Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Chapter 12 मित्रता Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Hindi Chapter 12 मित्रता
Hindi Guide for Class 10 PSEB मित्रता Textbook Questions and Answers
(क) विषय-बोध
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए:
प्रश्न 1.
घर से बाहर निकल कर बाहरी संसार में विचरने पर युवाओं के सामने पहली कठिनाई क्या आती है?
उत्तर:
दृढ़ संकल्प वाले लोगों की घर से बाहर निकल कर बाहरी संसार में विचरने पर युवा पुरुष के सामने पहली कठिनाई मित्र चुनने की होती है।
प्रश्न 2.
हमसे अधिक दृढ़ संकल्प वाले लोगों का साथ बरा क्यों हो सकता है?
उत्तर:
दृढ़ संकल्प वाले लोगों की हमें हर बात बिना विरोध के मान लेनी पड़ती है।
प्रश्न 3.
आजकल लोग दूसरों में कौन-कौन सी दो-चार बातें देखकर चटपट उसे अपना मित्र बना लेते हैं?
उत्तर:
आजकल लोग किसी का हँसमुख चेहरा, बातचीत का ढंग, थोड़ी चतुराई या साहस जैसी दो-चार बातें देखकर ही शीघ्रता से उसे अपना मित्र बना लेते हैं।
प्रश्न 4.
किस प्रकार के मित्र से भारी रक्षा रहती है?
उत्तर:
विश्वासपात्र मित्र से बड़ी भारी रक्षा रहती है क्योंकि जिसे ऐसा मित्र मिल जाए उसे समझना चाहिए कि खज़ाना मिल गया है।
प्रश्न 5.
चिंताशील, निर्बल तथा धीर पुरुष किस प्रकार का साथ ढूँढ़ते हैं?
उत्तर:
चिंताशील मनुष्य प्रफुल्लित व्यक्ति का, निर्बल बली का तथा धीर व्यक्ति उत्साही पुरुष का साथ ढूँढ़ते हैं।
प्रश्न 6.
उच्च आकांक्षा वाला चंद्रगुप्त युक्ति और उपाय के लिए किस का मुँह ताकता था?
उत्तर:
उच्च आकांक्षा वाला चंद्रगुप्त युक्ति और उपाय के लिए चाणक्य का मुँह ताकता था।
प्रश्न 7.
नीति-विशारद अकबर मन बहलाने के लिए किसकी ओर देखता था?
उत्तर:
नीति-विशारद अकबर मन बहलाने के लिए बीरवल की ओर देखता था।
प्रश्न 8.
मकदूनिया के बादशाह डेमेट्रियस के पिता को दरवाज़े पर कौन-सा ज्वर मिला था?
उत्तर:
मकदूनिया के बादशाह डेमेट्रियस के पिता को दरवाज़े पर मौज-मस्ती में बादशाह का साथ देने वाला कुसंगति रूपी एक हँसमुख जवान नामक ज्वर मिला था।
प्रश्न 9.
राजदरबार में जगह न मिलने पर इंग्लैंड का एक विद्वान् अपने भाग्य को क्यों सराहता रहा?
उत्तर:
इंग्लैंड के एक विद्वान् को युवावस्था में राजदरबारियों में जगह नहीं मिली। इस पर वह सारी उम्र अपने भाग्य को सराहता रहा। उसे लगता था कि राजदरबारी बन कर वह बुरे लोगों की संगति में पड़ जाता जिससे वह आध्यात्मिक उन्नति न कर पाता। बुरी संगति से बचने के कारण वह अपने आप को सौभाग्यशाली मानता है।
प्रश्न 10.
हृदय को उज्ज्वल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय क्या है?
उत्तर:
हृदय को उज्ज्वल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय स्वयं को बुरी संगति से दूर रखना है।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए:
प्रश्न 1.
विश्वासपात्र मित्र को खज़ाना, औषधि और माता जैसा क्यों कहा गया है?
उत्तर:
लेखक ने विश्वासपात्र मित्र को खज़ाना इसलिए कहा है क्योंकि जैसे खज़ाना मिलने से सभी प्रकार की कमियाँ दूर हो जाती हैं उसी प्रकार से विश्वासपात्र मित्र मिलने से ही सभी कमियाँ दूर हो जाती हैं। वह एक औषधि के समान हमारी बुराइयों रूपी बीमारियों को ठीक कर देता है। वह माता के समान धैर्य और कोमलता से स्नेह देता है।
प्रश्न 2.
अपने से अधिक आत्मबल रखने वाले व्यक्ति को मित्र बनाने से क्या लाभ है?
अथवा
‘मित्रता’ निबन्ध के आधार पर लिखें कि अपने से अधिक आत्मबल रखने वाले व्यक्ति को मित्र बनाने से क्या लाभ
उत्तर:
हमें अपने से अधिक आत्मबल रखने वाले व्यक्ति को अपना मित्र बनाना चाहिए। ऐसा व्यक्ति हमें उच्च और महान् कार्यों को करने में सहायता देता है। वह हमारा मनोबल और साहस बढ़ाता है। उसकी प्रेरणा से हम अपनी शक्ति से अधिक कार्य कर लेते हैं। जैसे सुग्रीव ने श्री राम से मित्रता की थी। श्री राम से प्रेरणा प्राप्त कर उसने अपने से अधिक बलवान बाली से युद्ध किया था। ऐसे मित्रों के भरोसे से हम कठिन से कठिन कार्य भी आसानी से कर लेते हैं।
प्रश्न 3.
लेखक ने युवाओं के लिए कुसंगति और सत्संगति की तुलना किससे की और क्यों?
