Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 3(iii) पवनों के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 3(iii) पवनों के अनावृत्तिकरण कार्य
PSEB 11th Class Geography Guide पवनों के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Questions and Answers
1. प्रश्नों के उत्तर दें-
प्रश्न (क)
विश्व का सबसे बड़ा मरुस्थल कौन-सा है ?
उत्तर-
सहारा।
प्रश्न (ख)
मरुस्थल कितने प्रकार के होते हैं ? उनके नाम लिखें।
उत्तर-
पवनों के अनावृत्तिकरण कार्य Solutions
- रेतीला मरुस्थल-सहारा में अरग।
- पथरीला मरुस्थल-अल्जीरिया में रैग।
- चट्टानी मरुस्थल-सहारा में हमादा।
प्रश्न (ग)
अरग किसे कहते हैं ?
उत्तर-
रेतीले मरुस्थल को।
प्रश्न (घ)
क्या रेत के टीले सदा स्थिर रहते हैं ?
उत्तर-
नहीं, ये खिसकते रहते हैं।
प्रश्न (ङ)
लोइस मैदानों की मिट्टी का रंग कैसा होता है और उनमें किन फसलों की खेती की जाती है ?
उत्तर-
पीला रंग और गेहूँ की खेती।
प्रश्न (च)
हवा और पवन में क्या अंतर है ?
उत्तर-
वायुमंडल के दबाव कारण हवा चलती है, परंतु गतिशील हवा को पवन कहते हैं।
प्रश्न (छ)
मुसामदार चट्टानों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जिनमें पानी निचली सतह पर चला जाता है।
प्रश्न (ज)
तटवर्ती रेत के टीले कैसे बनते हैं ?
उत्तर-
जब हवा रेत को जमा करती है।
2. निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट करें-
(i) बरखान — लोइस
(ii) जालीदार पत्थर — डरीकंटर
(iii) ज़िऊजन — यारडांग
(iv) नखलिस्तान — इनसलबर्ग
(v) रेतीले मरुस्थल — चट्टानी मरुस्थल।
उत्तर-
(i) बरखान (Barkhan)- बरखान अर्ध-चंद्र के आकार के टीले हैं। इनका आकार धनुष के समान होता है। इनके सिरों को हॉर्न कहा जाता है।
लोइस (Loess) – बारीक मिट्टी के निक्षेप को लोइस कहते हैं। चीन के उत्तर-पश्चिमी भाग में पीली मिट्टी के निक्षेप को लोइस कहते हैं।
(ii) जालीदार पत्थर (Stone Lattice)-
जब नर्म और कठोर चट्टाने मिलकर बनती हैं, तब नर्म भाग रगड़े जाने से समाप्त हो जाते हैं, परंतु कठोर भाग जालीनुमा आकार में खड़े रहते हैं, जिन्हें जालीदार पत्थर कहा जाता है।
डरीकंटर (Driekanter)-
जब चट्टानों के खुरचने की क्रिया लगातार एक ही दिशा में होती रहती है, तो चट्टानें एक त्रिकोण के समान बन जाती हैं, जिन्हें डरीकंटर कहा जाता है।
(iii) ज़िऊजन (Zeugen)-
- ढक्कनदार दवात के आकार के स्थल रूपों को ज़िऊजन कहते हैं।
- इनका ऊपरी भाग कठोर होता है परंतु निचला भाग नर्म होने के कारण अधिक चौड़ा होता है।
यारडंग (Yardang)-
- नुकीली चट्टानों को यारडंग कहते हैं।
- इसमें नर्म और कठोर चट्टानें लंब रूप में होती हैं।
(iv) नखलिस्तान (Oasis)-
अपवाहन (Deflation) की क्रिया के दौरान चट्टानों की ऊपरी परतें हटती जाती हैं और सतह के नीचे वाला पानी चट्टानों के ऊपर आ जाता है, जिसके इर्द-गिर्द के क्षेत्र को नखलिस्तान कहते हैं।
इनसलबर्ग (Insellberg)-
पवनों के अपरदन से कई क्षेत्रों में कठोर चट्टानों की छोटी-छोटी पहाड़ियाँ बन जाती हैं। ये ग्रेनाइट जैसी कठोर चट्टानों से बनती हैं। इन्हें इनसलबर्ग कहते हैं।
(v) रेतीले मरुस्थल (Sandy Deserts)-
ऐसे मरुस्थल, जिनमें अधिकतर रेत ही पाई जाती है। यहाँ से रेत के कण बड़ी आसानी से पवन अपने साथ उड़ाकर ले जाती है। जैसे-सहारा।।
चट्टानी मरुस्थल (Rocky Deserts)-
