Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Chapter 6 जड़ की मुसकान Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Hindi Chapter 6 जड़ की मुसकान
Hindi Guide for Class 10 PSEB जड़ की मुसकान Textbook Questions and Answers
(क) विषय-बोध
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए
प्रश्न 1.
एक दिन तने ने जड़ को क्या कहा?
उत्तर:
तने ने जड़ से कहा कि वह तो निर्जीव है तथा सदा जीवन से डरी रहती है।
प्रश्न 2.
जड़ का इतिहास क्या है ?
उत्तर:
जड़ का इतिहास यह है कि वह सदा ज़मीन के अंदर मुँह गड़ा कर पड़ी रहती है। वह तो मिट्टी से कभी बाहर ही नहीं निकलती।
प्रश्न 3.
डाली तने को हीन क्यों समझती है?
उत्तर:
डाली तने को हीन इसलिए समझती है क्योंकि उसे जहाँ बैठा दिया जाता है वहीं बैठा रहता है, कभी भी गतिशील नहीं होता जबकि वे लहराती रहती हैं।
प्रश्न 4.
पत्तियाँ डाल की किस कमी की ओर संकेत करती हैं?
उत्तर:
पत्तियाँ डाल की इस कमी की ओर संकेत करती हैं कि वे इस ध्वनि प्रधान संसार में एक शब्द भी नहीं बोल सकती हैं। वह तो अपने भावों-विचारों को भी व्यक्त नहीं कर पाती।
प्रश्न 5.
फूलों ने पत्तियों की चंचलता का आधार क्या बताया?
उत्तर:
फूलों के अनुसार पत्तियों की चंचलता का आधार डाली है।
प्रश्न 6.
सबकी बातें सुनकर जड़ क्यों मुसकराई?
उत्तर:
सब की बातें सुनकर जड़ इसलिए मुसकराई थी कि केवल वह ही जानती थी कि यदि वह न होती तो वृक्ष का अस्तित्व ही न होता। न तना, न शाखाएं, न पत्ते और न ही फूल होते। जड़ ही उन सब का पोषण करती है। उन सभी का अस्तित्व उसी के कारण ही होता है।
II. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें
प्रश्न 1.
एक दिन तने ने भी कहा था,
जड़?
जड़ तो जड़ ही है
जीवन से सदा डरी रही है,
और यही है उसका सारा इतिहास
कि ज़मीन से मुँह गड़ाए पड़ी रही है;
उत्तर:
कवि लिखता है कि एक दिन तने ने जड़ के संबंध में कहा कि जड़ तो बिलकुल जड़ अर्थात् निर्जीव है। वह सदा जीवन से भयभीत रहती है। उसका सारा इतिहास यही है कि वह सदा ज़मीन में ही मुँह गड़ा कर पड़ी रहती है, वह संसार से मुँह छिपा कर जमीन के अंदर छिपी रहती है, किंतु तना स्वयं को जमीन से ऊपर उठा कर बढ़ता हुआ बताता है, वह मज़बूत बना हुआ है इसलिए तना कहलाता है, वह तना हुआ अर्थात् अकड़ा हुआ, घमंडी है।
प्रश्न 2.
एक दिन फूलों ने भी कहा था, पत्तियाँ?
पत्तियों ने क्या किया?
