Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 16 युवाओं से Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 16 युवाओं से
Hindi Guide for Class 11 PSEB युवाओं से Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
स्वामी विवेकानन्द ने देश के नवयुवकों को कौन-कौन से गुण विकसित करने के लिए प्रेरित किया है ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द जी ने देश ने नवयुवकों को अपने अन्दर त्याग और सेवा के गुणों को विकसित करने की प्रेरणा दी है। स्वामी जी का कहना है कि इन गुणों को विकसित करने से तुम में शक्ति अपने आप जाग उठती है। दूसरों के लिए रत्ती भर भी सोचने से हृदय में सिंह जैसा बल आ जाता है। स्वामी जी कहते हैं कि नवयुवकों को निःस्वार्थ भाव से सेवा करनी चाहिए। उस सेवा के बदले में न धन की लालसा करनी चाहिए न कीर्ति की। हे वीर युवक ! गरीबों और पद दलितों के प्रति सहानुभूति रखो,ईश्वर में आस्था रखने, दीन-दुःखियों के दर्द को समझो और ईश्वर से उनकी सहायता करने की प्रार्थना करो। उठो और साहसी बनो, तीर्थवान बनो और सब उत्तरदायित्व अपने कंधे पर लो। इस तरह जो भी बल या सहायता चाहिए वह सब तुम्हारे भीतर ही मौजूद है।
प्रश्न 2.
भारतवर्ष के राष्ट्रीय आदर्श कौन-कौन से हैं ? स्वामी जी ने उन आदर्शों की क्या व्याख्या की है ?
उत्तर:
स्वामी जी के अनुसार भारत के राष्ट्रीय आदर्श-त्याग और सेवा है। स्वामी जी का मत है कि इन आदर्शों का पालन करने से सब काम अपने आप ठीक हो जाएँगे। त्याग से इतनी शक्ति आएगी कि तुम उसे संभाल न सकोगे। दूसरों के हित के लिए सोचो इससे तुम्हारे अन्दर काम करने की शक्ति जाग उठेगी। धीरे-धीरे तुम में सिंह जैसा बल आ जाएगा। – स्वामी जी दूसरे राष्ट्रीय आदर्श सेवा के बारे में कहते हैं कि सेवा निःस्वार्थ भाव से की जानी चाहिए। उसमें किसी प्रकार के धन, यश या किसी दूसरी वस्तु की कामना नहीं करनी चाहिए। मनुष्य जब ऐसा करने में समर्थ हो जाएगा तो वह भी बुद्ध बन जाएगा और उसके भीतर से ऐसी शक्ति प्रकट होगी, जो संसार की अवस्था को सम्पूर्ण रूप से बदल सकती है।
प्रश्न 3.
स्वदेश भक्ति का स्वामी जी ने क्या अर्थ स्पष्ट किया है ?
उत्तर:
स्वामी जी ने स्वदेश भक्ति का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा है कि स्वदेश भक्ति के सम्बन्ध में उनका एक आदर्श है। बड़े काम करने के लिए तीन-चीजों की आवश्यकता होती है। बुद्धि और विचार शक्ति हमारी थोड़ी सहायता तो कर सकती है, हमें थोड़ी दूर आगे भी बहा सकती है। किन्तु वह वहीं ठहर जाती है किन्तु हमारा हृदय ही महाशक्ति को प्रेरणा देता है। प्रेम असंभव को भी संभव बना देता है। जगत के सब रहस्यों का द्वार प्रेम ही है। अतः स्वामी जी ने देश के नवयुवकों को हृदयवान बनने की प्रेरणा दी है साथ ही स्वामी जी ने कहा है कि जब तक तुम्हारा हृदय भूखेगरीबों के लिए नहीं धड़केगा। जब तक इस निर्धनता को नाश करने की बात नहीं सोचेंगे, तब तक तुम देशभक्ति की पहली सीढ़ी पर कदम नहीं रखोगे।
प्रश्न 4.
