PSEB 8th Class Hindi रचना निबंध लेखन

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Nibandh Lekhan निबंध लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi रचना निबंध लेखन

1. श्री गुरु नानक देव जी

सिक्खों के पहले गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 ई० में लाहौर के निकट स्थित ‘राय भोए की तलवंडी (वर्तमान में पाकिस्तान स्थित ननकाना साहब)’ में हुआ। इनकी माता का नाम तृप्ता देवी जी तथा पिता का नाम मेहता कालू जी था। बचपन से आप आत्मचिंतन में लीन रहा करते थे और आपका अधिकतर समय साधु संतों की सेवा में बीतता था। गुरु नानक देव जी का विवाह बटाला निवासी मूलचन्द की सुपुत्री सुलक्खणी जी के साथ हुआ जिनसे इन्हें दो पुत्र-श्रीचन्द और लखमी दास प्राप्त हुए।

जब गुरु नानक देव जी 20 वर्ष के हुए तब वह जिला कपूरथला के पास सुल्तानपुर लोधी नामक स्थान में अपनी बहन नानकी के पास आ गए। वहाँ इनके बहनोई ने इन्हें वहाँ के गवर्नर दौलत खाँ के यहाँ मोदीखाने में नौकरी दिलवा दी! यहीं गुरु नानक देव जी के तोलने में तेरह-तेरह की जगह ‘तेरा-तेरा’ रटने की कथा भी विख्यात है। यहीं उनके बेईं में प्रवेश करने और तीन दिन तक अदृश्य रहने की घटना घटी। वास्तव में उन दिनों गुरु जी ‘सच्चखण्ड’ में पहुँच गए थे। यहीं गुरु जी ने ‘न को हिन्दू न को मुसलमान’ की घोषणा की।

सन् 1500 से 1521 तक गुरु जी ने देश-विदेश की चार यात्राएँ की जो गुरु जी की चार उदासियों के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन यात्राओं में गुरु जी ने हिन्दुओं और मुसलमानों के तीर्थ स्थानों की यात्रा भी की। इन्होंने ईश्वर के निराकार स्वरूप की उपासना की। जीवन के अन्तिम भाग सन् 1521 से 1539 गुरु जी करतारपुर में रहे। वहाँ उन्होंने अनेक गोष्ठियों का आयोजन किया। इनमें सिद्ध गोष्ठी विशेष उल्लेखनीय है। सन् 1539 ई० में गुरु गद्दी भाई लहना जी, जो बाद में गुरु अंगद देव जी कहलाए, को सौंप कर ईश्वरीय ज्योति में विलीन हो गए।

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2. गुरु तेग़ बहादुर जी

गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए जो बलिदान दिया, उसके कारण उन्हें हिन्द की चादर या धर्म की चादर कहा जाता है। गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल सन् 1621 ई० को अमृतसर में छठे गुरु हरगोबिन्द जी के घर हुआ। अमृतसर में यह पवित्र स्थान ‘गुरु के महल’ के नाम से जाना जाता है। आपका बचपन का नाम त्यागमल था। सन् 1635 ई० में 14 वर्षीय त्यागमल ने सिक्खों और मुग़ल सेना के बीच करतारपुर में हुए युद्ध में तलवार के ऐसे जौहर दिखाए कि प्रसन्न होकर उनका नाम तलवार के धनी अर्थात् तेग़ बहादुर रख दिया। गुरु तेग़ बहादुर जी के पिता सैनिक गतिविधियों का संचालन करने के लिए कीरतपुर आ गए परन्तु गुरु तेग़ बहादुर जी अपने ननिहाल बाबा बकाला में ही रहे और प्रभुचिंतन में अपना समय बिताने लगे। सन् 1645 में इनके पिता ने अपने पौत्र हरराय को गुरु गद्दी सौंप दी किन्तु गुरु तेग़ बहादुर जी ने कोई आपत्ति नहीं की। बाबा बकाला में आप कोई बीस वर्ष तक रहे। 30 मार्च, सन् 1664 में गुरु हरकिशन जी के ज्योति जोत समाने के बाद उन्हीं के आदेशानुसार गुरु तेग़ बहादुर जी अगस्त 1664 ई० में गुरु गद्दी पर आसीन हुए।

गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म प्रचार के लिए किसी सुरक्षित स्थान के लिए बिलासपुर के राजा से माखोवाल गाँव से कुछ ज़मीन खरीदी। वहाँ अपनी माता के नाम पर ‘चक्क नानकी’ नामक नगर बसाया, जो बाद में आनन्दपुर साहब के नाम से विख्यात हुआ। इसी दौरान औरंगजेब के हिन्दुओं पर आत्याचार बढ़ रहे थे। उन्हीं अत्याचारों से बचने के लिए गुरु जी के पास कुछ कश्मीरी पण्डित आए और गुरु जी से अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की।

गुरु जी ने कहा कि ‘स्थिति किसी महापुरुष का बलिदान चाहती है।’ तभी पास बैठे उनके नौ वर्षीय पुत्र गोबिन्द राय बोल पड़े, ‘पिता जी आपसे बढ़कर बलिदान के योग्य महापुरुष और कौन हो सकता है ?’ गुरु जी अपने पुत्र की बात को समझ गए और धर्म की रक्षा के लिए दिल्ली पहुँच गए। उन्हें बन्दी बना लिया गया और इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया। गुरु जी अपने धर्म पर अडिग रहे। 11 नवम्बर, सन् 1675 ई० को गुरु जी ने चाँदनी चौक में शहीदी प्राप्त की। वहीं आजकल गुरुद्वारा शीशगंज स्थित है।

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3. गुरु गोबिन्द सिंह जी

महान योद्धा, कुशल प्रशासक, प्रबुद्ध धर्म गुरु और योग्य राष्ट्र नायक गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर, सन् 1666 ई० को पटना (बिहार) में सिक्खों के नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी के घर हुआ। छ: वर्ष की अवस्था तक गुरु जी पटना में ही रहे फिर आप पिता द्वारा बसाए नगर आनन्दपुर साहब में आ गए। आनन्दपुर में ही एक दिन कुछ कश्मीरी पण्डितों ने आकर गुरु तेग़ बहादुर जी से अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की। गुरु जी ने कहा, ‘स्थिति किसी महापुरुष का बलिदान चाहती है।’ पास बैठे नौ वर्षीय बालक गोबिन्दराय ने कहा, ‘पिता जी आपसे बढ़कर बलिदान योग्य महापुरुष कौन हो सकता है।’ पुत्र की बात समझ कर गुरु जी ने दिल्ली के चाँदनी चौक में 11 नवम्बर, सन् 1675 ई० में शहीदी प्राप्त की।

नवम् गुरु की शहीदी के बाद नौ वर्ष की अवस्था में गोबिन्द राय जी गुरु गद्दी पर बैठे। गद्दी पर बैठते ही गुरु जी ने अपनी शक्ति बढ़ानी शुरू कर दी जिससे अनेक राजाओं और मुगल सरदारों को ईर्ष्या होने लगी। इसी ईर्ष्या के फलस्वरूप गुरु जी को पांवटा से छ: मील दूर भंगाणी नामक स्थान पर कहलूर के राजा भीम चन्द के साथ युद्ध लड़ना पड़ा। उस युद्ध में गुरु जी को पहली जीत प्राप्त हुई। इसके बाद गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं की ओर से लड़ते हुए नादौन में आलिफ खाँ को पराजित किया। इस युद्ध से पहाड़ी राजाओं को गुरु जी की शक्ति का पता चल गया।

सन् 1699 की वैशाखी को गुरु जी ने खालसा पंथ की स्थापना की। उन्होंने आनन्दपुर साहिब में पाँच प्यारों को अमृत छकाया और उनसे स्वयं अमृत छका। इस अवसर पर गुरु जी ने अपना नाम गोबिन्द राय से गोबिन्द सिंह कर लिया और अपने सब शिष्यों को अपने नाम के साथ सिंह लगाने का आदेश दिया। गुरु जी की शक्ति को बढ़ता देख औरंगजेब ने उसे समाप्त करने का निश्चय कर लिया। अप्रैल 1704 को मुगल सेना ने आनन्दपुर साहब को घेर लिया। यह घेरा दिसम्बर 1704 तक जारी रहा। मुग़ल सेना ने उन्हें भरोसा दिलाया कि आनन्दपुर साहब को छोड़ने पर उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचाई जाएगी। किन्तु सरसा नदी को पार करते समय मुग़ल सेना ने विश्वासघात करते हुए गुरु जी की सेना पर आक्रमण कर दिया। अफरातफरी में गुरु जी की माता और दोनों छोटे साहिबजादे उनसे बिछुड़ गए। गुरु जी किसी तरह चमकौर की गढ़ी पहुँचे। चमकौर के युद्ध में सिक्खों ने मुग़ल सेना का डटकर मुकाबला किया। इस युद्ध में गुरु जी के दोनों बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और जुझार सिंह शहीद हो गए। उधर गुरु जी के दोनों छोटे साहिबजादों जोरावार सिंह और फतेह सिंह को सरहिन्द के नवाब ने जीवित दीवार में चुनवाकर शहीद कर दिया। अपने चारों साहिबजादों की कुर्बानी से गुरु जी विचलित नहीं हुए।

अपने अन्तिम दिनों में गुरु जी नांदेड़ (महाराष्ट्र) में रहने लगे। वहीं एक दिन गुल खाँ नामक पठान ने उन्हें छुरा घोंप दिया। गुरु जी का घाव कई दिनों बाद भरा। अभी वे पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुए थे कि एक कठोर धनुष पर चिल्ला चढ़ाते हुए उनका घाव खुल गया और 7 अक्तूबर, सन् 1708 को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

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4. महात्मा गाँधी

देश के महान् नेता महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहन दास कर्मचन्द गाँधी था। इनका जन्म 2 अक्तूबर, सन् 1869 को गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ। इनके पिता पोरबन्दर, राजकोट और बीकानेर राज्यों के दीवान पद पर रहे। इनकी माता पुतलीबाई बड़ी धर्मनिष्ठ स्वभाव वाली स्त्री थी। उन्हीं की शिक्षा का बाल मोहनदास पर यथेष्ठ प्रभाव पड़ा।

सन् 1887 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। सन् 1888 में आप इंग्लैण्ड में बैरिस्ट्री पढ़ने के लिए चले गए। इंग्लैण्ड से वापस आकर आप ने पोरबन्दर में वकालत शुरू कर दी। कुछ समय पश्चात् इन्हें एक मुकद्दमे के सिलसिले में दक्षिणी अफ्रीका जाना पड़ा। वहां आप ने भारतीयों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार से आहत होकर आपने एक आन्दोलन चलाया जिसके कारण वहाँ भारतीयों के सम्मान की रक्षा होने लगी। भारत लौटकर गाँधी जी ने देश की राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया। सन् 1914 के प्रथम महा युद्ध में आपने अंग्रेज़ों की इस शर्त पर सहायता की कि युद्ध जीतने की सूरत में अंग्रेज़ भारत को आजाद कर देंगे किन्तु अंग्रेजों ने विश्वासघात करते हुए रोल्ट एक्ट और जलियांवाला बाग के नरसंहार की घटना पुरस्कार रूप में दी।

सन् 1920 में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया जिसमें हिंसा आ जाने पर सन् 1922 में इन्होंने यह आन्दोलन वापस ले लिया। सन् 1930 में गाँधी जी ने नमक आन्दोलन शुरू किया। सन् 1942 में गाँधी जी ने देश को भारत छोड़ो का नारा दिया। इसी दौरान देश की जनता सरदार भगत सिंह और चन्द्रशेखर जैसे क्रान्तिकारियों के बलिदान से जागरूक हो चुकी थी। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज के बढ़ते आक्रमण से डरकर अंग्रेजों ने 15 अगस्त, सन् 1947 को भारत को एक स्वाधीन देश घोषित कर दिया किन्तु जाते-जाते अंग्रेज़ देश का बंटवारा कर गए जिसके परिणामस्वरूप देश में हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़क उठे। दंगों को शान्त करने के लिए गाँधी जी ने मरण व्रत रखा। 30 जनवरी, सन् 1948 की शाम 6 बजे नात्थूराम गोडसे नामक युवक ने गाँधी जी की हत्या कर दी। इस तरह देश से एक युग पुरुष उठ गया।

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5. पंजाब केसरी लाला लाजपत राय

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय जी का जन्म 28 जनवरी, सन् 1865 ई० में जिला फिरोज़पुर के एक गाँव ढुडिके में हुआ। सन् 1880 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद आपने मुख्तारी की परीक्षा पास की और हिसार में वकालत शुरू कर दी। सन् 1892 में आप लाहौर चले गए। वहाँ उन्होंने कई वर्षों तक बिना वेतन लिए डी० ए० वी० कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। आपने अपने गाँव दुडिके में अपने पिता के नाम पर राधा कृष्ण हाई स्कूल खोला।

लाला जी का राजनीति में प्रवेश संयोग से हुआ। उस समय सर सैय्यद अहमद खां मुसलमानों को भड़काने वाले और राष्ट्र विरोधी लेख लिख रहे थे। लाला जी पहले व्यक्ति थे जिसने इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई। इसी के परिणामस्वरूप सन् 1888 में कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में लाला जी का जोरदार स्वागत हुआ। सन् 1893 के कांग्रेस अधिवेशन में भी लाला जी ने ओजपूर्ण भाषण दिए और कांग्रेस को अपनी कार्रवाई अंग्रेज़ी में न कर हिन्दुस्तानी में करने पर विवश कर दिया। लाला जी सन् 1902, सन् 1908 और सन् 1913 में इंग्लैंड गए और वहाँ के लोगों को अपने भाषणों और लेखों द्वारा भारत की वास्तविक स्थिति से अवगत करवाया। सन् 1914 में प्रथम महायुद्ध छिड़ने पर लाला जी अमेरिका चले गए। वहाँ उन्होंने ‘इंडियन होम लीग’ की स्थापना की और ‘यंग इंडिया’ नामक साप्ताहिक पत्र भी निकाला।

देश में वापस आने पर सन् 1921 में लाला जी को कांग्रेस के विशेष अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया। महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने पर इन्हें जेल भी जाना पड़ा।
30 अक्तूबर, सन् 1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा। सरदार भगत सिंह की नौजवान भारत सभा ने इसका विरोध किया। इस विरोध प्रदर्शन की अगुवाई लाला जी ही कर रहे थे। जुलूस पर लाठीचार्ज किया गया। लाहौर के डी० एस० पी० सांडर्स ने लाला जी पर ताबड़तोड़ लाठियाँ बरसाईं। जिसके परिणामस्वरूप 17 नवम्बर, सन् 1928 की सुबह लाला जी का देहान्त हो गया। बाद में सरदार भगत सिंह ने सांडर्स की हत्या कर लाला जी की मौत का बदला लिया।

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6. शहीदे आज़म सरदार भगत सिंह

देश की स्वतन्त्रता के लिए शहीद होने वालों में सरदार भगत सिंह का नाम प्रमुख है। सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, सन् 1907 को जिला लायलपुर (पाकिस्तान) के गाँव बंगा में हुआ। आपका पैतृक गाँव नवांशहर के निकट खटकड़ कलां है। आपकी आरम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। फिर आपने लाहौर के डी०ए०वी० स्कूल से मैट्रिक पास की। कॉलेज में दाखिला लेते ही आप क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आ गए, जिसके परिणामस्वरूप आपने पढ़ाई छोड़ दी। देश भक्ति और क्रान्ति के संस्कार भगत सिंह को विरासत में मिले थे। आपके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह इन्कलाबी गतिविधियों में भाग लेते रहे थे।

सरदार भगत सिंह महात्मा गाँधी की अहिंसावादी नीति को पसन्द नहीं करते थे। क्योंकि उनका विचार था अहिंसात्मक आन्दोलन से देश को आजादी नहीं मिल सकती। इसी उद्देश्य से उन्होंने सन् 1926 में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन किया। उनके जोश और उत्साह को देखकर महात्मा गाँधी को भी मानना पड़ा कि जिस वीरता और साहस का ये नौजवान प्रदर्शन कर रहे थे उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। सरदार भगत सिंह और क्रान्तिकारी साथियों का समर्थन कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पं० जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस ने भी किया।

9 सितम्बर, सन् 1928 में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में क्रान्तिकारी युवकों की एक बैठक हुई, जिसमें हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र सेना का गठन किया गया। सरदार भगत सिंह इसके सचिव और चन्द्रशेखर आजाद को कमाण्डर बनाया गया। 30 अक्तूबर, सन् 1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा। नौजवान भारत सभा ने उसके विरोध में प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में जुलूस की अगुवाई कर रहे लाला लाजपत राय घायल हो गए। 17 नवम्बर, सन् 1928 को उनका निधन हो गया। सरदार भगत सिंह ने लाला जी पर लाठियाँ बरसाने वाले डी० एस० पी० सांडर्स की हत्या कर अपने प्रिय नेता की हत्या का बदला ले लिया। गिरफ्तारी से बचने के लिए आप भेस बदलकर रातों रात लाहौर से निकलकर बंगाल चले गए।

ब्रिटिश सरकार की शोषण नीतियों के प्रति विरोध प्रकट करने के लिए सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, सन् 1929 को केन्द्रीय विधानसभा में एक धमाके वाला खाली बम फेंका। वे वहाँ से भागे नहीं बल्कि इन्कबाल जिन्दाबाद के नारे लगाते रहे। सरदार भगत सिंह जानते थे कि अंग्रेजी सरकार इस जुर्म में उन्हें फाँसी की सज़ा देगी। वे अपनी कुर्बानी से देश में जागृति लाना चाहते थे।

17 अक्तूबर, सन् 1930 को सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सज़ा सुना दी गई। सज़ा सुनाए जाने के अवसर पर सरदार भगत सिंह और उनके साथियों ने ‘इन्कलाब ज़िन्दाबाद’ के खूब नारे लगाए। 24 मार्च, सन् 1931 को सरदार भगत सिंह और उनके साथियों को फाँसी दी जानी थी लेकिन अंग्रेज़ी सरकार ने जनता के रोष से डरकर 23 मार्च, सन् 1931 को ही लाहौर जेल में फाँसी दे दी और उनके शव सतलुज किनारे हुसैनीवाला नामक स्थान पर जला दिए।

सरदार भगत सिंह ने शहीदी पाकर भारतीय जनता में एक नया जोश भर दिया। आखिर 15 अगस्त, सन् 1947 को हमारा देश आज़ाद हुआ। भारतवासी सदा उनके ऋणी रहेंगे।

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7. स्वामी विवेकानन्द

कलकत्ता हाईकोर्ट में सफल वकील श्री विश्वनाथ दत्त के घर 12 जनवरी, सन् 1863 को स्वामी विवेकानन्द का जन्म हुआ। उनका बचपन का नाम नरेन्द्र दत्त था। इनकी माता भुवनेश्वरी देवी इन्हें स्नेह से केवल रामायण व महाभारत की कहानियाँ सुनाकर साहसी, बहादुर और निडर बनाने की प्रेरणा देती थी। नरेन्द्र उन्हें अपना प्रथम गुरु मानते थे। उन्हीं से नरेन्द्र ने अंग्रेज़ी और बंगला भाषाएँ सीखीं। परिणामतः नरेन्द्र में प्रारम्भ से ही देश-प्रेम, त्याग, तपस्या व ध्यान के संस्कार फलने फूलने लगे। स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् इनके पिता इनका विवाह कर देना चाहते थे किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था। नरेन्द्र परमहंस राम कृष्ण के सम्पर्क में आए और उनकी असाधारण आध्यात्मिक व धार्मिक उपलब्धियों से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए और सन् 1883 में उन्होंने संन्यास ले लिया और नरेन्द्र दत्त से स्वामी विवेकानन्द हो गए। 16 अगस्त, सन् 1886 परमहंस राम कृष्ण का देहान्त हो जाने पर उन्होंने अपने साथी संन्यासियों और भक्तजनों ने मिलकर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस संस्थान ने देश और विदेश में अनेक प्रशंसनीय और अभूतपूर्ण कार्य किये हैं।

उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में कलकत्ता में प्लेग का भयंकर रोग फैल गया। स्वामी जी ने अनेक रोगियों को मौत के मुँह से बचाया। उनकी सेवा की और बंगाल से प्लायन करने से रोका। सेवा कार्य में धन की कमी आने पर उन्होंने अपना बैलूर मठ बेचने का निर्णय किया। यह सुनकर बहुत से धनवान लोगों ने उन्हें धन दिया जिससे सेवा कार्य बिना किसी बाधा के चलता रहा।

11 सितम्बर, सन् 1893 को अमरीका के शिकागो शहर में स्वामी जी ने विश्व धर्म सम्मेलन की धर्म संसद् में जो ओजस्वी, ज्ञानपूर्ण और मौलिक भाषण दिया उससे प्रभावित होकर लाखों अमरीकन उनके भक्त और शिष्य बन गए। उनके प्रवचनों से अमरीका में धूम मच गई। स्वामी जी लगभग ढाई वर्षों तक अमरीका में रहे और वहाँ भारतीय संस्कृति, अध्यात्म व वेदान्त का प्रचार-प्रसार करते रहे। भारत लौटने पर उनका भव्य स्वागत किया गया।

सारे देश ने उन्हें सिर आँखों पर बैठाया। किन्तु 4 जुलाई, सन् 1902 को इस धर्म वीर, कर्म सूर्य और ज्ञान समुद्र का मात्र 39 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। स्वामी जी का यह सन्देश हमें सदा प्रेरणा देता रहेगा। “जिस समय तुम भयभीत होते हो, उसी समय तुम दुर्बल होते हो। भय ही जगत में सब अनर्थ का मूल है। सबसे पहले हमारे नवयुवक बलवान होने चाहिए, धर्म बाद में आवेगा मेरे तरुण मित्रो निडर और बलवान बनो।”

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8. सतगुरु राम सिंह जी

नामधारी सिक्ख समुदाय के संस्थापक सतगुरु राम सिंह जी का जन्म 3 फरवरी, सन् 1816 ई० में जिला लुधियाना के एक गाँव राइयाँ में बाबा जस्सा सिंह जी के घर हुआ। छः वर्ष की छोटी सी आयु में आपका विवाह कर दिया गया। युवावस्था में आप महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र नौनिहाल सिंह की फौज में भर्ती हो गए। कुछ समय बाद नौकरी छोड़कर श्री भैणी साहब में आकर प्रभु सिमरन और समाज सेवा में लग गए। साथ ही देश को आजाद करवाने के लिए यत्न करने लगे। 12 अप्रैल, सन् 1857 ई० को वैशाखी के पावन दिन आपने पाँच शिष्यों को अमृतपान कराकर नामधारी सिक्ख समुदाय की नींव रखी। गुरु जी ने लोगों में आत्म सम्मान जगाने, भक्ति और वीरता पैदा करने तथा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रचार शुरू किया। गुरु जी ने देश में कई जगह प्रचार केन्द्र स्थापित किए और प्रत्येक केन्द्र को सूबे की संज्ञा दी। गुरु जी के उपदेशों से प्रभावित होकर हज़ारों लोग नामधारी बन गए। अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध कूकें (हुंकार) मारने के कारण इतिहास में नामधारी सिक्ख कूका नाम से प्रसिद्ध हो गए।

नामधारी ईश्वर को एक मानते हैं। गुरवाणी का पाठ, पाँच ककारों का धारण करना, सफेद रंग के कपड़े पहनना, सफेद रंग की ऊन के 108 मनकों की माला धारण करना इनके मुख्य धार्मिक सिद्धान्त हैं।

सत् गुरु राम सिंह जी ने अनेक सामाजिक बुराइयों का विरोध करते हुए जन साधारण को जागरूक किया। इनमें बाल विवाह, कन्या वध, गौवध, पुरोहितवाद, मूर्ति पूजा, माँस एवं नशीले पदार्थों के सेवन का विरोध प्रमुख थीं। गुरु जी ने दहेज प्रथा का विरोध करते हुए मात्र सवा रुपए में सामूहिक अंतर्जातीय विवाह की प्रथा आरम्भ की।

नामधारी समुदाय ने राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत राजनीतिक गतिविधियों में भी सक्रिय भाग लिया। सतगुरु राम सिंह जी ने भारत को आजाद कराने के उद्देश्य से असहयोग व स्वदेशी आन्दोलन आरम्भ किया। इसी आन्दोलन का महात्मा गाँधी ने सन् 1920 में प्रयोग किया। गुरु जी ने अपनी अलग डाक व्यवस्था के प्रबन्ध कर लिए। उन्होंने अंग्रेज़ी अदालतों और स्कूलों का बहिष्कार कर न्याय और शिक्षा के अपने प्रबन्ध किये। अंग्रेज़ों को लगने लगा कि गुरु जी ने एक समानान्तर सरकार बना ली है। नामधारी सिक्खों ने अंग्रेजों द्वारा स्थापित गौवध के लिए बनाये जाने वाले बूचड़खानों का डटकर विरोध किया। उन्होंने ऐसे बूचड़खानों पर हमला करके अंग्रेजों को बता दिया कि भारतीय अपने धर्म में किसी का हस्तक्षेप सहन नहीं कर सकते।

अंग्रेज़ों से विरोध करने के कारण सन् 1871 में रायकोट, अमृतसर और लुधियाना में 9 नामधारी सिक्खों को फाँसी दी और सन् 1872 में मालेरकोटला के खुले मैदान में 65 नामधारियों को खड़े करके तोपों से उड़ाकर शहीद कर दिया। नामधारियों के आन्दोलन को सरकार विरुद्ध घोषित करके गुरु जी को गिरफ्तार करने रंगून (तत्कालीन बर्मा) भेज दिया गया जहाँ सन् 1885 में गुरु जी ने इस नश्वर शरीर को त्यागा।

सत् गुरु राम सिंह जी द्वारा चलाया नामधारी समुदाय आज भी भैणी साहब से सादा, पवित्र और आडम्बर रहित जीवन का प्रचार कर रहा है।

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9. बाबा साहब अम्बेदकर

बाबा साहब अम्बेदकर का जन्म 14 अप्रैल, सन् 1891 को मध्य प्रदेश में इन्दौर के निकट मऊ-छावनी नामक स्थान पर हुआ। आपके पिता श्री राम जी राव ने आपका नाम भीम राव रखा। आपने सोलह वर्ष की अवस्था में मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली। स्कूल में ही एक अध्यापक ने इनके नाम के साथ अम्बेदकर शब्द जोड़ दिया। और तब से यह भीम राव अम्बेदकर के नाम से जाने जाने लगे।

सन् 1912 में अम्बेदकर जी ने बी० ए० की डिग्री प्राप्त कर ली। सन् 1913 में बड़ौदा नरेश से छात्रवृत्ति पाकर आप विदेश चले गए। वहाँ आप सन् 1917 तक रहे और कोलम्बिया विश्वविद्यालय से आपने एम० ए०, पी एच डी० एवं एल० एल० बी० की डिग्रियाँ प्राप्त की। स्वदेश लौटकर बड़ौदा राज्य के सैनिक सचिव नियुक्त हुए लेकिन कुछ समय पश्चात् आपने वह पद छोड़ दिया और मुम्बई के सिडेनहम कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया। तत्पश्चात् आजीविका चलाने के लिए आपने वकालत का पेशा भी अपनाया। लोगों में जागृति लाने के लिए आपने ‘बहिष्कृत हितकारिणी’ और ‘बहिष्कृत भारत’ नामक समाचार-पत्र निकाले। सन् 1927 में आप मुम्बई विधान सभा के सदस्य मनोनीत हुए।

इसी बीच महात्मा गाँधी जैसे राष्ट्रीय नेताओं के साथ मिलकर निम्न वर्ग के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये, अनेक आन्दोलन चलाये। इनमें 20 मार्च, सन् 1927 में चलाया चोबदार-तालाब सत्याग्रह उल्लेखनीय है।

सन् 1947 में देश की पहली राष्ट्रीय सरकार में आप कानून मन्त्री बने। आपको संविधान सभा का सदस्य बनाया गया। आपके ही प्रयत्नों से धर्म-निरपेक्ष भारतीय संविधान की रचना की गई जिसमें प्रत्येक नागरिक को चाहे वह किसी भी जाति, वर्ण का हो, समान अधिकार दिए गए। आप ही के यत्नों से हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान मिला। प्रौढ़ावस्था तक आते-आते बाबा साहब अम्बेदकर जी ने नागपुर में बौद्ध धर्म में दीक्षा ले ली। 6 दिसम्बर, सन् 1956 को यह मसीहा इस दुनिया से उठ गया।

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10. भारत की प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री

कल्पना चावला ने एक स्वर्णिम इतिहास की रचना की है। उसने 1997 ई० में अन्तरिक्ष की सफल यात्रा की थी। इस प्रकार उसने भारत की पहली महिला अन्तरिक्ष यात्री होने का गौरव प्राप्त किया। कल्पना बहुत कुछ कर दिखाना चाहती थी। वह एक बार फिर अन्तरिक्ष का कोना-कोना टटोलना चाहती थी। उसने 16 जनवरी, सन् 2003 को फिर अन्तरिक्ष अभियान में शामिल अमरीकी अन्तरिक्षयान कोलम्बिया में उड़ान भरी। दुर्भाग्य से यह यान वापसी पर दुर्घटना का शिकार होकर नष्ट हो गया। कल्पना चावला हमेशा के लिए अन्तरिक्ष में विलीन हो गई। उसके यान के 6 अन्य यात्री भी सदा की नींद सो गए। इस दुर्घटना से सारा भारत शोकग्रस्त हो उठा। कल्पना स्वयं मिट गई परन्तु उनके साहस, शौर्य और कर्त्तव्य भावना सर्वदा के लिए अन्तरिक्ष की बड़ी गहराई से अंकित हो गए हैं। हरियाणा (करनाल) की यह वीरांगना समस्त भारतीय नारी-समाज का प्रकाश-स्तम्भ बन गई है। भारत एक होनहार बेटी से वंचित हो गया।

बयालीस वर्षीय कल्पना का जन्म करनाल में हुआ। उच्च-मध्यम परिवार में जन्मी कल्पना की प्रारम्भिक शिक्षा करनाल में ही सम्पन्न हुई। उसकी गणना अपने स्कूल के योग्यतम छात्र-छात्राओं में की जाती थी। प्रारम्भ से ही उसके सपने बहुत ऊँचे थे। उसके मन में अन्तरिक्ष में उड़ान भरने की लालसा बाल्यकाल में ही पनपने लगी थी। करनाल में वह अपने बड़े भाई के साथ विमान उड़ाने के प्रशिक्षण केंद्र में जाया करती थी। स्कूली शिक्षा की समाप्ति पर कल्पना ने चण्डीगढ़ में उच्च शिक्षा प्राप्त की और उसने अन्तरिक्ष विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। तदन्नतर कल्पना अमरीका के नासा अन्तरिक्ष अभियान केंद्र में नियुक्त हो गई। यहीं पर उसका अन्तरिक्ष अभियान का क्रम प्रारम्भ हो गया। नासा ने सन् 1997 ई० में कल्पना को अन्तरिक्ष अभियान के लिए चुना और उसने बड़ी सफलता के साथ यह यात्रा परिपूर्ण की थी। उसकी गणना विश्व के श्रेष्ठतम अन्तरिक्ष यात्रियों में होने लगी थी।

कल्पना चावला के हृदय में अनेक कल्पनाएं मचल रही थीं। वह चाहती थी कि अन्तरिक्ष के प्रत्येक रहस्य की खोज की जानी चाहिए। 16 जनवरी, सन् 2003 ई० को जब वह दूसरी बार अन्तरिक्ष यात्रा पर निकली तो अन्तरिक्ष के इन्हीं अज्ञात रहस्यों का अन्वेषण करना था। कैंसर जैसे भीषण रोगों पर नियन्त्रण पाने का विचार भी इस में निहित था। विधि की विडम्बना कहिए, कि कुछ ही मिनटों में मिलने वाली महानतम उपलब्धि हाथ से छूट कर बिखर गई। कल्पना अपने छ: अन्य साथियों के साथ मौत का शिकार हो गई। कोलम्बिया धरती को चूमने से कुछ ही क्षण पहले जलकर राख हो गया। टुकड़े-टुकड़े होकर वह धरती पर इधर-उधर बिखर गया। भारत की कल्पना भी लुप्त हो गई और उसके दिल में मचल रही स्वर्णिम कल्पनाएँ वीरता का महान् सन्देश देकर बिखर गई।

कल्पना चावला ने जिस अटूट साहस, धैर्य, वीरता और कर्त्तव्यनिष्ठा का जो मार्ग प्रशस्त किया है, वह भारत के युवा वर्ग के लिए हमेशा प्रेरणा का स्त्रोत रहेगा। कल्पना चावला के जीवन से भारतीय नारी समाज को एक नई स्फूर्ति प्राप्त हुई है। यह बात पूर्णतया स्पष्ट हो गई है कि भारतीय नारी प्रत्येक क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित कर सकती है। उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है। पृथ्वी हो या अन्तरिक्ष प्रत्येक स्थान उसकी पहुँच से परे नहीं है।

भारत अपनी इस महान् वीरांगना को नहीं भूलना चाहेगा। कल्पना चावला की स्मृति में करनाल में एक विशालतम अस्पताल खोलने की योजना को साकार रूप दिया जा रहा है। विविध पुरस्कार कल्पना के नाम पर आरम्भ हो रहे हैं। अनेक स्कूल-कॉलेज कल्पना की कल्पना को साकार करने के लिए तत्पर हैं । सम्भव है भारत में कल्पना की स्मृति में अन्तरिक्ष अभियान के लिए कोई योजना कार्यान्वित की जाए। यह एक स्वाभाविक एवं निश्चित तथ्य है प्रत्येक राष्ट्र अपने वीरों और वीरांगनाओं के बताए मार्ग पर चल कर ही प्रगति के शिखरों को छू सकता है।

कल्पना चावला भारतीय इतिहास की एक महान् धरोहर बन गई है। वह साहस के प्रतीक के रूप में भारतीयों का मार्ग-दर्शन करती रहेगी। देश की युवा-शक्ति कल्पना के मार्ग पर चलते हुए राष्ट्र की गरिमा को चार चाँद लगाएगी। कल्पना एक स्थान विशेष की धरोहर नहीं, बल्कि समग्र राष्ट्र की प्रकाशमान दीप शिखर है जो प्रेरणा, प्रोत्साहन, कर्त्तव्यानुभूति और अदम्य उत्साह का मार्ग प्रशास्त करती रहेगी। अन्त में हम कहेंगे- “कल्पना और तुम्हारी कल्पनाओं को शत-शत नमस्कार।”

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11. महाराजा रणजीत सिंह

शेरे पंजाब कहे जाने वाले महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 2 नवम्बर, सन् 1780 ई० को गुजरांवाला (पाकिस्तान) में हुआ। आपके पिता का नाम महासिंह था जो सुकरचकिया मिसल के सरदार थे। आपकी माता राजकौर जींद की फुलकिया मिसल के सरदार की बेटी थी। आपका बचपन का नाम बुध सिंह था, किन्तु आपके पिता ने अपनी जम्मू विजय को याद रखने के लिए आपका नाम रणजीत सिंह रख दिया।

महाराजा रणजीत सिंह ने उस समय छोटे-छोटे राज्यों को और मिसलों को एक किया। मुसलमानों और पठानों को हरा कर समय की माँग को देखते हुए रोपड़ (रूपनगर) के स्थान पर अंग्रेजों के साथ समझौता कर एक सुदृढ़ सिक्ख राज्य की स्थापना की।

महाराजा रणजीत सिंह एक महान् योद्धा और कुशल प्रशासक थे। दस वर्ष की आयु में आपने पहली जीत प्राप्त की। विजयी रणजीत सिंह जब लौटे तो उनके पिता की मृत्यु हो चुकी थी, किन्तु उन्होंने अपनी योग्यता और वीरता से अपने अधिकार को स्थिर रखा। महाराजा रणजीत सिंह ने पन्द्रह वर्ष की आयु में महताब कौर से विवाह किया। किन्तु यह विवाह सफल न हो सका। तब उन्होंने सन् 1798 ई० में दूसरा विवाह किया जो सफल रहा।

सत्रह वर्ष की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते आपने सारी मिसलो का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। उन्नीस वर्ष की अवस्था में लाहौर पर अधिकार करके उसे अपनी राजधानी बनाया। धीरे-धीरे आपने जम्मू-कश्मीर, अमृतसर, मुल्तान, पेशावर आदि क्षेत्रों को अपने अधीन कर एक विशाल पंजाब राज्य की स्थापना की।

महाराजा रणजीत सिंह की उदारता और छोटे बच्चों से प्रेम की अनेक घटनाएँ प्रचलित हैं। आप एक कुशल प्रशासक और न्यायप्रिय शासक थे। सभी जातियों के लोग आपकी सेना में थे। महाराजा जहाँ वीरों, विद्वानों का आदर कर उन्हें इनाम देते थे, वहाँ अत्याचारी जागीरदारों को दंड भी देते थे। वे बिना किसी भेदभाव से सभी उत्सवों और पर्यों में भाग लेते थे। यही कारण है कि जब सन् 1839 में आपकी मृत्यु हुई तो सभी धर्मों के लोगों ने आप की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना की।

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12. अमर शहीद मेजर भूपेन्द्र सिंह

मेजर भूपेन्द्र सिंह का नाम उन शहीदों में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा जिन्होंने देशहित में अपने प्राण न्योछावर कर दिए। सन् 1965 के पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में मेजर भूपेन्द्र सिंह ने जो अद्भुत शौर्य दिखाया उसके लिए भारतीय सदा उनके ऋणी रहेंगे।

मेजर भूपेन्द्र सिंह लुधियाना जिले के रहने वाले थे। देश सेवा और देश भक्ति की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी थी। उन्होंने पाकिस्तान के साथ स्यालकोट फ्रंट की लड़ाई में अपने उच्च अधिकारी से टैंकों के संचालन की आज्ञा माँगी। आज्ञा पाकर अगले ही दिन मेजर भूपेन्द्र ने तुरन्त शत्रु पर आक्रमण करने का निश्चय किया। मेजर सिंह के टैंकों ने इतनी भयंकर गोलाबारी की कि शत्रु पक्ष के अनेक टैंक ध्वस्त हो गए। मेजर सिंह के नेतृत्व वाले टैंक दल ने शत्रु के 21 टैंक नष्ट कर दिए, इनमें सात तो अकेले मेजर सिंह ने नष्ट किये थे। कुछ टैंकों को मेजर सिंह ने सही हालत में अपने अधिकार में ले लिया। पाकिस्तानी टैंकों की सहायता उनके विमान भी करने लगे। वे हड़बड़ी में बम फेंक रहे थे। दुर्भाग्य से जिस टैंक में मेजर सिंह बैठे थे उस पर पाकिस्तानी विमान द्वारा फेंकी गई एक मिजाइल आ लगी। उनका टैंक जलने लगा।

