्य है जिससे 750 रिहायशी स्कूल स्थापित किए जाएंगे।
  4. सरकार ने प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों पर 3 प्रतिशत अतिरिक्त कर (Cess) लगाया है, जिसको प्राथमिक शिक्षा कोष का नाम दिया गया है। इस कर द्वारा 2019-20 में 2500 करोड़ रु० व्यय किए गए।
  5. तकनीकी शिक्षा के प्रसार पर भी जोर दिया गया है। बारहवीं योजना (2012-17) में स्कूल शिक्षा पर 360000 करोड़ अथवा उच्च शिक्षा पर 99300 लाख करोड़ रु० व्यय किये गए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 27 भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बेरोजगारी

प्रश्न 2.
भारत में वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति का वर्णन करो। इस सम्बन्धी सरकार की नीति स्पष्ट करो।
(Explain the present status of Health in India. Explain the Policy of Government in this regard.)
उत्तर-
किसी देश के साधनों में मानवीय साधनों को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। किसी देश का आर्थिक विकास इस बात पर निर्भर करता है कि उस देश के मानवीय साधनों का शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर इत्यादि के रूप में कितना विकास हुआ है। प्रो० ड्रकर के अनुसार, “मनुष्यों के बिना पूंजी व्यर्थ होती है। पूंजी के बिना भी लोग पहाड़ों को हिलाने की शक्ति रखते हैं।” स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में मानवीय स्वास्थ्य पर बहुत बल दिया गया है। इसका अनुमान निम्नलिखित सूची पत्र द्वारा लगाया जा सकता है
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 27 भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बेरोजगारी 2
भारत में स्वास्थ्य स्थिति का अनुमान ऊपर दी सूची से लगाया जा सकता है।

  1. जन्म दर-भारत में 1951 में जन्म दर 40 प्रति हज़ार थी जोकि 2019-20 में घटकर 17.6 प्रति हज़ार रह गई है। जन्म दर में कमी आई है जोकि जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगाने के लिए अच्छी है।
  2. मृत्यु दर-भारत में मृत्यु दर भी काफ़ी घट गई है। 1951 में मृत्यु दर 18 प्रति हज़ार थी। यह घटकर 2019-20 में 7.3 प्रति हज़ार रह गई है। इसका कारण स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास है।
  3. शिशु मृत्यु दर-भारत में बच्चों के जन्म समय शिशुओं की मृत्यु हो जाती थी। 1951 में शिशु मृत्यु दर 129 प्रति हजार से घटकर 2019-20 में 26.6 प्रति हज़ार रह गई है। यह भी स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि का प्रतीक है।
  4. जीवन प्रत्याशा-भारत में औसत जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई है। 1951 में औसत जीवन प्रत्याशा 41 वर्ष थी। 2019-20 में औसत जीवन प्रत्याशा 70.4 वर्ष हो गई है। पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 67 वर्ष तथा स्त्रियों की जीवन प्रत्याशा 74.4 वर्ष है।
  5. अस्पतालों की संख्या-भारत में 1951 में अस्पतालों की संख्या 70000 थी। यह संख्या 2019-20 में बढ़कर 593320 हो गई है। इससे लोगों को विभिन्न बीमारियों का इलाज करवाना आसान हो गया है।
  6. डॉक्टरों तथा नौं की संख्या- भारत में डॉक्टरों की संख्या में भी निरन्तर वृद्धि हुई है। 1951 में 61810 डॉक्टर थे। 2019-20 में डॉक्टरों की संख्या बढ़कर 890130 हो गई है। देश के प्रत्येक प्रान्त में मेडिकल कलेज स्थापित हो गए हैं। मरीजों की देखभाल तथा इलाज में नौं का योगदान भी महत्त्वपूर्ण होता है। 1951 में भारत में नों की संख्या 18054 थी जोकि बढ़कर 2019-20 में 1940000 हो गई।

स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं- भारत में स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं की कुछ समस्याएं है जैसे कि –

  • गांवों तथा शहरों में स्वास्थ्य सुविधाएं एक समान नहीं है। गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है।
  • एड्ज, शूगर, ब्ल्ड प्रैशर बीमारियों में वृद्धि हो रही है।
  • निजीकरण के कारण स्वास्थ्य सम्भाल की लागत बढ़ रही है।
  • साफ-सुथरे वातावरण तथा स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी पाई जाती है।

स्वास्थ्य सम्बन्धी नीति-दसवीं पंचवर्षीय योजना में स्वास्थ्य सुविधाओं पर सकल घरेलू उत्पाद का 2-3 प्रतिशत हिस्सा व्यय करने की सिफ़ारिश की गई है। इस नीति के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. 2019-20 में एड्ज़ पर नियन्त्रण करने के लिए 2100 करोड़ रुपए व्यय किए गए।
  2. प्राइमरी स्वास्थ्य केन्द्र गांवों में स्थापित किए गए हैं, जिनकी संख्या 2019-20 में 192166 हो गई है।
  3. 2019-20 के बजट में स्वास्थ्य सुविधाओं पर 2998 करोड़ रु० व्यय किए गए।
  4. देश के 19 राज्यों में कुष्ठ की बीमारी को समाप्त किया गया है। बारहवीं योजना के अन्त तक इस बीमारी को समाप्त कर दिया जाएगा।
  5. देश में 2019-20 में 14 से 16 मिलियन पुरुष, स्त्रियां तथा बच्चे एड्ज़/एच० आई० वी० के शिकार हो चुके थे। यह देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का सूचक है।
  6. भारत में आयुर्वेद, योगा, यूनानी तथा होमियोपैथी को विकसित किया जा रहा है। इन इलाजों के विकास के लिए बारहवीं योजना में 13999 करोड़ रु० व्यय किए जाएंगे।
  7. बारहवीं योजना में स्वास्थ्य पर 842481 करोड़ रु० व्यय किये जाएंगे।

प्रश्न 3.
भारत में बेरोज़गारी की किस्में बताओ। बेरोज़गारी के आर्थिक तथा सामाजिक प्रभाव बताओ।
(Explain the types of unemployment in India. Discuss the Economic and Social Effects and Education.)
उत्तर-
भारत में बेरोजगारी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। जब एक मनुष्य काम पर नहीं होता परन्तु वह मनुष्य वर्तमान मज़दूरी की दर पर काम करना चाहता है तो उनको बेरोज़गार कहा जाता है। भारत में 2000 में 26.6 मिलियन, 2004 में 34.3 मिलियन तथा 2009 में 28 मिलियन तथा 2019-20 में 20.9 मिलियन श्रम शक्ति बेरोज़गार थी। भारत में बेरोज़गारी का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार किया जा सकता है –
1. ग्रामीण बेरोज़गारी-गांवों में दो-तिहाई श्रम शक्ति स्व:रोज़गार पर कृषि उत्पादन में लगी हुई है। भारत में 2016 में 8.52% लोग बेरोज़गार थे। परन्तु गांवों में छिपी बेरोज़गारी भी पाई जाती है। छिपी बेरोज़गारी का अर्थ है कि कृषि उत्पादन में एक खेत पर पांच व्यक्तियों की आवश्यकता है परन्तु आठ व्यक्ति काम पर लगे हुए हैं, यदि 3 व्यक्तियों को अन्य काम पर लगाया जाए परन्तु कृषि के उत्पादन में कोई कमी न आए तो तीन श्रमिकों को छिपे बेरोज़गार कहा जाता है। इसी तरह गांवों में कृषि उत्पादन मौसमी कार्य है। इस कारण मौसमी बेरोज़गारी भी पाई जाती है।

2. शहरी बेरोज़गारी- भारत में 2019-20 में 11.4% बेरोज़गार थे। इनमें औद्योगिक क्षेत्र के बेरोज़गार, शिक्षित बेरोज़गार जिनमें लड़के तथा लड़कियां शामिल हैं, उनमें बेरोज़गारी पाई जाती है। ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र में निम्नलिखित किस्म की बेरोज़गारी पाई जाती है –

  • खुली बेरोज़गारी-जब काम करने योग्य श्रम शक्ति काम करना चाहती है परन्तु उनको काम नहीं मिलता तो उसको खुली बेरोज़गारी कहा जाता है।
  • अल्प बेरोज़गारी-नैशनल सैम्पल सर्वे अनुसार यदि किसी व्यक्ति को साप्ताहिक 28 घण्टे काम प्राप्त होता है तो उसको आत अल्प बेरोज़गार कहा जाता है। 29 से 42 घण्टे साप्ताहिक काम करने वाले श्रमिक को सीमित अल्प गेज़गार कहते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी अन्य कार्य में अधिक उत्पादन कर सकता है तो वह नमान कार्य में अल्प बेरोज़गार है।
  • संरचनात्मक बेरोज़गारी-किसी देश में संरचनात्मक ढांचे में परिवर्तन हो जाए अर्थात् तकनीक तथा मांग में परिवर्तन के कारण बेरोज़गारी उत्पन्न हो जाए तो इसको संरचनात्मक बेरोज़गारी कहते हैं।
  • अस्थिर बेरोज़गारी-अस्थिर बेरोज़गारी देश में श्रम की गतिहीनता तथा श्रम बाज़ार की अपूर्णता के कारण उत्पन्न होती है, जब मजदूरों को बाज़ार का ज्ञान नहीं होता तो इस प्रकार की बेरोज़गारी उत्पन्न हो जाती है।
  • चक्रीय बेरोज़गारी-किसी देश में मन्दीकाल के कारण उत्पन्न हुई बेरोज़गारी को चक्रीय बेरोज़गारी कहा जाता है।
  • मौसमी बेरोज़गारी-मौसम में परिवर्तन होने से कुछ उद्योग बन्द हो जाते हैं तो इस प्रकार की बेरोज़गारी को मौसमी बेरोज़गारी कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 27 भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बेरोजगारी

बेरोजगारी के आर्थिक प्रभाव-

  1. जब बेरोज़गारी होती है तो मानवीय शक्ति का पूर्ण प्रयोग नहीं होता।
  2. देश में उत्पादन कम हो जाता है।
  3. देश में प्रति व्यक्ति पैदावार कम हो जाती है।
  4. पूंजी निर्माण के कम होने से निवेश पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

बेरोज़गारी पर सामाजिक प्रभाव-

  • जीवन की गुणवत्ता कम हो जाती है।
  • समाज में अमीर तथा गरीब वर्ग उत्पन्न हो जाते हैं।
  • आर्थिक तथा सामाजिक असमानता में वृद्धि होती है।
  • सामाजिक अशान्ति फैल जाती है जैसे कि नक्सलवादी तथा आतंकवादी समाज में अशान्ति उत्पन्न करते हैं।

प्रश्न 4.
भारत में शहरी तथा ग्रामीण रोजगार के लिए सरकार द्वारा कौन-सी योजनाएं बनाई गई हैं ? इनका उल्लेख करें।
(Explain the programs of the Government of India regarding rural and urban employment.)
उत्तर-
भारत में रोजगार की वृद्धि के लिए सरकार द्वारा निम्नलिखित पग उठाए गए हैंशहरी रोज़गार में वृद्धि के लिए उठाए गए पग-

  1. संगठित क्षेत्रों का विकास-भारत में निजी क्षेत्र तथा सार्वजनिक क्षेत्र में अर्थात् उद्योग, खनिज, यातायात निर्माण इत्यादि में बहुत-से लोगों को रोजगार प्रदान करवाया जा रहा है।
  2. रोज़गार के दफ़्तर-सरकार ने रोज़गार की सुविधाएं बढ़ाने के लिए 915 रोज़गार दफ़्तर स्थापित किए हैं। सरकार बेरोज़गारी भत्ता देने के बारे भी विचार कर रही है।
  3. शिक्षित लोगों को स्व:रोज़गार-भारत में शिक्षित लोगों को स्व:रोज़गार दिलवाने के लिए सरकार बहुत-सी योजनाएं लागू कर रही है। शिक्षित लोगों को ऋण की सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं।
  4. रोज़गार गारण्टी योजना-कुछ राज्यों जैसे कि महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, केरल तथा राजस्थान इत्यादि में रोज़गार गारण्टी योजना आरम्भ की है। महाराष्ट्र में 2019 में 326 करोड़ रु० व्यय किए गए।

ग्रामीण रोज़गार में वृद्धि के लिए उठाए गए पग-
1. रोजगार के लिए धमाकेदार प्रोग्राम-1971 में बेरोज़गारी तथा अल्प बेरोज़गारी को दूर करने के लिए प्रत्येक जिले में श्रम सघन योजना आरम्भ की गई। इससे प्रत्येक परिवार के कम-से-कम एक व्यक्ति को रोज़गार प्रदान किया जाता है। इस योजना पर प्रत्येक वर्ष 100 करोड़ रु० व्यय किए गए हैं।

2. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार प्रोग्राम-1980-81 में पहले काम के बदले अनाज योजना बनाई गई थी जिसका नाम बदलकर राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार प्रोग्राम रखा गया। इस योजना के तीन उद्देश्य थे

  • गांवों में अधिक रोज़गार के अवसर पैदा करना।
  • ग्रामीण लोगों का जीवन स्तर ऊँचा उठाना
  • लोगों की आय में वृद्धि करना।

3. स्व:रोज़गार के लिए प्रशिक्षण-ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण योजना (TRYSEM) 1979 में आरम्भ की गई। इस योजना के अन्तर्गत 12 लाख युवकों को प्रशिक्षण दिया गया। प्रत्येक युवक को 3000 अथवा 5000 रु० तक की आर्थिक सहायता भी दी गई ताकि वह अपना कार्य आरम्भ कर सकें।

4. जवाहर रोज़गार योजना-28 अप्रैल, 1989 में स्वर्गीय प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी ने जवाहर रोज़गार योजना (JRY) आरम्भ की। इस योजना अधीन प्रत्येक गरीब ग्रामीण परिवार के एक सदस्य को 50 से 100 दिनों तक का रोज़गार देना है। इस योजना में स्त्रियों के लिए 30 प्रतिशत हिस्सा सुरिक्षत किया गया। इस योजना पर 2019-20 में 7200 करोड़ रु० व्यय किए गए।

5. जवाहर ग्राम समृद्धि योजना-यह योजना अप्रैल 1999 में आरम्भ की गई। इसमें केन्द्र तथा राज्य सरकारों का योगदान 75:25 की अनुपात में रखा गया। इस योजना का उद्देश्य गांवों में पक्की नालियां, गलियां, धर्मशालाएं इत्यादि चिरकालीन चलने वाले भण्डारों का विकास करना है। 2018-19 में केन्द्र सरकार ने 61500 करोड़ की राशि का योगदान इस योजना में पाया।

6. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्व:रोज़गार-यह योजना एकीकृत ग्रामीण विकास प्रोग्राम तथा स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण योजना को शामिल करके तैयार की गई। इसमें पहले चलाई जा रही योजनाओं को चालू रखना इसका उद्देश्य रखा गया।

7. सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना-यह योजना 1 सितम्बर, 2001 में आरम्भ की गई। जवाहर ग्राम समृद्धि योजना तथा रोज़गार आश्वासन योजना को मिला दिया गया। इस योजना का उद्देश्य मज़दूरों को रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करना, क्षेत्रीय आर्थिक तथा सामाजिक दशाओं का विकास करना है। इस योजना अधीन 2018-19 में 82 लाख टन चावल तथा 44 लाख टन गेहूं का वितरण किया गया।

8. प्रधानमन्त्री रोज़गार योजना-यह योजना शिक्षित बेरोजगार युवकों के लिए बनाई गई है। 2017-18 में इस योजना द्वारा 88 लाख युवकों को रोजगार दिया जा चुका है।

9. रोज़गार गारण्टी एक्ट 2005-यह योजना सितम्बर 2004 में लागू की गई है। इस योजना अनुसार प्रत्येक ग्रामीण, शहरी तथा निर्धन परिवार में से एक सदस्य को 100 दिनों का काम प्रदान किया जाएगा। 2018-19 में इस योजना पर व्यय करने के लिए 30 हज़ार करोड़ रुपये रखे गए हैं जोकि सकल घरेलू उत्पाद का 1.3% हिस्सा है।

10. प्रधानमन्त्री कौशल विकास योजना-NDA सरकार ने 2015 में कौशल विकास योजना का निर्माण किया। इसमे बेरोजगार युवकों को कौशल प्रदान करके रोजगार दिया जाएगा। इसमें अब तक 4.30 लाख बेरोजगारों को शिक्षा प्रदान की जा चुकी है।

11. दीन दयाल उपाध्याय ग्राम कौशल योजना-यह योजना 2019-20 में आरम्भ की गई इस योजना द्वारा 2.78 लाख ग्रामीण बेरोजगार युवकों को सिखलाई दी गई है।

12. बारहवीं योजना और रोज़गार-भारत की बारहवीं योजना (2012-17) के अन्त तक श्रम शक्ति में वृद्धि 65 करोड़ होगी तथा 42 करोड़ श्रम शक्ति के लिये रोज़गार प्रदान किया जाएगा। योजना के अन्त तक 5% बेरोज़गारी रह जाने की सम्भावना है। इस योजना में बेरोजगारों को शिल्प (Skill) सिखलाई देकर देश का विकास किया जाएगा।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 27 भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बेरोजगारी

13. बजट 2020-21-बजट 2020-21 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार की वृद्धि के लिए 69000 करोड़ की राशि व्यय करने का लक्ष्य रखा है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 26 आर्थिक विकास में मानव पूँजी का योगदान

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 26 आर्थिक विकास में मानव पूँजी का योगदान Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 26 आर्थिक विकास में मानव पूँजी का योगदान

PSEB 12th Class Economics आर्थिक विकास में मानव पूँजी का योगदान Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
मानव पूंजी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मनुष्यों की कार्य कुशलता, ज्ञान और कौशल में वृद्धि को मानव पूँजी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
मशीन, औज़ार और फैक्ट्रियां ही पूँजी निर्माण होते हैं ?
उत्तर-
गलत।

प्रश्न 3.
मनुष्य भी पूँजी निर्माण का महत्त्वपूर्ण स्रोत है ?
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
क्या जनसंख्या पूँजी निर्माण का स्रोत हो सकती है ?
उत्तर-
जनसंख्या का अधिक होना भी पूँजी निर्माण का स्रोत हो सकती है। इस बारे में प्रो० लुईस ने एक सिद्धान्त पेश किया है जिसमें वह कहते है कि बढ़ती जनसंख्या भी पूंजी निर्माण का साधन होती है ? चीन ने यह सिद्ध किया है कि अधिक जनसंख्या का अच्छी तरह प्रयोग करके उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है। आज चीन दुनिया की एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बन चुका है। इसलिए जनसंख्या पूँजी निर्माण का स्रोत बन सकती है।

प्रश्न 2.
मानव पूँजी द्वारा आर्थिक विकास के दो स्रोत बताएं।
उत्तर-

  1. आर्थिक विकास के लिए मानव पूँजी योगदान पा सकती है। मानव पूँजी द्वारा उच्च शिक्षा, अच्छी सेहत और विज्ञान के प्रयोग से उत्पादन में वृद्धि करके आर्थिक विकास संभव हो सकता है।
  2. मानव पूँजी आर्थिक विकास के औज़ार के रूप में भी प्रयोग की जा सकती है। मानव पूँजी उत्पादन के नए ढंगों का प्रयोग करके आर्थिक विकास में तेजी ला सकती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 26 आर्थिक विकास में मानव पूँजी का योगदान

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Question)

प्रश्न-
मानव पूँजी द्वारा आर्थिक विकास के औज़ार के रूप में कोई चार बिन्दु स्पष्ट करें।
उत्तर-
मानव पूँजी का अर्थ उच्च शिक्षा, अच्छी सेहत और खोज के नए ढंगों का प्रयोग करना होता है। इसलिए मानव पूँजी द्वारा आर्थिक विकास तेज़ी से किया जा सकता है –

  1. उत्पादन में वृद्धि-यदि अधिक जनसंख्या होती है तो ऋण की लागत कम होती है। विकसित देश उस देश में पूँजी निवेश करके ऋण का प्रयोग करते है तो उत्पादन में तेज़ी से वृद्धि होती है।
  2. उत्पादन शक्ति में वृद्धि-मानव पूँजी से न केवल उत्पादन में वृद्धि होती है और इसके साथ ही प्रति व्यक्ति उत्पादन बढ़ जाता है। इस प्रकार वस्तु की उत्पादन लागत कम हो जाती है और वस्तु कम कीमत पर आसानी से बेची जा सकती है। जिससे आर्थिक विकास में वृद्धि होती है।
  3. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि-मानव पूँजी द्वारा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है जो कि आर्थिक विकास का महत्त्वपूर्ण माप कहा जाता है। लोग अपने जीवन स्तर को ऊँचा करने का प्रत्यन करते हैं और बच्चे कम लिए जाते हैं।
  4. उच्च शिक्षा का प्रसार-लोग आपने बच्चों को अच्छी उच्च शिक्षा प्रदान करते हैं जिससे उनको जीवन में कभी भी मुश्किल का सामना न करना पड़े। इस प्रकार बच्चों की उत्पादन शक्ति बढ़ जाती है और आर्थिक विकास में वृद्धि होती है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मानव पूँजी का आर्थिक विकास में योगदान स्पष्ट करें। (Explain the Role of Human Capital in Economic Development.)
उत्तर–
पुरातन समय में पूंजी का अर्थ केवल, मशीन, औज़ार, फैक्ट्रियाँ आदि भौतिक रूप में लिया जाता था। परन्तु रैंगवर वर्कस ने कहा कि भौतिक पूँजी के बिना मानव पूँजी भी आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान पा सकती है। जब मानव उच्च शिक्षा, अच्छी सेहत, ज्ञान में वृद्धि करके अपने कौशल का विकास करते हैं तो इसको मानव पूंजी कहा जाता है। प्रो० एफ० एच० हारबीसन के अनुसार, “मानव पूँजी निर्माण का अर्थ उस प्रक्रिया से है जिसमें उन मनुष्यों की संख्या में वृद्धि की जाती है जो अधिक शिक्षित, कुशलता और तजुर्बे वाले होते हैं और देश के विकास प्रति आर्थिक तथा राजनीतिक विकास को आलोचनात्मक दृष्टि से देखते हैं। मानव पूँजी का सम्बन्ध मनुष्य के निवेश बढ़ाने से है जिससे वह उत्पादन में नए ढंगों का निर्माण कर सकें।” (“The term Human Capital Formation refers to the process of acquiring and increasing the number of persons who have the skill, education and experience which are critical for economic and political development of the country.” F.H. Harbison) प्रो० शुल्ज़ (Schultz) ने मानव पूंजी विकास के पाँच माप दण्ड बताए हैं जिनके द्वारा मानव पूँजी का विकास किया जा सकता है –

  • सेहत सहूलतों में वृद्धि जिससे जीवन काल में वृद्धि हो। लोगों की काम करने की क्षमता बढ़ जाए और लोग हृष्ट-पुष्ट हों।
  • काम करने की ट्रेनिंग जो कि फैक्ट्रियों द्वारा दी जाती है।
  • शिक्षा प्रदान करना जो स्कूलों कालेजों और विश्वविद्यालयों में दी जाती है उसमें वृद्धि है।
  • कृषि के क्षेत्र में लोगों को आधुनिक ढंगों का ज्ञान प्रदान करना।
  • लोगों में गतिशीलता पैदा करना जिससे नए काम की खोज आसानी से की जा सके। इसमें विदेशी पूँजी और तकनीक को भी शामिल किया जा सकता है।

अधिक जनसंख्या होती है यह देश जनसंख्या को संसाधन का स्रोत बना सकते हैं जैसे कि चीन और भारत में विश्व की जनसंख्या का बहुत अधिक भाग है। चीन ने अपनी मानव शक्ति की सहायता से इतनी उन्नति की है कि अब विश्व की एक शक्ति बन गया है। अधिक जनसंख्या के कारण यूरोप और अमेरिका जैसे देशों ने पूंजी लगाकर सस्ते श्रम का लाभ उठाने का यत्न किया। फलस्वरूप जनसंख्या चीन के लिए पूंजी निर्माण का स्रोत बन गया। भारत भी अपनी जनसंख्या को पूंजी निर्माण का स्रोत बना सकता है।

इससे पता चता है कि कम विकसित देश इस कारण पिछड़े हुए नहीं हैं कि उनके पास साधनों की कमी है। बल्कि इस कारण पिछड़े हुए हैं कि उन देशों ने अपने साधनों का उचित प्रयोग नहीं किया। भारत के सम्बन्ध में ठीक कहा जाता है कि “भारत एक अमीर देश है इसमें रहने वाले लोग गरीब हैं।” “India is a rich country in habited by poor people.” भारत में प्राकृतिक साधन कोयला, लोहा, अच्छी उपजाऊ भूमि, दरिया आदि बहुत मात्रा में पाए जाते हैं। परन्तु इनका ठीक उपयोग न होने के कारण भारत पिछड़ा देश रह गया है। प्राकृतिक स्रोतों का उपयोग लोगों की कुशलता से बढ़ाया जा सकता है इसलिए मानव संसाधनों का अधिक योगदान हो सकता है।

मानव शक्ति के विकास के लिए तत्त्व (Factors to Improve quality of Human Power) – मानव शक्ति के विकास के लिए निम्नलिखित तत्त्व महत्त्वपूर्ण होते हैं-
1. शिक्षा (Education)-कम विकसित देशों के पिछड़ेपन का एक कारण वहां के लोगों का अशिक्षित होना है। शिक्षा से लोगों की विचारधारा विशाल होती है। वह उत्पादन के नए-नए स्रोत ढूंढ़ने लगते हैं। इस द्वारा राष्ट्रीय भावना उत्पन्न होती है। लोगों में मेहनत करने की भावना उत्पन्न होती है। देश का उत्पादन बढ़ जाता है। इस प्रकार लोगों की आय में भी वृद्धि होती है। देश के तीनों क्षेत्र प्राथमिक, गौण तथा टरशरी, सभी में विकास होना प्रारंभ हो जाता है। इस प्रकार शिक्षा द्वारा देश में आर्थिक विकास होने लगता है।

2. सेहत (Health)-ठीक कहा जाता है सेहतमंद शरीर में सेहतमंद दिमाग होता है। (A healthy body keeps a healthy mind) यदि देश के लोग स्वस्थ हैं तो उनमें काम करने की भावना उत्पन्न होती है। वर्ष 2021 का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सबसे अधिक राशि स्वास्थ्य के लिए व्यय करने का प्रस्ताव रखा है। जब लोग सेहतमंद होते हैं तो काम करने की इच्छा अधिक होती है। इससे उनकी आय में वृद्धि होती है और जीवन स्तर उच्चा हो जाता है। अच्छा खाना पीना सेहत के लिए अच्छा होता है इससे उनकी आय में वृद्धि होती है। प्रति व्यक्ति आय बढ़ने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।

3. कौशल विकास (Skill Development) भगवान प्रत्येक मनुष्य को कोई ना कोई कौशल देकर भेजता है। यदि लोगों के कौशल को विकसित किया जाए तो उनकी उत्पादन शक्ति में वृद्धि होती है। कौशल विकास से नई-नई वस्तुएं बनाने की रुचि उत्पन्न होती है। इस प्रकार लोगों को अलग-अलग प्रकार के कौशल की शिक्षा देकर उनकी उत्पादन शक्ति में वृद्धि की जा सकती है। स्कूलों में पढ़ाई के साथ-साथ काम धन्धे के कौशल की सिखलाई दी जाए तो पढ़ाई समाप्त होते ही लोग नौकरी की तलाश की बजाय अपने काम चालू कर सकते हैं। इस प्रकार के लोग संसाधन का स्रोत बन सकते हैं।