‘युवाओं से’ निबन्ध का शीर्षक कहाँ तक सार्थक है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध स्वामी विवेकानन्द जी के एक व्याख्यान का अंश है। स्वामी जी ने अपने इस व्याख्यान में नवयुवकों को सम्बोधित किया है। अतः प्रस्तुत निबन्ध का शीर्षक अत्यन्त सार्थक है। स्वामी जी ने प्रस्तुत व्याख्यान में राष्ट्रनिर्माण में नवयुवकों की महत्त्वपूर्ण भूमि का उल्लेख किया है। इसके लिए स्वामी जी ने नवयुवकों के मज़बूत एवं निर्भय बनने के लिए कहा है ऐसा वही युवक कर सकते हैं जो सच्चरित्र और अपनी शक्ति में विश्वास रखने वाले हों। जो अपनी शक्ति में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है। युवाओं से सम्बोधन इस बात को सिद्ध करता है कि यह निबन्ध नवयुवकों को समर्पित हैं, जिन्हें नवभारत का निर्माण करना है। अतः कहना न होगा कि ‘युवाओं’ से शीर्षक अत्यन्त सार्थक है।
प्रश्न 5.
स्वामी विवेकानन्द किस प्रकार का संगठन करना अपना ध्येय मानते थे ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द जी नवयुवकों का ऐसा संगठन बनाना अपना ध्येय मानते थे जो नवयुवक प्रत्येक नगर में जाकर दीनहीन और पददलित लोगों को सुख-सुविधा प्रदान कर उन्हें धर्म और नैतिकता की शिक्षा देकर उनकी अनपढता या अज्ञानता को दूर कर सकें।
प्रश्न 6.
‘उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’ स्वामी जी के इस उद्बोधन का भाव समझाएँ।
उत्तर:
प्रस्तुत उद्बोधन द्वारा स्वामी जी ने देश के नवयुवकों को हृदयवान बनकर निर्धनता का नाश करने के उपाय सोचने के लिए कहा। उन्होंने नवयुवकों को स्वयं जाकर दूसरों को भी जगाकर अपने जन्म को सफल बनाने के लिए कहा है कि जब तक लक्ष्य पूरा न हो जाए अर्थात् निर्धनता का नाश नहीं हो जाता तब तक तुम्हें रुकना नहीं चाहिए।
प्रश्न 7.
नास्तिक व्यक्ति की स्वामी जी ने क्या व्याख्या की है ?
उत्तर:
स्वामी जी कहते हैं कि जो अपने में विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है जबकि प्राचीन धर्मों ने कहा है कि जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है। स्वामी जी के कहने का भाव यह है कि व्यक्ति ईश्वर का ही स्वरूप है। अत: व्यक्ति का अपने आप पर विश्वास ईश्वर में विश्वास के बराबर है और जो अपने पर विश्वास नहीं रखता वह ईश्वर में विश्वास कैसे रख सकता है ? वह नास्तिक ही कहलाएगा।
प्रश्न 8.
स्वामी जी ने नवयुवकों को शारीरिक दृष्टि से मज़बूत बनने की सलाह क्यों दी है ?
उत्तर:
स्वामी जी नवयुवकों को शक्तिशाली बनने की सलाह देते हैं। धर्म को वे बाद की वस्तु मानते हैं। स्वामी जी का मानना है कि गीता के अध्ययन की अपेक्षा फुटबाल के खेल में दक्षता प्राप्त कर स्वर्ग के अधिक समीप पहुँचा जा सकता है। क्योंकि फुटबाल खेलकर युवकों का शरीर मज़बूत होगा। उनके स्नायु और मांसपेशियाँ अधिक मज़बूत होने पर वे गीता को अच्छी तरह समझ सकेंगे।
प्रश्न 9.
धर्म के सम्बन्ध में स्वामी जी का क्या विचार है ?
उत्तर:
स्वामी जी सब धर्मों को स्वीकार करते हैं और सबकी पूजा करते हैं। वे चाहे हिन्दू हों, चाहे मुसलमान, बौद्ध या ईसाई, उन सबके साथ ईश्वर की उपासना करते हैं, चाहे वे स्वयं ईश्वर की किसी भी रूप में उपासना करते हों। वे मस्जिद में जाएँगे, गिरजा में भी जाएँगे तथा बौद्ध मन्दिर में जाकर बौद्ध शिक्षा को ग्रहण करेंगे। वे उन हिन्दुओं के साथ जंगल में जाकर ध्यान करेंगे जो ज्योतिस्वरूप परमात्मा को प्रत्यक्ष देखने में लगे हुए हैं।
प्रश्न 10.
किस प्रकार की शिक्षा जीवन और चरित्र का निर्माण कर सकती है ?