संख्या के बल पर बस डालों को छाप लिया,
डालों के बल पर ही चल-चपल रही हैं,
हवाओं के बल पर ही मचल रही हैं
लेकिन हम अपने से खुले, खिले फूले हैं
रंग लिए, रस लिए, पराग लिए
हमारी यश-गंध दूर-दूर-दूर फैली है,
भ्रमरों ने आकर हमारे गुन गाए हैं,
हम पर बौराए हैं।
उत्तर:
डालियों की बातें सुन कर एक दिन पत्तियों ने भी कहा कि डाल में भी भला कोई विशेषता है ? हम मानती हैं कि वे झूमती हैं, झुकती हैं, हिलती हैं परंतु इस आवाज़ वाली दुनिया में क्या कभी उन्होंने एक शब्द भी बोला है ? अर्थात् वे बिलकुल नहीं बोलती हैं। इसके विपरीत पत्तियाँ कहती हैं कि वे सदा हर-हर का शब्द बोलती रहती हैं। उनके आपस में टकराने से वातावरण उनकी खड़खड़ाहट की आवाज़ से भर जाता है। हर वर्ष वे नया स्वरूप प्राप्त कर लेती हैं और पतझड़ में झड़ जाती हैं। वसंत के आने पर वे फिर निकल आती हैं और डालियों पर छा जाती हैं। वे थके हुए मन वाले पथिकों की परेशानियों तथा गर्मी को दूर कर उन्हें शांति प्रदान करती हैं।
(ख) भाषा-बोध
I. निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखें:
जीवन = ————-
जड़ = ————-
मज़बूत = ————-
ऊपर। = ————-
उत्तर:
शब्द = विपरीत शब्द
जीवन = मृत्यु
जड़ = चेतन
मजबूत = कमज़ोर
ऊपर = नीचे।
II. निम्नलिखित शब्दों के विशेषण शब्द बनाइए
इतिहास = ————
दिन = ————
वर्ष = ————
रंग = ————
रस। = ————
उत्तर:
शब्द = विशेषण
इतिहास = ऐतिहासिक
दिन = दैनिक
वर्ष = वार्षिक
रंग = रंगीला/रंगीन
रस। = रसीला।
III. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें
प्रगति = ————
हवा = ————
ध्वनि = ————
फूल = ————
भ्रमर। = ————
उत्तर:
शब्द = पर्यायवाची शब्द
प्रगति = उन्नति, बढ़ोत्तरी, बढ़ती, वृद्धि।
हवा = वायु, पवन, वात, समीर।
ध्वनि = शब्द, आवाज़, गूंज, स्वर।
फूल = पुष्प, सुमन, प्रसून, कुसुम।
भ्रमर = भौंरा, भँवरा, सारंग, षट्पद।
IV. निम्नलिखित के अनेकार्थी शब्द लिखें
जड़ = ————
तना = ————
डाल = ————
डोली = ————
बोली। = ————
उत्तर:
जड़ = मूर्ख, स्थिर, वनस्पतियों की जड़, आधार।
तना = अकड़ा हुआ, पेड़-पौधों का जड़ से जुड़ा हिस्सा, कसा हुआ।
डाल = शाखा, डालना/उड़ेलना।
डोली = कांपी, मिट्टी का छोटा बर्तन, विवाह के पश्चात् लड़की का ससुराल गमन हेतु पालकी, शिविका।
बोली = वचन, भाषा, बोलचाल, नीलाम की आवाज़, व्यंग्य, कटाक्ष।
(ग) पाठ्येतर सक्रियता
प्रश्न 1.
रामवृक्ष बेनीपुरी का निबंध ‘नींव की ईंट’ पढ़िए और जड़ के महत्व पर अपने सहपाठियों के साथ चर्चा कीजिए।
उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें)
प्रश्न 2.
‘वही देश मज़बूत होता है, जिसकी संस्कृति मज़बूत जड़ के समान होती है।’ इस विषय पर कक्षा में भाषण प्रतियोगिता का आयोजन कीजिए।
उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें)
प्रश्न 3.
प्रस्तुत कविता को आगे बढ़ाइए। जड़, तना, पत्ते और फूल के साथ फल को भी शामिल कीजिए। कविता को आगे बढ़ाते निम्न पंक्तियों को पूरा करें-
एक दिन फलों ने भी कहा था,
……………….?
……………… ने क्या किया ?
वृथा ही फूलते हैं
आज फूले हैं
कल ……………. जाएंगे
हमें देखो, हम पशु, पक्षी और …………… का।
…………. भरते हैं
उन्हें ज़िन्दा रखने को
अपना ……………. करते हैं।
उत्तर:
एक दिन फलों ने भी कहा था फूल?
फूल ?
फूलों ने क्या किया?
