PSEB 6th Class Science Notes Chapter 8 शरीर मे गति

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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 8 शरीर मे गति

→ शरीर में गतियों से हमारा भाव एक जीव के शरीर के किसी भी भाग की स्थिति में परिवर्तन है।

→ गमन एक जीव के पूरे शरीर की एक स्थान से दूसरे स्थान तक की गति है।

→ जानवर गमन और अन्य प्रकार की शारीरिक गतियाँ दिखाते हैं लेकिन पौधे गमन नहीं करते हैं, हालांकि वे कुछ अन्य प्रकार की गतियाँ अवश्य दिखाते हैं।

→ मनुष्य का चलना, मछलियों का तैरना, घोड़े का दौड़ना, साँप का रेंगना, टिड्डी का कूदना और पक्षियों का उड़ना आदि गमन के विभिन्न तरीके हैं।

→ जानवरों द्वारा गमन का उद्देश्य पानी, भोजन तथा आश्रय ढूंढने के साथ-साथ दुश्मनों से अपनी रक्षा करना है।

→ हड्डियाँ अथवा अस्थियों से बना ढांचा जो शरीर को सहारा देता है, कंकाल कहलाता है।

→ हड्डियाँ अथवा अस्थियाँ सख्त और कठोर होती हैं जबकि उपास्थियाँ नर्म और लचीली होती है।

→ मानव कंकाल हड्डियों और उपास्थि से बना होता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 8 शरीर मे गति

→ मानव शरीर में जन्म के समय 300 हइडियाँ होती हैं।

→ वयस्क मानव शरीर में 206 हड्डियाँ होती हैं।

→ पसली पिंजर, पसलियों, रीढ़ की हड्डी और छाती की हड्डी से बना होता है। यह शरीर के आंतरिक अंगों की रक्षा करता है।

→ खोपड़ी मस्तिष्क को परिबद्ध कर उसकी सुरक्षा करती है।

→ जोड़ अथवा संधि वह स्थान है जहां हड्डियाँ अथवा अस्थियाँ आपस में मिलती हैं।

→ टैंडन अथवा कण्डरा एक लचीला ऊतक है जो हड्डियों अथवा अस्थियों को आपस में जोड़ता है।

→ शरीर की गति मांसपेशियों के संकुचन पर निर्भर करती है। ये मांसपेशियाँ हमेशा जोड़ी में काम करती हैं।

→ चाल जानवरों के अंगों की गति का पैटर्न है।

→ केंचुए अपने शरीर की मांसपेशियों के संकुचन और फैलाव से चलते हैं।

→ घोंघा एक बड़े चिपचिपे पेशीय पैर की सहायता से चलता है।

→ एक तिलचट्टा चल सकता है, दौड़ सकता है, चढ़ सकता है और उड़ सकता है।

→ पक्षियों के अग्रपाद पंखों में बदले हुए हैं जो उड़ान में मदद करते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 8 शरीर मे गति

→ मछली का शरीर धारा रेखीय होता है और यह अपने शरीर पर पार्श्व में पाए जाने वाले पंखों से चलती है ।

→ पक्षियों में धारा रेखीय शरीर और खोखली एवं हल्की हड्डियाँ होती हैं जो उड़ान के दौरान उनकी मदद करती हैं।।

→ साँप अपने पेट पर रेंग कर चलते हैं।

→ विभिन्न प्रकार के जोड़ अथवा संधियाँ अलग-अलग दिशाओं में गति की अनुमति देती हैं।

→ हमारे शरीर में कई प्रकार के जोड़ अथवा संधियाँ होती हैं जैसे बॉल और सॉकेट या कंदुक खल्लिका जोड़ अथवा संधि, हिंज जोड़ अथवा संधि, स्थिर या अचल जोड़ अथवा संधि और धुराग्र जोड़ अथवा संधि।

→ गेंद और सॉकेट या कंदुक खल्लिका जोड़ या संधि एक गोलाकार रूप में या सभी दिशाओं में गति की अनुमति देती है।

→ हिंज जोड़ या संधि आगे और पीछे गति की अनुमति देता है।

→ धुराग्र जोड़ या संधि आगे और पीछे की दिशा, दाएं या बाएं गति की अनुमति देता है। गर्दन और सिर का जोड या संधि इसका उदाहरण है।

→ स्थिर जोड़ अचल होते हैं।

→ एक्स-रे हड्डियों की संख्या गिनने और शरीर में हड्डियों के आकार का अध्ययन करने में मदद करता है।

→ गति-एक जीव के शरीर के किसी भी भाग की स्थिति में परिवर्तन को गति कहा जाता है।

→ गमन-एक जीव के पूरे शरीर का एक स्थान से दूसरे स्थान तक की गति को गमन कहा जाता है।

→ अस्थि-यह कंकाल का वह भाग है जो प्रकृति में कठोर होता है।

→ संधि-यह शरीर का वह स्थान है जहां दो या दो से अधिक हड्डियाँ किसी प्रकार की गति के लिए मिलती

→ उपास्थि-जोड़ों में पाए जाने वाला चिकने, मोटे और लचीले ऊतक को उपास्थि कहते हैं।

→ अचल संधि-जिन जोड़ों पर हड्डियाँ गति नहीं कर सकतीं उन्हें स्थिर अथवा अचल संधि कहा जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 8 शरीर मे गति

→ गतिशील जोड़ अथवा संधि-जिन जोड़ों अथवा संधियों में हड्डियों की गति संभव होती है उन्हें गतिशील जोड़ अथवा संधि कहा जाता है।

→ कंकाल-शरीर का वह ढाँचा जो शरीर को सहारा और आकार देता है, कंकाल कहलाता है।

→ धारा रेखीय वस्तु-कोई भी वस्तु जो दोनों सिरों पर नोकीली तथा मध्य में चौड़ी या चपटी होती है, धारा रेखीय वस्तु कहलाती है।

→ कण्डरा-मजबूत, रेशेदार ऊतक जो मांसपेशियों को हड्डियों से जोड़ता है, टैंडन अथवा कण्डरा कहलाता है।

→ स्नायुबंधन अथवा लिगामैंट-मजबूत, लचीला ऊतक जो दो हड्डियों को जोड़ता है उसे स्नायुबंधन अथवा लिगामैंट कहते हैं।

→ श्रोणि अस्थियाँ- इन्हें कूल्हे की अस्थियाँ भी कहते हैं। ये बॉक्स के समान एक ऐसी संरचना बनाती हैं जो आमाशय के नीचे के अंगों की रक्षा करती है।

→ धुराग्र संधि-गर्दन और सिर को जोडने वाली संधि को धुराग्र संधि कहते हैं। इसमें बेलनाकार अस्थि एक छल्ले में घूमती है।

→ पसली पिंजर-यह वक्ष की अस्थि एवं मेरुदंड से जुड़कर बना एक बक्सा होता है जो कोमल अंगों की सुरक्षा करता है।

