PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

Hindi Guide for Class 11 PSEB स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘सामाजिक व्यवस्था में स्त्री और पुरुष के अधिकारों में विषमता क्यों नहीं मिट सकी ?’ पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
लेखिका के अनुसार सामाजिक व्यवस्था में स्त्री और पुरुष के अधिकारों में विषमता इसलिए नहीं मिट सकी क्योंकि अर्थ सदा से ही शक्ति का अन्धानुगामी रहा है। जो अधिक सबल था उसने सुख के साधनों का पहला अधिकारी अपने आप को माना और अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार धन का बंटवारा करना अपना कर्तव्य समझा। यह सच है कि बाद में समाज के विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को, चाहे वह सबल हो या निर्बल, तीव्र बुद्धि हो या मन्द बुद्धि जीवन निर्वाह का साधन देना आवश्यक-सा हो गया। परन्तु उस आवश्यकता में भी शक्ति का दखल रहा। सबल ने दुर्बलों को उसी मात्रा में निर्वाह की सुविधाएँ देना स्वीकार किया, जितनी वे उनके लिए उपयोगी हों। समाज में स्त्री चूंकि निर्बल मानी गई इसलिए सामाजिक व्यवस्था में स्त्री पुरुष में यह विषमता बनी रही।

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प्रश्न 2.
‘आर्थिक दृष्टि से स्त्री की स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हो सका।’ लेखिका के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं ? अपने विचार स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखिका की यह बात पूर्णतः सत्य है। भले ही स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद स्थिति में कुछ बदलाव आया है परन्तु मूल रूप से स्त्री की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। इसका एक कारण हमारे समाज का पुरुष प्रधान होता है, जिस कारण स्त्री को आर्थिक दृष्टि से पुरुष पर निर्भर रहना पड़ता है। स्त्री की यह परवशता उसके विकास और आत्मविश्वास में बाधक है।

लेखिका के इस विचार से हम पूर्ण रूप से सहमत हैं कि क्यों पुरुष प्रधान समाज में कभी भी स्त्री को आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र नहीं होने दिया। पुरुष बाहर जाकर कमाता था और स्त्री घर सम्भालती थी इसलिए स्त्री घर की चार दीवारी में बन्द होकर रह गयी उसे आर्थिक दृष्टि से सदा पुरुष का मुँह ही देखना पड़ा। उसे समाज ने कोई ऐसा अवसर प्रदान नहीं किया जिससे वह आर्थिक दृष्टि से स्वाबलम्बी बन सके।

प्रश्न 3.
नारी जाति की स्थिति में निरन्तर होने वाले सुधारों का ऐतिहासिक क्रम में उल्लेख करते हुए वर्तमान स्थिति में लेखिका द्वारा दिये गए सुझावों से आप कहाँ तक सहमत हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्राचीन वेदकालीन समाज में विवाह को बहुत महत्त्व दिया गया। सन्तान को जन्म देने के कारण स्त्री को बड़ा गौरवमय स्थान प्राप्त हुआ। स्त्री को घर गृहस्थी की मालिक बनाया गया। उसके मातृत्व को विशेष आदर दिया गया। सभ्यता के विकास के साथ-साथ स्त्री की स्थिति में कई परिवर्तन आए। स्त्री की स्थिति ही समाज के विकास के नापने का मापदंड माना जाता है। इस बर्बर समाज में स्त्री पर पुरुष का वैसा ही अधिकार है जैसे वह अपनी अन्य स्थावर सम्पत्ति पर रखने को स्वतंत्र है। इसके विपरीत पूर्ण विकसित समाज में स्त्री पुरुष की सहयोगिनी तथा समाज का आवश्यक अंग मानी जाकर माता तथा पत्नी के महिमामय आसन पर आसीन रहती है। लेखिका द्वारा दिये गए इन सुझावों से हम पूर्णतया सहमत हैं।