वृथा ही फूलते हैं
आज फूले हैं
कल मुरझा जाएंगे
हमें देखो,
हम पशु, पक्षी और मनुष्य का
पेट भरते हैं
उन्हें ज़िन्दा रखने को
अपना जीवन बलिदान करते हैं।
(घ) ज्ञान-विस्तार
जिस प्रकार जड़ एक वृक्ष को बनाती है, उसी प्रकार परिवार की जड़ परिवार के पुरखे दादा-दादी, माता-पिता होते हैं, जो अपनी संतान के द्वारा परिवार को रक्षा, खुशहाली और वृद्धि प्रदान करते हैं। इसी प्रकार से जैसे माता-पिता अपनी संतान का पालन-पोषण करते हैं उसी प्रकार अध्यापक बच्चों को ज्ञान का प्रकाश देकर भावी नागरिक बनाते हैं। देश को स्वतंत्र कराने वाले देशभक्तों का बलिदान हमें देश की रक्षा की प्रेरणा देता है। इन सबके प्रति हमें कृतज्ञ होकर इनके दिखाये पथ पर चलना चाहिए।
PSEB 10th Class Hindi Guide जड़ की मुसकान Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
प्रगति करने पर लोग क्या भूल जाते हैं?
उत्तर:
प्रगति करने पर लोग अक्सर अपने मूलभूत आधार को भूल जाते हैं तथा अपने जीवन की सारी प्रगति का श्रेय स्वयं को देते हैं, जबकि उनकी प्रगति के पीछे उन सब का हाथ होता है जिनके कारण वास्तव में उनकी प्रगति हुई।
प्रश्न 2.
भवन मज़बूत कब होता है?
उत्तर:
भवन तब मज़बूत होता है, जब उसकी नींव मज़बूत होती है।
प्रश्न 3.
तना किसके कारण मज़बूत बना है?
उत्तर:
तना जड़ के कारण मज़बूत बना है।
प्रश्न 4.
डालियाँ कहाँ से फूटती हैं?
उत्तर:
डालियाँ तने से फूटती हैं।
प्रश्न 5.
पत्तियाँ स्वर कैसे उत्पन्न करती हैं?
उत्तर:
पत्तियाँ हर-हर स्वर करती हैं जो उनकी आपसी रगड़ से उत्पन्न होता है।
प्रश्न 6.
फूलों पर कौन बौराएं हैं?
उत्तर:
फूलों पर भँवरे बौराएं हैं।
प्रश्न 7.
तने को अपने आप पर क्या घमंड था?
उत्तर:
तने को अपने आप पर यह घमंड था कि वह अपने साहस और शक्ति के कारण बढ़ सका। वह अपने बलबूते पर ज़मीन से ऊपर उठ सका। मिट्टी की गहराइयों से वह स्वयं बाहर निकला। उसने स्वयं अपनी शक्ति के कारण अपना विकास किया। वह जड़ की अपेक्षा अधिक सक्षम था।
प्रश्न 8.
फूलों ने अभिमान से भर कर क्या कहा था?
उत्तर:
फूलों ने अभिमान से भर कर कहा था कि उनके विकास में पत्तियों का कोई योगदान नहीं था। वे तो स्वयं खुले थे; फले थे और फूले थे। उन्होंने स्वयं ही रंग-रस पाया था। उनके यश को भँवरों ने गाया था और उनकी सुगंध दूर-दूर तक फैली थी।
एक पंक्ति में उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जड़ को जड़ किसने कहा?
उत्तर:
जड़ को जड़ तने ने कहा।
प्रश्न 2.
प्रगतिशील जगती में कौन तिल भर भी नहीं डोला?
उत्तर:
प्रगतिशील जगती में तना तिल भर भी नहीं डोला।
प्रश्न 3.
थके हुए पथिकों के मन का शाप-ताप कौन हरती हैं?
उत्तर:
पत्तियाँ थके हुए पथिकों के मन का शाप-ताप हरती हैं।
प्रश्न 4.
भ्रमरों ने किन के गुन गाए हैं?
उत्तर:
भ्रमरों ने फूलों के गुण गाए हैं।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तरनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें
प्रश्न 1.
फूलों के गुन किसने गाए हैं
(क) भ्रमर
(ख) कोयल
(ग) मोर
(घ) पपीहा।
उत्तर:
(क) भ्रमर
प्रश्न 2.
हर वर्ष नूतन कौन होती है
(क) जड़
(ख) डाल
(ग) पत्ती
(घ) गंध।
उत्तर:
(ग) पत्ती
प्रश्न 3.
जीवन से सदा कौन डरी रही
(क) जड़
(ख) डाल
(ग) पत्ती
(घ) गंध।
उत्तर:
(क) जड़
एक शब्द/हाँ-नहीं/सही-गलत/रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न
प्रश्न 1.
