PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 26 मजबूरी

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 26 मजबूरी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 26 मजबूरी

Hindi Guide for Class 11 PSEB मजबूरी Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘मजबूरी’ कहानी में बदलते जमाने के दबावों से परिचित नई पीढ़ी व उससे बेखबर पुरानी पीढ़ी के द्वन्द्व को उजागर किया गया है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं क्यों ?
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में दो पीढ़ियों में आपसी संघर्ष या द्वन्द्व दिखाया गया है। रामेश्वर की मां पुरानी पीढ़ी की है जो अपने बच्चों पर ममता और वात्सल्य ही बरसाना जानती है। उसका वात्सल्य उसके पोते बेटू के लिए कितना घातक सिद्ध हो रहा है, इससे वह बेखबर है। क्योंकि अपने पोते को वह अकेलेपन का साथी समझती है। दूसरी ओर बेटे रामेश्वर और बहू रमा को अपनी मजबूरी है। दूसरा बच्चा होने की सूरत में उनके लिए दो बच्चों को एक साथ संभाल पाना उनके लिए कठिन था। अत: वे विवशता से अपने बेटे को दादी के पास छोड़ जाते हैं। परन्तु कुछ ही सालों में उन्हें अपनी गलती का एहसास हो जाता है।

जब वे देखते हैं कि उनका छोटा बेटा तो सभ्य भाषा में बात करता है। स्कूल भी जाने लगा है जबकि बड़ा बेटा वैसे का वैसा उजड्ड है जैसा वे उसे दादी के पास छोड़ गए थे। दादी के पास रहकर गली मुहल्ले में गन्दे-गन्दे बच्चों से खेलता है, अत्यधिक जिद करता है। इन्हीं बातों ने बहू को मजबूर कर दिया कि वह अपने बड़े बेटे को अपने साथ मुम्बई ले जाए। दादी से दूर, उसके लाड़-प्यार से दूर, दादी की अपनी सोच है। वह अपने वात्सल्य से मजबूर है। बदलते ज़माने की बढ़ती हुई प्रतियोगिता से वह बेखबर है। दूसरी ओर रमा जानती है कि आज के युग में शिक्षा कितनी ज़रूरी है आज बच्चों को अच्छा भविष्य बनाने की चिन्ता होनी चाहिए न कि लाड़-प्यार की। प्रस्तुत कहानी में इन्हीं मजबूरियों का वर्णन किया गया है।

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प्रश्न 2.
इस कहानी के आधार पर महानगरीय जीवन व ग्रामीण जीवन का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में ग्रामीण जीवन का ही उल्लेख किया गया है। जबकि महानगरीय जीवन का उल्लेख बहुत कम फिर भी दोनों की तुलना यहाँ प्रस्तुत है। ग्रामीण जीवन का प्रतिनिधित्व करने वाली रामेश्वर की बूढ़ी माँ है । रामेश्वर तीन साल के बाद घर आ रहा है। यह समाचार जानकर गठिया से जुड़ी बूढ़ी अम्मा सर्दी में भी आंगन लीपने बैठ जाती है और खड़िया मिट्टी से पुताई करने की बात सोचती है। बेटे की आने की खुशी में वह इस कद्र उतावली है कि अपनी बीमारी को भी भूल जाती है। किसी के घर आने पर गाँव में ही ऐसी उत्सुकता और खुशी दिखाई पड़ती है। जबकि महानगरीय जीवन में घर आया मेहमान मुसीबत लगता है। प्रसिद्ध है कि शहरी लोग कहते हैं कि रोटी भी तैयार है और गाड़ी भी।

रामेश्वर की माँ अपने पोते से जिस ढंग से लाड़-प्यार करती है उस ढंग का लाड़-प्यार शहर में रहने वाली माएँ नहीं करतीं। क्योंकि शहरों में रहने वाली बहू या स्त्रियों के सामने बच्चों के भविष्य की सुरक्षा का प्रश्न होता है। वे बच्चों से लाड़-प्यार ज़रूरी समझती हैं, परन्तु सुखद भविष्य को देखते हुए सख्ती करना भी उन्हें आवश्यक लगता है। गाँव में बच्चे का ज़िद करना कोई बुरी बात नहीं समझी जाती। रामेश्वर की माँ कहती भी है कि बचपन में कौन ज़िद नहीं करता। यही तो उम्र होती है ज़िद करने की। साल दो साल और कर ले, फिर अपने आप सब कुछ छूट जाएगा। जवकि शहरी जीवन में बच्चों का इस प्रकार ज़िद करना एक बुरी आदत समझा जाता है। ग्रामीण जीवन में बच्चों से लाड़-प्यार अधिक किया जाता है जबकि महानगरीय जीवन में बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है।

