PSEB 12th Class History Notes Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

→ गुरु अंगद देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Angad Dev Ji)-गुरु अंगद देव जी का जन्म 31 मार्च, 1504 ई० को मत्ते की सराय नामक गाँव में हुआ-उनका आरंभिक नाम भाई लहणा जी था-

→ आपके पिता जी का नाम फेरूमल तथा माता जी का नाम सभराई देवी थाआपका विवाह आपके ही गाँव के श्री देवी चंद की सुपुत्री बीबी खीवी जी से हुआ-एक बार आप ज्वाला जी की यात्रा पर गए तो आपने करतारपुर में गुरु नानक देव जी के दर्शन किए-

→ गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर आप उनके अनुयायी बन गए-आपकी अथक सेवा से प्रसन्न होकर गुरु नानक देव जी ने 7 सितंबर, 1539 ई० को आपको गुरु गद्दी सौंप दी।

→ गुरु अंगद देव जी के अधीन सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Angad Dev Ji): गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाया-गुरु जी ने गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित किया-

→ उन्होंने स्वयं 62 शब्दों की रचना की-उन्होंने भाई बाला जी से गुरु नानक देव जी के जीवन के संबंध में एक जन्म साखी लिखवाई-

→ गुरु जी ने लंगर प्रथा का विकास किया-संगत संस्था को और अधिक संगठित किया-उदासी मत का खंडन करके गुरु जी ने सिखमत के अलग अस्तित्व को बनाए रखने में सफलता प्राप्त की-आपने खडूर साहिब के समीप 1546 ई० में गोइंदवाल साहिब नामक नए नगर की स्थापना की-

→ आपने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को आशीर्वाद देकर सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light): अपना अंत समय निकट देखकर गुरु अंगद देव जी ने अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-29 मार्च, 1552 ई० को गुरु अंगद देव जी ज्योति जोत समा गए।

→ गुरु अमरदास जी का आरंभिक जीवन और कठिनाइयाँ (Early Career and Difficulties of Guru Amar Das ji): गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई, 1479 ई० को जिला अमृतसर के गाँव बासरके में हुआ-

→ आपके पिता जी का नाम तेजभान भल्ला था-आपका विवाह देवी चंद जी की सुपुत्री मनसा देवी जी से हुआ-आप 62 वर्ष की आयु में गुरु अंगद देव जी के अनुयायी बने-आप मार्च, 1552 ई० में सिखों के तीसरे गुरु नियुक्त हुए-

→ उस समय आपकी आयु 73 वर्ष थी-आपको गुरुगद्दी सौंपे जाने का गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू ने कड़ा विरोध किया-आपको गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्री चंद जी का भी विरोध सहना पड़ा-गुरु अमरदास जी को कट्टर मुसलमानों तथा ब्राह्मण वर्ग के भी कड़े विरोध का सामना करना पड़ा।

→ गुरु अमरदास जी के समय सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Amar Das Ji): गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरगद्दी पर आसीन रहे।

→ गुरु अमरदास जी की गतिविधियों का केंद्र गोइंदवाल साहिब था-गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में 84 सीढ़ियों वाली एक बाऊली का निर्माण करवाया-उन्होंने लंगर संस्था का विकास किया-

→ गुरु जी ने गुरु नानक देव जी और गुरु अंगद देव जी की बाणी का संग्रह किया-गुरु अमरदास जी ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की-गुरु जी ने दूर-दूर के क्षेत्रों में सिख धर्म के प्रचार के लिए 22 मंजियों की स्थापना की-गुरु जी ने उदासी संप्रदाय का खंडन किया-

→ गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित कुप्रथाओं का डट कर विरोध किया-गुरु जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की-1568 ई० में अकबर के गोइंदवाल साहिब आगमन से सिखों और मुग़लों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light): 1574 ई० में गुरु अमरदास जी ने अपने दामाद भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-1 सितंबर, 1574 ई० को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

→ गुरु रामदास जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Ram Das Ji): गुरु रामदास जी का जन्म 24 सितंबर, 1534 ई० को चूना मंडी, लाहौर में हआ था-आपका आरंभिक नाम भाई जेठा जी था-

→ आपके पिता जी का नाम हरिदास और माता जी का नाम दया कौर था-आप गुरु अमरदास जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके अनुयायी बन गए-1553 ई० में आपका विवाह गुरु अमरदास जी की छोटी लड़की बीबी भानी जी के साथ हुआ-1574 ई० में आप गुरु गद्दी पर विराजमान हुए-आप सिखों के चौथे गुरु थे।

→ गुरु रामदास जी के समय सिख मत का विकास (Development of Sikhism under Guru Ram Das Ji): 1577 ई० में गुरु रामदास जी ने रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना की-

→ रामदासपुरा में अमृतसर और संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदवाई का कार्य आरंभ किया गया-सिख मत्त के प्रचार तथा संगतों से धन को एकत्रित करने के लिए मसंद प्रथा आरंभ की गईउदासी संप्रदाय तथा सिखमत में समझौता सिख पंथ के विकास में एक मील पत्थर सिद्ध हुआसंगत, पंगत और मंजी संस्थाओं को जारी रखा गया-मुग़ल बादशाह अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध और दृढ़ हुए।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light): ज्योति जोत समाने से पूर्व, गुरु रामदास जी ने अपने छोटे पुत्र अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-1 सितंबर, 1581 ई० को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

→ गुरु नानक देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Nanak Dev Ji): गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को राय भोय की तलवंडी में हआ-आपके पिता जी का नाम मेहता कालू तथा माता जी का नाम तृप्ता जी था

→ आपकी बहन का नाम बेबे नानकी था। गुरु नानक देव जी बचपन से ही बहुत गंभीर और विचारशील स्वभाव के थे-गुरु साहिब के आध्यात्मिक ज्ञान से उनके अध्यापक चकित रह गए

→ गुरु नानक देव जी के पिता जी ने उन्हें कई व्यवसायों में लगाने का प्रयत्न किया परंतु गुरु जी ने कोई रुचि न दिखाई

→ 14 वर्ष की आयु में आपका विवाह बटाला निवासी मूल चंद की सुपुत्री सुलक्खनी जी से कर दिया गया

→ 20 वर्ष की आयु में आप सुल्तानपुर लोधी के मोदीखाना अन्न भंडार में नौकरी करने लगे-सुल्तानपुर लोधी में आपको बेईं नदी में स्नान के दौरान सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई-उस समय आपकी आयु 30 वर्ष की थी।

→ गुरु नानक देव जी की उदासियाँ (Udasis of Guru Nanak Dev Ji): 1499 ई० में ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् गुरु नानक देव जी देश और विदेशों की लंबी यात्रा पर निकल पड़े-गुरु साहिब ने कुल 21 वर्ष इन उदासियों अथवा यात्राओं में व्यतीत किए

→ इन उदासियों का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता को दूर करना और एक ईश्वर की आराधना का प्रचार करना था-गुरु नानक देव जी ने 1499 ई० के अंत में भाई मरदाना के साथ अपनी पहली उदासी आरंभ की-इस उदासी में गुरु जी ने सैदपुर, तालुंबा, कुरुक्षेत्र, पानीपत, दिल्ली, हरिद्वार, गोरखमता, बनारस, कामरूप, गया, जगन्नाथपुरी, लंका और पाकपटन के प्रदेश की यात्रा की-

