Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 34 टूटते परिवेश Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 34 टूटते परिवेश
Hindi Guide for Class 11 PSEB टूटते परिवेश Textbook Questions and Answers
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें –
प्रश्न 1.
‘टूटते परिवेश’ एकांकी में एक मध्यवर्गीय परिवार को टूटते हुए दिखाकर प्राचीन और नवीन पीढ़ी के सम्बन्ध को व्यक्त किया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
वैसे तो आदिकाल से ही प्राचीन और नवीन पीढ़ी में संघर्ष चला आ रहा है किन्तु बीसवीं शताब्दी तक आते-आते इस संघर्ष ने इतना भीषण रूप धारण कर लिया कि सदियों से चले आ रहे संयुक्त परिवार टूटने लगे। विशेषकर मध्यवर्गीय परिवारों पर इस टूटन की गाज सबसे अधिक गिरी। ‘टूटते परिवेश’ एकांकी में विष्णु प्रभाकर जी ने इसी समस्या को उठाया है। एकांकी में विश्वजीत और उसकी पत्नी करुणा पुरानी पीढ़ी तथा एकांकी के शेष सभी पात्र नई पीढ़ी के। एकांकी के आरम्भ में ही विश्वजीत की मंझली बेटी मनीषा के प्रस्तुत संवाद इसी संघर्ष को दर्शाता है-‘मैं पूछती हूँ कि मैं क्या आपको इतनी नादान दिखाई देती हूँ कि अपना भला-बुरा न सोच सकूँ ? जी नहीं, मैं अपना मार्ग आपको चुनने का अधिकार नहीं दे सकती, कभी नहीं दे सकती। मैं जा रही हूँ, वहाँ जहाँ मैं चाहती हूँ।’
अपने अधिकारों की आड़ में नई पीढ़ी धर्म, सभ्यता, संस्कृति, नैतिकता, सच्चरित्रता सभी का मज़ाक उड़ाती है। विवेक कहता है-पूजा में देर कितनी लगती है। बस पाँच मिनट …. और दीप्ति का यह कहना-‘गायत्री मंत्र ही पढ़ना है तो वह यहाँ भी पढ़ा जा सकता है। फिर पूजा की ज़रूरत ही क्या है।’ नई पीढ़ी की यह बातें धर्म का मज़ाक उड़ाने के बराबर है।
पुरानी पीढ़ी के विश्वजीत चाहते हैं कि दीवाली के अवसर पर तो सारा परिवार मिल बैठ कर लक्ष्मी पूजन कर ले, किन्तु नई पीढ़ी के पास तो इस बात के लिए समय ही कहाँ हैं। वह क्लब में, होटल में दीवाली नाइट मनाने जा सकते। पिता के होटल में जाने से मना करने पर विवेक उसे गुलाम बनाना चाहता है। पुरानी पीढ़ी कहती है कि युग बीत जाता है, नैतिकता हमेशा जीवित रहती है।’ जबकि नई पीढ़ी करती है-‘जीवन भर नैतिकता की दुहाई देने के सिवा आपने किया ही क्या है।’ चरित्र के विषय में नई पीढ़ी का विचार है कि जिसने सचरित्रता का रास्ता छोड़ा उसी ने सफलता प्राप्त की। नई पीढ़ी नेता और पिता को एक छद्म के दो मुखौटे कहती है। नई पीढ़ी मुक्त यौनाचार में विश्वास रखती है। तो पुरानी पीढ़ी सचरित्रता को ही सब से बड़ा मानती है। पुरानी पीढ़ी सब कुछ हो जाने पर भी सन्तान का हित, उसका मोह नहीं त्यागती, किन्तु नई पीढ़ी स्वार्थ में अन्धी होकर अपने पिता, अपने परिवार तक की परवाह नहीं करती।
इस प्रकार एकांकीकार ने संयुक्त परिवार टूटने का सबसे बड़ा कारण नई पीढ़ी के स्वार्थान्ध हो जाने को बताया है। प्रस्तुत एकांकी में लेखक ने इसी संघर्ष का सजीव चित्रण किया है।
प्रश्न 2.