आज के इस प्रतियोगिता के युग में महानगरीय जीवन में जो कुछ बच्चों के साथ किया जाता है वही सही प्रतीत होता है।

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प्रश्न 3.
इस कहानी के शीर्षक के औचित्य पर विचार करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘मजबूरी’ अत्यन्त उपयुक्त, सार्थक और सटीक है। क्योंकि प्रस्तुत कहानी में बूढी दादी और उसकी बहू की मजबूरी का मार्मिक चित्रण किया गया है। दादी अपनी सोच, अपने वात्सल्य से मजबूर है। बदलते ज़माने की बढ़ती हुई प्रतियोगिता से बेखबर वह अपने पोते पर बस प्यार ही लुटाती है। उसे उस प्रतियोगिता के लिये तैयार नहीं करती। दूसरी ओर बहू की भी मजबूरी है। दो बच्चे इकट्ठे न सम्भाल सकने के कारण वह बड़े बेटे को मजबूरी में अपनी सास के पास छोड़ जाती है। किंतु अपनी यह मजबूरी तब खलने लगती है जब वह देखती है कि उसका बड़ा बेटा न स्कूल जाता है न सभ्य भाषा सीखता है। बस दादी के आँचल से ही बंधा रहता है। उसके गली-मोहल्ले के गंदे-गंदे बच्चों से खेलना तथा अत्यधिक ज़िद करना बहू को मजबूर कर देता है कि वह अपने बड़े बेटे को जबरदस्ती अपने साथ वापिस बम्बई ले जाए। ताकि वहाँ जाकर वह पढ़-लिख जाए, सभ्य भाषा सीखे और अपने भविष्य को सुरक्षित कर ले। प्रस्तुत कहानी में सास और बहू की इन्हीं मजबूरियों का खुलासा किया है अतः यह शीर्षक अत्यंत सार्थक बन पड़ा है।

प्रश्न 4.
इस कहानी के आधार पर बूढ़ी अम्मा या उसकी बहू का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर:
(क) बूढ़ी अम्मा

‘मजबूरी’ कहानी में मन्नू भंडारी ने दोनों नारी-पात्रों की मज़बूरी का वर्णन किया है। दादी अपनी सोच अपने वात्सल्य से मजबूर दूसरी ओर बहू बच्चे के भविष्य की सुरक्षा के लिए मजबूर है दोनों के चरित्र अपनी मजबूरी को चित्रित करते हैं।

बूढी अम्मा गाँव में रहने वाली एक सीधी-साधी, स्नेहमयी और ममतामयी माँ है। तीन बरस बाद उसका बेटा और बहू पोते को साथ लेकर आ रहे हैं। यह समाचार सुनकर वह इतनी प्रसन्न होती है कि गठिया रोग से पीड़ित होने पर भी वह घर की सफाई करती है, बेटे और बहू के लिए नहाने के लिए पानी गर्म करती है। बूढ़ी अम्मा अपने बेटे के विरुद्ध कोई बात नहीं सुनना चाहती। वह अपनी नौकरानी को कहती है कि “मेरे रामेसुर के लिए कुछ मत कहना। यह तो मैं जानती हूँ कि तीन-तीन बरस मुझसे दूर रहकर उसके दिन कैसे बीतते हैं, पर क्या करें, नौकरी तो आखिर नौकरी ही है।”

बूढ़ी अम्मा की बहू ने कहा कि इस बार वह अपने बेटे को उसी के पास छोड़ जाएगी तो बूढ़ी अम्मा खुश हो जाती है। वह इस बात को गाँव भर में प्रत्येक व्यक्ति को बताती फिरती है, इस डर से कि कहीं बहू अपना इरादा न बदल दे।

