Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 25 सेब और देव Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 25 सेब और देव
Hindi Guide for Class 11 PSEB सेब और देव Textbook Questions and Answers
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
प्रश्न 1.
‘सेब और देव’ कहानी का सार लिखिए।
उत्तर:
प्रोफैसर गजानंद पंडित दिल्ली के कॉलेज में इतिहास और पुरातत्व के अध्यापक हैं। वे कुल्लू-मनाली में मनोरंजन के साथ-साथ पुरातत्व की खोज में भी आए हैं। पहाड़ी प्रदेश में उन्होंने एक सुन्दर कन्या को झरने के पास खड़े देखा। उन्हें उस कन्या में सरस्वती का रूप दिखाई पड़ा। किन्तु इस कन्या के हाथ में वीणा के स्थान पर एक छोटी लकड़ी थी। प्रोफैसर साहब ने उस कन्या से बड़े ही कोमल स्वर में पूछा कि तुम कहाँ रहती हो ? लड़की ने उसका कोई उत्तर न दिया और हैरान होकर जल्दी-जल्दी पहाड़ी पर उतरने लगी।
रास्ता चलते-चलते उन्हें सेबों के पेड़ नज़र आए जिनकी रखवाली करने वाला वहाँ कोई नहीं था। यह देख प्रोफैसर साहब के मन में पहाड़ी सभ्यता के प्रति आदर भाव और भी बढ़ गया। वे थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि उन्होंने एक लड़के को सेब चुराते हुए पकड़ा। प्रोफैसर साहब ने उसके द्वारा चुराए सेब घास में फेंक दिए और उसे डाँटते हुए ईमान न बिगाड़ने की बात कही। प्रोफैसर साहब कुछ आगे बढ़े तो उन्हें प्राचीन मनु जी का मन्दिर याद आया। उस मन्दिर के दर्शन कर उन्होंने पुजारी से पूछा कि क्या कोई ऐसा मन्दिर आस-पास है ? पुजारी ने एक ऐसे मन्दिर का पता बताया जो बिल्कुल निर्जन स्थान पर उपेक्षित अवस्था में पड़ा था।
प्रोफैसर साहब ने उस मन्दिर में पहुँचकर लगभग 500 वर्ष पुरानी उन मूर्तियों को देखा। उन मूर्तियों को देख प्रोफैसर साहब का मन बेईमान होने लगा। आस-पास नज़र दौड़ाई तो वहाँ कोई नज़र न आया। उन्होंने एक मूर्ति उठाई और उसे अपने ओवरकोट में छिपाकर गाँव की ओर लौट पड़े। लौटते समय उन्होंने फिर एक लड़के को सेब चुराते हुए देखा। उन्होंने उसे पकड़कर डाँटा और उसकी छाती में धक्का दिया। इस पर वह लड़का चीख मारकर रो उठा। प्रोफैसर साहब को लगा कि उसने सेब अपने कोट की जेब में छिपाए थे जो धक्का लगने पर उसे चुभ गए थे। एकाएक प्रोफैसर साहब सोचने लगे कि इसने तो सेब चुराया है, वे तो देवस्थान ही लूट लाए हैं। घर पहुँचते–पहुँचते उनकी आत्मा ग्लानि से भर उठी थी। अतः उन्होंने अंधेरा होने से पहले ही उस मन्दिर में पहुँचकर चुराई हुई मूर्ति को यथास्थान रख दिया। मूर्ति को अपने स्थान पर रखते समय उनके मन में शान्ति उमड़ आई और दुनिया उन्हें अच्छी लगने लगी।
प्रश्न 2.