उत्तर:
स्वामी जी का विचार है कि शिक्षा अब गया है। यह ज्ञान आत्मसात् हुए बिना निष्फल हो जाएगा। हमें उन विचारों को अनुभव करने की ज़रूरत है जो जीवननिर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र-निर्माण में सहायक हों। यदि कोई केवल पाँच ही जांच-परखे विचारों को आत्मसात् कर ले जो चरित्र निर्माण कर सकते हों तो पूरे संग्रहालय को मुँह-जबानी याद करने वाले की अपेक्षा व्यक्ति अधिक शिक्षित कहलाएगा।
PSEB 11th Class Hindi Guide युवाओं से Important Questions and Answers
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘युवाओं से’ निबंध का लेखक कौन हैं ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानंद।
प्रश्न 2.
स्वामी जी ने किससे ऊपर उठने की बात कही है ?
उत्तर:
दलबंदी और ईर्ष्या से।
प्रश्न 3.
भारत के राष्ट्रीय आदर्श कौन-से हैं ?
उत्तर:
त्याग और सेवा।
प्रश्न 4.
दूसरों के लिए रत्ती भर सोचने मात्र से अपने अंदर कैसा बल आता है ?
उत्तर:
सिंह जैसा बल।
प्रश्न 5.
राष्ट की सबसे बडी सेवा क्या है ?
उत्तर:
गरीबों, भूखों, दलितों की सेवा करना।
प्रश्न 6.
राष्ट्रभक्ति …………….. नहीं है।
उत्तर:
कोरी भावना।
प्रश्न 7.
राष्ट्रभक्ति का आधार क्या है ?
उत्तर:
विवेक और प्रेम।
प्रश्न 8.
शिक्षा विचारों को …………… नहीं है।
उत्तर:
ढेर।
प्रश्न 9.
भारत की उन्नति के लिए युवाओं को क्या करना होगा ?
उत्तर:
अपना आत्मिक बल बढ़ाना होगा।
प्रश्न 10.
नेतृत्व की महत्त्वाकांक्षा मनुष्य को ………….. बनाती है।
उत्तर:
असफल।
प्रश्न 11.
कमजोर व्यक्ति का जीवन किसके समान है ?
उत्तर:
मृत्यु के समान।
प्रश्न 12.
दूसरों को अपना बनाने के लिए क्या करना पड़ता है ?
उत्तर:
स्वयं अच्छा बनना पड़ता है।
प्रश्न 13.
मनुष्य किसका अंश है ?
उत्तर:
परमात्मा का।
प्रश्न 14.
स्वामी जी सब ………… को स्वीकार करते थे।
उत्तर:
धर्मों।
प्रश्न 15.
स्वामी जी धर्म को कैसी वस्तु मानते थे ?
उत्तर:
बाद की वस्तु।
प्रश्न 16.
नेतृत्व की इच्छा रखने वाले लोग ……………. भूल जाते हैं।
उत्तर:
सेवा भाव।
प्रश्न 17.
प्राचीन धर्मों में क्या कहा गया है ?
उत्तर:
प्रश्न 18.
जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है।
उत्तर:
जो स्वयं पर ।वश्वास नहीं करता वह नास्तिक है।
प्रश्न 19.
कौन अपने भाग्य के स्वयं निर्माता हैं ?
उत्तर:
देश के युवा।
प्रश्न 20.
कमज़ोरी कभी न हटने वाला …………. है।
उत्तर:
बोझ।
बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘युवाओं से’ निबंध किनके भाषण का अंश है ?
(क) स्वामी विवेकानंद
(ख) स्वामी दयानंद
(ग) स्वामी परमहंस
(घ) महात्मा गांधी।
उत्तर:
(क) स्वामी विवेकानंद
प्रश्न 2.
प्रस्तुत निबंध में भारतीय नवयुवकों को किसके निर्माण की शिक्षा दी गई है ?
(क) चरित्र
(ख) धर्म
(ग) संस्कृति
(घ) अध्यात्म।
उत्तर:
(क) चरित्र
प्रश्न 3.
कमज़ोर व्यक्ति का जीवन किसके समान होता है ?
(क) धन के
(ख) मृत्यु के
(ग) नरक के
(घ) स्वर्ग के
उत्तर:
(ख) मृत्यु कें
प्रश्न 4.
