Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 6 पवनदूत Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 6 पवनदूत
Hindi Guide for Class 11 PSEB पवनदूत Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण के वियोग में राधा की व्यथा का चित्रण करें।
उत्तर:
श्रीकृष्ण के वियोग में राधा दिन-रात रोती रहती थी। उसकी आँखों में सदा आँसू भरे रहते थे और वह अत्यंत उदास दिखाई देती थी। राधा भी चातक की तरह वियोग की पीड़ा की अधिकता के कारण दिन-रात पिउ-पिउ रटती रहती थी। उसके मन में श्रीकृष्ण से मिलन की लालसा दिन-रात बढ़ती जा रही थी। उसे सुखद वस्तुएँ और क्रियाएँ भी दुखदायी प्रतीत होती थीं।
प्रश्न 2.
पवन ने आकर राधा के दुःख को किस प्रकार कम किया ?
उत्तर:
प्रात:कालीन सुगन्धित पवन ने राधा के घर में प्रवेश कर राधा के घर को सुगन्धि से भर दिया। उसने अपनी सुगंध से राधा के व्यथित मन की पीड़ा को कम करने का प्रयास किया। इसी उद्देश्य से पवन ने राधा के आँसुओं को बड़ी शालीनता से पृथ्वी पर गिरा दिया। उसने तरह-तरह की क्रियाओं से उसकी विरह-वियोग से उत्पन्न पीड़ा को कम करना चाहिए।
प्रश्न 3.
राधा ने पवन को दूत बना कर क्यों भेजा ?
उत्तर:
राधा ने पवन को दूत बनाकर इसलिए भेजा कि जब से श्रीकृष्ण मथुरा गए थे तो उन्होंने वहाँ से उन्हें कोई सन्देश नहीं भेजा था। राधा चाहती थी कि पवन मथुरा में श्रीकृष्ण के पास जाए और उसकी सारी विरह-गाथा उन को कह सुनाये।
प्रश्न 4.
राधा ने पवन को श्रीकृष्ण का परिचय किस प्रकार दिया ?
उत्तर:
राधा ने पवन को श्रीकृष्ण का परिचय देते हुए कहा कि श्रीकृष्ण के शरीर का रंग जल से भरे नए बादलों के समान साँवला, उनके नेत्र कमल के फूल के समान बड़े-बड़े हैं। उनकी मुख-मुद्रा सौम्यता की मूर्ति तथा उनके वचन अमृत रस में भीगे हुए हैं।
प्रश्न 5.
मुरझाये फूल, फूले कमलदल और मलिन लतिका जैसे उपमानों के द्वारा राधा ने अपनी व्यथा किस प्रकार व्यक्त की ?
उत्तर:
प्रस्तुत उपमानों के द्वारा राधा ने अपनी विरह-व्यथा व्यक्त करते हुए कहा है कि वह श्रीकृष्ण के वियोग में मुरझाए फूल के समान हो गयी है। खिले हुए कमल की पत्तियों को श्रीकृष्ण के सामने दुखित भाव से जल-पुंज में डुबा कर अपने आँसुओं को जताना चाहती है तथा सूखी लता को श्रीकृष्ण के कदमों में डालकर अपनी विरह वेदना से उन्हें परिचित करवाना है।
प्रश्न 6.
‘पवन दूत’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
‘पवन दूत’ कविता में कवि ने राधा की विरह-व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कवि ने राधा द्वारा पवन को दूती बना कर अपनी विरह-वेदना श्रीकृष्ण तक पहुँचाने का प्रयास किया है। राधा ने पवन से श्रीकृष्ण की चरण धूलि को लेकर आने को कहा है। उस चरण-धूलि को अपने शरीर पर लगाकर अपना जीवन सफल बनाना चाहती है।
PSEB 11th Class Hindi Guide पवनदूत Important Questions and Answers
अति लघसरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘प्रिय प्रवास’ का कौन-सा प्रसंग वायु को दूत बना कर भेजने से सम्बन्धित है ?
उत्तर:
‘पवनदूत प्रसंग’।
प्रश्न 2.
कृष्ण के वियोग में राधा अपना समय कैसे बिताया करती थी ?
उत्तर:
रो-रो कर चिंता सहित।
प्रश्न 3.
राधा के आँस किसे भिगो रहे थे ?
उत्तर:
धरती को।
प्रश्न 4.
सुगंधित वायु ने राधा के घर में कहाँ से प्रवेश किया था ?
उत्तर:
वातायनों से।
प्रश्न 5.
पवन ने राधा के आँस कहाँ से कहाँ गिराये थे ?
उत्तर:
राधा की पलकों से धरती पर।
प्रश्न 6.
पवन की प्यार वाली क्रियाएँ राधा को कैसी लगी थीं ?
उत्तर:
वैरिणी जैसी।
प्रश्न 7.
राधा ने पवन को कौन-सी गाली दी थी ?
उत्तर:
पापिष्ठे (पापी)।
प्रश्न 8.
श्रीकृष्ण का रंग कैसा था ?
उत्तर:
नव जलद-सा (नए-नए बादलों जैसा)।
प्रश्न 9.
श्रीकृष्ण से बिछुड़ कर राधा को किस पर भरोसा था ?
उत्तर:
वायु पर।
प्रश्न 10.
राधा ने वायु से कौन-सा संबंध जोड़ा था ?
