PSEB 8th Class Science Notes Chapter 4 पदार्थ : धातु और अधातु

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PSEB 8th Class Science Notes Chapter 4 पदार्थ : धातु और अधातु

→ पदार्थ को धातु या अधातु दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है।

→ धातुएँ, अधातुओं से भौतिक और रासायनिक गुणों में भिन्न होते हैं।

→ धातु सामान्यतः चमकीले, कठोर, अधात्विक, आघातवर्धनीय और तन्य होते हैं। ये विदयुत् और ऊष्मा के चालक होते हैं। ये कक्ष ताप पर ठोस होते हैं। केवल पारा (Mercury) हो कक्ष ताप पर तरल है।

→ अधातु निष्प्रभ (बिना चमक) वाले होते हैं। ये विद्युत् और ऊष्मा के कुचालक, बिना आवाज़ वाले और भुरभुरे होते हैं। ये कक्ष ताप पर ठोस, तरल और गैसीय अवस्था में पाए जाते हैं। इनके गलनांक निम्न होते हैं।

→ धातुएँ ऑक्सीजन के साथ क्रिया करके क्षारीय ऑक्साइड बनाती है।

→ अधातुएँ ऑक्सीजन के साथ क्रिया करके अम्लीय ऑक्साइड बनाती है।

→ लोहा, पानी और वायु से क्रिया करके जंग लगाता है।

→ कुछ धातुएँ पानी के साथ अभिक्रिया करती हैं। सोडियम तीव्रता से ठंडे पानी के साथ अभिक्रिया करके सोडियम हाइड्रोऑक्साइड और हाइड्रोजन उत्पन्न करता है। सोना की भाप से भी अभिक्रिया नहीं होती।

→ सोडियम को मिट्टी के तेल में रखा जाता है।

→ फास्फोरस जल में रखा जाता है, क्योंकि यह वायु के साथ सक्रिय है।

→ अधातु पानी के साथ अभिक्रिया नहीं करते।

→ कुछ धातु अम्लों (हाइड्रोक्लोरिक अम्ल) के साथ अभिक्रिया करके हाइड्रोजन विस्थापित करती हैं। सोना, तांबा और चांदी पर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का कोई प्रभाव नहीं होता।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 4 पदार्थ : धातु और अधातु

→ धातुओं की जल, वायु और अम्लों के साथ अभिक्रिया क्षमता के कारण अभिक्रियाशील श्रृंखला है-सोना, चांदी, तांबा, लोहा, जिंक, एल्यूमीनियम, मैग्नीशियम, और सोडियम।

→ अधिक अभिक्रियाशील धातु कम अभिक्रियाशील धातु का उसके धात्विक यौगिकों के जलीय विलयन में विस्थापित कर देती है।

→ हाइड्रोजन गैस ‘पॉप’ ध्वनि में जलती है।

→ धातुओं का उपयोग रसोई घर की वस्तुएँ में व्यापक रूप में होता है।

→ अधातुएँ भी काफ़ी उपयोग में आती हैं।

→ ऑक्सीजन जीवन के लिए अति आवश्यक है।

→ नाइट्रोजन का उपयोग उर्वरकों और पटाखों के निर्माण में होता है।

→ मानव शरीर को लोहा, मैग्नीशियम तथा सोडियम आदि की आवश्यकता रहती है।

→ आघातवर्धनीयता (Malleability)-धातुओं का गुण, जिसके कारण उन्हें हथौड़े से पीटकर शीट (चादर) में परिवर्तित किया जाता है।

→ तन्यता (Ductility)-धातुओं का वह गुण, जिससे उन्हें खींचकर तारों में परिवर्तित किया जा सकता है।

→ ध्वानिक (Sonorus)-धातुओं को टकराने पर उत्पन्न निनाद ध्वनि का गुण।

→ चमकीलापन (Lustre)-पदार्थों में चमकती सतह का गुण।

→ चालकता (Canductance)-धातुओं का गुण जिसके द्वारा विद्युत् या उष्मा एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचती है।

→ अम्लीय ऑक्साइड (Acidic Oxide)-अधातुओं के ऑक्साइड, जिन्हें जल में घोलकर अम्ल बनाते हैं।

→ क्षारीय ऑक्साइड (Basic Oxide)-धातुओं के ऑक्साइड, जो जल में घुलकर क्षार बनाते हैं।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 3 संश्लेषित रेशे और प्लास्टिक

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PSEB 8th Class Science Notes Chapter 3 संश्लेषित रेशे और प्लास्टिक

→ रेशों से कपड़े बनते हैं।

→ तागों के मिलने से रेशे बनते हैं।

→ तागे कृत्रिम अथवा प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त हो सकते हैं।

→ संश्लेषित रेशों को मानव निर्मित अथवा कृत्रिम रेशे भी कहते हैं।

→ संश्लेषित अथवा कृत्रिम रेशे छोटी इकाइयों को जोड़कर बनायी गई एक लंबी श्रृंखला है। बहुत बड़ी शृंखला को बहुलक (पालीमर) कहते हैं।

→ सेलुलोज़ एक प्राकृतिक बहुलक है।

→ रेयॉन, नाइलॉन, पॉलिएस्टर अथवा ऐक्रिलिक मानव निर्मित रेशे हैं।

→ प्राकृतिक रेशों (कपास, रेशम आदि) के स्रोत पौधे और जंतु हैं।

→ कृत्रिम रेशों के स्रोत पौधे (लकड़ी) या जीवाश्म ईंधन (कोयला आदि) हैं।

→ नाइलॉन पहला पूर्ण संश्लेषित रेशा था।

→ विभिन्न रेशे अपनी प्रबलता, जल अवशोषण क्षमता, दहन प्रकृति, मूल्य, चिरस्थायित्व, उपलब्धता और रख-रखाव परिस्थितियों से पहचाने जाते हैं।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 3 संश्लेषित रेशे और प्लास्टिक

→ प्लास्टिक एक बहुलक है, जिसमें छोटी इकाइयाँ विभिन्न आकारों से जुड़ी हैं।

→ प्लास्टिक दो किस्म के हैं

  1. थर्मोप्लास्टिक,
  2. थर्मोसेटिंग प्लास्टिक।

→ पॉलिथीन भी एक प्रकार का प्लास्टिक है।

→ प्लास्टिक हल्का, मज़बूत, चिरस्थायी, जंगरहित, उष्मा और विद्युत् का रोधक है।

→ प्लास्टिक अपशिष्ट पर्यावरण हितैषी नहीं है। यह जैव अनिम्नीकरण प्रकृति का है। जलने पर यह विषैली गैसें उत्पन्न करता है, जो बदबू फैलाती हैं। भूमि पर डालने से, भूमि बंजर हो जाती है, क्योंकि इसका अपघटन जल्दी नहीं होता।

→ संश्लेषित अपशिष्ट के निस्तारण को 4R सिद्धांत (Reduce. Reuse. Recycle. Recover) को ध्यान में रखकर करना चाहिए।

→ मानव-निर्मित रेशे (Man made fibres)- मानव द्वारा बनाए गए रेशों को मानव निर्मित रेशे कहते हैं।

