Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 12 वारिसनामा-स्वराज के लिए बहे लहू Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 12 वारिसनामा-स्वराज के लिए बहे लहू
Hindi Guide for Class 11 PSEB वारिसनामा-स्वराज के लिए बहे लहू Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
वारिसनामा किसे कहते हैं ? युवा पीढ़ी की विरासत क्या है ?
उत्तर:
‘वारिसनामा’ एक कार्यालयी शब्द है। जब कोई बुजुर्ग अपनी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी बनाने की बात सोचता है तो कचहरी में जाकर तहसीलदार के सामने जो कागज़ प्रस्तुत करता है उसे ‘वारिसनामा’ कहा जाता है। दूसरे शब्दों में इसे वसीयत करना भी कहते हैं। कविता में वारिसनामा से तात्पर्य आने वाली पीढ़ी के लिए शहीदों का संदेश है कि वे स्वराज की रक्षा के लिए अपने प्राण भी न्यौछावर कर दें।
युवा पीढ़ी की विरासत शहीदों की समाधियां हैं।
प्रश्न 2.
स्वराज के लिए बहे लहू का स्वरूप क्या है ?
उत्तर:
स्वराज के लिए बहे लहू में पंच तत्व शामिल होते हैं और वह हर सुख-सुविधा देने वाला होता है। छोटाबड़ा, अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित, पुरुष-स्त्री, बच्चा-बूढ़ा हर व्यक्ति देश की रक्षा के लिए जागरूक हो। वह विदेशियों की चालों को समझे और एकजुट होकर देश के विरुद्ध चली जाने वाली चालों को समझे और उन चालों को असफल बनाने के लिए प्रयास करे। कोई भी व्यक्ति चाहे कोई भी काम करता है वह उसी को ईमानदारी से करता रहे। “स्वराज के लिए लहू बहाने’ से तात्पर्य मर जाना नहीं है बल्कि अपना-अपना कार्य पूरी क्षमता से करना है।
प्रश्न 3.
स्पष्ट कीजिए कि यह कविता भारत छाप विश्व मानव की छवि है ?
उत्तर:
कवि जो भारत छाप विश्व मानव के रूप में जो लड़ाई लड़ते आए हैं, उसकी एक ज्योति है कालजयी स्वराज चेतना। यह चेतना अपने आप उजागर होने और उजाला फैलाने की भावना है।
प्रश्न 4.
हुसैनी वाला के समीप भारत-पाक सीमा पर खड़ा स्मारक आज की पीढ़ी को क्या कहता है ?
उत्तर:
यह स्मारक आज की पीढ़ी को शहीदों की कुर्बानी को याद दिलाते हुए उसे यह कहता है कि उठो और देश के नव-निर्माण में जुट जाओ क्योंकि तुम्हीं उस शहीदों के वारिस हो। जिस आज़ादी को लाखों वीरों ने अपना जीवन दे कर प्राप्त किया उसकी रक्षा करने में जुट जाओ। देश के भीतर और बाहर के खतरों को समझो और देश के दुश्मनों को मिटा दो। देश का दुश्मन कोई बहुत अपना भी दुश्मन के समान ही है।
प्रश्न 5.
निराला की ‘जागो फिर एक बार’ कविता से वारिसनामा कविता की तुलना करें।
उत्तर:
निराला जी की कविता में भारतवासियों को उनके अतीत के गौरव की याद दिलाते हुए स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के लिए जाने के लिए कहा गया है जबकि वात्स्यायन जी की कविता में भारतवासियों को शहीदों की याद दिला कर देश के नव-निर्माण में योग देने के लिए कहा है। दोनों कविताओं में कोई समता नहीं है। एक स्वतन्त्रता पूर्व लिखी गई थी दूसरी स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद।
PSEB 11th Class Hindi Guide वारिसनामा-स्वराज के लिए बहे लहू Important Questions and Answers
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि सुरेश चन्द्र वात्स्यायन का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:
7 फरवरी, सन् 1934 को।
प्रश्न 2.
‘वारिसनामा’ किस प्रकार का शब्द है ?
उत्तर:
‘वारिसनामा’ एक कचहरी तथा कानूनी शब्द है।
प्रश्न 3.