→ कंधे की अस्थियाँ-कंधों के समीप दो उभरी हुई अस्थियाँ होती हैं जिन्हें कंधे की अस्थियाँ कहते हैं।

→ शूक-केंचुए के शरीर में बालों जैसी बारीक संरचनाएं होती हैं जिनकी सहायता से वह गति करता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 7 पौधों को जानिए

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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 7 पौधों को जानिए

→ पौधों को आम तौर पर उनकी ऊंचाई, तने और शाखाओं के आधार पर जड़ी-बूटीयों, झाड़ियों, पेड़ों और लताओं में वर्गीकृत किया जाता है।

→ जड़ी-बूटीयाँ एक मीटर से कम ऊँचे पौधे होते हैं और इनके तने मुलायम और हरे रंग के होते हैं।

→ झाड़ियाँ मध्यम आकार के (1-3 मीटर लम्बे) पौधे होते हैं। उनके तने सख्त होते हैं और उनकी शाखाएँ तने के आधार पर (जमीन के बहुत करीब) होती हैं।

→ पेड लम्बे और बड़े पौधे (ऊंचाई 3 मीटर से अधिक) होते हैं। उनका तना मजबूत होता है और उनकी शाखाएँ तने के आधार (जमीन से कुछ ऊंचाई) के ऊपर निकलती हैं।

→ पौधे के प्रत्येक भाग का एक विशिष्ट कार्य होता है।

→ पौधे की संरचना को दो भागों में बाँटा गया है-जड़ प्रणाली और तना प्रणाली।

→ जड़ प्रणाली जमीन के नीचे होती है और तना प्रणाली जमीन के ऊपर होती है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 7 पौधों को जानिए

→ जड़ और तना दोनों प्रणालियाँ भोजन का भंडारण करती हैं।

→ तना प्रणाली में तना, पत्तियाँ, फूल आदि आते हैं।

→ तने को गाँठों और अंतर-गाँठों में विभाजित किया जाता है।

→ तने का वह भाग जहाँ से नई शाखाएँ और पत्तियाँ निकलती हैं, गाँठ कहलाती है।

→ दो गाँठों के बीच के स्थान को अंतर-गाँठ कहते हैं।

→ तने पर छोटे-छोटे उभारों को कलियाँ कहते हैं।

→ पौधे का तना पानी को जड़ से पत्तियों और अन्य भागों तक और भोजन को पत्तियों से पौधे के अन्य भागों तक ले जाता है।

→ कमजोर तने वाले पौधे जो सीधे खड़े नहीं हो सकते और बढ़ने के लिए आसपास की वस्तुओं की सहायता से ऊपर चढ़ते हैं उन्हें आरोही अथवा कलाईंबर बेलें कहा जाता है।

→ कुछ जड़ी-बूटीयों के तने कमजोर होते हैं जो अपने आप सीधे खड़े नहीं हो सकते और जमीन पर फैल जाते हैं। ऐसे पौधों को क्रीपर बेलें कहा जाता है।

→ पत्ता पौधे का एक पतला, चपटा और हरा भाग होता है जो तने की गाँठ से निकलता है। विभिन्न पौधों के पत्ते आकार और रंग में भिन्न होते हैं।

→ पत्तों का हरा रंग क्लोरोफिल की उपस्थिति के कारण होता है, जो एक हरा वर्णक है।

→ पत्ता तने से पतले डंडी से जुड़ा होता है।

→ पत्ते के उभरे हुए भाग को ब्लेड या फलक या लैमिना कहते हैं।

→ पत्ते में शिराओं का जाल होता है जिसे शिरा विन्यास भी कहते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 7 पौधों को जानिए

→ शिरा विन्यास दो प्रकार का होता है अर्थात जालीदार एवं समानांतर।

→ विभिन्न पौधों में अलग-अलग प्रकार के शिरा विन्यास होते हैं।

→ पत्ते वाष्पोत्सर्जन विधि द्वारा वायु में जल छोड़ते हैं।

→ हरे पत्ते सूर्य के प्रकाश में जल और कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करके प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन बनाते हैं।

→ पत्तों की सतह पर बहुत छोटे छिद्र होते हैं जिन्हें रंध्र कहते हैं।

→ जड़ें आमतौर पर दो प्रकार की होती हैं – पेशीय जड़ें और रेशेदार जड़ें।

→ शिराओं और पौधों की जड़ों के बीच घनिष्ठ संबंध है।

→ जिन पौधों के पत्तों में जालीदार शिराएँ होती हैं, उनमें पेशीय जड़ें होती हैं।

→ जिन पौधों की पत्तियों में समानांतर शिराएँ होती हैं उनमें रेशेदार जड़ें होती हैं।

→ फूल एक पौधे का सबसे सुंदर, आकर्षक और रंगीन हिस्सा होता है जो पौधे का प्रजनन अंग होता है।

→ जिस भाग से फूल तने से जुड़ा होता है, उसे पेडिकल केहते हैं।

→ फूलों के अलग-अलग भाग होते हैं- हरी पत्तियाँ, पंखुड़ियाँ, पुंकेसर और मादा केसर।

→ फूल की बाहरी हरी पत्ती जैसी संरचनाओं को हरी पत्तियाँ और सामूहिक रूप से उन्हें कैलेक्स कहा जाता है।

→ एक फूल की हरी पत्तियों के अंदर मौजूद रंगीन, पत्ती जैसी संरचनाओं को पंखुड़ी कहा जाता है और सामूहिक रूप से उन्हें कोरोला भी कहा जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 7 पौधों को जानिए

→ पंखुड़ियाँ कीड़ों को आकर्षित करती हैं और प्रजनन में मदद करती हैं।

→ पुंकेसर, नर प्रजनन अंग है और मादा केसर मादा प्रजनन अंग है।

→ प्रत्येक पुंकेसर में एक पतला तना होता है जिसे तंतु कहा जाता है और इसके शीर्ष पर दो भागों में विभाजित संरचना होती है जिसे पराग कोशिका कहा जाता है।

→ पराग कोशिकाएं पराग का निर्माण करती हैं और प्रजनन में भाग लेती हैं।

→ मादा केसर एक पतली, बोतल के आकार की संरचना होती है जो फूल के बीच में मौजूद होती है।

→ महिला केसर को आगे तीन भागों में बांटा गया है-

  1. अंडाशय
  2. वर्तिका
  3. वर्तिकाग्र।

मादा केसर का निचला भाग अंडाशय कहलाता है। इसमें बीज और अंडे होते हैं जो प्रजनन में भाग लेते हैं।

→ मादा केसर के संकीर्ण, मध्य भाग को वर्तिका कहा जाता है।

→ वर्तिका के शीर्ष पर चिपचिपा भाग वर्तिकाग्र कहलाता है।

→ जड़ी-बूटी- एक मीटर से कम ऊंचाई वाले और मुलायम एवं हरे तने वाले पौधे जड़ी-बूटी अथवा खरपतवार कहलाते हैं।