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4. तकनीक (Technology)-तकनीक का ज्ञान भी लोगों को संसाधन का स्रोत बना देता है। प्रकृति ने भूमि के नीचे लोहा, कोयला, हीरे, मोती, पैट्रोल आदि खनिज पदार्थ दिए हैं। तकनीक का ज्ञान न हो तो उनकी खोज नहीं की जा सकती। इसलिए लोगों को संसाधन का स्रोत बनाने के लिए तकनीक का विकास भी आवश्यक है। तकनीक के विकास के कारण यूरोप के लोग अधिक विकसित हो सके हैं। इस प्रकार नई-नई तकनीकों का आविष्कार करके आर्थिक विकास किया जा सकता है। इस प्रकार शिक्षा, सेहत, कौशल और तकनीक के विकास से लोगों को संसाधन का स्रोत बनाया जा सकता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 25 सहकारिता, कृषि में विभिन्नता और जैविक खेती

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 25 सहकारिता, कृषि में विभिन्नता और जैविक खेती Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 सहकारिता, कृषि में विभिन्नता और जैविक खेती

PSEB 12th Class Economics सहकारिता, कृषि में विभिन्नता और जैविक खेती Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
सहकारी समितियों का कृषि में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
सहकारी समितियों द्वारा ग्रामीण विकास संभव है।

प्रश्न 2.
सरकारी समितियाँ ………….. में सहायक होती है।
उत्तर-
ग्रामीण विकास।

प्रश्न 3.
कृषि में विभिन्नता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक प्रकार की उपज के स्थान पर विभिन्न फसलों की बिजाई को कृषि में विभिन्नता कहते हैं।

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प्रश्न 4.
सहज कृषि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सहज कृषि (Organic Agriculture) का अर्थ है पुरातन ढंगों से कृषि करके उत्पादन करना।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सहकारी समितियों का कृषि में महत्त्व स्पष्ट करें।
उत्तर-
सहकारी समितियाँ बहुत छोटे तथा मध्यम वर्ग के किसानों के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती हैं। यदि छोटे किसान अपने छोटे-छोटे कृषि के टुकड़ों को सहकारिता की सहायता से इकट्ठा करते तो उन पर आधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार उनकी आय में बहुत वृद्धि की जा सकती है। प्रम: कृषि में विभिन्नता के दो लाभ बताएं।
उत्तर-
कृषि में विभिन्नता के बहुत से लाभ हैं। दो मुख्य लाभ इस प्रकार हैं

  • द्वारा छोटे और मध्यम वर्ग के किसानों की आय में बहुत वृद्धि की जा सकती है।
  • निषि आधुनिक रासायनिक खाद के स्थान पर पुरातन गोबर खाद डालकर जैविक कृषि को अपनाया जा सकता है।

आज कल बहुत से लोग रासायनिक खाद के कारण बीमारी का शिकार हो रहे हैं इसलिए लोग लेविक अनाज, फल और सब्जियां खरीदना पसंद करते हैं जिससे जीवन स्तर में वृद्धि होगी।

प्रश्न 3.
सहज कृषि के लाभ बताएं।
उत्तर-
आधुनिक खादों के कारण ब्लड प्रैशर, मधुमेह और कई तरह की बीमारियां नज़र आ रही हैं। इसलिए लोगों का रुझान सहज कृषि (Organic Agriculture) की तरफ बढ़ रहा है। इसमें गोबर द्वारा पुरातन ढंग से कृषि की जाती है। जिससे न केवल मनुष्य के जीवन में सुधार होता है और इसके साथ-साथ धरती की उपजाऊ शक्ति में भी परिवर्तन होता है। इसलिए सहज कृषि आजकल प्रचलित हो रही है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न-
भारत में कृषि में विभिन्नता की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर-
भारत में अनाज की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए 1966 में हरित क्रांति द्वारा अनाज वृद्धि पर जोर दिया गया। इससे रासायनिक खादों का अति अधिक प्रयोग किया गया। उत्पादन तो बढ़ गया परन्तु इससे न केवल भूमि की उपरी सतह पर बुरा प्रभाव पड़ा बल्कि भूमि के नीचे जल भी प्रदूषित हो गया। अधिक उद्योग स्थापित होने के कारण नदियों का जल प्रदूषित हो गया और अधिक रासायनिक खाद के कारण धरती के नीचे का जल भी प्रदूषित हो गया है। इस प्रकार पीने के पीने का संकट उत्पन्न हो गया है। इसलिए न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में कृषि में विभिन्नता की ओर ध्यान दिया जा रहा है।

कृषि में विभिन्नता का अर्थ है कि एक प्रकार की फसल लगातार बीजने के स्थान पर दूसरी प्रकार की फसलों की बिजाई करना। जैसे कि गेहूँ और चावल की कृषि के स्थान पर दालों, फल, सब्जियों आदि को सहज ढंग से बीज कर जैविक अनाज पैदा करना। जैविक अनाज की कीमत भी अधिक मिलती है और यह मनुष्य के स्वास्थ्य को भी ठीक रखते हैं। इसलिए आजकल लोग सहज कृषि की तरफ अधिक ध्यान दे रहे हैं।

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IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सहकारी समितियों का ग्रामीण विकास में महत्त्व स्पष्ट करें। (Explain the Role of Co-operatives in Rural development.)
उत्तर-
ग्रामीण विकास में सहकारी समितियों का योगदान महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर गया है। भारत में किसान के पास ज़मीन कम हो रही है, छोटे-छोटे टुकड़े हो गए हैं जिन पर कृषि करना लाभदायक नहीं रहा है। इसलिए किसान का गुजारा इन छोटे आकार के खेतों पर कृषि करके निर्वाह मुश्किल से हो रहा है। किसान को कृषि करने के लिए कर्ज लेना पड़ता है और उस उधार की वापसी बहुत कठिन हो रही है। इसलिए सहकारी समितियों की सहायता से ही छोटे किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं और इससे कृषि करने के ढंग में सुधार हो सकता है।
सहकारी समितियों का कृषि में योगदान इस प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. यदि किसान अपने छोटे-छोटे जमीन के टुकड़ों पर कृषि के स्थान पर सहकारी खेती करना शुरू कर दे तो इससे बड़े पैमाने पर आधुनिक मशीनों का प्रयोग करके ऊपज में वृद्धि की जा सकती है।
  2. कृषि में जो उपज पैदा होती है उस को बाज़ार में बेचने के स्थान पर तैयार सामान बनाकर बेचा जा सकता है-जैसे कि गेहूँ के स्थान पर आटा बेचा जा सकता है। फल बेचने के स्थान पर जूस बना कर बेच सकते हैं। सरसों के स्थान पर सरसों का तेल बना कर बेचा जा सकता है। इससे किसान की आय में वृद्धि हो जाएगी।
  3. कृषि में उपज के मण्डीकरण में भी सुधार हो सकता है। छोटे किसान अपनी उपज बाजार में तुरन्त बेच के लिए मजबूर होते हैं। सहकारी समितियों द्वारा अनाज का भण्डार किया जा सकता है। जब कीमत में वृद्धि हो तब उसको बेच कर अधिक दाम प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए भारत में NAFED राष्ट्रीय कृषि बिक्री फैडरेशन बनाई गई है।
  4. कृषि के लिए आधुनिक औजारों का प्रयोग करके ऑर्गेनिक फसलें तैयार की जा सकती हैं। आजकल ऑर्गेनिक उपज की मांग बढ़ रही है जिसके द्वारा किसानों की आय में बहुत वृद्धि की संभावना है जो कि सहकारिता द्वारा ही संभव है।
  5. छोटे किसानों को उधार प्राप्त करने में तकलीफ का सामना करना पड़ता है। सहकारी समितियां बैंकों से आसानी से उधार लेकर कृषि कार्य पूर्ण कर सकती हैं। इससे सहकारी समिति के प्रत्येक सदस्य को लाभ प्राप्त हो सकता है।

इस क्षेत्र में NABARD का योगदान बहुत ही अच्छा है। कृषि में सहकारी समितियां बनाने के लिए लोगों को उत्साहित किया जा रहा है इसके फलस्वरूप भारत में KRIBCO और KD Milk Producers Co-operative समितियों की स्थापना हुई है। इस तरफ किसानों को और ध्यान देने की जरूरत है।

सहकारी समितियों का ग्रामीण विकास में योगदान (Role of Co-operatives in Rural Development) – भारत में कृषि ग्रामीण जीवन की आय और रोजगार का मुख्य स्रोत है। ग्रामीण जीवन के सुधार के लिए सहकारी समितियां महत्त्वपूर्ण योगदान डालती हैं। इस का वर्णन निम्नलिखित अनुसार किया जा सकता है –

  1. रोज़गार का स्रोत (Source of Employment)-गांवों में 65% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। गांवों के लोग कृषि, मछलीपालन, जंगलात और पशुधन द्वारा अपनी जीविका का प्रबन्ध करते हैं। सीमान्त किसान के लिए सहकारी समितियाँ रोजगार का स्रोत बन जाती हैं।
  2. आधुनिक कृषि तकनीक का प्रयोग (Use of Modern Cultivation Techniques) कृषि में अच्छी खाद, अच्छे बीज, औजार, भंडारण, यातायात आदि सहूलतों में सहकारी समितियों द्वारा वृद्धि की जाती है। इससे आय में वृद्धि होती है।
  3. धारणीय अर्थव्यवस्था (Sustainable Economy)-कृषि में हर काम में सहकारी समितियाँ सहायता करती हैं। जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है और इससे धारणीय विकास किया जा सकता है।
  4. वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि (Increase in Supply of Goods)-सहकारी समितियाँ ग्रामीण क्षेत्र में बहुत सी सेवाएं प्रदान करती हैं। गाँव में लोगों के पास वित्तीय साधन कम होते हैं इसलिए यह समितियां लोगों को शिक्षा, ऋण, नई तकनीकों की जानकारी देकर उनकी आय में वृद्धि करती है क्योंकि वह वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि करते हैं।
  5. ऋण की सुविधा (Credit Facilities)-ग्रामीण जीवन में लोगों को हर काम के लिए ऋण की जरूरत पड़ती है। फसल बीजने से लेकर कटाई तक पैसे की आवश्यकता होती है। वह सहकारी समितियों के सहयोग से प्राप्त किया जा सकता है।

सहकारी समितियों के प्रकार (Types of Co-operative Societies) सहकारी समितियों के विभिन्न प्रकार इस प्रकार हैं –

  • उपभोक्ता सहकारी समितियाँ (Consumer Co-operative Societies) सहकारी समितियाँ गांवों में लोगों को प्रत्यक्ष रूप से आवश्यक वस्तुएँ, बीज, खादें, उपभोगी वस्तुएं, उत्पादकों से प्रत्यक्ष तौर पर खरीदकर प्रदान करती हैं। इससे मध्यस्थों का लाभ समाप्त हो जाता है और कम कीमत पर उपभोक्ता वस्तुएं मिल जाती
  • उत्पादक सहकारी समितियाँ (Producer Co-operative Societies)-सीमान्त तथा लघु किसानों के लिए सहकारी समितियाँ लाभदायक सिद्ध होती है, उत्पादन के लिए औज़ार, मशीनें, कच्चा माल आदि इन समितियों द्वारा प्रदान किया जाता है।
  • मंडीकरण सहकारी समितियाँ (Marketing Co-operative Societies)-सीमान्त तथा लघु किसानों की उपज की बिक्री के लिए सहकारी समितियाँ लाभदायक होती हैं। किसानों को उपज की बिक्री में बहुत सी मुश्किलें सहन करनी पड़ती हैं जिनके लिए यह समितियाँ सहायता करती हैं।
  • सहकारी ऋण समितियाँ (Co-operative Credit Societies)-किसानों को ऋण की सहूलत प्रदान करने में भी सहकारी समितियाँ सहयोग करती हैं। यह समितियाँ अपने सदस्यों से उनकी बचत को इकट्ठा करती हैं और दूसरे सदस्यों को उधार देती हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों की समस्याएं (Problems faced by Co-operative Societies in Rural Areas) सहकारी समितियों की मुख्य समस्याएं इस प्रकार हैं –

  1. असन्तोषजनक फंड (Insufficient Funds)-सहकारी समितियों के पास जो फंड होते हैं वह संतोषजनक नहीं होते हैं। जब इन समितियों के पास फंड की कमी होती है तो वे अपने सदस्यों को उधार नहीं दे पातीं। इस कारण बहुत सी समितियां असफल हो जाती हैं।
  2. केवल कृषि ऋण (Agricultural Loans Only)ये समितियाँ किसानों की हर प्रकार की वित्तीय जरूरतें पूरी नहीं करती। यह केवल कृषि ऋण ही प्रदान करती हैं। इसलिए किसान इन समितियों से पूरा लाभ प्राप्त नहीं कर पाते।
  3. राजनीतिक दखल (Political Intrusion)-सहकारी समितियाँ किसी न किसी राजनीतिक दल द्वारा प्रभावित होती हैं। राजनीतिक नेता अपने पक्ष के लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और दूसरे पक्ष के लोगों को ऋण देते समय बहुत सी शर्ते लगा देते हैं। इस कारण सभी लोग इन समितियों से पूरा लाभ नहीं उठा पाते।
  4. निजी हित (Personal Interests)-बहुत से सहकारी समितियों के सदस्य निजी हित को ध्यान में रखते हैं। वे सभी सदस्यों के हितों का ध्यान नहीं रखते। इससे गरीब सदस्यों को ऋण लेने में तकलीफ होती है और ये समितियाँ असफल हो जाती हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 25 सहकारिता, कृषि में विभिन्नता और जैविक खेती

प्रश्न 2.
कृषि में विविधीकरण के महत्व को स्पष्ट करें। (Explain the role of Diversification in Agriculture.)
उत्तर-
विविधीकरण का अर्थ (Meaning of Diverssification)-विविधीकरण का अर्थ है कि कृषि में कम मूल्य की फसलों के स्थान पर अधिक मूल्य वाली फसलों को उगाना अथवा अधिक आय देने वाले काम को शुरू करना। इससे डेयरी (Dairy), पोल्ट्री (Poultary), बागवानी (Horticulture) और मछली पालन (Pisciculture) क्षेत्र में पुरानी फसलों के स्थान पर इन क्षेत्रों को अपनाने को विविधीकरण कहा जाता है। एक फसल (गेहूँ अथवा चावल) के स्थान पर विभिन्न प्रकार की अलग-अलग फसलों की बीजाई करके आय में वृद्धि करना कृषि में विविधीकरण कहलाता है।

भारत में विविधीकरण का अर्थ स्पष्ट करते हुए अराधना सिंह ने कहा, “विविधीकरण का अर्थ एक फसल के स्थान पर अधिक फसलों का उत्पादन करना है जिससे आय में वृद्धि हो।” (Diversification means shift from the regional dominance of one crop to regional production of a number of crops for enhancing the income of the farmers.” Aradhna Singh)
विविधीकरण की आवश्यकता (Need for Diversification)-विविधीकरण करने की आवश्यकता क्यों है इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं –

  1. उपभोक्ता माँग में परिवर्तन (Changing Consumer Demand)-विकासशील देशों में लोगों की माँग में अधिक परिवर्तन हो रहा है। पहले लोग एक ही अनाज को आहार में प्रयोग करते थे। परन्तु अब आहार में मीट, अण्डे, और दूध, मक्खन, पनीर आदि वस्तुओं ने स्थान ले लिया है। इसलिए उपभोक्ता माँग में परिवर्तन आने से विविधीकरण की आवश्यकता है।
  2. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in Population) विश्व की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। अब विश्व की जनसंख्या 7 मिलियन है और 2050 तक 9.5 बिलियन होने का अनुमान है। भारत में भी आज़ादी के समय जनसंख्या 36 करोड़ थी जो 2020-21 में 136 करोड़ के लगभग हो गई है। इस प्रकार तेजी से बढ़ रही जनसंख्या के लिए अनाज पैदा करना एक चुनौती है। इस कारण भी कृषि में विविधीकरण की आवश्यकता
  3. निर्यात बाज़ार की मांग में वृद्धि (Increase in Export Market Demand) विकासशील देशों में किसान विश्व बाजार में बढ़ रही माँग को देखते हुए, निर्यात करने के लिए विविधीकरण को अपना रहे हैं। आजकल निर्यात करके अधिक आय प्राप्त की जा सकती है, इसलिए भी विविधीकरण की जरूरत है।
  4. सपर बाजार में बिक्री में वृद्धि (Increases in sale in Super-Market)-आजकल विश्व में बड़े बड़े सुपर स्टोर खुल रहे हैं। यहाँ पर इतनी किस्म की वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं कि ग्राहक प्रचून विक्रेता के पास जाने के स्थान पर सुपर बाज़ार में जाकर खरीदारी करनी पसंद करने लगा है। इसलिए विविधीकरण द्वारा सुपर बाज़ार में बिक्री के लिए वस्तुएं पैदा करना अधिक लाभकारी हो गया है।
  5. सरकार की नीतियों में परिवर्तन (Change in Government Policies)-बाज़ार की संभावना अब बढ़ गई हैं क्योंकि सरकार भी किसानों को वह अनाज अधिक मात्रा में पैदा करने को उत्साहिक करती है जिस की बिक्री बदलते बाज़ार के अनुकूल हो। अब किसान अपनी वस्तु मध्यस्थों के द्वारा बिक्री के स्थान पर सीधे खरीददारों को बेच सकता है इससे भी विविधीकरण को उत्साह प्राप्त हुआ है।
  6. पौष्टिक आहार (Nutrient Food)-पुरानी एक अनाज के प्रयोग के आहार में अब परिवर्तन हुआ है और इसके स्थान पर पौष्टिक आहार के विविधीकरण की ओर रुझान बढ़ रहा है।
  7. जोखिम (Risk)-एक ही अनाज को उगाने में अब किसान को अधिक जोखिम उठाना पड़ता है क्योंकि कृषि प्रकृति पर निर्भर है। इसलिए विविधीकरण द्वारा इस जोखिम को कम किया जा सकता है।
  8. शहरीकरण (Urbanization)-शहरीकरण में वृद्धि होने से किसान अब उन वस्तुओं की खेती करना अधिक लाभदायक समझता है जिससे उसकी आय में वृद्धि हो। शहरों में अधिक फल, सब्जियों की माँग होती है इसलिए विविधीकरण की आवश्यकता है।
  9. मौसम में परिवर्तन (Climate Change)-ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में परिवर्तन हो रहा है। . बेमौसमी वर्षा के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। इसलिए बहुत से देशों, जैसे कि कैनेडा, कीनिया, भारत, श्रीलंका आदि में विविधीकरण पर बल दिया जा रहा है।
  10. घरेलू नीति (Domestic Policy)-कृषि में बहुत प्रकार की सहायता दी जाती है। यदि कृषि में सबसिडी (Subsidy) न दी जाए तो किसान अपनी लागत पूरी नहीं कर सकता। इसलिए सरकार अब इस सहायता में परिवर्तन करके विविधीकरण के लिए सहायता दे रही है जिससे किसान आत्मनिर्भर हो सके।

विविधीकरण के प्रकार
(Types of Diversification) विविधीकरण दो प्रकार से किया जाता है –

  • फसल उत्पादन में विविधीकरण (Diversification of Crop Pattern)-जब एक फसल गेहूँ और चावल के स्थान पर बहुत सी फसलें पैदा की जाती हैं तो इसको फसल उत्पादन में विविधीकरण कहा जाता है।
  • उत्पादन क्रिया में विविधीकरण (Diversification of Productive Activities)-इसका अर्थ है कि जब श्रम शक्ति को कृषि के स्थान पर अन्य सम्बन्धित कार्यों और गैर-कृषि कार्यों में लगाया जाता है इसको उत्पादन क्रिया में विविधीकरण कहा जाता है। जैसा कि पशुपालन द्वारा मीट, अण्डे, पशम आदि की पैदावार, दूध तथा दूध उत्पादों में वृद्धि, मछली पालन और बागवानी में श्रम शक्ति का प्रयोग करके किसान की आय में वृद्धि करना।

विविधीकरण के लाभ (Benefits of Diversification) विविधीकरण के मुख्य लाभ इस प्रकार हैं –
1. आय में वृद्धि (Increase in Income)-विविधीकरण द्वारा किसान एक ही फसल पर निर्भर होने के स्थान पर बहुत सी फसलों को बीजता है तो उसका जोखिम कम हो जाता है और आय में वृद्धि होती है।

2. अनाज सुरक्षा (Food Security)-जब किसान एक फसल की बिजाई करता है और मौसम खराब होने से अनाज नष्ट हो जाता है तो इससे अनाज की कमी हो जाती है। विविधीकरण द्वारा अलग-अलग वस्तुओं के उत्पादन से अनाज सुरक्षा बनी रहती है।

3. रोज़गार में वृद्धि (Increase in Employment)-जब एक फसल के स्थान पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की पैदावार की जाती है, तो इससे रोज़गार में वृद्धि होती है। फल सब्जियां, और प्रोसैस्ड फूड में अधिक लोगों को काम मिलता है। इस प्रकार दूध, मुर्गी पालन, मछली पालन आदि काम करने से भी रोजगार में वृद्धि होती है।

4. गरीबी को कम करना (Reducing Poverty)-विकासशील देशों में गरीबी की समस्या भी जटिल समस्या है। विविधीकरण द्वारा गरीबी को कम किया जा सकता है। जब विविधीकरण किया जाता है तो गरीब लोगों को काम प्राप्त होता है जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है। आय बढ़ने से गरीबों के जीवन स्तर में सुधार होता है। दूसरे जब विविधीकरण किया जाता है तो निर्यात में वृद्धि होती है इससे भी लोगों की आय में वृद्धि होती है।

5. सीमित साधनों की अधिक उत्पादकता (More Productivity of Scarce Resources)-प्रकृति ने जो साधन दिये हैं वे सीमित मात्रा में हैं जैसे जल, कोयला आदि। इनका उत्तम प्रयोग करने के लिए भी विविधीकरण की जरूरत है। कम जल का प्रयोग करके हम पोल्ट्री फार्म, पशु पालन करके आय अधिक प्राप्त कर सकते हैं।

6. निर्यात में वृद्धि (Increase in Exports) विविधीकरण द्वारा विदेशी उपभोक्ताओं की माँग के अनुसार उत्पादन करके निर्यात में वृद्धि की जा सकती है इससे आय में और वृद्धि होती है।

7. मूल्य में वृद्धि (Adding Value)-यूरोप, अमेरिका आदि देशों में लोगों को तैयार आहार चाहिए जैसे कटा हुआ सलाद, बर्गर, पीज़ा आदि। यदि विविधीकरण द्वारा इन वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाया जाता है तो अनाज के मूल्य में वृद्धि की जा सकती है।

8. सरकार की नीति (Government Policies)-सरकार भी किसानों को विविधीकरण के लिए प्रेरित करती है जिससे किसानों की आय में वृद्धि हो। बहुत सी सहायता देकर नए किस्म की वस्तुओं को प्रोत्साहित किया जाता है।

9. शहरीकरण (Urbanization)–लोग ज्यादा शहरों में रहना पसंद करते हैं। इससे लोगों के आहार में परिवर्तन हो रहा है जिसको लोगों की माँग के अनुसार बदल कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

10. वातावरण (Environment)-विविधीकरण द्वारा हम भूमि, जल प्रदूषण पर नियन्त्रण कर सकते हैं। इससे धारणीय विकास (Sustainable Development) हो सकता है। इस प्रकार विविधीकरण द्वारा देश में आर्थिक विकास की गति को तेज़ किया जा सकता है। यह न केवल किसानों के हित में है इससे देश का विकास भी तीव्र गति से होगा।

प्रश्न 3.
जैविक खेती से क्या अभिप्राय है ? जैविक खेती के सिद्धान्त बताएं। इसके लाभ तथा त्रुटियाँ बताएँ।
(What is Organic Farming? Explain the principles of organic farming. Explain its merits & limitations.)
उत्तर-
जैविक खेती कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरक शक्ति को बनाए रखने के लिए आवश्यक तथा लाभकारी होता है। विश्व में जनसंख्या की वृद्धि के कारण हरित क्रान्ति ने जन्म लिया। इससे विश्व में रासायनिक खादों का प्रयोग करके अधिक अनाज पैदा करने के लिए यत्न किये गए। इस द्वारा अनाज के उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई है परन्तु खाद तथा कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण उत्पादन में जहरीला असर बढ़ गया। लोगों को कैंसर, ब्लड प्रेशर, शूगर आदि बीमारियों का शिकार होना पड़ा। इसलिए विश्व भर में जैविक खेती की तरफ रुझान बढ़ रहा है। इसमें पुरातन ढंग से खेती करने का रुझान बढ़ गया है। इसमें पशुओं का गोबर और कूड़ा-कर्कट का प्रयोग करके अनाज की पैदावार की जाती है। इसको जैविक खेती (Organic Farming) कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 25 सहकारिता, कृषि में विभिन्नता और जैविक खेती

जैविक खेती के मुख्य सिद्धान्त (Main principles of Organic Farming)-UNO के विशेषज्ञों के अनुसार, “जैविक खेती प्राकृतिक तथा धारणीय प्रबन्धक विधि के विशेष मूल्यों पर आधारित है।” (Organic Farming is based on unique values of natural & sustainable farm management practices.” U.N.O. Experts. यह विधि निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित है –
1. सेहत का सिद्धान्त (Principle of Health)-जैविक खेती सेहत के सिद्धान्त को ध्यान में रख कर अपनाई जाती है। इससे भूमि, जल, वायु आदि को प्रदूषित होने से रोका जाता। यह विधि मनुष्य, पशुओं तथा पक्षियों के लिए भी लाभदायक है।

2. वातावरण का सिद्धान्त (Principle of Ecology)-जैविक खेती वातावरण को ठीक रखने के उद्देश्य से अपनाई जाती है। इसके द्वारा न केवल भूमि, जल, वायु और सूर्य की ऊर्जा को ठीक रखा जाता है। बल्कि इस विधि द्वारा मनुष्यों, जानवरों, पशु-पक्षियों को भी प्रदूषण से बचाया जाता है। इसलिए यह विधि वातावरण को शुद्ध रखने के लिए भी उचित मानी जाती है।

3. उचित्ता का सिद्धान्त (Principle of Fairness)-जैविक खेती में लोगों के आहार सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पैदावार करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि इसका देश पर आर्थिक, सामाजिक तथा मनोविज्ञानिक बुरा प्रभाव न पड़े।

4. पूर्ण ध्यान रखने का सिद्धान्त (Principle of Care)-इस विधि द्वारा यह ध्यान रखा जाता है कि जो लोग अलग-अलग किस्म के काम करते हैं उन का सेहत तथा लागत में अधिक प्रभाव न पड़े। इस से लोगों की भलाई को भी ध्यान में रखा जाता है।

जैविक खेती में फसलों के बदलाव (Crop Rotation), देशी खाद, अच्छे शुद्ध बीज, पौधों में उचित दूरी पर पैदावार की जाए, जिससे प्राप्त अनाज की गुणवत्ता कायम रहे। भारत में जैविक खेती को सबसे पहले मध्य प्रदेश में चालू किया गया। पहले प्रत्येक जिले में एक गाँव का चुनाव किया। जिसमें जैविक खेती शुरू की गई। बाद में 2 गाँवों और फिर 5 गाँवों में जैविक खेती चाल की गई। इन गाँवों को जैविक गाँवों का नाम दिया गया। इस समय करीब 4000 गाँवों में जैविक खेती की जा रही है। जैविक खेती से उपजाई गई फसल का रेट काफी अधिक होता है। गेहूँ जोकि जैविक खेती से बनाया जाता है उसका आटा लगभग ₹ 60 प्रति किलो निर्धारित किया जाता है। इस प्रकार जैविक खेती से अधिक आय भी होती है।