प्रश्न 4.
‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ निबन्ध का सार अपने शब्दों में लिखें। उत्तर-देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया निबन्ध का सार। प्रश्न 5. लेखिका निबन्ध के उद्देश्य को स्पष्ट करने में कहाँ तक सफल रही है ?
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध में महादेवी जी का उद्देश्य भारतीय नारी की आर्थिक दृष्टि से परवशता पर प्रकाश डालना है। लेखिका के अनुसार यह एक कटु सत्य है कि सारी सामाजिक, राजनैतिक और अन्य सुविधाओं की रूप-रेखा शक्ति के अनुसार ही निर्धारित होती रही है। युग आए-युग चले गए, सभ्यता में अनेक परिवर्तन हुए लेकिन आर्थिक दृष्टि से नारी आज भी बहुत कुछ उसी हीन और दुर्बल स्थिति में पड़ी है-जैसी प्राचीनकाल में भी थी। इस पुरुष प्रधान समाज में नारी निर्बल होने के कारण आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र नहीं हो सकी।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
लेखिका ने समाज की व्यवस्था में साम्य न कर सकने का क्या कारण बताया है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखिका का मत है कि धन सदा ही शक्ति का अनुगामी रहा है। शक्तिशाली मनुष्य ने अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार ही धन का विभाजन किया। शक्तिशाली मनुष्य ने दुर्बलों को उतनी ही मात्रा में सुख-सुविधाएँ दीं जो उनके लिए ज़रूरी एवं उपयोगी थीं। उसने समाज सुविधाएँ सबके लिए नहीं उपलब्ध कराईं। यही कारण था कि समाज की व्यवस्था में साम्यता न आ सकी।

प्रश्न 2.
वैदिक समाज में स्त्री की उन्नति का क्या कारण था ?
उत्तर:
वेदकालीन समाज में पुरुष ने सन्तान की आवश्यकता के कारण और अनाचार रोकने के लिए विवाह को अधिक महत्त्व दिया। सन्तान की जन्मदात्री होने के कारण स्त्री की गरिमा बढ़ गई। उसे यज्ञ जैसे धर्म कार्यों में पति का साथ देने के कारण सहधर्मिणी माना गया और घर की व्यवस्था करने के लिए गृहिणी का पद दिया गया।

प्रश्न 3.
स्त्री को पिता की सम्पत्ति से वंचित करने में क्या उद्देश्य रहा होगा ? पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
वैसे तो इस उद्देश्य के बारे में कहना कठिन है किन्तु सम्भव है स्त्री के निकट वैवाहिक जीवन को अनिवार्य रखने के लिए ऐसी व्यवस्था की गई हो। यह भी हो सकता है पुरुष समाज में इस ओर ध्यान ही न दिया हो। कन्या को पिता की सम्पत्ति में स्थान देने से यह कठिनाई भी आ सकती थी कि पिता की सम्पत्ति पर दूसरे परिवारों को उत्तराधिकार हो जाने पर परिवार की व्यवस्था में अस्थिरता आ सकती हो।

प्रश्न 4.
‘प्राचीन समाज में स्त्री के स्वतन्त्र अस्तित्व की कभी चिन्ता ही नहीं की गई।’ इसका क्या कारण था ?
उत्तर:
समाज में स्त्री के मातृत्व को विशेष आदर दिया गया किन्तु सामाजिक व्यक्ति के रूप में उसे विशेष अधिकार न दिए गए। समाज के निकट स्त्री पुरुष की संगिनी होने के कारण ही उपयोगी थी। उससे भिन्न उसका अस्तित्व चिन्ता करने के योग्य नहीं रहता था। दूसरे, समाज भी पुरुष प्रधान था जिसने स्त्री के स्वतन्त्र अस्तित्व की बात कभी सोची ही नहीं।