→ आरोही या कलाईंबर लताएँ-कमजोर तने वाले पौधे होते हैं जो सीधे खड़े नहीं हो सकते हैं और बढ़ने के लिए आसपास की वस्तुओं पर निर्भर रहते हैं। उन्हें आरोही या कलाईंबर लताएँ कहा जाता है।

→ क्रीपर या लता बेल-कुछ जड़ी-बूटीयों या खरपतवारों के तने कमजोर होते हैं जो अपने आप सीधे खड़े नहीं हो पाते और जमीन पर फैल जाते हैं। ऐसे पौधों को क्रीपर या लता बेलें कहा जाता है।

→ जड़ प्रणाली-जड़ वाले पौधे के भूमिगत भाग को जड़ प्रणाली कहा जाता है।

→ तना प्रणाली-जड़ वाले पौधे की जमीन के ऊपरी भाग को तना प्रणाली कहा जाता है।

→ डंडी-पत्ते की लंबी संरचना जो पत्ते को तने से जोड़ता है।

→ फलक या लैमिना-पत्ते का सपाट, हरा भाग।

→ गाँठ-तने पर वह स्थान जहाँ पत्तियाँ निकलती हैं।

→ अंतर-गाँठ-दो गांठों के बीच का तने का भाग।

→ विन्यास- एक पत्ती में शिराओं की व्यवस्था।

→ एक्सिल-पत्ते का तने से बना कोण।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 7 पौधों को जानिए

→ वाष्पोत्सर्जन-पत्तों से जलवाष्प का वाष्पीकरण।

→ रंध्र-पत्तों की सतह पर महीन छिद्र।

→ पंखुड़ियाँ-एक फूल की हरी पंखुड़ियों के अंदर रंगीन, पत्ती जैसी संरचनाओं को पंखुड़ियाँ कहा जाता है।

→ कोरोला-पंखुड़ियों के समूह जिसे कोरोला कहा जाता है।

→ हरी पत्तियाँ-फूल की बाहरी हरी पत्ती जैसी संरचनाओं को हरी पत्तियाँ कहते हैं।

→ कैलेक्स-हरी पत्तियों के समूह को कैलेक्स कहते हैं।

→ पुंकेसर-फूल का नर भाग।

→ पराग कोशिकाएँ-पुंकेसर के दो भागों वाले शीर्ष को पराग कोशिका कहते हैं।

→ मादा केसर-फूल का मादा भाग।

→ अंडाशय-मादा केसर का नीचे वाला चौड़ा भांग जिसमें बीज होते हैं, अंडाशय कहलाता है।

→ वर्तिका-मादा केसर के संकीर्ण, मध्य भाग को वर्तिका कहा जाता है।

→ वर्तिकाग्र-वर्तिका के शीर्ष पर चिपचिपा भाग वर्तिकाग्र कहलाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 6 हमारे चारों ओर के परिवर्तन

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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 6 हमारे चारों ओर के परिवर्तन

→ परिवर्तन एक ऐसी क्रिया है जिसके द्वारा कोई वस्तु किसी अन्य रूप अथवा वस्तु में परिवर्तित हो जाती है।

→ हम अपने आस-पास कई परिवर्तन देखते हैं और हर परिवर्तन सकारात्मक या नकारात्मक तरीके से महत्त्वपूर्ण होता है।

→ परिवर्तनों को उनके बीच की समानताएँ और अंतर ढूंढकर एक समान समूहों में समूहीकृत किया जा सकता है।

→ सभी परिवर्तनों को मोटे तौर पर दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है अर्थात प्राकृतिक और कृत्रिम या मानव निर्मित।

→ वे परिवर्तन जो प्रकृति में होते हैं और जिनमें हमारी भागीदारी की आवश्यकता नहीं होती है, प्राकृतिक परिवर्तन कहलाते हैं। ये कभी न खत्म होने वाले बदलाव हैं। प्राकृतिक परिवर्तनों के उदाहरणों में बर्फ का पिघलना, पेड़ से पत्ते गिरना आदि शामिल हैं।

→ मानव के प्रयासों से होने वाले परिवर्तन कृत्रिम या मानव निर्मित परिवर्तन कहलाते हैं। मानव निर्मित परिवर्तनों के उदाहरणों में गेहूँ के आटे से चपाती बनाना, सब्जियाँ पकाना आदि शामिल हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 6 हमारे चारों ओर के परिवर्तन

→ गति के आधार पर, हम परिवर्तनों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत कर सकते हैं। ये धीमे परिवर्तन और तेज परिवर्तन हैं।

→ धीमे परिवर्तन वे होते हैं जिन्हें होने में अधिक समय लगता है। उदाहरण के लिए, पेड़ का बढ़ना, एक बच्चे का वयस्क होना आदि।

→ तेज परिवर्तन वे होते हैं जिन्हें होने में कम समय लगता है अर्थात जो बहुत तेजी से होते हैं । उदाहरण के लिए, माचिस की तीली जलाना, पटाखे फोड़ना आदि।

→ हमारे आस-पास के सभी परिवर्तनों में से केवल कुछ ही परिवर्तनों को उत्क्रमित किया जा सकता है। इन्हें प्रतिवर्ती अथवा उत्क्रमणीय परिवर्तन कहा जाता है। वे परिवर्तन जिन्हें उत्क्रमित नहीं किया जा सकता है, अपरिवर्तनीय परिवर्तन कहलाते हैं।

→ किसी पदार्थ में परिवर्तन को प्रतिवर्ती परिवर्तन तब कहा जाता है जब हम परिस्थितियों को बदलकर पदार्थ को उसके मूल रूप में प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, बर्फ पिघलने पर पानी में बदल जाती है और पानी को ठंडा करके बर्फ में बदला जा सकता है, जो एक प्रतिवर्ती परिवर्तन है।

→ किसी पदार्थ में परिवर्तन को अपरिवर्तनीय परिवर्तन तब कहा जाता है जब हम परिस्थितियों को बदलकर पदार्थ को उसके मूल रूप में प्राप्त नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए, एक बार तवे पर पकाई गई रोटी को दोबारा आटे में नहीं बदला जा सकता है।

→ कुछ परिवर्तन आवधिक अथवा आवर्ती होते हैं जबकि अन्य गैर आवधिक अथवा अनावर्ती होते हैं।

→ जो परिवर्तन एक निश्चित समय अंतराल के बाद दोहराए जाते हैं, उन्हें आवधिक अथवा आवर्ती परिवर्तन कहते हैं। उदाहरण के लिए, दिन और रात का बदलना, घड़ी के लोलक का झूलना, हृदय की धड़कन, ऋतुओं का परिवर्तन।

→ वे परिवर्तन जो नियमित अंतराल के बाद दोहराए नहीं जाते हैं, गैर आवधिक अथवा अनावर्ती परिवर्तन कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, भूकंप आना, बारिश होना, आदि।

