Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता
Hindi Guide for Class 11 PSEB भारत की सांस्कृतिक एकता Textbook Questions and Answers
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
प्रश्न 1.
भारत में जाति, भाषा और धर्मगत विभिन्नता होते हुए भी सांस्कृतिक एकता किस प्रकार बनी हुई है ? निबन्ध के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
भारत में हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिक्ख, पारसी अनेक जातियों के लोग रहते हैं। भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। भारत में अनेक धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं, किन्तु फिर भी हमारे देश की सांस्कृतिक एकता बनी हुई है। इसका एक कारण तो यह है कि सभी धर्मों में त्याग और लय को महत्त्व दिया गया है। एक धर्म के आराध्य दूसरे धर्म में महापुरुष के रूप में स्वीकार किए गए हैं। जैसे भगवान् बुद्ध को हिन्दुओं का तेईसवाँ अवतार माना गया है। इसी प्रकार भगवान् ऋषभ देव का श्रीमद्भागवत में परम आदर के साथ उल्लेख हुआ है। जैन धर्म ग्रंथों में भगवान् राम और श्रीकृष्ण को तीर्थंकर तो नहीं कहा गया उनसे एक श्रेणी नीचे का स्थान मिला है। अन्य हिन्दू देवी-देवाताओं को भी उनके देव मंडल में स्थान मिला है।
प्राचीन काल में भारतीय धर्म और साहित्य ने राष्ट्रीय एकता का पाठ पढ़ाया है। सभी काव्य ग्रंथ रामायण और महाभारत को अपना प्रेरणा स्रोत बनाते रहे हैं। संस्कृत-प्राकृत और अपभ्रंश के काव्य ग्रंथ उत्तर दक्षिणा में समान रूप से मान्य है।
भाषा की दृष्टि से भी उत्तर भारत की प्रायः सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। दक्षिण की भाषाएँ भी संस्कृत से प्रभावित हुईं। उर्दु को छोड़ कर प्रायः सभी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक सी हैं। केवल लिपि का भेद है। भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य ने भी भारत की सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने में विशेष योगदान दिया। वेषभूषा, रहन-सहन, चाल-ढाल से भारतवासी जल्दी पहचाने जाते हैं। विदेशी प्रभाव पढ़ने पर भी वह बहुत अंशों में अक्षुण्ण बना हुआ है, वही हमारी एकता का मूल सूत्र है।
प्रश्न 2.
‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ निबन्ध का सार लिखें।
उत्तर:
लेखक कहता है कि देश राष्ट्रीयता का एक आवश्यक उपकरण है। भारत की अनेक नदियों को विभाजक रेखाएँ बतलाकर तथा भाषा और धर्मों एवं रीति-रिवाजों को आधार बनाकर कुछ लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने के लिए भारत को एक देश न कहकर उपमहाद्वीप कहा है। इस तरह उन लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती दी है।
लेखक का मानना है कि प्रायः सभी देशों में जाति, भाषा और धर्मगत भेद हैं। जिस देश में भेद नहीं, उसकी इकाई शून्य की भान्ति दरिद्र इकाई है। सम्पन्नता भेदों में ही है। अतः भेदों के अस्तित्व को इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना अपने को धोखा देना होगा। हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों ही हैं। हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ के वश हमारे भेदों का अधिक विस्तार दिया जिससे हमारे देश में फूट पनपे और उनका उल्लू सीधा हो। उन शासकों ने हमारे अभेदों की उपेक्षा की। देश की नदियों को विभाजक रेखा बताने वाले यह भूल गए कि यही नदियाँ तो भारत भूमि को शस्य श्यामला बनाती हैं।
लेखक कहता है कि राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य को हृदय के अधिक निकट हैं। भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें एक सांस्कृतिक एकता है। भारत में एक धर्म के आराध्य दूसरे धर्म में महापुरुष के रूप में स्वीकार किए गए।