ऐसे बंजर क्षेत्र, जिनकी ऊपरी नर्म परतें घिसकर बिल्कुल समाप्त हो जाती हैं और केवल चट्टानी टीले या बंजर क्षेत्र ही रह जाते हैं। जैसे-हमादा।
3. निम्नलिखित के उत्तर सौ शब्दों में दीजिए-
प्रश्न (क)
पवनें मरुस्थल में अनावृत्तिकरण का साधन है। व्याख्या करें।
उत्तर-
पवनों के अनावृत्तिकरण कार्य (Denudation Works of Winds)-
वायु और पवन-हवा वायुमण्डल के दबाव से चलती है और इस चलती या गतिशील हवा को पवन (Wind) कहते हैं। दबाव में जब अंतर पैदा होता है, तो पवनें चलती हैं। ये अधिक दबाव (High Pressure) से कम दबाव (Low Pressure) वाले क्षेत्रों की ओर चलती हैं। जिस दिशा से पवन उत्पन्न होती है, उसे पवन की दिशा कहा जाता है, भाव उस दिशा को पवन का नाम दिया जाता है।
पवनों की अनावृत्तिकरण क्रिया-यह केवल कम वर्षा, कम वनस्पति, दूसरे शब्दों में शुष्क या मरुस्थलीय क्षेत्रों में ही अधिक कार्य करती है। मरुस्थलीय क्षेत्र ऐसे क्षेत्र होते हैं, जिनमें वर्षा 25 सेंटीमीटर से भी कम और वहाँ अत्यधिक तापमान होता है। इस प्रकार की जलवायु के कारण ऐसे क्षेत्रों में किसी प्रकार की वनस्पति नहीं होती और पवनों के चलने में भी किसी प्रकार की रुकावट नहीं होती और यह अनावृत्तिकरण का कार्य करती रहती हैं। विश्व के अधिकतर मरुस्थल महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में मिलते हैं। 20° से 30° उत्तरी अक्षांशों के बीच पंजाब का दक्षिण-पश्चिमी (South-West) भाग अर्द्धशुष्क (Semiarid) भाग है, जो वास्तव में थार मरुस्थल में ही मिल जाता है। पवनें निम्नलिखित कारणों के कारण ही मरुस्थल में अनावृत्तिकरण की क्रिया अधिक करती हैं-
1. भौतिक मौसमीकरण-मरुस्थल नमी-युक्त क्षेत्रों से बिल्कुल भिन्न होते हैं। नमीयुक्त क्षेत्रों में रासायनिक मौसमीकरण आम है, परंतु शुष्क क्षेत्रों में भौतिक मौसमीकरण ही हो सकता है। नमक निकालना (Salt wedging) इसका ही उदाहरण है।
2. वर्षा की कमी-मरुस्थलीय इलाकों में मिट्टी और वर्षा की कमी होने के कारण वनस्पति भी कम ही होती है, इसलिए पवनें अपना काम कर सकती हैं।
3. गैर मुसामदार चट्टानें-मरुस्थलों का अधिकतर क्षेत्र गैर मुसामदार (Impermeable) होता है, जिसके कारण धरती की निचली सतह पर कोई कमी नहीं होती है।
4. रेतीले मरुस्थल-जो मरुस्थल अधिक रेतीले होते हैं, वे हवा या वर्षा के कारण और अधिक फैलते जाते हैं। इनका आकार (Size) बढ़ता जाता है।
5. अल्पकालिक नदियाँ–अधिकतर नदियाँ मौसमी या अल्पकालिक (Ephemeral) होती हैं, जोकि केवल वर्षा के समय ही थोड़े समय के लिए चलती हैं और वर्षा के एकदम बाद समाप्त हो जाती हैं।
इसलिए हम कह सकते हैं कि मरुस्थलीय क्षेत्रों में वर्षा, वनस्पति आदि कम होने के कारण पवनें अधिकतर काम करती हैं। यहाँ केवल झाड़ीदार घास या काँटेदार पौधे ही कहीं-कहीं मिलते हैं।
प्रश्न (ख)
पवनें अपघर्षण की क्रिया के दौरान कौन-कौन-सी भू-आकृतियाँ बनाती हैं ? व्याख्या करें।
उत्तर-
पवनों (हवा) का कार्य (Work of Winds)-
मरुस्थल और शुष्क प्रदेशों में वनस्पति और नमी की कमी के कारण हवा अनावरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। हवा के कार्य यांत्रिक (Mechanical) होते हैं। हवा भी अन्य साधनों के समान अपरदन, ढुलाई और निक्षेप का काम करती है।
अपरदन (Erosion)-