कौन खाया है, मोटाया है, सहलाया चोला है? (एक शब्द में उत्तर दें)
उत्तर:
तना
प्रश्न 2.
जड़ तो जड़ नहीं है। (सही या गलत में उत्तर लिखें)
उत्तर:
गलत
प्रश्न 3.
पत्तियाँ हर-हर स्वर नहीं करती हैं। (सही या गलत में उत्तर दें)
उत्तर:
गलत
प्रश्न 4.
सबकी सुनकर भी जड़ नहीं मुसकराई। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
नहीं
प्रश्न 5.
डाल तने से फूटती है। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
हाँ
प्रश्न 6.
लेकिन मैं ……….. से ऊपर उठा।
उत्तर:
ज़मीन
प्रश्न 7.
मर्मर स्वर …………….. भरती है।
उत्तर:
मर्मभरा
प्रश्न 8.
हमारी …………… दूर-दूर फैली है।
उत्तर:
यश-गंध।
जड़ की मुसकान पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या
1. एक दिन तने ने भी कहा था
जड़?
जड़ तो जड़ ही है।
जीवन से सदा डरी रही है,
और यही है उसका सारा इतिहास
कि ज़मीन से मुँह गड़ाए पड़ी रही है
लेकिन मैं ज़मीन से ऊपर उठा,
बाहर निकला,
बढ़ा हूँ
मजबूत बना हूँ,
इसी से तो तना हूँ।
शब्दार्थ:
जड़ = वृक्ष का मूल, जड़, मिर्जीव। मुँह गड़ाए पड़ी रही = सबसे छिप कर रहना। तना हूँ = वृक्ष का तना होना, अकड़ना, घमंड करना।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘जड़ की मुसकान’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने वृक्ष के अस्तित्व में जड़ का महत्त्व स्पष्ट किया है।
व्याख्या:
कवि लिखता है कि एक दिन तने ने जड़ के संबंध में कहा कि जड़ तो बिलकुल जड़ अर्थात् निर्जीव है। वह सदा जीवन से भयभीत रहती है। उसका सारा इतिहास यही है कि वह सदा ज़मीन में ही मुँह गड़ा कर पड़ी रहती है, वह संसार से मुँह छिपा कर जमीन के अंदर छिपी रहती है, किंतु तना स्वयं को जमीन से ऊपर उठा कर बढ़ता हुआ बताता है, वह मज़बूत बना हुआ है इसलिए तना कहलाता है, वह तना हुआ अर्थात् अकड़ा हुआ, घमंडी है।
विशेष:
- तना स्वयं को जड़ से श्रेष्ठ बताता है तथा जड़ को सदा मुँह छिपा कर धरती में छिप कर रहने वाली कहता है।
- भाषा सहज, सरल है।
- मानवीकरण और अनुप्रास अलंकार हैं।
2. एक दिन डालों ने भी कहा था,
तना?
किस बात पर है तना?
जहां बिठाल दिया गया था वहीं पर है बना;
प्रगतिशील जगती में तिल भर नहीं डोला है,
खाया है, मोटापा है, सहलाया चोला है;
लेकिन हम तने से फूटी,
दिशा-दिशा में गईं
ऊपर उठीं,
नीचे आईं
हर हवा के लिए दोल बनीं, लहराईं,
इसी से तो डाल कहलाईं।
शब्दार्थ:
बिठाल = बैठाया गया। प्रगतिशील = आगे बढ़ते रहने का भाव। जगती = दुनिया, संसार। तिल भर = ज़रा-सा, थोड़ा-सा। डोला = हिला, गतिशील, आगे बढ़ा। सहलाया चोला = सुविधा भोगी शरीर। दोल = हिलना। डाल = शाखा ; टहनी।
प्रसंग:
यह काव्यांश हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘जड़ की मुसकान’ से लिया गया है। इसमें कवि ने वृक्ष के अस्तित्व में जड़ का महत्त्व स्पष्ट बताया है।
व्याख्या:
कवि ने लिखा है कि एक दिन तने की बातें सुनकर पेड़ की डालियाँ भी बोलने लगीं। डाल ने कहा कि तना किस बात पर घमंड कर रहा है, क्योंकि उसे तो जहाँ बैठा दिया गया है, अभी भी वहीं पर बैठा है। इस निरंतर गतिमान रहने वाली दुनिया में वह ज़रा भी गतिशील नहीं हुआ है। वह खूब खा-खा कर मोटा हो गया है। उसका शरीर जड़ की मुसकान सुविधा भोगी बन गया है किंतु हम डालियाँ उसी तने से निकल कर अनेक दिशाओं में फैल गई हैं। डालियाँ ऊपर उठती हैं, नीचे भी आती हैं। हवा की हर लहर के साथ झूलती हुई लहराती हैं, इसी से हम डाली कहलाती हैं।
विशेष:
- डाल स्वयं को गतिशील तथा तने को सुविधा भोगी शरीर वाला तथा एक ही स्थान पर बैठा रहने वाला बताती है।
- भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण है।
- अनुप्रास, मानवीकरण और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं।
3. एक दिन पत्तियों ने भी कहा था,
डाल?