मेजर सिंह साहस से काम लेते हुए टैंक से बाहर कूद पड़े। अभी वे अपने लिए सुरक्षित स्थान ढूँढ ही रहे थे कि उनके साथियों की जलते हुए टैंकों से बचाओ-बचाओ की आवाजें सुनाई दी। मेजर सिंह ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने तीन साथियों को जलते हुए टैंकों से बाहर निकाला। उनके कपड़ों को आग लग चुकी थी जिससे उनका सारा शरीर झुलस चुका था। अपने साथियों की जान बचाने के बाद वे स्वयं बेहोश होकर गिर पड़े। उन्हें तुरन्त सेना अस्पताल पठानकोट पहुंचाया गया। वहाँ से उन्हें दिल्ली लाया गया। उनकी वीरता और साहस की कहानी सुन कर प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री स्वयं अस्पताल आए। उनके आने पर मेजर सिंह ने कहा-‘काश मेरे हाथ इस योग्य होते कि मैं उन्हें सैल्यूट कर सकता’-इस वीर की यह हालत देख शास्त्री जी की भी आँखें भर आईं। मेजर सिंह कुछ दिन मौत से लड़ते रहे फिर एक दिन भारत माँ का यह शूरवीर हम से सदा के लिए विदा हो गया।

भारत सरकार ने इस वीर सपूत को महावीर चक्र.(मरणोपरान्त) देकर सम्मानित किया। मेजर भूपेन्द्र सिंह की शहादत युवा पीढ़ी को सदा प्रेरित करती रहेगी।

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13. पंजाब के ग्रामीण मेले और त्योहार

देवी-देवताओं, गुरुओं, पीर-पैगम्बरों, ऋषि-मुनियों एवं महात्माओं की पंजाब की धरती अपने कर्मठ किसानों और वीर सपूतों के कारण देश भर के सभी प्रान्तों में शिरोमणि है। पंजाब को मेले और त्योहारों के लिए भी जाना जाता है। साल के शुरू में ही लोहड़ी का त्योहार और माघी का मेला आता है। लोहड़ी पौष मास के अन्तिम दिन मनाया जाता है।

कड़ाके की सर्दी की परवाह न करते हुए युवक-युवतियों की टोलियाँ-दे माई लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी या सुन्दर मुन्दरिये हो, तेरा कौन विचारा-के गीत गाते हुए उन घरों से विशेषकर लोहड़ी माँगते हैं जिनके घरों में पुत्र का विवाह हुआ हो या पुत्र उत्पन्न हुआ हो। लोहड़ी से अगले दिन मुक्तसर में चालीस मुक्तों की याद में माघी का मेला मनाया जाता है। वैसे माघ महीने की संक्रान्ति को सभी पवित्र सरोवरों और नदियों में स्नान कर लोग पुण्य लाभ कमाते माघी के बाद बसंत पंचमी का त्योहार आता है, जो सारे पंजाब में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग पतंग उड़ाते हैं और घरों में पीले चावल या पीला हलवा बनाते हैं और पीले वस्त्र पहनते हैं। प्रकृति भी उस दिन पीली चुनरी (सरसों के फूल खेतों के रूप में) ओढ़ लेती है। पुरानी पटियाला और कपूरथला रियासतों में यह दिन बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता था। इसी दिन बटाला में वीर हकीकत राय की समाधि पर एक बड़ा भारी मेला लगता है।

बसन्त पंचमी के बाद बैसाखी का त्योहार आता है। इस दिन किसान अपनी गेहूँ की फसल को तैयार देखकर झूम उठता है और गा उठता है-‘जट्टा ओ आई बिसाखी, मुक्क गई फसलाँ दी राखी’। गाँव-गाँव शहर-शहर मेले लगते हैं। इसके बाद सावन महीने में पूर्णिमा को रक्षा बन्धन का त्योहार आता है। यह त्योहार भाईबहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। इसी महीने पंजाब का एक ग्रामीण त्योहार भी आता है। इस त्योहार को मायके आई विवाहित लड़कियों का तीज का त्योहार कहा जाता है। मायके आई विवाहित लड़कियाँ सखियों संग झूला झूलती हैं और मन की बातें खुल कर करती हैं।

उपर्युक्त मेलों और त्योहारों के अतिरिक्त पंजाब में कुछ धार्मिक मेले भी होते हैं। इनमें सबसे बड़ा आनन्दपुर साहब में लगने वाला होला-मुहल्ला का मेला है। ग्रामीण मेलों में किला रायपुर का मिनी ओलिम्पिक मेला प्रसिद्ध है। कुछ मेलों में पशुओं की मण्डियाँ भी लगती हैं। पंजाब के ये मेले और त्योहार आपसी भाई-चारे के प्रतीक हैं। हमें इन्हें पूरी श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए।

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14. जीवन में त्योहारों का महत्त्व

कहा जाता है कि जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है और मनुष्य शुरू से संघर्ष के बाद, आराम या मनोरंजन चाहता है। इसलिए मनुष्य ने ऐसे अवसरों की तलाश की जिनमें वह अपने सब दुःख-दर्द भूल कर कुछ क्षणों के लिए खुल कर हँस गा सके। हमारे पर्व या त्योहार यही काम करते हैं। त्योहार वाले दिन, चाहे एक दिन के लिए ही सही हम यह भूलने की कोशिश करते हैं कि हम गरीब हैं, दुःखी हैं। आराम जीवन की जरूरत है, परिवर्तन मानव-स्वभाव की माँग है। हमारे पर्व या त्योहार इस ज़रूरत और माँग को पूरा करते हैं।

त्योहार का नाम सुनते ही सभी के मन में उल्लास एवम् स्फूर्ति भर जाती है। त्योहार के दिन हम आनन्द के साथ-साथ जातीय गौरव का भी अनुभव करते हैं। ये त्योहार आपसी भाईचारे के प्रतीक हैं। इनमें सभी धर्मों, सम्प्रदायों के लोग बिना किसी भेदभाव के भाग लेते हैं। जहाँ ये त्योहार आपसी सम्बन्धों को सुदृढ़े करते हैं, वहाँ राष्ट्रीय एकता को भी बढ़ावा देते हमारे देश में मनाए जाने वाले त्योहार धर्म और राजनीति के उच्चतम आदर्शों को प्रस्तुत करते हैं। प्रत्येक पर्व या त्योहार किसी-न-किसी आदर्श चरित्र से जुड़ा है। जैसे बसन्तोत्सव हमें भगवान् शंकर के कामदहन और श्रीकृष्ण के पूतनावध की याद दिलाता है। आषाढ़ में काल की दुर्निवार गति की याद में भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा होती है। श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबन्धन के त्योहार द्वारा हिन्दू समाज में भ्रातृत्व का स्मरण दिलाया जाता है। दीवाली के दिन हम लक्ष्मी पूजन के साथ नरकासुर वध की घटना को याद करते हैं। रामनवमी के दिन हमें भगवान् राम के जीवन से त्याग, तपस्या और जन सेवा की शिक्षा मिलती है।

हमारे देश में अनेक त्योहार ऋतुओं या फसलों से भी जुड़े हैं जैसे लोहड़ी, होली, बैशाखी, श्रावणी पूर्णिमा आदि। कुछ त्योहारों पर व्रत रखने की भी परम्परा है जैसे महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी आदि। स्वास्थ्य की दृष्टि से इन व्रतों की बहुत उपयोगिता है। ये व्रत व्यक्ति की पाचन क्रिया को सही रखते हैं। संक्षेप में कहा जाए तो हमारे पर्व या त्योहार आत्म शुद्धि का साधन हैं । त्योहार हमारे जीवन में खुशियाँ लाते हैं। त्योहारों के अवसर पर हम अपने सब राग, द्वेष, मद, मोह को भस्मीभूत करके, ऊँच-नीच का, जाति-पाति का भेद भुला कर, एक होकर आनन्द मनाते हैं। इन्हीं त्योहारों ने हमारी प्राचीन संस्कृति को और सामाजिक मूल्यों को बचाए रखा है।

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15. लोहड़ी

लोहड़ी का त्योहार विक्रमी संवत् के पौष मास के अन्तिम दिन अर्थात् मकर संक्रान्ति (माघी) से एक दिन पहले मनाया जाता है। इसे हम ऋतु सम्बन्धी त्योहार भी कह सकते हैं। अंग्रेजी कलैण्डर के अनुसार साल का यह पहला त्योहार होता है। इस दिन सर्दी अपने पूर्ण यौवन पर होती है। लोग अपने-अपने घरों में आग जलाकर उसमें मूंगफली, रेवड़ियों, फूलमखानों की आहुति डालते हैं और लोक गीतों को गाते हुए नाचते हुए आग तापते हैं।

लोहड़ी वाले दिन माता-पिता अपनी विवाहिता बेटियों के घर उपर्युक्त चीजें और वस्त्राभूषण भेजते हैं। जिनके घर लड़के की शादी हुई हो या लड़का पैदा हुआ हो, वे लोग अपने नाते-रिश्तेदारों को बुलाकर धूमधाम से लोहड़ी का त्योहार मनाते हैं। लोगों ने अब लड़की के जन्म पर भी लोहड़ी मनाना शुरू कर दिया है। पुराने जमाने में लड़के-लड़कियाँ समूह में घर-घर जाकर लोहड़ी माँगते थे और आग जलाने के लिए उपले और लकड़ियाँ एकत्र करते थे। साथ ही वे ‘दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी’, ‘गीगा जम्यां परात गुड़ वंडिया’ तथा ‘सुन्दर मुन्दरिये हो, तेरा कौन विचारा-दुल्ला भट्ठी वाला’ जैसे लोक गीत भी गाया करते थे। युग और परिस्थितियाँ बदलने के साथ-साथ लोहड़ी माँगने की यह प्रथा लुप्त होती जा रही है। लोग अब अपने घरों में कम होटलों में अधिक लोहड़ी मनाते हैं और आग जलाने के स्थान पर डी०जे० पर फिल्मी गाने गाते हैं लोक गीत तो जैसे लोग भूल ही गए हैं। बस लोहड़ी के अवसर पर पीना-पिलाना और नाचना-गाना ही शेष बचा है।

कुछ लोग लोहड़ी के त्योहार को फसली त्योहार मानते हैं। गन्ने की फसल तैयार हो जाती है और गुड़-शक्कर बनना शुरू हो जाता है। सरसों की फसल भी तैयार हो जाती। मकई की फसल घरों में आ चुकी होती है। शायद इन्हीं कारणों से आज भी गन्ने के रस की खीर, सरसों का साग और मकई की रोटी बनाने का रिवाज है। समय चाहे कितना बदल गया हो, किन्तु लोहड़ी के त्योहार को आपसी भाईचारे और पंजाबी संस्कृति का त्योहार माना जाता है।

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16. होली

हिन्दुओं के त्योहारों में होली का त्योहार एक प्रमुख त्योहार है। रंगों का यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्राचीन काल में इस दिन को हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद और उसकी बुआ होलिका से जोड़ कर देखा जाता था। होलिका दहन की घटना को याद कर सामूहिक रूप से अग्नि प्रज्वलित की जाती थी और यह कल्पना की जाती थी राक्षसी प्रवृत्ति वाली होलिका जल गई है। आज भी कुछ स्थानों पर होली बसन्त के बाद महीना भर मनाई जाती है। वृन्दावन और बरसाने की होली देखने तो देश-विदेश से कई लोग आते हैं।

होली रंगों का और मेल मिलाप का त्योहार है, किन्तु आज की युवा पीढ़ी ने इसे हुड़दंग बाजी का त्योहार बना दिया है। होली के त्योहार को ही कई लोग गांजा, सुल्फा, भांग या शराब पीना शुभ समझते हैं, किन्तु ऐसा करना कभी भी शुभ नहीं माना जाता। यदि किसी पवित्र त्योहार के दिन हम व्यसनों और कुरीतियों की ओर बढ़ते हैं तो इससे हम त्योहार के वास्तविक महत्त्व से बहुत दूर हट जाते हैं।

होली के अवसर पर पहले लोग अबीर, गुलाल से रंग खेलते थे, किन्तु आज हम सस्ते के चक्कर में सिंथेटिक रंगों से होली खेलते हैं। जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक हैं। इन रंगों के आँखों में पड़ने से आँखों की रोशनी जाने का खतरा बना रहता है। आज आवश्यकता है होली के त्योहार की पवित्रता से युवा पीढी को, बच्चों को परिचित करवाने की। इसके लिए हमारे धार्मिक और सामाजिक नेताओं को आगे आना चाहिए, होली आपसी भाईचारे का, मेल-मिलाप का त्योहार है, हमें यह त्योहार ऊँच-नीच का, छोटे-बड़े का भेद भुला देना सिखाता है। हमें इस दिन लोगों में खुशियाँ बाँटनी चाहिए न कि दुःख या कष्ट पहुँचाना। हमें बड़ों की ही नहीं डॉक्टरों की सलाह पर भी ध्यान देना चाहिए।

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17. वैशाखी

वैशाखी का त्योहार वैशाख मास की संक्रान्ति को मनाया जाता है। पहले पहल यह त्योहार फसली त्योहार माना जाता था जिसे किसान लोग अपनी गेहूँ की फसल तैयार हो जाने पर मनाते थे। इस दिन गाँव-गाँव मेले लगते हैं। कई स्थानों पर यह मेला दो-दो अथवा तीन-तीन दिनों तक चलता है। नौजवान लोग भाँगड़ा डालते हैं। लोग सजधज कर इन मेलों में शामिल होते हैं । इस त्योहार को शीत ऋतु के प्रस्थान और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का त्योहार भी माना जाता है। लोग पवित्र नदियों व सरोवरों में जाकर स्नान करते हैं और गुरुद्वारों में मत्था टेक कर निहाल होते हैं।

वैशाखी के दिन रबी की फ़सल पक कर तैयार हो जाती है जिससे किसानों के ही नहीं, मज़दूरों और शिल्पकारों और दुकानदारों के चेहरे पर रौनक आ जाती है। वास्तव में सारा व्यापार रबी की अच्छी फसल पर ही निर्भर करता है। _वैसाखी का यह पर्व हमें सन् 1699 का वह दिन भी याद दिलाता है जिस दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसे की स्थापना की थी। गुरु जी कहा करते थे-जब शान्ति एवं समझौते के सभी तरीके असफल हो जाते हैं तब तलवार उठाने में नहीं झिझकना चाहिए। – वैशाखी का यह पर्व पहले उत्तर भारत में ही विशेषकर गाँवों में मनाया जाता था, किन्तु सन् 1919 में इसी दिन जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार को याद करते हुए वैशाखी का यह पर्व सारे भारत में मनाया जाता है और जलियांवाला बाग में शहीदों को याद किया जाता है।

वैशाखी वाले दिन से ही नवीन विक्रमी वर्ष का आरम्भ माना जाता है। कई जगहों पर इसी दिन साहुकार लोग अपने नए बही खाते खोलते हैं और मनौतियाँ मनाते हैं। पंजाब के किसान तो खुशी से झूम कर गा उठते हैं-‘जट्टा ओ आई वैशाखी, मुक्क गई फसलाँ दी राखी’। युवक भाँगड़ा डालते हैं तो युवतियाँ गिद्दा डालती हैं। इसी कारण वैशाखी के त्योहार को पंजाब के ग्रामीण मेलों का सिरताज कहा जाता है।

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18. रक्षाबन्धन

रक्षाबन्धन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसी कारण कई लोग इसे श्रावणी पर्व के नाम से भी याद करते हैं। इसी त्योहार के दिन से कार्तिक शुक्ला एकादशी तक चतुर्मास भी मनाया जाता है। पुराने जमाने में ऋषि-मुनि और ब्राह्मण इन चार महीनों में यात्रा नहीं करते थे, अपने आश्रमों में ही रहते थे। राज्य की ओर से उनके रहने खाने-पीने का प्रबन्ध किया जाता था। आजकल इस नियम का पालन केवल जैन साधु एवं साधवियाँ ही कर रहे हैं।

रक्षाबन्धन का त्योहार भाई-बहन के प्यार से कब से सीमित हो गया इसका इतिहास में कोई प्रमाण नहीं मिलता। केवल चित्तौड़ की महारानी करमवती द्वारा मुग़ल सम्राट् हुमायूँ को भेजी राखी की घटना का ही उल्लेख मिलता है। हुमायूँ ने राखी मिलने पर गुजरात के मुसलमान शासक को हरा कर अपनी मुँह बोली बहन के राज्य की रक्षा की थी, किन्तु शुरूशुरू में रक्षाबन्धन केवल ब्राह्मण ही अपने यजमानों के ही बाँधा करते थे। समय के परिवर्तन के साथ राजपूत स्त्रियों ने अपने पतियों की कलाई पर युद्ध में जाते समय रक्षाबन्धन बाँधना शुरू कर दिया।

आजकल यह त्योहार केवल भाई-बहनों का त्योहार बन कर ही रह गया है। बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है और भाई उसकी सुरक्षा की प्रतिज्ञा करता है। किन्तु आज बहन स्वयं आत्मनिर्भर हो गई है। अपने परिवार का (माता-पिता, भाई-बहन का) भरण पोषण करती है फिर वह अपनी सुरक्षा की गारण्टी क्यों चाहेगी। दूसरे आज यह त्योहार मात्र परम्परा का निर्वाह बन कर रह गया है। आज बहन अबला नहीं सबला नारी हो गई है।

पुराने जमाने में विवाहित स्त्रियाँ अपने मायके चली जाती थीं। वह अपनी सहेलियों संग झूला झुलती, आमोद-प्रमोद में दिन बिताती हैं। शायद इसीलिए बड़े-बुजुर्गों ने श्रावण महीने में सास-बहू के इकट्ठा रहने पर रोक लगा दी थी, किन्तु आज बड़ों के इस आदेश या नियम की कोई पालना नहीं करता। हमें चाहिए कि आज प्रत्येक त्योहार को हम पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाएँ और अपनी जाति के गौरव और अपने देश की संस्कृति का ध्यान रखें। समय और परिस्थिति के अनुसार उसमें उचित सुधार कर लें।

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19. दशहरा (विजयदशमी)

दशहरा (विजयदशमी) का त्योहार देश भर में शारदीय नवरात्रों के बाद दशमी तिथि को मनाया जाता है। प्रसिद्ध एवं सर्वज्ञात रूप से विजयदशमी के त्योहार को भगवान श्रीराम की लंकापति रावण पर विजय के रूप में अथवा धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर विजय के रूप में मनाया जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में देश के विभिन्न नगरों और गाँवों में दशहरे का मेला लगता है जिसमें रामलीला का मंचन होता है और श्रीराम के जीवन से जुड़ी अनेक झाँकियाँ निकाली जाती हैं। जिन गाँवों में यह मेला नहीं लगता वहाँ के लोग निकट के नगर में यह मेला देखने जाते हैं । दशमी के दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के बड़े-बड़े पुतले, जो रामलीला मैदान में स्थापित किए होते हैं, जलाए जाते हैं।

विजयदशमी का यह त्योहार बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। प्रान्त भर में माँ दुर्गा की विशाल मूर्तियाँ बनाई जाती हैं और विजयदशमी के दिन गंगा में या निकट की नदियों में विसर्जित की जाती हैं। प्राचीन काल में क्षत्रिय लोग शक्ति के प्रतीक शस्त्रों की पूजा किया करते थे। महाराष्ट्र में विजयदशमी सीमोल्लंघन के रूप में मनाई जाती है। सायंकाल गाँव के लोग नए वस्त्र पहन गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में ‘सोना’ लूट कर गाँव लौटते हैं और उस सुवर्ण का आदान-प्रदान करते हैं।

प्राचीन इतिहास के अनुसार इसी दिन देवराज इन्द्र ने महादानव वृत्रासुर पर विजय प्राप्त की थी। पाण्डवों ने भी इसी दिन अपना तेरह वर्षों का अज्ञातवास पूरा कर द्रौपदी का वरण किया था।
विजयदशमी धार्मिक दृष्टि से आत्म-शुद्धि का पर्व है। राष्ट्रीय दृष्टि से यह दिन सैन्य संवर्धन का दिन है। शक्ति के उपकरण शस्त्रों की पूजा का दिन है। हम स्वयं को आराधना
और तप से उन्नत करें, धर्म की, सत्य की अधर्म और असत्य पर विजय को याद रखें और राष्ट्र की सैन्य शक्ति को सुदृढ़ करें, यही विजयदशमी का संदेश है।

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20. दीपावली

दीपावली का त्योहार कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। इस त्योहार को भगवान् श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मण जी सहित लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे थे। इस अवसर पर अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। यह त्योहार प्रायः सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। लोग अपने घरों और दुकानों को साफ़ कर सजाते हैं। बाज़ारों में चहल-पहल बढ़ जाती है। लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ और उपहार भेंट करते हैं।

दीपावली का यह त्योहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की योदशी को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग बर्तन या गहने खरीदना शुभ मानते हैं। इससे अगला दिन नरक चौदस अथवा छोटी दीवाली के नाम से प्रसिद्ध है। कहते हैं कि इसी दिन भगवान् श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। अमावस्या की रात को दीवाली का मुख्य पर्व होता है। इस रात धन की देवी लक्ष्मी जी और विघ्ननाशक गणेश जी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी जी और गणेश जी की समन्वित पूजा का अर्थ है धन का मंगलमय संचयन और उसका धर्म सम्मत उपयोग। अमावस्या से अगला दिन विश्वकर्मा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन गोवर्धन पूजा का भी विधान है तथा कार्तिक शुक्ला द्वितीया को भाई-बहन का दूसरा बड़ा त्योहार भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। इस तरह पाँच दिनों तक चलने वाला दीवाली का त्योहार समाप्त हो जाता है।

दीवाली के अवसर पर जुआ खेलने की कुप्रथा का भी प्रचलन है। इस कुप्रथा को बन्द होना चाहिए। भले ही जुआ खेलना एक कानूनी अपराध है, किन्तु फिर भी लोग जुआ खेलते हैं। दीवाली के अवसर पर पटाखे चलाने और आतिशवाजी भी हमें बन्द कर देने चाहिए। हर वर्ष करोड़ों रुपए पटाखे चलाकर ही हम नष्ट कर देते हैं। इन रुपयों से लाखों भूखों को रोटी दी जा सकती है। लाखों गरीब बच्चों को पढ़ाया जा सकता है। दीवाली के इस त्योहार को हमें बदली परिस्थितियों के अनुसार मनाना चाहिए। हमें प्रयत्न करना चाहिए कि हम पर्यावरण को पटाखों से प्रदूषित न करें। दीपावली प्रकाश का पर्व है न कि प्रदूषण का। दीपावली निश्चित रूप से ऐसा त्योहार है जिसे पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है।

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21. वसन्त ऋतु

वसन्त ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। यह ऋतु अंग्रेज़ी महीने के मार्च-अप्रैल और विक्रमी संवत् के महीनों चैत्र-वैशाख महीनों में आती है, किन्तु लोग वसन्त आगमन का त्योहार वसन्त पंचमी का त्योहार माघ महीने की पंचमी को ही मना लेते हैं। कहा जाता है आया वसन्त तो पाला उड़त अर्थात् इस ऋतु में शीत का अन्त हो जाता है। मानव शरीर में नई चेतना एवं स्फूर्ति का अनुभव होने लगता है। इस ऋतु में शरीर में नए रक्त का संचार होता है। प्रकृति भी नए रूप और यौवन के साथ प्रकट होती है। हर तरफ मादकता छायी रहती है। वृक्षों पर नई कोंपलें फूट निकलती हैं और बागों में तरह-तरह के फूल खिल उठते हैं। खेतों में फूली सरसों देखकर लगता है जैसे प्रकृति ने पीली चुनरी ओढ़ रखी हो। शायद इसीलिए वसन्त को कामदेव का पुत्र माना जाता है। कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाकर प्रकृति नाच उठती है। हर तरफ हरियाली छा जाती है। शीत मन्द और सुगन्ध भरी वायु बहने लगती है। फूलों पर भौरे मँडराने लगते हैं।

बसन्तागमन की सूचना हमें कोयल की कूहू कुहू से मिल जाती है और प्रकृति की इस मादकता का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ना शुरू हो जाता है। कहा जाता है कि ज्ञान की देवी सरस्वती का जन्म इसी दिन हुआ था। इसी दिन धर्मवीर हकीकत राय ने धर्म के नाम पर अपना बलिदान दिया था। वसन्त पंचमी के दिन बटाला में उनकी समाधि पर बड़ा भारी मेला लगता है। साहित्य जगत् के लोग भी कविवर निराला का जन्म दिन वसन्त पंचमी वाले दिन ही मनाते हैं।

वसन्त पंचमी के दिन अनेक नगरों में मेले लगते हैं। दिन में कुश्तियाँ होती हैं और शास्त्रीय गायन की सभा सजती है। दिन में लोग पतंग उड़ाते हैं। लखनऊ में पतंगबाजी के मुकाबले सारे देश में प्रसिद्ध हैं। इस दिन लोग पीले कपड़े पहनते हैं। घरों में पीले चावल (जर्दा) या पीला हलवा बनाया जाता है। जब तक मेरा रंग दे वसन्ती चोला नी माए’ गीत गाया जाता रहेगा, वसन्त ऋतु हमें सरदार भगत सिंह और वीर हकीकत राय शहीदों की याद दिलाती रहेगी।

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22. मेरे जीवन का उद्देश्य

संसार में मनुष्य के दो ही उद्देश्य होते हैं। पहला आध्यात्मिक और दूसरा भौतिक या सांसारिक। आध्यात्मिक लक्ष्य-ईश्वर प्राप्ति सबका समान होता है किन्तु सांसारिक लक्ष्य मनुष्य अपनी योग्यता और परिस्थितियों के अनुसार चुनता है और उसे पूरा करने का यत्न करता है।

मैंने बचपन से ही यह सोच रखा है कि मैं बड़ा होकर एक प्राध्यापक बनूँगा। प्राध्यापक बन कर जहाँ मैं अपनी ज्ञान की भूख मिटा सकूँगा वहाँ समाज, देश की भी सेवा कर सकूँगा। जितने भी डॉक्टर, इंजीनियर बनते हैं उन्हें बनाने वाले प्राध्यापक ही होते हैं। कहते हैं सारा पानी इसी पुल के नीचे से गुज़रता है। बड़ों ने ठीक कहा है कि किसी भी देश या जाति के भविष्य को अगर कोई बनाने वाला है तो वह अध्यापक है। किसी भी देश या जाति के चरित्र को यदि कोई बनाने वाला है तो वह अध्यापक है। शायद इसी कारण कबीर जी गुरु (अध्यापक) को ईश्वर से बड़ा मानते हैं। भले ही आज न तो वैसे शिष्य रहे हैं और न ही अध्यापक किन्तु फिर भी अध्यापक की महत्ता कम नहीं हुई।

आज के माता-पिता के पास अपने बच्चों को पढ़ाने, सिखाने या कुछ बनाने का समय ही नहीं है। केवल अध्यापक ही है जो अपने छात्रों के अन्दर छिपी प्रतिभा को पहचानता है और उसे सही रूप देता है। इसलिए मैं भी एक अच्छा और आदर्श अध्यापक बनना चाहता हूँ। इसके लिए मुझे पहले एम० ए० करना पड़ेगा फिर बी० एड० या पी एच०- डी० ।

इसके लिए काफ़ी मेहनत की ज़रूरत है। आजकल प्रतियोगिता का युग है। अत: मुझे सभी परीक्षाएँ अच्छे अंकों से पास करनी होगी। इसके लिए हिम्मत और लग्न चाहिए क्योंकि कहा भी है हिम्मत करे इन्सान तो क्या हो नहीं सकता।

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23. चिड़िया घर की सैर

परीक्षा समाप्त होने के बाद मोहन के व्यस्तता के दिन बीत गए। वह पुस्तकालय जाकर कुछ पुस्तकें लाने की बात सोच ही रहा था कि जयपुर से उसके चाचा जी आ गए। बातचीत में उन्होंने पूछा ‘तुमने चिड़िया घर देखा हैं ?’ मोहन ने उत्तर दिया- “चाचा जी बहुत पहले लखनऊ का चिड़िया घर देखा था; दिल्ली का चिड़िया घर नहीं देख पाया।” । दूसरे दिन चाचा और भतीजा बस में बैठकर चिड़िया घर पहुंच गए। दोनों टिकट लेकर अन्दर गए। आगे बढ़ने पर पक्षियों के बड़े पिंजड़ेनुमा वास स्थान मिले। उनके भीतर भान्ति-भान्ति के पक्षी किल्लोल कर रहे थे। कई पक्षियों को मोहन पहचानता था, जैसेतीतर, मैना, चैती, दुबकी, फुदकी आदि। जिनको वह नहीं पहचानता था, उनके नाम बाहर की नाम पट्टिका में पढ़ लेता था। नाम पट्टिका में पक्षी का जीव-विज्ञानी नाम हिन्दी और अंग्रेजी में लिखा था। नाम के दो हिस्से थे-एक पक्षीकुल का नाम और दूसरा उस कुल की उपजाति का नाम। पक्षी का लोक-प्रचलित नाम भी अन्त में दिया हुआ था। पक्षी की आदतें भी दी हुई थी। कहाँ पाया जाता है, यह जानकारी भी दी हुई थी।

आगे हंस-कुल पक्षियों के लिए खुला बाड़ा बना था। ये पक्षी जल में रहते हैं, इसलिए बाड़े में तालाब भी बना था। उनको आजादी से विचरने देने के लिए यह बाड़ा ऊपर से खुला हुआ था। बीच-बीच में पेड़ लगे थे। पानी में सफ़ेद रंग की बत्तखें तैर रही थीं। हंस भी तैर रहे थे। तैरते हुए हंस बड़े सुन्दर लग रहे थे। उनकी गर्दन के पास गुलाबी रंग होता है। लोच वाली घुमावदार गर्दन बड़ी प्यारी लग रही थी।
पक्षियों के और भी घर बने थे, किन्तु उन्हें छोड़कर बाई और घूम पड़ा, जिधर हिरनों के बाड़े थे। आज मोहन ने हिरन की आंखें बड़े ध्यान में देखीं। कितनी प्यारी आंखें थीं! कितने सुन्दर आकर्षक नेत्र ! मोहन को आज मृगनयनी शब्द का अर्थ ठीक-ठीक समझ में आया। हिरन के बाद नील गायों का बाड़ा था। यह नाम विचित्र है क्योंकि नाम तो गाय का है और पशु हिरन जाति का है।

बगल के बाडे में मोहन को कंगारू दिखाई पड़ा। उसे पहचानने में मोहन को कोई कठिनाई नहीं हुई। कंगारू का चित्र उसने बहुत देखा था। यदि चाचा जी न भी दिखाते, तो भी वह कंगारू को पहचान लेता। तभी कंगारू ने अजीव तरह से उचक कर छलांग लगाई। कंगारू के पेट में विचित्र-सी थैली बनी थी जिसमें उसका बच्चा बैठा हुआ था। वह चकित दृष्टि से इस अनजाने संसार को देख रहा था। कंगारू के भागते ही चाचा जी आगे बढ़े। अगला बाड़ा बनैले सूअर का था। उसके लिए पानी का तालाब काफ़ी गहराई में बना था। वहां वह विचरता हुआ अपने थूथुन से जाने क्या ढूंढ रहा था। बनैला सूअर बहुत फुर्तीला होता है। बनैले सूअर के बाड़े से लगा हुआ वास-स्थान सफ़ेद भालू का था। उसके विचरने के लिए काफ़ी बड़ा भू-भाग छोड़ा गया था। यह भू-भाग इस प्रकार से बना था कि जंगल का भ्रम होता था। भालू को गर्मी लग रही थी, इसी से वह इधर-उधर टहल रहा था, स्थिर बैठ नहीं पा रहा था। यह भालू खेल वाले भालू से अलग किस्म का था। यह बड़ा भी था और उसका रंग भी काला नहीं था।

तभी बड़ी जोर की दहाड़ सुनाई पड़ी। सभी दर्शकों के कान खड़े हो गए। सभी समझ गए कि पास में ही शेर दहाड़ रहा है। लोग पास वाले बाड़े की ओर लपके ? वहां सींखचे दोहरे और ऊंचे थे। अन्दर देखने पर दूर-दूर तक शेर के दर्शन नहीं हुए। तभी एक दहाड़ फिर सुनाई पड़ी। इस बार ध्वनि के स्त्रोत को ढूंढने में कठिनाई नहीं हुई। दोपहर हो चली थी। तीन बजे तक घर लौटने का कार्यक्रम था। अब हम जल्दी-जल्दी अन्य पशुओं को देखने लगे। जानवरों के इस अद्भुत संसार को देखकर बड़ा रोमांच हो रहा था। यह कभी न भूलने वाला प्रसंग था। चाचा जी ने कहा-अब बस। बाहर निकल कर हम घर को ओर रवाना हो गए।

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24. सदाचार

सदाचार का अर्थ है अच्छा आचरण अर्थात् व्यवहार। सदाचार से मनुष्य में अनेक अच्छे गुण आते हैं जैसे वह दूसरों के प्रति विनम्रता, आदर भाव, दया भाव रखता है। सदाचार से ही व्यक्ति में नैतिकता और सत्यनिष्ठा आती है। सदाचार ही मनुष्य को आदर्श नागरिक बनाता है। सदाचारी मनुष्य में साम्प्रदायिक भेद नहीं होता और न ही ईर्ष्या द्वेष होता है। वह मानव मात्र से प्रेम करता है जिससे समाज में व्यवस्था और शान्ति स्थापित होती है।

प्राणियों में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ प्राणी इसलिए माना जाता है क्योंकि उसके पास बौद्धिक शक्ति होती है। इसी शक्ति के आधार पर व्यक्ति अच्छे बुरे या सत् असत् का निर्णय करता है शास्त्रों में सत् को धर्म तथा सदाचार, सत् को जानता और उस पर आचरण करना परम धर्म माना गया है। गुरुओं ने भी सच्चे आचरण को ही महत्त्व दिया है। सदाचार का मुख्य गुण सत् है। हमारी आस्था है कि सदा सत्य की जीत होती है, झूठ की नहीं। सत्यवादी हरिश्चन्द्र की कथा सुन कर ही बचपन में महात्मा गाँधी इतने प्रभावित हुए कि जीवन भर उन्होंने सत्य का सहारा लिया और देश को स्वतन्त्र कराया।

बच्चा सामान्य रूप से सत्य ही बोलता है। हम स्वार्थवश ही उसे झूठ बोलना सिखाते हैं। हमें बच्चे को झूठ बोलने का अवसर नहीं देना चाहिए क्योंकि सत्यवादी बालक निर्भय हो जाता है और छल कपट या अपराध से दूर भागता है। ऐसा बालक सबका विश्वास पात्र बन जाता है। अहिंसा, नम्रता और नैतिकता सदाचार के अन्य गुण हैं इनमें से नैतिकता सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। बच्चों में नैतिकता लाने के लिए उनकी संगति का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। अच्छी संगति से ही बच्चों का चरित्र निर्माण होता है। वह स्वस्थ एवं नीरोग रहता है। माता-पिता की सेवा करता है, उनका कहा मानता है।

इस तरह सदाचार में सत्यवादिता, नम्रता, प्रेम भावना, नैतिकता आदि गुणों का समावेश है। जिसे अपनाने से मनुष्य अपना जीवन सार्थक करता है, मान-सम्मान पाता है, समाज तथा राष्ट्र का हित करता है।

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25. नैतिक शिक्षा

नैतिक शिक्षा से अभिप्राय उन मूल्यों, गुणों और आस्थाओं की शिक्षा से है, जिन पर मानव की निजी और समाज की सर्वश्रेष्ठ समृद्धि निर्भर करती है। नैतिक शिक्षा व्यक्ति के आन्तरिक सद्गुणों को विकसित एवं संपुष्ट करती है, क्योंकि व्यक्ति समष्टि का ही एक अंश है, इसलिए उसके सद्गुणों के विकास का अर्थ है-“समग्र समाज का सुसभ्य एवं सुसंस्कृत होना।” नैतिक शिक्षा और नैतिकता में कोई अन्तर नहीं है अर्थात् नैतिक शिक्षा को ही नैतिकता माना जाता है। समाज जिसे ठीक मानता है, वह नैतिक है और जिसे ठीक नहीं मानता वह अनैतिक है। कर्त्तव्य की आन्तरिक भावना नैतिकता है, जो उचित एवं अनुचित पर बल देती है। नैतिकता की विभिन्न परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-
महात्मा गाँधी नैतिक कार्य उसे मानते थे, जिसमें सदैव सार्वजनिक कल्याण की भावना निहित हो। स्वेच्छा से शुभ कर्मों का आचरण ही नैतिकता है।

पंडित मदन मोहन मालवीय के कथनानुसार, “नैतिकता मनुष्य की उन्नति का मूल आधार है। नैतिकता विहीन मनुष्य पशु से भी निम्न है। नैतिकता एक व्यापक गुण सर्वपल्ली डॉ० राधाकृष्णन् के अनुसार, “नैतिकता व्यक्ति के आध्यात्मिक, बौद्धिक एवं सामाजिक विकास का आधार है। नैतिकता का प्रभाव व्यक्ति के सभी क्रियाकलापों पर पड़ता है।” पश्चिमी विचारक नैतिकता को एक धार्मिक गुण मानते हैं। इन गुणों में आत्म-संयम, त्याग, दया, परोपकार, सहष्णुिता, सेवा आदि सम्मिलित हैं।। इसी कारण हरबर्ट ने उच्चतर विचारों के सृजन एवं निम्न प्रवृत्तियों के दमन को नैतिकता कहा है।

नैतिक शिक्षा वस्तुतः मानवीय सद्वृत्तियों को उजागर करती है। यदि यह कहा जाए कि नैतिक शिक्षा ही मानवता का मूल है तो असंगत न होगा। नैतिक शिक्षा के अभाव में मानवता पनप ही नहीं सकती। क्योंकि मानव की कुत्सित वृत्तियाँ विश्व के लिए अभिशाप हैं। इन्हें केवल नैतिक शिक्षा से ही नियन्त्रित किया जा सकता है। इसी के माध्यम से उसमें नव-चेतना का संचार हो सकता है। नैतिक शिक्षा ही व्यक्ति को उसके परम आदर्श की प्रेरणा दे सकती है और उसे श्रेष्ठ मनुष्य बनाती है।