- हवा का वेग (Wind Velocity) तेज़ वेग वाली पवनें अधिक मात्रा में अपरदन करती हैं। तेज़ हवा में रेत के कणों की अधिक मात्रा होती है और अधिक कटाव होता है। तेज़ हवा शक्तिशाली होती है और अपरदन अधिक करती है।
- रेत के कणों का आकार (Size of Sand Particles)–धरातल के नज़दीक 2 मीटर से 6 मीटर की ऊँचाई तक रेत के कणों की अधिक मात्रा के कारण अधिक कटाव होता है। अधिक ऊँचाई और रेत के कणों की कमी के कारण कम कटाव होता है।
- चट्टानों की रचना (Nature of Rocks)—कठोर चट्टानों पर अपरदन कम होता है।
- जलवायु (Climate)-शुष्क जलवायु में मौसमीकरण (Weathering) की क्रिया के कारण अधिक कटाव होता है।
कटाव या अपरदन के रूप (Types of Erosion)-
- नीचे का कटाव (Under cutting)
- नालीदार कटाव (Gully Erosion)
- खुरचना (Scratching)
- चमकाना (Polishing)
अपरदन (Erosion)-हवा द्वारा कटाव तीन प्रकार से होता है-
1. अपवाहन (Deflation)-हवा द्वारा रेत के सूक्ष्म और शुष्क कणों को ऊपर उठाने की क्रिया को अपवाहन कहते हैं। (Deflation is the complete blowing away of fine dust.) हवा रेत और बारीक मिट्टी के कणों को हज़ारों किलोमीटर दूर तक ले जाती है। इसमें मिट्टी का कटाव होता है और खड्डे बनते हैं।
खड्डों (Depressions) का बनना-हवा जिस स्थान से रेत उड़ाकर ले जाती है, उस स्थान पर कई बड़े-बड़े खड्डे बन जाते हैं। इन खड्डों में भूमिगत पानी आकर नखलिस्तान बना देता है, जिस प्रकार मिस्र का कतारा खड्डा समुद्र तल से 140 मीटर गहरा है।
2. टूट-फूट (Attrition)—हवा के धूल-कण एक-दूसरे से टकराकर चूरा-चूरा हो जाते हैं। इस क्रिया को टूट फूट कहते हैं।
3. अपघर्षण (Abrasion)-हवा में रेत के कण हवा के अपरदन के उपकरण (Tools) होते हैं। तेज़ चाल वाली हवा धूल-कणों को शक्ति के साथ चट्टानों से टकराती है। ये कण एक रेगमार (Sand Paper) की तरह कटाव करते हैं। इस घर्षण की क्रिया से नीचे लिखे भू-आकार बनते हैं, जिनका रूप अलग-अलग होता है-
(i) छत्रक कुकुरमुत्ता चट्टान (Mushroom Rocks)-चट्टानों के निचले भाग में चारों तरफ से नीचे का कटाव (Under Cutting) होता है। इस कटाव से एक पतले से आधार-स्तंभ (Pillar) के ऊपर एक छाते के आकार की कठोर चट्टान खड़ी रहती है। चट्टानों के नीचे एक गुफ़ा बन जाती है। इसे छत्र-आकारी (Mushroom) या गारा (Gara) कहते हैं। इन चट्टानों का आकार खंभ के समान होता है। इसलिए इन्हें खुंभ-आकारी चट्टान भी कहते हैं।
(ii) ज़िऊजन (Zeugen)-ढक्कनदार दवात के आकार के स्थल रूपों को ज़िऊजन कहते हैं। ऊपरी भाग कठोर और कम चौड़ा होता है, पर निचला भाग नरम और अधिक कटाव के कारण अधिक चौड़ा होता है। ज़िऊजन तब बनते हैं, जब कठोर और नरम चट्टानें एक-दूसरे के समानांतर (Horizontal) बिछी होती हैं। कठोर चट्टानी भाग कोमल चट्टानों पर एक टोपी का काम करता है।
(iii) यारडांग (Yardang) हवा के लगातार एक ही दिशा में कटाव के कारण नुकीली चट्टानों का निर्माण होता है। इन्हें यारडांग कहते हैं। ये लगभग 15 मीटर ऊँची और पसलियों (Ribs) के समान तेज़ ढलान वाली होती हैं। ये भूआकार कठोर और नरम खड़ी चट्टानों (Vertical Rocks) के कारण बनते हैं।
(iv) पुल और खिड़की (Bridge and Window)-लंबे समय तक कटाव के कारण चट्टानों के बीच बडे-बडे छेद बन जाते हैं। चट्टानों के आर-पार एक महराब (Arch) के आकार का निर्माण होता है, जिन्हें पवन खिड़की या पुल कहते हैं, जैसे-यू०एस०ए० में Hope Window.
