Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 20 सामाजिक/धार्मिक सुधार Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 20 सामाजिक/धार्मिक सुधार
महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक
प्रश्न 1.
राजा राममोहन राम की मृत्यु के बाद ब्रह्म समाज का पुनर्गठन किसने किया?
उत्तर-
देवेंद्रनाथ टैगोर ने।
प्रश्न 2.
कलकत्ता में पहला विधवा विवाह कब हुआ?
उत्तर-
1856 में।
प्रश्न 3.
स्वामी दयानंद का देहांत कब हुआ?
उत्तर-
1883 ई० में।
प्रश्न 4.
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद का संबंध किस प्रदेश से था?
उत्तर-
गुजरात से।
प्रश्न 5.
सर सैय्यद अहमद खां को ‘सर’ की उपाधि कब मिली?
उत्तर-
1888 ई० में।
2. रिक्त स्थानों की पूर्ति
(i) सर सैय्यद अहमद खां का देहांत … ………….. में हुआ।
(ii) आजकल निरंकारियों का मुख्यालय ……………….. में है।
(iii) सिंह सभा लहर के प्रयत्नों से 1892 ई० में …………….. में खालसा कॉलेज की स्थापना हुई।
(iv) नामधारियों को ………….. भी कहा जाता है।
(v) बाबा दयाल का देहांत 1855 ई० में ……………. में हुआ।
उत्तर-
(i) 1898 ई०
(ii) चण्डीगढ़
(iii) अमृतसर
(iv) कूका
(v) रावलपिंडी।
3. सही गलत कथन
(i) प्रार्थना समाज की स्थापना महादेव गोबिंद रानाडे ने की। — (✓)
(ii) रामकृष्ण मिशन के संस्थापक स्वामी रामकृष्ण थे। — (✗)
(iii) मोहम्मडन ऐंग्लो-ओरियंटल कॉलेज की स्थापना अलीगढ़ में हुई। — (✓)
(iv) वहाबी आन्दोलन का आरम्भ सर सैय्यद अहमद खां ने किया था। — (✗)
(v) कूका आन्दोलन को 1872 ई० में दबा दिया गया। — (✓)
4. बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न (i)
कादियां निम्न में से किस लहर का केंद्र था?
(A) कूका
(B) नामधारी
(C) निरंकारी
(D) अहमदिया।
उत्तर-
(B) नामधारी
प्रश्न (ii)
निरंकारी सम्प्रदाय के संस्थापक थे-
(A) बाबा दयाल
(B) दरबारा सिंह जी
(C) बाबा रामसिंह जी
(D) हुक्म सिंह जी।
उत्तर-
(D) हुक्म सिंह जी।
प्रश्न (iii)
‘सत्यार्थ प्रकाश’ किस संस्था की प्रसिद्ध पुस्तक है?
(A) रामकृष्ण मिशन
(B) आर्य समाज
(C) ब्रह्म समाज
(D) प्रार्थना समाज।
उत्तर-
(A) रामकृष्ण मिशन
प्रश्न (iv)
भारत में पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित पहले मुस्लिम समाज सुधारक थे-
(A) गुलाम कादरी
(B) सर सैय्यद अहमद खां
(C) आगा खां
(D) मिर्जा गुलाम अहमद।
उत्तर-
(C) आगा खां
प्रश्न (v)
रामकृष्ण मिशन किस नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(A) कांची मठ
(B) पुरी मठ
(C) वैलूर मठ
(D) श्रृंगेरी मठ।
उत्तर-
(B) पुरी मठ
II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में पहला धार्मिक-सामाजिक आन्दोलन किस प्रान्त में तथा किस विचारधारा के अधीन हुआ ?
उत्तर-
भारत में पहला धार्मिक-सामाजिक आन्दोलन बंगाल में हुआ। यह पश्चिमी विचारधारा के अधीन हुआ।
प्रश्न 2.
‘रिवाइवलिजम’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
धर्म के नाम पर तथा बीते समय का हवाला देते हुए लोगों में जागृति लाने के प्रयास को रिवाइवलिज़म का नाम दिया जाता है।
प्रश्न 3.
ब्रह्म समाज की स्थापना कब, कहां और किसने की ?
उत्तर-
ब्रह्म समाज की स्थापना 1829 में, कलकत्ता (कोलकाता) में राजा राम मोहन राय ने की।
प्रश्न 4.
राजा राममोहन राय का जन्म कब और कहां हुआ तथा इन्होंने किन तीन भाषाओं में पुस्तकें लिखीं तथा पत्रिकायें निकाली ?
उत्तर-
राजा राममोहन राय का जन्म बंगाल में 1772 में हुआ। इन्होंने फारसी, अंग्रेज़ी तथा बंगाली भाषाओं में पुस्तकें लिखीं तथा पत्रिकायें निकाली।
प्रश्न 5.
स्त्रियों की दशा सुधारने के सन्दर्भ में राजा राममोहन राय ने किन दो बातों पर जोर दिया ?
उत्तर-
राजा राममोहन राय ने बाल-विवाह तथा सती प्रथा को समाप्त करने पर जोर दिया।
प्रश्न 6.