नैतिक शिक्षा का सम्बन्ध छात्र-छात्रओं की आन्तरिक वृत्तियों से है। नैतिक शिक्षा उनके चरित्र-निर्माण का एक माध्यम है। चरित्र ही जीवन का मूल आधार है। अंग्रेजी में यह कथन प्रसिद्ध हैं
“If wealth is gone, nothing is gone,
If health is gone, something is gone,
If character is gone, everything is gone.”
(यदि हमने धन खोया तो कुछ नहीं खोया, यदि हमने स्वास्थ्य खोया तो कुछ खोया, परन्तु यदि हमने अपना चरित्र खोया तो अपना सब कुछ खो दिया।)

इसलिए चरित्र की रक्षा करना नैतिक शिक्षा का मूल उद्देश्य है। नैतिकता को आचरण में स्वीकार किए बिना मनुष्य जीवन में वास्तविक सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। छात्रछात्राओं के चरित्र को विकसित एवं संवद्धित करने के लिए नैतिक शिक्षा अनिवार्य है। नैतिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-
(i) सर्वांगीण विकास-छात्र-छात्राओं के नैतिक गुणों को प्रफुल्लित करना नैतिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है, कि वे आगे चलकर देश के आदर्श नागरिक बन सकें। शिष्टाचार, सदाचार, अनुशासन, आत्म संयम, विनम्रता, करुणा, परोपकार, साहस, मानवप्रेम, देशभक्ति, परिश्रम, धैर्यशीलता आदि नैतिक गुण हैं। इनका उत्तरोत्तर विकास नितान्त आवश्यक है। यह कार्य नैतिक शिक्षा के द्वारा ही परिपूर्ण हो सकता है।

(ii) धार्मिक सहिष्णुता-छात्र-छात्राओं में धार्मिक सहिष्णुता को विकसित करना भी नैतिक शिक्षा का उद्देश्य है। छात्र विभिन्न धर्मों के मूल तत्वों से परिचित हों, आज के सन्दर्भ में यह बहुत ही आवश्यक बात है क्योंकि ऐसी स्थिति में ही उन्हें सभी धर्मों के समन्वय सूत्रों की एकता दिखाई देगी। छात्रों के हृदय में धार्मिक सहिष्णुता विकसित होगी। उन्हें धार्मिक संकीर्णता से दूर रखने में नैतिक शिक्षा ही उपयोगी सिद्ध हो सकती है।

(iii) देश-भक्ति-नैतिक शिक्षा से ही छात्र-छात्राओं में देश-भक्ति के अटूट भाव पल्लवित हो सकते हैं। वैयक्तिक स्वार्थों से ऊपर उठकर उनमें देश के हित को प्राथमिकता प्रदान करने के विचार पनप सकते हैं। नैतिक शिक्षा से छात्र देश के प्रति सदैव जागरूक रहते हैं।

(iv) विश्व बन्धुत्व की भावना-नैतिक शिक्षा से छात्र-छात्राओं में विश्व बन्धुत्व की भावना को जागृत किया जा सकता है। जब छात्रों में यह भाव विकसित होगा कि मानव उस विराट पुरुष की कृति है तो उनके समक्ष “वसुधैव कुटुम्बकम्” का महान् आदर्श साकार हो सकता है। यह तभी हो सकता है, जब उन्हें नैतिक शिक्षा दी गई हो।

महात्मा गाँधी जी कहा करते थे-“स्कूल या कॉलेज पवित्रता का मन्दिर होना चाहिए, जहाँ कुछ भी अपवित्र या निकृष्ट न हो। स्कूल-कॉलेज तो चरित्र निर्माण की शालाएँ हैं।” इस कथन का सारांश यही है कि नैतिक शिक्षा छात्र-छात्राओं के लिए अनिवार्य हैं।

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26. दाँतों की आत्म-कथा
अथवा
दाँत कुछ कहते हैं

हमारा निवास स्थान मुँह है। हमारी टीम के 32 सदस्य हैं। हमारा मुख्य काम भोजन को चबाना है। भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े करना और पीस कर चबाना हमारे परिवार के विभिन्न सदस्यों का काम है। भोजन को चबाने के अलावा ठीक प्रकार से और सही बोलने के लिए भी हमारा होना बहुत ज़रूरी है। हमारा जन्म शरीर के दूसरे अंगों की तरह न होकर बाद में एक-एक, दोदो करके मसूढ़ों पर होता है। हम आपकी सेवा तभी कर सकेंगे यदि आप भी हमारा ठीक से ध्यान रखेंगे। नियमित रूप से हमारी सफ़ाई होनी चाहिए। अगर सफ़ाई न हो तो भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े हम में फंसे रह जाते हैं। वे वहाँ पड़े-पड़े सड़ने लगते हैं। इनमें कीटाणु पैदा होकर एक प्रकार का तेज़ाब तैयार कर देते हैं। इस तेजाब के प्रभाव से एनेमल की ऊपरी तह संक्षारित (नष्ट) हो जाती है। एनेमल की तह हटते ही ये कीटाणु हमारी जड़ों तक पहुँच कर हमें खोखला कर देते हैं। अन्त में हम एक-एक करके आपकी सेवा करना छोड़ देते हैं।

सफ़ाई के अलावा हमें अपने व्यायाम की भी ज़रूरत होती है। सख्त पदार्थ खाने से हमारा व्यायाम होता है। मगर बहुत सख्त चीज़ हम से तुड़वाने की कोशिश न करो। हो सकता है ऐसा करने में हमारा कोई साथी जवाब दे जाए। यदि आप अपने आपको तन्दरुस्त रखना चाहते हैं तो पहले हमें स्वस्थ रखें। हमें स्वस्थ रखने के लिए कैल्शियम, फॉस्फोरस, विटामिन सी और डी युक्त भोजन खाना चाहिए। अगर किसी भी कारण से हमारी सेहत कमज़ोर होती दिखाई दे तो तुरन्त ही डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए न कि खुद ही कोई उल्टा-पुल्टा इलाज करने लग जाएँ। क्योंकि नीमहकीम खतरा जान। आप हमारे मालिक हैं और हम आपके सेवक हैं। हम आपके दाँत हैं जिनके महत्त्व के बारे में किसी ने कहा है-दाँत गए तो स्वाद ही गया।

सबको अपने दाँतों का ख्याल रखना चाहिए। बच्चों में दाँतों की देख-रेख के विचार शुरू से ही पैदा करने चाहिएँ। खूबसूरत दाँत सबको अच्छे लगते हैं। बहुत-सी बीमारियां दाँतों की खराबी के कारण पैदा हो जाती हैं। इसलिए हमेशा अपने दाँतों की रक्षा करो।

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27. सह-शिक्षा

सह-शिक्षा का तात्पर्य है, लड़के लड़कियों का एक साथ पढ़ना। भारत में सह-शिक्षा का प्रचलन अंग्रेज़ी शासन के समय उन्नीसवीं सदी में हुआ। कुछ धार्मिक संस्थाएँ सहशिक्षा का विरोध कर रही हैं। ऐसी संस्थाओं ने अपने अधीन चलने वाले स्कूल और कॉलेज लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग खोल रखे हैं। किन्तु सह-शिक्षा आज के समय की आवश्यकता बन चुकी है। इसे विकास और प्रगति के साथ जोड़कर देखा जाता है।

सह-शिक्षा भले ही उन्नीसवीं सदी में भारत में आई किन्तु प्राचीन भारत में भी सहशिक्षा का प्रचलन था। गुरुकुलों में ऋषिकन्याएँ भी अन्य कुमारों के साथ पढ़ा करती थीं। क्योंकि उन दिनों गुरुकुल को एक पवित्र स्थान माना जाता था। बाल्मीकि जी के आश्रम में आत्रेयी और कण्व ऋषि के आश्रम में शकुन्तला और उसकी सखियाँ अन्य कुमारों के साथ ही पढ़ती थीं। उस युग में ही नहीं आज भी चरित्र निर्माण के लिए सह-शिक्षा एक ज़रूरी कदम माना जाता था और है।

सह-शिक्षा शिक्षा पर होने वाले खर्च को भी बचाती है। जब हमारे समाज सुधारकों ने स्त्री शिक्षा पर बल दिया तब लड़कियों के लिए अलग से स्कूल खोलना आर्थिक दृष्टि से सम्भव न था अतः लड़कियों को लड़कों के स्कूल में ही भर्ती किया जाने लगा।

सह-शिक्षा का एक लाभ यह भी है कि लड़के-लड़कियों के एक साथ पढ़ने पर उनके स्वाभाविक गुणों का विकास होता है। उनमें विनय, शिष्टाचार, आचरण की शुद्धता तथा एक-दूसरे से सहानुभूति के भाव जाग्रत होते हैं। दोनों के साथ पढ़ने पर एक स्वस्थ वातावरण पैदा होता है। लड़के-लड़कियाँ एक-दूसरे के स्वभाव को समझने में सक्षम होते सह-शिक्षा के लाभ से आँख मूंदते हुए आज भी बहुत-से लोग इसका विरोध कर रहे हैं । वे अपने पक्ष में बौद्ध विहारों की पुरानी घटना का हवाला देने के साथ-साथ टेलीविज़न पर दिखाए एक कार्यक्रम का भी हवाला देते हैं जिसमें दिखाया गया था कि किस प्रकार सह-शिक्षा वाले स्कूलों में लड़के-लड़कियाँ बिगड़ रहे हैं। कुछ भी हो हर एक चीज़ के यहाँ लाभ होते हैं वहाँ कुछ हानियाँ तो होती ही हैं।

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28. मेरा पंजाब

पंजाब को पाँच पानियों की धरती कहा जाता है किन्तु विभाजन के बाद यह प्रदेश तीन पानियों (नदियों) की धरती ही रह गया है। 1 नवम्बर, सन् 1966 से पंजाब में से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश अलग कर दिए गए, जिससे वर्तमान पंजाब और छोटा हो गया है। वर्तमान पंजाब का क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर है तथा सन् 2001 को जनसंख्या के आँकड़ों के अनुसार इसकी जनसंख्या 2.42 करोड़ है।

गुरुओं, पीरों-पैगम्बरों, ऋषि मुनियों की पंजाब की इस धरती ने भारत पर होने वाले प्रत्येक आक्रमण का सामना किया। यूनान के सिकन्दर महान् के आक्रमण को तो पंजाबियों ने खदेड़ दिया था किन्तु मुहम्मद गौरी के आक्रमण का आपसी फूट के कारण मुकाबला न कर सके। राष्ट्रीयता की कमी के कारण यहाँ मुसलमानी शासन स्थापित हो गया। किन्तु शूरवीरता, देशभक्ति पंजाबियों की रग-रग में भरी रही। इसका प्रमाण पंजाबियों ने पहले तथा दूसरे विश्व युद्ध में तथा सन् 1948, 1965 और 1971 के पाकिस्तान के हुए युद्धों तथा मई 1999 में हुए कारगिल युद्ध में दिया।

पंजाबी लोग दुनिया के कोने-कोने में फैले हुए हैं वहाँ उन्होंने अपने परिश्रमी स्वरूप की धाक जमा दी है। पंजाब के किसान देश के अन्य भण्डार में सबसे अधिक अनाज देते हैं इसका कारण यहाँ की उपजाऊ भूमि, आधुनिक कृषि तकनीक तथा सिंचाई सुविधाओं का विस्तार है। यहाँ की मुख्य उपज गेहूँ, कपास, गन्ना, मक्की और मूंगफली आदि है। सब्जियों में आलू, मटर की पैदावार के लिए पंजाब जाना जाता है। पंजाब में औद्योगिक क्षेत्र में भी काफ़ी उन्नति की है। लुधियाना हौजरी के सामान के लिए, जालन्धर खेलों के सामान के लिए, अमृतसर सूती व ऊनी कपड़े के उत्पादन के लिए जाने जाते हैं। मण्डी गोबिन्दगढ़ इस्पात उद्योग तथा नंगल और बठिण्डा खाद बनाने के कारखानों के लिए जाने जाते हैं।

शिक्षा के प्रसार के लिए पंजाब देशभर में दूसरे नम्बर पर है। पंजाब में छ: विश्वविद्यालय, सैंकड़ों कॉलेज और हज़ारों स्कूल हैं। पंजाब की इस प्रगति के कारण इस प्रदेश में प्रति व्यक्ति की औसत आय 20 से 30 हज़ार वार्षिक है। गुरुओं, पीरों, महात्माओं और वीरों की यह धरती उन्नति के शिखरों को छू रही है।

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29. चण्डीगढ़

चण्डीगढ़ देश का पहला पूर्णतः आयोजित शहर है। इस शहर की नींव 7 अक्तूबर, सन् 1953 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद द्वारा रखी गयी थी। इस सुन्दर और आदर्श शहर की योजना फ्रांस के एक इंजीनियर एस० डी० कारबूजियर द्वारा तैयार की गई है। पूरा शहर आयतकार सैक्टरों में बँटा हुआ है। प्रत्येक सैक्टर को स्वावलम्बी बनाने के लिए स्कूल, डाकखाना, डिस्पैंसरी, धार्मिक स्थान, मार्कीट, पार्क आदि की व्यवस्था की गई है। सैक्टर 17 को केवल क्रय-विक्रय, होटलों, कार्यालयों आदि के लिए ही रखा गया है। अधिकांश उद्योग राम दरबार में स्थापित हैं।

पयर्टकों के लिए भी यहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं, जिनमें रॉक-गार्डन, सुखना लेक, रोज़ गार्डन आदि प्रमुख हैं। जहाँ की चौड़ी-चौड़ी सड़कें और सड़कों के दोनों ओर लगे छायादार वृक्ष इस शहर की शोभा को चार चाँद लगाते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी चण्डीगढ़ किसी से पीछे नहीं है। पूरा सैक्टर 14 पंजाब विश्वविद्यालय के लिए रखा गया है। सैक्टर 12 में इन्जीनियरिंग कॉलेज, सैक्टर 32 में मैडिकल कॉलेज तथा कोई दर्जन भर लड़के-लड़कियों के कॉलेज हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में भी चण्डीगढ़ पंजाब और हरियाणा की सेवा कर रहा है। सैक्टर 12 में पी० जी० आई०, सैक्टर 16 और सैक्टर 32 में सरकारी अस्पताल हैं। सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों के लिए सैक्टर 15 में गुरु गोबिन्द सिंह भवन, लाला लाजपतराय भवन विद्यमान है तो सैक्टर 18 में टैगोर थियेटर बना है।

चण्डीगढ़ के विषय में एक विशेष बात यह है कि इसमें कोई 13 नम्बर का सैक्टर नहीं चण्डीगढ़ में सचिवालय, विधानसभा तथा उच्च न्यायालय के भवन आधुनिक वास्तुकला का सुन्दर नमूना है। चण्डीगढ़ को बाबूओं का शहर भी कहा जाता है क्योंकि बहुत-से सरकारी कर्मचारी अवकाश प्राप्त करने के बाद यहीं बस गए हैं। चण्डीगढ़ में अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने कार्यालय खोलकर इस शहर की रौनक को और भी बढ़ा दिया है। केन्द्रीय आँकड़ा संस्थान सन् 2005-06 की जो रिपोर्ट भारतीय संसद् में 5-12-2007 को प्रस्तुत की गई थी उसके अनुसार चण्डीगढ़ देश भर में प्रतिव्यक्ति की वार्षिक औसत आय के हिसाब से सबसे आगे है। 2001 की जनगणना के अनुसार चण्डीगढ़ की जनसंख्या नौ लाख के करीब थी। जो निश्चय रूप से अब बहुत अधिक बढ़ चुकी है। इसे देश भर के सुंदर नगरों में स्थान दिया जाता है।

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30. प्रातः काल की सैर

कहा जाता है कि प्रातः काल उठना, सैर को जाना व्यक्ति के स्वस्थ व निरोग रहने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन है। शीघ्र सोने और शीघ्र उठने से व्यक्ति स्वस्थ, सम्पन्न और बुद्धिमान बनता है। लेकिन आजकल कोई भी छात्र इस नियम का पालन नहीं करता। इस का बड़ा कारण तो यह है कि छात्र देर रात तक टेलीविज़न से चिपके रहते हैं और फिर सुबह सवेरे स्कूल जाने की तैयारी करनी होती है। छात्रों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि उनके लिए जितनी पढ़ाई ज़रूरी है उतना ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी ज़रूरी है और स्वस्थ रहने के लिए छात्रों को ही नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रात:काल में सैर अवश्य करनी चाहिए।

प्रात:काल का समय अत्यन्त सुहावना होता है। व्यक्ति को शुद्ध प्रदूषण रहित वायु मिलती है। प्रात:कालीन सैर के अनेक लाभ हैं। यह ईश्वर द्वारा दी गई ऐसी औषधि है जो प्रत्येक अमीर-गरीब को समान रूप से नि:शुल्क मिलती है। प्रात:काल की सैर मनुष्य को नीरोग रखने में सहायक होती है। व्यक्ति का शरीर बलिष्ठ और सुन्दर बनता है। मस्तिष्क को शक्ति और शान्ति मिलती है जिससे व्यक्ति की स्मरण शक्ति का विकास होता है, जिसकी विद्यार्थियों को बहुत ज़रूरत है।

हमारे शास्त्रों में लिखा है कि प्रात:काल में, सूर्योदय से पहले, पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े होकर 21 बार गायत्री मन्त्र का जाप करना चाहिए। आज के वैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि पीपल का वृक्ष यों तो 24 घण्टे ऑक्सीजन छोड़ता है किन्तु ब्रह्म मुहूर्त में वह दुगुनी ऑक्सीजन छोड़ता है और गायत्री मन्त्र ऐसा मन्त्र है जिसके उच्चारण से शरीर के प्रत्येक अंग में ऑक्सीजन पहुँचती है। अतः इस तथ्य को प्रातः सैर करते हुए ध्यान में रखना चाहिए।

प्रात:काल की सैर करते समय हमें अपनी चाल न बहुत तेज़ और न बहुत धीमी रखनी चाहिए। दूसरे प्रात:काल की सैर नियमित रूप से की जानी चाहिए तभी उसका लाभ होगा। हमें याद रखना चाहिए कि प्रात:कालीन सैर शारीरिक दृष्टि से ही नहीं मानसिक दृष्टि से भी अत्यन्त गुणकारी है।

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31. स्वतन्त्रता दिवस-15 अगस्त

15 अगस्त भारत के राष्ट्रीय त्योहारों में से एक है। इस दिन भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई थी। लगभग डेढ़ सौ वर्षों की अंग्रेजों की गुलामी से भारत मुक्त हुआ था। राष्ट्र के स्वतन्त्रता संग्राम में अनेक युवाओं ने बलिदान दिए थे। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का लाल किले पर तिरंगा फहराने का सपना इसी दिन सच हुआ था।

देश में स्वतन्त्रता दिवस सभी भारतवासी बिना किसी प्रकार के भेदभाव के अपने-अपने ढंग से प्रायः हर नगर, गाँव में तो मनाते ही हैं, विदेशों में रहने वाले भारतवासी भी इस दिन को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर स्वतन्त्रता दिवस का मुख्य कार्यक्रम दिल्ली के लाल किले पर होता है। लाल किले के सामने का मैदान और सड़कें दर्शकों से खचाखच भरी होती हैं। 15 अगस्त की सुबह देश के प्रधानमन्त्री पहले राजघाट पर जाकर महात्मा गाँधी की समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं फिर लाल किले के सामने पहुँच सेना के तीनों अंगों तथा अन्य बलों की परेड का निरीक्षण करते हैं।

उन्हें सलामी दी जाती है और फिर प्रधानमन्त्री लाल किले की प्राचीर पर जाकर तिरंगा फहराते हैं, राष्ट्रगान गाया जाता है और राष्ट्र ध्वज को 31 तोपों से सलामी दी जाती है। ध्वजारोहण के पश्चात् प्रधानमन्त्री राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए एक भाषण देते हैं। अपने इस भाषण में प्रधानमन्त्री देश के कष्टों, कठिनाइयों, विपदाओं की चर्चा कर उनसे राष्ट्र को मुक्त करवाने का संकल्प करते हैं। देश की भावी योजनाओं पर प्रकाश डालते हैं। अपने भाषण के अन्त में प्रधानमन्त्री तीन बार जयहिंद का घोष करते हैं। तीन बार जयहिंद का घोष करने की प्रथा भारत के पहले प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू ने शुरू की थी, जिसका उनके बाद आने वाले सारे प्रधानमन्त्री अनुसरण करते हैं। प्रधानमन्त्री के साथ एकत्रित जनसमूह जयहिंद का नारा लगाते हैं। अन्त में राष्ट्रीय गीत के साथ प्रात:कालीन समारोह समाप्त हो जाता है।

सायंकाल में सरकारी भवनों पर विशेषकर लाल किले में रोशनी की जाती है। प्रधानमन्त्री दिल्ली के प्रमुख नागरिकों, सभी राजनीतिक दलों के नेताओं, विभिन्न धर्मों के आचार्यों और विदेशी राजदूतों एवं कूटनीतिज्ञों को सरकारी भोज पर आमन्त्रित करते हैं।

15 अगस्त राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए शहीद होने वाले वीरों को याद करने का दिन भी है। इस दिन शहीदों की समाधियों पर माल्यार्पण किया जाता है। 15 अगस्त अन्य कारणों से भी महत्त्वपूर्ण है। इस दिन पाण्डिचेरी के सन्त महर्षि अरविन्द का जन्मदिन है तथा स्वामी विवेकानन्द के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की पुण्यतिथि है। इस दिन हमें अपने राष्ट्र ध्वज को नमस्कार कर यह संकल्प दोहराना चाहिए कि हम अपने तन, मन, धन से अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा करेंगे।

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32. गणतन्त्र दिवस-26 जनवरी

भारत के राष्ट्रीय पर्वो में 26 जनवरी को मनाया जाने वाला गणतन्त्र दिवस विशेष महत्त्व रखता है। हमारा देश 15 अगस्त, सन् 1947 को अनेक बलिदान देने के बाद, अनेक कष्ट सहने के बाद स्वतन्त्र हुआ था। किन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् भी हमारे देश में ब्रिटिश संविधान ही लागू था। अतः हमारे नेताओं ने देश को गणतन्त्र बनाने के लिए अपना संविधान बनाने का निर्णय किया। देश का अपना संविधान 26 जनवरी, सन् 1950 के दिन लागू किया गया। संविधान लागू करने की तिथि 26 जनवरी ही क्यों रखी गई इसकी भी एक पृष्ठभूमि है। 26 जनवरी, सन् 1930 को पं० जवाहर लाल नेहरू ने अपनी दृढ़ता एवं ओजस्विता का परिचय देते हुए पूर्ण स्वतन्त्रता के समर्थन में जुलूस निकाले, सभाएं कीं। अतः संविधान लागू करने की तिथि भी 26 जनवरी ही रखी गई।

26 जनवरी को प्रात: 10 बजकर 11 मिनट पर मांगलिक शंख ध्वनि से भारत के गणराज्य बनने की घोषण की गई। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद को सर्वसम्मति से देश का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया। राष्ट्रपति भवन जाने से पूर्व डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की। उस दिन संसार भर के देशों से भारत को गणराज्य बनने पर शुभकामनाओं के सन्देश प्राप्त हुए।

गणतन्त्र दिवस का मुख्य समारोह देश की राजधानी दिल्ली में मनाया जाता है। सबसे पहले देश के प्रधानमन्त्री इण्डिया गेट पर प्रज्ज्वलित अमर ज्योति जाकर राष्ट्र की ओर से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मुख्य समारोह विजय चौक पर मनाया जाता है। यहाँ सड़क के दोनों ओर अपार जन समूह गणतन्त्र के कार्यक्रमों को देखने के लिए एकत्रित होते हैं। शुरू-शुरू में राष्ट्रपति भवन से राष्ट्रपति की सवारी छः घोड़ों की बग्गी पर चला करती थी। किन्तु सुरक्षात्मक कारणों से सन् 1999 से राष्ट्रपति गणतन्त्र दिवस समारोह में बग्घी में नहीं कार में पधारते हैं। परम्परानुसार किसी अन्य राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष या राष्ट्रपति अतिथि रूप में उनके साथ होते हैं। तीनों सेनाध्यक्ष राष्ट्रपति का स्वागत करते हैं। तत्पश्चात् राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री का अभिवादन स्वीकार कर आसन ग्रहण करते हैं।

इसके बाद शुरू होती है गणतन्त्र दिवस की परेड। सबसे पहले सैनिकों की टुकड़ियाँ होती हैं, उसके बाद घोड़ों, ऊँटों पर सवार सैन्य दस्तों की टुकड़ियाँ होती हैं। सैनिक परेड के पश्चात् युद्ध में प्रयुक्त होने वाले अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन होता है। इस प्रदर्शन से दर्शकों में सुरक्षा और आत्मविश्वास की भावना पैदा होती है। सैन्य प्रदर्शन के पश्चात् विविधता में एकता दर्शाने वाली विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक झांकियाँ एवं लोक नृतक मण्डलियाँ इस परेड में शामिल होती हैं।

सायंकाल को सरकारी भवनों पर रोशनी की जाती है तथा रंग-बिरंगी आतिशबाजी छोड़ी जाती है। इस प्रकार सभी तरह के आयोजन भारतीय गणतन्त्र की गरिमा और गौरव के अनुरूप ही होते हैं। जिन्हें देखकर प्रत्येक भारतीय यह प्रार्थना करता है कि अमर रहे गणतन्त्र हमारा।

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33. राष्ट्र भाषा हिन्दी

भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्र हुआ और 26 जनवरी, 1950 से अपना संविधान लागू हुआ। भारतीय संविधान के सत्रहवें अध्याय की धारा 343 (1) के अनुसार ‘देवनागरी लिपि में हिन्दी’ को भारतीय संघ की राजभाषा और देश की राष्ट्रभाषा घोषित किया गया है। संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई थी सन् 1965 से देश के सभी कार्यालयों, बैंकों, आदि में सारा कामकाज हिन्दी में होगा। किन्तु खेद का विषय है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के साठ वर्ष बाद भी सारा काम काज अंग्रेज़ी में ही हो रहा है। देश का प्रत्येक व्यक्ति यह बात जानता है कि अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है और हिन्दी हमारी अपनी भाषा है।

महात्मा गाँधी जैसे नेताओं ने भी हिन्दी भाषा को ही अपनाया था हालांकि उनकी अपनी मातृ भाषा गुजराती थी। उन्होंने हिन्दी के प्रचार के लिए ही ‘दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार सभा’ प्रारम्भ की थी। उन्हीं के प्रयास का यह परिणाम है कि आज तमिलनाडु में हिन्दी भाषा पढ़ाई जाती है, लिखी और बोली जाती है। वास्तव में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा इसलिए दिया गया क्योंकि यह भाषा देश के अधिकांश भाग में लिखी-पढी और बोली जाती है। इसकी लिपि और वर्णमाला वैज्ञानिक और सरल है। आज हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान की राजभाषा हिन्दी घोषित हो चुकी है।

हिन्दी भाषा का विकास उस युग में भी होता रहा जब भारत की राजभाषा हिन्दी नहीं थी। मुग़लकाल में राजभाषा फ़ारसी थी, तब भी सूर, तुलसी, आदि कवियों ने श्रेष्ठ हिन्दी साहित्य की रचना की। उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेज़ी शासन के दौरान अंग्रेज़ी राजभाषा रही तब भी भारतेन्दु, मैथिलीशरण गुप्त और प्रसाद जी आदि कवियों ने उच्च कोटि का साहित्य रचा। इसका एक कारण यह भी था कि हिन्दी सर्वांगीण रूप से हमारे धर्म, संस्कृति और सभ्यता और नीति की परिचायक है। भारतेन्दु हरिशचन्द्र जी ने आज से 150 साल पहले ठीक ही कहा था

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। . बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल लेकिन खेद का विषय है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पैंसठ वर्ष से भी अधिक हो जाने के बाद भी हिन्दी के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। अपने विभिन्न राजनीतिक स्वार्थों के कारण विभिन्न राजनेता इसके वांछित और स्वाभाविक विकास में रोड़े अटका रहे हैं। अंग्रेज़ों की विभाजन करो और राज करो की नीति पर आज हमारी सरकार भी चल रही है जो देश की विभिन्न जातियों, सम्प्रदायों और, वर्गों के साथ-साथ भाषाओं में जनता को बाँट रही है ऐसा वह अपने वोट बैंक को ध्यान में रख कर कर रही है। यह मानसिकता हानिकारक है और इसे दूर किया जाना चाहिए। हमें अंग्रेजी की दासता से मुक्त होना चाहिए।

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34. राष्ट्रीय एकता

भारत एक अरब से ऊपर. जनसंख्या वाला देश है जिसमें विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों के लोग रहते हैं। उनकी भाषाएं भी अलग-अलग हैं, उनकी वेश-भूषा, रीति रिवाज भी अलग-अलग हैं किन्तु फिर भी सब एक हैं जैसे एक माला में रंग-बिरंगे फूल होते हैं। भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है। हमारी राष्ट्रभाषा एक है। देश के सभी लोगों को समान अधिकार प्राप्त हैं। – नवम्बर, 2008 में मुम्बई में पाकिस्तानी आतंकवादियों के आक्रमण के समय भारतवासियों ने जिस प्रकार एक जुटता दिखाई उसका उदाहरण मिलना कठिन है। इससे पूर्व भी पाकिस्तानी आक्रमणों के समय अथवा प्राकृतिक आपदाओं के समय ऐसी ही एक जुटता दिखाई थी। इस से यह स्पष्ट होता है कि भारतवासियों में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी है। वे चाहे किसी धर्म को मानते हों, किसी जाति के हों, यही कहते हैं-गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं।

पाकिस्तान और उसके भारत में मौजूद कुछ पिठू पाण्डवों की इस उक्ति को भूल जाते हैं कि उन्होंने कहा था पाण्डव पाँच हैं और कौरव 100 किसी बाहरी शत्रु के लिए हम एक सौ पाँच हैं। वास्तव में पाकिस्तान हमारी उन्नति और विकास को देखकर ईर्ष्या से जलभुन रहा है। पिछले साठ वर्षों में भी वहाँ लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली चालू नहीं हो सकी। इसलिए अपनी कमियों को छिपाने के लिए अपने लोगों का ध्यान बँटाने के लिए कभी कश्मीर का मुद्दा और कभी कोई दूसरा मुद्दा उठाता रहा है।

पड़ोसी देश ही नहीं कुछ भारतीय भी हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने पर तुले हैं। ऐसे लोग अपने स्वार्थ, अपने वोट बैंक और सत्ता हथियाने के चक्र में जो प्रान्तवाद का नारा लगाते हैं। अभी हाल ही में महाराष्ट्र में प्रान्तवाद के नाम पर जो हिंसा और गुण्डागर्दी हुई वह हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने वाला ही कदम है। हमारा ऐसा मानना है कि सरकार ने भी भाषा के नाम पर देश का बंटवारा कर राष्ट्रीयता को ठेस पहुँचाई है। रही-सही कसर वोट बैंक की राजनीति कर रही है। यदि ईमानदारी से इन बातों को दूर करने का प्रयत्न किया जाए तो राष्ट्रीय एकता के बलबूते भारत विकसित देशों में शामिल हो सकता है।

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35. साम्प्रदायिक सद्भाव

साम्प्रदायिक एकता के प्रथम दर्शन हमें सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान देखने को मिले। उस समय हिन्दू-मुसलमानों ने कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेज़ों से टक्कर ली थी। अंग्रेज़ बड़ी चालाक कौम थी। उस की चालाकी से मुहम्मद अली जिन्ना ने सन् 1940 में पाकिस्तान की माँग की और अंग्रेजों ने देश छोड़ने से पहले साम्प्रदायिक आधार पर देश के दो टुकड़े कर दिये। विश्व में पहली बार आबादी का इतना बड़ा आदान-प्रदान हुआ। हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए जिसमें लाखों मारे गए।

सन् 1950 में देश का संविधान बना और भारत को एक धर्म-निरपेक्ष गणतन्त्र घोषित किया गया। प्रत्येक जाति, धर्म, सम्प्रदाय को पूर्ण स्वतन्त्रता दी गई और सब धर्मों को समान सम्मान दिया गया। आप जानकर शायद हैरान होंगे कि विश्व में सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या भारत में ही है। बहुत-से देशभक्त मुसलमान पाकिस्तान नहीं गए। लेकिन पाकिस्तान क्योंकि बना ही धर्म पर आधारित देश था अतः वह आज तक हमारे देश के साम्प्रदायिक सद्भाव को नष्ट करने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान में स्वतन्त्रता के साठ वर्ष बाद भी जनतान्त्रिक प्रणाली लागू नहीं हो सकी और भारत विश्व का सबसे बड़ा जनतान्त्रिक देश बन गया है।

हम यह जानते हैं कि कोई भी धर्म हिंसा, घृणा या विद्वेष नहीं सिखाता। सभी धर्म या सम्प्रदाय मनुष्य की नैतिकता, सहिष्णुता व शान्ति का पाठ पढ़ाते हैं। किन्तु कुछ कट्टरपन्थी धार्मिक नेता अपने स्वार्थ के लिए लोगों में धार्मिक भावनाएँ भड़का कर देश में अशान्ति और अराजकता फैलाने का यत्न करते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि मज़हब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना, हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा। साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखने पर ही हम विकासशील देशों की सूची से निकल कर विकसित देशों में शामिल हो सकते हैं।

हमारी सरकार भले ही धर्म-निरपेक्ष होने का दावा करती है किन्तु वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखकर वह एक ही धर्म की तुष्टिकरण के लिए जो कुछ कर रही है उसके कारण धर्मों और जातियों में दूरी कम होने की बजाए और भी बढ़ रही है। धर्मनिरपेक्षता को यदि सही अर्थों में लागू किया जाए तो कोई कारण नहीं कि धार्मिक एवं साम्प्रदायिक सद्भाव न बन सके। जनता को भी चाहिए कि वह साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाले नेताओं से चाहे वे धार्मिक हों या राजनीतिक, बचकर रहे, उनकी बातों में न आएँ।

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36. टेलीविज़न के लाभ-हानियाँ

मानव आदिकाल से ही काम के बाद मनोरंजन के साधनों की खोज में रहा है। प्राचीन काल में नाटक, रासलीला, रामलीला या त्योहार मनुष्य के मनोरंजन का साधन हुआ करते थे। फिर रेडियो, सिनेमा या ग्रामोफोन द्वारा लोगों के मनोरंजन के साधन बने। आज सबसे प्रभावी मनोरंजन का साधन टेलीविज़न है।

टेलीविज़न का आविष्कार स्काटलैण्ड के इंजीनियर जॉन एलन बेयर्ड ने सन् 1926 ई० में किया था। इस का सर्वप्रथम प्रयोग ब्रिटिश इण्डिया कार्पोरेशन ने किया था। भारत में इसका प्रसारण सन् 1964 से ही सम्भव हो सका और इसे रंगीन बनाने में लगभग बीस वर्ष लग गए। पंजाब में पहला टेलीविज़न केन्द्र अमृतसर में स्थापित हुआ जो बाद में दूरदर्शन केन्द्र जालन्धर में स्थानांतरित कर दिया गया। पहल पहले लोग कार्यक्रम दूरदर्शन पर ही देखा करते थे किन्तु सैटेलाइट नैटबर्क के आगमन से टेलीविज़न की दुनिया में क्रान्तिकारी मोड़ ला दिया। आज देश भर में कोई सवा-सौ चैनल अपने कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिसमें समाचार, खेलकूद, धार्मिक, नाटक, संगीत, सामान्य जानकारी के अलग से चैनल हैं। आज अनेक चैनल क्षेत्रीय भाषाओं में अपने कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं। आज टेलीविज़न नैटवर्क (केबल) दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कर रहे हैं। इन चैनलों द्वारा शिक्षा एवं धर्म का प्रचार भी किया जा रहा है। टेलीविज़न के कारण हम घर बैठे अपने मन पसंद सीरियल, गीत, फिल्में आदि देख सकते हैं।

कहते हैं जहाँ फूल होते हैं वहाँ काँटे भी होते हैं। टेलीविज़न के जहाँ अनेक लाभ हैं वहाँ कई हानियाँ भी हैं। सब से बड़ी हानि यह है कि लोगों का आपस में मिलना-जुलना कम हो गया है। लोग मिलने-जुलने की अपेक्षा अपना मनपसन्द सीरियल या फिल्म देखना पसन्द करते हैं। विद्यार्थियों की खेलकूद और अतिरिक्त पढ़ाई में रुचि कम हो गई है। युवावर्ग टेलीविज़न पर अश्लील गाने देखकर बिगड़ रहा है। लगातार कई घण्टे टेलीविज़न से चिपके रहने के कारण बच्चों की आँखों पर नज़र की ऐनकें लग गई हैं।

हमें चाहिए कि टेलीविज़न के लाभ को ध्यान में रखकर ही इसका उपयोग करना चाहिए। हमें वही कार्यक्रम देखने चाहिए जो ज्ञानवर्धक हों। टेलीविज़न एक वरदान है इसे शाप न बनने देना चाहिए।

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37. समाचार-पत्रों के लाभ

आज भले ही टेलीविज़न पर अनेक चैनल केवल समाचार ही प्रसारित कर रहे हैं फिर भी समाचार-पत्रों का महत्त्व कम नहीं हुआ है। आज के युग में समाचार-पत्र हमारे जीवन का एक आवश्यक अंग बन गए हैं। जिस दिन घर में समाचार-पत्र नहीं आता या देर से आता है तो हम उतावले हो उठते हैं। जिज्ञासा मानव स्वभाव की एक प्रवृत्ति रही है और समाचार पत्र हमारी इस जिज्ञासा को शान्त करते हैं। समाचार- पत्र हमें घर बैठे ही देशविदेश में हुई घटनाओं, समाचारों की सूचना दे देते हैं। समाचार-पत्रों के अनेक लाभ हैं जिनमें से कुछ का उल्लेख हम यहाँ पर कर रहे है।

समाचार-पत्र प्रचार का एक बहुत बड़ा साधन है। चुनाव के समय विभिन्न राजनीतिक दल समाचार-पत्रों में विज्ञापन देकर अपनी-अपनी पार्टी के पक्ष को प्रस्तुत करते हैं। विभिन्न व्यापारिक संस्थान भी अपने उत्पाद का विज्ञापन समाचार-पत्र में देकर अपने उत्पाद की बिक्री में वृद्धि करते हैं।