(v) इनसलबर्ग (Insellberg)-कठोर चट्टानों के ऊँचे टीलों को इनसलबर्ग कहते हैं। चारों तरफ से कटाव के कारण ये तिरछी और तेज़ ढलान वाले गुबंद आकार के होते हैं। ये ग्रेनाइट (Granite) और जनीस (Geniss)
जैसी कठोर चट्टानों से बने होते हैं। ये रेत के समूह में पहाड़ी द्वीप के समान दिखाई देते हैं। भारत में रायपुर के निकट कूपघाट में ऐसे टीले मिलते हैं।
प्रश्न (ग)
पवनों की जमा करने की क्रिया का विस्तार सहित वर्णन करें।
उत्तर-
निक्षेप (Deposition)-जब हवा का वेग कम हो जाता है, तो उसे अपना भार कहीं-न-कहीं छोड़ना पड़ता है। इस निक्षेप से रेत के टीले और लोइस प्रदेश बनते हैं।
I. रेत के टीले (Sand Dunes)-जब रेत के मोटे कण टीलों के रूप में जमा हो जाते हैं, तो उन्हें रेत के टीले कहते हैं। (Sand Dunes are hills on wind blown Sand.) इनके बनने के नीचे लिखे क्षेत्र हैं-
- रेतीले मरुस्थलों में
- रेतीले समुद्री तटों पर
- झीलों के तट पर
- नदियों के तट पर।
रेत के टीलों के लिए कुछ ज़रूरी शर्ते (Essential Conditions) होती हैं-
- रेत की अधिक मात्रा
- तेज़ हवा
- हवा के मार्ग में रुकावट
- उपयुक्त स्थान।
रेत की टीलों के प्रकार (Types of Sand Dunes)-
1. लंबाकार रेत के टीले (Longitudinal Dunes)-यह प्रचलित हवा की दिशा के समानांतर बनते हैं। ये रेत की लंबी दीवारें होती हैं। इनका आकार लंबी पहाड़ी के समान होता है। इन्हें सहारा मरुस्थल में सीफ़ (Seif) कहते हैं।
2. रेत के आड़े टीले (Transverse Dunes)-यह प्रचलित हवा की दिशा के समकोण पर आर-पार बनते हैं। यह कम गति वाली हवा के लगातार एक ही दिशा में बहने से बनते हैं। इनका आकार अर्द्ध-चंद्र जैसा होता है।
3. बरखान (Barkhan)-ये अर्द्ध-चंद्र आकार के टीले होते हैं, जिनमें पवनमुखी ढलान उत्तल (Convex) और पवनाविमुखी ढलान अवतल (Concave) होती है। इनका आकार दरांती (Sickle) अथवा दूज के चाँद (Crescent Moon) अथवा धनुष के समान होता है। ये झुंडों या कतारों में मिलते हैं। इनके सिरों को Horns कहते हैं। इनके सिरों पर कम रुकावट होने के कारण ये आगे को बढ़ते रहते हैं। राजस्थान में शाहगढ़ के । निकट बहुत सारे बरखान मिलते हैं। ये रेत के टीले खिसकते रहते हैं और कई शहर रेत के नीचे दब जाते हैं। राजस्थान का मरुस्थल इसी कारण पंजाब की ओर बढ़ता जा रहा है। सहारा मरुस्थल में ये प्रतिवर्ष 30 मीटर आगे की ओर बढ़ जाते हैं और ऐसे प्रदेशों को अरग (Erg) कहते हैं।
II. लोइस (Loess)-दूर-दूर के स्थानों से उठाकर लाई हुई बारीक मिट्टी के जमाव को लोइस कहते हैं। यह मिट्टी पानी चूस लेती है। पानी के साथ मिट्टी नीचे परतों में बैठ जाती है। यह बहुत उपजाऊ होती है। मरुस्थलों की सीमा पर रेत के बारीक कणों के निक्षेप से लोइस प्रदेश बनते हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण प्रदेश चीन के उत्तरपश्चिमी भाग में पीली मिट्टी का लोइस का प्रदेश है, जो लगभग 5 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस प्रदेश में पीली नदी ‘ह्वांग हो’ गहरी घाटियों का निर्माण करती है।
Geography Guide for Class 11 PSEB पवनों के अनावृत्तिकरण कार्य Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-
प्रश्न 1.