→ हमने परिवर्तनों को भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों में भी वर्गीकृत किया है।

→ कोई भी अस्थायी परिवर्तन जिसमें कोई नया पदार्थ नहीं बनता है और मूल पदार्थ की रासायनिक संरचना समान रहती है, भौतिक परिवर्तन कहलाता है।

→ भौतिक परिवर्तनों के दौरान, भौतिक गुण जैसे रंग, आकार, आयतन, अवस्था आदि बदल सकते हैं। अत: हम कह सकते हैं कि भौतिक परिवर्तन एक प्रतिवर्ती अथवा उत्क्रमणीय परिवर्तन है।

→ कोई भी स्थायी परिवर्तन जिसमें नए पदार्थ बनते हैं। इनमें बनने वाले नए पदार्थ के भौतिक और रासायनिक गुण मूल पदार्थ से बिल्कुल अलग होते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 6 हमारे चारों ओर के परिवर्तन

→ भौतिक परिवर्तन प्रकृति में अधिकतर प्रतिवर्ती अथवा उत्क्रमणीय होते हैं जबकि रासायनिक परिवर्तन ज्यादातर अपरिवर्तनीय परिवर्तन होते हैं।

→ प्रसार और संकुचन भौतिक परिवर्तन हैं जो हमारे दैनिक जीवन में बहुत उपयोगी होते हैं।

→ प्रसार में पदार्थ की विमाएँ बढ़ती हैं और संकुचन में पदार्थ की विमाएँ घटती हैं।

→ परिवर्तन-वह क्रिया जिसके द्वारा कोई वस्तु अपने पिछले वाले से भिन्न हो जाती है।

→ प्राकृतिक परिवर्तन-स्वाभाविक रूप से होने वाले और कभी न खत्म होने वाले परिवर्तन प्राकृतिक परिवर्तन कहलाते हैं।

→ मानव निर्मित अथवा कृत्रिम परिवर्तन-मानव के प्रयासों से होने वाले परिवर्तन मानव निर्मित अथवा कृत्रिम परिवर्तन कहलाते हैं।

→ आवधिक अथवा आवर्ति परिवर्तन-जो परिवर्तन एक निश्चित समय अंतराल के बाद दोहराए जाते हैं, उन्हें आवधिक अथवा आवर्ती परिवर्तन कहते हैं। उदाहरण के लिए, दिन और रात का बदलना, घड़ी के लोलक का झूलना, हृदय की धड़कन, ऋतुओं का परिवर्तन।

→ गैर-आवधिक अथवा अनावर्ती परिवर्तन-वे परिवर्तन जो नियमित अंतराल के बाद दोहराए नहीं जाते हैं, गैर-आवधिक अथवा अनावर्ती परिवर्तन कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, भूकंप आना, बारिश होना, आदि।

→ प्रतिवर्ती अथवा उत्क्रमणीय परिवर्तन-किसी पदार्थ में होने वाले वे परिवर्तन जिनमें बनने वाले नए पदार्थ को अपनी मूल अवस्था में लाया जा सकता है, प्रतिवर्ती अथवा उत्क्रमणीय परिवर्तन कहलाते हैं।

→ अपरिवर्तनीय परिवर्तन-किसी पदार्थ में होने वाले वे परिवर्तन जिनमें बनने वाले नए पदार्थ को अपनी मूल अवस्था में लाया जा सकता है, अपरिवर्तनीय परिवर्तन कहलाते हैं।

→ भौतिक परिवर्तन- भौतिक परिवर्तन एक अस्थायी परिवर्तन है जिसमें कोई नया पदार्थ नहीं बनता है और मूल पदार्थ की रासायनिक संरचना समान रहती है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 6 हमारे चारों ओर के परिवर्तन

→ रासायनिक परिवर्तन-रासायनिक परिवर्तन एक स्थायी परिवर्तन है जिसमें नए पदार्थ बनते हैं जिनके भौतिक और रासायनिक गुण मूल पदार्थ के गुणों से पूरी तरह भिन्न होते हैं।

→ प्रसार-जब कोई पदार्थ गर्म करने पर अपना आकार बढ़ाता है तो उस परिवर्तन को प्रसार कहते हैं।

→ तापीय प्रसार-जो प्रसार तापमान में वृद्धि के कारण होता है तो इसे तापीय या थर्मल प्रसार कहा जाता है।

→ संकुचन-जब कोई पदार्थ ठंडा होने पर अपना आकार कम कर लेता है तो उस परिवर्तन को संकुचन कहते हैं।

→ वाष्पीकरण-जब गर्म करने पर या दबाव कम करने पर, कोई तरल गैसीय रूप में परिवर्तित हो जाता है तो इस प्रक्रिया को वाष्पीकरण के रूप में जाना जाता है।

→ पिघलना या गलन-गर्म करने या दबाव बढ़ाने पर जब कोई ठोस द्रव में बदल जाता है, तो इस प्रक्रिया को पिघलने या गलन के रूप में जाना जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 5 पदार्थों का पृथक्करण

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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 5 पदार्थों का पृथक्करण

→ हमारे आस-पास के पदार्थों को दो वर्गों अर्थात शुद्ध पदार्थ या अशुद्ध पदार्थ में बाँटा जा सकता है। अशुद्ध पदार्थों को मिश्रण भी कहते हैं।

→ एक शुद्ध पदार्थ केवल एक ही प्रकार के परमाणुओं या अणुओं से बना होता है, उदाहरण पानी। इसकी संरचना और गुण निश्चित् होते हैं।

→ मिश्रणों में कुछ वांछित पदार्थ और अवांछित पदार्थ होते हैं। हमें अवांछित पदार्थों को वांछित पदार्थों से अलग करना चाहिए।

→ मिश्रण से विभिन्न पदार्थों को अलग करने की प्रक्रिया को पृथक्करण के रूप में जाना जाता है।

→ अगर मिश्रण में अवांछित पदार्थ हैं तो पृथक्करण अवश्य किया जाना चाहिए क्योंकि मिश्रण में अवांछित पदार्थ हमारे लिए हानिकारक हो सकते हैं।

→ पृथक्करण उन मामलों में भी महत्त्वपूर्ण है जहां हमें एक विशेष घटक या अवयव की शुद्ध अवस्था में आवश्यकता होती है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 5 पदार्थों का पृथक्करण

→ मिश्रण के घटकों को अलग करने के लिए हमारे पास कई विधियाँ हैं। ये मिश्रण में मौजूद पदार्थों के गुणों में अंतर पर आधारित होती हैं।

→ पृथक्करण की विभिन्न विधियाँ हैं- हस्तचयन, निष्पावन, चालन, अवसादन, निस्तारण, निस्यंदन, निस्यंदन, वाष्पीकरण आदि।