→ पॉलिमर (Polymer)-रसायने पदार्थों की एक जैसी छोटी इकाइयों से मिलकर बनी एक लंबी श्रृंखला अथवा एक जैसी छोटी इकाइयों से बनी बड़ी शृंखला।

→ रेयॉन (Rayon)-कृत्रिम रेशा जिसकी प्रकृति रेशम जैसी होती है इसे कृत्रिम रेशम भी कहते हैं।

→ पेट (PET)-पालिएस्टर की एक विशेष किस्म जिससे बोतलें, फिल्में, तारें, बर्तन आदि बनाए जाते हैं।

→ थर्मोप्लास्टिक (Thermoplastic)-प्लास्टिक की किस्म, जो गर्म होने पर अपना आकार बदल लेती है और आसानी से मुड़ सकती है, थर्मोप्लास्टिक कहलाती है।

→ थर्मोसैटिंग प्लास्टिक (Thermo Setting Plastic)-प्लास्टिक की किस्म, जो गर्म करने पर नर्म नहीं होती, थर्मोसैटिंग प्लास्टिक कहलाती है। इसे केवल एक ही बार साँचे में डाला जा सकता है।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 2 सूक्ष्मजीव : मित्र एवं शत्रु

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PSEB 8th Class Science Notes Chapter 2 सूक्ष्मजीव : मित्र एवं शत्रु

→ सुक्ष्मजीव बहुत ही छोटे जीव हैं, जिन्हें केवल सूक्ष्मदर्शी (Microscope) द्वारा ही देखा जा सकता है।

→ सूक्ष्मजीव सभी प्रकार की परिस्थितियों में जीवित रह सकते हैं जैसे गर्म स्रोतों, बर्फीय जल, लवणीय जल, रेगिस्तानी मिट्टी और दलदली मिट्टी (marshy land)

→ सूक्ष्मजीवों का वर्गीकरण जीवाणु, कवक, प्रोटोज़ोआ, शैवाल और विषाणुओं में किया जाता है।

→ सूक्ष्मजीव सभी प्रकार के आवासों में पाए जाते हैं। प्रायः यह एक कोशिक होते हैं, पर कभी-कभी श्रृंखला अथवा समूह में भी पाए जाते हैं।

→ सूक्ष्मजीवों का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है।

→ जीवाणु हर जगह पाए जाते हैं और बहुत छोटे होते हैं।

→ जीवाणु के व्यास का आकार एक मिलीमीटर के एक हज़ारवें भाग का 1.25 गुणन है।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 2 सूक्ष्मजीव : मित्र एवं शत्रु

→ जीवाणु की तीन किस्में

  1. छड़ नुमा,
  2. गोल और
  3. कुंडलीनुमा है।

→ जीवाणु, स्वपोषी अथवा परपोषी हो सकते हैं।

→ जीवाणु, कोशिका विखंडन अथवा विविखंडन से प्रजनन करते हैं।

→ शैवाल और जीवाणुओं में कई समानताएँ हैं।

→ साइनोबैक्टीरिया वातावरणी नाइट्रोजन को स्थिर कर मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाते हैं।

→ डायटम एक सूक्ष्म शैवाल है, जो झरनों, तलछटी और समुद्र में पाया जाता है।

→ कवक परजीवी तथा मृतजीवी होते हैं।

→ कुछ कवक खाद्य पदार्थ, चमड़ा, कागज़ और कपड़े को नष्ट करते हैं तो कुछ फसल और जानवरों के लिए घातक होते हैं।

→ खमीर (Yeast) एक कोशिक और परजीवी कवक है, जिसका उपयोग किण्वन (Fermentation) द्वारा बियर, शराब और दूसरे पेयजल बनाने में किया जाता है।

→ विषाणु (Virus) एक कोशिक मृतजीवी है जो कोशिका में गुणन करने की क्षमता रखता है।

→ प्रोटोज़ोआ (Protozoa) एक कोशीय सूक्ष्मजीव है जो पेचिश और मलेरिया जैसे रोग फैलाते हैं।

→ भोजन विषाक्तता (Food Poisoning) सूक्ष्मजीवों द्वारा नष्ट किए भोजन खाने से होती है।

→ भोजन पर वृद्धि करने वाले सूक्ष्मजीव विषैले पदार्थ उत्पन्न करते हैं।

→ भोजन के संरक्षण के मुख्य तरीके-रासायनिक तरीका जिसमें नमक मिलाना, चीनी मिलाना, तेल और सिरका मिलाना, गर्म और ठंडा करने की विधियाँ अपनाई जाती हैं।

→ प्रोटोज़ोआ (Protozoa)- यह एक कोशिक (Unicellular) सूक्ष्मजीव है, जो पेचिश और मलेरिया जैसे रोग फैलाते हैं।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 2 सूक्ष्मजीव : मित्र एवं शत्रु

→ कवक (Fungi)-कवक सूक्ष्मजीव पादप हैं जो हरे नहीं होते और खाद्य पदार्थों को संदूषित करते हैं।

→ विषाणु (Virus)-यह सूक्ष्मजीव सजीव और निर्जीव की सीमा रेखा पर है।

→ यह केवल पोषी (host) के शरीर में ही प्रजनन करते हैं।

→ जीवाणु (Bacteria)-यह सूक्ष्मजीव हर व्यापक जगह पर पाए जाते हैं और आकार में बहुत छोटे होते हैं। यह पोषण के आधार पर स्वपोषी और परपोषी हो सकते हैं।

→ खमीर (Yeast) खमीर एक कोशिक कवक है जो किण्वन द्वारा बियर, शराब और दूसरे पेय पदार्थ बनाने के काम आता है।

→ राइजोबियम (Rhizobium)-यह एक जीवाणु है जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक होता है। यह फलीदार पौधों की जड़ ग्रंथियों में पाया जाता है।

→ मिट्टी की उर्वरता (Soil Fertility)- मिट्टी में नाइट्रोजन पोषक तत्त्व की आपूर्ति ही मिट्टी की उर्वरता है। यह जीवाणु और नीले हरे शैवाल द्वारा होती है।

→ सूक्ष्मजीव (Microorganism)- बहुत छोटे जीव जिन्हें नंगी आँख द्वारा नहीं देखा जा सकता। इन्हें केवल सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है। यह सभी प्रकार के आवास में रहते हैं।

→ लैक्टोबेसिलस (Lactobacillus)-दूध में पाए जाने वाले जीवाणु, जो दही जमाने में सहायक होते हैं, लैक्टोबेसिलस कहलाते हैं।

→ वाहक (Carriers)-वाहक वे कीट या दूसरे जीव हैं जो रोग फैलाने वाले सूक्ष्मजीवों का संचारण करते हैं।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 2 सूक्ष्मजीव : मित्र एवं शत्रु

→ प्रतिरक्षी (Antibodies)-जब रोगाणु शरीर में प्रवेश करते हैं तो शरीर रोगाणुओं से लड़ने के लिए प्रतिरक्षी उत्पन्न करता है।

→ टीका (Vaccine)-यह मृत अथवा कमज़ोर सूक्ष्मजीव है जिन्हें स्वस्थ शरीर में प्रवेश कराया जाता है।

