Punjab State Board PSEB 10th Class Home Science Book Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Home Science Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण
PSEB 10th Class Home Science Guide रेशों का वर्गीकरण Textbook Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
रेशों की लम्बाई के आधार पर उन्हें कौन-सी श्रेणियों में बांटा जा सकता है?
अथवा
छोटे रेशे तथा लम्बे रेशे क्या होते हैं?
उत्तर-
रेशों को लम्बाई के आधार पर दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है
- छोटे रेशे या स्टेप्ल रेशे (Staple Fibre)-इन रेशों की लम्बाई छोटी होती है। इसकी लम्बाई इंचों या सेंटीमीटरों में मापी जाती है। साधारणतः 1/4″ से लेकर 18 इंच तक लम्बे होते हैं। सिल्क के अतिरिक्त सभी प्राकृतिक रेशे स्टेप्ल रेशे हैं।
- लम्बे रेशे/फिलामैंट (Filament)-इन रेशों की लम्बाई ज्यादा होती है। इसको मीटरों में मापा जाता है। सिल्क तथा कृत्रिम रेशे फिलामैंट रेशे होते हैं।
प्रश्न 2.
प्राकृतिक फिलामैंट रेशे की उदाहरण दें।
उत्तर-
प्राकृतिक फिलामैंट रेशे सिर्फ सिल्क ही हैं।
प्रश्न 3.
सैलूलोज रेशे कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
सैलूलोज रेशे कपड़े के रेशों या लकड़ी के गुद्दे को कृत्रिम रेशों से मिलाकर तैयार होते हैं। इनकी भिन्न-भिन्न किस्में हैं-जैसे कि विस्कोल क्यूपरामोनियम तथा नीटरो सैलूलोज।
प्रश्न 4.
(i) प्राकृतिक रेशे कहाँ-कहाँ से प्राप्त किये जाते हैं?
(ii) प्राकृतिक रेशे कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
(i) प्राकृतिक रेशे पौधों के तनों के रेशों के रूप में जूट, पटसन तथा कपास से प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त जानवरों के बालों से ऊन के रूप में तथा रेशम के कीड़ों से रेशम प्राप्त होता है। कच्ची धातु या खनिज पदार्थ के रूप में ऐसबेसटास के रूप में मिलते हैं।
(ii) जूट, पटसन, कपास, रेशम आदि।
प्रश्न 5.
मनुष्य द्वारा तैयार किये रेशों को कौन-कौन सी श्रेणियों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
मनुष्य द्वारा तैयार किये रेशों को मुख्य चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है
- सैलूलोज के पुनः निर्माण से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक रेशे-यह रेशे लकड़ी के गुद्दे या कपास के छोटे रेशों को रसायन पदार्थों से मिलाकर बनाए जाते हैं।
- थर्मोप्लास्टिक रेशे (Thermoplastic Fibres)-गर्म होने से यह रेशे सड़ने के स्थान पर पिघल जाते हैं। इसलिये इनको थर्मोप्लास्टिक रेशे कहा जाता है। जैसे कि नाइलॉन, पौलिएस्टर तथा ऐसिटेट आदि।
- धातु से बने रेशे-गोटे तथा जरी के लिये प्रयोग किये जाने वाले रेशे सोना. चांदी, एल्यूमीनियम धातुओं से बनते हैं।
- गलास फाइबर/शीशे से बने रेशे-ये रेशे शीशे को पिघला कर बनते हैं।
प्रश्न 6.
थर्मोप्लास्टिक रेशों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
थर्मोप्लास्टिक रेशे कृत्रिम रेशे हैं अभिप्राय यह कि मनुष्य द्वारा बनाये हुए। यह रेशे गर्मी से सड़ने की अपेक्षा पिघल जाते हैं। इस कारण इनको थर्मोप्लास्टिक रेशे कहा जाता है।
प्रश्न 7.
थर्मोप्लास्टिक रेशों के चार उदाहरण दें।
उत्तर-
नाइलोन, टैरीलीन, पौलिएस्टर, ऐकरिलिक तथा ऐसिटेट थर्मोप्लास्टिक रेशों की उदाहरणें हैं।
प्रश्न 8.
रेयॉन कितनो प्रकार की होती है तथा कौन-कौन सी?
उत्तर-
रेयॉन भी मनुष्य द्वारा तैयार किया रेशा है। परन्तु ये रेशे प्राकृतिक रेशों में जैसे कपास या पटसन या जूट के गुद्दे में रासायनिक पदार्थ मिलाकर तैयार किये जाते हैं।
प्रश्न 9.
धातु से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
गोटे तथा जरी के रेशे सोना, चांदी तथा एल्यूमीनियम धातुओं से प्राप्त किये जाते हैं। इन धातओं को पिघला कर बारीक रेशे तैयार किये जाते हैं। पर आजकल सोना, चाँदी, महँगी धातुएँ होने के कराण एल्यूमीनियम रेशे बनाकर उस पर सोने तथा चांदी की परत चढ़ाई जाती है।
प्रश्न 10.
प्रोटीन वाले रेशों के दो उदाहरण दो।
उत्तर-
जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे प्रोटीन युक्त रेशे होते हैं जैसे कि जानवरों भेड़ों, ऊँट तथा खरगोशों के बालों से बनी ऊन प्रोटीन युक्त रेशों की उदाहरणें हैं। इसी प्रकार सिल्क के कीड़ों से तैयार हुए सिल्क के रेशे भी प्रोटीन वाले होते हैं।
प्रश्न 11.
मिश्रित रेशे कौन-से होते हैं? कोई चार उदाहरण दें।
उत्तर-
मिश्रित रेशे दो भिन्न-भिन्न प्रकार के रेशे मिलाकर तैयार होते हैं, जैसे कपास तथा पटसन आदि से पौलिस्टर या टैरीलीन मिलाकर मिश्रित रेशे तैयार होते हैं। इस प्रकार ऊन तथा एक्रिलिक रेशे मिलाकर कैशमिलोन तैयार की जाती है।
प्रश्न 12.
पौधों के तनों से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
पौधों के तनों से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक रेशे निम्नलिखित हैंलिनन-यह फलैक्स पौधे के तने से प्राप्त होती है। पटसन-यह जूट के पौधे के तने से प्राप्त होता है। रेमी-यह भी पौधे के तने से प्राप्त होता है। जूट-यह रेशा भी पौधे के तने से प्राप्त किया जाता है।
छोटे उत्तर वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
(13) मूल गुणों के अलावा रेशों में कौन-कौन से और गुण हो सकते
उत्तर-
रेशों में उनके मूल गुणों के अतिरिक्त निम्नलिखित गुण भी होने आवश्यक हैं
- चमक (Lusture)
- पानी सोखने की क्षमता (Absorption of Water)
- चिपकना (Felting)
- आग पकड़ने की क्षमता (Flammability)
- संघनता (Density)
- ताप प्रतिरोधिकता (Resistence to heat)
- अम्ल तथा खारापन सहन करने की शक्ति (Resistence to acid and alkalies)
- बल न पड़ें (Resiliience)
- बलदार होना (Crimp) आदि।
प्रश्न 2.
(14) सूती रेशों को रेशों का सरताज क्यों कहा जाता है?
अथवा
सूती रेशों को सबसे अच्छा क्यों कहा जाता है?
उत्तर- सूती रेशे को रेशों का सरताज कहा जाता है क्योंकि इस रेशे में बहुत गुण होते हैं जैसे प्राकृतिक चमक का होना, मज़बूत रेशा तथा ताप का संचालक होने के साथसाथ इसमें पानी सोखने की क्षमता भी होती है। इस कारण ही ये कपड़े गर्मियों तथा सर्दियों में ठीक रहते हैं। इस रेशे के कपड़े चमड़ी के लिये आरामदायक होते हैं। इसको उबाला भी जा सकता है। इस कारण ही अस्पताल में पट्टी बनाने के लिये इसको प्रयोग किया जाता है। सूती रेशा इन गुणों के कारण ही रेशों का सरताज माना जाता है।
प्रश्न 3.
(15) कौन-से गुणों के कारण सूती कपड़ों को गर्मियों में पहना जाता है?
उत्तर-
सूती कपड़े ताप के संचालक तथा पानी सोखने की क्षमता रखते हैं जिससे ये शरीर का पसीना सोख लेते हैं। इस कारण ही इनको गर्मियों में पहना जाता है। इसके अतिरिक्त ताप के संचालक होने के कारण ताप इनमें से गुज़र जाता है, जो पसीना सूखने में मदद करते हैं। इन दोनों गुणों के कारण ये रेशे ठण्डे होते हैं तथा गर्मियों में सबसे आरामदायक रहते हैं। इसके अतिरिक्त हल्के क्षार तथा अम्लों का इन पर कोई प्रभाव नहीं होता जिस कारण पसीने से खराब नहीं होते।
प्रश्न 4.
(16) सूती रेशों से बनाये कपड़ों की देखभाल कैसे की जाती है तथा यह कपड़ा कहाँ इस्तेमाल किया जाता है?
उत्तर-
- सूती रेशों के कपड़ों को उबाल कर भी धोया जा सकता है। पर रंगदार सूती कपड़ों को उबालना नहीं चाहिए तथा न ही तेज़ धूप में सुखाना चाहिए जबकि सफ़ेद कपड़ों को धूप में सुखाने से ज्यादा सफ़ेदी आती है।
- सूती रेशों पर क्षार का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता, अतः किसी भी साबुन से धोये जा सकते हैं।
- सूती कपड़ों पर रंगकाट का भी कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। अतः लिशेषतया क्लोरीन रंगकाट प्रयोग करने चाहिएं। तेज़ रंगकाट कपड़े को कमजोर कर देते हैं।
- सूती कपड़ों को पूरा सुखाकर ही अल्मारी में सम्भालना चाहिए अन्यथा फंगस लग सकती है।
- इनको नम तेज़ गर्म प्रैस से प्रैस किया जा सकता है। जिससे कपड़े के पूरे बल निकल कर चमक आ जाती है।
सूती रेशे पहनने वाले कपड़ों, चादरों, खेस, मेज़पोश, तौलिये तथा पर्दे आदि के लिये प्रयोग किये जाते हैं।
प्रश्न 5.