कवि के अनुसार हम सभी में किसका अंश है ?
उत्तर:
हम सभी में त्रिशक्ति का अंश है।
प्रश्न 4.
कविता में कवि ने किन्हें याद करने को कहा है ?
उत्तर:
शहीदों को।
प्रश्न 5.
हमें अपने अंदर क्या पहचानना चाहिए ?
उत्तर:
नेतृत्व की भावना को।
प्रश्न 6.
समाधियाँ किसे प्रेरित करेंगी ?
उत्तर:
नई पीढ़ी को नव निर्माण के लिए।
प्रश्न 7.
वीरों के इतिहास हमारे लिए क्या हैं ?
उत्तर:
वसीयत।
प्रश्न 8.
चाणक्य ने किसका निर्माण किया है ?
उत्तर:
चन्द्रगुप्त।
प्रश्न 9.
हमें अपने अंदर छिपे ………. को बाहर निकालना होगा।
उत्तर:
चन्द्रगुप्त।
प्रश्न 10.
हम लोगों में किसका अंश है ?
उत्तर:
त्रिशक्ति।
प्रश्न 11.
हमें किसकी रक्षा करनी है ?
उत्तर:
भारत माता की।
प्रश्न 12.
इतिहास से परिचय कराने वाले …………. नहीं हैं।
उत्तर:
वीर पुरुष।
प्रश्न 13.
कवि ने भारतवासियों को किसका उत्तराधिकारी माना है ?
उत्तर:
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव।
प्रश्न 14.
देश भक्तों की समाधि किस नदी के किनारे बनी है ?
उत्तर:
सतलुज नदी।
प्रश्न 15.
हमें स्वतंत्रता सेनानियों के ……… को नहीं भूलना चाहिए।
उत्तर:
बलिदान।
प्रश्न 16.
भारतवासी किस की संतान हैं ?
उत्तर:
आर्य की।
प्रश्न 17.
चाणक्य ने किसके अंदर की छिपी प्रतिभा को देखकर उसे सत्ता दिलाई थी ?
उत्तर:
चन्द्रगुप्त।
प्रश्न 18.
कवि ने मानव को स्वयं ………… की पहचान बनने को कहा है।
उत्तर:
नेतृत्व।
प्रश्न 19.
हमें ………… नहीं बनना चाहिए।
उत्तर:
कल्पनाशील।
प्रश्न 20.
देश हित के लिए हमें अपनी आत्मा को ………… करना होगा।
उत्तर:
जगाना।
बहुविकल्पी प्रस्नोत्तर
प्रश्न 1.
सुरेश चन्द्र वात्स्यायन किस चिंतन के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं ?
(क) प्रगतिशील भारतीय
(ख) प्रगतिवादी भारतीय
(ग) प्रयोगवादी
(घ) नीतिवादी।
उत्तर:
(क) प्रगतिशील भारतीय
प्रश्न 2.
सुरेश चन्द्र वात्स्यायन को 1922 ई० में किस साहित्यकार के रूप में अलंकृत किया ?
(क) प्रगतिशील
(ख) प्रतिनिधि
(ग) शिरोमणि
(घ) शिरोधार्य।
उत्तर:
(ग) शिरोमणि
प्रश्न 3.
हमें किसकी रक्षा करनी चाहिए ?
(क) भारतमाता की
(ख) देश की
(ग) वीरों की
(घ) अपनी।
उत्तर:
(क) भारतमाता की
प्रश्न 4.
कवि के अनुसार हम लोगों में किसका अंश है ?
(क) देव का
(ख) त्रिशक्ति का
(ग) भगवान का
(घ) गुरु जी का।
उत्तर:
(ख) त्रिशक्ति का।
वारिसनामा स्वराज के लिए बड़े लहू सपसंग व्याख्या
1. भगतसिंह-राजगुरु-सुखदेव के वारिसो,
फांसी के जिस फंदे ने,
गले घोंट दिए उनके,
क्यों भूल गए आज तुम उसको,
याद दिलाती आज भी इक समाधि को जुहारती
सतलुज के फिरोजपुरी पुल की हुसैनी हवा,
स्वराज के संकल्प पर
प्रशासन के विदेशी उस प्रहार को !