उत्तर:
बहन का (भगिनी)।
प्रश्न 11.
मथुरा नगरी किस नदी के किनारे बसी हुई थी ?
उत्तर:
यमुना नदी।
प्रश्न 12.
राधा ने किसके कष्टों को कम करने का पवन से आग्रह किया था ?
उत्तर:
मेहनत करने वाले श्रमिकों और किसानों का।
प्रश्न 13.
राधा ने पवन को किस के साथ खेलने के लिए कहा था ?
उत्तर:
कमल के फूलों, पेड़-पौधों और बेलों का।
प्रश्न 14.
मथुरा के मंदिर किस के समान ऊँचे वर्णित किए गए हैं ?
उत्तर:
सुमेरु पर्वत जैसे।
प्रश्न 15.
श्रीकृष्ण की आँखों को क्या कहा गया है ?
उत्तर:
ज्योति उत्कीर्णकारी।
प्रश्न 16.
श्रीकृष्ण के वस्त्र किस रंग के थे ?
उत्तर:
पीले रंग के।
प्रश्न 17.
श्रीकृष्ण की काली-काली लटें कहाँ की शोभा बढ़ा रही थीं ?
उत्तर:
गालों और कनपटियों की (गंडशोभी)।
प्रश्न 18.
श्रीकृष्ण की भुजाएँ किस के समान शक्तिशाली और लंबी थीं ?
उत्तर:
हाथी की सूंड जैसी।।
प्रश्न 19.
अंभोजनेत्रा’ शब्द के द्वारा किस की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर:
राधा।
प्रश्न 20.
कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है ?
उत्तर:
वार्णिक छंद।
प्रश्न 21.
कवि ने किस बोली का प्रमुखता से प्रयोग किया है ?
उत्तर:
खड़ी बोली।
प्रश्न 22.
किस शैली का प्रयोग प्रमुख रूप से किया गया है ?
उत्तर:
अतुकांत।
प्रश्न 23.
कवि ने किस काव्य गुण का प्रमुखता से प्रयोग किया है ?
उत्तर:
प्रसाद गुण।
प्रश्न 24.
कवि की शब्द-योजना मुख्य रूप से कैसी है ?
उत्तर:
तत्सम-तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग।
बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का सुप्रसिद्ध महाकाव्य कौन सा है ?
(क) प्रिय प्रवास
(ख) प्रिय प्यार
(ग) प्रिय पाजेब
(घ) प्रिय-प्रिया।
उत्तर:
(क) प्रिय प्रवास
प्रश्न 2.
‘प्रिय प्रवास’ महाकाव्य किस भाषा में रचित है ?
(क) ब्रज
(ख) अवधी
(ग) खड़ी बोली
(घ) बुंदेली।
उत्तर:
(ग) खड़ी बोली
प्रश्न 3.
श्री कृष्ण ब्रज छोड़कर कहां चले गये थे ?
(क) मथुरा
(ख) काशी
(ग) वाराणसी
(घ) अयोध्या।
उत्तर:
(क) मथुरा
प्रश्न 4.
मथुरा नगरी किस नदी के तट पर विराजमान है ?
(क) गंगा
(ख) यमुना
(ग) सरस्वती
(घ) कावेरी।
उत्तर:
(ख) यमुना।
पवनदूत सप्रसंग व्याख्या
(1) नाना चिन्ता सहित दिनों को राधिका थी बिताती।
आँखों को थी सजल रखती उन्मना थी बिताती।
शोभा वाले जलद-वपु की हो री चातकी थी।
उत्कण्ठा थी परम प्रबल वेदना वर्द्धिता थी॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
सजल = आँसुओं भरे। उन्मना = उदास । जलद-वपु = मेघ जैसे शरीर वाले श्री कृष्ण। उत्कण्ठा = लालसा, बेचैनी । परम प्रबल = तीव्र । वेदना = पीड़ा, कष्ट, दुःख। वर्द्धिता = बढ़ रही।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी द्वारा लिखित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के ‘पवन दूत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि राधा जी की वियोग दशा का वर्णन कर रहे हैं।
व्याख्या :
कवि कहता है कि श्रीकृष्ण के वियोग में व्यतीत होने वाले प्रत्येक दिन को राधा रोते हुए और नाना प्रकार की दुश्चिंताओं में ग्रस्त होकर व्यतीत करती थी। उसकी आँखों में सदैव आँसू भरे रहते थे और वे अत्यन्त उदास दिखाई देती थी। वह मेघों जैसे कांति के शरीर वाले श्रीकृष्ण की वह चातकी बनी हुई थी, जैसे स्वाति नक्षत्र के बादलों के लिए व्याकुल होकर चातकी पिउ-पिउ रटती रहती थी, उसी प्रकार राधा जी भी श्रीकृष्ण के नाम की रट लगाए रहती थी। उनके मन में श्रीकृष्ण से मिलन की लालसा अधिक बढ़ती जा रही थी और श्रीकृष्ण की अनुपस्थिति के कारण उनकी पीड़ा बढ़ती ही जा रही थी।
विशेष :
- कवि का भाव यह है कि राधा श्रीकृष्ण जी के वियोग में व्याकुल थी। वह चातकी की तरह अपने प्रिय के मिलन के लिए तड़प रही थी।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- अनुप्रास तथा रूपक अलंकार है।
- वियोग शृंगार रस विद्यमान है।
(2) बैठी खिन्ना एक दिवस वे गेह में थी अकेली।
आके आँसू युगल दृग में थे धरा को भिगोते।
आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गंध को ले।
प्रातः वाली सुपवन इसी काल-वातायनों से॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
एग दिवस = एक दिन । खिन्ना = उदास। दृग-युगल = दोनों आँखें। धरा = पृथ्वी। सदन = घर। सद्गंध = सुन्दर सुगंध। वातायनों = झरोखों।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी’ द्वारा लिखित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के पवन दूत प्रसंग से लिया गया है। इन पंक्तियों में कवि श्री कृष्ण जी के मथुरा चले जाने पर राधा जी की विरह दशा का वर्णन करता है।