भारत के राष्ट्रीय आदर्श कौन-से हैं ?
(क) सेवा
(ख) त्याग
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) दोनों।
कठिन शब्दों के अर्थ :
समग्र = सारे। पुनरुत्थान = दोबारा उन्नति। निःस्वार्थी = स्वार्थ से रहित। अवलंबन = सहारा। अप्रतिहत = जिसे कोई रोकने वाला न हो। पशुतुल्य = पशु के समान। आत्मसात = अपने में मिलाना। कंठस्थ = मुँह जबानी याद करना। क्रूर = दुष्ट। उन्मत्तता = पागलपन।
प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या
(1) भारतवर्ष का पुनरुत्थान होगा, पर वह शारीरिक शक्ति से नहीं, वरन् वह आत्मा की शक्ति द्वारा। यह उत्थान विनाश की ध्वजा लेकर नहीं वरन् शांति और प्रेम की ध्वजा से होगा।
प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के व्याख्यान ‘युवाओं से’ के अंश में से लिया गया है। इसमें देश के नवयुवकों को सम्बोधित करते हुए उन्हें राष्ट्र निर्माण के लिए क्या कुछ करना चाहिए बताया गया है।
व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में स्वामी विवेकानन्द जी देश के नवयुवकों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि उन्हें देश की उन्नति के लिए शारीरिक शक्ति की नहीं आत्मिक शक्ति पैदा करनी होगी क्योंकि आत्मिक शक्ति से मनुष्य का चरित्र बनता है। देश की उन्नति विनाश का झंडा लेकर नहीं अपितु शांति और प्रेम का झंडा लेकर होगी। इसलिए हमें प्रेम और शांति का वातावरण बनाना होगा।
विशेष :
- इन पंक्तियों से लेखक का भाव यह है कि भारत की उन्नति के लिए युवाओं को अपना आत्मिक बल बढ़ाना होगा तथा प्रेम और शान्ति का वातावरण स्थापित करना होगा।
- भाषा तत्सम प्रधान है।
- शैली विचारात्मक है।
(2) कैवल वही व्यक्ति सब की सेवा उत्तम रूप से कर सकता है, जो पूर्णत: नि:स्वार्थी है, जिसे न तो धन की लालसा है, न कीर्ति की और न किसी अन्य वस्तु की ही। और मनुष्य जब ऐसा करने में समर्थ हो जाएगा, तो वह भी एक बुद्ध बन जाएगा, और उसके भीतर से एक ऐसी शक्ति प्रकट होगी, जो संसार की अवस्था को सम्पूर्ण रूप से परिवर्तित कर सकती है।
प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में वे युवकों को निष्काम सेवा का महत्त्व बताते हैं।
व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी कहते हैं कि केवल वही व्यक्ति दूसरों की अच्छी तरह से सेवा कर सकता है जो पूरी तरह स्वार्थ रहित हो। जिसे न धन की इच्छा हो, न यश की तथा न ही किसी दूसरी वस्तु की। जब मनुष्य ऐसा करने में समर्थ हो जाए तो वह भी एक बुद्ध अर्थात् ज्ञानी बन जाएगा और उसके अन्दर एक ऐसी शक्ति प्रकट होगी जो सारे संसार की हालत को पूरी तरह बदल सकती है।
विशेष :
- स्वामी जी के कहने का भाव यह है कि दूसरों की सेवा निःस्वार्थ भाव से ही की जा सकती है। यह भाव व्यक्ति में एक ऐसी शक्ति को जन्म देगा जो सारे संसार को बदल देने की क्षमता रखती है।
- भाषा तत्सम प्रधान और शैली विचारात्मक है।
(3) तुम लोग ईश्वर की सन्तान हो, अमर आनन्द के भागी हो स्वयं पवित्र और पूर्ण आत्मा हो। अत: तुम कैसे अपने को जबरदस्ती दुर्बल कहते हो ? उठो साहसी बनो, वीर्यवान होओ। सब उत्तरदायित्व अपने कंधे पर लो- यह याद रखो कि तुम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हो। तुम जो कुछ बल या सहायता चाहो, सब तुम्हारे ही भीतर विद्यमान है।
प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के व्याख्यान ‘युवाओं से’ के अंश में से लिया गया है। इसमें स्वामी युवाओं को आत्मिक बल को पहचान कर अपना भाग्य निर्माण करने का संदेश दे रहे हैं।