समाचार-पत्रों के माध्यम से ही आजकल हम नौकरी, विवाह, प्रवेश सूचना आदि सूचनाएँ प्राप्त करते हैं। समाचार-पत्रों में वर्गीकृत विज्ञापन का स्तम्भ हमें अनेक प्रकार की सूचनाएँ प्रदान करते हैं। समाचार-पत्रों के मैगजीन अनुभाग हमें धर्म, स्वास्थ्य, समाजशास्त्र, ज्योतिष, वास्तु शास्त्र, आयकर सम्बन्धी सूचनाएँ प्रदान करते हैं। समाचार-पत्रों के माध्यम से ही हमें रेडियो, टेलीविज़न के कार्यक्रमों की समय सारणी भी प्राप्त हो जाती है। समाचार-पत्रों के माध्यम से ही हमें पुस्तकों, फिल्मों की समीक्षा भी पढ़ने को मिल जाती

समाचार-पत्र पाठकों को भ्रष्टाचार, समाज की कुरीतियों जैसे भ्रूण हत्या आदि से जागरूक करते हैं और समाज में सुधार या नव-निर्माण का कार्य करते हैं। समाचार-पत्रों की कुछ हानियाँ भी हैं। कुछ समाचार-पत्र अपने पत्र की बिक्री बढ़ाने के लिए झूठी तथा सनसनी भरे समाचार छाप कर जनमानस को दूषित करते हैं। ऐसा ही कार्य वे समाचार-पत्र भी करते हैं जो पक्षपात पूर्ण समाचार और टिप्पणियाँ छापते हैं। समाचार-पत्रों में बड़ी शक्ति है। इस का सही प्रयोग होना चाहिए।

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38. दहेज प्रथा एक अभिशाप

कोई भी प्रथा जब शुरू होती है तो अच्छे उद्देश्य से शुरू होती है किन्तु धीरे-धीरे वही प्रथा कुप्रथा बन जाती है। कुछ ऐसा ही हाल दहेज प्रथा का भी है। दहेज प्रथा कितनी प्राचीन है यह तो नहीं कहा जा सकता। किन्तु इतना अवश्य है कि यह प्रथा जब शुरू हुई होगी तब लड़की को अपने पिता की सम्पत्ति में भागीदार नहीं माना जाता था और मातापिता उसके विवाह अवसर पर अपनी सम्पत्ति में से कुछ भाग लड़की को उपहार के रूप में भेंट करते थे। इसी उपहार को कालान्तर में दहेज का नाम दे दिया गया। किन्तु आज जब लड़की अपने पिता की सम्पत्ति में बराबर की हिस्सेदार है, लड़की अब स्वयं कमाने लगी है और पुरुष की आर्थिक दृष्टि से गुलाम नहीं रही है, दहेज देने का तर्क नज़र नहीं आता। किन्तु हम लकीर के फकीर अभी तक इस प्रथा को चलाए जा रहे हैं।

समय के परिवर्तन के साथ-साथ दहेज प्रथा एक कुप्रथा बन गई है और इसे नारी जाति के लिए ही नहीं समाज के लिए भी एक अभिशाप बन कर रह गई है। कुछ अमीर लोगों ने लड़की की शादी पर दिखावे के लिए ज़रूरत से ज्यादा खर्च करना शुरू कर दिया। देखा-देखी मध्यमवर्ग में भी यह रोग फैलता गया। यह समझा जाने लगा कि लड़के के माता-पिता लड़की को नहीं लड़के को या उसके माता-पिता को उपहार दे रहे हैं। देखादेखी लड़कों वालों की भूख बढ़ती गई और खुल कर दहेज की माँग की जाने लगी। मनवांछित दहेज न मिल पाने पर लड़की को ससुराल में तंग किया जाने लगा। दहेज के लालच में लक्ष्मी मानी जाने वाली बहू को जला कर मार दिया जाने लगा। दहेज की बलि पर न जाने आज तक कितनी ही भोली-भाली लड़कियाँ चढ़ चुकी हैं।

भले ही सरकार ने दहेज विरोधी कई कानून बनाए हैं लेकिन इन कानूनों की सरेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने जनवरी, 2007 में शादी विवाह में बारातियों की संख्या सम्बन्धी एक आदेश जारी किया था किन्तु इस आदेश की न तो कोई पालना कर रहा है और न ही कोई अधिकारी पालना करवा रहा है। हमारे विचार से दहेज के इस अभिशाप से युवा वर्ग ही समाज को मुक्ति दिलवा सकता है। बिना दहेज के विवाह करके।

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39. कम्प्यूटर का जीवन में महत्त्व

आज के युग को कम्प्यूटर का युग कहा जाता है। यह आधुनिक युग का एक ऐसा आविष्कार है जिसने मनुष्य की अनेक समस्याओं का समाधान कर दिया है। कम्प्यूटर ने मनुष्य का समय और श्रम बचा दिया है। साथ ही दी है पूर्णता और शुद्धता अर्थात् एक्युरेसी। कम्प्यूटर का प्रयोग आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लाभकारी सिद्ध हो रहा है। इसी बात को देखते हुए पंजाब सरकार ने स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा को अनिवार्य बना दिया है। इस आदेश से कम्प्यूटर का प्रवेश आज आम घरों में भी हो गया है।

कम्प्यूटर का सबसे बड़ा लाभ शिक्षा विभाग को हुआ है। कम्प्यूटर की सहायता से परीक्षा परिणाम कुछ ही दिनों में घोषित होने लगे हैं। चुनाव प्रक्रिया में भी इसका प्रयोग चुनाव नतीजों को कुछ ही घंटों में घोषित किया जाने लगा है। बैंकों, रेलवे स्टेशनों, सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों में कम्प्यूटर के प्रयोग से काम को बड़ा सरल बना दिया है। यहाँ तक कि अब तो कई दुकानदार भी अपने बही खाते रखने या बिल बनाने के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग करने लगे हैं। आज प्रत्येक समाचार पत्र कम्प्यूटर पर ही तैयार होने लगा है। कम्प्यूटर की एक अन्य चमत्कारी सुविधा इंटरनैट के उपयोग की है। इंटरनेट पर हमें विविध विषयों की जानकारी तो प्राप्त होती ही है, साथ ही हमें अपने मित्रों, रिश्तेदारों को ई-मेल द्वारा सन्देश भेजने की सुविधा भी प्राप्त होती है। कम्प्यूटर के साथ एक विशेष उपकरण (कैमरा इत्यादि) लगा कर हम दूर बैठे अपने मित्रों, रिश्तेदारों से सीधे बातचीत भी कर सकते हैं।

प्रकृति का यह नियम है कि जो वस्तु हमारे लिए लाभकारी होती है उसकी कई हानियाँ भी होती हैं। बच्चे कम्प्यूटर वीडियो गेम्स खेलने में व्यस्त रहते हैं और अपना कीमती समय नष्ट करते हैं। युवा वर्ग अश्लील वैवसाइट देख कर, इंटरनैट पर अश्लील चित्र एवं चित्र भेज कर बिगड़ रहे हैं। कम्प्यूटर पर अधिक देर तक बैठने पर नेत्रों की ज्योति पर तो प्रभाव पड़ता ही है शरीर में अनेक रोग भी पैदा होते हैं। अत: हमें चाहिए कि इस मशीनी मस्तिष्क के गुणों को ध्यान में रखकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए।

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40. बढ़ते प्रदूषण की समस्या

मानव और प्रकृति के बीच जब संतुलन बिगड़ जाता है तो हमारा वातावरण दूषित हो जाता है। आज हमारे देश में प्रदूषण की समस्या बड़ी गम्भीर बनी हुई है। प्रदूषण के कारण ही हमारे जीवन की सुरक्षा को भी खतरा बना हुआ है। हमारे देश में प्रदूषण चार प्रकार का है-जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तथा भूमि प्रदूषण। इन्हीं प्रदूषणों के कारण हमें शुद्ध पीने का पानी, शुद्ध वायु, शांत वातावरण और भूमि की उर्वरा शक्ति नहीं मिल पा रही है।

देश में तेजी से हो रहा औद्योगीकरण प्रदूषण फैलाने का बड़ा कारण बन रहा है। कल कारखानों से उठने वाला धुआँ हमारी वायु को तो प्रदूषित करता है। इन कल कारखानों से छोड़ा जा रहा रसायन युक्त जल हमारे जल और भूमि को भी प्रदूषित कर रहा है। औद्योगीकरण के साथ-साथ शहरीकरण ने भी जल और वायु को दूषित कर दिया है। बड़ेबड़े नगरों में सीवरेज और कल कारखानों का दूषित जल पास की नदियों में डाला जाता है, शहरों में चलने वाले वाहनों का धुआँ वायु को दूषित कर रहा है और कूड़े कर्कट के ढेर वातावरण को दूषित कर रहे हैं शहरीकरण के कारण अनेक वृक्षों की कटाई हो रही है। हम यह नहीं समझते कि वृक्ष ही हमें शुद्ध वायु प्रदान करते हैं। पीपल जैसा वृक्ष तो हमें 24 घंटे शुद्ध आक्सीजन प्रदान करता है किन्तु हम धड़ाधड़ वृक्षकाट रहे हैं।

शहरों में ही नहीं गाँवों में भी प्रदूषण फैलाने के अनेक कार्य होते हैं। किसान लोग अधिक पैदावार की होड़ में कीटनाशक दवाओं और कृत्रिम खादों का प्रयोग करके भूमि की उर्वरा शक्ति को घटा रहे हैं। चावल की पराली को खेतों में ही जलाकर वायु प्रदूषण फैला रहे हैं। आज हम जो फल सब्जियाँ खाते हैं वे सब कीटनाशक दवाइयों से ग्रसित होती हैं। ये सब प्रदूषण फैलाने के साथ-साथ जन-साधारण के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती हैं।

यदि इस बढ़ते प्रदूषण को रोकने का कोई उपाय न किया गया तो आने वाला समय हमारे लिए अत्यन्त भयानक और घातक सिद्ध होगा। प्रदूषण रोकने के लिए हमें बड़े-बड़े उद्योगों के स्थान पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। वृक्ष लगाने के अभियान को और तेज़ करना होगा। वाहनों में धुआँ रहित पेट्रोल-डीज़ल के प्रयोग को अनिवार्य बनाना होगा। कल कारखानों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने अनिवार्य करने होंगे। प्रदूषण का जन्म ही न हो, ऐसा हमारा प्रयास होना चाहिए।

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41. बढ़ती जनसंख्या की समस्या

किसी भी देश की उन्नति और आर्थिक विकास बहुत कुछ उस देश की जनसंख्या पर निर्भर होता है। भारत को जिन समस्याओं से जूझना पड़ रहा है उनमें तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या प्रमुख है। देश के विभाजन के समय सन् 1947 में देश की जनसंख्या 33 करोड़ थी जो अब 125 करोड़ से भी अधिक हो गई है। आज जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व में चीन के बाद दूसरे नम्बर पर है। जिस गति से हमारे देश की जनसंख्या बढ़ रही है उसे देखकर लगता है कि यह शीघ्र ही चीन को पीछे छोड़ जाएगा।

देश की बढ़ती जनसंख्या अनेक समस्याओं को जन्म दे रही है। जैसे खाद्य सामग्री की कमी, आवास की कमी, रोजगार के साधनों की कमी आदि। देश की धरती तो उतनी ही है उस पर देश के औद्योगीकरण और बिजली परियोजनाओं के लिए बहुत-सी उपजाऊ भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका है। इस तरह खेती योग्य भूमि भी दिनों दिन घटती जा रही है। माना कि नई तकनीक से उपज में काफ़ी वृद्धि हुई है। अनाज के क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर हो गया है किन्तु यह स्थिति कब तक रहेगी कहा नहीं जा सकता।

जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार परिवार नियोजन जैसी कई योजनाओं पर काम कर रही है किन्तु इस योजना का लाभ अशिक्षित और गरीब लोग नहीं उठा रहे। कहा जा सकता है कि जनसंख्या वृद्धि के कारण गरीबी, अशिक्षा, अन्धविश्वास और रूढिवादिता है। जनसंख्या वृद्धि में एक कारण यह भी हो सकता है कि भारत में औसत आयु साठ सालों में 21 से बढ़कर 65 तक जा पहुँची है। साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ने से शिशु मृत्यु दर में भी काफी कमी आई है। बालविवाह अभी भी रुके नहीं।

यदि सरकार और जनता ने मिलजुल कर जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगाने का कोई उपाय न किया तो देश को एक दिन खाने के लाले पड़ जाएंगे। हरित क्रान्ति, सफेद क्रान्ति जैसी कोई भी क्रान्ति कारगर सिद्ध न हो सकेगी अतः इस समस्या का समाधान ढूँढ़ना अत्यावश्यक है।

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42. बढ़ती महँगाई की समस्या

आज आम लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या महंगाई की बनी हुई है। बड़ों के मुँह से हम खाद्य पदार्थों के जो भाव सुनते हैं तो हमें या तो झूठ लगता है या सपना। आज महँगाई इतनी बढ़ गई है कि आम आदमी को दो जून की रोटी जुटाना भी कठिन हो रहा है। पंजाबी कवि सूबा सिंह ने ठीक ही कहा है-‘घयो लभदा नहीं धुन्नी नूं लान जोगा, कित्थों खानियाँ रांझे ने चूरियाँ’-सचमुच आज देसी घी दो सौ रुपए किलो से ऊपर बिक रहा है जो कभी तीन-चार रुपए किलो मिला करता था। तेल, घी, दालें तो अमीर आदमी की पहुँच वाली बन कर रह गई हैं। गरीब तो बस यही कहकर संतोष कर लेते हैं कि ‘रूखी सूखी खायकर, ठंडा पानी पी।’

पेट्रोल, डीज़ल और रसोई गैस की बढ़ती कीमतों ने तो जलती पर तेल छिड़कने का काम किया है। पेट्रोल, डीजल की कीमतें बढ़ने से बसों की यात्रा तो महँगी हुई ही है ट्रकों का माल भाड़ा भी बढ़ गया है, जिसके कारण फलों, सब्जियों, दालों इत्यादि खाद्य पदार्थों के दाम भी बढ़ गए हैं। सरकार अपने कर्मचारियों का प्रत्येक वर्ष दो बार महँगाई भत्ता बढ़ाती है, इससे कर्मचारियों को तो राहत मिलती नहीं उलटे चीज़ों की कीमतें अवश्य बढ़ जाती हैं।

महँगाई बढ़ने के साथ ही कालाबाजारी, तस्करी और काला धन, जमाखोरी जैसी समस्या बढ़ने लगती है। वर्ष 2008 के अन्त में विश्वव्यापी जो मंदी का दौर आया उसने महँगाई को और भी बढ़ा दिया। उस पर सोने पर सुहागे का काम किया सरकार की दुलमुल नीतियों ने। सरकार अपने मन्त्रियों के वेतन तो हर साल बढ़ा देती है किन्तु सरकारी कर्मचारी पे कमीशनों का कई वर्षों तक मुँह ताकते रहते हैं। मन्त्री अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए सत्ता में बने रहने के लिए बड़े-बड़े उद्योगों को जो सहूलतें दे रहे हैं उससे महँगाई बढ़ रही है। महँगाई कैसे रुके या कैसे रोकी जाए यह हमारी समझ से तो बाहर है। हाँ यदि सरकार चाहे और दृढ़ संकल्प हो महँगाई पर कुछ हद तक रोक लग सकती है।

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43. नशा बन्दी

भारत में नेशीली वस्तुओं का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। विशेषकर हमारी युवा पीढ़ी इस लत की अधिक शिकार हो रही है। यह चिन्ता का कारण है। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द जी ने कहा था कि जिस देश में करोड़ों लोग भूखे मरते हों वहाँ शराब पीना, गरीबों के रक्त पीने के बराबर है। किन्तु शराब ही नहीं अन्य नशीले पदार्थों के सेवन का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। कोई भी खुशी का मौका हो शराब पीने पिलाने के बिना वह अवसर सफल नहीं माना जाता। होटलों, क्लबों में खुले आम शराब पी-पिलाई जाती है। पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए। शराब को दारू अर्थात् दवाई भी कहा जाता है किन्तु कौन ऐसा है जो इसे दवाई की तरह पीता है। यहाँ तो बोतलों की बोतलें चढ़ाई जाती हैं। शराब महँगी होने के कारण नकली शराब का धन्धा भी फल-फूल रहा है। इस नकली शराब के कारण कितने लोगों को जान गंवानी पड़ी है, यह हर कोई जानता है। कितने ही राज्यों की सरकारों ने सम्पूर्ण नशाबन्दी लागू करने का प्रयास किया। किन्तु वे असफल रहीं। ताज़ा उदाहरण हरियाणा का लिया जा सकता है। कितने ही होटल बन्द हो गए और नकली शराब बनाने वालों की चाँदी हो गई। विवश होकर सरकार को नशाबन्दी समाप्त करनी पड़ी।

पंजाब में भी सन् 1964 में टेकचन्द कमेटी ने नशाबन्दी लागू करने का बारह सूत्री कार्यक्रम दिया था। किन्तु जो सरकार शराब की बिक्री से करोड़ों रुपए कमाती हो, वह इसे कैसे लागू कर सकती है। आप शायद हैरान होंगे कि पंजाब में शराब की खपत देश भर में सब से अधिक है, किसी ने ठीक ही कहा है बुरी कोई भी आदत हो वह आसानी से नहीं जाती। किन्तु सरकार यदि दृढ़ निश्चय कर ले तो क्या नहीं हो सकता। सरकार को ही नहीं जनता को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि नशा अनेक झगड़ों को ही जन्म नहीं देता बल्कि वह नशा करने वाले के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। ज़रूरत है जनता में जागरूकता पैदा करने की। नशाबन्दी राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है। शराब की बोतलों पर चेतावनी लिखने से काम न चलेगा, कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।

यह देखने में आया है कि देश का युवा वर्ग ही नहीं, किशोर वर्ग नशों की लपेट में आ रहा है। हमारे नेता यह कहते नहीं थकते कि देश में मादक द्रव्यों का प्रसार विदेशी शत्रुओं के कारण हो रहा है किन्तु अपने युवाओं को, बच्चों को समझाया तो जा सकता है। नशीले पदार्थों से इस पीढ़ी को बचाने का भरसक प्रयास किया जाना चाहिए नहीं तो देश कमजोर हो जाएगा और साँप निकल जाने के बाद लकीर पीटने का कोई लाभ न होगा।

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44. खेलों का जीवन में महत्त्व

खेल-कूद हमारे जीवन की एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। ये हमारे मनोरंजन का प्रमुख साधन भी हैं। पुराने ज़माने में जो लोग व्यायाम नहीं कर सकते थे अथवा खेल-कूद में भाग नहीं ले सकते थे वे शतरंज, ताश जैसे खेलों से अपना मनोरंजन कर लिया करते थे। दौड़ना भागना, कूदना इत्यादि भी खेलों का ही एक अंग है। ऐसी खेलों में भाग लेकर हमारे शरीर की मांसपेशियाँ तथा शरीर के दूसरे अंग स्वस्थ हो जाया करते हैं। खेल-कूद में भाग लेकर व्यक्ति की मासिक थकावट दूर हो जाती है।

स्वस्थ जीवन के लिए खेलों में भाग लेना अत्यावश्यक है। इस तरह व्यक्ति का मन भी स्वस्थ होता है। उसकी पाचन शक्ति भी ठीक रहती है, भूख खुलकर लगती है, नींद डटकर आती है, परिणामस्वरूप कोई भी बीमारी ऐसे व्यक्ति के पास आते डरती है। इससे व्यक्ति के चारित्रिक गुणों का भी विकास करता है। खिलाड़ी चाहे किसी भी खेल का हो अनुशासनप्रिय होता है। क्रोध, ईर्ष्या, घृणा आदि हानिकारक भावनाओं का वह शिकार नहीं होता। खेलों में ही उसे देश प्रेम और एकता की शिक्षा मिलती है।

खेलों से अनुशासन और आत्म-नियन्त्रण भी पैदा होता है और अनुशासन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। बिना अनुशासन के व्यक्ति जीवन में उन्नति और विकास नहीं कर सकता। खेल हमें अनुशासन का प्रशिक्षण देते हैं। किसी भी खेल में रैफ्री या अंपायर नियमों का उल्लंघन करने वाले खिलाड़ी को दण्डित भी करता है। इसलिए हर खिलाड़ी खेल के नियमों का पालन कड़ाई से करता है। खेल के मैदान में सीखा गया यह अनुशासन व्यक्ति को आगे चलकर जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी काम आता है। देखा गया है कि खिलाड़ी सामान्य लोगों से अधिक अनुशासित होते हैं।

खेलों से सहयोग व सहकार की भावना भी उत्पन्न होती है। इसे टीम भावना या खेल भावना भी कहा जाता है। केवल खेल ही ऐसी क्रिया है जिसमें सीखे गए उपयुक्त गुण व्यक्ति के व्यावहारिक जीवन में बहुत काम आते हैं। आने वाले जीवन में व्यक्ति सब प्रकार की स्थितियों, परिस्थितियों और व्यक्तियों के साथ काम करने में सक्षम हो जाता है। टीम भावना से काम करने वाला व्यक्ति दूसरों से अधिक सामाजिक होता है। वह दूसरों में जल्दी घुल-मिल जाता है। उसमें सहन शक्ति और त्याग भावना दूसरों से अधिक मात्रा में पाई जाती है।

इससे स्पष्ट है कि खेल जीवन की वह चेतन शक्ति है जो दिव्य ज्योति से साक्षात्कार करवाती है। अत: उम्र और शारीरिक शक्ति के अनुसार कोई न कोई खेल अवश्य खेलना चाहिए। खेल ही हमारे जीवन में एक नई आशा, महत्त्वाकांक्षा और ऊर्जा का संचार करते हैं। खेलों के द्वारा ही जीवन में नए-नए रंग भरे जा सकते हैं, इन्द्रधनुषी सुन्दर या मनोरम बनाया जा सकता है।

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45. व्यायाम का महत्त्व

महर्षि चरक के अनुसार शरीर की जो चेष्टा देह को स्थिर करने एवं उसका बल बढ़ाने वाली हो, उसे व्यायाम कहते हैं। शरीर को स्वस्थ रखना व्यक्ति का प्रथम कर्त्तव्य है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम की नितांत आवश्यकता है। – व्यायाम से हमारा अभिप्रायः वह नहीं है जो आज से कुछ वर्ष पहले समझा जाता था। अर्थात् दण्ड पेलना, बैठक लगाना आदि किन्तु आज के संदर्भ में व्यायाम का अर्थ किसी ऐसे काम करने से है जिससे हमारा शरीर स्वस्थ रहे। पुराने जमाने में स्त्रियाँ दूध दोहती थीं, बिलोती थीं, घर में झाड़ देती थीं, कपड़े धोती थीं और बाहर से कुएँ से खींचकर पीने के लिए पानी.लाया करती थीं। ये सब क्रियाएँ व्यायाम का ही एक भाग हुआ करती थीं। किन्तु आजकल की स्त्रियों के पास इन सब व्यायामों के लिए समय ही नहीं है। जिसका परिणाम यह है कि आज की स्त्री अनेक रोगों का शिकार हो रही है।

पुराने जमाने में पुरुष भी सुबह सवेरे सैर को निकल जाया करते थे। बाहर ही स्नान इत्यादि करते थे। इस तरह उनका व्यायाम हो जाता था। हमारे बड़े बुर्जुगों ने हमारी दिनचर्या कुछ ऐसी निश्चित कर दी जिससे हमारा व्यायाम भी होता रहे और हमें पता भी न चले। जैसे सूर्य उदय होने से पहले उठना, बाहर सैर को जाना, दातुन कुल्ला करना आदि व्यायाम के ही अंग थे। समय बदलने के साथ-साथ हम व्यायाम के उस परिणाम को भूलते जा रहे हैं कि व्यायाम करने से व्यक्ति निरोग रहता है। उसके शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है। पाचन शक्ति ठीक रहती है और शरीर सुडौल बना रहता है।

जो लोग व्यायाम नहीं करते, वे आलसी और निकम्मे बन जाते हैं। सदा किसी-नकिसी रोग का शिकार बने रहते हैं। आज का न ही पुरुष न ही स्त्री, घर का छोटा-मोटा काम भी अपने हाथ से नहीं करना चाहता। सारा दिन कुर्सी पर बैठ कर काम करने वाला कर्मचारी यदि कोई व्यायाम नहीं करेगा तो वह स्वयं बीमारी को बुलावा देने का ही काम करेगा। भला हो स्वामी रामदेव का जिन्होंने लोगों को योग और प्राणायाम की ओर मोड़कर थोड़ा-बहुत व्यायाम करने की प्रेरणा दी है। उनका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्ति और शारीरिक आवश्यकता के अनुसार व्यायाम अवश्य करना चाहिए।

एक विद्यार्थी के लिए व्यायाम का अधिक महत्त्व है क्योंकि अपनी इस चढ़ती उम्र में जितना सुन्दर और अच्छा शरीर वह बना सकता है, जितनी भी शक्ति का संचय वह कर सकता है, उसे कर लेना चाहिए। यदि इस उम्र में उसने अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान न दिया तो सारी उम्र वह पछताता ही रहेगा। अतः हमारी विद्यार्थी वर्ग को सलाह है कि वह अपने इस जीवन में खेल-कूद में अवश्य भाग लें, योगासन और प्राणायाम, जो शरीर के लिए श्रेष्ठ व्यायाम है अवश्य करें। प्रातः और सायं भ्रमण के लिए अवश्य घर से बाहर निकलें क्योंकि आने वाला जीवन कोई सरलता लिए हुए नहीं आएगा। तब संघर्ष की मात्रा अधिक बढ़ जाएगी और व्यायाम के लिए समय निकालना कठिन हो जाएगा। अत: जो कुछ करना है इसी विद्यार्थी जीवन में ही कर लेना चाहिए।

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46. समय का सदुपयोग

कहा जाता है कि आज का काम कल पर मत छोड़ो। जिस किसी ने भी यह बात कही है उसने समय के महत्त्व को ध्यान में रखकर ही कही है। समय सबसे मूल्यवान् वस्तु है। खोया हुआ धन फिर प्राप्त हो सकता है किन्तु खोया हुआ समय फिर लौट कर नहीं आता। इसीलिए कहा गया है समय बीत जाने पर सिवाय पछतावे के कुछ हाथ नहीं आता। विद्यार्थी जीवन में भी समय के महत्त्व को एवं उसके सदुपयोग को जो नहीं समझता और विद्यार्थी जीवन आवारागर्दी और ऐशो आराम से जीवन व्यतीत कर देता है वह जीवन भर पछताता रहता है।

विद्यार्थी जीवन में समय का सदुपयोग करना बहुत जरूरी है। क्योंकि विद्यार्थी जीवन बहुत छोटा होता है। इस जीवन में प्राप्त होने वाले समय का जो विद्यार्थी सही सदुपयोग कर लेते हैं वे ही भविष्य में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं। और जो समय को नष्ट करते हैं, वे स्वयं नष्ट हो जाते हैं।

इसलिए हमारे दार्शनिकों, संतों आदि ने अपने काम को तुरन्त मनोयोग से करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि ‘काल करे सो आज कर आज करे सो अब।’ कल किसने देखा है अतः दृष्टि वर्तमान पर रखो और उसका भरपूर प्रयोग करो। कर्मयोगी की यही पहचान है। जीवन दुर्लभ ही नहीं क्षणभंगुर भी है अतः जब तक साँस है तब तक समय का सदुपयोग करके हमें अपना जीवन सुखी बनाना चाहिए।

इतिहास साक्षी है कि संसार में जिन लोगों ने भी समय के महत्त्व को समझा वे जीवन में सफल रहे। पृथ्वी राज चौहान समय के मूल्य को न समझने के कारण ही गौरी से पराजित हुआ। नेपोलियन भी वाटरलू के युद्ध में पाँच मिनटों के महत्त्व को न समझ पाने के कारण पराजित हुआ। इसके विपरीत जर्मनी के महान् दार्शनिक कांट ने जो अपना जीवन समय के बंधन में बाँधकर कुछ इस तरह बिताते थे कि लोग उन्हें दफ्तर जाते देख अपनी घड़ियाँ मिलाया करते थे।

आधुनिक जीवन में तो समय का महत्त्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। आज जीवन में भागम भाग और जटिलता इतनी अधिक बढ़ गई है कि यदि हम समय के साथ-साथ कदम मिलाकर न चलें तो जीवन की दौड़ में पिछड़ जाएँगे। आज समय का सदुपयोग करते हुए सही समय पर सही काम करना हमारे जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

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47. आँखों देखा हॉकी मैच

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं। परन्तु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सब से आगे रहा किन्तु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यन्त रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला।

यह मैच नामधारी एकादश और रोपड़ हॉक्स की टीमों के बीच रोपड़ के खेल परिसर में खेला गया। दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए पंजाब भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के कुछ खिलाड़ी भाग ले रहे थे। रोपड़ हॉक्स की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने नामधारी एकादश को मैच के आरम्भिक दस मिनटों में दबाए रखा। उसके फारवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किये। परन्तु नामधारी एकादश का गोलकीपर बहुत चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। तब नामधारी एकादश ने तेज़ी पकड़ी और देखते ही देखते रोपड़ हॉक्स के विरुद्ध एक गोल दाग दिया।

गोल होने पर रोपड़ हॉक्स की टीम ने भी एक जुट होकर दो-तीन बार नामधारी एकादश पर कड़े आक्रमण किये परन्तु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा। इसी बीच रोपड़ हॉक्स को दो पेनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। नामधारी एकादश ने कई अच्छे मूव बनाये उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था। इसी बीच नामधारी एकादश को भी एक पेनल्टी कार्नर मिला जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी हताश हो गये । रोपड़ के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए । मध्यान्तर के समय नामधारी एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यान्तर के बाद खेल बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ। रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दायें कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर नामधारी एकादश पर एक गोल कर दिया। इस गोल से रोपड़ हॉक्स के जोश में जबरदस्त वृद्धि हो गयी। उन्होंने अगले पाँच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी के मारे नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने अपने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनन्द आ गया।

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48. आँखों देखा फुटबाल मैच

विश्वभर में फुटबाल का खेल सर्वाधिक लोकप्रिय है। केवल यही एक ऐसा खेल है जिसे देखने के लिए लाखों की संख्या में दर्शक जुटते हैं। फुटबाल के खिलाड़ी भी विश्व भर में सबसे अधिक सम्मान एवं धन प्राप्त करते हैं। 90 मिनट का यह खेल अत्यन्त रोचक, जिज्ञासा भरा होता है। संयोग से पिछले महीने मुझे पंजाब पुलिस और जे० सी० टी० फगवाड़ा की टीमों के बीच हुए मैच को देखने का अवसर मिला। जे० सी० टी० की टीम पिछले वर्ष संतोष ट्राफी की विजेता टीम रही थी। मैच शुरू होते ही पंजाब पुलिस ने विरोधी टीम पर काफी दबाव बनाये रखा परन्तु जे० सी० टी० की टीम भी कोई कम नहीं थी। उसके खिलाड़ियों को थोड़ा अवसर भी मिलता तो वे पंजाब पुलिस के क्षेत्र में जा पहुँचते।

पंजाब पुलिस ने अपना आक्रमण और भी तेज़ कर दिया। उनके खिलाड़ियों में आपसी तालमेल और पासिंग तो देखते ही बनता था। उनकी हर मूव को देखकर दर्शक वाह! वाह। कर उठते थे। इस मैच को देखने के लिए पंजाब पुलिस के कई वरिष्ट अधिकारी भी मैदान में मौजूद थे। सैंकड़ों की संख्या में सिपाही भी अपने खिलाड़ियों को उत्साहित करने के लिए बक-अप कर रहे थे। पहले मध्यान्तर के 26वें मिनट में पंजाब पुलिस के खिलाड़ियों ने इतना बढ़िया मूव बनाया कि जे० सी० टी० के खिलाड़ी देखते ही रह गये और पंजाब पुलिस ने एक गोल दाग दिया। दर्शक दीर्घा में बैठे लोग खुशी से नाच उठे। इस गोल के बाद जे० सी० टी० के खिलाड़ी रक्षा पर उतर आए। जब भी बाल लेकर आगे बढ़ते पंजाब पुलिस के खिलाड़ी उन से बाल छीन लेते। इसी बीच जे० सी० टी० की टीम ने एक ज़ोरदार आक्रमण किया किन्तु पंजाब पुलिस के गोल कीपर की दाद देनी होगी कि उसने गोल को फुर्ती से बचा लिया। उधर पंजाब पुलिस ने अपना दबाव फिर बढ़ाना शुरू किया। मध्यान्तर के समय पंजाब पुलिस की टीम एक शून्य से आगे थी। दूसरे मध्यान्ह के 45 मिनट में खेल में काफ़ी तेजी आई परन्तु पंजाब पुलिस के गोल कीपर ने कई निश्चित गोल बचा कर अपनी टीम को जीत दिलाई। मैच समाप्त होते ही पंजाब पुलिस के कर्मचारियों ने अपनी टीम के खिलाड़ियों को कंधों पर उठा लिया। आज उन्होंने देश की एक प्रसिद्ध टीम को हराया था। कोई दो घण्टे तक मैंने इस मैच का जैसा आनन्द उठाया वह मुझे वर्षों याद रहेगा।

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49. श्रम का महत्त्व
अथवा
परिश्रम सफलता की कुंजी है

श्रम का अर्थ है-मेहनत। श्रम ही मनुष्य-जीवन की गाड़ी को खींचता है। चींटी से लेकर हाथी तक सभी जीव बिना श्रम के जीवित नहीं रह सकते। फिर मनुष्य तो अन्य सभी प्राणियों से श्रेष्ठ हैं। संसार की उन्नति-प्रगति मनुष्य के श्रम पर निर्भर करती है। श्रम करने की आदत बचपन में ही डाली जाए तो अच्छा है।

परिश्रम के अभाव में जीवन की गाड़ी नहीं चल ही सकती। यहां तक कि स्वयं का उठना-बैठना, खाना-पीना भी सम्भव नहीं हो सकता फिर उन्नति और विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज संसार में जो राष्ट्र सर्वाधिक उन्नत हैं, वे परिश्रम के बल पर ही इस उन्नत दशा को प्राप्त हुए हैं। जिस देश के लोग परिश्रमहीन एवं साहसहीन होंगे, वह प्रगति नहीं कर सकता। परिश्रमी मिट्टी से सोना बना लेते हैं।

परिश्रम का अभिप्राय ऐसे परिश्रम से है जिससे निर्माण हो, रचना हो, जिस परिश्रम से निर्माण नहीं होता, उसका कुछ अर्थ नहीं। जो व्यक्ति आलस्य का जीवन बिताते हैं, वे कभी उन्नति नहीं कर सकते। आलस्य जीवन को अभिशापमय बना देता है। हमारा देश सदियों तक पराधीन रहा। इसका आधारभूत कारण भारतीय जीवन में व्याप्त आलस्य एवं हीन भावना थी। यदि छात्र परिश्रम न करें तो परीक्षा में कैसे सफल हों। मज़दूर भी मेहनत का पसीना बहाकर सड़कों, भवनों, बांधों, मशीनों तथा संसार के लिए उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करते हैं। मूर्तिकार, चित्रकार अद्भुत कलाओं का निर्माण करते हैं। कवि और लेखक सब परिश्रम द्वारा ही अपनी रचनाओं से संसार को लाभ पहुँचाते हैं। कालिदास, तुलसीदास, टैगोर, शेक्सपीयर आदि परिश्रम के बल पर ही अमर हो गए हैं। परिश्रम के बल पर ही वे अपनी रचनाओं के रूप में अमर हैं।

कुछ लोग श्रम की अपेक्षा भाग्य को महत्त्व देते हैं। उनका कहना है कि भाग्य में जो है वह अवश्य मिलेगा, अतः दौड़-धूप करना व्यर्थ है। यह तर्क निराधार है। यह ठीक है कि भाग्य का भी हमारे जीवन में महत्त्व है, लेकिन आलसी बनकर बैठे रहना और असफलता के लिए भाग्य को कोसना किसी प्रकार भी उचित नहीं। परिश्रम के बल पर मनुष्य भाग्य की रेखाओं को भी बदल सकता है। आज हमारे देश में अनेक समस्याएँ हैं। उन सबसे समाधान का साधन परिश्रम है। परिश्रम के द्वारा ही बेकारी की, खाद्य की और अर्थ की समस्या का अन्त किया जा सकता है।

परिश्रम व्यक्ति स्वावलम्बी, ईमानदार, सत्यवादी, चरित्रवान् और सेवा भाव से युक्त होता है। परिश्रम करने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य अपनी, परिवार की, जाति की तथा राष्ट्र की उन्नति में सहयोग दे सकता है। अतः मनुष्य को परिश्रम करने की प्रवत्ति विद्यार्थी जीवन में ग्रहण करनी चाहिए।

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50. किसी धार्मिक स्थान की यात्रा
अथवा
किसी पर्वतीय यात्रा का वर्णन
अथवा
वैष्णो देवी की यात्रा

इस बार नवरात्रे शुरू होते ही हमने मित्रों सहित माता वैष्णों देवी के दर्शन का निश्चय किया। प्रात: आठ बजे हम चण्डीगढ़ के बस स्टैण्ड पर पहुंचे। वहाँ से हमने पठानकोट के लिए बस ली। वहाँ से हमने जम्मू के लिए बस ली। जम्मू हम सायँ कोई सात बजे पहुँच गए। रात हमने जम्मू की एक धर्मशाला में गुजारी। रात में ही हमने जम्मू के ऐतिहासिक रघुनाथ जी तथा शिव मन्दिर के दर्शन किये। अगले दिन प्रातः काल में ही कटरा जाने वाली बस में सवार हुए। रास्ते भर सभी यात्री माता की भेंटें गाते हुए जय माँ शेराँ वाली के नारे लगा रहे थे। कटरा जम्मू से कोई पचास किलोमीटर दूर है। कटरा पहुँचकर हमने अपना नाम दर्ज करवाया और पर्ची ली। रात हमने कटरा में बिताई। दूसरे दिन सुबह ही हम माता की जय पुकारते हुए माँ के दरबार की ओर पैदल चल दिए। कटरा से भक्तों को पैदल ही चलना पड़ता है। कटरा से माँ के दरबार को जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक सीढ़ियों वाला मार्ग है और दूसरा साधारण। हमने साधारण रास्ता ही चुना। सभी भक्त जन माँ की जय पुकारते हुए बड़े उत्साह से आगे बढ़ रहे थे। पाँच किलोमीटर चलकर हम चरण पादुका मंदिर पहुंचे।