जैविक खेती के लाभ (Merits of Organic Farming) –

  1. इस द्वारा सेहत के लिए शुद्ध वातावरण प्राप्त होता है।
  2. इस द्वारा भूमि, जल, वायु आदि को प्रदूषण से हानि नहीं होती।
  3. इस द्वारा भूमि की चिरकालीन उपजाऊ शक्ति बनी रहती है।
  4. प्राकृतिक साधनों का उचित प्रयोग होता है और इससे भविष्य में आने वाली नस्लों को भी अच्छा वातावरण मिलता है।
  5. जैविक खेती से इंधन की लागत कम हो जाती है। इससे प्रत्येक को अच्छा अनाज उचित कीमतों पर प्राप्त होता है।

जैविक खेती में कम ऊर्जा का प्रयोग होता है और फसलों के खराब होने की सम्भावना घट जाती है। इससे कैमीकल क्रियाओं से होने वाला खतरा कम हो जाता है।

जैविक खेती की सीमाएं (Limitations of Organic Farming) –

  • जैविक खाद की सीमित मात्रा होने के कारण सभी लोगों को खाद प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
  • जैविक खेती द्वारा अनाज का उत्पादन कम हो जाता है। इसलिए किसान अपनी आय को कम नहीं करना चाहते। यदि उपज कम होती है तो कीमत अधिक रखनी पड़ती है जो कि लोग देना पसंद नहीं करेंगे।
  • जैविक खेती से जो उपज पैदा होती है इसका उचित स्तर भारतीय किसानों द्वारा संभव नहीं है। लोग अधिकतर अनपढ़ होने के कारण इन बातों का ध्यान नहीं रख सकते।
  • जैविक खेती द्वारा उपज के मण्डीकरण की समस्या उत्पन्न हो सकती है भारत में 90% लोगों की आय बहुत कम होने के कारण जैविक अनाज को खरीदना मुश्किल होगा। परन्तु आजकल जैविक खेती की तरफ रुझान बढ़ रहा है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 30 सह-सम्बन्ध

PSEB 12th Class Economics सह-सम्बन्ध Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
सह-सम्बन्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब दो या दो से अधिक मात्राएं सहानुभूति में परिवर्तित होती हैं जिससे एक में परिवर्तन के कारण दूसरे में भी परिवर्तन होता है तो वे सह-सम्बन्धित कहलाती हैं।

प्रश्न 2.
सह-सम्बन्ध (Correlation) तथा प्रतीपगमन (Regression) में क्या भेद हैं ?
उत्तर-
सह-सम्बन्ध से दो या दो से अधिक चरों में परस्पर सम्बन्ध की मात्रा (Degree) का ज्ञान होता है जबकि प्रतीपगमन द्वारा इस सम्बन्ध की प्रकृति (Nature) का पता चलता है।

प्रश्न 3.
दो अथवा दो से अधिक चरों अथवा समूहों में निश्चित सम्बन्ध पाया जाता है तो इसको ………. कहते हैं।
(a) अपकिरण
(b) प्रमाप विचलन
(c) सह-सम्बन्ध
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(c) सह-सम्बन्ध ।

प्रश्न 4.
जब दो चरों में एक ही दिशा में परिवर्तन होता है तो इसको …………. सह-सम्बन्ध कहते हैं।
(a) धनात्मक
(b) ऋणात्मक
(c) एक दिशाई
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) धनात्मक।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध

प्रश्न 5.
जब दो चरों में परिवर्तन विपरीत दिशा में होता है तो इसको ……….. सह-सम्बन्ध कहते हैं।
(a) धनात्मक
(b) ऋणात्मक
(c) विपरीत दिशाई
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) ऋणात्मक।

प्रश्न 6.
जब दो चरों में स्थाई रूप में समान अनुपात में परिवर्तन होता है तो इसको ……….. कहते हैं।
उत्तर-
समरेखीय सह-सम्बन्ध।

प्रश्न 7.
जब दो चरों में अस्थाई और असमान रूप में परिवर्तन हो तो इसको ………………… कहते हैं।
उत्तर-
वक्र रेखीय सह-सम्बन्ध।

प्रश्न 8.
सह-सम्बन्ध गुणांक विधि का निर्माण …………….. ने किया था।
(a) कार्ल पीयर्सन
(b) स्पीयर मैन
(c) बाऊले
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) कार्ल पीयर्सन।

प्रश्न 9.
पद सह-सम्बन्ध विधि का निर्माण ……………….. ने किया था।
उत्तर-
चार्ल्स एडवर्ड स्पीयर मैन। (1904)।

प्रश्न 10.
सह-सम्बन्ध गुणांक तथा पद सह-सम्बन्ध गुणांक में कोई अन्तर नहीं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 11.
जब दो चरों में परिवर्तन एक ही दिशा में होता है इसको धनात्मक सह-सम्बन्ध कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 12.
जब दो चरों में परिवर्तन विपरीत दिशा में होता है तो इसको ऋणात्मक सह-सम्बन्ध कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 13.
जब दो चरों में सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है तो इसको सह-सम्बन्ध कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 14.
जब तीन अथवा इससे अधिक चरों के सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है तो इसको बहुमुखी सहसम्बन्ध कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 15.
सह-सम्बन्ध का मूल्य + 1 से – 1 के बीच में हो सकता है।
उत्तर-
सही।

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प्रश्न 16.
कार्ल पीयर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक का सूत्र लिखो।
उत्तर-
r= \(\frac{\Sigma x y}{\sqrt{\Sigma x^{2} \times \Sigma y^{2}}}\)

प्रश्न 17.
लघु विधि अनुसार सह-सम्बन्ध गुणांक का सूत्र लिखो।
उत्तर-
r= \(\frac{\Sigma d x^{\prime} d y^{\prime}-\frac{\Sigma d x^{\prime} \times \Sigma d y^{\prime}}{\mathrm{N}}}{\sqrt{\Sigma d x^{2}-\left(\frac{\Sigma d x}{\mathrm{~N}}\right)^{2} \sqrt{\Sigma d y^{2}-\frac{(\Sigma d y)^{2}}{\mathrm{~N}}}}}\)

प्रश्न 18.
स्पीयरमैन द्वारा दिये गए श्रेणी अन्तर के सह-सम्बन्ध का सूत्र लिखो।
उत्तर-
rk = \(1-\frac{6\left(\Sigma D^{2}\right)}{N^{3}-N}\)

प्रश्न 19.
श्रेणी सह-सम्बन्ध का प्रयोग गुणात्मक सम्बन्ध को प्रकट करने के लिए किया जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 20.
सह-सम्बन्ध की मात्राएं पांच प्रकार की होती हैं।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कार्ल पीयर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सह-सम्बन्ध तकनीक ऐसी सांख्यिकी तकनीक है, जिसकी मदद से दिए गए चरों के सह-सम्बन्ध के आकार, स्वभाव, दिशाओं तथा महत्त्व का अध्ययन किया जाता है। सह-सम्बन्ध द्वारा इस बात की पढ़ाई की जाती है कि क्या दिए गए चरों में सह-सम्बन्ध है ? यदि सह-सम्बन्ध है तो कितनी मात्रा में है ? क्या यह सम्बन्ध धनात्मक है अथवा ऋणात्मक है। इसलिए यूले तथा कैंडल अनुसार, “सह-सम्बन्ध विश्लेषण का सम्बन्ध इस बात से होता है कि दो चरों में सम्बन्ध किस तरह का है।”

प्रश्न 2.
सह-सम्बन्ध के कोई दो गुण बताएँ।
उत्तर-
गुण अथवा महत्त्व-कार्ल पीयर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं –

  1. दो चरों के सम्बन्ध की दिशा का पता लगता है। इस द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं कि दो चरों में सम्बन्ध धनात्मक है अथवा ऋणात्मक है।
  2. दो चरों में सह-सम्बन्ध की मात्रा का ज्ञान होता है। दो चरों में पूर्ण धनात्मक, ऊँचे दर्जे का धनात्मक कम दर्जे का धनात्मक सम्बन्ध पाया जाता है अथवा कि पूर्ण ऋणात्मक, ऊँचे दर्जे का धनात्मक, कम दर्जे का धनात्मक सम्बन्ध है अथवा कोई सम्बन्ध नहीं है। इसका ज्ञान सह-सम्बन्ध गुणांक द्वारा होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध

प्रश्न 3.
सह-सम्बन्ध के कोई दो दोष बताएँ।
उत्तर-
दोष (Demerits)

  • साधारण तौर पर रेखीय सम्बन्ध की कल्पना करके सह-सम्बन्ध का माप किया जाता है, परंतु यह भी सम्भव है कि सम्बन्ध गैर-रेखीय हों। इस स्थिति में सह-सम्बन्ध की कल्पना गलत हो जाती है।
  • सीमान्त मूल्यों अर्थात् बहुत बड़ी अथवा बहुत छोटी मदों का प्रभाव सह-सम्बन्ध पर बहुत अधिक होता है।

प्रश्न 4.
स्पीयरमैन की दर्जा सह-सम्बन्ध विधि से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
इंग्लैंड के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक चार्ल्स एडवर्ड स्पीयरमैन ने 1904 में गुणात्मक तथ्यों के बीच सह-सम्बन्ध का पता करने के लिए एक विधि का निर्माण किया जिस विधि को स्पीयरमैन की दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक विधि कहा जाता है। इस विधि को स्पीयरमैन की दर्जा अन्तर विधि भी कहा जाता है। स्पीयरमैन के अनुसार कुछ तथ्य ऐसे होते हैं जिनका अंकों में माप नहीं किया जा सकता। उदाहरणस्वरूप सुन्दरता, भाषण मुकाबला, वीरता इत्यादि चरों को अंकों में नहीं दर्शाया जा सकता, बल्कि ऐसी स्थिति में प्राथमिकता क्रम दिए जाते हैं।

प्रश्न 5.
जब दर्जे दिए हों तो दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक के माप का सूत्र बताएँ।
उत्तर-
rk = \(1-\frac{6 \Sigma D^{2}}{N^{3}-N}\)

प्रश्न 6.
जब दर्जे न दिए गए हों तो दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक के माप सूत्र बताएँ। जब दर्जे एक-दूसरे के सामान्य हों।
उत्तर-
rk =\(1-\frac{6\left[\Sigma\mathrm{D}^{2}+\frac{1}{12}\left(m^{3}-m\right)+\frac{1}{12}\left(m^{3}-m\right) \cdots \cdots \cdots\right]}{\mathrm{N}^{3}-\mathrm{N}}\)

III. लघु उत्तरीय प्रश्न | (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कार्ल पीयर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक से क्या अभिप्राय है ? इसके मुख्य लक्षण बताओ।
उत्तर-
सह-सम्बन्ध तकनीक ऐसी सांख्यिकी तकनीक है, जिसकी मदद से दिए गए चरों के सह-सम्बन्ध के आकार, स्वभाव, दिशाओं तथा महत्त्व का अध्ययन किया जाता है। सह-सम्बन्ध द्वारा इस बात की पढ़ाई की जाती है कि क्या दिए गए चरों में सह-सम्बन्ध है ? यदि सह-सम्बन्ध है तो कितनी मात्रा में है ? क्या यह सम्बन्ध धनात्मक है-
अथवा
ऋणात्मक है। इसलिए यूले तथा कैंडल अनुसार, “सह-सम्बन्ध विश्लेषण का सम्बन्ध इस बात से होता है कि दो चरों में सम्बन्ध किस तरह का है।”मुख्य लक्ष्ण (Main Features)-कार्ल पीयर्सन के सह-सम्बन्ध के मुख्य लक्ष्ण अथवा विशेषताएं इस प्रकार हैं_-

  1. दिशा का ज्ञान-सह-सम्बन्ध द्वारा दो चरों की परिवर्तन की दिशा का ज्ञान प्राप्त होता है। इस प्रकार यह स्पष्ट किया जा सकता है कि दो चरों में धनात्मक अथवा ऋणात्मक सह-सम्बन्ध है।
  2. मात्रा का ज्ञान-दो चरों में यदि सम्बन्ध है तो कितना है। इसकी मात्रा में परिवर्तन – 1 से + 1 के बीच हो सकता है।
  3. अच्छा माप-सह-सम्बन्ध में सांख्यिकी का अच्छा माप होता है, क्योंकि यह समान्तर औसत तथा प्रमाप विचलन पर आधारित है।
  4. एकरूपता-सह-सम्बन्ध का गुणांक एकरूपता की विशेषता रखता है अर्थात् RXY = RYX होता है।

प्रश्न 2.
कार्ल पीयर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक के गुण तथा दोष बताओ।
अथवा
सह-सम्बन्ध का महत्त्व बताओ।
उत्तर-
गुण अथवा महत्त्व-कार्ल पीयर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक के मुख्य गुण अग्रलिखित हैं-

  1. दो चरों के सम्बन्ध की दिशा का पता लगता है। इस द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं कि दो चरों में सम्बन्ध धनात्मक है अथवा ऋणात्मक है।
  2. दो चरों में सह-सम्बन्ध की मात्रा का ज्ञान होता है। दो चरों में पूर्ण धनात्मक, ऊँचे दर्जे का धनात्मक कम दर्जे का धनात्मक सम्बन्ध पाया जाता है अथवा कि पूर्ण ऋणात्मक, ऊँचे दर्जे का धनात्मक, कम दर्जे का धनात्मक सम्बन्ध है अथवा कोई सम्बन्ध नहीं है। इसका ज्ञान सह-सम्बन्ध गुणांक द्वारा होता है।
  3. सह-सम्बन्ध गुणांक एक आदर्श माप है, क्योंकि यह समान्तर औसत तथा प्रमाप विचलन पर आधारित है।
  4. सह-सम्बन्ध गुणांक न केवल सैद्धान्तिक समस्याओं का, बल्कि व्यावहारिक समस्याओं का हल करने के लिए भी लाभदायक होता है।
  5. सह-सम्बन्ध पर अन्य सांख्यिकी विधियां भी आधारित हैं।

दोष (Demerits) –

  • साधारण तौर पर रेखीय सम्बन्ध की कल्पना करके सह सम्बन्ध का माप किया जाता है, परंतु यह भी सम्भव है कि सम्बन्ध गैर-रेखीय हों। इस स्थिति में सह-सम्बन्ध की कल्पना गलत हो जाती है।
  • सीमान्त मूल्यों अर्थात् बहुत बड़ी अथवा बहुत छोटी मदों का प्रभाव सह-सम्बन्ध पर बहुत अधिक होता है।
  • सह-सम्बन्ध का प्रयोग सावधानी से करने की आवश्यकता होती है नहीं तो परिणाम गलत प्राप्त हो जाते
  • इस द्वारा गुणात्मक तत्त्वों ईमानदारी, सुन्दरता इत्यादि का अध्ययन नहीं किया जाता।

प्रश्न 3.
कार्ल पीयर्सन के सह-सम्बन्ध की गणना के लिए प्रत्यक्ष विधि की व्याख्या करो।
उत्तर-
प्रत्यक्ष विधि (Direct Method)-कार्ल पीयर्सन के सह-सम्बन्ध की गणना प्रत्यक्ष विधि द्वारा इस प्रकार की जाती है-

  1. दो श्रेणियों X तथा Y की समान्तर औसत (\(\overline{\mathrm{X}}\) तथा \(\bar{Y}\)) का पता किया जाता है।
  2. दोनों श्रेणियों के मूल्यों के समान्तर औसतों का विचलन निकाला जाता है अर्थात् X = (x –\(\overline{\mathrm{X}}\) ) तथा Y = (Y – \(\overline{\mathrm{Y}}\) ) का पता किया जाता है।
  3. विचलनों X तथा Y के वर्ग बनाकर इन वर्गों का जोड़ Σx2 तथा Σy2 प्राप्त किया जाता है।
  4. दोनों श्रेणियों के विचलनों X तथा Y को गुणा करके गुणनफल XY प्राप्त किया जाता है। इस गुणनफल के जोड़ को Σxy द्वारा प्रकट किया जाता है।
  5. सह-सम्बन्ध गुणांक की गणना निम्नलिखित सूत्र द्वारा की जाती है। r = \(\frac{\Sigma x y}{\sqrt{\Sigma x^{2} \times \Sigma y^{2}}} \)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध

प्रश्न 4.
सह-सम्बन्ध गुणांक का अर्थशास्त्र के लिए विशेषकर क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र में महत्त्व
1. नियमों की परख के लिए-अर्थशास्त्र के बहुत-से नियमों की परख सह-सम्बन्ध गुणांक से की जाती है। उदाहरणस्वरूप मांग के नियम में वस्तु की कीमत तथा वस्तु की मांग के ऋणात्मक सम्बन्ध को दिखाया जाता है। इस प्रकार पूर्ति के नियम में वस्तु की कीमत तथा इसकी पूर्ति का सीधा तथा धनात्मक सह-सम्बन्ध होता है। इस प्रकार अर्थशास्त्र के नियमों की परख सह-सम्बन्ध द्वारा की जाती है।

2. अनुसन्धान के लिए-अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अनुसन्धान के कार्य के लिए भी सह-सम्बन्ध की सहायता प्राप्त की जाती है। अनुसन्धान द्वारा नियमों का निर्माण किया जाता है। उन नियमों की परख सह-सम्बन्ध द्वारा की जाती है।

3. नीति निर्माण के लिए-सह-सम्बन्ध विश्लेषण न केवल सैद्धान्तिक तौर पर ही महत्त्वपूर्ण होता है बल्कि यह तो व्यावहारिक तौर पर भी लाभदायक है। गरीबों को दी गई सहायता से उनकी आर्थिक स्थिति में कितना सुधार हुआ है इसका ज्ञान सह-सम्बन्ध की विधि द्वारा किया जा सकता है।

4. आर्थिक समस्याओं के लिए-आर्थिक समस्याएं निर्धनता, बेरोज़गारी, मुद्रा-स्फीति का हल सह-सम्बन्ध द्वारा किया जा सकता है। मुद्रा के फैलाव से रोज़गार में कितनी वृद्धि होती है तथा कीमत स्तर पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका ज्ञान सह-सम्बन्ध द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
प्रतीपगमन (Regression) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रतीपगमन विश्लेषण वह क्रिया है जिस द्वारा एक चर का अनुमान दूसरे चरों से लगा सकते हैं। उदाहरणस्वरूप जब कीमत में विशेष दर पर परिवर्तन होता है तो मांग में कितना परिवर्तन होगा। इस तरह हमारे पास किसी देश की जनसंख्या के आंकड़े प्राप्त हैं उनमें से कोई एक अंक स्पष्ट नहीं तो प्रतीपगमन विश्लेषण की सहायता से उस अंक की खोज की जा सकती है।

इस प्रकार दो अथवा दो से अधिक चरों के लिए कारणात्मक सम्बन्ध को स्थापित करने के लिए इस विधि का निर्माण किया गया है। इससे भविष्य के बारे अनुमान लगाया जा सकता है। इस विधि की सहायता से देश की सरकार यह बताती है कि पिछले वर्ष कितनी गेहूँ की पैदावार हुई है तथा अगले वर्ष कितनी गेहूँ उत्पन्न होने की सम्भावना है। इस प्रकार आंकड़ों के सह-सम्बन्ध से प्रतीपगमन किया जाता है। प्रतीपगमन विश्लेषण सह-सम्बन्ध विश्लेषण पर आधारित है।

प्रश्न 6.
सह-सम्बन्ध तथा प्रतीपगमन में अंतर बताओ।
उत्तर-
सह-सम्बन्ध तथा प्रतीपगमन में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं –

  1. मात्रा तथा स्वरूप का ज्ञानसह-सम्बन्ध-इस विश्लेषण से दो अथवा दो से अधिक चरों में सम्बन्ध की मात्रा (Degree) का ज्ञान प्राप्त होता प्रतीपगमन-इस विश्लेषण से दो अथवा दो से अधिक चरों के स्वरूप का ज्ञान प्राप्त होता है। सह-सम्बन्ध विश्लेषण दो अथवा दो से अधिक चरों के सह-परिवर्तन की जाँच करता है, जबकि प्रतीपगमन इन चरों के परिवर्तन के स्वरूप तथा मात्रा की गणना करके भविष्य सम्बन्धी अनुमान लगाने की योग्यता प्रदान करता है।
  2. कारण परिणाम का सम्बन्ध सह-सम्बन्ध-सह-सम्बन्ध विश्लेषण में एक चर में परिवर्तन कारण होती है तथा दूसरे चर में परिवर्तन उसका परिणाम होता है। यह अनिवार्य नहीं। सह-सम्बन्ध में कारण तथा परिणाम के सम्बन्ध को स्पष्ट नहीं किया जाता बल्कि दो चरों में परिवर्तन की दिशा की अभिव्यक्ति की जाती है। प्रतीपगमन-इस विश्लेषण में कारण तथा परिणाम के सम्बन्ध को विशेष तौर पर स्पष्ट किया जाता है। इस द्वारा चरों के मूल्यों में सह-सम्बन्ध मात्रा तथा दिशा का माप किया जाता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सह-सम्बन्ध का अर्थ बताओ। सह-सम्बन्ध के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
(Explain the meaning of Correlation. Discuss the importance or significance of Correlation.)
उत्तर-
अब तक जिन सांख्यिकी विधियों का अध्ययन किया गया है, उन का सम्बन्ध एक चर से सम्बन्धित था, परन्तु व्यावहारिक जीवन में दो अथवा दो से अधिक चरों का परस्पर सम्बन्ध पाया जाता है। उदाहरणस्वरूप-

  1. कीमत में परिवर्तन से मांग में परिवर्तन हो जाता है।
  2. आय में परिवर्तन से व्यय में परिवर्तन होता है।
  3. किसी वस्तु के विज्ञापन से बिक्री में परिवर्तन होता है, इत्यादि।

इस प्रकार दो चरों में उस समय सह-सम्बन्ध कहा जाता है, जब दोनों में एक समय ही परिवर्तन हो जाता है। एक चर में परिवर्तन कारण दूसरे चर में परिणामस्वरूप में सम्बन्ध पाया जाता है। इस सम्बन्धित सांख्यिकी तकनीक को सह-सम्बन्ध कहते हैं। दो चरों में उससे सह-सम्बन्ध कहा जाता है, जब दोनों चरों में एकत्रित परिवर्तन आएं।
परिभाषाएं (Definitions) –

  1. यूले तथा कैंडल के अनुसार, “सह-सम्बन्ध विश्लेषण का सम्बन्ध यह बताता है कि दो चरों में सम्बन्ध किस तरह का है।” (“Correlation analysis deals with the study of the way in which the two variables are related.”-Yule & Kendall)
  2. प्रो० ए० एम० टयूटल के अनुसार, “दो अथवा दो से अधिक चरों के सह-परिवर्तनों के विश्लेषण को सह-सम्बन्ध कहा जाता है।” (“Correlation is an analysis of the variance between two or more variables.” -A.M. Tuttle)

सह-सम्बन्ध की विशेषताएं (Characteristics of Correlation)-
अथवा
सह-सम्बन्ध का महत्त्व-
(Importance of Correlation) सह-सम्बन्ध की विशेषताओं द्वारा इसके महत्त्व का पता लगता है –

  1. सह-सम्बन्ध द्वारा दो अथवा दो से अधिक चरों में पाए जाने वाले सम्बन्धों की मात्रा तथा दिर.. को स्पष्ट किया जाता है।
  2. सह-सम्बन्ध के कारण तथा परिणाम का सम्बन्ध नहीं बताता, बल्कि दो चरों के परस्पर सम्बन्ध को प्रकट करता है कि उसका उद्देश्य मात्र तथा दिशा का प्रगटावा करना होता है।
  3. प्रतीपगमन विधि सह-सम्बन्ध विधि पर आधारित है, यदि चरों में सह-सम्बन्ध हों तो एक चर के मूल्य का पता होने की स्थिति में दूसरे चर के मूल्य का अनुमान लगाया जा सकता है।
  4. व्यापारिक क्षेत्रों में भविष्य के लिए अनुमान लगाने के लिए सह-सम्बन्ध विश्लेषण लाभदायक होता है।
  5. सह-सम्बन्ध का प्रभाव हमारी भविष्यवाणी की अनिश्चितता के विस्तार को कम करता है।
  6. सह-सम्बन्ध की सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक महत्ता होने के कारण इसका प्रयोग वैज्ञानिक अनुसन्धानों में दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है।
  7. सह-सम्बन्ध द्वारा चरों सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त हो जाता है। इस द्वारा स्वतन्त्र तथा आधारित चरों का पता लगता है। इस प्रकार सह-सम्बन्ध की विशेषताएं ही सह-सम्बन्ध विश्लेषण के महत्त्व को स्पष्ट करती हैं।

प्रश्न 2.
सह-सम्बन्ध की मात्राओं की व्याख्या करो। (Discuss the degrees of Correlation.)
अथवा
सह-सम्बन्ध गुणांक से क्या अभिप्राय है ? सह-सम्बन्ध की मात्राओं को स्पष्ट करो।
(What is meant by Co-efficient of Correlation ? Discuss the degrees of Correlation.)
उत्तर-
सह-सम्बन्ध गुणांक का अर्थ-वह गुणांक जोकि सह-सम्बन्ध की मात्रा तथा दिशा को मापता है उसको सह-सम्बन्ध गुणांक कहा जाता है। सह-सम्बन्ध गुणांक को अंग्रेजी भाषा के अक्षर (r) द्वारा प्रकट किया जाता है। यदि X तथा Y दो चर हैं तो rxy इन दोनों चरों की मात्रा तथा दिशा को दर्शाता है।

सह-सम्बन्ध गुणांक की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-
1. सह-सम्बन्ध के गुणांक का विस्तार – 1 से + 1 तक है अर्थात् सह-सम्बन्ध गुणांक का मूल्य – 1 से कम अथवा + 1 से अधिक नहीं हो सकता।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 1
गुणांक का विस्तार – 1 से + 1 तक होता है।

2. सह-सम्बन्ध का गुणांक आरम्भ में परिवर्तनों से स्वतन्त्र है अर्थात् किसी भी स्थिर को X अथवा Y अथवा दोनों के मूल्यों से घटा दिया जाए तो इसका सह-सम्बन्ध गुणांक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

3. सह-सम्बन्ध गुणांक एक शुद्ध अंक होता है अर्थात् इसकी कोई भी इकाई नहीं होती।

4. सह-सम्बन्ध गुणांक एकरूपता की विशेषता रखता है, अर्थात्,
rxy = ryx
यदि हम X तथा Y को किसी स्थिर में विभाजित करते हैं तो इससे सह-सम्बन्ध गुणांक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

सह-सम्बन्ध की मात्राएं-
सह-सम्बन्ध गुणांक से सह-सम्बन्ध की दिशा तथा मात्रा का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार दिशा तथा मात्रा के आधार पर सह-सम्बन्ध गुणांक निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 2
ऊपर दिए गए चार्ट के आधार पर सह-सम्बन्ध की मात्राओं की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है-
1. पूर्ण सह-सम्बन्ध (Perfect Correlation)-सह-सम्बन्ध उस स्थिति में पूर्ण सह-सम्बन्ध कहा जाता है, जब दोनों चरों में समान दर पर परिवर्तन होता है, पूर्ण सह-सम्बन्ध दो प्रकार का होता है –

