PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 8 वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 8 वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 8 वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो

Hindi Guide for Class 11 PSEB वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवयित्री ने हिमाचल की किस पुकार और ‘उद्धि’ की गर्जन से किस ओर संकेत किया है ?
उत्तर:
युद्ध के साथ वसन्त का भी आगमन हो चुका है। इसलिए वीर युवक दुविधा में है कि उसे क्या करना चाहिए। हिमाचल पुकार-पुकार कर और सागर गरज-गरज कर यही पूछ रहा है कि वीरों का वसन्त कैसा होना चाहिए? उसे युद्ध के मैदान में वसन्त मनाना चाहिए।

प्रश्न 2.
वीरांगना अपने मन में चिन्तित क्यों हो रही है ?
उत्तर:
वीरांगना अपने मन में इसलिए चिन्तित हो रही है इधर बसन्त ऋतु का आगमन हुआ है और उधर पति युद्ध में जाने की तैयारी किये बैठा है। उसके हृदय में अनकहा भय का भाव विद्यमान है पर साथ ही साथ देश के प्रति निष्ठा और उसकी रक्षा के प्रति ज़िम्मेदारी का भाव भी उपस्थित है। वह भविष्य के विषय में कुछ कर नहीं सकती। जहाँ कोई उपाय न हो वहाँ चिंता तो होती ही है।

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प्रश्न 3.
कवयित्री अतीत से क्या पूछना चाहती है ? 40 शब्दों में वर्णन करें।
उत्तर:
कवयित्री अतीत (बीते हुए समय) को अपनी चुप्पी तोड़कर यह बताने के लिए कहती है कि लंका दहन क्यों हुआ था? कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत का युद्ध क्यों हुआ था? इन दोनों ही घटनाओं के सम्बन्ध में उसे अपने असीम अनुभव बताने चाहिए।

प्रश्न 4.
हल्दीघाटी और सिंहगढ़ का दुर्ग किन महावीरों की स्मृतियाँ जगाना चाहता है ?
उत्तर:
हल्दीघाटी (मेवाड़ में एक स्थान) में महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ था। अतः हल्दीघाटी महाराणा प्रताप की स्मृति को जगाना चाहती है। सिंहगढ़ के दुर्ग में छत्रपति शिवाजी के दाहिने हाथ ताना जी ने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया था। अत: यह दुर्ग ताना जी की वीरता की स्मृति जगाना चाहता है।

प्रश्न 5.
कवि भूषण’ एवं ‘चन्दवरदाई’ में क्या समानता थी ?
उत्तर:
दोनों कवि वीर रस की कविता लिखने के लिए विख्यात हैं। उनकी कविता नवयुवकों में उत्साह भर देती है। उन्हें युद्ध में लड़ने की प्रेरणा देती थी। वे केवल कवि ही नहीं थे बल्कि स्वयं भी योद्धा थे और युद्धभूमि में शत्रु के सामने डट कर खड़े हो जाते थे। वे दोनों अपने देश के लिए मर-मिटना जानते थे।

प्रश्न 6.
कवियों की कलम पर अंकुश क्यों लगा हुआ था ?
उत्तर:
कवयित्री ने प्रस्तुत पंक्ति में देश के परतन्त्र होने के समय लेखकों, साहित्यकारों एवं कवियों की भी कलम बंधी होने का संकेत दिया है। अंग्रेज़ी शासन में किसी को भी अपनी बात कहने या लिखने का अधिकार नहीं था। भारत उस समय अंग्रेजों का गुलाम जो था। देश में उस समय भूषण और चन्दवरदाई जैसे कवि नहीं थे जो अपनी कविता द्वारा सोयी हुई जनता में स्वतन्त्रता की आग फिर से भड़का दे।

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प्रश्न 7.
धनी लोग परमात्मा की उपासना किस प्रकार करते हैं ?
उत्तर:
धनी लोग परमात्मा की सेवा में कई तरह की बहुमूल्य वस्तुएँ भेंट कर उसकी उपासना करते हैं। वे धूमधाम से, साजबाज़ से मन्दिर में आते हैं और मोती, माणिक जैसी बहुमूल्य वस्तुएँ लाकर चढ़ाते हैं। उनकी भक्ति में भावना के साथ-साथ दिखावे का भाव भी जुड़ा रहता है।

प्रश्न 8.
‘धूप, दीप, नैवेद्य नहीं, झाँकी का श्रृंगार नहीं’ में कवयित्री का वास्तव में किस ओर संकेत है ?
उत्तर:
प्रस्तुत काव्य पंक्ति में कवयित्री का वास्तव में पूजा की सामग्री की ओर संकेत है जो उस ग़रीबनी के पास नहीं है, उसके पास तो प्रेम भरा हृदय ही है। उसके पास केवल श्रद्धापूर्ण भक्ति का भाव ही है।