चरण पादुका मन्दिर से चलकर हम आद कुमारी मंदिर पहुंचे। यह मन्दिर कटरा और माता के भवन के मध्य में स्थित है। यहाँ श्रद्धालुओं के रहने और भोजन की अच्छी व्यवस्था है। आदकुमारी मन्दिर से हम गर्भवास गुफा की ओर चल पड़े। हमने भी इस गुफा को पार किया और माँ से जन्म मरण से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की। आगे का मार्ग बड़ा दुर्गम था। शायद इसी कारण इसे हाथी-मत्था की चढ़ाई कहते हैं। इस चढ़ाई को पार करके हम बाण गंगा और भैरों घाटी को पार कर माता के मन्दिर के निकट पहुँच गए। वहाँ हमने

अपना नाम दर्ज करवाया बारी आने पर हमने माँ वैष्णो देवी के दर्शन किये। मन्दिर की गुफा में तीन पिण्डियां हैं, जो महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से विख्यात हैं। हमने माँ के चरणों में माथा टेका, प्रसाद लिया और पीछे के रास्ते से बाहर आ गए। बाहर आकर हमने कन्या पूजन किया और कन्याओं को दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। वापसी पर हम भैरव मन्दिर के दर्शन करते हुए कटरा आ गए। कटरा से जम्मू और पठानकोट होते हुए चण्डीगढ़ वापस आ गए।

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51. मेरा प्रिय खिलाड़ी

मेरा प्रिय खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर है। तेंदुलकर जगत के सर्वाधिक प्रायोजित खिलाड़ी हैं। विश्व भर में उनके अनेक प्रशंसक हैं। उन्हें लिटल मास्टर या मास्टर बलास्टर के नाम से भी जाना जाता है। इनका पूरा नाम सचिन रमेश तेंदुलकर, माता का नाम रजनी तेंदुलकर तथा पिता का नाम रमेश तेंदुलकर है। इनका जन्म 24 अप्रैल, सन् 1973 ई० को राजापुर, मुंबई में हुआ था। इनके माता-पिता नौकरी करते थे, इसलिए ग्यारह वर्ष तक इनका तथा इनके भाई अजीत, नितिन तथा बहन सविता का पालन-पोषण इनकी नानी ने किया था। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर अढ़ाई वर्ष की आयु में ही मुगरी का बल्ला बना कर प्लास्टिक की गेंद से अपनी नानी और बड़े भाई अजीत के साथ खेलते थे। उनकी नानी लक्ष्मी बाई गिजे ने इन्हें इनके तीसरे जन्मदिन पर गेंद-बल्ला उपहार में दिया तो रोज़ क्रिकेट खेलना उनका नियम ही बन गया था। सन् 1995 ई० में इनका विवाह अंजली से हुआ। इनकी पुत्री सारा तथा पुत्र अर्जुन है। सचिन अपनी नानी को अपना क्रिकेट और जीवन गुरु मानते हैं।

पढ़ाई के साथ-साथ इन्होने क्रिकेट खेलना शुरू किया। कोच रमाकांत अचरेकर इन्हें घण्टों अभ्यास कराते थे और स्टम्प्स पर सिक्का रखकर गेंदबाज़ों को कहते थे, जो सचिन को आऊट करेगा, सिक्का उसे मिलेगा तथा आऊट नहीं होने पर सिक्का सचिन का होगा। सचिन के पास ऐसे जमा किए हुए तेरह सिक्के हैं। सचिन ने पहला प्रथम श्रेणी मैच सन् 1988 ई० में चौदह वर्ष की आयु में मुंबई के लिए विनोद काम्बली के साथ मिलकर खेला और दोनों ने मिलकर 664 दौड़ों की अविजित पारी खेली, जिसे देखकर विरोधी टीम ने आगे खेलने से मना कर दिया था।

सचिन ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट सन् 1989 ई० में पाकिस्तान के विरुद्ध कराची में खेला था। अब तक वे अपने नाम अनेक रिकार्ड कर चुके हैं। वे ऑफ स्पिन, लेग स्पिन, गुगली गेंदबाजी भी करते हैं। वे भारतीय सैनिकों को अपना आदर्श मान कर संघर्ष करना सीखे हैं। वे बहुत विनम्र, धैर्यवान, संयमी एवं विवेकी हैं। उन्होंने 2 अप्रैल, सन् 2011 ई० में विश्वकप जिताया। इन्हें सन् 1994 में अर्जुन पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार, सन् 1999 में पद्मश्री और सन् 2008 में पदम् विभूषण सम्मान दिया गया था। 2013 में भारतीय पोस्टल ने तेंदुलकर का एक टिकट जारी किया। 2014 में उन्हें मुम्बई इंडियन टीम के ‘आइकन’ के रूप में नियुक्त किया। सचिन तेंदुलकर मेरे हमेशा ही आदर्श रहेंगे।

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52. मन के जीते जीत है मन के हारे हार

मानव-शरीर यदि रथ के समान है तो यह मन उसका चालक है। मनुष्य के शरीर की असली शक्ति उसका मन है। मन के अभाव में शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं। मन ही वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य से बड़े-से-बड़े काम करवा लेती है। यदि मन में दुर्बलता का भाव आ जाए तो शक्तिशाली शरीर और विभिन्न प्रकार के साधन व्यर्थ हो जाते हैं। उदाहरण के लिए एक सैनिक को लिया जा सकता है। यदि उसने अपने मन को जीत लिया है तो वह अपनी शारीरिक शक्ति एवं अनुमान से कहीं अधिक सफलता दिखा सकता है। यदि उसका मन हार गया तो बड़े-बड़े मारक अस्त्र-शस्त्र भी उसके द्वारा अपना प्रभाव नहीं दिखा सकते। मन की शक्ति के बल पर ही मनुष्य ने अनेक आविष्कार किए हैं। मन की शक्ति मनुष्य को अनवरत साधना की प्रेरणा देती है और विजयश्री उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है। जब तक मन में संकल्प एवं प्रेरणा का भाव नहीं जागता तब तक हम किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। एक ही काम में एक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर लेता है और दूसरा असफल हो जाता है। इसका कारण दोनों के मन की शक्ति की भिन्नता है। जब तक हमारा मन शिथिल है तब तक हम कुछ भी नहीं कर सकते। अतः ठीक ही कहा गया है-“मन के हारे-हार है मन के जीते जीत।”

53. सत्संगति

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे दूसरे के साथ किसी-न-किसी रूप में संपर्क स्थापित करना पड़ता है। अच्छे लोगों की संगति जीवन को उत्थान की ओर ले जाती है तो बुरी संगति पतन का द्वार खोल देती है। संगति के प्रभाव से कोई नहीं बच सकता। हम जैसी संगति करते हैं, वैसा ही हमारा आचरण बन जाता है। रहीम ने कहा-
“कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन।
जैसे संगति बैठिए, तैसोई गुण दीन॥”

सत्संगति का महत्त्व – सत्संगति जीवन के लिए वरदान की तरह है। सत्संगति के द्वारा मनुष्य अनेक प्रकार की अच्छी बातें सीखता है। जिसको अच्छी संगति प्राप्त हो जाए उसका जीवन सफल बन जाता है। अच्छी संगति में रहने पर अच्छे संस्कार पैदा होते हैं। बुरी संगति बुरे विचारों को जन्म देती है। मनुष्य की पहचान उसकी संगति से होती है। अच्छे परिवार में जन्म लेने वाला बालक बुरी संगति में पड़ कर बुरा बन जाता है। इसी प्रकार बुरे परिवार में जन्म लेने वाले बालक को यदि अच्छी संगति प्राप्त हो जाती है तो वह अच्छा एवं सदाचारी बन जाता है-
“बिनु सत्संगु विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥”

सत्संगति मनुष्य के जीवन को सफल बनाती है तो कुसंगति जीवन को नष्ट करती है। कहा भी है, “दुर्जन यदि विद्वान् भी हो तो उसका साथ छोड़ देना चाहिए। मणि धारण करने वाला सांप क्या भयंकर नहीं होता।” बुरी आदतें मनुष्य बुरी संगति से सीखता है। बुरी पुस्तकें, अश्लील चल-चित्र आदि भी मनुष्य को विनाश की ओर ले जाते हैं। बुरे लोगों से बचने की प्रेरणा देते हुए सूरदास जी ने कहा है-
“छाडि मन हरि बिमुखन को संग।
चाके संग कुबुद्धि उपजत हैं परत भजन में भंग॥”

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54. मेरा परिवार

परिवार शब्द सुनते ही मन में एक सुखद सा एहसास होता है क्योंकि परिवार किसी के जीवन के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। परिवार के बिना यह जीवन अधूरा सा लगता है। एक परिवार बच्चों के लिए पहला स्कूल बनता है जहां से वे संस्कृति, परंपरा और सबसे ज़रूरी आधारभूत पारिवारिक मूल्यों को सीखते हैं। परिवार ही है, जो समाज में एक बेहतर चरित्र को बनाने में मदद करता है।

परिवार एक छोटा परिवार, छोटा मूल परिवार, बड़ा मूल परिवार या संयुक्त परिवार हो सकता है। एक परिवार में बहुत सारे रिश्ते हो सकते हैं जैसे दादा-दादी, माता-पिता, पतिपत्नी, भाई-बहन, चाचा-चाची, चचेरे भाई-बहन इत्यादि। मेरा परिवार एक छोटा मूल परिवार है जो एक मध्यम वर्ग परिवार से संबंधित है। मेरे परिवार में चार सदस्य हैं। पिता जी, माता जी, मैं तथा मेरी छोटी बहन। हम लोग पंजाब के पटियाला शहर में रहते हैं। हमारा दो मंजिला घर है। जिसमें माता-पिता का तथा मेरा और मेरी बहन का अलग-अलग कक्ष है।

मेरी माता जी बहुत प्यारी है। वह हमारी छोटी-छोटी ज़रूरतों का ध्यान रखती हैं। वह सुबह से रात तक हमारे कामों में लगी रहती हैं। मेरे पिताजी एक व्यापारी है। वह भी हमारे लिए बहुत मेहनत करते हैं। मेरी छोटी बहन पाँचवी में पढ़ती है। वह भी बहुत प्यारी है। वह पढ़ने में होशियार है। मेरा परिवार एक परिपूर्ण, सकारात्मक और खुशहाल परिवार है जो मुझे और मेरी बहन को ढेर सारा प्यार, उत्साह और सुरक्षा देता है। मेरे दादा-दादी जी पटियाला के ही एक गाँव में रहते हैं। वे वहाँ खेती का काम सम्भालते हैं। गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने दादा-दादी जी के पास जाता हूँ, वहाँ मेरे चाचा-चाची तथा चचेरे भाई-बहन भी रहते हैं। हम गाँव के अपने घर में खूब मस्ती करते हैं। मेरे माता-पिता मेरे दादा-दादी का बहुत ध्यान रखते हैं। वे जब भी गाँव जाते हैं तो उनकी ज़रूरत का ढेर सारा समान ले जाते है।
मेरा परिवार प्रेम, स्नेह तथा विश्वास जैसे गुणों से भरपूर एक अटूट धागे से बंधा हुआ है। भगवान करे मेरा परिवार दिन दुगनी रात चौगुनी उन्नति करे।

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55. विद्यार्थी और अनुशासन

विद्यार्थी का जीवन समाज और देश की अमूल्य निधि होता है। विद्यार्थी समाज की रीढ़ हैं क्योंकि वे ही आगे चल कर राज नेता बनते हैं। देश की बागडोर थाम कर राष्ट्र निर्माता बनते हैं। समाज तथा देश की प्रगति इन्हीं पर निर्भर है। अतएव विद्यार्थी का जीवन पूर्णत: अनुशासित होना चाहिए। वे जितने अनुशासित बनेंगे उतना ही अच्छा समाज और देश बनेगा।

विद्यार्थी जीवन को सुंदर बनाने के लिए अनुशासन का विशेष महत्त्व है। अनुशासन को जो लोग बंधन समझते हैं वे मुर्खता करते हैं। जिस प्रकार हमारे शरीर का संचालन मस्तिष्क द्वारा होता है और हमारी सब कर्मेंद्रियाँ अपना-अपना कार्य करती हैं। यदि कर्मेंद्रियां अपना-अपना कार्य करना बंद कर दें तो हमारा जीवन कठिन हो जाएगा। इसी भांति अनुशासित जीवन के अभाव में हमारा जीवन नष्ट-भ्रष्ट होकर गतिहीन और दिशाहीन हो जाएगा।

अनुशासन दो शब्दों से मिलकर बना है-अनु और शासन। अनु का अर्थ है पीछे और शासन का अर्थ है आज्ञा । अतः अनुशासन का अर्थ है-आज्ञा के पीछे-पीछे चलना। समाज और राष्ट्र की व्यवस्था और उन्नति के लिए जो नियम बनाए गए हैं उनका पालन करना ही अनुशासन है। अतः हम जो भी कार्य अनुशासनबद्ध होकर करेंगे तो सफलता निश्चित ही प्राप्त होगी। अनुशासन के अंतर्गत उठना-बैठना, खाना-पीना, बोलना-चालना, सीखनासिखाना, आदर-सत्कार आदि सभी कार्य सम्मिलित हैं। इन सभी कार्यों में अनुशासन का महत्त्व है।

अनुशासन की शिक्षा स्कूल की परिधि में ही संभव नहीं है। घर से लेकर स्कूल, खेल के मैदान, समाज के परकोटों तक में अनुशासन की शिक्षा ग्रहण की जा सकती है। अनुशासनप्रियता विद्यार्थी के जीवन को जगमगा देती है। विद्यार्थियों का कर्तव्य है कि उन्हें पढ़ने के समय पढ़ना और खेलने के समय खेलना चाहिए। एकाग्रचित्त होकर अध्ययन करना, बड़ों का आदर करना, छोटों से स्नेह करना ये सभी गुण अनुशासित छात्र के हैं। जो छात्र माता-पिता तथा गुरु की आज्ञा मानते हैं, वे परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं तथा उनका जीवन अच्छा बनता है। वे आत्मविश्वासी, स्वावलंबी तथा संयमी बनते हैं और जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं।

अनुशासन भी दो प्रकार का होता है-(i) आंतरिक, (ii) बाह्य। दूसरे प्रकार का अनुशासन परिवार तथा विद्यालयों में देखने को मिलता है। यह भय पर आधारित होता है। जब तक विद्यार्थी में भय बना रहता है तब तक नियमों का पालन करता है। भय समाप्त होते ही वह उद्दण्ड हो जाता है। भय से प्राप्त अनुशासन से बालक डरपोक हो जाता है।

आंतरिक अनुशासन ही सच्चा अनुशासन है। जो कुछ सत्य है, कल्याणकारक है, उसे स्वेच्छा से मानना ही आंतरिक अनुशासन कहा जाता है। आत्मानुशासित व्यक्ति अपने शरीर, बुद्धि, मन पर पूरा-पूरा नियंत्रण स्थापित कर लेता है। जो अपने पर नियंत्रण कर लेता है वह दुनिया पर नियंत्रण कर लेता है। अनुशासन से जीवन सुखमय तथा सुंदर बनता है। अनुशासनप्रिय व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य को सुगमता से प्राप्त कर लेते हैं। हमें चाहिए कि अनुशासन में रहकर अपने जीवन को सुखी, संपन्न एवं सुंदर बनाएं।

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56. स्वच्छता अभियान

स्वच्छता अभियान को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ या ‘स्वच्छ भारत मिशन’ भी कहा जाता है। यह अभियान भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के स्वप्न स्वच्छ भारत को पूर्ण करने हेतू शुरू किया गया। यह एक राष्ट्रीय स्तर का अभियान है। इस अभियान को अधिकारिक तौर पर राजघाट, नई दिल्ली में 2 अक्तूबर, 2014 को महात्मा गाँधी जी की 145वीं जयन्ती पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किया गया। स्वच्छता अभियान में प्रत्येक भारतवासी से आग्रह किया था कि वे इस अभियान से जुड़े और अपने आसपास के क्षेत्रों की साफ-सफाई करें। इस अभियान को सफल बनाने के लिए उन्होंने देश के 11 महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावी लोगों को इसका प्रचार करने के लिए चुना जिनमें कुछ ऐसे फिल्मकार, क्रिकेटर तथा महान लोग हैं जिनको लोग सुनना पसंद करते हैं। इस अभियान के अंतर्गत कई शहरी तथा ग्रामीण योजनाएं बनाई गई जिसमें शहरों तथा गांवों में सार्वजनिक शौचालय बनाने की योजनाएं हैं। सरकारी कार्यालयों तथा सार्वजनिक स्थलों पर पान, गुटखा, धूम्रपान जैसे गंदगी फैलाने वाले उत्पादों पर रोक लगा दी गई। इस अभियान को सफल बनाने के लिए स्वयं मोदी जी ने सड़कों पर साफसफाई की थी जिसे देखकर लोगों में भी साफ-सफाई के प्रति उत्साह पैदा हो गया।

स्वच्छता अभियान के लिए बहुत सारे नारों का भी प्रयोग किया गया है ; जैसे
1. एक कदम स्वच्छा की ओर।
2. स्वच्छता अपनाना है, समाज में खुशियां लाना है।
3. गाँधी जी के सपनों का भारत बनाएंगे, चारों तरफ स्वच्छता फैलाएंगे।
स्वच्छता अभियान को अपनाने से कोई हानि नहीं अपितु लाभ ही लाभ होंगे। इससे हमारे आस-पास की हर जगह साफ-सुथरी होगी। साफ-शुद्ध वातावरण में हम और हमारा परिवार बीमार कम पड़ेगा। देश में हर तरफ खुशहाली आएगी और आर्थिक विकास होगा।

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57. मोबाइल के लाभ और हानियां

एक समय था जब टेलीफ़ोन पर किसी दूसरे से बात करने के लिए देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। किसी दूसरे नगर या देश में रहने वालों से बातचीत टेलीफ़ोन एक्सचेंज के माध्यम से कई-कई घण्टों के इन्तज़ार के बाद संभव हो पाती थी किन्तु अब मोबाइल के माध्यम से कहीं भी कभी भी सेकेंडों में बात की जा सकती है। सेटेलाइट मोबाइल फ़ोन के लिए यह कार्य और भी अधिक आसानी से सम्भव हो जाता है। तुरन्त बात करने और सन्देश पहुँचाने को इससे सुगम उपाय सामान्य लोगों के पास अब तक और कोई नहीं है। विज्ञान के इस अद्भुत करिश्मे की पहुंच इतनी सरल, सस्ती और विश्वसनीय है कि आज यह छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, बच्चे-बूढ़े सभी के पास दिखाई देता है।

मोबाइल फ़ोन दुनिया को वैज्ञानिकों की ऐसी अद्भुत देन है जिसने समय की बचत कर दी है, धन को बचाया है और दूरियाँ कम कर दी हैं। व्यक्ति हर अवस्था में अपनों से जुड़ा-सा रहता है। कोई भी पल-पल की जानकारी दे सकता है, ले सकता है और इसी कारण यह हर व्यक्ति के लिए उसकी सम्पत्ति-सा बन गया है, जिसे वह सोते-जागते अपने पास ही रखना चाहता है। कार में, रेलगाड़ी में, पैदल चलते हुए, रसोई में, शौचालय में, बाज़ार में मोबाइल फ़ोन का साथ तो अनिवार्य-सा हो गया है। व्यापारियों और शेयर मार्किट से सम्बन्धित लोगों के लिए तो प्राण वायु ही बन चुका है। दफ़्तरों, संस्थाओं और सभी प्रतिष्ठिानों में इसकी रिंग टोन सुनाई देती रहती है।

मोबाइल फ़ोन की उपयोगिता पर तो प्रश्न ही नहीं किया जा सकता। देश-विदेश में किसी से भी बात करने के अतिरिक्त यह लिखित संदेश, शुभकामना संदेश, निमंत्रण आदि मिनटों में पहुँचा देता है। एसएमएस के द्वारा रंग-बिरंगी तस्वीरों के साथ संदेश पहुँचाए जा सकते हैं। अब तो मोबाइल फ़ोन चलते-फिरते कम्प्यूटर ही बन चुके हैं, जिनके माध्यम से आप अपने टी०वी० के चैनल भी देख-सुन सकते हैं। यह संचार का अच्छा माध्यम तो है ही, साथ ही साथ वीडियो गेम्स का भंडार भी है। यह टॉर्च, घड़ी, संगणक, संस्मारक, रेडियो आदि की विशेषताओं से युक्त है। इससे उच्च कोटि की फोटोग्राफ़ी की जा सकती है। वीडियोग्राफ़ी का काम भी इससे लिया जा सकता है। इससे आवाज़ रिकॉर्ड की जा सकती है और उसे कहीं भी, कभी भी सुनाया जा सकता है। एक तरह से यह छोटा-सा उपकरण अलादीन का चिराग ही तो है।

मोबाइल फ़ोन केवल सुखों का आधार ही नहीं है बल्कि कई तरह की असुविधाओं और मुसीबतों का कारण भी है। बार-बार बजने वाली इसकी घंटी परेशानी का बड़ा कारण बनती है। जब व्यक्ति गहरी नींद में डूबा हो तो इसकी घंटी कर्कश प्रतीत होती है। मन में खीझ-सी उत्पन्न होती है। अनचाही गुमनाम कॉल आने से असुविधा का होना स्वाभाविक ही है। मोबाइल फ़ोन से जहाँ रिश्तों में प्रगाढ़ता बढ़ी है वहाँ. इससे छात्रछात्राओं की दिशा में भटकाव भी आया है। फ़ोन-मित्रों की संख्या बढ़ी है जिससे उनका वह समय जो पढ़ने-लिखने में लगना चाहिए था वह गप्पें लगाने में बीत जाता है। इससे धन भी व्यर्थ खर्च होता है। अधिकांश युवा वाहन चलाते समय भी मोबाइल फ़ोन से चिपके ही रहते हैं और ध्यान बँट जाने के कारण बहुत बार दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। मोबाइल फ़ोन अपराधी तत्वों के लिए सहायक बनकर बड़े-बड़े अपराधों के संचालन में सहायक बना हुआ है। जेल में बंद अपराधी भी चोरी-छिपे इसके माध्यम से अपने साथियों को दिशा-निर्देश देकर अपराध, फिरौती और अपहरण का कारण बनते हैं।

मोबाइल फ़ोन अदृश्य तरंगों से ध्वनि संकेतों का प्रेषण करते हैं जो मानव-समाज के लिए ही नहीं अपितु अन्य जीव-जन्तुओं के लिए भी हानिकारक होती हैं। ये मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं। कानों पर बुरा प्रभाव डालती हैं और दृश्य के तारतम्य को बिगाड़ती है। यही कारण है कि चिकित्सकों द्वारा पेसमेकर प्रयोग करने वाले रोगियों को मोबाइल फ़ोन प्रयोग न करने का परामर्श दिया जाता है। वैज्ञानिकों ने प्रमाणित कर दिया है कि भविष्य में नगरों में रहने वाली चिड़ियों की अनेक प्रजातियाँ अदृश्य तरंगों के प्रभाव से वहाँ नहीं रह पाएँगी। वे वहाँ से कहीं दूर चली जाएँगी या मर जाएँगी, जिससे खाद्य श्रृंखला भी प्रभावित होगी। प्रत्येक सुख के साथ दुःख किसी-न-किसी प्रकार से जुड़ा ही रहता है। मोबाइल फ़ोन के द्वारा दिए गए सुखों और सुविधाओं के साथ कष्ट भी जुड़े हुए हैं।

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58. आदर्श विद्यार्थी

महात्मा गाँधी कहा करते थे, “शिक्षा ही जीवन है।” इसके समक्ष सभी धन फीके हैं। विद्या के बिना मनुष्य कंगाल बन जाता है, क्योंकि विद्या का ही प्रकाश जीवन को आलोकित करता है। विद्याध्ययन का समय बाल्यकाल से आरंभ होकर युवावस्था तक रहता है। यों तो मनुष्य जीवन भर कुछ-न-कुछ सीखता रहता है, किंतु नियमित अध्ययन के लिए यही अवस्था उपयुक्त है। मनुष्य की उन्नति के लिए विद्यार्थी जीवन एक महत्त्वपूर्ण अवस्था है। इस काल में वे जो कुछ सीख पाते हैं, वह जीवन-पर्यंत उनकी सहायता करता है। इसके अभाव में मनुष्य का विकास नहीं हो सकता। जिस बालक को यह जीवन बिताने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ वह जीवन के वास्तविक सुख से वंचित रह जाता है।।

यह वह अवस्था है जिसमें अच्छे नागरिकों का निर्माण होता है। यह वह जीवन है जिसमें मनुष्य के मस्तिष्क और आत्मा के विकास का सूत्रपात होता है। यह वह अमूल्य समय है जो मानव जीवन में सभ्यता और संस्कृति का बीजारोपण करता है। इस जीवन की समता मानव जीवन का कोई अन्य भाग नहीं कर सकता।

ब्रह्मचर्य विकास का मूल है। यही विद्यार्थी को उसके लक्ष्य पर केंद्रित करता है। शरीर, आत्मा और मन में संयम रखकर विद्यार्थियों को उनके लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में सहायता करता है। शालीनता, निष्ठा, नियमित, कर्तव्य भावना तथा परिश्रम की ओर रुचि पैदा करता है और दुर्व्यसन, पतन तथा आत्म-हनन से रक्षा करता है। सदाचार ही जीवन स्वस्थ शरीर में स्वस्थ आत्मा निवास करती है। अतएव आवश्यक है कि विद्यार्थी अपने अंगों का समुचित विकास करे। खेल-कूद, दौड़, व्यायाम आदि के द्वारा शरीर भी बलिष्ठ होता है और मनोरंजन के द्वारा मानसिक श्रम का बोझ भी उतर जाता है। खेल के नियम में स्वभाव और मानसिक प्रवृत्तियाँ भी सध जाती हैं।

महान् बनने के लिए महत्त्वाकाँक्षा भी आवश्यक है। विद्यार्थी अपने लक्ष्य में तभी सफल हो सकता है जब कि उसके हृदय में महत्त्वाकाँक्षा की भावना हो। ऊपर दृष्टि रखने पर मनुष्य ऊपर ही उठता जाता है। मनोरथ सिद्द करने के लिए जो उद्योग किया जाता है, वही आनंद प्राप्ति का कारण बनता है। यही उद्योग वास्तव में जीवन का चिह्न है।

आज भारत के विद्यार्थी का स्तर गिर चुका है। उसके पास न सदाचार है न आत्मबल। इसका कारण विदेशियों द्वारा प्रचारित अनुपयोगी शिक्षा प्रणाली है। अभी तक भी उसी का अंधाधुंध अनुकरण चल रहा है। जब तक इस सड़ी-गली विदेशी शिक्षा पद्धति को उखाड़ नहीं फेंका जाता, तब तक न तो विद्यार्थी का जीवन ही आदर्श बन सकता है और न ही शिक्षा सर्वांगपूर्ण हो सकती है। इसलिए देश के भाग्य विधाताओं को इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Lokoktiyan लोकोक्तियाँ Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar लोकोक्तियाँ

वाक्य प्रयोग सहित लोकोक्तियाँ

1. अन्धों में काना राजा = मूों में थोड़ा पढ़ा (सयाना) ।
प्रयोग – हमारे गाँव की अनपढ़ जनता को पोस्टमैन ही पत्र पढ़कर और सुनाकर आदर पाते हैं क्यों न हो ‘अन्धों में काना राजा’।

2. अधजल गगरी छलकत जाए = कम ज्ञान या धन वाला दिखावा अधिक करता है।
प्रयोग-कृष्णलाल है तो कमेटी में चपरासी लेकिन बातें ऐसी करता है, जैसे कहीं सचिव हो। ठीक है ‘अधजल गगरी छलकत जाए’।

3. अन्त भले का भला = अच्छे काम का फल अच्छा होता है।
प्रयोग – मैं तो सच्चाई और ईमानदारी पर चलने वाला हूँ। मेरा ‘अन्त भले का भला’ में दृढ़ विश्वास है।

4. अन्धी पीसे कुत्ता खाए = कमाए कोई, खाए कोई। प्रयोग-लाला सोहन लाल दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह पिसते रहते हैं
और थोड़ी – सी पूँजी जमा करते हैं लेकिन उनके सम्बन्धी हितैषी वनकर गुलछर्रे उड़ाते हैं। ठीक ही कहा है अँधी पीसे कुत्ता खाए।

5. अक्ल बड़ी या भैंस = शारीरिक बल से बुद्धि बल बड़ा होता है।
प्रयोग – मोहन चाहे शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट है, परन्तु परीक्षा में सुधा के मुकाबले में उसे बहुत कम नम्बर मिलते हैं। इसीलिए कहा गया है कि अक्ल बड़ी या भैंस।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ

6. अब पछताए क्या होत जब चिड़ियाँ चुग गई खेत = हानि होने पर पछताने से क्या लाभ।
प्रयोग – भाई मोहन परिश्रम करते तो पास होते। अब रोने से क्या होगा ? सच है ‘अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत।’

7. आम के आम गुठलियों के दाम = सब प्रकार से लाभदायक सौदा।
प्रयोग – रामदास हरिद्वार जाकर पुराने कपड़े भी बेच आया और गंगा स्नान भी कर आया। इसे कहते हैं-आम के आम गुठलियों के दाम।

8. आँख का अन्धा नाम नयन सुख = काम के प्रतिकूल नाम होना।
प्रयोग – उसका नाम तो भीमसेन है लेकिन है हड्डियों का ढाँचा। इसे कहते हैं ‘आँख का अन्धा नाम नयन सुख’।

9. आ बैल मुझे मार = जान बूझकर मुसीबत मोल लेना।
प्रयोग – अगले स्टेशन पर टी० टी० टिकट चैक कर रहा है। तुम बिना टिकट यात्रा करने की सोच रहे हो। इसे कहते हैं ‘आ बैल मुझे मार’।

10. आसमान से गिरा और खजूर पर अटका = एक मुसीबत से बचकर दूसरी मुसीबत में फँसना।
प्रयोग – चोर ने जब पुलिस को आते देखा तो अन्धेरे की ओर भागा और गड्ढे में गिर जाने से उसकी टाँग टूट गई। बेचारा ‘आसमान से गिरा और खजूर में अटका’।

11. आगे कुआँ पीछे खाई = दोनों ओर मुसीबत।
प्रयोग – सोहन ने आगे शेर आते देखा, पीछे साँप फुकारता, उसकी दशा तो ‘आगे कुआँ पीछे खाई’ वाली हो गई।

12. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे = स्वयं का अपराध अन्य निर्दोष पर लगाना।
प्रयोग – राम की किताब रमेश ने चुराई तो रमेश उल्टे राम पर चोरी का इल्जाम लगाता है। ठीक है ‘उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे’।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ

13. ऊँट के मुँह में जीरा = अधिक खाने वाले को कम मिलना,
प्रयोग – उस पहलवान के लिए एक चपाती ऊँट के मुँह में जीरे के समान ही है।

14. ऊँची दुकान फीका पकवान = बड़ा दिखावा पर भीतर से खोखला।
प्रयोग – स्कूल का नाम तो रखा ‘तक्षशिला विद्यालय’ परन्तु वहाँ जाकर देखा तो तीन-चार टूटे-फूटे कमरे थे। वही बात है ‘ऊँची दुकान फीका पकवान’।

15. एक अनार सौ बीमार = वस्तु एक, ग्राहक अनेक।
प्रयोग – गाँव में डॉक्टर तो एक है परन्तु बीमारी घर-घर फैली है। वहाँ एक अनार सौ बीमार’ वाली हालत है।

16. एक हाथ से ताली नहीं बजती = दो लड़ने वालों के कारण ही लड़ाई आरम्भ होती है।
प्रयोग – सुधा ने सारा दोष जब अपनी सास पर लगाया तो उसके पति ने कहा यह कैसे हो सकता है, भला एक हाथ से ताली बजती है।

17. एक पंथ दो काज = एक ही उपाय से दो काम निकालना।
प्रयोग – मैं गुरु नानक देव विश्वविद्यालय से फार्म लेने अमृतसर गया था और वहाँ दरबार साहिब और दुर्याणा मन्दिर भी देख आया। इस प्रकार ‘एक पंथ दो काज’ हो गए।

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18. एक ही थैली के चट्टे-बट्टे = सब एक जैसे बुरे।
प्रयोग – इस विभाग के सभी कर्मचारी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं, तुम किसी को भी रिश्वत देकर काम निकाल सकते हो।

19. एक करेला दूसरा नीम चढ़ा = एक बुराई स्वाभाविक हो, दूसरी संगतिजन्य बुराई और इकट्ठी हो जाए।
प्रयोग – दिलीप पढ़ता-लिखता तो था नहीं अब सोहन जुआरिये के साथ जुआ भी खेलने लग पड़ा है। उस पर यह लोकोक्ति चरितार्थ होती है कि “एक करेला, दूसरा नीम चढ़ा।”

20. एक मछली सारे तालाब को गन्दा करती है = एक बुरा व्यक्ति सारे परिवार और समाज को बदनाम कर देता है।
प्रयोग-हमारे स्कूल का नाम सारे राज्य में है लेकिन राम बेकार की शरारतें करता है। वही नहीं जानता कि “एक मछली सारे तालाब को गन्दा करती है।”

21. ओखली में सिर दिया तो मसल से क्या डर = कठिन काम में कष्टों को सहना पड़ता है।
प्रयोग – कृपाराम ने जब चोरी कर ही ली है तो पुलिस का क्या डर ? क्योंकि “ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डर ?”