मुसलमान और ईसाई धर्म एशियाई धर्म होने के कारण भारतीय धर्मों से बहुत कुछ समानता रखते हैं। रोमन कैथोलिकों की पूजा-अर्चना, धूप-दीप, व्रत-उपवास आदि हिन्दुओं जैसे ही हैं। ‘मुसलमान’ और ईसाइयों ने यहाँ की संस्कृति को प्रभावित किया तथा यहाँ की संस्कृति से प्रभावित भी हुए। तानसेन और ताज पर हिन्दु मुसलमान समान रूप से गर्व करते हैं। जायसी, रहीम, रसलीन आदि अनेक मुसलमान कवियों ने अपनी वाणी से हिन्दी की रसमयता बढ़ाई है।
जहाँ तक भाषा का प्रश्न है। उत्तर भारत की प्राय: सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। उर्दू को छोड़कर प्रायः भी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक-सी है। केवल लिपि का भेद है। भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य का धूमिल इतिहास धुला-मिला सा है। मीरा, भूषण, संत तुकाराम, कबीर, दादू आदि। सारे भारत में समान रूप से आदर पाते हैं। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी हमारी राष्ट्रीय एकता अक्षुण्ण बनी हुई है।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
प्रश्न 1.
विरोधी लोग भारत को उपमहाद्वीप क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
विरोधी लोग भारत की राष्ट्रीय एकता को खंडित करने के लिए नदियों के प्रवाह को विभाजक रेखा बता कर और भारत की अनेक भाषाओं, जातियों और धर्मों के आधार बनाकर भारत को देश न कहकर उपमहाद्वीप कहते हैं। उनकी दृष्टि में भौगोलिक आधार ही मूल विभाजन करते हैं, जोकि पूर्ण रूप से गलत है।
प्रश्न 2.
‘समाज में भेद और अभेद दोनों हैं। लेखक के इस कथन का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
लेखक का अभिप्राय है कि हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ कर हमारे भेदों को अधिक विस्तार दिया ताकि देश में आपसी फूट पैदा हो और इस भेद नीति से उनका उल्लु सीधा हो। हमारे अभेदों की उपेक्षा की गई और उसमें हीनता की भावना पैदा की गई।
प्रश्न 3.
पंचशील से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बौद्धों के पंचशील का अभिप्राय है कि हिंसा न करना, चोरी न करना, काम और मिथ्याचार से बचना, झूठ से बचना, नशीली वस्तुओं और आलस्य से बचना आदि। पंचशील मानव जीवन की उच्चता के आधार हैं।
प्रश्न 4.
धर्म और संस्कृति को लेखक ने हृदय के निकट स्वीकार किया है। निबन्ध के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य के हृदय के अधिक निकट हैं। जन-साधारण जितना धर्म से प्रभावित होता है उतना राजनीति से नहीं। हमारे भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें एक सांस्कृतिक एकता है जो उनके अविरोध की परिचायक है। सभी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक सी है। केवल लिपि का भेद है।
प्रश्न 5.
भारत की सांस्कृतिक एकता में सिक्ख गुरुओं का क्या योगदान है ?
उत्तर:
सिक्ख गुरुओं ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कष्ट और अत्याचार भी सहे। भारत की सांस्कृतिक एकता के लिए सिक्ख गुरुओं विशेषकर गुरु नानक और गुरु गोबिन्द सिंह जी ने, हिन्दी में कविता की है। ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में कबीर आदि महात्माओं की वाणी आदर के साथ सुरक्षित है, उनका नित्य पाठ होता है।
प्रश्न 6.
मुसलमान और ईसाई धर्म की भारतीय धर्मों से क्या समानता है ?
उत्तर:
‘दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो जैसा कि तुम दूसरों से अपने प्रति चाहते हो।’ ईसा मसीह का यह कथन महाभारत के ‘आत्मनः प्रतिकूलानि’ का ही पर्याय है। ईसाइयों की क्षमा और दया बौद्ध धर्म से मिलती जुलती है। रोमन कैथोलिकों की पूजा-अर्चना, धूप-दीप, व्रत-उपवास आदि हिन्दुओं के से हैं।
प्रश्न 7.
