PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 5(i) ज्वालामुखी

PSEB 11th Class Geography Guide ज्वालामुखी Textbook Questions and Answers

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
ज्वालामुखी की परिभाषा दें।
उत्तर-
यह धरातल पर एक गहरा छेद होता है, जिसके द्वारा धरती के नीचे से गर्म गैसें, तरल और ठोस पदार्थ बाहर. . निकलते हैं।

प्रश्न 2.
ज्वालामुखी क्रियाओं के क्या कारण हैं ?
उत्तर-

  1. भू-गर्भ में उच्च-ताप
  2. भीतरी लावे के भंडार।

प्रश्न 3.
ज्वालामुखी कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-

  • सक्रिय ज्वालामुखी
  • शांत ज्वालामुखी
  • मृत ज्वालामुखी।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी

प्रश्न 4.
ज्वालामुखी करेटर क्या होता है ? इसका निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर-
ज्वालामुखी के मुँह के ऊपर बने हुए खड्डे को करेटर कहते हैं। यह कटोरे के समान कीप आकार का होता है। लगातार विस्फोट के कारण इसका आकार बड़ा हो जाता है।

प्रश्न 5.
कैलडरा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
विशाल करेटर को कैलडरा कहते हैं।

प्रश्न 6.
बैथोलिथ और लैकोलिथ में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
बैथोलिथ का अर्थ है-लावे का भंडार। ये धनुष के आकार के होते हैं। इसे छत्र भी कहते हैं। जब काफी गहराई पर लावा एक गुंबद आकार में जम जाता है, तो उसे बैथोलिथ कहते हैं। एक-दूसरे के समानांतर जमाव को लैकोलिथ कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी

प्रश्न 7.
गीज़र और वाष्प द्वार (Fumards) में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
फव्वारे के समान उछलकर अपने-आप निकलने वाले गर्म पानी के चश्मे को गीज़र (Geyser) कहते हैं। धरती की पपड़ी के सुराख में से धुआँ, गैस और जल वाष्प के बाहर निकलने को वाष्प द्वार (Fumarols) कहते हैं।

प्रश्न 8.
विस्फोट के समय की सीमा के आधार पर ज्वालामुखियों को कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर-

  • हवाईयन विस्फोट
  • सटरोंबोलीयन विस्फोट
  • वोलकेनीयन विस्फोट
  • पेलीनीयन विस्फोट।

प्रश्न 9.
ज्वालामुखी विस्फोट के समय निकलने वाले पदार्थों के नाम लिखें।
उत्तर-

  • जल वाष्प और गैसें।
  • मैगमा और लावा।
  • ठोस पदार्थ-राख, धूल कण, लैपीली।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी

प्रश्न 10.
विश्व में ज्वालामुखियों के क्षेत्रीय विभाजन का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. विश्व के अधिकतर ज्वालामुखी पेटियों (Belts) में मिलते हैं।
  2. अधिकतर ज्वालामुखी कमज़ोर क्षेत्रों में मिलते हैं।
  3. ज्वालामुखी आमतौर पर भूकंप की पेटियों के साथ-साथ मिलते हैं।
  4. अधिकतर ज्वालामुखी समुद्र के निकट या द्वीपों पर मिलते हैं।
  5. ज्वालामुखी मोड़दार पहाड़ी प्रदेशों में या दरारों के निकट मिलते हैं।

विश्व के ज्वालामुखी क्षेत्र (Volcanic Zones of the world) – विश्व में भूकंप कुछ विशेष क्षेत्रों में ही आते हैं। अधिकतर भूकंप उन क्षेत्रों में आते हैं, जहाँ नवीन बलदार पर्वत मिलते हैं। इसके अतिरिक्त ज्वालामुखी क्षेत्रों में भी भूकंप उत्पन्न होते हैं। भूकंप-क्षेत्र अग्रलिखित हैं-

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी 1

1. प्रति-प्रशांत महासागर तटीय पेटी (Circum Pacific Belt)–यह पेटी प्रशांत महासागर के चारों तरफ के तटीय भागों में फैली हुई है। यह ज्वालामुखी क्षेत्रों की प्रमुख पेटी है, जिसे प्रशांत महासागर का अग्निचक्र (Pacific Ring of Fire) कहते हैं। इस पेटी में विश्व के लगभग दो-तिहाई भूकंप उत्पन्न होते हैं। जापान, अलास्का (Alaska), कैलीफोर्निया (California), मैक्सिको और चिली (Chile) इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। जापान में वर्ष-भर में लगभग 1500 भूकंप आते हैं।

2. मध्यवर्ती विश्व-पेटी (Mid-World Belt)-यह पेटी यूरोप और एशिया की पश्चिम-पूर्व दिशा में बलदार पर्वतों में स्थित है। इस पेटी के अंतर्गत अल्पस (Alps), कॉकेसस (Caucasus), हिमालय पर्वतमाला और पूर्वी द्वीप समूह आते हैं।

Geography Guide for Class 11 PSEB ज्वालामुखी Important Questions and Answers

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
ज्वालामुखी क्रियाओं के कारण बताएँ।
उत्तर-
ज्वालामुखी क्रियाओं के कारण (Causes of Volcanic Activity) ज्वालामुखी क्रिया एक रहस्यमयी घटना है। ज्वालामुखी का संबंध धरती के भीतरी भाग (Interior) से है। इसकी कार्यशीलता के कई कारण हैं-