22. कंगाली में आटा गीला = एक कष्ट पर दूसरा कष्ट।
प्रयोग – जगदीश पहले तो कठिनाई से गुजारा करता था। अब उसका लड़का बीमार हो गया है। सच है ‘कंगाली में आटा गीला’।

23. करनी और कथनी में अन्तर = कहने और करने में अन्तर।
प्रयोग – आतंकवादियों के विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही में पाकिस्तान के मन्त्री की करनी और कथनी में अन्तर साफ दिखाई पड़ता है।

24. काला अक्षर भैंस बराबर = अनपढ़ व्यक्ति।
प्रयोग – भारत के अधिकतर-ग्रामीणों के लिए काला अक्षर भैंस बराबर है।

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25. काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती = छल-कपट का काम सदा सम्भव नहीं होता।
प्रयोग – मोहन मुझसे रुपए लेकर मुकर गया। जब दुबारा माँगने आया तो मैंने उसे साफ़ कह दिया भाई ‘काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती’।

26. कोयले की दलाली में मुँह काला = बुरी संगति का बुरा प्रभाव।
प्रयोग – जगदीश ने दुष्ट प्रमोद से दोस्ती करके बदनामी प्राप्त की। उसे क्या मालूम था कि ‘कोयले की दलाली में मुँह काला’ होता है।

27. कुत्ते को घी हज़म नहीं होता = नीच आदमी उच्च पदवी मिल जाने पर इतराने लगता है।
प्रयोग – जब से आवारा देव की लाटरी निकली है उसने नौकरी छोड़कर जुआ खेलना शुरू कर दिया है क्योंकि ‘कुत्ते को घी हज़म नहीं होता’।

28. कौआ चला हंस की चाल अपनी चाल भी भूल गया = दूसरों की नकल में अपना गुण भी खो देना।
प्रयोग – धनी राम की नकल करके गरीबू अपनी थोड़ी-सी पूंजी भी गवां बैठा। इसलिए किसी ने कहा है ‘कौआ चला हंस की चाल अपनी चाल भी भूल गया।

29. खोदा पहाड़ निकली चुहिया = परिश्रम अधिक किन्तु लाभ थोड़ा।
प्रयोग – जब हम कांगड़ा का किला देखने चार किलोमीटर पैदल चलकर गए तो वहाँ पर देखा कि सब कुछ खंडहर हो चुका है। तब सब ने कहा कि ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’।

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30. गंगा गए गंगाराम, जमुना गए जमुनादास = परिस्थिति के अनुसार बदलना।
प्रयोग – आजकल के विधायक तो लोभवश दल बदल लेते हैं। उनकी हालत तो ‘गंगा गए गंगाराम, जमुना गए जमुनादास’ जैसी ही है।

31. धूप में बाल सफ़ेद करना = अनुभव प्राप्त करना।
प्रयोग – बड़ों ने धूप में बाल सफ़ेद नहीं किए होते, हमें उनकी बात माननी चाहिए।

32. घर की मुर्गी दाल बराबर = अपने घर की वस्तु या चीज़ का आदर न होना।
प्रयोग – राम के घर तो पकौड़े भी देसी घी के बनते हैं, घर में चार दुधारू भैंसें हैं। ठीक ही कहा है ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’।

33. चिराग तले अन्धेरा = खुद की बुराई नहीं देखना।
प्रयोग-मास्टर जी कहते हैं कि भाइयों से प्रेम करो और खुद भाइयों को पीटते हैं। इसे कहते हैं ‘चिराग तले अन्धेरा’।

34. चार दिन की चाँदनी फिर अन्धेरी रात = सुख सदैव नहीं रहता।
प्रयोग – धन सदा स्थिर नहीं रहता लाला जी, यह तो ‘चार दिन की चाँदनी फिर अन्धेरी रात, सिद्ध होता है।

35. जल में रहकर मगर से वैर = जिस जगह पर रहना हो वहाँ के अधिकारियों से बिगाड़ लेना।
प्रयोग – मैंने मोहन से कहा कि भाई, तूने तो सोहन से झगड़ा करके नौकरी खतरे में डाल ली है। इस तरह ‘जल में रहकर मगर से वैर’ नहीं हो सकता।

36. जिस थाली में खाना उसी में छेद करना = कृतघ्न व्यक्ति।
प्रयोग – सेठ जी ने अपने नौकर की लड़की की शादी के लिए चार हज़ार रुपए तो दे दिए किन्तु जाते समय वह हार भी चुरा कर ले गया। इस प्रकार ‘जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया।

37. जिसकी लाठी उसकी भैंस = शक्तिशाली की जीत होती है।
प्रयोग – शिवाजी के शक्तिशाली होने पर उन्होंने दक्षिणी प्रदेश जीत लिया। इसको कहते हैं ‘जिसकी लाठी उसकी की भैंस’।

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38. जहाँ चाह वहाँ राह = तीव्र इच्छा हो तो काम बन जाता है।
प्रयोग – अरे बलदेव, पैसों की परवाह न करो, दिल से मेहनत करो सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी, क्योंकि कहा है कि ‘जहाँ चाह वहाँ राह’।

39. जो गरजते हैं वे बरसते नहीं = डींग मारने वाले कुछ करते नहीं।
प्रयोग – अरे जाओ, बड़-बड़ न करो, मैंने बहुत देखे हैं तुम्हारे जैसे जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं।

40. झोंपड़ी में रहकर महलों से नाता जोड़ना = अपनी पहुंच से बाहर की इच्छा करना।
प्रयोग – आज मध्यम वर्गीय लोग झोंपड़ी में रहकर महलों से नाता जोड़ने की बात सोच रहे हैं अमीर वे हो नहीं सकते, ग़रीब वे कहाना नहीं चाहते।

41. थोथा चना बाजे घना = कम योग्यता वाला ज्यादा डींगें मारता है।
प्रयोग – मोहन है तो पाँचवीं पास, पर कहता है अपने को साहित्यकार। सच है ‘थोथा चना बाजे घना’।

42. दूर के ढोल सुहावने = बिन देखी वस्तु प्रिय लगती है।
प्रयोग – हमने मंसूरी के बारे में खूब सुन रखा था कि यह तो पहाड़ों की रानी है लेकिन जब उसे देखने गए तो ऐसा कुछ भी न दिखाई दिया जिससे हम भी कह सकें कि मंसूरी बहुत सुन्दर नगर है। सच है ‘दूर के ढोल सुहावने’ लगते हैं।

43. दूध का जला छाछ को फूंक-फूंक कर पीता है = एक बार धोखा खाने वाला हमेशा आशंकित रहता है।
प्रयोग – रामचन्द्र ने जब से लोहे में घाटा खाया, तब से होशियारी से काम करता है। सच है कि ‘दूध का जला छाछ को फूंक-फूंक कर पीता है’।

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44. दूध का दूध पानी का पानी = सच्चा न्याय।
प्रयोग – न्यायाधीश ने प्रवीण और गौतम के झगड़े में निर्णय देते हुए ‘दूध का दूध, पानी का पानी’ करके दिखला दिया।

45. धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का = अस्थिर चित्त का व्यक्ति कहीं का नहीं रहता।
प्रयोग – इधर तो तुमने व्यापार में भी घाटा खा लिया और उधर नौकरी भी गई। तुम्हारी तो वही हालत है, ‘धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।

46. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी = कारण को ही समाप्त कर देना।
प्रयोग – अभिमन्यु की वीरता देखकर दुर्योधन ने कहा कि इसे जान से मार डालो। ‘न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी’।

47. न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी = अपनी असमर्थता को छिपाने के लिए असम्भव शर्त लगाना।
प्रयोग – सुधा को गीत सुनाने को कहा गया तो वह कहने लगी-आर्केस्ट्रा, हारमोनियम, तबला बजाने वाले हों तो गा सकती हूँ। इस पर सबके मुँह से निकला ‘न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी’।

48. नाच न जाने आँगन टेढ़ा = कार्यविधि न जानने पर इधर-उधर के बहाने करना।
प्रयोग – तुलसीदास की चौपाइयों का अर्थ नन्दलाल को आता नहीं। कहने लगे यहाँ श्रोता ही बहुत कम हैं। वाह ! ‘नाच न जाने आँगन टेढ़ा’।

49. नौ नकद न तेरह उधार = ज्यादा उधार की बजाय थोड़ा नकद ही अच्छा है।
प्रयोग – लोभवश रमेश अधिक लाभ लेकर माल उधार बेचता है और लोग पैसे देते नहीं। इससे अच्छा है-नकद बेचो चाहे थोड़ा बेचो। सच है ‘नौ नकद न तेरह उधार’।

50. पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती = सब लोग एक जैसे नहीं होते।
प्रयोग – राम ने तो गंगू तेली की लड़की की शादी के लिए उसे तीन हजार रुपए दिए, लेकिन उसके भाई ने श्याम का मकान कुर्क करा लिया । तभी तो कहा है कि ‘पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं’।

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51. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद = कदर करने की योग्यता न होना।
प्रयोग – जब मैंने कलावती को खाने के लिए काजू दिए तो उसने फीके हैं कहकर फेंक दिए। सच है, ‘बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद’।

52. भैंस के आगे बीन बजाना = मूर्ख को ज्ञानोपदेश देना।
प्रयोग – कवि सम्मेलन में कविताओं का स्तर बहुत अच्छा था मगर श्रोताओं में आधे व्यक्ति तो अनपढ़ ही थे, तो मुझे लगा कि यहाँ पर तो ‘भैंस के आगे बीन बजाना’ है।

53. मान न मान मैं तेरा मेहमान = जबरदस्ती मेहमान बनना।
प्रयोग – मेरा मित्र महीने भर से मेरे घर ठहरा हुआ है जाने का नाम ही नहीं लेता। इसे कहते हैं मान न मान मैं तेरा मेहमान।

54. मन चंगा तो कठौती में गंगा = यदि मन शुद्ध है, तो तीर्थ घर में ही है।
प्रयोग – पिता जी ने भीम से कहा कि बेटा मन्दिर में जाकर आडम्बर करने से तो अच्छा है कि घर में ही पूजा कर लो और माँ-बाप का आदर करो। जानते हो कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’।

55. मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त = खुद तो कुछ भी न करना और साथियों से अधिक मदद मिलना।
प्रयोग – रवीन्द्र ने स्वयं तो आवेदन-पत्र तक नहीं भरा था कि चाचा जी उसकी नौकरी के लिए मुख्याध्यापक महोदय से मिल आए। वहीं बात सुनी हुई कि ‘मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त’।

56. रस्सी जल गई पर बल न गया = दुर्दशा होने पर भी घमण्डी रहना।
प्रयोग – कत्ल के आरोप में नन्द किशोर की नौकरी तो छूट गई, पर अब भी घर वालों पर पैसे लेने के लिए रौब डालता है। सच है कि ‘रस्सी तो जल गई, पर बल नहीं गया।

57. सहज पके सो मीठा होय = धीरे-धीरे किया जाने वाला काम दृढ़ तथा फलदायक होता है।
प्रयोग – अरे महेश ! परीक्षा की शुरू से ही तैयारी करोगे, तब ही प्रथम स्थान प्राप्त कर सकोगे क्योंकि ‘सहज पके सो मीठा होय’।

58. साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे = काम भी हो जाए और हानि भी न हो।
प्रयोग – पिता जी ने दिनेश से कहा कि बेटा, उससे झगड़ा करना ठीक नहीं। कुछ ऐसी तरकीब सोचो कि ‘साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे’।

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59. सावन हरे न भादों सूखे = सदा एक-सी अवस्था में रहना।।
प्रयोग – सुरेश निर्धन होने के कारण पाई-पाई के लिए मरता था। लेकिन अब जबकि उसका व्यापार चमक उठा है, अब भी उसकी पाई-पाई के लिए मरने की आदत नहीं गई। उसकी तो ‘सावन हरे न भादों, सूखे’ वाली बात है।

60. सौ सुनार की एक लोहार की = कमज़ोर की सौ चोटों से बलवान की एक चोट ही करारी होती है।
प्रयोग – प्रतिदिन तंग किये जाने पर प्रमोद ने बलदेव से कहा-ध्यान से सुन लो किसी दिन इतना पीढूँगा कि नानी याद आ जाएगी। तुम शायद जानते नहीं कि “सौ सुनार की, एक लोहार की” होती है।

61. होनहार बिरवान के होत चीकने पात = योग्य व्यक्ति की योग्यता का बचपन में ही पता चल जाता है।
प्रयोग – भारत केसरी विजय का बचपन से ही कुश्ती में इतना लगाव था कि गुरु गिरधारी ने कह दिया था कि यह कभी भारत का सर्वश्रेष्ठ पहलवान होगा, क्योंकि ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’।

62. हाथी के दाँत, खाने के और दिखाने के और = कपटी व्यक्ति।
प्रयोग – आजकल के नेताओं की कथनी और करनी में दिन-रात का अन्तर होता है, क्योंकि वे तो ‘हाथी के दाँत, खाने के और दिखाने के और’ की लोकोक्ति को चरितार्थ करते हैं।

63. हाथ कंगन को आरसी क्या = प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता है
प्रयोग – कठोर परिश्रम सफलता की गारंटी है आज से ही परिश्रम करना शुरू करें और परिणाम स्वयं देख लें- हाथ कंगन को आरसी क्या’।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran मुहावरे

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Muhavare  मुहावरे Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar मुहावरे

मुहावरे :
जब कोई वाक्य या वाक्यांश अपने साधारण अर्थ को छोड़कर विलक्षण अर्थ प्रकट करे, उसे मुहावरा या वाग्धारा कहा जाता है।
वाक्य प्रयोग सहित मुहावरे

1. अपनी खिचड़ी अलग पकाना = सबसे अलग रहना,
प्रयोग – सबके साथ मिलकर रहना चाहिए, अपनी खिचड़ी अलग पकाने से कोई लाभ नहीं होता।

2. अन्धे की लकड़ी = एकमात्र सहारा,
प्रयोग – राकेश ही बुढ़ापे में मुझ अन्धे की लकड़ी है।

3. अन्धेरे घर का उजाला = इकलौता बेटा,
प्रयोग – रमन अन्धेरे घर का उजाला है, उसका ध्यान रखो।

4. अंग-अंग ढीला होना = थक जाना,
प्रयोग – दिन भर के परिश्रम से मजदूरों का अंग-अंग ढीला हो जाता है।

5. अन्तिम दीपक बुझना = आखिरी सहारा भी खत्म होना,
प्रयोग – पहले बड़े पुत्र की मौत हो गई और अब छोटे की, लाला राम नाथ का अन्तिम दीपक भी बुझ गया।

6. अँगूठा दिखाना = इन्कार कर देना,
प्रयोग – नेता लोग चुनाव के दिनों में बीसों वायदे करते हैं, परन्तु बाद में अँगूठा दिखा देते हैं।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran मुहावरे

7. अंगुली उठाना = दोष लगाना, निन्दा करना,
प्रयोग – कर्त्तव्यपरायण व्यक्ति पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता।

8. अंगारे उगलना = क्रोध में जली-कटी बातें कहना,
प्रयोग – रावण को जब अंगद ने खरी-खरी सुनाई तो वह भरी सभा में अंगारे उगलने लगा।

9. अपना उल्लू सीधा करना = स्वार्थ निकालना,
प्रयोग-आज हर कोई अपना उल्लू सीधा करना चाहता है।

10. अगर-मगर करना = टाल मटोल करना,
प्रयोग-कभी भी अगर-मगर नहीं करना चाहिए सदैव हाँ या नहीं में उत्तर देना ही उचित है।

11. अपना खून देना = कुर्बानी करना,
प्रयोग – आजादी के लिए अनेक देशभक्तों ने अपना खून दिया था।

12. आँख उठाना-बुरी नज़र से देखना,
प्रयोग – पाकिस्तान की क्या हिम्मत जो भारत की ओर आँख उठा सके।

13. आँख मूंदना = मर जाना,
प्रयोग – लम्बी बीमारी के बाद बिन्दा ने सदा के लिए आँख मूंद ली।

14. आँखें बिछाना = प्रेम से स्वागत करना,
प्रयोग – प्रधानमन्त्री के आगमन पर नगरवासियों ने आँखें बिछा दीं।

15. आँखें मलना = जागना,
प्रयोग – पिता के उठाने पर मनोहर आँखें मलता हुआ बाहर आया तो दिन चढ़ चुका था।

16. आकाश से बातें करना = बहुत ऊँचे होना,
प्रयोग – राजधानी दिल्ली के कई भवन आकाश से बातें करते दिखाई देते हैं।

17. आड़े हाथों लेना = खरी-खरी सुनाना,
प्रयोग – सोहन के लगातार बोलने पर मैंने उसे आड़े हाथों लिया।

18. आग बबूला होना = बहुत कुद्ध होना,
प्रयोग – अंगद की खरी-खोटी सुनकर रावण आग-बबूला हो गया।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran मुहावरे

19. आँखों का तारा = बहुत प्यारा,
प्रयोग – सुनील तो अपनी माता-पिता की आँखों का तारा है।

20. आकाश-पाताल एक करना = बहुत प्रयत्न करना,
प्रयोग – चोर ने बचने के लिए आकाश-पाताल एक कर दिया लेकिन उसकी एक न चली।

21. आँखों में खून उतरना = बहुत गुस्सा आना-नौकर को अपने साथ जुबान लड़ाते देख सेठ जी की आँखों में खून उतर आया।

22. आग भड़क उठना = फैल जाना,
प्रयोग – छोटी-सी बात पर मुरादाबाद में साम्प्रदायिक दंगों की आग भड़क उठी।

23. आगे-पीछे घूमना = चापलूसी करना,
प्रयोग – आजकल बहुत से नेता मन्त्रियों के आगे-पीछे घूमते हैं।

24. आँखों में धूल झोंकना = धोखा देना,
प्रयोग – ठग राम की आँखों में धूल झोंक कर पाँच सौ रुपए ले गया।

25. आँखों में रात काटना = चिन्ता के कारण सो न सकना,
प्रयोग – कब तक आँखों में रात काटोगे ? यह मत भूलो कि हर रात के बाद सवेरा होता है।

26. आँखें भर आना = आँसू निकलना,
प्रयोग – भिखारी की दर्द भरी कहानी सुनकर मेरी आँखें भर आईं।

27. आँखें फेर लेना = बदल जाना, प्रतिकूल होना,
प्रयोग – अक्सर काम निकल जाने पर लोग आँखें फेर लेते हैं।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran मुहावरे

28. आँखों में चर्बी छा जाना = बहुत घमण्ड होना,
प्रयोग – लाटरी निकलने पर हर किसी की आँखों में चर्बी छा जाती है।

29. आँधी की भाँति बढ़ना = बड़ी तेजी से आगे जाना,
प्रयोग – स्यालकोट क्षेत्र में भारतीय सेना, आँधी की भाँति आगे बढ़ गई थी।

30. इधर-उधर की हाँकना = व्यर्थ की गप्पें मारना,
प्रयोग – राम सदैव इधर-उधर की हाँकता रहता है।

31. ईद का चाँद होना = बहत दिनों के बाद दिखाई देना,
प्रयोग – अरे सुरेश ! तुम तो ईद के चाँद हो गए हो, कहाँ रहते हो ?

32. उत्साह मन्द पड़ जाना = हौसला ठण्डा पड़ना,
प्रयोग – परीक्षा में एक बार असफल रहने पर दिनेश का उत्साह मन्द पड़ गया।

33. उल्टी गंगा बहाना = उल्टी बातें करना,
प्रयोग – आजकल माता-पिता बच्चों से डरने लगे हैं, अब उल्टी गंगा बह रही है।

34. उड़ती चिड़िया पहचानना-चालाक होना, दूर की बात जान लेना,
प्रयोग – मोहन ने धूप में बाल सफ़ेद नहीं किए, वह उड़ती चिड़िया पहचानता है।

35. उन्नीस-बीस का अन्तर = बहुत कम अन्तर,
प्रयोग – मोहन तथा सोहन के कद में उन्नीस-बीस का अन्तर है।

36. एक न चलना = कोई युक्ति सफल न होना,
प्रयोग – रावण की श्री रामचन्द्र के आगे युद्ध में एक न चली।

37. एक आँख से देखना = बराबर का बर्ताव,
प्रयोग – माता-पिता अपने सभी बच्चों को एक आँख से देखते हैं।

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38. एड़ी चोटी का जोर लगाना = पूरा जोर लगाना।
प्रयोग – औरंगज़ेब ने शिवाजी को पकड़ने के लिए एडी चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन सफल न हो सका।

39. कमर कसना = तैयार होना,
प्रयोग – आज देश की ग़रीबी दूर करने के लिए सबको कमर कसनी चाहिए।

40. काम आना = युद्ध में मारा जाना,
प्रयोग – कारगिल के युद्ध में अनेक भारतीय वीर काम आए।

41.कान में तेल डालना = किसी बात को न सुनना,
प्रयोग – अरे राकेश, क्या तूने कान में तेल डाल रखा है, जो इतना ऊँचा बोलने पर भी नहीं सुनता।

42. कोलाहल मचाना = बहुत शोर करना,
प्रयोग – स्कूल में छुट्टी होते ही बच्चे कोलाहल मचाने लगते हैं।

43. नकोरा जवाब देना = साफ़ इन्कार करना,
प्रयोग – जब मैंने सोहन से साइकिल माँगी तो उसने मुझे कोरा जवाब दे दिया।

44. कसौटी पर कसना = बहुत परखना,
प्रयोग – मैं पहले व्यक्ति को कसौटी पर कस लेने के पश्चात् ही मित्र बनाता

45. कुत्ते की मौत मरना = बुरी हालत में मरना,
प्रयोग – बुरे कार्यों में लिप्त रहने वाले सदैव कुत्ते की मौत मरते हैं।

46. कोल्हू का बैल – रात-दिन काम करने वाला,
प्रयोग – कोल्हू का बैल बनने पर भी आजकल निर्वाह कठिनता से होता है।

47. खून खौलना = बहुत क्रोधित होना,
प्रयोग – भरी सभा में द्रौपदी का अपमान होते देखकर भीम का खून खौलने लगा।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran मुहावरे

48. खून का प्यासा = कट्टर शत्रु,
प्रयोग – आज भाई-भाई के खून का प्यासा बन गया है।

49. खून का घूट पीना = क्रोध को दिल में दबाए रखना,
प्रयोग – हरगोपाल की पुत्रवधू उसकी गालियाँ सुनकर खून का चूंट पीये रहती है।

50. खून की नदियाँ बहाना = बहुत मार काट करना,
प्रयोग – सरहिन्द में बन्दा बहादुर ने खून की नदियाँ बहा दीं।

51. खून पसीना एक करना = बहुत परिश्रम करना,
प्रयोग – इस महँगाई के ज़माने में खून पसीना एक करना पड़ता है, तब कहीं जाकर निर्वाह होता है।

52. खाला जी का घर = आसान काम,
प्रयोग – दसवीं श्रेणी उत्तीर्ण करना खाला जी का घर नहीं है।

53. खरी-खरी सुनाना = सच्ची बात कहना,
प्रयोग – अंगद ने रावण को खरी-खरी सुनाई तो वह अंगारे उगलने लगा।

54. खेल बिगाड़ना = बने काम को खराब करना,
प्रयोग – अनिल तुमने बीच में पकड़कर हमारा सारा खेल बिगाड़ दिया। वह अभी मेरे साथ चलने वाला था।

55. खाक छानना = मारे-मारे फिरना,
प्रयोग – बचपन में राम पढ़ा नहीं, अब खाक छानता फिरता है।

56. गुदड़ी का लाल = बहुत प्यारा
प्रयोग-सचमुच सुनील गुदड़ी का लाल है। निर्धनता की अवस्था में भी
परीक्षा में जिले भर में प्रथम आया है।

57. गले लगाना = बहुत प्यार करना, आलिंगन करना,
प्रयोग – बुढ़िया ने देर से बिछुड़े पुत्र के मिलने पर उसे गले लगा लिया।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran मुहावरे

58. गले का हार = बहुत प्रिय,
प्रयोग – रीता इकलौती बेटी होने के कारण अपने माता-पिता के गले का हार है।

59. गागर में सागर भरना-संक्षेप में बहुत कुछ कह देना,
प्रयोग – रीतिकालीन कवि बिहारी जी ने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया है।

60. घर में गंगा = सहज प्राप्ति,
प्रयोग – अरे सुरेश ! तुम्हें पढ़ाई की क्या चिन्ता ? तुम्हारा भाई अध्यापक है, तुम्हारे घर में गंगा बहती है।

61. घुटने टेकना = आत्म-समर्पण करना,
प्रयोग – सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध में पकिस्तान की सेना ने शीघ्र ही भारतीय सेना के आगे घुटने टेक दिए थे।

62. घाव पर नमक छिड़कना = दुःखी को और दुखाना,
प्रयोग – उसने मुझसे ऐसी बातें कह-कह कर मेरे दुःख को कम नहीं किया बल्कि मेरे घावों पर नमक छिड़क दिया है।

63. घी के दीये जलाना = खुशी मनाना,
प्रयोग – जब अयोध्या में श्री रामचन्द्र वापस पहुँचे तो लोगों ने घी के दीये
जलाए।

64. घाट-घाट का पानी पीना = अनुभवी होना,
प्रयोग – अनिल को कोई धोखा नहीं दे सकता क्योंकि उसने तो घाट-घाट का पानी पीया है।

65. चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना = भयभीत होना,
प्रयोग-पुलिस को पहुँचा देखकर चोर के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ गईं।

66. चकमा देना = धोखा देना,
प्रयोग – डाकू पुलिस को चकमा देकर चम्पत हो गए।

67. चलती गाड़ी में रोड़ा अटकाना = बनते काम में रुकावट डालना,
प्रयोग – आजकल चलती गाड़ी में रोड़ा अटकाने वाले बहुत हैं।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran मुहावरे

68. चल बसना = मर जाना,
प्रयोग – श्याम के पिता दो वर्ष की लम्बी बीमारी के बाद चल बसे।

69. चार चाँद लगना = मान बढ़ना,
प्रयोग – नवनीत ने आठवीं की परीक्षा में सर्वप्रथम आकर अपने कुल को चार चाँद लगा दिए।

70. चाँदी होना-बहुत लाभ होना,
प्रयोग – जब से तुमने व्यापार आरम्भ किया है, तुम्हारी तो चाँदी हो गई है।

71. चाल में आना = धोखे में फँसना,
प्रयोग – तुम्हें राम की चाल में नहीं आना चाहिए, वह ठग है।

72. चम्पत होना = खिसक जाना,
प्रयोग – सिपाही का जैसे ही ध्यान दूसरी तरफ हुआ कि चोर चम्पत हो गया।

73. चादर से बाहर पैर पसारना = आमदनी से बढ़ कर खर्चा करना,
प्रयोग – चादर से बाहर पैर पसारने वाले लोग अन्त में पछताते हैं।

74. चीत्कार कर उठना = ज़ोर से चीखना,
प्रयोग – कलिंग के युद्ध में भीषण मार-काट देखकर महाराजा अशोक चीत्कार कर उठा।

75. चुल्लू भर पानी में डूब मरना = बहुत लज्जित होना,
प्रयोग – अरे अनिल ! इस छोटे से पिट गए , चुल्लू भर पानी में डूब मरो।

76. छाती पर पत्थर रखना = चुपचाप दुःख सहना,
प्रयोग – शीला जिस दिन से अपने ससुराल आई थी, उसी दिन से उसने अपनी छाती पर पत्थर रख लिया था।

77. छक्के छूटना = हिम्मत हारना, घबरा जाना,
प्रयोग – महात्मा गाँधी के आन्दोलनों के समय अंग्रेजों के छक्के छूट गए।

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78. छक्के छुड़ाना = बुरी तरह हराना,
प्रयोग – सन् 1971 के युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना के छक्के छुड़ा दिए।

79. छठी का दूध याद आना = भारी संकट पड़ना, कठिनाई अनुभव होना,
प्रयोग – श्री रामचन्द्र ने तीक्ष्ण बाणों के प्रहार से रावण को छठी का दूध याद दिला दिया।

80. जंगल में मंगल होना = निर्जन स्थान में रौनक होना,
प्रयोग – जब से विद्यार्थियों की टोली ने इस स्थान पर अपना कैम्प लगाया है, तब से यहाँ जंगल में मंगल हो गया है।

81. जूतियाँ चाटना = खुशामद करना,
प्रयोग – मोहन दूसरों की जूतियाँ चाटकर अपना काम निकालने में निपुण है।

82. जूं तक न रेंगना = कुछ प्रभाव न होना,
प्रयोग – मैंने मोहन को कई बार चोरी करने से मना किया, लेकिन उस पर जूं तक न रेंगी।

83. जान हथेली पर रखना = मरने की बिल्कुल परवाह न करना,
प्रयोग – रणक्षेत्र में भारत के वीर सदा जान हथेली पर रख कर लड़ते हैं।

84. जलती आग में घी डालना = क्रोध को अथवा लड़ाई को बढ़ाना,
प्रयोग – अनि पहले से ही सोहन से नाराज़ था ऊपर से कमल ने सोहन के विरुद्ध भड़का कर जलती आग में घी डाल दिया।

85. ज़हर का पूंट पीना = क्रोध को दबाना,
प्रयोग – देवर की बातें सुन कर शीला को क्रोध तो बहुत आया लेकिन वह ज़हर का चूंट पीकर रह गई।

86. जादू का सा प्रभाव पड़ना-अच्छा प्रभाव पड़ना,
प्रयोग- महात्मा जी की बातों का श्रद्धालुओं पर जादू का सा प्रभाव पड़ा।

87. जान पर खेलना = खुशी से जान देना, प्राणों की परवाह न करना,
प्रयोग-भगत सिंह जैसे देशभक्त भारत की स्वतन्त्रता के लिए जान पर खेल गए।

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88. जिगर का टुकड़ा = बहुत प्यारा,
प्रयोग – इकलौता बेटा अपने माँ-बाप के जिगर का टुकड़ा होता है।

89. जी चुराना = परिश्रम से भागना,
प्रयोग – अच्छे विद्यार्थी कभी भी पढ़ाई से जी नहीं चुराते।

90. टाँग अड़ाना = व्यर्थ दखल देना, रुकावट डालना,
प्रयोग – अरे प्रमोद ! अगर तुम सुरेश की सहायता नहीं कर सकते तो उसके काम में टाँग क्यों अड़ाते हो ?

91. टका-सा जवाब देना = साफ इन्कार कर देना,
प्रयोग – मैंने जब सुनील से 20 रुपए उधार माँगे तो उसने मुझे टका-सा जवाब दे दिया।

92. टेढ़ी खीर = कठिन कार्य,
प्रयोग – आजकल शिक्षित के लिए भी सरकारी नौकरी ढूँढ़ना टेढ़ी खीर है।

93. टक्कर लेना = मुकाबला करना,
प्रयोग – महाराणा प्रताप ने मुग़लों से टक्कर ली।

94. टस से मस न होना = ज़रा भी प्रभाव न होना, बात पर डटे रहना,
प्रयोग – बहुत समझाने पर भी जब वह टस से मस न हुआ तो मैंने उससे बोलना बन्द कर दिया।

95. ठोकरें खाना = धक्के खाना,
प्रयोग – प्रमोद पहले बचपन में पढ़ा नहीं और अब ठोकरें खाता फिरता है।

96. ठिकाने लगाना = मार देना, नाश कर देना,
प्रयोग-शिवाजी ने कितने ही मुग़लों को ठिकाने लगा दिया।

97. ठन-ठन गोपाल = जेब खाली होना,
प्रयोग – तुझे पैसे कहाँ से दूँ आज तो मैं भी ठन-ठन गोपाल हूँ।

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98. डींग मारना = शेखी मारना,
प्रयोग – राकेश डींगें मारता है लेकिन वैसे पाई-पाई के लिए मरता है।

99. डंका बजना = प्रभाव होना, अधिकार होना, विजय पाना,
प्रयोग – आज विश्व भर में रूस की शक्ति का डंका बज रहा है।

100. डूबते को तिनके का सहारा = संकट में थोड़ी-सी सहायता मिलना,
प्रयोग – इस मुसीबत में तुम्हारे दस रुपए ही मेरे लिए डूबते को तिनके का सहारा सिद्ध होंगे।

101. ढाढस बंधाना = हौसला देना,
प्रयोग – शाम के पिता की मृत्यु पर सभी उसे ढाढस बंधाने लगे।

102. तलवे चाटना = चापलूसी करना,
प्रयोग – मुनीश दूसरों के तलवे चाट कर काम निकालने में बड़ा चुस्त है।

103. ताक में रहना = अवसर देखते रहना,
प्रयोग – डाकू सदैव डाका मारने की ताक में रहते हैं।

104. तिल का ताड़ बनाना = बात बढ़ाना,
प्रयोग – क्यों तिल का ताड़ बनाते हो ? इतनी छोटी-सी लड़ाई पर मुख्याध्यापक के पास जाकर शिकायत करना ठीक नहीं है।

105. तिल धरने की जगह न होना = बहुत अधिक भीड़ होना,
प्रयोग – वार्षिक परीक्षा के नतीजे के दिन पाठशाला में इतनी भीड़ थी कि तिल धरने की जगह न थी।

106. तिलाञ्जलि देना = त्याग देना, छोड़ना,
प्रयोग – तुम्हें मोहन जैसे स्वार्थी तथा शरारती मित्र को दूर से ही तिलाञ्जलि दे देनी चाहिए।

107. तूती बोलना = प्रभाव होना, बात का माना जाना,
प्रयोग – आजकल धनी व्यक्ति की प्रत्येक स्थान पर तूती बोलती है।

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108. थाह लेना = पता लगाना, रहस्य पाना,
प्रयोग – किसी के दिल की थाह लेना बहुत कठिन काम है।

109. दम घुटने लगना = श्वास लेने में कठिनाई होना,
प्रयोग – आजकल यात्रा के समय इतनी भीड़ का सामना करना पड़ता है कि कई बार दम घुटने लगता है।

110. दंग रह जाना = हैरान रह जाना,
प्रयोग – अनिल के द्वारा चोरी किए जाने का समाचार सुनकर सभी दंग रह गए।

111. दिन में तारे नज़र आना = कोई अनहोनी घटना होने से घबरा जाना,
प्रयोग – जंगल में शेर को अपनी ओर लपकते देखकर प्रमोद को दिन में तारे नज़र आ गए।

112. दिन फिरना = अच्छे दिन आना,
प्रयोग – मित्रवर ! निर्धनता में इतना घबराओ नहीं, दिन फिरते देर नहीं लगती।

113. दाँत खट्टे करना = हराना,
प्रयोग – महाराणा प्रताप ने युद्ध में कई बार मुग़लों के दाँत खट्टे किए।

114. दिन दुगुनी रात चौगुनी = अत्यधिक,
प्रयोग – भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में भारत ने दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति की।

115. दाल न गलना = वश न चलना,
प्रयोग – सुधीर ने अनिल तथा सुनील की मित्रता तो तोड़ने के लिए उनको लड़ाने का बहुत प्रयास किया लेकिन उसकी दाल न गली।

116. दांतों तले उंगली दबाना = आश्चर्य प्रकट करना,
प्रयोग – ताजमहल की सुन्दरता देखकर विदेशी दांतों तले उंगली दबा लेते

117. दौड़ धूप करना = खूब परिश्रम करना,
प्रयोग – बहुत दौड़-धूप की, तब कहीं छोटी-सी नौकरी मिल सकी।

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118. दिल बाग-बाग होना = प्रसन्न होना,
प्रयोग – परीक्षा में प्रथम श्रेणी पाने पर मेरा दिल बाग-बाग हो गया।

119. धाक जमाना = रौब या प्रभाव पैदा करना,
प्रयोग – सिकन्दर की वीरता की धाक शीघ्र ही सारे संसार में जम गई।

120. धावा बोलना = हमला करना, .
प्रयोग – शिवाजी की सेना ने एकदम मुग़लों पर धावा बोल दिया।

121. धज्जियाँ उड़ाना = पूरी तरह खंडन करना,
प्रयोग – महात्मा गाँधी ने अंग्रेज़ों के अत्याचारों की धज्जियाँ उड़ा दीं।

122. धूप में बाल सफ़ेद न करना = अनुभवी होना,
प्रयोग – इस विषय में मेरी भी राय लेनी चाहिए थी; मैंने भी दुनिया देखी है, धूप में बाल सफ़ेद नहीं किये।

123. नाक में दम करना = बहुत तंग करना,
प्रयोग – वर्षा ने नाक में दम कर दिया है, कहीं जाना भी कठिन हो गया है।

124. नाक कट जाना = बदनामी होना, मान नष्ट होना,
प्रयोग – बेटे के कुकर्मों ने पिता की नाक कटवा दी। अथवा यदि तुम इस उत्सव में शामिल न हुए तो मेरी नाक कट जाएगी।

125. नाम कमाना = प्रसिद्ध होना,
प्रयोग – घर बैठे-बैठे नाम नहीं कमाया जा सकता।

126. नमक-मिर्च लगाना = छोटी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहना,
प्रयोग – हरीश के स्कूल से भागने पर सुरेश ने मुख्याध्यापक के सम्मुख खूब नमक मिर्च लगाकर उसकी शिकायत की।

127. नाकों चने चबाना = खूब तंग करना, भारी कष्ट पहुँचाना,
प्रयोग – सुभाष चन्द्र बोस जैसे वीरों ने अंग्रेज़ी सेना से टक्कर लेकर उनको नाकों चने चबा दिए थे।

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128. नाक भौं सिकोड़ना = घृणा करना,
प्रयोग – युवतियों को आधुनिक ढंग के कपड़े पहने देख बुजुर्ग नाक भौं सिकोड़ते हैं।

129. नौ दो ग्यारह होना = भाग जाना,
प्रयोग – सिपाही को देखते ही चोर नौ दो ग्यारह हो गया।

130. नीचा दिखाना = हराना, घमंड तोड़ना,
प्रयोग – पाकिस्तान सदैव भारत को नीचा दिखाने की ताक में रहता है।

131. प्राण पखेरू उड़ना = मृत्यु होना,
प्रयोग – मोटर के नीचे आकर लड़के के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।

132. पासा पलटना = उलटफेर होना,
प्रयोग – राम ने यह चाल सोच समझकर चली थी, परन्तु पासा पलट गया।

133. पैरों में पर लगना = बहुत तेज़ भागना,
प्रयोग – अपने चाचा के अमेरिका से आने का समाचार पाकर वह उनसे मिलने ऐसे दौड़ा जैसे उसके पैरों में पंख लग गए हों।

134. पैरों पर गिरना = क्षमा माँगना,
प्रयोग – सेठ का क्रोध बढ़ता देखकर नौकर उसके पैरों पर गिर पड़ा।

135. पानी में आग लगाना = क्रोध दिलवाना,
प्रयोग – अपने बॉस से राजेश की शिकायत करके मोहन ने तो पानी में आग लगाने का काम किया।

136. पेट में चूहे कूदना = बड़े ज़ोरों की भूख लगना,
प्रयोग – जल्दी से खाना दे दो भई, पेट में तो चूहे कूद रहे हैं।

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137. पाँचों उंगलियाँ घी में होना = खूब फायदे में होना,
प्रयोग – भाई रमेश ! आजकल तो तुम्हारा व्यापार खूब चल रहा है, तुम्हारी तो पाँचों उंगलियाँ घी में हैं।

138. पानी-पानी होना = बहुत लज्जित होना,
प्रयोग – मेरे द्वारा सच्ची बात कहने पर राकेश पानी-पानी हो गया।

139. पानी फेरना = मेहनत बरबाद कर देना,
प्रयोग – बड़ी मेहनत से लेख लिखा था, मधु ने स्याही गिराकर उस पर पानी फेर दिया।

140. पीठ पर हाथ होना = पूरा सहायक होना,
प्रयोग – मोहन से झगड़ा मोल न लो, उसकी पीठ पर एक मन्त्री का हाथ

141. पीठ दिखाना = युद्ध से भाग जाना,
प्रयोग – युद्ध में पीठ दिखाना कायरों का काम है, वीरों का नहीं।

142. पट्टी पढ़ाना = बुरी सलाह देना,
प्रयोग – शीला ने अपने पति को ऐसी पट्टी पढ़ाई है कि वह अपने माता पिता की एक नहीं सुनता।

143. पलकें बिछाना = प्रेम से स्वागत करना,
प्रयोग – प्रधानमन्त्री के आगमन पर नगरवासियों ने पलकें बिछा दीं।

144. पसीना छूटना = घबरा जाना,
प्रयोग – कठिन प्रश्न-पत्र देखकर परीक्षार्थियों के पसीने छूट गए।

145. पगड़ी उछालना = अपमान करना,
प्रयोग – बड़ों की पगड़ी उछालना सज्जन पुरुषों को शोभा नहीं देता।

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146. पाँव की जूती = गुलाम, तुच्छ वस्तु,
प्रयोग – नारी को पाँव की जूती समझना बड़ी मूर्खता है।

147. पत्थर की लकीर = अटल बात,
प्रयोग – श्री जयप्रकाश नारायण का कथन पत्थर की लकीर सिद्ध हुआ था।

148. पापड़ बेलना = कई तरह के काम करना,
प्रयोग-कमल कान्त ने कई पापड़ बेले हैं लेकिन टिक कर कहीं भी काम नहीं किया।

149. प्राणों के लाले पड़ना = जान जोखिम में होना,
प्रयोग – दुर्घटनाग्रस्त बस के सभी यात्रियों को अपने-अपने प्राणों के लाले पड़े थे।

150. प्राणों पर खेल जाना = बलिदान देना,
प्रयोग – देश को स्वतन्त्र कराने के लिए सैंकड़ों देश-भक्त प्राणों पर खेल गए।

151. फूला न समाना = बहुत प्रसन्न होना,
प्रयोग- श्री रामचन्द्र जी के अयोध्या लौटने पर उनका छोटा भाई भरत फूला न समाया।

152. बाट जोहना = प्रतीक्षा करना,
प्रयोग – अरे मोहन । तुमने बहुत देर कर दी, मैं कब से तुम्हारी बाट जोह रहा

153. बात का धनी = वचन का पक्का ,
प्रयोग – सतीश बात का धनी है। वह अवश्य आपकी सहायता करेगा।

154. बन्दर घुड़की = प्रभावहीन धमकी,
प्रयोग-भगत सिंह जैसे वीर अंग्रेजों की बन्दर घुड़कियों से डरने वाले नहीं थे।

155. बहती गंगा में हाथ धोना = सुधरी हालत में लाभ उठाना,
प्रयोग – जनता पार्टी के राज में अनेक लोग बहती गंगा में हाथ धोकर मालामाल हो गए।

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156. बगुला भगत = कपटी,
प्रयोग – मोहन को अपनी कोई बात न बताना; वह धोखा देने वाला बगुला भगत है।

157. बांछे खिल जाना = बहुत खुश होना,
प्रयोग – अपने पास होने का समाचार सुनकर उसकी बांछे खिल गईं।

158. बाल की खाल निकालना = बहुत छानबीन करना, बहुत अधिक तर्क।
प्रयोग – विद्यार्थी को अपनी पढ़ाई में दत्तचित्त होना चाहिए। उसे बाल की खाल नहीं निकालनी चाहिए।

159. बाएँ हाथ का खेल = आसान काम,
प्रयोग – पी एच० डी० की उपाधि प्राप्त करना बाएँ हाथ का खेल नहीं है।