→ गुरु नानक देव जी ने 1513-14 ई० में अपनी दूसरी उदासी आरंभ की-इस उदासी में गुरु जी ने पहाड़ी रियासतों, कैलाश पर्वत, लद्दाख, कश्मीर, हसन अब्दाल और स्यालकोट की यात्रा की-

→ 1517 ई० में आरंभ की गई अपनी तृतीय उदासी के दौरान गुरु नानक देव जी ने मुलतान, मक्का, मदीना, बगदाद, काबुल, पेशावर और सैदपुर के प्रदेशों की यात्रा कीइन उदासियों के दौरान गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हज़ारों लोग उनके अनुयायी बन गए।

→ गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ (Teachings of Guru Nanak Dev Ji): गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ बड़ी सरल और प्रभावशाली थीं-गुरु जी के अनुसार ईश्वर एक है-

→ वह इस संसार का रचयिता, पालनकर्ता और नाशवान्कर्ता हैं-वह निराकार और सर्वव्यापक है-उनके अनुसार माया मनुष्य के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है-हऊमै (अहं) मनुष्य के सभी दुःखों का मूल कारण है-

→ गुरु जी ने जाति प्रथा तथा खोखले रीति रिवाजों का जोरदार शब्दों में खंडन किया-गुरु जी ने स्त्रियों को समाज में सम्मानजनक स्थान देने के लिए आवाज़ उठाई-गुरु जी द्वारा नाम जपने पर विशेष बल दिया गया-उन्होंने गुरु को मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी माना है।

→ ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light): 22 सितंबर, 1539 ई० को गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत समा गए। ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 3 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 3 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा

→ राजनीतिक दशा (Political Condition): 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक दशा बड़ी दयनीय थी-पंजाब दिल्ली सल्तनत के अधीन था जिस पर लोधी सुल्तानों का शासन था

→ 1469 ई० में दिल्ली सुल्तान बहलोल लोधी ने ततार खाँ लोधी को पंजाब का गवर्नर नियुक्त कियाततार खाँ लोधी सुल्तान के खिलाफ किए गए असफल विद्रोह में मारा गया

→ 1500 ई० में एक नए लोधी सुल्तान सिकंदर लोधी ने दौलत खाँ लोधी को पंजाब का गवर्नर नियुक्त किया- इब्राहीम लोधी के नए सुल्तान बनते ही दौलत खाँ लोधी ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचने आरंभ कर दिए

→ दौलत खाँ ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया-बाबर ने 1519 ई० से 1526 ई० तक पंजाब पर पाँच आक्रमण किए

→ अपने पाँचवें आक्रमण के दौरान बाबर ने दौलत खाँ लोधी को हरा कर पंजाब पर अधिकार कर लिया-21 अप्रैल, 1526 ई० को पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोधी को परास्त किया

→ परिणामस्वरूप पंजाब लोधी वंश के हाथों से निकल कर मुग़ल वंश के हाथों में चला गया।

→ सामाजिक दशा (Social Condition): 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की सामाजिक दशा बड़ी ही दयनीय थी

→ समाज हिंदू और मुसलमान नामक दो मुख्य वर्गों में विभाजित था

→ शासक वर्ग से संबंधित होने के कारण मुसलमानों को विशेष अधिकार प्राप्त थे

→ मुस्लिम समाज उच्च, मध्य तथा निम्न वर्गों में विभाजित था

→ मुस्लिम स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी

→ हिंदू बहुसंख्या में थे, परंतु उन्हें अधिकारों से वंचित रखा गया था-हिंदू समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बँटा हुआ था–हिंदू स्त्रियों को पुरुषों के बराबर नहीं समझा जाता था

→ समाज का अमीर वर्ग स्वादिष्ट भोजन करता और बहुमूल्य वस्त्र पहनता था

→ निम्न वर्गों का भोजन और वस्त्र साधारण होते थे

→ उस समय शिकार, चौगान, जानवरों की लड़ाइयाँ, शतरंज, नृत्य, संगीत और ताश आदि मनोरंजन के साधन थे

→ शिक्षा मस्जिदों, मदरसों और मंदिरों में प्रदान की जाती थी।

→ आर्थिक दशा (Economic Condition): 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की आर्थिक दशा बहुत अच्छी थी

→ पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था

→ यहाँ की मुख्य फसलें गेहूँ, कपास, जौ, मकई और गन्ना थीं

→ फसलों की पर्याप्त उपज होती थी

→ लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय उद्योग था

→ उद्योगों में वस्त्र उद्योग सर्वाधिक प्रसिद्ध था

→ चमड़ा, शस्त्र, बर्तन, हाथी दाँत और खिलौने आदि के उद्योग भी प्रचलित थे

→ पशु पालन का व्यवसाय भी किया जाता था

→ पंजाब का आंतरिक तथा विदेशी व्यापार बड़ा उन्नत था

→ विदेशी व्यापार अफ़गानिस्तान, ईरान, अरब, सीरिया, तिब्बत और चीन आदि देशों के साथ था

→ लाहौर और मुलतान पंजाब के दो सर्वाधिक प्रसिद्ध नगर थे

→ कम मूल्यों के कारण साधारण लोगों का निर्वाह भी सुगमता से हो जाता था।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 2 पंजाब के ऐतिहासिक स्रोत

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 2 पंजाब के ऐतिहासिक स्रोत

→ पंजाब के इतिहास संबंधी समस्याएँ (Difficulties Regarding the History of the Punjab): मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा लिखे गए फ़ारसी के स्रोतों में पक्षपातपूर्ण विचार प्रकट किए गए हैं—पंजाब में फैली अराजकता के कारण सिखों को अपना इतिहास लिखने का समय नहीं मिला— विदेशी आक्रमणों के कारण पंजाब के अमूल्य ऐतिहासिक स्रोत नष्ट हो गए-1947 ई० के पंजाब के बँटवारे कारण भी बहुत से ऐतिहासिक स्रोत नष्ट हो गए।

→ स्त्रोतों के प्रकार (Kinds of Sources)-पंजाब के इतिहास से संबंधित स्रोतों के मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ सिखों का धार्मिक साहित्य (Religious Literature of the Sikhs): आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस काल की सर्वाधिक प्रमाणित ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है। इसका संकलन 1604 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने किया-दशम ग्रंथ साहिब जी गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके दरबारी कवियों की रचनाओं का संग्रह है—इसका संकलन भाई मनी सिंह जी ने 1721 ई० में किया-ऐतिहासिक पक्ष से इसमें ‘बचित्तर नाटक’ और ‘ज़फ़रनामा’ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं.

