Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 7 पवनें Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 7 पवनें
PSEB 11th Class Geography Guide पवनें Textbook Questions and Answers
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो शब्दों में दो :
प्रश्न (क)
ITCZ का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर-
Inter Tropical Convergence Zone.
प्रश्न (ख)
नक्षत्रीय पवनों को अंग्रेजी में क्या कहते हैं ?
उत्तर-
Planetary winds.
प्रश्न (ग)
मानसून कौन-सी भाषा का शब्द है ?
उत्तर-
अरबी भाषा।
प्रश्न (घ)
साइबेरिया की कौन-सी झील मानसून सिद्धांत से संबंधित है ?
उत्तर-
बैकाल झील।
प्रश्न (ङ)
मानसून फटने की क्रिया कब घटित होती है ?
उत्तर-
28 से 30 मई के मध्य केरल के तट पर।
प्रश्न (च)
पंजाब के दक्षिणी भागों में गर्मियों में बहती हवाओं को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
लू (loo)।
प्रश्न (छ)
ऑस्ट्रेलिया में चक्रवातों को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर-
विल्ली-विल्ली।।
प्रश्न (ज)
Tornado का पंजाबी में क्या नाम है ?
उत्तर-
वावरोला।
प्रश्न (झ)
विपरीत चक्रवात का सिद्धांत किसने दिया ?
उत्तर-
फ्रांसिस गैलटन ने।
प्रश्न (ब)
यूरोप में फोहेन (Fohen) नाम से जानी जाने वाली पवनों को उत्तरी अमेरिका में कौन-सा नाम दिया जाता है ?
उत्तर-
चिनूक पवनें।
2. प्रश्नों के उत्तर दो-चार वाक्यों में दो :
प्रश्न (क)
पश्चिमी पवनों को मलाहां की ओर से 40′, 50° और 60° अक्षांश पर क्या-क्या नाम दिए जाते हैं ?
उत्तर-
40° अक्षांश . – गर्जते चालीस
50° अक्षांश – गुस्सैल पचास
60° अक्षांश – कूकते (चीखते) साठ।
प्रश्न (ख)
स्थायी पवनों के उदाहरणों के नाम लिखें।
उत्तर-
- व्यापारिक पवनें
- पश्चिमी पवनें
- ध्रुवीय पवनें।
प्रश्न (ग)
फैरल के नियमानुसार उत्तरी गोलार्द्ध में क्या प्रभाव पड़ते हैं ?
उत्तर-
उत्तरी गोलार्द्ध में पवनें अपने दायीं ओर मुड़ जाती हैं।
प्रश्न (घ)
एलनीनो का पता किसने लगाया था ?
उत्तर-
लगभग 100 साल पहले मौसम विभाग के डायरैक्टर जनरल गिलबर्ट वाल्कर (Gilbert Walker) ने एलनीनो का पता लगाया था।
प्रश्न (ङ)
सांता एना क्या है ?
उत्तर-
कैलीफोर्निया राज्य के दक्षिणी भागों में पहाड़ी क्षेत्रों से नीचे उतरती पवनों को सांता एना कहते हैं।
प्रश्न (च)
बलिजार्ड (Balizard) क्या है ?
उत्तर-
ध्रुवीय क्षेत्रों में चलने वाली ठंडी, शुष्क और बर्फीली पवनों को बलिजार्ड कहते हैं।
प्रश्न (छ)
हरीकेन और बाईगुइस में क्या अंतर है ?
उत्तर-
खाड़ी मैक्सिको में चलने वाले चक्रवातों को हरीकेन कहते हैं जबकि फिलीपाइन के निकट चलने वाले चक्रवातों को बाईगुइस कहते हैं।
प्रश्न (ज)
हुद-हुद, नीलोफर और नानुक का आपस में क्या संबंध है ?
उत्तर-
सन् 2014 में, भारत के तट पर चलने वाले चक्रवातों को हुद-हुद, नीलोफर और नानुक नाम दिए गए थे।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 60 और 80 शब्दों में दें-
प्रश्न (क)
विपरीत चक्रवातों के रहते गर्मियों और सर्दियों के मौसम कैसे होते हैं ?
उत्तर-
विपरीत चक्रवातों का अर्थ है-उच्च हवा के दबाव के क्षेत्र। गर्मियों में विपरीत चक्रवातों के समय मौसम साफ-साफ, नीला आसमान, बादल रहित और शुष्क होता है। सर्दियों के मौसम में कोहरा और धुंध हो सकती है।
प्रश्न (ख)
एल-नीनो क्या है ? व्याख्या करें।
उत्तर-
एल-नीनो गर्म जल की धारा है, जो दक्षिणी प्रशांत महासागर में पेरु-चिल्ली के तट के साथ-साथ छह से सात वर्षों के अंतराल से बहती है। हम्बोलाट की ठंडी धारा के विपरीत गर्म जल की धारा एल-नीनो बहती है, इसलिए मानसून की वर्षा कम हो जाती है।
प्रश्न (ग)
तिब्बत के पठार का मानसून पवनों संबंधी क्या योगदान है ?
उत्तर-
तिब्बत का पठार एक विशाल पठार है, जिसका क्षेत्रफल 2000-600000 वर्ग किलोमीटर है। यह पवनों के लिए प्राकृतिक रोक लगाता है और यहाँ गर्मियों के मौसम में तापमान बहुत अधिक हो जाता है, इसलिए पश्चिमी जेट धारा तिब्बत के उत्तर की ओर खिसक जाती है।
प्रश्न (घ)
‘आमों की बौछार’ स्पष्ट करें।
उत्तर-
जून के महीने में मानसून पवनें केरल के तट से शुरू होती हैं। इन्हें मानसून का फटना कहते हैं। यह वर्षा केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में आमों की उपज के लिए बहुत लाभदायक होती है। इसलिए इसे ‘आम्रवृष्टि’ (Mango Showers) भी कहा जाता है।
प्रश्न (ङ)
पवन-पेटियों के फिसलने की क्रिया स्पष्ट करें।
उत्तर-
धरती की परिक्रमा के कारण, धरती के ऊपर सूर्य की स्थिति सारा साल लगातार बदलती रहती है। सूर्य की किरणें कभी भूमध्य रेखा पर, कभी कर्क रेखा पर और कभी मकर रेखा पर लंब रूप में पड़ती हैं। जब सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लंब रूप में पड़ती हैं, तो पवन-पेटियाँ उत्तर की ओर खिसक जाती हैं। इसके विपरीत जब सूर्य की किरणें मकर रेखा पर लंब रूप में पड़ती हैं, तो पवन-पेटियाँ दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं।
प्रश्न (च)
कोरिओलिस (Coriolis) प्रभाव क्या है ? पृथ्वी पर इसका क्या प्रभाव है ? संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
कोरिओलिस प्रभाव (Coriolis effect)-धरातल पर पवनें कभी भी उत्तर से दक्षिण की ओर सीधी नहीं बहतीं। सभी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दाएँ ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाएँ ओर मुड़ जाती हैं। इसे फैरल का नियम कहते हैं। (“All moving bodies are deflected to the right in the Northern Hemisphere and to the left in the Southern Hemisphere.”)