व्याख्या :
कवि राधा जी की विरह दशा का वर्णन करते हुए कहता है कि एक दिन वे बड़ी उदास, अपने घर में अकेली बैठी थीं। उनकी आँखों में बहते आँसू पृथ्वी को भिगो रहे थे कि तभी उस घर में, फूलों की सुगन्धि से युक्त प्रातः वेला की पवन ने झरोखों के मार्ग से प्रवेश किया।
विशेष :
- राधा श्रीकृष्ण जी के वियोग में निरन्तर रोए जा रही थी।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- वियोग श्रृंगार रस विद्यमान है।
(3) आके पूरा सदन उसने सौरभीला बनाया।
चाहा सारा कलुष तन का राधिका के मिटाना।
जो बूंदें थीं सजल दृग के पक्ष में विद्यमाना।
धीरे-धीरे क्षिति पर उन्हें सौम्यता से गिराया॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
सौरभीला = सुगन्धित। सदन = घर। कलुष = क्लेश, व्यथा। सजल दृग = आँसू भरे नेत्र। पक्ष = बरौनियों, भवें। क्षिति = पृथ्वी। सौम्यता = मधुरता।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ जी द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के ‘पवन-दूत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने सुगन्धित पवन का वर्णन किया है। यह पवन राधा के मन की पीड़ा दूर करने की चेष्टा कर रही थी।
व्याख्या :
कवि कहता है कि मन्द गति से प्रवाहित प्रात:कालीन सुगन्धित वायु ने राधा जी के घर को सुगन्धि से भर दिया और वह वायु राधा जी के मन की व्यथा को मिटाने की चेष्टा करने लगी। इसी उद्देश्य से उसने राधा जी के आंसू भरे नेत्रों की बरौनियों में विद्यमान अश्रुकणों को बड़ी ही मधुरतापूर्वक अर्थात् शालीनता से पृथ्वी पर गिरा दिया।
विशेष :
- प्रकृति भी राधा जी के वियोग दूर करने के लिए उसके आस-पास सुगन्धित हवा बहा रही थी।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- अनुप्रास तथा उपमा अलंकार है।
- वियोग शृंगार रस विद्यमान है।
(4) श्री राधा को यह पवन की प्यार वाली क्रियाएँ।
थोड़ी-सी न सुखद हुई हो गई वैरिणी-सी।
भीनी-भीनी महक सिगरी शान्ति उन्मूलती थी।
पीड़ा देती व्यथित चित को वायु की स्निग्धता थी।
कठिन शब्दों के अर्थ :
भीनी-भीनी = हल्की-हल्की। महक = खुशबू। सिगरी = सारी। उन्मूलती = नष्ट कर रही थी। व्यथित = दुःखी। स्निग्धता = सरसता।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के ‘पवनदूत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने सुगन्धित पवन से राधा जी को होने वाली पीड़ा का वर्णन किया है।
व्याख्या :
कवि कहता है कि वायु की यह प्रेम से भरी शालीन क्रिया भी राधा जी को सुख देने वाली न लग कर दुःखमयी और शत्रुतापूर्ण लग रही थी। वायु से जो हल्की-हल्की खुशबू आ रही थी, उससे उनके मन की शांति नष्ट हो रही थी और वायु की यह सरसता उनके दुखी चित को पीड़ा दे रही थी।
कवि का अभिप्राय यह है कि श्रीकृष्ण के वियोग में राधा जी के मन की व्यथा सुगन्धित वायु के संस्पर्श से और भी अधिक बह गई थी, क्योंकि वायु की इस क्रिया से राधा जी को संयोगकाल में श्रीकृष्ण से संस्पर्श करने की याद ताज़ा हो उठी थी।
विशेष :
- सुगन्धित हवा ने राधाजी की व्याकुलता को और बढ़ा दिया। उन्हें उस समय श्री कृष्ण जी के मिलन की याद आने लगी थी।
- भाषा प्रवाहमयी संस्कृत तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- अनुप्रास तथा उपमा अलंकार है।
- वियोग शृंगार रस विद्यमान है।
(5) संतापों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हो।
धीरे बोली सदुख उससे श्रीमती राधिका यो।
“प्यारी प्रातः पवन इतना क्यों मुझे है सताती।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से॥”
कठिन शब्दों के अर्थ :
संतापों = दुःखों। विपुल = अत्यधिक। कलुषित = दूषित। क्रूरता = कठोरता।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय- प्रवास’ के ‘पवन-दूत’ प्रसंग से ली गई हैं। इसमें कवि ने श्री कृष्ण के वियोग में संतप्त राधा की दशा का वर्णन किया है।
व्याख्या :
प्रात:कालीन सुगंधित वायु के प्रभाव स्वरूप जब राधा जी ने अपने मन की व्यथा को बहते देखा तो बड़े ही दुःखपूर्वक मन्द स्वर में उससे कहने लगी कि अरी ! प्रभातकालीन प्रिय वायु ! तू मुझे इस प्रकार क्यों दुखी कर रही है ? क्या तुम भी मेरी तरह समय की कठोरता से दूषित हो गई हो। क्या तुझ पर भी मेरी विरह की छाया पड़ गई है जिससे तू दूषित होकर क्रूर, कठोर या निर्दय हो गई हो ?