→ भाई गुरदास जी द्वारा लिखी गई 39 वारों से हमें गुरु साहिबान के जीवन तथा प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों का पता चलता है—गुरु नानक देव जी के जीवन पर आधारित जन्म साखियों में पुरातन जन्म साखी, मेहरबान जन्म साखी, भाई बाला जी की जन्म साखी तथा भाई मनी सिंह जी की जन्म साखी महत्त्वपूर्ण हैं—सिख गुरुओं से संबंधित हुक्मनामों से हमें समकालीन समाज की बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है—गुरु गोबिंद सिंह जी के 34 हुक्मनामों तथा गुरु तेग़ बहादुर सिंह जी के 23 हुक्मनामों का संकलन किया जा चुका है।

→ पंजाबी और हिंदी में ऐतिहासिक और अर्द्ध-ऐतिहासिक रचनाएँ (Historical and SemiHistorical works in Punjabi and Hindi): ‘गुरसोभा’ से हमें 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना से लेकर 1708 ई० तक की घटनाओं का आँखों देखा वर्णन मिलता है—गुरसोभा की रचना 1741 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी के दरबारी कवि सेनापत ने की थी—’सिखाँ दी भगतमाला’ से हमें सिख गुरुओं के काल की सामाजिक परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त होती है—इसकी रचना भाई मनी सिंह जी ने की थी—केसर सिंह छिब्बड़ द्वारा रचित ‘बंसावली नामा’ सिख गुरुओं से लेकर 18वीं शताब्दी तक की घटनाओं का वर्णन है—भाई संतोख सिंह द्वारा लिखित ‘गुरप्रताप सूरज ग्रंथ’ तथा रत्न सिंह भंगू द्वारा लिखित ‘प्राचीन पंथ प्रकाश’ का भी पंजाब के इतिहास के निर्माण में विशेष स्थान है।

→ फ़ारसी में ऐतिहासिक ग्रंथ (Historical Books in Persian): मुग़ल बादशाह बाबर की रचना ‘बाबरनामा’ से हमें 16वीं शताब्दी के प्रारंभ के पंजाब की ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती हैअबुल फज़ल द्वारा रचित ‘आइन-ए-अकबरी’ और ‘अकबरनामा’ से हमें अकबर के सिख गुरुओं के साथ संबंधों का पता चलता है—मुबीद जुलफिकार अरदिस्तानी द्वारा लिखित ‘दबिस्तान-ए-मज़ाहिब’ में सिख गुरुओं से संबंधित बहुमूल्य ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है—सुजान राय भंडारी की ‘खुलासत-उत-तवारीख’, खाफी खाँ की ‘मुंतखिब-उल-लुबाब’ और काज़ी नूर मुहम्मद की ‘जंगनामा’ से हमें 18वीं शताब्दी के पंजाब की जानकारी प्राप्त होती है—सोहन लाल सूरी द्वारा रचित ‘उमदत-उततवारीख’ तथा गणेश दास वडेहरा द्वारा लिखित ‘चार बाग़-ए-पंजाब’ में महाराजा रणजीत सिंह के काल से संबंधित घटनाओं का विस्तृत विवरण है।

→ भट्ट वहियाँ (Bhat vahis): भट्ट लोग महत्त्वपूर्ण घटनाओं को तिथियों सहित अपनी वहियों में दर्ज कर लेते थे—इनसे हमें सिख गुरुओं के जीवन, यात्राओं और युद्धों के संबंध में काफ़ी नवीन जानकारी प्राप्त होती है।

→ खालसा दरबार रिकॉर्ड (Khalsa Darbar Records): ये महाराजा रणजीत सिंह के समय के सरकारी रिकॉर्ड हैं—ये फ़ारसी भाषा में हैं और इनकी संख्या 1 लाख से भी ऊपर है—ये महाराजा रणजीत सिंह के काल की घटनाओं पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं।

→ विदेशी यात्रियों तथा अंग्रेजों की रचनाएँ (Writings of Foreign Travellers and Europeans): विदेशी यात्रियों तथा अंग्रेजों की रचनाएँ भी पंजाब के इतिहास के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं—इनमें जॉर्ज फोरस्टर की ‘ऐ जर्नी फ्राम बंगाल टू इंग्लैंड’, मैल्कोम की ‘स्केच ऑफ़ द सिखस्’, एच० टी० प्रिंसेप की ‘ओरिज़न ऑफ़ सिख पॉवर इन पंजाब’, कैप्टन विलियम उसबोर्न की ‘द कोर्ट एण्ड कैंप ऑफ़ रणजीत सिंह’, सटाईनबख की ‘द पंजाब’ और जे० डी० कनिंघम द्वारा रचित ‘हिस्ट्री ऑफ़ द सिखस्’ प्रमुख हैं।

→ ऐतिहासिक भवन, चित्र तथा सिक्के (Historical Buildings, Paintings and Coins): पंजाब के ऐतिहासिक भवन, चित्र तथा सिक्के पंजाब के इतिहास के लिए एक अमूल्य स्रोत हैं—खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब, अमृतसर, तरनतारन, करतारपुर और पाऊँटा साहिब आदि नगरों, विभिन्न दुर्गों, गुरुद्वारों में बने चित्रों तथा सिख सरदारों के सिक्कों से तत्कालीन समाज पर विशेष प्रकाश पड़ता है।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 1 पंजाब की भौतिक विशेषताएँ तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 1 पंजाब की भौतिक विशेषताएँ तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

→ पंजाब के विभिन्न नाम (Different Names of the Punjab): पंजाब फ़ारसी भाषा के दो शब्दों ‘पंज’ और ‘आब’ से मिलकर बना है-पंजाब का शाब्दिक अर्थ है पाँच नदियों का प्रदेश-पंजाब को प्राचीन काल में टक देश, ऋग्वैदिक काल में ‘सप्त-सिंधु’, पुराण काल में ‘पंचनद’, यूनानियों द्वारा ‘पैंटापोटामिया’, मध्यकाल में ‘लाहौर सूबा’ तथा अंग्रेजों द्वारा ‘पंजाब प्रांत’ कहा जाता था।

→ पंजाब की भौतिक विशेषताएँ (Physical Features of the Punjab): पंजाब की भौतिक विशेषताओं से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ हिमालय और सुलेमान पर्वत श्रेणियाँ (The Himalayas and Sulaiman Mountain Ranges): हिमालय पर्वत पंजाब के उत्तर में स्थित है-यह पर्वत आसाम से लेकर अफ़गानिस्तान तक फैला हुआ है-यह पंजाब के लिए वरदान सिद्ध हुआ है-हिमालय पर्वत के फलस्वरूप पंजाब की भूमि अत्यधिक उपजाऊ बन गई है-सुलेमान पर्वत श्रेणियाँ पंजाब के उत्तर-पश्चिम में स्थित हैं – इन्हीं श्रेणियों में खैबर, कुर्रम, बोलान, टोची तथा गोमल नामक दर्रे स्थित हैं।

→ अर्द्ध-पर्वतीय प्रदेश (Sub-Mountainous Region): यह प्रदेश शिवालिक पहाड़ियों और पंजाब के मैदानी भाग के मध्य स्थित है-इसे तराई प्रदेश भी कहा जाता है-इसमें होशियारपुर, काँगड़ा, अंबाला, गुरदासपुर तथा स्यालकोट के प्रदेश आते हैं।

→ मैदानी प्रदेश (The Plains): मैदानी प्रदेश पंजाब का सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण खंड है-यह प्रदेश सिंध और यमुना नदियों के मध्य स्थित है-इसका अधिकाँश भाग पाँच दोआबों से घिरा हुआ हैइन दोबाओं को बिस्त जालंधर दोआब, बारी दोआब, रचना दोआब, चज दोआब और सिंध सागर दोआब कहा जाता है-पंजाब के मैदानी भाग में सतलुज और घग्घर नदियों के बीच के क्षेत्र को मालवा तथा बांगर कहा जाता है। पंजाब के दक्षिण-पश्चिम का प्रदेश रेगिस्तानी है। अतः यहाँ की जनसंख्या बहुत कम है।

→ भौतिक विशेषताओं का पंजाब के इतिहास पर प्रभाव (Influence of Physical Features on the History of the Punjab): पंजाब पर उसकी भौतिक विशेषताओं के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक प्रभावों से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ राजनीतिक प्रभाव (Political Effects): उत्तर-पश्चिम में विभिन्न दर्रे स्थित होने के कारण पंजाब विदेशी आक्रमणकारियों के लिए भारत का प्रवेश द्वार बन गया सभी महत्त्वपूर्ण और निर्णायक लड़ाइयाँ इसी क्षेत्र में हुईं-पंजाब के शहरों का राजनीतिक महत्त्व बढ़ गया-पंजाबियों को शताब्दियों तक भारी कष्टों और अत्याचारों का सामना करना पड़ा।