1. धरती के भू-गर्भ में बढ़ता तापमान-धरती के भीतरी भाग की ओर जाने पर प्रति 32 मीटर के बाद 1°C तापमान बढ़ जाता है। 90 कि०मी० की गहराई पर तापमान इतना बढ़ जाता है कि चट्टानें ठोस अवस्था में नहीं रह सकतीं। अनेक रेडियो-एक्टिव (Radio-active) खनिजों के कारण भी तापमान अधिक होता है। इतने अधिक तापमान के कारण चट्टानें अति गर्म (Super heated) हो जाती हैं, परन्तु बाहरी भू-तल के दबाव के कारण वे पिघलती नहीं। जैसे ही ऊपरी दबाव कम होता है, चट्टानें पिघलकर द्रव्य रूप (Lava) में बदल जाती हैं और यह लावा बाहर की ओर बढ़ने लगता है।

2. लावे का भंडार-धरती के नीचे लावे का एक भंडार है, जिससे लावे की प्राप्ति होती है।

3. भीतरी वाष्प-धरती के नीचे का पानी भाप बन जाता है और वह वाष्प और गैसों के ज़ोर से चट्टानों को तोडकर बाहर निकलता है। जिस प्रकार सोडा-वाटर की बोतल खोलते ही गैस के साथ-साथ कुछ सोडा-वाटर भी बाहर निकल आता है। समुद्र के निकट यह क्रिया अधिक होती है।

4. कमजोर भू-भागों का होना-कमज़ोर भू-भागों में किसी भीतरी हलचल से चट्टानें आसानी से टूट जाती हैं और विस्फोट होता है। हलचल के कारण दबाव कम होता है और लावा ऊपर उठता है और बाहर निकलता है।

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प्रश्न 2.
ज्वालामुखी विस्फोट से निकलने वाले पदार्थ बताएँ।
उत्तर-
ज्वालामुखी विस्फोट के समय तीन प्रकार के पदार्थ-ठोस, तरल और गैसीय-बाहर निकलते हैं।

1. ठोस पदार्थ (Solid Material) ज्वालामुखी विस्फोट के समय बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े बाहर निकलते हैं। लावे के ठोस पिंडों को ज्वालामुखी बम (Bomb) कहते हैं। छोटे टुकड़ों को बरेसिया (Breccia) और लैपीली (Lapilli) कहते हैं। इसके अतिरिक्त बारीक राख (Cinder, ash, Pumice, tuff) भी बड़ी मात्रा में निकलती है।

2. तरल पदार्थ (Liquid Material)—ज्वालामुखी से निकलने वाला महत्त्वपूर्ण तरल पदार्थ लावा (Lava) होता है। यह सिलिका की मात्रा के आधार पर दो प्रकार का होता है-

i) तेजाबी लावा (Acid Lava)-इसमें सिलिका (Silica) की मात्रा 75% से अधिक होती है। यह गाढ़ा होता है और अधिक तापमान पर पिघलता है। यह धीरे-धीरे और थोड़ी दूरी तक बहता है। यह पीले रंग का होता है।

ii) बेसिक लावा (Basic Lava) इसमें सिलिका की मात्रा 60% से कम होती है। यह जल्दी ही पिघल जाता है और दूर तक फैल जाता है। हवाई द्वीप (Hawai islands) के ज्वालामुखी से बेसिक लावा निकलता है। यह काले रंग का होता है।

3. गैसीय पदार्थ (Gaseous Material) ज्वालामुखी से बाहर निकलने वाले गैसीय पदार्थों में जल वाष्प, भाप (Steam), सल्फर, हाइड्रोजन, कार्बन-डाइऑक्साइड, क्लोरीन आदि गैसें मिलती हैं। जलवाष्प के वायुमंडल के संपर्क में आने पर बहुत ज़ोर से वर्षा होती है। इन गैसों के कारण लपटें निकलती हैं। अलास्का को दस हज़ार ज्वालाओं की घाटी (Valley of Ten thousand smokes) कहते हैं।

प्रश्न 3.
ज्वालामुखी के अलग-अलग प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
ज्वालामुखी के प्रकार (Types of Volcanoes) विश्व में अनेक प्रकार के ज्वालामुखी मिलते हैं। अलग-अलग पदार्थों के कारण इनके आकार भी भिन्न बन जाते हैं। विस्फोट के आधार पर ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं-

1. सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcanoes)—ये वे ज्वालामुखी हैं, जिनमें समय-समय पर विस्फोट होता रहता है। विश्व में लगभग 600 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। सिसली द्वीप में ऐटना (Etna) ज्वालामुखी 2500 वर्षों से सक्रिय है। खाड़ी बंगाल में अंडमान द्वीप के पूर्व में बैरन द्वीप (Barren Island) ही केवल एक सक्रिय ज्वालामुखी है। इस ज्वालामुखी का व्यास 2 कि०मी० और ऊँचाई 27 मीटर है। इसके मुख से गंधक और गैसें निकलती हैं। हवाई द्वीप का मेना लोआ सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी है।

2. शांत ज्वालामुखी (Dormant Volcanoes)—ये ऐसे ज्वालामुखी हैं, जो लंबे समय तक शांत रहने के बाद अचानक सक्रिय हो जाते हैं। इटली में वैसुवीयस (Vesuvious) ज्वालामुखी कई वर्षों तक शांत रहने के बाद सन् 1976 में अचानक फूट पड़ा। इसमें पोंपअई (Pompeii), हरक्यूलेनियम (Herculaneum) आदि नगर लावे के नीचे दब गए। इसी प्रकार कराकटोआ ज्वालामुखी सन् 1833 में अचानक फूट पड़ा।