‘टूटते परिवेश’ एकांकी का सार लिखें।
उत्तर:
टूटते परिवेश’ एकांकी के लेखक विष्णु प्रभाकर हैं। इसमें उन्होंने देश में नवयुवकों की बदल रही सोच को दिखाया है। ज्ञान-विज्ञान और नागरीकरण का जो प्रभाव हमारे धार्मिक, सामाजिक या नैतिक जीवन पर पड़ा है, उसे एक परिवार की जीवन स्थितियों के माध्यम से दिखाया गया है। इसमें पुरानी पीढ़ी नैतिकता, सिद्धान्त, त्याग, मानवीयता धर्म और चरित्र के परिवेश में रहना चाहती है और नई पीढ़ी उच्छंखल, अनैतिक, अव्यवहारिक तथा स्वच्छंद वातावरण में रहना चाहती है। इसी से परिवार में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है और परिवार टूटकर बिखर जाता है। प्रस्तुत एकांकी तीन अंकों में बँटा हुआ है। किन्तु घटनास्थल एक ही है।
एकांकी की कथावस्तु एक मध्यवर्गीय परिवार की नई पुरानी दो पीढ़ियों के संघर्ष और परिवार टूटने की कहानी है। नाटक के आरम्भ में परिवार के मुखिया विश्वजीत और उसकी पत्नी करुणा तथा बेटियों मनीषा और दीप्ति का परिचय दिया गया है। दीवाली का शुभ दिन है और विश्वजीत चाहते हैं कि सारा परिवार मिल बैठकर पूजा करे किन्तु नई पीढ़ी तो पूजा अर्चना को एक ढोंग समझती है। यही नहीं नई पीढ़ी भारतीय सभ्यता का मज़ाक भी उड़ाती है। परिवार का कोई भी सदस्य पूजा करने घर नहीं पहुँचता। सब को अपनी-अपनी पड़ी है। सभी दीवाली घर पर नहीं होटलों और क्लबों में मनाने चले जाते हैं। . एकांकी के दूसरे अंक में नई और पुरानी पीढ़ी का संघर्ष उग्र रूप धारण कर लेता है। मनीषा किसी विधर्मी से विवाह कर लेती है। दीप्ति हिप्पी बनी आवारा घूमती है और सिगरेट भी पीने लगी है। विवेक, जो सिवाए अर्जियाँ लिखने के कोई दूसरा काम नहीं जानता, विद्रोह करने पर उतारू हो जाता है और उनका साथ देने की बात कहता है।
विश्वजीत परिवार के सदस्यों (नई पीढ़ी) के व्यवहार से दुःखी होकर आत्महत्या करने घर से निकल जाते हैं घर पर सारा परिवार एकत्र होता है किन्तु किसी के पास अपने परिवार के मुखिया को ढूँढ़ने का समय नहीं है। हर कोई न कोई बहाने बनाता है। किन्तु विश्वजीत स्वयं ही लौट आते हैं कि यह सोचकर कि आत्महत्या का अर्थ है मौत और मौत का एक दिन निश्चित है। तब आत्महत्या क्यों की जाए।
विश्वजीत के लौट आने पर उसका बड़ा बेटा शरद् तो उनसे हाल-चाल भी नहीं पूछता है और अपने काम की जल्दी बता कर चला जाता है। परिवार के दूसरे सदस्य भी चले जाते हैं और पुरानी पीढ़ी के लोग विश्वजीत और उसकी पत्नी अकेले रह जाते हैं इस आशा में कि उनके बच्चे एक-न-एक दिन लौट आएँगे।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित की चारित्रिक विशेषताएँ लिखें-
(क) विश्वजीत
(ख) विवेक
(ग) दीप्ति उत्तर
(क) विश्वजीत :
परिचय-विश्वजीत पुराने विचारों का व्यक्ति है, परिवार का मुखिया है। उसके तीन बेटे-दीपक, शरद् और विवेक हैं तथा तीन बेटियाँ-इन्दू, मनीषा और दीप्ति। उसकी आयु 60-70 वर्ष की है।
निराश पिता :
दीवाली का दिन है और विश्वजीत चाहता है कि परिवार के सभी सदस्य मिलकर पूजा करें। तीन घंटे की प्रतीक्षा के पश्चात् भी कोई भी पूजा करने नहीं आता। जब उसकी पत्नी यह कहती है कि कोई नहीं आएगा तो विश्वजीत कहता है “कोई कैसे नहीं आएगा। घर के लोग ही न हों तो पूजा का क्या मतलब। यही तो मौके हैं, जब सब मिल बैठ पाते हैं।” मनीषा बिना बताए, बिना पूछे अपने किसी मित्र के साथ दीवाली मनाने जा चुकी होती है। इन्दू अपने पति के साथ दीवाली नाइट देखने जा रही है। दीपक दीवाली की शुभकामनाएँ देने मुख्यमन्त्री के घर गया है। रह गए दीप्ति और विवेक। उन्हें भी घर में होने वाली लक्ष्मी पूजा में कोई रुचि नहीं है। विश्वजीत के चेहरे की निराशा और उभर आती है, वह कहता है-“क्या हो गया है दुनिया को ? सब अकेले-अकेले अपने लिए ही जीना चाहते हैं। दूसरे की किसी को चिन्ता ही नहीं रह गई है। एक हमारा ज़माना था कि बड़ों की इजाजत के बिना कुछ कर ही न सकते थे।”
