Punjab State Board PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 11 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार Important Questions and Answers.
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 11 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
एक पूर्णांकित चित्र की सहायता से मनुष्य की आँख की बनावट और कार्यविधि की व्याख्या करो।
उत्तर-
आँख की रचना-सिर की खोपड़ी के आगे के भाग में दो कटोरियां-सी होती हैं जिनमें एक-एक गोलाकार आँख होती है। मनुष्य की आँख लगभग 2.5 सेमी० व्यास का गोला है। इसके निम्नलिखित प्रमुख भाग हैं-
दृढ़ीकृत स्कलेरॉटिक (Sclerotic)-यह आँख की सबसे बाहरी कठोर परत होती है इसलिए आँख को चोट आदि से बचाती है।
कार्निया (Cornea)-आँख के सामने का थोड़ा-सा भाग पारदर्शी तथा शेष भाग अपारदर्शी होता है। आँख के उभरे हुए पारदर्शी भाग को कार्निया (Cornea) कहते हैं।
कोरायड (Choroid)-यह आँख की स्कलेरॉटिक के नीचे आने वाली दूसरी परत है। यह अपारदर्शी तथा कठोर होती है। यह परत अंदर से काली होती है ताकि आने वाला प्रकाश न बिखरे।
आइरिस (Iris)-कोरायड के अगले भाग में एक पर्दा होता है, जिसे परितारिका या आइरिस (Iris) कहते हैं। आइरिस का रंग भूरा या काला होता है। आइरिस से ठीक मध्य में एक छिद्र होता है जिसे पुतली (Pupil) कहते हैं। पुतली का आकार कम या ज्यादा हो सकता है। अधिक प्रकाश में पुतली छोटी हो जाती है ताकि कम प्रकाश ही आँख के भीतर जाए।
आँखों का लैंस (Eyes Lens)-आँख का लेंस एक उभयोत्तल लैंस (Double Convex Lens) होता है। इसकी सहायता से प्रकाश के अपवर्तन द्वारा रेटिना पर प्रतिबिंब बनता है।
पक्ष्माभ माँसपेशियां (Ciliary Muscles)-पक्ष्माभ माँसपेशियां आँख के लैंस को जकड़कर रखती हैं। ये इस लैंस की फोकस दूरी परिवर्तित करने में सहायता करती हैं।
पुतली (Pupil) आइरिस के केंद्र में एक छिद्र होता है जिसमें से प्रकाश निकलकर लेंस पर रेटिना पड़ता है। इस छिद्र को पुतली कहा जाता है।
नेत्रोद या ऐक्विअस हमर (Aqueous पीत बिंदु Humour) कॉर्निया और आँख के लैंस का मध्य कार्निया अंध बिंदु भाग एक पारदर्शी द्रव से भरा होता है, जिसे ऐक्विअस ह्यमर कहते हैं।
काचाभ द्रव या विट्रियस ह्यूमर (Vitreous Humour)-आँख के लैंस और रेटिना के मध्य का मांसपेशी भाग जैली जैसे पारदर्शी द्रव से भरा होता है, जिसे विट्रियस ह्यूमर कहते हैं।
रेटिना या दृष्टिपटल (Retina)-आँख की तीसरी परत रेटिना कहलाती है। यह आँख में पर्दे का कार्य करती है जिस पर वस्तुओं के प्रतिबिंब बनते हैं। रेटिना में प्रकाश संवेदनशील कोशिकाएं होती हैं जो दृक् तंत्रिका । (Optic Nerve) से जुड़ी होती हैं।
दृक् तंत्रिका (Optic Nerve)-इसके द्वारा सूचना मस्तिष्क तक पहुंचाई जाती है। (xii) मुख्य अक्ष (Principal Axis)-काल्पनिक रेखा ry आँख के प्रकाशीय तंत्र का मुख्य अक्ष है।
अंध बिंदु (Blind Spot)-आँख का वह भाग, जिसमें दृक् तंत्रिका है, प्रकाश के प्रति बिलकुल भी संवेदनशील नहीं होती और इसे अंध-बिंदु कहा जाता है। यदि किसी वस्तु का प्रतिबिंब अंध-बिंदु पर बने तो यह दिखाई नहीं देता।
पीत बिंदु (Yellow Spot) रेटिना का केंद्रीय भाग, जो आँख के दृक् अक्ष पर होता है, प्रकाश के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होता है उसे पीत बिंदु कहा जाता है।
आँख की पलकें (Eve lids) – आँख की पलकें आँख पर पड़ रहे प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती हैं ! ये आँख की धूल आदि से भी रक्षा करती हैं।
प्रश्न 2.
मनुष्य की आँख के दोष कौन-कौन से हैं ? ये कैसे दूर किये जा सकते हैं ? चित्रों द्वारा स्पष्ट करें।
अथवा
मानव आँख के कौन-कौन से दोष हैं ? इन्हें कैसे दूर किया जाता है ? चित्रों की सहायता से समझाओ।
उत्तर-
मनुष्य की आँख के दोष- एक सामान्य स्वस्थ आँख अपनी फोकस दूरी को इस प्रकार संयोजित करती है कि पास तथा दूर पड़ी सभी वस्तुओं का प्रतिबिंब रेटिना (Retina) पर बन जाए परंतु कभी-कभी आँख की इस संयोजन शक्ति में कमी आ जाती है जिससे प्रतिबिंब दृष्टिपटल पर ठीक से नहीं बनता है। इससे दीर्घ दृष्टि (Long Sightedness) तथा निकट दृष्टि (Short Sightedness) के दोष हो जाते हैं। इनके अतिरिक्त प्रेस्बायोपिया, रंगांधता और एस्टग्माटिज्म रोग भी बहुत सामान्य है।
1. दीर्घ-दृष्टि दोष (Long Sightedness or Hypermotropia)-इस दोष से ग्रसित व्यक्ति को दूर स्थित वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं परंतु समीप पड़ी हुई वस्तुएं स्पष्ट दिखाई नहीं देती हैं। इसका कारण यह है कि समीप स्थित वस्तुओं का प्रतिबिंब रेटिना के पीछे बनता है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
दीर्घ-दृष्टि दोष के कारण –
- नेत्र गोलक (Eyeball) का छोटा होना।
- आँख के क्रिस्टलीय लैंस की फोकस दूरी का अधिक हो जाना।
दीर्घ-दृष्टि दोष को दूर करना-इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लैंस (Convex Lens) का प्रयोग किया जाता है। इस लैंस के प्रयोग से निकट बिंदु से आने वाली प्रकाश किरणें किसी दूर के बिंदु से आती हुई प्रतीत होती हैं तथा समीप पड़ी वस्तुएं स्पष्ट दिखाई देने लगती हैं।
2. निकट-दृष्टि दोष (Short Sightedness or Myopia)-इस दोष वाली आँख के पास की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं परंतु दूर स्थित वस्तुएं ठीक दिखाई नहीं देती या धुंधली दिखाई देती हैं। इसका अभिप्राय यह है कि दूर बिंदु अनंत की तुलना में कम दूरी पर आ जाता है।
निकट-दृष्टि दोष के कारण-इस दोष के उत्पन्न होने के कारण –
- क्रिस्टलीय लेंस की फोकस दूरी का कम हो जाना।
- नेत्र गोलक (Eyeball) का लंबा हो जाना अर्थात् रेटिना तथा लैंस के बीच की दूरी बढ़ जाना होता है।
निकट दृष्टि दोष को दूर करना- इस दोष को दूर करने के लिए अवतल लैंस (Concave Lens) का प्रयोग करना पड़ता है जिसकी फोकस दूरी आँख के दूर बिंदु के समान होती है।
3. रंगांधता (Colour Blindness)-यह एक ऐसा रोग है जो जैविक कारणों से होता है। यह वंशानुगत होता है। इस रोग में रोगी विशेष रंगों की पहचान नहीं कर पाता क्योंकि उसकी आँखों में रेटिना पर शंकु (cone) जैसी संरचनाएं अपर्याप्त होती हैं। आँखों में लाल, नीले और हरे रंग को पहचानने वाली कोशिकाएं होती हैं। रंगान्ध व्यक्ति की आँख में कम शंक्वाकार रचनाओं के कारण वह विशेष रंगों को नहीं पहचान पाता। इस रोग का कोई उपचार नहीं है। ऐसा व्यक्ति प्रत्येक वस्तु ठीक प्रकार से देख सकता है पर कुछ रंगों की पहचान नहीं कर पाता।
4. प्रेस्बायोपिया (Presbyopia)- यह रोग आयु से संबंधित है। लगभग सभी व्यक्तियों को यह रोग 40 वर्ष की आयु के बाद हो जाता है। आँख के लैंस की लचक आयु के साथ कम हो जाती है। सिलियरी माँसपेशियाँ आँख के लैंस की फोकस दूरी को परिवर्तित नहीं कर पाती जिस कारण निकट की वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती। निकट दृष्टि और दूर-दृष्टि के मिले-जुले इस रोग को दूर करने के लिए उत्तल और अवतल लैंस से युक्त दो चश्मों या बाइफोकल चश्मे में दोनों लैंसों के साथ-साथ प्रयोग से इसे सुधारा जा सकता है।
5. एस्टेग्माटिज्म (Astigmatism)-एस्टेग्माटिज्म से ग्रस्त व्यक्ति एक साथ अपनी दोनों आँखों को फोकस नहीं कर पाता। यह रोग कॉर्निया के पूर्ण रूप से गोलाकार न होने के कारण होता है। विभिन्न दिशाओं में वक्रता भिन्न होती है। व्यक्ति लंबाकार दिशा में ठीक प्रकार से दृष्टि फोकस नहीं कर पाता। इस रोग को सिलेण्ड्रीकल लैंस लगे चश्मे से सुधारा जा सकता है।
प्रश्न 3.