(17) सूती रेशे के गुण बताएं।
उत्तर-
सूती रेशा कपास के पौधे से तैयार होता है। इस रेशे में 87 से 90% सैलूलोज, 5 से 8% पानी तथा शेष अशुद्धियाँ होती हैं। सूती रेशे के गुण निम्नलिखित हैं
- सूती रेशे की लम्बाई आधे इंच से दो इंच तक होती है तथा साधारणतया इस का रंग सफ़ेद होता है।
- इस रेशे में प्राकृतिक चमक नहीं होती।
- यह एक मज़बूत तथा टिकाऊ रेशा है।
- इस रेशे में पानी सोखने की क्षमता काफ़ी होती है। जिस कारण यह शरीर का पसीना सोख लेता है। इस गुण के कारण ही तौलिये सूती रेशे के बनाये जाते हैं।
- यह रेशा ताप का बढ़िया संचालक है। गर्मी इसमें से गुज़र सकती है। सूती रेशे की पानी सोखने की क्षमता तथा ताप संचालकता के कारण ही सूती कपड़े गर्मियों में पहनने के लिये सबसे आरामदायक होते हैं।
प्रश्न 6.
(18) लिनन तथा सूती कपड़े में क्या समानता है?
उत्तर-
लिनन तथा सूती कपड़े में निम्नलिखित समानताएँ हैं
- ये दोनों रेशे प्राकृतिक रेशे हैं। सूती रेशा कपास से बनता है तथा लिनन फलैक्स पौधे के तने से तैयार होता है।
- लिनन तथा सूती रेशे दोनों में पानी सोखने की क्षमता अधिक होती है।
- दोनों रेशे ताप के बढ़िया संचालक हैं।
- लिनन तथा सूती दोनों रेशे मज़बूत होते हैं। इनकी गीले होने पर मजबूती और भी बढ़ जाती है।
प्रश्न 7.
(19) लिनन के कपड़ों की विशेषताएँ बताओ।
अथवा
लिनन का प्रयोग तथा इसकी देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
सती कपडे की तरह लिनन को जलाते समय कागज़ के सड़ने जैसी गंध होती है तथा आग से बाहर निकालने पर अपने आप थोड़ी देर जलता रहता है। जलने के बाद स्लेटी रंग की राख बन जाती है। लिनन को मध्यम से तेज़ प्रैस से प्रैस किया जा सकता है। इसके रेशे मज़बूत तथा टिकाऊ होते हैं। इसलिये बिस्तरों की चादरें आदि बनाई जाती हैं। लिनन पर क्षार का प्रभाव कम होता है। इस रेशे में प्राकृतिक चमक होती है।
प्रश्न 8.
(20) लिनन के कपड़े कौन-सी ऋतु में पहने जाते हैं तथा क्यों? इनकी देखभाल कैसे करोगे?
उत्तर-
लिनन के कपड़े गर्मियों में ही पहने जाते हैं। क्योंकि इसके रेशों में पानी सोखने की क्षमता तथा ताप संचालकता अधिक होती है। जिससे ये गर्मियों में ठंडक पहुँचाते हैं। लिनन के कपड़ों की देखभाल अग्रलिखित ढंग से की जा सकती है
- ये रेशे मज़बूत होने के कारण रगड़ कर धोये जा सकते हैं। परन्तु इनको उबालना नहीं चाहिए क्योंकि गर्मी से खराब हो जाते हैं।
- लिनन के रेशों पर क्षार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस कारण किसी भी साबुन से धोए जा सकते हैं।
- इनको नमी पर ही प्रेस करना चाहिए।
- लिनन के रंग पक्के नहीं होते, इसलिए इन कपड़ों को छाँओं में सुखाना चाहिए।
- लिनन के कपड़े को कीड़ा बहुत जल्दी लगता है। इस कारण धोकर अच्छी तरह सुखाकर सूखे स्थान पर सम्भालना चाहिए।
प्रश्न 9.
(21) सूती तथा लिनन के अलावा और कौन-से प्राकृतिक रूप में मिलने वाले सैलूलोज़ रेशे हैं?
उत्तर-
सूती तथा लिनन के अतिरिक्त पटसन, नारियल के रेशे, कपोक, रेमी, जूट, पिन्ना तथा साइसल रेशे हैं जो प्राकृतिक रूप में प्राप्त होते हैं।
- पटसन- यह रेशा जूट के पौधे के तने से मिलता है। यह रेशा ज्यादा मज़बूत नहीं होता तथा इसमें प्राकृतिक चमक होती है। ये रेशे थोड़े खुरदरे होते हैं। यह आमतौर पर सजावटी सामान, थैले, बोरियाँ, मैट तथा गलीचे आदि के लिये प्रयोग किया जाता है। परन्तु आजकल इसमें थोड़ा सूती या लिनन के रेशे मिलाकर इसको पोशाकों के लिये प्रयोग किया जाता है।
- नारियल के रेशे – ये रेशे नारियल के बीज के छिलके से प्राप्त किये जाते हैं। गिरि तथा बाहरी छिलके के मध्य यह रेशे होते हैं। ये भूरे रंग के होते हैं तथा इनकी आमतौर पर रंगाई नहीं की जा सकती। यह आम तौर पर टाट, सोफों तथा गद्दों में भरने तथा जूतों के तले बनाने के काम आता है।
- कपोक-यह कपोक पौधे के बीजों के बालों से प्राप्त होता है। यह हल्का, नर्म तथा हवा में उड़ने वाला होता है। इस रेशे को अधिकतर तकियों, सोफों तथा गद्दों में भरने के लिये प्रयोग किया जाता है। यह गीला होने पर जल्दी सूख जाता है।
- रेमी-यह भी पौधे के तने से मिलने वाला रेशा है। इसको लिनन के स्थान पर प्रयोग किया जाता है। इसके रेशे लम्बे, मज़बूत, चमकदार तथा सफ़ेद रंग के होते हैं पर इनमें तनाव ज्यादा होता है।
- जूट-यह भी पौधे के तने से मिलने वाला रेशा है, परन्तु यह लिनन तथा पटसन से मज़बूत होता है। यह लम्बा, मज़बूत तथा भूरे रंग का रेशा है। साधारणतया रस्सियां, डोरियां तथा बढ़िया कपड़ा बनाने के लिये भी प्रयोग किया जाता है।
- पिन्ना-यह रेशा अनानास के पत्तों से मिलता है। यह सफ़ेद से क्रीम रंग का बारीक, चमकदार तथा मज़बूत रेशा है। इसको बैग या अन्य ऐसा सामान बनाने के लिये प्रयोग किया जाता है।
- साइसल-ये रेशे असेण नामक पौधे के पत्तों से मिलता है। इस रेशे को तेज़ रंगों में रंगाकर गलीचें, मैट, रस्सियां तथा ब्रश आदि बनाए जाते हैं।
प्रश्न 10.
(22) जानवरों से प्राप्त होने वाले मुख्य रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
जानवरों से प्राप्त होने वाले मुख्य रेशे ऊन तथा ऊन की विभिन्न किस्में जैसे-मैरीनो, लामा, मुहीर, पशमीना तथा कश्मीर ऊन। सिल्क जो रेशम के कीड़े की लार से प्राप्त होता है। फर जो मिंक तथा अंगोरा खरगोशों के बालों से प्राप्त होती है।
प्रश्न 11.
(23) जानवरों के रेशे जानवरों के किस भाग से प्राप्त किये जाते हैं?
उत्तर-
जानवरों के रेशे जानवरों के विभिन्न भागों से प्राप्त किये जाते हैं जैसे निम्नलिखित बताया गया है —
रेशे | जानवरों के शरीर का भाग जहाँ से रेशे प्राप्त किये जाते हैं |
(1) ऊन तथा इसकी किस्में जैसे मैरीनो, मुहेर, लामा, पशमीना तथा कश्मीयर ऊन। | भेड़ के बालों से तथा विशेष किस्म की ऊन विशेष किस्म की भेड़ों, अंगोरा तथा कश्मीरी बकरी, ऊंट, लामा तथा खरगोश के बालों से मिलती है। |
(2) सिल्क | रेशम के कीड़े की लार से प्राप्त होती है। |
(3) फर | मिंक तथा अंगोरा जानवरों की चमड़ी के बालों से। |
प्रश्न 12.
(24) रेशम किस जानवर से तथा कैसे प्राप्त किया जाता है?
उत्तर-
रेशम जानवर वर्ग का रेशा है। यह रेशम के कीड़े की लार से बनता है। यह प्रोटीन युक्त रेशा है।
रेशम का कीड़ा जो कि शहतूत के पत्तों पर पलता है तथा अपने मुँह में से एक लारसी निकालता है जो हवा के सम्पर्क में आकर जम जाती है तथा रेशे का रूप धारण कर लेती है। यह रेशा लारवे के आस-पास लिपट कर एक खोल सा बना लेता है। इसको कोका कहा जाता है। लारवा आठ सप्ताह का होकर लार निकालने लगता है तथा अपने खोल में ही बंद हो जाता है। इस कोकून में लगभग 1800-3600 मीटर लम्बा धागा होता है। धागे का रंग कभी-कभी सफ़ेद पीला तथा कभी-कभी हरा होता है। लारवे के बढ़कर बाहर निकलने से पहले ही इन कोकूनों को इकट्ठे करके पानी में उबाल लिया जाता है, इससे रेशे पर लगी गंद उतर जाती है तथा लारवा अन्दर मर जाता है। फिर रेशे को उतारा जाता है। यह रेशा बहत नर्म होता है। इसलिये 3 से 6 रेशे इकट्ठे करके लपेट कर लच्छियां बनाई जाती हैं। रेशों की संख्या धागे की मोटाई के अनुसार ली जाती है। फिर इस धागे से कपडा तैयार किया जाता है। कीड़े पालने तथा सिल्क तैयार करने को मैरी कल्चर कहा जाता है।
प्रश्न 13.