3. मृत ज्वालामुखी (Extinct Volcanoes)—ये ऐसे ज्वालामुखी हैं, जो पूरी तरह से ठंडे हो चुके हैं। इनका मुख मिट्टी, लावा आदि के जमाव से बंद हो गया है। आमतौर पर इनके मुख पर झीलें होती हैं। म्याँमार का पोपा (Popa) और ईरान का कोह सुल्तान (Koh Sultan) ज्वालामुखी इसी प्रकार के हैं।

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प्रश्न 4.
ज्वालामुखी विस्फोट के प्रकार बताएँ।
उत्तर-
ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption)-ज्वालामुखी विस्फोट दो प्रकार का होता है-
1. केंद्रीय विस्फोट (Central Eruption)—यह विस्फोट किसी केंद्रीय छेद के द्वारा धमाके और गड़गड़ाहट के साथ होता है। शिलाखंडों की बौछार के साथ लावा बाहर निकलता है। जापान का फ्यूज़ीयामा और इटली का वैसुवीयस इसके उदाहरण हैं।

2. दरारी विस्फोट (Fissure Eruption)-जब लावा धरातल पर पड़ी अनेक दरारों से निकलकर चारों तरफ फैल जाता है, तो यह विस्फोट होता है। ये विस्फोट आमतौर पर शांत होते हैं। ये विस्फोट पठारों का निर्माण करते हैं जैसे भारत का लावा प्रदेश और आइसलैंड में लाकी (Laki) प्रदेश।

प्रश्न 5.
ज्वालामुखी के लाभ बताएँ।
उत्तर-
ज्वालामुखी के लाभ (Advantages of Volcanoes)-ज्वालामुखी विस्फोटों से कई लाभ होते हैं और अनेक हानियाँ भी होती हैं। आज के समय में ज्वालामुखियों को प्रकृति के सुरक्षा वाल्व (Safety valves of nature) कहते हैं।

लाभ (Advantages)-

  1. ज्वालामुखी के कारण धरातल पर नए पर्वतों और नए पठारों का जन्म होता है।
  2. ज्वालामुखी के लावे से बनी मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है, जैसे भारत में काली मिट्टी का प्रदेश कपास की खेती के लिए आदर्श है।
  3. ज्वालामुखी विस्फोट से कई खनिज प्राप्त होते हैं, जैसे गंधक, चांदी आदि।
  4. ज्वालामुखी प्रदेशों में गर्म पानी के चश्मों में स्नान करने से त्वचा के कई रोग दूर हो जाते हैं।
  5. ज्वालामुखी के गढों (craters) में झीलें बन जाती हैं, जिनमें से कई नदियाँ निकलती हैं।
  6. लावा के जमाव से बनी चट्टानें भवन-निर्माण के लिए उपयोगी होती हैं।
  7. ज्वालामुखी क्षेत्रों में देखने योग्य दृश्य बन जाते हैं।
  8. ज्वालामुखी से धरती की भीतरी हालत का पता चलता है।
  9. आइसलैंड के गर्म चश्मों के पानी से खाना बनाने और कपड़े धोने का काम लिया जाता है।

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निबंधात्मक प्रश्न । (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
ज्वालामुखियों का वर्गीकरण करें। विस्फोट के समय की सीमा के आधार पर ज्वालामुखियों को। कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर
ज्वालामुखियों का वर्गीकरण (Classification of Volcanoes)-
केंद्रीय प्रकार के विस्फोट के समय निकला लावा, राख आदि शंकु आकार (Conical) ज्वालामुखियों की रचना करते हैं। ये ज्वालामुखी अनेक प्रकार के होते हैं। ज्वालामुखियों का वर्गीकरण (Classification) क्रियाशीलता और विस्फोट के आधार पर किया जाता है, जिनका उल्लेख आगे किया गया है

I. क्रियाशीलता पर आधारित वर्गीकरण (Classification Based on Activity)-
क्रियाशीलता के आधार पर ज्वालामुखी नीचे लिखे तीन प्रकार के होते हैं-

1. सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcanoes)—इन ज्वालामुखियों में विस्फोट थोड़े-थोड़े समय के बाद होता रहता है अर्थात् समय-समय पर इनमें से लावा, गैसें आदि निकलती रहती हैं। इन्हें सक्रिय ज्वालामुखी कहकर पुकारा जाता है। दक्षिणी अमेरिका के देश एक्वाडोर (Ecuador) का कोटोपैक्सी (Cotopaxi) ज्वालामुखी सर्वोच्च सक्रिय ज्वालामुखी है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई 600 मीटर है। सिसली (Sicily) का ऐटना (Etna) ज्वालामुखी पिछले कई वर्षों से सक्रिय है।

2. शांत ज्वालामुखी (Dormant Volcanoes) जो ज्वालामुखी अधिक समय तक शांत रहने के बाद अचानक जागृत हो जाते हैं, उन्हें शांत ज्वालामुखी कहते हैं। इस प्रकार के ज्वालामुखियों के विस्फोट में अक्सर लंबे समय का अंतर रहता है। इटली का वैसुवीयस (Vesuvius) ज्वालामुखी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। 79 ई० में इस ज्वालामुखी के विस्फोट के फलस्वरूप उस समय के दो प्रसिद्ध नगर पोंपञई (Pompei) और हरक्यूलेनियम (Herculaneum) इसकी गर्म राख के नीचे दबकर पूर्ण रूप से नष्ट हो गए थे। उस समय यह ज्वालामुखी पिछले सात सौ वर्षों से शांत था।