संतान से दुःखी :
विश्वजीत एक दुःखी पिता है, जिसकी सन्तान उसके कहने में नहीं है। विवेक के बेकार होने का उसे दुःख है। वह कहता है-“कुछ काम करता तो मेरी सहायता भी होती।” बेटों के व्यवहार से विश्वजीत को जो कष्ट होता है उसे वह निम्न शब्दों में व्यक्त करता है-“कैसा वक्त आ गया है ? एक हमारा ज़माना था, कितना प्यार, कितना मेल, एक कमाता दस खाते । हरेक एक-दूसरे से जुड़ने की कोशिश करता था और अब सब कुछ फट रहा है। सब एक-दूसरे से भागते हैं।”
उसकी पत्नी भी इस सम्बन्ध में व्यंग्य करती है “…… अपनी औलाद तो सम्भाले सम्भलती नहीं, बात करते हो भारत माता की।”
मानसिक असंतुलन :
विश्वजीत अपनी सन्तान के व्यवहार से दुःखी होकर जड़ हो जाता है। उसे जीवन में कोई रस नहीं दिखाई देता। गुस्से में आकर वह अपने आपको गालियाँ निकालने लगता है। हीन भावना और घोर निराशा का शिकार होकर वह आत्महत्या करने के लिए घर से बाहर चला जाता है, किन्तु यह सोचकर लौट आता है कि जब मौत का एक दिन निश्चित है तो आत्महत्या करके जान क्यों दी जाए। अन्तिम क्षण तक उसे बचा रखना चाहिए।
पिता का विश्वास :
जब विश्वजीत की पत्नी कहती है कि जब बच्चे उसे छोड़ कर चले गए तो वह भी बच्चों को छोड़ दे। तब विश्वजीत कहता है कि वह अपनी मजबूरियों का क्या करें। स्वभाव की, बच्चों को प्यार करने की. इनका बाप होने की तथा उनको खो देने पर यह आशा रखने की मजबूरी की एक दिन वे लौट आएंगे।
(ख) विवेक :
टूटते परिवेश एकांकी में विवेक पश्चिमी सभ्यता में रंगी नई युवा पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है। उसमें पुरानी पीढ़ी के प्रति घृणा है, बुजुर्गों के बनाए हुए नियमों का उल्लंघन करने में अपनी बहादुरी समझता है, उसके सामने न तो देश का हित है न ही अपने परिवार का। वह अपने माता-पिता की इज्जत भी नहीं करता। उसे अपनी सभ्यता, संस्कृति के प्रति कोई रुचि नहीं है। बस बात-बात में बड़ों से बहस करनी जानता है। नई पीढ़ी के बिगड़े हुए युवकों के सभी अवगुण उसमें मौजूद हैं।
परिचय :
विवेक, विश्वजीत का सब से छोटा बेटा है। उसकी आयु चौबीस वर्ष के लगभग हो गई है, किन्तु अभी तक बेकार है। बस अर्जियाँ लिखता रहता है। दूसरों को सफ़ाई की शिक्षा देने वाला विवेक अपनी अर्जियाँ तक भी सम्भाल कर नहीं रख सकता। वह घर में उन्हें इधर-उधर बिखेर देता है।
अव्यावहारिक :
विवेक एक ऐसा युवक है, जिसने किसी का आदर करना सीखा ही नहीं। उसे पुराने लोगों से चिढ़ है। चाहे वह उसका अपना बाप ही क्यों न हो। वह अपने बाप से कहता है-”पापा आप का ज़माना कभी का बीत गया। अब बीते जीवन की धड़कनें सुनने से अच्छा है कि वर्तमान की साँसों की रक्षा की जाए।” विवेक के पिता जब उसे दीवाली मनाने होटल पैनोरमा जाने से रोकते हैं तो वह उन्हें कहता है–“आप हमारे पिता हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं। लेकिन इसलिए ही आप हमें रोक नहीं रहे हैं। आप हमें इसलिए रोक रहे हैं कि आप हमें पैसे देते हैं। पिता तो आप शरद्, इन्दू, मनीषा सभी के हैं। उन्हें रोक सके आप ? मैं आप पर आश्रित हूँ लेकिन गुलाम नहीं।”
सभ्यता संस्कृति से दूर :