(25) रेशों की प्राप्ति के साधन के अनुसार उनका वर्गीकरण करो।
अथवा
तन्तुओं का विस्तृत वर्गीकरण करें।
उत्तर-
साधनों के आधार पर रेशों की प्राप्ति का वर्गीकरण निम्नलिखित दिया है —
प्रश्न 14.
(26) रेशम को किन गुणों के कारण कपड़ों की रानी माना जाता है?
उत्तर-
रेशम प्राकृतिक रेशों में सबसे लम्बा रेशा है। यह रेशा मज़बूत तथा लचकदार होता है। परन्तु गीला हो कर कमजोर हो जाता है। इस रेशे में चमक सबसे अधिक होती है जिससे देखने को सुन्दर लगता है। इसीलिये इसको कपड़ों की रानी कहा जाता है।
प्रश्न 15.
(27) रेशम (सिल्क) की विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
सिल्क की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- बनावट-खुर्दबीन के नीचे इसके रेशे चमकदार तथा दोहरे धागे के बने दिखाई देते हैं जिस पर स्थान-स्थान पर गूंद के धब्बे लगे होते हैं।
- लम्बाई-यह प्राकृतिक रेशों में से सबसे लम्बा रेशा है। इस रेशे की लम्बाई 750 से 1100 मीटर तक होती है।
- चमक-इस रेशे की सबसे अधिक चमक होती है।
- मज़बूती-प्राकृतिक रूप में मिलने वाले सब रेशों से यह मज़बूत होता है पर गीला होकर कमजोर हो जाता है।
- रंग-इसका रंग सफ़ेद, पीला या स्लेटी होता है।
- लचकीलापन-यह रेशा चमकदार होता है इसलिये इसमें बल कम पड़ते हैं।
- पानी सोखने की क्षमता- यह रेशा आसानी से पानी सोख लेता है तथा जल्दी ही सूख जाता है।
- ताप संचालकता-इस में से ताप निकल नहीं सकता इसलिये यह ताप का संचालक नहीं है। इस कारण गर्मियों में नहीं पहना जाता।
- अम्ल का प्रभाव-हल्के अम्ल का कोई बुरा प्रभाव नहीं होता।
- क्षार का प्रभाव-हल्की क्षार भी इस रेशे को खराब कर देती है इसलिये क्लोरीन युक्त रंगकाट नहीं प्रयोग करनी चाहिए।
- रंगाई-इस रेशे पर रंग जल्दी तथा पक्का चढ़ता है। इसलिये हर प्रकार के रंग से रंगा जा सकता है।
- ताप से-सिल्क के जलने पर बाल या पंख सड़ने की गन्ध आती है। आग से बाहर निकालने पर अपने आप बुझ जाती है तथा सड़ने के पश्चात् इक्का-दुक्का काला मनका सा बन जाता है। इसलिये गर्म पानी से धोने, धूप में सुखाने तथा गर्म प्रेस से प्रेस करने से खराब हो जाता है।
प्रश्न 16.
(28) रेशम तथा ऊन दोनों ही ताप के कुचालक हैं परन्तु ऊन अधिक गर्म क्यों होती है?
उत्तर-
ऊन तथा सिल्क दोनों ही प्राकृतिक तथा जानवरों से प्राप्त रेशे हैं इसके अतिरिक्त दोनों ही ताप के कुचालक हैं तथा दोनों का प्रयोग गर्मियों में किया जाता है पर फिर भी सिल्क से ऊन ज्यादा गर्म है क्योंकि सिल्क का कपड़ा बारीक तथा ऊपरी परत मुलायम होने के कारण बाहर वाली ठण्ड से ठण्डा हो जाता है पर ऊन का कपड़ा मोटा तथा खुरदरा होने के कारण ठण्डा नहीं होता तथा शरीर की गर्मी बाहर नहीं आने देता। इस कारण ऊन सिल्क से ज्यादा गर्म होती है।
प्रश्न 17.
(29) ऊन में ऐसा कौन-सा तत्त्व होता है जो दूसरे रेशों में नहीं होता तथा इसकी विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
ऊन में एक विशेष विशेषता है जो बाकी रेशों में नहीं होती। ऊन के रेशे में लहरिया होता है जिसको क्रिंप (Crimp) कहा जाता है। लहरिये की संख्या रेशे की मज़बूती तथा आकार पर निर्भर करती है। रेशा जितना बारीक हो उतना ही मज़बूत होता है। इस विशेषता के कारण रेशे एक दूसरे से जुड़ जाते हैं जिसको फैलटिंग (Felting) कहा जाता है। इस विशेषता के कारण इससे नमदा, कंबल, गलीचे आदि बनते हैं। ऊन की विशेषताएँ निम्नलिखित दी हैं
- खुर्दबीन के नीचे इस रेशे की परतें एक दूसरे पर चढ़ी दिखाई देती हैं। जितनी ये परतें सघन होंगी उतनी ही ऊन गर्म होगी। ।
- इस रेशे की लम्बाई भी कम है लगभग 1 से 8 इंच तक।
- इन रेशों में कोई चमक नहीं होती।
- यह रेशा काफ़ी लचकदार होता है इसलिये ऊनी कपड़ों में बल नहीं पड़ते।
- ऊन के रेशे में पानी सोखने की क्षमता बहुत होती है। परन्तु गीले होकर ये रेशे कमजोर हो जाते हैं।
- ये रेशे ताप के कुचालक हैं इसलिये ही सर्दियों में प्रयोग किये जाते हैं। ये शरीर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देते।
- इस रेशे पर हल्के अम्ल का कोई बुरा प्रभाव नहीं होता। परन्तु क्षार से रेशा खराब हो जाता है। इसलिये ऊनी कपड़े धोने के लिये सोडा नहीं प्रयोग करना चाहिए।
- ऊनी रेशे को कीड़ा बहुत जल्दी लगता है।
- ताप से ही ये रेशे खराब हो जाते हैं इसलिये कभी भी सीधा प्रैस नहीं करना चाहिए बल्कि मलमल का गीला कपड़ा बिछाकर हल्की प्रैस करनी चाहिए।
- तेज़ाब वाले रंगों का प्रयोग करना चाहिए पर रंगकाटों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 18.
(30) रेशम तथा ऊन के गुणों में समानता क्यों है?
उत्तर-
सिल्क तथा ऊन दोनों रेशे प्राकृतिक तथा जानवरों से प्राप्त होते हैं। दोनों रेशे प्रोटीन युक्त तथा इनमें क्राबोहाइड्रेट, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन होते हैं। इसलिये इनमें कई समानताएं हैं जैसे कि इन का प्रयोग सर्दियों में ही किया जाता है। दोनों ही ताप के कुचालक हैं। इन रेशों को कीड़ा जल्दी लग जाता है। दोनों की बहुत सम्भाल करनी पड़ती है। इस के अतिरिक्त इन पर ताप का बुरा प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 19.
(31) सूती तथा लिनन के रेशों में समानता क्यों है?
अथवा
सूती तथा लिनन के रेशों के गुणों में क्या समानता है?
उत्तर-
ये दोनों रेशे प्राकृतिक तथा पौधों से मिलते हैं। सूती रेशा कपास की रूई से बनता है तथा लिनन का रेशा फलैक्स पौधे के तने तथा शाखाओं से प्राप्त होते हैं। इन दोनों रेशों में सैलूलोज अधिक होता है। इस कारण इनमें काफ़ी समानता है। जैसे दोनों रेशों की लम्बाई छोटी होती है, ये रेशे मज़बूत होते हैं तथा पानी सोखने की क्षमता भी अधिक होती है। ये दोनों रेशे ही ताप के संचालक हैं जिस कारण गर्मियों में पहनने के लिये आरामदायक होते हैं।
प्रश्न 20.
(32) ऊनी कपड़ों की देखभाल कैसे होती है?
अथवा
ऊल की देखभाल के बारे में विस्तार से बताएं।
उत्तर-
ऊनी रेशे कमजोर होते हैं तथा गीले होकर और भी कमजोर हो जाते हैं। इसलिये बहुत ध्यान से धोना चाहिए। गीला होने से कपड़ा भारा हो जाता है तथा इनको लटका कर नहीं सुखाना चाहिए क्योंकि भारी होने के कारण इनका आकार बिगड़ जाता है। ऊन के कपड़ों को ज्यादा देर तक भिगो कर नहीं रखना चाहिए तथा न ही रगड़ कर धोना चाहिए। इसलिये पानी के तापमान का भी ध्यान रखना आवश्यक है। पानी न ज्यादा गर्म तथा न ही ठण्डा होना चाहिए। ऊनी कपड़े को सुखाने के लिये अखबार या कागज़ पर धोने से पहले कपड़े के आकार का नक्शा बनाकर समतल स्थान पर रख कर सुखाना चाहिए। यदि हो सके तो ड्राइक्लीन करवा लेना चाहिए।
ऊनी कपड़े को प्रैस भी बहुत ध्यान से करना चाहिए। कपड़े पर सीधी प्रैस नहीं करनी चाहिए। नमी वाला सूती कपड़ा बिछाकर हल्की गर्म प्रैस करनी चाहिए। इन कपड़ों को अच्छी प्रकार से सुखाकर सूखे स्थान पर सम्भाल कर रखना चाहिए क्योंकि ऊनी रेशे को कीड़ा जल्दी लग जाता है।
प्रश्न 21.