3. मृत ज्वालामुखी (Extinct Volcanoes)—कुछ ऐसे ज्वालामुखी भी हैं, जो पहले कभी एक-दो बार फटे थे, परंतु उसके बाद से वे पूर्ण रूप से शांत हैं। अब उनके विस्फोट की कोई संभावना नहीं है। इन्हें मृत ज्वालामुखी कहते हैं। बर्मा (म्यांमार) का माऊंट पोपा (Mount Popa) इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।

II. विस्फोट के आधार पर वर्गीकरण (Classification Based on Nature of Eruptions)-

ज्वालामुखियों का वर्गीकरण विस्फोट के स्वभाव के आधार पर नीचे दिया गया है-

1. हवाईयन प्रकार (Hawaian Type)-इस प्रकार के ज्वालामुखियों में जोरदार विस्फोट कम ही होते हैं। इनमें से पतला लावा शांतमयी ढंग से धीरे-धीरे निकलता है, जोकि एक विस्तृत क्षेत्र में फैल जाता है। लावे के निकलने के समय, कभी-कभी तीव्र गति से प्रवाहित होती हुई हवा लावे को धागों के रूप में उड़ाती है। धागे के समान इन पतली लावा आकृतियों को हवाई की अग्नि देवी पैले (Pele) के नाम पर पैले के बाल (Pele’s Hair) कह कर संबोधित किया जाता है। हवाई द्वीप के प्रमुख ज्वालामुखी मोना लोआ (Mauna Loa) और किलाओ (Kilauea) इसके सबसे उत्तम उदाहरण हैं।

2. सटरोंबोलीयन प्रकार (Strombolian Type)-इस प्रकार के ज्वालामुखियों का नामकरण भू-मध्य सागर में सिसली द्वीप के उत्तर में स्थित लीपेरी द्वीप समूह (Lipari Islands) के सटरोंबोलीयन ज्वालामुखी के नाम पर किया गया है। विस्फोट के बाद इसमें से लेपीली (Lapilli), प्यूमिका (Pumica), एकोरिया (Acoria), बम (Bomb) आदि पदार्थ बाहर निकलते हैं। सटरोंबोली जैसे ज्वालामुखियों में से निरंतर रूप में निकास होता रहता है। इसी कारण सटरोंबोली ज्वालामुखी को रोम सागर का प्रकाश गृह (Light house of Mediterranean) के नाम से संबोधित करते हैं।

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3. वोलकेनीयन प्रकार (Volcanian Type)-
इस प्रकार के ज्वालामुखियों का नाम सटरोंबोलीयन के निकट स्थित वोलकेनो के नाम पर रखा गया है। इसमें से निकलने वाला लावा बहुत गाढ़ा होता है। ज्वालामुखी के ऊपर भाप के घने बादल छा जाते हैं जो कि गोभी के फूल (like Cauliflower) की आकृति धारण कर लेते हैं। पेलीनियन प्रकार (Palenean Type)-पेले पश्चिमी द्वीप समूह (West Indies) का ज्वालामुखी है। इसमें भयंकर प्रकार के विस्फोट होते हैं। विस्फोट के समय बड़ी मात्रा में शिलाखंड, राख और गैसें बाहर निकलती हैं, जिससे आकाश अत्यंत धूलमय हो जाता है। इस तरह के ज्वालामुखियों में इतना भयंकर विस्फोट होता है कि आरंभिक ज्वालामुखी (craters) नष्ट हो जाते हैं और विस्फोट के स्थान पर केलडेरा (Caldera) बन जाते हैं।

5. वैसवीयस प्रकार (Vesuvius Type)-इस प्रकार के ज्वालामुखियों में निकलने वाला लावा अधिक गैस युक्त होता है जिससे विस्फोट होता है। ऊँची उठती हुई गैसों के साथ मिट्टी, राख, विखंडित शिलाओं के टुकड़े आदि भी प्रमुख मात्रा में ऊपर उठते हैं। इंडोनेशिया के क्राकटोआ (Krakatoa) ज्वालामुखी का जो विस्फोट सन् 1883 ई० में हुआ था, उसमें से निकली राख आकाश के ऊपर लगभग 6 महीने तक लटकती अवस्था में पड़ी रही।

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प्रश्न 2.
ज्वालामुखी विस्फोट के समय निकलने वाले पदार्थों के नाम लिखें।
उत्तर-
ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption)—ज्वालामुखी विस्फोट दो प्रकार का होता है-
1. केंद्रीय विस्फोट (Central Eruption)—यह विस्फोट किसी केंद्रीय छेद के द्वारा धमाके और गड़गड़ाहट से होता है। शिलाखंडों की बौछार के साथ लावा बाहर निकलता है। जापान का फ्यूज़ीयामा और इटली का वैसुवीयस विस्फोट इस प्रकार के उदाहरण हैं।

2. दरारी विस्फोट (Fissure Eruption) जब लावा धरती पर पड़ी अनेक दरारों से निकलकर चारों तरफ फैल जाता है, तो इस विस्फोट को दरारी विस्फोट कहते हैं। ये विस्फोट आमतौर पर शांत होते हैं। ये विस्फोट पठारों का निर्माण करते हैं, जैसे भारत का लावा प्रदेश और आईसलैंड में लाकी (Laki) प्रदेश।