कठिन शब्दों के अर्थ :
वारिसनामा = उत्तराधिकार संबंधी प्रपत्र । स्वराज = अपना राज्य। वारिसो = उत्तराधिकारियों। जुहारती = निहारती, देखती। प्रहार = चोट।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश सुरेश चंद्र वात्स्यायन द्वारा लिखित कविता वारिसनामा-‘स्वराज के लिए बहे लहू’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने भारतवासियों को उनके पूर्वजों के संकल्प स्वतंत्रता की रक्षा करने की याद दिलाते हुए नवनिर्माण करने का संदेश दिया है।
व्याख्या :
कवि कहता है कि हे भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के उत्तराधिकारियो ! तुम फांसी के उस फंदे को क्यों भूल गए हो जिस फंदे ने इन देशभक्तों के गले घोंट दिए थे। इन देशभक्तों की समाधि आज भी तुम्हारी ओर देख रही है जो सतलुज के किनारे हुसैनी वाला नामक स्थान पर बनी हुई है तथा यह समाधि हमें याद दिलाती है देशभक्तों की और स्वराज्य के दृढ़ निश्चय या प्रतिज्ञा की तथा विदेशी शासन की उस चोट को जो हमारे देश भक्तों पर ही नहीं देश पर भी पड़ी थी। उनकी समाधि हमें उनके दशक के लिए किए गए बलिदान की याद दिलाती है, और हमें उनका बलिदान भूलना नहीं है।
विशेष :
- कवि का भाव यह है कि हमें स्वतन्त्रता सेनानियों के बलिदान को भूलना नहीं चाहिए।
- शहीदों की समाधियाँ हमें यह याद दिलाती है कि हमने देश को आजाद करवाने में बहुत संघर्ष किया है। भाषा सरल है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- वीर रस विद्यमान है।
- ओज गुण है।
2. नेशन के विरुद्ध
राष्ट्र के युद्ध की पहचान के बिना,
पुरखों की आर्य संतान तुम कैसे बनोगे,
जिंदगी की किताब में
विदेशियों की लिपि में दरज
आर्य-द्रविड़-रंग-जाति-क्षेत्रगत भेदभाव के
पश्चिमी पाखंड को
जड़ से उखाड़ फेंकने वाले शोध बोध की ज्योति
इतिहास का यथार्थ ज्ञान तुम कैसे बनोगे,
राम-राज्य के जिस आदर्श के लिए
वे हो गए बलिदान
धारण किए बिना धड़कनों में उसको
कुश के वंशज सतगुरु नानक के सबद
लव के वंशज दशमेश पिता के विचित्र नाटक का देश पावन
मानस की जात का सच्चा सुच्चा हिंदुस्तान तुम कैसे बनोगे?
कठिन शब्दों के अर्थ :
नेशन = कौम-अंग्रेज़ी कौम। राष्ट्र = भारत। पुरखों = पूर्वजों। बोध = ज्ञान। यथार्थ = वास्तविकता। दशमेश = दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी। विचित्र नाटक = गुरु गोबिंद सिंह जी की एक रचना।
प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ सुरेश चन्द्र वात्स्यायन द्वारा लिखित कविता ‘वारिसनामा-स्वराज के लिए बहे लहू’ में से ली गई हैं। इसमें कवि ने देश के लिए शहीद हुए वीरों का वर्णन करके हमें सच्चा हिन्दुस्तानी बनने की प्रेरणा दी है
व्याख्या :
कवि कहता है कि अंग्रेजी कौम के विरुद्ध भारत राष्ट्र के युद्ध की पहचान के बिना तुम पूर्वजों की आर्य संतान कैसे कहलाओगे। जीवन की पुस्तक में विदेशियों द्वारा अपनी भाषा में लिखे आर्य-द्रविड़ के भेद, रंग-जाति के भेद को, जो पश्चिम का एक पाखंड है, जड़ से उखाड़ फेंकने वाले शोध के ज्ञान की ज्योति और इतिहास की वास्तविकता का ज्ञान तम्हें कब होगा।।
हमारे पूर्वज, हमारे स्वतंत्रता सेनानी, हमारे देशभक्त जो राम राज्य के आदर्श को लेकर अपने जीवन को अर्पित कर गए उनकी धड़कनों को धारण किए बिना तुम सच्चा हिन्दुस्तान किस प्रकार बनोगे। इसके लिए श्रीराम के छोटे पुत्र कुश के वंशज सतगुरु नानक के सबद और श्रीराम के बड़े बेटे लव के वंशज दशम गुरु-गुरु गोबिंद सिंह जी के विचित्र नाटक में लिखित संदेश ‘मानुष की जात एक’ संदेश को याद करना होगा तभी तुम सच्चे हिन्दुस्तान का रूप बन सकोगे। सच्चा हिन्दुस्तानी बनने के लिए देश की रक्षा के लिए की गई कुरबानियों को याद रखना होगा।