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प्रश्न 5.
आर्थिक पराधीनता व्यक्ति के व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव डालती है ?
उत्तर:
आर्थिक पराधीनता व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास रोक देती है। न व्यक्ति अपनी इच्छा से कुछ कर पाता है न ही करने के योग्य रहता है। व्यक्ति एक घेरे में कैद होकर रह जाता है जिस से बाहर आने के लिए उसके सारे संघर्ष बेकार सिद्ध हो जाते हैं। उसे अभिमन्यु की तरह हर ओर से घेरा जाता है। परिणाम वही होता जो महाभारत के अभिमन्यु का हुआ था।

प्रश्न 6.
सापेक्षता ही सामाजिक सम्बन्ध का मूल है। भारतीय समाज में स्त्री पुरुष का सम्बन्ध कहाँ तक सापेक्ष है ? पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
समाज में पूर्ण रूप से स्वतन्त्र कोई भी नहीं है क्योंकि सापेक्षता ही सामाजिक सम्बन्ध का मूल है। व्यक्ति उतना ही दूसरे पर निर्भर करता है जितना वह उससे अपेक्षा रखता है। भारतीय समाज में स्त्री पुरुष सम्बन्ध सापेक्ष नहीं है। दोनों में यह भाव समान नहीं है। दोनों एक-दूसरे पर समान रूप से निर्भर नहीं करते। इसी कारण भारतीय स्त्री की सापेक्षता सीमातीत हो गई है। पुरुष की अपेक्षा स्त्री पुरुष पर अधिक निर्भर है। पुरुष को स्त्री रूपी साधन के नष्ट होने पर कुछ हानि नहीं होती जबकि स्त्री हर बात में पुरुष की सहायता चाहती है।

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PSEB 11th Class Hindi Guide स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वेदकालीन समाज में नारी को क्या समझा जाता था ?
उत्तर:
केवल संतान पैदा करने वाली और गृहस्थी संभालने वाली।

प्रश्न 2.
भारतीय पुरुष स्त्री को क्या कहता है ?
उत्तर-सहयात्री।

प्रश्न 3.
‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ कहाँ से संकलित है ?
उत्तर:
महादेवी वर्मा की कृति ‘श्रृंखला की कड़ियों’ से।

प्रश्न 4.
शक्ति का अनुगामी कौन रहा है ?
उत्तर:
धन।

प्रश्न 5.
आदिकाल से स्त्री को क्या समझा जा रहा है ?
उत्तर:
सुख का साधन।

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प्रश्न 6.
आर्थिक रूप से स्त्री को किस पर निर्भर रहना पड़ता था ?
उत्तर:
पुरुष पर।

प्रश्न 7.
वेदकालीन समाज में नारी की …………. पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
उत्तर:
आर्थिक स्वतंत्रता।

प्रश्न 8.
वेदकालीन समाज में नारी को पिता की ………. में कोई अधिकार नहीं था।
उत्तर:
सम्पत्ति।

प्रश्न 9.
हमारे समाज में पुरुष को क्या कहा गया है ?
उत्तर:
भर्ता।

प्रश्न 10.
स्त्री सदा किसका मुँह ताकती रहती है ?
उत्तर:
पुरुष का।

प्रश्न 11.
प्राचीन समाज में स्त्री के मातृत्व को …………… दिया गया।
उत्तर:
विशेष आदर।

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प्रश्न 12.
प्रारम्भ से हमारा समाज कैसा रहा है ?
उत्तर:
पुरुष प्रधान।

प्रश्न 13.
किस समाज में विवाह को महत्त्व दिया गया ?
उत्तर:
वेदकालीन समाज में।

प्रश्न 14.
किसकी स्थिति समाज को मापने का मापदण्ड मानी जाती है ?
उत्तर:
स्त्री की।

प्रश्न 15.
पुरुष प्रधान समाज में नारी आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र क्यों नहीं हो सकी ?
उत्तर:
‘निर्बल होने के कारण।