प्रस्तुत कहानी में प्राकृतिक सुन्दरता तथा वहाँ के लोगों के रहन-सहन तथा सादगी का चित्रण बड़े स्वाभाविक ढंग से किया गया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखक ने एक झरने के किनारे खड़ी बाला को देख पहले उसे हंसिनी समझा, फिर सरस्वती। बालिका का यह भोलापन प्रोफैसर साहब को अच्छा लगा। वे सोचने लगे कितने सीधे-साधे सरल स्वभाव के होते हैं यहाँ के लोग। पहाड़ों पर प्रकृति के दृश्य मन मोह लेते हैं उन पर से नज़र नहीं हटती। झरने चाँद की धारा लगते हैं, या प्रकृति-नायिका की कजरारी आँखों से लगती है। प्रकृति की सुख देने वाली गोद में खेलते हुए इन्हें न कोई चिन्ता है, न कोई डर है, न कोई लोभ-लालच। वे लोग खाने-पीने, पशु चुराने और नाच गाकर ही अपना दिन बिता देते हैं। इसी कारण बाहर से आने वाले लोगों को देखकर उन्हें संकोच होता है।
अपने आप में लीन रहने वाले इन भोले प्राणियों को बाहर वालों से कोई मतलब नहीं होता। प्रोफैसर साहब पहाड़ी लोगों के विषय में सोचते हैं कि ऐसे भले लोग न होते तो प्राचीन सभ्यता के जो अवशेष आज बचे हैं, वे भी बच न पाते। इन पर यूरोपियन सभ्यता का कोई प्रभाव नहीं पड़ा, बल्कि यह तो आज भी फाहियान के ज़माने के आदर्श को अपनाए हुए हैं। सबको अपने काम से मतलब है, दूसरों के काम में दखल देना, दूसरों के लाभ की ओर दृष्टि डालना यह लोग महापाप समझते हैं। यह लोग अपने पशुओं को दिन में चरने को छोड़ देते हैं और सायं को आकर उन्हें ले जाते हैं। यहाँ कभी चोरी नहीं होती कभी कोई शिकायत नहीं की जाती। खेती खड़ी है, किन्तु कोई पहरेदार नहीं है। मजाल है कि एक भुट्टा भी चोरी हो जाए। प्रोफैसर सोचते हैं कि यदि एक चवन्नी यहाँ मैं रास्ते में फेंक दूं तो कोई उठाएगा भी नहीं। यह सोचकर कि यह चवन्नी न जाने किसकी है और कौन लेने आए।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
प्रश्न 1.
प्रोफैसर ने लड़के को कितनी बार पीटा और क्यों ?
उत्तर:
प्रोफैसर साहब ने सेब चुराने वाले लड़के को दो बार पकड़ा और उसे पीटा। पहली बार तो उसके द्वारा चुराए गए सेब तो प्रोफैसर साहब ने घास में फेंक दिए। किन्तु दूसरी बार उनकी नज़र कोट में छिपाए गए सेबों पर न पड़ी। प्रोफैसर साहब ने उस लड़के को इसलिए पीटा कि उनको लगा कि यह लड़का उस सारी आर्य सभ्यता को एक साथ ही नष्ट-भ्रष्ट किए दे रहा है जो फाहियान के समय से सदियों पहले अक्षुण्ण बन चली आई है।
प्रश्न 2.
देवमूर्ति चुराने के बाद प्रोफैसर साहब के अन्तर्द्वन्द्व का वर्णन कर बताइए कि उन्हें शान्ति कैसे मिली ?
उत्तर:
प्रोफैसर चोर और चोरी दोनें से नफ़रत करते हैं, परन्तु वही प्रोफैसर मंदिर से मूर्ति चुरा कर लाते हैं तो उनके मन पर एक बोझ होता है उन्हें वह लड़का फिर मिलता जिसे उन्होंने चोरी करने पर मारा था उस बालक को देखकर उनके मन में एक विचार कौंध गया कि इसने तो सेब चुराया है, तुम देवस्थान ही लूट लाए। प्रोफैसर साहब ने जो पाप किया था उसे वह अच्छी तरह जानते थे। इसलिए उन्होंने मन्दिर से चुराई मूर्ति को यथास्थान रखकर मन की शान्ति प्राप्त की।
प्रश्न 3.
कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
कहानी का शीर्षक सेब और देव अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है। क्योंकि एक तरफ से प्रोफैसर साहब सेब चुराने वाले लड़के को इसलिए पीटते हैं कि वे उसे आर्य सभ्यता को नष्ट-भ्रष्ट करने वाला मानते हैं। वहीं दूसरी ओर स्वयं को एक देवमूर्ति को चुराने की कुचेष्टा करते हैं। और अंतः आत्मग्लानि के फलस्वरूप उस देवमूर्ति को यथास्थान रखकर मानसिक शान्ति का अनुभव करते हैं। शीर्षक की सार्थकता इसी एक वाक्य में सिमट आती है-इसने तो सेब चुराया है, तुम देवस्थान ही लूट लाए।
प्रश्न 4.