→ रोगाणु (Pathogen)-रोग फैलाने वाले सूक्ष्मजीव रोगाणु कहलाते हैं।

→ किण्वन (Fermentation)-चीनी को एल्कोहल में सूक्ष्मजीव खमीर द्वारा परिवर्तित करने की क्रिया किण्वन कहलाती है।

→ नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Fixation of Nitrogen)-सूक्ष्मजीवों द्वारा वायुमंडलीय नाइट्रोजन को नाइट्राइट और नाइट्रेट में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहते हैं। यह राइजोबियम जीवाणुओं द्वारा संभव होता है।

→ नाइट्रोजन चक्र (Nitrogen Cycle)-वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण, नाइट्रीफिकेशन, डीनाइट्रीफिकेशन, आदि प्रक्रियाओं के बाद वापस नाइट्रोजन के रूप में वायुमंडल में प्रवेश करना ही नाइट्रोजन चक्र है।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 1 फसल उत्पादन एवं प्रबंध

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PSEB 8th Class Science Notes Chapter 1 फसल उत्पादन एवं प्रबंध

→ खेत में पौधों को उगाना और देखभाल करना कृषि उत्पादन (Crop Yield) कहलाता है।

→ धन कमाने के लिए जो फसल उगाई जाती है, उसे नकदी फसल (Cash Crop) कहते हैं।

→ फसल के अतिरिक्त, सब्जियां, फल और फूल भी उगाए जाते हैं। यह हार्टीक्लचर (Horticulture) में आते हैं।

→ पौधों की उचित वृद्धि के लिए जल, ऑक्सीजन, सूर्य का प्रकाश और पोषक तत्त्व आवश्यक हैं।

→ कृषि उत्पादन में कुछ पद्धतियों का वैज्ञानिक ढंग से उपयोग होता है।

→ भूमि को नर्म और समतल करना मिट्टी तैयार करना अथवा जुताई कहलाता है। इससे जड़ें आसानी से मिट्टी में नीचे तक बढ़ती हैं।

→ पौधों को समय-समय पर पानी देने की विधि सिंचाई कहलाती है।

→ सिंचाई के साधन हैं-कुएं, ट्यूबवेल, तालाब, झीलें, नदियां, बाँध और नहरें।

→ सिंचाई की आधुनिक विधियां हैं-छिड़काव तंत्र और ड्रिप तंत्र।

→ बीज खेतों में हाथों द्वारा तथा सीड-ड्रिल द्वारा बोए जाते हैं।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 1 फसल उत्पादन एवं प्रबंध

→ पौध (Seedling) एक छोटा पौधा है। पौध को पौधशाला (नर्सरी) से खेत में रोपने को रोपण विधि कहते हैं।

→ ह्यूमस कार्बनिक पदार्थ से बनी मिट्टी की ऊपरी सतह है जो पौधों और पशुओं के अपशिष्ट के अपघटन से बनती है।

→ खाद पौधों और पशुओं के अपशिष्ट से तैयार की जाती है। उर्वरक एक रासायनिक मिश्रण है जिसमें पोटाशियम, नाइट्रोजन और फास्फोरस भरपूर उचित मात्रा में होते हैं। खाद और उर्वरक मिट्टी में पोषक तत्त्वों की पूर्ति करते हैं।

→ फसल के साथ उगने वाले अवांछित पौधे, खरपतवार कहलाते हैं। इन्हें खरपतवारनाशी छिड़क कर दूर किया जाता है।

→ कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इन पर कीटनाशक का छिड़काव किया जाता है।

→ ऋतुओं के आधार पर फसलों के दो वर्ग हैं

  1. रबी (Rabi) और
  2. खरीफ (Kharif) ।

→ कटाई करते समय फसल को निकाला जाता है या काटा जाता है।

→ दानों को भूसे से अलग करने की विधि को थ्रेशिंग कहते हैं। फटकने (Winnowing) से दाने भूसे से अलग हो जाते हैं।

→ मिश्रित कृषि में दो या तीन फसलें एक ही खेत में इकट्ठी उगाई जाती हैं।

→ गाय, भैंस, पोल्टरी पक्षी और मछली का पालन माँस, अंडे और दूध जैसे खाद्य पदार्थों की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

→ पालतू पशुओं को उचित भोजन, आवास एवं देखभाल की आवश्यकता होती है।

→ कटाई ऋतु के साथ कुछ विशेष पर्व जैसे पोंगल, वैसाखी, होली, दीवाली, नबान्या और बीहू जुड़े हुए हैं।

→ कृषि पद्धतियां (Agricultural Practices)- फसल उगाने के लिए किसान द्वारा सामयिक अवधि में अपनाए कई क्रिया-कलापों को कृषि पद्धतियां कहते हैं।

→ मिट्टी की तैयारी (Preparation of Soil)-फसल उगाने से पहले मिट्टी को पलटना, पोला बनाना और समतल करना पड़ता है। इसे जुताई कहते हैं।

→ बुआई (Sowing)-मिट्टी में बीज बोने की विधि को बुआई कहते हैं।

→ खाद और उर्वरक (Manures and Fertilizers)-वे कार्बनिक और रासायनिक पदार्थ जो फसल की अच्छी वृद्धि के लिए पोषकों के रूप में मिट्टी में मिलाए जाते हैं, खाद और उर्वरक कहलाते हैं।

→ सिंचाई (Irrigation)-पौधों की वृद्धि के लिए समय-समय पर पानी देने की विधि, सिंचाई कहलाती है।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 1 फसल उत्पादन एवं प्रबंध

→ कटाई (Harvesting)-पकने पर फसल काटने की विधि कटाई कहलाती है।

→ भंडारण (Storage)- फसल के दानों का बड़े-बड़े भंडार गृहों में भंडारण किया जाता है।

→ निराई (Weeding)-खरपतवार को खेत से बाहर निकालने की विधि निराई कहलाती है।

→ पशुपालन (Animal Husbandry)- पशुओं के उचित भोजन, आवास और देखभाल को पशुपालन कहते हैं।

→ साइलो (Silos)-बीजों का बड़े पैमाने पर भंडारण करने के लिए प्रयुक्त होने वाले बड़े पात्र, साइलो कहलाते हैं।

→ भंडार गृह (Granaries)-बड़े-बड़े खुले कमरे जहां अनाज के दानों को बड़े पैमाने पर सुरक्षित संभाल कर रखा जाता है।

→ थ्रेशिंग (Threshing)- भूसे से अनाज के दानों को पृथक् करने की विधि को थ्रेशिंग कहते हैं।

→ खरपतवार (Weeds)- अवांछित पौधे जो खेतों में अपने आप उग आते हैं, खरपतवार कहलाते हैं।

→ खरपतवारनाशी(Weedicides)-वे रसायन जो खरपतवारों को नष्ट करते हैं, खरपतवारनाशी कहलाते हैं।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी

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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी

→ मल प्रवाह (वाहित मल) अपशिष्ट जल है जिसमें घुली हुई तथा लटकती ठोस अशुद्धियाँ मौजूद होती हैं, जिन्हें प्रदूषक कहते हैं।