पवन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
गतिशील हवा को पवन कहते हैं।
प्रश्न 2.
मरुस्थल किस प्रकार के क्षेत्र हैं ?
उत्तर-
जहाँ वार्षिक वर्षा 25 सैंटीमीटर से कम हो।
प्रश्न 3.
किन अक्षांशों में मरुस्थल स्थित हैं ?
उत्तर-
20°–30°.
प्रश्न 4.
पंजाब के किस भाग में अर्द्ध-मरुस्थल हैं ?
उत्तर-
दक्षिण-पश्चिमी भाग।
प्रश्न 5.
विश्व के सबसे बड़े मरुस्थल का नाम बताएँ।
उत्तर-
अफ्रीका में सहारा।
प्रश्न 6.
विश्व के सबसे शुष्क मरुस्थल का नाम बताएं।
उत्तर-
दक्षिणी अमेरिका में अटाकामा।
प्रश्न 7.
खंड आकार की चट्टानों का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
सहारा में।
प्रश्न 8.
भारत में यारडांग कहाँ मिलते हैं ?
उत्तर-
जैसलमेर (राजस्थान में)।
प्रश्न 9.
खिड़की और पुल का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
यू०एस०ए० में रेनबो ब्रिज।
प्रश्न 10.
लोइस के मैदान कहाँ स्थित हैं ?
उत्तर-
चीन के उत्तर-पश्चिमी भाग में।
अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-
प्रश्न 1.
पवनों का कार्य किन क्षेत्रों में अधिक होता है ?
उत्तर-
मरुस्थलों में।
प्रश्न 2.
अपवाहन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हवा द्वारा रेत के सूक्ष्म कणों को ऊपर उठाने की क्रिया को अपवाहन कहते हैं।
प्रश्न 3.
अपवाहन के दो प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
खड्डे बनना और मिट्टी का कटाव।
प्रश्न 4.
सहघर्षण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
रेत के कणों के आपस में टकराकर चूरा-चूरा होने की क्रिया को सहघर्षण कहते हैं।
प्रश्न 5.
घर्षण क्रिया से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
रेत के कणों द्वारा चट्टानों को रेगमार की तरह घिसाने की क्रिया को घर्षण क्रिया कहते हैं।
प्रश्न 6.
कतारा डुंघान कहाँ है ?
उत्तर-
मिस्र देश में।
प्रश्न 7.
पवनों के द्वारा अपरदन किन तत्त्वों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-
- वायु वेग
- रेत कणों का आकार
- चट्टानों की रचना
- जलवायु।
प्रश्न 8.
छत्रक/खुंभ (कुकुरमुत्ता) चट्टानें क्या होती हैं ?
उत्तर-
चट्टानों के निचले कटाव के कारण, एक पतले स्तंभ के ऊपर छाते के आकार की कठोर चट्टानों को छत्रक/ खुंभ चट्टानें कहते हैं।
प्रश्न 9.
ज़िऊजन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ढक्कनदार दवात के आकार के स्थल रूपों को ज़िऊजन कहते हैं।
प्रश्न 10.
यारडांग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नर्म चट्टानों के ऊपर कठोर चट्टानों की नुकीली चट्टानों को यारडांग कहते हैं।
प्रश्न 11.
इनसलबर्ग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गुंबद आकार की कठोर चट्टानों के टीलों को इनसलबर्ग कहते हैं।
प्रश्न 12.
बरखान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ये अर्द्ध-चंद्र के आकार के रेत के टीले हैं, जिनमें पवनमुखी ढलान उत्तल (Convex) होती है और पवनाविमुखी ढलान अवतल (Concave) होती है।
प्रश्न 13.