हिन्दू-तीर्थाटन में राष्ट्रीय भावना कैसे निहित है ?
उत्तर:
शिव भक्त ठेठ उत्तर की गंगोत्री से गंगा जल ला कर दक्षिणा के रामेश्वरम महादेव का अभिषेक करते हैं। उत्तर में बदरी-केदार, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथ और पश्चिम में द्वारिका पुरी के तीर्थाटन में भारत की चारों दिशाओं की पूजा हो जाती है। ये मानव हृदय में आस्था के भावों को भरकर एकता का पाठ पढ़ाते हैं जिससे राष्ट्रीय भावना व्यक्त होती है।
प्रश्न 8.
भाषागत समानता से आप क्या समझते हो ?
उत्तर:
भाषागत समानता से तात्पर्य यह है कि उत्तर भारत की सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। इन सभी के शब्दों में पारिवारिक समानता है। दक्षिण की भाषाएँ भी संस्कृत से प्रभावित हुईं। उन्होंने भी थोड़ी बहुत संस्कृत की शब्दावली ग्रहण की। सभी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक सी है। केवल लिपि का भेद है।
PSEB 11th Class Hindi Guide भारत की सांस्कृतिक एकता Important Questions and Answers
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक बाबू गुलाबराय ने नदियों को क्या बतलाया है ?
उत्तर:
विभाजक रेखाएँ।
प्रश्न 2.
लेखक बाबू गुलाबराय ने भारत को देश न कहकर क्या कहा है ?
उत्तर:
उपमहाद्वीप।
प्रश्न 3.
लेखक बाबू गुलाबराय के अनुसार राष्ट्रीयता का उपकरण क्या है ?
उत्तर:
देश।
प्रश्न 4.
सभी देशों में किस प्रकार के भेद हैं ?
उत्तर:
जाति, भाषा एवं धर्मगत भेद हैं।
प्रश्न 5.
जिस देश में भेद नहीं, उसकी इकाई कैसी है ?
उत्तर:
शून्य की भांति दरिद्र इकाई।
प्रश्न 6.
हमारे समाज में …………….. और …………….. हैं।
उत्तर:
भेद, अभेद।
प्रश्न 7.
मनुष्य के हृदय के अधिक निकट कौन हैं ?
उत्तर:
धर्म और संस्कृति।
प्रश्न 8.
भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें …………….. है।
उत्तर:
सांस्कृतिक एकता।
प्रश्न 9.
दो मुसलमान कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मलिक मुहम्मद जायसी, रहीम।
प्रश्न 10.
उत्तर भारत की सभी भाषाएँ ………. से निकली हैं।
उत्तर:
संस्कृत से।
प्रश्न 11.
भाषाओं में विशेषकर किसका भेद है ?
उत्तर:
लिपि का।
प्रश्न 12.
विदेशी प्रभाव के बावजूद भी हमारी राष्ट्रीय एकता ……………
उत्तर:
अक्षुण्ण।
प्रश्न 13.
विरोधी लोग भारत को देश न कहकर क्या कहते हैं ?
उत्तर:
उपमहाद्ववीय।
प्रश्न 14.
भारत के विरोधी भारत की एकता को तोड़ने के लिए ……….. अपनाते हैं।
उत्तर:
तरह-तरह के हथकंडे।
प्रश्न 15.
सिक्ख धर्म गुरुओं ने किसकी रक्षा के लिए कष्ट सहे ?
उत्तर:
हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए।
प्रश्न 16.
सभी धर्मों में ……………. का महत्त्व है।
उत्तर:
त्याग और लय।
प्रश्न 17.
सभी भाषाओं की वर्णमाला …………. नहीं है।
उत्तर:
एक।
प्रश्न 18.