व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों को उनकी भीतरी शक्ति से परिचित करवाते हुए कहते हैं कि तुम ईश्वर की सन्तान हो अर्थात् ईश्वर तुम्हें जन्म देने वाले परम पिता हैं । इस कारण तुम अमर आनन्द को प्राप्त करने वाले हो। तुम पवित्र हो और पूर्ण आत्मा, ईश्वर का रूप हो। इसलिए तुम जबरदस्ती अपने को दुर्बल क्यों कहते हो। उठो और साहसी बनो, शक्तिवान बनो। अपनी सारी ज़िम्मेदारियाँ अपने कंधों पर लो। तुम्हें यह याद रखना होगा कि तुम अपने भाग्य के आप ही निर्माता हो। तुम्हें जो भी शक्ति या सहायता चाहिए वह सब तुम्हारे भीतर ही मौजूद है।
विशेष :
- स्वामी जी युवकों को याद दिलाना चाहते हैं कि वे अपने भाग्य के स्वयं निर्माता हैं और जो काम साहस से शक्ति से ही किया जा सकता है वो कहीं बाहर नहीं तुम्हारे अपने अंदर ही मौजूद है।
- शब्दावली तत्सम प्रधान है।
- भाषा सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।
(4) मेरे मित्रो, पहले मनुष्य बनिए, तब आप देखेंगे कि वे सब बाकी चीजें स्वयं आप का अनुसरण करेंगी।
प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। इसमें स्वामी युवा को मनुष्य बनने का संदेश देते हैं।
व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों से कहते हैं कि धन, यश आदि प्राप्त करने के लिए पहले मनुष्य बनना बहुत ज़रूरी है। मानवता के गुण अपना लेने पर बाकी सभी चीजें तुम्हें अपने आप प्राप्त हो जाएँगी। अतः सर्वप्रथम तुम्हें मनुष्य बनना चाहिए।
विशेष :
दूसरों को अपना बनाने के लिए स्वयं अच्छा बनना पड़ता है।
भाषा सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।
(5) मैं तो सिर्फ उस गिलहरी की भाँति होना चाहता हूँ जो श्री राम चन्द्र जी के पुल बनाने के समय थोड़ा बालू देकर अपना भाग पूरा कर संतुष्ट हो गयी थी।
प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया है। स्वामी जी युवाओं को देश की उन्नति में सहयोग देने के लिए कह रहे हैं।
व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द सुधार की अपेक्षा स्वाभाविक उन्नति में विश्वास रखने के अपने उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि मैं तो केवल उस गिलहरी की भाँति होना चाहता हूँ जो श्री रामचंद्र जी के समुद्र पर पुल बनाते समय थोड़ी रेत देकर अपना भाग पूरा कर संतुष्ट हो गयी थी। इसी तरह भारतीय युवकों में शक्ति और विश्वास की भावना जगाने के अपने कर्त्तव्य या उत्तरदायित्व को पूरा करना चाहता हूँ।
विशेष :
- युवा देश की उन्नति में थोड़ा-थोड़ा सहयोग दें तो देश उन्नति के शिखर को छू लेगा।
- भाषा सहज, भावपूर्ण है।
- शैली आत्मकथात्मक है।
(6) जो अपने आप में विश्वास नहीं करता, वह नास्तिक है। प्राचीन धर्मों ने कहा है, वह नास्तिक है जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता। नया धर्म कहता है, वह नास्तिक है जो अपने आप में विश्वास नहीं करता।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से ली गई हैं। स्वामी जी युवाओं को सम्बोधित करते हुए नास्तिक की परिभाषा दे रहे हैं।
व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों से अपने पर विश्वास करने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि जो अपने में विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है क्योंकि मनुष्य परमात्मा का ही तो अंश है अतः अपने पर विश्वास न करना परमात्मा पर विश्वास न करने के बराबर है। प्राचीन धर्मों में भी यही कहा गया है कि जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है किन्तु नया धर्म कहता है कि जो अपने पर विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है।
विशेष :
- धर्म से पहले मनुष्य अपने पर विश्वास करे तो वह धर्म का सही ढंग से पालन कर सकता है।
- भाषा सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।