प्रश्न 9.
समर्पण की निष्कपट भावना का चित्रण ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ कविता में हुआ है-स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने समर्पण की निष्कपट भावना का सुन्दर चित्रण किया है। वह ग़रीबनी है। उसके पास पूजा की सामग्री भी नहीं है। झाँकी सजाने का सामान भी नहीं है। दान दक्षिणा के लिए भी कुछ नहीं है फिर भी वह सबसे बड़ी पुजारिन सिद्ध होती है क्योंकि उसके पास प्रेम भरा हृदय जो है और साथ ही अर्पण की ऊँची भावना भी भरी हुई है।

प्रश्न 10.
‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ या ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ कविता का भावार्थ लिखें।
उत्तर:
(क) ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ कविता की कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने राष्ट्र प्रेम का वर्णन किया है। वसन्त आगमन तथा युद्ध में वीर का जाना एक साथ आ गया है। वीर युवक दुविधा में है कि उसे क्या करना चाहिए परन्तु वीरों के लिए वसन्त युद्ध का मैदान है। इसलिए कवयित्री तरह-तरह के उदाहरण देकर वीरों को युद्ध के लिए प्रेरित करती है। कवयित्री इस बात का दुःख है कि परतन्त्र देश में लेखकों की कलम भी प्रतिबंधित है इसलिए वीरों में शक्ति भरने का काम कवयित्री कर रही है उन्हें उनके कर्त्तव्य को पूरा करने के लिए प्रेरित कर रही है।

(ख) ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ कविता में कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने एक अनजान, दिखावे से दूर ईश्वर प्रेम की प्यासी दासी का वर्णन किया है। वह ईश्वर भक्ति के लिए अपने साथ माया रूपी वस्तुएँ जैसा वस्त्र, सोनाचांदी, प्रसाद आदि साथ लेकर नहीं जाती, उसके पास केवल प्रेम से भरा हृदय है जिसे वह ईश्वर चरणों में समर्पित करती है। अपने आत्मसमपर्ण को वह ईश्वर पर छोड़ देती है कि यह उनकी इच्छा है चाहे उसकी भेंट को अपना ले या ठुकरा दें।

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PSEB 11th Class Hindi Guide वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:
सन् 1904 में नाग पंचमी को।

प्रश्न 2.
सुभद्रा कुमारी चौहान के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर:
ठाकुर राम नाथ सिंह।

प्रश्न 3.
सुभद्रा कुमारी चौहान के पति का क्या नाम था ?
उत्तर:
ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान।

प्रश्न 4.
‘वीरों का कैसा हो वसंत’ नामक कविता के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
सुभद्रा कुमारी चौहान।

प्रश्न 5.
वसंत की मादकता किसे अपनी ओर खींच रही है ?
उत्तर:
वसंत की मादकता वीर पुरुषों को अपनी ओर खींच रही है।

प्रश्न 6.
समुद्र गर्जना करता हुआ किससे प्रश्न पूछता है ?
उत्तर:
समुद्र गर्जना करते हुए वीर पुरुषों से प्रश्न पूछता है।

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प्रश्न 7.
वीर पुरुषों के लिए वसंत क्या होता है ?
उत्तर:
वीर पुरुषों के लिए वसंत युद्ध का मैदान होता है।

प्रश्न 8.
कवयित्री सुभद्रा किसे अपनी चुप्पी तोड़ने के लिए कहती है ?
उत्तर:
अतीत को।

प्रश्न 9.
कवयित्री अतीत को किसे और क्या बताने को कहती है ?
उत्तर:
देश के वीरों को आग लगने की बात।

प्रश्न 10.
कवयित्री ने लंका और ……. की याद दिलाई है ।
उत्तर:
कुरुक्षेत्र।

प्रश्न 11.
भारतवासियों को रांग रंग छोड़कर …………… में कूदना चाहिए ।
उत्तर:
युद्ध क्षेत्र में।

प्रश्न 12.
राणा प्रताप के साथ कवयित्री ने किस अन्य वीर पुरुष के नाम का उल्लेख किया है ?
उत्तर:
तानाजी मूलसरे।

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प्रश्न 13.
राणा प्रताप की सेना ने हल्दी घाटी के मैदान में किसकी सेना के छक्के छुड़ाए थे ?
उत्तर:
अकबर।

प्रश्न 14.
कवयित्री वीरों को उन युद्धों के माध्यम से किसकी याद दिलाती है ?
उत्तर:
उनके कर्तव्यों की।

प्रश्न 15.
वीरों की वीरता देखने के लिए कवयित्री किसके प्रार्थना करती है ?
उत्तर:
हल्दी घाटी और सिंहगढ़।

प्रश्न 16.
ताना जी ने किस पर विजय प्राप्त की थी ?
उत्तर:
सिंहगढ़ पर।

प्रश्न 17.
भूषण और चन्दवरदाई किस प्रकार के कवि थे ?
उत्तर:
वीर रस के कवि थे।

प्रश्न 18.
आजकल किस प्रकार के कवियों का अभाव है ?
उत्तर:
वीर रस के कवियों का।।

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प्रश्न 19.
कवयित्री मंदिर में ………….. करने जाती है ।
उत्तर:
प्रभु की पूजा।