प्रश्न 16.
समाज का निर्माण कौन करता है ?
उत्तर:
शक्तिशाली व्यक्ति।

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प्रश्न 17.
समाज में पूर्ण रूप से कौन स्वतंत्र है ?
उत्तर:
कोई भी नहीं।

प्रश्न 18.
व्यक्ति का शारीरिक, बौद्धिक तथा मानसिक विकास कौन रोक देता है ?
उत्तर:
आर्थिक पराधीनता।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सामाजिक प्राणी के लिए किसका अधिक महत्त्व है ?
(क) धन का
(ख) मन का
(ग) तन का
(घ) मधुवन का ।
उत्तर:
(क) धन का

प्रश्न 2.
धन सदा किसका अनुगामी रहा है ?
(क) भक्ति का
(ख) शक्ति का
(ग) अनुशक्ति का
(घ) विरक्ति का।
उत्तर:
(ख) शक्ति का

प्रश्न 3.
पुरुष को हमारे समाज में क्या कहा जाता है ?
(क) भर्ता
(ख) कर्ता
(ग) अनुकर्ता
(घ) सतर्कता।
उत्तर:
(क) भर्ता

प्रश्न 4.
प्रारम्भ से भारतीय समाज कैसा है ?
(क) पुरुष प्रधान
(ख) स्त्री प्रधान
(ग) देव प्रधान
(घ) भोग प्रधान।
उत्तर:
(क) पुरुष प्रधान !

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कठिन शब्दों के अर्थ :

अनुगामी = पीछे चलने वाला। अर्थ = धन। सबल = शक्तिवान, शक्तिशाली। मेधावी = लायक, तीव्र बुद्धि। मंदबुद्धि = कम अक्ल, कमज़ोर बुद्धि वाला। सुगमतापूर्वक = आसानी से। प्रतिद्वंद्विता = बराबर वालों की लड़ाई । आदिम युग = प्राचीन युग, आरम्भिक युग। अनुगमन = साथ चलना। तुला = तराजू । परालंबन = दूसरे का सहारा, दूसरे पर निर्भर। भर्ता = स्वामी, भरण-पोषण करने वाला। परमुखापेक्षणी = दूसरे के मुँह की तरफ देखने वाली। विषमता = अन्तर, भेद, असमता। श्लाघ्य = प्रशंसनीय। द्रव्य-उपार्जन = धन कमाना। स्पृहणीय = वांछनीय। यीतुक = दहेज । अनिवार्य = ज़रूरी। विधान = नियम। स्वयंवरा = अपने आप वर की तलाश करना। बलात् = बलपूर्वक, ज़बरदस्ती। संगिनी = साथिन । नितान्त = बिलकुल। बर्बर = दुष्ट, अत्याचारी। परवशता = पराये वश में होना, दूसरे पर निर्भर। स्वावलम्बन = आत्मनिर्भरता। सापेक्षता = परस्पर सम्बन्ध और आदान-प्रदान की स्थिति। सीमातीत = सीमा से परे । क्षमता = सामर्थ्य । सहयात्री = हमसफर, साथ यात्रा करने वाली। उपहास = मज़ाक।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) अर्थ सदा से शक्ति का अन्ध-अनुगामी रहा है। जो अधिक सबल था उसने सुख के साधनों का प्रथम अधिकारी अपने आप को माना और अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार ही धन का विभाजन करना कर्त्तव्य।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा के निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें लेखिका ने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देते हुए आर्थिक दृष्टि से स्त्री की परवशता पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखिका स्त्री की आर्थिक दृष्टि से परवशता की ऐतिहासिक पृष्ठभमि का उल्लेख करती हुई कहती है कि आदिकाल से ही धन शक्ति का अन्धानुकरण करता रहा है। जो अधिक शक्तिशाली था उसने सुख के साधनों का पहला अधिकारी अपने आपको माना और धन का बँटवारा अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार ही किया।