विशेष :
- कवि का भाव यह है कि राधाजी सुगन्धित हवा चलने से और अधिक दुःखी हो जाती है। वह प्रभात बेला से उसे और दुःखी नहीं करने के लिए कहती है।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- अनुप्रास अंलकार है।
- वियोग शृंगार रस विद्यमान है।
(6) मेरे प्यारे नव-जलद-से, कंज-से नेत्रवाले,
जाके आये न मधुवन से औ न भेजा सँदेसा।
मैं रो-रो के प्रिय-विरह से बावरी हो रही हूँ,
जाके मेरी सब कथा स्याम को तू सुना दे॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
नव = नये। जलद = बादल। कंज = कमल। मधुवन = मथुरा। बावरी = पगली। स्याम = श्रीकृष्ण।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ हरिऔध द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के पवन-दूत’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें कवि ने राधा जी द्वारा पवन को दूत बनाकर श्री कृष्ण जी के पास मथुरा भेजने का वर्णन किया है। वह अपनी पीड़ा श्री कृष्ण जी के पास पहुँचाना चाहती है।
व्याख्या :
राधा प्रातः कालीन वायु की पहले तो तीव्र भर्त्सना करती है फिर उससे सखीपना स्थापित करते हुए कहती है कि हे प्रात:कालीन पवन ! मेरे प्रिय श्रीकृष्ण नए बादल के समान है, उनके शरीर का वर्ण बादलों जैसा सांवला है। वे कमल के समान नेत्रों वाले हैं, जो मथुरा जाकर फिर नहीं लौटे हैं और न ही वहां जाकर कोई सन्देश भेजा है। मैं श्रीकृष्ण के वियोग में रो-रोकर पागल हो रही हूँ। हे पवन ! तू श्रीकृष्ण के पास जाकर मेरी सारी कथा सुना देना।
विशेष :
- राधा जिस हवा के बहने के कारण दुखी थी, बाद में उसे ही अपनी दूत बना कर श्री कृष्ण के पास संदेश भेजती है।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- अनुप्रास तथा रूपक अलंकार है।
- वियोग शृंगार रस विद्यमान है।
(7) कालिन्दी के तट पर घने रम्य उद्यान वाला।
ऊंचे-ऊंचे धवल-गृह की पंक्तियों से प्रशोभी।
जो है न्यारा नगर मथुरा प्राण प्यारा वहीं है।
मेरा सूना सदन तज के तू वहां शीघ्र ही जा।
कठिन शब्दों के अर्थ :
कालिन्दी = यमुना। रम्य = सुन्दर। उद्यान = बाग-बगीचे। धवल-गृह = सफेद घर। प्रशोभी = शोभायमान न्यारा । न्यारा = अलग। सदन = घर । तज के = छोड़ कर।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ हरिऔध द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के ‘पवन दूत’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें कवि ने राधा जी द्वारा पवन दूत को मथुरा का मार्ग बताने के विषय का वर्णन किया है।
व्याख्या :
राधा जी वायु को मथुरा जाने का रास्ता बताती हुई कहती है कि मथुरा नगर यमुना के तट पर बना है और वह नगर घने और सुन्दर बाग-बगीचों वाला है। वहां ऊंचे-ऊंचे सफेद घरों की पंक्तियाँ शोभायमान हो रही हैं। जो मथुरा नगर दूसरे नगरों से अलग है वहीं मेरे प्राण प्यारे श्रीकृष्ण रहते हैं। अतः मेरा यह सूना घर छोड़ कर तुम शीघ्र वहां जाओ और श्रीकृष्ण तक पहुँच जाओ।
विशेष :
- राधा जी हवा को श्री कृष्ण का पता बता कर शीघ्र वहाँ जाने के लिए कहती है।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- वियोग शृंगार रस विद्यमान है।
(8) जाते-जाते अगर पथ में क्लान्त कोई दिखावे।
तो जा के सन्निकट उसकी क्लान्तियों को मिटाना।
धीरे-धीरे परस करके गात उत्ताप खोना।
सद्गंधों से श्रमित जन को हर्षित-सा बनाना॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
क्लान्त = थका हुआ। सन्निकट = पास जाकर। क्लान्तियों = थकावट। परस करके = स्पर्श करके। गात = शरीर के। उत्ताप = दुःख, व्याकुलता। खोना = दूर करना। सद्गंधों से = अपनी सुगन्धि से। श्रमित = थके हुए। दूषित-सा = प्रफुल्लित।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ हरिऔध द्वारा रचित महाकाव्य प्रिय-प्रवास के ‘पवन दूत’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें कवि ने राधा जी द्वारा पवन दूत को यह समझाने का प्रयास किया है कि मार्ग में यदि कोई थका मुसाफ़िर मिले तो उसे ठण्डक पहुंचाने का प्रयास करने का वर्णन है।
व्याख्या :