प्रिज्म किसे कहते हैं ? चित्र खींचकर प्रिज्म द्वारा प्रकाश का विचलन समझाइए।
उत्तर-
प्रिज्म-किसी पारदर्शी माध्यम का वह भाग जो किसी कोण पर झुके हुए दो समतल पृष्ठों के बीच स्थित होता है, प्रिज्म कहलाता है। प्रिज्म के जिन पृष्ठों से अपवर्तन होता है उन पृष्ठों (सतहों) को अपवर्तक पृष्ठ (सतह) तथा इनके बीच के कोण को प्रिज्म कोण कहते हैं।
प्रिज्म द्वारा प्रकाश का विचलन–मान लें PQR B काँच के एक प्रिज्म का मुख्य परिच्छेद है। मान लें एक प्रकाश किरण BC प्रिज्म के पृष्ठ PR के बिंदु C पर आपतित होती है। इस पृष्ठ पर अपवर्तन के पश्चात् यह प्रकाश किरण बिंदु C पर खींचे गए अभिलंब की ओर झुककर CD दिशा में चली जाती है। किरण CD दूसरे अपवर्तक पृष्ठ QR के बिंदु D पर आपतित होती है और अपवर्तन के पश्चात् बिंदु D पर खींचे गए अभिलंब से दूर हटकर DE दिशा में निर्गत हो जाती है; अत: प्रिज्म BC दिशा में आने वाली किरण को DE दिशा में विचलित कर देता है। इस प्रकार प्रिज्म, प्रकाश की दिशा में ‘कोणीय विचलन’ उत्पन्न कर देता है। आपतित किरण BC को आगे तथा निर्गत किरण DE को पीछे की तरफ बढ़ाने पर ये एक-दूसरे को बिंदु G पर काटती हैं। इन दोनों के बीच बना कोण FGD विचलन कोण कहलाता है। इसे (डेल्टा) से प्रदर्शित करते हैं।
विचलन कोण का मान प्रिज्म के पदार्थ के-
- अपवर्तनांक तथा
- आपतित किरण के आपतन कोण पर निर्भर करता है।
यदि प्रिज्म पर पड़ने वाली किरण के आपतन कोण i के मान को बढ़ाते जाएँ तो विचलन कोण δ का मान घटता जाता है तथा एक विशेष आपतन कोण के लिए विचलन कोण न्यूनतम हो जाता है। इस न्यूनतम विचलन कोण को अल्पतम विचलन कोण कहते हैं।
यदि किसी प्रिज्म का कोण A तथा किसी रंग की किरण के लिए अल्पतम विचलन कोण δm है तो
प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक µ = \(\frac{\sin \left(\frac{\mathrm{A}+\delta_{m}}{2}\right)}{\sin \frac{\mathrm{A}}{2}}\)
प्रश्न 4.
प्रिज्म द्वारा सूर्य के प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण से क्या तात्पर्य है ? आवश्यक चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए तथा वर्ण-विक्षेपण का कारण भी समझाइए।
अथवा
प्रकाश की एक किरण प्रिज्म से होकर गुजरती है और पर्दे पर स्पेक्ट्रम प्राप्त होता है –
(क) एक चित्र बनाइए जो श्वेत प्रकाश का स्पेक्ट्रम प्रदर्शित करता है।
(ख) स्पेक्ट्रम के सात रंगों का क्रम से नाम बताइए।
(ग) स्पेक्ट्रम के किस रंग का विचलन सबसे अधिक व किसका सबसे कम होता है ?
उत्तर-
वर्ण-विक्षेपण- श्वेत प्रकाश किरण का अपने अवयवी रंगों की प्रकाश किरणों में विभाजित होने की प्रक्रिया प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण कहलाता है।
(क) प्रिज्म द्वारा प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण से प्राप्त स्पेक्ट्रम-जब सूर्य की श्वेत प्रकाश किरण किसी प्रिज्म में से गुजरती है तो वह अपवर्तन के कारण अपने मार्ग से परदा विचलित होकर प्रिज्म के आधार की ओर झुककर विभिन्न रंगों की किरणों में विभाजित हो जाती है। इस प्रकार से उत्पन्न हुए विभिन्न रंगों के समूह को स्पेक्ट्रम (Spectrum) कहते हैं। इस स्पेक्ट्रम का एक सिरा लाल तथा दूसरा सिरा बैंगनी होता है।
(ख) सामान्यतः हमारी आँख को स्पेक्ट्रम के रंग सात समूहों के रूप में दिखाई पड़ते हैं। प्रिज्म के आधार की ओर से ये रंग बैंगनी (Violet), नीला (जम्बुकी नीला, Indigo), आसमानी (Blue), हरा (Green), पीला (Yellow), नारंगी (Orange) तथा लाल (Red) के क्रम में होते हैं। रंगों के इस क्रम को अंग्रेज़ी के शब्द VIBGYOR (विबग्योर) से आसानी से याद रखा जा सकता है।
(ग) जब श्वेत प्रकाश की किरण प्रिज्म में से गुज़रती है तो श्वेत प्रकाश में उपस्थित भिन्न-भिन्न रंगों की किरणों में प्रिज्म द्वारा उत्पन्न विचलन भिन्न-भिन्न होता है। लाल प्रकाश की किरण में विचलन सबसे कम तथा बैंगनी प्रकाश की किरण में विचलन सबसे अधिक होता है। अन्य रंगों की किरणों में विचलन लाल व बैंगनी किरणों के बीच में होता है। बैंगनी रंग की तरंगदैर्घ्य सबसे कम तथा लाल रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होती है।
प्रिज्म द्वारा प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण का कारण-किसी पारदर्शी पदार्थ जैसे काँच का अपवर्तनांक प्रकाश के रंग पर निर्भर करता है। अपवर्तनांक लाल रंग के प्रकाश के लिए सबसे कम तथा बैंगनी रंग के प्रकाश के लिए सबसे अधिक होता है। जब कोई प्रकाश किरण काँच के प्रिज्म में से गुजरती है तो वह अपने पथ से विचलित होकर प्रिज्म के आधार की ओर झुक जाती है। चूंकि प्रकाश में उपस्थित भिन्न-भिन्न रंगों की किरणों में विचलन भिन्न-भिन्न होता है इसलिए लाल रंग के प्रकाश की किरण प्रिज्म के आधार की ओर सबसे कम तथा बैंगनी रंग के प्रकाश की किरण प्रिज्म के आधार की ओर सबसे अधिक झुकेगी।
इस प्रकार, श्वेत रंग के प्रकाश का प्रिज्म में से गुज़रने पर वर्णविक्षेपण हो जाता है। आयताकार स्लैब में श्वेत रंग के प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण नहीं होता, क्योंकि आयताकार स्लैब द्वारा प्रकाश किरणों का विचलन नहीं होता बल्कि पार्श्व विस्थापन होता है। स्लैब में आपतित किरण तथा निर्गत किरण परस्पर समांतर हो जाती हैं।
प्रश्न 5.