प्रस्तुत कहानी में से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में लेखक ने प्रोफैसर और एक लड़के के माध्यम से मनुष्य के अन्दर छिपी दुर्बलता को दिखाया है। ‘प्रोफैसर’ चोरी कर ने पर लड़के को मारता है वही काम स्वयं प्रोफैसर करता है अर्थात् चोरी करता है। मंदिर से मूर्ति चुरा लेता है इसलिए इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि दूसरों के दोष देखने से पहले हमें अपने दोषों को भी देखना चाहिए। जो शिक्षा हम दूसरों को देते हैं, उस पर स्वयं भी अमल करना चाहिए।
PSEB 11th Class Hindi Guide सेब और देव Important Questions and Answers
अति लघुजरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘सेब और देव’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
अज्ञेय।
प्रश्न 2.
प्रोफैसर गजानंद पण्डित क्या थे ?
उत्तर:
दिल्ली के कॉलेज में इतिहास और पुरातत्व के अध्यापक थे।
प्रश्न 3.
रास्ता चलते-चलते प्रोफैसर को क्या दिखाई पड़े ?
उत्तर:
सेबों के पेड़।
प्रश्न 4.
मूर्तियों को देख प्रोफैसर साहब का मन कैसा हुआ ?
उत्तर:
प्रोफैसर का मन बेईमान हो गया।
प्रश्न 5.
प्रोफैसर ने मूर्ति को छुपाकर कहाँ रखा ?
उत्तर:
प्रोफैसर ने मूर्ति को छुपाकर अपने ओवरकोट में रखा।
प्रश्न 6.
प्रोफैसर साहब कहाँ आए थे ?
उत्तर:
कुल्लू-मनाली में।
प्रश्न 7.
प्रोफैसर साहब कुल्लू-मनाली में मनोरंजन के साथ ………. के लिए आए थे।
उत्तर:
पुरातत्व की खोज।
प्रश्न 8.
प्रोफैसर ने कन्या को कहाँ देखा था ?
उत्तर:
झरने के पास।
प्रश्न 9.
प्रोफैसर को कन्या में किसका रूप दिखाई दिया ?
उत्तर:
सरस्वती का।
प्रश्न 10.
कन्या के हाथ में क्या था ?
उत्तर:
एक छोटी लकड़ी।
प्रश्न 11.
लड़की कहाँ से उतर रही थी ?
उत्तर:
पहाड़ी से।
प्रश्न 12.
सेब के पेड़ों की रक्षा करने वाला ………. था।
उत्तर:
कोई नहीं।
प्रश्न 13.
प्रोफैसर के मन में पहाड़ी सभ्यता के प्रति …….. था।
उत्तर:
आदर एवं सम्मान।
प्रश्न 14.
प्रोफैसर ने लड़के को क्या करते हुए पकड़ा था ?
उत्तर:
सेब चुराते हुए।
प्रश्न 15.
प्रोफैसर ने चुराए हुए सेब कहाँ फेंके ?
उत्तर:
घास में।
प्रश्न 16.
प्रोफैसर ने लड़के से क्या कहा ?
उत्तर:
ईमान न बिगाड़ने की बात।
प्रश्न 17.
आगे चलकर ………….. का मंदिर आया।
उत्तर:
मनु।
प्रश्न 18.
प्रोफैसर ने कितनी पुरानी मूर्तियों को देखा था ?
उत्तर:
500 वर्ष पुरानी।
प्रश्न 19.
मूर्ति को चुराकर प्रोफैसर कहाँ चल पड़े ?
उत्तर:
गाँव की ओर।
प्रश्न 20.
घर पहुँचते-पहुँचते प्रोफैसर की आत्मा …….. से भर गई।
उत्तर:
ग्लानि।
बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘सेब और देव’ कहानी के कथाकार कौन हैं ?
(क) अज्ञेय
(ख) अदिती
(ग) आनंद
(घ) अनाम।
उत्तर:
(क) अज्ञेय
प्रश्न 2.
प्रोफैसर गजांनद पंडित किस विषय के अध्यापक हैं ?
(क) हिंदी
(ख) अंग्रेजी
(ग) इतिहास और पुरातत्व
(घ) विज्ञान।
उत्तर:
(ग) इतिहास और पुरातत्व
प्रश्न 3.