→ हस्तचयन विधि का उपयोग उस मिश्रण के घटकों को अलग करने के लिए प्रयोग किया जाता है जिन्हें हम आँखों से देख सकते हैं और ये आकार में बड़े हों।

→ कंबाइन का उपयोग कटाई और निस्यंदन दोनों प्रक्रियाओं के लिए किया जाता है।

→ निस्यंदन अनाज को भूसे से अलग करना है। यह तीनों में से किसी एक विधि का उपयोग करके किया जा सकता
है अर्थात

  1. मनुष्यों द्वारा
  2. जानवरों की मदद से और
  3. मशीनों का उपयोग करके।

→ एक मिश्रण के भारी और हल्के घटकों को हवा या हवा में उड़ाने की विधि को चालन कहते हैं।

→ ठोस और तरल पदार्थों के मिश्रण को अलग करने के लिए निस्तारण, अवसादन, निस्यंदन, वाष्पीकरण जैसी विधियों का उपयोग किया जाता है।

→ मिश्रण से भारी, अघुलनशील कणों के नीचे बैठने की प्रक्रिया अवसादन कहलाती है। वह पदार्थ जो तल पर जम जाता है तलछट कहलाता है। इस विधि का उपयोग अघुलनशील भारी कणों को तरल से अलग करने के लिए किया जाता है।

→ तलछट को विचलित किए बिना स्पष्ट तरल को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया को निस्तारण के रूप में जाना जाता है।

→ एक अघुलनशील ठोस को एक फिल्टर पेपर या मलमल के कपड़े के माध्यम से तरल से अलग करने की प्रक्रिया को निस्यंदन के रूप में जाना जाता है।

→ मिश्रण के अलग-अलग आकार के कणों को छाननी से अलग करने की प्रक्रिया को छाननी कहा जाता है।

→ किसी द्रव को गर्म करके उसके वाष्प में बदलने की प्रक्रिया वाष्पीकरण कहलाती है।

→ कभी-कभी हमें मिश्रण के घटकों को अलग करने के लिए एक से अधिक विधियों की आवश्यकता हो सकती है या नहीं।

→ जब दो या दो से अधिक पदार्थों का मिश्रण एक ही पदार्थ या शुद्ध पदार्थ की तरह दिखाई देता है तो उसे विलयन कहते हैं।

→ किसी विलयन में जो पदार्थ अधिक मात्रा में उपस्थित होता है उसे विलायक कहते हैं तथा कम मात्रा में उपस्थित पदार्थ को विलेय कहते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 5 पदार्थों का पृथक्करण

→ संतप्त विलयन वह विलयन है जिसमें किसी विशेष तापमान पर और अधिक विलेय नहीं घल सकता है।

→ असंतृप्त विलयन वह विलयन है जिसमें किसी विशेष तापमान पर और अधिक विलेय घोला जा सकता है।

→ जल में विभिन्न मात्रा में पदार्थ घुल जाते हैं और विलयन को गर्म करने पर अधिकांश पदार्थों की विलेयता बढ़ जाती है।

→ वाष्पीकरण और संघनन एक दूसरे के विपरीत हैं।

→ शुद्ध पदार्थ-यदि कोई पदार्थ केवल एक ही प्रकार के घटकों (परमाणुओं या अणुओं) से बना हो तो वह शुद्ध पदार्थ कहलाता है। इसकी संरचना और गुण निश्चित होने चाहिए।

→ अशुद्ध पदार्थ-अशुद्ध पदार्थ विभिन्न प्रकार के घटकों (परमाणुओं या अणुओं) का मिश्रण होता है।

→ मिश्रण-दो या दो से अधिक तत्वों या यौगिकों से बिना किसी रासायनिक अभिक्रिया के किसी भी अनुपात में मिश्रित पदार्थ को मिश्रण कहा जाता है।

→ विलयन-जब दो या दो से अधिक पदार्थों का मिश्रण एक ही पदार्थ या शुद्ध पदार्थ की तरह दिखाई देता है तो उसे विलयन कहते हैं।

→ विलायक-किसी विलयन में जो पदार्थ अधिक मात्रा में उपस्थित होता है वह विलायक कहलाता है।

→ विलेय-किसी विलयन में जो पदार्थ कम मात्रा में उपस्थित होता है वह विलेय कहलाता है।

→ संतृप्त विलयन-वह विलयन जिसमें किसी विशेष तापमान पर और अधिक विलेय नहीं घुल सकता है, संतृप्त विलयन कहलाता है।

→ असंतृप्त विलयन-वह विलयन जिसमें किसी विशेष ताप पर और अधिक विलेय घोला जा सकता है, असंतृप्त विलयन कहलाता है।

→ आसवन-वह प्रक्रिया जिसमें किसी द्रव को उबालकर वाष्प में परिवर्तित किया जाता है और इस प्रकार बने वाष्पों को ठंडा करके शुद्ध द्रव बनाने के लिए संघनित किया जाता है, आसवन कहलाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 5 पदार्थों का पृथक्करण

→ हस्तचयन-किसी पदार्थ में मिली अशुद्धियों को हाथ से चुन कर अथवा चुग कर पृथक् करने की विधि को हस्तचयन विधि कहते हैं।

→ निस्यंदन अथवा विनोइंग-जब किसी मिश्रण के अवयवों के कणों के भार में अंतर हो तो जिस विधि द्वारा हवा के झोंके के प्रभाव अधीन विभिन्न अवयवों का पृथक्करण किया जाता है उस विधि को निस्यंदन कहा जाता है ।

→ फटकन-दानों को डंठलों से अलग करने की प्रक्रिया को फटकन कहते हैं। इस विधि में, हम बीज को मुक्त करने के लिए डंठल को कठोर सतह पर पटकते हैं।

→ छानन-वह विधि है जिसमें छोटे ठोस कणों को छाननी से गुजार कर बड़े ठोस कणों से अलग किया जाता है उसे छानन कहा जाता है ।

→ अवसादन-इस प्रक्रिया में, तरल मिश्रण को कुछ समय के लिए अविचलित रखा जाता है। ठोस भारी अघुलनशील कण तल पर जमा हो जाते हैं और हल्के कण तरल में तैरते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 4 वस्तुओं के समूह बनाना

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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 4 वस्तुओं के समूह बनाना

→ पदार्थ को किसी भी ऐसी चीज़ के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसका द्रव्यमान होता है और जो स्थान घेरती है।

→ हमारे आस-पास मौजूद सभी वस्तुएँ पदार्थ है क्योंकि ये स्थान घेरती है और इनका निश्चित द्रव्यमान होता है।

→ प्यार या उदासी की भावनाएं, रेडियो और टेलीविजन द्वारा प्राप्त संकेत, ऊर्जा के विभिन्न रूप पदार्थ नहीं हैं।

→ कुछ पदार्थ एक प्रकार के अवयवों से बने होते हैं जबकि अन्य एक से अधिक अवयवों से बने होते हैं।