(33) ऐसबेसटास कैसा रेशा है?
उत्तर-
यह प्राकृतिक रूप में मिलने वाला रेशा है। यह कच्ची धातु या खनिज पदार्थ से प्राप्त होता है। यह आग में रखने पर सड़ता नहीं। इस पर न ही तेज़ाबी तथा क्षार का कोई प्रभाव पड़ता है। आग बुझाने के लिये प्रयोग किये जाने वाले कपड़े भी इस रेशे से बनाये जाते हैं। साधारण पहनने वाले कपड़े इससे नहीं बनाए जाते।
प्रश्न 22.
(34) ऐसी रेयॉन का नाम बताएँ जो थर्मोप्लास्टिक भी है?
उत्तर-
ऐसिटेट रेयन के रेशे थर्मोप्लास्टिक रेशों से मेल खाते हैं। ये रेशे देखने को नर्म तथा चमकदार होते हैं तथा आम तौर पर घरेलू पोशाकों तथा वस्त्र बनाने के काम आते हैं।
प्रश्न 23.
(35) कृत्रिम ढंग से रेशा कैसे बनाया जाता है?
उत्तर-
कृत्रिम ढंग से रेशा तैयार करने के लिये रासायनिक पदार्थों को नियत स्थितियों में क्रिया करके रेशे बनाए जाते हैं, फिर बारीक छेदों वाली छाननी में से निकाला जाता है। यह भाग हवा के सम्पर्क में आकर रेशों का रूप धारण कर लेते हैं।
प्रश्न 24.
(36) थर्मोप्लास्टिक रेशों के मुख्य गुण बताएँ।
उत्तर-
थर्मोप्लास्टिक रेशे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन तत्त्वों से मिलकर बनता है। इस रेशे की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- ये फिलामैंट रेशे होते हैं। इनकी लम्बाई इच्छा अनुसार रखी जा सकती है।
- ये रेशे मज़बूत तथा चमकदार होते हैं तथा इसके कपड़े टिकाऊ होते हैं।
- इन रेशों की पानी सोखने की क्षमता बहुत कम होती है। इसलिये ये जल्दी सख जाते हैं। इस कारण यह कपड़े पसीना भी नहीं सोखते।
- ये रेशे ताप के कुचालक होते हैं इसलिये गर्मियों में नहीं प्रयोग किये जाते।
- थर्मोप्लास्टिक रेशों पर क्षार का कोई प्रभाव नहीं होता जबकि तेज़ाब में यह रेशे घुल जाते हैं।
- थर्मोप्लास्टिक रेशे ताप से पिघल जाते हैं तथा जलने पर प्लास्टिक के सड़ने जैसी गन्ध आती है। यह ज्यादा गर्मी नहीं बर्दाश्त कर सकते इसलिये कम गर्म प्रेस से प्रेस करने चाहिएं।
- इन रेशों को कोई फंगस या टिडी आदि नहीं लगती।
प्रश्न 25.
(37) थर्मोप्लास्टिक रेशों का प्रयोग दिन प्रतिदिन क्यों.बढ़ रहा है?
उत्तर-
थर्मोप्लास्टिक रेशे मज़बूत, लचकदार, टिकाऊ, धोने तथा सम्भालने में आसान होते हैं । इसलिये इसको जुराबें, खेलों में पहनने वाले कपड़े तथा आम पहनने वाले कपड़ों के लिये प्रयोग किया जाता है। मज़बूती के कारण इसकी रस्सियां, डोरियां आदि भी बनाई जाती हैं। इसको दूसरे रेशों से मिलाकर भी प्रयोग किया जाता है। इस रेशे की मजबूती कारण ही इसका प्रयोग दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
प्रश्न 26.
(38) मिश्रित रेशे बनाने के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
मिश्रित रेशे बनाने से उनकी मज़बूती तथा टिकाऊपन बढ़ जाता है। इससे इनकी सम्भाल भी आसान हो जाती है। मिश्रित रेशे सस्ते भी होते हैं तथा दाग भी कम लगते हैं। इनके रंग भी पक्के होते हैं तथा देखने में भी सुन्दर लगते हैं।
प्रश्न 27.
(39) कृत्रिम कपड़ों को सम्भालना आसान क्यों है?
उत्तर-
कृत्रिम कपड़ों की देखभाल तथा सम्भाल आसान होती है क्योंकि यह धोने आसान होते हैं। गर्म पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती। इनके रंग पक्के होने के कारण धोने से या धूप से खराब नहीं होते। प्रैस की भी ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ती। टिड्डियों, कीड़ों या फंगसों द्वारा कोई हानि नहीं होती क्योंकि यह रसायनों से बने होते हैं। इसलिये सम्भालने भी आसान हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
(40) रेशे से कपड़ा बनाने के लिये कौन-कौन से मूल गुण होने चाहिएं?
अथवा
रेशे से कपड़ा बनाने के लिए मूल गुणों का वर्णन करो।
उत्तर-
प्रकृति में अनेक प्रकार के रेशे मिलते हैं, परन्तु रेशों से कपड़ा बनाने के लिये इनमें कुछ मूल गुण होने आवश्यक हैं तभी इन रेशों से कपड़ा बनाया जा सकता है। ये मूल गुण निम्नलिखित हैं
- रेशे के रूप में होना (Staple)
- मज़बूती (Strength/Tenacity)
- लचकीलापन (Elasticity/Flexibility)
- समरूपता (Uniformity)
- जुड़ने की शक्ति (Spinning Quality/Cohesiveness)।
1. रेशे के रूप में होना (स्टेपल) – रेशे स्टेपल या फिलामैंट दो प्रकार के हो सकते हैं। स्टेपल से अभिप्राय है कि रेशे से कपड़ा बनाने के लिये उन की विशेष लम्बाई तथा व्यास का होना आवश्यक है तभी उनका संतोषजनक प्रयोग हो सकता है। व्यास की तुलना में रेशों की लम्बाई बहुत ज्यादा होती है जो कम-से-कम 1 : 100 के अनुपात में होनी चाहिए। यदि रेशों की लम्बाई आधा इंच से कम हो तो वह धागा बनाने के लिये इस्तेमाल नहीं किये जा सकते। मनुष्य द्वारा तैयार किये तथा सिल्क के रेशों की लम्बाई तो बहुत होती है, परन्तु ऊन तथा कपास के रेशों की लम्बाई कम होती है परन्तु इनके रेशों में आपस में जुड़कर काते जाने का गुण बहुत ज्यादा होता है जो कपड़ा बनाने के लिये लाभकारी है। कपास के छोटे रेशे जिनसे धागा नहीं बनाया जा सकता उन पर रासायनिक पदार्थों की प्रक्रिया से रेशे का पुनः निर्माण करके रेयोन का रेशा बनाया जाता है। इसलिये ही रेयॉन के गुण सूती कपड़े से काफ़ी मिलते हैं।
2. मज़बूती-रेशे से कपड़ा बनाना एक लम्बी प्रक्रिया है। रेशे इतने मज़बूत होने चाहिएं कि कताई, सफ़ाई तथा बुनाई समय पड़ रही खींच का मुकाबला कर सकें तथा टिकाऊ कपड़े के रूप में बदले जा सकें। रेशों की मज़बूती तथा वातावरण की नमी का प्रभाव पड़ता है। साधारणतया प्राकृतिक रूप में पौधों से प्राप्त होने वाले रेशे जब गीले हों तो ज्यादा मज़बूत होते हैं, जबकि दूसरे रेशे जैसे रेयोन तथा ऊन, सिल्क आदि गीले होने पर कमजोर हो जाते हैं।
3. लचकीलापन रेशों में टूटे बिना मुड़ सकने का गुण होना चाहिए ताकि इनको एक-दूसरे पर लपेट कर बल देकर धागा बनाया जा सके, जिससे कि कपड़ा बनाया जाता है। यह गुण कपड़े को टिकाऊ बनाने तथा पुन: पुरानी सूरत तथा आकार कायम रखने में मदद करता है। जिन रेशों में लचक अधिक होती है। उनमें बल कम पड़ते हैं।
4. समरूपता-रेशों की लम्बाई तथा व्यास में समरूपता होने से उनसे साफ़ तथा समरूप धागा बनाया जा सकता है जिससे कपड़ा भी मुलायम तथा साफ़ बनता है।
5. जुड़ने की शक्ति – अच्छी कताई के लिये रेशों में आपस में जुड़ सकने की शक्ति का होना आवश्यक है ताकि उनकी कताई हो सके। रेशों की जुड़ने की शक्ति चार बातों पर निर्भर करती है
- रेशे की लम्बाई
- रेशे की बारीकी
- रेशे की सतह की किस्म
- लचकीलापन।
रेशे में जितनी जुड़ने की शक्ति ज्यादा होगी उतनी ही कताई उपरान्त धागे की बारीकी तथा मज़बूती होगी तथा यही गुण कपड़े में भी आयेंगे।
प्रश्न 2.
(41) गर्मियों में पहनने के लिये किस किस्म के रेशों से बने वस्त्र ठीक रहते हैं ? कृत्रिम ढंग से बनाए रेशों से बने हुए वस्त्र गर्मियों में क्यों नहीं पहने जाते?