राधा जी मथुरा का मार्ग बताती हुई वायु से कहती है कि मथुरा जाते समय यदि तुम्हें रास्ते में थका हुआ व्यथित मुसाफिर दिखाई दे तू उसके समीप जाकर उसकी थकान और कष्टों को दूर करने की कृपा करना। उसके शरीर को धीरे-धीरे मधुर रीति से स्पर्श करते हुए उसकी थकान और कष्टों को दूर करना। अपनी सुगन्धि से उस थके हुए मुसाफ़िर को प्रफुल्लित कर देना।
विशेष :
- राधा जी हवा से दूसरे मुसाफ़िरों की सहायता करने के लिए कहती है।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- वियोग शृंगार रस विद्यमान है।
(9) तेरे जैसी मृदु पवन से सर्वथा शान्ति-कामी,
कोई रोगी पथिक पथ में जो कहीं भी पड़ा हो।
तो तू मेरे सकल दुख को भूल के, धीर होके,
खोना सारा कलुष उसका शान्ति सर्वांग होना॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
मृदु = कोमल । सर्वथा = भली प्रकार, पूरी तरह । शान्ति-कामी = शान्ति चाहने वाला। कलुष = रुग्णता। सर्वांग = सभी अंगों की।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य प्रिय प्रवास के ‘पवन दूत’ प्रसंग से ली गई हैं। इनमें कवि ने श्री कृष्ण के वियोग में संतप्त राधा की दशा का वर्णन किया है।
व्याख्या :
राधा पवन को दूत बना कर श्रीकृष्ण के पास भेजती हुई कहती है कि हे सखी! तेरे जैसी कोमल पवन से जब कोई शान्ति की कामना करता हुआ रोगी मुसाफ़िर रास्ते में पड़ा हो, तो तू मेरे सारे दुःखों को भूलकर, थोड़ा धीरे होकर उसका सारा रोग और कष्ट हर लेना और उसके शरीर के सब अंगों को शान्ति प्रदान करना।
विशेष :
- राधा जी हवा से दूसरे मुसाफ़िरों की सहायता करने के लिए कहती है।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- वियोग शृंगार रस विद्यमान है।
(10) जाते-जाते पहुँच मथुरा-धाम में उत्सुका हो,
न्यारी शोभा वन नगर की देखना मुग्ध होना।
तू होवेगी चकित लख के मेरु-से मन्दिरों को,
आभावाले कलश जिनके दूसरे अर्क-से हैं।
कठिन शब्दों के अर्थ :
मथुरा-धाम = मथुरा नगरी। न्यारी = अनोखी। लखके = देखकर। मेरु-से = सुमेरु पर्वत से। (कहते हैं कि सुमेरु पर्वत सोने का था।) कलश = मन्दिरों के कलश (छत्र) अर्क-से = सूर्य के समान ।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के ‘पवन दूत’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें कवि ने राधा जी द्वारा मथुरा नगरी की सुन्दरता का वर्णन किया है।
व्याख्या :
राधा पवन को दूत बनाकर श्रीकृष्ण के पास भेजती हुई कहती है कि तू बड़ी उत्सुकता से आगे बढती जाना और मथुरा नगरी पहुँच कर वहां की अनोखी शोभा को देखती हुई मोहित हो उठना। तू वहां के ऊंचे और सुमेरु पर्वत के समान सुनहरी मन्दिरों को देखेगी तो आश्चर्य से चकित रह जाएगी। उन मन्दिरों के चमकते हुए कलश शोभा में दूसरे सूर्य जैसे हैं।
विशेष :
- मथुरा नगरी की सुंदरता का वर्णन किया गया है।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- उपमा तथा अनुप्रास अलंकार है।
- वियोग श्रृंगार रस विद्यमान है।
(11) तू देखेगी जलद-तन को जा वहीं तद्गता हो,
होंगे लोने नयन उनके ज्योति-उत्कीर्णकारी।
मुद्रा होगी वह बदन की मूर्ति-सी सौम्यता की,
सीधे-साधे वचन उनके सिक्त पीयूष होंगे।
कठिन शब्दों के अर्थ :
जलद-तन = मेघ की सी कान्ति के शरीर वाले श्रीकृष्ण। तद्गता हो = तन्मय होकर। लोने = सुन्दर । ज्योति उत्कीर्णकारी = जिनमें से ज्योति (प्रकाश) निकल रहा हो। मुद्रा = भाव भंगिमा। बदन = मुख । सौम्यता = शालीनता। सिक्त = भीगे हुए। पीयूष = अमृत।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ हरिऔध द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के ‘पवन दूत’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें कवि ने श्री कृष्ण जी की सुन्दरता का वर्णन किया है।
व्याख्या :
राधा पवन से कहती है कि जब तू मथुरा जाएगी तो तुझे मेघों जैसी श्याम कान्ति वाले मेरे प्रिय श्रीकृष्ण इन राजमहलों में ही दिखाई देंगे, जिनकी शारीरिक कान्ति और शोभा इतनी अधिक मनोहर है कि तू उन्हें देखते हुए तन्मय हो उठेगी, अपनी सुध-बुध खो बैठेगी। श्रीकृष्ण के नेत्र बहुत हो सुन्दर दिखाई देंगे, उनमें ज्योति की किरणें फूटती रही होंगी। उनके मुख की भाव भंगिमा तुझे ऐसी दिखाई देगी मानो वह शालीनता की प्रतिमूर्ति है जबकि उनके मुख से निकलने वाली वाणी अमृत रस में डूबी हुई प्रतीत होगी।