हवा की दिशा में परिवर्तन का कारण धरती की दैनिक गति है। जब हवाएँ कम चाल वाले भागों से अधिक चाल वाले भागों की ओर आती हैं, तो पीछे रह जाती हैं। जैसे-उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरी-पूर्वी व्यापारिक पवनें अपने दाएँ ओर मुड़ जाती हैं तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाएँ ओर मुड़ जाती हैं। इसे कोरिओलिस प्रभाव कहते हैं।
प्रश्न (छ)
शृंकां से क्या भाव है ? इस पर एक स्पष्ट नोट लिखें।
उत्तर-
उत्तरी अमेरिका में बसंत ऋतु में पर्वतों के नीचे उत्तर के मैदानों की ओर बहती गर्म शुष्क पवनों को चिनूक पवनें कहते हैं। कनाडा में पंजाबी में इसे ‘शंकां’ भी कहते हैं।
4. प्रश्नों के उत्तर 150 से 250 शब्दों में लिखो-
प्रश्न (क)
स्थानीय पवनों के तापमान के आधार पर विभाजन और व्याख्या करें।
उत्तर-
स्थानीय पवनें (Local winds)-कुछ पवनें भू-तल के किसी छोटे-से सीमित भाग में चलती हैं, जिन्हें स्थानीय पवनें कहते हैं।
1. थल और जल समीर (Land and Sea Breezes)–थल पर स्थायी पवनों का एक सिलसिला है, पर जल और थल के तापमान की भिन्नता के कारण कुछ स्थानीय पवनें पैदा होती हैं। जल समीर और थल समीर अस्थायी पवनें हैं, जो समुद्र तल के निकट के क्षेत्रों में महसूस की जाती हैं। ये जल और थल की बहुत कम गर्मी के कारण पैदा होती हैं, इसलिए इन्हें छोटे पैमाने की मानसून पवनें (Monsoon on a Small Scale) भी कहते हैं।
(i) जल समीर (Sea Breeze)—ये वे पवनें हैं, जो दिन के समय समुद्र से थल की ओर चलती हैं। उत्पत्ति का कारण (Origin)—दिन के समय सूर्य की तीखी गर्मी के कारण थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक और जल्दी गर्म हो जाता है। थल पर हवा गर्म होकर ऊपर उठती है और वायु दबाव कम हो जाता है, परंतु समुद्र पर थल की तुलना में अधिक वायु दबाव रहता है। इस प्रकार थल पर कम दबाव का स्थान लेने के लिए समुद्र की ओर से ठंडी हवाएं चलती हैं। थल की गर्म हवा ऊपर उठकर समुद्र की ओर चली जाती है। इस प्रकार हवा के बहने का एक चक्र बन जाता है।
प्रभाव (Effects)-
- जल समीर ठंडी और सुहावनी (Cool and fresh) होती है।
- यह गर्मियों में तटीय क्षेत्रों में तापमान को कम करती है, परंतु सर्दियों में तटीय तापमान को ऊँचा करती है। इस प्रकार मौसम सुहावना और समान हो जाता है।
- इसके प्रभाव समुद्र तट से 20 मील की दूरी तक सीमित रहते हैं।
(ii) थल समीर (Land Breeze)-ये वे पवनें हैं, जो रात के समय थल से समुद्र की ओर चलती हैं।
उत्पत्ति के कारण (Origin)—रात के समय स्थिति दिन से विपरीत होती है। थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक और जल्दी ठंडे हो जाते हैं। समुद्र पर वायु दबाव कम हो जाता है, परंतु थल पर वायु दबाव अधिक होता है। इस प्रकार थल की ओर से समुद्र की ओर पवनें चलती हैं। समुद्र की गर्म हवा ऊपर उठकर थल पर उतरती है, जिससे हवा चलने का चक्र बन जाता है।
प्रभाव (Effects)–
- इसका थल भागों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
- इन पवनों का फायदा उठाकर मछुआरे प्रातः थल समीर (Land Breeze) की सहायता से समुद्र की ओर बढ़ जाते हैं और शाम को जल समीर (Sea Breeze) के साथ-साथ तट की ओर वापस आ जाते हैं।
- इसका प्रभाव तभी अनुभव होता है, जबकि आकाश साफ हो, दैनिक तापमान अधिक हो और तेज़ पवनें न बहती हों।
2. पर्वतीय और घाटी की पवनें (Mountain and Valley Winds)—यह आमतौर पर दैनिक पवनें होती हैं, जो दैनिक तापांतर के फलस्वरूप वायु-दबाव की भिन्नता के कारण चलती हैं।
(i) पर्वतीय पवनें (Mountain Winds)—पर्वतीय प्रदेशों में रात के समय पर्वत के शिखर से घाटी की ओर ठंडी और भारी हवाएँ चलती हैं, जिन्हें पर्वतीय पवनें (Mountain winds) कहा जाता है।।
उत्पत्ति (Origin)-रात के समय तेज विकिरण (Rapid Radiation) के कारण हवा ठंडी और भारी हो जाती है। यह हवा गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravity) के कारण ढलानों से होकर नीचे उतरती है। इसे वायु प्रवाह (Air Drainage) भी कहते हैं।
प्रभाव (Effects)-इन पवनों के कारण घाटियाँ (Valleys) ठंडी हवा से भर जाती हैं, जिससे घाटी के निचले भागों पर पाला पड़ता है, इसीलिए कैलीफोर्निया (California) में फलों के बाग और ब्राजील में कॉफी (कहवा) के बाग ढलानों पर लगाए जाते हैं।
(ii) घाटी की पवनें (Valley Winds)-दिन के समय घाटी की गर्म हवा ढलान के ऊपर से होकर चोटी की ओर ऊपर चढ़ती है। इसे घाटी की पवनें कहा जाता है।
उत्पत्ति (Origin)-दिन के समय पर्वत के शिखर पर तेज़ गर्मी और विकिरण के कारण हवा गर्म होकर ऊपर उठती है और कम वायु दबाव हो जाता है। उसका स्थान लेने के लिए घाटी से हवाएँ ऊपर चढ़ती हैं। जैसे-जैसे ये पवनें ऊपर चढ़ती हैं, वे ठंडी होती जाती हैं।
प्रभाव (Effects)-
- ऊपर चढ़ने के कारण ये पवनें ठंडी होकर भारी वर्षा करती हैं।
- ये ठंडी पवनें गहरी घाटियों में गर्मी की तेज़ी को कम करती हैं।
3. चिनक और फौहन पवनें (Chinook and Foehn Winds)-
(i) चिनूक पवनें (Chinnok Winds)-अमेरिका में रॉकी (Rocky) पर्वतों को पार करके प्रेरीज़ के मैदान में चलने वाली पवनों को चिनूक (Chinook) पवनें कहते हैं। चिनूक का अर्थ है-बर्फ खाने वाला। चूँकि ये पवनें अधिक तापमान के कारण बर्फ को पिघला देती हैं और कई बार 24 घंटों के समय में 50° F (10° C) तापमान बढ़ जाता है।
(ii) फोहन पवनें (Foehn Winds)-यूरोप में अल्पस पर्वतों को पार करके स्विट्ज़रलैंड में उतरने वाली पवनों को फोहन (Foehn) पवनें कहते हैं।
प्रभाव (Effects)-
- ये पवनें तापमान बढ़ा देती हैं और बर्फ पिघल जाती है, जिससे फसलों को पकने में सहायता मिलती है।
- ये पवनों की कठोरता को कम करती हैं।
- बर्फ के पिघल जाने से पहाड़ी चरागाह वर्ष-भर खुले रहते हैं और पशु-पालन में आसानी रहती है।
4. बोरा और मिस्ट्रल (Bora and Mistral)—ये दोनों एक ही प्रकार की शीतल और शुष्क पवनें हैं, जिन्हें यूगोस्लाविया के एडरिआटिक सागर (Adriatic Sea) और इटली के तट पर बोरा तथा फ्रांस की रोम घाटी (Rome Valley) में मिस्ट्रल कहते हैं। शीतकाल में मध्य यूरोप अत्यंत ठंड के कारण उच्च वायु दाब के अंतर्गत होता है। इसकी तुलना में भूमध्य सागर में निम्न वायु दाब होता है। परिणामस्वरूप मध्य यूरोप में भूमध्य सागर की ओर से ठंडी और शुष्क पवनें चलने लगती हैं। आम तौर पर ये शक्तिशाली पवनें होती हैं, जिनकी गति तेज़ होती है। रोहन नदी की तंग घाटी में ये पवनें बड़ा भयानक रूप धारण कर लेती हैं और कई बार इनकी तेज़ गति के कारण मकानों की छतें भी उड़ जाती हैं।
5. बवंडर (Tornado)—संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्यवर्ती मैदानों में, गर्मी की ऋतु आरंभ होने के साथ ही तेज़ अंधेरियाँ चलनी शुरू हो जाती हैं, जिन्हें ‘बवंडर’ के नाम से पुकारा जाता है। इन मैदानों में, गर्मी की ऋतु आरंभ होते ही गर्मी में तेजी से वृद्धि होनी आरंभ हो जाती है। फलस्वरूप वहाँ निम्न वायु दाब उत्पन्न हो जाता है। निकटवर्ती बर्फ से ढके रॉकी पर्वतों के उच्च वायु दाब से अत्यंत ठंडी शुष्क पवनें तेज़ गति से यहाँ पहुँचती हैं और मैक्सिको की खाड़ी से आती हुई गर्म और नम पवनों के साथ संबंध स्थापित कर लेती हैं। शीतल और शुष्क तथा उष्ण और नम पवनों के मेल से प्रचंड बवंडर की उत्पत्ति होती है। ये बवंडर बहुत विनाशकारी होते हैं।
6. लू (Loo)-भारत के उत्तरी विशाल मैदानों और पाकिस्तान के सिंध और इसकी सहायक नदियों के मैदानों में मई-जून के महीनों में बहुत गर्म पवनें चलती हैं। ये अक्सर शुष्क होती हैं, जो पश्चिमी दिशा की ओर बहती हैं। इन्हें ‘लू’ कहते हैं। इनका तापमान 45°-50° सैल्सियस के बीच होता है। ये बहुत असहनीय होती हैं।
7. हर्मटन (Harmattan)—पश्चिमी अफ्रीका में सहारा मरुस्थल से शुष्क, गर्म और धूल भरी पवनें चलती हैं। पश्चिमी अफ्रीका के पश्चिमी तटों के गर्म व शुष्क वातावरण की नमी शरीर के पसीने को सुखा देती है। इस प्रकार ये पवनें स्वास्थ्य के लिए ठीक समझी जाती हैं। परिणामस्वरूप इन्हें डॉक्टर (Doctor) कह कर पुकारा जाता है।