ज्वालामुखी विस्फोट से निकलने वाले पदार्थ (Materials of Volcanic Eruptions)-

ज्वालामुखी विस्फोट के समय भू-गर्भ से जो गर्म चट्टानें और गैसें बाहर निकलती हैं, इनका सांझा नाम मैगमा (Magma) है। ज्यों-ज्यों मैगमा भू-तल की ओर आता है, तो गैसें अलग हो जाती हैं, बाकी भाग को लावा (Lava) कहते हैं। विस्फोट के समय तीन प्रकार के पदार्थ बाहर निकलते हैं-ठोस, तरल और गैसीय।

1. ठोस पदार्थ (Solid Material)-ज्वालामुखी विस्फोट के समय बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े बाहर निकलते हैं। लावे के ठोस पिंडों को ज्वालामुखी बम (Bomb) कहते हैं, जो बंदूक की गोली के समान नीचे गिरते हैं। ये लावे के जम जाने के कारण बनते हैं। छोटे टुकड़ों को बरेसिया (Breceia) और लैपीली (Lapilli) कहते हैं। इसके अतिरिक्त बारीक राख (Cinder, ash, Pumice, tuff) भी बड़ी मात्रा में निकलती है। 27 अगस्त, 1883 को क्राकटोआ (Krakatoa) द्वीप के विस्फोट के समय निकलने वाली राख (Dust) तीन साल तक वायुमंडल में रही और इसने धरती के तीन चक्कर लगाए और वायुमंडल में 25 किलोमीटर की ऊँचाई तक पहुँची।

2. तरल पदार्थ (Liquid Material)-ज्वालामुखी से निकलने वाला महत्त्वपूर्ण तरल पदार्थ लावा (Lava) होता है। यह सिलीका की मात्रा के आधार पर दो प्रकार का होता है-

1. तेजाबी लावा (Acid Lava) इसमें सिलीका (Silica) की मात्रा 75% से अधिक होती है। यह गाढ़ा होता है और अधिक तापमान पर पिघलता है। यह धीरे-धीरे और थोड़ी दूरी तक बहता है। यह पीले रंग का होता है।

2. बेसिक लावा (Basic Lava)—इसमें सिलीका की मात्रा 60% से कम होती है। यह जल्दी ही पिघल जाता है और दूर तक फैल जाता है। हवाई द्वीप (Hawai Island) के ज्वालामुखी से बेसिक लावा निकलता है। यह काले रंग का होता है।

3. गैसीय पदार्थ (Gaseous Material)-दूर से ऐसा लगता है, जैसे ज्वालामुखी से आग की लपटें (ज्वाला) निकलती हों, इसीलिए इसे ज्वालामुखी कहते हैं। ज्वालामुखी से बाहर निकलने वाले गैसीय पदार्थों में जलवाष्प, भाप (Steam), सल्फर, हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, क्लोरीन आदि गैसें मिलती हैं। जलवाष्प के वायुमंडल के संपर्क में आने से बहुत ज़ोर से वर्षा होती है। इन गैसों के कारण लपटें निकलती हैं। फटने के समय लपटें उठती हुई दिखाई देती हैं। अलास्का को दस हज़ार ज्वालाओं की घाटी (Valley of Ten thousand smokes) कहते हैं। जावा (Java) में जहरीली गैसों की एक घाटी है, जिसे मौत की घाटी (Valley of Death) कहते हैं। बहुत तेज़ वर्षा के बाद ज्वालामुखी से कीचड़ (Mud) भी निकलता है।

प्रश्न 3.
विश्व में ज्वालामुखियों के क्षेत्रीय विभाजन का वर्णन करें।
उत्तर-
ज्वालामुखियों का विभाजन (Distribution of Volcanoes)-

  1. विश्व के अधिकतर ज्वालामुखी पेटियों (Belts) में मिलते हैं।
  2. अधिकतर ज्वालामुखी कमज़ोर क्षेत्रों में मिलते हैं।
  3. ज्वालामुखी आमतौर पर भूकंप की पेटियों के साथ-साथ मिलते हैं।
  4. अधिकतर ज्वालामुखी समुद्र के निकट या द्वीपों पर मिलते हैं।
  5. ज्वालामुखी मोड़दार पहाड़ी प्रदेशों में या दरारों के निकट मिलते हैं।

विश्व के ज्वालामुखी क्षेत्र (Volcanic Zones of the world) – विश्व में भूकंप कुछ विशेष क्षेत्रों में ही आते हैं। अधिकतर भूकंप उन क्षेत्रों में आते हैं, जहाँ नवीन बलदार पर्वत मिलते हैं। इसके अतिरिक्त ज्वालामुखी क्षेत्रों में भी भूकंप उत्पन्न होते हैं। भूकंप-क्षेत्र अग्रलिखित हैं-

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी 1

1. प्रति-प्रशांत महासागर तटीय पेटी (Circum Pacific Belt)–यह पेटी प्रशांत महासागर के चारों तरफ के तटीय भागों में फैली हुई है। यह ज्वालामुखी क्षेत्रों की प्रमुख पेटी है, जिसे प्रशांत महासागर का अग्निचक्र (Pacific Ring of Fire) कहते हैं। इस पेटी में विश्व के लगभग दो-तिहाई भूकंप उत्पन्न होते हैं। जापान, अलास्का (Alaska), कैलीफोर्निया (California), मैक्सिको और चिली (Chile) इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। जापान में वर्ष-भर में लगभग 1500 भूकंप आते हैं।