बूढ़ी अम्मा ने अपने पोते को पालने के लिए बहुत कुछ नया सीखा। बच्चे को बोतल से दूध पिलाना सीखा, बच्चे को दूध समय पर पिलाने के लिए घड़ी में समय देखना सिखा किंतु वह अपने पोते को लाड़ प्यार के सिवा कुछ न सिखा सकी। अपने बेटे को विकसित और शिक्षित होता न देख बूढी अम्मा की बहू अपने बेटे को जबरदस्ती शहर ले गई। इस पर बूढ़ी अम्मा काफी दुःखी होती है किंतु जब उसे यह पता चलता है कि पोता माँ के पास जाकर दादी को भूल गया है तो वह मजबूर होकर प्रसाद बाँटने को तैयार हो जाती है।

(ख) बूढ़ी अम्मा की बहू रमा

रमा एक पढ़ी-लिखी आधुनिक नारी है, वह अपने पति के साथ मुम्बई में रहती है, वह दूसरे बच्चे के जन्म पर अपना पहला बच्चा अपनी सास के पास छोड़ जाती है। वह अपनी मज़बूरी के कारण ऐसा करती है दूसरा बच्चा जब बड़ा होता है तो उसका ध्यान अपने पहले बच्चे पर जाता है जो दादी के पास गाँव में रहता है। उसे अपने बेटे के भविष्य की चिन्ता सताती है। वह गाँव में जाकर देखती है कि उसका बच्चा दादी के लाड़-प्यार के साये में बिगड़ गया है। उसमें एक भी अच्छी बात नहीं है। वह स्कूल भी नहीं जाता। रमा अपनी सास से सख्ती से पेश आती है। यहाँ पर वह स्वार्थी लगती है कि अपनी मज़बूरी के कारण बच्चे को सास के पास छोड़ जाती है, परन्तु समय निकल जाने पर वह बच्चे को ले जाना चाहती है। परन्तु यहाँ पर एक ऐसी माँ दिखाई देती है जिसे अपने बच्चे के भविष्य की चिन्ता है। उसे लगता है छोटे बेटे की अपेक्षा बड़ा बेटा पिछड़ न जाए। इसलिए वह सख्ती से अपने पति और सास के साथ पेश आती है।

वह अपने बेटे को बहला-फुसलाकर साथ ले जाती है, परन्तु उसे साथ रखने में नाकामयाब होती है। अगली बार वह जब गाँव आती है और बेटे का बिगड़ा रूप देखकर वह बच्चे के साथ सख्ती करती हुई मुम्बई ले जाती है जहाँ वह उसे आस-पास के बच्चों के साथ खेल में लगा देती है। इस तरह वह अपनी समझदारी से अपने बेटे के सुखद भविष्य के लिए उसे अपने पास रखने में कामयाब हो जाती है। यहाँ उसकी मजबूरी का मार्मिक वर्णन है जब उसके दूसरा बच्चा होता है तब वह बड़े बेटे से अलग हो जाती है, परन्तु जब दूसरा बच्चा उसे बड़े बेटे से आगे निकलता दिखाई देता है तब उसे लगता है कि वह उसका भविष्य खराब कर रही है और उसके अच्छे भविष्य के लिए उसे वह मुम्बई ले जाती है। इसके लिए उसे अपनी सास को भी दुःखी करना पड़ता, परन्तु वह बच्चे के भविष्य के कारण मजबूर है।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
बूढ़ी अम्मा के बड़े पोते व छोटे पोते के व्यक्तित्व में क्या अंतर था ?
उत्तर:
बूढ़ी अम्मा का बड़ा पोता स्कूल नहीं जाता। सदा दादी के आँचल से बंधा रहता है। गली मुहल्ले के गंदेगंदे बच्चों के साथ खेलता रहता है। अत्यधिक ज़िद करता है, बल्कि बूढ़ी अम्मा का छोटा पोता स्कूल जाने लगा है ! उसने अंग्रेज़ी की छोटी-छोटी कविताएँ याद कर रखीं और बड़े अदब के साथ बोलता है। हालांकि उसे दो महीने पहले ही अंग्रेजी स्कूल में भर्ती करवाया गया था।