8. सिरोको (Sirroco)—सहारा मरुस्थल से ही गर्म, शुष्क और धूल भरी पवनें भूमध्य सागर की ओर चलती हैं। इटली में इन्हें सिरोको और सहारा में ‘सिमूम’ कहा जाता है। भूमध्य सागर को पार करते समय ये नमी ग्रहण कर लेती हैं। इटली में ये मौसम को अत्यंत गर्म और चिपचिपा कर देती हैं। इस प्रकार ये दुखदायी होती हैं।
9. बलिजार्ड (Blizard) बर्फ से ढके ध्रुवीय क्षेत्रों में चलने वाली ठंडी, शुष्क और बर्फीली पवनों को बलिजार्ड कहते हैं। इनकी गति 70 से 100 किलोमीटर घंटा होती है। इनमें मुसाफिर मार्ग में भटक जाते हैं, इसे बर्फ का अंधापन (Snow blindness) कहा जाता है।
प्रश्न (ख)
स्थायी पवनें क्या हैं ? प्रकार सहित इनकी व्याख्या करें।
उत्तर-
पवनें (Winds)-वायु हमेशा उच्च दबाव वाले क्षेत्रों से निम्न दबाव वाले क्षेत्रों की ओर चलती है। इस चलती हुई वायु को पवन (Wind) कहते हैं। वायु-दबाव में अंतर आ जाने के कारण ही भू-तल पर चलने वाली पवनें उत्पन्न होती हैं। पवनों की दिशा (Direction of the wind) वह होती है, जिस दिशा से वे आती हैं।
1. भू-मंडलीय या स्थायी पवनें (Planetary or Permanent Winds)-
धरातल पर उच्च वायु दाब और निम्न वायु दाब की अलग-अलग पेटियाँ (Belts) होती हैं। उच्च वायु दाब और निम्न वायु दाब की ओर से लगातार पवनें चलती हैं। इन्हें स्थायी पवनें कहते हैं। ये सदा एक ही दिशा की ओर चलती हैं। स्थायी पवनें तीन प्रकार की होती हैं-
- व्यापारिक पवनें (Trade winds)
- पश्चिमी पवनें (Westerlies)
- ध्रुवीय पवनें (Polar winds)
1. व्यापारिक पवनें (Trade Winds) विस्तार (Extent) व्यापारिक पवनें वे स्थायी पवनें हैं, जो गर्म कटिबंध (Tropics) के मध्य भूमध्य रेखा की ओर चलती हैं। ये पवनें घोड़ा अक्षांशों (Horse Latitudes) या उपोष्ण कटिबंध के उच्च दबाव (Sub Tropical High Pressure) के क्षेत्र से डोलड्रमज़ (Dol Drums) या भूमध्य रेखा की निम्न वायु दबाव वाली पेटी की ओर चलती हैं। इनका विस्तार आम तौर पर 5°-35° उत्तर और दक्षिण तक चला जाता है।
दिशा (Direction)-ये दोनों गोलार्डों में पूर्व से आती दिखाई देती हैं, इसलिए इन्हें पूर्वी पवनें (Easterlies) भी कहते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्वी (North-East) और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी-पूर्वी (South-East) होती है। नाम का कारण (Why so Called ?)—इन पवनों को व्यापारिक पवनें (Trade winds) कहने के दो कारण हैं-
1. प्राचीन काल में यूरोप और अमेरिका के बीच समुद्री जहाजों को इन पवनों से बहुत सहायता मिलती थी। ये पवनें Backing winds के रूप में जहाज़ों की गति बढ़ा देती हैं, इसलिए व्यापार में सहायक होने के कारण इन्हें व्यापारिक पवनें कहा जाता है।
2. अंग्रेज़ी के मुहावरे, To blow trade का अर्थ है-लगातार बहना। ये पवनें लगातार एक ही दिशा की ओर बहती हैं। इसलिए इन्हें Trade winds कहते हैं।
उत्पत्ति का कारण (Why caused ?) भूमध्य रेखा पर बहुत गर्मी के कारण निम्न वायु दाब पेटी मिलती है। भूमध्य रेखा से ऊपर उठने वाली गर्म और हल्की हवा 30° उत्तर और दक्षिण के पास ठंडी और भारी होकर नीचे उतरती रहती है। ध्रुवों से खिसक कर आने वाली हवा भी इन अक्षांशों में नीचे उतरती है। इन नीचे उतरती हुई पवनों के कारण मकर रेखा के निकट उच्च वायु दाब पेटी बन जाती है। इसलिए भूमध्य रेखा के निम्न वायु दाब (Low Pressure) का स्थान ग्रहण करने के लिए 30° उत्तर और दक्षिण के उच्च वायु दाब से भूमध्य रेखा की ओर व्यापारिक पवनें चलती हैं।
दिशा परिवर्तन (Change in Direction)—यदि धरती स्थिर होती तो ये पवनें उत्तर-दक्षिण दिशा में चलतीं, परंतु धरती की दैनिक गति के कारण ये पवनें इस लंबवत् दिशा से हटकर एक तरफ झुक जाती हैं और Deflect हो जाती हैं। फैरल के नियम और कोरोलिस बल के कारण, ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं।
प्रभाव (Effects)-
- गर्म प्रदेशों में चलने के कारण ये पवनें आम तौर पर शुष्क होती हैं।
- ये पवनें महाद्वीपों के पूर्वी भागों में वर्षा करती हैं और पश्चिमी भागों तक पहुँचते-पहुँचते शुष्क हो जाती हैं। यही कारण है कि पश्चिमी भागों में 20°-30° में गर्म मरुस्थल (Hot Deserts) मिलते हैं।
- ये पवनें उत्तरी भाग में उच्च दाब (High Pressure) के निकट होने के कारण ठंडी (Cool) और शुष्क (Dry) होती हैं, पर भूमध्य रेखा के निकट दक्षिणी भागों में गर्म (Hot) और नम (Wet) होती हैं।
- ये पवनें समुद्रों से लगातार और धीमी चाल में चलती हैं, पर महाद्वीपों में इनकी दिशा और गति में अंतर आ जाता है।
व्यापारिक पवनों के देश (Areas)-उत्तरी गोलार्द्ध में पूर्वी अमेरिका और मैक्सिको, दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया, पूर्वी अफ्रीका और पूर्वी ब्राज़ील।
2. पश्चिमी पवनें (Westerlies) विस्तार (Extent)-ये पवनें ऐसी स्थायी पवनें हैं जो शीतोष्ण (Temperate) खंड में 30° उच्च वायु दाब से 60° के उप-ध्रुवीय निम्न वायु दाब (Sub-Polar Low Pressure) की ओर चलती हैं। इनका विस्तार आम तौर पर 30° से 65° तक पहुँच जाता है। इन पवनों की उत्तरी सीमा ध्रुवीय सीमांत (Polar Fronts) और चक्रवातों (Cyclones) के कारण सदा बदलती रहती है।
दिशा (Direction)-उत्तरी गोलार्द्ध में इन पवनों की दिशा दक्षिण-पश्चिमी (South-west) होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में इन पवनों की दिशा उत्तर-पश्चिमी (North-west) होती है।
नाम का कारण (Why so Called ?)दोनों गोलार्डों में ये पवनें पश्चिम से आती हुई महसूस होती हैं, इसलिए इन्हें पश्चिमी पवनें कहते हैं। इनकी दिशा व्यापारिक पवनों के विपरीत होती है, इसलिए इन्हें प्रतिकूल व्यापारिक पवनें (Anti-Trade winds) भी कहते हैं।
उत्पत्ति का कारण (Why Caused ?)-कर्क रेखा और मकर रेखा के निकट नीचे उतरती पवनों (Descending winds) के कारण उच्च वायु दाब हो जाता है। भूमध्य रेखा से गर्म और हल्की हवा इन अक्षांशों में नीचे उतरती है। इसी प्रकार ध्रुवों से खिसक कर आने वाली हवा भी नीचे उतरती है, परंतु 60°C अक्षांशों के निकट Antarctic Circle पर धरती की दैनिक गति के कारण निम्न वायु दाब हो जाता है। इसलिए 30° के उच्च वायु दाब की ओर से 60° के निम्न वायु दाब की ओर पश्चिमी पवनें चलती हैं।
दिशा परिवर्तन (Change in Direction)-आम तौर पर पवनों की दिशा उत्तर-दक्षिणी होनी चाहिए, परंतु धरती की दैनिक गति के कारण यह पवनें लंबवत् दिशा से हटकर एक ओर झुक जाती हैं। फैरल के नियम (Ferral’s Law) के अनुसार और कोरोलिस बल के कारण ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं।
प्रभाव (Effects)-
- समुद्रों की नमी से भरी होने के कारण यह पवनें अधिक वर्षा करती हैं।
- यह पवनें पश्चिमी प्रदेशों में बहुत वर्षा करती हैं, परंतु पूर्वी भाग सूखे रह जाते हैं।
- यह पवनें बहुत अस्थिर होती हैं। इनकी दिशा और शक्ति बदलती रहती है। चक्रवात (Cyclones) और प्रति-चक्रवात (Anti-cyclones) इनके मार्ग में अनिश्चित मौसम ले आते हैं। वर्षा, बादल, कोहरा, बर्फ और तेज़ आँधियों के कारण मौसम लगातार बदलता रहता है।
- यह दक्षिणी गोलार्द्ध में समुद्रों पर लगातार और तेज़ चाल से चलती हैं। 40°-50° दक्षिण के अक्षांशों में इन्हें गर्जते चालीस (Roaring Forty) कहा जाता है। 50°-60° दक्षिण में इन्हें क्रमशः गुस्सैल पचास (Furious Fifties) और कूकते (चीखते) साठ (Shrieking Sixty) कहते हैं। इन प्रदेशों में ये इतनी तेज़ी से चलती हैं कि दक्षिणी अमेरिका के Cape-Horn पर समुद्री आवाजाही रुक जाती है।
- व्यापारिक पवनों की तुलना में इनका प्रवाह-क्षेत्र बड़ा होता है।
पश्चिमी पवनों के क्षेत्र (Areas)-इन पवनों के कारण पश्चिमी यूरोप के सभी देशों में आदर्श जलवायु (Ideal Climate) होती है। इसके अतिरिक्त पश्चिमी अमेरिका, पश्चिमी कनाडा, दक्षिणी-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड तथा दक्षिणी-पश्चिमी अफ्रीका के प्रदेश इन पवनों के प्रभाव में आ जाते हैं।
प्रश्न (ग)
निम्नलिखित पर नोट लिखें-
(i) कोरियोलिस प्रभाव
(ii) ऐलनीनो प्रभाव।