→ धरती के नीचे बिछी हुई पाइपों का जाल जो घर से व्यर्थ पानी के निपटारे वाली स्थान तक पहुँचती है, को विसर्जन प्रणाली कहते हैं।

→ मल प्रवाह/वाहित मल को बन्द पाइपों के द्वारा अपशिष्ट जल-शोधक प्रणाली तक लाया जाता है जहाँ इसमें से दूषकों को अलग करके शोध लिया जाता है तथा फिर नदियों, समुद्रों में बहा दिया जाता है।

→ अपशिष्ट जल शोध दौरान उपस्थित दूषकों को भौतिक, रासायनिक तथा जैविक विधियों के द्वारा अलग किया जाता है।

→ गार वह ठोस पदार्थ है जो जल शुद्धिकरण के दौरान नीचे बैठ जाता है।

→ अपशिष्ट जल शोध के सह-उत्पाद, आपंक (गार) और बायोगैस हैं।

→ मैनहोल ढक्कन से ढका हुआ वह स्थान होता है जिस रास्ते से व्यक्ति अन्दर जाकर वाहित मल/मल प्रवाह प्रणाली चैक कर सकता है।

→ खुला मल प्रवाह मक्खियों, मच्छरों तथा अन्य कीटों का प्रजनन-स्थल होता है। जो कई बीमारियां पैदा करते है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 18 अपशिष्ट जल की कहानी

→ तेल, घी, ग्रीस आदि को ड्रेन या खुले में न फेंके। ऐसा करने से ड्रेन बन्द (चोक) हो जाएगा।

→ कूड़े को केवल कूड़ेदान में ही फेंकें।

→ प्रदूषक : गन्दे जल में घुली हुईं तथा लटकती हुई अशुद्धियों (निलंबित अपद्रव्य) को प्रदूषक कहते हैं।

→ सीवर : छोटे तथा बड़े पाइपों के जाल जो अपशिष्ट जल को निकासी के स्थान तक लेकर जाता है।

→ मेनहोल : विसर्जन प्रणाली के हर 50-60 मीटर की दूरी पर जहाँ दिशा बदलती है वहाँ खले मुँह वाले बड़े सुराख बनाए जाते हैं। जिनके अन्दर दाखिल होकर व्यक्ति जल मल निकासी समस्या की जाँच कर सके।

→ जल शोधक प्रणाली : ऐसी जगह अथवा स्थान जहाँ अपशिष्ट जल में से अशुद्धियों को अलग किया जाता है।

→ जल शोधन : अपशिष्ट जल में से अशुद्धियों को अलग करने की प्रक्रिया को जल साफ़ करना या जल शोधन या उपचार कहते हैं।

→ आपंक अथवा गार : जल शुद्धिकरण टैंक में बैठ गया ठोस पदार्थ ही आपंक अथवा गार है।

→ सैप्टिक टैंक : यह मल-प्रवाह शोध की ऐसी छोटी-सी प्रणाली होती है जिसमें ऑक्सीजन रहित जीवाणु होते हैं जो अपशिष्ट पदार्थों को अपघटित करते हैं। इसका मुख्य मल विसर्जन पाइपों से कोई सम्बन्ध नहीं होता।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 17 वन: हमारी जीवन रेखा

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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 17 वन: हमारी जीवन रेखा

→ पौधों, जंतुओं तथा सूक्ष्मजीवों से बनी एक प्रणाली को वन कहते हैं।

→ वनों की परतें चंदोया (Canopy) बीच की परत ताज (Crown) तथा निम्न परत (Understory) होते हैं।

→ वन भूमि-अपरदन से रक्षा करते हैं।

→ भूमि वृक्षों के उगने तथा बढ़ने में सहायता करती है।

→ ह्यूमस से पता लगता है कि मृत पौधे तथा जंतुओं के शरीर से पोषक, मिट्टी में शामिल हुए हैं।

→ वन हरे फेफड़ों की भांति कार्य करते हैं तथा इनसे कई उत्पाद प्राप्त होते हैं। इसलिए वन बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

→ वन एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी सबसे ऊपरी सतह वृक्ष शिखर बनाते हैं।

→ वन हमेशा हरे रंग के होते हैं।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 17 वन: हमारी जीवन रेखा

→ विभिन्न प्रकार के जंतु, पौधे तथा कीट जंगलों में पाए जाते हैं।

→ सभी वन्य जंतु, शाकाहारी या मांसाहारी, किसी-न-किसी रूप में वन में पाए जाने वाले भोजन के लिए पौधों पर निर्भर करते हैं।

→ वन बढ़ते और विकास करते रहते हैं तथा पुनर्स्थापित (Regenerate) हो सकते हैं।

→ वन जलवायु, जल-चक्र और हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।

→ वृक्ष, झांड़ियां, वनस्पति, जड़ी-बूटियां आदि जंगल से प्राप्त होते हैं।

→ वृक्षों और पौधों की ऊंचाई के अनुसार वनों को तीन श्रेणियों-

  1. चंदोया
  2. ताज तथा
  3. निम्न परत में । रखा गया है।

→ वनों की मृदा/मिट्टी पुनउत्पत्ति में सहायक होती है।

→ वन भूमि को अपरदन (Soil Erosion) से बचाते हैं।

→ वन के पौधे वाष्पोत्सर्जन करते हैं तथा वर्षा लाने में सहायक होते हैं।

→ वन जंगली कई पौधों, जंतुओं तथा सूक्ष्म-जीवों से मिलकर बनी एक प्रणाली है।

→ वन में वनस्पति की भिन्न-भिन्न परतें जंतुओं, पक्षियों और कीटों को भोजन और सहारा प्रदान करती हैं।

→ वन में मिट्टी, जल, हवा तथा सजीवों का आपस में आदान-प्रदान होता है।

→ क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के लिए वन उनके जीवन के लिए ज़रूरी सामग्री उपलब्ध करवाते हैं।

→ वन जलवायु, जल-चक्र और हवा की खूबी को बनाए रखते हैं और नियमित करते हैं।

→ अपघटक पौधों और जीव-जंतुओं के मृत शरीरों पर निर्भर करते हैं और उनको सरल पदार्थों में अपघटित करते हैं।

→ वनों की कटाई से विश्व तापन होता है, वर्षा कम होती है, प्रदूषण बढ़ता है और भूमि अपरदन होता है।

→ प्रकृति में संतुलन कायम करने और वन्य जीवों तथा पौधों का निवास बनाए रखने के लिए वन का संरक्षण आवश्यक है।

→ वन : वन एक ऐसा क्षेत्र होता है जहां जीव-जन्तुओं समेत बहुत घने पौधे, वृक्ष, झाड़ियां तथा बूटियां प्रकृतिक रूप से उगी होती हैं।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 17 वन: हमारी जीवन रेखा

→ चंदोया : वृक्षों की डोलियां ऊपरी परत पृथ्वी पर वृक्षों की घनी छत बनाती हैं, जिसे चंदोया कहते हैं।