2. मध्यवर्ती विश्व-पेटी (Mid-World Belt)-यह पेटी यूरोप और एशिया की पश्चिम-पूर्व दिशा में बलदार पर्वतों में स्थित है। इस पेटी के अंतर्गत अल्पस (Alps), कॉकेसस (Caucasus), हिमालय पर्वतमाला और पूर्वी द्वीप समूह आते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी

प्रश्न 4.
ज्वालामुखी की परिभाषा दें। इसके कारण बताएँ।
उत्तर-
ज्वालामुखी (Volcanoes)-भू-पटल में वह छेद (Vent), जिसमें से द्रव्य, लावा, गैस, चट्टानीय टुकडे, राख आदि पदार्थ भू-तल पर प्रकट होते हैं, उसे ज्वालामुखी (Volcanoes) कहते हैं।

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ज्वालामुखी (Volcano)–धरातल पर एक गहरा छेद होता है, जिसके द्वारा धरती के नीचे से गर्म गैसें, तरल और ठोस पदार्थ बाहर निकलते हैं। अंग्रेजी भाषा का ‘Volcano’ शब्द रोमन शब्द ‘Vulcan’ से बना है, जिसका अर्थ है’अग्नि देवता’। यही कारण है कि आज भी जापान में फ्यूज़ीयामा ज्वालामुखी की पूजा की जाती है। हिमाचल में भी ज्वालामुखी स्थल को पवित्र मानकर लोग उसकी पूजा करते हैं। ज्वालामुखी के तीन भाग होते हैं-

  1. छेद (Vent)
  2. ज्वालामुखी नली (Volcanic Pipe)
  3. ज्वालामुखी कुंड (Crater)

ज्वालामुखी की रचना (Formation of a Volcano)—पहले भीतरी हलचल के कारण धरती की किसी कमज़ोर परत के एक छेद के द्वारा बाहर निकलने वाले पदार्थ आस-पास जम जाते हैं और एक शंकु (Cone) का निर्माण करते हैं। इसकी ऊँचाई जमाव के कारण निरंतर बढ़ती जाती है। ऐसे भू-आकार को ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountain) कहते हैं।

ज्वालामुखी क्रियाओं के कारण (Causes of Volcanic Activities)–ज्वालामुखी क्रिया एक रहस्यमयी घटना है। ज्वालामुखी का संबंध धरती के भीतरी भाग (Interior) से है। इसकी कार्यशीलता के कई कारण हैं

1. धरती के भू-गर्भ में तापमान की अधिकता (Increase in temperature of Inner Earth)-धरती के भीतरी भाग की ओर जाने से प्रति 32 मीटर 1°C तापमान बढ़ जाता है। 90 कि०मी० की गहराई पर तापमान इतना बढ़ जाता है कि चट्टानें ठोस हालत में नहीं रह सकतीं। अनेकों रेडियो-एक्टिव (Radio Active) खनिजों के कारण भी ताप बढ़ जाता है। इतने अधिक ताप के कारण चट्टानें अति गर्म (Super heated) हो जाती हैं, परंतु बाहरी भूमि तल के दबाव के कारण वे पिघलती नहीं। जैसे ही ऊपरी दबाव कम होता है, चट्टानें पिघलकर द्रव्य रूप (Lava) में बदल जाती हैं और यह लावा बाहर की ओर बढ़ने लगता है।

2. भू-पटल के भीतर दबाव की कमी होना (Decrease in Pressure upon the Interior of Earth’s crust)-भू-पटल की ऊपरी परतों के दबाव के कारण भीतरी पदार्थ पूर्ण रूप से द्रव्य नहीं होते क्योंकि यह दबाव इन पदार्थों का द्रव्य-अंक (Melting Point) ऊँचा कर देता है। पर जब कभी दरारों (Faulting) और अपरदन से ऊपरी परतों का दबाव कम हो जाता है, तो भीतरी पदार्थ द्रव्य बनकर बाहर निकलने का यत्न करते हैं जिसके कारण ज्वालामुखी विस्फोट होता है।

3. गैसों का दबाव (Pressure of Gases)-भूमिगत जल प्रवाह की अधिकता के कारण वाष्प अधिक मात्रा में बनती है। यह क्रिया अधिकतर सागरों के निकट होती है। यह वाष्प लावे पर दबाव डालती है, फलस्वरूप लावा बाहर निकलना प्रारंभ हो जाता है। कई बार वाष्प अपना दबाव डालकर भू-पटल के कमज़ोर भागों से धमाका करके बाहर निकल आती है, जिस कारण द्रव्य लावे को भू-तल पर प्रकट होने के लिए मार्ग मिल जाता है।

प्रश्न 5.
ज्वालामुखी के बाहरी स्वरूप का वर्णन करें।
उत्तर-
ज्वालामुखी स्वरूप : बहिर्वेधी (Volcanic Forms : Extrusive) –
वे सभी क्रियाएँ, जो भू-गर्भ से निकलने वाले लावे और उसके द्वारा बनी भू-आकृतियों से संबंध रखती हैं, ज्वालामुखी क्रियाएँ (Volcanicity) कहलाती हैं। जब भू-गर्भ के पदार्थ भू-तल पर आकर अलग-अलग स्वरूपों में प्रकट होते हैं, तो इस क्रिया को बाहरी क्रिया कहा जाता है। इस क्रिया के स्वरूप आगे लिखे हैं-