प्रश्न 2.
इस कहानी में रामेश्वर के किस धर्म संकट की चर्चा की गई है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में रामेश्वर जब अपने तीन साल के बेटे को लेकर गाँव आता है तो अपने बड़े बेटे की हालत देखकर उसकी पत्नी जब अपने बेटे को साथ बम्बई ले जाना चाहती है, यह जानकर रामेश्वर धर्म संकट में पड़ गया। एक तरफ उसकी माँ थी जो उसके बेटे के साथ इतना घुल मिल गई थी कि उसे छोड़ने को किसी भी हालत में तैयार नहीं थी। दूसरी तरफ उसकी अपनी पत्नी की बातें थीं जिनमें उसे सार नज़र आता था। जिसमें बेटे के भविष्य की चिन्ता थी। अतः सारा निर्णय अपनी पत्नी पर छोड़कर वह बम्बई लौट जाता है।

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प्रश्न 3.
पोते को घर में रखने के लिए बूढ़ी अम्मा ने क्या-क्या कार्य लगन से सीखे ?
उत्तर:
बूढ़ी अम्मा की बहू रमा पढ़ी-लिखी थी। वह बच्चे का पालन-पोषण नए जमाने के अनुसार कर रही थी इसलिए जाने से पोते को घर में रखने के लिए सबसे पहले बूढी अम्मा ने उससे पहले वह अपनी सास को सब सिखाना चाहती थी। दूध पिलाना सीखा क्योंकि उसने कभी भी बच्चे को शीशी से दूध नहीं पिलाया था। बच्चे को दूध समय पर दिया जाता है इसलिए उसने घड़ी देखना सीखा। यह सारे काम उसने एक जिज्ञासु की तरह सीखे।

प्रश्न 4.
कहानी के आरम्भ में बूढ़ी अम्मा बेटे-बहू के स्वागत के लिए क्या-क्या तैयारियाँ करती है ?
उत्तर:
तीन वर्षों के बाद उसका बेटा अपनी पत्नी और पुत्र के साथ घर आ रहा था। उसके स्वागत के लिए उसने लोरियाँ गाते आँगन को लीपा और खड़िया मिट्टी से आँगन को मांडने के लिए अपनी नौकरानी से कहा। जोड़ों के दर्द से पीड़ित होने पर भी उसने दूसरा चूल्हा जलाकर उनके नहाने के लिए गर्म पानी रख दिया। लगे हाथ तरकारी भी काट ली ताकि बेटे के साथ अधिक देर तक बातें कर सके।

प्रश्न 5.
बूढ़ी अम्मा ने गाँव भर में किस बात का खूब प्रचार किया था ? क्यों ?
उत्तर:
बूढ़ी अम्मा ने गाँव भर इस बात का प्रचार किया कि उसका पोता बेटू अब उसके पास रहेगा इसीलिए बूढ़ी अम्मा ने सबसे पहले अपने पति वैद्यराज को यह बात बताई कि बहू ने कहा है कि इस बार बेटू यहीं रहेगा। दोपहर में उसने अपनी नौकरानी से यही बात कही। उसके बाद घर में जो कोई भी आया उसे यही खबर सुनाई गई। अम्मा इस बात का इतना प्रचार कर देना चाहती थी कि यदि किसी कारण से बहू का मन फिर भी जाए तो शर्म के मारे वह अपना इरादा न बदल पाए।

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PSEB 11th Class Hindi Guide मजबूरी Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
रामेश्वर कितने समय बाद अपने परिवार के साथ गाँव आया था ?
उत्तर:
तीन वर्ष बाद।

प्रश्न 2.
रामेश्वर ने जाते समय अपने माता-पिता को क्या दिया ?
उत्तर:
ढेर सारे कपड़े बनवाकर दिए।

प्रश्न 3.
माँ ने रामेश्वर से क्या माँगा ?
उत्तर:
हर साल घर आने का वादा।

प्रश्न 4.
रामेश्वर की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर:
रमा।

प्रश्न 5.
बेटु को कौन अपने साथ ले गया ?
उत्तर:
रामेश्वर और उसकी पत्नी रमा।

प्रश्न 6.
‘मजबूरी’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
कहानी।

प्रश्न 7.
रामेश्वर की पत्नी रमा कितने वर्ष बाद आई थी ?
उत्तर:
दो वर्ष।

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प्रश्न 8.
रमा ने अपने बेटे को किस कारण बिगड़ा हुआ पाया ?
उत्तर:
दादी के लाड़ प्यार के कारण।

प्रश्न 9.
रमा ने किससे शिकायत की थी ?
उत्तर:
अम्मा से।

प्रश्न 10.
रामेश्वर ने अपने छोटे बेटे का दाखिला कहाँ करवाया ?
उत्तर:
शहर के एक अंग्रेजी स्कूल में।