प्रश्न 20.
कवयित्री के पास देवता की पूजा करने के लिए क्या नहीं था ?
उत्तर:
धूप और दीपक।

प्रश्न 21.
कवयित्री किस प्रकार मंदिर में गई थी ?
उत्तर:
खाली हाथ।

प्रश्न 22.
कवयित्री क्या चढ़ाने के लिए मंदिर आई थी ?
उत्तर:
अपने हृदय को।

प्रश्न 23.
कौन पूजा करने का तरीका नहीं जानता था ?
उत्तर:
कवयित्री।

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प्रश्न 24.
‘ठुकरा दो या प्यार करो’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
सुभद्रा कुमारी चौहान।

प्रश्न 25.
कलम कब परतंत्र हो जाती है ?
उत्तर:
परतंत्र देश में।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सुभद्रा कुमारी चौहान किस काव्यधारा की कवयित्री थीं ?
(क) राष्ट्रीय काव्य धारा
(ख) भाव काव्य
(ग) प्रेम काव्य
(घ) गीति काव्य।
उत्तर:
(क) राष्ट्रीय काव्य धारा

प्रश्न 2.
‘वीरों का कैसा हो वसंत’ कविता में कवयित्री ने किनका गुणगान किया है ?
(क) राजाओं का
(ख) देशभक्त वीरों का
(ग) गद्दारों का
(घ) नेताओं का।
उत्तर:
(ख) देशभक्त वीरों का

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प्रश्न 3.
कवयित्री मंदिर में क्या चढ़ाना चाहती थी ?
(क) हृदय
(ख) पुण्य
(ग) पुण्यावली
(घ) अंतरांजलि।
उत्तर:
(क) हृदय

प्रश्न 4.
कलम किस देश में परतंत्र हो जाती है ?
(क) स्वतंत्र
(ख) परतंत्र
(ग) गणतंत्र
(घ) स्वतंत्रता।
उत्तर:
(ख) परतंत्र।

वीरों का कैसा हो वसन्त सप्रसंग व्याख्या

1. वीरों का कैसा हो वसंत ?
आ रही हिमाचल से पुकार,
है उदधि गरजता बार-बार
प्राची, पश्चिम, भू, नभ अपार,
सब पूछ रहे हैं दिग-दिगन्त,
वीरों का कैसा हो वसंत ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
हिमाचल = हिमालय। उदधि = समुद्र । प्राची = पूर्व दिशा। अपार = असीम। दिग्दिगन्त = दिशाएँ।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य कृति ‘मुकुल’ में संकलित ‘वीरों का कैसा हो वसन्त ?’ शीर्षक कविता में से लिया गया है। वसन्त ऋतु मादकता का प्रतीक है। श्रृंगार रस के लिए भी यह ऋतु अति उपयुक्त मानी गयी है क्योंकि इस ऋतु में काम विशेष रूप से उद्दीप्त होता है। कवयित्री प्रस्तुत कविता में प्रश्न कर रही है कि वीर पुरुषों को वसन्त कैसे मनानी चाहिए। रतिक्रीड़ा में लीन रहना चाहिए या फिर युद्ध भूमि में जाकर अपनी वीरता और शौर्य का प्रदर्शन करना चाहिए।

व्याख्या :
कवयित्री प्रश्न करती है कि वीरों को वसन्त ऋतु कैसे मनानी चाहिए ? हिमालय से भी यही पुकार आ रही है। यही प्रश्न पूछा जा रहा है। समुद्र भी गर्जना करता हुआ यही पूछ रहा है। पूर्व दिशा, पश्चिम दिशा, पृथ्वी और असीम आकाश एवं सभी दिशाएँ भी यही प्रश्न पूछ रही हैं कि वीरों का वसन्त कैसा हो ? उन्हें वसन्त कैसे मनानी चाहिए।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री का भाव यह है कि वसन्त ऋतु के आगमन पर वीर पुरुष को युद्ध के लिए उसकी मातृभूमि पुकार वही है। उसे ऐसे समय में क्या करना चाहिए अर्थात् वीरों का वसन्त घर में हो या युद्ध भूमि में इसका निर्णय वीर पुरुष को करना चाहिए।
  2. भाषा शैली सहज तथा सरल है।
  3. मानवीकरण तथा अनुप्रास अलंकार है।
  4. ओज गुण है। वीर रस है।

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2. भर रहीं कोकिला इधर तान,
मारू बाजे पर उधर गान,
है रंग और रण का विधान,
मिलने आए हैं आदि-अन्त,
वीरों का कैसा हो वसन्त ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
कोकिला = कोयल। तान भर रही = मीठा राग गा रही। मारू बाजा = युद्ध भूमि में बजने वाला बाजा। रंग = राग रंग, भोग-विलास। रण = युद्ध। विधान = संरचना, तैयारी। आदि = आरम्भ।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ से ली गई हैं, जिसमें कवयित्री ने वीरों से पूछा है कि उन्हें वसन्त कैसे मनाना चाहिए ?