सूर्य का प्रकाश विभिन्न सात रंगों के प्रकाश का सम्मिश्रण है। प्रयोग द्वारा इस तथ्य की पुष्टि कैसे की जा सकती है ?
अथवा
सूर्य का श्वेत प्रकाश विभिन्न रंगों के प्रकाश का सम्मिश्रण है।” प्रिज्म की सहायता से आवश्यक किरण आरेख खींचकर कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
“सूर्य का प्रकाश विभिन्न सात रंगों का सम्मिश्रण है”-प्रिज्म द्वारा सूर्य के प्रकाश का स्पेक्ट्रम प्राप्त होने के निम्नलिखित दो संभव कारण हैं
- प्रिज्म अपने में से गुजरने वाले प्रकाश को स्वयं ही विभिन्न रंगों में विभक्त कर देता है।
- सूर्य का प्रकाश विभिन्न सात रंगों के प्रकाश से मिलकर बना है। प्रिज्म इन रंगों को विभक्त कर देता है।
वास्तव में, दूसरा कारण सत्य है। इस कारण को निम्नांकित प्रयोग द्वारा सत्यापित किया जा सकता है। श्वेत प्रकाश का अवयवी सात रंगों के सम्मिश्रण का सत्यापन-प्रिज्म 1 तथा 2 अंधेरे कमरे में रखें। इन दोनों के बीच में परदा रखें, जिसमें एक बहुत छोटा-सा छिद्र बना हुआ हो। एक बारीक छिद्र H द्वारा प्रिज्म 1 पर सूर्य का प्रकाश डालें। प्रिज्म 1 के दूसरी ओर रखे परदे पर स्पेक्ट्रम प्राप्त करते हैं। परदे के छिद्र द्वारा स्पेक्ट्रम के
किसी एक रंग जैसे हरे रंग के प्रकाश को प्रिज्म 2 पर डालते हैं तथा प्रिज्म 2 से निर्गत प्रकाश को देखते हैं। प्रिज्म 2 से नए रंग का प्रकाश प्राप्त नहीं होता है। इस प्रकार, परदे के छिद्र के द्वारा क्रमशः प्रत्येक रंग का प्रकाश प्रिज्म 2 पर डालने से प्रिज्म 2 से निर्गत प्रकाश उसी रंग का प्राप्त होता है, जिस रंग का प्रिज्म 2 पर डाला गया था। इससे निष्कर्ष निकलता है कि प्रिज्म प्रकाश को रंग नहीं देता है।
श्वेत प्रकाश श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम से श्वेत प्रकाश का पुनर्योजन-अब दूसरा सर्व सम प्रिज्म पहले प्रिज्म के सापेक्ष उल्टी स्थिति में रखो ताकि स्पेक्ट्रम के सभी वर्ण दूसरे प्रिज्म में से होकर गुज़रे। अब दूसरे प्रिज्म में से श्वेत प्रकाश का पुंज निर्गत हुआ। इससे सिद्ध हुआ कि कोई भी प्रकाश जो सूर्य के प्रकाश के समान स्पेक्ट्रम चित्र-श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम का पुनर्योजन बनाता है वह श्वेत प्रकाश है।
.
लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
मनुष्य की आँख को ईश्वर के श्रेष्ठतम उपहारों में से एक क्यों माना जाता है ?
उत्तर-
कहा जाता है कि आँख है तो संसार है। ईश्वर से प्राप्त आँखों द्वारा ही मनुष्य देख पाता है अर्थात् वह अलग-अलग वस्तुओं की ठीक प्रकार से पहचान कर पाता है, रंगों की पहचान कर सकता है, बिना छुए छोटे-बड़े में अंतर कर सकता है, पढ़-लिख सकता है और संसार के सभी आश्चर्यों को जान सकता है। इसीलिए आँखों को ईश्वर के श्रेष्ठतम उपहारों में से एक माना जाता है।
प्रश्न 2.
जब हम किसी अंधेरे कमरे में प्रविष्ट करते हैं तो हमें कुछ समय के लिए कुछ भी दिखाई नहीं देता और अंधेरे में देर तक रहने के बाद अचानक तेज़ प्रकाश में भी हमारी आँखें कुछ देख नहीं पातीं। क्यों ?
उत्तर-
कॉर्निया के पीछे आइरिस (Iris) होती है जो पुतली के आकार को नियंत्रित करती हैं। इसके द्वारा आँख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की तीव्रता पर नियंत्रण रखा जाता है। जब हम किसी अंधेरे कमरे में प्रवेश करते हैं तो रेटिना पर बनने वाले बिंब के लिए अधिक प्रकाश की आवश्यकता होती है। इसे आँख के भीतर प्रकाश भेजने के लिए कुछ फैलना पड़ता है जिसके लिए कुछ समय लगता है। उस समय हमें दिखाई नहीं देता। इसी प्रकार अंधेरे में बैठे रहने से पुतलियां फैल जाती हैं ताकि अधिक प्रकाश भीतर जा सके। अचानक तेज़ प्रकाश आ जाने की स्थिति में इसे सिकुड़ने में समय लगता है जिस कारण हम कुछ देख नहीं पाते।
प्रश्न 3.
नेत्र गोलक के आगे लगा लेंस कैसा होता है ? इसका मुख्य काम क्या है ?
उत्तर-
मानवीय आँख में नेत्र गोलक के आगे लगा लेंस रेशेदार जैली का बना हुआ उत्तल लैंस होता है। इसकी वक्रता सिलियरी मांसपेशियों द्वारा नियंत्रित होती है। कॉर्निया और एक्वस ह्यूमर प्रकाश की अधिकांश किरणों का अपवर्तन कर देती हैं। क्रिस्टलीय लेंस उनकी फोकस दूरी को सुनिश्चित उचित रूप प्रदान करता है ताकि वे रेटिना पर वस्तु का प्रतिबिंब बना सकें।
प्रश्न 4.
दृष्टि पटल (Retina) का कार्य लिखिए।
उत्तर-
दृष्टिपटल (रेटिना) का कार्य-नेत्र के उचित कार्य के लिए दृष्टि पटल (Retina) अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। ये नेत्र गोलक का भीतरी पर्दा है जिसका रूप अत्यंत कोमल झिल्ली के समान होता है। इस पर असंख्य प्रकाश संवेदी कोशिकाएं होती हैं। इस पर दंड (Rods) और शंकु (Cones) जैसी रचनाएं होती हैं जो प्रकाश और रंगों के प्रति संवेदनशील होती हैं। यही प्रकाश की संवेदना को संकेतों के रूप में मस्तिष्क तक दृष्टि तंत्रिका के माध्यम से भेजती हैं जिससे हमें दिखाई देता है।
प्रश्न 5.
हम बहुत निकट से पढ़ने में कठिनाई क्यों अनुभव करते हैं ?
उत्तर-
नेत्र लेंस अपनी क्षमता और गुणों के कारण फोकस दूरी को कुछ सीमा तक बदलता है परंतु एक निश्चित सीमा से नीचे तक फोकस दूरी को नहीं बदल सकता। यदि कोई वस्तु आँख के बहुत निकट हो तो इसमें इतना परिवर्तन नहीं होता कि उसे ठीक-ठीक देखने में सहायता दे। इसीलिए हमें बहुत निकट से पढ़ने में कठिनाई अनुभव होती है। ऐसा करने से आँखों पर दबाव पड़ता है और धुंधला दिखाई देता है।
प्रश्न 6.
रेटिना से मस्तिष्क तक संकेत कैसे पहुंचते हैं ?