प्रश्न 11.
बेटू दादी से …………. गया था।
उत्तर:
हिल-मिल।

प्रश्न 12.
दादी से अलग होने पर बेटू को क्या हुआ ?
उत्तर:
बुखार चढ़ गया।

प्रश्न 13.
दादी किसे लेकर गाँव लौट आई थी ?
उत्तर:
बेटू को।

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प्रश्न 14.
बेट्र को जबरदस्ती कहाँ ले जाया गया था ?
उत्तर:
बम्बई।

प्रश्न 15.
दादी क्यों दुःखी थी ?
उत्तर:
बेटू द्वारा उसे भूल जाने के कारण।

प्रश्न 16.
बूढ़ी अम्मा की बहू का क्या नाम था ?
उत्तर:
रमा।

प्रश्न 17.
बेटू किसके साथ खेलता था ?
उत्तर:
गली मुहल्ले के गंदे बच्चों के साथ।

प्रश्न 18.
बेटू स्वभाव से कैसा था ?
उत्तर:
जिददी।

प्रश्न 19.
कहानी में किसकी मजबूरियों का उल्लेख हुआ है ?
उत्तर:
सास बहू की।

प्रश्न 20.
वैद्यराज कौन था ?
उत्तर:
बूढ़ी अम्मा का पति।

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बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मजबूरी किस विधा की रचना है ?
(क) कहानी
(ख) निबंध
(ग) उपन्यास
(घ) नाटक।
उत्तर:
(क) कहानी

प्रश्न 2.
रमा ने शिकायत किससे की ?
(क) पिता जी से
(ख) अम्मा से
(ग) भाई से
(घ) बहन से।
उत्तर:
(ख) अम्मा से

प्रश्न 3.
बेटू का स्वभाव कैसा था ?
(क) शक्की
(ख) जिद्दी
(ग) सनकी
(घ) दब्बू।
उत्तर:
(ख) ज़िद्दी

प्रश्न 4.
बेटू को गांव लेकर कौन आया ?
(क) दादी
(ख) दादा
(ग) पिता
(घ) माँ।
उत्तर:
(क) दादी।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

मांडना-सजाना। नून-नमक। नवाई-नई बात। मसान-शमशान। संशय-शंका। शिथिल-बिना प्राण के। नीरस-बिना रस के। जिज्ञासु-सब जानने की इच्छा रखने वाला। एकाकी-अकेले। प्रयाण करना-जाना। सामंजस्य-तालमेल । बोराना-पागल होना। कौर-टुकड़ा।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) “देख नर्बदा, मेरे रामेसर के लिए कुछ मत कहना। यह तो मैं जानती हूँ कि तीन-तीन बरस मुझसे दूर रह कर उसके दिन कैसे बीतते हैं, पर क्या करे, नौकरी तो आखिर नौकरी ही है। मेरे पास आज लाखों का धन होता तो बेटे को यों नौकरी करने परदेस नहीं दुरा देती, पर….”

प्रसंग :
यह गद्यांश श्रीमती मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित कहानी ‘मजबूरी’ में से अवतरित है। रामेश्वर तीन साल बाद अपने घर लौट रहा है उसकी माँ उसके स्वागत की तैयारियों में जुटी है। उसकी उत्सुकता देख घर की नौकरानी नर्वदा जब बेटे के मन में मोह माया न होने की बात कहती है तो रामेश्वर की माँ उसे प्रस्तुत पंक्तियाँ कहती है।

व्याख्या :
रामेश्वर की माँ ने अपनी नौकरानी को टोकते हुए कहा कि उसके रामेसुर को कुछ मत कहना। वह यह जानती है कि तीन-तीन वर्ष तक उस के दिन उस से अलग रह कर किस तरह बीतते हैं, अर्थात् उसका बेटा उसको बहुत प्यार करता है परन्तु वह नौकरी के कारण मजबूर है। परन्तु वह भी क्या करे अर्थात् उसके हाथ में कुछ नहीं है। नौकरी तो आखिर नौकरी है अर्थात् नौकरी करने के कारण तीन वर्षों तक वह मुझ से मिलने नहीं आ सका। यदि उसके पास लाखों रुपए होते तो वह अपने बेटे को नौकरी करने के लिए परदेस में नहीं भेजती, परन्तु ऐसा नहीं है इसीलिए उसे बेटे से दूर रहना पड़ता है। बूढ़ी माँ अपनी मजबूरी की बात कहते कहते रुक जाती है।