  • पूर्ण धनात्मक (Perfect Positive)-सह-सम्बन्ध को पूर्ण धनात्मक कहा जाता है जब सह सम्बन्ध गुणांक (+ 1) होता है।
  • पूर्ण ऋणात्मक (Perfect of Negative)-सह-सम्बन्ध को पूर्ण ऋणात्मक कहा जाता है, जब सह-सम्बन्ध गुणांक (- 1) होता है।

2. ऊँचे दों का सह-सम्बन्ध (High degree of Correlation)-जब दो चरों के सह-सम्बन्ध की बहुत अधिक मात्रा हो तो इसको ऊँचे दों का सह-सम्बन्ध कहा जाता है। यह भी दो प्रकार का होता है

  • ऊँचे दों का धनात्मक सह-सम्बन्ध (High degree of Positive Correlation)-इस स्थिति में सह-सम्बन्ध गुणांक + 0.75 से + 1 के बीच होता है।
  • ऊँचे दों का ऋणात्मक सह-सम्बन्ध (High degree of Negative Correlation)-जब दो शृंखलाओं में सह-सम्बन्ध गुणांक – 0.75 से – 1 के बीच होता है तो इसको ऊँचे दों का ऋणात्मक सह-सम्बन्ध कहा जाता है।

3. मध्य दों का सह-सम्बन्ध (Medium Correlation)-जब चरों के बीच सह-सम्बन्ध की मात्रा न तो बहुत अधिक तथा न ही बहुत कम हो तो ऐसी स्थिति में सह-सम्बन्ध को मध्य दों वाला कहा जाता है।
यह भी दो प्रकार का होता है-

  • मध्य दों का धनात्मक सह-सम्बन्ध (Medium degree of Positive Correlation) इस स्थिति में सह-सम्बन्ध गुणांक – 0.25 से – 0.75 के बीच होता है।
  • मध्य दों का ऋणात्मक सह-सम्बन्ध (Medium degree of Negative Correlation) इस स्थिति में सह-सम्बन्ध गुणांक – 0.25 से – 0.75 के बीच होता है।

4. निम्न दों का सह-सम्बन्ध (Low degree of Correlation)-जब दो चरों में सह-सम्बन्ध कम मात्रा में पाया जाता है तो इसको निम्न दों का सह-सम्बन्ध कहा जाता है।
यह दो प्रकार का हो सकता-

  • निम्न दर्जी का धनात्मक सह-सम्बन्ध (Low degree of Positive Correlation)-जब इस स्थिति में सह-सम्बन्ध गुणांक 0 से + 0.25 के बीच होता है।
  • निम्न दों का ऋणात्मक सह-सम्बन्ध (Low degree of Negative Correlation)-इस स्थिति में सह-सम्बन्ध गुणांक 0 से – 0.25 के बीच होता है| (a) निम्न दों का धनात्मक सह-सम्बन्ध

5. सह-सम्बन्ध का अभाव (No Correlation)-जब दो चरों में कोई सम्बन्ध न पाया जाए अर्थात् एक चर में परिवर्तन से दूसरे चर पर पड़ने वाला प्रभाव कोई न हो तो इसको सह-सम्बन्ध का अभाव कहा जाता है। इस स्थिति में सह-सम्बन्ध गुणांक शून्य (0) होता है।

प्रश्न 3.
सह-सम्बन्ध पता लगाने की कौन-सी विधियां हैं ? बिखरे बिन्दु चित्र विधि की व्याख्या करो। इस विधि के गुण तथा दोष बताओ।
उत्तर-
दो चरों के परस्पर सम्बन्ध का पता लगाने के लिए मुख्य तौर पर निम्नलिखित विधियां हैं
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 3
1. बिखरे बिन्दु चित्र विधि (Scatter Diagram Method)
2. कार्ल पीयर्सन की सह-सम्बन्ध गुणांक विधि (Karl Pearsons co-efficient of correlation)
3. सपीयरमैन की दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक विधि (Spearman’s co-efficient of Rank correlation method) चाहे सह-सम्बन्ध का पता करने के लिए कुछ अन्य विधियां भी हैं, परन्तु हम इन तीन विधियों का अध्ययन करेंगे।

1. बिखरे बिन्दु चित्र विधि (Scatter Diagram Method)-दो चरों में सह-सम्बन्ध का पता करने के लिए यह सबसे सरल विधि है। बिखरे बिन्दु चित्र द्वारा दो चरों के परस्पर सह-सम्बन्ध की दशा तथा मात्रा का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। ग्राफ पेपर पर स्वतन्त्र चरों को X अक्ष पर तथा आधारित चरों को Y अक्ष पर प्रदर्शित किया जाता है।

X श्रेणी तथा Y श्रेणी के जोड़े को एक बिन्दु द्वारा अंकित किया जाता है। इस प्रकार सभी जोड़ों के बिन्दु चित्र में बनाए जाते हैं। इस तरह X तथा Y के जितने जोड़े होते हैं, उनते ही बिन्दु अंकित हो जाते हैं। यह सभी बिन्दु एक निश्चित प्रवृत्ति को प्रकट करते हैं। इन बिन्दुओं की दिशा को देखकर धनात्मक अथवा ऋणात्मक सह-सम्बन्ध का पता लगता है, जबकि इन बिन्दुओं के बिखराव को देखकर सह-सम्बन्ध की मात्रा का ज्ञान प्राप्त होता है। बिखरे बिन्दु चित्र निम्नलिखित किस्म के हो सकते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 4

1. पूर्ण धनात्मक सह-सम्बन्ध (Perfect Positive Correlation)-जब बिन्दु एक सीधी रेखा का रूप धारण कर लेते हैं तथा उनकी ढाल धनात्मक होती है तो इस स्थिति में सह-सम्बन्ध गुणांक + 1 होगा।

2. ऊँचे दों का धनात्मक सह-सम्बन्ध (High degree of Positive Correlation)-जब भिन्न भिन्न मूल्यों के बिन्दु नीचे से ऊपर अर्थात् बाएं से दाएं ओर ऊपर की ओर बढ़ते हैं तथा सीधी रेखा के नज़दीक होते हैं तो इस स्थिति में ऊँचे दों का धनात्मक सह-सम्बन्ध होता है तथा सह-सम्बन्ध गुणांक (r) 0.5 से 1 तक होगा।

3. कम दों का धनात्मक सह-सम्बन्ध (Low degree of Positive Correlation)-जब दो चरों के बिन्दु बाएं से दाएं ओर ऊपर की ओर बढ़ते हैं, परन्तु रेखा से बिन्दुओं का बिखराव अधिक होता है तो इसको कम दों का सह-सम्बन्ध कहा जाता है। इस स्थिति में सह-सम्बन्ध गुणांक 0 से 0.5 तक होता

4. सह-सम्बन्ध की कमी (No Correlation)-जिस समय बिन्दुओं का फैलाव अनियत होता है, एक चर में परिवर्तन से दूसरा चर बहुत अधिक अथवा घट जाता है या स्थिर रहता है तो बिन्दु बिखरे होते हैं तथा उनमें कोई निश्चित प्रवृत्ति नज़र नहीं आती तो इस स्थिति को सह-सम्बन्ध की कमी कहा जाता है तथा सह-सम्बन्ध गुणांक 0 (शून्य) होता है।

5. पूर्ण ऋणात्मक सह-सम्बन्ध (Perfect Negative Correlation)-जब दो चरों का सम्बन्ध एक सीधी रेखा का रूप धारण कर लेता है तो वह रेखा बाईं ओर से दाईं ओर नीचे झुकी होती है तो इस स्थिति को पूर्ण ऋणात्मक सह-सम्बन्ध कहा जाता है, जैसे कि मांग वक्र होती है। इस स्थिति में सह-सम्बन्ध गुणांक r = – 1 होता है।

6. ऊँचे दों का ऋणात्मक सह-सम्बन्ध (High degree of Negative Correlation)-जब भिन्न भिन्न मूल्यों के बिन्दु बाईं ओर से दाईं ओर को नीचे की ओर जाते हैं तथा ऋणात्मक ढाल वाली रेखा के नज़दीक होते हैं तो इस स्थिति को ऊँचे दों का ऋणात्मक सह-सम्बन्ध कहा जाता है। इस स्थिति में सह-सम्बन्ध गुणांक r = – 0.5 से – 1 तक होता है।

7. कम दों का ऋणात्मक सह-सम्बन्ध (Low degree of Negative Correlation)-जब दो चरों के बिन्दु बाईं से दाईं ओर नीचे की ओर जाते हैं तो सीधी रेखा से उन बिन्दुओं की अधिक दूरी होती है तो इस सह-सम्बन्ध को कम दों का ऋणात्मक सह-सम्बन्ध कहा जाता है। इस स्थिति में सहसम्बन्ध गुणांक 0 से – 0.5 तक होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध

कार्ल पीयर्सन की सह-सम्बन्ध गुणांक विधि (Karl Pearson’s Co-efficient of Correlation) –

प्रश्न 4.
कार्ल पीयर्सन की सह-सम्बन्ध गुणांक विधि से क्या अभिप्राय है ? इस विधि द्वारा सह-सम्बन्ध की गणना कैसे की जाती है ?
(What is Karl Pearson’s Coefficient of Correlation Method? How co-efficient of correlation is calculated with this method ?)
उत्तर-
कार्ल पीयर्सन महत्त्वपूर्ण सांख्यिकी शास्त्री हुए हैं। उन्होंने 1870 में सह-सम्बन्ध गुणांक की गणना के लिए वैज्ञानिक तथा गणितीय विधि का निर्माण किया। कार्ल पीयर्सन अनुसार दो चरों के परस्पर सम्बन्ध को अंग्रेज़ी के अक्षर r द्वारा प्रकट किया जा सकता है। इस विधि के अनुसार r का मूल्य निश्चित तथा स्थाई होता है। यह विधि समान्तर औसत तथा प्रमाप विचलन पर आधारित है। इसलिए इस विधि को सबसे अच्छी विधि कहा जाता है। इस विधि से दो चरों की दिशा तथा मात्रा दोनों का ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है। इस विधि को कार्ल पीयर्सन के नाम पर ही कार्ल पीयर्सन की सह-सम्बन्ध गुणांक विधि कहा जाता है।

मुख्य विशेषताएं (Main Characteristics) –
1. दिशा का ज्ञान-दो श्रृंखलाओं में सह-सम्बन्ध की दिशा का नाम कार्ल पीयर्सन की इस विधि द्वारा प्राप्त हो जाता है। जब हमारे पास जवाब धनात्मक आता है तो दोनों श्रृंखलाओं का सम्बन्ध धनात्मक होता है, जब जवाब ऋणात्मक होता है तो सह-सम्बन्ध ऋणात्मक होगा।

2. मात्रा का ज्ञान-कार्ल पीयर्सन की इस विधि द्वारा दो चरों में कितना सम्बन्ध है इस का ज्ञान भी प्राप्त होता है। सह-सम्बन्ध गुणांक का माप हमेशा (-)1 से (0) शून्य तथा (+) 1 के बीच होता है। यदि जवाब (-) है तो पूर्ण ऋणात्मक सह-सम्बन्ध होगा। + 1 की स्थिति में पूर्ण धनात्मक सह-सम्बन्ध होता है। इसी तरह ऊँचे दों, मध्य दों अथवा कम दों के सह-सम्बन्ध का पता लग जाता है। इस प्रकार सहसम्बन्ध की मात्रा का ज्ञान भी इस विधि द्वारा हो जाता है। शून्य (0) की स्थिति में सह-सम्बन्ध की कमी होती है।

3. उत्तम विधि-यह विधि गणित औसत तथा प्रमाप विचलनों पर आधारित है। इसलिए सह-सम्बन्ध गुणांक के परिणाम शुद्ध तथा उचित होते हैं। इस विधि द्वारा व्यावहारिक तथा सैद्धान्तिक समस्याओं का हल किया जा सकता है। इसलिए सह-सम्बन्ध की गणना के लिए इस विधि को उत्तम विधि कहा जाता है।

कार्ल पीयर्सन के सह-सम्बन्ध की गणना (Calculation of Karl Pearson’s Co-efficient of Correlation)-
कार्ल पीयर्सन की इस विधि अनुसार सह-सम्बन्ध के गुणांक का माप करने के लिए दोनों चरों की समान्तर औसत में से लिए गए विचलनों के गुणनफल के योग को दोनों चरों के प्रमाप विचलनों के गुणनफल तथा सम्बन्धित चरों की संख्या (N) से विभाजित कर प्राप्त किया जाता है। इसलिए कार्ल पीयर्सन ने निम्नलिखित सूत्र दिया-

प्रत्यक्ष विधि अथवा वास्तविक समान्तर औसत विधि
r = \(\frac{\Sigma x y}{N \sigma_{x} \times \sigma y}\)
इस सूत्र में,
r = सह-सम्बन्ध गुणांक सिगमा Σ = जोड़
X = X- \(\bar{X}\)
Y = Y- \(\bar{Y} \)
N = मदों की संख्या oX = X मदों का प्रमाप विचलन
OY = Y मदों का प्रमाप विचलन
कार्ल पीयर्सन के ऊपर दिए सूत्र को निम्नलिखित रूप में लिखा जा सकता है-
r = \(\frac{\Sigma x y}{\sqrt{\Sigma x^{2} \times \Sigma y^{2}}}\)
क्योंकि r = \(\frac{\Sigma x y}{N \sigma \times \sigma y}=\frac{\Sigma x y}{\sqrt{\frac{\Sigma x^{2}}{N} \times \frac{\Sigma y^{2}}{N}}}=\frac{\Sigma x y}{\sqrt{\Sigma x^{2} \times y^{2}}}\)
यहां X = (x- \(\bar{X}\) ) तथा Y = (Y – \(\bar{Y}\) )

इस प्रकार सह-सम्बन्ध गुणांक (r) का मूल्य हमेशा – 1 तथा + के बीच रहता है।
माप विधि-

  1. दो श्रेणियों X तथा Y का समान्तर औसत (\(\bar{X}\) तथा \(\bar{Y}\) ) पता करो।
  2. दोनों श्रेणियों की समान्तर औसत से व्यक्तिगत मूल्यों का विचलन निकालो।
    (x = X-\(\bar{X}\) ) तथा (y = Y – \(\bar{X}\) )
  3. दोनों श्रेणियों के विचलनों x तथा ) का वर्ग (x2 तथा y2 ) निकालो तथा इनके वर्गों का अलग-अलग जोड़
    (Σx2 तथा Σy2) पता करो।
  4. दोनों श्रेणियों के विचलनों x तथा y को गुणा करके गुणनफल xy प्राप्त करो तथा गुणनफल जोड़ (Σxy) पता करो।
  5. निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करो।
    r = \(\frac{\Sigma x y}{\sqrt{\Sigma x^{2} \times \Sigma y^{2}}}\)
    इससे सह-सम्बन्ध गुणांक (r) का पता लग जाता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आंकड़ों का सह-सम्बन्ध गुणांक पता करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 5
हल (Solution) :
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 6
समान्तर औसत (Mean)
\(\bar{X}\) = \(\frac{\Sigma X}{N}=\frac{15}{5}\) = 3
\(\overline{\mathrm{Y}}\) = \(\frac{\Sigma Y}{N}=\frac{30}{5}\) = 6

सह-सम्बन्ध गुणांक
r = \(\frac{\Sigma x y}{\sqrt{\Sigma x^{2} \times \Sigma y^{2}}}\)
Σxy = 20, Σx2= 10,Σy2= 40
∴ r = \( \frac{20}{\sqrt{10 \times 40}}=\frac{20}{\sqrt{400}}=\frac{20}{20}\) = 1
1 = 1 उत्तर
इसलिए सह-सम्बन्ध गुणांक पूर्ण धनात्मक है। इससे पता चलता है कि जब कीमतों में वृद्धि होती है तो पूर्ति में भी वृद्धि हो रही है। कीमत में वृद्धि 1, 1 रु० है तथा पूर्ति में वृद्धि 2, 2 वस्तुओं की है। वृद्धि का अनुपात कीमत तथा पूर्ति में समान होने के कारण सह-सम्बन्ध गुणांक पूर्ण धनात्मक है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आंकड़ों से शादी के समय पति-पत्नी की आयु का सह-सम्बन्ध गुणांक कार्ल पीयर्सन विधि द्वारा ज्ञात करो।

पति की आयु : 20 25 28 30 32 45
पत्नी की आयु : 18 20 22 32 28 42

हल (Solution) :
कार्ल पीयर्सन का सह-सम्बन्ध पति की आयु
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 7
\(\bar{X}\) = \(\frac{\Sigma X}{N}=\frac{180}{6}\) = 30
\(\overline{\mathrm{Y}}\) = \(\frac{\Sigma Y}{N}=\frac{162}{6}\) = 27
r = \(\frac{\Sigma x y}{\sqrt{\Sigma x^{2} \times \Sigma y^{2}}}=\frac{362}{\sqrt{358 \times 386}}=\frac{362}{371.34}\) = 0.975
सह-सम्बन्ध 0.975 ऊंचे दों का धनात्मक सम्बन्ध है। इसका अर्थ है कि पति-पत्नी की आयु में सम्बन्ध सीधा तथा नज़दीकी है।

दूसरा सुत्र (Second Method)-
r = \(\frac{\Sigma d x d y-\frac{\Sigma d x \times \Sigma d y}{\mathrm{~N}}}{\sqrt{\Sigma d x^{2}-\frac{(\Sigma d x)^{2}}{N}} \sqrt{\Sigma d y^{2}-\frac{(\Sigma d y)^{2}}{N}}}\)

इस सूत्र में
r = सह-सम्बन्ध गुणांक
dx = x श्रेणी की मदों का उस श्रेणी की कल्पित औसत पर विचलन (X – A)
Σdx = X श्रेणी के विचलनों dx का जोड़
dy = Y श्रेणी की मदों का उस श्रेणी की कल्पित औसत से विचलन (Y – A)
Σdy = Y श्रेणी के विचलनों dy का जोड़।
Σdxdy = dx तथा dy के गुणनफल का जोड़
Σdr2 = dx के वर्गों का जोड़
Σdy2 = dy के वर्गों का जोड़
N = मदों की संख्या।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आंकड़ों का सह-सम्बन्ध गुणांक पता करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 8
हल (Solution) :
कीमत तथा मांग के बीच सह-सम्बन्ध गुणांक की गणना कामत | A = 12
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 9
कार्ल पीयर्सन का सह-सम्बन्ध गुणांक
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 10
r = \(\frac{(-) 105.33}{\sqrt{184-2.67} \sqrt{108-16.67}}\)
r = \(\frac{(-) 105.33}{\sqrt{181.33 \times 91.33}}\)
r = \(\frac{(-) 105.33}{\sqrt{16560.87}}\)
r = \(\frac{(-) 105.33}{128.69}\)
r = (-) 0.818 इसमें ऊँचे दों का ऋणात्मक सह-सम्बन्ध है। इससे अभिप्राय है कि दी गई सूचना में कीमत तथा मांग में ऊँचे दों का ऋणात्मक सह-सम्बन्ध है।

स्पीयरमैन की दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक विधि
(Spearman’s Co-efficient of Rank Correlation)

प्रश्न 8.
स्पीयरमैन की दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक विधि को स्पष्ट करो। (Explain Spearman’s Co-efficient of rank Correlation Method) ।
उत्तर-
इंग्लैंड के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक चार्ल्स एडवर्ड स्पीयरमैन ने 1904 में गुणात्मक तथ्यों के बीच सह-सम्बन्ध का पता करने के लिए एक विधि का निर्माण किया जिस विधि को स्पीयरमैन की दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक विधि कहा जाता है। इस विधि को स्पीयरमैन की दर्जा अन्तर विधि भी कहा जाता है। स्पीयरमैन के अनुसार कुछ तथ्य ऐसे होते हैं जिनका अंकों में माप नहीं किया जा सकता। उदाहरणस्वरूप सुन्दरता, भाषण मुकाबला, वीरता इत्यादि चरों को अंकों में नहीं दर्शाया जा सकता, बल्कि ऐसी स्थिति में प्राथमिकता क्रम दिए जाते हैं। भाषण प्रतियोगिता में 10 बुलारे भाग लेते हैं। निर्णय करने के लिए दो न्यायाधीश हैं।

ये न्यायाधीश अपनी काबलीयत तथा समझ अनुसार प्रतियोगियों को प्राथमिकता क्रम देते हैं। इन दोनों न्यायाधीशों के निर्णय को दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक द्वारा परख कर यह बताया जाता है कि इनके निर्णय में धनात्मक सम्बन्ध है अथवा ऋणात्मक सम्बन्ध है। इस प्रकार दोनों न्यायाधीशों के फैसले की दिशा का पता लगता है। इससे दोनों के निर्णय की मात्रा का भी पता किया जा सकता है। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए स्पीयरमैन ने निम्नलिखित सूत्र का निर्माण किया, जिस द्वारा दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक का पता किया जा सकता है
rk = \(1-\frac{6 \Sigma D^{2}}{N^{3}-N}\)
इस सूत्र में
rk = दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक
D2 = दो न्यायाधीशों द्वारा दिए गए प्राथमिकता क्रम का अंतर (R1 – R2) = D होता है, इसके वर्ग को D2 कहा जाता है तथा जोड़ को Σd2 कहा जाता है।
N = प्राथमिकता क्रम की संख्या
नोट : दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक का मूल्य – 1 से + के बीच होता है।
(1) यदि rk = (-) है तो इस स्थिति में दिए गए चरों के दर्जे एक-दूसरे के विपरीत होते हैं।
प्रथम न्यायाधीश द्वारा प्राथमिकता क्रम : 1. 2, 3, 4, 5, 6
द्वितीय न्यायाधीश द्वारा प्राथमिकता क्रम : 6, 5, 4. 3, 2, 1
इसको ऋणात्मक सह-सम्बन्ध दर्जा गुणांक कहा जाएगा।

(2) यदि rk = + 1 है तो इस स्थिति में दिए गए चरों के दर्जे एक-दूसरे के समरूप हैं तो इस स्थिति में प्राथमिकता क्रम एक-समान होता है। प्रथम न्यायाधीश द्वारा प्राथमिकता क्रम = 123456
द्वितीय न्यायाधीश द्वारा प्राथमिकता क्रम = 123456
इस स्थिति को पूर्ण धनात्मक दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक कहा जाता है।

(3) यदि rk = 0 है तो इस स्थिति में दो न्यायाधीशों द्वारा प्राथमिकता क्रम में कोई सम्बन्ध नहीं होता। दर्जा सह-सम्बन्ध के गुणांक की गणना दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक की गणना तीन स्थितियों में की जाती है –

  • जब दर्जे दिए हों।
  • जब दर्जे न दिए हों
  • जब श्रेणी मूल्य एक-दूसरे के समान हों।

(A) जब दर्जे दिए हों (When Ranks are Given)
दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक की गणना करते समय यदि दोनों श्रेणियों में भिन्न-भिन्न मदों के क्रम अथवा दर्जे दिए हों तो निम्नलिखित माप विधि का प्रयोग किया जाता है।

  • दिए गए दो दों का अन्तर (R1 – R2) की गणना करो तथा इन अन्तरों को D द्वारा लिखा जाता है।
  • इन अंतरों (D) का वर्ग निकालो इससे D प्राप्त हो जाएगा। इसका जोड़ कर लो जिसको ΣD द्वारा प्रकट किया जाता है।
  • इस प्रकार प्राप्त मूल्यों को निम्न सूत्र से भाग करो जिससे दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक (rk) का पता लग जाता है। rk = \(1-\frac{6 \Sigma D^{2}}{N^{3}-N}\)

प्रश्न 9.
सुन्दरता मुकाबले में दो न्यायाधीशों ने प्रतियोगियों को निम्नलिखित अनुसार प्राथमिकता क्रम प्रदान किए। इन न्यायाधीशों के फैसले में सह-

सम्बन्ध को स्पष्ट करो। प्रतियोगी A B C D E F
न्यायाधीश I द्वारा क्रम (Ranks) 1 2 3 4 5 6
न्यायाधीश II द्वारा क्रम (Ranks) 2 3 1 5 4 6

हल (Solution) :
दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक की गणना
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 12
दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक
rk = \(1-\frac{6 \Sigma D^{2}}{N^{3}-N}\)
rk = \(1-\frac{6(8)}{(6)^{3}-6} \) = \(1-\frac{48}{216-6}\)
rk = \(1-\frac{48}{210}\)
rk = 1 – 0.229
rk = 0.771 उत्तर

न्यायाधीशों के निर्णय में ऊँचे दर्जे का धनात्मक सह-सम्बन्ध है अर्थात् दोनों न्यायाधीशों द्वारा जो निर्णय दिया गया है उस निर्णय में काफ़ी हद तक सहमति पाई जाती है।

(B) जब दर्जे न दिए हों (When Ranks are not Given)
माप विधि

  1. दोनों श्रेणियों की मदों को घटते क्रमानुसार तथा बढ़ते क्रमानुसार लिखो। मान लो घटते क्रमानुसार लिखा जाता है तो सबसे बड़ी मद को दर्जा 1, उससे छोटी को दर्जा 2, उससे छोटी को 3 से तथा इस तरह अन्य की मदों के दर्जे लिख लो।
  2. दर्जा देने के पश्चात् दोनों श्रेणियों को मूल रूप में लिख लो तथा सम्बन्धित दर्जे प्रदान करो।
  3. प्रथम श्रेणी के दों तथा द्वितीय श्रेणी के दों का अंतर (D = R1 – R2) पता करो।
  4. दों के अन्तर D के वर्ग बनाओ (D2) तथा इनका जोड़ करो (ΣD2)
  5. निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करके दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक प्राप्त किया जा सकता है-
    rk = \(1-\frac{6 \Sigma D^{2}}{N^{3}-N}\)

प्रश्न 10.
अर्थशास्त्र तथा सांख्यिकी की परीक्षा में 10 विद्यार्थियों ने निम्नलिखित अनुसार अंक प्राप्त किए हैं।

अर्थशास्त्र : 30 42 25 55 38 65 40 18 60 28
सांख्यिकी : 60 35 40 75 80 48 50 55 62 70

हल (Solution) : पहले प्राप्त किए अंकों को घटते क्रमानुसार लिखो तथा दर्जा दो।

अर्थशास्त्र : 65 60 55 42 40 38 30 28 25 16
क्रम (Ranks) : 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
सांख्यिकी : 80 75 70 62 60 55 50 48 40 35
क्रम (Ranks): 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10

अब सारणी की मदों को मूल रूप में लिखकर ऊपर दिए क्रम उनके सामने अंकित करके दर्जा सह-सम्बन्ध पता करते हैं।
दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक की गणना
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 13
दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक
rk = \(1-\frac{6 \Sigma D^{2}}{N^{3}-N}\)
rk = \(1-\frac{6(162)}{(10)^{3}-10}\)
rk = \(1-\frac{972}{1000-10}\)
rk = \(1-\frac{972}{990}\) = 1 – 0.982 = 0.018 उत्तर
इससे अभिप्राय है कि 10 विद्यार्थियों द्वारा अर्थशास्त्र तथा सांख्यिकी में प्राप्त किए अंकों में बहुत कम दर्जे का धनात्मक सह-सम्बन्ध है। जब एक विद्यार्थी के अर्थशास्त्र में अंक अधिक हैं तो सांख्यिकी में कम हैं, जब अर्थशास्त्र के विषय में अंकों की वृद्धि होती है तो सांख्यिकी में वृद्धि है परन्तु यह सम्बन्ध हमेशा नहीं रहता। |