रामेश्वरम कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
भारत के दक्षिण में।
प्रश्न 19.
ठेठ शिव भक्त रामेश्वरम महादेव का अभिषेक कैसे करते हैं ?
उत्तर:
गंगोत्री से गंगा जल लाकर।
प्रश्न 20.
भारतवासियों का एक ………….. है।
उत्तर:
जातीय व्यक्तित्व
बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
भारत में किन किन धर्मों के लोग रहते हैं ?
(क) हिंदू
(ख) सिख।
(ग) ईसाई
(घ) सभी।
उत्तर:
(घ) सभी
प्रश्न 2.
भारत की सांस्कृतिक एकता किस विधा की रचना है ?
(क) निबंध
(ख) कहानी
(ग) उपन्यास
(घ) नाटक ।
उत्तर:
(क) निबंध
प्रश्न 3.
पंचशील सिद्धांत किसका है ?
(क) बौद्धों का
(ख) जैनों का
(ग) सिक्खों का
(घ) ईसाइयों का।
उत्तर:
(क) बौद्धों का
प्रश्न 4.
मनुष्य के हृदय के अधिक निकट कौन है ?
(क) धर्म
(ख) संस्कृति
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) दोनों।
प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या
(1) हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती देने के निमित्त उत्तर-दक्षिण, अवर्ण-सवर्ण, हिन्दू-मुसलमान-सिक्ख-ईसाईजैन के भेद खड़े करके हमारी संगठित ईकाई को क्षति पहुँचाई गई। भाषा का भी बवंडर उठाया गया ताकि आपसी झगड़ों और भेद-भाव में हमारी शक्ति का ह्रास हो और विदेशी शासकों का राज्य अटल बना रहे।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ बाबू गुलाब राय द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से ली गई हैं। इसमें लेखक ने विदेशी शासकों अथवा विरोधियों द्वारा भारत को उपमहाद्वीप कहे जाने में देश की राष्ट्रीय एकता को खण्डित करने की चाल बताया है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि विरोधियों द्वारा भारत को देश न कहकर उपमहाद्वीप कहने से उनका तात्पर्य था कि हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती दी जाए। इसके लिए उन्होंने उत्तर-दक्षिण, अगड़ी और पिछड़ी जाति, हिन्दू-मुसलमानसिक्ख-ईसाई-जैन धर्मावलंबी लोगों में भेद खड़े करके हमारी संगठित इकाई को हानि पहुँचाई है परन्तु वे अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब नहीं हुए तो उन्होंने भाषा का भी तूफान खड़ा किया गया जिसे आपसी झगड़ों और भेद-भाव में हमारी शक्ति क्षीण हो और विदेशी शासकों का राज्य अटल बना रहे।
विशेष :
- इन पंक्तियों से लेखक का भाव यह है कि भारत के विरोधी भारतीयों की एकता को तोड़ने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। परन्तु वे भारतीय एकता के समक्ष असफल हो जाते हैं।
- भाषा संस्कृत निष्ठ होते हुए भी बोधगम्य है।
(2) भेदों के अस्तित्व से इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना अपने को धोखा देना होगा। हमारे समान में भेद और अभेद दोनों ही हैं। हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ वश हमारे भेदों को अधिक विस्तार दिया और जिससे हमारे देश में फूट की बेल पनपे और इस भेद नीति से उनका उल्लू सीधा हो। हमारे अभेदों की उपेक्षा की गई या उनको नगण्य समझा गया। इसमें दीनता की मनोवृत्ति पैदा हो गई।
प्रसंग :