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि वसन्तागमन पर कोयल ने मीठे गीत गाने शुरू कर दिये हैं; वह वातावरण में मादकता भर रही है और उधर युद्ध आरम्भ होने के बाजे बजने लगे हैं जो सूचना दे रहे हैं कि अब युद्ध शुरू होने वाला है। कवयित्री कहती है कि वसन्त आगमन पर रंग, यौवन का आनन्द मनाने का समय और युद्ध दोनों की एक साथ तैयारी हुई है।

कवयित्री के कहने का तात्पर्य यह है कि वीर पुरुष को एक ओर तो वसन्त की मादकता उसे काम-चेष्टाओं की ओर आकर्षित करती है तो दूसरी ओर स्वतन्त्रता संग्राम भी छिड़ गया है। युद्ध भूमि और कर्त्तव्य उसे अपनी ओर बुला रहे हैं। प्रेम और कर्त्तव्य दोनों एक साथ आ खड़े हुए हैं। दोनों विरोधी बातें हैं। इनका एक साथ आना ऐसा लगता है जैसे आदि और अन्त मिलने आए हों। इसलिए कवयित्री प्रश्न करती है कि ऐसे समय में वीर पुरुष अपनी वसन्त कैसे मनाएं ?

विशेष :

  1. प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री का भाव यह है कि वसन्त की मादकता वीर पुरुष को अपनी ओर खींच रही है। परन्तु उसका कर्त्तव्य उसे पुकार रहा है। उसके मन में दोनों को लेकर उथल-पुथल मची हुई है।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. विरोधाभास और अनुप्रास अलंकार है।
  4. ओजगुण है। वीर रस है।

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3. फूली सरसों ने दिया रंग,
मधु लेकर आ पहुंचा अनंग,
वधु वसुधा पुलकित अंग-अंग
है वीर वेश में किन्तु कन्त ?
वीरों का कैसा हो बसन्त ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
मधु = शहद, मिठास। अनंग = काम देव। वसुधा = धरती। कन्त = स्वामी, पति, प्रिय।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य कृति ‘मुकुल’ में संग्रहीत ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’, शीर्षक कविता से ली गई हैं। इनमें कवयित्री ने वीरों की मनोस्थिति का वर्णन किया है। वसन्त और युद्ध दोनों एक समय में आ गया है। वीर पुरुष की पत्नी वसन्त देखकर प्रसन्न है परन्तु जब पति को युद्ध में जाने के लिए तैयार देखती है तो दुविधा में पड़ जाती है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि वसन्त में सरसों फूल कर रंग बिखेर रही है, चारों ओर पीली-पीली सरसों बिखरी हुई है। भँवरे भी फूलों से पराग लेकर गुन-गुन करते हुए प्रसन्नचित घूम रहे हैं। ऐसे पृथ्वी रूपी दुल्हन भी प्रसन्नता से झूम रही है। पृथ्वी प्रकृति के कारण तथा वीरांगना वसन्त के कारण खुशी से नाच रही है। परन्तु उसका पति तो वसन्त की मादकता को छोड़कर युद्धभूमि में जाने के लिए तैयार खड़ा है। वीर पुरुषों का वसन्त कैसा होना चाहिए ? उसे देश के लिए मर-मिटना चाहिए या प्रेम-भाव में डूबे रहना चाहिए ?

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री का भाव यह है कि वीर पुरुषों के जीवन में वसन्त का अर्थ युद्ध भूमि में अपने प्राणों की आहुति देने से होता है। वीर पुरुष को कोई बसन्त नहीं रोक सकता है।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. पुनरुक्ति, अनुप्रास तथा रूपक अलंकार है।
  4. ओजगुण है। वीर रस है।

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4. गलबाहें हों, या हो कृपाण
चल चितवन हो या धनुष-बाण,
हो रस-विलास या दलित-त्राण,
अब यही समस्या है दुरन्त,
वीरों का कैसा हो वसन्त ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
गलबाहें = प्रिया की बाँहें गले में, भाव आलिंगन से है। चल चितवन = चंचल दृष्टि, कटाक्ष । रस-विलास = शृंगार रस और आनन्द मनाना भाव प्रणय क्रीड़ा या काम क्रीड़ा से। दलित-त्राण = दीन लोगों की रक्षा करना, उन्हें भयमुक्त करना। दुरन्त = कठिन, प्रचण्ड, अति गम्भीर।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य कृति ‘मुकुल’ में संग्रहीत ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ शीर्षक कविता से ली गई हैं। वसन्त और युद्ध एक ही समय पर आ जाने पर पुरुष के मन में दुविधा चल रही है कि उसे क्या करना चाहिए ? इन पंक्तियों में कवयित्री ने एक वीर पुरुष की दुविधा पूर्ण मनः स्थिति का वर्णन किया है।