(C) जब श्रेणी मूल्य एक दूसरे के समान हों (When the Values of series are same or when Ranks are Repeated) कई बार श्रेणी में दो अथवा दो से अधिक मदों के मूल्य समान होते हैं। इस स्थिति में समान मूल्य की मदों को औसत दर्जा दिया जाता है। उदाहरणस्वरूप प्रथम तथा द्वितीय मद का मूल्य समान है। इनको 1 तथा 2 दर्जा मिलना था, परन्तु अब समान होने के कारण दोनों मदों को औसत दर्जा \(\frac{1+2}{2}\) = 1.5 दिया जाएगा। इसी तरह यदि कोई मूल्य तीन बार समान आते हैं जिनको 3, 4, 5 दर्जा मिलना था। इन तीन मदों के समान होने के कारण औसत दर्जा \(\frac{3+4+5}{3} \) = \(\frac{12}{3}\) = 4 दर्जा प्रत्येक मूल्य को दिया जाएगा। इस प्रकार दर्जा प्रदान करने के पश्चात् पहले दिए सूत्र का समायोजन किया जाता है।

समायोजन विधि (Adjustment Method)-इस स्थिति में ΣD2 में +\(\frac{1}{12}\) (m3 – m) पद को जमा किया जाता है। जब दो मदों के मूल्य समान है तो ΣD2 में \(\frac{1}{12}\) = (23 – 2) = 0.5 शामिल करते हैं , यदि तीन मदें समान हैं तो \(\frac{1}{12}\) [(3)3-3] = 2 को शामिल किया जाता है जितनी मदों के मूल्य समान होते हैं उतनी बार ΣD2 में (m3 -m) का मूल्य शामिल किया जाता है। इस प्रकार जब श्रेणी मूल्य एक-दूसरे के समान होते हैं तो दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक का सूत्र इस प्रकार प्रयोग किया जाता है।
rk =1 \(-\left[\frac{\left.6 \Sigma \mathrm{D}^{2}+\frac{1}{12}\left(m^{3}-m\right)+\frac{1}{12}\left(m^{3}-m\right)\right)+\frac{1}{12}\left(m^{3}-m\right)+\ldots \ldots \ldots}{\mathrm{N}^{3}-\mathrm{N}}\right] \)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध

प्रश्न 11.
कविता प्रतियोगिता में 7 प्रतियोगियों ने भाग लिया। दो न्यायाधीश द्वारा इन प्रतियोगियों को 100 में से निम्नलिखित अंक दिए गए। न्यायाधीश के निर्णय में दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक ज्ञात करो।

X : 82 80 70 70 68 67 50
Y: 17 25 25 40 16 20 10

हल (Solution) :
प्रथम X तथा Y श्रेणी के आँकड़ों को घटते क्रमानुसार लिखकर दर्जा प्रदान करते हैं।

X: 82 80 70 70 68 67 50
Ranks : 1 2 3.5 3.5 5 6 7

= \(\frac{3+4}{2}\) = 3.5

Y: 40 25 25 20 17 16 10
Ranks: 1 2.5 2.5 4 5 6 7

= \(\frac{2+3}{2}\) = 2.5
अब इनको मौलिक रूप में लिखकर प्रदान किए प्राथमिक क्रम लिखते हैं, परन्तु जितनी मदें समान हैं उस श्रेणी के ऊपर उनकी संख्या को अंकित किया जाता है। जैसे कि X श्रेणी में 70, 70 मदें समान हैं, उस श्रेणी के ऊपर m = 2 (item = 2) लिखा जाएगा। इसी तरह Y श्रेणी में 25, 25 दो मदें समान हैं तो इस स्थिति में Y श्रेणी के ऊपर m = 2 लिखा जाएगा। समायोजन सूत्र में m का मूल्य भर देते हैं।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 14
दर्जा सह-सम्बन्ध गुणांक
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 30 सह-सम्बन्ध 15
rk = \(1-\frac{6(29.5)}{336} \)
rk = \(1-\frac{177}{336}\)
rk = 1 – 0.527 = 0.473 उत्तर
दोनों न्यायाधीशों द्वारा निर्णय में धनात्मक दर्जा सह-सम्बन्ध है, परन्तु इस सह-सम्बन्ध में मध्य दर्जा के लगभग सह-सम्बन्ध पाया जाता है। परिणाम में पूर्ण सहमति नहीं है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 31 सूचकांक Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 31 सूचकांक

PSEB 12th Class Economics सूचकांक Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
सूचकांक किसे कहते हैं? उत्तर-सूचकांक वह अंक है जो किसी पूर्व निश्चित तिथि की चुनी हुई वस्तुओं या वस्तु समूह की कीमतों का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न 2.
सूचकांकों का एक लाभ लिखिए।
उत्तर-
सूचकांकों का सबसे महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि इनके द्वारा समय-समय पर कीमत-स्तर में होने वाले परिवर्तन या मुद्रा के मूल्य की क्रय-शक्ति में होने वाले परिवर्तन को मापा जा सकता है।

प्रश्न 3.
सूचकांकों की एक सीमा लिखिए। .
उत्तर-
सूचकांक पूर्णतया सत्य नहीं होते। उदाहरण के लिए, कीमत सूचकांकों की सहायता से मुद्रा के मूल्य में होने वाले परिवर्तन का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
सूचकांकों का व्यापारियों के लिए क्या लाभ है?
उत्तर-
उत्पादक तथा व्यापारी वर्ग सूचकांकों की सहायता से कीमत-स्तर में परिवर्तन तथा सामान्य आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाता है।

प्रश्न 5.
सूचकांकों का सरकार के लिए क्या लाभ है?
उत्तर-
सरकार सूचकांकों की सहायता से ही अपनी मौद्रिक अथवा कर-नीति का निर्धारण करती है और देश के आर्थिक विकास के लिए ठोस कदम उठाती है।

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प्रश्न 6.
वह माप जिस द्वारा समय, मात्रा, स्थान अथवा किसी अन्य आधार पर चरों में होने वाले परिवर्तन ………………….. कहते हैं।
उत्तर-
सूचकांक।

प्रश्न 7.
सूचकांक का निर्माण करने की लास्पीयर तथा पाश्चे की विधियों में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
लास्पीयर मदों के भार के रूप में आधार वर्ष की मात्राओं का प्रयोग करते हैं जबकि पाश्चे चालू वर्ष की मात्राओं का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 8.
सूचकांक का यह सूत्र किस द्वारा दिया गया है ?
Po1 = \(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{0}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{0}} \times 100\)
(a) लास्पीयर
(b) पाश्चे
(c) फिशर
(d) मार्शल।
उत्तर-
(a) लास्पीयर।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित सूत्र किसने दिया है ?
P01 = \(\sqrt{\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} \mathrm{q}_{0}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} \mathrm{q}_{0}} \times \frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} \mathrm{q}_{1}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} \mathrm{q}_{1}}} \times 100\)
(a) लास्पीयर
(b) पाश्चे
(c) फिशर
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) फिशर।

प्रश्न 10.
जिस सूचकांक द्वारा थोक बाज़ार में बेची जाने वाली वस्तुओं की थोक कीमतों में होने वाले सापेक्ष परिवर्तनों को मापते हैं उसको …………… कहते हैं।
उत्तर-
थोक कीमत सूचकांक।

प्रश्न 11.
वह सूचकांक जो औद्योगिक उत्पादन की मात्रा में होने वाले परिवर्तन को मापते हैं उनको ………….. कहते हैं।
उत्तर-
औद्योगिक सूचकांक।

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प्रश्न 12.
मुद्रा स्फीति को थोक कीमत सूचकांक में परिवर्तन के रूप में मापते हैं जो कि थोक कीमतों के ……………… समय पर आधारित होते हैं।
उत्तर-
साप्ताहिक।

प्रश्न 13.
फिशर का सूचकांक समय उल्टाऊ परीक्षण तथा तत्त्व (Factor) उल्टाऊ परीक्षण पर ठीक उत्तर देता है इसलिए फिशर के सूचकांक को आदर्श सूत्र माना जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 14.
सबसे अच्छा सूचकांक किस सांख्यिकी शास्त्री का माना जाता है ?
उत्तर-
फिशर का।

प्रश्न 15.
सरल सूचकांक की रचना चार प्रकार की होती है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 16.
भारित सूचकांक के परिणाम अधिक उपयुक्त होते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
समूहीकरण व्यय विधि अनुसार उपभोक्ता कीमत सूचकांक का सूत्र लिखें।
उत्तर-
उपभोक्ता कीमत सूचकांक = \(\frac{\Sigma p_{1} q_{0}}{\Sigma p_{0} q_{0}} \times 100\)

प्रश्न 18.
परिवारिक बजट विधि अनुसार उपभोक्ता सूचकांक बनाने का सूत्र लिखो।
उत्तर-
उपभोक्ता कीमत सूचकांक = \(\frac{\Sigma \mathrm{RW}}{\Sigma \mathrm{W}}\)

प्रश्न 19.
उपभोक्ता कीमत सूचकांक को जीवन निर्वाह लागत सूचकांक भी कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 20.
मुद्रा स्फीति की दर के माप का सूत्र लिखो।
उत्तर-
मुद्रा स्फीति की दर = \(\frac{\mathrm{A}_{2}-\mathrm{A}_{1}}{\mathrm{~A}_{1}} \times 100\)

प्रश्न 21.
औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक के माप का सूत्र लिखो।
उत्तर-
औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक = \(\frac{\Sigma\left(\frac{p_{1}}{q_{0}}\right) W}{\Sigma W} \times 100\)

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II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न । (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कीमत सूचकांक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कीमत सूचकांक से अभिप्राय किसी देश में कीमत में हुए परिवर्तन को प्रकट करना होता है। जब किसी देश में कीमत सूचकांक में वृद्धि होती है तो इसका अर्थ देश की कीमत स्तर में वृद्धि हो रही है तथा मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो रही है। जब कीमत सूचकांक में कमी होती है तो इससे अभिप्राय है कि देश में मुद्रा अस्फीति की स्थिति है। मुद्रा स्फीति तथा अस्फीति के अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ते हैं।

प्रश्न 2.
सूचकांक बनाने की विधि की कोई दो समस्याएँ बताएं।
उत्तर-
1. सूचकांक का उद्देश्य (Purpose of Index Numbers)-सूचकांक तैयार करने के लिए आंकड़े एकत्रित करने से पहले सूचकांक का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। यदि बिना उद्देश्य से आंकड़ें एकत्रित किए जाते हैं तो इससे आर्थिक स्थिति का पूरा ज्ञान प्राप्त नहीं होता।

2. वस्तुओं का चयन (Selection of Commodities)-सूचकांक का निर्माण करते समय वस्तुओं का चयन भी महत्त्वपूर्ण होता है। सभी वस्तुओं को शामिल करके सूचकांकों का निर्माण नहीं किया जाता, बल्कि यह फैसला करना पड़ता है कि –

  • कितनी वस्तुओं को लेकर सूचकांकों का निर्माण किया जाए ?
  • कौन-सी वस्तुओं का चयन किया जाए ?
  • वस्तुओं की कौन-सी किस्म को शामिल किया जाए ? वस्तुओं का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि सूचकांक में शामिल की वस्तुएं साधारण लोगों के उपभोग अनुसार होनी चाहिए तथा चुनी हुई वस्तुएं उच्च गुण वाली होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
सूचकांक तथा मुद्रा स्फीति के सम्बन्ध को स्पष्ट करें।
उत्तर-
हमारी रोज़ाना की ज़िन्दगी में वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों की वृद्धि का अनुभव किया जाता है। जब वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों के स्तर में वृद्धि तीव्रता से तथा निरन्तर होती है तो इस स्थिति को मुद्रा-स्फीति कहा जाता है। मुद्रा-स्फीति के परिणामस्वरूप मुद्रा की खरीद शक्ति कम हो जाती है। मुद्रा-स्फीति का सम्बन्ध थोक की कीमतों (Wholesale Prices) से है। भारत में थोक की कीमतें प्रत्येक सप्ताह मापी जाती है। इस उद्देश्य के लिए सूचकांकों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 4.
भारित सूचकांक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारित सूचकांक (Weighted Index Numbers)-सूचकांक की भारित सूचकांक विधि अधिक प्रचलित है तथा विधि का साधारण तौर पर प्रयोग किया जाता है। इस विधि में भिन्न-भिन्न वस्तुओं के भार दिए होते हैं। जब वस्तुओं के भार अथवा महत्त्व को ध्यान में रखकर सूचकांक तैयार किया जाता है तो इसको भारित सूचक कहते

प्रश्न 5.
फिशर की सूचकांक माप विधि का सूत्र बताएँ।
उत्तर-
फिशर की विधि (Fisher’s Method)-प्रो० इरविंग फिशर के फार्मले में आधार वर्ष तथा वर्तमान वर्ष की मात्राओं को आधार माना जाता है। प्रो० फिशर ने सूचकांक की गणना करने के लिए लास्पेयर तथा पास्चे के सूचकांकों की रेखागणितीय औसत का प्रयोग किया है। इस सूत्र को सूचकांक की रचना का आदर्श सूत्र कहा जाता है-
P01(F) = \(\sqrt{\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{0}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{0}} \times \frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{1}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{1}}} \times 100\)

प्रश्न 6.
उपभोक्ता सूचकांक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोक्ता सूचकांक वह सूचकांक है जो उपभोक्ता द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन का माप करने के लिए प्रयोग किया जाता है। भिन्न-भिन्न वर्ग के लोग भिन्न-भिन्न वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। पिछले वर्ष की तुलना में वर्तमान वर्ष में इन वस्तुओं तथा सेवाओं की लागत में आए परिवर्तन का माप किया जाता है। इसीलिए उपभोक्ता सूचकांक को जीवन निर्वाह लागत (Cost of Living Index Number) भी कहा जाता है। यह सूचकांक परचून कीमतों (Retail Price) के आधार पर बनाया जाता है।

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प्रश्न 7.
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का अर्थ बताएँ।
उत्तर-
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक वह सूचकांक होता है जो हमें आधार वर्ष की तुलना में किसी देश में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि अथवा कमी को प्रकट करता है। इस सूचकांक की सहायता से किसी देश में औद्योगिक विकास का ज्ञान प्राप्त होता है। भारत में 1993-94 को आधार वर्ष मान कर औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की गणना की जाती है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कीमत सूचकांक से क्या अभिप्राय है ? इसका क्या उद्देश्य होता है ?
उत्तर-
कीमत सूचकांक से अभिप्राय किसी देश में कीमत में हुए परिवर्तन को प्रकट करना होता है। जब किसी देश में कीमत सूचकांक में वृद्धि होती है तो इसका अर्थ देश की कीमत स्तर में वृद्धि हो रही है तथा मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो रही है। जब कीमत सूचकांक में कमी होती है तो इससे अभिप्राय है कि देश में मुद्रा अस्फीति की स्थिति है। मुद्रा स्फीति तथा अस्फीति के अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ते हैं।

कीमत सूचकांक के उद्देश्य-

  1. देश में कीमत स्तर का ज्ञान प्राप्त करना।
  2. आर्थिक प्रगति का सूचक।
  3. आर्थिक प्रगति में कीमत स्तर पर तथा वास्तविक वृद्धि का ज्ञान।

प्रश्न 2.
मात्रा सूचकांक से क्या अभिप्राय है? मात्रा सूचकांक का क्या उद्देश्य होता है ?
उत्तर-
मात्रा सूचकांक वस्तुओं की मात्रा में हुई तबदीली का सूचक होता है। मात्रा सूचकांक इस बात का प्रकटावा करता है कि विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में प्रतिशत परिवर्तन कितना हुआ है। इस द्वारा अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में हुई पैदावार का ज्ञान होता है। जब मात्रा सूचकांक बढ़ता है तो इससे अभिप्राय है कि अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रिया बढ़ रही है-मात्रा सूचकांक घटता है तो देश में आर्थिक क्रिया में घाटे का प्रतीक है।

प्रश्न 3.
आधार वर्ष से क्या अभिप्राय है ? आधार वर्ष की विशेषताएँ बताओ।
उत्तर-
आधार वर्ष वह वर्ष होता है, जिसको आधार मान कर तुलना की जाती है। आधार वर्ष को 100 मानकर वर्तमान वर्ष से तुलना करते है। इसकी विशेषताएँ यह हैं-

  1. यह वर्ष परिवर्तनों रहित साधारण होना चाहिए।
  2. इस वर्ष सम्बन्धी विश्वसनीय तथा उचित आंकड़े उपलब्ध होने चाहिए।
  3. आधार वर्ष तुलना के वर्ष से बहुत दूर नहीं होना चाहिए।
  4. आधार वर्ष की अवधि उचित होनी चाहिए।

कम-से-कम एक माह तथा अधिक-से-अधिक एक वर्ष।

प्रश्न 4.
सूचकांकों की विशेषताएँ लिखो।
उत्तर-
सूचकांकों की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं –

  1. परिवर्तनों का सापेक्ष माप-सूचकांकों द्वारा विशेष चर अथवा चरों में सापेक्ष अथवा प्रतिशत परिवर्तनों का माप किया जाता है। जैसे कि कीमत सूचकांक आधार वर्ष की तुलना में वर्तमान वर्ष में कीमत में प्रतिशत वृद्धि अथवा घाटे को स्पष्ट करते हैं।
  2. संख्यात्मक व्याख्या- सूचकांक संख्याओं के रूप में परिवर्तनों को स्पष्ट करते हैं, जैसे कि 2000 की तुलना में 2006 में सूचकांक 115 हो गया है तो इससे अभिप्राय है कीमतों में 15% वृद्धि हो गई है।
  3. औसतों का माप-सूचकांक औसतों का माप करते हैं। इनको विभिन्न इकाइयों टन, क्विटल, मीटर में व्यक्त नहीं किया जाता, बल्कि इकाई के रूप में माप किया जाता है।

प्रश्न 5.
सूचकांकों का साधारण लोगों को क्या लाभ है ?
उत्तर-
सूचकांकों द्वारा साधारण लोगों को कई प्रकार की सूचना प्राप्त होती है।

  1. देश में कीमत स्तर में हुई वृद्धि का ज्ञान प्राप्त होता है।
  2. बैंक अधिकारी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति अनुसार ब्याज की दर निश्चित करते हैं।
  3. रेल का किराया निश्चित करने में सहायक होते हैं।
  4. श्रम संघ मज़दूरों की मजदूरी में वृद्धि कीमत स्तर की वृद्धि अनुसार बढ़ाने का यत्न करते हैं।
  5. समाज सुधारकों, राजनीतिज्ञों तथा सट्टेबाजों को निर्णय लेने में सहायक होते हैं।

प्रश्न 6.
सूचकांकों की सीमाएं बताओ।
उत्तर-
सूचकांकों की सीमाएं इस प्रकार हैं-

  • सूचकांक पूर्ण सच्चाई प्रकट नहीं करते। यह अनुमानित परिवर्तन का ज्ञान देते हैं।
  • सूचकांक विशेष उद्देश्यों अनुसार तैयार किए जाते हैं। इन को दूसरे उद्देश्यों पर लागू नहीं किया जा सकता।
  • सूचकांक थोक कीमतों (Wholesale Price) अनुसार बनाए जाते हैं। इनको परचून कीमतों पर लागू नहीं किया जा सकता।
  • सूचकांक को वज़न (Weight) देने की कोई विधि नहीं है।
  • सूचकांकों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय तुलना नहीं की जा सकती।

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प्रश्न 7.
सूचकांक निर्माण करने की सरल सामूहिक विधि क्या है ?
उत्तर-
सरल सामूहिक विधि द्वारा सूचकांक का निर्माण करने के लिए वर्तमान वर्ष के मूल्यों के जोड़ को आधार वर्ष के मूल्यों से जोड़ने तथा विभाजित करने से 100 गुणा किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
P01 = \(\frac{\Sigma P_{1}}{\Sigma P_{0}} \times 100\)
इसमें P01= कीमत सूचकांक,
ΣP = वर्तमान वर्ष में वस्तुओं की कीमतों का जोड़,
ΣP = आधार वर्ष में वस्तुओं की कीमतों का जोड़।

प्रश्न 8.
सूचकांक निर्माण करने के लिए सरल कीमत अनुपात विधि को स्पष्ट करो।
उत्तर-
सूचकांक निर्माण में सभी वस्तुओं को शामिल नहीं किया जाता है बल्कि सैंपल के आधार पर वस्तुओं को शामिल किया जाता है। प्रत्येक वस्तु का अलग-अलग कीमत अनुपात मापा जाता है।
कीमत अनुपात P01 = \(\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)\)
विभिन्न वस्तुओं की कीमत अनुपात का माप करने के उपरान्त उनको जोड़ कर वस्तुओं की संख्या पर विभाजित किया जाता है, जिससे सरल कीमत अनुपात सूचकांक प्राप्त हो जाता है।
P01 = \(\frac{\sum\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)}{N}\)
ΣN इसमें P01 = कीमत सूचकांक, P1 = वर्तमान वर्ष में कीमत, P0 = आधार वर्ष की कीमत,
N = वस्तुओं की संख्या।

प्रश्न 9.
थोक कीमत सूचकांकों से क्या अभिप्राय है ? थोक कीमत सूचकांक में परिवर्तन किस बात का सूचक है ?
उत्तर-
थोक कीमत सूचकांक से अभिप्राय उस सूचकांक से है, जिसके निर्माण में थोक कीमतों का प्रयोग किया जाता है। थोक कीमत सूचकांक को साप्ताहिक आधार पर प्रकाशित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य देश में कीमतों में परिवर्तन का माप करना होता है।

प्रश्न 10.
उपभोक्ता कीमत सूचकांक से क्या अभिप्राय है ? इसका माप कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
उपभोक्ता कीमत सूचकांक (C.P.I.) को निर्वाह लागत सूचकांक (Cost of living Index Number) भी कहा जाता है। यह सूचकांक विभिन्न वर्ग के उपभोक्ताओं के लिए तैयार किया जाता है। इसमें एक वर्ग के लोगों द्वारा वर्तमान वर्ष में आधार वर्ष की तुलना परचून कीमतों (Retail Prices) के आधार पर की जाती है। इसकी दो माप विधियां हैं-

  1. सामूहिक व्यय विधि-इस उद्देश्य के लिए लास्पेयर्स के सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
    उपभोक्ता कीमत सूचकांक अथवा निर्वाह लागत सूचकांक = \(\frac{\Sigma p_{1} q_{0}}{\Sigma p_{0} q_{0}} \times 100\)
  2. पारिवारिक बजट विधि- इसमें आनुपातिक कीमत विधि का प्रयोग किया जाता है उपभोक्ता कीमत सूचकांक अथवा निर्वाह लागत सूचकांक = \(\frac{\Sigma \mathrm{RW}}{\Sigma \mathrm{W}}\)
    यहां R = \(\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)\) तथा W = P0q0
    सामूहिक व्यय विधि तथा पारिवारिक बजट विधि का परिणाम समान होता है।

प्रश्न 11.
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक से क्या अभिप्राय है ? इसका माप क्या स्पष्ट करता है ?
उत्तर-
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक वह सूचकांक होता है जो कि आधार वर्ष की तुलना में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि अथवा घाटे को व्यक्त करता है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का माप इस सूत्र द्वारा किया जाता है-
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक = \(\frac{\Sigma\left(\frac{q_{1}}{q_{0}}\right) w}{\Sigma w} \times 100\)
इस सूत्र में q1 = वर्तमान वर्ष का औद्योगिक उत्पादन, q0 = आधार वर्ष का औद्योगिक उत्पादन, w = वज़न अथवा भार।

प्रश्न 12.
सूचकांक मुद्रा स्फीति का सूचक कैसे होते हैं ?
अथवा
मुद्रा-स्फीति तथा सूचकांकों के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
हमारी रोज़ाना की ज़िन्दगी में वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों की वृद्धि का अनुभव किया जाता है। जब वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों के स्तर में वृद्धि तीव्रता से तथा निरन्तर होती है तो इस स्थिति को मुद्रा-स्फीति कहा जाता है। मुद्रा-स्फीति के परिणामस्वरूप मुद्रा की खरीद शक्ति कम हो जाती है। मुद्रा-स्फीति का सम्बन्ध थोक की कीमतों (Wholesale Prices) से है। भारत में थोक की कीमतें प्रत्येक सप्ताह मापी जाती है। इस उद्देश्य के लिए सूचकांकों का प्रयोग किया जाता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सूचकांक से क्या अभिप्राय है ? सूचकांक की विशेषताएं बताओ। (What is the meaning of Index Numbers ? Explain its characteristics.)
उत्तर-
सूचकांक का अर्थ (Meaning of Index Numbers)-सूचकांक एक विशेष प्रकार की औसत होती है जोकि समय, मात्रा अथवा स्थान इत्यादि के आधार पर कीमत, उपभोग, उत्पादन, राष्ट्रीय आय इत्यादि में परिवर्तन को प्रतिशत के रूप में प्रकट करती है। सूचकांक का प्रयोग सबसे पहले जी० आर० चारली ने किया है। वह इटली के रहने वाले थे। सन् 1500 से लेकर 1750 तक कीमत स्तर में हुए परिवर्तन का अध्ययन करना उनका मुख्य उद्देश्य था।

इस प्रकार सूचकांक का प्रयोग केवल कीमत स्तर में परिवर्तनों को मापने के लिए की जाने लगी। सांख्यिकी के विकास से सूचकांक का क्षेत्र भी विशाल हो गया। सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्र के प्रत्येक पहल में परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए सूचकांकों का प्रयोग किया जाता है। इसलिए सूचकांक एक ऐसा यन्त्र है जिस द्वारा एक चर अथवा चरों के समूहों में भिन्न-भिन्न समय में होने वाले परिवर्तनों का माप किया जाता है।

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परिभाषाएं-

  1. प्रो० क्राक्सटन तथा काउडन के अनुसार, “सूचकांक वह यन्त्र है जिनके द्वारा सम्बन्धित तथ्यों के मूल्यों के आकार में होने वाले परिवर्तनों का माप किया जाता है।” (“Index Numbers are devices for measuring difference in the magnitude of a group of related variables.” -Croxton and Cowden)
  2. प्रो० एस० आर० सपीगल के शब्दों में, “सूचकांक एक सांख्यिकी माप है, जिस द्वारा एक चर अथवा चरों के समूह में समय, स्थान अथवा अन्य विशेषताओं के आधार पर होने वाले परिवर्तनों को दर्शित करना है।” (“As Index number is a statistical measure designed to show changes in variables or a group of related variabels with respect to time, geographical location or other characteristics.” -M.R. Spiegal)
    इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सूचकांक विशेष प्रकार की औसत होती है, जिस द्वारा समय अथवा स्थान अनुसार होने वाले परिवर्तनों का माप किया जाता है।

सूचकांक की विशेषताएं (Features of Index Number)- सूचकांक की विशेषताएं निम्नलिखित अनुसार-
1. विशेष प्रकार की औसत (Special Average)-सूचकांक विशेष प्रकार के औसत होते हैं। केन्द्रीय प्रवृत्तियों के माप में भिन्न-भिन्न मदों की इकाइयां एक जैसी होती हैं, जहां भिन्न-भिन्न मदों की इकाइयां एक समान न हों, उस स्थिति में सूचकांक का प्रयोग किया जा सकता है। जब यह कहा जाता है कि सूचकांक में वृद्धि 10% हो गई है। इसका अर्थ यह नहीं कि सभी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई है। कुछ वस्तुओं की कीमत कम भी हो सकती है अथवा समान रहती है। परन्तु औसत वृद्धि को व्यक्त सूचकांक द्वारा किया जाता है।

2. परिवर्तन का माप (Measurement of Change)- सूचकांक द्वारा समय, स्थान अथवा दूसरे किसी आधार पर तथ्यों में होने वाले परिवर्तन का माप किया जाता है। यह माप कीमत, उत्पादन, उपभोग इत्यादि में परिवर्तन का हो सकता है।

3. तुलना में प्रयोग (Used for Comparison).- सूचकांक की एक विशेषता यह है कि इसका प्रयोग तुलना के लिए किया जाता है। समय, स्थान अथवा किसी अन्य आधार पर एक चर अथवा एक से अधिक चरों में तुलना की जा सकती है। यदि 1980 से 1990 तक कीमत स्तर में तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है तो 1980 को आधार वर्ष कहते हैं।

4. प्रतिशत में प्रदर्शन (Presented in Percentages)-सूचकांक को प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। आधार वर्ष के मूल्य को 100 के समान मानकर वर्तमान वर्ष के मूल्य का अध्ययन किया जाता है। यदि सूचकांक 112 हो गया है तो कीमत स्तर में वृद्धि 12% हुई है। यदि कीमत सूचकांक 96 है तो कीमत स्तर में कमी 4% हो गई है। इस प्रकार सूचकांक को प्रतिशत रूप में व्यक्त किया जाता है।

5. सर्व-व्यापक प्रयोग (Universal Application)-सूचकांक का प्रयोग प्रत्येक क्षेत्र तथा प्रत्येक देश में किया जाता है। प्रत्येक देश में कीमत स्तर, उत्पादन, उपभोग, बचत, राष्ट्रीय आय में परिवर्तन का माप करने के लिए सूचकांक एक सर्व-व्यापक विधि है।

प्रश्न 2.
सूचकांक बनाने की विधि तथा इसकी समस्याओं का वर्णन करो। (Explain the method for the construction and problems of Index Numbers.)
अथवा
सूचकांक बनाते समय कौन-सी मुश्किलें आती हैं ? (What are the difficulties in the construction of Index Numbers ?)
अथवा
सूचकांक बनाने सम्बन्धी समस्याओं, फ़ैसलों अथवा निर्देशों की व्याख्या करो। (Explain the problems in the construction of Index Numbers, Decisions and Directions.)
उत्तर-
सूचकांक बनाते समय बहुत-सी समस्याएं आती हैं। अब हम उन समस्याओं से सम्बन्धित फ़ैसलों तथा निर्देशों का अध्ययन करते हैं-

  1. सूचकांक का उद्देश्य (Purpose of Index Numbers)-सूचकांक तैयार करने के लिए आंकड़े एकत्रित करने से पहले सूचकांक का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। यदि बिना उद्देश्य से आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं तो इससे आर्थिक स्थिति का पूरा ज्ञान प्राप्त नहीं होता।
  2. वस्तुओं का चयन (Selection of Commodities)-सूचकांक का निर्माण करते समय वस्तुओं का चयन भी महत्त्वपूर्ण होता है।

सभी वस्तुओं को शामिल करके सूचकांकों का निर्माण नहीं किया जाता, बल्कि यह फैसला करना पड़ता है कि-

  • कितनी वस्तुओं को लेकर सूचकाकों का निर्माण किया जाए ?
  • कौन-सी वस्तुओं का चयन किया जाए ?
  • वस्तुओं की कौन-सी किस्म को शामिल किया जाए ?