विशेष :
- कवि का भाव यह है कि राधा जी हवा को श्री कृष्ण जी के रूप-रंग के विषय में बताती है।
- भाषा प्रवाहमयी है संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- उपमा, रूपक अलंकार है।
- वियोग शृंगार रस विद्यमान है।
(12) नीले कुंजों सदृश उनके गात की श्यामता है,
पीला प्यारा वसन कोटि में पहनते हैं फबीला।
छूटी काली अलक मुख की कान्ति को है बढ़ाती,
सदवस्त्रों में नवल तन की फटती-सी प्रभा है।
कठिन शब्दों के अर्थ :
कुंजों = फूलों का समूह । गात = शरीर। श्यामता = सांवलापन। वसन = वस्त्र। कटि = कमर। फबीला = सजने वाला। अलक = लूट। सद्वस्त्रों = सुन्दर वस्त्रों। नवल-तन = नया शरीर अर्थात् युवावस्था को प्राप्त करता शरीर। प्रभा = प्रकाश, कांति।।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियां अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवनदूत’ प्रसंग से ली गई हैं। इनमें कृष्ण वियोग में संतप्त राधा पवन को अपना दूत बना कर श्री कृष्ण के पास भेजती है।
व्याख्या :
राधा पवन को श्रीकृष्ण की रूपाकृति से परिचित करवाती हुई आगे कहती है कि श्रीकृष्ण के शरीर का सांवलापन खिले हुए नील कमलों की पंखुड़ियों के समान है। वे कमर में पीला वस्त्र पहनते हैं जो उनके सांवले शरीर पर अत्यधिक शोभा पाता है। उनके मुख पर धुंघराले बालों की लट उनके मुख से सौन्दर्य और कान्ति को और अधिक बढ़ा रही है। उनके सुन्दर वस्त्रों से युवावस्था में प्रवेश करते हुए शरीर की कांति फूट रही है। उनकी दिव्य शारीरिक कांति उनके वस्त्रों में भी नहीं छिप रही है।
विशेष :
- राधा जी हवा को श्री कृष्ण जी के रूप-रंग से परिचित करवा रही है। उन्हें डर है कि हवा उनका संदेश श्री कृष्ण के स्थान पर किसी अन्य को न दे दे।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- अनुप्रास तथा अलंकार है।
- शृंगार रस का वर्णन है।
(13) जाते ही छू कमल-दल से पाँव को पूत होना,
काली काली अलक मृदुता से कपोलों को हिलाना॥
क्रीड़ायें भी कलित करना ले दुकूलादिकों को,
धीरे-धीरे परस तन को, प्यार की बेलि बोना॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
कमल-दल-से = कमल के पत्तों के समान कोमल। पूत होना = पवित्र होना। अलक = लटें। मृदुता = कोमलता। कपोलों = गालों। क्रीड़ायें = खेल। कलित = सुन्दर। दुकूलदिकों की = दुपट्टे आदि की। परस = स्पर्श करके।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ हरिऔध रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवन-दूत’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें राधा ने पवन दूत को श्री कृष्ण का स्पर्श करने के लिए कहा है।
व्याख्या :
राधा पवन को दूत बना कर श्रीकृष्ण के पास भेजते हुए कह रही है कि तू जैसे ही मेरे प्रिय श्रीकृष्ण के भवन में प्रवेश करे उनके कमल की पंखुड़ियों के समान कोमल चरणों का स्पर्श करके तू अपने को पवित्र कर लेना। उस के बाद तू उनकी काली-काली सुन्दर लटाओं को बड़ी कोमलता से उनके गालों पर लहराना, हिलाना और उनके दुपट्टे आदि के साथ भी सुन्दर खेल खेलना, उन लटाओं को लहरा भी देना। फिर उनके कोमल शरीर का स्पर्श करके प्यार की बेल बोना, उनके हृदय में प्रेमलता अंकुरित कर देना।
विशेष :
- राधा जी हवा से श्रीकृष्ण जी को छूने के लिए कहती है। इससे श्रीकृष्ण जी को उनके प्यार का एहसास होगा।
- अनुप्रास तथा उपमा अलंकार है।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- श्रृंगार इस का वर्णन है।
(14) कोई प्यारा कुसुम कुम्हला भौन में जो पड़ा हो,
तो प्यारे के चरण पर ला डाल देना उसे तू।
यों देना ए पवन ! बतला फूल-सी एक बाला,
म्लाना हो हो कमल-पग को चूमना चाहती है।
कठिन शब्दों के अर्थ :
कुसुम = फूल। मौन = भवन। बाला = लड़की। म्लाना = दुखी।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवन-दूत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने विभिन्न साधनों द्वारा राधा जी की विरह पीड़ा श्रीकृष्ण तक पहुँचाने का वर्णन किया है।
व्याख्या :