विशेष :

  1. स्नेहमयी और ममतामयी माँ के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है जो किसी सूरत में अपने बेटे की बुराई नहीं सुन सकती।
  2. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है। तद्भव शब्दावली है। भावात्मक शैली है।

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(2) “तुम क्या कही रही हो बहू, बेटू को मेरे पास छोड़ जाओगी, मेरे पास ! सच ? हे भगवान, तुम्हारी सब साध पूरी हों, तुम बड़भागी होओ। मेरे इस सूने घर में एक बच्चा रहेगा तो मेरा मन सफल हो जाएगा।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित कहानी ‘मजबूरी’ में से ली गई हैं। रामेश्वर की पत्नी रमा ने जब अपने बेटे को दादी के पास छोड़ जाने की बात कही तो प्रसन्न होकर रामेश्वर की बूढ़ी माँ ने प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।

व्याख्या :
रमा के यह कहने पर कि इस बार वह अपने बेटे को दादी के पास छोड़ जाएगी तो आँखें फाड़-फाड़ कर रामेश्वर की माँ ने बहू से कहा कि वह यह सब सच कह रही है कि बेटू को इसके पास छोड़ जाएगी। क्या यह बात सच है ? (रामेश्वर की माँ को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उसने ऐसी बात सुनी है।) यह सुन कर रामेश्वर की माँ ने रमा को आशीर्वाद देते हुए कहा कि उसकी सब इच्छाएँ पूरी हों, वह सौभाग्यवती होओ। इस सूने घर में एक बच्चा रहेगा तो उसका जन्म सफल हो जाएगा। रामेश्वर की माँ पोते के पास रहने की खुशी में बहू को आशीर्वाद देती है कि उसने उसका अकेलापन दूर कर दिया और उसकी सभी मनोकामना पूरी हो।।

विशेष :

  1. रामेश्वर की माँ के भोलेपन की ओर संकेत किया गया है जो रमा के स्वार्थ मेरे कृत्य को न समझ सकी।
  2. भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है। तद्भव शब्दावली है। भावात्मक शैली है। वात्सल्य रस है।

(3) “उन्होंने तो रामेश्वर को अपने ढंग से पाला था। जब बच्चा रोया, झट दूध पिला दिया। दूध के लिए भी समय देखना पड़ता है, यह बात उनके लिए नई थी। दो साल तक तो उन्होंने रामेश्वर को अपना दूध पिलाया था, उस के बाद गिलास से पिलाती थीं। यह शीशी का नखरा उस जमाने में था ही नहीं, और होगा भी तो शहरों में।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित कहानी ‘मजबूरी’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में रामेश्वर की माँ बच्चों के लालन-पालन में अपने द्वारा अपनाई गई विधि का उल्लेख कर रही है जो शहरी तरीका बिल्कुल न था।

व्याख्या :
बेटू को दूध पिलाने के लिए भी समय का ध्यान रखना होता है। इसी बात को लेकर रामेश्वर की माँ कहती है कि उसने तो रामेश्वर को अपने तरीके से पाला था। जब बच्चा रोया, झट दूध पिला दिया। दूध के लिए भी समय देखना पड़ता है, यह बात रामेश्वर की माँ के लिए नयी थी। उसने दो साल तक तो रामेश्वर को अपना दूध पिलाया था, उसके बाद उसे गिलास से पिलाने लगी थी। शीशी में दूध पिलाने का नखरा उसके ज़माने में नहीं था और यदि है तो शहरों में होगा। रामेसर की माँ बहू से नए जमाने के अनुसार बच्चे को पालने का ढंग सीख रही थी जो उसे अजीब लग रहा था।

विशेष :

  1. बच्चों के पालन-पोषण को लकर शहरी और ग्रामीण तरीके के अन्तर पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा सहज, सरल तथा स्वाभाविक है।
  3. तद्भव शब्दावली है, विचारात्मक शैली है।