→ सामाजिक प्रभाव (Social Effects): पंजाबियों में वीरता, साहस, कष्ट सहने और बलिदान के विशेष गुण उत्पन्न हो गए-यहाँ पर जातियों तथा उपजातियों की संख्या में वृद्धि हुई-पंजाब में कला और साहित्य के विकास को धक्का लगा।

→ धार्मिक प्रभाव (Religious Effects): पंजाब को हिंदू धर्म की जन्म भूमि कहा जाता हैपंजाब में इस्लाम का प्रसार भारत के अन्य भागों की तुलना में अधिक हुआ-पंजाब की भूमि को सिख धर्म की उत्पत्ति और विकास का श्रेय जाता है।

→ आर्थिक प्रभाव (Economic Effects): पंजाब की भूमि अत्यधिक उपजाऊ होने के कारण पंजाबियों का मुख्य व्यवसाय कृषि है-पंजाब का आंतरिक तथा विदेशी व्यापार काफ़ी उन्नत हो गयापंजाब में अनेक व्यापारिक नगर अस्तित्व में आए-पंजाबी आर्थिक रूप से काफ़ी समृद्ध हो गए।

PSEB 9th Class SST Notes History Chapter 2 Sri Guru Nanak Dev Ji and Contemporary Society

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Sri Guru Nanak Dev Ji and Contemporary Society PSEB 9th Class SST Notes

Birth:

  • Guru Nanak Dev Ji was the founder of the Sikh religion.
  • According to the Sakhi of Bhai Meharban and old Sakhi of Bhai Mani Singh, he was born at Talwandi on April 15, 1469 A.D.
  • At present his place of birth is called Nankana Sahib.

Parentage:

  • The name of the mother of Guru Nanak Dev Ji was Mata Tripta.
  • His father’s name was Mehta Kalu.
  • He was a Patwari (a revenue officer).

The Ceremony of Sacred Thread (Janeu):

  • Guru Nanak Dev Ji was strongly opposed to useless ceremonies and empty rituals.
  • He, therefore, refused to wear the thread of cotton, considered as a sacred thread.

PSEB 9th Class SST Notes History Chapter 2 Sri Guru Nanak Dev Ji and Contemporary Society

The Pious Deal (Sacha Sauda):

  • The father of Guru Nanak Dev Ji gave him twenty rupees for starting some business.
  • Guru Nanak Dev Ji spent this money to serve food to the saints, beggars, and the needy and this made a Pious Deal (Sacha Sauda).

Enlightenment:

  • Guru Nanak Dev Ji attained enlightenment during his bath at a rivulet called ‘Bein’.
  • One morning he took a dip in the river and reappeared after three days as an enlightened being.

Udasis (Travels):

  • The Udasis refer to those travels which Guru Nanak Dev Ji undertook as a selfless pious wanderer without any care for his social bindings.
  • The aim of his Udasis or Travels was to end the prevalent superstitions and guide humanity on the path of true faith.
  • Guru Ji went on three Udasis in different directions.

Stay at Kartarpur:

  • Guru Nanak Dev Ji founded the city of Kartarpur in 1521 and started residing there.
  • He composed “Var Malhar’, ‘Var Manjh’, ‘Var Assa’, ‘Japji Sahib’, ‘Patti’, ‘Barah Maha’ etc. at Kartarpur.
  • He also established the traditions of Sangat and Pangat there.

Guru Sahib Merged with the Supreme God:

  • On September 22, 1539, he merged with the Ultimate Supreme God.
  • Before he breathed his last, he had appointed Bhai Lehna as his successor.

Teachings about God:

  • The teachings of Guru Nanak Dev Ji were that God is formless, Self-created, Omnipresent, Omnipotent, Compassionate, and Great.
  • He can be easily achieved with the blessings of a True Guru and self-surrender.

Sangat and Pangat:

  • The congregation of the followers of the Guru is called Sangat.
  • They sit together to learn the real meaning of the Guru and sing in praise of God.
  • In the Pangat system, all the followers of the Guru sit together on the floor to partake food from a common kitchen (langar).

Lodhi Rulers:

  • Punjab was under the rule of the Lodhis.
  • The rulers of the dynasty were Bahlol Lodhi, Sikander Lodhi, and Ibrahim Lodhi.

PSEB 9th Class SST Notes History Chapter 2 Sri Guru Nanak Dev Ji and Contemporary Society

Punjab under Ibrahim Lodhi:

  • Punjab was the centre of conspiracies during the reign of Ibrahim Lodhi.
  • The Subedar of Punjab, Daulat Khan Lodhi invited Babur, the ruler of Kabul, to invade India.

Daulat Khan Lodhi and Babur:

  • During the fifth invasion of Babur on India, Daulat Khan Lodhi, the Subedar of Punjab, fought against Babur.
  • Daulat Khan Lodhi was defeated.

Political Condition:

  • Guru Nanak Dev Ji was born in 1469 A.D.
  • The political condition of Punjab was not good at the time of his birth.
  • The rulers of Punjab were weak and fought among themselves.
  • Punjab was passing through a phase of chaos and disorder.

Social Condition:

  • The social condition of Punjab during this period was miserable.
  • The Hindu society was divided into castes and sub-castes.
  • The condition of women was pitiable.
  • The people were of low moral character and were superstitious.

The Victory of Babur on Punjab:

  • The First Battle of Panipat was fought in 1526 A.D.
  • In this battle, Ibrahim Lodhi was defeated and Babur occupied Punjab.

Muslim Society:

  • The Muslim society was divided into three classes namely, the upper class, middle class, and the lower class.
  • The leading military commanders, Iqtadars, Ulemas, and Sayyids were included in the upper class.
  • In the middle class, the traders, farmers, soldiers, and low-ranking government officers were included.
  • The lower class was comprised of artisans, slaves, and household servants.

PSEB 9th Class SST Notes History Chapter 2 Sri Guru Nanak Dev Ji and Contemporary Society

Hindu Society:

  • At the beginning of the sixteenth century, the Hindu society was divided into four main castes i.e. the Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas, and Shudras.
  • The goldsmiths, ironsmiths, weavers, carpenters, tailors, and potters were a few of the castes and sub-castes.

→ 1469 A.D. – Birth of Guru Nanak Dev Ji

→ 1499 A.D. – Attainment of True Knowledge

→ 1499-1510 A.D. – First Udasi

→ 1510-1515 A.D. – Second Udasi

→ 1515-1517 A.D. – Third Udasi

→ 1517-1521 A.D. – Fourth Udasi

→ 1522 A.D. – Foundation of Kartarpur

→ 22 September 1539 – Guru Nanak Dev Ji merged with the Supreme God

→ 1526 A.D. – First battle of Panipat.