राधा पवन से कहती है जो तुझे कोई प्यारा-सा मुरझाया फूल भवन में पड़ा हुआ मिले तो उस मुरझाये फूल को मेरे प्रिय के चरणों में लाकर डाल देना। इस तरह हे पवन ! तू श्रीकृष्ण को यह बतला देना कि एक फूलसी कोमल लड़की दुखी होकर उनके चरण कमलों को चूमना चाहती है।
विशेष :
- राधा जी हवा के द्वारा श्रीकृष्ण के चरणों में मुरझाए फूल अर्पित करके अपना दुःख प्रकट करना चाहती है।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता।
- उपमा तथा अनुप्रास अलंकार है।
- वियोग शृंगार रस है।
(15) लाके फूले कमल-दल को श्याम के सामने ही
थोड़ा-थोड़ा विपुल जल में व्यग्र हो हो डुबाना।
यों देना तू भगिनी जतला एक अंभोजनेत्रा,
आँखों को हो विरह-बिधुरा वारि में बोरती है।
कठिन शब्दों के अर्थ :
फूले = खिले हुए। विपुल = अथाह । बहुत अधिक व्यग्र हो हो = व्याकुल हो-हो कर। भगिनी = बहन। अंभोजनेत्रा = कमल जैसी आंखों वाली। विरह-बिधुरा = विरह में पागल या दुखी। वारि में बोरती है = आंसुओं में डुबोती है।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवन दूत’ प्रसंग से ली गई हैं। इनमें कवि ने कृष्ण वियोग में संतप्त राधा के पवन को दूत बना कर श्री कृष्ण के पास भेजने का वर्णन किया गया है।
व्याख्या :
पवन से राधा कहती है कि हे बहन ! तू किसी खिले हुए कमल के फूल की पंखुड़ियों को उड़ाकर श्रीकृष्ण के सामने दुखित भाव से धीरे-धीरे जलपुंज में डुबोना और इस प्रकार श्रीकृष्ण को अहसास करा देना कि कमल जैसी आँखों वाली एक बाला राधा विरह-व्यथा के कारण अपनी आँखों को आँसुओं के जल में इसी प्रकार डुबो रही है तथा विरह कातर होकर वह सदा रोती रहती है।
विशेष :
- राधा जी हवा से कहती है कि वह अपने आचरण से श्रीकृष्ण जी को यह अनुभव कराए की राधा जी उनसे बिछुड़ कर बहुत दुखी है।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- रूपक तथा अनुप्रास अलंकार है।
- वियोग श्रृंगार रस है।
(16) सूखी जाती मलिन लतिका जो धरा में पड़ी हो,
तो तू पांवों के निकट उसको श्याम के ला गिराना।
यों सीधे से प्रकट करना प्रीति से वंचिता हो,
मेरा होना अति मलिन और सूखते नित्य जाना॥
कठिन शब्दों के अर्थ :
मलिन = दुखी, मुरझाई हुई। लतिका = बेल। धरा = धरती, पृथ्वी। वंचित = रहित।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के पवन दूत’ प्रसंग से ली गई हैं। इनमें कवि ने कृष्ण वियोग में संतप्त राधा के पवन को दूत बना कर श्री कृष्ण के पास भेजने का वर्णन किया गया है।
व्याख्या :
राधा पवन को सम्बोधित करती हुई कहती है कि यदि कोई सूखी हुई मैली-कुचैली, गंदी-सी लता को धरती पर पड़े हुए देखो तो हे बहन ! उस लता को उठा कर श्रीकृष्ण के चरणों के निकट ला गिराना और उस सरल सीधी रीति से यह भाव व्यक्त कर देना कि उनके प्रेम से रहित होकर राधा दिन-रात सूखती जा रही है, क्षीण होती जा रही है।
विशेष :
- राधा जी हवा को उनका दुःख व्यक्त करने के साधन बताती है। वह अपने भावों से श्री कृष्ण जी को उनका दुःख बताए।
- भाषा प्रवाहमयी है। तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- उपमा अलंकार है।
- वियोग शृंगार रस विद्यमान है।
(17) यों प्यारे को विदित करके सर्व मेरी व्यथायें,
धीरे-धीरे वहन करके पाँव की धूलि लाना।
थोड़ी-सी भी चरण-रज जो ला न देगी हमें तू,
हा! कैसे तो व्यथित चित को बोध मैं दे सकंगी।
कठिन शब्दों के अर्थ :
विदित करके = जता कर। वहन करके = उठाकर। बोध = आश्वासन, ज्ञान, समझ।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवन-दूत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने पवन दूत से श्री कृष्ण के चरणों की धूल लाने का वर्णन किया है।
व्याख्या :
पवन को संबोधित करते हुए राधा कहती है कि इस प्रकार प्रिय श्रीकृष्ण को मेरी सारी पीड़ाएँ बता देना और धीरे से उनके चरणों की धूलि को धीरे-से उठा कर ले आना। यदि तू मुझे श्रीकृष्ण की थोड़ी-सी भी चरण धूलि ला देगी तो मैं किसी प्रकार अपने विरह से दुखी चित्त को आश्वासन दे सकूँगी।
विशेष :
- राधा जी हवा से उनका दुःख श्री कृष्ण को व्यक्त करने के लिए कहती है तथा श्रीकृष्ण जी के चरणों की धूल अपने साथ लाने के लिए कहती है। इससे उनका विरह दुःख कम हो जाएगा।
- भाषा प्रवाहमयी है।
- उपमा अलंकार है।
- वियोग शृंगार रस विद्यमान है।