उत्तर:
सत्संगति से हमारा जीवन सफल होता है। सत्संगति सहारा देने वाली ऐसी बाहु के समान होती है जो हमें निरंतर उन्नति की ओर उठाती जाती है। कुसंगति के कारण हमारा जीवन नष्ट हो जाता है। कुसंगति पैरों में बंधी हुई चक्की के समान होती है जो हमें निरंतर अवनति के गड्ढे में गिराती जाती है।
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छः या सात पंक्तियों में दीजिए
प्रश्न 1.
सच्चे मित्र के कौन-कौन से गुण लेखक ने बताएं हैं?
उत्तर:
लेखक के अनुसार सच्चा मित्र पथ-प्रदर्शक के समान होता है, जिस पर हम पूरा विश्वास कर सकते हैं। वह हमारे भाई जैसा होता है, जिसे हम अपना प्रीति पात्र बना सकते हैं। सच्चे मित्र में उत्तम वैद्य-सी निपुणता, अच्छीसे-अच्छी माता-सा धैर्य और कोमलता होती है। सच्चा मित्र हमारी बहुत रक्षा करता है। सच्चा मित्र हमें संकल्पों में दृढ़ करता है, दोषों से बचाता है तथा उत्तमतापूर्वक जीवन-निर्वाह करने में हर प्रकार से सहायता देता है।
प्रश्न 2.
बाल्यावस्था और युवावस्था की मित्रता के अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाल्यावस्था की मित्रता में एक मग्न करने वाला आनंद होता है। इसमें मन को प्रभावित करने वाली ईर्ष्या और खिन्नता का भाव भी होता है। इसमें बहुत अधिक मधुरता, प्रेम और विश्वास भी होता है। जल्दी ही रूठना और मनाना भी होता है। युवावस्था की मित्रता बाल्यावस्था की मित्रता की अपेक्षा अधिक दृढ़, शांत और गंभीर होती है। युवावस्था का मित्र सच्चे-पथ प्रदर्शक के समान होता है।
प्रश्न 3.
‘दो भिन्न प्रकृति के लोगों में परस्पर प्रीति और मित्रता बनी हो सकती है’-उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह आवश्यक नहीं है कि मित्रता एक ही प्रकार के स्वभाव तथा कार्य करने वाले लोगों में हो। मित्रता भिन्न प्रकृति, स्वभाव और व्यवसाय के लोगों में भी हो जाती है जैसे मुग़ल सम्राट अकबर और बीरबल भिन्न स्वभाव के होते हुए भी मित्र थे। अकबर नीति विशारद तथा बीरबल हंसोड़ व्यक्ति थे। इसी प्रकार से धीर और शांत स्वभाव के राम और उग्र स्वभाव के लक्ष्मण में भी गहरी मित्रता थी।
प्रश्न 4.
मित्र का चुनाव करते समय हमें किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
मित्र बनाते समय ध्यान रखना चाहिए कि वह हमसे अधिक दृढ़ संकल्प का न हो क्योंकि ऐसे व्यक्तियों की हर बात हमें बिना विरोध के माननी पड़ती है। वह हमारी हर बात को मानने वाला भी नहीं होना चाहिए क्योंकि तब हमारे ऊपर कोई नियंत्रण नहीं रहता। केवल हंसमुख चेहरा, बातचीत का ढंग, चतुराई आदि देखकर भी किसी को मित्र नहीं बनाना चाहिए। उसके गुणों तथा स्वभाव की परीक्षा करके ही मित्र बनाना चाहिए। वह हमें जीवन-संग्राम में सहायता देने वाला होना चाहिए। केवल छोटे-मोटे काम निकालने के लिए किसी से मित्रता न करें। मित्र तो सच्चे पथप्रदर्शक के समान होना चाहिए।
प्रश्न 5.
‘बुराई अटल भाव धारण करके बैठती है। क्या आप लेखक की इस उक्ति से सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक का यह कथन पूरी तरह से सही है कि बुराई हमारे मन में अटल भाव धारण कर के बैठ जाती है। भद्दे और फूहड़ गीत हमें बहुत जल्दी याद हो जाते हैं। अच्छी और गंभीर बात जल्दी समझ में नहीं आती। इसी प्रकार से बचपन में सुनी अथवा कही हुई गंदी गालियां कभी नहीं भूलतीं। ऐसे ही जिस व्यक्ति को कोई बुरी लत लग जाती है, जैसे सिगरेट, शराब आदि पीना, तो उसकी वह बुरी आदत भी आसानी से नहीं छूटती है। कोई व्यक्ति हमें गंदे चुटकले आदि सुनाकर हंसाता है तो हमें बहुत अच्छा लगता है। इस प्रकार बुरी बातें सहज ही हमारे मन में प्रवेश कर जाती हैं।
(ख) भाषा-बोध
I. निम्नलिखित शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए
मित्र = ————
बुरा = ————
कोमल = ————
अच्छा = ————
शांत = ————
निपुण = ————
लड़का = ————
दृढ़। = ————
उत्तर:
शब्द = भाववाचक संज्ञा
मित्र = मित्रता