उत्तर-
पुतली से प्रकाश-किरणें नेत्र में प्रवेश कर अभिनेत्र लैंस के माध्यम से रेटिना पर किसी वस्तु का उल्टा, छोटा तथा वास्तविक प्रतिबिंब बनाती हैं। रेटिना पर बहुत बड़ी संख्या में प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ होती हैं जो सक्रिय होकर विद्युत् सिग्नल उत्पन्न करती हैं। ये सिग्नल दृक तंत्रिकाओं के द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा दिए जाते हैं और मस्तिष्क उनकी व्याख्या कर लेता है।
प्रश्न 7.
कभी-कभी कुछ लोग दूर या निकट की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देखने के लिए आँखें सिकोड़ कर देखते हैं। क्यों ?
उत्तर-
हमारी आँख का लैंस रेशेदार जेली जैसा होता है जिसकी वक्रता को कुछ सीमा तक पक्ष्माभी पेशियों द्वारा बदला जा सकता है। इसकी वक्रता में परिवर्तन से इसकी फोकस दूरी बदल जाती है। जब पेशियां शिथिल होती हैं तो लैंस पतला हो जाता है उसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है और हमें दूर की वस्तु कुछ साफ़ दिखाई देने लगती है। पक्ष्माभी पेशियों को सिकोड़ लेने से अभिनेत्र लैंस की वक्रता बढ़ जाती है और यह मोटा हो जाता है जिस कारण लैंस की फोकस दूरी कम हो जाती है जिससे हम निकट रखी वस्तु को साफ-साफ देख सकते हैं।
प्रश्न 8.
वृद्ध लोगों को पढ़ने के लिए प्रायः चश्मा लगाना पड़ता है। क्यों ?
उत्तर-
लगभग साठ वर्ष की आयु में दृष्टि का निकट बिंदु 20 सेमी० हो जाता है जो युवावस्था सामान्य दृष्टि रखने वालों में 25 सेमी० होता है। ऐसा होने से पढ़ने में कठिनाई होती है और उत्तल लैंस का चश्मा लगाना पड़ता है।
प्रश्न 9.
हमें एक की अपेक्षा दो आँखों से क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
हमें भगवान् ने एक आँख की बजाय दो आँखें देखने के लिए प्रदान की हैं। इसके हमें निम्नलिखित लाभ-
- हमारा दृष्टि-क्षेत्र विस्तृत हो जाता है।
- एक आँख होने की स्थिति में हमारा क्षैतिज दृष्टि क्षेत्र लगभग 150° होता है, लेकिन दो आँखों के कारण यह लगभग 180° है।
- किसी मंद प्रकाशित वस्तु को देखने की क्षमता एक आँख की अपेक्षा दो आँखों से बढ़ जाती है।
प्रश्न 10.
मोतिया बिंद (Cataract) किसे कहते हैं ? इसका क्या उपचार होता है ?
उत्तर-
आँख के लैंस के पीछे अनेक कारणों से एक झिल्ली-सी जम जाती है जिस कारण पारदर्शी लैंस के पार प्रकाश की किरणों के गुज़रने में रुकावट उत्पन्न होती है। कभी-कभी लैंस पूरी तरह अपारदर्शी भी बन जाता है। शल्य चिकित्सा के द्वारा उस खराब लैंस को बाहर निकाल दिया जाता है। उसके स्थान पर उचित शक्ति का कान्टेक्ट लैंस लगाने या शल्य-चिकित्सा के बाद चश्मा लगाने से ठीक दिखाई देने लगता है।
प्रश्न 11.
चाक्षुष विकृति किस-किस कारण संभव हो सकती है ?
उत्तर-
नेत्र बहुत कोमल और संवेदनशील ज्ञानेंद्रिय है और यह दृष्टितंत्र के किसी भी भाग के क्षतिग्रस्त होने से सदा के लिए खराब हो सकते हैं। कॉर्निया, पुतली, अभिनेत्र लैंस, काचाभ द्रव, रेटिना, दृक तंत्रिका आदि किसी के भी क्षतिग्रस्त होने से चाक्षुष विकृति संभव हो सकती है।
प्रश्न 12.
नेत्रदान की क्या आवश्यकता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
नेत्रदान को महादान कहा जाता है। बिना आँखों के संसार का अंधेरा बहुत दुःखद है। इस संसार में लगभग 3.5 करोड़ लोग नेत्रहीन हैं जिनमें से लगभग 45 लाख कॉर्निया अंधता से पीड़ित हैं। इन 45 लाख में 60% तो वे बच्चे हैं जिनकी आयु 12 वर्ष से भी कम है। ऐसे पीड़ित लोगों को कॉर्निया प्रतिरोपण से संसार का उजाला दिया जा सकता है। इसलिए मृत्यु के बाद हमें अपनी और अपनों की आँखें दान करने से किसी को रोशनी मिल सकती है।
प्रश्न 13.
नेत्रदान करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
- मृत्यु के बाद 4 से 6 घंटे के भीतर ही नेत्रदान हो जाना चाहिए।
- नेत्रदान समीपवर्ती नेत्र बैंक को दिया जाना चाहिए। उनकी टीम दिवंगत व्यक्ति के घर या निकटवर्ती अस्पताल में 10-15 मिनट में नेत्र निकाल लेती है।
- नेत्रदान एक सरल प्रक्रिया है और इससे किसी प्रकार का विरुपण नहीं होता।
प्रश्न 14.
स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी-यदि वस्तु नेत्र के बहुत अधिक समीप हो तो वह स्पष्ट दिखाई नहीं देती; अतः वह निकटतम बिंदु जिस पर स्थित वस्तु को नेत्र अपनी अधिकतम समंजन-क्षमता लगाकर स्पष्ट देख सकता है, नेत्र का निकट बिंदु कहलाता है। नेत्र से निकट बिंदु तक की दूरी स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी कहलाती है। सामान्य नेत्र के लिए यह दूरी 25 cm होती है।
प्रश्न 15.
एक 14-वर्षीय बालक, उससे 5 मीटर दूर रखे हुए श्यामपट्ट पर लिखे प्रश्न को भली-भाँति नहीं देख पाता है।
(i) उस दृष्टि-दोष का नाम बताइए जिससे वह प्रभावित है।
(ii) एक नामांकित चित्र की सहायता से दिखाइए कि कैसे इस दोष का निवारण हो सकता है ?
उत्तर-
(i) वह निकट-दृष्टि दोष (Myopia) से पीड़ित है।
(ii)
इसका संशोधन इस दोष के संशोधन के लिए उचित फोकस दूरी के अवतल लैंस का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 16.
वर्षा के बाद आकाश में इंद्रधनुष क्यों और कैसे बनता है ? चित्र सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इंद्रधनुष वर्षा के बाद कभी-कभी दिखाई देने वाला सुंदर दृश्य है जो आकाश में अपने रंगों की अद्भुत छटा बिखरा देता है। यह प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है जो वर्षा के पश्चात् आकाश में जल के सूक्ष्म कणों में दिखाई देता है। यह वायुमंडल में उपस्थित जल की छोटी-छोटी बूंदों द्वारा सूर्य के प्रकाश के परिक्षेपण के कारण प्राप्त होता है। इंद्र धनुष हमेशा सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है।
जल की सूक्ष्म बूंदें छोटे प्रिज्मों की तरह कार्य करती हैं। सूर्य के आपतित प्रकाश को ये बूंदें अपवर्तित तथा विक्षेपित करती हैं और फिर इसे आंतरिक परावर्तित करती हैं। जल की बूंद से बाहर निकलते समय प्रकाश को पुनः अपवर्तित करती हैं। प्रकाश के परिक्षेपण तथा आंतरिक परावर्तन के कारण विभिन्न वर्ण प्रेक्षक के नेत्रों तक पहुँचते हैं। इसी को इंद्रधनुष कहते हैं।
प्रश्न 17.
कारण दीजिए, सूर्य उसके वास्तविक उदय से दो मिनट पहले देखा जा सकता है।
उत्तर-
वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण, सूर्य से आने वाली किरणें वायुमंडल में प्रवेश करने पर अभिलंब की ओर झुक जाती हैं जिसके कारण सूर्य की वास्तविक स्थिति जब क्षितिज से नीचे होती है, सूर्य हमें दिखाई देने लगता है। इसी प्रकार सूर्यास्त के समय भी जब सूर्य क्षितिज से नीचे चला जाता है, सूर्य आभासी स्थिति में दिखाई देता है। इस प्रकार सूर्य वास्तविक सूर्योदय से 2 मिनट पूर्व एवं वास्तविक सूर्यास्त के 2 मिनट बाद तक दिखाई देता है।
प्रश्न 18.
सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य की चक्रिका चपटी क्यों प्रतीत होती है ?
उत्तर-
वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण, सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पहले दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट बाद तक दिखाई देता रहता है। वास्तविक सूर्योदय से अर्थ हैसूर्य द्वारा वास्तव में क्षितिज को पार करना। सूर्य की क्षितिज के सापेक्ष वास्तविक तथा आभासी स्थितियाँ चित्र में दर्शायी गयी हैं। वास्तविक सूर्यास्त और आभासी सूर्यास्त के बीच समय का अंतर लगभग 2 मिनट है। इसी परिघटना के कारण ही सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य की चक्रिका चपटी प्रतीत होती है।
प्रश्न 19.
टिंडल प्रभाव क्या है ? समझाइए।
उत्तर-
टिंडल प्रभाव (Tyndall Effect)-जिस प्रकार अंधेरे कमरे में प्रकाश की किरण में, वायु में धूल के कण चमकते हुए दिखाई पड़ते हैं, उसी प्रकार लेसों से केंद्रित प्रकाश को कोलॉइडी विलयन में डालकर समकोण दिशा में रखे एक सूक्ष्मदर्शी से देखने पर कोलॉइडी कण अंधेरे में घूमते हुए दिखाई देते हैं। इस घटना के आधार पर वैज्ञानिक टिंडल ने कोलॉइडी विलयनों में एक प्रभाव का अध्ययन किया जिसे टिंडल प्रभाव कहा गया।
अत: कोलॉइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन (scattering of light) के कारण टिंडल प्रभाव होता है। कोलॉइडी कणों का आकार प्रकाश की तरंगदैर्घ्य (wavelength of light) से कम होता है। अतः प्रकाश की किरणों के कोलॉइडी कणों पर पड़ने पर वे प्रकाश की ऊर्जा का अवशोषण करके टिंडल प्रदीप्त शंक स्वयं आत्मदीप्त हो जाते हैं। अवशोषित ऊर्जा के पुनः छोटी तरंगों के प्रकाश के रूप में प्रकीर्णित होने से नीले रंग का एक शंकु दिखता है, जिसे टिंडल शंकु (Tyndall cone) कहते हैं और यह प्रभाव टिंडल प्रभाव कहलाती है।
प्रश्न 20.
निकट दृष्टि दोष क्या होता है ? इस दोष वाले व्यक्ति की आंख में वस्तु का प्रतिबिंब कहां बनता है तथा यह दोष किस किस्म की ऐनकों से ठीक किया जा सकता है ?
अथवा
आँख के निकट दृष्टि दोष का कारण क्या है ? इसे कैसे ठीक किया जाता है ? चित्र की सहायता से वर्णन करें।
उत्तर-
मनुष्य की आँख के दोष- एक सामान्य स्वस्थ आँख अपनी फोकस दूरी को इस प्रकार संयोजित करती है कि पास तथा दूर पड़ी सभी वस्तुओं का प्रतिबिंब रेटिना (Retina) पर बन जाए परंतु कभी-कभी आँख की इस संयोजन शक्ति में कमी आ जाती है जिससे प्रतिबिंब दृष्टिपटल पर ठीक से नहीं बनता है। इससे दीर्घ दृष्टि (Long Sightedness) तथा निकट दृष्टि (Short Sightedness) के दोष हो जाते हैं। इनके अतिरिक्त प्रेस्बायोपिया, रंगांधता और एस्टग्माटिज्म रोग भी बहुत सामान्य है।
1. दीर्घ-दृष्टि दोष (Long Sightedness or Hypermotropia)-इस दोष से ग्रसित व्यक्ति को दूर स्थित वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं परंतु समीप पड़ी हुई वस्तुएं स्पष्ट दिखाई नहीं देती हैं। इसका कारण यह है कि समीप स्थित वस्तुओं का प्रतिबिंब रेटिना के पीछे बनता है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
दीर्घ-दृष्टि दोष के कारण –
- नेत्र गोलक (Eyeball) का छोटा होना।
- आँख के क्रिस्टलीय लैंस की फोकस दूरी का अधिक हो जाना।
दीर्घ-दृष्टि दोष को दूर करना-इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लैंस (Convex Lens) का प्रयोग किया जाता है। इस लैंस के प्रयोग से निकट बिंदु से आने वाली प्रकाश किरणें किसी दूर के बिंदु से आती हुई प्रतीत होती हैं तथा समीप पड़ी वस्तुएं स्पष्ट दिखाई देने लगती हैं।
2. निकट-दृष्टि दोष (Short Sightedness or Myopia)-इस दोष वाली आँख के पास की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं परंतु दूर स्थित वस्तुएं ठीक दिखाई नहीं देती या धुंधली दिखाई देती हैं। इसका अभिप्राय यह है कि दूर बिंदु अनंत की तुलना में कम दूरी पर आ जाता है।
निकट-दृष्टि दोष के कारण-इस दोष के उत्पन्न होने के कारण –
- क्रिस्टलीय लेंस की फोकस दूरी का कम हो जाना।
- नेत्र गोलक (Eyeball) का लंबा हो जाना अर्थात् रेटिना तथा लैंस के बीच की दूरी बढ़ जाना होता है।
निकट दृष्टि दोष को दूर करना- इस दोष को दूर करने के लिए अवतल लैंस (Concave Lens) का प्रयोग करना पड़ता है जिसकी फोकस दूरी आँख के दूर बिंदु के समान होती है।
3. रंगांधता (Colour Blindness)-यह एक ऐसा रोग है जो जैविक कारणों से होता है। यह वंशानुगत होता है। इस रोग में रोगी विशेष रंगों की पहचान नहीं कर पाता क्योंकि उसकी आँखों में रेटिना पर शंकु (cone) जैसी संरचनाएं अपर्याप्त होती हैं। आँखों में लाल, नीले और हरे रंग को पहचानने वाली कोशिकाएं होती हैं। रंगान्ध व्यक्ति की आँख में कम शंक्वाकार रचनाओं के कारण वह विशेष रंगों को नहीं पहचान पाता। इस रोग का कोई उपचार नहीं है। ऐसा व्यक्ति प्रत्येक वस्तु ठीक प्रकार से देख सकता है पर कुछ रंगों की पहचान नहीं कर पाता।
4. प्रेस्बायोपिया (Presbyopia)- यह रोग आयु से संबंधित है। लगभग सभी व्यक्तियों को यह रोग 40 वर्ष की आयु के बाद हो जाता है। आँख के लैंस की लचक आयु के साथ कम हो जाती है। सिलियरी माँसपेशियाँ आँख के लैंस की फोकस दूरी को परिवर्तित नहीं कर पाती जिस कारण निकट की वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती। निकट दृष्टि और दूर-दृष्टि के मिले-जुले इस रोग को दूर करने के लिए उत्तल और अवतल लैंस से युक्त दो चश्मों या बाइफोकल चश्मे में दोनों लैंसों के साथ-साथ प्रयोग से इसे सुधारा जा सकता है।
5. एस्टेग्माटिज्म (Astigmatism)-एस्टेग्माटिज्म से ग्रस्त व्यक्ति एक साथ अपनी दोनों आँखों को फोकस नहीं कर पाता। यह रोग कॉर्निया के पूर्ण रूप से गोलाकार न होने के कारण होता है। विभिन्न दिशाओं में वक्रता भिन्न होती है। व्यक्ति लंबाकार दिशा में ठीक प्रकार से दृष्टि फोकस नहीं कर पाता। इस रोग को सिलेण्ड्रीकल लैंस लगे चश्मे से सुधारा जा सकता है।
प्रश्न 21.