विशेष :
- कवि का भाव यह है कि पश्चिमी विद्वानों ने भारतीय इतिहास का शोध अपने ढंग से किया जिससे हिन्दुस्तान को इतिहास की जानकारी नहीं मिल पाई है।
- कवि ने भारतीयों को सच्चा हिन्दुस्तानी बनने के लिए शहीदों की कुरबानियों को याद रखने के लिए कहा है अर्थात् उनके बताए मार्ग
- पर चलने के लिए कहा है।
- भाषा सरल है
- देशी, विदेशी शब्दावली का प्रयोग है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- वीर रस है।
- ओज गुण है।
3. दुर्भाग्य है तुम्हारा
कि तुममें छिपा खोया जो चंद्रगुप्त
कोई चाणक्य उसके लिए प्रकाश में कहीं नहीं,
ऐसे में नेताओं की ओर देखो मत
नेतृत्व की पहचान खुद बनो!
जागो
नींद ने तुमको ले जाना है कहीं नहीं,
समझो नींद में जो आते हैं
सपने वे राह भूली अकल की भटकन हैं,
नशे की गोलियों जैसे वे
भूल भुलैयों में भरमाते हैं!!
कठिन शब्दों के अर्थ :
अकल = बुद्धि। भरमाते हैं = भ्रम में डालते हैं।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश सुरेश चन्द्र वात्स्यायन द्वारा लिखित कविता ‘वारिसनामा-स्वराज के लिए बहे लहू’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने हिन्दुस्तानियों को अपने अन्दर छिपी नेतृत्व की शक्ति को पहचानने के लिए कहता है
व्याख्या :
कवि भारतवासियों को संबोधित करते हुए कहता है कि यह तुम्हारा दुर्भाग्य है कि आज चाणक्य जैसे नेता नहीं है जो तुम्हारे में छिपे चन्द्रगुप्त की खोज कर सके। तुम्हें आज के नेता की ओर नहीं देखना चाहिए। वे अपनी राह भटक गए हैं तुम्हे क्या राह दिखाएंगे। चाणक्य ने चंद्रगुप्त में छिपी प्रतिभा देख कर उसे राज्य सत्ता का अधिकारी बनाया था। लेकिन अब कोई ऐसा दिखाई नहीं देता जो स्वार्थी भावों से रहित होकर देश के लिए स्वयं को अर्पित करना चाहता है और देश का शासन किसी चन्द्रगुप्त जैसे वीर को सौंपने का साहस कर सकता है।
इसलिए तुम स्वयं नेतृत्व की पहचान बनो क्योंकि तुम्हीं कल के नेता हो इसलिए जागो यह नींद तुम्हें कहीं नहीं ले जाएगी। अपनी आत्मा को जगाओ। इतनी बात समझ लो कि नींद में जो सपने आते हैं वे बुद्धि की भटकन होते हैं। नशे की गोलियों की तरह वे भूल भुलैयों के भ्रम में डालते हैं। कल्पनाशील मत बनो जीवन की सच्चाई का सामना करो।
विशेष :
- कवि का भाव यह है कि हमें अपने अन्दर नेतृत्व की प्रतिभा को पहचानना चाहिए और देश को नई राह पर ले जाना चाहिए।
- अपने को भटकने से बचाना चाहिए।
- भाषा सरल है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- ओज गुण एवं वीर रस है।
4. हर सुबह सांझ की लाली के संग
करो प्रणाम उन माताओं को
भगतसिंह राजगुरु हरसुखदेव की नसों नाड़ियों में
गति कर रही बन कर लहू जो,
लहू यह माटी पानी आग हवा आकाश है जिनकी
जो हर सुख-सुविधा की दाता है
वह और कोई नहीं
बेटी धरती की अपनी भारत माता है।
कठिन शब्दों के अर्थ :
गति कर रही = बह रही है। दाता = देने वाली।
प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियां सुरेश चन्द्र वात्स्यायन द्वारा लिखित ‘वारिसनामा-स्वराज के लिए बहे लहू’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने शहीदों की माँ को धरती की बेटी भारत माता कहा है
व्याख्या :