बुरा = बुराई
कोमल = कोमलता
अच्छा = अच्छाई
शांत = शांति
निपुण = निपुणता
लड़का = लड़कपन
दृढ़ = दृढ़ता
II. निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए
जिसका सत्य में दृढ़ विश्वास हो = ———–
जो नीति का ज्ञाता हो = ————-
जिस पर विश्वास किया जा सके = ————–
जो मन को अच्छा लगता हो = ————-
जिसका कोई पार न हो। = ————–
उत्तर:
वाक्यांश = एक शब्द
जिसका सत्य में दृढ़ विश्वास हो = सत्यनिष्ठ
जो नीति का ज्ञाता हो = नीतिज्ञ
जिस पर विश्वास किया जा सके = विश्वसनीय
जो मन को अच्छा लगता हो = मनोरम
जिसका कोई पार न हो = अपरंपार।
III. निम्नलिखित में संधि कीजिए
युवा + अवस्था
बाल्य + अवस्था
नीच + आशय
महा + आत्मा
नशा+ उन्मुख
वि + आहार
हत + उत्साहित,
प्रति + एक
सह + अनुभूति
पुरुष + अर्थी।
उत्तर:
युवा + अवस्था = युवावस्था
बाल्य + अवस्था . = बाल्यावस्था
नीच + आशय = नीचाशय
महा + आत्मा = महात्मा
नशा + उन्मुख = नशोन्मुख
वि + अवहार = व्यवहार
हत + उत्साहित = हतोत्साहित
प्रति + एक = प्रत्येक
सह + अनुभूति = सहानुभूति
पुरुष + अर्थी = पुरुषार्थी।
IV. निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह कीजिए
नीति-विशारद, सत्यनिष्ठा, राजदरबारी, जीवन निर्वाह, पथप्रदर्शक, जीवन-संग्राम, स्नेह बंधन।
उत्तर:
नीति-विशारद = नीति का विशारद
सत्यनिष्ठा = सत्य की निष्ठा
राजदरबारी = राज का दरबारी
जीवन निर्वाह = जीवन का निर्वाह
पथप्रदर्शक = पथ का प्रदर्शक
जीवन-संग्राम = जीवन का संग्राम
स्नेह बंधन . = स्नेह का बंधन।
V. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर इनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए
कच्ची मिट्टी की मूर्ति-परिवर्तित होने योग्य-बच्चों की बुद्धि कच्ची मिट्टी की मूर्ति जैसी होती है।
खज़ाना मिलना-अधिक मात्रा में धन मिलना – हरजीत कौर को बज़ीफा क्या मिला जैसे उसे खज़ाना मिल गया हो।
जीवन की औषधि होना-जीवन रक्षा का साधन-बूढ़े खजान सिंह की पेंशन उसके जीवन की औषधि है। मुँह ताकना-आशा लगाए बैठना-अपने छोटे-से कामों के लिए किसी का मुँह ताकना उचित नहीं है।
ठट्ठा मारना-ठठोली करना, हँसी मज़ाक करना, ऐश करना-रोहित का चुटकुला सुनकर ललित ठट्ठा मार कर हँस पड़ा
पैरों में बंधी चक्की-पाँव की बेड़ी-शबनम को दिल्ली में अच्छी नौकरी मिली थी पर बूढ़े माँ-बाप उसके पैरों में बंधी चक्की बन गए और वह गांव में ही रहकर मजदूरी करने लगी।
घड़ी भर का साथ-थोड़ी देर का साथ-गाड़ी में मिले साथी घड़ी भर का साथ देकर अपने-अपने रास्ते चले जाते हैं।
(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति
प्रश्न 1.
आपने अपने मित्रों का चुनाव उनके किन-किन गुणों से प्रभावित होकर किया है? कक्षा में बताइए।
उत्तर:
मैंने अपने मित्रों का चुनाव उनके रहन-सहन, स्वभाव की विनम्रता, वाणी की मधुरता, दूसरों के प्रति उदारता, परोपकार की भावना, बड़ों के प्रति आदर, स्वच्छता, सादगी, मितव्ययता, सत्यवादिता, समयबद्धता आदि गुण देखकर किया है।
प्रश्न 2.
आपका मित्र बुरी संगति में पड़ गया है। आप उसे कुसंगति से बचाकर सत्संगति की ओर लाने के लिए, क्या उपाय करेंगे?
उत्तर:
बुरी संगत में पड़े हुए मित्र को सत्संगति की ओर लाने के लिए मैं उसे कुसंगति की हानियों से परिचित करते हुए उसके सम्मुख ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करूँगा जिनकी कुसंगति के कारण बुरी दशा हुई। इससे शिक्षा लेकर वह कुसंगति छोड़ कर सत्संगति की ओर प्रेरित होगा।
प्रश्न 3.
एक अच्छी पुस्तक, अच्छे विचार भी सच्चे मित्र की तरह ही होते हैं। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:
हम इस कथन से पूरी तरह से सहमत हैं; जैसे-रामचरितमानस पढ़ने से हमें अच्छा मित्र, पुत्र, भाई, पति, पत्नी, राजा आदि बनने की प्रेरणा मिलती है। इसी प्रकार से अन्य अच्छी पुस्तकें भी एक सच्चे मित्र के समान हमारा मार्गदर्शन करती हैं।
प्रश्न 4.