विवेक एक ऐसा युवक है, जिसे अपनी सभ्यता-संस्कृति का कोई लिहाज़ नहीं, जो बड़ों का मज़ाक उड़ा सकता है वह भला धर्म और देवी-देवताओं का आदर कैसे कर सकता है। दीवाली के दिन होने वाली लक्ष्मी पूजा का मजाक उड़ाता हुआ वह कहता है-“पूजा में देर कितनी लगती है-पाँच मिनट। पंडित जी तो आए नहीं बस आप तीन बार गायत्री मंत्र पढ़ लीजिए।”
चरित्रहीन तथा कायर :
विवेक की दृष्टि में चरित्र का कोई महत्त्व नहीं। चरित्र हीनता ने उसे कायर भी बना दिया है। उसकी छोटी बहन हिप्पी बनी अनेक युवकों के साथ आवारागर्दी करती है; सिगरेट पीती है। उसकी मर्दानगी नहीं
जागती। उसकी बड़ी बहन एक विधर्मी से, बिना सूचना दिए, बिना आज्ञा विवाह कर लेती है, उसे जोश नहीं आता। उल्टे वह अपनी बड़ी बहन के कृत्य को उचित ठहराता है।
संयुक्त परिवार में विश्वास :
विवेक संयुक्त परिवार की प्रणाली में विश्वास नहीं रखता। जब उसके पिता कहते हैं कि देश और समाज के प्रति तुम्हारे भी कुछ कर्त्तव्य हैं तो विवेक कहता है-“कर्त्तव्य की दुहाई दे देकर आप लोगों ने सदा अपना स्वार्थ साधा है। संयुक्त परिवार में बाँधे रखा है। अब भी आप चाहते हैं कि हम आपकी वैसाखी बने रहें। नहीं पापा! वैसाखियों का युग अब बीत गया।”
घुटन का अनुभव :
विवेक को अपने घर में अपने देश में घुटन महसूस होती है। इस घुटन से छुटकारा पाने का साधन वह विदेश जाकर प्राप्त करना चाहता है।
इस प्रकार लेखक ने विवेक के चरित्र द्वारा आज की युवा पीढ़ी के उन युवकों का चरित्र प्रस्तुत किया है, जिन्हें आता-जाता कुछ नहीं, डींगें बड़ी-बड़ी हांकते हैं। हर बात में दोष निकालते हैं करते-धरते कुछ नहीं। जैसे थोथा चना बाजे घना।
(ग) दीप्ति :
परिचय :
दीप्ति नई पीढ़ी की उस युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है जो मध्यवर्गीय परिवारों की होती हुई भी अमीर लोगों की नकल करना अपना धर्म समझती है। आधुनिक बनने के चक्कर में वह चरित्र भी गँवा बैठती है।
नारी स्वतन्त्रता का दुरुपयोग :
दीप्ति विश्वजीत की सब से छोटी लड़की है। मध्यवर्गीय परिवार में जन्म लेकर भी वह हिप्पी बनी घूमती है, ‘सिगरेट पीती है’, आवारागर्दी करती है। लड़कों से दोस्ती करती है और वयस्क होने से पूर्व ही नितिन नाम के लड़के से विवाह करने का निश्चय कर लेती है। अपने ईश्क की बात वह निधड़क होकर अपनी माँ से कहती है।
परम्पराओं से दूर :
दीप्ति अपने भाई की तरह त्योहार, धर्म, पूजा आदि में कोई रुचि नहीं रखती उसकी रुचि घर पर दीवाली की पूजा करने से अधिक क्लब या होटल में दीवाली नाइट मनाने की है। धर्म और पूजा का मज़ाक उड़ाना वह अपना अधिकार समझती है। वह कहती है-‘गायत्री मंत्र पढ़ना है तो यहाँ भी पढ़ा जा सकता है। फिर पूजा की ज़रूरत ही क्या है।’ पूजा करने को वह लकीर पीटना कहती है। वह कहती है-‘चलो भैया लकीर पीटनी है, पीट लो जब तक पीटी जा सके।
अपनी बड़ी बहन मनीषा द्वारा किसी विधर्मी से विवाह करने को वह बुरा नहीं समझती बल्कि वह अपनी बहन को बधाई देने को तैयार हो जाती है।
आधुनिक विचारधारा का दुरुपयोग :
दीप्ति आवारागर्दी करने का भी अपना अधिकार समझती है। वह अपने भाई से कहती है-मैं कहाँ जाती हूँ ? कहाँ नहीं जाती ? तुम्हें इससे मतलब ? दीप्ति आधुनिकता की झोंक में अपनी माँ तक का भी निरादर कर देती है। अपनी माँ के चूल्हा चौंका करना, दूसरों का इन्तज़ार करना कर्त्तव्य नहीं आदत लगती है।
इस तरह हम देखते हैं कि दीप्ति आधुनिकता की झोंक में एक बिगड़ी हुई लड़की के रूप में हमारे सामने आती है जो न बड़ों की इज्जत करती है, न धर्म, सभ्यता, संस्कृति की कोई परवाह करती है।
प्रश्न 4.