→ परमाणु सबसे छोटा भाग है जो सभी प्रकार के पदार्थों में पाया जाता है।

→ हम भिन्न भिन्न रूपों, आकारों, रंगों और उपयोगों वाले विभिन्न पदार्थों से घिरे हुए हैं।

→ वस्तुओं की विशाल विविधता के कारण इनका वर्गीकरण करना हमारे लिए लाभदायक सिद्ध होता है। हम इन्हें विभिन्न कारकों अर्थात आकार, प्रयुक्त सामग्री, उपयोग आदि के आधारों पर वर्गीकृत कर सकते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 4 वस्तुओं के समूह बनाना

→ एक ही प्रकार के अवयवों से बनी वस्तुओं की संरचना सरल होती है। कई प्रकार के अवयवों से बनी वस्तुओं की संरचना जटिल होती है।

→ गुणों और वांछित उपयोगों के आधार पर अवयवों का चुनाव करके वस्तुओं का निर्माण किया जाता है ।

→ कुछ वस्तुओं के गुण समान होते हैं और कुछ वस्तुओं के गुण असमान होते हैं।

→ कुछ पदार्थ पानी में घुलने पर पूरी तरह से गायब हो जाते हैं। ये घुलनशील अथवा विलेय पदार्थ कहलाते हैं।

→ जो पदार्थ पानी में नहीं घुलते हैं या बहुत देर तक हिलाने पर भी पानी में गायब नहीं होते हैं, अघुलनशील अथवा अविलेय पदार्थ कहलाते हैं।

→ कुछ पदार्थ चमकदार होते हैं। इन्हें चमकीले अथवा द्युतिमय पदार्थ कहा जाता है। वे पदार्थ जिनमें चमक नहीं होती वे चमक-रहित अथवा अद्युतिमय पदार्थ कहलाते हैं।

→ कुछ वस्तुएँ सख्त होती हैं। ये कठोर पदार्थ कहलाती हैं।

→ हम कुछ पदार्थों के आर-पार देख सकते हैं । इन्हें पारदर्शी पदार्थ कहा जाता है।

→ हम कुछ पदार्थों के पार नहीं देख सकते हैं। ये अपारदर्शी पदार्थ कहलाते हैं।

→ हम कुछ पदार्थों में से सीमित सीमा तक ही देख सकते हैं। ये पारभासी पदार्थ कहलाते हैं।

→ वे द्रव जो पूर्ण रूप से आपस में मिल जाते हैं, मिश्रणीय द्रव कहलाते हैं।

→ वे द्रव जो आपस में मिश्रित नहीं होते अमिश्रणीय द्रव कहलाते हैं।

→ वे द्रव जो आपस में आंशिक रूप से मिश्रित होते हैं, आंशिक रूप से मिश्रणीय द्रव कहलाते हैं।

→ पदार्थ के प्रति इकाई आयतन के द्रव्यमान को घनत्व के रूप में जाना जाता है।

→ यदि किसी अघुलनशील अथवा अविलेय पदार्थ का घनत्व पानी से अधिक है तो वह डूब जाएगा।

→ यदि किसी अघुलनशील अथवा अविलेय पदार्थ का घनत्व पानी से कम है तो वह तैरने लगेगा।

→ अमिश्रणीय तरलों को मिलाने पर दो परतें बनती हैं । दोनो तरलों में से, अधिक घनत्व वाला तरल निचली परत बनाएगा और कम घनत्व वाला ऊपरी परत बनाएगा।

→ मिश्रणीय द्रव-वे द्रव जो पूर्ण रूप से मिश्रित हो जाते हैं, मिश्रणीय द्रव कहलाते हैं।

→ अमिश्रणीय द्रव-वे द्रव जो आपस में मिश्रित नहीं होते हैं, अमिश्रणीय द्रव कहलाते हैं।

→ घुलनशील अथवा विलेय-वह ठोस पदार्थ जो पानी या किसी अन्य तरल में घुलने पर पूरी तरह से गायब हो जाता है, घुलनशील पदार्थ कहलाता है।

→ अघुलनशील अथवा अविलेय-वह ठोस पदार्थ जो पानी या किसी अन्य तरल में घुलने पर गायब नहीं होता है, अघुलनशील पदार्थ कहलाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 4 वस्तुओं के समूह बनाना

→ पारदर्शी-वे पदार्थ जिनके आर पार देखा जा सकता है, पारदर्शी कहलाते हैं।

→ अपारदर्शी-वे पदार्थ जिनके आर पार देखा नहीं जा सकता, अपारदर्शी कहलाते हैं।

→ पारभासी-वे पदार्थ जिनके आर पार आंशिक रूप से देखा जा सकता है लेकिन स्पष्ट रूप से देखा नहीं जा सकता, पारभासी कहलाते हैं।

→ चमक अथवा द्युति- किसी पदार्थ पर जो चमक हम देखते हैं उसे चमक अथवा द्युति कहते हैं।

→ परमाणु-पदार्थ के सबसे छोटे भाग को परमाणु कहते हैं।

→ रुक्ष-वे पदार्थ जिन की सतह को छूने पर हम खुरदरा महसूस करते हैं।

→ मुलायम-वे पदार्थ जिन की सतह को छूने पर हम फिसलन महसूस करते हैं।

→ कठोर- इसका अर्थ है कि पदार्थ को संपीडित नहीं किया जा सकता है ।

→ नर्म- इसका अर्थ है कि पदार्थ को संपीडित किया जा सकता है ।

→ घनत्व-किसी पदार्थ के प्रति इकाई आयतन के द्रव्यमान को घनत्व के रूप में जाना जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 3 रेशों से वस्त्र तक

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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 3 रेशों से वस्त्र तक

→ वस्त्र महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि ये

  1. हमें धूप, हवा, ठंड, गर्मी, बारिश आदि से बचाते हैं।
  2. हमें विभिन्न मौसम

स्थितियों में सहज महसूस करने और सुंदर दिखने में मदद करते हैं।

→ लोग आमतौर पर साड़ी, कोट-पेंट, सूट, जींस, शर्ट, टी-शर्ट, पगड़ी, कुर्ता-पायजामा, सलवार-कमीज, लुंगी, धोती आदि जैसे विभिन्न प्रकार के वस्त्र पहनते हैं।

→ कपास, रेशम, ऊन और पॉलिएस्टर विभिन्न प्रकार की वस्त्रों की सामग्री हैं, जिन्हें तंतु अथवा रेशे कहा जाता है।

→ चादरें, कंबल, तौलिए, पर्दे, पौछा, फर्श की चटाई, हमारे स्कूल बैग, बेल्ट, मोजे, टाई विभिन्न प्रकार के रेशों से बने होते हैं। इस प्रकार, विभिन्न प्रकार के कपड़े बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के रेशों का उपयोग किया जाता है।
तंतु दो प्रकार के होते हैं-