प्रोफैसर कुल्लू-मनाली में किसकी खोज करने आए थे ?
(क) पुरातत्व
(ख) पर्वत
(ग) भूतत्व
(घ) खगोल।
उत्तर:
(क) पुरातत्व
प्रश्न 4.
प्रोफैसर को कन्या में किसका रूप दिखाई दिया ?
(क) देवी का
(ख) माँ का
(ग) सरस्वती का
(घ) बेटी का।
उत्तर:
(ग) सरस्वती का।
प्रमख अवतरणों की प्रसंग सहित व्याख्या
(1) बाला को वहाँ खड़े देखकर उसके पैरों के पास बहते झरने का शब्द सुनते हुए उन्हें पहले तो एक हंसिनी का ख्याल आया, फिर सरस्वती का। यद्यपि बाला के हाथ में वीणा नहीं, एक छोटी-सी छड़ी थी। उन्होंने अपने स्वर को यथा-सम्भव कोमल बनाकर पूछा-“तुम कहाँ रहती हो ?”
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से ली गई हैं। प्रोफैसर गजानन पण्डित दिल्ली में इतिहास और पुरातत्व के अध्यापक हैं। वे कुल्लू (हिमाचल प्रदेश) में प्राचीन सभ्यता की खोज में आए थे। घूमने निकले प्रोफैसर साहब को एक पहाड़ी लड़की दिखाई पड़ी। उसी के सौन्दर्य को निहारते हुए प्रोफैसर साहब ने प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।
व्याख्या :
प्रोफैसर साहब ने उस पहाड़ी लड़की के पैरों के पास बहते झरने का स्वर सुन कर पहले तो उसे हंसिनी समझा, फिर उन्हें लगा कि देवी सरस्वती वहाँ खड़ी हैं। परन्तु उस लड़की के हाथ में वीणा नहीं थी इसलिए प्रोफैसर का ध्यान उस लड़की की ओर गया। एक छोटी-सी लड़की थी। प्रोफैसर साहब कलपना की दुनिया से बाहर आए तो अपने स्वर को यथासम्भव कोमल बनाकर उस लड़की से पूछा कि वह ‘कहाँ रहती है।’
विशेष :
- प्रोफैसर साहब की नज़र की पवित्रता की ओर संकेत किया गया है जो एक पहाड़ी लड़की में सरस्वती देवी का रूप देखते हैं।
- भाषा सरल एवं स्वाभाविक है।
- तत्सम शब्दावली है।
- शैली भावात्मक है।
(2) कितने सीधे-सादे सरल स्वभाव के होते हैं यहाँ के लोग। प्रकृति की सुखद गोद में खेलते हुए न इन्हें फिन है, न खटका है, न लोभ लालच हैं। अपने खाने-पीने, पशु चराने, गाने-नाचने में दिन बिता देते हैं। तभी तो बाहर से आने वाले आदमी को देखकर संकोच होता है। अपने आप में लीन रहने वाले इन भोले प्राणियों को बाहर वालों से क्या सरोकार।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से ली गई हैं। इनमें प्रोफैसर गजानन पंडित ने पहाड़ी लोगों के सादा जीवन के विषय में अपने विचार व्यक्त किए हैं।
व्याख्या :