दीर्घ दृष्टि दोष किस कारण होता है ? इसे कैसे ठीक किया जाता है ? अंकित चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर-
मनुष्य की आँख के दोष- एक सामान्य स्वस्थ आँख अपनी फोकस दूरी को इस प्रकार संयोजित करती है कि पास तथा दूर पड़ी सभी वस्तुओं का प्रतिबिंब रेटिना (Retina) पर बन जाए परंतु कभी-कभी आँख की इस संयोजन शक्ति में कमी आ जाती है जिससे प्रतिबिंब दृष्टिपटल पर ठीक से नहीं बनता है। इससे दीर्घ दृष्टि (Long Sightedness) तथा निकट दृष्टि (Short Sightedness) के दोष हो जाते हैं। इनके अतिरिक्त प्रेस्बायोपिया, रंगांधता और एस्टग्माटिज्म रोग भी बहुत सामान्य है।
1. दीर्घ-दृष्टि दोष (Long Sightedness or Hypermotropia)-इस दोष से ग्रसित व्यक्ति को दूर स्थित वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं परंतु समीप पड़ी हुई वस्तुएं स्पष्ट दिखाई नहीं देती हैं। इसका कारण यह है कि समीप स्थित वस्तुओं का प्रतिबिंब रेटिना के पीछे बनता है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
दीर्घ-दृष्टि दोष के कारण –
- नेत्र गोलक (Eyeball) का छोटा होना।
- आँख के क्रिस्टलीय लैंस की फोकस दूरी का अधिक हो जाना।
दीर्घ-दृष्टि दोष को दूर करना-इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लैंस (Convex Lens) का प्रयोग किया जाता है। इस लैंस के प्रयोग से निकट बिंदु से आने वाली प्रकाश किरणें किसी दूर के बिंदु से आती हुई प्रतीत होती हैं तथा समीप पड़ी वस्तुएं स्पष्ट दिखाई देने लगती हैं।
2. निकट-दृष्टि दोष (Short Sightedness or Myopia)-इस दोष वाली आँख के पास की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं परंतु दूर स्थित वस्तुएं ठीक दिखाई नहीं देती या धुंधली दिखाई देती हैं। इसका अभिप्राय यह है कि दूर बिंदु अनंत की तुलना में कम दूरी पर आ जाता है।
निकट-दृष्टि दोष के कारण-इस दोष के उत्पन्न होने के कारण –
- क्रिस्टलीय लेंस की फोकस दूरी का कम हो जाना।
- नेत्र गोलक (Eyeball) का लंबा हो जाना अर्थात् रेटिना तथा लैंस के बीच की दूरी बढ़ जाना होता है।
निकट दृष्टि दोष को दूर करना- इस दोष को दूर करने के लिए अवतल लैंस (Concave Lens) का प्रयोग करना पड़ता है जिसकी फोकस दूरी आँख के दूर बिंदु के समान होती है।
3. रंगांधता (Colour Blindness)-यह एक ऐसा रोग है जो जैविक कारणों से होता है। यह वंशानुगत होता है। इस रोग में रोगी विशेष रंगों की पहचान नहीं कर पाता क्योंकि उसकी आँखों में रेटिना पर शंकु (cone) जैसी संरचनाएं अपर्याप्त होती हैं। आँखों में लाल, नीले और हरे रंग को पहचानने वाली कोशिकाएं होती हैं। रंगान्ध व्यक्ति की आँख में कम शंक्वाकार रचनाओं के कारण वह विशेष रंगों को नहीं पहचान पाता। इस रोग का कोई उपचार नहीं है। ऐसा व्यक्ति प्रत्येक वस्तु ठीक प्रकार से देख सकता है पर कुछ रंगों की पहचान नहीं कर पाता।
4. प्रेस्बायोपिया (Presbyopia)- यह रोग आयु से संबंधित है। लगभग सभी व्यक्तियों को यह रोग 40 वर्ष की आयु के बाद हो जाता है। आँख के लैंस की लचक आयु के साथ कम हो जाती है। सिलियरी माँसपेशियाँ आँख के लैंस की फोकस दूरी को परिवर्तित नहीं कर पाती जिस कारण निकट की वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती। निकट दृष्टि और दूर-दृष्टि के मिले-जुले इस रोग को दूर करने के लिए उत्तल और अवतल लैंस से युक्त दो चश्मों या बाइफोकल चश्मे में दोनों लैंसों के साथ-साथ प्रयोग से इसे सुधारा जा सकता है।
5. एस्टेग्माटिज्म (Astigmatism)-एस्टेग्माटिज्म से ग्रस्त व्यक्ति एक साथ अपनी दोनों आँखों को फोकस नहीं कर पाता। यह रोग कॉर्निया के पूर्ण रूप से गोलाकार न होने के कारण होता है। विभिन्न दिशाओं में वक्रता भिन्न होती है। व्यक्ति लंबाकार दिशा में ठीक प्रकार से दृष्टि फोकस नहीं कर पाता। इस रोग को सिलेण्ड्रीकल लैंस लगे चश्मे से सुधारा जा सकता है।
प्रश्न 22.
नेत्र के जरा-दूरदर्शिता तथा वर्णांधता दोषों से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
1. जरा-दूरदर्शिता- कुछ व्यक्तियों में निकट-दृष्टि व दूर-दृष्टि दोनों दोष एक साथ होते हैं, इसे ज़रा-दूरदर्शिता कहते हैं। ऐसे व्यक्ति द्विफोकसी लैंस का प्रयोग करते हैं, जिसका ऊपरी भाग अवतल व नीचे का भाग उत्तल लैंस होता है। ऊपरी भाग दूर की वस्तुओं को देखने के लिए तथा निचला भाग समीप की वस्तुओं को देखने (पढ़ने आदि में) के लिए काम आता है।
2. वर्णांधता-यह दोष मनुष्य की आँख में शंक्वाकार कोशिकाओं की कमी के कारण होता है। इन कोशिकाओं की कमी के कारण मनुष्य की आँख कुछ निश्चित रंगों के लिए सुग्राही होती है। यह दोष मनुष्य की आँख में जन्मजात (आनुवंशिक) होता है तथा इसका कोई भी उपचार नहीं है। इस दोष वाले व्यक्ति सामान्यत: ठीक प्रकार से देख तो सकते हैं, परंतु रंगों में भेद करना उनके लिए संभव नहीं हो पाता। इस रोग को वर्णांधता कहते हैं।
प्रश्न 23.
निम्नलिखित परिभाषा दो : अनुकूलन शक्ति, दूरस्थ बिंदु, निकट बिंदु, स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी, दृष्टि-स्थिरता।
उत्तर-
अनुकूलन शक्ति- हमारी आँख सभी दूर स्थित और निकट स्थित वस्तुओं को देख सकती है। आँख की इस विशेषता को जिसके द्वारा आँख अपने लैंस की शक्ति को परिवर्तित करके भिन्न-भिन्न दूरी पर पड़ी वस्तुओं को देख सकती है, अनुकूलन शक्ति कहा जाता है।
दूरस्थ बिंदु (Far Point)-आँख से अधिकतम दूरी पर स्थित वह बिंदु जिस पर पड़ी हुई वस्तु को आँख स्पष्ट रूप से देख सकती है, दूरस्थ बिंदु कहा जाता है। सामान्य दृष्टि के लिए (Normal eye sight) दूरस्थ बिंदु अनंत पर होता है।
निकट बिंदु (Near Point)-आँख से न्यूनतम दूरी पर स्थित उस बिंदु को जिस पर पड़ी हुई वस्तु को आँख स्पष्ट रूप से देख सकती है, निकट बिंदु कहा जाता है।
स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी (Least Distance of distinct vision)-दूरस्थ बिंदु और निकट बिंदु के मध्य एक ऐसा बिंदु जहां पर वस्तु को रखने से वस्तु बिलकुल स्पष्ट दिखाई देती है, स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी कहा जाता है। सामान्य दृष्टि के लिए स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 25 सेमी० है।
दृष्टि-स्थिरता (Persistence of vision)-जब किसी वस्तु का प्रतिबिंब आँख के रेटिना पर बनता है तो वस्तु को हटा देने के बाद इस प्रतिबिंब का प्रभाव कुछ समय के लिए बना रहता है। इस प्रभाव को दृष्टि स्थिरता कहा जाता है।
प्रश्न 24.
आसमान का रंग नीला क्यों दिखाई देता है ?