वस्तुओं का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि सूचकांक में शामिल की वस्तुएं साधारण लोगों के उपभोग अनुसार होनी चाहिए तथा चुनी हुई वस्तुएं उच्च गुण वाली होनी चाहिए।

3. कीमतों का चयन (Selection of Prices)-वस्तुओं का चयन करने के पश्चात् वस्तुओं की कीमतें एकत्रित करने की समस्याओं का सामना करना पड़ता है अर्थात् थोक की कीमतें ली जाएं अथवा परचून कीमतें लेकर सूचकांक तैयार किया जाए। इसलिए वस्तुओं की कीमतें थोक बाज़ार में से प्राप्त की जाएं अथवा परचून बाज़ार में से प्राप्त की जाएं। कीमतों में करों को शामिल किया जाए अथवा न किया जाए। यह फ़ैसले करते समय सूचकांक के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए । यदि सूचकांक का उद्देश्य लोगों के जीवन निर्वाह व्यय में परिवर्तन सम्बन्धी अध्ययन करना है तो सूचकांक का निर्माण करते समय परचून कीमतों का प्रयोग करना चाहिए।

4. आधार वर्ष का चयन (Selection of Base Year)-सूचकांक का निर्माण करते समय आधार वर्ष चुनना पड़ता है। जिस वर्ष से चालू वर्ष की कीमतों की तुलना की जाती है, उसको आधार वर्ष कहा जाता है। इस वर्ष के सूचकांक को 100 अंक लिया जाता है। आधार वर्ष का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि –

  • यह वर्ष साधारण हो अर्थात् इस वर्ष कोई असाधारण घटना न घटी हो जैसे कि युद्ध, जंग अथवा बाढ़ इत्यादि न आए हों।
  • यह वर्ष बहुत पुराना नहीं होना चाहिए। इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए। भारत में 1980-81 का वर्ष सूचकांक का आधार वर्ष माना जाता है।

5. औसत चयन (Selection of Average)-सूचकांक बनाते समय यह निर्णय भी करना पड़ता है कि कौन-सी औसत समान्तर औसत अथवा रेखा गणिती औसत का प्रयोग किया जाए। चाहे रेखा गणिती औसत से अधिक विश्वसनीय परिणाम प्राप्त होते हैं परन्तु व्यावहारिक तौर पर समान्तर औसत का प्रयोग किया जाता है।

6. सूचकांक की गणना (Calculation of Index Numbers)-सूचकांक की गणना करते समय आधार वर्ष की कीमतों (P1) को 100 मान लिया जाता है इसके पश्चात् वर्तमान वर्ष की कीमतों (P0) में परिवर्तन की प्रतिशत का माप किया जाता है। इस प्रकार सूचकांक (P01) अर्थात् आधार वर्ष की कीमतों की तुलना में वर्तमान वर्ष (1) की कीमतों में कितने प्रतिशत परिवर्तन हुआ है, उसको सूचकांक कहते हैं।
उदाहरणस्वरूप आधार वर्ष में दूध की कीमत 5 रु० प्रति लिटर थी। वर्तमान वर्ष की दूध की कीमत 15 रु० प्रति लिटर है तो सूचकांक |
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 1
होगा अर्थात् आधार वर्ष के सूचकांक 100 से वर्तमान वर्ष का सूचकांक 300 है तो दूध की कीमत में तीन गुणा अथवा 300% वृद्धि हो गई है। इस प्रकार सूचकांक की गणना की जाती है।

7. भार का निर्धारण (Determination of Weights)-सूचकांक में शामिल की वस्तुओं को एक समान महत्त्व नहीं दिया जाता। जैसे कि गेहूँ, दूध, सब्जियां, अधिक महत्त्वपूर्ण हैं तथा स्कूटर, कार कम महत्त्वपूर्ण वस्तुएं हैं। इसलिए गेहूं, दूध, सब्जियों को अधिक भार देना चाहिए। स्कूटर का महत्त्व गांवों से अधिक शहरों में है। इसलिए भार का निर्धारण करते समय समस्या का सामना करना पड़ता है। किसी स्थान पर लोगों की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक इत्यादि स्थिति को ध्यान में रखकर वस्तुओं को भार देने चाहिए।

8. सूत्र का चयन (Selection of Formula)-सूचकांक बनाने के बहुत से सूत्र हैं। इनमें से किस सूत्र का प्रयोग किया जाए। इस सम्बन्धी फ़ैसला करने के लिए आंकड़ों की प्रकृति तथा सूचकांक के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए। सूचकांक बनाने की मुख्य दो विधियां हैं –

A. साधारण सूचकांक (Simple Index Numbers)-साधारण सूचकांक निर्माण के दो ढंग हैं-

  • सरल समूहीकरण विधि
  • सरल कीमत अनुपात औसत विधि।

B. भारित सूचकांक (Weighted Index Numbers)
(i) भारित समूहीकरण विधि –
(a) लास्पेयर्स की विधि
(b) पास्चे की विधि
(c) डारब्शि तथा बाऊले की विधि
(d) फिशर की विधि।

(ii) भारित कीमत अनुपात औसत विधि-इन विधियों में से चयन की समस्या होती है। इसका निर्णय सूचकांक के उद्देश्य को ध्यान में रखकर करना चाहिए।

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प्रश्न 3.
सूचकांक बनाने की मुख्य विधियां बताओ। (Explain the methods of Constructing Index Numbers.)
अथवा
सूचकांक की मुख्य किस्में लिखो। (Explain the main types of Index Numbers.)
उत्तर-
सूचकांक बनाने की मुख्य विधियां (Main methods of Constructing Index Numbers)सूचकांक बनाने की विधियों को सूचकांक की किस्में भी कहा जा सकता है। सूचकांक की मुख्य विधियां निम्नलिखित अनुसार हैं –
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पीछे दिए चार्ट अनुसार सूचकांक मुख्य तौर पर दो प्रकार के होते हैं –
A. साधारण सूचकांक
B. भारित सूचकांक।

A. साधारण सूचकांक (Simple Index Numbers)-साधारण सूचकांक निर्माण की दो विधियां हैं-
1. सरल समूहीकरण विधि (Simple Index Numbers)-सूचकांक बनाने की सरल समूहीकरण विधि में वर्तमान वर्ष में भिन्न-भिन्न वस्तुओं की दी हुई कीमतों का जोड़ (ΣP1 ) किया जाता है। आधार वर्ष में भिन्न-भिन्न वस्तुओं की कीमतों का जोड़ (ΣP0) किया जाता है। वर्तमान वर्ष की कीमतों के जोड़ को आधार वर्ष की कीमतों के जोड़ से विभाजित करके 100 गुणा कर दिया जाता है। इससे सूचकांक प्राप्त हो जाता है।

इस विधि द्वारा सूचकांक की गणना का सूत्र निम्नलिखित अनुसार है-
कीमत सूचकांक (P01) = \(\frac{\Sigma P_{1}}{\Sigma P_{0}} \times 100\)
इस सूत्र में P01 = कीमत सूचकांक, 0 = आधार वर्ष, 1 = वर्तमान वर्ष ।
ΣP1 = वर्तमान वर्ष में भिन्न-भिन्न वस्तुओं की कीमतों का जोड़।
ΣP0 = आधार वर्ष में भिन्न-भिन्न वस्तुओं की कीमतों का जोड़।

2. सरल कीमत अनुपात औसत विधि (Simple Average of Price Relative Method) – सरल कीमत अनुपात औसत विधि में पहले प्रत्येक वस्तु की कीमत अनुपात पता किया जाता है। किसी वस्तु की कीमत अनुपात वर्तमान वर्ष की कीमत (P1) तथा आधार वर्ष की कीमत (P0) का प्रतिशत अनुपात होता है। यदि दो वस्तुओं की कीमत अनुपात का प्रतिशत निकालकर वस्तुओं की संख्या से विभाजित किया जाए तो हमारे पास कीमत अनुपात सूचकांक प्राप्त हो जाता है।

कीमत अनुपात सूचकांक (P01) = \(\frac{\Sigma\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)}{\mathrm{N}}=\frac{\Sigma \mathrm{R}}{\mathrm{N}}\)

B. भारित सूचकांक (Weighted Index Numbers)-सूचकांक की भारित सूचकांक विधि अधिक प्रचलित है तथा विधि का साधारण तौर पर प्रयोग किया जाता है। इस विधि में भिन्न-भिन्न वस्तुओं के भार दिए होते हैं। जब वस्तुओं के भार अथवा महत्त्व को ध्यान में रखकर सूचकांक तैयार किया जाता है तो इसको भारित सूचक कहते हैं।

भारित सूचकांक निर्माण की दो विधियां हैं –
1. भारित औसत कीमत अनुपात विधि (Weighted Average of Price Relative Method)-इस विधि में भिन्न-भिन्न वस्तुओं की कीमत अनुपातों को वस्तुओं के भार से गुणा करके गुणनफल का पता किया जाता है। जो गुणनफल प्राप्त होता है, उसको भार के जोड़ से विभाजित किया जाता है। इस प्रकार भारित औसत कीमत अनुपात विधि का सूत्र निम्नलिखित अनुसार होता है-
P01 = \(\frac{\Sigma R W}{\Sigma W}\)
P01 = कीमत सूचकांक
R = कीमत अनुपात \(\left(\frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{P}_{0}} \times 100\right)\)
w = भार (Weight)

2. भारित समूहीकरण विधि (Weighted Aggregative Method)-इस विधि में विभिन्न वस्तुओं की कीमतों को उन वस्तुओं की खरीदी गई मात्रा अनुसार भार दिया जाता है। इस विधि का निर्माण बहुत से सांख्यिकी शास्त्रियों द्वारा किया गया है। इन सांख्यिकी शास्त्रियों द्वारा दी गई विधियों में मुख्य अन्तर भार देने की विधि में है। कुछ विद्वान् आधारवर्ष की मात्रा को आधार बना कर भार देते हैं जबकि कुछ वर्तमान वर्ष की वस्तुओं की खरीदी गई मात्रा को आधार बनाकर भार देते हैं। कुछ अन्य दोनों समयों को मात्राओं का आधार बनाकर भार देते हैं।

भारित समूहीकरण की भिन्न-भिन्न विधियाँ निम्नलिखित अनुसार हैं –

  • लास्पेयर की विधि (Laspeyer’s Method)-इस विधि में प्रो० लास्पेयर ने आधार वर्ष की मात्रा (q0) को आधार बनाकर वस्तुओं को भार दिए हैं। लास्पेयर ने सूचकांक की गणना का सूत्र निम्नलिखित अनुसार दिया
    P01 (La) = \(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} \mathrm{q}_{0}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} \mathrm{q}_{0}} \times 100\)
  • पास्चे की विधि (Pasche’s Method)-प्रो० पास्चे ने वर्तमान वर्ष की मात्रा (q1) को आधार बनाकर वस्तुओं को भार दिए हैं। पास्चे ने सूचकांक की रचना का सूत्र इस प्रकार दिया P01 (Pa) = \(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{1}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{1}} \times 100\)
  • फिशर की विधि (Fisher’s Method)-प्रो० इरविंग फिशर के फार्मले में आधार वर्ष तथा वर्तमान वर्ष की मात्राओं को आधार माना जाता है। प्रो० फिशर ने सूचकांक की गणना करने के लिए लास्पेयर तथा पास्चे के सूचकांकों की रेखा गणिती औसत का प्रयोग किया है।

इस सूत्र को सूचकांक की रचना का आदर्श सूत्र कहा जाता है-
P01 (F) = \(\sqrt{\frac{\Sigma P_{1} q_{0}}{\Sigma P_{0} q_{0}} \times \frac{\Sigma P_{1} q_{1}}{\Sigma P_{0} q_{1}}} \times 100\)

इस सूत्र को निम्नलिखित कारणों से आदर्श सूत्र कहा जाता है –

  • यह सूत्र पक्षपात से मुक्त है।
  • इस सूत्र में रेखा गणिती औसत द्वारा गणना की जाती है। इसलिए विश्वसनीय परिणाम प्राप्त होते हैं।
  • इस सूत्र में आधार वर्ष तथा वर्तमान वर्ष की मात्राओं दोनों को ही भार माना जाता है।
  • यह सूत्र परख की कसौटी पर ठीक उतरता है। फिशर ने परख की कसौटियों दो दी हैं।

1. समय उत्क्रामता (Time Reversal Test)-जब हम आधार वर्ष शून्य (0) जगह पर 1 तथा 1 की जगह पर शून्य (0) लिख देते हैं तथा फार्मूले को इस परिवर्तन अनुसार गुणा करते हैं तो जवाब 1 के समान होता
\(\frac{\mathrm{P}_{01} \times \mathrm{P}_{10}}{100}=\sqrt{\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{0}}{\Sigma P_{0} q_{0}} \times \frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{1}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} \mathrm{q}_{1}} \times \frac{\Sigma P_{0} q_{1}}{\Sigma P_{1} q_{1}} \times \frac{\Sigma P_{0} q_{0}}{\Sigma P_{1} q_{0}}}=1\)

2. साधन उत्क्रामता (Factor Reversal Test)-जब फार्मूले में P की जगह पर q तथा की जगह पर के समान P लिखते हैं तो जवाबः\(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{1}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{0}}\) के समान होता है।
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यह परख केवल फिशर के फार्मूले में ठीक लागू होती है। लास्पेयर तथा पास्चे की विधि पर ठीक लागू नहीं होती। इसलिए फिशर के सूत्र को आदर्श सूत्र कहा जाता है।

साधारण कीमत सूचकांक की रचना (Construction of Simple Index Numbers)
साधारण कीमत सूचकांक की रचना दो विधियों द्वारा की जाती है –
(i) सरल समूहीकरण विधि (Simple Aggregative Method) माप विधि (Measurement Method)-

  1. इस विधि द्वारा सूचकांक ज्ञात करने के लिए भिन्न-भिन्न वस्तुओं के आधार वर्ष की कीमतों का जोड़ (ΣP0) पता करो।
  2. भिन्न-भिन्न वस्तुओं के वर्तमान वर्ष की कीमतों का जोड़ (ΣP) किया जाता है।
  3. वर्तमान वर्ष की कीमतों के जोड़ को आधार वर्ष की कीमतों के जोड़ से विभाजित करो तथा 100 से गुणा करो।
    अर्थात् निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करें-
    P01 = \(\frac{\Sigma P_{1}}{\Sigma P_{0}} \times 100\)

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों से सरल समूहीकरण विधि द्वारा 1981 को आधार वर्ष मान कर कीमत सूचकांक का पता करो।

वस्तुएं A B C D E
1999 की कीमतें (रु०) प्रति किलोग्राम 20 15 35 26 5
2006 की कीमतें (रु०) प्रति किलोग्राम 30 18 34 30 12

हल (Solution) :
साधारण कीमत सूचकांक की रचना (सरल समूहीकरण विधि)-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 4

कीमत सूचकांक (P01)= \(\frac{\Sigma P_{1}}{\Sigma P_{0}} \times 100\) = \(\frac{124}{101} \times100 \)
= 122.77
P01 = 122.77 उत्तर

आधार वर्ष के सूचकांक 100 की तुलना में 2006 की वर्तमान कीमतों का सूचकांक 122.77 हो गया है। इन वस्तुओं की कीमतों में औसतन 122.77 % वृद्धि हो गई है। इस विधि में सभी वस्तुओं का मूल्य एक माप किलोग्राम, मीटर इत्यादि में दिया होता है।

(ii) सरल कीमत अनुपात औसत विधि (Simple Average of Price Relative Method)-
माप विधि

  • इस विधि में प्रत्येक वस्तु के कीमत अनुपात P01= \(\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)\) का पता किया जाता है।
  • कीमत अनुपातों का जोड़ \(\Sigma\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)\) का पता किया जाता है।
  • वस्तुओं की संख्या (N) से कीमत अनुपातों के जोड़ को विभाजित करो। इससे सूचकांक प्राप्त हो जाता है। इसका सूत्र निम्नलिखित अनुसार है
    P01 = \(\frac{\Sigma\left(\frac{P_{1}}{P_{0}} \times 100\right)}{\mathrm{N}} \text { or } \frac{\Sigma \mathrm{R}}{\mathrm{N}}\)
  • इस विधि का माप उस समय किया जाता है जब भिन्न-भिन्न वस्तुओं की कीमत भिन्न-भिन्न माप (किलोग्राम, मीटर, लिटर) में दी हो।

प्रश्न 5.
कीमत अनुपात विधि द्वारा निम्नलिखित आंकड़ों का सूचकांक ज्ञात करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 5
हल (Solution) :
सरल कीमत अनुपात विधि द्वारा सूचकांक की गणना
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 6
सरल कीमत अनुपात सूचकांक (P01) = \(\frac{\Sigma\left(\frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{P}_{0}} \times 100\right)}{\mathrm{N}}\) = \(\frac{765}{5}\) = 153
इसका अभिप्राय यह है कि ऊपर दी वस्तुओं की कीमतों में सरल कीमत अनुपात विधि अनुसार 53 प्रतिशत वृद्धि हो गई है।

भारित सूचकांकों की रचना

भारित सूचकांक अधिक प्रचलित हैं। वस्तुओं के महत्त्व अनुसार उनको भार दिया जाता है, जैसे कि गेहूँ तथा चावल का महत्त्व फलों से अधिक है। इसलिए गेहूँ तथा चावल को अधिक महत्त्व अथवा भार दिया जाएगा तथा फलों को कम भार दिया जाएगा। भार अनुसार सूचकांक की रचना को भारित सूचकांक कहा जाता है। इसकी गणना की दो विधियां हैं –

(iii) भारित औसत कीमत अनुपात विधि माप विधि-

  1. भारित सूचकांक का माप करने के लिए भिन्न-भिन्न वस्तुओं के कीमत अनुपात R = \(\left(\frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{P}_{0}} \times 100\right)\) पत्ता|
  2. कीमत अनुपात (R) को भार (W) से गुणा करके गुणनफल (RW) निकालो।
  3. कीमत अनुपात तथा भाग के गुणनफलों का जोड़ = (ΣRW) करो।
  4. गुणनफल के जोड़ को भागों के जोड़ (ΣW) से विभाजित करो। भारित सूचकांक ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करो-
    Po1 = \(\frac{\Sigma R W}{\Sigma W}\)
  5. सभी वस्तुओं को सूचकांक बनाने में शामिल नहीं किया जाता बल्कि वस्तुओं का सैंपल के तौर पर चयन करके सूचकांक का निर्माण किया जाता है, जोकि सभी वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तनों को समझने के लिए सहायक होता है।

प्रश्न 6.
कीमत अनुपात विधि द्वारा निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से 1991 को आधार वर्ष मानकर 2005 का भारित सूचकांक ज्ञात करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 7
हल (Solution) :
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 8
भारित सूचकांक
Po1 = \(\frac{\Sigma \mathrm{RW}}{\Sigma \mathrm{W}}\)
= \(\frac{4325}{25}\) = 173 उत्तर
इससे अभिप्राय यह है कि अध्ययन अधीन वस्तुओं की औसतन भारित कीमतों में परिवर्तन 73 प्रतिशत हो गया है। इसलिए भारित सूचकांक 100 से 173 हो गया है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

(iv) भारित समूहीकरण विधि (Weighted Aggregative Method)

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
(i) लास्पेयर
(ii) पास्चे
(iii) फिशर की विधि द्वारा सूचकांक पता करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 9
हल (Solution) :
भारित सूचकांक की गणना
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 10
1. लास्पेयर विधि अनुसार सूचकांक
P01 = \(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{0}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{0}} \times 100\)
P01 = \(\frac{170}{62} \times 100\) = 274.19 उत्तर

2. पास्चे विधि अनुसार सूचकांक
P01 = \(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{1}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{1}} \times 100\)
P01 = \(\frac{305}{225} \times 100\) = 135.55 उत्तर

3. फिशर विधि अनुसार सूचकांक
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 11
P01 = 192.75 उत्तर
लास्पेयर विधि अनुसार सूचकांक 274.19 है जो यह बताता है कि कीमतों में परिवर्तन लगभग पौने तीन गुणा है। पास्चे की विधि अनुसार कीमतों में परिवर्तन 33.55 प्रतिशत है परन्तु फिशर अनुसार कीमतों में परिवर्तन लगभग दो गुणा हो गया है जोकि 192.75% वृद्धि को प्रकट करता है। फिशर की विधि का परिणाम उचित है।

सूचकांकों की किस्में (Types of Index Numbers)
ऊपर हम सूचकांकों का अर्थ तथा माप विधि का अध्ययन कर चुके हैं। भारत में कई किस्म के सूचकांक तैयार किए जाते हैं। इनमें से तीन महत्त्वपूर्ण सूचकांक निम्नलिखित अनुसार हैं, जिनके बारे अध्ययन किया जाएगा।

A. थोक कीमत सूचकांक (Wholesale Price Index)
B. उपभोक्ता कीमत सूचकांक (Consumer’s Price Index)
C. औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Industrial Production Index).

