This PSEB 10th Class Science Notes Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन will help you in revision during exams.
PSEB 10th Class Science Notes Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
याद रखने योग्य बातें (Points to Remember)
→ वायु, मृदा एवं जल हमारे प्राकृतिक संसाधन हैं।
→ इन संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना चाहिए जिससे संसाधनों का सप्रदूषण हो सके तथा इससे पर्यावरण का संक्षारण भी हो सके।
→ कोयला तथा पेट्रोलियम भी हमारे प्राकृतिक संसाधन हैं, जिन्हें संप्रदूषित रखने की आवश्यकता है।
→ पर्यावरण को बचाने के लिए तीन ‘Rs’ का उपयोग किया जा रहा है।
→ ये तीनों R क्रमश: Reduce (कम करो), Recycle (पुनः चक्रण), Reuse (पुनः प्रयोग) हैं।
→ पुन: चक्रण का अर्थ है कि काँच, प्लास्टिक, धातु की वस्तुएं आदि का पुनः चक्रण करके उन्हें फिर से उपयोगी वस्तुओं में बदलना।
→ पुनः उपयोग, पुनः चक्रण से भी अधिक अच्छा तरीका है, क्योंकि इसमें हम किसी चीज़ का उपयोग बार-बार कर सकते हैं।
→ पुनः चक्रण में कुछ ऊर्जा व्यय होती है।
→ गंगा सफ़ाई योजना (Ganga Action Plan) करीब 1985 में इसलिए आई, क्योंकि गंगा के जल की | गुणवत्ता बहुत कम हो गई थी।
→ कोलिफार्म जीवाणु का एक वर्ग है जो मानव की आंत्र में पाया जाता है।
→ हमें सूर्य से ऊर्जा भी पृथ्वी पर उपस्थित जीवों के द्वारा प्रक्रमों से तथा अनेक भौतिक तथा रासायनिक प्रक्रमों द्वारा ही मिलती है।
→ प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करते समय लंबी अवधि को ध्यान में रखना पड़ता है।
→ खुदाई से भी प्रदूषण होता है, क्योंकि धातु के निष्कर्षण के साथ-साथ बड़ी मात्रा में स्लेग भी मिलता है।
→ विभिन्न व्यक्ति फल, नट्स तथा औषधि एकत्र करने के साथ-साथ अपने पशुओं को वन में चराते हैं और उनका चारा भी वन से ही एकत्र करते हैं।
→ हमें वनों से टिंबर, कागज़, लाख तथा खेल के समान आदि भी मिलते हैं।
→ जल धरती पर रहने वाले सभी जीवों की मूल आवश्यकता है। जल जीवन सहारा देने वाले तंत्र का मुख्य अवयव है। यह हमारे शरीर की सभी रासायनिक प्रक्रियाओं में भाग लेता है। मुख्यतः यह हमारे शरीर के ताप का नियमन करता है तथा मलमूत्र के विसर्जन में सहायता करता है।
→ जल वातावरण में जलवायु के नियमन का कार्य करता है। जल धाराओं से मशीनें चलती हैं तथा बिजली बनती है। जल कृषि तथा उद्योगों के लिए भी आवश्यक है।
→ जल संभर प्रबंधन में मिट्टी एवं जल संक्षारण पर जोर दिया जाता है, जिससे कि ‘जैव-मात्रा’ उत्पादन में वृद्धि हो सके।
→ इसका मुख्य उद्देश्य भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों का विकास, द्वितीय संसाधन पौधों एवं जंतुओं का उत्पाद इस प्रकार करना है जिससे पारिस्थितिक असंतुलन पैदा न हो जाए।
→ जीवाश्म ईंधन, जैसे कि कोयला एवं पेट्रोलियम अंततः समाप्त हो जाएँगे। क्योंकि उनकी मात्रा सीमित है और इनके दहन से पर्यावरण प्रदूषित होता है, अतः हमें इन संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता है।