→ ताज या मुकुट : वह परत जिसमें डालियां तथा तने आते हैं, उसे ताज कहते हैं।

→ निम्न परत : निचला छाया वाला क्षेत्र जहां बहुत कम प्रकाश होता है।

5. पारिस्थितिक प्रबंध : सजीव और उनका वातावरण मिलकर पारिस्थितिक प्रबन्ध बनाते हैं। पौधे, जंतु तथा सूक्ष्मजीव पारिस्थितिक प्रबंध के जैविक अंश हैं। इन्हें विभिन्न श्रेणियों उत्पादक, खपतकार तथा अपघटक में बांटा गया है।

→ भोजन-चक्र : ऐसा चक्र जिसमें उत्पादक को शाकाहारी खाता है और शाकाहारी को मांसाहारी खाता है, को भोजन-चक्र कहते हैं।
PSEB 7th Class Science Notes Chapter 17 वन हमारी जीवन रेखा 1

→ भोजन जाल : एक भोजन जाल में बहुत-से भोजन-चक्र जुड़े होते हैं। एक भोजन-चक्र अगले भोजन स्तर के जीवों को भोजन उपलब्ध करवाने में सहायता करते हैं।

→ वन लगाना : बड़े स्तर पर वृक्ष लगाने की प्रक्रिया को वन लगाना/रोपण कहते हैं।

→ अपघटक : सूक्ष्मजीव जो पौधों तथा जंतुओं के मृत शरीर को ह्यूमस में परिवर्तित करते हैं, अपघटक कहलाते हैं।

→ भूमि अपरदन : वृक्षों और पौधों की अनुपस्थिति में मिट्टी का वर्षा के साथ बहाव में बह जाना भूमि अपरदन कहलाता है।

→ वन की प्रतिपर्ति : अधिक मात्रा में पौधों को लगाना वनों की प्रतिपूर्ति कहलाता है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 16 जल: एक बहुमूल्य संसाधन

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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 16 जल: एक बहुमूल्य संसाधन

→ सभी जीवों को जीवित रहने के लिए जल की आवश्यकता होती है।

→ जल की तीन अवस्थाएँ–ठोस, द्रव तथा गैस हैं।

→ दुनिया के कुल ताजे पानी का 1% से भी कम या धरती/पृथ्वी पर उपलब्ध संपूर्ण जल का लगभग 0.003% जल ही मनुष्य के प्रयोग के लिए उपलब्ध है।

→ पृथ्वी पर उपलब्ध लगभग संपूर्ण जल समुद्रों तथा महासागरों, नदियों, तालाबों, ध्रुवीय बर्फ, भूमि जल तथा वायुमंडल में मिलता है।

→ उपयोग के लिए उपयुक्त जल ताज़ा पानी है।

→ पृथ्वी पर नमक रहित जल पृथ्वी पर उपलब्ध जल की मात्रा का 0.006% है।

→ जल की तीन अवस्थाएं हैं-

  1. ठोस,
  2. द्रव,
  3. गैस।

→ ठोस अवस्था में जल बर्फ तथा हिम के रूप में पृथ्वी के ध्रुवों पर बर्फ से ढके पहाड़ों तथा ग्लेशियरों में मिलता है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 16 जल: एक बहुमूल्य संसाधन

→ द्रव अवस्था में जल महासागरों, झीलों, नदियों के अतिरिक्त भूमि तल के नीचे भूमि जल के रूप में मिलता है।

→ गैसी अवस्था में जल हवा में जलवायु के रूप में उपलब्ध रहता है।

→ वर्षा का जल सबसे शुद्ध जल समझा जाता है।

→ जल-चक्र द्वारा जल का स्थानांतरण होता है।

→ जल का मुख्य स्रोत भूमि-जल है।

→ स्थिर कठोर चट्टानों की पर्तों में भूमि जल इकट्ठा हो जाता है।

→ जनसंख्या में वृद्धि, औद्योगिक तथा खेती गतिविधियों आदि भूमि-जल स्तर को प्रभावित करने वाले कारक हैं।

→ भूमि-जल का अधिक उपयोग तथा जल का कम रिसाव होने के कारण भूमि-जल का स्तर कम हो गया है।

→ भूमि-जल स्तर को प्रभावित करने वाले कारक हैं-जंगलों (वनों) का कटना तथा पानी को सोखने के लिए आवश्यक क्षेत्रों की कमी।

→ बावड़िया तथा बूंद (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली जल की कमी को पूर्ण करने की तकनीकें हैं।

→ पौधों को कुछ दिनों तक पानी/जल न देने से वह मुरझा जाते हैं तथा अंत में सूख जाते हैं।

→ पंजाब सरकार ने वर्ष 2009 में “पंजाब भूमि-जल संरक्षण कानून 2009” पास (लागू) किया था जिसके तहत पहली बार धान की खेती लगाने की तारीख 10 जून निर्धारित की गई। बाद में वर्ष 2015 में इसे 15 जून किया गया।

→ मृत सागर एक नमकीन झील है जो पूर्व से जार्डन तथा पश्चिम से इसराईल तथा फिलस्तीन से घिरा हुआ है। यह दूसरे महासागरों से 8.6 गुणा अधिक क्षारक है। अधिक क्षारीय होने से जलीय पौधे तथा जलीय जंतुओं को उत्पन्न होने से रोकता है, जिस कारण इसे मृत सागर कहते हैं।

→ जल चक्र : कई प्रक्रियाएँ जैसे कि पानी का वायु में वाष्पीकरण, संघनन क्रिया द्वारा बादलों का बनना तथा वर्षा का आना जिससे पृथ्वी पर जल का कायम रहना, भले ही पूरी दुनिया इसका प्रयोग करती है, जल चक्र कहलाता है।

→ ताज़ा जल : जो जल पीने के लिए उचित होता है, वह ताज़ा जल है। इसमें कम मात्रा में नमक (लवण) घुले होते हैं। यह पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का लगभग 3% है जो नदियों, झीलों, ग्लेशियरों, बर्फ से ढकी चोटियों तथा पृथ्वी के नीचे होता है।

→ जल-स्तर या वॉटर-टेबल : जलीय स्रोत के समीप गहराई में जहाँ चट्टानों के बीच की जगह जल से भरी होती है, को पृथ्वी के नीचे का क्षेत्र या संतृप्त क्षेत्र कहते हैं। इस जल की ऊपरी सतह को जल स्तर या वॉटर टेवल कहते हैं।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 16 जल: एक बहुमूल्य संसाधन

→ जलीय चट्टानी पर्त : पृथ्वी के नीचे का जल वाटर लेबल से भी नीचे सख्त चट्टानों की पर्तों के बीच होता है जिसे जलीय चट्टानी पर्त कहते हैं। यह जल नलों तथा ट्यूबवैलों द्वारा निकाला जाता है।

→ इनफिल्ट्रेशन (अंकुइफिर) : जल के भिन्न-भिन्न स्रोतों जैसे-वर्षा, नदी तथा छप्पड़ों का पानी गुरुत्वाकर्षण के कारण रिस-रिस कर पृथ्वी के अंदर के रिक्त स्थान पर भरने को इनफिल्ट्रेशन कहते है।

→ जल प्रबंधन : जल को उचित ढंग से बाँटना जल प्रबंधन है।

→ बूंद सिंचाई प्रणाली : यह सिंचाई की ऐसी तकनीक है जिसमें पानी पाइपों के द्वारा पौधों तक बूंद-बूंद करके पहुँचता है।