विशेष :

  1. आदिकाल से ही शक्तिशाली व्यक्ति को सभी अधिकार मिले हुए थे।
  2. शक्तिशाली के समक्ष सभी लोग उसकी बात मानने के लिए बाध्य थे।
  3. भाषा संस्कृत-निष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

(2) आदिम युग से सभ्यता के विकास तक स्त्री सुख के साधनों में गिनी जाती रही। उसके लिए परस्पर संघर्ष हुए, प्रतिद्वन्द्वता चली, महाभारत रचे गए और उसे चाहे इच्छा से हो और चाहे अनिच्छा से, उसी पुरुष का अनुगमन करना पड़ता रहा जो विजयी प्रमाणित हो सका।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वांतत्र्य का प्रश्न’ से लिया गया है। इसमें लेखिका ने आदिकाल से ही स्त्री को पुरुष के अधीन बताया है, उसकी अपनी इच्छा नहीं है।

व्याख्या :
स्त्री की परवशता पर प्रकाश डालते हुए लेखिका कहती है कि आदिकाल से सभ्यता के विकास तक स्त्री को सुख का साधन माना गया। स्त्री के लिए ही आपस में संघर्ष हुए, आपसी मुकाबला हुआ, महाभारत जैसे भीषण युद्धों की रचना हुई और स्त्री को चाहे मर्जी से न मर्जी से उसी पुरुष के साथ जाना पड़ा जो विजयी हो सका। लेखिका के कहने का भाव यह है कि स्त्री आदिकाल से ही पुरुष की शक्ति की गुलाम रही है।

विशेष :

  1. पुरुष के समक्ष स्त्री की अपनी कोई इच्छा का अर्थ नहीं था।
  2. जिस स्त्री को लेकर पुरुष आपस में युद्ध करते थे उसकी इच्छा का उनके लिए कोई अर्थ नहीं था।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

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(3) जीवन में विकास के लिए दूसरों से सहायता लेना बुरा नहीं, परन्तु किसी को सहायता दे सकने की क्षमता न रहना अभिशाप है । सहयात्री वे कहे जाते हैं, जो साथ चलते हैं। कोई अपने बोझ को सहयात्री कहकर अपना उपहास नहीं करा सकता।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा के निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें लेखिका ने पुरुष द्वारा स्त्री को हम साथी कहने के साथ बोझ भी समझा है का वर्णन किया है।

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में लेखिका स्त्री की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहती है कि जीवन में विकास के लिए दूसरों से सहायता लेना बुरा नहीं है परन्तु किसी की सहायता न कर सकना या उसकी सामर्थ्य न रखना एक अभिशाप है। पुरुष ने स्त्री को सहयात्री कहा है। सहयात्री वे कहे जाते हैं जो साथ चलते हैं। कोई अपने बोझ को सहयात्री कह कर अपना मज़ाक नहीं उड़ा सकता। पुरुष ने स्त्री को सहयात्री भी कहा और उसे एक बोझ भी समझा, अपने सुख का साधन भी समझा।

विशेष :

  1. पुरुषों ने स्त्री को अपने जीवन की संगिनी बताया है परन्तु साथ ही उसे बोझ भी माना है।
  2. सहयात्री जीवन में एक-दूसरे के विकास में सहायता करते हैं।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

(4) गृह और सन्तान के लिए द्रव्य-उपार्जन पुरुष का कर्त्तव्य था अतः धन स्वभावतः उसी के अधिकार में रहा। गृहिणी गृहपति की आय के अनुसार व्यय कर गृह का प्रबन्ध और सन्तान पालन आदि का कार्य करने की अधिकारिणी मात्र थी।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें समाज के पुरुष प्रधान होने और स्त्री के आर्थिक रूप से परवश होने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखिका वेदकालीन समाज से चली आ रही परंपरा का उल्लेख करते हुए कहती है कि घर और सन्तान के लिए धन कमाना पुरुष का कर्तव्य था। अतः स्वाभाविक रूप से धन उसी के पास रहा। घरवाली घरवाले की आय के अनुसार खर्च कर घर का प्रबंध और सन्तान पालन आदि कार्य करने की अधिकारिणी मात्र थी।