क्या आपने कभी अपनी बुरी आदत को अच्छी आदत में बदलने का प्रयास किया है? उदाहरण देकर कक्षा में बताइए।
उत्तर:
सुबह देर से उठना मेरी बुरी आदत थी। माता जी के बार-बार उठाने पर भी मैं ‘अभी उठता हूँ’ कह कर फिर सो जाता था। परीक्षा के दिनों में भी ऐसा ही हुआ। एक दिन देर से उठने के कारण मैं परीक्षा भवन में देर से पहुंचा तो मुझे परीक्षा नहीं देने दी गई। इससे मेरा एक वर्ष खराब हो गया। तब से मैं अब सुबह समय से उठ जाता हूँ।
(घ) पाठ्येतर सक्रियता
1. सच्ची मित्रता पर कुछ सूक्तियाँ चार्ट पर लिखकर कक्षा में लगाइए।
2. सत्येन बोस द्वारा निर्देशित ‘दोस्ती’ फ़िल्म जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार तथा छः फ़िल्म फेयर अवार्ड भी मिले थे, देखिए।
3. अपने मित्रों की जन्म तिथि, टेलीफोन नंबर तथा उसका पता एक डायरी में नोट कीजिए।
4. अपने मित्रों के जन्म दिवस पर बधाई कार्ड बनाकर भेंट कीजिए।
5. कक्षा में अपने मित्रों की अच्छी आदतों की सूची तैयार कीजिए।
6. अपने सहपाठियों के साथ एक समूह चित्र (ग्रुप फोटो) खिंचवाकर अपने पास रखें।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
(ङ) ज्ञान-विस्तार
राम-सुग्रीव-अयोध्या के राजा दशरथ और उनकी रानी कौशल्या के बड़े पुत्र श्री राम थे। राम के तीन अन्य भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे। श्रीराम के हनुमान भक्त थे और उन्होंने ही सुग्रीव से श्री राम की मित्रता करवाई थी। सुग्रीव अपने भाई बाली से डरते हुए ऋण्यमूक पर्वत पर छिप कर रहता था उसने श्री राम की सीता माता की खोज में सहायता की थी।
चन्द्रगुप्त-चाणक्य-चन्द्रगुप्त मौर्य अपने समय के अति बलशाली और बुद्धिमान् सम्राट् थे। उन्होंने चाणक्य (कौटिल्य) की सहायता से अति शक्तिशाली और समृद्ध शासन को बड़ी कुशलता से चलाया था। माना जाता है कि चाणक्य ने ही अपने बुद्धि-कौशल से मौर्य शासन को स्थापित कराया था। मगध के राजा महानंद से अपमानित होने के कारण उन्होंने नंदवंश को अपनी बुद्धि और कौशल से मिटा दिया था और चंद्रगुप्त को शासक बना दिया था। चाणक्य के द्वारा रचित अर्थशास्त्र को मौर्यकाल के भारत का दर्पण स्वीकार किया जाता है।
अकबर-बीरबल-अकबर मुग़ल शासन के अत्यंत उदार सहृदय और निपुण शासक थे। उन्होंने केवल तेरह वर्ष की आयु में ही बैरम खाँ के संरक्षण में गद्दी संभाल ली थी। उनके शासन काल को उदारता और समन्वय का समय माना जाता है। उनके दरबार में नौ अति बुद्धिमान् सहायक थे जिन्हें ‘नवरत्न’ कहा जाता है। उनमें बीरबल अत्यंत निपुण, हाजिर जवाब, बुद्धिमान् और समझदार था। उनकी कहानियां आज भी लोगों की जुबान पर हैं।
मकदूनिया-यूनान का मकदूनिया अति प्रसिद्ध गणराज्य था। सिकंदर वहीं का राजा था, जिसे अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता के कारण ‘अलेग्जेंडर द ग्रेट’ कहते हैं। उस काल में यूनान के दो अन्य राज्य एथेन्स और स्पार्टा ज्ञान-विज्ञान के केंद्र बने हुए थे। सुकरात एथेन्स के थे। उन्हें स्वतंत्र विचारों के कारण अब भी अनूठा माना जाता है। वहां के शासक ने उनकी इसी बात से चिढ़ कर उन्हें ज़हर का प्याला पिलाकर मरवा दिया था। उसी काल में प्लेटो और अरस्तु जैसे विद्वान् उत्पन्न हुए थे। प्लेटो ने तब एक विद्यापीठ की स्थापना की थी। अरस्तु इसी विद्यापीठ का विद्यार्थी था। यह काल यूनान के लिए अति महत्त्व और गौरव का था जिसका अभी भी गुणगान किया जाता है।
PSEB 10th Class Hindi Guide मित्रता Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
हमारे जीवन की सफलता किस बात पर निर्भर करती है?
उत्तर:
हमारे जीवन की सफलता अच्छे मित्र के चुनाव पर निर्भर करती है क्योंकि अच्छा मित्र ही हमें सफलता की ओर ले जाता है।
प्रश्न 2.
सुग्रीव और राम की मित्रता द्वारा लेखक क्या स्थापित करना चाहता है?
उत्तरः
सुग्रीव और राम की मित्रता के द्वारा लेखक यह बताना चाहता है कि जिस प्रकार सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़ा था वैसी ही मित्रता सबको करनी चाहिए।
प्रश्न 3.
अच्छी और बुरी संगति की तुलना लेखक ने किसके साथ की है?
उत्तर:
अच्छी संगति सहारा देने वाली बाहु के समान हमें निरंतर उन्नति की ओर उठाती जाती है। बुरी संगति पैरों में बंधी हुई चक्की के समान निरंतर अवनति के गड्ढे में गिराती जाती है।
प्रश्न 4.
बुरी संगति से बचने के लिए लेखक ने किस कहावत का उदाहरण दिया है?
उत्तर:
बुरी संगति से बचने के लिए लेखक ने इस कहावत का उदाहरण दिया है”काजल की कोठरी में कैसो ही सयानों जाय। एक लीक काजल की लागि है पै लागि है।”
प्रश्न 5.
मित्रों के चुनाव की उपयुक्तता पर मनुष्य के जीवन की सफलता किस प्रकार निर्भर होती है?