→ जल भंडारण : वर्षा जल को आवश्यकता के समय उपयोग में लाने के लिए जमा करने की विधि को जल भंडारण कहते हैं। इसको जल स्तर की प्रतिपूर्ति के लिए किया जाता है।

→ बाउली (बावड़ी) : यह पुरातन (प्राचीन) काल की जल भंडारण की विधि है। भारत में कई स्थानों पर यह विधि जल-भंडारण के लिए प्रयोग होती है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 15 प्रकाश

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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 15 प्रकाश

→ प्रकाश हमें इर्द-गिर्द की वस्तुओं को देखने में सहायता करता है।

→ किसी प्रकाशमान वस्तु या प्रकाश के स्रोत से आ रही प्रकाश किरणें वस्तु से टकरा कर हमारी आँखों में दाखिल/प्रवेश होती हैं तो हमें वस्तु दिखाई देती है।

→ प्रकाश हमेशा सीधी रेखा में चलता है।

→ प्रतिबिम्ब देखने के लिए वस्तु की सतह से परावर्तन एक समान होना चाहिए।

→ किसी सतह से टकराने के बाद प्रकाश का वापिस उसी माध्यम में एक खास दिशा में मुड़ने की प्रक्रिया को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं।

→ जो प्रकाश की किरण वस्तु पर टकराती है, उसे आपाती किरण कहते हैं तथा जो प्रकाश की किरण वस्तु पर टकराने के बाद उसी माध्यम में एक खास दिशा में वापिस आती है उसे परावर्तित किरण कहते हैं।

→ आपाती किरण तथा आपतन बिंदु पर खींचे गए लम्ब के कोण को आपतन कोण कहते हैं।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 15 प्रकाश

→ परावर्तित किरण तथा अभिलम्ब के कोण को परावर्तन कोण कहते हैं।

→ आपतन कोण तथा परावर्तन कोण हमेशा बराबर होते हैं। इसे परावर्तन का नियम कहते हैं।

→ परावर्तित किरणों के वास्तविक रूप में मिलने पर बने प्रतिबिम्ब को वास्तविक प्रतिबिंब कहते हैं। इस प्रतिबिम्ब को स्क्रीन (पर्दे) पर प्राप्त किया जा सकता है।

→ यदि परावर्तित किरणें आपस में वास्तविक रूप में नहीं मिलती परन्तु मिलते हुए दिखाई देती हैं तो उनसे प्राप्त हुए प्रतिबिम्ब को आभासी प्रतिबिम्ब कहते हैं। ऐसा प्रतिबिम्ब पर्दे पर प्राप्त नहीं होता।

→ समतल दर्पण द्वारा बनाया प्रतिबिम्ब हमेशा दर्पण के पीछे बनता है। यह प्रतिबिम्ब आभासी, सीधा तथा वस्तु के आकार का होता है।

→ समतल दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे उतनी दूरी पर ही बनता है, जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने रखी होती है।

→ समतल दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिम्ब का पार्श्व परिवर्तन होता है अर्थात् वस्तु की दाईं तरफ का प्रतिबिम्ब बाईं तरफ नज़र आता है तथा वस्तु की बाईं तरफ का प्रतिबिम्ब का दाईं तरफ नज़र आता है।

→ अवतल दर्पण एक ऐसा गोलाकार दर्पण होता है, जिसकी परावर्तक सतह अन्दर की ओर होती है।

→ उत्तल दर्पण एक ऐसा गोलाकार दर्पण होता है, जिसकी परावर्तक सतह बाहर की ओर उभरी होती है।

→ बहुत दूर स्थित किसी वस्तु से आ रही प्रकाश की किरणें एक-दूसरे के समानान्तर मानी जाती हैं तथा दर्पण से परावर्तन होने के बाद जिस बिन्दु पर वास्तव में मिलती हैं या मिलती हुई प्रतीत होती हैं, उसे दर्पण का फोकस बिन्दु कहते हैं।

→ अवतल दर्पण में केवल उसी स्थिति में आभासी, सीधा तथा बड़ा प्रतिबिम्ब बनता है जब वस्तु अवतल दर्पण के मुख्य फोकस तथा दर्पण के बीच रखी हो। इसके अतिरिक्त वस्तु की अन्य स्थितियों में प्रतिबिम्ब वास्तविक तथा उल्टा बनता है।

→ उत्तल दर्पण के लिए वस्तु की प्रत्येक स्थिति में प्रतिबिम्ब आभासी, सीधा तथा आकार में वस्तु से छोटा बनता है।

→ लैंस एक पारदर्शी माध्यम का टुकड़ा होता है जो दो सतहों से घिरा होता है। लैंस मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-

  1. उत्तल लैंस तथा
  2. अवतल लैंस।

→ उत्तल लैंस मध्य से मोटा तथा किनारों पर पतला होता है।

→ अवतल लैंस किनारों की तुलना में मध्य से पतला होता है।

→ उत्तल लैंस को अभिसारी लैंस तथा अवतल लैंस को अपसारी लैंस भी कहते हैं।

→ उत्तल लैंस द्वारा बारीक तथा छोटी वस्तुओं को बड़े आकार में देखा जा सकता है। इसलिए इसे रीडिंग ग्लास भी कहते हैं।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 15 प्रकाश

→ प्रकाश का परावर्तन : जब सीधी रेखा में चलता प्रकाश किसी दर्पण या किसी पॉलिश की गई अपारदर्शी सतह से टकराने के बाद यह अपनी दिशा बदल लेता है तथा वापिस उसी माध्यम में आ जाता है तो प्रकाश की इस अपनी दिशा बदल लेने की प्रक्रिया को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं।

→ आपाती किरण : जो प्रकाश की किरण प्रकाश स्रोत से चलकर दर्पण पर टकराती है, उसे आपाती किरण कहते हैं।

→ परावर्तित किरण : जो प्रकाश की किरण दर्पण पर टकराने के बाद अपनी दिशा बदलकर उसी माध्यम पर एक विशेष दिशा में वापिस आ जाती है, उसे परावर्तित किरण कहते हैं।

→ आपतन कोण : आपाती किरण तथा आपतन बिन्दु पर खींचे गए अभिलम्ब के मध्य बने कोण को आपतन कोण कहते हैं।

→ परावर्तन कोण : परावर्तित किरण और आपतन बिन्दु पर खींचे गए कोण के मध्य बने कोण को परावर्तन कोण कहते हैं।

→ आपतन बिन्दु : आपाती किरण दर्पण की सतह पर जिस बिन्दु पर जाकर टकराती है, उसे आपतन बिन्दु कहते हैं।

→ अभिलम्ब : आपतन बिन्दु पर बनाए गए लम्ब को अभिलम्ब कहते हैं।

→ प्रतिबिम्ब : प्रकाश की किरणें दर्पण से प्रकाश परावर्तन के बाद जिस बिन्दु पर वास्तविक रूप में मिलती हैं या मिलती हुई प्रतीत होती हैं, उसे प्रतिबिम्ब कहते हैं।