कवि कहता है कि हे भारतवासियो ! तुम हर सुबह शाम उन माताओं को प्रणाम करो जिन्होंने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे महान् शहीदों को, देशभक्तों को जन्म दिया और जिनका लहू उन शहीदों की नसों में बह रहा है। यह लहू पंच तत्वों-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है जो प्रत्येक सुख-सुविधा को देने वाला है। यह लह और किसी का नहीं धरती की बेटी भारत माता का लहू है अर्थात् शहीदों की माताएं भारत माता होती हैं। उन्हें प्रणाम करना चाहिए।
विशेष :
- कवि का भाव यह है कि शहीदों की माताएं पूजनीय होती हैं।
- शहीदों की नसों में बहने वाला खून पांच तत्व मिट्टी, पानी, आग, हवा और आकाश से मिलकर बना है। यह पांच तत्व हमें हर प्रकार की
- सुविधा देते हैं अर्थात् वीरों के बलिदान हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- भाषा सरल है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- वीर रस है।
- ओज गुण है।
5. संकट है घर में
संकट है बाहिर,
पहचानो
घर में लगी घर की ही आग को,
पहचानो
घर की आग को भड़का रही
बाहिर की धूर्त पाजी सफ़ेदपोश हवा को,
यदि प्रबुद्ध तुम तपः पूत संकल्प के प्रकल्प
तब क्या है किसी अजनबी आग हवा की बिसात
कि अपनी लपेट में तुम्हें लपक वह ले ।
कठिन शब्दों के अर्थ :
धूर्त = मक्कार। पाजी = पाखंडी। प्रबुद्ध = जागृत, ज्ञानी। तपः पूत = तप से पवित्र हुए। संकल्प = दृढ़ निश्चित, प्रतिज्ञा। प्रकल्प = निश्चित । अजनबी = अपरिचित। लपक ले = पकड़ ले।।
प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियां सुरेश चन्द्र वात्स्यायन द्वारा लिखित कविता ‘वारिसनामा-स्वराज के लिए बहे लहू’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने भारतवासियों को देश के अन्दर और बाहर दोनों ओर से आ रहे संकट के प्रति सचेत किया है।
व्याख्या :
कवि भारतवासियों को सम्बोधित करते हुए कहता है कि हमें घर और बाहर संकट को पहचानना चाहिए। घर में घर की ही आग लगी हुई है इसे पहचानो अर्थात् देश के अंदर साम्प्रदायिकता, भेदभाव, जातिवाद, आतंकवाद आदि की आग को समझो। बाहर की आग को जो मक्कार, पाखंडी, सफ़ेदपोश, सभ्य कहलाने वाले लोग हवा दे रहे हैं उसे भी पहचानो। यदि तुम जागृत हो, ज्ञानवान हो और तप से पवित्र हुए संकल्प के प्रति स्थिर हो, निश्चित हो तो क्या मजाल है कि कोई अपरिचित आग को हवा दे सके और वह आग तुम्हें अपनी लपेट में ले ले या पकड़ सके, हमें अपने कर्तव्यों तथा देश की रक्षा के प्रति जागरुक रहना चाहिए।
विशेष :
- कवि का भाव यह है कि सभ्य कहलाने वाले लोग दिखावे की मित्रता करके देश के अन्दर और बाहर दोनों जगह आतंकी स्थिति उत्पन्न कर रहा है। हमें ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए।
- हमें अपनी आंतरिक शक्ति को पहचान कर एक जुट हो कर बाहरी दुश्मन का सामना करना चाहिए।
- भाषा सरल है।
- तत्सम और देशी-विदेशी शब्दावली का प्रयोग है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- वीर रस है।
- औज गुण है।
6. तुम इंद्र, व्रजपाणि, मृत्युंजय, प्रलयंकर जन्मजात,
भूलो मत बैसाखियों के भरम में
अचूक दुर्दम दम है तुममें
अपने पैरों चल सकते तुम अपनी चाल हो
अंधेरा हो घना
तो उसको चीर जो सकती
तुम वह मशाल हो,
सुनो शहीदों की हर समाधि को जुहारती
हर फ़िरोजपुरी पुल पार की हुसैनी हर हवा में गूंजती
वैदिक ऋषि के अभय सक्त जैसी
स्वराज के संकल्प की बँगार को गुहार को,
लो थामो, उतारो अपनी धड़कनों में
स्वराज का वारिसनामा यह
भगत सिंह राजगुरु सुखदेव के वारिसो!!!