उत्तर:
उचित मित्र के चुनाव पर ही मनुष्य के जीवन की सफलता निर्भर करती है। उचित मित्र हमें जीवन में उन्नति करने के लिए सही सलाह देता है। यदि मित्र की संगति अच्छी है तो हम भी अच्छे बनेंगे। क्योंकि संगति का प्रभाव हमारे आचरण पर पड़ता है । इसलिए किसी को मित्र बनाने से पहले उसके आचरण, स्वभाव की अच्छी तरह से छानबीन कर लेनी चाहिए।
प्रश्न 6.
आत्मशिक्षा में मित्रता किस प्रकार सहायक सिद्ध होती है?
उत्तर:
मित्र हमें उत्तम संकल्पों से दृढ़ करते हैं। हमें दोषों और बुराइयों से बचाते हैं। हमें सत्य-मार्ग पर चलते हुए मर्यादित तथा पवित्र जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देते हैं। हमें निराशा के समय सांत्वना देकर उत्साहित करते हैं। इस प्रकार मित्रों से हमें आत्मशिक्षा में भी सहायता मिलती है।
प्रश्न 7.
छात्रावस्था में मित्रता की धुन सवार क्यों रहती है?
उत्तर:
छात्रावस्था में मित्रता करने की धुन सवार रहती है। हृदय इतना अधिक निर्मल होता है कि किसी को भी मित्र बनाने के लिए तैयार रहता है। किसी की सुंदरता, प्रतिभा, स्वच्छंद स्वभाव आदि से आकर्षित होकर उसे मित्र बनाने की इच्छा उत्पन्न हो जाती है। मित्र बनाकर सब-कुछ बहुत लुभावना लगता है।
प्रश्न 8.
लेखक ने मित्र के क्या कर्त्तव्य बताये हैं ?
उत्तर:
लेखक के अनुसार मित्र हमारे अच्छे कार्यों में हमारा उत्साह इस प्रकार से बढ़ाता है कि हम अपनी सामर्थ्य से अधिक काम कर जाते हैं। वह दृढ़ चित्त और सत्य संकल्पों से यह कार्य करता है। वह सदा हमारी हिम्मत बढ़ाता रहता है। वह हमारे आत्मबल को बढ़ाता है।
प्रश्न 9.
बुरी संगति को लेखक ने छूत क्यों कहा है?
उत्तर”
जिस प्रकार से छूत की बीमारी लग जाती है, उसी प्रकार से बुरी संगति भी छूत की तरह जब लग जाती है तो छूटती नहीं है। भद्दे और फूहड़ गीत किसी गंभीर अथवा अच्छी धुन की अपेक्षा जल्दी याद हो जाते हैं। काजल की कोठरी में से कितना ही बच कर निकलने की कोशिश करें, कालिख लग ही जाती है। बचपन में सुनी हुई बुरी बातें कभी नहीं भूलती हैं।
प्रश्न 10.
‘विश्वासपात्र मित्र से बड़ी भारी रक्षा रहती है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति में आचार्य शुक्ल यह बताना चाहते हैं कि मानव-जीवन में विश्वासपात्र मित्र का कितना अधिक महत्त्व है। लेखक की मान्यता है कि जिस मित्र पर विश्वास किया जा सके, वह मानव-जीवन के लिए दवाई के समान होता है। जैसे दवाई हमें विभिन्न बीमारियों से मुक्त करा देती है, वैसे ही विश्वासपात्र मित्र हमें जीवन के अनेक संकटों से बचा सकता है। लेखक का विचार है कि विश्वासपात्र मित्र हमारे विचारों को ऊँचा उठाते हैं, हमारे चरित्र को दृढ़ बनाते हैं, हमें बुराइयों और गलतियों से बचाते हैं। ऐसा मित्र हमारे मन और आचरण में सत्य-निष्ठता को जागृत करता है तथा हमें पवित्रतापूर्वक जीवन-यापन करने की प्रेरणा देता है। ऐसे मित्र की प्रेरणा से हम प्रेमपूर्वक मर्यादित जीवनयापन कर सकते हैं। हमें निराशा के क्षणों में प्रोत्साहन भी विश्वासपात्र मित्रों से ही प्राप्त होता है।
एक पंक्ति में उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विश्वासपात्र मित्र जीवन का क्या है?
उत्तर:
विश्वासपात्र मित्र जीवन की एक औषध है।
प्रश्न 2.
किस अवस्था में मित्रता की धुन सवार रहती है?
उत्तर:
छात्रावस्था में मित्रता की धुन सवार रहती है।
प्रश्न 3.
कौन-सा ज्वर सबसे भयानक होता है?
उत्तर:
कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है।
प्रश्न 4.
कौन-सी बातें हमारी धारणा में बहुत दिनों तक टिकती हैं?
उत्तर:
बुरी बातें हमारी धारणा में बहुत दिनों तक टिकती हैं।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तरनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें
प्रश्न 1.
युवा पुरुष प्रायः किससे कम काम लेते हैं?
(क) विवेक
(ख) उत्साह
(ग) साहस
(घ) निडरता।
उत्तर:
(क) विवेक
प्रश्न 2.
सच्ची मित्रता में किस जैसी निपुणता और परख होती है?
(क) मंत्री
(ख) न्यायाधीश
(ग) वैद्य
(घ) राजा।
उत्तर:
(ग) वैद्य
प्रश्न 3.
नीति-विशारद अकबर मन बहलाने के लिए किसकी ओर देखता था?
(क) सलीम
(ख) बीरबल
(ग) टोडरमल
(घ) तानसेन।
उत्तर:
(ख) बीरबल
एक शब्द/हाँ-नहीं/सही-गलत/रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न
प्रश्न 1.