डाल में क्या है कमाल?
माना वह झूमी, झुकी, डोली है
ध्वनि-प्रधान दुनिया में
एक शब्द भी वह कभी बोली है?
लेकिन हम हर-हर स्वर करती हैं
मर्मर स्वर मर्मभरा भरती हैं,
नूतन हर वर्ष हुई,
पतझर में झर
बहार-फूट फिर छहरती हैं,
विथकित-चित पंथी का
शाप-ताप हरती हैं।
शब्दार्थ:
कमाल = विशेषता, खास बात, खासियत। ध्वनि = आवाज़। हर-हर स्वर = पत्तियों के आपस में टकराने से उत्पन्न आवाज़। मर्मर = हरे पत्तों की खड़खड़ाहट। नूतन = नई। विथकित = थका हुआ। चित्त = मन । पंथी = मुसाफिर। शाप-ताप = परेशानी और गर्मी।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘जड़ की मुसकान’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने वृक्ष के लिए जड़ के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या:
डालियों की बातें सुन कर एक दिन पत्तियों ने भी कहा कि डाल में भी भला कोई विशेषता है ? हम मानती हैं कि वे झूमती हैं, झुकती हैं, हिलती हैं परंतु इस आवाज़ वाली दुनिया में क्या कभी उन्होंने एक शब्द भी बोला है ? अर्थात् वे बिलकुल नहीं बोलती हैं। इसके विपरीत पत्तियाँ कहती हैं कि वे सदा हर-हर का शब्द बोलती रहती हैं। उनके आपस में टकराने से वातावरण उनकी खड़खड़ाहट की आवाज़ से भर जाता है। हर वर्ष वे नया स्वरूप प्राप्त कर लेती हैं और पतझड़ में झड़ जाती हैं। वसंत के आने पर वे फिर निकल आती हैं और डालियों पर छा जाती हैं। वे थके हुए मन वाले पथिकों की परेशानियों तथा गर्मी को दूर कर उन्हें शांति प्रदान करती हैं।
विशेष:
- पत्तियां स्वयं को डाल से श्रेष्ठ सिद्ध कर अपनी छाया से पथिकों को विश्राम प्रदान करने वाली भी मानती हैं।
- भाषा सरल तथा भावपूर्ण है।
- मानवीकरण, अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं।
4. एक दिन फूलों ने भी कहा था,
पत्तियाँ?
पत्तियों ने क्या किया?
संख्या के बल पर बस डालों को छाप लिया,
डालों के बल पर ही चल-चपल रही हैं,
हवाओं के बल पर ही मचल रही हैं
लेकिन हम अपने से खुले, खिले, फूले हैं
रंग लिए, रस लिए, पराग लिए
हमारी यश-गंध दूर-दूर फैली है,
भ्रमरों ने आकर हमारे गुन गाए हैं,
हम पर बौराए हैं।
‘सबकी सुन पाई है,
जड़ मुसकराई है !