उत्तर-
आसमान का रंग नीला दिखाई देना-जब सूर्य का सफेद प्रकाश धरती के वातावरण में से गुज़रता है तो प्रकाश का वातावरण छोटे-छोटे अणुओं द्वारा परस्पर क्रिया होने के कारण उसके विभिन्न रंगों मे प्रकीर्णन होता है।
रैले नियम अनुसार, प्रकाश के प्रकीर्णन की तीव्रता Iα\(\frac{1}{\times 4}\) , जहां λ. प्रकाश की तरंग लंबाई (λ3) लाल रंग की तरंग लंबाई (λR) की तुलना में बहुत कम है, इसलिए हवा के अणुओं द्वारा नीले रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन लाल रंग के प्रकाश के मुकाबले अधिक होता है।
संख्यात्मक प्रश्न (Numerical Problems)
प्रश्न 1.
एक निकट-दृष्टि दोष वाला व्यक्ति अपनी आँख से 75 cm से अधिक दूर की वस्तु स्पष्ट नहीं देख पाता है। दूर की वस्तुओं को देखने के लिए उसे किस प्रकार के तथा किस फोकस दूरी के लैंस की आवश्यकता होगी ?
हल-
∴ मनुष्य 75 cm से अधिक दूरी पर स्थित वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख सकता; इसलिए दूर (अनंत) की वस्तुओं को देखने के लिए उसे एक ऐसे लैंस की आवश्यकता होगी जो अनंत पर रखी हुई वस्तु का प्रतिबिंब 75 cm की दूरी पर बना दे।
यहां υ = -75 cm, u = – ∞, f = ?
लैंस के सूत्र \(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}-\frac{1}{u}\) दवारा
\(\frac{1}{f}=-\frac{1}{75}+\frac{1}{\infty}\) द्वारा
अतः लैंस की फोकस दूरी (f) = – 75 cm
ऋणात्मक चिन्ह दर्शाता है कि लैंस अवतल लैंस है।
प्रश्न 2.
एक दूर-दृष्टि से पीड़ित व्यक्ति की आँख के लिए निकट-बिंदु की दूरी 0.50 m है। इस व्यक्ति के दृष्टि-दोष के निवारण हेतु चश्मे में प्रयुक्त लैंस की प्रकृति, फोकस दूरी एवं क्षमता ज्ञात कीजिए।
हल : निकट बिंदु दूरी 0.50 m है। इसका अर्थ यह है कि मनुष्य 0.50 m से कम दूरी पर रखी वस्तु को स्पष्ट नहीं देख सकता। उसे एक ऐसे लैंस की आवश्यकता होगी जो 25 cm दूरी पर रखी हुई वस्तु का प्रतिबिंब 0.50 m की दूरी पर बना दे।
यहां ν = -0.50 m, u = – 25 cm = – 0.25 m, f= ?
लैंस के सूत्र \(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}-\frac{1}{u}\) से
\(\frac{1}{f}=-\frac{1}{0.50}+\frac{1}{0.25}\)
= \(\frac{-1+2}{0.50}=\frac{1}{0.50}\)
अत: लैंस की फोकस दूरी (f) = 0.50 m (उत्तल लैंस)
धनात्मक चिन्ह दर्शाता है कि लैंस उत्तल लैंस है।
लैंस की क्षमता (P) = \(\frac{1}{f}\)
∴ P = \(\frac{1}{0.50}\) = 2 डायॉप्टर।
प्रश्न 3.
एक व्यक्ति 20 cm दूरी पर रखी पुस्तक पढ़ सकता है। यदि पुस्तक को 30 cm दूर रख दिया जाए तो व्यक्ति को चश्मा प्रयुक्त करना पड़ता है। गणना कीजिए
(i) प्रयुक्त लैंस की फोकस दूरी,
(ii) प्रयुक्त लैंस का प्रकार,
(iii) किरण-आरेख खींचकर नेत्र दोष स्पष्ट कीजिए।
हल :
दिया है, ν = – 20 cm, u = – 30 cm, f = ?
(i) लैंस के सूत्र \(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}-\frac{1}{u}\) में मान रखने पर,
\(\frac{1}{f}=-\frac{1}{20}+\frac{1}{30}\)
= \(\frac{-3+2}{60}\)
= \(-\frac{1}{60}\)
अतः प्रयुक्त लैंस की फोकस दूरी (f) = – 60 cm
(ii) चूँकि फोकस दूरी ऋणात्मक है; इसलिए प्रयुक्त लैंस अवतल लैंस होगा।
(iii) नेत्र निकट दृष्टि दोष से ग्रसित है।
प्रश्न 4.
एक निकट दृष्टि दोष से ग्रसित रोगी का दूर बिंद (Far Point) 40 सेमी. है। इसे किस प्रकार के लैंस का प्रयोग करना चाहिए कि दूर की वस्तुएं साफ़ दिखाई देने लगें। फोकस दूरी और लैंस की शक्ति भी ज्ञात करो।
हल :
यहां u = – ∝ ; ν = – 40 सेमी०; f = ?
लैंस सूत्र \(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}-\frac{1}{u}\) का प्रयोग करके
\(\frac{1}{f}=-\frac{1}{40}-\frac{1}{(-\propto)}\)
= \(-\frac{1}{40}\)
f = – 40 सेमी०
= – 0.4 मी०
अब लैंस की क्षमता (P) = \(\frac{1}{f}\)
= \(\frac{1}{-0.4}\)
= – 2.5 D
रोगी को अवतल लैंस का प्रयोग करना चाहिए जिसकी शक्ति – 2.5 D हो।
प्रश्न 5.
एक निकट दृष्टि वाले व्यक्ति का दूर बिंदु 20 सेमी० है। उससे 2.5 मी० दूर रखे टेलीविज़न को देखने के लिए कितनी शक्ति का कौन-सा लैंस प्रयोग करना चाहिए ?
हल :
यहां u = – 2.5 मी०;
ν = – 20 सेमी० = – 0.2 मी०;
f= ?
लैंस सूत्र द्वारा
\(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}-\frac{1}{u}\)
= \(\frac{1}{(-0.2)}-\frac{1}{(-2.5)}\)
\(\frac{1}{f}\) = -5+0.4
= – 4.6
पर P = \(\frac{1}{f}\)
∴P = – 4.6 D
f = \(-\frac{1}{4.6}\)
f = -0.2174 मी०
= 21.74 सेमी०
उसे – 4.6 D शक्ति का अवतल लैंस प्रयोग में लाना चाहिए।
प्रश्न 6.
एक निकट दृष्टि वाले व्यक्ति का निकट बिंदु 50 सेमी० है। यदि वह 20 सेमी० दूर से अखबार पढ़ना चाहता है तो उसके चश्मे की शक्ति बताइए।
हल : यहां u = – 20 सेमी०, ν = – 50 सेमी०, f = ?
लैंस सूत्र \(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}-\frac{1}{u}\) द्वारा
\(\frac{1}{f}=-\frac{1}{50}-\frac{1}{(-20)}\)
= \(-\frac{1}{50}+\frac{1}{20}\)
= \(\frac{-2+5}{100}\)
= \(\frac{3}{100}\)
∴ f = \(\frac{100}{3}\) = 33.3 सेमी० = + 0.333 मी०
लैंस की शक्ति (P) = \(\frac{1}{f}=\frac{1}{+0.333}\) P = + 0.3 D
उसे + 0.3 D शक्ति का उत्तल लैंस प्रयोग में लाना चाहिए।
अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
स्वस्थ नेत्र का निकट बिंदु कहाँ स्थित होता है ?
उत्तर –
स्वस्थ नेत्र का निकट बिंदु नेत्र से 25 cm दूरी पर स्थित होता है।
प्रश्न 2.
स्वस्थ नेत्र का दूर बिंदु कहाँ स्थित होता है ?
उत्तर-
स्वस्थ नेत्र का दूर बिंदु अनंत पर स्थित होता है।
प्रश्न 3.
निकट-दृष्टि दोष के निवारण के लिए किस प्रकार के लैंस का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर-
निकट-दृष्टि दोष के निवारण के लिए अवतल लैंस का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 4.
दूर-दृष्टि दोष के निवारण के लिए किस प्रकार के लैंस का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर-
दूर-दृष्टि दोष के निवारण के लिए उत्तल लैंस का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 5.