‘आज की नारी स्वतन्त्रता की सीमा लाँध रही है’ एकांकी के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
टूटते परिवेश एकांकी में आधुनिकता की आड़ में नारी स्वतन्त्रता की सीमा लाँघती दिखाई गई है। एकांकी के आरम्भ में ही मनीषा का दर्शकों को सम्बोधन करके कहा गया निम्न कथन इसका एक उदाहरण है ………. मैं पछती हूँ कि मैं आपको इतनी नादान दिखाई देती हूँ कि अपना भला-बुरा न सोच सकूँ ? जी नहीं, मैं अपना मार्ग आपको चुनने का अधिकार नहीं दे सकती, नहीं दे सकती, कभी नहीं दे सकती। मैं जा रही हूँ, वहीं मैं जाना चाहती हूँ।” वही मनीषा अपने प्रेमी से विवाह रचा लेती है तो घरवालों को केवल फ़ोन पर सूचना भर देती है। वही मनीषा जब उसके पापा घर से गायब हो जाते हैं तो वह क्षण भर भी वहाँ ठहर नहीं सकती। नारी स्वातंत्र्य का वह अनुचित लाभ उठाती है।
इसी तरह का एकांकी का दूसरा पात्र दीप्ति का है जो अभी वयस्क नहीं हुई कि हिप्पी बनी घूमती है, आवारागर्दी करती है; सिगरेट पीती है। वह यह नहीं समझती कि वैश्या और देवी में कोई अन्तर होता है। दीप्ति को धार्मिक त्योहारों, धर्म में, पूजा इत्यादि में कोई रुचि नहीं है। दीवाली के दिन उसका ध्यान लक्ष्मी पूजा में न होकर क्लब या होटल में मनाई जा रही दीवाली नाइट की तरफ अधिक है। वह आधुनिकता की आँधी में बहती हुई राजनीतिक सिद्धान्तों से, धन का परिश्रम से, आनन्द का आत्मा से, ज्ञान का चरित्र से, व्यापार का नैतिकता से, विज्ञान का मानवीयता से और पूजा का त्याग से कोई सम्बन्ध नहीं मानती। दीवाली पूजा को वह लकीर पीटना कहती है। वह अभी वयस्क भी नहीं हुई कि अपने किसी प्रेमी से विवाह करने की बात अपनी माँ के मुँह पर ही कह देती है। इस पर अकड़ यह है कि अपनी माँ से कहती है………. फिर भी आप नाराज़ हैं तो मुझे इसकी चिन्ता नहीं। दीप्ति होस्टल में भी इसी उद्देश्य से भर्ती होती है कि उसे वहाँ हर तरह की आज़ादी मिल सके और कोई उसे रोकने-टोकने वाला न रहे।
इस प्रकार एकांकीकार ने नारी स्वातंत्र्य की आड़ में नारी को अपनी सीमाएँ लाँघते हुए दिखाया है।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
प्रश्न 1.
विवेक और दीप्ति अपने पिता विश्वजीत से किस प्रकार व्यवहार करते हैं ?
उत्तर:
विवेक और दीप्ति अपने पिता से अच्छा व्यवहार नहीं करते। दीवाली की पूजा वे पिता के कहने पर घर पर करने को तैयार नहीं। पिता की बातें उन्हें बुजुर्गाई भाषा लगती है। वे पिता से बात-बात में बहस करते हैं। विवेक अपने पिता का गुलाम नहीं बनना चाहता। उसे सचरित्रता से कोई सरोकार नहीं और दीप्ति हिप्पी बनना, सिगरेट पीना, आवारागर्दी करना अपना अधिकार समझती है। उसने नितिन से विवाह करने का निश्चय करके एक तरह से विश्वजीत के मुँह पर तमाचा मारा है।
प्रश्न 2.