व्याख्या :
कवयित्री वसन्त ऋतु के आगमन पर वीरों के सामने प्रणय क्रीड़ा और युद्ध भूमि में जाना दोनों विकल्प एक साथ आ जाने पर प्रश्न करती है कि क्या वीर पुरुष अपनी प्रेमिका की बाँहों का हार अपने गले में धारण करे या फिर युद्ध भूमि में जाकर तलवार धारण करें। क्या वीर पुरुष अपनी प्रेमिका के चंचल नयनों के इशारों की ओर आकर्षित हो या फिर युद्ध भूमि में जाकर धनुष-बाण धारण करें। क्या वीर पुरुष रस-विलास, प्रणय क्रीड़ा में लीन हों या कि दलित लोगों की रक्षा करे अथवा उन्हें भय मुक्त करें। अब यही समस्या अति गम्भीर बनी हुई है कि वीर पुरुष अपनी वसन्त कैसे मनाएँ।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री का भाव है कि वीर पुरुष के सामने समस्या है कि उसे प्रिय की बाहें या तलवार में से किसे चुनना चाहिए। वीर पुरुषों के लिए वसन्त कैसा होना चाहिए ? इसका निर्णय उसे स्वयं करना चाहिए।
  2. भाषा शैली सरल तथा सहज है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. ओज गुण है। वीर रस है।

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5. कह दे अतीत अब मौन-त्याग,
लंके ! तुझ में क्यों लगी आग ?
ऐ कुरुक्षेत्र ! अब जाग, जाग,
बतला अपने अनुभव अनन्त
वीरों का कैसा हो वसन्त ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
अतीत = बीता हुआ समय। मौन = चुप्पी। अनन्त = जिसका कोई अन्त न हो, अनगिनत, बेशुमार।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य कृति ‘मुकुल’ में संकलित ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ शीर्षक कविता से ली गई हैं। इसमें कवयित्री वीर पुरुष से अपना मौन त्यागने के लिए कहती है और उसे उन महापुरुषों की याद दिलाती है जिन्होंने बड़े-बड़े युद्ध लड़े थे।

व्याख्या :
कवयित्री अपने प्रश्न-कि वीरों का वसन्त कैसा हो-का उत्तर बीते हुए समय से याद दिलाने के लिए कहती है। वह कहती है कि हे अतीत (बीते हुए युग) अब तू अपनी चुप्पी तोड़ दे। ऐ लंका ! मेरे देश के इन वीरों को बता कि तुझ में आग क्यों लगी थी? ऐ कुरुक्षेत्र ! अब तुम एक बार फिर जाग उठो और अपने अनगिनत अनुभव बताओ कि वीरों का वसन्त कैसा होना चाहिए ?

लंका और कुरुक्षेत्र की याद दिलाने से कवयित्री का तात्पर्य यह है कि लंका को आग हनुमान जी ने वीरता धारण करते हुए लगाई थी और कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन आदि वीरों ने अपना अद्भुत पराक्रम दिखलाया था। उसी प्रकार वीरता को धारण कर आज के भारतवासियों को राग-रंग छोड़ कर स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु युद्ध में कूद पड़ना चाहिए।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवयित्री का भाव यह है कि वीर पुरुष अब तुझे चुप नहीं रहना चाहिए। तुझे यह निर्णय कर लेना चाहिए कि वीरों के लिए किस वसंत का अधिक महत्त्व है।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. मानवीकरण, अनुप्रास तथा पुनरुक्ति अलंकार है।

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6. हल्दी घाटी के शिला-खण्ड,
ऐ दुर्ग ! सिंह-गढ़ के प्रचण्ड,
राना ताना का कर घमण्ड,
दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलन्त
वीरों का कैसा हो वसन्त ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
हल्दी घाटी = मेवाड़ में एक स्थान-जहाँ राणा प्रताप और अकबर की सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ था। शिला-खण्ड = पहाड़ियों के टुकड़े-पत्थर, चट्टानें। सिंह गढ़ = दक्षिण में स्थित एक मज़बूत और ऊँचा किला जिसे जीतने के लिए छत्रपति शिवाजी के दाहिने हाथ ताना जी ने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया था तथा अपना बलिदान दे दिया था। प्रचण्ड = जबरदस्त, पक्का तथा ऊँचा। राना = राणा प्रताप। ताना = तानाजी मूलसरे। स्मृतियाँ = यादें। ज्वलन्त = उज्ज्वल।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्यकृति ‘मुकुल’ में संग्रहीत ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ से लिया गया है। इसमें कवयित्री वीरों को उन युद्धों के माध्यम से उनके कर्तव्य की याद दिलाना चाहती है, जिनके कारण छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप अमर हो गए हैं।

व्याख्या :
कवयित्री वीरों को वसन्त कैसे मनाना चाहिए ? प्रश्न का उत्तर देने के लिये राणा प्रताप और तानाजी मूलसरे की वीरता देखने वाले स्थलों हल्दी घाटी और सिंहगढ़ से प्रार्थना करती है कि वे मेरे देश के नवयुवक वीरों को बताएँ कि वीरों ने वसन्त कैसे मनाया था।

कवयित्री कहती है कि हे हल्दी घाटी की पर्वत शिलाओं, हे प्रचण्ड (बहुत दृढ़ एवं ऊँचे) सिंहगढ़ दुर्ग, आप राणा प्रताप और तानाजी के गौरव एवं शौर्य की उज्ज्वल यादों को मेरे देश के नवयुवक वीरों को बताओ कि किस प्रकार राणा प्रताप ने हल्दी घाटी के मैदान में अकबर की सेना के छक्के छुड़ाए थे और किस प्रकार ताना जी ने सिंहगढ़ पर विजय प्राप्त करने के लिए वीरतापूर्वक लड़ते हुए अपना बलिदान किया था। आप बताओ कि वीरों को वसन्त कैसे मनाना चाहिए?