श्री गुरु नानक देव जी तथा समकालीन समाज PSEB 9th Class SST Notes

→ पंजाब (अर्थ) – पंजाब फ़ारसी भाषा के दो शब्दों ‘पंज’ तथा ‘आब’ के मेल से बना है। पंज का अर्थ है-पांच तथा आब का अर्थ है-पानी, जो नदी का प्रतीक है। अतः पंजाब से अभिप्राय है-पांच नदियों का प्रदेश।

→ पंजाब के बदलते नाम – पंजाब को भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता रहा है। ये नाम हैं-सप्त सिंधु, पंचनद, पेंटापोटामिया, सेकिया, लाहौर सूबा, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत आदि।

→ भौतिक भाग – भौगोलिक दृष्टि से पंजाब को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  • हिमालय तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी पर्वत श्रृंखलाएं
  • उप-पर्वतीय क्षेत्र (पहाड़ की तलहटी के क्षेत्र)
  • मैदानी क्षेत्र।

→ मालवा प्रदेश – मालवा प्रदेश सतलुज और घग्घर नदियों के बीच में स्थित है। प्राचीन काल में इस प्रदेश में ‘मालव’ नाम का एक कबीला निवास करता था।

→ इसी कबीले के नाम पर इस प्रदेश का नाम ‘मालवा’ रखा गया।

→ हिमालय का पंजाब के इतिहास पर प्रभाव – हिमालय की पश्चिमी शाखाओं में स्थित दरों के कारण पंजाब भारत का द्वार बना। मध्यकाल तक भारत पर आक्रमण करने वाले लगभग सभी आक्रमणकारी इन्हीं दरों द्वारा भारत आये।

→ पंजाब के मैदानी भाग – पंजाब का मैदानी भाग बहुत समृद्ध था। इसी समृद्धि ने विदेशी आक्रमणकारियों को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया।

→ पंजाब की नदियों का पंजाब के इतिहास पर प्रभाव – पंजाब की नदियों ने आक्रमणकारियों के लिए बाधा का काम किया।

→ इन्होंने पंजाब की प्राकृतिक सीमाओं का काम भी किया। मुग़ल शासकों ने अपनी सरकारों, परगनों तथा सूबों की सीमाओं का काम इन्हीं नदियों से ही लिया।

→ तराई प्रदेश – पंजाब का तराई प्रदेश घने जंगलों से घिरा हुआ है। संकट के समय में इन्हीं वनों ने सिक्खों को आश्रय दिया। यहां रहकर उन्होंने अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाई और अत्याचारियों से टक्कर ली।

→ पंजाब में रहने वाली विभिन्न जातियां – पंजाब में विभिन्न जातियों के लोग निवास करते हैं। इनमें से जाट, सिक्ख, राजपूत, पठान, खत्री, अरोड़े, गुज्जर, अराइन आदि प्रमुख हैं।

→ 1849 ई० -पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया।

→ 1857 ई० -दिल्ली और हिसार के क्षेत्र पंजाब में शामिल।

→ 1901 ई० -पंजाब प्रदेश में से उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेश बनाया गया।

→ 1911 ई०.-दिल्ली को पंजाब से अलग किया गया।

→ 1947 ई० -भारत के विभाजन के समय पंजाब दो भागों पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब में विभाजित हो गया।

→ 1 नवंबर, 1966 ई०-पंजाब को भाषा के आधार पर पंजाब और हरियाणा दो प्रांतों में बांटा गया और कुछ इलाका हिमाचल प्रदेश में शामिल कर दिया गया।

ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਸਮਕਾਲੀ ਸਮਾਜ PSEB 9th Class SST Notes

→ 15 ਅਪਰੈਲ, 1469 ਈ: – ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ

→ 1499 ਈ: – ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਵਿੱਚ ਗਿਆਨ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ

→ 1499 ਈ:-1510 ਈ:-ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ ।

→ 1510 ਈ:- 1515 ਈ:-ਦੂਜੀ ਉਦਾਸੀ

→ 1515 ਈ: -1517 ਈ:-ਤੀਜੀ ਉਦਾਸੀ

→ 1517 ਈ:-1521 ਈ:-ਚੌਥੀ ਉਦਾਸੀ ।

→ 1522 ਈ: – ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਰਾਵੀ ਦੇ ਕੰਢੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਸਾਇਆ

→ 1526 ਈ: – ਪਾਣੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ

→ 22 ਸਤੰਬਰ, 1539 ਈ : – ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਕਰਤਾਰਪੁਰ (ਪਾਕਿਸਤਾਨ) ਵਿਚ ਜੋਤੀ ਜੋਤ ਸਮਾਏ

→ 1451 ਈ:-1489 ਈ :-ਬਹਿਲੋਲ ਲੋਧੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ

→ 1489 ਈ:-1517 ਈ :-ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ

→ 1517 ਈ:-1526 ਈ :-ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ

→ 1500 ਈ:-1525 ਈ :-ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਦਾ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਸ਼ਾਸਨ

PSEB 9th Class SST Notes Geography Chapter 4 Climate

This PSEB 9th Class Social Science Notes Geography Chapter 4 Climate will help you in revision during exams.

Climate PSEB 9th Class SST Notes

Climate:

  • Climate is the sum total of weather conditions over a large area for a long period of time.
  • There are many climatic conditions in India.

Factors influencing climate:

  • Many factors affect the climate of a place such as distance from the equator, distance from the sea, altitude of a place, impact of winds, relief effect, jet streams, etc.
  • The Indian Climate is almost the same due to its physical structure.

Rainfall:

  • Rainfall is a type of precipitation when moisture falls on the earth in the form of drops of water.
  • It is of three types: Convectional rainfall, Orographic rainfall, and Cyclonic rainfall.

PSEB 9th Class SST Notes Geography Chapter 4 Climate

Meaning of Monsoon:

  • The word ‘Monsoon’ is said to be derived from the Arabic word ‘Mausim’ meaning season.
  • In this way, monsoon is a season in which wind changes its direction with the season.

Monsoon System:

  • The monsoons are experienced in the tropical area roughly between 20°N and 20°S.
  • It is created due to the opposite position of air pressure.
  • This position of air pressure changes continuously.
  • That’s why in different seasons, the situation of winds changes on either side of the Tropic of Cancer.
  • Except this, jet streams also play an important role in the mechanism of the monsoon.

Seasons in India:
In the annual season of India, there are four major seasons-winter seasons, summer season, advancing monsoon, and retreating monsoon.

Winter Season:

  • There is a winter season in almost the whole of India from December till February.
  • In this season, north-eastern trade winds blow over the whole country.
  • In this season, temperature decreases when we move from south to north.
  • It is a dry season but some amount of rainfall occurs on the Tamil Nadu coast from these winds as here they blow from sea to land.

Summer Season:

  • This season remains from March to May.
  • In March, the highest temperature is about 38° Celsius, recorded in the Deccan plateau.
  • Gradually, low-pressure area starts to move towards North India which experiences high temperatures.
  • In the north, these low-pressure winds are called loo, Kaal Baisakhi in West Bengal, and Mango shower in the coastal areas of Karnataka.

Advancing Monsoon:

  • This season remains from June to September.
  • South-West monsoon enters India through two branches-Arabian sea branch and the Bay of Bengal branch.
  • These winds give a lot of rainfall to the country.
  • North-East India experiences lots of rain but the North-West part of India remains dry.
  • The months of July and August experience almost 75% to 90% rainfall in the country.
  • Mawsynram, a place in the Garo and Khasi hills of North-East India, experiences the highest rainfall in the world.
  • The second place is Cherapunji.
  • Western Ghats of South India experience heavy rainfall due to monsoon winds coming from the Arabian Sea branch.

PSEB 9th Class SST Notes Geography Chapter 4 Climate

Retreating Monsoon:

  • During the months of October and November, the monsoon over the northern plains becomes weaker.
  • This is replaced by a high-pressure system.
  • The retreat of the monsoon is marked by clear skies and a rise in temperature.
  • Due to high temperature and humidity, the weather become rather oppressive.
  • This is commonly known as ‘October heat’.
  • On the coast of the southern plateau, cyclones create havoc and are often very destructive.