विवेक विदेश क्यों जाना चाहता है ?
उत्तर:
विवेक अपने पिता को विदेश जाने का कारण बताते हुए कहता है कि वह विदेश में जाकर लोगों से यह जानने का प्रयास करेगा कि नैतिकता क्या है ? कर्त्तव्य और अधिकार की परिभाषा क्या है ? फिर एक पुस्तक लिखेगा और ईश्वर ने चाहा तो कुछ कर भी सकेगा। किन्तु वास्तविकता यह थी कि संयुक्त परिवार में रहकर उसका दम घुटता है। उस घर से उसे बदबू आती है। वह इस यंत्रण से छटपटाना नहीं चाहता, उससे मुक्ति चाहता है। वह अपने मातापिता के प्रति कर्त्तव्य की वैसाखी नहीं बनना चाहता इसीलिए वह मुक्ति के नाम पर भागना चाहता है।
प्रश्न 3.
देश के भीतर एक और देश बनाए बैठे हैं हम। भीतर के देश का नाम है स्वार्थ, जो प्रान्त, प्रदेश, धर्म और जाति-इन रूपों में प्रकट होता है।’ दीप्ति के इस कथन से किस समस्या की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियों में देश में फैले भ्रष्टाचार की समस्या को उठाया गया है। दलबदलु विधानसभा के सदस्य अपने स्वार्थ के कारण दल बदलते हैं और नाम लेते हैं देश भक्ति का कि उन्होंने यह कार्य देश हित में किया है। स्वार्थ समाज के हर क्षेत्र में व्याप्त है चाहे वह धर्म हो या जाति । सत्ता में भी बना रहना राजनीतिज्ञों का स्वार्थ हो गया है।
प्रश्न 4.
‘स्वभाव की मजबूरी, बच्चों को प्यार करने की मजबूरी इन का बाप होने की मजबूरी, इनको खो देने पर यह आशा रखने की मजबूरी कि एक दिन लौट आएंगे।’ इन पंक्तियों में विश्वजीत का अन्तर्द्वन्द्व स्पष्ट उभर कर आया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
विश्वजीत पुरानी पीढ़ी का है नयी पीढ़ी की उसकी सन्तान उसे छोड़कर चली गई है। परिवार टूट गया है अत: वह निराश होकर अपने को जीवित नहीं मानता है और अपनी गिनती मूर्यों में नहीं करता। उसकी पत्नी ने कहा भी था कि बच्चों के जाने के बाद वे स्वतन्त्र हो गए हैं, बच्चों के दायित्व से स्वतन्त्र हो गए हैं किन्तु विश्वजीत एक ऐसा बाप है, जिसे अपने बच्चों से मोह है, बच्चे उसे पुरानी पीढ़ी का मानते हैं जो उनके आधुनिक जीवन में फिट नहीं बैठता। परन्तु विश्वजीत पुरानी मान्यताओं के कारण मजबूर है कि एक दिन बच्चे उसे समझेंगे और उसे विश्वास है एक-न-दिन उसके बच्चे अवश्य लौट आएंगे। प्रस्तुत पंक्तियों में विश्वजीत के इस मानसिक द्वन्द्व की ओर संकेत किया गया है।
प्रश्न 5.
इस एकांकी के माध्यम से लेखक ने नई पीढ़ी को क्या सन्देश दिया है ?
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी के माध्यम से लेखक ने यह सन्देश दिया है कि बड़े बुजुर्ग नई पीढ़ी को जो कहते हैं वह उनके भले के लिए कहते हैं। घर के बुजुर्गों के पास जीवन का बहुत बड़ा अनुभव होता है इसीलिए आधुनिक विचारधारा को अपनाते समय पुरानी परम्पराओं को नहीं भूलना चाहिए। परम्पराएं हमारे अस्तित्व की जड़े हैं इसीलिए बड़ों का कहना मानना ही उनका धर्म होना चाहिए। हर काम में मन मर्जी नहीं करनी चाहिए और सबसे बड़ा सन्देश यह है कि नई पीढ़ी को कभी भी अपनी सभ्यता और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए।
प्रश्न 6.