उत्तर-
(i) कोरियोलिस प्रभाव (Coriolis Effect)
पवनों की दिशा पर पृथ्वी के घूमने का प्रभाव (Effect of Earth’s Rotation on Wind’s Direction)पवनें उच्च दाब से निम्न दाब की दिशा की ओर चलती हैं। आम तौर पर ये सीधी चलती हैं, परंतु पृथ्वी की दैनिक गति ऐसा नहीं होने देती। इस गति के कारण पवनों की दिशा में विचलन (Deflection) हो जाता है। इस मोड़ने वाली या विचलन वाली शक्ति को विचलन शक्ति (Deflection Force) कहते हैं। इस बल की खोज एक फ्रांसीसी गणित शास्त्री कोरियोलिस (G.G. de Coriolis, 1792-1843) ने की थी। उसके नाम पर ही इस बल को कोरियोलिस बल या प्रभाव (Coriolis Force or Effect) का नाम दिया गया है।
इस प्रभाव के फलस्वरूप भू-तल पर चलने वाली सारी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दाएँ हाथ और दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाएँ हाथ मुड़ जाती हैं। इस प्रकार इस तथ्य की पुष्टि एक अन्य वैज्ञानिक फैरल (Ferral) ने एक प्रयोग द्वारा की थी। इसे फैरल का नियम (Ferral’s Law) भी कहते हैं।
(ii) ऐलनीनो प्रभाव (Al-Nino Effect)-
ऐलनीनो गर्म पानी की एक धारा है, जो दक्षिणी महासागर में पेरु तथा चिली के तट के साथ-साथ बहती है। यह 6-7 वर्षों बाद चलती है। इस तट के साथ हंबोलट की ठंडी धारा बहती है, पर ऐलनीनो में स्थिति विपरीत हो जाती है और गर्म पानी की धारा बहती है। इसी कारण पेरु आदि देशों में भारी वर्षा होती है, पर मानसूनी वर्षा कम हो जाती है। भारत आदि देशों में सूखे के हालात बन जाते हैं।
प्रश्न (घ)
मानसून की उत्पत्ति संबंधी भिन्न-भिन्न सिद्धांतों का वर्णन करें।
उत्तर-
मानसून पवनें (Monsoon Winds)-परिभाषा (Definition)-मानसून वास्तव में अरबी भाषा के शब्द ‘मौसम’ से बना है। सबसे पहले इनका प्रयोग अरब सागर पर चलने वाली हवाओं के लिए किया गया था। मानसून पवनें वे मौसमी पवनें हैं, जिनकी दिशा मौसम के अनुसार बिल्कुल विपरीत होती है। ये पवनें गर्मी की ऋतु में छह महीने समुद्र से थल की ओर तथा सर्दी की ऋतु में छह महीने थल से समुद्र की ओर चलती हैं।
कारण (Causes)-मानसून पवनें वास्तव में एक बड़े पैमाने पर थल समीर (Land Breeze) और जल समीर (Sea Breeze) हैं। इनकी उत्पत्ति का कारण जल और थल के गर्म और ठंडा होने में भिन्नता (Difference in the cooling and Heating of land and water) है। जल और थल असमान रूप से गर्म और ठंडे होते हैं। इस प्रकार मौसम के अनुसार वायु दाब में भी अंतर हो जाता है, जिनसे हवाओं की दिशा विपरीत हो जाती है।
थल भाग समुद्र की अपेक्षा जल्दी गर्म और जल्दी ठंडा हो जाता है। दिन के समय समुद्र के निकट थल पर निम्न दाब (Low Pressure) और समुद्र पर उच्च दाब (High Pressure) होता है। परिणामस्वरूप समुद्र से थल की ओर जल समीर (Sea Breeze) चलती है, पर रात को दिशा विपरीत हो जाती है और थल से समुद्र की ओर थल समीर (Land Breeze) चलती है। इस प्रकार हर दिन वायु की दिशा बदलती रहती है परंतु मानसून पवनों की दिशा मौसम के अनुसार बदलती है। ये पवनें तट के निकट के प्रदेशों में ही नहीं, बल्कि एक पूरे महाद्वीप में चलती हैं। इसलिए मानसून पवनों को थल समीर (Land Breeze) और जल समीर (Sea Breeze) का एक बड़े पैमाने पर दूसरा रूप कह सकते हैं।
मानसून की उत्पत्ति के लिए जरूरी दशाएँ (Necessary Conditions)—मानसून पवनों की उत्पत्ति के लिए इन दशाओं की आवश्यकता होती है-
- एक विशाल महाद्वीप का होना।
- एक विशाल महासागर का होना।
- थल और जल भागों के तापमान में काफी अंतर का होना।
- एक लंबी तट रेखा का होना।
मानसूनी प्रदेश (Areas)-ये मानसून पवनें सदा उष्ण-कटिबंध में चलती हैं, परंतु एशिया में ये पवनें 60° उत्तरी अक्षांश तक चलती हैं। इसलिए मानसून खंड दो भागों में विभाजित होते हैं। हिमालय पर्वत इन्हें अलग करता है।
(i) पूर्वी एशियाई मानसून (East-Asia Monsoon)-हिंद-चीन (Indo-China), चीन और जापान क्षेत्र।
(ii) भारतीय मानसून (Indian Monsoon)-भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश, बर्मा क्षेत्र।
गर्मी ऋतु की मानसून पवनें (Summer Monsoons)—मानसून पवनों के उत्पन्न होने और इनके प्रभाव के बारे में स्पष्ट करने के लिए एक ही वाक्य कहा जा सकता है-(“The chain of events is from temperature through pressure and winds to rainfall.”)
अथवा
Temp. → Pressure → Winds → Rainfall.
इन मानसून पवनों की तीन विशेषताएँ हैं-
(i) मौसम के साथ दिशा परिवर्तन।
(ii) मौसम के साथ वायु दाब केंद्रों का विपरीत हो जाना।
(iii) गर्मी ऋतु में वर्षा।
तापमान की भिन्नता के कारण वायु भार में अंतर पड़ता है और अधिक वायु भार से कम वायु भार की ओर ही पवनें चलती हैं। समुद्र से आने वाली पवनें वर्षा करती हैं। गर्मी की ऋतु में सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ती हैं, इसलिए भारत, चीन और मध्य एशिया के मैदान गर्म हो जाते हैं। इन थल भागों में कम वायु दाब केंद्र (Low Pressure Centres) स्थापित हो जाते हैं और हिंद महासागर तथा शांत महासागर से भारत और चीन की तरफ समुद्र से थल की ओर पवनें (Sea to Land Winds) चलती हैं। भारत में इन्हें दक्षिण-पश्चिमी गर्मी की ऋतु का मानसून (South-west Summer Monsoon) कहते हैं। चीन में इनकी दिशा दक्षिण-पूर्वी होती है। भारत में ये पवनें भारी वर्षा करती हैं, जिसे मानसून का फटना (Burst of Monsoon) भी कहते हैं। भारत में यह वर्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय कृषि इसी वर्षा पर निर्भर करती है। इसीलिए “भारतीय बजट को मानसून का जुआ” (“Indian Budget is a gamble of Monsoon.”) कहा जाता है।
सर्दी की मानसून पवनें (Winter Monsoon)-सर्दी की ऋतु में मानसून पवनों की उत्पत्ति थल भागों पर होती है। सूर्य की किरणें मकर रेखा पर सीधी चमकती हैं, इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध के थल भाग आस-पास के सागरों की तुलना. में ठंडे हो जाते हैं। मध्य एशिया में गोबी मरुस्थल (Gobi Desert) और भारत में राजस्थान प्रदेश में उच्च वायु दाब हो जाता है, इसीलिए इन भागों से समुद्र की ओर पवनें (Land to sea winds) चलती हैं। ये पवनें शुष्क और ठंडी होती हैं। भारत में इन्हें उत्तर-पूर्वी सर्दी ऋतु का मानसून (North-East winter Monsoon) कहते हैं। ये पवनें खाड़ी बंगाल को पार करने के बाद तमिलनाडु प्रदेश में वर्षा करती हैं। भू-मध्य रेखा पार करने के बाद ऑस्ट्रेलिया के तटीय भागों में भी इन पवनों से ही वर्षा होती है।
मानसून पवनों की उत्पत्ति (Origin of Monsoons)-मानसून पवनों की उत्पत्ति के बारे में नीचे लिखी विचारधाराएँ प्रचलित हैं
1. तापीय विचारधारा (Thermal Concept)-इनकी उत्पत्ति का कारण जल और थल के गर्म और ठंडा होने में भिन्नता (Difference in the cooling and Heating of Land and Water) है। जल और थल असमान रूस से गर्म और ठंडे होते हैं। इस प्रकार मौसम के अनुसार वायु दाब में भी अंतर हो जाता है जिससे हवाओं की दिशा विपरीत हो जाती है। गर्मी की ऋतु में ये पवनें समुद्र से थल की ओर चलती हैं और शीत ऋतु में ये पवनें थल से समुद्र की ओर चलती हैं।
2. स्पेट की विचारधारा (Spate’s Concept) स्पेट नाम के विद्वान् के अनुसार मानसून पवनें चक्रवातों और प्रति-चक्रवातों के कारण पैदा होती हैं। इनके मिलने के कारण सीमांत बनते हैं, जिसमें चक्रवातीय हवा को मानसून कहते हैं।
3. फ्लॉन की विचारधारा (Flohn’s Concept)—मानसून पवनों की उत्पत्ति के बारे में सिद्धांतों में कमियों को देखते हुए फ्लॉन (Flohn) नामक विद्वान् ने एक नई विचारधारा को जन्म दिया। इसके अनुसार व्यापारिक पवनों और भूमध्य रेखीय निम्न वायु दाब क्षेत्र के आपसी मिलन स्थल (Inter-tropical convergence Zone-ITCZ) से पैदा हुए चक्रवातों के कारण मानसून पवनों की उत्पत्ति होती है और भारी वर्षा होती है, जिसे मानसून का फटना (Burst of Monsoon) कहते हैं। फ्लॉन के शब्दों में मानसून पवनें भू-मंडलीय पवन-तंत्र का ही रूपांतर हैं। (“The tropical Monsoon is simply a modification of Planetary wind system”.)