  1. प्राकृतिक और
  2. मानव निर्मित (संश्लिष्ट)।

→ प्रकृति से प्राप्त तंतु प्राकृतिक तंतु कहलाते हैं।

→ प्राकृतिक तंतु पौधों और जानवरों से प्राप्त किए जा सकते हैं।

→ पौधों से प्राप्त तंतु पादप तंतु कहलाते हैं। इसी प्रकार जंतुओं से प्राप्त रेशे जांतव तंतु कहलाते हैं। कपास, जूट और क्वायर पादप तंतुओं के उदाहरण हैं जबकि ऊन, रेशम आदि जांतव तंतुओं के उदाहरण हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 3 रेशों से वस्त्र तक

→ सूत का उपयोग विभिन्न प्रकार के वस्त्र बनाने के लिए किया जाता है। इसे कपास के तंतुओं से बनाया जाता है।

→ ओटना, कताई, बुनाई, बंधाई आदि कुछ प्रक्रियाएं हैं जिनका उपयोग सूत से वस्त्र या वस्त्रों की सामग्री बनाने के लिए किया जाता है।

→ मनुष्य द्वारा रासायनिक पदार्थों से बनाए गए तंतुओं को संश्लिष्ट तंतु कहा जाता है। नायलॉन, एक्रेलिक और पॉलिएस्टर संश्लिष्ट तंतुओं के उदाहरण हैं।

→ संश्लिष्ट तंतुओं का उपयोग मोजे, टूथब्रश ब्रिस्टल, कार सीट बेल्ट, कालीन, रस्सी, स्कूल बैग इत्यादि बनाने के लिए किया जाता है।

→ जूट के पौधे के तने से जूट रेशे रेटिंग की प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है।

→ संश्लिष्ट तंतु आसानी से सूख जाते हैं, उनके बीच हवा की जगह कम होती है, मजबूत और शिकन मुक्त होते हैं।

→ संश्लिष्ट तंतु पानी को अवशोषित नहीं करते हैं, इसलिए ये गर्म और आर्द्र मौसम के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।

→ सूती कपड़े आर्द्र और गर्म मौसम के लिए अच्छे होते हैं। यह पानी को आसानी से सोख लेते हैं।

→ कपास के तंतुओ को कंघी करके बीजों से अलग करने की प्रक्रिया को ओटना कहा जाता है।

→ कतरनी का उपयोग करके भेड़ से ऊन निकालना कतरना कहलाता है।

→ रेशम के कीड़ों का पालन रेशम उत्पादन के लिए किया जाता है ।

→ वस्त्र बनाने के लिए तागे के दो सेटों को आपस में व्यवस्थित करने की प्रक्रिया को बुनाई कहा जाता है। इसके विपरीत, बंधाई में वस्त्र का एक टुकड़ा बनाने के लिए एक ही धागे का उपयोग किया जाता है।

→ बुनाई हाथों से या मशीनों द्वारा की जाती है।

→ धागा-बारीक तंतुओं के समूह से बने रेशों जिनका उपयोग विभिन्न प्रकार के वस्त्र बनाने के लिए किया जाता है, धागा कहते हैं।

→ तंतु-बहुत पतली लम्बी तथा बेलनाकार संरचनाओं को तंतु अथवा रेशे कहते हैं।

→ जुट-जूट मजबूत और खुरदरा तंतु होता है जो पटसन के पौधों के तने से प्राप्त होता है ।

→ प्राकृतिक तंतु-प्रकृति से प्राप्त तंतु प्राकृतिक तंतु कहलाते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 3 रेशों से वस्त्र तक

→ पादप तंतु-पौधों से प्राप्त तंतु पादप तंतु कहलाते हैं। उदाहरण के लिए- कपास, जूट, क्वायर।

→ जांतव तंतु-जंतुओं से प्राप्त तंतु जांतव तंतु कहलाते हैं। उदाहरण के लिए- ऊन, रेशम।

→ संश्लिष्ट तंतु-मनुष्य द्वारा रसायनों और अन्य सामग्रियों का उपयोग करके तैयार किए गए तंतुओं को संश्लिष्ट तंतु कहा जाता है।

→ ओटाई-कपास को उनके बीजों से स्टील की कंघी द्वारा अलग करना ओटाई कहलाती है।

→ रेशम उत्पादन-रेशम उत्पादन के लिए रेशम के कीड़ों का पालन।

→ रिटिंग-पटसन के पौधे के तने से जूट के तंतुओं को अलग करने की प्रक्रिया को रिटिंग कहा जाता है ।

→ कतरनी-कतरनी का उपयोग करके भेड़ से ऊन निकालना।

→ कताई-तंतुओं अथवा रेशों से धागा बनाने की प्रक्रिया को कताई कहते हैं।

→ बुनाई और बंधाई-वस्त्र बनाने के लिए तागे के दो सेटों को एक साथ व्यवस्थित करने की प्रक्रिया को बुनाई कहा जाता है। इसके विपरीत, बंधाई में वस्त्र बनाने के लिए एक ही धागे का उपयोग किया जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 2 भोजन के तत्व

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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 2 भोजन के तत्व

→ पोषक तत्व वे पदार्थ हैं जो शरीर के समुचित विकास और वृद्धि के लिए आवश्यक हैं।

→ कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज और विटामिन हमारे भोजन के मुख्य पोषक तत्व हैं। इनके अलावा हमारे शरीर को पानी और रूक्षांश की जरूरत होती है।

→ कार्बोहाइड्रेट कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बने होते हैं। ये ऊर्जा के तत्कालीन स्रोत हैं तथा ऊर्जा देने वाले भोजन कहलाते हैं।

→ बाजरा, ज्वार, चावल, गेहूँ, गुड़, आम, केला और आलू कार्बोहाइड्रेट के मुख्य स्रोत हैं।

→ हमारे पास दो प्रकार के कार्बोहाइड्रेट हैं। ये सरल कार्बोहाइड्रेट और जटिल कार्बोहाइड्रेट हैं।

→ ग्लूकोज, फ्रक्टोज, सुक्रोज, लैक्टोज आदि सरल कार्बोहाइड्रेटों के उदाहरण हैं। स्टार्च, सेल्युलोज, ग्लाइकोजन जटिल कार्बोहाइड्रेटों के उदाहरण आदि हैं।

→ स्वाद में मीठे कार्बोहाइड्रेटों को शर्करा कहते हैं।

→ सुक्रोज को टेबल शुगर के रूप में जाना जाता है। फ्रक्टोज को फल शुगर कहा जाता है। लैक्टोज को मिल्क शुगर कहा जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 2 भोजन के तत्व

→ स्टार्च बेस्वाद और पानी में अघुलनशील है। यह ग्लूकोज की कई इकाइयों से बना होता है।

→ आलू, गेहूँ, चावल, मक्का आदि स्टार्च के मुख्य स्रोत हैं।

→ पाचन के दौरान स्टार्च पहले ग्लूकोज में और अंत में कार्बन डाइऑक्साइड और पानी में परिवर्तित होता है। इसलिए, स्टार्च ऊर्जा का तत्कालिक स्रोत नहीं है।