कठिन शब्दों के अर्थ :
इंद्र = देवताओं के स्वामी, स्वर्ग के राजा। वज्रपाणि = भगवान् विष्णु। मृत्युंजय = मृत्यु पर विजय पा ली है जिन्होंने-भगवान् शिव। प्रलयंकर = सर्वनाशकारी-भगवान् शंकर। बैसाखियों = सहारा। दुर्दम = जिसे दबाना कठिन हो। जुहारती = निहारती। अभय = निडर, भयमुक्त। सूक्त = वेद मंत्र। अभयसूक्त = कुछ वेद मंत्र हर डर में निडर रहने वाले ऋषियों की प्रार्थना है। इन मंत्रों के एक समूह को ‘अभय सूक्त’ कहा जाता है। बगार = ललकार।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश सुरेश चंद्र वात्स्यायन द्वारा लिखित कविता ‘वारिसनामा-स्वराज के लिए बहे लहू’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने भारतवासियों में देश भक्ति का संचार करने के लिए उन्हें उनके अंदर विद्यमान गुणों को पहचानने के लिए कहता है
व्याख्या :
कवि भारतवासियों को सम्बोधित करते हुए कहता है कि तुम्हारे अन्दर जन्म से ही देवराज इंद्र, भगवान विष्णु और भगवान शिव के गुण विद्यमान हैं क्योंकि तुम उनकी सन्तान हो। तुम्हें सभी गुण विरासत में मिले हैं। तुम्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि तुम्हें किसी भी वैशाखी के सहारे की आवश्यकता नहीं है क्योंकि तुम्हारे भीतर वह शक्ति है जिसे दबाया नहीं जा सकता। इसलिए तुम अपने पैरों पर चल सकते हो। तुम्हें किसी भी संकट का सामना करने के लिए किसी सहारे की ज़रूरत नहीं है, तुम अपनी शक्ति के बल पर आगे बढ़ सकते हो। तुम वह मशाल हो जो अन्धेरे को दूर कर सकती है अर्थात् तुम्हारे अंदर नेतृत्व की वह रोशनी है जो लोगों के अंदर छाए अंधेरे को दूर कर सकती है।
कवि भारतवासियों को संबोधित करते हुए कह रहा है कि शहीदों की प्रत्येक समाधि तुम्हारी ओर बड़े विश्वास के साथ देख रही है। फिरोज़पुर में हुसैनी वाला नामक स्थान पर बहने वाली हवा में वैदिक ऋषियों के मन्त्र गूंज रहे हैं। यह मन्त्र मनुष्य के प्रत्येक डर को दूर करके उसे निडर बनाते हैं तथा वह हवा यह कहती है कि तुम स्वराज के दृढ़ निश्चय की पुकार को तथा चुनौती को थाम लो और अपनी धड़कनों में शहीदों के स्वराज के वारिसनामें को उतार लो। अपनी रग-रग में देशभक्ति की उस भावना का संचार करो जो हमारे शहीदों में बहा करती थी। तुम भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के उत्तराधिकारी हो इसलिए स्वराज के वारिसनामा के तुम्ही हकदार हो।
विशेष :
- कविता का भाव यह है कि भारतवासियों में त्रि-शक्ति का समावेश है इसलिए उन्हें किसी अन्य सहारे की आवश्यकता नहीं है।
- भारत के स्वराज के लिए शहीद हुए वीर आने वाली पीढ़ी के लिए वसीयत में स्वराज की रक्षा के लिए मर-मिटने का संदेश छोड़ गए हैं।
- भाषा प्रभावशाली है।
- तत्सम, देशी-विदेशी शब्दावली है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- वीर रस एवं ओज गुण है।