लोइस से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बारीक रेत के कणों के निक्षेप को लोइस प्रदेश कहते हैं, जैसे-चीन के उत्तर-पश्चिमी भाग में।
लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)
नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-
प्रश्न 1.
हवा का अपरदन किन कारकों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-
1. हवा का वेग (Wind Velocity) तेज़ वेग वाली पवनें अधिक मात्रा में अपरदन करती हैं। तेज़ हवा में रेत के कणों की मात्रा अधिक होती है और कटाव भी अधिक होता है। तेज़ हवा अधिक शक्तिशाली होती है और अपरदन भी अधिक करती है।
2. रेत के कणों का आकार (Size of Sand Particles)–धरातल के निकट 2 मीटर से 6 मीटर की ऊँचाई तक रेत के कणों की अधिक मात्रा के कारण कटाव अधिक होता है। अधिक ऊँचाई पर रेत के कणों की कमी के कारण कटाव कम होता है।
3. चट्टानों की रचना (Nature of Rocks) कठोर चट्टानों पर अपरदन कम होता है।
4. जलवायु (Climate)-शुष्क जलवायु में मौसमीकरण (Weathering) की क्रिया के कारण कटाव अधिक होता है।
प्रश्न 2.
बरखान क्या होते हैं ?
उत्तर-
बरखान अर्द्ध-चंद्र के आकार के टीले होते हैं, जिनमें पवनामुखी ढलान उत्तल (Convex) और पवनाविमुखी ढलान अवतल (Concave) होती है। इनका आकार दरांती (Sickle) या दूज के चाँद (Crescent Moon) या धनुष के समान होता है। ये झुंडों या कतारों में मिलते हैं। इनके सिरों को Horns कहते हैं। इनके सिरों पर रुकावट होने के कारण ये आगे को बढ़ते रहते हैं। राजस्थान में शाहगढ़ के निकट बहुत से बरखान मिलते हैं।
प्रश्न 3.
लोइस से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लोइस (Loess)-दूर-दूर के स्थानों से उठाकर लाई हुई बारीक मिट्टी के जमाव को लोइस कहते हैं। यह मिट्टी पानी चूस लेती है। पानी के साथ मिट्टी नीचे परतों में बैठ जाती है। यह मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है। मरुस्थलों की सीमा पर रेत के बारीक कणों के निक्षेप से लोइस प्रदेश बनते हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण प्रदेश चीन के उत्तर-पश्चिमी भाग में पीली मिट्टी का लोइस प्रदेश है, जो लगभग 5 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस प्रदेश में पीली नदी ‘ह्वांग हो’ गहरी घाटियों का निर्माण करती है।
प्रश्न 4.
हवा और नदी के कार्य की तुलना करें।
उत्तर
हवा का कार्य-
- हवा का कार्य मरुस्थल प्रदेशों में महत्त्वपूर्ण होता है।
- हवा अपने मलबे को दूर-दूर के प्रदेशों तक उड़ाकर ले जाती है।
- हवा का काम हवा की गति पर निर्भर करता है।
- हवा का मलबा कम होता है और काम कम गति से होता है।
नदी का कार्य-
- नदी का कार्य नमी वाले प्रदेशों में महत्त्वपूर्ण होता है।
- नदी का काम अपनी घाटी तक ही सीमित होता है।
- नदी का काम धरातल की ढलान पर निर्भर करता है।
- नदी का मलबा अधिक होता है और काम तेज़ गति से होता है।
प्रश्न 5.
रेत के लंबाकार टीलों और आड़े टीलों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
लंबाकार टीले-
- ये अर्द्ध-चंद्र के आकार के होते हैं।
- ये बहने वाली पवनों की दिशा के समानांतर बनते हैं।
- ये 100 मीटर तक ऊँचे होते हैं।
- ये तलवार के आकार के होते हैं और इन्हें सीफ भी कहा जाता है।
आड़े टील-
- ये रेत की लंबी दीवारों के समान होते हैं।
- ये बहने वाली पवनों की दिशा के समकोण पर बनते हैं।
- ये 50 मीटर तक ऊँचे होते हैं।
- ये लहरों के आकार के समान ऊँचे-नीचे होते हैं।
निबंधात्मक प्रश्न । (Essay Type Questions)
नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-
प्रश्न 1.