1. ज्वालामुखी या लावा पठार (Volcanic or Lava Plateau)-ज्वालामुखी विस्फोट के समय जब इसमें से निकलने वाले लावे में यदि सिलीका की मात्रा कम हो, तो यह पतला होता है, परिणामस्वरूप वह दूरदूर तक फैल जाता है। इससे इसका आधार विस्तृत और ऊँचाई कम होती है। इसे लावा पठार कहते हैं, जैसे प्रायद्वीप भारत का दक्कन ट्रैप (Decean Trap)।

2. ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountain)-जिस छेद से लावा, गैसें आदि भू-तल पर प्रकट होती हैं, तो उस ज्वालामुखी छेद के चारों तरफ अंदर से निकलने वाले गाढ़े (Thick) पदार्थ के एकत्र होने से एक शंकु (Cone) बन जाता है, जो कुछ समय बाद बड़ा होकर पर्वत का रूप धारण कर लेता है। इसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं। अफ्रीका का किलीमंजारो, जापान का फ्यूज़ीयामा, दक्षिणी अमेरिका का ऐकोंकागुआ (Aconcagua) ऐसे ही पर्वत हैं।

3. फिशर प्रवाह (Fissure Flow)-इसमें लावे का निकास किसी एक मुख से नहीं होता, बल्कि भू-तल की लंबी दरार में से होता है और लावा एक विस्तृत क्षेत्र में फैल जाता है। 1783 में आईसलैंड का लाकी (Laki) विस्फोट और 1986 में न्यूजीलैंड का तारानेरा (Taranera) विस्फोट इसके विशेष उदाहरण हैं। लाकी में लगभग 30 किलोमीटर और तारानेरा में लगभग 15 किलोमीटर लंबी दरार थी।

4. ऊष्ण चश्मे (Hot Springs)–जब भूमिगत जल पृथ्वी की काफी गहराई में पहुँच जाता है, तो वहाँ बहुत अधिक ऊष्णता के होने के कारण वह जल गर्म हो जाता है और चट्टानों की चौड़ी दरारों से होता हुआ भूतल पर आ जाता है। इसे ऊष्ण स्रोत या चश्मा कहते हैं। हिमाचल प्रदेश में मनाली के निकट ऊष्ण चश्मे और पार्वती घाटी में परिगंगा ऊष्ण स्रोत इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

5. गीज़र (Geyser)—यह भू-तल पर ऊष्ण जल का एक फव्वारा होता है। इसमें जल रुक-रुक कर उछलता है। गीज़र भू-पटल के भीतरी भाग में स्थित किसी जल-भंडार से संबंधित होता है। भू-गर्भ की अत्यधिक गर्मी के कारण इस जल-भंडार का जल बहुत गर्म हो जाता है और उबलने लग जाता है। फलस्वरूप यह फैलता है। फैलने के लिए खुला स्थान न होने के कारण यह भू-पटल की ओर बढ़ता है और फव्वारे के समान ऊपर आकाश की ओर उछलता है। इसे उछाल चश्मा या गीज़र कहा जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में यैलोस्टोन पार्क में दो सौ से अधिक गीज़र हैं।

6. क्रेटर झील (Crater Lake) ज्वालामुखी के ठंडे हो जाने पर कभी-कभी इसके मुख में जल भर जाता है और इस प्रकार वहाँ एक झील बन जाती है। इसे क्रेटर झील कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के यैलोस्टोन पार्क की क्रेटर झील इसका प्रमुख उदाहरण है। भारत में महाराष्ट्र की लोनार झील (Lonar Lake) भी इसी प्रकार की झील है।

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7. ज्वालामुखी कुंड या कैलडरा (Caldera)-सक्रिय ज्वालामुखी जब शांत होने लगता है, तो उसके कीप आकार के मार्ग में लावा ठोस हो जाता है, जिसे ज्वालामुखी प्लग (Volcanic Plug) कहते हैं। कुछ समय के बाद जब ज्वालामुखी फिर से सक्रिय होने लगता है, तो उसके कीप आकार के मार्ग के प्लग द्वारा बंद होने के कारण, लावा प्लग सहित ज्वालामुखी के मुख में विस्फोट करके उसे उड़ा देता है। फलस्वरूप नवीन मुख बड़े आकार का बनता है, इसे ज्वालामुखी कुंड कहते हैं। इसका व्यास कई किलोमीटर तक होता है। उदाहरण के तौर पर जापान के कैलडरा को Volcano of Hundred Villages कहते हैं।

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प्रश्न 6.
ज्वालामुखी के भीतरी स्वरूपों का वर्णन करें।
उत्तर-
ज्वालामुखी स्वरूप : अंतर्वेधी (Volcanic Forms : Intrusive)-
भू-गर्भ से भू-तल की ओर आता लावा कभी-कभी मार्ग में ठोस हो जाता है और बाहर नहीं पहुंचता। इससे अंतर्वेधी या पाताली चट्टानों (Intrusive or Plutonic Rocks) का निर्माण होता है। जब लावा मार्ग में ही भू-तल के समानांतर अवस्था में ठोस हो जाता है, तो उसे लावा-चौखट (Sill) और जब लावा लंब और कुछ तिरछी दिशा में ठोस होता है, तो उसे लावा-भित्ती (Dyke) कहते हैं।