4. जेट प्रवाह विचारधारा (Jet Stream Theory)-वायुमंडल में ऊपरी सतहों में तेज़ गति से चलने वाली हवा को जेट प्रवाह कहते हैं। इस प्रवाह की गति 500 कि०मी० प्रति घंटा होती है। यह एक विशाल क्षेत्र को घेरे हुए 20°N-40°N के मध्य मिलती है। हिमालय पर्वत की रुकावट के कारण इसकी दो शाखाएँ हो जाती हैं-उत्तरी जेट प्रवाह और दक्षिणी जेट प्रवाह। दक्षिणी जेट प्रवाह भारत की जलवायु पर प्रभाव डालता है।
इस जेट प्रवाह के कारण दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें भारत की ओर चलती हैं।
प्रश्न (ङ)
चक्रवात क्या होते हैं ? उष्ण विभाजीय (कटिबंधीय) और शीतोष्ण विभाजीय (कटिबंधीय) चक्रवातों का वर्णन करें।
उत्तर-
चक्रवात निम्न वायुदाब का क्षेत्र होता है। चक्रवात में पवनें उत्तरी गोलार्द्ध (Northern Hemisphere) में घड़ी की दिशा के विपरीत तथा दक्षिणी गोलार्द्ध (Southern Hemisphere) में घड़ी की दिशा के साथ चलती हैं। इस प्रकार पवनों के उच्च वायु दाब से निम्न वायु दाब की ओर सुइयों के प्रतिकूल और अनुकूल चलने के कारण पवनों का एक चक्र उत्पन्न हो जाता है, जिसे चक्रवात कहते हैं। चक्रवात को उनकी स्थिति के अनुसार दो भागों में बांटा जाता है-
(1) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cyclones)
(2) उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)
1. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cyclones) – ये चक्रवात शीतोष्ण कटिबंध में मुख्य रूप से 30° से 60° अक्षांशों के मध्य पश्चिमी पवनों की पेटी में उत्पन्न होते हैं, जो आकृति में प्रायः वृत्त-आकार या अंडाकार होते हैं। इन्हें वायुगर्त (Depression) या निम्न (Low) या ट्रफ (Trough) भी कहते हैं।
1. आकृति और विस्तार (Shape and Size)-ये चक्रवात प्राय: वृत्त-आकार या अंडाकार होते हैं। इनका व्यास 1000 से 2000 किलोमीटर तक होता है। कभी-कभी इनका व्यास 3000 किलोमीटर से भी बढ़ जाता है। इनकी दाब-ढलान (Pressure Gradient) कम होती है।
2. उत्पत्ति (Formation)-शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति उष्ण और शीतल वायु-पिंडों (Air Masses) के मिलने से होती है। गर्म प्रदेशों से आने वाली गर्म पश्चिमी पवनें जब ध्रुवों से आने वाली पवनों से शीतोष्ण कटिबंध में मिलती हैं, तो शीतल पवनें गर्म पवनों को चारों ओर से घेर लेती हैं, जिसके फलस्वरूप केंद्र में गर्म पवनों से निम्न वायु दाब और बाहर गर्म पवनों से उच्च दाब बन जाता है। इस प्रकार चक्रवातों की उत्पत्ति होती है। इसे ध्रुवीय सीमांत सिद्धांत (Polar Front Theory) भी कहते हैं।
चक्रवातों के जीवन के इतिहास में अवस्थाओं का एक क्रम देखा जा सकता है-
1. पहली अवस्था-इस अवस्था के अनुसार दो वायु-राशियाँ एक-दूसरे के निकट आती हैं और सीमांत (Front) की रचना होती है। ध्रुवों की वायु-राशि और भूमध्य रेखा से आने वाली गर्म वायु विपरीत दिशाओं से आती है।
2. दूसरी अवस्था-इस अवस्था में उष्ण वायु-राशि में एक उभार उत्पन्न हो जाता है और फ्रंट एक तरंग का
रूप धारण कर लेता है। फ्रंट (Front) के दो भाग हो जाते हैं-उष्ण फ्रंट और शीत फ्रंट। गर्म वायु-राशि उष्ण फ्रंट (Warm Front) के निकट शीत वायु से टकराती है।
3. तीसरी अवस्था-इस अवस्था में शीत फ्रंट तेज़ी से आगे बढ़ता है। तरंगों की ऊँचाई और वेग में वृद्धि होती है। गर्म वायु-राशि का भाग छोटा हो जाता है।
4. चौथी अवस्था-इस अवस्था में तरंगों की ऊँचाई अधिकतम होती है। दोनों वायु राशियों में धाराएँ चक्राकार गति प्राप्त कर लेती हैं और चक्रवात का विकास होता है।
5. पाँचवी अवस्था-इस अवस्था में शीत फ्रंट उष्ण फ्रंट को पकड़ लेता है। शीतल वायु उष्ण वायु को धरातल पर दबा देती है।
6. अंतिम अवस्था-इस अवस्था में उष्ण वायु अपने स्रोत से हटकर ऊपर उठ जाती है। धरातल पर शीतल वायु की एक भँवर (Whirl) चक्रवात का निर्माण होता है।
3. प्रवाह की दिशा (Direction of Movement)-चक्रवात सदा प्रवाहित होते रहते हैं। प्रायः ये प्रचलित पवनों द्वारा प्रवाहित होते हैं। पश्चिमी पवनों के कटिबंध में ये पूर्व दिशा की ओर चलते हैं। इनका क्षेत्र उत्तरी प्रशांत महासागर, उत्तरी संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिणी कनाडा, उत्तरी अंधमहासागर और उत्तर-पश्चिमी यूरोप है।
4. वेग (Velocity)-इन चक्रवातों का वेग (गति) ऋतु और स्थिति पर निर्भर करता है। गर्म ऋतु की तुलना में शीतकाल में इनका वेग तीव्र होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में ये गर्मी की ऋतु में 60 कि०मी० प्रति घंटा और सर्दियों की ऋतु में 48 कि०मी० प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ते हैं।
5. मौसम की स्थिति (Weather Conditions)—इनमें तापमान ऋतु परिवर्तन के साथ बदलता रहता है। शीतकाल में इसका अगला भाग कुछ उष्ण रहता है और पिछला भाग शीतल। गर्मी की ऋतु में पिछला भाग शीतकाल की तुलना में निम्न रहता है। आम तौर पर चक्रवात का अगला भाग पूरा वर्ष लगभग उष्ण-नम (Muggy) होता है। इन चक्रवातों के आने पर आकाश पर खंभ-आकारी बादल छा जाते हैं। सूर्य और चंद्रमा के आस-पास एक प्रकाश-वृत्त (Halo) बन जाता है। फिर धीरे-धीरे फुहार शुरू हो जाती है, जो जल्दी ही तेज़ वर्षा का रूप धारण कर लेती है। परंतु शीघ्र ही आकाश साफ और सुहावना हो जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि चक्रवात का केंद्र पहुँच गया है। जब यह केंद्र आगे बढ़ जाता है, तो मौसम फिर ठंडा हो जाता है। ठंड बहुत तेजी से बढ़ने लगती है। आकाश में घने बादल छा जाते हैं और वर्षा की झड़ी लग जाती है। वर्षा के साथ ओले भी पड़ने लगते हैं। बहुत तेज़ हवाएँ चलती हैं जिसके परिणामस्वरूप तापमान और भी कम हो जाता है। बादल गर्जते हैं और बिजली चमकती है। चक्रवात के शीत पिंड पर पहुँचने पर वर्षा बंद हो जाती है और इस प्रकार चक्रवात का अंत हो जाता है और आकाश साफ हो जाता है।
2. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)-
उष्ण कटिबंध 2372° उत्तर से 2372° दक्षिणी अक्षांशों के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहते हैं। ये चक्रवात अपनी आकृति, वेग और मौसमी स्थिति संबंधी विशेषताओं में अलग हैं।
1. आकृति और विस्तार (Shape and size)-ये चक्रवात प्रायः वृत्ताकार और शीतोष्ण चक्रवातों की तुलना में छोटे व्यास के होते हैं। इनका व्यास 80 से 3000 कि०मी० तक होता है; पर कभी-कभी ये 50 कि०मी० से भी कम व्यास के होते हैं।
2. उत्पत्ति (Formation)-इनकी उत्पत्ति गर्मी के कारण उत्पन्न संवहन धाराओं (Convection Currents) के द्वारा होती है। मुख्य रूप में चक्रवात भूमध्य रेखीय निम्न वायु दाब पेटी में उत्पन्न संवहन धाराओं का प्रतिफल है, विशेष रूप से जब यह पेटी सूर्य के साथ उत्तर की ओर खिसक जाती है। इसकी उत्पत्ति गर्मी की ऋतु के अंतिम भाग में होती है।
3. प्रवाह की दिशा (Direction of Movement)-इन चक्रवातों का मार्ग विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न होता है। प्राय: यह व्यापारिक पवनों के साथ पूर्व से पश्चिम दिशा में प्रवाह करते हैं। जब ये महासागर से स्थल में प्रवेश करते हैं, तो उनकी शक्ति कम हो जाती है और वे जल्दी ही समाप्त हो जाते हैं।
4. वेग (Velocity)–इन चक्रवातों के वेग में भिन्नता पाई जाती है। प्रायः ये 32 कि०मी० प्रति घंटा के वेग से चलते हैं, परंतु इनमें से कुछ अधिक शक्तिशाली, जैसे-हरीकेन (Harricane) और टाईफून (Typhoon) 120 कि०मी० प्रति घंटा से भी अधिक गति से चलते हैं। सागरों में इनकी गति तेज़ हो जाती है, परंतु स्थल पर विभिन्न भू-आकृतियों द्वारा रुकावट होने पर ये कमज़ोर पड़ जाते हैं। ये सदा गतिशील नहीं रहते। कभी-कभी ये एक स्थान पर ही कई दिन तक रुककर भारी वर्षा करते हैं।
5. मौसमी स्थिति (Weather Conditions)-उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के केंद्र को ‘चक्रवात की आँख’ (Eye of the Cyclone) कहा जाता है। इस क्षेत्र में आकाश साफ होता है। केंद्र में पवनें गर्म होकर ऊपर उठती हैं, जिसके परिणामस्वरूप घने बादल बन जाते हैं और तेज़ वर्षा करते हैं। चक्रवात के अगले भाग (Front) में पिछले भाग (Rear) की तुलना में गर्मी अधिक होती है। चक्रवात के दाएँ और अगले भाग में अधिक वर्षा होती है। ये अपनी प्रचंड गति वाली पवनों के कारण अत्यंत विनाशकारी होते हैं। इनमें अलगअलग पिंड (Front) न होने के कारण शीतोष्ण चक्रवातों के समान तापमान की भिन्नता नहीं होती। इन चक्रवातों के आने से पहले पतले सिरस बादल (Cirrus Clouds) की उत्पत्ति होती है। मौसम शांत और गर्म होता है। धीरे-धीरे कपासी (Cumulus) और पतली परत (Stratus) वाले बादल आ जाते हैं। जल्दी ही आकाश बादलों से ढक जाता है। अंधेरी आ जाती है और बादल गर्जते हैं। इसके बाद बड़ी-बड़ी बूंदों वाली वर्षा प्रारंभ हो जाती है। चक्रवात के पिछले भाग में ओले पड़ते हैं और कुछ समय बाद मौसम सुहावना हो जाता है।
प्रभावित प्रदेश (Affected Regions)-विश्व में इनसे प्रभावित होने वाले प्रमुख देश नीचे लिखे हैं-
- पश्चिमी द्वीप समूह (West Indies)-इन प्रदेशों में इन चक्रवातों को हरीकेन (Hurricane) कहते हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका मैक्सिको (Mexico)—यहाँ इन्हें टोरनैडो (Tornado) कहते हैं।
- बंगाल की खाड़ी और अरब सागर-यहाँ इन्हें साइक्लोन (Cyclone) या चक्रवात कहते हैं।
- फिलीपाइन द्वीप समूह (Philippine Island)–चीन और जापान में इन्हें टाईफून (Typhoon) कहते हैं। .