प्रोफैसर साहब ने झरने के किनारे खड़ी एक पहाड़ी कन्या से यह पूछा था कि वह कहाँ रहती है ? यह सुन कर वह भोली पहाड़ी कन्या बिना उत्तर दिए आगे बढ़ जाती है। उसके भोलेपन को देखते हुए प्रोफैसर साहब सोचने लगे कि यहाँ के लोग कितने सीधे-सादे और सरल स्वभाव के होते हैं। वे सभी प्रकार के स्वार्थ से दूर होते हैं। प्रकृति की गोद में खेलते हुए इन्हें कोई चिन्ता नहीं होती है, किसी का डर नहीं होता, और न कोई मन में लोभ लालच होता है। वे अपना दिन खाने-पीने, पशु चराने और नाच-गाने में बिता देते हैं। तभी तो बाहर से आने वाले लोगों से इन्हें संकोच होता है, जैसे उस पहाड़ी कन्या ने प्रोफैसर से संकोच किया था, अपने आप में मस्त रहने वाले इन लोगों को बाहर वालों से क्या मतलब। अर्थात् पहाड़ी लोग संकोची स्वभाव के होते हैं।
विशेष :
- प्रोफेसर साहब पहाड़ी लोगों के भोले और संकोची स्वभाव से प्रभावित थे।
- भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।
- तत्सम, तद्भव शब्दावली है। लेखक ने छोटे-छोटे वाक्यों से पहाड़ी लोगों का वर्णन किया था।
- शैली विवरणात्मक है।
(3) ऐसे भोले लोग न होते तो प्राचीन सभ्यता के जो अवशेष बचे हैं, ये भी क्या रह जाते ? खुदा-न-खास्ता ये लोग यूरोपीयन सभ्यता को सीखे हुए होते तो एक दूसरे को नोच-नोच कर खा जाते। उसकी राख भी न बची रहने देते, लेकिन यहाँ तो फाहियान के जमाने का ही आदर्श है। सब को अपने काम से मतलब है। दूसरों के काम में दखल देना, दूसरों के मुनाफे की ओर दृष्टि डालना महापाप है।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में प्रोफैसर गजानन पंडित पहाड़ी लोगों के रहन-सहन की विशेषताओं के विषय में सोच रहे हैं।
व्याख्या :
प्रोफैसर गजानन पंडित पहाड़ी लोगों के सरल स्वभाव और रहन-सहन के ढंग के बारे में सोचते हैं कि ऐसे भले लोग न होते तो प्राचीन सभ्यता के जो निशान बचे हैं, वे क्या बचे रह सकते थे। अर्थात् लोगों में इतना लालच बढ़ गया है कि कोई भी सभ्यता के अवशेष बचे रहना चमत्कार है? ईश्वर की कृपा से यदि ये लोग यूरोपीय सभ्यता को सीखे हुए होते, तो एक-दूसरे को नोच-नोच कर खा जाते, उसकी राख भी देखने को न मिलती, किन्तु यहाँ तो प्राचीन समय के फाहियान (एक चीनी पर्यटक जो भारत आया था और उसने भारतीय सभ्यता और संस्कृति का गुणगान किया था।) के समय का ही आदर्श अभी तक देखने को मिलता है। अर्थात् जैसे भोले लोग उस समय थे वैसे ही आज हैं। यहाँ के लोगों को अपने काम से मतलब है, दूसरों के काम में हस्तक्षेप करना, दूसरों के लाभ पर दृष्टि डालना, ये लोग महापाप समझते हैं अर्थात् ये लोग ईश्वर से डरते हैं।
विशेष :
- पहाड़ी लोगों को प्राचीन सभ्यता को बचाने वाला बताते हुए यूरोपीय सभ्यता के कुप्रभाव की ओर संकेत किया गया है।
- भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।
- तत्सम और उर्दू मिश्रित शब्दावली है।
- शैली विवरणात्मक है।
(4) “पाजी कहीं का चोरी करता है। तेरे जैसों के कारण तो पहाड़ी लोग बदनाम हो गए। क्यों चुराये ये सेब ? यहाँ तो पैसे के दो मिलते होंगे, एक पैसे के खरीद लेता। ईमान क्यों बिगाड़ता है ?”