आजकल क्या बढ़ाना कोई बड़ी बात नहीं है? (एक शब्द में उत्तर दें)
उत्तर:
जान-पहचान
प्रश्न 2.
मकदूनिया का बादशाह अकबर था। (हाँ या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
नहीं
प्रश्न 3.
बुरी संगति की छूत से बचो। (हाँ या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
हाँ
प्रश्न 4.
हमारे और हमारे मित्र के बीच सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए। (सही या गलत)
उत्तर:
सही]
प्रश्न 5.
मित्र सच्चे पथ प्रदर्शक के समान नहीं होना चाहिए। (सही या गलत)
उत्तर:
गलत
प्रश्न 6.
संगति का गुप्त …………. हमारे ………… पर बड़ा भारी पड़ता है।
उत्तर:
प्रभाव, आचरण
प्रश्न 7.
चिन्ताशील मनुष्य ………. चिन्त का ………. ढूँढ़ता है।
उत्तर:
प्रफुल्लित, साथ
प्रश्न 8.
काजल की ……………. में कैसो ही ………….. जाय।
उत्तर:
कोठरी, सयानो।
मित्रता कठिन शब्दों के अर्थ
मित्रता = दोस्ती। युवा = जवान। एकांत = अकेला, निर्जन स्थान। उपयुक्तता = सही होना। परिणत होना = बदल जाना। चित्त = मन। संगति = साथ। हेल-मेल = मेल जोल, घनिष्ठता। अपरिमार्जित = जो साफ सुथरा न हो। प्रवृत्ति = स्वभाव, आदत। अपरिपक्व = जो पका न हो, अविकसित। दृढ़ संकल्प = पक्का इरादा। विवेक = अच्छे-बुरे को पहचानने की क्षमता। आश्चर्य = हैरानी। अनुसंधान = खोज, पड़ताल। त्रुटियों = गलतियों। चटपट = फटाफट, जल्दीजल्दी। आत्मशिक्षा = जीवन-ज्ञान। संकल्प = निश्चय। मर्यादा = जीवन अनुशासन। हतोत्साहित = जिसमें उत्साह न हो। उत्साहित = उत्साह, हौंसला। निपुण = कुशल, प्रवीण। परख = पहचानने की शक्ति। उमंग = रोमांच। खिन्नता = खीजना, चिढ़ जाना। अनुरक्ति = लीन होना, जुड़ना, लगाव। उद्गार = भाव। प्रफुल्लित = प्रसन्न। निर्बल = कमजोर। उथल-पुथल = हलचल। जीवन-संग्राम = जीवन संघर्ष। स्नेह = प्रेम-प्यार। प्रीति-पात्र = कृपा-पात्र। वांछनीय = अपेक्षित। चिंताशील = परेशान।
उच्च आकांक्षा = उत्कृष्ट इच्छा। मृदुल = कोमल। युक्ति = तरीका। नीति विशारद = नीति-निपुण, नीतिवान। कर्त्तव्य = फर्ज। सामर्थ्य = योग्यता। दृढ़ चित्त = पक्का इरादा। सत्य संकल्प = शुभ-विचार। आत्मबल = नैतिक शक्ति। प्रतिष्ठित = स्थापित होना। पुरुषार्थ = मेहनत, जीवन लक्ष्य (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष)। लिप्त = लीन। शिष्ट = सभ्य, सदाचारी। सत्यनिष्ठ = सत्य पर अडिग रहने वाला, सत्यवान। विनोद = मनोरंजन। मनचला = छिछला। बनाव सिंगार = टीमटाम, बनावट। निस्सार = सारहीन व्यर्थ। शोचनीय = चिंताजनक। सात्विकता = पवित्रता। अनंत = जिसका अंत नहीं होता। गंभीर = गहन। रहस्य = छुपा हुआ। इंद्रियविषय = इंद्रियों से संबंधित। नीचाशयों = घटिया इरादे। कुत्सित विचार = बुरे विचार। कलुषित = दूषित। कुसंग = बुरी-संगत। क्षय = हानि, कम होना। अवनति = पतन। चेष्टा = प्रयत्न। बेधना = घाव करना। चौकसी = सावधानी। सवृत्ति = अच्छी आदत। अभ्यस्त = निपुण। कुंठित = अप्रखर, अक्षम, कमज़ोर। निष्कलंक = निर्दोष, पवित्र।
मित्रता Summary
मित्रता लेखक परिचय
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म बस्ती जिले के ‘अगोना’ नामक ग्राम में सन् 1889 ई० में हुआ था। इनकी शिक्षा मिर्जापुर में हुई। इन्होंने सन् 1901 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की थी। इसके बाद विपरीत परिस्थितियों के कारण ये आगे पढ़ नहीं पाए थे। कुछ समय के लिए इन्होंने मिर्जापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला के अध्यापक पद पर कार्य किया। सन् 1908 में नागरी प्रचारिणी सभा में इन्हें ‘हिंदी शब्द सागर’ के सहकारी संपादक के रूप में नियुक्त किया गया। इन्होंने काफ़ी समय तक ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का संपादन किया। कुछ समय तक ये काशी विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक रहे और सन् 1937 में बाबू श्यामसुंदर दास के अवकाश ग्रहण करने पर हिंदी-विभाग के अध्यक्ष नियुक्त किये गये। सन् 1941 में काशी में इनका देहावसान हो गया।