→ स्टार्च का पता आयोडीन परीक्षण द्वारा लगाया जा सकता है। यह आयोडीन के साथ नीला-काला रंग देता है।

→ प्रोटीन कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन से बने होते हैं। इन्हें बॉडी बिल्डिंग फूड कहा जाता है। शरीर की कोशिकाओं की वृद्धि और मुरम्मत प्रोटीन का मुख्य कार्य है। ये हमें कई बीमारियों से भी बचाती हैं।

→ पौधे और जंतु दोनों ही प्रोटीन के स्रोत हैं। पौधों से मिलने वाले प्रोटीन को पादप प्रोटीन कहा जाता है और जंतुओं से प्राप्त प्रोटीन को पशु प्रोटीन अथवा जैव प्रोटीन कहा जाता है।

→ सोयाबीन, मटर जैसी फलियाँ और चना, राजमाह और मूंग जैसी दालें पादप प्रोटीन के स्रोत हैं। पालक, मशरूम, ब्रोकली आदि से भी प्रोटीन मिलता है।

→ मांस, मछली, मुर्गी, दूध और दुग्ध उत्पाद प्रोटीन के मुख्य स्रोत हैं।

→ कुछ प्रोटीन हमारे शरीर में होने वाली विभिन्न प्रतिक्रियाओं को तेज करते हैं। इन्हें एंजाइम के रूप में जाना जाता है।

→ एंजाइम वे प्रोटीन होते हैं जो एक जीवित जीव के शरीर के अंदर विभिन्न प्रतिक्रियाओं को तेज करते हैं।

→ कॉपर सल्फेट और कास्टिक सोडा के घोल में प्रोटीन मिलाने पर नीला रंग मिलता है। इस प्रतिक्रिया का उपयोग प्रोटीन का पता लगाने के लिए किया जाता है।

→ वसा से भी हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। ये कार्बोहाइड्रेट की तुलना में अधिक मात्रा में ऊर्जा देती है। इनके द्वारा ऊर्जा छोड़ने की प्रतिक्रिया धीमी होती है।

→ वसा ऊर्जा के सबसे समृद्ध स्रोत के रूप में जाने जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट को ऊर्जा के तत्कालिक स्रोत के रूप में जाना जाता है।

→ सरसों का तेल, नारियल का तेल और सूरजमुखी के तेल जैसे वनस्पति तेल, वसा के महत्त्वपूर्ण वनस्पति अथवा पादप स्रोत हैं। वनस्पति अथवा पादप वसा के अन्य स्रोत काजू, बादाम, मूंगफली और तिल हैं।

→ मांस, अंडे, मछली, दूध और दूध उत्पाद जैसे मक्खन, घी आदि पशु वसा के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।

→ वसा से हमें ऊर्जा मिलती है तथा ये शरीर से गर्मी के नुकसान को रोकते हैं।

→ कागज पर तैलीय पैच की उपस्थिति किसी भी खाद्य पदार्थ में वसा की उपस्थिति की पुष्टि करती है।

→ हमारे शरीर को खनिजों की भी आवश्यकता होती है। कैल्शियम, लोहा, आयोडीन और फास्फोरस महत्त्वपूर्ण खनिज हैं। ये हमें ऊर्जा नहीं देते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 2 भोजन के तत्व

→ हीमोग्लोबिन के निर्माण के लिए आयरन की और हड्डियों के निर्माण के लिए कैल्शियम की आवश्यकता होती है। फास्फोरस हड्डियों और दांतों को मजबूती प्रदान करता है। थायरॉयड ग्रंथि के सामान्य कामकाज के लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है।

→ हमारे शरीर के ठीक ढंग से कार्य के लिए हमें विटामिनों की आवश्यकता होती है। हमारे पास A, B, C, D, E और K जैसे विभिन्न विटामिन हैं।

→ अंडे, मांस, दूध, पनीर, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, गाजर, पपीता आदि विटामिन C के स्रोत हैं। यह स्वस्थ आंखों और त्वचा के लिए आवश्यक है।

→ दूध, हरी सब्जियाँ, मटर, अंडे, अनाज, मशरूम आदि विटामिन B के स्रोत हैं। यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और पाचन तंत्र के सामान्य विकास और उचित कामकाज के लिए आवश्यक है।

→ खट्टे फल (नींबू, संतरा, आदि), आँवला, टमाटर, ब्रोकली आदि विटामिन सी के स्रोत हैं। यह रोगों से लड़ने के लिए आवश्यक है।

→ डेयरी उत्पाद, मछली के जिगर का तेल, सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आना आदि विटामिन D के स्रोत हैं। यह स्वस्थ हड्डियों और दाँतों के लिए आवश्यक है।

→ बादाम, मूंगफली, सूरजमुखी का तेल, सोयाबीन का तेल, पत्तेदार सब्जियाँ विटामिन E के स्रोत हैं। कोशिकाओं को क्षति से बचाने के लिए और हमारे शरीर की विभिन्न समस्याओं को कम करने में मदद करने के लिए इसकी आवश्यकता होती है।

→ हरी पत्तेदार सब्जियाँ, मछली का मांस, अंडे, अनाज आदि विटामिन K के स्रोत हैं। यह रक्त के जमने के लिए आवश्यक है।

→ पोषक तत्व-वे पदार्थ हैं जो शरीर के समुचित विकास और उचित कामकाज के लिए आवश्यक हैं।

→ संतुलित आहार-जिस आहार में शरीर के समुचित विकास और उचित कामकाज के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्वों, रौगे और पानी की पर्याप्त मात्रा होती है, उसे संतुलित आहार कहा जाता है।

→ कमी रोग-लंबे समय तक हमारे आहार में पोषक तत्वों की कमी के कारण जो रोग होता है उसे कमी रोग कहा जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 2 भोजन के तत्व

→ घेघा-आयोडीन की कमी से होने वाला एक रोग है और इसका मुख्य लक्षण गर्दन में मौजूद थायरॉयड ग्रंथि का बढ़ना है।

→ स्कर्वी- यह विटामिन C की कमी से होना वाला रोग है और इसके मुख्य लक्षणों में मसूड़ों से खून आना शामिल है।

→ बेरी-बेरी-यह विटामिन B की कमी से होने वाला रोग है।

→ रिकेट्स- यह विटामिन D की कमी से होने वाला रोग है और इसके मुख्य लक्षणों में हड्डियों का नरम होना और मुड़ना शामिल है।

→ खून की कमी अथवा एनीमिया-यह आयरन की कमी से होने वाली बीमारी है और इसके मुख्य लक्षणों में कमजोरी, थकान और पीली त्वचा शामिल हैं।

→ रूक्षांश- भोजन में मौजूद रेशेदार अपचनीय पदार्थ को रूक्षांश कहा जाता है।