ब्रह्म समाज के कार्यक्रम का धार्मिक उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
ब्रह्म समाज के कार्यक्रम का धार्मिक उद्देश्य एक परमात्मा की उपासना पर बल देना और वेदों और उपनिषदों की तर्कसंगत व्याख्या करना था।
प्रश्न 7.
राजा राममोहन राय का देहान्त कब हुआ तथा इसके बाद ब्रह्म समाज का पुनर्गठन किसने किया ?
उत्तर-
राजा राममोहन राय का देहान्त 1833 में हुआ। इसके बाद ब्रह्म समाज का पुनर्गठन देवेन्द्र नाथ टैगोर ने किया।
प्रश्न 8.
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने किस प्रान्त में तथा किन सुधारों का प्रचार किया ?
उत्तर-
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने बंगाल में विधवा विवाह के पक्ष में प्रचार किया।
प्रश्न 9.
विधवा विवाह के पक्ष में कानून कब पास हुआ तथा कलकत्ता (कोलकाता) में पहला विधवा विवाह कब हुआ?
उत्तर-
विधवा विवाह के पक्ष में कानून 1855 में पास हुआ। कलकत्ता (कोलकाता) में पहला विधवा विवाह 1856 में हुआ:
प्रश्न 10.
1865 तक ब्रह्म समाज की बंगाल में शाखाओं की संख्या क्या थी तथा इस समय बंगाल से बाहर किन तीन प्रान्तों में उनके केन्द्र थे ?
उत्तर-
1865 तक ब्रह्म समाज की बंगाल में शाखाओं की संख्या 50 थी। इस समय बंगाल से बाहर इसके केन्द्र उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु तथा पंजाब में थे।
प्रश्न 11.
ब्रह्म समाज दो भागों में कब विभक्त हुआ तथा इनके नेता कौन थे ?
उत्तर-
ब्रह्म समाज 1865 में दो भागों में विभक्त हुआ। इनके नेता देवेन्द्र नाथ टैगोर तथा केशवचन्द्र सेन थे।
प्रश्न 12.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना कब और कहां हुई तथा किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर-
रामकृष्ण मिशन की स्थापना सन् 1896 में कलकत्ता (कोलकाता) में हुई। यह वैलूर मठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
प्रश्न 13.
रामकृष्ण मिशन का संस्थापक कौन था तथा यह किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर-
रामकृष्ण मिशन के संस्थापक स्वामी विवेकानन्द थे। यह मिशन वैलूर मठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
प्रश्न 14.
रामकृष्ण परमहंस तथा स्वामी विवेकानन्द का देहान्त कब हुआ ?
उत्तर-
रामकृष्ण परमहंस तथा स्वामी विवेकानन्द का देहान्त क्रमश: 1886 तथा 1902 में हुआ।
प्रश्न 15.
स्वामी विवेकानन्द ने किन चार बातों का खण्डन किया ?
उत्तर-
स्वामी विवेकानन्द ने जाति-पाति, कर्मकाण्ड, व्यर्थ की रीतियों तथा अन्धविश्वासों का खण्डन किया।
प्रश्न 16.
स्वामी विवेकानन्द ने भारत से बाहर किन दो महाद्वीपों में अपने विचारों का प्रचार किया ?
उत्तर-
स्वामी विवेकानन्द ने भारत से बाहर अमेरिका तथा यूरोप महाद्वीपों में अपने विचारों का प्रचार किया।
प्रश्न 17.
सामाजिक सुधार और सेवा के लिए रामकृष्ण मिशन ने कौन-सी चार प्रकार की संस्थाएं बनाईं ?
उत्तर-
सामाजिक सुधार और सेवा के लिए रामकृष्ण मिशन ने स्कूल स्थापित किए, अस्पतालों का निर्माण करवाया, अनाथ आश्रम बनवाये तथा पुस्तकालय खोले।
प्रश्न 18.
महाराष्ट्र में धार्मिक तथा सामाजिक सुधार के लिए पहला संगठन कौन-सा था तथा यह कब स्थापित हुआ ?
उत्तर-
महाराष्ट्र में धार्मिक तथा सामाजिक सुधार के लिए पहला संगठन ‘परमहंस सभा’ था। यह 1849 ई० में स्थापित हुआ।
प्रश्न 19.
ज्योतिबा फूले स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए किन दो बातों के पक्ष में थे ?
उत्तर-
ज्योतिबा फुले स्त्रियों को शिक्षा दिलाने तथा विधवा विवाह के पक्ष में थे।
प्रश्न 20.
महाराष्ट्र में प्रार्थना सभा’ की स्थापना कब हुई तथा इसके दो प्रमुख नेता कौन थे ?
उत्तर-
महाराष्ट्र में ‘प्रार्थना सभा’ की स्थापना 1867 में हुई। इसके दो प्रमुख नेता जस्टिस महादेव रानाडे तथा रामकृष्ण गोपाल थे।
प्रश्न 21.