विशेष :
लेखिका ने स्त्री के आर्थिक दृष्टि से परवश होने का कारण बताया है।
भाषा तत्सम प्रधान तथा शैली विचारात्मक है।

(5) सारी राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य व्यवस्थाओं की रूपरेखा शक्ति द्वारा ही निर्धारित होती रही और सबल की सुविधानुसार ही परिवर्तित और संशोधित होती गयी, इसी से दुर्बल को वही स्वीकार करना पड़ा जो सुगमतापूर्वक मिल गया। यही स्वाभाविक भी था।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें लेखिका ने शक्तिशाली मनुष्य के अधिकारों का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखिका धन सदा शक्ति का अनुगामी रहा है’ अपने विचार की व्याख्या करते हुए कहती है कि धन क्योंकि शक्तिशाली के ही अधिकार में रहा, इसलिए सारी राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य व्यवस्थाओं की रूपरेखा शक्ति द्वारा ही बनायी जाती रही और शक्तिशाली की सुविधा के अनुसार ही बदली गयी थी। उसमें कई संशोधन किए गए। यही कारण था कि कमज़ोर को वही स्वीकार करना पड़ा जो उसे आसानी से मिल गया। कमजोर व्यक्ति का ऐसा सोचना या करना स्वाभाविक ही था।

विशेष :

  1. जो व्यक्ति शक्तिशाली है समाज का निर्माण वही करता है।
  2. शक्तिशाली व्यक्ति के समक्ष कमज़ोर व्यक्ति की नहीं चलती। उसे वही स्वीकार करना पड़ता है जो उसे सुगमता से प्राप्त हो जाता है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है।

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(6) शताब्दियाँ-की-शताब्दियाँ आती जाती रहीं, परन्तु स्त्री की स्थिति की एक रसता में कोई परिवर्तन न हो सका। किसी भी स्मृतिकार ने उसके जीवन की विषमता पर ध्यान देने का अवकाश नहीं पाया ; किसी भी शास्त्रकार ने पुरुष से भिन्न करके उसकी समस्या को नहीं देखा।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। लेखिका ने आदिकाल से चल आ रही स्त्री की स्थिति के लिए सभी को उत्तरदायी बताया है

व्याख्या :
इसमें लेखिका स्त्री की आर्थिक दृष्टि से परवशता पर किसी ने भी ध्यान देने की बात कही है। लेखिका कहती है कि सैंकड़ों साल बीत जाने पर भी स्त्री की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। अर्थात् जैसी स्थिति उसकी पहले थी वही अब है। किसी भी स्मृति ग्रन्थ लेखक को स्त्री के जीवन की इस असमता पर ध्यान देने का समय नहीं मिला। किसी भी शास्त्र लिखने वाले ने पुरुष से अलग करके स्त्री की समस्या को नहीं देखा।

विशेष :

  1. शताब्दियों के बीत जाने पर सब कुछ बदला परन्तु स्त्रियों की स्थिति नहीं बदली। प्राचीनकाल से लेकर अब तक किसी ने भी स्त्रियों की स्थिति बदलने के लिए प्रयास नहीं किए हैं।
  2. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली भावपूर्ण है।