- पश्चिमी अफ्रीका का गिनी प्रदेश–यहाँ इन चक्रवातों को टोरनैडो (Tornado) कहते हैं।
- ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पश्चिमी प्रदेश–यहाँ इन्हें विल्ली-विल्ली (Willy-Willy) का नाम दिया जाता है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का विनाशकारी प्रभाव-उष्ण कटिबंधीय चक्रवात निम्न दाब के केंद्र होते हैं। बाहर से तीव्र हवाएँ अंदर आती हैं। इनकी गति 200 कि०मी० प्रति घंटा होती है। ये चक्रवात महासागर के ऊपर बिना रोकटोक के चलते हैं। समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं, जिनसे समुद्री जहाजों को नुकसान होता है। समुद्री तटों के ऊपर छोटे-छोटे द्वीपों के ऊपर भयानक लहरें जान और माल का नुकसान करती हैं। हजारों लोग समुद्र में डूब जाते हैं। समुद्री यातायात ठप्प हो जाता है। सन् 1970 में बांग्लादेश में इसी प्रकार के चक्रवात आए थे, जिन्होंने जान और माल का बहुत अधिक नुकसान किया था।
प्रश्न (च)
निम्नलिखित पर नोट लिखें(i) टोरनैडो (ii) विपरीत चक्रवात।
उत्तर-
(i) टोरनैडो या बवंडर (Tornado)-संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्यवर्ती मैदान में गर्मी की ऋतु के प्रारंभ होने के साथ तेज़ आंधियाँ चलनी आरंभ हो जाती हैं, जिन्हें बवंडर के नाम से पुकारा जाता है। इन मैदानों में गर्मी की ऋतु आरंभ होते ही गर्मी में तेजी से वृद्धि होनी आरंभ हो जाती है। फलस्वरूप वहाँ निम्न वायु दाब उत्पन्न हो जाता है। निकटवर्ती बर्फ से ढके रॉकी पर्वत के उच्च वायु दाब से अत्यंत ठंडी और शुष्क पवनें तेज़ गति से यहाँ पहुँचती हैं और मैक्सिको की खाड़ी से आती हुई गर्म और नम पवनों के साथ संबंध स्थापित कर लेती हैं। शीतल और शुष्क तथा उष्ण और नम पवनों के मेल से प्रचंड बवंडर की उत्पत्ति होती है। ये बवंडर बहुत विनाशकारी होते हैं।
(ii) विपरीत चक्रवात (Anti-Cyclones)-विपरीत चक्रवात में वायु दाब की व्यवस्था चक्रवात से बिल्कुल विपरीत होती है। जब मध्य में उच्च वायु दाब और चारों ओर निम्न वायु दाब होता है, तो वायु दाब की इस स्थिति को प्रति चक्रवात कहते हैं। इसमें पवनें केंद्र से बाहर की ओर चलती हैं। फैरल के नियम के अनुसार, उत्तरी गोलार्द्ध में यह घड़ी की सुइयों के समान (Clockwise) और दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत (Anti-Clock wise) चलती हैं। केंद्र से बाहर की ओर वायु दाब निम्न होता जाता है जिससे प्रति चक्रवात में समदाब रेखाएँ (Isobars) लगभग गोलात्मक होती हैं।
(क) आकृति और विस्तार (Shape and Size)-प्रति चक्रवात प्रायः वृत्त आकार के होते हैं, परंतु कभी-कभी दो चक्रवातों के बीच स्थित होने के कारण ये फलीदार (Wedge-Shaped) होते हैं। ये – बहुत बड़े होते हैं, जिनका व्यास 3000 कि०मी० से भी अधिक होता है। कभी-कभी तो इनका व्यास 9000 कि०मी० तक भी होता है। समूचे यूरोप और साइबेरिया जैसे विशाल भू-खंड को कभी-कभी एक ही प्रतिकूल चक्रवात घेर लेता है।
(ख) मार्ग और वेग (Track and Velocity)-प्रतिकूल चक्रवात का अपना कोई निश्चित मार्ग नहीं होता क्योंकि ये प्रायः शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में रहते हैं और उनका मार्ग ही अपनाते हैं। कभी-कभी ये एक ही स्थान पर निरंतर कई दिनों तक रहते हैं। जब ये चलते हैं, तो इनका वेग 30 से 50 कि०मी० प्रति घंटा होता है। इनकी दिशा और मार्ग अनिश्चित होते हैं। ये अचानक प्रवाह दिशा में परिवर्तन भी कर लेते हैं।
Geography Guide for Class 11 PSEB वपवनें Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न तु (Objective Type Questions)
नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-
प्रश्न 1.
पूर्वी पवनें किन्हें कहते हैं ?
उत्तर-
व्यापारिक पवनों को।
प्रश्न 2.
व्यापारिक पवनों की उत्तरी गोलार्द्ध में दिशा बताएँ।
उत्तर-
उत्तरी-पूर्वी।
प्रश्न 3.
व्यापारिक पवनों के मरुस्थल कहाँ मिलते हैं ?
उत्तर-
पश्चिमी भागों में।
प्रश्न 4.
पश्चिमी पवनों की उत्तरी गोलार्द्ध में दिशा बताएँ।
उत्तर-
दक्षिणी-पश्चिमी।।
प्रश्न 5.
उस प्राकृतिक खंड का नाम बताएँ, जहाँ पश्चिमी पवनों के कारण सर्दियों में वर्षा होती है।
उत्तर-
भू-मध्य सागरीय खंड।
प्रश्न 6.
शीतोष्ण चक्रवात किन पवनों के साथ-साथ चलते हैं ?
उत्तर-
पश्चिमी पवनों।
प्रश्न 7.
40°- 50° दक्षिणी अक्षांशों में पश्चिमी पवनों को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
गर्जता चालीस।
प्रश्न 8.
रॉकी पर्वत से नीचे उतर कर प्रेरीज़ में चलने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
चिनूक पवनें।
प्रश्न 9.
अल्पस पर्वत से नीच उतर कर चलने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
फोहन पवनें।
प्रश्न 10.
दिन के समय तटीय क्षेत्रों में चलने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
जल-समीर।
प्रश्न 11.
रात के समय तटीय क्षेत्रों में चलने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
थल-समीर।
प्रश्न 12.
दिन के समय पहाड़ी ढलानों के ऊपर उठने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
घाटी पवनें।
प्रश्न 13.
रात के समय घाटी ढलानों से नीचे उतरने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
पर्वतीय पवनें।
प्रश्न 14.
आरोही पवनों को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
घाटी पवनें।
प्रश्न 15.
अवरोही पवनों को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
पर्वतीय पवनें।
प्रश्न 16.
बर्फ को खाने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
चिनूक पवनें।
बहुविकल्पीय प्रश्न
नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें-
प्रश्न 1.
उत्तरी गोलार्द्ध में व्यापारिक पवनों की दिशा है
(क) उत्तर-पूर्वी
(ख) दक्षिण-पूर्वी
(ग) पश्चिमी
(घ) दक्षिणी।
उत्तर-
उत्तर-पूर्वी।
प्रश्न 2.
वायु दाब मापने की इकाई है-
(क) बार
(ख) मिलीबार
(ग) कैलोरी
(घ) मीटर।
उत्तर-
मिलीबार।
अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-
प्रश्न 1.
नक्षत्रीय पवनों या स्थायी पवनों से क्या अभिप्राय है ? इनके उदाहरण बताएँ।
उत्तर-
भू-तल पर सदा एक ही दिशा में लगातार चलने वाली पवनों को स्थायी या नक्षत्रीय पवनें कहते हैं, जैसेव्यापारिक पवनें, पश्चिमी पवनें और ध्रुवीय पवनें।
प्रश्न 2.
व्यापारिक पवनों की दिशा बताएँ।
उत्तर-
उत्तरीय गोलार्द्ध में व्यापारिक पवनें उत्तर-पूर्व दिशा में और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व दिशा में चलती हैं।
प्रश्न 3.
पश्चिमी पवनों की दिशा बताएँ।
उत्तर-
पश्चिमी पवनें उत्तरी-गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिम दिशा में और दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम दिशा में चलती हैं।
प्रश्न 4.
व्यापारिक पवनों के क्षेत्र में पश्चिमी भागों में मरुस्थल क्यों मिलते हैं ?
उत्तर-
व्यापारिक पवनें पूर्वी भागों में वर्षा करती हैं और पश्चिमी भाग शुष्क रह जाते हैं। यहाँ सहारा, थार, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, कालाहारी, ऐटेकामा मरुस्थल मिलते हैं।
प्रश्न 5.
दक्षिणी गोलार्द्ध में पश्चिमी पवनों के कोई चार उपनाम बताएँ।
उत्तर-
दक्षिणी गोलार्द्ध में थल की कमी के कारण पश्चिमी पवनों के मार्ग में कोई रुकावट नहीं होती। तेज़ गति से चलने के कारण इन्हें वीर पश्चिमी पवनें (Brave Westerlies) कहते हैं। 40°-50° अक्षाशों में गर्जता चालीस (Roaring forties), 50°-60° अक्षाशों में गुस्सैल पचास (Ferocious fifties) और 60° से आगे इन्हें कूकते या चीखते साठ (Shrieking Sixties) कहते हैं।
प्रश्न 6.