(18) जो ला देगी चरण-रज तू तो बड़ा पुण्य लेगी,
पूता हूँगी परम उसको अंग में मैं लगाके।
पोतुंगी जो हृदय-दल में वेदना दूर होगी,
डालूंगी मैं शिर पर उसे आँख में ले मलूंगी।
कठिन शब्दों के अर्थ :
पूता हूँगी = पवित्र हो जाऊंगी। अंग में = शरीर में। पोतूंगी = लिपटाऊँगी, लगाउँगी। ‘वेदना = पीड़ा।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवन-दृत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने पवन दूत से श्री कृष्ण के चरणों की धूल लाने का वर्णन किया है।
व्याख्या :
राधा पवन से प्रार्थना करती हुई कहती है कि यदि तू मुझे श्रीकृष्ण के चरणों की धूलि ला देगी तो तेरा बड़ा पुण्य होगा। मैं उसे अपने शरीर के अंगों पर लगाकर पवित्र हो जाऊँगी, जब मैं उस चरण धूलि को अपने शरीर पर लगाऊँगी तो मेरी विरह व्यथा दूर हो जाएगी। मैं उस पवित्र चरण धूलि को सिर पर डालूँगी और उसे अपनी आँखों में भी डालूँगी।
विशेष :
- राधा जी श्रीकृष्ण जी के चरणों की धूलि को अपने शरीर पर लगाकर, उनके होने का अनुभव करना चाहती थी।
- भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
- अनुभव करना चाहती थी।
- वियोग शृंगार रस विद्यमान है।
(19) पूरी होवें न यदि तुझसे अन्य बातें हमारी,
तो तू मेरी विनय इतनी मान ले औ चली जा।
छूके प्यारे कमल पग को प्यार के साथ आ जा,
जी जाऊँगी हृदय तल में मैं तुझी को लगाके॥”
कठिन शब्दों के अर्थ : विनय = प्रार्थना।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवन दूत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने पवनदूत द्वारा चरणों की धूलि नहीं लाने पर, उसे केवल चरणों के स्पर्श को ही अपने साथ लाने का वर्णन किया है।
व्याख्या :
राधा पवन से प्रार्थना करते हुए कहती है कि यदि तुम से दूसरी बातें पूरी न हो सकें तो तू मेरी इतनी प्रार्थना को मान मथुरा नगरी में श्रीकृष्ण के पास चली जाओ और वहाँ श्रीकृष्ण के प्यारे चरणों को बड़े प्यार के साथ छूकर लौट आना तब मैं तुझे अपने दुखी हृदय से लगा कर सुख पाऊँगी।
विशेष :
श्री राधा जी हवा से कहती है कि यदि वह कुछ भी करने में असमर्थ है तो वह श्रीकृष्ण जी को छूकर ही आ जाए। वह उसके द्वारा उनकी छुवन को महसूस कर लेंगी।
भाषा प्रवाहमयी है।
वियोग शृंगार रस विद्यमान है।
पवनदूत Summary
पवनदूत जीवन परिचय
‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ का जन्म निजामबाद जिला आजमगढ़ उत्तर प्रदेश में सन् 1865 ई० को हुआ था। उन्होंने अपने नाम-क्रम ‘सिंह’ (हरि) तथा अयोध्या (औध) को बदलकर ‘हरिऔध’ उपनाम से काव्य रचना की। ‘हरिऔध’ जी का गद्य और पद्य दोनों पर पूर्ण अधिकार था। किन्तु इन्हें काव्य जगत में विशेष प्रसिद्धि मिली। इनके रचनाकाल के समय खड़ी बोली अपने शैशवकाल में थी। इनकी मृत्यु सन् 1941 ई० में हो गई थी।
इनका प्रिय प्रवास महाकाव्य अत्यंत लोकप्रिय हुआ। इसमें भगवान श्री कृष्ण के ब्रज से मथुरा चले जाने पर गोपियों की विरह का मार्मिक चित्रण हुआ है। खड़ी बोली में इस प्रसंग को लेकर पहला काव्य रचा गया है। कवि ने अपने सभी ग्रन्थों में बड़े उपयुक्त छंदों, रसों और अलंकारों का वर्णन किया है। इन ग्रन्थों में प्राकृतिक छटा के बड़े सुन्दर उदाहरण हैं।
पवनदूत का सार
कविता का सार ‘पवन दूत’ कविता अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित प्रबन्ध काव्य ‘प्रिय-प्रवास’ से ली गई है। इसमें कवि ने राधा जी के विरह का वर्णन किया है। श्री कृष्ण जी के मथुरा जाने के बाद उनके वियोग में उनकी प्रेयसी राधा की हालत दयनीय हो जाती है। एक दिन वह श्री कृष्ण जी के वियोग में घर में बैठी आँसू बहा रही थी, उसी समय प्रातः कालीन सुगंधित पवन आकर सम्पूर्ण वातावरण को सुहावना बना देती है। परन्तु पवन का झोंका राधा जी की विरह वेदना को और बढ़ा देता है। उस समय राधा जी पवन को अपना दूत बनाकर श्री कृष्ण जी के पास अपनी विरह वेदना का संदेश भेजती है। वे पवन को मथुरा और श्री कृष्ण का परिचय देती है। वे पवन को श्री कृष्ण जी के चरणों की धूल लाने के लिए कहती है। क्योंकि राधा जी श्री कृष्ण जी के चरणों की धूलि को अपने तन पर लगाकर अपना जीवन सार्थक बनाना चाहती हैं।