Distribution of Rain:

  • Parts of the western coast and north-eastern India receive over about 300 cm of rainfall annually.
  • But western Rajasthan and adjoining parts of Gujarat, Haryana, and Punjab receive less than 50 cm of annual rainfall.
  • Higher parts of the country (Himalayan region) receive snowfall.
  • The annual rainfall is highly variable from year to year.
  • Variability of monsoon brings flood in many parts and drought in the other parts.

Instruments for climate:

  • Many instruments are used to measure different climatic features such as Maximum and Minimum Thermometer, Android Barometer, Dry and Wet Bulb Thermometer, Rain Gauge, Anemometer, Wind wane, etc.

PSEB 9th Class SST Notes Geography Chapter 4 Climate

Natural Disasters:

  • Nature is all-powerful.
  • When any natural calamity occurs, it leads to the great loss of life and property.
  • The tsunami was one of the natural disasters which came in many countries of South Asia in December 2004.
  • It led to the death of thousands of people and the destruction of property as well.

जलवायु PSEB 9th Class SST Notes

→ जलवायु – किसी भी स्थान के लंबे समय के मौसम की औसत । निकाल कर जो परिणाम निकाला जाता है उस परिणाम को उस स्थान की जलवायु कहते हैं। भारत में जलवायु की अलग-अलग परिस्थितियां पाई जाती हैं।

→ जलवायु को प्रभावित करने वाले तत्त्व – किसी भी स्थान की जलवायु को कई कारक प्रभावित करते हैं; जैसे कि भूमध्य रेखा से दूरी, समुद्र से दूरी, समुद्री तल से ऊंचाई, धरातल का स्वरूप, जेट स्ट्रीम इत्यादि। हमारे देश की भौगोलिक संरचना ने देश की जलवायु को एक जैसा ही बना दिया है।

→ वर्षा – नमी भरी हवा ऊपर उठती है तथा ऊँचाई पर जाकर ठंडी हो जाती है। ठंडी होने के कारण यह नमी को संभालकर नहीं रख सकती तथा पानी के कण बादलों का रूप ले लेते हैं।

→ जब बादलों में से यह पानी के कण पृथ्वी पर गिरते हैं तो इसे वर्षा करते हैं। वर्षा तीन प्रकार की होती है-संवहनी वर्षा, पर्वतीय वर्षा तथा चक्रवाती वर्षा।

→ मानसून का अर्थ – ‘मानसून’ शब्द की व्युत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई है। इसका शाब्दिक अर्थ है-ऋतु। इस प्रकार मानसून से अभिप्राय एक ऐसी ऋतु से है जिसमें पवनों की दिशा पूरी तरह उलट जाती है।

→ मानसून प्रणाली – मानसून की रचना उत्तरी गोलार्द्ध में प्रशान्त महासागर तथा हिन्द महासागर के दक्षिणी भाग पर वायुदाब की विपरीत स्थिति के कारण होती है। वायुदाब की यह स्थिति परिवर्तित होती रहती है।

→ इस कारण विभिन्न ऋतुओं में विषुवत् वृत्त के आर-पार पवनों की स्थिति बदल जाती है। इस प्रक्रिया को दक्षिणी दोलन कहते हैं। इसके अतिरिक्त जेट वायुधाराएं भी मानसून के रचनातन्त्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

→ भारत की ऋतुएं – भारत के वार्षिक ऋतु चक्र में चार प्रमुख ऋतुएं होती हैंशीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, आगे बढ़ते मानसून की ऋतु तथा पीछे हटते मानसून की ऋतु।

→ शीत ऋतु – लगभग सारे देश में दिसम्बर से फरवरी तक शीत ऋतु होती है। इस ऋतु में देश के ऊपर उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें चलती हैं। इस ऋतु में दक्षिण से उत्तर की ओर जाने पर तापमान घटता जाता है। कुछ ऊँचे स्थानों पर पाला भी पड़ता है।

→ शीत ऋतु से चलने वाली उत्तरी पूर्वी पवनों द्वारा केवल तमिलनाडु राज्य को लाभ पहुंचता है। ये पवनें खाड़ी बंगाल से गुजरने के बाद वहां पर्याप्त वर्षा करती हैं।

→ ग्रीष्म ऋतु – यह ऋतु मार्च से मई तक रहती है। मार्च मास में सबसे अधिक तापमान (लगभग 38° सें०) दक्कन के पठार पर होता है। धीरे-धीरे ऊष्मा की यह पेटी उत्तर की ओर खिसकने लगती है और उत्तरी भाग में तापमान बढ़ता जाता है।

→ मई के अन्त तक एक लम्बा संकरा निम्न वायु दाब क्षेत्र विकसित हो जाता है, जिसे ‘मानसून का निम्न वायुदाब गर्त’ कहते हैं। देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में चलने वाली गर्म-शुष्क पवनें (लू), केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में होने वाली ‘आम्रवृष्टि’ और बंगाल तथा असम की ‘काल बैसाखी’ ग्रीष्म ऋतु की अन्य मुख्य विशेषताएं हैं।

→ आगे बढ़ते मानसून की ऋतु – यह ऋतु जून से सितम्बर तक रहती है। देश में दक्षिणपश्चिमी मानसून चलती है जो दो शाखाओं में भारत में प्रवेश करती है-अरब सागर की शाखा तथा बंगाल की खाड़ी की शाखा। ये पवनें देश में पर्याप्त वर्षा करती हैं।

→ उत्तर-पूर्वी भारत में भारी वर्षा होती है, जबकि देश के उत्तरी-पश्चिमी कुछ भाग शुष्क रह जाते हैं। जुलाई तथा अगस्त के महीनों में देश की 75 से 90 प्रतिशत तक वार्षिक वर्षा हो जाती है।

→ गारो तथा खासी की पहाड़ियों की दक्षिणी श्रेणी के शीर्ष पर स्थित माउसिनराम में संसार भर में सबसे अधिक वर्षा होती है।

→ दूसरा स्थान यहां से कुछ ही दूरी पर स्थित चेरापूंजी को प्राप्त है। दक्षिणी भारत में पश्चिमी घाट की पवनाभिमुख ढालों पर अरब सागर की मानसून शाखा द्वारा भारी वर्षा होती है।

→ पीछे हटते मानसून की ऋतु – अक्तूबर तथा नवम्बर के महीनों में मानसून पीछे हटने लगता है। क्षीण हो जाने के कारण इसका प्रभाव कम हो जाता है। पृष्ठीय पवनों की दिशा भी उलटने लगती है।

→ आकाश साफ़ हो जाता है और तापमान फिर से बढ़ने लगता है। उच्च तापमान तथा भूमि की आर्द्रता के कारण मौसम कष्टदायक हो जाता है।

→ इसे ‘क्वार की उमस’ कहते हैं। इस ऋतु में दक्षिणी प्रायद्वीप के तटों पर उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात भारी वर्षा करते हैं। इस प्रकार ये बहुत ही विनाशकारी सिद्ध होते हैं।

→ वर्षा का वितरण – भारत में सबसे अधिक वर्षा पश्चिमी तटों तथा उत्तरी पूर्वी भागों में होती (300 सें० मी० से भी अधिक) है। परन्तु पश्चिमी राजस्थान तथा इसके निकटवर्ती पंजाब, हरियाणा तथा गुजरात के क्षेत्रों में 50 सें० मी० से भी कम वार्षिक वर्षा होती है।