उत्तर-
गर्मियों में पहनने के लिये सूती तथा लिनन रेशे के कपड़े ठीक रहते हैं क्योंकि इनमें पानी सोखने की क्षमता अधिक होती है जिससे यह पसीना सोख लेते हैं – तथा ताप के संचालक होने के कारण पसीने को सूखने में मदद करते हैं तथा ठण्डे रहते हैं। इसलिये यह कपड़े गर्मियों में अधिक आरामदायक होते हैं। ये रेशे मज़बूत होते हैं पर गीले होने पर और भी मज़बूत हो जाते हैं।
सूती तथा लिनन के कपड़ों के विपरीत कृत्रिम रेशे गर्मियों में नहीं पहने जाते क्योंकि ये पानी नहीं सोखते तथा पसीना आने पर गीले हो जाते हैं, परन्तु पसीना सूखता नहीं।
ताप के कुचालक होने के कारण शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकल सकती। इसलिये इनमें अधिक गर्मी लगती है। इसलिये ये कपड़े गर्मियों में नहीं पहने जाते।
प्रश्न 3.
( 42 ) (i) प्रकृति से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक रेशे की विशेषताएँ, रचना और देखभाल के बारे में बताओ।
(ii) सूती रेशे की विशेषताएँ तथा देखभाल के बारे में विस्तार में बतायें।
उत्तर-
प्राकृतिक रूप में पौधों, जानवरों तथा खनिज पदार्थों या कच्ची धातु से प्राप्त होने वाले रेशे प्राकृतिक रेशे हैं। इनको प्राप्ति के साधन के आधार पर तीन वर्गों में बांटा जाता है
(क) पौधों से प्राप्त होने वाले रेशे-ये पौधों के बीजों के बालों के रूप में कपास तथा तनों के रेशों के रूप में जूट, पटसन आदि हैं।
(ख) जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे-जानवरों के बालों के रूप में ऊन तथा रेशम के कीड़ों से रेशम प्राप्त होता है।
(ग) धातु से प्राप्त होने वाले रेशे-कच्ची धातु का खनिज पदार्थों के रूप में ऐसबैस्टास प्राकृतिक रूप में धरती की सतह से प्राप्त होने वाला रेशा है।
प्राकृतिक रेशे-ये रेशे विभिन्न पौधों से प्राप्त किये जाते हैं। पौधों से मिलने वाले ये रेशे जैसे कपास (सूती), लिनन, जूट तथा नारियल के रेशे मनुष्य के लिये बहुत लाभकारी हैं। ये पौधों के भिन्न-भिन्न भागों जैसे-बीज, तने, पत्ते या फल से प्राप्त होते हैं।
सूती रेशे-यह रेशा पुराने समय से भारत में उगाया जाता है। सूती रेशा कपास के पौधे के बीजों के बाल हैं। कपास का पौधा 90-120 सेंटीमीटर ऊंचा होता है जो गर्म, नम तथा काली मिट्टी वाली ज़मीन में उगाया जाता है। इसकी डोडी जो फूल में बदल जाती है जहाँ बाद में टींडा बन जाता है। टींडा पक कर फूट जाता है। जिससे रूई (कपास) बाहर निकल आती है। रूई ही वास्तव में कपास के पौधे के फल हैं जिससे बीज तथा कपास (बीजों के बाल) अलग-अलग कर लिये जाते हैं। कपास की कंघी करके छोटे तथा लम्बे रेशे अलग-अलग कर लिये जाते हैं। लम्बे रेशों से मशीनों से धागा बनाकर कपड़ा बना लिया जाता है। पहले घरों में ही चरखे से धागा बनाया जाता था जिससे खद्दर या खेस आदि भी घर ही बनाये जाते हैं।
रचना-सूती रेशे में 87-90% सैलूलोज, 5 से 8% पानी तथा शेष अशुद्धियाँ होती हैं। विशेषताएँ
- बनावट-कपास का रेशा खुर्दबीन से देखने पर नाली की तरह दिखाई देता है। जिसमें रस होता है जब कपास पकती है तो यह रस सूख जाता है तथा रेशा चपटा, मुड़े हुए रिबन की तरह लगता है।
- लम्बाई-यह छोटा रेशा है इसकी लम्बाई इंच से दो इंच तक हो सकती है।
- रंग-साधारणतया रंग सफ़ेद होता है पर कपास की किस्म अनुसार इसका रंग क्रीम या हल्का भूरा भी हो सकता है।
- चमक-इसमें प्राकृतिक चमक नहीं होती पर रासायनिक प्रक्रिया जिसको मीराइजेशन कहते हैं, से इसकी चमक सुधारी जा सकती है।
- मजबूती-यह एक मज़बूत रेशा है इसलिये काफ़ी रगड़ सह सकता है। गीले होने से मज़बूती और बढ़ जाती है मर्सीराइजेशन से पक्के तौर पर मज़बूत हो जाता है।
- लचकीलापन-इनमें लचक नहीं होती इसलिये सूती कपड़े पर बल जल्दी पड़ जाते हैं।
- पानी सोखने की क्षमता-इनकी नमी या पानी सोखने की शक्ति अच्छी होती है जिस कारण पसीना सोख सकते हैं इसलिये इनको गर्मियों में पहना जाता है। इस गुण कारण ही सूती रेशे के तौलिये बनाए जाते हैं।
- ताप चालकता-ये ताप के अच्छे संचालक होते हैं। गर्मी इनमें से गुज़र सकती है इसलिये ही ये पसीने को सूखने में मदद करते हैं। सूती रेशों की अच्छी पानी सोखने की क्षमता तथा अच्छी ताप सुचालकता के कारण भी ये ठण्डे रेशे हैं तथा गर्मियों में पहनने के लिये सब से अधिक उचित तथा उपयुक्त हैं।
- रसायनों का प्रभाव-क्षार का इन पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है परन्तु हल्के या गाढ़े तेज़ाब से खराब हो जाते हैं।
- रंगाई-इनको रंगना आसान है परन्तु धूप तथा धोने से इनके रंग खराब हो जाते हैं।
- फंगस का प्रभाव-नमी वाले कपड़ों को फंगस बहुत लग जाती है तथा खराब कर देती है परन्तु कीड़ा नहीं लगता।
- अन्य विशेषताएँ-इन पर गर्मी का प्रभाव कम होता है जिससे ये कपड़े उबाले भी जा सकते हैं तथा धूप में सुखाये भी जा सकते हैं। परन्तु रंगदार कपड़ों का रंग खराब हो जाता है जिस कारण उनको न तो उबाला जाता है तथा न ही धूप में सुखाना चाहिए।
- ताप का प्रभाव-सूती रेशा आग जल्दी पकड़ता है तथा पीली लाट से जलता है। जलते समय कागज़ के जलने जैसी गन्ध आती है। आग से दूर करने पर भी अपने आप जलता रहता है। जलने के उपरान्त स्लेटी रंग की राख बनती है।
देखभाल-
- सफ़ेद सूती कपड़ों को गर्म पानी में या उबाल कर तथा रगड़ कर धोया जा सकता है। रंगदार कपड़ों को ठण्डे पानी में धोना चाहिए तथा छाया में ही सुखाना चाहिए, परन्तु सफ़ेद कपड़ों को धूप में सुखाने से उनमें और सफ़ेदी आती है।
- क्षार का बुरा प्रभाव नहीं होता इसलिये किसी भी प्रकार के साबुन से धोये जा सकते हैं।
- इनको नमी में प्रैस करना चाहिए। मध्यम तथा तेज़ गर्म प्रैस से प्रैस किया जा सकता है।
- रंगकाट का इन पर बुरा प्रभाव नहीं होता विशेषतया क्लोरीन वाले रंगकाट का तेज़ रंगकाट कपड़े को कमजोर कर देते हैं।
इनको कभी भी नमी में नहीं सम्भालना चाहिए क्योंकि इनको फंगस जल्दी लग जाती है।
लिनन-यह फलैक्स पौधे के तने तथा शाखाओं से प्राप्त होने वाला रेशा है। यह पौधा कम गर्म, परन्तु ज्यादा नमीदार मौसम में होता है। इन पौधों की लम्बाई 10 इंच से 40 इंच तक हो सकती है। यह रेशा गूंद से तने के साथ जुड़ा होता है। इन रेशों को पौधों से सही रूप में उतारने के लिये पौधों के तनों को औस, रसायन या पानी में रखकर जैसे नदी या तालाब या रसायनों से प्रक्रिया करके अपनाया जाता है जिसको गलाना (Retting) कहा जाता है। गलाने से गूंद सा गलकर अलग हो जाता है तथा रेशे ढीले पड़ जाते हैं तथा अलग हो जाते हैं।
रचना- इसमें 70-85 प्रतिशत सैलूलोज होता है तथा शेष अशुद्धियाँ होती हैं। विशेषताएँ
- बनावट-लिनन का रेशा खुर्दबीन के नीचे लम्बा, सीधा एक समान, चमकदार तथा चिकना दिखाई देता है जिसमें बांस जैसी थोड़ीथोड़ी दूरी पर गांठें होती हैं।
- लम्बाई-यह भी छोटा रेशा ही है तथा रेशे की लम्बाई 6-40 इंच तक हो सकती है। 12 इंच से छोटे रेशे को कपड़े की बुनाई के लिये इस्तेमाल नहीं किया जाता।
- रंग-इसका रंग फीके पीले से फीका भूरा हो सकता है।
- चमक-इसमें सूती रेशे से ज्यादा चमक होती है, परन्तु सिल्क से थोड़ी कम।
- लचकीलापन-यह सूती रेशे से भी कम लचकीले होते हैं इसलिये बल और ज्यादा पड़ते हैं।
- मज़बूती-यह रेशा सूती रेशे से भी अधिक मज़बूत होता है। गीला होकर इसकी मज़बूती और भी बढ़ जाती है।
- पानी सोखने की क्षमता-पानी सोखने की शक्ति सूती रेशे से भी ज्यादा होती है।
- ताप चालकता-सूती रेशों से भी अधिक ताप के संचालक होते हैं इसलिये गर्मियों में सूती रेशे से अधिक ठण्डक पहुँचाते हैं।
- रसायनों का प्रभाव-ये तेज़ तेज़ाब से खराब हो जाते हैं जबकि सूती कपड़े की तरह क्षार का प्रभाव कम होता है।
- रंगाई-सूती कपड़े की तरह सीधे रंगों से रंगे जाते हैं तथा रंगाई सूती कपड़े से मुश्किल होती है परन्तु धोने पर धूप में सुखाते समय रंग जल्दी फीके हो जाते हैं। रंग पक्के नहीं होते।
- फंगस तथा कीड़े का प्रभाव-इसको कीड़ा बहुत जल्दी लग जाता है।
- अन्य विशेषताएँ-सूती कपड़े की तरह ही इसको जलाते समय कागज़ के जलने जैसी गन्ध आती है तथा आग से बाहर निकालने पर अपने आप थोड़ी देर जलता रहता है। जलने के बाद स्लेटी रंग की राख बनती है। मध्यम तथा तेज़ प्रैस से प्रैस किया जा सकता है। लिनन की कई विशेषताएँ सूती कपड़े से मेल खाती हैं पर ज्यादा गर्मी से ये रेशे खराब हो जाते हैं इसलिये
इनको उबालना नहीं चाहिए। ये रेशे मज़बूत होने के कारण इनको भी रगड़ कर धोया जा सकता है।
देखभाल-इन रेशों पर क्षार का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। इस कारण किसी भी प्रकार के साबुन से धोये जा सकते हैं। इनको सूती कपड़ों की तरह नमी में प्रेस करना चाहिए। ये मज़बूत होते हैं इसलिये रगड़ कर धोया जा सकता है। गर्मी से खराब होते हैं इसलिये उबालना नहीं चाहिए। इनमें रंग पक्के नहीं होते इसलिये छाया में ही सुखाना चाहिए। इनको कीड़ा बहुत जल्दी लगता है। इसलिये अच्छी तरह धोकर सुखाकर साफ़ जगह पर रखना चाहिए।
प्रश्न 4.