इस एकांकी का शीर्षक कहाँ तक सार्थक है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘टूटते परिवेश’ एकांकी का शीर्षक अत्यन्त उपयुक्त, सार्थक और सटीक बन पड़ा है। एकांकी में नई और पुरानी पीढ़ी के बीच हो रहे संघर्ष को परिवारों के टूटने का कारण बताया।
पुरानी पीढ़ी के आदमी अपने स्वभाव को नई पीढ़ी के स्वभाव के साथ बदल नहीं पाते। इसीलिए दोनों में टकराहट होती है। विश्वजीत पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है। वह नैतिकता, सिद्धान्त, त्याग, मानवीयता, धर्म तथा चरित्र निर्माण के परिवेश में रहना चाहता है जबकि उसकी संतान इस परिवेश से मुक्ति चाहती है। फलस्वरूप जीवन मूल्य ही बदल गए हैं। एकांकी के आरम्भ में ही मनीषा के कथन से इस तथ्य की ओर संकेत किया गया है। नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी का आदर नहीं करती है और उन्हें अपनी सभ्यता संस्कृति का सही ज्ञान नहीं है। ऐसे परिवेश टूटने से कैसे बच सकते हैं।
PSEB 11th Class Hindi Guide टूटते परिवेश Important Questions and Answers
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘टूटते परिवेश’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
टते परिवेश विष्णु प्रभाकर की रचना है।
प्रश्न 2.
‘टूटते परिवेश’ में लेखक ने क्या दर्शाया है ?
उत्तर:
टते परिवेश में लेखक ने देश में नवयुवकों की बदल रही सोच को दिखाया है।
प्रश्न 3.
विश्वजीत क्यों दुःखी था ?
उत्तर:
विश्वजीत परिवार के सदस्यों के व्यवहार से दुःखी था।
प्रश्न 4.
विश्वजीत के बड़े बेटे का क्या नाम है ?
उत्तर:
विश्वजीत के बड़े बेटे का नाम शरद है।
प्रश्न 5.
‘टूटते परिवेश’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
एकांकी।
प्रश्न 6.
‘टूटते परिवेश’ में किस सोच को दिखाया गया है ?
उत्तर:
नवयुवकों की बदल रही सोच को।
प्रश्न 7.
पुरानी पीढ़ी ……….. में रहना चाहती है।
उत्तर:
नैतिकता एवं मानवीयता के धर्म।
प्रश्न 8.
‘टूटते परिवेश’ एकांकी कितने अंकों में बंटी है ?
उत्तर:
तीन अंकों में।
प्रश्न 9.
नयी पीढ़ी भारतीय सभ्यता का ………. उड़ाती है।
उत्तर:
मज़ाक।
प्रश्न 10.
नयी पीढ़ी के लोग दीपावली मनाने कहाँ जाते हैं ?
उत्तर:
होटलों एवं क्लबों में।
प्रश्न 11.
एकांकी के दूसरे अंक में पुरानी पीढ़ी का संघर्ष कैसा रूप धारण कर लेता है ?
उत्तर:
उग्र रूप।
प्रश्न 12.
दीप्ति क्या बनकर घूमती है ?
उत्तर:
हिप्पी।
प्रश्न 13.
मनीषा किसी ……….. से विवाह कर लेती है।
उत्तर:
विधर्मी।
‘प्रश्न 14.
दीप्ति ने क्या पीना शुरू कर दिया था ?
उत्तर:
सिगरेट।
प्रश्न 15.
विवेक क्या लिखता रहता था ?
उत्तर:
अर्जियाँ।
प्रश्न 16.
विश्वजीत क्या करने के लिए घर से निकल जाता है ?
उत्तर:
आत्महत्या करने के लिए।
प्रश्न 17.
पुरानी पीढ़ी किसे बड़ा मानती है ?
उत्तर:
सचरित्रता को।
प्रश्न 18.
पुरानी पीढ़ी सब कुछ हो जाने पर भी क्या नहीं त्यागती है ?
उत्तर:
संतान का मोह।
प्रश्न 19.
संयुक्त परिवार के टूटने का सबसे बड़ा कारण क्या है ?
उत्तर:
स्वार्थ में अंधा होना।
प्रश्न 20.
विश्वजीत की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर:
करुणा।
बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘टूटते परिवेश’ एकांकी के लेखक कौन हैं ?
(क) प्रेमचन्द
(ख) विष्णु प्रभाकर
(ग) देव प्रभाकर
(घ) मनु भंडारी।
उत्तर:
(ख) विष्णु प्रभाकर
प्रश्न 2.
इस एकांकी में लेखक ने किसकी बदलती सोच का चित्रण किया है ?
(क) लोगों की
(ख) नवयुवकों की
(ग) नेताओं की
(घ) लेखकों की।
उत्तर:
(ख) नवयुवकों की
प्रश्न 3.
पुरानी पीढ़ी किसके परिवेश में रहना चाहती है ?