160. बाल बांका न करना = हानि न पहुँचाना,
प्रयोग – मेरे होते हुए कोई रमा का बाल बांका नहीं कर सकता।

161. बीड़ा उठाना-ज़िम्मेवारी लेना,
प्रयोग – श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने किसानों को ऊँचा उठाने का बीड़ा उठाया था।

162. बाल-बाल बच जाना = बड़ी कठिनाई से बचना,
प्रयोग – टक्कर तो बड़ी भयानक हुई थी पर रमेश बाल-बाल बच गया।

163 बैल के से दीदे निकालना = क्रोध से देखना,
प्रयोग – मालकिन ने नौकरानी से कहा, “अरी, बैल के से दीदे क्यों निकाल रही हो ? जाकर अपना काम करो।”

164. भंडा फोड़ना = भेद प्रकट करना, भेद खोलना,
प्रयोग – प्रवीण के वास्तविक बात न बतलाने पर राजेश ने उसका भंडा फोड़ दिया।

165. भूत सवार होना = धुन-सवार होना,
प्रयोग – उस कंजूस सेठ को तो धन कमाने का ही भूत सवार रहता है।

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166. भाड़े के टट्ट = किराये का आदमी,
प्रयोग – आजकल सच्चा देशभक्त मिलना कठिन है। सभी भाड़े के टट्ट हैं।

167. मात खाना = हारना,
प्रयोग – कारगिल के युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह मात खानी पड़ी।

168. मात देना = हरा देना,
प्रयोग – भारत ने अपने पड़ोसी देश को सभी क्षेत्रों में मात दी है।

169. मन में लड्डू फूटना = काल्पनिक आनन्द,
प्रयोग – भाई के विदेश से आने की खबर सुनकर सुधा के मन में लड्डू फूटने लगे।

170. माथा ठनकना = संदेह उत्पन्न होना,
प्रयोग – उसके घर पर ताला देख मेरा माथा ठनक गया।

171. मोती चुगना = अच्छी बात ग्रहण करना,
प्रयोग – सज्जनों की संगति से व्यक्ति मोती चुगना सीखता है।

172. मन मारना = इच्छा रोकना, मन को काबू में करना,
प्रयोग – सच्चा देशभक्त बनने के लिए मन मारना पड़ता है।

173. मिट्टी का माधो = निरा-मूर्ख,
प्रयोग – सभी विद्यार्थी रमेश को मिट्टी का माधो समझते थे लेकिन वह बहुत चालाक निकला।

174. मिट्टी खराब करना = बेइज्जत करना,
प्रयोग – अरे भाई साधारण-सी बात पर किसी की मिट्टी खराब करना अच्छा नहीं।

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175. मुँह की खानी = बुरी तरह हारना,
प्रयोग – सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी थी।

176. मैदान मारना = जीतना,
प्रयोग – भारतीय फ़ौज ने देखते ही देखते छम्ब क्षेत्र में मैदान मार लिया।

177. रंग लाना = प्रभाव दिखलाना,
प्रयोग – विद्यार्थी की मेहनत एक-न-एक दिन रंग अवश्य लाती है।

178. रंग जमना = प्रभाव पड़ना,
प्रयोग – मुकेश के गीतों ने महफिल में रंग जमा दिया।

179. रंग उड़ना = डर जाना, हैरान होना,
प्रयोग – रीछ को देखते ही दोनों का रंग उड़ गया।

180. रंगा सियार = धोखेबाज़,
प्रयोग – तुम्हें सतीश की बातों में नहीं आना चाहिए, वह तो निरा रंगा सियार है।

181. रंग में भंग पड़ना = मजा किरकिरा होना,
प्रयोग – जलसा शुरू ही हुआ था कि रंग में भंग पड़ गया।

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182. राई का पहाड़ बनाना = ज़रा-सी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर कहना,
प्रयोग – अपनी चालाकी से राई का पहाड़ बनाना तो कोई लीला से ही सीखे।

183. रोंगटे खड़े होना = रोमांच होना,
प्रयोग – सर्कस में शेर को दहाड़ता देख हमारे रोंगटे खड़े हो गए।

184. रफूचक्कर होना = भाग जाना,
प्रयोग – डाकू पुलिस को देखते ही रफूचक्कर हो गए।

185. लपेट में आना = वश में आना, घिर जाना,
प्रयोग – बेचारा निर्दोष राम चोरी की लपेट में आ गया।

186. लोहा लेना = मुकाबला करना,
प्रयोग – पाकिस्तानी सेना से लोहा लेने को हमारी सेना सदा तैयार रहती है।

187. लात पर लात रखना = बेकार बैठे रहना,
प्रयोग – इस कार्यालय में सब कर्मचारी लात पर लात रख कर बैठे रहते हैं।

188. लाल पीला होना = क्रुद्ध होना,
प्रयोग – अरे सुरेश ! क्यों लाल पीले हो रहे हो? कसूर तुम्हारा ही है।

189. लोहा लेना = युद्ध करना, मुकाबला करना,
प्रयोग – अधिकतर मुग़ल सम्राट राजपूतों से लोहा लेना नहीं चाहते थे।

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190. लोहा मानना = शक्ति मानना,
प्रयोग – सम्पूर्ण एशिया भारत का लोहा मानता है।

191. लेने के देने पड़ जाना = लाभ के बदले हानि होना,
प्रयोग – भारत पर आक्रमण करके पाकिस्तान को लेने के देने पड़ गए।

192. लोहे के चने चबाना = अति कठिन काम, कष्ट अनुभव करना,
प्रयोग – भारत पर आक्रमण करके चीन को लोहे के चने चबाने पड़े।

193. लहू पसीना एक करना = बहुत परिश्रम करना,
प्रयोग – आजकल अच्छी तरह जीवन निर्वाह करने के लिए लहू पसीना एक करना पड़ता है।

194. सोने पर सुहागा = दोहरी अच्छाई या गुण,
प्रयोग – रमेश की पत्नी सुन्दर भी है और पढ़ी-लिखी भी उसके लिए सोने पर सुहागा वाली उक्ति ठीक बैठती है।

195. सिर पर भूत सवार होना = अत्यधिक क्रोध में आ जाना,
प्रयोग – अरे सुनील राम के तो सिर पर भूत सवार है, तुम्हारी वह एक न मानेगा।

196. सिंहासन डोल जाना = राज्य जाने का खटका होना,
प्रयोग – महात्मा गाँधी के आन्दोलन से अंग्रेज़ों का सिंहासन डोल गया।

197. हवा लगना = बुरा प्रभाव पड़ना,
प्रयोग – अब तो सुधा को भी शहर की हवा लग गई है, उसने बाल तराश लिए हैं।

198. हवा से बातें करना = तेज़ भागना,
प्रयोग – शीघ्र ही हमारी गाड़ी हवा से बातें करने लगी।

199. हक्का बक्का रह जाना = हैरान रह जाना,
प्रयोग – संजय गाँधी की मौत का समाचार सुनकर सभी लोग हक्के बक्के रह गए।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran मुहावरे

200. हँसी-खेल नहीं = आसान काम नहीं,
प्रयोग – इस नदी को तैर कर पार करना कोई हँसी-खेल नहीं।

201. हवा हो जाना = भाग जाना,
प्रयोग – पहरेदार को अपनी तरफ आते देखकर चोर हवा हो गया।

202. हृदय पर साँप लोटना = ईर्ष्या में जलना,
प्रयोग – हरीश की लाटरी निकलने का समाचार सुनकर सुरेश के हृदय पर साँप लोटने लगा।

203. हृदय टूट जाना = हताश हो जाना,
प्रयोग – पुत्र की मृत्यु पर वृद्ध का हृदय टूट गया।

204. हाथों के तोते उड़ जाना = बुरा समाचार सुनकर डर जाना,
प्रयोग – कारखाने में आग लगने की खबर सुनकर सेठ हरिदत्त के हाथों के तोते उड़ गए।

205. हाथ तंग होना = पैसे का अभाव होना,
प्रयोग – हमारा आजकल हाथ बहुत तंग है, कृपया नकद रुपया दें।

206. हाथ मलना = पछताना,
प्रयोग – अब फेल होने पर हाथ मलने से क्या लाभ, पहले डटकर परिश्रम करते।

207. हाथ धो बैठना = खो देना, छिन जाना,
प्रयोग – पाकिस्तान युद्ध में कई युद्धपोतों तथा पनडुब्बियों से हाथ धो बैठा।

208. हाथ पैर मारना = प्रयत्न करना,
प्रयोग – आजकल बहुत हाथ पैर मारने पर भी कठिनता से निर्वाह होता है।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran मुहावरे

209. हाथ पसारना = माँगना,
प्रयोग – स्वाभिमान शून्य व्यक्ति हर किसी के सामने हाथ पसारने लगता है।

210. हथियार डालना = हार मान लेना,
प्रयोग – बंगलादेश में पाकिस्तानी सेना ने साधारण युद्ध के बाद हथियार डाल दिए।

211. आँख लगना = नींद आना,
प्रयोग – वह ज्यों ही बिस्तर पर लेटा उसकी आँख लग गई।

212. आँखों से ओझल होना = गायब होना,
प्रयोग – देखते ही देखते चोर पुलिस की आँखों से ओझल हो गया।

213. ईंट से ईंट बजाना = नष्ट करना,
प्रयोग – युद्ध में भारत ने दुश्मन की ईंट से ईंट बजायी।

214. साँस फूलना = हाँफना,
प्रयोग – इतनी सीढ़ियाँ चढ़कर मेरी साँस फूलने लगी।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran वाक्यांशों के लिए एक शब्द

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Vakyansh ke Lie Ek Shabd वाक्यांशों के लिए एक शब्द Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar वाक्यांशों के लिए एक शब्द

1. जो कभी जन्म न ले – अजन्मा, अज
2. जो कभी दिखाई न दे – अदृश्य
3. जो पढ़ा हुआ न हो – अनपढ़
4. जिसका भाग्य खराब हो – अभागा
5. जिसका आदि न हो – अनादि
6. जो धर्म को न माने – अधर्मी
7. अन्याय करने वाला – अन्यायी
8. जो कुछ भी न जानता हो – अज्ञानी , अगण्य
9. जो गिना जा सके – अगणित – अगम्य, अगम
10. जहाँ कोई जा न सके – अजातशत्रु

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran वाक्यांशों के लिए एक शब्द

11. जिसका कोई शत्रु पैदा न हुआ हो – अचूक
12. जिसका वार खाली न जाए, अवश्य फल दे – अमोघ
13. जो परीक्षा में पास न हो – अनुत्तीर्ण
14. कम जानने वाला – अल्पज्ञ
15. जो बिना वेतन के काम करे – अवैतनिक
16. जो दूर की न सोचे – अदूरदर्शी
17. जिसका अन्त न हो – अनन्त
18. जो कभी न मरे – अमर
19. जो कभी बूढ़ा न हो। – अजर
20. जिसको कोई जीत न सके – अजेय
21. जो खाने के योग्य न हो – अभक्ष्य
22. जिस पर विश्वास न किया जा सके – अविश्वसनीय
23. जो क्षमा के योग्य न हो – अक्षम्य
24. बिना सोच-समझे किया जाने वाला विश्वास – अन्धविश्वास

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran वाक्यांशों के लिए एक शब्द

25. जो कानून के प्रतिकूल हो – अवैध
26. जो अनुकरण करने के योग्य हो – अनुकरणीय
27. जिस पर मुकद्दमा चल रहा हो – अभियुक्त
28. जो पहले कभी न देखा गया हो – अदृष्टपूर्व
29. जिसके समान दूसरा कोई न हो – अद्वितीय
30. जिसका अंग भंग हो गया हो – अपाहिज
31. जो पहले कभी न हुआ हो – अभूतपूर्व
32. जो राज नियमों का विरोधी हो – अराजकतावादी
33. जो मनुष्य से न हो सके – अमानवीय
34. जो बात अवश्य होकर रहे – अनिवार्य, अवश्यम्भावी
35. जो मनुष्यता से दूर हो – अमानुषिक
36. जहाँ विशेष नियम लागू न हो – अपवाद
37. जो वध करने के योग्य न हो – अवध्य
38. जिसकी तुलना न की जा सके – अतुलनीय
39. जिसके माता-पिता मर चुके हों – अनाथ
40. जिसके निवास का किसी को पता न हो – अज्ञातवास
41. जिसका इलाज न हो सके – असाध्य
42. नजिसका कोई पार न हो – अपार
43. जिसकी थाह न पाई जा सके – अथाह
44. जो ईश्वर को मानता हो – आस्तिक
45. जो सारे जन्म तक हो – आजन्म

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran वाक्यांशों के लिए एक शब्द

46. जो अपने पर बीती हो – आपबीती
47. जिसने आशा का आश्रय लिया हो – आशावादी
48. आकाश से सुनाई देने वाली आवाज़ – आकाशवाणी
49. जो अपनी हत्या स्वयं करना चाहे – आत्मघाती
50. आज्ञा पालन करने वाला – आज्ञाकारी
51. जिसे दिखाई न दे – अन्धा
52. जो कभी न मिटे – अमिट
53. अत्याचार करने वाला – अत्याचारी
54. इच्छा होने पर मृत्यु होना – इच्छा मरण
55. इतिहास को जानने वाला – इतिहासज्ञ
56. ऊपर कहा गया – उपर्युक्त
57. जिसने ऋण चुका दिया हो – उऋण
58. इतिहास से सम्बन्ध रखने वाली – ऐतिहासिक
59. किसी के उपकार को मानने वाला – कृतज्ञ
60. जो बुरे रास्ते पर चलता हो – कुमार्गगामी

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran वाक्यांशों के लिए एक शब्द

61. जो काम करने से दिल चुराए – कामचोर
62. कुरु के वंश में उत्पन्न होने वाला – कौरव
63. जो किए हुए उपकार को भूल जाए – कृतघ्न
64. जो काम करने वाला हो – कर्मठ
65. उच्च वंश में उत्पन्न हुआ – कुलीन
66. आकाश में चलने वाला – खग
67. जो निरन्तर घूमता रहे – घुमक्कड़
68. दूसरों का उपचार करना – चिकित्सा
69. घोड़ा बाँधने का स्थान – अस्तबल
70. जिसकी चार भुजाएँ हों – चतुर्भुज
71. छात्रों की पढ़ाई के लिए मिलने वाला धन – छात्रवृत्ति
72. जिसके मुँह से आग निकलती हो – ज्वालामुखी
73. जल में रहने वाला या घूमने वाला – जलचर
74. तीन महीनों बाद आने वाली – त्रैमासिक

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran वाक्यांशों के लिए एक शब्द

75. जो काम करने में कठिन हो – दुष्कर
76. जो कठिनाई से समझा जाए – दुर्बोध
77. प्रतिज्ञा पूरी करने वाला – दृढ़-प्रतिज्ञ
78. जिसका आचरण गन्दा हो – दुराचारी
79. जहाँ कठिनता से पहुँचा जाए – दुर्गम
80. जिसमें दया हो – दयालु
81. जो दूर की बात सोचता हो – दूरदर्शी
82. जो प्रतिदिन होता हो – दैनिक
83. जो दर्शनों का अभिलाषी हो – दर्शनाभिलाषी
84. जो दूध के अतिरिक्त कुछ न पीता हो – दुग्धाहारी
85. पति और पत्नी का जोड़ा – दम्पत्ति
86. जो हर काम में देर करता हो – दीर्घसूत्री
87. जो कठिनाई से मिले – दुर्लभ
88. जानने की इच्छा रखने वाला – जिज्ञासु
89. जो दर्शन शास्त्र का ज्ञाता हो – दार्शनिक
90. जो सम्पत्ति दूसरे के पास रखी जाए – धरोहर

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran वाक्यांशों के लिए एक शब्द

91. धनुष चलाने की विद्या। – धनुर्विद्या
92. धर्म का उपदेश देने वाला – धर्मोपदेशक
93. जो मांस न खाता हो – (शाकाहारी) निरामिष
94. जिसे कोई रोग न हो – नीरोग
95. जिसका कोई आकार न हो – निराकार
96. जो बिना आश्रय के ठहरे – निराधार
97. जिसने अपराध न किया हो – निराधार
98. धन न होने का भाव – निर्धनता
99. विघ्नों से रहित – निर्विन
100. जिसके हाथ में कोई शस्त्र न हो – निःशस्त्र
101. जो ईश्वर में विश्वास न करता हो – नास्तिक
102. नीति को जानने वाला – नीतिज्ञ
103. जो दूसरों की निन्दा करता है – निन्दक
104. जिसको कोई चिन्ता न हो – निश्चिन्त
105. जिसमें दया न हो – निर्दय

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran वाक्यांशों के लिए एक शब्द

106. जिसमें कोई रस न हो – नीरस
107. जो किसी बात की लज्जा न करता हो – निर्लज्ज
108. जो नगर में रहे – नगरीय
109. जो (स्त्री) पति भक्त हो – पतिव्रता
110. जो दूसरों की प्रशंसा करता है – प्रशंसक
111. जो आँखों के सामने हो – प्रत्यक्ष
112. जो आँखों के पीछे हो – परोक्ष
113. जो पन्द्रह दिन में एक बार हो – पाक्षिक
114. जो दूसरों का भला करे – परोपकारी
115. जो बहुत खाने वाला हो – पेटू
116. जिस पर मुकद्दमा चलाया जाना है – प्रतिवादी
117. जो बाप-दादाओं से मिली हुई हो – पैतृक
118. बुद्धि ही जिसकी आँखें हों – प्रज्ञाचक्षु
119. केवल फल खाने वाला – फलाहारी

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran वाक्यांशों के लिए एक शब्द

120. बहुत कुछ जानने वाला – बहुज्ञ
121. जो अनेक रूप धारण कर सकता हो – बहुरूपिया
122. जिसके जानने वाले बहुत हों – बहुपरिचित
123. भयानक प्रतिज्ञा करने वाला – भीष्म-प्रतिज्ञ
124. जो मीठा बोलने वाला हो – मधुरभाषी
125. जो मोक्ष की इच्छा रखता हो – मुमुक्षु
126. मांस खाने वाला – मांसाहारी
127. जिसकी आत्मा महान् हो – महात्मा
128. सोच-समझ कर खर्च करने वाला – मितव्ययी
129. जो थोड़ा बोलने वाला हो – मितभाषी
130. जो मान करने के योग्य हो
131. जो एक मास में होता हो – मासिक
132. जो किसी की अपनी सूझ से बना हो – मौलिक
133. राजा का उत्तराधिकारी – युवराज
134. युग का परिवर्तन करने वाला – युग-प्रवर्तक

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran वाक्यांशों के लिए एक शब्द

135. जिस नगर में राज्य का शासन होता है – राजधानी
136. रक्षा करने वाला व्यक्ति – रक्षक
137. जो वस्तु थोड़े समय के लिए किसी के पास गिरवी रखी हो। – रेहन
138. जिससे कुछ लाभ प्राप्त हो – लाभदायक
139. जिसको लज्जा आ गई हो – लज्जित
140. जिसकी पत्नी मर गई हो – विधुर
145. जिसका पति मर गया हो – विधवा
146. जिस पर विश्वास किया जा सके – विश्वसनीय
147. जो मारने के योग्य हो – वध्य
148. जिस स्त्री में सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता न हो – बन्ध्या
149. विष से भरा हुआ – विषैला
150. सांसारिक ऐश्वर्य में लीन रहने वाला – विलासी
151. जो व्यक्ति बहुत बोलने वाला हो – वाचाल
152. जो वर्ष में एक बार हो – वार्षिक
153. केवल सब्जी खाने वाला – शाकाहारी
154. शिशु होने का भाव – शैशव

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran वाक्यांशों के लिए एक शब्द

155. जिसका पति जीवित हो – सधवा
156. जो अपने आप उत्पन्न हो – स्वयंभू
157. जो अपना मतलब सिद्ध करे – स्वार्थी
158. जिसमें सहन शक्ति हो – सहिष्णु, सहनशील
159. जो सप्ताह में एक बार हो – साप्ताहिक
160. जो रोग एक से दूसरे में फैलने वाला हो – संक्रामक
161. जो अच्छे आचरण वाला हो – सदाचारी
162. जिसकी शक्ल हो। – साकार
163. जो सब कुछ जानने वाला हो – सर्वज्ञ
164. सब को समान समझने वाला – समदर्शी
165. जो साथ पढ़ता हो – सहपाठी
166. जो आसानी से मिल सके – सुलभ

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran वाक्यांशों के लिए एक शब्द

167. समाज का सुधार करने वाला – समाज-सुधारक
168. जिसमें सब प्रकार की शक्ति हो – सर्वशक्तिमान्
169. जो साफ़ कहने वाला हो – स्पष्टवादी
170. जो सब जगह फैला हुआ हो – सर्वव्यापक
171. जो स्वयं सेवा करने वाला हो – स्वयंसेवक
172. जो समाचार देता हो – संवाददाता
173. जो निडरता से कार्य करे – साहसी
174. जो सबसे उत्तम हो – सर्वोत्तम
175. जिसकी आशा टूट चुकी हो – हताश
176. जो भावी उन्नति की सूचना देने वाला हो – होनहार
177. जिसे सुनकर हृदय के टुकड़े-टुकड़े हो जाएँ – हृदय-विदारक
178. जो हृदय को छूने वाला हो – हृदयस्पर्शी
179. पाँच नदियों का संगम – पंचतरणी

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran समोच्चरित-भिन्नार्थक शब्द

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Samocharit Bhinnarthak Shabd समोच्चरित-भिन्नार्थक शब्द Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar समोच्चरित-भिन्नार्थक शब्द

1. अभ्यास-आभास
अभ्यास = आदत-प्रातः शीघ्र उठने का अभ्यास डालें।
आभास = झलक-परिस्थितियों से ऐसा आभास मिलता है कि चुनाव होंगे।

2. अनल-अनिल
अनल = आग-अनल में हाथ क्यों डालते हो ?
अनिल = हवा-धीमी-धीमी अनिल बह रही है।

3. अभिराम-अविराम
अभिराम = सुन्दर-यह दृश्य कितना अभिराम है।
अविराम = लगातार-सफलता के लिए अविराम परिश्रम करो।

अचर-अचिर
अचर = जड़-संसार में चर भी है और अचर भी।
अचिर = शीघ्र-यहाँ से अचिर चले जाओ।

5. अचल-अचला
अचल = पर्वत-हिमालय अचल है।
अचला = पृथ्वी-पृथ्वी को अचला भी कहते हैं।

6. अवलम्ब-अविलम्ब
अवलम्ब = सहारा-अहिंसा ही महात्मा गाँधी का अवलम्ब था।
अविलम्ब = बिना देर किए-आप इस काम को अविलम्ब निपटा कर घर जाइए।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran समोच्चरित-भिन्नार्थक शब्द

7. अम्बर-अम्बार
अम्बर = आकाश-अम्बर में काले बादल छाए हुए हैं।
अम्बार = ढेर-बाग में जगह-जगह पत्तों के अम्बार लगे हुए हैं।

8. अपर-अपार
अपर = दूसरा-अपर व्यक्ति को बुलाओ।
अपार = असीम-ईश्वर की महिमा अपार है।

9. आसन्न-आसन
आसन्न = निकट-आसन्न ही मेरी कुटिया है।
आसन = बैठने की चटाई आदि-मेरे आसन से उठ जाओ।

10. अपमान-उपमान
अपमान = निरादर-किसी का अपमान न करो।
उपमान = जिससे तुलना की जाए-तुम्हारी अंगूठी का कोई उपमान नहीं है।

11. आदि-आदी
आदि = आरम्भ-आदिकाल से ही भारत विश्व में जगत्गुरु माना जाता है।
आदी = अभ्यस्त-मैं झूठ बोलने का आदी महीं हूँ।

12. अपेक्षा-उपेक्षा
अपेक्षा = तुलना, आवश्यकता-मोहन की अपेक्षा सोहन चालाक है।
उपेक्षा = लापरवाही-पढ़ाई में कभी उपेक्षा न दिखाओ।

13. आकर-आकार
आकर = भण्डार, खजाना-समुद्र रत्नों का आकर है।
आकार = रूप, फैलाव-यह शीशा बड़े आकार का है।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran समोच्चरित-भिन्नार्थक शब्द

14. उत्तर-उतर
उत्तर = दिशा-हिमालय भारत के उत्तर में स्थित है।
उतर = उतरने की क्रिया-चलती गाड़ी से मत उतर।

15. उदार-उधार
उदार = विशाल दिल-हमारे सभी अध्यापक बड़े उदार हैं।
उधार = कर्ज़-कभी उधार न लो।

16. उदर-उधर
उदर = पेट-कई लोग खा-पीकर उदर पर हाथ फेरते हैं।
उधर = तरफ-उधर मत जाओ, वहाँ दंगा हो रहा है।

17. ओर-और
ओर = तरफ-उस ओर मत जाइए।
और = तथा-मैं और मोहन कल दिल्ली जाएँगे।

18. कृपण-कृपाण
कृपण = कंजूस-कृपण व्यक्ति से दान की आशा करना व्यर्थ है।
कृपाण = तलवार-अब अपनी कृपाण निकालो।

19. कलि-कली
कलि = एक युग का नाम-महाभारत के युद्ध के बाद कलियुग प्रारम्भ हो गया था।
कली = फूल की डोडी-कली को मत तोड़ो।

20. कुल-कूल
कुल = वंश-मोहन अच्छे कुल का बालक है।
कूल = किनारा-नदी का कूल बड़ा सुहावना है।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran समोच्चरित-भिन्नार्थक शब्द

21. कपट-कपाट
कपट = छल-अपने दिल में कपट न रखो।
कपाट = किवाड़-कपाट खोल दो।

22. कर्ण-करुण
कर्ण = कान-अपने कर्ण पकड़ो।
करुण = दयालु-ईश्वर बड़ा करुण है।

23. कर्म-क्रम
कर्म = काम-हमेशा श्रेष्ठ कर्म करो।
क्रम = सिलसिला, तरतीब-पुस्तकों को क्रम से रखो।

24. ग्रह-गृह
ग्रह = नक्षत्र-नव ग्रह की पूजा करो।
गृह = घर–मेरा गृह निकट ही है।

25. चर्म-चरम
चर्म = चमड़ा-चर्म उद्योग विकसित हो रहा है।
चरम = अन्तिम-आपके जीवन का चरम लक्ष्य क्या है ?

26. चपल-चपला
चपल = चंचल-रमाकान्त बड़ा चपल बालक है।
चपला = बिजली-आकाश में चपला चमक रही है।

27. चरित-चरित्र
चरित = जीवन कथा-महापुरुषों के जीवन-चरित से हमें शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।
चरित्र = आचरण-मनुष्य का चरित्र ही उसके व्यक्तित्व का दर्पण है।

28. चिर-चीर
चिर = पुराना-चिरकाल से आपका कोई पत्र नहीं मिला।
चीर = वस्त्र-दुर्योधन ने द्रौपदी का चीर-हरण करवाया।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran समोच्चरित-भिन्नार्थक शब्द

29. चिता-चिन्ता
चिता = बेटे ने अपने पिता की चिता को आग दी।
चिन्ता = चिन्ता करने से कुछ नहीं होता।

30. छत्र-छात्र
छत्र = छाता-छत्र वर्षा से बचाता है।
छात्र = विद्यार्थी-कुसंगति छात्र चरित्र को नष्ट कर देती है।

31. जगत्-जगत
जगत् = संसार-इस जगत् में अद्भुत जीव-जन्तु निवास करते हैं।
जगत = कुएँ का चबूतरा-कुएँ की जगत् पक्की ईंटों की बनी हुई थी।

32. जलज-जलद
जलज = कमल-सरोवर में चारों ओर जलज खिले हुए हैं।
जलद = बादल-जलद के उमड़ आने पर मोर नाचने लगते हैं।

33. दस-दंश
दस = दस-संस्कृत में दस तक गिनो।
दंश = डंक-साँप ने दंश मारा।

34. दिन-दीन
दिन = दिवस-आज कौन-सा दिन है।
दीन = निर्धन-उस दीन पर दया करो।

35. दुर-दूर
दुर = दुर वचन मत बोलो।
दूर = उसकी पहुँच बहुत दूर तक है।

36. है-हैं
है = वह रोज़ सैर को जाता है।
हैं = यहाँ बड़े-बड़े लोग बैठे हैं।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran समोच्चरित-भिन्नार्थक शब्द

37. धुन-धन
धुन = दृढ़ विचार-कर्मठ व्यक्ति धुन का पक्का होता है।
धन = द्रव्य-आज के युग में धन की बड़ी महत्ता है।

38. धेनु-धनु
धेन = गाय-विदेशी नस्ल की धेनु बहुत दूध देती है।
धनु = धनुष-अर्जुन धनु-विद्या में बहुत प्रवीण था।

39. निधन-निर्धन
निधन = देहान्त-लम्बी बीमारी के पश्चात् उसका निधन हो गया।
निर्धन = ग़रीब-मोहन निर्धन माँ-बाप का बेटा है।

40. नीर-नीड़
नीर = जल-सदैव स्वच्छ नीर पीना चाहिए।
नीड़ = घोंसला-कुछ पक्षी सुन्दर नीड़ बनाते हैं।

41. पक्ष-पक्षी
पक्ष = पंख-पक्ष के बिना पक्षी उड़ नहीं सकते।
पक्षी = खग-आकाश में पक्षी उड़ते हैं।

42. परिणाम-परिमाण-प्रमाण
परिणाम = नतीजा-परीक्षा परिणाम कब निकलेगा ? परिमाण = मात्रा–भौतिक पदार्थों का परिमाण बताना मुश्किल है।
प्रमाण = सबूत-पुलिस को चोरी का कोई प्रमाण नहीं मिला।

43. बात-वात
बात = बातचीत-मुझे झूठी बात कभी अच्छी नहीं लगती।
वात = हवा-कई लोग वात रोग से पीड़ित रहते हैं।

44. मूल-मूल्य
मूल = जड़-इस पेड़ का मूल बड़ा मज़बूत है।
मूल्य = कीमत-इस पुस्तक का कितना मूल्य है ?

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran समोच्चरित-भिन्नार्थक शब्द

45. में-मैं
में = अन्दर-घड़े में पानी कम था।
मैं = निजवाचक-मैं आपको नहीं जानता।

46. रक्त-रिक्त
रक्त = खून-उसके घुटनों से रक्त बह रहा है।
रिक्त = खाली-अभी यह स्थान रिक्त है।

47. लक्ष-लक्ष्य
लक्ष = लाख-मेरे पास एक लक्ष रुपए हैं।
लक्ष्य = उद्देश्य-आपके जीवन का लक्ष्य क्या है ?

48. वक्ष-वृक्ष
वक्ष = छाती-दण्ड बैठक से वक्ष सुडौल बनता है।
वृक्ष = पेड़-नीम का वृक्ष जलवायु को शुद्ध करता है।

49. वसन-व्यसन
वसन = कपड़ा-सदा स्वच्छ वसन पहनने चाहिएँ।
व्यसन = बुरी आदत-आलोक को सिगरेट का व्यसन है।

50. शुल्क-शुक्ल
शुल्क = फीस-शुल्क क्षमा करवाने के लिए प्रार्थना-पत्र लिखो।
शुक्ल = वह शुक्ल पक्ष की नवमी को पैदा हुआ था।

51. सम्मान-समान-सामान
सम्मान = आदर-सबका सम्मान करो।
समान = बराबर-उसके समान कोई नहीं है।
सामान = चीजें-यह किसका सामान है ?

52. सुत-सूत
सुत = पुत्र-अपना सुत सबको प्यारा होता है।
सूत = धागा-बुढ़िया सूत कात रही है।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran समोच्चरित-भिन्नार्थक शब्द

53. सर-शर
सर = तालाब-सर में कमल खिले हैं।
शर = तीर-यह शर बड़ा तेज़ है।

54. समिति-सम्मति
समिति = सभा-जगदेव लोक सेवा समिति का सदस्य है।
सम्मति = सलाह-राम और कृष्ण आपस में एक-दूसरे की सम्मति से काम करते हैं।

55. मास-मांस
मास = महीना-बसन्त मास आरम्भ हो गया है।
मांस = मीट-मांस खाने से हमें परहेज करना चाहिए।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran पर्यायवाची या समानार्थक शब्द

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Paryayvachi ya Samanarthak Shabd पर्यायवाची या समानार्थक शब्द Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar पर्यायवाची या समानार्थक शब्द

अंग = शरीर, काया, अवयव, वपु, तनु, कलेवर, देह।
अग्नि = हुताशन, वह्नि, अनल, पावक, शिखी, दहन, ज्वाला।
अनुपम = अद्भुत, अद्वितीय, अनोखा, अपूर्व, अनूठा।
अपमान = अनादर, उपेक्षा, तिरस्कार, निरादर।
अथ = आरम्भ, प्रारम्भ, श्रीगणेश।
अमृत = सुधा, पीयूष, अमिय, सोम।
अरण्य = जंगल, वन, विपिन, कान्तार; गहन, कानन, अटवी।
अच्छा = सुष्ठू, शुभ, श्रेष्ठ, शोभन, सुन्दर।।
असुर = राक्षस, दैत्य, सुररिपु, दानव, दनुज, इन्द्रारि, निशाचर।
अन्धकार = तम, तिमिर, तमिस, तमर, अन्धेरा।
अश्व = घोड़ा, वाहन, हत, बाजी, घोटक, सैन्धव, तुरंग, गन्धर्व।
आयुध = हथियार, शस्त्र, अस्त्र।
आनन्द = मोद, प्रमोद, हर्ष, आमोद, सुख, विहार, प्रसन्नता।
आँख = नेत्र, चक्षु, नयन, लोचन, अक्षि।
आकाश = व्योम, गगन, अम्बर, नभ, आसमान, अनन्त ।
आभूषण = अलंकार, भूषण, आभरण, गहना।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran पर्यायवाची या समानार्थक शब्द

आम = आम्र, रसाल, फलराज।
इनाम = पुरस्कार, पारितोषिक, प्रीतिकर, आनन्दकर।
इच्छा = अभिलाषा, चाह, मनोरथ, कामना, लिप्सा, लालसा।
इन्द्र = देवेन्द्र, सुरेन्द्र, सुरपति, पुरन्दर, देवराज, शचीपति।
ईश्वर = ईश, परमात्मा, परमेश्वर, प्रभु, भगवान्, जगदीश।
ऊषा = प्रभात, सवेरा, अरुणोदय, निशान्त।
उदर = पेट, जठर।
उत्पन्न = पैदा, उद्भूत, आविर्भाव, प्रार्भूत।
उन्नति = उदय, वृद्धि, उत्कर्ष, उत्थान ।
उद्यम = प्रयास, प्रयत्न, यत्न, पुरुषार्थ, उद्योग।
उद्देश्य = मकसद, लक्ष्य, ध्येय, इष्ट, तात्पर्य।
उपकार = हित, भलाई, नेकी, भला।
कंचन = सोना, स्वर्ण, कुन्दन, हेम।
कपड़ा = वस्त्र, अम्बर, पट, वसन, परिधान।
कमल = अरविन्द, जलज, नलिन, पंकिज, सरोज, नीरज।
कान = कर्ण, श्रोत, श्रवण।
किनारा = तट, तीर, कूल, पुलिन।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran पर्यायवाची या समानार्थक शब्द

किरण = रश्मि, अंशु, मरीची, मयूख, कर।
केश = बाल, अलक, कच, कुन्तल।
कत्ता = कुक्कर, श्वान, सारमेय।
कोयल = पिक, कोकिल, परभृत।
कृपा = अनुग्रह, दया, अनुकम्पा।
कृष्ण = वासुदेव, गोपाल, गिरधर, केशव, कंसारि।
क्रोध = गुस्सा, रोष, कोष आमर्ष ।
खून = रक्त, रुधिर, लहू।
गणेश = गणपति, भालचन्द्र, लम्बोदर, गजानन।
गंगा = भागीरथी, देवनदी, सुरसरी, मन्दाकिनी, नदीश्वरी।
गौ = गाय, सुरभि, धेनु।
घर = गृह, सदन, निकेतन, भवन, आवास, आलय, शाला।
घन = बादल, मेघ, अभ्र।
चन्द्रमा = शशि, चन्द्र, राकेश, इन्दु, चाँद, सोम, सुधाकर।
चांदनी = ज्योत्सना, चन्द्रिका, कौमुदी, चन्द्रमरीची।
जल = वारि, नीर, पानी, पय, रस, जीवन।
जीभ = जिह्वा, रसना, रसज्ञा, रसा।
जूता = चरणदास, जूता, जोड़ा, पदत्र, पादत्राण।
तलवार = खड्ग, कृपाण, असि, शमशीर, करवाल।
तरंग = लहर, ऊर्मि, वीचि, हिलोर।
तालाब = सर, सरोवर, तड़ाग, जलाशय, ताल, पोखर।
तारा = नक्षत्र, तारक, ऋक्ष, नखत।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran पर्यायवाची या समानार्थक शब्द

तीर = बाण, शर, सायक, शिलीमुख।
दन्त = दांत, दशन, रद्, द्विज, दश।
दास = भृत्य, नौकर, सेवक, अनुचर, परिचारक।
दिवस = दिन, वार, वासर, अह्न।
देवता = सुर, अमर, देव, निर्जर, गीर्वाण, आदित्य।
दुःख = पीड़ा, कष्ट, व्यथा, विषाद, यातना, वेदना।
दुनिया = विश्व, संसार, जगत्, जग, भूमण्डल।
दूध = दुग्ध, पय, गोरस, स्तन्य।
धनुष = धनु, कोदण्ड, चाप, कमान, शरासन।
धन = द्रव्य, अर्थ, वित्त, सम्पत्ति, लक्ष्मी।
नदी = सरिता, तरंगिणी, जलमाला, तटिनी।।
नारी = स्त्री, कामिनी, महिला, अबला, वनिता, भामिनी, ललना।
नमस्कार = प्रणाम, अभिवादन, वंदन।
निपुण = चतुर, कुशाल, पटु, प्रवीण, चालाक।
निर्धन = ग़रीब, दरिद्र, रंक।
नौका = नाव, तरिणी, जलयान, बेड़ा, पतंग, तरी।
पण्डित = विद्वान्, प्राज्ञ, बुद्धिमान्, धीमान्, धीर, सुधी।
पवन = हवा, वायु, समीर, अनिल, प्रकम्पन।
पक्षी = खग, नभचर, विहग, विहंगम, खेचर।
पत्नी = वधू, गृहिणी, स्त्री, प्राणप्रिया, अर्धांगिनी, भार्या।
पति = स्वामी, नाथ, वर, कान्त, प्राणनाथ, आर्य, ईश।
पराग = पुष्पराज, कुसुमराज, पुष्पधूलि।
पर्वत = गिरी, पहाड़, शैल, अचल, नग।
पिता = जनक, बाप, तात।
पुत्र = सुत, बेटा, लड़का, पूत, तनय।
पुत्री = सुता, बेटी, लड़की, नन्दिनी, तनया।
पुरुष = आदमी, मनुष्य, नर।
पत्थर = पाषाण, वज्र, पाहन, उपल, शिला।
पुष्प = कुसुम, सुमन, फूल, मंजरी, प्रसून।
प्रसिद्ध = मशहूर, प्रख्यात, विख्यात।
पृथ्वी = भू, भूमि, धरणी, वसुधा, धरिनी।
प्रकाश = उजाला, ज्योति, प्रभाष, विभा, आलोक।
बसन्त = मधु, ऋतुराज, कुसुमाकर, मधुमास।
बन्धु = सखा, मित्र, साथी।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran पर्यायवाची या समानार्थक शब्द