(43) लिनन की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।
प्रश्न 5.
(44) जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-से हैं? इनकी रचना और आम विशेषताओं के बारे में बताओ।
उत्तर-
जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशों में प्रोटीन का अंश अधिक होता है जिस कारण इनको प्रोटीन रेशे कहते हैं। इनके कई गुण एक समान होते हैं तथा अधिकतर जानवरों के बालों से प्राप्त किये जाते हैं।
सिल्क (रेशम)- यह जानवरों से मिलने वाला प्रोटीन युक्त रेशा है जो सिल्क के कीड़े के लारवे की लार से बनता है।
रचना-ये रेशे प्रोटीन से बने होते हैं जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन तत्त्व होते हैं।
(क) विशेषताएँ
- बनावट-खुर्दबीन के नीचे रेशम के रेशे चमकदार, दोहरे धागे के बने हुए दिखाई देते हैं जिन पर स्थान-स्थान पर गूंद के धब्बे लगे होते हैं।
(टसर सिल्क)
- लम्बाई-प्राकृतिक रूप में मिलने वाला एक ही फिलामैंट रेशा है। रेशे की लम्बाई 750 से 1100 मीटर तक हो सकती है।
- रंग-इसका रंग क्रीम से भूरा या स्लेटी-सा हो सकता है।
- चमक-इन रेशों में सबसे अधिक चमक होती है। इसलिये सिल्क को कपड़ों . की रानी कहा जाता है।
- मजबूती-प्राकृतिक रूप में मिलने वाले सब रेशों से मजबूत होता है, परन्तु गीला होने पर इनकी मज़बूती घटती है।
- लचकीलापन-लचक अच्छी होती है। इसलिये ही बल कम पड़ते हैं।
- पानी सोखने की क्षमता-आसानी से पानी सोख लेती है तथा अनुभव भी नहीं होता कि कपड़ा गीला है। सुखाने पर कपड़ा बराबर सूखता है।
- ताप चालकता-ऊन की तरह ताप के अच्छे चालक नहीं जिस कारण इनको सर्दियों में पहना जाता है। इनकी सतह मुलायम होने के कारण ऊन जितने गर्म नहीं होते।
- रसायनों का प्रभाव-ऊन की तरह हल्के तेज़ाब द्वारा खराब नहीं होते, परन्तु हल्की क्षार भी इन पर बुरा प्रभाव डालती है। क्लोरीन युक्त रंगकाटों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- रंगाई-इनको रंग जल्दी तथा पक्के चढ़ते हैं जो धूप तथा धोने से भी खराब नहीं होते। इनको हर प्रकार के रंग से रंगा जा सकता है।
- ताप का प्रभाव-सिल्क के जलते समय चर-चर की आवाज़ आती है तथा पंखों या बालों के जलने जैसी गन्ध आती है। आग से बाहर निकालने पर अपने आप बुझ जाती है। जलने के उपरान्त इक्का-दुक्का काला मनका बनता है। धूप में सुखाने से या गर्म पानी से धोने से तथा गर्म प्रेस करने से कपड़ा कमजोर हो जाता है। चमक तथा रंग भी खराब हो जाते हैं।
- अन्य विशेषताएँ-गीले होकर कपड़ा कमज़ोर होता है इसलिये रगड़ने से फट सकता है।
ऊन-रचना-ऊन का मुख्य तत्त्व किरेटिन (Keratin) नामक प्रोटीन है जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन के अतिरिक्त सल्फर भी होती है।
Home Science Guide for Class 10 PSEB रेशों का वर्गीकरण Important Questions and Answers
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
छोटे रेशों (स्टेपल) की लम्बाई कितनी होती है?
उत्तर-
1/4 से 18 इंच।
प्रश्न 2.
लम्बे (फिलामेंट) रेशों की लम्बाई कितनी होती है?
उत्तर-
मीटरों में होती है।
प्रश्न 3.
छोटे रेशों की उदाहरण दें।
उत्तर-
लगभग सारे प्राकृतिक रेशे।
प्रश्न 4.
रेशम कैसा रेशा है?
उत्तर-
लम्बा रेशा।
प्रश्न 5.
बनावटी फिलामेंट रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
नाईलोन, पॉलिएस्टर।
प्रश्न 6.
दो प्राकृतिक रेशों की उदाहरण दें।
उत्तर-
सन्, पटसन, कपास।
प्रश्न 7.
धातु से बने रेशे की उदाहरण दें।
उत्तर-
गोटा, ज़री।
प्रश्न 8.
थर्मोप्लासटिक रेशों की उदाहरणें।
उत्तर-
नायलान, पोलिस्टर, ऐसीटेट।
प्रश्न 9.
कैशमीलोन कैसा रेशा है?
उत्तर-
यह मिश्रित रेशा है।
प्रश्न 10.
प्रोटीन वाला रेशा कौन-सा है?
उत्तर-
ऊन, सिल्क।
प्रश्न 11.
सूती रेशे के कितने प्रतिशत सैलूलोज़ होता है?
उत्तर-
87-90%.
प्रश्न 12.
लिनन कहां से प्राप्त होता है?
उत्तर-
फलैक्स पौधों के तने से।
प्रश्न 13.
किन्हीं दो वनस्पतिक तंतुओं के नाम लिखें।
उत्तर-
सूती, लिनन, नारियल के रेशे।
प्रश्न 14.
लम्बाई और चौड़ाई में चलने वाले धागे का नाम लिखिए।
अथवा
ताना तथा बाना क्या होता है?
उत्तर-
जब कपड़ा बनाया जाता है तो लम्बाई वाले धागे को ताना तथा चौड़ाई वाले धागे को बाना कहते हैं।
प्रश्न 15.
टैरीलीन तंतु का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर-
पोलीएस्टर।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
नारियल के रेशे किस भाग से प्राप्त किये जाते हैं तथा किस काम आते हैं?
उत्तर-
नारियल के रेशे नारियल के बीज के छिलके से तैयार होते हैं। यह गिरि तथा बाहरी छिलके के मध्य होते हैं। इनको समुद्र के पानी में भिगो कर नर्म किया जाता है फिर कूट-कूट कर साफ़ करके बाहर निकाल लिया जाता है। इन रेशों को आमतौर पर रंगा नहीं जाता। इनका अपना रंग गहरा भूरा होता है। नारियल के रेशे तनाव वाले तथा मज़बूत होते हैं। इनको बल नहीं पड़ते। ज्यादातर ये रेशे सोफों तथा गद्दों को भरने के लिये प्रयोग किये जाते हैं। परन्तु इनसे टाट तथा जूतों के तले भी बनाए जाते हैं।
प्रश्न 2.
चीन की लिनात किस रेशे से तैयार की जाती है तथा इसके कौन-से गुण हैं?
उत्तर-
चीन की लिनन पौधे के तने से तैयार की जाती है तथा इसको रेमी भी कहा जाता है। यह पौधे जापान, फ्राँस, मिस्र, इटली तथा रूस में उगाये जाते हैं। इसके पौधे 4 से 8 फुट ऊँचे हो सकते हैं। इसके तनों को काटकर पानी में गलाया जाता है तथा फिर रसायनों के प्रयोग से फालतू गूंद निकाल दी जाती है। उसके उपरान्त कंघी करके इसके रेशों को साफ़ किया जाता है। यह रेशे लम्बे, मज़बूत, चमकदार, बारीक तथा सफ़ेद रंग के होते हैं। इन रेशों में तनाव अधिक तथा लचक कम होती है।
प्रश्न 3.
