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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 11 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार
याद रखने योग्य बातें (Points to Remember)
→ हम अपनी आँखों की सहायता से प्रकाश का उपयोग करके अपने चारों ओर की वस्तुओं को देखने के लिए समर्थ बनाते हैं।
→ मानव नेत्र अति मूल्यवान और सुग्राही ज्ञानेंद्रिय है। मानव नेत्र एक कैमरे की तरह है। इसका लैंस-निकाय एक प्रकाश-सुग्राही पर्दे पर प्रतिबिंब बनाता है। इस पर्दे को रेटिना या दृष्टिपटल कहते हैं।
→ कॉर्निया नेत्र गोलक के अग्र पृष्ठ पर उभार बनाती हैं। क्रिस्टलीय लैंस विभिन्न दूरियों को रेटिना पर फोकस करता है।
→ परितारिका पुतली के साइज को नियंत्रित करती है।
→ रेटिना पर प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं होती हैं जो विद्युत् सिग्नल उत्पन्न कर उन्हें मस्तिष्क तक पहुँचाती है।
→ दृष्टि तंत्रिका के किसी भी भाग के क्षतिग्रस्त होने पर चाक्षुष विकृति उत्पन्न होती है।
→ अभिनेत्र लैंस की वक्रता में परिवर्तन होने पर इसकी फोकस दूरी बदल जाती है।
→ अभिनेत्र लैंस की क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है, समंजन कहलाती है।
→ किसी वस्तु को सुस्पष्ट देखने के लिए नेत्रों से वस्तु को कम-से-कम 25 cm दूर रखना चाहिए।
→ किसी वयस्क के लिए निकट बिंदु की आँख से दूरी लगभग 25 cm होती है।
→ मोतियाबिंद ग्रस्त होने पर शल्यचिकित्सा के बाद दृष्टि का लौटना संभव होता है।
→ मानव के एक नेत्र का क्षैतिज दृष्टि क्षेत्र लगभग 150° है जबकि दो नेत्रों द्वारा यह लगभग 180° हो जाता है।
→ दृष्टि के तीन सामान्य दोष होते हैं-
- निकट दृष्टि (Myopia),
- दीर्घ दृष्टि (Hypermetropia)
और - जरा-दूर दृष्टिता (Presbyopia)।
→ निकट दृष्टि दोष को उपयुक्त क्षमता के अवतल लैंस से संशोधित किया जा सकता है।
→ दीर्घ-दृष्टि दोष को उपयुक्त क्षमता के उत्तल लैंस से संशोधित किया जा सकता है।
→ जरा-दूर दृष्टिता दोष के लिए द्विफोकसी लैंसों (Bi-focal lens) की आवश्यकता होती है।
→ आजकल संस्पर्श लैंस (Contact lens) द्वारा दृष्टि दोषों का संशोधन संभव है।
→ कांच की त्रिभुज प्रिज्म प्रकाश की किरणों को अपवर्तित कर देती है।
→ श्वेत प्रकाश के अवयवी वर्गों में विभाजन को विक्षेपण कहते हैं।
→ न्यूटन ने सर्वप्रथम सूर्य का स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए कांच की प्रिज्म का उपयोग किया था।
→ कोई भी प्रकाश जो सूर्य के प्रकाश के सदृश स्पेक्ट्रम बनाता है, प्राय: श्वेत प्रकाश कहलाता है।
→ वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं।
→ वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय लगभग 2 मिनट पूर्व दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट पश्चात् तक दिखाई देता रहता है।
→ प्रकाश का प्रकीर्णन ही आकाश का नीले रंग, समुद्र का रंग, सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य का लाल रंग होने का कारण है।
→ टिंडल प्रभाव कणों से विसरित प्रकाश का परावर्तित होकर हमारे पास पहुँचाता है।
→ लाल रंग कोहरे या धुएं से सबसे कम प्रकीर्ण होता है इसलिए दूर से देखने पर भी वह लाल ही दिखाई देता है।