तटवर्ती भागों में चलने वाली दो स्थानीय पवनों के नाम बताएँ।
उत्तर-
थल समीर और जल समीर।
प्रश्न 7.
पर्वतीय भागों की दो स्थानीय पवनों के नाम बताएँ।
उत्तर-
पर्वतीय समीर और घाटी समीर।
प्रश्न 8.
पर्वतीय ढलानों से नीचे उतरती दो स्थानीय पवनों के नाम बताएँ।
उत्तर-
चिनूक पवनें (उत्तरी अमेरिका) और फोहन पवनें (अल्पस पर्वत)।
प्रश्न 9.
थल समीर और जल समीर में क्या अंतर है ?
उत्तर-
तटवर्ती भागों में दिन के समय समुद्र से थल की ओर जल समीर चलती है, परंतु रात के समय थल से समुद्र की ओर थल समीर चलती है।
प्रश्न 10.
चिनूक पवनों और फोहन पवनों के बारे में बताएँ।
उत्तर-
चिनूक पवनें रॉकी पर्वतीय ढलानों से उतर कर अमेरिका और कनाडा के मैदानी भागों में चलती हैं। ये गर्म पवनें बर्फ को पिघला देती हैं। अल्पस पर्वत को पार करके फोहन पवनें स्विट्ज़रलैंड में चलती हैं।
प्रश्न 11.
कुछ स्थानीय पवनों के नाम बताएँ, जो यूरोप और अफ्रीका की ओर चलती हैं।
उत्तर-
- बौरा पवनें-इटली
- मिस्ट्रल-फ्रांस के तट पर
- लू-उत्तरी भारत
- हर्मटन-पश्चिमी अफ्रीका
- सिरोको-इटली।
प्रश्न 12.
पवन पेटियों के खिसकने का क्या कारण है ?
उत्तर-
पृथ्वी की वार्षिक गति में 21 जून को सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर और 22 दिसंबर को मकर रेखा पर लंब पड़ती है। परिणामस्वरूप उच्च तापमान के क्षेत्र भी अपना स्थान बदल लेते हैं, इसलिए गर्मियों में सभी पवनों की पेटियाँ कुछ उत्तर की ओर तथा सर्दी की ऋतु में दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं।
प्रश्न 13.
पवन-पेटियों के खिसकने का रोम सागरीय खंड पर क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-
पवन-पेटियों के खिसकने के कारण रोम सागरीय खंड (30°-45°) में गर्मी की ऋतु में उच्च वायु दाब पेटी बन जाती है और शुष्क ऋतु होती है, परंतु सर्दी की ऋतु में यहाँ पश्चिमी पवनें चलती हैं और वर्षा करती हैं। रोम सागरीय खंड को शीतकाल की वर्षा का खंड कहते हैं।
प्रश्न 14.
कोरियोलिस बल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पवनें उत्तर-दक्षिण दिशा की ओर चलती है, परंतु पृथ्वी की घूमने की गति के कारण उनमें विक्षेप बल पैदा होता है, जिसके कारण पवनें अपने दायीं या बायीं ओर मुड़ जाती हैं, इस बल को कोरियोलिस बल कहते हैं।
प्रश्न 15.
फैरल का सिद्धांत क्या है ?
उत्तर-
पृथ्वी के घूमने के प्रभाव के अंतर्गत भू-तल पर चलने वाली पवनें उत्तरी-गोलार्द्ध में अपने दाएँ हाथ और.. दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाएँ हाथ की ओर मुड़ जाती हैं, इसे फैरल (Ferral) का सिद्धांत कहते हैं।
प्रश्न 16.
Buys Ballot का नियम क्या है ?
उत्तर-
Buys Ballot नामक वैज्ञानिक के अनुसार उत्तरी गोलार्द्ध में निम्न वायु दाब का क्षेत्र पवन प्रवाह की दिशा के दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में प्रवाह की दिशा के बायीं ओर होता है। इसे Buys Ballot का नियम कहते हैं।
लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)
नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-
प्रश्न 1.
भूमध्य रेखा का शांत खंड कैसे बनता है ?
उत्तर-
स्थिति (Location)-यह शांत खंड भूमध्य रेखा के दोनों तरफ 5°N और 5°S के मध्य स्थित है। इसे भूमध्य रेखा का शांत खंड (Equatorial Calms) भी कहते हैं। धरातल पर चलने वाली वायु की मौजूदगी नहीं होती या बहुत ही शांत वायु चलती है। यह शांत खंड भूमध्य रेखा के चारों ओर फैला हुआ है। इस खंड में सूर्य की किरणें पूरा वर्ष सीधी पड़ती हैं और औसत तापमान अधिक रहता है। हवा गर्म और हल्की होकर लगातार संवाहक धाराओं (Convection Currents) के रूप में ऊपर उठती रहती है और धरालत पर वायु दाब कम हो जाता है।
प्रश्न 2.
फैरल के नियम का वर्णन करें।
उत्तर-
फैरल का नियम (Ferral’s Law)-धरालत पर पवनें कभी भी उत्तर से दक्षिण की ओर सीधी नहीं चलतीं। सभी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर तथा दक्षिण गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं। इसे फैरल का नियम कहते हैं । (“All moving bodies are deflected to the right in the Northern Hemisphere and to the left in the Southern Hemisphere.”)
हवा की दिशा में परिवर्तन का कारण धरती की दैनिक गति है। जब हवाएँ धीमी चाल वाले भागों से तेज़ चाल वाले भागों की ओर आती हैं, तो पीछे रह जाती हैं, जैसे-उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें अपनी दायीं ओर मुड़ जाती हैं। पश्चिमी पवनें भी मुड़कर उत्तर-पश्चिमी दिशा में चलती हैं। इसी प्रकार दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं। पश्चिमी पवनें भी मुड़कर दक्षिण-पश्चिमी दिशा में चलती हैं। इस विक्षेप शक्ति को कोरोलिस बल (Corolis Force) भी कहते हैं।
प्रश्न 3.
जल समीर और थल समीर में अंतर बताएँ।
उत्तर-
1. जल समीर (Sea Breeze)—ये वे पवनें हैं, जो दिन के समय समुद्र से थल की ओर चलती हैं। दिन के समय सूर्य की तीखी गर्मी से थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक और जल्दी गर्म हो जाता है। थल पर हवा गर्म होकर ऊपर उठती है और निम्न वायु दाब बन जाता है, परंतु समुद्र पर थल की तुलना में अधिक वायु दाब रहता है। इस प्रकार थल पर निम्न दबाव का स्थान लेने के लिए समुद्र की ओर से ठंडी हवाएँ चलती हैं। थल की गर्म हवा ऊपर उठकर समुद्र की ओर चली जाती है, इस प्रकार हवा के बहने का एक चक्र बन जाता है। जल समीर ठंडी और सुहावनी (Cool and Fresh) होती है।
2. थल समीर (Land Breeze)-ये वे पवनें हैं, जो दिन के समय थल से समुद्र की ओर चलती हैं। रात को स्थिति दिन के विपरीत होती है। थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक और जल्दी ठंडे हो जाते हैं। समुद्र पर वायु दाब कम हो जाता है, परंतु थल पर अधिक वायु दाब होता है। इस प्रकार थल से समुद्र की ओर पवनें चलती हैं। समुद्र की गर्म हवा ऊपर उठकर थल पर उतरती है, जिससे हवा के बहने का एक चक्र बन जाता है।
प्रश्न 4.
पर्वतीय और घाटी की पवनों में अंतर बताएँ।
उत्तर-
1. पर्वतीय पवनें (Mountain Winds)-पर्वतीय प्रदेशों में रात के समय पर्वत के शिखर से घाटी की ओर ठंडी और भारी हवाएं चलती हैं, जिन्हें पर्वतीय पवनें (Mountain Winds) कहते हैं। रात के समय तेज़ विकिरण (Rapid Radiation) के कारण हवा ठंडी और भारी हो जाती है। यह हवा गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravity) के कारण ढलानों से होकर नीचे उतरती है। इसे वायु प्रवाह (Air Drainage) भी कहते हैं। इन पवनों के कारण घाटियाँ (Valleys) ठंडी हवाओं से भर जाती हैं, जिसके फलस्वरूप घाटी के निचले भागों
में पाला पड़ता है।
2. घाटी की पवनें (Valley Winds)-दिन के समय घाटी की गर्म हवाएँ ढलान पर से होकर चोटी की ओर ऊपर चढ़ती हैं, इन्हें घाटी की पवनें (Valley Winds) कहते हैं। दिन के समय पर्वत के शिखर पर तेज़ गर्मी और वायु दाब पेटियों के उत्तर दिशा में खिसकने के फलस्वरूप यह प्रदेश घोड़ा अक्षांशों की उच्च वायु दाब पेटी के प्रभाव में आ जाता है, जिसके कारण पवनें इस प्रदेश की ओर नहीं चलतीं। इसलिए यहाँ गर्मियों में वर्षा नहीं होती। इसके विपरीत सर्दियों में वायु दाब पेटियों के दक्षिणी दिशा में खिसकने के फलस्वरूप यह खंड पश्चिमी पवनों के प्रभाव में आ जाता है और ये पवनें इस खंड में वर्षा करती हैं। इस प्रकार भूमध्य सागरीय प्रदेश में शीतकाल में वर्षा होती है, जबकि गर्मी की ऋतु में यह शुष्क रहता है।
प्रश्न 5.