(7) मातृत्व की गरिमा ने गुरु और पत्नीत्व के सौभाग्य से ऐश्वर्यशालिनी होकर भी भारतीय नारी अपने व्यावहारिक जीवन में सबसे अधिक क्षुद्र और रंक कैसे रह सकी, यही आश्चर्य है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ से लिया गया है। इसमें लेखिका ने स्त्री को पुरुष समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखिका भारतीय स्त्री के गौरवमयी स्थान प्राप्त करने पर भी आर्थिक दृष्टि से परवश रहने की बात करती हुई कहती है कि माता का बड़ा दर्जा प्राप्त होने पर तथा पत्नी होने के कारण ऐश्वर्यशाली स्थान प्राप्त होने पर भी भारतीय नारी अपने व्यावहारिक एवं यथार्थ जीवन में सबसे तुच्छ और निर्धन कैसे रह सकी, यही आश्चर्य की बात है अर्थात् माता का एवं पत्नी का इतना ऊँचा और गौरवमय स्थान प्राप्त होने पर भी आर्थिक दृष्टि से वह आत्मनिर्भर न बन सकी, सदा परवश ही रही।

विशेष :

  1. स्त्री को पुरुष की पत्नी तथा माता होने का गौरव प्राप्त है, फिर भी वह पुरुषों के बनाए समाज में नीच मानी जाती है।
  2. पुरुषों ने कभी भी स्त्री के गौरवमय अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

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(8) धन की उच्छशृंखल बहुलता में जितने दोष हैं वे अस्वीकार नहीं किए जा सकते परन्तु इसके नितान्त अभाव में जो अभिशाप है वह उपेक्षणीय नहीं।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ से लिया गया है। इसमें लेखिका ने धन के गुण-दोष का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखिका धन के महत्त्व पर प्रकाश डालती हुई कहती है कि धन के अधिक हो जाने पर उसमें अनेक दोष आ जाते हैं। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता। किन्तु धन का अभाव अर्थात् निर्धनता भी तो एक अभिशाप है। इस बात की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती। भाव यह है कि धन का सामाजिक प्राणी के जीवन में विशेष महत्त्व है।

विशेष :

  1. धन की अधिकता या कमी जीवन को नरक बना देती है।
  2. मनुष्य को अधिक धन की प्राप्ति बुरी संगति की ओर अग्रसर कर देती है तथा धन की कमी मनुष्य का जीवन उसके लिए अभिशाप बन जाता है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली भावपूर्ण है।

स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न Summary

स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न का सार

प्रस्तुत निबन्ध महादेवी वर्मा जी की कृति श्रृंखला की कड़ियाँ’ में संकलित है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखिका ने मनुष्य के सामाजिक विकास की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि देते हुए आर्थिक दृष्टि से नारी की परवशता पर प्रकाश डाला है।

लेखिका कहती है कि धन सदा शक्ति का अनुगामी रहा है। शक्तिशाली ने ही अपनी इच्छा और सुविधानुसार धन का बँटवारा किया है। सारी राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य व्यवस्थाओं की रूपरेखा इसी शक्ति पर आधारित रही है। आदिकाल से ही स्त्री को सुख का साधन तो समझा गया किन्तु उसे आर्थिक रूप से पुरुष पर ही निर्भर रहना पड़ा है। पुरुष को हमारे समाज में भर्ता कहा गया और स्त्री सदा उसका मुँह ताकती रही है।

वेदकालीन समाज में नारी को केवल सन्तान पैदा करने वाली एवं घर-गृहस्थी सम्भालने वाली के रूप में ही देखा गया। उसकी आर्थिक स्वतन्त्रता पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। बस दहेज में जो कुछ दे दिया गया उसे ही काफ़ी समझा गया। पिता की सम्पत्ति में उसे कोई अधिकार नहीं दिया गया। सैंकड़ों साल बीत जाने पर भी स्त्री की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।

एक सामाजिक प्राणी के लिए धन कितना महत्त्व रखता है, यह हर कोई जानता है। आर्थिक रूप से परवशता स्त्री के स्वाभाविक विकास और आत्म-विश्वास को प्रभावित करती है। भारतीय पुरुष-स्त्री को सहयात्री तो कहता है सहयोगी नहीं मानता। इसी विषमता को दूर करना होगा।

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