(क) नैतिकता के
(ख) त्याग के
(ग) मानवता के
(घ) इन सभी के।
उत्तर:
(घ) इन सभी के
प्रश्न 4.
नई पीढ़ी किसके परिवेश में रहना चाहती है ?
(क) अनैतिकता
(ख) उच्छृखलता
(ग) स्वच्छंदता
(घ) इन सभी के।
उत्तर:
(घ) इन सभी के।
कठिन शब्दों के अर्थ :
आलोकित करना-दिखाना। अर्जी-प्रार्थना-पत्र। बदइन्तजामी-ठीक से प्रबन्ध न होना। बुर्जुआई भाषा-सीधी और साफ़ बात कहना। इश्तहार-विज्ञापन। लकीर पीटना-बनी-बनाई परम्पराओं पर चलना। विध्वंस करना-नष्ट करना। सीलन-चिपचिपापन, गीला और सूखे के बीच की स्थिति। यन्त्रणाकष्ट, दुःख। निरर्थक-जिसका काई अर्थ न हो।
टूटते परिवेश Summary
टूटते परिवेश एकांकी का सार
टूटते परिवेश’ एकांकी के लेखक विष्णु प्रभाकर हैं। इसमें उन्होंने देश में नवयुवकों की बदल रही सोच को दिखाया है। ज्ञान-विज्ञान और नागरीकरण का जो प्रभाव हमारे धार्मिक, सामाजिक या नैतिक जीवन पर पड़ा है, उसे एक परिवार की जीवन स्थितियों के माध्यम से दिखाया गया है। इसमें पुरानी पीढ़ी नैतिकता, सिद्धान्त, त्याग, मानवीयता धर्म और चरित्र के परिवेश में रहना चाहती है और नई पीढ़ी उच्छंखल, अनैतिक, अव्यवहारिक तथा स्वच्छंद वातावरण में रहना चाहती है। इसी से परिवार में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है और परिवार टूटकर बिखर जाता है। प्रस्तुत एकांकी तीन अंकों में बँटा हुआ है। किन्तु घटनास्थल एक ही है।
एकांकी की कथावस्तु एक मध्यवर्गीय परिवार की नई पुरानी दो पीढ़ियों के संघर्ष और परिवार टूटने की कहानी है। नाटक के आरम्भ में परिवार के मुखिया विश्वजीत और उसकी पत्नी करुणा तथा बेटियों मनीषा और दीप्ति का परिचय दिया गया है। दीवाली का शुभ दिन है और विश्वजीत चाहते हैं कि सारा परिवार मिल बैठकर पूजा करे किन्तु नई पीढ़ी तो पूजा अर्चना को एक ढोंग समझती है। यही नहीं नई पीढ़ी भारतीय सभ्यता का मज़ाक भी उड़ाती है। परिवार का कोई भी सदस्य पूजा करने घर नहीं पहुँचता। सब को अपनी-अपनी पड़ी है। सभी दीवाली घर पर नहीं होटलों और क्लबों में मनाने चले जाते हैं। . एकांकी के दूसरे अंक में नई और पुरानी पीढ़ी का संघर्ष उग्र रूप धारण कर लेता है। मनीषा किसी विधर्मी से विवाह कर लेती है। दीप्ति हिप्पी बनी आवारा घूमती है और सिगरेट भी पीने लगी है। विवेक, जो सिवाए अर्जियाँ लिखने के कोई दूसरा काम नहीं जानता, विद्रोह करने पर उतारू हो जाता है और उनका साथ देने की बात कहता है।
विश्वजीत परिवार के सदस्यों (नई पीढ़ी) के व्यवहार से दुःखी होकर आत्महत्या करने घर से निकल जाते हैं घर पर सारा परिवार एकत्र होता है किन्तु किसी के पास अपने परिवार के मुखिया को ढूँढ़ने का समय नहीं है। हर कोई न कोई बहाने बनाता है। किन्तु विश्वजीत स्वयं ही लौट आते हैं कि यह सोचकर कि आत्महत्या का अर्थ है मौत और मौत का एक दिन निश्चित है। तब आत्महत्या क्यों की जाए।
विश्वजीत के लौट आने पर उसका बड़ा बेटा शरद् तो उनसे हाल-चाल भी नहीं पूछता है और अपने काम की जल्दी बता कर चला जाता है। परिवार के दूसरे सदस्य भी चले जाते हैं और पुरानी पीढ़ी के लोग विश्वजीत और उसकी पत्नी अकेले रह जाते हैं इस आशा में कि उनके बच्चे एक-न-एक दिन लौट आएँगे।