A. थोक कीमत सूचकांक [Wholesale Price Index (W. P. I.)]

प्रश्न 8.
थोक कीमत सूचकांक से क्या अभिप्राय है ? थोक कीमत सूचकांक की निर्माण विधि को स्पष्ट करो। इसका महत्त्व बताओ।
(What is meant by Wholesale Price Index ? Explain the method for the construction of Wholesale Price Index. Give its importance.)
उत्तर-
थोक कीमत सूचकांक का अर्थ-थोक कीमत सूचकांक वह सूचकांक है जिसके निर्माण में थोक कीमतों का प्रयोग किया जाता है। साधारण तौर पर किसी देश में कीमतों के परिवर्तन के लिए इस सूचकांक का प्रयोग किया जाता है। भारत में प्रत्येक सप्ताह के अन्त में थोक कीमत सूचकांक तैयार किया जाता है। इस समय 1993-94 की कीमतों को आधार वर्ष मान कर सूचकांक तैयार किया जाता है। इसमें वस्तुओं को तीन कॉलमों में विभाजित किया गया है |

  1. प्राथमिक वस्तुएं-इनमें चावल, दालें, कपास इत्यादि 98 वस्तुओं को शामिल किया गया है।
  2. बिजली गैस तेल-इनमें 19 वस्तुएं शामिल हैं।
  3. निर्माण वस्तुएं-इनमें कपड़ा, चीनी, मशीनें इत्यादि 318 वस्तुएं शामिल हैं। इन वस्तुओं को महत्त्वानुसार वज़न (weights) दिए जाते हैं।

थोक कीमत सूचकांकों का महत्त्व (Importance of W.P.I.) –
1. वास्तविक मूल्य का अनुमान-थोक कीमत सूचकांकों द्वारा राष्ट्रीय आय, बचत, राष्ट्रीय निवेश इत्यादि के वास्तविक मूल्यों का निर्धारण करने के लिए किया जाता है। जब हम राष्ट्रीय आय का माप करते हैं तो इसको प्रचलित कीमतों अनुसार मापते हैं। राष्ट्रीय आय में परिवर्तन को स्थिर कीमतें (Constant Prices) तथा माप के पता किया जाता है। प्रचलित कीमतों पर राष्ट्रीय आय को स्थिर कीमतों में परिवर्तन करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 12
थोक कीमत सूचकांक इस प्रकार वास्तविक मूल्य वृद्धि अथवा कमी का पता लग जाता है।

2. मांग तथा पूर्ति का अनुमान-थोक कीमत सूचकांक द्वारा किसी देश में मांग तथा पूर्ति का अनुमान लगाया जा सकता है। यदि थोक कीमत सूचकांक बढ़ रहा है तो इससे अभिप्राय है कि देश में मांग अधिक है। यदि थोक कीमत सूचकांक घट रहा है तो इसका अर्थ है कि वस्तुओं की पूर्ति अधिक है।

3. मुद्रा स्फीति दर का सूचक-थोक कीमत सूचकांक का प्रयोग मुद्रा-स्फीति दर ज्ञात करने के लिए भी किया जाता है। इससे पता चलता है कि समय के साथ कीमत में कितना परिवर्तन हुआ है। इसको उदाहरण से स्पष्ट करते हैं। मान लो प्रथम सप्ताह में थोक सूचकांक P1 है, द्वितीय सप्ताह में थोक कीमत सूचकांक P2 हो जाता है तो थोक कीमत सूचकांक का माप इस प्रकार किया जाएगा।
\(\frac{\mathrm{P}_{2}-\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{P}_{1}} \times 100\)
उदाहरणस्वरूप प्रथम सप्ताह थोक सूचकांक 100 है। द्वितीय सप्ताह सूचकांक 105 हो जाता है तो इस समय में थोक कीमत सूचकांक में परिवर्तन का माप इस प्रकार किया जाता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 13

मुद्रा स्फीति दर = \(\frac{P_{2}-P_{1}}{P_{1}} \times 100=\frac{105-100}{100} \times 100\) = 5 %
इसी तरह वार्षिक मुद्रा स्फीति की दर का माप किया जा सकता है।

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प्रश्न 9.
1993-94 की कीमतों को आधार वर्ष मानकर 2005-06 के लिए थोक कीमत सूचकांक (W.P.I.) 215 है। वर्ष 2005-06 की राष्ट्रीय आय प्रचलित कीमतों पर 47527 करोड़ रु० है। आधार वर्ष की कीमतों पर राष्ट्रीय आय का मूल्य ज्ञात करो।
हल (Solution)-
2005-06 का थोक कीमत सूचकांक = 215
2005-06 की प्रचलित कीमतों पर राष्ट्रीय आय = 47527 करोड़ रु०
प्रचलित कीमतों पर राष्ट्रीय आय 1993-94 की कीमतों अनुसार वास्तविक राष्ट्रीय आय = img
\(\frac{47527}{215} \times 100\) = 22105.58 करोड़ रु० उत्तर

B. उपभोक्ता कीमत सूचकांक [Consumer Price Index (C.P.I.)]

प्रश्न 10.
उपभोक्ता सूचकांक से क्या अभिप्राय है ? उपभोक्ता सूचकांक का निर्माण कैसे किया जाता है ? इसका महत्त्व तथा मुश्किलें बताओ।
(What is meant by Consumer Price Index ? What is the method for the construction of Consumer Price Index. Explain its importance & Problems.)
उत्तर-
उपभोक्ता सूचकांक वह सूचकांक है जो उपभोक्ता द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन का माप करने के लिए प्रयोग किया जाता है। भिन्न-भिन्न वर्ग के लोग भिन्न-भिन्न वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। पिछले वर्ष की तुलना में वर्तमान वर्ष में इन वस्तुओं तथा सेवाओं की लागत में आए परिवर्तन का माप किया जाता है। इसीलिए उपभोक्ता सूचकांक को जीवन निर्वाह लागत (Cost of Living Index Number) भी कहा जाता है।

यह सूचकांक परचून कीमतों (Retail price) के आधार पर बनाया जाता है। भारत में तीन प्रकार के उपभोगी समूहों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक तैयार किए जाते हैं-

  1. औद्योगिक मज़दूरों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक।
  2. कृषि मजदूरों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक।
  3. शहरी दिमागी कार्य करने वाले मजदूरों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक।

उपभोक्ता कीमत सूचकांक की निर्माण विधि-उपभोक्ता कीमत सूचकांक बनाने के लिए मज़दूर वर्ग का चयन किया जाता है। उन द्वारा प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं तथा उन वस्तुओं की खरीदी जाने वाली मात्रा का पता लगाया जाता है। इन वस्तुओं पर किए जाने वाले व्यय का पता लगाकर निम्नलिखित दो सूत्रों का प्रयोग किया जाता है-
1. कुल व्यय विधि (Aggregate Expenditure Method)—यह विधि लास्पेयर की विधि है। इसमें निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है
उपभोक्ता कीमत सूचकांक (C.P.I.) = \(\frac{\Sigma \mathrm{P}_{1} q_{0}}{\Sigma \mathrm{P}_{0} q_{0}} \times 100\) इसमें P1 का अर्थ वर्तमान वर्ष की कीमतें, P0 का अर्थ आधार वर्ष की कीमतें तथा Q0 का अर्थ आधार वर्ष में खरीदी वस्तुओं की मात्रा।

2. पारिवारिक बजट विधि (Family Budget Method)-इस विधि में उपभोक्ता कीमत सूचकांक के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है
उपभोक्ता कीमत सूचकांक (C.P.I.) = [/latex]\frac{\Sigma \mathrm{RW}}{\Sigma \mathrm{W}}[/latex]
इस सूत्र में कीमत अनुपात (R) = \(\frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{P}_{0}} \times 100\)
सभी वस्तुओं पर व्यय = वज़न (W) = P0q
कुल व्यय विधि तथा पारिवारिक बजट विधि का परिणाम एक समान होता है।

महत्त्व (Importance)-

  1. इनकी सहायता से कीमत नीति का निर्माण किया जाता है।
  2. लागत में वृद्धि होने के कारण मजदूरी में वृद्धि की जाती है।
  3. रु० के वास्तविक मूल्य का पता लगता है।
  4. बाज़ार में मांग तथा पूर्ति का ज्ञान प्राप्त होता है।
  5. राष्ट्रीय आय में शुद्ध वृद्धि अथवा कमी का ज्ञान प्राप्त होता है।

मुश्किलें (Difficulties)

  • भिन्न-भिन्न उपभोगी वर्गों के लिए एक उपभोगी कीमत सूचकांक नहीं बनाया जा सकता।
  • परचून कीमतों अनुसार इसका निर्माण होता है जोकि भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होती हैं।
  • भिन्न-भिन्न वर्ग के लोग भिन्न-भिन्न मदों पर एक अनुपात में व्यय नहीं करते।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर
(i) कुल व्यय विधि
(ii) पारिवारिक बजट विधि द्वारा उपभोक्ता कीमत सूचकांक की गणना करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 14
उपभोक्ता सूचकांक (C.P.I.) = \(\frac{\sum \mathrm{P}_{1} q_{0}}{\sum \mathrm{P}_{0} q_{0}} \times 100[/ltex]
= [latex]\frac{900}{590} \times 100\)
= 152.54 वर्तमान वर्ष में आधार वर्ष 2000 की परचून कीमतों की तुलना में 52.54 % वृद्धि हुई है।

2. पारिवारिक बजट विधि–उपभोक्ता कीमत सूचकांक की गणना-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 16
उपभोक्ता कीमत सूचकांक (C.P.I.) = \(\frac{\Sigma \mathrm{RW}}{\Sigma \mathrm{W}}\)
= \(\frac{9000}{590}\) = 152.54
दोनों विधियों द्वारा एक समान परिणाम प्राप्त होता है।

प्रश्न 12.
भारत के एक मध्य वर्ग परिवार के सम्बन्ध में निम्नलिखित सूचना के आधार पर उपभोक्ता कीमत सूचकांक ज्ञात करो।
अथवा
निम्नलिखित सूचना के आधार पर 2005 को आधार वर्ष मानकर 2006 के जीवन निर्वाह लागत सूचकांक की गणना करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 17
हल (Solution) :
उपभोक्ता कीमत सूचकांक अथवा जीवन निर्वाह लागत सूचकांक की गणना वज़न (weights) दिए गए हैं। इसी लिए परिवार बजट विधि का प्रयोग किया जाएगा।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 18

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक | (Industrial Production Index Number)

प्रश्न 13.
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक से क्या अभिप्राय है? औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का निर्माण कैसे किया जाता है ? इसके महत्त्व को स्पष्ट करो।
उत्तर-
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक वह सूचकांक होता है जो हमें आधार वर्ष की तुलना में किसी देश में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि अथवा कमी को प्रकट करता है। इस सूचकांक की सहायता से किसी देश में औद्योगिक विकास का ज्ञान प्राप्त होता है। भारत में 1993-94 को आधार वर्ष मान कर औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की गणना की जाती है।

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का निर्माण- औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का निर्माण करते समय उद्योगों का वर्गीकरण

  • खाने तथा खनन
  • निर्माण उद्योग
  • बिजली उत्पादन इत्यादि में किया जाता है।

इन क्षेत्रों सम्बन्धी प्रत्येक माह, तिमाही अथवा वार्षिक आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। इनके महत्त्व अनुसार भिन्न-भिन्न क्षेत्रों को वज़न दिए जाते हैं। इसके पश्चात् निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक = \(\frac{\sum\left(\frac{\mathrm{P}_{1}}{q_{0}}\right) \mathrm{W}}{\sum \mathrm{W}}\)
इसमें q1 = वर्तमान वर्ष का उत्पादन स्तर, q0 = आधार वर्ष का उत्पादन स्तर, W = वज़न।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक

प्रश्न 14.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक ज्ञात करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 19
हल (Solution) :
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की गणना
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 31 सूचकांक 20
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक = \(\frac{\Sigma R W}{\Sigma W}=\frac{16500}{100}\) = 165
इसका अर्थ है कि 2005 की तुलना में 2006 में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि 65% हुई है।

प्रश्न 15.
मुद्रा स्फीति और सूचकांक में क्या सम्बन्ध है ? मुद्रा स्फीति की दर और कीमत स्तर में सम्बन्ध स्पष्ट करें।
उत्तर-
मुद्रा स्फीति का माप थोक कीमत सूचकांक में होने वाले परिवर्तन के रूप में किया जाता है। जो कि बाज़ार में थोक कीमतों की साप्ताहिक तबदीली को प्रकट करती है। मुद्रा स्फीति वह स्थिति होती है जिसमें कीमत स्तर में वृद्धि लम्बे समय के दौरान दिखाई जाती है। आजकल प्रत्येक व्यक्ति मुद्रा स्फीति की दर का ध्यान रखता है। जैसा कि हम जानते हैं कि, “सूचकांक वह यंत्र है जिसके द्वारा सम्बन्धित तथ्यों के मूल्यों के आकार में होने वाले परिवर्तनों का माप किया जाता है।” सूचकांक की गणना करते समय किसी साधारण वर्ष को आधार साल मान कर उसको 100 मान लेते हैं।

जैसा कि भारत में 2001 साल को आधार साल मान लिया गया है तथा आधार साल की तुलना में 2008 में यदि सूचकांक 200 हो गया है तो हम कह सकते हैं कि भारत में 2001 से 2008 तक मुद्रा स्फीति के कारण मुद्रा के मूल्य में गिरावट आ गई है अथवा मुद्रा की खरीद शक्ति निरन्तर कम हो रही है। परन्तु यह भी देखना चाहिए कि लोगों की आय में कोई तबदीली हुई है या नहीं। यदि लोगों की आय भी इस समय में दो गुणा बढ़ गई है तो इससे मुद्रा स्फीति का लोगों पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता । मुद्रा स्फीति के मापने के लिए प्रति सप्ताह में थोक कीमत में परिवर्तन इस प्रकार मापते हैं :
मुद्रा स्फीति की दर = \(\frac{A_{2}-A_{1}}{A_{1}} \times 100\)
इसमें
A1 = पहले सप्ताह के थोक कीमत सूचकांक
A2 = दूसरे सप्ताह के थोक कीमत सूचकांक
इस प्रकार प्रति सप्ताह सूचकांक का माप सरकार द्वारा किया जाता है। थोक कीमत सूचकांक में एक लम्बे समय के दौरान होने वाली वृद्धि स्फीति को दर्शाती है। इस प्रकार मुद्रा स्फीति को थोक कीमतों के सूचकांक के परिवर्तन द्वारा मापा जाता है जिससे हमें थोक कीमतों में परिवर्तन का ज्ञान होता है।

मुद्रा स्फीति और कीमत स्तर का सम्बन्ध (Relationship between Inflation and Price Level)
जब मुद्रा स्फीति की दर में परिवर्तन होता है तो इसका अर्थ यह नहीं कि बाजार में कीमत स्तर भी उसी अनुपात में परिवर्तित हो रहा है। बाजार में यदि मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि होती है तो हो सकता है कि कुछ वस्तुओं की कीमत पहले जैसी स्थिर हो जबकि थोड़ी सी वस्तुओं की कीमत में वृद्धि हो सकती है। जब देश में मुद्रा स्फीति में बढ़ोत्तरी हो जाती है तो लोग अधिक वेतन की मांग करते हैं। इससे स्पष्ट है कि मुद्रा स्फीति की दर में गिरावट कीमत स्तर में होने वाली कमी को नहीं दर्शाती।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 24 कृषि उपज का मण्डीकरण

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 24 कृषि उपज का मण्डीकरण Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 24 कृषि उपज का मण्डीकरण

PSEB 12th Class Economics कृषि उपज का मण्डीकरण Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
कृषि उत्पादन मण्डीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कृषि उत्पादन मण्डीकरण से अभिप्राय कृषि उत्पादन उपज की बिक्री तथा खरीददारों को एकत्रित करना होता है।

प्रश्न 2. नियमित मण्डी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नियमित मण्डी कानून अधीन आरम्भ की जाती है, जोकि एक वस्तु अथवा वस्तुओं के समुच्चय के लिए बनाई जाती है। इसका संचालन मार्किट कमेटी द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 3.
नियमित मण्डी का मुख्य उद्देश्य बताओ।
उत्तर-
नियमित मण्डी का उद्देश्य कृषि उपज की भ्रष्ट बुराइयों को दूर करके किसानों के हितों की रक्षा करना होता है। किसानों से प्राप्त किए अधिक व्ययों पर रोक लगाई जाती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 24 कृषि उपज का मण्डीकरण

प्रश्न 4.
भारत में नियमित मण्डियों की स्थिति का वर्णन करो।
उत्तर-
1951 में 200 नियमित मण्डियां स्थापित की गई थीं। 2020-21 में नियमित मण्डियों की संख्या 29000 हो गई है।

प्रश्न 5.
कृषि मण्डीकरण के सम्बन्ध में मॉडल एक्ट 2003 की कोई एक मुख्य विशेषता बताओ।
उत्तर-
किसानों, स्थानिक अधिकारियों तथा अन्य लोगों को नई मण्डियां स्थापित करने की आज्ञा दी गई है।

प्रश्न 6.
भारत में कृषि उत्पादन उपज के भण्डार की स्थिति पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
सन् 2019 तक भारत में 211 मिलियन मीट्रिक टन अनाज के भण्डार की सुविधाएं उपलब्ध थीं।

प्रश्न 7.
जब कृषक अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के पश्चात् उपज को बाज़ार में बिक्री के लिए तैयार हो जाता है तो उसको ……………….. कहते हैं।
उत्तर-
बिक्री योग्य आधिक्य (Marketable Surplus)।

प्रश्न 8.
भारत में …………………….. मिलियन टन अनाज भण्डारण की योग्यता है।
उत्तर-
162 मिलियन मीट्रिक टन।

प्रश्न 9.
भारत में अनाज भण्डार के गोदाम ………….. हैं।
(a) अधिक
(b) सन्तोषजनक
(c) कम
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) कम।

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प्रश्न 10.
भारत में सन् 2019 में ………………… नियमित मण्डियां गांव तथा शहरों में काम करती हैं।
उत्तर-
शहरों में 8511 और गांवों में 20808 मण्डियां हैं।

प्रश्न 11.
भारत में कृषि उपज की न्यूनतम समर्थन कीमत कृषि लागत तथा कीमत कमीशन द्वारा निर्धारण होती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 12.
सन्तोषजनक कृषि उपज की बिक्री के लिए उचित शर्त ………. है।
(a) साहूकार से छुटकारा
(b) सौदेबाज़ी की अधिक शक्ति
(c) मध्यस्थों का अन्त
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 13.
भारत में कृषि उपज की बिक्री की मुख्य समस्याएँ ………… हैं।
(a) संगठन की गैर-मौजूदगी
(b) बिचौलियों की अधिक संख्या
(c) ग्रेडिंग की गैर-मौजूदगी
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 14.
सहकारी मण्डीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सहकारी मण्डीकरण का अर्थ आपसी लाभ प्राप्ति और मण्डीकरण की समस्याओं का हल करने के लिए आपसी सहयोग देना है।

प्रश्न 15.
भारत में कृषि उपज की बिक्री के लिए उचित कदम उठाये गए हैं ?
उत्तर
-सही।

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II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की समस्याओं को स्पष्ट करो।
उत्तर –
भारत में कृषि उपज के मण्डीकरण की समस्याएं इस प्रकार हैं –

  1. अपर्याप्त माल गोदाम-किसानों के पास माल गोदाम अपर्याप्त मात्रा में हैं। इसलिए किसानों की उपज का 10% से 20% हिस्सा नष्ट हो जाता है।
  2. साख सुविधाओं की कमी-किसान को अपनी उपज बहुत कम कीमत पर बेचनी पड़ती है। किसानm ऋण में रहता है, इसलिए फसल की कटाई के तुरन्त पश्चात् वह अपनी उपज साहूकार के पास बेचने के लिए मजबूर हो जाता है।

प्रश्न 2.
भारत में नियमित मण्डियों की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
भारत में नियमित मण्डियों का उद्देश्य किसानों के साथ होने वाले शोषण को समाप्त करना है। भारत में नियमित मण्डियों की स्थापना कृषि उपज मण्डीकरण एक्ट 1951 के अनुसार की गई। 31 मार्च, 2019 तक भारत में 8511 मण्डियां थीं और 20868 मण्डियाँ फसल के आने पर काम करती हैं। नियमित मण्डियों की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-

  • नियमित मण्डियों का संचालन मार्किट कमेटियों द्वारा किया जाता है जिसमें राज्य सरकार के कर्मचारी, ज़िला बोर्ड, व्यापारी, कमीशन एजेन्ट तथा किसानों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
  • मार्किट कमेटी मण्डी में प्राप्त किए व्यय को निर्धारित करती है। यह भी निश्चित किया जाता है कि कितना व्यय खरीददार तथा कितना बेचने वाले को सहन करना पड़ेगा।

प्रश्न 3.
भारत में नियमित मण्डियों के लिए सरकार द्वारा उठाए कोई दो कदम बताएं।
उत्तर-
नियमित मण्डियों के लिए सरकार द्वारा उठाए गए पगभारत में सरकार ने नियमित मण्डियों सम्बन्धी निम्नलिखित पग उठाए हैं –
1. मण्डियों का सर्वेक्षण-देश में विभिन्न वस्तुओं की बिक्री के लिए भिन्न-भिन्न स्थानों पर मण्डियों का सर्वेक्षण किया गया है। सरकार इन मण्डियों में वस्तुओं की कीमतों को प्रकाशित करती है तथा प्रचार किया जाता है।

2. ग्रेडिंग तथा स्तरीकरण-भारत सरकार ने कृषि उत्पादन वस्तुओं की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए एगमार्क की मोहर लगाने का निर्णय किया। एगमार्क की वस्तुएं विश्वसनीय होती हैं, क्योंकि वस्तुओं की गुणवत्ता को परखकर मोहर लगाने का अधिकार दिया जाता है।

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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की समस्याओं को स्पष्ट करो।
उत्तर-
भारत में कृषि उपज के मण्डीकरण की समस्याएं इस प्रकार हैं –

  1. अपर्याप्त माल गोदाम-किसानों के पास माल गोदाम अपर्याप्त मात्रा में हैं। इसलिए किसानों की उपज का 10% से 20% हिस्सा नष्ट हो जाता है।
  2. साख सुविधाओं की कमी-किसान को अपनी उपज बहुत कम कीमत पर बेचनी पड़ती है। किसान ऋण में रहता है, इसलिए फसल की कटाई के तुरन्त पश्चात् वह अपनी उपज साहूकार के पास बेचने के लिए मजबूर हो जाता है।
  3. यातायात की सुविधाओं की कमी-भारत में यातायात के साधन, रेलों की कमी के कारण, किसान को गांवों में से शहर तक उपज ले जाने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है। उसको अधिक लागत सहन करनी पड़ती है तथा मार्ग में ही उसकी उपज का कुछ भाग नष्ट हो जाता है।
  4. मण्डी में भ्रष्टाचार-भारत का किसान अनपढ़ तथा अज्ञानी है। मण्डी में उसका शोषण किया जाता है। किसान से अधिक कटौतियां प्राप्त की जाती हैं। नापतोल में हेरा-फेरी की जाती है।

प्रश्न 2.
कृषि मण्डियों में कौन-सी सुविधाओं की आवश्यकता है ?
उत्तर-
भारत में कृषि की उपज के मण्डीकरण में निम्नलिखित बुनियादी सुविधाओं की आवश्यकता है

  • किसानों के पास माल गोदाम की उचित सुविधाएं होनी चाहिए।
  • किसान के पास फसल को कुछ समय अपने पास रखने की समर्था होनी चाहिए अर्थात् फसल की कटाई के पश्चात् फसल बेचने की जगह पर कुछ समय के लिए किसान अपनी उपज को संभाल कर रख सकें तथा उचित मूल्य पर ही उसकी बिक्री करें।
  • किसान को यातायात के लिए सुविधाएं प्रदान की जाएं ताकि वह अपनी उपज गांव में बेचने की जगह पर मण्डियों में उचित कीमत पर उपज बेच सकें।
  • बाज़ार सम्बन्धी किसान को पूरी जानकारी प्रदान करनी चाहिए।
  • बिचोलों की संख्या को घटाकर उनका कमीशन निर्धारण करना चाहिए।

प्रश्न 3.
भारत में नियमित मण्डियों की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
भारत में नियमित मण्डियों का उद्देश्य किसानों के साथ होने वाले शोषण को समाप्त करना है। भारत में नियमित मण्डियों की स्थापना कृषि उपज मण्डीकरण एक्ट 1951 के अनुसार की गई। 31 मार्च, 2009 तक भारत में 7139 मण्डियां थीं और 20868 मण्डियाँ फसल के आने पर काम करती हैं। नियमित मण्डियों की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं –

  1. नियमित मण्डियों का संचालन मार्किट कमेटियों द्वारा किया जाता है, जिसमें राज्य सरकार के कर्मचारी, ज़िला बोर्ड, व्यापारी, कमीशन एजेन्ट तथा किसानों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
  2. मार्किट कमेटी मण्डी में प्राप्त किए व्यय को निर्धारण करती है। यह भी निश्चित किया जाता है कि कितना व्यय खरीददार तथा कितना बेचने वाले को सहन करना पड़ेगा।
  3. नियमित मण्डियों द्वारा किसानों के साथ होने वाले छल-कपट पर नियन्त्रण करना है।
  4. नियमित मण्डियों द्वारा किसानों को प्राप्त होने वाली आय तथा उपभोक्ताओं द्वारा किए गए व्यय में अन्तर को घटाना है।
  5. मॉडल एक्ट 2003 अनुसार नियमित मण्डियों में नई सोच उत्पन्न की गई है, जिस द्वारा कई तरह के सुधार किए गए हैं। फसल की बिक्री के समय 20868 मण्डियां गांव में लगाई जाती है जिसके द्वारा किसान अपनी उपज गांव में ही बेच सकता है।

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प्रश्न 4.
सहकारी मार्किट कमेटियों पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारत में सहकारी मार्किट कमेटियों की स्थापना 1954 में की गई। सहकारी मार्किट कमेटियाँ किसानों की उपज का उचित मूल्य दिलवाने में सहायता करती हैं। इसके द्वारा किसानों को ऋण की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं ताकि किसान अपनी उपज, कटाई के तुरन्त पश्चात् न बेचें तथा कुछ समय रुककर अच्छी कीमत पर फसल बेच सकें। मार्किट कमेटियों द्वारा किसान की उपज माल गोदाम में रखने की सुविधा प्रदान की जाती है।

किसान को सस्ते मूल्य पर यातायात के साधन उपलब्ध करवाए जाते हैं। किसानों को ग्रेडिंग तथा मयारीकरण की फसलें बेचने के लिए सहायता की जाती है। विचोलों की जगह पर फसल सीधी ग्राहकों के पास बेचने का प्रबन्ध किया जाता है। इस प्रकार सहकारी मार्किट कमेटियाँ किसानों के लाभ हेतू महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं। 2019-20 में 55885 करोड़ रु० की उपज की बिक्री की गई। इन कमेटियों के पास 4.4 मिलियन टन अनाज भण्डार करने के लिए गोदामों की व्यवस्था है।

प्रश्न 5.
भारत में कृषि उपज के मण्डीकरण सम्बन्धी सरकारी नीति पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
भारत में कृषि उपज के मण्डीकरण सम्बन्धी सरकार ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण पग उठाए हैं –

  1. मार्किट कमेटियों की स्थापना-भारत में मण्डियों को नियमित करने के लिए मार्किट कमेटियों की स्थापना की गई है।
  2. बाज़ार सम्बन्धी सूचना-भारत में बाज़ार सम्बन्धी सूचना प्रदान करने का महत्त्वपूर्ण कार्य सरकार द्वारा किया गया है। इस सम्बन्धी रोज़ाना मण्डियों के मूल्य तथा होने वाले परिवर्तन के बारे रेडियो, टी० वी० तथा अखबारों में सूचना दी जाती है।
  3. वस्तुओं की ग्रेडिंग तथा मयारीकरण-वस्तुओं की ग्रेडिंग तथा मयारीकरण के लिए भी सरकार किसानों की सहायता करती है। सरकार द्वारा वस्तुओं की परख उपरान्त एगमार्क (AGMARK) का सर्टीफिकेट दिया जाता है। इससे अच्छी किस्म की वस्तुओं की बिक्री आसानी से हो जाती है।
  4. गोदामों की सुविधा-कृषि उपज के भण्डार के लिए सरकार ने गोदामों की सुविधा में प्रशंसनीय वृद्धि की है। सन् 2012 में भारत में 751 लाख टन अनाज के भण्डार के लिए गोदाम थे।

प्रश्न 6.
भारत में अनाज की सरकारी खरीद पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
भारत में 1965 में अनाज की कमी के पश्चात् सरकार ने अनाज का बफर स्टॉक स्थापित करने का निर्णय किया। इस उद्देश्य के लिए सरकार के पास 2006-07 में 358 लाख टन गेहूँ तथा चावल की खरीद की गई। 2017-20 तक भारत में गेहूँ तथा चावल की बफर कस्वटी (Buffer Norm) 311 लाख टन थी जबकि असल भण्डार 312 लाख टन था।

प्रश्न 7.
भारत में कृषि उपज की कम-से-कम समर्थन मूल्य पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
भारत में कृषि उपज का कम-से-कम समर्थन मूल्य निश्चित किया जाता है, क्योंकि गेहूँ तथा चावल की फसल मण्डियों में आने से अनाज की पूर्ति बढ़ जाती है। इसलिए कीमतों के घटने का डर होता है। पिछले दस वर्षों से गेहूँ तथा चावल की कम-से-कम समर्थन कीमत में काफ़ी वृद्धि हुई है। भारत में एफ० सी० आई० (E.C.I.) द्वारा गेहूँ तथा चावल की खरीद की जाती है तथा इससे प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए बफर स्टॉक स्थापित किया जाता है। 2006-07 में गेहूँ की कम-से-कम समर्थन कीमत (Minimum support price) 360 रु० प्रति क्विटल थी जोकि 2020-21 में 1658 रु० निश्चित की गई। चावल की कम-से-कम समर्थन कीमत 1994-95 में 340 रु० थी जोकि 2020-21 में बढ़ाकर 1868 रु० की गई।

प्रश्न 8.
भारत में कृषि उपज के माल गोदामों की भण्डार समर्था का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत में अनाज की जो सरकार द्वारा खरीद की जाती है। इसको सम्भाल कर रखने के लिए माल गोदामों की समर्था इस प्रकार है-

  1. फूड कार्पोरेशन ऑफ़ इंडिया (F.C.I.) भारत में फूड कार्पोरेशन गेहूँ तथा चावल की समर्थन कीमत पर खरीद करती है। 2018 में एफ० सी० आई० 362 लाख टन अनाज भण्डार की समर्था थी।
  2. केन्द्रीय गोदाम कार्पोरेशन (C.W.C.)-केन्द्रीय गोदाम कार्पोरेशन भी अनाज के भण्डार की सुविधाएं प्रदान करती हैं। इस संस्था के पास 99 लाख टन अनाज भण्डार की समर्था है।
  3. राज्य गोदाम कार्पोरेशन (S.W.C.)-भारत में 16 राज्यों में राज्य गोदाम कार्पोरेशन स्थापित किए गए हैं। इन गोदामों में 273 लाख टन अनाज भण्डार की समर्था है।
  4. सहकारी गोदाम (Co-operative Warehouses)-राष्ट्रीय सहकारी विकास कार्पोरेशन (NCDC) की स्थापना 1963 में की गई। यह कार्पोरेशन सहकारी समितियों द्वारा भण्डार की सुविधाएं प्रदान करती हैं। 2012 में सहकारी गोदामों में 137.2 लाख टन अनाज की समर्था थी।
  5. ग्रामीण विकास विभाग (Deptt. of Rural Development)-ग्रामीण विकास विभाग द्वारा भी गोदामों की सुविधा में वृद्धि की गई है। 2019 में ग्रामीण विकास विभाग द्वारा 25 लाख टन अनाज भण्डार करने की समर्था थी।
  6. नाबार्ड अधीन विभिन्न एजेन्सियाँ (Various Agencies through NABARD)-भारत में कृषि तथा ग्रामीण विकास के लिए राष्ट्रीय बैंक (NABARD) द्वारा निजी क्षेत्र (Private Sector) में अनाज के भण्डार के लिए गोदाम स्थापित करने के लिए उत्साहित किया जाता है।

इस संस्था द्वारा विभिन्न एजेन्सियों द्वारा बनाए गए माल गोदामों की समर्था 2018 में 211 मिलियन थी। अन्य एजेन्सियों द्वारा भी 82.1 लाख टन अनाज भण्डार की सुविधा प्रदान की गई है। भारत में वर्ष 2019 में विभिन्न संगठनों द्वारा 751 लाख टन अनाज भण्डार के लिए माल गोदाम की सुविधा थी जो कि देश की ज़रूरतों से कहीं कम हैं। .