प्रसंग :
यह अवतरण श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से लिया गया है। कुल्लू-मनाली में सैर करने गए प्रोफैसर गजानन पण्डित को एक दिन रास्ते पर जाते हुए उन्हें एक लड़का सेब चोरी करता दिखाई पड़ा। उन्होंने उसके सेब छीन कर घास में फेंक दिए और लड़के को पकड़ कर रास्ते की ओर ले आते हुए प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।
व्याख्या ;
प्रोफैसर साहब ने सेब चोरी करते हुए लड़के को डाँटते हुए कहा कि-पाजी कहीं का चोरी करता है। उसके जैसे लोगों के कारण तो पहाड़ी लोग बदनाम हो गए। प्रोफैसर साहब को लगा कि यह लड़का पहाड़ की प्राचीन सभ्यता को नष्ट करने का काम कर रहा है। फिर उन्होंने लड़के से पूछा क्यों चुराए ये सेब ? यहाँ तो पैसे के दो मिलते होंगे, एक पैसे के खरीद लेता। धर्म क्यों बिगड़ता है ? अर्थात् कुछ लोगों के कारण भोले-भाले पहाड़ी लोग बदनाम हो रहे हैं।
विशेष :
- प्रोफैसर साहब को लड़के का सेब चुराना पहाड़ी सभ्यता के विपरीत लगा।
- भाषा सरल एवं स्वाभाविक है।
- तद्भव तथा उर्दू मिश्रित भाषा का प्रयोग है।
- शैली भावात्मक है।
(5) उफ ! देवत्व की कितनी उपेक्षा ! मानव नश्वर है, वह मर जाए और उसकी अस्थियों पर कीड़े रेंगे, यह समझ में आता है लेकिन देवता………..पत्थर जड़ है उसका महत्त्व कुछ नहीं। लेकिन मूर्ति तो देवता की ही है। देवत्व की चिन्तनता की निशानी तो है। एक भावना है, पर भावना आदरणीय है।
प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से लिया गया है। इसमें प्रोफैसर साहब ने एक निर्जन स्थान पर बने मन्दिर में एक सुन्दर मूर्ति को देख कर कही हैं।
व्याख्या :
प्रोफैसर साहब ने एक निर्जन स्थान पर बने मन्दिर की मूर्ति को उपेक्षित अवस्था में पड़ी देखकर सोचा कि इस स्थान पर देवता की कितनी उपेक्षा हो रही है। मानव तो नाशवान् है, इसलिए जब वह मर जाता है तो उसकी अस्थियों पर कीड़े रेंगने लगते हैं। यह बात तो समझ में आती है, लेकिन देवता तो पत्थर की जड़ मूर्ति है उन पर कीड़ों का रंगने से उसके महत्त्व पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन यह मूर्ति तो देवता की ही है। देवत्व की चिन्तन होने की निशानी तो है। भले ही एक भावना है, विचार है, किन्तु यह भावना आदरणीय है। अर्थात् इसका निर्जन स्थान पर अपेक्षित स्थिति में होना चिन्ता का विषय है।
विशेष :
- किसी निर्जन स्थान पर बने मन्दिर में पड़ी उपेक्षित मूर्ति को देखकर प्रोफैसर साहब के मन में उठने वाले भावों का वर्णन किया गया है।
- मानव शरीर की नश्वरता का वर्णन किया गया है।
- भाषा सरल तथा स्वाभाविक है । तत्सम शब्दावली की अधिकता है। विचारात्मक शैली है।
(6) “मूर्ति के उपयुक्त यह स्थान कदापि नहीं है। मन्दिर है, पर यहाँ पूजा ही नहीं होती, वह कैसा मन्दिर ? और क्या गाँव वाले परवाह करते हैं ? यहाँ मन्दिर भी गिर जाए, तो शायद उन्हें महीनों पता ही न लगे। कभी किसी भटकी भेड़-बकरी की खोज में आया हुआ गडरिया आकर देखें तो देखें। यहाँ मूर्ति को पड़े रहने देना भूल ही नहीं पाप है।”
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रोफैसर साहब ने एक निर्जन स्थान पर बने मन्दिर की मूर्ति को उपेक्षित पड़े देखकर कही हैं।
व्याख्या :
प्रोफैसर साहब ने मन्दिर की उपेक्षित पड़ी मूर्ति को उठाया और फिर उसे यथास्थान रखकर सोचने लगे कि इस मूर्ति के लायक यह स्थान कदापि उपयुक्त नहीं है। मन्दिर गाँव से बाहर था। इसलिए वहाँ पर पूजा ही नहीं होती जिस स्थान पर देवता की पूजा नहीं होती वह कैसा मंदिर है। मंदिर जंगल में होने के कारण गाँव वाले और फिर गाँव वालों को इसकी देखभाल या रख-रखाव की परवाह नहीं करते है। यह मन्दिर गिर भी जाए तो शायद महीनों तक गाँव वालों को पता ही न चले। कभी किसी भटकी हुई भेड़-बकरी की खोज में आया कोई गडरिया इस मन्दिर को देख ले तो देख ले। यहाँ मूर्ति को इस हाल में पड़े रहने देना भूल ही नहीं पाप है अर्थात् निर्जन स्थान पर उपेक्षित स्थिति में मूर्ति का पड़ा रहना, पाप का कारण बन सकता है।
विशेष :
- प्रोफैसर के मानसिक द्वन्द्व पर प्रकाश डाला गया है।
- भाषा सरल एवं स्वाभाविक है। तत्सम् शब्दावली है।
- विचारात्मक शैली है।
(7) उस समय प्रोफैसर साहब के भीतर, जो कुल्लू-प्रेम का ही नहीं, मानव प्रेम का, संसार भर की शुभेच्छा का रस उमड़ रहा था, उसकी बराबरी रस भरे सेब भी क्या करते ? प्रोफैसर साहब की स्नेह उँडेलती हुई दृष्टि के नीचे से मानों सेब ओर पक कर और रस से भर जाते थे, उनका रंग कुछ ओर लाल हो जाता था। कितने रसगद्गद् हो रहे थे, प्रोफैसर साहब !