रचनाएँ-आचार्य शुक्ल ने कविता, कहानी, अनुवाद, निबंध, आलोचना, कोष-निर्माण, इतिहास-लेखन आदि अनेक क्षेत्रों में अपनी अपूर्व प्रतिभा का परिचय दिया है। इनकी सर्वाधिक ख्याति निबंध-लेखक और आलोचक के रूप में हुई है। इनकी प्रमुख रचनाएँ-हिंदी-साहित्य का इतिहास, जायसी ग्रंथावली, तुलसीदास, सूरदास, चिंतामणि (तीन भाग), रस-मीमांसा आदि हैं। सन् 1903 ई० में रचित इनकी कहानी ‘ग्यारह वर्ष का समय’ हिंदी की प्रारंभिक कहानियों में उल्लेखनीय है। इनके द्वारा रचित चिंतामणि के तीनों भाग इनकी मृत्यु के बाद छपे थे।
शुक्ल जी के निबंध हिंदी-साहित्य की अनुपम निधि हैं। अनुभूति और अभिव्यंजना की दृष्टि से उनके निबंध उच्चकोटि के हैं। इनमें गंभीर विवेचन के साथ-साथ गवेषणात्मक चिंतन का मणि-कांचन संयोग, निर्धांत-अनुभूति के साथ-साथ प्रौढ़ अभिव्यंजना का अद्भुत मिश्रण, लेखक के गंभीर व्यक्तित्व के साथ-साथ विषय-प्रतिपादन की प्रौढ़ता का औदार्य, विचार-शक्ति के स्वस्थ संघटन के साथ-साथ भाव-व्यंजना का वैचित्र्यपूर्ण माधुर्य तथा जीवन की विविध रसात्मक अनुभूतियों के साथ-साथ जगत् की विविध रहस्यपूर्ण गतिविधियों का अनोखा चमत्कार मिलता है।
मित्रता पाठ का सार
‘मित्रता’ आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखित एक विचारात्मक निबंध है। लेखक का विचार है कि यों तो मेल-जोल से मित्रता बढ़ जाती है किंतु सच्चे मित्र का चुनाव एक कठिन समस्या है। नवयुवकों को यदि अच्छा मित्र मिल जाए तो उनका जीवन सफल हो सकता है क्योंकि संगत का प्रभाव हमारे आचरण पर पड़ता है तथा हमारा जीवन अपने मित्रों के संपर्क से बहुत अधिक प्रभावित होता है। इसलिए लेखक ने मित्र के चुनाव, मित्र के लक्षण आदि का विवेचन इस निबंध में किया है।
युवा व्यक्ति की मानसिक स्थिति-लेखक का विचार है कि जब कोई युवा व्यक्ति अपने घर से बाहर निकलकर संसार में प्रवेश करता है तो उसे सबसे पहले अपना मित्र चुनने में कठिनाई का अनुभव होता है। प्रारंभ में वह बिल्कुल अकेला होता है। धीरे-धीरे उसकी जान-पहचान का घेरा बढ़ने लगता है जिनमें से उसे अपने योग्य उचित मित्र का चुनाव करना पड़ता है। मित्रों के उचित चुनाव पर उसके जीवन की सफलता निर्भर करती है, क्योंकि संगति का प्रभाव हमारे आचरण पर भी पड़ता है। युवावस्था कच्ची मिट्टी के समान होती है जिसे कोई भी आकार प्रदान किया जा सकता है। सही मित्र की मित्रता ही हमें जीवन में उन्नति प्रदान करती है। केवल हँसमुख व्यक्तित्व से संपन्न मनुष्य को, बिना उसके गण-दोष परखे, मित्र बना लेना उचित नहीं है। हमें मित्र बनाते समय मैत्री के उद्देश्य पर भी विचार करना चाहिए क्योंकि मित्रता एक ऐसा साधन है जिससे आत्मशिक्षा का कार्य आसान हो जाता है। विश्वासपात्र मित्र हमें उत्तमतापूर्वक जीवन निर्वाह करने में सहायता देते हैं। ऐसी ही मित्रता करने का प्रयत्न प्रत्येक युवा व्यक्ति को करना चाहिए।
छात्रावस्था की मित्रता-प्राय: छात्रावस्था के युवकों में मित्रता की धुन सवार रहती है। मित्रता उनके हृदय से उमड़ पड़ती है। उनके हृदय से मित्रता के भाव बात-बात में उमड़ पड़ते हैं। युवा पुरुषों की मित्रता स्कूल के बालक की मित्रता से दृढ़, शांत और गंभीर होती है। वास्तव में, सच्चा मित्र जीवन संग्राम का साथी होता है। सुंदर-प्रतिभा, मन-भावनी चाल तथा स्वच्छंद तबीयत आदि दो-चार गुण ही मित्रता के लिए पर्याप्त नहीं हैं। सच्चा-मित्र पथ-प्रदर्शक के समान होना चाहिए, जिस पर हम पूरा विश्वास कर सकें। वह भाई के समान होना चाहिए जिसे हम अपना प्रेम-पात्र बना सकें।
भिन्न स्वभाव के लोगों में मित्रता-दो भिन्न प्रकृति, व्यवसाय और रुचि के व्यक्तियों में भी मित्रता हो सकती है। राम-लक्ष्मण तथा कर्ण और दुर्योधन की मित्रता परस्पर विरोधी प्रकृति के होते हुए भी अनुकरणीय है। वस्तुत: समाज में विभिन्नता देखकर ही लोग परस्पर आकर्षित होते हैं तथा हम चाहते हैं कि जो गुण हममें नहीं हैं, उन्हीं गुणों से युक्त मित्र हमें मिले। इसीलिए चिंतनशील व्यक्ति प्रफुल्लित व्यक्ति को मित्र बनाता है। निर्बल बलवान् को अपना मित्र बनाना चाहता है।