→ वास्तविक प्रतिबिम्ब : जब किसी वस्तु से आ रही प्रकाश किरणें परावर्तन के बाद किसी बिन्दु पर असल/ वास्तव में मिलती हैं, तो उसे वास्तविक प्रतिबिम्ब कहते हैं।

→ आभासी प्रतिबिम्ब : जब प्रकाश की किरणें दर्पण से हो रहे परावर्तन के बाद किसी बिन्दु पर वास्तव में मिलती हुई प्रतीत होती हैं परन्तु किसी बिन्दु पर मिलती हों, तो उस बिन्दु को आभासी प्रतिबिम्ब कहते हैं। आभासी प्रतिबिम्ब को पर्दे पर नहीं लाया जा सकता है।

→ गोलाकार दर्पण : ऐसा दर्पण जिसकी परावर्तक सतह एक खोखले काँच के गोले का एक भाग होता है।

→ उत्तल दर्पण : ऐसा गोलाकार दर्पण जिसकी परावर्तक सतह उत्तल या बाहर की ओर उभरी हुई है, तो उसे उत्तल दर्पण कहते हैं।

→ अवतल दर्पण : ऐसा गोलाकार दर्पण जिसकी परावर्तक सतह अवतल या अन्दर की ओर होती है।

→ प्रकाश अपवर्तन : जब प्रकाश की किरणें किसी एक माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में दाखिल होती हैं, तो वह अपना पथ बदल लेती हैं, प्रकाश किरणों के पथ बदलने की प्रक्रिया को प्रकाश अपवर्तन कहते हैं।

→ उत्तल लैंस : यह पारदर्शी कांच का ऐसा टुकड़ा है, जो किनारों के मुकाबले मध्य से मोटा होता है। इसे अभिसारी लैंस भी कहते हैं।

→ अवतल लैंस : यह पारदर्शी कांच का ऐसा टुकड़ा है जो मध्य से पतला तथा किनारों से मोटा होता है। इस लैंस को अपसारी लैंस भी कहते हैं।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 15 प्रकाश

→ फोकस बिन्दु : मुख्य अक्ष पर स्थित वह बिन्दु जहाँ प्रकाश की समानान्तर किरणें लैंस से गुज़रने के बाद असल रूप में मिलती हैं या मिलती हुई प्रतीत होती हैं, को फोकस बिन्दु कहते हैं।

→ फोकस दूरी : मुख्य फोकस तथा लैंस के प्रकाश केन्द्र के बीच की दूरी, लैंस की फोकस दूरी कहलाती है।

→ प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण : सफेद प्रकाश का किसी पारदर्शी माध्यम (जैसे कांच का प्रिज्म) में से गुज़र कर सात रंगों में विभक्त हो जाने की प्रक्रिया वर्ण-विक्षेपण कहलाती है।

→ स्पैक्ट्रम : सफ़ेद प्रकाश के प्रिज्म में से गुज़रने के बाद प्राप्त सात रंगों की पट्टी को जिसके एक सिरे पर बैंगनी रंग तथा दूसरे सिरे पर लाल रंग होता है, स्पैक्ट्रम कहलाता है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 14 विद्युत धारा तथा इसके चुंबकीय प्रभाव

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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 14 विद्युत धारा तथा इसके चुंबकीय प्रभाव

→ विद्युत अवयवों को प्रतीकों द्वारा निरूपित किया जा सकता है जो कि बहुत सुविधाजनक है।

→ सर्कट चित्र (Circuit Diagram) विद्युत सर्कट का चित्रात्मक प्रतिरूप होता है।

→ विद्युत सैल का प्रतीक दो समानांतर रेखाएं हैं। जिनमें एक लंबी और दूसरी छोटी रेखा है।

→ बैटरी दो या दो से अधिक सैंलों का श्रेणी क्रम में संयोजक है।

→ बैटरी का उपयोग टार्च, ट्रांजिस्टर, रेडियो, खिलौने, टी०वी०, रीमोट कंट्रोल आदि में किया जाता है।

→ विद्युत बल्बों में एक पतला तंतु (फिलामैंट) होता है, जो विद्युत धारा के प्रवाह से दीप्त हो जाता है। ऐसा विद्युत धारा के तापीय प्रभाव से होता है।

→ विद्युत तापक (Heater), रूम तापक (हीटर) तथा टैस्टर आदि में विद्युत धारा के तापीय प्रभाव का उपयोग किया जाता है।

→ विशेष पदार्थ की तारें जिनमें से अधिक मात्रा में विद्युत धारा गुज़ारने से वह गर्म होकर पिघल जाती हैं; जिनका प्रयोग फ्यूज़ बनाने के लिए किया जाता है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 14 विद्युत धारा तथा इसके चुंबकीय प्रभाव

→ सर्कट में विद्युत फ्यूज़, विद्युत उपकरणों को आग लगने या किसी अन्य नुकसान से बचाने के लिए लगाए जाते हैं।

→ धातु की तार में से विद्युत धारा प्रवाह करने से वह चुंबक जैसा व्यवहार करती है। विद्युत धारा के इस प्रभाव को चुंबकीय प्रभाव कहते हैं।

→ ऐसा पदार्थ जिसमें से विद्युत धारा प्रवाह करने से वह चुंबकीय बन जाता है तथा विद्युत प्रवाह बंद करने पर अपना चुंबकीय गुण खो देता है, को विद्युत चुंबक कहते हैं।

→ लोहे के किसी टुकड़े के इर्द-गिर्द विद्युत रोधी तार लपेट कर उसमें से विद्युत धारा प्रवाहित की जाए तो लोहे का टुकड़ा चुंबकीय व्यवहार करता है। इस प्रकार बनाए गए चुंबक को विद्युत चुंबक कहते हैं। विद्युत चुंबक अस्थायी चुंबक होता है क्योंकि विद्युत धारा बंद करने से यह अपना चुंबकीय गुण खो/गंवा देता है।

→ विद्युत चुंबक का प्रयोग कई यंत्रों में किया जाता है; जैसे विद्युत घंटी, चुंबकीय क्रेन आदि।

→ चालक : वह पदार्थ, जो अपने में से विद्युत धारा को प्रवाहित होने देता है।

→ रोधक : वह पदार्थ जो अपने में से विद्युत धारा को प्रवाहित होने से रोकता है।

→ स्विच : यह एक साधारण युक्ति है जो विद्युत परिपथ में विद्युत धारा प्रवाह को पूर्ण होने या विद्युत धारा के प्रवाह को तोड़ने के लिए प्रयुक्त होती है।

→ सर्कट या परिपथ : विद्युत धारा के बहाव को बैटरी के धन-टर्मिनल से स्विच, बल्ब के रास्ते दूसरे ऋण-टर्मिनल तक पहुँचने का पथ, सर्कट या परिपथ कहलाता है।

→ बल्ब : एक साधारण युक्ति जिसमें विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में परिवर्तित/रूपांतरित करती है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 14 विद्युत धारा तथा इसके चुंबकीय प्रभाव

→ ऐलीमैंट या तंतु : टंगस्टन धातु का एक बारीक टुकड़ा जो विद्युत धारा के प्रवाह से गर्म होकर प्रकाश उत्सर्जित करता है।