मरुस्थलों के भिन्न-भिन्न प्रकार बताएँ।
उत्तर-
पवनों की क्रिया (खुरचना, जमा करना) से मरुस्थल के निर्माण भी तीन प्रकार के हो सकते हैं-
1. रेतीले मरुस्थल (Sandy Deserts)—ऐसे मरुस्थल, जिनमें अधिकतर रेत ही मिलती है, वहाँ रेत के कणों __ को बड़ी आसानी से पवनें, अपने साथ उड़ाकर ले जाती हैं। इन्हें सहारा में अरग (Ergs), तुरकमेनिस्तान में काउन (Koun) कहा जाता है। सऊदी अरब में सबसे बड़ा अरग, खली (Khalli) नामक स्थान पर है, जिसका आकार 5 लाख 60 हज़ार वर्ग किलोमीटर है।
2. पथरीला मरुस्थल (Stony Deserts)—ऐसे मरुस्थल, जोकि बजरी, पत्थर आदि के टुकड़े, कंकड़ आदि से बने होते हैं, पथरीले मरुस्थल कहलाते हैं। एलजीरिया का रैग (Reg) इसका उपयुक्त उदाहरण है।
3. चट्टानी मरुस्थल (Rocky Deserts)-ऐसे बंजर क्षेत्र, जिनकी ऊपरी नर्म परतें घिसकर बिल्कुल समाप्त हो गई हों और केवल चट्टानी टीले या बंजर क्षेत्र ही हों, ऐसे क्षेत्रों को चट्टानी मरुस्थल कहते हैं। जैसे-हमादा बंजर (Hammada-Barren), सहारा मरुस्थल में ऐसे क्षेत्रों को हमादा कहते हैं।
विश्व का सबसे बड़ा मरुस्थल सहारा मरुस्थल है। यह अफ्रीका में है। थार मरुस्थल, जो कि भारत में स्थित (राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब और पाकिस्तान, पंजाब के सिंध) एक गर्म मरुस्थल है। जबकि मध्य एशिया (Central Asia) में ठंडे मरुस्थल भी हैं। ऐटाकॉमा जो कि दक्षिणी अमेरिका में संसार का सबसे शुष्क मरुस्थल है, में वार्षिक वर्षा एक मिलीमीटर से भी कम है।
प्रश्न 2.
पवनों के अपरदन कार्यों के प्रकार बताएँ। अपरदन को नियंत्रित करने वाले कारक भी बताएँ।
उत्तर-
पवनों का अपरदन कार्य (Erosional Work of Wind)-
वनस्पति से रहित शुष्क प्रदेशों में ताप-अंतर के कारण चट्टानें टूटकर छोटे-छोटे कणों में बदल जाती हैं। पवन इन कणों को अपने साथ उड़ाकर ले जाती है। ये कण काट-छाँट में पवन की सहायता करते हैं, इसलिए इन्हें पवन की कटाई के उपकरण (Cutting tools of wind) कहा जाता है।
पवन अपरदन के प्रकार (Types of Wind Erosion)-पवन रेत और धूल-कणों की सहायता से अपना अपरदन कार्य करती है। यह मुख्य रूप में भौतिक अपरदन करती है। पवन द्वारा अपरदन नीचे लिखे तीन प्रकार से होता है-
- घर्षण (Abrasion)-शुष्क प्रदेशों में पवन रेत को उड़ाकर दूर ले जाती है। इस रेत के कण पवन की अपरदन क्रिया के उपकरण के रूप में चट्टानों पर आक्रमण करते हैं जिससे चट्टानें घिसती हैं। इस क्रिया को घर्षण कहते हैं।
- सह-घर्षण (Attrition)—जब उड़ते हुए धूलकण आपसी कटाव के कारण छोटे और मुलायम हो जाते हैं, तो उस क्रिया को सह-घर्षण कहते हैं।
- अपवाहन (Deflation)-पवन द्वारा धूल-कणों को उड़ाकर बहुत दूर ले जाने की क्रिया को अपवाहन कहा जाता है।
पवन अपरदन को नियंत्रित करने वाले कारक (Factors Controlling Wind Erosion)-
पवन अपरदन को नियंत्रित करने वाले कारक नीचे लिखे हैं-
1. पवन वेग (Wind Velocity)-तीव्र पवनों से अधिक अपरदन होता है क्योंकि इसमें बड़े-बड़े धूल-कण भी उड़ते हैं। फलस्वरूप ये धूल-कण चट्टानों पर ज़ोर से हमला करके उन्हें घिसा देते हैं।
2. धूल कणों का आकार और ऊँचाई (Size of Sand Grains and Height)-धूल-कणों के आकार और ऊँचाई का भी अपरदन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। छोटे WIND आकार के धूल-कण वायु में अधिक ऊँचाई पर उड़ते हैं, परंतु बड़े-बड़े कण धरातल के निकट ही प्रवाहित होते हैं। इसलिए धरातल के निकट (2 मीटर से 6 मीटर तक) वायु अपरदन सबसे अधिक होता है और ऊँचाई के साथ यह क्रिया क्रमबद्ध कम होती जाती है।
3. चट्टानों की कठोरता (Solidity of Rocks) नर्म चट्टानें कठोर चट्टानों की तुलना में जल्दी घिसती हैं।
4. जलवायु (Climate)-शुष्क जलवायु में मौसमीकरण की क्रिया से अधिक अपरदन होता है।
कटाव तथा अपरदन के रूप (Types of Erosion)-
- नीचे का कटाव (Under Cutting)
- नालीदार कटाव (Gully Erosion)
- खुरचना (Scratching)
- चमकाना (Polishing)
प्रश्न 3.