प्रकृति में मिलने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक रेशे की विशेषताएं तथा देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
पिछले प्रश्न देखें।
प्रश्न 4.
पटसन क्या है?
उत्तर-
यह पौधे के तने से मिलने वाला रेशा है। इसके रेशे लम्बे, मज़बूत तथा भूरे रंग के हैं। इससे रस्सियाँ, डोरियां तथा बढ़िया कपड़ा बनता है।
प्रश्न 5.
ऊन क्या है? इसकी विशेषताएं और देखभाल के बारे में बताएं।
अथवा
ऊन की विशेषताएं, प्रयोग तथा देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।
प्रश्न 6.
बनावटी कपड़ों को सम्भालना आसान क्यों है?
उत्तर-
बनावटी कपड़ों को कीड़े तथा फफूंदी नहीं लगती। इसलिए इन्हें सम्भालना आसान है।
प्रश्न 7.
सूती रेशे और लिनन के प्रयोग के बारे में बताएं।
उत्तर-
सूती रेशे का प्रयोग
- सूती रेशे से बने वस्त्र गर्मियों के लिए उत्तम तथा त्वचा के लिए आरामदायक होते हैं।
- सूती रेशों को दूसरे रेशों के साथ मिलाकर मिश्रित धागे बनाए जाते हैं।
- सूती कपड़े को उबाला जा सकता है। इसलिए अस्पतालों में इससे पट्टियां बनाई ५ जाती हैं।
लिनन के प्रयोग
- गर्मियों की पोशाकें बनती हैं, ठण्डक देने वाली होती हैं।
- मज़बूत तथा लम्बे समय तक चलने वाला होता है। इसलिए चादरें आदि बनाते हैं।
- मेज़पोश आदि भी बनते हैं।
- गर्मियों में अन्दर पहनने वाले वस्त्र भी बनाए जाते हैं।
प्रश्न 8.
बनावटी रेशे क्या होते हैं?
उत्तर-
ऐसे रेशे. जो मनुष्य द्वारा बनाए जाते हैं उन्हें बनावटी रेशे कहते हैं, जैसेरेयोन, नाइलोन, टैरालीन, आरलोन आदि बनावटी रेशे हैं। इन रेशों से बने कपड़ों को सिंथेटक कपड़े भी कहा जाता है।
प्रश्न 9.
ऊन की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।
प्रश्न 10.
सिल्क पर ताप का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।
प्रश्न 11.
लिनन की विशेषताएं, प्रयोग तथा देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।।
प्रश्न 12.
सिल्क की देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
सिल्क से बने कपड़े बहुत नाजुक होते हैं। यह गीले होने पर ओर भी कमज़ोर हो जाते हैं। इसलिए इन्हें धीरे-धीरे दबाकर धोना चाहिए। रगड़ने से यह फट सकते हैं। क्षार तथा गर्म पानी का इन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इन्हें ड्राईक्लीन करवा लेना चाहिए। जब यह नम ही हो तो प्रैस कर लेना चाहिए। पसीने से भी यह कमज़ोर हो जाते हैं। इनके अन्दर सूती कपड़े का अन्दरग लगा लेना चाहिए।
प्रश्न 13.
रेशे से कपड़ा बनाने के लिए उसमें लचकीलापन होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।
प्रश्न 14.
मिश्रित रेशे कौन-से हैं तथा इनकी देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।
देखभाल-मिश्रित रेशों की देखभाल सरल है इन्हें धोना भी सरल है। ऊली नहीं लगती, धूप में रंग खराब नहीं होता। कीड़े भी हानी नहीं पहुंचाते।
प्रश्न 15.
रेशे से कपड़े बनाने के लिए रेशे का रूप में होना तथा जुड़न शक्ति का होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।
प्रश्न 16.
प्राकृतिक रेशों के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।
प्रश्न 17.
सूती रेशे की विशेषताएं, प्रयोग तथा देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।
प्रश्न 18.
ताप तथा रंगाई का ऊन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।
प्रश्न 19.
लम्बे रेशे/फिलामेंट रेशे क्या होते हैं?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।
प्रश्न 20.
पटसन तथा नारियल के रेशे के बारे में बताएं
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।
प्रश्न 21.
रेशों का लम्बाई के अनुसार वर्गीकरण करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।
प्रश्न 22.
धातुओं से प्राप्त रेशों के बारे में बताएं।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।
प्रश्न 23.
कपास और सिल्क की विशेषताओं की तुलना कीजिये।
उत्तर-
कपास | सिल्क |
1. यह स्टेपल रेशा है। इसकी लम्बाई 1/2 इंच से 2 इंच तक होती है। | यह प्राकृतिक रूप में मिलने वाला एक मात्र फिलामेंट रेशा है। इसकी लम्बाई 750 से 1100 मीटर तक हो सकती है। |
2. इसका रंग प्रायः सफेद होता है। | इसका रंग क्रीम से भूरा होता है या स्लेटी होता है। |
3. प्राकृतिक चमक नहीं होती। | प्राकृतिक चमक होती है। |
4. लचक नहीं होती तथा सिलवटें पड़ जाती हैं। | लचक अधिक होती है तथा सिलवटें नहीं पड़तीं। |
5. रंगाई करना सरल है परन्तु धुलने तथा धूप से रंग खराब हो जाता है। | रंगाई करना सरल है, रंग पक्के चढ़ते हैं जो धूप अथवा धुलने से छूटते नहीं। |
6. रेशे गीले होने पर मज़बूत होते हैं। | गीले होने पर कमज़ोर होते हैं। |
प्रश्न 24.
रेशे एवं फिलामेंट की परिभाषा दें और रेशे के वर्गीकरण के बारे में लिखें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।
प्रश्न 25.
कृत्रिम रेशे को खरीदना लोग क्यों अधिक पसन्द करते हैं?
उत्तर-
कृत्रिम रेशे मज़बूत होते हैं। इन पर कीड़ों, फंगस आदि का प्रभाव भी कम होता है। इनको धो कर सुखाना तथा सम्भालना भी सरल है। यह देखने में भी सुंदर लगते हैं। इसलिए कृत्रिम रेशों की पसन्द बढ़ गई है।
प्रश्न 26.
मिश्रित कपड़े क्या होते हैं ? ग्रीष्म व शीत प्रत्येक ऋतु में पहने जाने वाले मिश्रित वस्त्र का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
कृत्रिम रेशे तथा प्राकृतिक रेशे को मिला कर जो रेशे तैयार किए जाते हैं, मिश्रित रेशे कहा जाता है। जैसे
पोलीएस्टर + सूती = पोलीवस्त्र
टैरालीन + सूती = टैरीकाट
पोलीएस्टर + ऊन = टैरीवूल।
टैरीकाट ऐसा मिश्रित कपड़ा है जिसे गर्मी सर्दी में पहना जा सकता है।
प्रश्न 27.
सूती रेशों के गुणों का वर्णन करो।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।
दीर्घ उत्तरीय प्रश
प्रश्न 1.
रेयॉन का प्रयोग, विशेषताएं और देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
रेयॉन का प्रयोग-रेयॉन में रेशम जैसी चमक होने के कारण इसे नकली रेशम भी कहा जाता है। इससे कम तथा अधिक चमक वाले कपड़े, जैसे-जार्जट, क्रेप, बम्बर आदि बनाए जाते हैं। इसका प्रयोग आम पहनने वाली पोशाक के लिए भी होता है।
विशेषताएं-रेयॉन पुनर्निर्मित सैलुलोज़ के रेशे होते हैं। इसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन जैसे तत्त्व होते हैं —
- सूक्ष्मदर्शी के नीचे रचना-रेशा एक समान तथा गोल होता है।
- लम्बाई-यह लम्बे रेशे (फिलामैंट) होते हैं।
- रंग-इन रेशों का रंग नहीं होता। ये पारदर्शी हैं।
- लचकीलापन-इनमें लचक कम होती है। धोने पर सिकुड़ जाते हैं तथा प्रैस करने पर फिर पहले जैसे हो जाते हैं।
- ताप चालकता-यह ताप के चालक हैं।
- मज़बूती-पानी में डालने से कमजोर होते हैं, वैसे इनकी मज़बूती कम या ज्यादा हो सकती है।
- जल शोषकता-रेयॉन की जल शोषकता प्राकृतिक सैलुलोज़ रेशों से अधिक होती है।
- रसायनों का प्रभाव-अम्ल का प्रभाव होता है परन्तु क्षार का प्रभाव नहीं पड़ता।
- रंगाई-इसे रंगना सरल है। कोई भी रंग किया जा सकता है तथा रंग पक्का चढ़ता है। धूप में रंग खराब नहीं होता परन्तु रंगकाट से रंग कमज़ोर पड़ जाते हैं।
- ताप का प्रभाव-आग में एकदम जलते हैं तथा कागज़ जैसे गन्ध से जलते देखभाल- यह रेशे गीले होने पर कमजोर हो जाते हैं। रगड़ से भी जल्दी खराब हो जाते हैं। इन कपड़ों को निचोड़ना तथा इन पर अधिक दबाव नहीं डालना चाहिए। अधिक गर्म प्रैस भी नहीं करनी चाहिए। इन्हें सुखा कर ही सम्भालना चाहिए। सिल्वर फिश तथा फफूंदी इनको हानि पहुँचा सकते हैं।
प्रश्न 2.