यह गद्यांश बाबू गुलाब राय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने भारत में स्थित भेदों और उपभेदों को हवा देकर विदेशी शासकों द्वारा अपना उल्लू सीधा करने की बात कही है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि हमारे देश में जाति, धर्म, भाषा आदि के अनेक भेद हैं। इन भेदों के अस्तित्व से इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना भी अपने आप को धोखा देने के बराबर होगा। लेखक मानता है कि हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों ही हैं किन्तु हमारे पूर्व शासकों, अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के कारण हमारे भेदों को अधिक बढ़ावा दिया जिससे हमारे देश में आपसी फूट पैदा हो और विदेशी शासकों का उल्लू सीधा हो। अंग्रेज़ों ने हमारे अभेदों की उपेक्षा की या उन्हें महत्त्व हीन किया। ऐसा करके अंग्रेज़ शासकों द्वारा भारतीयों में हीन भावना पैदा की गई। भारतीयों के मनोबल को कमज़ोर किया गया।
विशेष :
- अंग्रेज़ों द्वारा भारतीय सांस्कृतिक एकता को नष्ट करके अपना उल्लू सीधा करने की बात पर प्रकाश डाला गया है।
- भाषा संस्कृत निष्ठ है। ‘उल्लू सीधा करना’ मुहावरे का प्रयोग करके अंग्रेजों की कूटनीति का वर्णन किया है।
- भाषा शैली सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।
(3) राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य के हृदय के अधिक निकट है। यद्यपि राजनीति का सम्बन्ध भौतिक सुख-सुविधाओं से है फिर भी जन साधारण जितना धर्म से प्रभावित होता है उतना राजनीति से नहीं। हमारे भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उन में एक सांस्कृतिक एकता है, जो उनके अवरोध की परिचायक है।
प्रसंग :
यह अवतरण बाबू गुलाब राय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से लिया गया है। लेखक ने राजनीति से अधिक धर्म के प्रभाव पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य के हृदय के अधिक निकट होती है अर्थात् धर्म और संस्कृति मनुष्य की जड़ों से सम्बन्धित होती है। हालांकि राजनीति का सम्बन्ध सांसारिक सुख-सुविधाओं से है फिर भी आम लोग जितने धर्म से अधिक प्रभावित होते हैं राजनीति से उतने नहीं होते। हमारे भारतीय धर्मों में भले ही अनेक भेद हैं किन्तु उनमें सांस्कृतिक एकता भी मौजूद है, जो उनके मेल या सामंजस्य के परिचायक हैं अर्थात् उनके एक होने का प्रमाण है।
विशेष :
भारतीय धर्मों को सांस्कृतिक एकता बनाए रखने वाला बताया है।
भाषा संस्कृतनिष्ठ है।
भाषा शैली सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।
(4) हमारा एक जातीय व्यकितत्व है। वह हमारी जातीय मनोवृत्ति, जीवन मीमांसा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, उठने-बैठने के ढंग, चाल-ढाल, वेश-भूषा, साहित्य, संगीत और कला में अभिव्यक्त होता है। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी वह बहुत अंशों में अक्षुण्ण बना हुआ है, वहीं हमारी एकता का मूल सूत्र है।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ बाबू गुलाब राय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से ली गई हैं। इनमें लेखक ने भारतीय सांस्कृतिक एकता बनी रहने के कारण पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि भारतवासियों का एक जातीय व्यक्तित्व है। वह जातीय व्यक्तित्व हमारी जातीय मनोवृत्ति, जीवन-मीमांसा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, उठने-बैठने के ढंग, चाल-ढाल, वेश-भूषा, साहित्य, संगीत और कला में प्रकट होता है। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी वह बहुत हद तक अखंडित बना हुआ है। विदेशी शासन का प्रभाव भी इसे नष्ट नहीं कर सका। वही हमारी राष्ट्रीय एकता का मूल सूत्र है। हमारी एकता किसी से प्रभावित नहीं होती।
विशेष :
- लेखक ने भारतीय सांस्कृतिक एकता के अखंडित रहने के कारणों पर प्रकाश डाला है।
- भाषा संस्कृतनिष्ठ है
- भाषा शैली सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।