→ बैटरी : यह एक विद्युत रासायनिक सैलो का संयोजन है जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है।

→ विद्युत चुंबक : कुंडली के भीतर एक नरम लोहे का टुकड़ा रखकर कुंडली में से विद्युत धारा प्रवाहित करने से लोहे के टुकड़े में चुंबक के गुण आ जाते हैं। इस युक्ति को विद्युत चुंबक कहते हैं।

→ विद्युत घण्टी : वह यांत्रिक युक्ति जो विद्युत चुंबक के सिद्धांत पर काम करती है तथा विद्युत धारा प्रवाहित करने से बार-बार ध्वनि उत्पन्न करती है।

→ विद्युत क्रेन : ऐसी क्रेन जिसके एक छोर पर बड़ा शक्तिशाली चुंबक जुड़ा हो जिसका इस्तेमाल करके लोहे से बने हुए भारी सामान को उठाकर एक स्थान-से-दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता है या फिर कबाड़ में से लोहे को अलग किया जा सकता है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 13 गति तथा समय

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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 13 गति तथा समय

→ यदि कोई वस्तु अपने इर्द-गिर्द की वस्तुओं तथा समयानुसार अपनी स्थिति में परिवर्तन नहीं करती तो उस वस्तु को विराम अवस्था में कहा जाता है।

→ यदि कोई वस्तु अपनी स्थिति अपने इर्द-गिर्द की वस्तुओं तथा समयानुसार अपनी स्थिति बदलती है तो वह गति अवस्था में होती है।

→ वस्तु की सीधी रेखा में गति को सरल रेखा गति कहते हैं।

→ किसी वस्तु की चक्कराकार पथ पर हो रही गति को चक्कराकार गति कहते हैं।

→ यदि कोई वस्तु अपनी मध्य स्थिति के इधर-उधर गति करती है, तो उस वस्तु की गति को दोलन गति कहते हैं।

→ यदि कोई वस्तु थोड़ी दूरी को तय करने में बहुत कम समय लगाती है, तो उस वस्तु को गति तेज़ होती है तथा यदि वस्तु उसी दूरी को तय करने में अधिक समय लगाती है तो उसकी गति मंद गति/धीमी गति कहलाती है।

→ इकाई/एकांक समय में तय की गई दूरी को चाल कहते हैं। इसकी S.I. इकाई मीटर/प्रति सैकण्ड (m/s) है।

→ चाल की गणना निम्नलिखित सूत्र द्वारा की जा सकती है :
PSEB 7th Class Science Notes Chapter 13 गति तथा समय 1

→ एक सीधी रेखा के ऊपर एक गति से चल रही वस्तु की गति को एक समान गति कहते हैं, जबकि एक सीधी रेखा के ऊपर भिन्न-भिन्न गति से चल रही वस्तु की गति को असमान गति/चाल कहते हैं।

→ घड़ी, घंटों वाली सूई की गति, धरती की सूरज के इर्द-गिर्द गति तथा साधारण पेंडुलम की गति एक समान गति है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 13 गति तथा समय

→ समय की S.I. इकाई सैकण्ड है। एक धागे से बांधकर किसी स्थिर जगह या स्टैंड से लटकाए गए भारी पुंज (धातु गोले) को साधारण पेंडुलम कहते हैं।

→ साधारण पेंडुलम की इधर-उधर की गति को आवर्ती या दोलन गति कहते हैं।

→ पेंडुलम के एक दोलन गति को पूरा करने के लिए लगे समय को आवर्त काल कहते हैं।

→ एक सैंकण्ड में पूरी की दोलन संख्या को आवर्ती कहते हैं। आवर्ती की S.I. इकाई हरटज़ है।

→ वाहनों की चाल मापने वाले यंत्र को स्पीडोमीटर कहते हैं।

→ स्पीडोमीटर वाहनों की चाल को किलोमीटर/घण्टा में मापता है।

→ वाहनों द्वारा तय की गयी दूरी मापने के लिए प्रयोग किये जाने वाले यंत्र को ओडोमीटर कहते हैं।

→ ग्राफ एक मात्रा की दूसरी मात्रा से तुलना को चित्र रूप में दर्शाता है।

→ सामान्य रूप से तीन प्रकार के ग्राफ प्रचलित हैं :

  1. रेखीय ग्राफ,
  2. छड़ ग्राफ,
  3. पाई चार्ट ग्राफ।

→ दूरी समय ग्राफ एक रेखा ग्राफ है। यह वस्तु द्वारा तय की गयी दूरी तथा समय के बीच ग्राफ को दर्शाता है। जो मात्रा स्वतन्त्र होती है उसको क्षितिज अक्ष (x-axis) तथा दूसरी मात्रा जो निर्भर होती है को उर्ध्वाकार अक्ष (y-axis) पर लिया जाता है।

→ समान समय अंतराल में समान दूरी तय करने वाली वस्तु की गति कहलाती है।

→ जब कोई वस्तु समान समय अंतरालों में असमान दूरी तय करे या असमान समय अंतरालों में समान दूरी तय करे, तो उसकी गति को असमान गति कहते हैं।

→ जब कोई वस्तु विराम अवस्था में है, तो उसकी दूरी-समय ग्राफ X-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा है।

→ ग्राफ : वह दो राशियाँ जो आपस में एक-दूसरे पर निर्भर करती हैं तथा इनका चित्र द्वारा निरूपण ग्राफ कहलाता है।

→ चाल : इकाई समय अंतराल में वस्तु द्वारा तय की गई दूरी चाल कहलाती है।

→ समान चाल : जब कोई वस्तु समान समय अंतराल में समान दूरी तय करती है तो उस वस्तु की चाल होती है।

→ असमान चाल : समान समय अंतराल में एक समान दूरी न तय करने पर वस्तु की चाल असमान चाल कहलाती है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 13 गति तथा समय

→ सरल पेंडुलम : धातु या पत्थर के छोटे से टुकड़े को किसी दृढ़ (मज़बूत) बिंदू पर धागे की सहायता से लटकाने पर सरल पेंडुलम प्राप्त होता है।

→ दोलन : एक स्वतन्त्रतापूर्वक लटक रही वस्तु जब अपनी मध्य स्थिति से एक तरफ चर्म सीमा तक जाए और फिर दूसरे तरफ की चर्म सीमा तक जाए और आखिर में अपनी पूर्व स्थिति अर्थात् मध्य स्थिति पर पहुँच जाए जो वह वस्तु एक दोलन पूरा कर लेती है।

→ आवर्तन काल : सरल पेंडुलम द्वारा एक दोलन पूरा करने में लगा समय आवर्तनकाल कहलाता है।

→ एक समान गति : जब कोई वस्तु समान समय अंतराल में समान दूरी तय करती है भले ही समय अंतराल कितना ही छोटा क्यों न हो तो उस समय वस्तु की गति एक समान गति कहलाती है।

→ असमान गति : जब कोई वस्तु समान समय अंतराल में समान दूरी न तय करे भले ही समय अंतराल कितना भी छोटा क्यों न हो तो उस वस्तु की गति असमान गति कहलाती है। अध्याय के अन्तर्गत आने वाले प्रश्न-उत्तर