ज्वालामुखी की अंतर्वेधी क्रियाओं के कारण नीचे लिखी आकृतियाँ बनती हैं –

1. लैकोलिथ (Lacoliths)-लैकोलिथ शब्द की रचना ‘Laccas’ और ‘Lithas’ के मेल से हुई है। ‘Laccas’ का अर्थ है-भंडार और ‘Lithas’ का अर्थ है-पत्थर। इस प्रकार ‘Laccolith’ का अर्थ है-‘पत्थर के भंडार’। मैगमा से आता हुआ द्रव्य लावा भू-पटल के मध्यवर्ती भागों में अलग-अलग प्रकार की चट्टानों की परतों में प्रवेश कर जाता है और चित्र-लैकोलिथ अपने ऊपर की परतों के दबाव से आधे धनुष के आकार में मोड़ देता है। इसे लैकोलिथ कहा जाता है।

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2. बैथोलिथ (Batholiths)—भू-गर्भ से द्रव्य अवस्था में लावा भू-तल पर आने का यत्न करता है, परन्तु मार्ग न मिलने के कारण भीतरी खाली भागों में भर जाता है और ठोस चट्टानों का रूप धारण कर लेता है। लावा आयतन (Volume) में यदि बड़ा हो, तो इन खोखले स्थानों को द्रवित करके उन्हें बड़े आकार का बना देता है। भू-गर्भ में बने हुए लावे के सबसे चित्र-बैथोलिथ लावा चट्टान बड़े रूप को बैथोलिथ कहा जाता है। यह गुंबद के आकार के होते हैं। इनके किनारे खड़ी ढलान वाले (Steep slope) और नीचे की ओर असीम गहराई तक विस्तृत होते हैं। इनका आधार कभी दिखाई नहीं देता। यह आमतौर पर ग्रेनाइट द्वारा बने होते हैं। भू-पटल के ऊपर की अन्य चट्टानों के अनावरण द्वारा घिसकर समाप्त हो जाने के बाद ये भू-पटल पर दिखाई देते हैं।

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3. राख शंकु (Ash Cone)—ये कम ऊँचे शंकु होते हैं जिनकी रचना धूल और राख से होती है। इनके किनारे अवतल (Concave) ढलान वाले होते हैं। ऐसे शंकु हवाई द्वीप में मिलते हैं। उन्हें Cinder cone भी कहते हैं।

4. शील्ड शंकु (Shield Cones)—इनका निर्माण बेसिक लावा (Basic Lava) से होता है। बेसिक लावा हल्का और पतला होता है। इसमें सिलीका की मात्रा कम होती है। यह लावा दूर तक फैल जाता है। इस प्रकार लंबे और कम ऊँचे शंकु का निर्माण होता है। हवाई द्वीप का मौना लोआ (Mauna Loa) का आधार 112 किलोमीटर चौड़ा है।

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5. गुंबद शंकु (Lava Dome)—इनका निर्माण तेज़ाबी लावे से होता है। यह लावा काफी घना और चिपचिपा होता है। इसमें सिलीका की मात्रा अधिक होती है। यह मुख के निकट ही जल्दी जमकर गुंबद बन जाता है। इस प्रकार तेज़ ढलान वाले ऊँचे शंकु का निर्माण होता है। फ्रांस में पाई-द-डोम (Puy-de-Dome) 1500 मीटर ऊँचा है।

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6. लावा प्लग (Volcanic Plug)-जब शंकु पूरी तरह से नष्ट हो जाता है, तो नली और छेद ठोस लावे से भर जाते हैं। यह नली एक प्लग (Plug) के समान दिखाई देती है; जैसे-संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) में लौसन चोटी ALTH (Lossen Peak).

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7. मिश्रित शंकु (Composite Cone)-ये सबसे ऊँचे और बड़े शंकुओं में गिने जाते हैं। इनका निर्माण लावा, राख और दूसरे पदार्थों की विभिन्न परतों के जमने से होता है। यह जमाव समानांतर परतों में होता है। इटली का सटरोंबोली (Stromboli) इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसमें हर घंटे के बाद ज्वाला निकलती है। इसे रोम सागर का प्रकाश-गृह (light house of the Mediterranean) भी कहते हैं। जापान का फ्यूज़ीयामा इसका सुंदर उदाहरण है। ढलानों पर बनने वाले छोटे-छोटे | शंकुओं को परजीवी शंकु (Parasitic Cones) कहते हैं। इन्हें छोटे शंकु (Secondary Cones) भी कहते हैं।

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ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption)–ज्वालामुखी विस्फोट दो प्रकार का होता है-
1. केंद्रीय विस्फोट (Central Eruptions)—यह विस्फोट किसी केंद्रीय छेद के द्वारा धमाके और गड़गड़ाहट से होता है। शिलाखंडों की बौछार के साथ लावा बाहर निकलता है। जापान का फ्यूज़ीयामा और इटली का – वैसुवीयस विस्फोट इसके उदाहरण हैं।

2. दरारी विस्फोट (Fissure Eruption)-जब लावा धरातल पर पड़ी अनेक दरारों से निकलकर चारों ओर फैल जाता है तब यह विस्फोट होता है। ये विस्फोट आम तौर पर शांत होते हैं। ये विस्फोट पठारों का निर्माण करते हैं, जैसे भारत का लावा प्रदेश और आईसलैंड में लाकी (Laki) प्रदेश।

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