पवनों की परिवहन क्रिया की प्रमुख विशेषताएँ और कार्य बताएँ।
उत्तर-
प्रमुख विशेषताएँ-
- पवनों के द्वारा परिवहन किसी भी दिशा में हो सकता है।
- यह कार्य भूतल के निकट कम ऊँचाई तक सीमित होता है।
- पवनों द्वारा परिवहन दूर-दूर तक होता है।
- पवनों के द्वारा बारीक धूल-कण दूर-दूर तक प्रवाहित होते हैं, परंतु भारी कण लटकते रहते हैं।
पवनों द्वारा सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर ढोना (Transportation by Wind)
पवनें चट्टानों के छोटे-छोटे टुकड़े, मिट्टी, कंकड़ आदि दरिया और ग्लेशियर की तरह ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर जाती हैं, पर पवनों का यह कार्य नदियों की तरह इतना प्रभावशाली नहीं होता। मरुस्थलों में यह क्रिया देखी जा सकती है। पवनें कई प्रकार से यह कार्य करती हैं-
1. पवन की गति जितनी अधिक होगी, उतना ही अधिक सामान उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर जा सकेगी।
2. जब पवन धीरे चलती है, तो अपने साथ कई छोटे-छोटे रेत के कण उड़ाकर ले जाती है, पर जब तेज़ चलती है, तो बिजली के खंभे, पेड़ आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है। कई बार चट्टानों के बड़े टुकड़े भी पवनों के साथ-साथ सरकते रहते हैं। भारी होने के कारण वे उड़ नहीं सकते।
3. उदाहरण के लिए, एक मिट्टी का तूफान (Dust storm) जिसका व्यास 500 कि०मी० है, 10 करोड़ (100 मिलीयन) टन तक मिट्टी उठा सकता है और 30 मीटर ऊँची और 3 किलोमीटर आधार की चौड़ी पहाड़ी बना सकता है। थार मरुस्थल में जब तेज़ आंधी चलती है, तो हमें तीन फुट की दूरी से भी नज़र नहीं आता। इससे पता चलता है कि पवन के साथ उठाया सामान देखने के मार्ग में रुकावट बनता है। पवन में मिट्टी के कण, कंकड़, पत्थर आपस में रगड़ खाने के कारण आकार में छोटे हो जाते हैं। जब पवन की गति कम हो जाती है, तो यह इस सामान को जमा करने का कार्य शुरू कर देती है।
रेत के टीलों का खिसकना (Shifting of Sand dunes)-पवन की दिशा निश्चित नहीं होती, इसलिए रेत के टीले पवनों की दिशा के परिवर्तन के अनुसार खिसकते रहते हैं। इसलिए, ये स्थिर नहीं होते। पवन जिस दिशा की ओर चलती है, बालू के टीले भी इसके साथ खिसक जाते हैं। आगे बढ़ते रेत के टीले उपजाऊ मैदानों को बहुत क्षति पहुंचाते हैं। जल्दी उगने वाले और लंबी जड़ों वाले पेड़ों को ऐसे मरुस्थलीय क्षेत्रों में लगाया जाता है, ताकि इन टीलों को आगे बढ़ने से रोका जा सके। यह 5 से 30 मीटर वार्षिक दर से आगे खिसक सकते हैं।