वारिसनामा स्वराज के लिए बड़े लहू Summary
वारिसनामा स्वराज के लिए बड़े लहू जीवन-परिचय
सुरेश चन्द्र वात्स्यायन का जन्म 7 फरवरी, सन् 1934 को पसरूर (पाकिस्तान) में हुआ था। इनके पिता पं० अमरनाथ शास्त्री अविभाजित पंजाब के सुप्रसिद्ध संस्कृत, हिन्दी सेवी शिक्षा विद शास्त्री थे। इनका पैतृक धाम हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में सुंकाली नामक गांव में है। इन्होंने लुधियाना से शिक्षा प्राप्त की। इन्हें हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, जर्मन के अतिरिक्त वेद उपनिषद-पुराण-गुरुवाणी के साथ-साथ पंजाबी, उर्दू-बंगाली, तमिल भाषाओं का निजी अध्ययन किया।
सुरेश जी की काव्य प्रतिभा का परिचय छात्र-जीवन से ही मिलने लगा था।’अंकुर’, ‘प्रवाल’, और ‘मुकुल शैलानी’ इनके तीन काव्य संग्रह हैं। ये पंजाब और भारत सरकार द्वारा अपने लेखन कार्य के लिए कई बार पुरस्कृत हुए हैं। लोक धुन, नवगीत, अंग्रेज़ी सॉनेट के सामान्तर चतुर्दशी, उर्दू रुबाई के समानान्तर षटपदी और यति क्रम पर आधारित अतुकांत लेकिन लयपूर्ण कविताओं में सुरेश की सृजनशीलता अंकुरित और प्रवाहमयी है। सुरेश का कवि रूप बहु आयामी है। कवि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की सही पहचान इनकी एक रूपता में है। इन्हें प्रगतिशील भारतीय चिन्तन के प्रतिनिधि मंत्र कविता के प्रवर्तक कवि रूप में मिल चुकी है। इन्हें अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। भाषा विभाग, पंजाब ने इन्हें सन् 1992 में शिरोमणि साहित्यकार के रूप में अलंकृत किया है।
वारिसनामा स्वराज के लिए बड़े लहू कविता का सार
‘वारिसनामा’-स्वराज के लिए बहेलह के कवि सुरेश चन्द्र वात्स्यायन हैं। ‘वारिसनामा’ एक कचहरी तथा कानुनी शब्द है जिसका अर्थ घर के बुजुर्ग अपने जमीन जायदाद आदि का वारिस नामांकित करते हैं। इस कविता में कवि ने भगत सिंह, सुखदेव, तथा राजगुरु आदि शहीदों की समाधियों को आज की पीढ़ी के लिए धरोहर बताया है। ये समाधियाँ ही इस नई पीढ़ी को नवनिर्माण के लिए प्रेरित करेंगी। आज वे वीर पुरुष नहीं हैं जो हमें हमारे इतिहास से परिचित करा सकें परन्तु उनके संदेश ही हमारे लिए वसीयत है कि हमें उनके बताए मार्ग पर चलना है तथा आगे बढ़ना है। आज कोई चाणक्य जैसा राजनीतिज्ञ नहीं जो चन्द्रगुप्त का निर्माण कर सके। इसीलिए हमें अपने अन्दर छिपे चन्द्रगुप्त को बाहर निकालना है। हमें अपने समाज में छिपे उन लोगों को पहचान कर बाहर फेंकना है जो सभ्य पुरुष का मुखौटा पहने बैठे है। हम लोगों में त्रिशक्ति का अंश है इसलिए किसी सहारे की उम्मीद छोड़कर उठ खड़े होना है और हमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की तरह बनकर भारत माता के सम्मान की रक्षा करनी है।