(7) यह एक बड़ी सच्चाई है कि शक्ति ही जीवन है और कमजोरी ही मृत्यु है। शक्ति परम सुख है, जीवन अजरअमर है। कमज़ोरी कभी न हटने वाला बोझ और यंत्रणा है, कमज़ोरी ही मृत्यु है।
प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। स्वामी जी युवाओं से कहते हैं कि कमज़ोर व्यक्ति सभी के लिए बोझ है।
व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों को शक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि यह एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि शक्ति ही जीवन है और कमज़ोरी ही मृत्यु है अर्थात् ज़िंदादिली ही जिंदगी का नाम है मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं। शक्ति में ही परम सुख है। यह जीवन तो सदा रहने वाला है जबकि कमज़ोरी कभी न हटने वाला बोझ और पीड़ा के समान है। इसीलिए कमज़ोरी मृत्यु समान मानी गयी है।
विशेष :
- मन से शक्तिशाली मनुष्य का जीवन अमर है, जबकि कमज़ोर मन का मनुष्य स्वयं के लिए भी बोझ है तथा दूसरों के लिए भी बोझ है।
- कमज़ोर व्यक्ति का जीवन मृत्यु के समान है।
- भाषा प्रभावशाली तथा तत्सम प्रधान है।
(8) अपने भाइयों का नेतृत्व करने का नहीं, वरन् उनकी सेवा करने का प्रयत्न करते हैं। नेता बनने की इस क्रूर उन्मत्तता में बड़े-बड़े जहाजों को इस जीवन रूपी समुद्र में डुबो दिया है।
प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। स्वामी जी युवाओं से कहते हैं कि नेतृत्व करने से अच्छा सेवा करना है।
व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी युवकों से कहते हैं कि वे अपने देशवासियों का नेतृत्व नहीं बल्कि उनकी सेवा करने का प्रयत्न करें। नेता बनने के निर्दयी पागलपन ने बड़े-बड़े जहाजों को अर्थात् व्यक्तियों को इस जीवन रूपी समुद्र में डुबो दिया है अर्थात् जो लोग नेता बनने का प्रयत्न करते हैं वे जीवन में असफल रहते हैं। लोगों की सेवा करना ही व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।
विशेष :
- नेतृत्व की इच्छा रखने वाले लोग सेवा की भावना को भूल जाते हैं। नेतृत्व की महत्त्वाकांक्षा मनुष्य को असफल बना देती है।
- भाषा सहज, भावपूर्ण तथा शैली व्याख्यात्मक है।
युवाओं से Summary
युवाओं से निबन्ध का सार
प्रस्तुत निबन्ध स्वामी विवेकानन्द जी के विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए दिए गए एक भाषण का अंश है। स्वामी जी को युवाओं से बहुत आशाएँ हैं इसलिए उन्होंने इस भाषण में भारतीय नवयुवकों को चरित्रनिर्माण की शिक्षा देते हुए उन्हें राष्ट्र के नव-निर्माण के लिए प्रेरित किया है। स्वामी जी का कहना है कि इस समय देश को शारीरिक दृष्टि से मज़बूत निर्भय नवयुवकों की ज़रूरत है जो अपने आप में और अपनी शक्ति में विश्वास रखते हों। स्वामी जी की दृष्टि में जो अपने पर विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है। उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं। भारतीय आदर्श त्याग और सेवा है। इन्हें अपनाकर गरीबों, भूखों और दलितों की सेवा करना राष्ट्र की सब से बड़ी सेवा है।
राष्ट्रभक्ति कोरी भावना नहीं है, उसका आधार विवेक और प्रेम है। इसका विवेकपूर्वक प्रयोग करते हुए बाहरी भेदभाव भुलाकर प्रत्येक मनुष्य से प्रेम करना चाहिए। शिक्षा के विषय में स्वामी जी का मत है कि शिक्षा विभिन्न जानकारियों का ढेर नहीं है जो मनुष्य के दिमाग में भर दिया जाए; अपितु शिक्षा उन विचारों की अनुभूति है जो जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण और चरित्र निर्माण में सहायक हो। लेखक युवाओं को कहता है कि उन्हें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयासरत रहना चाहिए। स्वामी जी कहते हैं कि दलबंदी और ईर्ष्या से ऊपर उठकर यदि तुम पृथ्वी की तरह सहनशील हो जाओगे तो इस गुण के बल पर संसार तुम्हारे कदमों में लेटेगा।