चक्रवात से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
चक्रवात (Cyclones)—वायु दाब में अंतर होने के कारण वायुमंडल गतिशील होता है। जिस क्षेत्र में वायु दाब निम्न होता है, उसके निकटवर्ती चारों ओर के क्षेत्रों में उच्च वायु दाब होता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च वायु दाब क्षेत्र से निम्न वायु क्षेत्र की ओर पवनें चलती हैं। फैरल के नियम अनुसार पृथ्वी की दैनिक गति के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं। परिणामस्वरूप इन पवनों की गति उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत (anti-clock wise) और दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की समान (clock wise) दिशा में होती है। इस प्रकार पवनों के उच्च वायु दाब से निम्न वायु दाब की ओर सुइयों के विपरीत और अनुकूल चलने के कारण पवनों का एक चक्र उत्पन्न हो जाता है, जिसे चक्रवात कहते हैं।
प्रश्न 6.
शीतोष्ण चक्रवात की प्रमुख विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
शीतोष्ण चक्रवात (Temperate Cyclones)-
- ये चक्रवात पश्चिमी पवनों के क्षेत्र में 35° से 65° के अक्षांशों के बीच पश्चिमी-पूर्वी दिशा में चलते हैं।
- शीतोष्ण चक्रवात की शक्ल गोलाकार या V आकार जैसी होती है।
- इस प्रकार के चक्रवातों की मोटाई 9 से 11 किलोमीटर और व्यास 100 किलोमीटर चौड़ा होता है।
- चक्रवात की अभिसारी पवनें केंद्र की वायु को ऊपर उठा देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप बादलों का निर्माण और वर्षा होती है।
- साधारण रूप में इनकी गति 50 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। गर्मी की ऋतु की तुलना में शीतकाल में इनकी गति अधिक होती है।
प्रश्न 7.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के प्रमुख गुणों का वर्णन करें।
उत्तर-
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)-
- ये चक्रवात 50 से 30° अक्षांशों के बीच व्यापारिक पवनों के साथ-साथ पूर्व से पश्चिम दिशा में चलते हैं।
- इनके केंद्र में निम्न दाब होता है और समदाब रेखाएँ गोलाकार होती हैं।
- साधारण रूप में इनका आकार और विस्तार छोटा होता है। इनका व्यास 150 से 500 मीटर तक होता है।
- चक्रवात के केंद्रीय भाग को ‘तूफान की आँख’ (Eye of the Storm) कहते हैं। ये प्रदेश शांत और वर्षाहीन होते हैं। ये गर्म वायु की धाराओं के रूप में ऊपर से उठने पर बनता है और इसकी ऊर्जा का स्रोत संघनन की गुप्त ऊष्मा है।
- शीत ऋतु की तुलना में गर्मी की ऋतु में इनका अधिक विकास होता है।
- इन चक्रवातों में हरीकेन और तूफान बहुत विनाशकारी होते हैं।
- इन चक्रवातों द्वारा भारी वर्षा होती है।
निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)
नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-
प्रश्न 1.
वायु पेटियों के खिसकने के कारण और प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
पृथ्वी की वार्षिक गति और इसका अपनी धुरी पर झुके रहने के कारण पूरा वर्ष सूर्य की किरणें एक समान नहीं पड़तीं। सूर्य की किरणें 21 जून को कर्क रेखा पर लंब पड़ती हैं, तब वायु पेटियाँ उत्तर की ओर खिसक जाती हैं। 22 दिसंबर को सूर्य की किरणें मकर रेखा पर लंब पड़ती हैं, तब वायु पेटियाँ दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं।
इस क्रिया को वायु दाब पेटियों का सरकना (Swing of the Pressure Belts) कहते हैं। पवनें वायु दाब की भिन्नता के कारण उत्पन्न होती हैं, इसलिए वायु दाब पेटियों के साथ-साथ पवन पेटियाँ भी सरक जाती हैं।
कारण (Causes)—पृथ्वी की धुरी पर तिरछा स्थित होने के कारण परिक्रमा के समय सूर्य 237°N त 237°S तक (47° क्षेत्र) में अपनी स्थिति बदलता रहता है। इस स्थिति बदलने की क्रिया के कारण उच्च तापमान की पेटियाँ भी उत्तर या दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप वायु पेटियाँ भी सरकती हैं।
21 जून की दशा (Summer Solstice)—सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लंब पड़ती हैं। इस क्षेत्र के उच्च वायु दाब का स्थान निम्न वायु दाब पेटी ले लेती है। उच्च वायु दाब पेटी उत्तर की ओर सरक जाती है।
22 दिसंबर की दशा (Winter Solstice)—सूर्य की किरणें मकर रेखा पर लंब पड़ती हैं। उच्च वायु दाब पेटी कुछ दक्षिण की ओर खिसक जाती है और इसका स्थान निम्न वायु दाब पेटी ले लेती है।
वायु दाब और पवनों के खिसकने से नीचे लिखे प्रभाव पड़ते हैं-
प्रभाव (Effects)-
1. गर्मी की ऋतु में मानसून पवनों की उत्पत्ति (Formation of Summer Monsoons)-गर्म संक्रांति या 21 जून को सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लंब पड़ती हैं, जिसके फलस्वरूप भूमध्य रेखा पर निम्न वायु दाब पेटी कर्क रेखा की ओर खिसक जाती है। घोड़ा अक्षांशों के दक्षिणी उपोष्ण उच्च वायु दाब पेटी से आने वाली पवनें भूमध्य रेखा को पार करके फैरल के नियम के अनुसार, दक्षिण-पश्चिमी हो जाती हैं, उन्हें गर्मी की ऋतु की मानसून पवनें कहते हैं। इस प्रकार मानसूनी पवनें भूमंडलीय पवन-तंत्र (Planetary Wind System) का ही रूपांतर होती हैं।
2. सर्दी की ऋतु में मानसून पवनों की उत्पत्ति (Formation of Winter Monsoons)-शीत संक्रांति या 22 दिसंबर को सूर्य की लंब किरणें मकर रेखा पर पड़ती हैं, जिसके फलस्वरूप भूमध्य रेखीय निम्न दाब पेटी मकर रेखा की ओर खिसक जाती है। घोड़ा अक्षांशों की उत्तरी उपोष्ण उच्च वायु दाब पेटी की पवनें भूमध्य रेखा को पार करते ही, फैरल के नियम के अनुसार दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं। फलस्वरूप दक्षिणी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पश्चिमी हो जाती है। उत्तरी गोलार्द्ध में इन पवनों को शीत काल की मानसूनी पवनों का नाम दिया जाता है।
3. सुडान जैसे प्राकृतिक प्रदेशों पर प्रभाव (Effect on Sudan type of Natural Region)-सुडान जैसे प्राकृतिक प्रदेश 5° से 20° अक्षांश पर महाद्वीप के मध्यवर्ती क्षेत्रों में विस्तृत हैं। शीतकाल में वायु दाब पेटियों के दक्षिण दिशा में सरकने के फलस्वरूप यह खंड घोड़ा अक्षांशों की उच्च वायु दाब पेटी के प्रभाव के अंतर्गत आ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पवनें इस प्रदेश की ओर नहीं चलतीं, इसलिए यह क्षेत्र शीतकाल की वर्षा से रहित रहता है। इसके विपरीत गर्मियों में वायु दाब पेटियों के उत्तर दिशा में खिसकने के फलस्वरूप यह प्रदेश भूमध्य रेखीय निम्न वायु दाब पेटी के प्रभाव में आ जाता है, फलस्वरूप पवनें इस प्रदेश की ओर चलती हैं और वर्षा करती हैं। इस प्रकार सुडान प्रदेश में गर्मियों में वर्षा होती है।
4. रोम सागरीय प्राकृतिक प्रदेश पर प्रभाव (Effect on Mediterranean Type of Natural Region) रोम सागरीय प्राकृतिक प्रदेश 30°-45° अक्षांशों के बीच महाद्वीप के पश्चिमी भागों में विस्तृत है। गर्मियों में वायु दाब पेटियों के उत्तर दिशा में खिसकने के फलस्वरूप यह प्रदेश घोड़ा अक्षांशों की उच्च पेटी के प्रभाव में आ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पवनें इस प्रदेश की ओर नहीं चलतीं। इसलिए यह गर्मी की वर्षा से रहित रह जाता है। इसके विपरीत सर्दियों में वायु दाब पेटियों के दक्षिण दिशा में खिसकने के फलस्वरूप यह खंड पश्चिमी पवनों के प्रभाव में आ जाता है और ये पवनें इस खंड में वर्षा करती हैं। इस प्रकार रोम सागरीय प्रदेश में शीतकाल में वर्षा होती है, जबकि गर्मी की ऋतु शुष्क रहती है।
प्रश्न 2.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों और शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की तुलना करें।
उत्तर-
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)-
- स्थिति-ये चक्रवात उष्ण कटिबंध में 50°- 30° अक्षांशों तक चलते हैं।
- दिशा-ये व्यापारिक पवनों के साथ पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हैं।
- विस्तार-इनका व्यास 150 से 500 किलोमीटर तक होता है।
- आकार-ये गोल आकार के होते हैं।
- उत्पत्ति-ये संवाहक धाराओं के कारण जन्म लेते हैं।
- गति-इनमें हवा की गति 100 से 200 किलोमीटर प्रति घंटा होती है।
- रचना-यह अधिक गर्मी की ऋतु में अस्तित्व में आते हैं। इनके केंद्रीय भाग को ‘तूफान की आँख’ कहा जाता है।
- मौसम-इसमें थोड़े समय के लिए तेज़ हवाएँ चलती हैं और भारी वर्षा होती है।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cyclones)-
- ये चक्रवात शीतोष्ण कटिबंध में 35°-65° अक्षांश तक चलते हैं।
- ये पश्चिमी पवनों के साथ-साथ पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हैं।
- इनका व्यास 1000 किलोमीटर से अधिक होता है।
- ये ‘V’ आकार के होते हैं।
- ये गर्म और ठंडी हवाओं के मिलने से जन्म लेते हैं।
- इनमें हवा की गति 30 से 40 किलोमीटर प्रति घंटा होती है।
- यह अधिक सर्दी की ऋतु में बनते हैं। इसके दो भाग-उष्ण सीमांत और शीत सीमांत होते हैं।
- इसमें शीत लहर चलती है और कई दिनों तक रुक-रुककर वर्षा होती है।