प्रसंग :
यह अवतरण श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब ओर देव’ में से अवतरित है। इसमें कहानीकार ने मन्दिर से मूर्ति चुरा कर लाते समय प्रोफैसर के मानसिक उल्लास का वर्णन किया है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि जब प्रोफैसर साहब मन्दिर से चुराकर वापस लौट रहे थे तो उनके मन में कुल्लू प्रेम की ही नहीं, मानव प्रेम की ओर संसार भर की शुभकामना की भावना उमड़ रही थी, अर्थात् उस समय प्रोफैसर को लग रहा था कि उन्होंने मूर्ति को और अधिक उपेक्षित होने से बचा लिया है साथ ही उन्हें यह प्रसन्नता थी कि उनके पास एक दुर्लभ मूर्ति है इसलिए उनकी प्रसन्नता सेब से अधिक रसीली थी। इसलिए उस भावना की बराबरी रस से भरे सेब भी नहीं कर पा रहे थे। प्रोफैसर साहब की प्यार उड़ेलती नज़र के नीचे से मानों सेब ओर पक कर रस से भर जाते थे, उन सेबों का रंग ओर लाल हो जाता था। अपने हृदय में उत्पन्न प्रसन्नता के भावों से प्रोफैसर साहब गद्गद् हो रहे थे अर्थात् प्रोफैसर साहब को सब कुछ रसमय लग रहा था। उन्हें लग रहा था जैसे मूर्ति लेकर जाने से सारा वातावरण रसमय हो गया है।
विशेष :
- किसी अमूल्य वस्तु को अनायास पा जाने पर व्यक्ति जिस प्रकार उल्लास से भर उठता है, उसी प्रकार प्रोफैसर साहब भी प्रसन्न हो रहे थे, गद्गद् हो रहे थे।
- भाषा सरल एवं स्वाभाविक है। तत्सम शब्दावली है।
- शैली भावात्मक है।
(8) अँधेरा होते-होते वे मन्दिर में पहुँचे। किवाड़ एक ओर पटककर उन्होंने मूर्ति को यथा स्थान रखा। लौटकर चलने लगे तो आस-पास के वृक्ष अँधेरे में और भयानक हो गए। सुनसान ने उन्हें फिर सुझाया कि वे एक निधि को नष्ट कर रहे हैं, लेकिन जाने क्यों उनके मन में शान्ति उमड़ आई। उन्हें लगा कि दुनिया बहुत ठीक है, बहुत अच्छी है।
प्रसंग :
यह अवतरण श्री अज्ञेय जी द्वारा लिखित कहानी ‘सेब और देव’ में से अवतरित है। इसमें कहानीकार ने प्रोफैसर के द्वारा मन्दिर से चुराई मूर्ति को यथास्थान रखकर शान्ति अनुभव करने की बात कही है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि मूर्ति चुराने पर प्रोफैसर साहब के मन में आत्मग्लानि और पाप की भावना जागृत हुई इसलिए वे अन्धेरा होते-होते उसी मन्दिर में पहुँचे, जिस मन्दिर से उन्होंने मूर्ति चुराई थी। उनके मन पर चोरी करने का बोझ इतना था कि उन्होंने जल्दी से मन्दिर के दरवाज़े को एक ओर करके उन्होंने मूर्ति को उसी स्थान पर रख दिया, जहाँ से उसे उठाया था। जब वे लौटकर चलने लगे तो आस-पास के वृक्ष अन्धेरे में और भी भयानक लगने लगे थे। उस सुनसान वातावरण ने उन्हें सुझाया कि वे ऐसा करके अर्थात् मूर्ति को यथास्थान रखकर एक खज़ाने को नष्ट कर रहे हैं, किन्तु जाने क्यों उस समय प्रोफैसर साहब के मन में शान्ति उमड़ आई और उन्हें लगने लगा कि यह दुनिया बहुत सही है और अच्छी है। अर्थात् मूर्ति को उसके स्थान पर रखकर वे अपने को हल्का अनुभव कर रहे थे उन्हें फिर से सब अच्छा लगने लगा था।