बाग = बगीचा, वाटिका, उपवन, उद्यान, आराम।
बादल = मेघ, घन, जलद, नीरद।
बिजली = विद्युत्, तड़ित, दामिनी, चपला।
बन्दर = कपि, वानर, शाखामृग, हरि।
भिक्षा = भीख, याचना, माँगना, खैरात।
भूख = क्षुधा, बुभुक्षा, अन्न-लिप्सा।
भौंरा = भुंग, भ्रमर, मधुकर, मधुप, अलि।
भूषण = गहना, जेवर, आभूषण, मंडन।
मछली = अंडज, मीन, मत्स्य, जलचर।
मदिरा = शराब, सुरा, मद्य, वारुणी।
माता = जननी, माँ, मात, मैया, अम्बा।
मुख = मुँह, आनन, वदन, चेहरा।
मृत्यु = निधन, देहान्त, अन्त, मौत।
मनुष्य = मनुज, नर, आदमी, मानव, पुरुष।
महादेव = शिव, चन्द्रशेखर, भूमिपति, शंकर, भव।
यौवन = जवानी, युवावस्था, शिरोमणि, तरुणाई।
युद्ध = रण, लड़ाई, समर, संग्राम।
युवक = जवान, युवा, तरुण।
राजा = नृप, भूपति, भूप, नरेश, सम्राट्, नरेन्द्र, नरपति।
रात = रजनी, निशा, रात्रि, यामिनी, शर्वरी।।
लक्ष्मी = रमा, कमला, श्री, चंचला, इन्दिरा, हरिप्रिया।
वायु = पवन, समीर, हवा, अनिल, समीरण।
वृक्ष = पेड़, तरु, पादप, द्रुम, विपट।
वात्सल्य = प्रेम, ममत्व, स्नेह, प्यार।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran पर्यायवाची या समानार्थक शब्द

विष्णु = रमापति, गरुड़ध्वज, चक्रपाणि, जलशायी।
विष = ज़हर, गरल, हलाहल, कालकूट।
शत्रु = दुश्मन, अरि, रिपु, वैरी।
सरल = सहज, आसान, सुकर।
समुद्र = जलधि, सिन्धु, सागर।
साधु = महात्मा, सन्त, सज्जन, संन्यासी।
साँप = सर्प, विषधर, भुजंग, व्याल, नाग।
सूर्य = दिनकर, रवि, दिनेश, भानु।
सुगन्ध = सुरभि, सुवास, सौरभ, खुशबू।
हाथ = कर, पाणि, हस्त।
समाज = समूह, समुदाय।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran अशुद्ध-शुद्ध

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Ashuddh-Shuddh अशुद्ध-शुद्ध Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar अशुद्ध-शुद्ध

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran अशुद्ध-शुद्ध 1

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran अशुद्ध-शुद्ध

वाक्यों की अशुद्धियाँ

1. अशुद्ध – गुरु जी ने छात्रों को आशीर्वाद प्रदान किया।
शुद्ध – गुरु जी ने छात्रों को आशीर्वाद दिया।

2. अशुद्ध – प्रत्येक छात्रों को पुरस्कार मिलेगा।
शुद्ध – प्रत्येक छात्र को पुरस्कार मिलेगा।

3. अशुद्ध – माँ सारी रात भर जागती रही।
शुद्ध – माँ रात भर जागती रही।

4. अशुद्ध – महादेवी जी बहुत विद्वान् हैं।
शुद्ध – महादेवी जी बड़ी विदुषी हैं।

5. अशुद्ध – वहाँ एक विधवा स्त्री रहती है।
शुद्ध – वहाँ एक विधवा रहती है।

6. अशुद्ध – महात्मा बुद्ध ने लोगों को अहिंसा का संदेश दिया।
शुद्ध – महात्मा बुद्ध ने लोगों को अहिंसा का उपदेश दिया।

7. अशुद्ध – सुरेश की आयु उस समय पाँच वर्ष की थी।
शुद्ध – सुरेश उस समय पाँच वर्ष का था।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran अशुद्ध-शुद्ध

8. अशुद्ध – चिड़ियाघर वाली शेरनी बुढ़िया हो गई है।
शुद्ध – चिड़ियाघर की शेरनी बूढ़ी हो गई है।

9. अशुद्ध – आप यहाँ से चले जाओ।
शुद्ध – आप यहाँ से चले जाइए।

10. अशुद्ध -मुझे शोक है कि मैं आपके पत्र का उत्तर न दे सका।
शुद्ध – मुझे खेद है कि मैं आपके पत्र का उत्तर न दे सका।

11. अशुद्ध – आज मेरी प्रीक्षा है।
शुद्ध – आज मेरी परीक्षा है।

12. अशुद्ध – विद्यारथी शरीरिक काम से डरते हैं।
शद्ध – विद्यार्थी शारीरिक काम से डरते हैं।

13. अशुद्ध – आज विग्यान का युग है।
शुद्ध – आज विज्ञान का युग है।

14. अशुद्ध – सरदार भगत सिंह क्रांतीकारि थे।
शुद्ध – सरदार भगत सिंह क्रान्तिकारी थे।

15. अशुद्ध-कृपा करके चार दिन की छुट्टी दो।
शुद्ध-कृपा करके चार दिन की छुट्टी दीजिए।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran अशुद्ध-शुद्ध

16. अशुद्ध – मैं घर गया और पिता जी को पत्र लिखा।
शुद्ध – मैं घर गया और मैंने पिता जी को पत्र लिखा।

17. अशुद्ध – वह केवल हिन्दी मात्र जानता है।
शुद्ध – वह केवल हिन्दी जानता है।

18. अशुद्ध – वह प्रातः काल के समय यहाँ आया था।
शुद्ध – वह प्रातः काल यहाँ आया था।

19. अशुद्ध – बहुत दिनों से आपका दर्शन नहीं हुआ।
शुद्ध – बहुत दिनों से आपके दर्शन नहीं हुए।

20. अशुद्ध – आजकल आप कहाँ रहता है ?
शुद्ध – आजकल आप कहाँ रहते हैं ?

21. अशुद्ध-प्रत्येक काम नियत समय पर करो।
शुद्ध-प्रत्येक काम समय पर करो।

22. अशुद्ध – बापू जी की मृत्यु पर मुझे बड़ा कष्ट हुआ।
शुद्ध – बापू जी की मृत्यु पर मुझे बड़ा दुःख हुआ।

23. अशुद्ध – पाँव पर चोट लगने से मुझे बड़ा दुःख हुआ।
शुद्ध – पाँव पर चोट लगने से मुझे बड़ा कष्ट हुआ।

24. अशुद्ध – मेरा रमेश के साथ घोर सम्बन्ध रहा है।
शुद्ध – मेरा रमेश के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran अशुद्ध-शुद्ध

25. अशुद्ध – आगामी सम्बन्ध आपके रुख पर निर्भर है।
शुद्ध – भावी सम्बन्ध आपके रुख पर निर्भर है।

26. अशुद्ध – निर्धनतापूर्ण जीवन का कोई महत्त्व नहीं।
शुद्ध – निर्धनतापूर्ण जीवन का कुछ महत्त्व नहीं।

27. अशुद्ध – जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटना सुनाओ।
शुद्ध – जीवन की कोई महत्त्वपूर्ण घटना सुनाओ।

28. अशुद्ध – उस पर घड़ों पानी गिर गया।
शुद्ध – उस पर घड़ों पानी पड़ गया।

29. अशुद्ध – सिपाही को देखकर चोर सात चार ग्यारह हो गया।
शुद्ध – सिपाही को देखकर चोर नौ दो ग्यारह हो गया।

30. अशुद्ध – गोद में उठा लिया उसने अपने बच्चे को।
शुद्ध – उसने अपने बच्चे को गोद में उठा लिया।

31. अशुद्ध – आप के पिता सज्जन पुरुष हैं।
शुद्ध – आप के पिता सज्जन हैं।

32. अशुद्ध – आप बेफिजूल बोलते हैं।
शुद्ध – आप फिजूल बोलते हैं।

PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You

Punjab State Board PSEB 8th Class English Book Solutions Poem 1 The Earth Needs You Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 English Poem 1 The Earth Needs You

Activity – 1

Look up the following words in a dictionary. You should seek the following information about the words and put them- in your WORDS notebook.
1. Meaning of the word as used in the poem (adjective/noun/verb, etc.)
2. Pronunciation (The teacher may refer to the dictionary or a mobile phone for correct pronunciation.)
3. Spellings.

single-use lasts forever
oceans tangles travel

PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You

Vocabulary Expansion

Activity 2.

Given below is a table in which you will find one word for a statement or group of words/phrases. We substitute a group of words with only one word and that is why it is called one-word substitution.

S.No. Group of words/phrases Word
1. a disease that affects a large number of people in an area at the same time epidemic
2. a body of persons appointed to hear evidence or judge and give their verdict (decision) jury
3. a game in which no one wins draw
4. a list of books available in a library catalogue
5. a man who does not know how to read or write illiterate
6. an authors handwritten or typed text that has not yet been published manuscript
7. something is written by an unknown person anonymous
8. a person who can speak many languages polyglot
9. a person who does not take alcoholic drinks teetotaller
10. a person interested in reading books and doing nothing else bookworm
11. a person who pays a visit to sacred place pilgrim
12. a woman whose husband is dead widow
13. a thing likely to be broken easily brittle
14. one who practises one of the fine arts artist
15. a person who eats too much glutton
16. a place where clothes are kept wardrobe
17. one who loves or supports one’s country deeply patriot
18. one who is unable to pay one’s debt bankrupt
19. something that can be heard audible
20. the art of beautiful handwriting calligraphy

Activity 3.

Choose any ten words from the table above and write their meaningful sentences in your notebook. Sentences

1. Covid-19 is a dangerous epidemic.
2. The jury has given its decision.
3. The match ended in a draw.
4. I want to borrow a book. Please show me catalogue.
5. He is an illiterate. He can’t even write his name.
6. There are many mistakes in the manuscript.
7. The writer of this story is anonymous.
8. My brother is a polyglot. He can speak five languages.
9. A teetotaller does drink alcohol.
10. His younger brother is a book-worm. He is always reading something.
11. Many pilgrims are going to Haridwar.
12. A widow feels lonely after her husband’s death.
13. Glass is brittle.
14. My brother is a fine artist. He prints beautifully.
15. He eats like a glutton.
16. Please remove your clothes from my wardrobe.
17. Gandhiji was a great patriot.
18. He was declared a bankrupt after he suffered a big loss.
19. Your voice is not audible.
20. He is a master of calligraphy. He write very beautifully.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You

Learning to Read and Comprehend

Activity 4.

Read the poem carefully and answer the following questions.

Question 1.
Who is ‘you’ in the first line?
Answer:
It is the reader.

Question 2.
What does the Earth want from human beings?
पृथ्वी मानव से क्या चाहती है ?
Answer:
The earth wants from human beings to change their ways, and thus, change the face of the earth.

Question 3.
What difference can you and I make to save the Earth?
आप और मैं धरती को बचाने के लिए क्या अंतर ला सकते हैं ?
Answer:
We can check pollution and change ways causing pollution.

Question 4.
What are some single-use plastic things that we buy and use ?
हम ‘single-use plastic’ की कौन – कौन सी चीजें खरीदते हैं और प्रयोग में लाते है
Answer:
Bags boxes, plate, spoons and many other things are made of single-use plastic.

Question 5.
But it’s not very clever’. What according to the poet is not very clever ?
‘But it is not very clever’. कवि के अनुसार क्या clever नहीं है ?
Answer:
Using single-use plastic is not very clever. It may be cheap and may last almost forever.

Question 6.
What happens to the single-use plastic after it is thrown ? When does it end up ?
फेंकने के बाद ‘single – use plastic’ का क्या होता है? यह कहां समाप्त होती है?
Answer:
It flows to oceans, rivers and seas and becomes a part of their water. Sometimes it is caught in trees.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You

Question 7.
What harm does it do to the oceans, rivers and trees ?
यह महासागरों, नदियों तथा वृक्षों को क्या हानि पहुंचाती है ?
Answer:
It poisons their act in the water and hinders the flow of wind.

Question 8.
Does it stay where you throw it? Why?
क्या यह वहीं ठहरी रहती है, जहां इसे फैंका जाता है ? क्यों ?
Answer:
No, it does not. It travels around with the wind.

Question 9.
What does the poet want you to cut down?
कवि हमें किस चीज़ को कम करने के लिए कहता है ?
Answer:
The poet wants us to cut down the use of such things (single-use plastic) as are harmful for our Earth.

Activity 5

Think together and make a list of things that ‘you’ and ‘I can do to make a difference to save the Earth in the space given below. You must write complete sentences.

S.No. Things we must do every day to make a change to save the Earth
1. We must save water. We must not waste it.
2. We must not cut down trees unwisely.
3. We should plant new trees.
4. We should check soil pollution.
5. We should say ‘No’ to poly-bags.
6. We should use paper bags.

Learning Language

Revision of Parts of Speech

Let we revise parts of speech in this chapter. Look at the following table wherein you will find eight parts of speech with their functions and examples. Read and understand them carefully.

Parts of Speech
Parts of Speech Functions Sentences
Nouns name people, place, things, and ideas/concepts Meena loves flowers.
The girl decided to buy a car. I believe in democracy.
Pronouns substitute/replace nouns Why are you pushing me? I gave her a book.
Get me a glass of water.
Adjectives describe nouns and pronouns I saw an excellent film.
The girl in the red frock is happy. I plan to go on a long holiday.
Verbs express a physical action or a state I play basketball.
I am a girl.
Do your homework.
Adverbs modify verbs, adjectives and adverbs She walked slowly.
They are extremely rich. I ran fast.
Prepositions show relationships of words and phrases The book is on the table. The stone sank in the lake. I jumped into the water.
Conjunctions join words, phrases and clauses She is tall and slim.

I will wait untill she arrives. Jim is sick so he can’t come.

Interjections or Exclamations show strong feelings such as surprise or happiness Wow ! that’s beautiful. Ouch ! that hurts.
Oh ! That’s wonderful.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You

Activity 6.

Given below are some words. Categorize them as nouns, pronouns, adjective, verbs, adverbs, preposition, conjunction or exclamations
PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You 1
Answer:

Nouns

Pronouns Adjectives Verbs
pen
dog
music
teacher
John
town
London
you
she
your
we
some
I, they
big
red
good
well
interesting
work
have to be
to
like
sing
can
must
Adverbs Preposition Conjections

Interjection/
Exclamation

badly
quckly
silently
very
really
to
at
after
on
before
around
over, of, in, for,
with, from, beneath
throughout
and, but,
although
when
or
however
nevertheless
therefore, yet, so
ouch
hi
oh
wow

Activity 7.

Given below is a chart. Write three sentences for each part of speech in the given space. You must also underline the word that represents its category.
PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You 2
Answer:
PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You 3
PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You 4

PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You

Learning to Listen (Pairwork)

Activity 8

You will listen to your teacher. She will speak some words. You will write the words in the circles on the side. Spell the words correctly. Once you have written all the words, think about the word that should go in the middle cirele, read the followers. nurse, doctor, operation, medicine, X-ray, rooms, wards hospital Here the word ‘hospital will go in the middle and other words in the side circles because hospitals have nurses, doctors, operations, medicines, X-ray rooms and wards. You may say that ‘hospital is the head word.
PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You 5
Answer:
PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You 6

Learning to Speak (Groupwork)

Activity 9

You are a group of news reporters and you have to speak about people who have lost their homes due to an earthquake in a village where government help has not yet reached.
PSEB 8th Class English Solutions Safety Chapter 7 Safety While Driving 5

Work in groups for five minutes and make notes on what you would want to speak. All members of your group will speak at least one sentence on the topic. You may talk about their problems such as

  • no help has yet. reached from the government.
  • non-availability of hospitals for the injured.
  • no money in their pockets.
  • no place to sleep in winters.
  • nothing much to eat.
  • help available from gurudwaras and temples.
  • some people whose houses were not destroyed by the quake are providing food.

Note :

  • The earthquake has made them homeless.
  • The nights are very cold. People have no place to pass the chilly nights.
  • They have lost almost their everything. They have no food to eat.
  • Their pockets are empty, not a single penny in their pockets.
  • Only some gurudwaras and temples have come to their help. They are running ‘langars for the hungry people.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You

Learning to Write

Letter Writing

Write a letter to your friend informing him about your brother’s marriage and inviting him.
Answer:
F2401 Bollywood
Greens Sector 113
SAS Nagar
May 1, 20 — —
Dear Sunil
I am extremely happy to inform you that my brother is getting married on May 10, 20……… . The functions will start from May 8, 20……… . I am inviting you to all the functions with your parents and sister. You all must come. My father is booking rooms for all the guests. I have asked him to book two rooms for you. I will be there at the station to receive you. I will send you the card soon.
Waiting to see you on May 8, 2020.
Yours sincerely
Sahil

Activity 10.

Write a letter to your friend telling him why it is important to stop using single-use plastic.

B2555 Indian Blues.
Sector 25
Chandigarh
April 13, 2020.
Dear Manmeet
I am going to tell you about a national rather international problem. It is world-wide use of single-use plastic. It is increasing day by day, A large quantity of single-use plastic is thrown out everyday. It chokes our drainage system. As it is not bio-degradable, it keeps lying in heaps here and there. Stray animals eat it up and die. It emits poisonous gases that pollute the air, water and soil. If we have to save our earth, we must stop the use of this plastic without delay. The government should ban its production immediately. I hope you fully agree with me.
Yours sincerely
Gurdeep.

Comprehension Of Stanzas

Read the following stanzas (extracts) and answer the questions given below each :

(1) The Earth needs you
To change your ways,
Month by month
And day by day

The changes are easy
Just look and you’ll see
The differences that can be made
By you and by me.

1. Why does the Earth need us?
धरती को हमारी ज़रूरत क्यों है ?

2. What should we think of ?
हमें क्या बात सोचनी चाहिए?

3. Name the poem and its poet.
कविता और इसके कवि का नाम लिखें।
Answer:
1. The Earth needs us to changes our ways regularly to save our earth.
2. We should think of differences that can be made.
3. The name of the poem is ‘The Earth Needs You’. Its poet is anonymous.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You

(2) Single-use plastic
Lasts almost forever.
It might be cheap
But it’s not very clever.

It can end up in oceans, rivers and seas.
The wind sometimes carries it.
And it tangles in trees.

1. Why do most people use single-use plastic ?
अधिकतर लोग Single -Use plastic का प्रयोग क्यों करते हैं?

2. How is it harmful ? Mention only two points ?
यह किस प्रकार हानिकारक है ? कोई दो बिन्दु लिखिए।

3. Name the poem and its poet.
कविता और इसके कवि का नाम लिखें।
Answer:
1. Most people use single-use plastic because it is cheap and lasts long.
2. It does not break down and stays where it is. It chokes the flow of waters in rivers, seas and oceans.
3. The name of the poem is ‘The Earth Needs You’. It is written by some anonymous poet.

(3) When people drop it on the ground,
This is not where it stays,
It travels around.

If people used less,
The better place the world would be,
The future is in your hands :
Cut down and you’ll see.

1. What is it’ in the first stanza ? How does it spread ?
पहले stanza में it क्या है ? यह कैसी फैलती है ?

2. What can make the world better place ?
संसार को बेहतर स्थान क्या बात बना सकती है ?
3. Give the central idea of that poem.
कविता का मूल भाव लिखिए। .
Answer:
1. It’ in the first stanza is single-use plastic. It spreads as it does not stay at one place. It travels around.
2. Less use of single use plastic can make the world a better place.
3. इसके लिए कृप्या Topic-C Central Idea of the Poem पढ़ें।

Word Meanings

PSEB 8th Class English Solutions Safety Chapter 7 Safety While Driving 6

The Earth Needs You Poem Summary in English

The Earth Needs You Summary in English

The single-use plastic is a demon. Its increasing use can gulp down our earth any time. It may be cheap. But it does not decay easily. It travels from place to place and flows down to the seas, oceans and rivers. If gets tangled in trees. Thus marine life and the life on earth gets choked. It we want to save our Earth, we must lower the use of single-use plastic, otherwise, we will be heading toward a dark future.

The Earth Needs You Summary in Hindi

Single-use plastic एक राक्षस है। इसका बढ़ता हुआ प्रयोग हमारी धरती को किसी भी समय निगल सकता है। यह सस्ती हो सकती है, परन्तु यह आसानी से समाप्त नहीं होती। यह जगह-जगह जाती रहती है और समुद्रों, महासागरों तथा नदियों में पहुंच जाती है। यह वृक्षों में जाकर फंस जाती है। इस प्रकार जल-जीवन के साथ-साथ पृथ्वी का गला भी घुट जाता है अर्थात् सांस नहीं ले पाता। यदि हमें अपनी पृथ्वी को बचाना है तो हमें Single-use plastic का प्रयोग कम करना होगा। वरना हम अन्धकारमय भविष्य की ओर बढ़ते रहेंगे।

PSEB 8th Class English Solutions Poem 1 The Earth Needs You

Central idea of the poem

Our Earth is facing the danger of losing life on it. It is due to pollution mainly through the use of single-use plastic. Though cheap, it has choked the flow of life on Earth. The Earth is looking towards us for her survival. The earlier we stop the use of this plastic, the better it will be.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books

Punjab State Board PSEB 8th Class English Book Solutions Poem 3 We Who Love Books Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 English Poem 3 We Who Love Books

Learning New Words

Activity 1.

Look up the following words in a dictionary. You should seek the following information about the words and put them in your WORDS notebook.

1. Meaning of the word as used in the poem (adjective/noun/verb. etc.)
2. Pronunciation (The teacher may refer to the dictionary or a mobile phone for correct pronunciation.)
3. Spellings. familiar timeless.

familiar timeless refrain
verse companions nourish

Activity 2.

Pick up the rhyming words from the poem and make a list.
Answer:
(a) away — stay
(b) down — gone
(c) again — refrain
(d) me — be/free

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books

Activity 3.

Match the words with their correct synonyms.

S.No. Word Synonym
1. moment nutrition
2. modern high
3. clever time
4. upset intelligent
5. nourishment new
6. wealthy lift
7. garbage big
8. infant story
9. tall old
10. large unhappy
11. companion bowl
12. secure friend
13. thief known
14. dish trash
15. ancient burglar
16. timeless rich
17. familiar safe
18.  raise permanent
19. tale baby
20. joy happiness

Answer:
1. moment – time
2. modren – new
3. clever – intelligent
4. upset – unhappy
5. nourishment – nutrition
6. wealthy – rich
7. garbage – trash
8. infant – baby
9. tall – high
10. large – big
11. companion – friend
12. secure – safe
13. thief – burglar
14. dish – bowl
15. ancient – old
16. timeless – permanent
17. familiar – known
18. raise – lift
19. tale – story
20. joy – happiness.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books

Learning to Read and Comprehend

Activity 4.

Read the following stanzas and answer the questions.

A. Some books I’ll never give away.
Though old and worn, their binding torn,
Upon my shelves they’ll always stay,
Alive, still read, still fresh each dawn,
Their magic moments never gone.

(a) Name the poem and the poet.
Answer:
The name of the poem is ‘We Who Love Books and that of the poet is Ruskin Bond.

(b) The poet doesn’t want to part with some books. Where does he keep them?
Answer:
The poet keeps them on his shelves.

(c) What is the condition of the books ?
Answer:
They are old and worn. Their binding is torn.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books

B. Familiar friends, these timeless tales
Have been with me since I was ten,
And as I turn their pages once again
I feel and love their old refrain.

(a) The poet calls his books ‘familiar friends”. Why does he call them ‘familiar’ ?
Answer:
The poet calls his books ‘familiar friends’ because they have been his friends since he was ten.

(b) What do you understand by the phrase ‘timeless tales’ ?
Answer:
‘Timeless tales’ means untouched by time. They are as fresh today as they  were years ago.

(c) How does the poet feel when he touches and feels the pages of his books ?
Answer:
The poet’s love for their old refrains.

C. Great verse, great thoughts, still stand the test
Of time that’s passing by so fast.
These good companions never fail
To give me joy, to nourish me.
We who love books will always be
The lucky ones’ our minds set free.

(a) According to the poet, what still stand the test of time ?
Answer:
According to the poet great verse and great thoughts still stand the test of time.

(b) What do you think the poet will always get from his good companions ?
Answer:
The poet will always get joy and nourishment from his good friends.

(c) Who according to the poet will always be the lucky ones ?
Answer:
According to the poet, those who love books will always be lucky ones.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books

Activity 5.
Books have been described using many names and adjectives. In the given table, list all the names and adjectives used by the poet to describe books.
Answer:

Nouns used for books Adjectives used for describing books
binding some
friends old
tales worn
refrains torn
verse fresh, alive, familiar
companions timeless, great, good

Learning Language

Tenses Tense is the form of a verb used to show the time of an action or a state. The three main tenses are :

  • the Present tense
  • the Past tense
  • the Future tense

Look at the following sentences :

1. I go to school everyday.
2. I went to school yesterday.
3. I shall go to school tomorrow.

  • In sentence 1, the verb ‘go’ refers to the present time and is therefore said to be in the present tense.
  • In sentence 2, the verb ‘went’ refers to an action that happened in the past time and is therefore said to be in the past tense.
  • In sentence 3, the word ‘shall go’ refers to the future time and is therefore said to be in the future tense.

1. Present Tense
Read the following sentences.

  • I help my mother every day.
  • I am helping my mother.
  • I have helped my mother.
  • I have been helping my mother since morning.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books

All the four sentences above refer to the present time and therefore are all in the Present Tense. But there is a distinction in the ways in which the action is taking place.

In Sentence 1, the action is mentioned simply. There is no reference to the completeness or incompleteness of the action. The verb ‘help’ is therefore said to be in the Simple Present Tense or the Present Indefinite Tense.

In Sentence 2, the action mentioned is incomplete. It is still going on. The verb ‘am helping’ is said to be in the Present Continuous Tense.

In Sentence 3, the action is mentioned as finished, complete or perfect. The verb ‘have helped’ is said to be in the Present Perfect Tense.

In Sentence 4, the action is mentioned as having been going on continuously but not completed at the present moment.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books

The verb ‘have been helping’ is said to be in the Present Perfect Continuous tense. So, the present tense has four forms :

  • Simple Present, or Present Indefinite
  • Present Continuous or Present Progressive
  • Present Perfect
  • Present Perfect Continuous

2. Past Tense
Just as the present tense has four forms, the past tense also has the following four forms :

1. I helped my mother yesterday. (Simple Past or Past Indefinite)
2. I was helping my mother. (Past Continuous or Past Progressive)
3. I had helped my mother. (Past Perfect)
4. I had been helping my mother. (Past Perfect Continuous)

3. Future Tense
Similarly, the future tense has the following four forms :

1. I shall call. (Simple Future or Future Indefinite)
2. I shall be calling. (Future Continuous or Future Progressive)
3. I shall have called. (Future Perfect)
4. I shall have been calling. (Future Perfect Continuous)

Look at the following chart for understanding forms of Tenses :

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books 1

Continuous Present Indefinite (Simple Present)

1. to express what is actually taking place now, for example :

  • Here comes the bride.
  • There goes the bus.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books

2. to express a habitual action, for example :

  • He gets up early in the morning.
  • He takes exercise everyday.
  • I go to school by bus.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books 2

3. to express some universal truth, for example :

  • The earth moves round the sun.
  • The sun rises in the east and sets in the west.
  • The soul is immortal.

4. to express a situation or a fact that is permanent, for example :

  • My house faces the east.
  • This road runs from Ludhiana to Delhi.

5. to express a future action, when the futurity is indicated by them, for example :

  • The college reopens next week.
  • We leave by the 8.30 a.m. train.

Look at the tables below to understand how the present tense works.

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books 3
Answer:
PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books 5

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books

When we talk about singular subjects, we add-s/es to the verb. For example ‘he’, ‘she’ ‘iť and other singular subjects such as ‘this toy’, ‘the table etc.
PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books 4
Answer:
PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books 6

More examples :
(a) He drives to work.
(b) She works in an office.
(c) The bank opens at 9:00 a.m.
We do not use ‘be’ verb with the main verb in the simple present tense.
For example :
He works at a bank. (Correct)
He is work at a bank. (Incorrect)

Activity 6.

Underline the correct form of the verb to complete each sentence.
1. Priya love/loves her work.
2. He study/studies agriculture.
3. A salesperson sell/sells products for a company.
4. Sunita work/works in a bank.
5. Nurses help/helps people.
6. We write/writes English books.
7. Your office close/closes at 5:00 p.m.
8. She teach/teaches in a school.
9. I walk/walks to work everyday.
10. I start/starts work at 8:00 a.m. every morning.
Answer:
1. loves
2. studies
3. sells
4. works
5. help
6. write
7. closes
8. teaches
9. walk
10. start.

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Present Continuous

It is used to express an action going on at the time of speaking. It is often associated with adverbs and adverb phrases, of present time, such as ‘now’, ‘at present, ‘at this moment’, etc.
For example :

  • What are you doing now?
  • Mohan is singing a song now.

This tense is sometimes used to mark an action that will happen in the future. For example :

  • We are leaving for London tomorrow.
  • She’s coming to meet me next week.

Activity 7.

Fill in the blanks with the correct form of the verb, Present Continuous or Present Simple.

1. I ……………… (not/belong) to Delhi.
2. Hurry! The bus …………….. (come).
3. Seema is a vegetarian. She ……………. (not/eat) meat
4. I ……………. (look) for a maid.
5. Jayati ……………. (eat) oranges.
6. At the moment, we ……………. (make) a video of the party.
7. I ……………… (know) what Mr Sharma wants to buy.
8. I …………….. (apply) for a job in a school but I don’t know if I will be successful.
9. Vanita ……………. (do) some research in the library.
10. She always ……………… (remember) my birthday.
11. Mr Brown …………… (work) in a supermarket.
12. Look! It ……………. (snow).
13. Do you …………… (know) Helen?
14. Look! That woman ……………. (try) to steal that man’s wallet.
15. The Ganges ……………. (flow) into the Bay of Bengal.
Answer:
1. do not belong
2. is coming
3. does not eat
4. am looking
5. eats
6. are making
7. know
8. am applying
9. is doing
10. remembers
11. works
12. is snowing
13. know
14. is trying
15. flows.

Present Perfect

This tense is used :

1. to express an action that has just been completed, for example :

  • The sun has set.
  • We have just arrived.

2. to express a past action the results of which still continue, for example:

  • I have lived in Mumbai for ten years. (the speaker is still living in Mumbai)
  • We have known each other for the past two years.

3. to express a Future Perfect when such words as ‘when’, ‘before’, ‘as soon as’, ’till, ‘after are used before it, for example :

  • I shall go there after I have done my work. (as soon as I finish my work)

Present Perfect Continuous

It shows the action that began in the past and is continuing up to the present time, for example :

  • I have been standing here for two hours.
  • It has been raining since morning.

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Note : In the Present Perfect Continuous tense, ‘since’ and ‘for are used to indicate point of time and period of time respectively, for example :

  • We have been living here since 1955.
  • Meena has been dancing since morning.
  • The girls have been playing for three hours.
  • It has been snowing for two hours.

Activity 8.

Fill in the blanks with the Present Perfect or Present Perfect Continuous forms of the verbs given in the brackets.

(a) Someone …………… the window. (break).
(b) Reeta …………….. her pen. (lose)
(c) We ……………. many medals. (win)
(d) I …………… for a house for two months. (search)
(e) The train ………….. just …………… at the platform. (arrive)
(f) ……………. he …………….. a beard ? (grow)
(g) …………….. you …………….. the Gita ? (read)
(h) I …………….. my uncle for months. (not visit)
(i) She …………….. to Paris twice. (be)
(j) We ……………. already …………. Our breakfast. (have)
Answer:
(a) has broken
(b) has lost
(c) have won
(d) have been searching
(e) has arrived
(f) Has, grown
(g) Have, read
(h) have not visited
(i) has been
(j) have, had.

Learning to Listen (Pairwork)

Activity 9.

Your teacher will tell you a story. Listen to it carefully and fill in the blanks with the words from the story. For the last paragraph, you will write all the words. The teacher will read the passage twice and the last part of the story will be read three times. Once upon a time, there was a shepherd who bought a …………. of sheep. He also had ……… who helped him to …………… his sheep. When the sheep grew up a little, the ………4…. realised that these sheep just …………….. not stop bleating. All day long, the sheep bleated-”Baaah baaah.” What a deafening sound they made; and they just ignored the ……………. commands. He used all the ……………. he could to get the sheep to listen to him and to his dog, but the …………….. didn’t care. Finally, seeing as the sheep wouldn’t stop …………….. the shepherd decided to at least have some ……10……. with it. He bought an enormous ear and transported it out to his fields on the ……..11….. of his wagon.
Answer:
1. flock
2. dog
3. control
4. shepherd
5. would
6. shepherd’s
7. means
8. sheep
9. bleating
10. fun
11. back

Learning to Speak (Pairwork)

Activity 10.

Take a currency note of any value. Describe the currency note to your partner. You must talk about various things that are there on the note and their colour, size, number, location
(where on the note) etc.
Answer:
Your partner will write/draw all the items that you describe on the currency note. You will take turns in describing. The teacher will look at the notes made by your partner to check whether the description matches with the drawing/writing.

Currency Note : ₹500

  • Issued By : Reserve Bank of India
  • Guaranteed by : The Central Government
  • Colour : Stone grey
  • Number : 3 NC 7…… 7
  • Size : 63 mm x 150 mm
  • Shape : Rectangular

Special feature (Design Elements)

  • Picture of Mahatma Gandhi
  • Picture of Red Fort (Historical Building)
  • Picture of National Emblem
  • Symbol of Swachh Bharat

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Learning to write (Pairwork)

Activity 11.

Look at the picture below. The pictures are in a sequence. Work together and write a short story based on the pictures.
PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books 10
It was winter. The days were snowy. There was a thick sheet of snow on the earth. Trees was bare. Birds got no shelter, no food. Little Minni and her father came to their help. They took some cardboard and gum. They made a small hut for the birds. They put some food grains in it also. Now the little birds were happy.

Learning to Use the Language (Pairwork)

Read the following poster very carefully.
PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books 11

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books

Activity 12.

Write the dialogue using the hints given in the poster on page

Partner 1 : Engage in a dialogue with your friend to invite him/her over to your home for dinner.
Partner 2 : Decline the invitation after asking questions about the day, time, occasion, etc.
Partner 1 : Hi Ramesh ! You are back to India. I am going to arrange a dinner party tonight. Would you like to come over for that ?
Partner 2 : What is the time? Where are you going to arrange it ? Is this some special occasion ?
Partner 1 : Tonight at 9 p.m. at hotel Sun. Forgot ! It is my birthday today.
Partner 2 : I’d love to come. But I’m afraid I am busy tonight.

Comprehension Of Stanzas

Read the following stanza (extract) and answer the questions given below each :

1. Some books I’ll never give away,
Though old and worn, their binding torn,
Upon my shelves they’ll always stay,
Alive, still read, still fresh each dawn,
Their magic moments never gone.

1. What shows the poet’s love for books ?
क्या बात पुस्तकों के प्रति कवि के प्रेम को व्यक्त करती है ?

2. What do the words ‘Their magic moments’ suggest ?
“Their Magic Moments” शब्द क्या सुझाव देते है?

3. Write in three or four sentences, the central idea of the poem.
तीन या चार पंक्तियों में कविता का केंद्रीय भाव लिखें।
Answer:
1. Some of the poet’s books are old and torn. Still he enjoys reading them everyday.
He keeps them on his shelves.
2. “Their magic moments’ means time for the poet to read his books. He reads them every morning.
3. Read C- ‘Central Idea of the poem.

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नोट : अन्य Comprehension Stanzas के लिए Textual Exercises में दिए गए Comprehension का अध्ययन करें।

Word Meanings
PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books 9

We Who Love Books Poem Summary in English

We Who Love Books Summary in English

Books have timeless value. They never become old. They are as fresh today as they were long ago. They are a big source of joy and information. The poet has great love for books. He loves reading books since he was ten. He keeps them on his shelves. Though the binding of some books is torn yet he never parts with them. He still reads them with the same interest. He calls them familiar and good friends.The poet says that great thoughts and great verse never lose their charm. They always stand the test of time. Lucky are those who love books.

We Who Love Books Summary in Hindi

पुस्तकों के महत्त्व की कोई समय सीमा नहीं होती। वे आज भी उतनी ही ताज़ा लगती हैं, जितनी वे बहुत समय पहले थीं। वे खुशी तथा जानकारी का बहुत बड़ा साधन हैं। कवि को पुस्तकों से बहुत अधिक प्रेम है। उसे दस साल की आयु से पुस्तकें पढ़ने से प्रेम है। वह उन्हें अपनी शेल्वज़ पर रखता है। यद्यपि उनमें से कुछ पुस्तकों की सिलाई खुल चुकी है, तो भी वह उन्हें वहां से कभी नहीं हटाता। वह अब भी उन्हें पूरी रुचि के साथ पढ़ता है। वह उन्हें जाने-पहचाने और अच्छे मित्र कह कर बुलाता है। कवि कहता है कि महान् विचारों तथा महान् काव्यांश का आकर्षण कभी समाप्त नहीं होता। वे समय की कसौटी पर खरे उतरते हैं। वे लोग भाग्यशाली हैं, जिन्हें पुस्तकों से प्रेम है।

PSEB 8th Class English Solutions Poem 3 We Who Love Books

Central Idea Of The Poem

The poem brings out the pleasure of reading. Love for books is a great blessing. It is a joy for ever. The books have everlasting value. The great thoughts of books are always fresh and stand the test of time. Therefore lucky are those who love books and enjoy books.