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(4) “देख रामेसर, यह तीन-तीन बरस तक घर का मुँह न देखने वाली बात अब नहीं चलेगी। साल में एक बार तो आ ही जाया कर मेरे लाला नौकरी की जगह नौकरी है, और माँ-बाप की जगह माँ-बाप! मेरी तबीयत भी ठीक नहीं रहती, किसी दिन भी आँख मूंदी रह जाएगी तो मैं तेरी सूरत को भी तरस जाऊँगी। सो कम से कम इस बूढ़िया माँ को …..” पर आगे वे कुछ कह नहीं सकी, बस फूट-फूट कर रोने लगीं।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित कहानी ‘मजबूरी’ में से ली गई हैं। रामेश्वर अपने बेटे को अपनी माँ के पास छोड़ कर जब जाने लगा तो उसकी बूढ़ी माँ ने रोते हुए प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।

व्याख्या :
रामेश्वर के जाते समय बूढ़ी माँ रोते हुए रामेश्वर से कहती है कि रामसुर, यह तीन-तीन वर्ष तक घर से दूर रहना अब नहीं चलेगा, अर्थात् अब उन सबसे दूर नहीं रहा जाता है इसलिए साल में एक बार अवश्य चक्कर लगा जाया करो। नौकरी अपनी जगह है और माँ-बाप अपनी जगह। अब उसकी तबीयत भी कुछ ठीक नहीं रहती। इसलिए किसी दिन आँखें यूँ ही बन्द हो जाएंगी तो उसकी सूरत देखने को भी तरस जाऊँगी। इसलिए कम-से-कम अपनी बूढी माँ के लिए जल्दी-जल्दी चक्कर लगाया करो। इस से आगे वह कुछ न कह सकी। बस फूट-फूट कर रोने लगी।

विशेष :

  1. माँ की ममता का चित्रण किया गया है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।
  3. भावात्मक शैली है। भाषा मुहावरेदार है।

(5) अरे बचपन में कौन ज़िद नहीं करता बहू। रामेसुर भी ऐसे ही किया करता था, यह तो सच हू ब हू उसी पर पड़ा है। समय आने पर सब अपने आप छूट जाएगा। यही तो उम्र होती है ज़िद करने की, साल दो साल और कर ले, फिर अपने आप सब कुछ छूट जाएगा।

प्रसंग :
प्रस्तुत पक्तियाँ श्रीमती मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित कहानी ‘मजबूरी’ में से ली गई हैं। रामेश्वर अपने बेटे को दादी के पास छोड़ गया था। दूसरे साल रामेश्वर नहीं उसकी पत्नी रमा आई। शायद अपने बेटे को देखने के लिए। आकर उसने अपने बेटे को दादी के लाड़-प्यार से बिगड़ा अनुभव किया। वह बात-बात पर ज़िद करता था। इसी बात को लेकर जब उसने रामेश्वर की माँ से शिकायत की तो रामेश्वर की माँ ने रमा से प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।

व्याख्या :
रमा की शिकायत सुनकर रामेश्वर की माँ ने हँसते हुए सहज भाव से कहा कि बचपन में कौन ज़िद नहीं करता अर्थात् सभी जिद करते हैं रामेसुर भी ऐसे ही ज़िद किया करता था। उसका यह बेटा तो भी उसी पर गया है। समय आने पर ज़िद करने की आदतें अपने आप छूट जाएंगी। यही तो उम्र होती है ज़िद करने की, साल दो साल में बच्चे बड़े हो जाते हैं तथ उनकी जिद करने की आदतें स्वयं ही छूट जाती हैं।

विशेष :

  1. ग्रामीण माँ और शहरी माँ की सोच में अन्तर को स्पष्ट किया गया है। शहर की माँ जिस आदत को बच्चे को बिगाड़ने वाली समझती है, ग्रामीण माँ उसे सहज और स्वाभाविक मानती है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा स्वाभाविक है।
  3. तद्भव शब्दावली है।
  4. भावात्मक शैली है।

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(6) क्या कहा ….. बेटू भूल गया ? वहाँ जम गया ? सच मेरी बड़ी चिन्ता दूर हुई। इस बार भगवान ने मेरी सुन ली। ज़रूर परसाद चढ़ाऊँगी। मेरे बच्चे के जी का कलेश मिटा, मैं परसाद नहीं चढाऊँगी भला ?