विशेष :
- किसी भी पाप का प्रायश्चित करने पर मन को सदा ही शान्ति प्राप्त होती है-इसी तथ्य पर प्रकाश डाला गया है।
- भाषा सरल एवं स्वाभाविक है, तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
- शैली भावात्मक है।
सेब और देव Summary
सेब और देव कहानी का सार
प्रोफैसर गजानंद पंडित दिल्ली के कॉलेज में इतिहास और पुरातत्व के अध्यापक हैं। वे कुल्लू-मनाली में मनोरंजन के साथ-साथ पुरातत्व की खोज में भी आए हैं। पहाड़ी प्रदेश में उन्होंने एक सुन्दर कन्या को झरने के पास खड़े देखा। उन्हें उस कन्या में सरस्वती का रूप दिखाई पड़ा। किन्तु इस कन्या के हाथ में वीणा के स्थान पर एक छोटी लकड़ी थी। प्रोफैसर साहब ने उस कन्या से बड़े ही कोमल स्वर में पूछा कि तुम कहाँ रहती हो ? लड़की ने उसका कोई उत्तर न दिया और हैरान होकर जल्दी-जल्दी पहाड़ी पर उतरने लगी।
रास्ता चलते-चलते उन्हें सेबों के पेड़ नज़र आए जिनकी रखवाली करने वाला वहाँ कोई नहीं था। यह देख प्रोफैसर साहब के मन में पहाड़ी सभ्यता के प्रति आदर भाव और भी बढ़ गया। वे थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि उन्होंने एक लड़के को सेब चुराते हुए पकड़ा। प्रोफैसर साहब ने उसके द्वारा चुराए सेब घास में फेंक दिए और उसे डाँटते हुए ईमान न बिगाड़ने की बात कही। प्रोफैसर साहब कुछ आगे बढ़े तो उन्हें प्राचीन मनु जी का मन्दिर याद आया। उस मन्दिर के दर्शन कर उन्होंने पुजारी से पूछा कि क्या कोई ऐसा मन्दिर आस-पास है ? पुजारी ने एक ऐसे मन्दिर का पता बताया जो बिल्कुल निर्जन स्थान पर उपेक्षित अवस्था में पड़ा था।
प्रोफैसर साहब ने उस मन्दिर में पहुँचकर लगभग 500 वर्ष पुरानी उन मूर्तियों को देखा। उन मूर्तियों को देख प्रोफैसर साहब का मन बेईमान होने लगा। आस-पास नज़र दौड़ाई तो वहाँ कोई नज़र न आया। उन्होंने एक मूर्ति उठाई और उसे अपने ओवरकोट में छिपाकर गाँव की ओर लौट पड़े। लौटते समय उन्होंने फिर एक लड़के को सेब चुराते हुए देखा। उन्होंने उसे पकड़कर डाँटा और उसकी छाती में धक्का दिया। इस पर वह लड़का चीख मारकर रो उठा। प्रोफैसर साहब को लगा कि उसने सेब अपने कोट की जेब में छिपाए थे जो धक्का लगने पर उसे चुभ गए थे। एकाएक प्रोफैसर साहब सोचने लगे कि इसने तो सेब चुराया है, वे तो देवस्थान ही लूट लाए हैं। घर पहुँचते–पहुँचते उनकी आत्मा ग्लानि से भर उठी थी। अतः उन्होंने अंधेरा होने से पहले ही उस मन्दिर में पहुँचकर चुराई हुई मूर्ति को यथास्थान रख दिया। मूर्ति को अपने स्थान पर रखते समय उनके मन में शान्ति उमड़ आई और दुनिया उन्हें अच्छी लगने लगी।