कठिन शब्दों के अर्थ :
हितचिन्तक = भला चाहने वाला। अवयवों = शरीर के अंगों। समायोजन = संगठन। उर्वरा = उपजाऊ। शस्यश्यामला = हरा-भरा, धन-धान्य से भरपूर, फल से भरपूर। अबाधित = बिना रुकावट के। अखिल = निरन्तर। अवरोध = मेल सामंजस्य। आराध्य = पूज्य। तीर्थंकर = जैन धर्म के पूज्य 24 श्लाघा पुरुष । आवागमन = बार-बार जन्म लेना आना जाना। मुदिता = प्रज्ञव्रता चित्त की दशा। स्वास्तिक चिह्न = मंगलकारी, गणेश जी की आकृति को दशाने वाला चिह्न । यम = अहिंसा, सत्य चोरी न करना, ब्रह्मचारी, आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना यम कहलाते हैं। अणुव्रत = जैनधर्म में अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य और आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना को अणुव्रत कहा गया है। तीर्थाटन = तीर्थों की यात्रा करना। जेन्दावेस्ता = पारसियों का धर्म ग्रन्थ एकता। आम्नाय = धर्मशास्त्रीय ग्रंथ। एकध्येयता = लक्ष्य की एकता।
भारत की सांस्कृतिक एकता Summary
भारत की सांस्कृतिक एकता का सार
लेखक कहता है कि देश राष्ट्रीयता का एक आवश्यक उपकरण है। भारत की अनेक नदियों को विभाजक रेखाएँ बतलाकर तथा भाषा और धर्मों एवं रीति-रिवाजों को आधार बनाकर कुछ लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने के लिए भारत को एक देश न कहकर उपमहाद्वीप कहा है। इस तरह उन लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती दी है।
लेखक का मानना है कि प्रायः सभी देशों में जाति, भाषा और धर्मगत भेद हैं। जिस देश में भेद नहीं, उसकी इकाई शून्य की भान्ति दरिद्र इकाई है। सम्पन्नता भेदों में ही है। अतः भेदों के अस्तित्व को इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना अपने को धोखा देना होगा। हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों ही हैं। हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ के वश हमारे भेदों का अधिक विस्तार दिया जिससे हमारे देश में फूट पनपे और उनका उल्लू सीधा हो। उन शासकों ने हमारे अभेदों की उपेक्षा की। देश की नदियों को विभाजक रेखा बताने वाले यह भूल गए कि यही नदियाँ तो भारत भूमि को शस्य श्यामला बनाती हैं।
लेखक कहता है कि राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य को हृदय के अधिक निकट हैं। भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें एक सांस्कृतिक एकता है। भारत में एक धर्म के आराध्य दूसरे धर्म में महापुरुष के रूप में स्वीकार किए गए।
मुसलमान और ईसाई धर्म एशियाई धर्म होने के कारण भारतीय धर्मों से बहुत कुछ समानता रखते हैं। रोमन कैथोलिकों की पूजा-अर्चना, धूप-दीप, व्रत-उपवास आदि हिन्दुओं जैसे ही हैं। ‘मुसलमान’ और ईसाइयों ने यहाँ की संस्कृति को प्रभावित किया तथा यहाँ की संस्कृति से प्रभावित भी हुए। तानसेन और ताज पर हिन्दु मुसलमान समान रूप से गर्व करते हैं। जायसी, रहीम, रसलीन आदि अनेक मुसलमान कवियों ने अपनी वाणी से हिन्दी की रसमयता बढ़ाई है।
जहाँ तक भाषा का प्रश्न है। उत्तर भारत की प्राय: सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। उर्दू को छोड़कर प्रायः भी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक-सी है। केवल लिपि का भेद है। भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य का धूमिल इतिहास धुला-मिला सा है। मीरा, भूषण, संत तुकाराम, कबीर, दादू आदि। सारे भारत में समान रूप से आदर पाते हैं। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी हमारी राष्ट्रीय एकता अक्षुण्ण बनी हुई है।