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवयित्री का भाव यह है कि वीरो पुरुषों के लिए वसन्त युद्ध का मैदान होता है। वहाँ पर उसे अपने कर्तव्य की बलि-बेदी पर चढ़कर वसन्त मनाना है।
  2. भाषा शैली सरल तथा सहज है।
  3. मानवीकरण तथा अनुप्रास अलंकार है।
  4. वीर रस है।

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7. भूषण अथवा कवि चन्द नहीं
बिजली भर दे वह छन्द नहीं
है कलम बंधी, स्वच्छन्द नहीं,
फिर हमें बतावे कौन ? हन्त !
वीरों का कैसा हो वसन्त ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
भूषण = रीतिकालीन का एक कवि जिन्होंने छत्रपति शिवाजी और छत्रसाल की वीरता की प्रशंसा में वीर रस की कविताएँ लिखीं। चन्द = कवि चन्दरवरदाई-जो पृथ्वीराज चौहान के मित्र एवं दरबारी कवि थे। उन्होंने वीर रस की कविता रची। छन्द = कविता के छन्द । कलम बंधी परतन्त्रता के कारण लेखक स्वतन्त्रतापूर्वक लिख नहीं सकते उनकी कलम बंधी हुई है। स्वच्छन्द = स्वतन्त्र । हन्त = खेद है, दुःख है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य कृति ‘मुकुल’ में संग्रहीत ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ से लिया गया है। इसमें कवयित्री चन्दरवरदाई और भूषण कवियों को याद कर रही है। इन कवियों की लेखनी कायर से कायर पुरुष में भी वीरता का संचार कर देती थी।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि आज भारत परतन्त्र है। नवयुवकों में वीरता जगाने की आवश्यकता है किन्तु हाय, आज भूषण और चन्दवरदाई जैसे वीर रस की कविता लिखने वाले कवि नहीं हैं जो अपनी कविता द्वारा नवयुवकों में वीर रस जगाया करते थे। आज कोई भी ऐसी कविता लिखने वाला नहीं है जो देशवासियों की नसों में बिजली भर दे अथवा वीरता का संचार करे। इसका कारण यह है कि कवियों की, लेखकों की कलम भी, परतन्त्र होने के कारण, बंधी हुई है वे अपना मनचाहा लिखने के लिए स्वतन्त्र नहीं हैं। ऐसे में फिर हमें और कौन बताएगा कि वीरों का वसन्त कैसा होना चाहिए ? बस इसी बात का हमें खेद है, दःख है।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री का भाव है कि अब पहले जैसे कवि नहीं रहे हैं जो लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जगा सके। परतन्त्र देश में कलम भी परतन्त्र हो जाती है इसलिए वीरों को उनके कर्त्तव्य याद दिलाने में सभी असमर्थ हैं।
  2. भाषा शैली सरल तथा सहज है।
  3. विरोधाभास तथा अनुप्रास अलंकार है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 8 वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो

तुकरा दो या प्यार करो सपसंग व्याख्या

1. देव ! तुम्हारे कई उपासक
कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे
कई रंग की लाते हैं
धूमधाम से, साजबाज से
वे मन्दिर में आते हैं।
मुक्ता-मणि बहुमूल्य वस्तुएँ
लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ :
उपासक = पूजा करने वाले। कई ढंग से = कई तरह से। कई रंग की = कई तरह की। धूमधाम से= समारोह मनाते हुए। साजबाज = सजधज कर। मुक्ता = मोती। मणि = बहुमूल्य पत्थर, हीरे।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्यकृति ‘मुकुल’ में संकलित कविता ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ में से लिया गया है। इसमें कवयित्री ने अपने नि:श्छल आत्मनिवेदन का वर्णन किया है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि हे प्रभु ! तुम्हारी पूजा करने वाले कई भक्त कई तरह से तुम्हारी पूजा करने के लिए आते हैं। वे तुम्हारी सेवा में भेंट करने के लिए अपने साथ कई तरह की बहुमूल्य वस्तुएँ लाते हैं। हे प्रभु ! ऐसे तुम्हारे भक्त बड़ी धूमधाम से सजधज कर मन्दिर में आते हैं और हीरे-मोती जैसी कीमती वस्तुएँ लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवयित्री का भाव यह है कि ईश्वर की पूजा के लिए लोग मन्दिर में कुछ-न-कुछ लेकर आते हैं। सभी अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. भक्ति रस है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।

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2. मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी
जो कुछ साथ नहीं लायी
फिर भी साहस कर मन्दिर में
पूजा करने को आयी।