एक व्यक्ति के चश्मे में अवतल लैंस लगा है। बताइए उस व्यक्ति की आँख में कौन-सा दोष है ?
उत्तर-
व्यक्ति की आँख में निकट-दृष्टि दोष है।
प्रश्न 6.
एक व्यक्ति के चश्मे में उत्तल लैंस लगा है। बताइए उस व्यक्ति की आँख में कौन-सा दोष है ?
उत्तर-
व्यक्ति की आँख में दूर-दृष्टि दोष है।
प्रश्न 7.
एक व्यक्ति के चश्मे के ऊपरी भाग में अवतल लैंस तथा निचले भाग में उत्तल लैंस लगा है। मनुष्य की आँख में कौन-कौन से दोष हैं ?
उत्तर-
मनुष्य की आँख में निकट-दृष्टि एवं दूर-दृष्टि दोनों दोष (जरा-दूरदर्शिता दोष) है।
प्रश्न 8.
एक व्यक्ति को पुस्तक पढ़ने के लिए पुस्तक को आँख से 35 cm दूर रखना पड़ता है। उसकी दृष्टि में कौन-सा दोष है तथा इसका निवारण करने के लिए उसे किस प्रकार का लैंस प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
दूर-दृष्टि दोष है; अत: उसे उत्तल लैंस का प्रयोग करना चाहिए।
प्रश्न 9.
एक व्यक्ति की दृष्टि क्षमता को 25 सेमी० से अनंत तक बढ़ाने के लिए किस प्रकार के लैंस की आवश्यकता होगी ?
उत्तर-
एक व्यक्ति की दृष्टि क्षमता को 25 सेमी० से अनंत तक बढ़ाने के लिए अवतल लैंस की आवश्यकता होगी।
प्रश्न 10.
प्रिज्म से निर्गत प्रकाश में किस रंग की किरण का विचलन कोण सबसे कम होता है ?
उत्तर-
लाल रंग की किरण का विचलन कोण सबसे कम होता है।
प्रश्न 11.
प्रिज्म से निर्गत प्रकाश में किस रंग की किरण का विचलन कोण सर्वाधिक होता है ?
उत्तर-
बैंगनी रंग की किरण का विचलन कोण सर्वाधिक होता है।
प्रश्न 12.
काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण कितने वर्षों में होता है ?
उत्तर-
काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण सात वर्णों-
- बैंगनी (Violet),
- नीला (Indigo),
- आसमानी (Sky Blue),
- हरा (Green),
- पीला Yellow,
- नारंगी (Orange) तथा
- लाल (Red) में होता है।
प्रश्न 13.
प्रिज्म से प्राप्त स्पेक्ट्रम के किस रंग की तरंग-दैर्घ्य अधिकतम होती है ?
उत्तर-
लाल रंग की तरंग-दैर्घ्य अधिकतम होती है।
प्रश्न 14.
प्रिज्म से प्राप्त स्पेक्ट्रम के किस रंग की तरंग-दैर्घ्य न्यूनतम होती है ?
उत्तर-
बैंगनी रंग की तरंग दैर्घ्य न्यूनतम होती है।
प्रश्न 15.
प्रिज्म से प्राप्त स्पेक्ट्रम में कौन-सा रंग प्रिज्म के आधार की ओर प्राप्त होता है ?
उत्तर-
बैंगनी रंग का प्रकाश प्रिज्म के आधार की ओर प्राप्त होता है।
प्रश्न 16.
आकाश का रंग नीला क्यों दिखाई पड़ता है ?
उत्तर-
नीले रंग के प्रकाश का अधिक प्रकीर्णन होने के कारण आकाश का रंग नीला दिखाई पड़ता है।
प्रश्न 17.
अंतरिक्ष यात्रियों को आकाश का रंग कैसा दिखाई पड़ता है ?
उत्तर-
अंतरिक्ष यात्रियों को आकाश का रंग काला दिखाई पड़ता है।
प्रश्न 18.
मनुष्य की आँख में स्कलेरॉटिक का क्या कार्य है ?
उत्तर–
स्कलेरॉटिक आँख के भीतरी भाग की सुरक्षा करती है और आँख को आकार देती है।
प्रश्न 19.
मनुष्य की आँख में पक्ष्माभ माँसपेशियों का क्या कार्य है ?
उत्तर-
पक्ष्माभ मांसपेशियां आँख के लैंस को जकड़ कर रखती हैं तथा लैंस की फोकस दूरी को आवश्यकतानुसार परिवर्तित करने में सहायता करती हैं।
प्रश्न 20.
चित्र में कौन-सी प्रकाशीय क्रिया दर्शाई गई है ?
उत्तर–
प्रकाश के विक्षेपण।
प्रश्न 21.
नीचे दिए गए चित्र में कौन-सी प्रकाशीय प्रक्रिया के फलस्वरूप तारा अपनी स्थिति बदलता है ?
उत्तर-
प्रकाश अपवर्तन।
प्रश्न 22.
मानव आँख का दृष्टिदोष चित्र में दर्शाया गया है। बताओ यह कौन-सा दोष है ?
उत्तर-
दीर्घ दृष्टि दोष।
प्रश्न 23.
नीचे दिए गए चित्र में अवतल लेंस द्वारा मानव आँख के किस दोष को ठीक किया जा रहा है ?
उत्तर-
निकट दृष्टिदोष।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सामान्य दृष्टि के वयस्क के लिए सुस्पष्ट दर्शन की न्यूनतम दूरी होती है लगभग
(a) 35m
(b) 3.5m
(c) 25cm
(d) 2.5cm.
उत्तर-
(c) 25cm.
प्रश्न 2.
अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन किया जाता है
(a) पुतली द्वारा
(b) दृष्टि पटल द्वारा
(c) पक्ष्माभी द्वारा
(d) परितारिका द्वारा।
उत्तर-
(c) पक्ष्माभी द्वारा।
प्रश्न 3.
निकट-दृष्टि दोष से पीड़ित एक व्यक्ति 1.2m से दूरी की वस्तुओं को नहीं देख सकता। सुस्पष्ट दृष्टि के लिए वह संशोधक लैंस उपयोग करेगा –
(a) अवतल लैंस
(b) सिलिंडरी लैंस
(c) उत्तल लैंस
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) अवतल लैंस।
प्रश्न 4.
सामान्य मानव नेत्र का दूर बिंद –
(a) 25cm पर होता है
(b) 25mm पर होता है
(c) 25m पर होता है
(d) अनंत पर होता है।
उत्तर-
(a) 25cm पर होता है।
प्रश्न 5.
मानव नेत्र में वस्तु का प्रतिबिंब
(a) पुतली पर बनता है
(b) परितारिका पर बनता है
(c) कार्निया पर बनता है
(d) रेटिना पर बनता है।
उत्तर-
(d) रेटिना पर बनता है।
प्रश्न 6.
परितारिका नेत्र में किसके पीछे स्थित है ?
(a) पुतली
(b) रेटिना
(c) कॉर्निया
(d) नेत्र गोलक।
उत्तर-
(c) कॉर्निया।
प्रश्न 7.
जब नेत्र में प्रकाश किरणें प्रवेश करती हैं तब अधिक प्रकाश किससे अपवर्तित होता है ?
(a) क्रिस्टलीय लैंस
(b) कार्निया के बाहरी तल
(c) पुतली
(d) आयरिस।
उत्तर-
(b) कार्निया के बाहरी तल।
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) मानव आँख में किसी वस्तु का प्रतिबिंब ………………………… पर बनता है।
उत्तर-
रेटिना
(ii) सामान्य दृष्टि के मनुष्य के लिए सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी लगभग ……………………….. होती है।
उत्तर-
25 cm
(iii) दूर-दृष्टि दोष का निवारण ………………………………….. के प्रयोग द्वारा किया जाता है।
उत्तर-
उत्तल लेंस
(iv) तारों का टिमटिमाना तारों के प्रकाश का ………………………….. के कारण होता है।
उत्तर-
वायुमंडलीय अपवर्तन
(v) वर्षा के बाद आकाश में इंद्रधनुष का दिखाई देना सूर्य प्रकाश के ………………….. तथा …………………………. के कारण होता है।
उत्तर-
परिक्षेपण, आंतरिक परावर्तन।