V. दीर्य उत्तरीय प्रश्न न मिलन (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की समस्याओं का वर्णन करो। (Explain the problems of Agricultural selecting in India.)
उत्तर-
मण्डीकरण वह क्रिया है, जहां उत्पादक तथा खरीददारों को एक-दूसरे के सम्पर्क में लाया जाता है। उत्पादक, कृषि उपज पैदा करने वाले किसान होते हैं। खरीददारों में उपभोगी अथवा व्यापारी होते हैं। भारत में 70% लोग कृषि उत्पादन का कार्य करते हैं तथा गांवों में रहते हैं। कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण में बहुत दोष हैं।

कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की समस्याएं (Problems of Agricultural Marketing)-
अथवा
कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की असंतोषजनक स्थिति (Unsatisfactory Condition of Agricultural Marketing) भारत में कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की स्थिति संतोषजनक नहीं है। इसकी मुख्य समस्याएं इस प्रकार हैं –

  1. अपर्याप्त गोदाम सुविधाएं-भारत में कृषि उत्पादन उपज के भण्डार करने के लिए पर्याप्त गोदाम नहीं हैं। गांवों में कच्चे गोदाम हैं, जिनमें उपज का 10% से 20% भाग नष्ट हो जाता है। इसलिए किसान फसल की कटाई के पश्चात् इसको तुरन्त बेच देते हैं। किसानों को उपज का उचित मूल्य प्राप्त नहीं होता।
  2. अपर्याप्त यातायात के साधन–भारत में यातायात के साधन भी अपर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। भारत के बहुत से भागों में रेल अथवा पक्की सड़क की सुविधा नहीं है। कुछ साधनों पर कच्ची सड़कें भी नहीं हैं । इसलिए कृषि उत्पादन उपज को घर से मण्डी तक ले जाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यातायात के साधनों पर अधिक व्यय करना पड़ता है तथा बहुत-सी उपज मार्ग में खराब हो जाती है।
  3. अपर्याप्त साख सुविधाएं-भारत के किसान साख सुविधाओं की कमी के कारण अपनी उपज अनुचित समय, अनुचित लोगों को अनुचित कीमतों पर बेचनी पड़ती है। किसान पर ऋण होने के कारण, उसको अपनी उपज फसल की कटाई के पश्चात् तुरन्त बेचनी पड़ती है। साख सुविधाओं की कमी के कारण वह अपनी फसल को कुछ देर तक सम्भाल कर नहीं रख सकता।
  4. ग्रेडिंग तथा मयारीकरण का अभाव-भारत में कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की एक समस्या यह है कि वस्तुओं की उचित ग्रेडिंग नहीं की जाती। इस कारण किसानों को उपज की उचित कीमत प्राप्त नहीं होती। खरीददार भी बिना मयारीकरण की वस्तुओं की खरीद करना पसन्द नहीं करते।
  5. बाज़ार सम्बन्धी सूचना का अभाव-किसान को बाज़ार सम्बन्धी उचित सूचना भी प्राप्त नहीं होती। उनको विभिन्न स्थानों पर उपज की कीमतों, मांग, सरकारी नीति तथा अन्तर्राष्ट्रीय परिवर्तनों का ज्ञान प्राप्त नहीं होता। इसलिए जो सूचना साहूकारों से प्राप्त होती है, वह किसान के पक्ष में नहीं होती।
  6. संस्थागत मंडियों का अभाव-भारत में कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण का एक दोष यह है कि किसान अपनी उपज व्यक्तिगत तौर पर मण्डी में बेचता है। इसका मुख्य कारण यह है कि देश में सहकारी मण्डी समितियों की कमी पाई जाती है। सरकार द्वारा भी उपज खरीदने का उचित प्रबन्ध नहीं है। यदि देश में संस्थागत मण्डियाँ हों तो किसान को उपज का उचित मूल्य प्राप्त हो सकता है।
  7. बिचोलों की अधिक संख्या-कृषि उपज किसान से लेकर अन्तिम उपभोगी तक पहुँचने के लिए बहुत से बिचोले होते हैं। प्रत्येक बिचोले का अपना कमीशन होता है। किसान को उपज की कम कीमत प्राप्त होती है, परन्तु जब वह उपज अन्तिम उपभोगी के पास पहुँचती है तो उसमें दलाल, परचून विक्रेता का कमीशन बढ़ने के कारण, उपज की कीमत बहुत बढ़ जाती है।
  8. खरीद तथा बिक्री में भ्रष्टाचार-कृषि उत्पादन उपज की गुप्त खरीद तथा बेच, गलत मापतोल के पैमाने, फ़िजूल कटौतियाँ इत्यादि भी कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण के कुछ अन्य दोष हैं। उपज खरीदने वाले गुप्त रूप में उपज की कीमत निश्चित कर लेते हैं।

इसलिए काश्तकार को अपनी उपज का ठीक मूल्य प्राप्त नहीं होता। कई स्थानों पर बाटों की जगह पर पत्थरों को बाटों के रूप में प्रयोग किया जाता है, जिनका भार साधारण बाटों से अधिक होता है। मण्डी फीस के रूप में बहुत सी फ़िजूल कटौतियाँ भी शामिल की जाती हैं। इस प्रकार किसानों का शोषण कई प्रकार से किया जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 24 कृषि उपज का मण्डीकरण

प्रश्न 2.
नियमित मण्डियों से क्या अभिप्राय है? भारत में नियमित मण्डियों के विकास के लिए सरकार द्वारा किए गए यत्नों को स्पष्ट करो।
(What do you mean by regulated Market ? Discuss the steps taken by the Government of India regarding Regulated Markets.)
उत्तर-
नियमित मण्डी किसी नियम को आधारित करके एक वस्तु अथवा वस्तुओं के समूह के लिए बनाई जाती है। ऐसी मण्डी का प्रबन्ध मार्किट कमेटी (Market Committee) द्वारा किया जाता है। मार्किट कमेटी में राज्य सरकार, जिला बोर्ड, व्यापारी कमीशन एजेन्ट तथा किसानों के प्रतिनिधि होते हैं। यह कमेटी सरकार द्वारा निश्चित समय के लिए नियुक्त की जाती है जोकि मण्डी का प्रबन्ध करती है। मार्किट कमेटी द्वारा कमीशन तथा कटौतियाँ निर्धारित की जाती हैं। नियमित मण्डी का मुख्य उद्देश्य बाजार में भ्रष्टाचार को दूर करके किसानों के हितों की रक्षा करना होता है। इस उद्देश्य के लिए सभी राज्यों में कानून पास किए गए हैं। 1951 में नियमित मण्डियों की संख्या 200 थी, जोकि 31 मार्च, 2012 को बढ़कर 7139 हो गई है। इनके बिना समय-समय पर गांवों में जो मण्डियां लगाई जाती हैं, उनकी संख्या 20868 है।

नियमित मण्डियों की विशेषताएँ–नियमित मण्डियों को सरकार ने स्वतन्त्रता के पश्चात् स्थापित किया है। नियमित मण्डी का मुख्य उद्देश्य किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलवाना है। उत्पादक तथा उपभोगी में कीमत के अन्तर को घटाना है। व्यापारी तथा कमीशन एजेंटों द्वारा प्राप्त किए जाने वाले कमीशन को नियमित करना है। इस सम्बन्ध में केन्द्र सरकार ने 2003 में मॉडल एक्ट पास किया, जिसकी मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं –

  1. मॉडल एकट 2003 अनुसार किसानों तथा स्थानिक अधिकारियों को आज्ञा दी गई है कि वह किसी क्षेत्र में नई मण्डी स्थापित कर सकते हैं।
  2. किसानों के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि अपनी उपज निश्चित नियमित मण्डी में ही बेचें।
  3. ऐसे खरीद केन्द्र स्थापित किए गए हैं, जहां पर किसान तथा उपभोगी प्रत्यक्ष तौर पर मण्डी में खरीद, बेच कर सकते हैं।
  4. कृषि उत्पादन मण्डियों के विकास तथा प्रबन्ध के लिए सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र में भ्रातृभाव को उत्साहित किया गया है।
  5. नाशवान वस्तुएं जैसे कि सब्जियां, प्याज, फल तथा फूलों इत्यादि के लिए विशेष मण्डियां स्थापित की गई हैं।
  6. ठेकेदारी काश्तकार के सम्बन्ध में नए नियम बनाए गए हैं।

सहकारी मण्डियाँ (Co-operative Marketing)-भारत में 1954 में सहकारी मण्डीकरण समितियों की स्थापना की गई। सहकारी मार्किटिंग समितियों में इसके सदस्य अपनी अधिक उपज सोसाइटी को बेचते हैं। यदि वह अपनी उपज नहीं बेचना चाहते तो सोसाइटी के पास रखकर उधार प्राप्त करते हैं, जब उनको उपज का उचित मूल्य प्राप्त होता है तो उस समय उपज बेची जा सकती है। सहकारी मार्किट समितियों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हुई है। 1960-61 में इन समितियों द्वारा 169 करोड़ रु० कृषि उत्पादन उपज बेची गई, जोकि 2019-20 में 35 हज़ार करोड़ रु० हो गई। यह समितियां पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश में अधिक प्रचलित हैं। नियमित मण्डियों के लिए सरकार द्वारा उठाए गए पगभारत में सरकार ने नियमित मण्डियों सम्बन्धी निम्नलिखित पग उठाए हैं –

  1. मण्डियों का सर्वेक्षण-देश में विभिन्न वस्तुओं की बिक्री के लिए भिन्न-भिन्न स्थानों पर मण्डियों का सर्वेक्षण किया गया है। सरकार इन मण्डियों में वस्तुओं की कीमतों को प्रकाशित करती है तथा प्रचार किया जाता है।
  2. ग्रेडिंग तथा मयारीकरण-भारत सरकार ने कृषि उत्पादन वस्तुओं की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए एगमार्क की मोहर लगाने का निर्णय किया। एगमार्क की वस्तुएं विश्वसनीय होती हैं, क्योंकि वस्तुओं की गुणवत्ता को परखकर मोहर लगाने का अधिकार दिया जाता है।
  3. नियमित मण्डियों की स्थापना-भारत सरकार ने 31 मार्च, 2020 तक 55885 कृषि उत्पादन मण्डियों की स्थापना की है, जोकि नियमों की पालना करके कृषि उत्पादन वस्तुओं की खरीद बेच करती हैं। इस समय कृषि उत्पादन उपज का 80% हिस्सा नियमित मण्डियों में बेचा जाता है। 20868 मण्डियाँ फसल आने के समय काम करती हैं।
  4. गोदाम की सुविधाएं-किसानों की उपज को सम्भालने के लिए गोदाम स्थापित किए गए हैं। 1951 में केन्द्रीय वेयर हाऊसिंग कार्पोरेशन की स्थापना की गई, जिस द्वारा देश में 751 लाख टन अनाज रखने की व्यवस्था की गई है।
  5. सहकारी मार्किटिंग समितियों की स्थापना-भारत में सहकारी मण्डीकरण समितियां स्थापित की गई हैं, जोकि कृषि उत्पादन उपज की बिक्री के साथ-साथ उधार की सुविधाएं भी प्रदान करती हैं।
  6. कृषि उत्पादन वस्तुओं का निर्यात-सरकार ने कृषि उत्पादन वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि करने के लिए विशेष बोर्डों की स्थापना की है। 2009-10 में 31500 करोड़ रु० की वस्तुओं का विदेशों को निर्यात किया गया। नई विदेशी नीति (2012-17) में कृषि उत्पादन उपज के निर्यात में वृद्धि करने के लिए कृषि निर्यात जोन बनाए गए हैं।
  7. कृषि उत्पादन मण्डीकरण सुधार–भारत सरकार ने जोन 2002 में कृषि उत्पादन मण्डीकरण सुधार के लिए टास्क फोरस (Task Force) की स्थापना की जिसमें किसानों द्वारा उपज को प्रत्यक्ष तौर पर बेचना, भविष्य के लिए समझौते करने, गोदामों में माल रखने की सुविधा तथा आधुनिक तकनीकों की जानकारी प्रदान करना शामिल है।

प्रश्न 3.
भारत में सरकार द्वारा कृषि उत्पादन उपज की प्राप्ति तथा कीमत नीति को स्पष्ट करो। (Explain the Procurement and Price Policy of Agricultural Produce in India.)
उत्तर-
कृषि उत्पादन उपज की कीमत निर्धारण करना महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस द्वारा किसानों की आय निश्चित होती है। अनाज खरीदने वाले भी उपज की कीमत से प्रभावित होते हैं। इसलिए कृषि उत्पादन उपज की कीमतें तथा प्राप्ति महत्त्वपूर्ण समस्या है। कृषि उत्पादन उपज की कीमत नीति-भारत जैसे देश में कृषि उत्पादन उपज की कीमत को निर्धारित करना महत्त्वपूर्ण समस्या है। कृषि उत्पादन आगतों (Inputs) की कीमतें निरन्तर बढ़ रही हैं। इसलिए कृषि उत्पादन उपज की कीमतों में वृद्धि करना अनिवार्य हो जाता है, परन्तु भारत में अधिक लोग निर्धन होने के कारण अनाज खरीदने की सामर्थ्य नहीं रखते, इसलिए अनाज की अधिक कीमतें निश्चित करना सम्भव नहीं।

अनाज की कीमतों में निरन्तर परिवर्तन होते हैं। इसलिए मुख्य तौर पर कीमतों में परिवर्तनों के दो कारण होते हैं-
1. मांग पक्ष-

  • कृषि उत्पादन उपज की मांग में निरन्तर वृद्धि हो रही है, क्योंकि भारत में जनसंख्या तीव्रता से बढ़ रही है।
  • उद्योगों का विकास होने के कारण कृषि उत्पादन उपज की मांग कच्चे माल के तौर पर अधिक रही है।
  • कृषि उत्पादन उपज से वस्तुओं का निर्माण करके निर्यात किया जाता है। इसलिए मांग में वृद्धि हो रही है।

2. पूर्ति पक्ष-
कृषि उत्पादन के पूर्ति पक्ष में निरन्तर वृद्धि हो रही है। भारत में हरित क्रान्ति के पश्चात् वस्तुओं की उपज तथा उत्पादकता दोनों में ही वृद्धि हुई है। कुछ राज्यों पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में कृषि उत्पादन उपज में बहुत वृद्धि हुई है, जबकि बहुत से राज्यों में उत्पादकता कम है। कीमत स्थिरता की नीति-कृषि उत्पादन उपज की कीमतों को स्थिर रखा जाए अथवा दूसरी वस्तुओं की कीमतों के अनुसार बढ़ने दिया जाए, यह महत्त्वपूर्ण समस्या है।

यदि कीमतों में वृद्धि दूसरी उपभोगी वस्तुओं की कीमतों अनुसार की जाती है तो देश में लागत वृद्धि मुद्रा स्फीति उत्पन्न हो जाएगी। उपभोगी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकेंगे। यदि वस्तुओं को कम रखने का यत्न किया जाता है तो उत्पादक निरुत्साहित हो जाते हैं।

किसान अपनी लागत भी पूरी नहीं कर सकेंगे तो कृषि उत्पादन में उनकी रुचि कम हो जाती है। इसलिए उचित कीमत नीति निर्धारित करने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए –

  1. कीमत स्तर इस प्रकार निश्चित किया जाए ताकि किसान उत्पादन करने के लिए उत्साहित हों। तकनीक तथा आधुनिक ढंगों का प्रयोग किया जा सके।
  2. कृषि उत्पादन उपज की कीमतों का प्रभाव अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों पर देखना चाहिए । जब कृषि उत्पादन उपज को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है तो बाकी वस्तुओं की कीमतें बढ़ने की सम्भावना होगी, जिससे मुद्रा स्फीति उत्पन्न हो सकती है।
  3. कृषि उत्पादन क्षेत्र तथा गैर-कृषि उत्पादन क्षेत्र में कीमतों के सन्तुलन रखने की आवश्यकता है। जैसे कि रासायनिक खादों, कीड़ेमार दवाइयों, बिजली, कपड़ा इत्यादि वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से कृषि उत्पादन उपज की कीमतों में वृद्धि भी अनिवार्य होगी। इस उद्देश्य के लिए भारत सरकार ने देश में कृषि उत्पादन, लागत तथा कीमत कमीशन की स्थापना 1965 में की।

इस कमीशन को पहले कृषि उत्पादन कीमत कमीशन कहा जाता था। यह कमीशन कृषि उत्पादन में प्रयोग किए जाने वाले कच्चे माल की कीमतों को ध्यान में रखकर विभिन्न फसलों की कीमत निर्धारित करता है।

इसको न्यूनतम समर्थन कीमत (Minimum Support Price) कहा जाता है। इसको सरकारी प्राप्ति कीमत (Procurement Price) भी कहते हैं। प्राप्ति कीमत वह कीमत होती है, जिस पर देश की सरकार बाज़ार में आई उपज की खरीद करती है। इस कमीशन द्वारा डिपुओं पर दी जाने वाली चीनी, गेहूँ, चावल इत्यादि की कीमत भी निर्धारण की जाती है। कृषि उत्पादन उपज की सरकारी खरीद-भारत में कृषि मानसून हवाओं पर निर्भर है। इसलिए कृषि उत्पादन उपज अनिश्चित होने के कारण 1965-66 में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।

इसलिए सरकार ने अनाज भण्डार (Buffer stock) बनाने का निर्णय किया। इस नीति अधीन सरकार ने 1965 में कृषि उत्पादन लागतों तथा कीमतों कमीशन की स्थापना की, जोकि कृषि उत्पादन उपज की कम-से-कम समर्थन कीमत निश्चित करता है, जिसको प्राप्ति कीमत (Procurement Price) कहा जाता है । कम-से-कम समर्थन कीमत फसल को बीजते समय बताई जाती है ताकि किसान उस कीमत अनुसार फसल बीज सकें। देश में डिपुओं पर कम कीमत पर बेची जाने वाली वस्तुओं की कीमत भी कमीशन द्वारा निश्चित की जाती है। सरकार द्वारा कृषि उत्पादन उपज की खरीद करके अनाज का भण्डार बनाया जाता है ताकि मुश्किल समय प्रयोग किया जा सके।

भारत में फूड कार्पोरेशन ऑफ़ इंडिया द्वारा अनाज खरीदा जाता है। कृषि उपज की कीमतों में उचित वृद्धि की गई है, चाहे किसान को उपज का उचित मूल्य प्राप्त नहीं होता, परन्तु अनाज की पैदावार बढ़ने के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। उपभोक्ताओं को भी इस नीति का लाभ प्राप्त हुआ है। उनको अनाज उचित कीमतों पर प्राप्त हो जाता है। कृषि उत्पादन उपज की कीमतों को वैज्ञानिक बनाने की आवश्यकता है, इसलिए इस समस्या को मांग तथा लागत पक्ष से देखना आवश्यक है। समर्थन कीमत पर उचित वृद्धि करके किसान की आर्थिक स्थिति में सुधार करना चाहिए, जबकि देश के निर्धन लोगों तथा मजदूरों को वितरण प्रणाली द्वारा कम कीमतों पर अनाज खरीदने की सुविधा देनी चाहिए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 24 कृषि उपज का मण्डीकरण

प्रश्न 4.
भारत में कृषि उत्पादन उपज के लिए माल गोदामों की सुविधा को स्पष्ट करो। (Explain the Warehousing facilities for Agriculture Produce in India.)
उत्तर-
भारत में कृषि उत्पादन उपज के भण्डार की समस्या बहुत समय से चली आ रही है। भण्डार सुविधाओं की कमी के कारण बहुत-सा अनाज नष्ट हो जाता है। इसलिए 1954 में सर्व भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण कमेटी (All India Rural Credit Survey Committee) की सिफारिशों के अनुसार

  • केन्द्रीय स्तर
  • राज्य स्तर
  • ग्रामीण स्तर पर गोदाम की सुविधाएं प्रदान करने का कार्य आरम्भ किया गया।

इस उद्देश्य के लिए राष्ट्रीय सहकारी विकास तथा माल गोदाम बोर्ड (1956) तथा केन्द्रीय गोदाम कार्पोरेशन (1957) में स्थापित किए गए। इसके पश्चात् सभी राज्यों में राज्य गोदाम कार्पोरेशनों की स्थापना की गई।

इस समय सार्वजनिक क्षेत्र में तीन एजेन्सियाँ हैं, जोकि बड़े पैमाने पर गोदाम स्थापित करती हैं-

  1. फूड कापैरेशन आँफ इंडिया (Food Corporation of India-F.C.I.)
  2. केन्द्रीय गोदाम कार्पोरेशन (Central Warehousing Corporation-C.W.C.)
  3. राज्य गोदाम कार्पोरेशन (State Warehousing Corporation-S.W.C.)

फूड कार्पोरेशन ऑफ़ इण्डिया (F.C.I.) के अपने गोदाम हैं तथा बाकी की सरकारी तथा निजी संस्थाओं से गोदाम किराए पर लेती हैं। इसकी कुल समर्था लगभग 32.05 मिलियन मीट्रिक टन है।

केन्द्रीय गोदाम कार्पोरेशन (C.W.C.) का मुख्य कार्य उचित स्थानों पर ज़मीन खरीद कर गोदामों का निर्माण करना है। इस कार्पोरेशन के पास 470 माल गोदाम हैं जिनकी समर्था 10.7 मिलियन मीट्रिक टन है। राज्य गोदाम कार्पोरेशन (S.W.C.) भी उचित स्थानों पर गोदाम निर्माण करके अनाज भण्डार की सुविधाएं प्रदान करती हैं। इसके पास लगभग 2000 गोदाम हैं, जिनकी भण्डार समर्था 21.29 मिलियन मीट्रिक टन है। इसके अतिरिक्त सहकारी समितियाँ ग्रामीण क्षेत्र (Rural Areas) में अनाज, खाद, बीज इत्यादि रखने की सुविधा प्रदान की जाती है। 2019-20 में सहकारी समितियों की भण्डार समर्था 154 लाख टन थी। इसके बिना देश में 3200 कोल्ड स्टोर बनाए गए हैं, जिनमें सब्जियां, फल, मीट, मछलियाँ रखने की सुविधा प्रदान की जाती हैं। कोल्ड स्टोरों की समर्था 80 लाख टन है।

केन्द्रीय क्षेत्र द्वारा ग्रामीण गोदाम निर्माण योजना-ग्रामीण क्षेत्रों में वैज्ञानिक ढंग से स्टोर बनाने के लिए 2001 में सरकार ने केन्द्रीय क्षेत्र योजना अधीन गांवों में गोदाम बनाने की योजना आरम्भ की है। इस योजना अधीन निजी तथा सहकारी क्षेत्र में गोदाम बनाने वालों को सहायता दी जाती है। 2019-20 में बैंकों द्वारा 4850 स्टोर बनाने के लिए 1300 करोड़ रु० के निवेश की मंजूरी दी गई। इस योजना का विस्तार 2013-14 तक किया गया है। इन गोदामों के गाँवों में स्थापित होने से किसान अपनी उपज गोदामों में रखकर बैंकों से उधार प्राप्त कर सकते हैं। इससे उनको अपनी उपज फसल की कटाई के तुरन्त पश्चात् बेचनी नहीं पड़ेगी। वह अपनी मर्जी से अच्छी कीमत पर उपज बेच सकेंगे।

भारत में माल गोदामों की वर्तमान स्थिति-भारत में ग्यारहवीं तथा बारहवीं योजना में ग्रामों में माल गोदामों के निर्माण पर अधिक जोर दिया गया। सहकारी क्षेत्र में 100 गोदाम बनाए गए। पश्चात् में ग्रामीण गोदाम योजना (Rural Godown Scheme) आरम्भ की गई, जिसमें 200 से 100 टन की समर्था के गोदाम गांवों में स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया। क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय तथा राज्य गोदाम कार्पोरेशनें काम कर रही हैं। इनके बिना निजी क्षेत्र में 10 लाख टन समर्था के गोदामों का निर्माण किया गया है। कृषि उत्पादन तथा ग्रामीण विकास के लिए राष्ट्रीय बैंक (NABARD) भी विभिन्न एजेन्सियों द्वारा गोदामों के विस्तार का कार्य कर रहा है। भारत में 2019-20 में विभिन्न संस्थाओं द्वारा गोदामों में कुल समर्था 758.46 मिलियन मीट्रिक टन थी, जिसका विवरण अग्रलिखित है
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 24 कृषि उपज का मण्डीकरण 1
देश में फूड कार्पोरेशन ऑफ़ इण्डिया द्वारा नियमित गोदामों की सपथ 74 35 मिलियन पाटेक : है। केन्द्रीय गोदाम कार्पोरेशन की समर्था, राज्य गोदाम कार्पोरेशन को समर्था तथा सहकारी सामों की समय 30.68 मीट्रिक टन है। निजी क्षेत्र की समर्था 2040 मीट्रिक टन है। इस प्रकार भारत में कुल समय 58 मिलियन मोट्रिक लाख टन है, जोकि संतोषजनक नहीं है। 2 फरवरी 2020 में वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि वर्तमान में गोगों की माप 21 मिलियन sq.ft. से बढ़ाकर 2023 तक मिलियन sq.ft. करने का लक्ष्य है। इस उद्देश्य के लिए ₹ 2.99 करोड़ की राशि गोदामों के विस्तार के लिए मंजूर की गई है।