शब्दार्थ:
छाप लिया = ढक लिया। चल-चपल = चंचल, हिलती-डुलती। यश-गंध = प्रशंसा रूपी सुगंध। बौराए = पागल होना; होश खो देना।।
प्रसंग:
यह काव्यांश हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘जड़ की मुसकान’ नामक कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने वृक्ष के अस्तित्व को जड़ पर निर्भर बताया है।
व्याख्या:
पत्तियों की बातें सुनकर एक दिन फूल भी बोला कि पत्तियों ने भला किया ही क्या है? अर्थात् पत्तियों में तो कोई विशेषता ही नहीं है। पत्तियों ने तो केवल अपनी अधिक संख्या होने के कारण केवल डालों को ही ढक लिया है। वे डालों के कारण ही हिल-डुल रही हैं और हवाओं के कारण ही मचल रहीं हैं। किंतु हम फूल स्वयं ही खिले हैं और हमारे यश की सुगंध दूर-दूर तक फैली हुई है। भँवरे भी आकर हमारे गुणों का गान करते हैं। वे हमारे ऊपर मंडराते रहते हैं; वे हम पर पागल-से हो रहे हैं। इन सबकी बातों को सुनकर जड़ केवल मुसकराती है क्योंकि वह जानती है कि यदि वह न होती तो तना, डाल, पत्तियाँ और फूल भी न होते। इन सब का अस्तित्व जड़ के कारण ही है।
विशेष:
- किसी भी भवन को बनाने में जैसे नींव का महत्त्व होता है वैसे ही वृक्ष का महत्त्व उसकी जड़ से है, यदि जड़ सलामत तो वृक्ष भी रहेगा।
- भाषा सहज, सरल तथा भावपूर्ण है।
- मानवीकरण, अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
जड़ की मुसकान Summary
जड़ की मुसकान कवि परिचय
श्री हरिवंशराय बच्चन हिंदी-कविता में हालावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं। इनका जन्म 21 नवंबर, सन् 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के प्रयाग (इलाहाबाद) के कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा म्युनिसिपल स्कूल, कायस्थ पाठशाला तथा गवर्नमेंट स्कूल में हुई। सन् 1938 ई० में इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम० ए० किया तक तथा सन् 1942 से सन् 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत रहे। इसके बाद ये इंग्लैंड चले गये। वहां इन्होंने सन् 1952 से 1954 तक रहकर कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएच० डी० की उपाधि प्राप्त की थी। सन् 1955 ई० में भारत सरकार ने इन्हें विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर नियुक्त किया। ये राज्यसभा के सदस्य भी रहे। इन्हें सोवियतलैंड तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ‘दशद्वार से सोपान तक’ रचना पर इन्हें सरस्वती सम्मान दिया गया। इनकी प्रतिभा और साहित्य सेवा को देखकर भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। 18 जनवरी, सन् 2003 में ये इस संसार को छोड़कर चिरनिद्रा में लीन हो गए।
रचनाएँ- हरिवंशराय बच्चन जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
- काव्य संग्रह-मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल-अंतर, मिलन यामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे, नए पुराने झरोखे, टूटी-फूटी कड़ियाँ, बुद्ध और नाचघर।
- आत्मकथा चार खंड-क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक।
- अनुवाद-हैमलेट, जनगीता, मैकबेथ।
- डायरी-प्रवास की डायरी।
जड़ की मुसकान कविता का सार
‘जड़ की मुसकान’ शीर्षक कविता में बच्चन जी ने स्पष्ट किया है कि किस प्रकार लोग अपने मूल आधार को भूल कर स्वयं को ही महत्व देने लगते हैं। एक वृक्ष का तना जड़ को सदा जीवन से भयभीत ज़मीन में गड़ी रहने वाली कह कर उसका उपहास करता है तथा स्वयं को उससे अधिक श्रेष्ठ बताता है। डालियाँ स्वयं को तने से भी अधिक अच्छा बताती हैं क्योंकि तना तो एक ही स्थान पर खड़ा रहता है जबकि वे दिशा-दिशा में जाकर हवा में डोलती रहती हैं। पत्तियाँ स्वयं को डाल से अधिक महत्त्वपूर्ण इसलिए मानती हैं क्योंकि वे मर-मर्र स्वर में बोल भी सकती हैं। फूल सर्वत्र सुगंध फैलाने वाले, भँवरों को आकर्षित करने वाले, अपनी सुंदरता से सबको अपनी ओर खींचने वाले जानकर स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं । इन सब की बातों को सुन कर जड़ केवल मुसकराती है, क्योंकि वह जानती है कि इन सब का अस्तित्व उसके कारण ही है। यदि वह सलामत है तो वृक्ष भी है। जैसे मज़बूत नींव मज़बूत भवन बनाती है, वैसे हो मज़बूत जड़ वृक्ष को भी हरा-भरा रखती है।