→ देश के उच्च भागों (हिमालय क्षेत्र) में हिमपात होता है। वर्षण की यह मात्रा प्रति वर्ष घटती बढ़ती रहती है। मानसून की स्वेच्छाचारिता के कारण कहीं तो भयंकर बाढ़ें आ जाती हैं और कहीं सूखा पड़ जाता है।

→ जलवायु के यन्त्र – जलवायु का अनुमान लगाने के लिए कई प्रकार में यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। जैसे कि थर्मामीटर एनीराइड बैरोमीटर, सूखी तथा गीली गोली का थर्मामीटर, वर्षा मापक यन्त्र, वायुवेग मापक, वायु दिशा सूचक इत्यादि।

→ प्राकृतिक आपदाएं – प्रकृति के ऊपर किसी का ज़ोर नहीं चलता। इस प्रकार जब प्राकृतिक आपदाएं आती हैं तो काफी जान-माल का नुकसान होता है।

→ सुनामी भी इन प्राकृतिक आपदाओं में से एक थी जो दिसंबर 2004 में दक्षिण एशिया के देशों में आई तथा हज़ारों लोगों की मृत्यु हो गई थी।

ਜਲਵਾਯੂ PSEB 9th Class SST Notes

→ ਕਿਸੇ ਵੀ ਥਾਂ ਦੇ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਮੌਸਮ ਦੀ ਔਸਤ ਕੱਢ ਕੇ ਜੋ ਨਤੀਜਾ ਕੱਢਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਉਸ ਨਤੀਜੇ ਨੂੰ ਉਸ ਥਾਂ ਦੀ ਜਲਵਾਯੂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਜਲਵਾਯੂ ਦੀਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹਾਲਤਾਂ ਪਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਕਿਸੇ ਵੀ ਥਾਂ ਦੀ ਜਲਵਾਯੂ ਨੂੰ ਕਈ ਕਾਰਕ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਭੂ-ਮੱਧ ਰੇਖਾ ਤੋਂ ਦੂਰੀ, ਸਮੁੰਦਰ ਤੋਂ ਦੁਰੀ, ਸਮੁੰਦਰੀ ਤਲ ਤੋਂ ਉੱਚਾਈ, ਧਰਾਤਲ ਦਾ ਅਸਰ, ਪੌਣਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ, ਜੈਟ ਸਟਰੀਮ ਆਦਿ । ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਭੌਤਿਕ ਬਣਤਰ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਪੌਣ-ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਮੋਟੇ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਇੱਕੋ ਜਿਹਾ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

→ ਨਮੀ ਭਰੀ ਹਵਾ ਉੱਪਰ ਉੱਠਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉੱਚਾਈ ਉੱਤੇ ਜਾ ਕੇ ਠੰਢੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਠੰਡੀ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਇਹ | ਨਮੀ ਨੂੰ ਸਾਂਭ ਕੇ ਨਹੀਂ ਰੱਖ ਸਕਦੀ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਕਣ ਬੱਦਲਾਂ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਲੈ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਜਦੋਂ ਬੱਦਲਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇਹ ਪਾਣੀ ਦੇ ਕਣ ਧਰਤੀ ਉੱਤੇ ਡਿਗਦੇ ਹਨ, ਤਾਂ ਇਸ ਨੂੰ ਵਰਖਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਵਰਖਾ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ-ਸੰਵਹਿਣ ਵਰਖਾ, ਪਰਬਤੀ ਵਰਖਾ ਅਤੇ ਚੱਕਰਵਾਤੀ ਵਰਖਾ
ਮਾਨਸੂਨ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਅਰਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਮੌਸਮ’ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਹੋਈ ਹੈ ।

→ ਇਸ ਦਾ ਸ਼ਬਦੀ ਅਰਥ ਹੈ ਰੁੱਤ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਾਨਸੂਨ ਤੋਂ ਭਾਵ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਰੁੱਤ ਤੋਂ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਪੌਣਾਂ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਲਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਮਾਨਸੂਨ ਦੀ ਰਚਨਾ ਉੱਤਰੀ ਅੱਧ ਗੋਲੇ ਵਿਚ ਪ੍ਰਸ਼ਾਂਤ ਮਹਾਂਸਾਗਰ ਅਤੇ ਹਿੰਦ ਮਹਾਂਸਾਗਰ ਦੇ ਦੱਖਣੀ ਭਾਗ ਦੇ ਵਾਯੂ ਦਾਬ ਦੀ ਵਿਪਰੀਤ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਵਾਯੂ ਦਾਬ ਦੀ ਇਹ ਸਥਿਤੀ ਬਦਲਦੀ ਵੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਕਾਰਨ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਰੁੱਤਾਂ ਵਿਚ ਕਰਕ ਰੇਖਾ ਚੱਕਰ ਦੇ ਆਰ-ਪਾਰ ਪੌਣਾਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਦਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਇਸ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਦੱਖਣੀ ਦੋਲਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸੈੱਟ ਵਾਯੂ ਧਾਰਾਵਾਂ ਵੀ ਮਾਨਸੂਨ ਦੇ ਰਚਨਾ ਤੰਤਰ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਭਾਰਤ ਦੇ ਵਾਰਸ਼ਿਕ ਰੁੱਤ ਚੱਕਰ ਵਿਚ ਚਾਰ ਮੁੱਖ ਰੁੱਤਾਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ-ਸਰਦ ਰੁੱਤ, ਗਰਮ ਰੁੱਤ, ਅੱਗੇ ਵਧਦੇ | ਮਾਨਸੂਨ ਦੀ ਰੁੱਤ ਅਤੇ ਪਿੱਛੇ ਹਟਦੇ ਮਾਨਸੂਨ ਦੀ ਰੁੱਤ ।

→ ਲਗਪਗ ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਦਸੰਬਰ ਤੋਂ ਫਰਵਰੀ ਤਕ ਸਰਦ ਰੁੱਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਰੁੱਤ ਵਿਚ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਉੱਪਰ ਉੱਤਰ-ਪੂਰਬੀ ਵਪਾਰਕ ਪੌਣਾਂ ਚਲਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਰੁੱਤ ਵਿਚ ਦੱਖਣ ਤੋਂ ਉੱਤਰ ਵਲ ਜਾਣ ‘ਤੇ ਤਾਪਮਾਨ ਘੱਟਦਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਕੁੱਝ ਪਹਾੜੀ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਪਾਲਾ ਵੀ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਰਦ ਰੁੱਤ ਵਿਚ ਚਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਉੱਤਰਪੂਰਬੀ ਪੌਣਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਿਰਫ਼ ਤਾਮਿਲਨਾਡੂ ਰਾਜ ਨੂੰ ਲਾਭ ਪੁੱਜਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਪੌਣਾਂ ਖਾੜੀ ਬੰਗਾਲ ਤੋਂ ਲੰਘਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉੱਥੇ ਕਾਫ਼ੀ ਵਰਖਾ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਗਰਮ ਰੁੱਤ ਮਾਰਚ ਤੋਂ ਮਈ ਤਕ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਮਾਰਚ ਮਹੀਨੇ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਤਾਪਮਾਨ (ਲਗਪਗ 38° ਸੈਂਟੀਗੇਡ ਦੱਖਣ ਦੇ ਪਠਾਰ ‘ਤੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਗਰਮੀ ਦੀ ਇਹ ਪੇਟੀ ਉੱਤਰ ਨੂੰ ਖਿਸਕਣ ਲਗਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉੱਤਰੀ ਭਾਗ ਵਿਚ ਤਾਪਮਾਨ ਵੱਧਦਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨੂੰ ਮਾਨਸੂਨ ਦਾ ਨਿਮਨ ਵਾਯੁਦਾਬ ਖੇਤਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਭਾਗ ਵਿਚ ਚੱਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਗਰਮ ਖੁਸ਼ਕ ਪੌਣਾਂ (ਲੁ ਕੇਰਲ ਅਤੇ ਕਰਨਾਟਕ ਦੇ ਤਟੀ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਮੈਂਗੋ ਸ਼ਾਵਰ’ ਅਤੇ ਬੰਗਾਲ ਤੇ ਅਸਾਮ ਦੀ ‘ਕਾਲ-ਵੈਸਾਖੀ ਗਰਮ ਰੁੱਤ ਦੀਆਂ ਹੋਰ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹਨ ।