मित्र का कर्तव्य-लेखक एक सच्चे मित्र के कर्तव्यों के संबंध में बताता है कि वह उच्च और महान् कार्यों में अपने मित्र को इस प्रकार सहायता दे कि वह अपनी निजी सामर्थ्य से भी अधिक कार्य कर सके। इसके लिए हमें आत्मबल से युक्त व्यक्ति को अपना मित्र बनाना चाहिए। संसार के अनेक महान् पुरुष मित्रों के द्वारा प्रेरित किए जाने पर ही बड़े-बड़े कार्य करने में समर्थ हुए हैं। सच्चे मित्र उचित मंत्रणा के द्वारा अपने मित्र का विवेक जागृत करते हैं तथा उसे स्थापित करने में सहायक होते हैं। संकट और विपत्ति में उसे पूरा सहारा देते हैं। जीवन और मरण में सदा साथ रहते हैं।
मित्र के चुनाव में सावधानी-लेखक मित्र के चुनाव में सतर्कता का व्यवहार करने पर बल देता है क्योंकि अच्छे मित्र के चुनाव पर ही हमारे जीवन की सफलता निर्भर करती है। जैसी हमारी संगत होगी, वैसे ही हमारे संस्कार भी होंगे, अतः हमें दृढ़ चरित्र वाले व्यक्तियों से मित्रता करनी चाहिए। मित्र एक ही अच्छा है, अधिक की आवश्यकता नहीं होती। इस संबंध में लेखक ने बेकन के कथन का उदाहरण दिया है कि “समूह का नाम संगत नहीं है। जहाँ प्रेम नहीं है, वहाँ लोगों की आकृतियाँ चित्रवत् हैं और उनकी बातचीत झाँझ की झनकार है।” अत: जो हमारे जीवन को उत्तम और आनंदमय करने में सहायता दे सके ऐसा एक मित्र सैंकड़ों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ है।
किन लोगों से मित्रता न करें-लेखक ऐसे लोगों से दूर रहने के लिए कहता है जो हमारे लिए कुछ नहीं कर सकते, न हमें कोई अच्छी बात बता सकते हैं, न हमारे प्रति उनके मन में सहानुभूति है और न ही वे बुद्धिमान् हैं । लेखक की मान्यता है कि आजकल हमें मौज-मस्ती में साथ देने के लिए अनेक व्यक्ति मिल सकते हैं जो संकट में हमारे निकट भी नहीं आयेंगे, ऐसे लोगों से कभी मित्रता नहीं करनी चाहिए। जो नवयुवक मनचलों के समान केवल शारीरिक बनावश्रृंगार में लगे रहते हैं, महफिलें सजाते हैं, सिगरेट का धुआँ उड़ाते हुए गलियों में ठट्टा मारते हैं, उनका जीवन शून्य, निःसार और शोचनीय होता है। वे अच्छी बातों के सच्चे आनंद से कोसों दूर रहते हैं। उन्हें प्राकृतिक अथवा मानवीय सौंदर्य के स्थान पर केवल इंद्रिय-विषयों में ही लिप्त रहना अच्छा लगता है। उसका हृदय नीच आशाओं तथा कुत्सित विचारों से परिपूर्ण रहता है। लेखक इस प्रकार के व्यक्तियों से सावधान रहते हुए इनसे मित्रता न करने पर बल देता है।
कुसंग का ज्वर-लेखक ने कुसंग को एक भयानक ज्वर का नाम दिया है जो केवल नीति और सद्वृत्ति का नाश नहीं करता, अपितु बुद्धि का भी क्षय करता है। बुरे व्यक्ति की संगत अथवा मित्रता करने वाला व्यक्ति दिन-प्रतिदिन अवनति के गड्ढे में ही गिरता जायेगा। अतः बुरे व्यक्तियों की संगत से सदा बचना चाहिए। इस संबंध में लेखक एक उदाहरण देता है कि इंग्लैंड के एक विद्वान् को युवावस्था में राज दरबारियों में स्थान नहीं मिला तो वह जीवन-भर अपने भाग्य को सराहता ही रहा। बहुत-से लोग तो इसे अपना बड़ा भारी दुर्भाग्य समझते, पर वह अच्छी तरह जानता था कि वहाँ वह बुरे लोगों की संगत में पड़ता जो उसकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक होते। इसी कारण वह राज-दरबारी न बनकर स्वयं को सौभाग्यशाली समझता था।
बुरी आदतों का आकर्षण-लेखक के विचार में बुरी आदतें तथा बुरी बातें प्राय: व्यक्तियों को अपनी ओर शीघ्रता से आकर्षित कर लेती हैं। अतः ऐसे लोगों से कभी भी मित्रता नहीं करनी चाहिए जो अश्लील, अपवित्र और फूहड़ रूप से तुम्हारे जीवन में प्रवेश करना चाहते हैं, क्योंकि यदि एक बार व्यक्ति को इन बातों अथवा कार्यों में आनंद आने लगेगा तो बुराई अटल भाव धारण कर उसमें प्रवेश कर जायेगी। व्यक्ति की भले-बुरे में अंतर करने की शक्ति भी नष्ट हो जायेगी तथा विवेक भी कुंठित हो जाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति बुराई का भक्त बन जाता है। स्वयं को निष्कलंक रखने के लिए समस्त बुराइयों से बचना आवश्यक है क्योंकि-
“काजल की कोठरी में कैसो ही सयानों जाय।
एक लीक काजल की लागि है पै लागि है।”