कठिन शब्दों के अर्थ : गरीबिनी = निर्धन।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्यकृति में संग्रहीत ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ शीर्षक कविता से अवतरित हैं। इनमें कवयित्री स्वयं को गरीब पुजारिन बताती है जिसके पास भगवान को अर्पित करने के लिए कुछ भी नहीं है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि मैं ही ऐसी निर्धन हूँ जो पूजा में मन्दिर में देवता को चढ़ाने के लिए कोई भी वस्तु साथ नहीं लायी हूँ फिर भी हिम्मत करके मन्दिर में मैं पूजा करने चली आयी हूँ।

विशेष :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री का भाव यह है कि वह एक गरीब पुजारिन है जो खाली हाथ भक्ति भाव में मन्दिर में आई है।
भाषा शैली सरल और सहज है।
भक्ति रस है। माधुर्य गुण है।

3. धूप-दीप-नैवेद्य नहीं हैं
झांकी का श्रृंगार नहीं।
हाय ! गले में पहनाने को
फूलों का भी हार नहीं

                     कैसे करूँ कीर्तन,
                    मेरे स्वर में माधुर्य नहीं।
                    मन का भाव प्रकट करने को
                    वाणी में चातुर्य नहीं॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
नैवेद्य = देवता के लिए भोग की मिठाई या मीठी वस्तु। झाँकी = देवता की मूर्ति । शृंगार = सजावट। माधुर्य = मिठास। चातुर्य = चतुराई, निपुणता।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्यकृति में संग्रहीत ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ शीर्षक कविता से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री के यह भाव व्यक्त करती है कि उसके पास कुछ नहीं जिससे वह अपना भक्ति भाव प्रकट करे।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि मेरे पास तो देवता की पूजा करने के लिए धूप और दीपक भी नहीं है और न ही भोग लगाने के लिये कोई मीठी वस्तु ही है। मेरे पास तो देवता की मूर्ति को सजाने के लिए कोई सामान भी नहीं है यहाँ तक कि देवता के गले में पहनाने के लिए फूलों का हार भी नहीं है। मैं खाली हाथ मंदिर में ईश्वर की पूजा करने के लिए आई हूँ। मैं कीर्तन भी नहीं कर सकती क्योंकि न तो मेरे गले में मिठास है और न ही अपने मन के भावों को प्रकट करने वाली वाणी की चतुराई है। मैं हर तरह से खाली हूँ।।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवयित्री का भाव यह है कि उसके पास भगवान को चढ़ाने के लिए लौकिक वस्तु नहीं है। पूजा सामग्री, भोग लगाने के लिए प्रसाद आदि भी नहीं है।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. भक्ति रस है। माधुर्य गुण है।

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4. नहीं दान है नहीं दक्षिणा
खाली हाथ चली आयी
पूजा की विधि नहीं जानती
फिर भी नाथ ! चली आयी

               पूजा और पुजापा प्रभुवर
               इसी पुजारिन को समझो
               दान दक्षिणा और निछावर
               इसी भिखारिन को समझो

कठिन शब्दों के अर्थ :
विधि = तरीका। नाथ = हे प्रभु। पुजापा = पूजा की सामग्री। निछावर = भेंट।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान काव्यकृति ‘मुकुल’ में संग्रहीत ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ कविता से अवतरित है। इसमें कवयित्री स्वयं को प्रभु भक्ति की प्रक्रिया से अन्जान बताती है। इसलिए वह स्वयं को प्रभु चरणों में अर्पित करनी आयी है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि हे प्रभु ! मेरे पास न तो दान देने के लिए कुछ है न ही दक्षिणा देने के लिए। मैं तो खाली हाथ मन्दिर में आपके दर्शनों के लिए चली आई हूँ। मैं तो पूजा करने का तरीका भी नहीं जानती। फिर भी चली आई हूँ। हे प्रभु ! पूजा और पूजा की सामग्री आप इसी पुजारिन को समझो। इसी भिखारिन को, गरीबिनी को दान, दक्षिणा और भेंट के रूप में समझ लो। मैं खाली हाथ प्रभु भक्ति के लिए आई हूँ। मेरा भक्ति भाव से आना ही दान सामग्री सब कुछ है इसे स्वीकार करें।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवयित्री का भाव यह है कि वह प्रभु भक्ति के विषय में कुछ नहीं जानती है इसलिए वह अपने साथ कुछ नहीं लाई है।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. अनुप्रास अलंकार है। भक्ति रस है।

5. मैं उन्मत्त प्रेम की लोभी,
हृदय दिखाने आयी हूँ।
जो कुछ है, वह यही पास है,
इसे चढ़ाने आयी हूँ।

            चरणों पर अर्पित है, इसको
           चाहो तो स्वीकार करो।
           यह तो वस्तु तुम्हारी ही है।
           ठुकरा दो या प्यार करो॥