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित कहानी ‘मजबूरी’ में से अवतरित है। रामेश्वर की माँ ने उस समय कही हैं जब उसे बताया जाता है कि उसका पोता शहर में जाकर वहाँ के वातावरण में हिलमिल गया है तो उसे ठेस पहुँचती। इसी प्रसंग में वह प्रस्तुत पक्तियाँ कहती हैं।

व्याख्या :
रामेश्वर की माँ को जब यह सूचना मिलती है कि उसका बड़ा पोता शहर में अपने वातावरण में हिलमिल गया है तो उसे बड़ी हैरानी होती है कि उसका पोता शहर जाकर दादी को कैसे भूल गया ? फिर वह सोचती है कि चलो उसकी चिन्ता दूर हुई। इस बार भगवान् ने उसकी सुन ली। वह अपने मां-बाप के पास रहने लगा था। उसके बच्चे (रामेश्वर) के जी का कष्ट मिट गया। इस खुशी में वह प्रसाद नहीं चढ़ाएगी भला ? रामेशवर की माँ एक ओर दुःखी होती है कि उसका पोता उसे भूल गया है और दूसरी ओर खुश ही होती है कि उसके बेटे का दुःख दूर हो गया है !

विशेष :

  1. बेटे और पोते के व्यवहार से माँ की ममता को ठेस लगने की ओर संकेत किया गया है।
  2. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।
  3. तद्भव शब्दावली है।
  4. भावात्मक शैली है।

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मजबूरी Summary

मजबूरी कहानी का सार

रामेश्वर तीन वर्ष पश्चात् अपनी पत्नी और बेटे के साथ गाँव में अपने माता-पिता से मिलने आ रहा है। उनके आने की खुशी में रामेश्वर की माँ गठिया से जुड़ी होने पर भी घर की साफ़ सफ़ाई में जुट जाती है। उनके नहाने के लिए चूल्हे पर पानी गर्म करती है, तरकारी आदि काटकर पहले से तैयार रखती है ताकि वर्षों बाद आने वाले बेटे से खुलकर बातें कर सके।

रामेश्वर के नहाने जाने के पश्चात् रामेश्वर की माँ ने बहू से पूछा कि उसे कितने महीने चढे हैं। बहू ने साहस बटोर कर कहा कि इस बार बेटू को आप ही रखेंगे। जैसे-तैसे भी हो, इसे अपने से हिला लीजिए। मैं तो इसके मारे परेशान थी, दो-दो को तो नहीं संभाला जा सकता। रामेश्वर की माँ बहू की यह बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुई। उसने यह बात सबको ज़ोर दे देकर बताई ताकि रामेश्वर की पत्नी अपना इरादा न बदल दे।

रामेश्वर ने जाते समय अपने माता-पिता को ढेर सारे कपड़े बनवा दिए और माँ ने भी उससे हर साल घर आने का वादा मांगा। किंतु अगले दो साल बाद रामेश्वर तो नहीं आया हाँ, उसकी पत्नी रमा अवश्य आई। उसने अपने बेटे को दादी के लाड़ प्यार के कारण बिगड़े हुए पाया। उसने अम्मा से शिकायत भी की किंतु अम्मा का बच्चों को पालने-पोसने का अपना ही तरीका था। दो साल ओर बीत गए। रमा और रामेश्वर तीन साल के अपने छोटे बेटे को लेकर अपने मातापिता से मिलने के लिए आए। उन्होंने अपने छोटे बेटे को शहर के एक अंग्रेजी स्कूल में दाखिल करवा दिया था। किंतु बड़ा बेटा उसे वैसे का वैसा लगा जैसा वह छोड़ गई थी। न चाहते हुए भी रामेश्वर और रमा बेटू को अपने साथ ले गए। लेकिन बेटू दादी से इतना हिल-मिल गया था कि उसका बिछोड़ा उससे सहन न हो सका। उसे जाते ही बुखार चढ़ आया। यह समाचार सुनकर दादी उसे लेकर गाँव लोट आई। एक साल ओर बीत गया। इस बार तो बेटू को जबरदस्ती बम्बई ले जाया गया। उसे इस प्रकार सिखाया-पढ़ाया गया कि वह शहर के वातावरण में हिल-मिल गया। बूढ़ी दादी को जब यह बात मालूम हुई कि बेटू उसे भूल गया है तो उसकी चिंता दूर हुई। किंतु अंदर ही अंदर वह दुःखी थी कि बेट उसे भूल गया है।

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