पॉलिएस्टर (टैरीलीन ) का प्रयोग, विशेषताएँ और देखभाल के बारे में बताएं।
अथवा
पॉलिएस्टर की विशेषताएं तथा प्रयोग के बारे में बताएं।
उत्तर-
प्रयोग-
- इन रेशों को दूसरे रेशों से मिलाकर मिश्रित रेशे तैयार किए जाते हैं, जैसे
टैरीकॉट – टैरीलीन + सूती
टैरीवूल – टैरीलीन + ऊनी
टैरी रूबिया – टैरीलीन + सूती
टैरी सिल्क – टैरीलीन + सिल्क - कपड़े शरीर के लिए ठीक होते हैं तथा मज़बूत होते हैं।
- इन्हें दाग़ कम लगते हैं तथा धोना भी आसान है।
- इनसे आम पहनने वाले तथा दूसरी प्रकार के कपड़े भी बनाए जाते हैं। विशेषताएंरचना-यह एक बहुलक है।
सूक्ष्मदर्शी के नीचे रचना-इसके रेशे गोल, सीधे, चीकने तथा एक जैसे होते हैं। रंग-इसके रेशे सफ़ेद रंग के होते हैं।
मज़बूती-यह मज़बूत होते हैं। मजबूती को और भी बढ़ाया जा सकता है।
लम्बाई-यह फिलामैंट तथा स्टेपल दोनों चित्र-पोलिएस्टर का रेशा तरह के होते हैं।
लचक-इनमें सूती तथा लिनन से अधिक लचक होती है, परन्तु नायलॉन से कम होती है।
दिखावट-चमक आवश्यकता अनुसार कम या अधिक की जा सकती है। ताप चालकता-ताप के अच्छे चालक नहीं हैं। रसायनों का प्रभाव- अम्ल तथा क्षार का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। रंगाई-कुछ विशेष रंगों से ही रंगा जा सकता है। ताप का प्रभाव-जलने पर तेज़ गन्ध आती है। गर्मी से पिघल जाते हैं।
देखभाल-धोना आसान है, फफूंदी तथा कीड़े भी नहीं लगते। धूप से रंग खराब नहीं होता। अधिक प्रेस की भी आवश्यकता नहीं है। इसलिए इन्हें सम्भालना सरल है।
प्रश्न 3.
सिल्क की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
विशेषताओं के लिए देखें उपरोक्त प्रश्न।
प्रयोग-सिल्क के रेशों से बने वस्त्रों का प्रयोग उत्सवों, शादियों के अवसरों या विशेष अवसरों पर पहनने के लिए होता है। सिल्क से घर की सजावट का सामान जैसेगलीचे, कुश्न, पर्दे आदि तथा अन्य सजावटी सामान भी बनाया जाता है। सिल्क महंगा है इसलिए इसका प्रयोग अमीर लोग अधिक करते हैं।
देखभाल-रेश्म का रेशा अधिक कमज़ोर होता है तथा गीला होने पर और भी कमज़ोर हो जाता है। इन्हें धोने के लिए रगड़ना नहीं चाहिए बल्कि पोला-पोला दबा कर धोना चाहिए।
प्रश्न 4.
कैश्मीलोन और फाइबर ग्लास के बारे में बताओ।
उत्तर-
- कैश्मीलोन-यह आरलोन की ही एक किस्म है तथा इससे स्वैटर, शालें, कोट आदि बनाए जाते हैं।
विशेषताएं-कश्मीलोन में नाइलोन जैसे गुण होते हैं, परन्तु इसकी दिखावट ऊन के रेशों जैसी होती है। यह ऊन से सस्ते होते हैं तथा इनका रंग पक्का तथा यह मज़बूत होते हैं। कुछ समय तक प्रयोग के बाद इन वस्त्रों पर बुर आ जाती है। - फाइबर ग्लास-इन रेशों का प्रयोग वस्त्र बनाने के लिए कम ही होता है, परन्तु इन का प्रयोग पारदर्शी पर्दे बनाने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 5.
(रेशम) सिल्क की विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।
प्रश्न 6.
सूती तथा रेशनी तन्तुओं की मौलिक विशेषताओं का मूल्यांकन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।
प्रश्न 7.
मानव निर्मित तन्तु कौन-से हैं? किसी एक तन्तु की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।
प्रश्न 8.
सूती रेशे की विशेषताएँ बताएं।
अथवा
सूती रेशे के गुणों के बारे में विस्तार से बताइए।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।
प्रश्न 9.
लिनन के रेशों की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 10.
थर्मोप्लास्टिक रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक थर्मोप्लास्टिक रेशे की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में विस्तार से लिखिए ।
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 11.
रेशे से कपड़ा बनाने के लिए कौन-कौन से मूल गुण होने चाहिएं? विस्तार सहित लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 12.
लिनन रेशों की विशेषताएं और देखभाल के बारे में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 13.
रेयान का प्रयोग, विशेषताएं और देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 14.
प्रकृति में मिलने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक रेशे की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 15.
जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? इनकी विशेषताओं के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 16.
पॉलिएस्टर का प्रयोग, विशेषताएं और देखभाल के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 17.
सिलक के रेशे खुर्दबीन के नीचे किस तरह के दिखते हैं? चित्र बनाओ। इन रेशों की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 18.
लिनन और सूती कपड़ों में क्या समानता है?
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 19.
शीतल एक फुटबाल का खिलाड़ी है। उसे खेलों के मुकाबले में भाग लेना है। उसे कौन से रेशे का बना हुआ ट्रैकसूट खरीदना चाहिए और इस रेशे की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 20.
कपास का रेशा खुर्दबीन के नीचे किस तरह का दिखता है? चित्र बनाओ। इस रेशे की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 21.
सिल्क को कपड़ों की रानी क्यों कहा जाता है ? आप सिल्क के कपड़ों की देखभाल कैसे करेंगे?
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 22.
रीमा को बारिश के मौसम में पिकनिक के लिए जाना है। उसे अपने पहनने वाले कपड़ों के लिए कौन-से रेशे का चुनाव करना चाहिए और इस रेशे की क्या-क्या विशेषताएं हैं ?
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 23.
ऊन के रेशे खुर्दबीन के नीचे किस तरह दिखते हैं? चित्र बनाओ। इन रेशों की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 24.
सूती रेशे को रेशों का सिरताज क्यों कहा जाता है ? आप इन रेशों की देखभाल कैसे करेंगे?
उत्तर-
स्वयं करें।
प्रश्न 25.
सुनीता की बहन की शादी 15 दिसम्बर को होनी है। उसे शादी के लिए प्राकृतिक रेशे का सूट सिलवाना है। उसे कौन-से रेशे का चुनाव करना चाहिए? इस रेशे की क्या-क्या विशेषता है ?
उत्तर-
स्वयं करें।
विस्तानष्ठ प्रश्न
I. रिक्त स्थान भरें
- छोटे रेशे ………………. इंच तक लम्बे होते हैं।
- लिनन ……………… पौधे के तने से प्राप्त होता है।
- प्राकृतिक फिलामैंट रेशा केवल ……………. है।
- ऊन तथा एकरेलिक रेशे मिला कर ………………. रेशा बनता है।
- सूती रेशे में …………….. प्रतिशत सैलूलोज़ होता है।
- ……… तथा …….. ऐंठन के दो प्रकार हैं।
- अधिकतर मानव निर्मित तन्तुओं में ………….. लचीलापन होता है।
- प्रोटीन तन्तु को ……………….. तन्तु भी कहते हैं।
- रेशमी रेशा ………. किस्म का रेशा है।
- …….. तथा ……….. दो प्राकृतिक प्रोटीन तन्तु हैं।
- ………… एक मानव निर्मित तन्तु है।
उत्तर-
- 18,
- फलैक्स,
- सिल्क,
- कैशमिलान,
- 87-90%,
- S, Z,
- बहुत,
- प्राकृतिक,
- प्राकृतिक फिलामैंट,
- रेशम, ऊन,
- रेयान।
II. ठीक/ग़लत बताएं
- छोटे रेशे 18 इंच तक लम्बे होते हैं।
- सन् प्राकृतिक रेशा है।
- रेयान मनुष्य द्वारा निर्मित रेशा है।
- सूती रेशों में प्राकृतिक चमक नहीं होती।
- साईसल एक कीट है।
- रेशम ताप का संचालक नहीं है।
उत्तर-
- ठीक,
- ठीक,
- ठीक,
- ठीक,
- ग़लत,
- ठीक।
III. बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
ऊन के लिए ठीक है
(क) प्राकृतिक रेशा
(ख) प्रोटीन रेशा
(ग) जानवर से प्राप्त
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।
प्रश्न 2.
रेशों में जुड़न शक्ति निर्भर है
(क) रेशों की लम्बाई
(ख) रेशे की बारीकी
(ग) लचकीलापन
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।
प्रश्न 3.
पौधे से प्राप्त होने वाला रेशा नहीं है
(क) सन
(ख) ऊन
(ग) पटसन
(घ) कपास।
उत्तर-
(ख) ऊन
प्रश्न 4.
थर्मोप्लास्टिक रेशा नहीं है
(क) नायलोन
(ख) पोलीस्टर
(ग) कपास
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(ग) कपास
रेशों का वर्गीकरण PSEB 10th Class Home Science Notes
कपड़ा मानवीय जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिये हम भिन्न-भिन्न प्रकार के कपड़े पहनते हैं तथा घर में और कई कार्यों के लिये प्रयोग करते हैं, जैसे-पर्दे, चादरें, तौलिये तथा मेज़पोश आदि। यह भिन्न-भिन्न कपड़े धागों से बनते हैं। यदि कपड़े को किनारे से देखें तो धागे निकल आते हैं। परन्तु यह धागे बालों जैसे बारीक रेशों से बनते हैं। ये रेशे कपड़े की एक मूल इकाई है। विभिन्न किस्म के कपड़े, जैसे-ऊनी, सूती, | रेशमी भिन्न-भिन्न रेशों से बनते हैं तथा यह विभिन्न रेशे प्राप्त भी भिन्न-भिन्न साधनों से होते हैं।