कठिन शब्दों के अर्थ : उन्मत्त = मतवाला। अर्पित है = भेंट है।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्यकृति ‘मुकुल’ में संग्रहित ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ कविता से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री कहती है कि प्रभु चरणों में चढ़ाने के लिए उनके पास केवल उनका प्यार भरा हृदय है जिसे वह स्वीकार कर लें।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि हे प्रभु ! मैं तो आपको अपना मतवाले प्रेम का लोभी अपना हृदय दिखाने के लिए आयी हूँ। मेरे पास तो यही हृदय जिसे मैं मन्दिर में चढ़ाने के लिए आयी हूँ। यही इसे ही मैं तुम्हें भेंट करती हूँ। यह तो आप ही की वस्तु है चाहे इसे स्वीकार करो या इसे ठुकरा दो, चाहे तो इसे त्याग दो, चाहे इसे प्यार करके अपना लो। मेरे पास प्रेम से भरा हृदय है जिसे आप पर अर्पित करने के लिए लाई हूँ।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवयित्री का भाव यह है कि वह प्रभु चरणों में अर्पित करने के लिए दिखावे की वस्तुएँ नहीं लाई हैं। उसके पास प्रेम से भरा हृदय जिसे वह प्रभु चरणों में अर्पित करना चाहती है।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. भक्ति रस है।

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वीरों का कैसा हो वसन्त Summary

जीवन परिचय

हिन्दी कवयित्रियों में सुभद्रा कुमारी चौहान का प्रमुख स्थान है। काव्य के क्षेत्र में इन्होंने राष्ट्रीय और नारी हृदय की अनुभूतियों से अपनी कल्पनाओं का श्रृंगार किया है। इनका जन्म सन् 1904 की नाग पंचमी को प्रयाग के निहालपुर मोहल्ले में हुआ था। इनके पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह था। वे शिक्षा प्रेमी और उच्च विचार के व्यक्ति थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा प्रयाग में ही सम्पन्न हुई। इनका विवाह छात्रावस्था में ही खंडवा निवासी ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान के साथ हुआ था। सन् 1948 ई० में इनका निधन हो गया था।

इनके हृदय की भांति इनकी कविताएं भी सरल और निर्मल भावों से युक्त हैं। इनकी कविताओं के दो संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय है-‘मुकुल’ और ‘त्रिधारा’। इन्होंने अनेक राष्ट्रीय नेताओं के विषय में भी कविताएं लिखी हैं। इनकी कुछ कविताएं विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं-झांसी की रानी, वीरों का कैसा हो बसन्त, राखी की चुनौती, जलियां वाला बाग में बसन्त आदि। इन्हें ‘मुकुल’ और ‘बिखरेमोती’ पर भी पुरस्कार मिले थे।

वीरों का कैसा हो वसन्त कविता का सार

‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ कविता की कवयित्री श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान हैं। इस कविता के माध्यम से कवयित्री वीर पुरुषों में वीर-भावनाओं का संचार करने का प्रयास करती हैं। कवयित्री यह प्रश्न पूछती है कि वीर पुरुषों का बसन्त कैसा होना चाहिए। वसन्त ऋतु तथा युद्ध में जाने का समय दोनों एक साथ आ गए हैं। वीर पुरुषों को युद्ध भूमि अपने कर्त्तव्य को पूरा करने के लिए पुकार रही है परन्तु वसन्त ऋतु की मादकता, उसकी पत्नी का साथ उसे वहां जाने से रोक रही है। वह दुविधा में है कि उसे क्या करना चाहिए। कवयित्री उसे उसके कर्त्तव्य की याद दिलाते हुए कह रही है कि वह अपने पूर्वजों द्वारा युद्ध भूमि में लड़े गए युद्धों को याद करके अपने कर्त्तव्य को पूरा करे। अब चन्दवरदाई तथा भूषण जैसे कवियों का भी अभाव है क्योंकि उन कवियों की लेखनी कायर से कायर पुरुष में शक्ति भरने का काम करती थी। आज परतन्त्र देश की लेखनी भी परतन्त्र है। वह अपना कर्त्तव्य पूरा करने में असमर्थ है। इसलिए वीर पुरुष तुम्हें ही निर्णय लेना है कि तुम्हारा वसन्त कैसा होना चाहिए।

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तुकरा दो या प्यार करो Summary

तुकरा दो या प्यार करो कविता का सार

‘ठुकरा दो या प्यार करो’ कविता की कवयित्री श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान हैं। इस कविता में सहज, सरल और निःश्छल प्रेम की अभिव्यक्ति है। कवयित्री मन्दिर में प्रभु पूजा करने जाती है। वहाँ वह लोगों को विभिन्न वस्तुएं चढ़ाते हुए देखती है। उसे मन्दिर में खाली हाथ आना अच्छा नहीं लगता परन्तु वह प्रभु भक्ति की प्रक्रिया से अंजान है। वह अपने साथ मन्दिर में कुछ भी लेकर नहीं जाती है। वह प्रभु से निवेदन करती है कि उसके पास प्रेम से भरा हृदय है जो वह उनके चरणों में अर्पित करना चाहती है। अब प्रभु की इच्छा पर निर्भर है कि वे उसकी इस तुच्छ भेंट को प्यार से स्वीकार कर लें या फिर ठुकरा दें।

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