→ ਅੱਗੇ ਵਧਦੇ ਮਾਨਸੂਨ ਦੀ ਰੁੱਤ ਜੂਨ ਤੋਂ ਸਤੰਬਰ ਤਕ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਦੱਖਣ-ਪੱਛਮੀ ਮਾਨਸੂਨ ਚਲਦੀ ਹੈ ਜੋ ਦੋ ਸ਼ਾਖਾਵਾਂ ਵਿਚ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਦਾਖ਼ਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ-ਅਰਬ ਸਾਗਰ ਦੀ ਸ਼ਾਖਾ ਅਤੇ ਬੰਗਾਲ ਦੀ ਖਾੜੀ ਦੀ ਸ਼ਾਖਾ । ਇਹ ਪੌਣਾਂ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਕਾਫ਼ੀ ਵਰਖਾ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ਉੱਤਰ-ਪੂਰਬੀ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਵਰਖਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਜਦਕਿ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਕੁਝ ਭਾਗ ਖ਼ੁਸ਼ਕ ਰਹਿ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਜੁਲਾਈ ਅਤੇ ਅਗਸਤ ਦੇ ਮਹੀਨਿਆਂ ਵਿਚ ਦੇਸ਼ ਦੀ 75 ਤੋਂ 90 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਤਕ ਵਰਖਾ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਗਾਰੋ ਅਤੇ ਖਾਸੀ ਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਦੀ ਦੱਖਣੀ ਸ਼ੇਣੀ ਦੇ ਸਿਖਰ ‘ਤੇ ਸਥਿਤ ਮਾਉਸਿਨਰਾਮ ਵਿਚ ਸੰਸਾਰ ਭਰ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਵਰਖਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਦੂਜਾ ਸਥਾਨ ਕੁੱਝ ਹੀ ਦੂਰੀ ‘ਤੇ ਸਥਿਤ ਚਿਰਾਪੂੰਜੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । ਦੱਖਣੀ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਪੱਛਮੀ ਘਾਟ ਦੀਆਂ ਪਵਨਾਭਿਮੁਖ ਢਾਲਾਂ ‘ਤੇ ਅਰਬ ਸਾਗਰ ਦੀ ਮਾਨਸੂਨ ਸ਼ਾਖਾ ਦੁਆਰਾ ਭਾਰੀ ਵਰਖਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਅਕਤੂਬਰ ਅਤੇ ਨਵੰਬਰ ਦੇ ਮਹੀਨਿਆਂ ਵਿਚ ਮਾਨਸੂਨ ਪਿੱਛੇ ਹਟਣ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋ ਜਾਣ ਕਾਰਨ ਇਸ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਘੱਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਪੌਣਾਂ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਉਲਟਣ ਲਗਦੀ ਹੈ । ਅਸਮਾਨ ਸਾਫ਼ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਤਾਪਮਾਨ ਫਿਰ ਤੋਂ ਵੱਧਣ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਉੱਚ ਤਾਪਮਾਨ ਅਤੇ ਭੂਮੀ ਦੀ ਸਿਲ਼ ਕਾਰਨ ਮੌਸਮ ਕਸ਼ਟਦਾਇਕ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਇਸ ਨੂੰ “ਕਵਾਰ ਦੀ ਉਮਸ’ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਰੁੱਤ ਵਿਚ ਦੱਖਣੀ ਪਾਇਦੀਪ ਦੇ ਤੱਟਾਂ ਅਤੇ ਉਸ਼ਣ ਕਟੀਬੰਧੀ ਚੱਕਰਵਾਤ ਬਹੁਤ ਵਰਖਾ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਹ ਬਹੁਤ ਵਿਨਾਸ਼ਕਾਰੀ ਸਿੱਧ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਵਰਖਾ ਪੱਛਮੀ ਤੱਟਾਂ ਅਤੇ ਉੱਤਰ-ਪੂਰਬੀ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਹੁੰਦੀ (300 ਸੈਂਟੀਮੀਟਰ ਤੋਂ ਵੀ ਜ਼ਿਆਦਾ) ਹੈ ।

→ ਪਰ ਪੱਛਮੀ ਰਾਜਸਥਾਨ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਨੇੜੇ ਪੰਜਾਬ, ਹਰਿਆਣਾ ਅਤੇ ਗੁਜਰਾਤ ਦੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ 50 ਸੈਂਟੀਮੀਟਰ ਤੋਂ ਵੀ ਘੱਟ ਵਰਖਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਦੇਸ਼ ਦੇ ਉੱਚੇ ਭਾਗਾਂ (ਹਿਮਾਲਾ ਖੇਤਰ) ਵਿਚ ਬਰਫ਼ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਵਰਖਾ ਦੀ ਇਹ ਮਾਤਰਾ ਹਰ ਸਾਲ ਘੱਟਦੀ-ਵੱਧਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਮਾਨਸੂਨ ਦੀ ਅਸਥਿਰਤਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਕਿਤੇ ਤਾਂ ਭਿਆਨਕ ਹੜ੍ਹ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਕਿਤੇ ਸੋਕਾ ਪੈ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਲਵਾਯੂ ਦਾ ਅਨੁਮਾਨ ਲਾਉਣ ਲਈ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਯੰਤਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ : ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਥਰਮਾਮੀਟਰ, ਐਨੀਰਾਈਡ, ਬੈਰੋਮੀਟਰ, ਸੁੱਕੀ ਅਤੇ ਗਿੱਲੀ ਗੋਲੀ ਦਾ ਥਰਮਾਮੀਟਰ, ਵਰਖਾ ਮਾਪਕ ਯੰਤਰ, ਵਾਯੂ ਵੇਗ ਮਾਪਕ, ਵਾਯੁ ਦਿਸ਼ਾ ਸੂਚਕ ਆਦਿ ।

→ ਕੁਦਰਤ ਦੇ ਭਾਣੇ ਉੱਤੇ ਕਿਸੇ ਦਾ ਜ਼ੋਰ ਨਹੀਂ ਚੱਲਦਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਦੋਂ ਕੁਦਰਤੀ ਆਫ਼ਤਾਂ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਜਾਨ-ਮਾਲ ਦਾ ਨੁਕਸਾਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਸੁਨਾਮੀ ਵੀ ਇਹਨਾਂ ਕੁਦਰਤੀ ਆਫ਼ਤਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਦਸੰਬਰ, 2004 ਵਿਚ ਦੱਖਣੀ ਏਸ਼ੀਆ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਆਈ ਸੀ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਲੋਕ ਮਰ ਗਏ ਸਨ ।