महाराष्ट्र में धार्मिक-सामाजिक आन्दोलन के चार नेताओं के नाम बताएं तथा इन्होंने अपने विचारों का प्रचार अधिकतर कौन-सी भाषा में किया ?
उत्तर-
महाराष्ट्र में धार्मिक-सामाजिक आन्दोलनों के चार नेता ज्योतिबा फूले, महादेव गोविन्द रानाडे, गोपाल भण्डारकर तथा गोपाल हरि देश गुरु थे। इन्होंने अपने विचारों का प्रचार अधिकतर मराठी भाषा में किया।
प्रश्न 22.
आर्य समाज के संस्थापक कौन थे तथा यह किस प्रदेश से थे ?
उत्तर-
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द थे। यह गुजरात प्रदेश से थे।
प्रश्न 23.
आर्य समाज की स्थापना कब तथा कहां हुई तथा यह पंजाब में कब आया ?
उत्तर-
आर्य समाज की स्थापना 1875 में बम्बई (मुम्बई) में हुई तथा यह पंजाब में 1877 में आया।
प्रश्न 24.
स्वामी दयानन्द की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम क्या था तथा यह किस वर्ष में प्रकाशित हुई ?
उत्तर-
स्वामी दयानन्द की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम ‘सत्यार्थ प्रकाश’ था। यह 1874 में प्रकाशित हुई।
प्रश्न 25.
स्वामी दयानन्द ने किन चार बातों का विरोध किया ?
उत्तर-
स्वामी दयानन्द ने मूर्ति-पूजा, जाति-पाति, पुरोहितों की प्रभुसत्ता तथा तीर्थ यात्रा का विरोध किया।
प्रश्न 26.
स्वामी दयानन्द का देहान्त कब हुआ तथा 1911 तक आर्य समाजियों की संख्या कितनी हो गई ?
उत्तर-
स्वामी दयानन्द का देहान्त 1883 में हुआ। 1911 तक आर्य समाजियों की संख्या 24 लाख तक पहुंच गई थी।
प्रश्न 27.
पंजाब में सबसे पहले ऐंग्लो-वैदिक स्कूल तथा कॉलेज कब और कहां स्थापित हुए ?
उत्तर-
पंजाब में सबसे पहले ‘एंग्लो-वैदिक’ स्कूल तथा कॉलेज 1886 में लाहौर में स्थापित हुए।
प्रश्न 28.
सैय्यद अहमद बरेलवी ने कौन-सा अभियान चलाया तथा बाद में यह पंजाब के किस शासक के विरुद्ध हो गया?
उत्तर-
सैय्यद अहमद बरेलवी ने वहाबी अभियान चलाया। बाद में यह पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध हो गया।
प्रश्न 29.
1886 के बाद वहाबी प्रभाव अधीन पंजाब के मुसलमानों में कौन-सी दो धार्मिक लहरों का उदय हुआ ?
उत्तर-
1886 के बाद वहाबी प्रभाव अधीन पंजाब के मुसलमानों में दो धार्मिक सुधारों अहले-कुरान तथा अहले हदीस की लहरें आईं।
प्रश्न 30.
भारत में पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित पहले मुस्लिम समाज सुधारक कौन थे तथा उनका जन्म कहां हुआ ?
उत्तर-
भारत में पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित पहले मुस्लिम समाज सुधारक सैय्यद अहमद खां थे। उनका जन्म दिल्ली में हुआ।
प्रश्न 31.
सर सैय्यद खां को सर की उपाधि कब मिली और उनका देहान्त कब हुआ ?
उत्तर-
सर सैय्यद अहमद खां को सर की उपाधि 1888 ई० में मिली तथा उनका देहान्त 1898 ई० में हुआ।
प्रश्न 32.
‘मोहम्मडन ओरिएन्टल’ कॉलेज की स्थापना कब और कहां हुई तथा यह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कब परिवर्तित हो गया ?
उत्तर-
‘मोहम्मडन ओरिएन्टल’ कॉलेज की स्थापना 1875 ई० में हुई। यह 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में परिवर्तित हुआ।
प्रश्न 33.
अलीगढ़ आन्दोलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अलीगढ़ आन्दोलन से अभिप्राय उस सामाजिक आन्दोलन से है जिसका आरम्भ सर सैय्यद अहमद खां के नेतृत्व में मुस्लिम समाज में सुधार लाने के लिए हुआ था।
प्रश्न 34.
सर सैय्यद अहमद खां के अतिरिक्त अलीगढ़ आन्दोलन के चार नेताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
सर सैय्यद अहमद खां के अतिरिक्त अलीगढ़ आन्दोलन के चार नेता-मौलवी नजीर अहमद, जकाउल्ला, अलताफ हुसैन हाली तथा शिबली नोमानी थे।
प्रश्न 35.
अलीगढ़ आन्दोलन के अन्तर्गत स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए कौन-सी तीन सामाजिक कमजोरियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई गई ?
उत्तर-
अलीगढ़ आन्दोलन के अन्तर्गत स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए पर्दा प्रथा, बहुविवाह तथा तुरन्त तलाक जैसी सामाजिक कमजोरियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई गई।
प्रश्न 36.
पंजाब में मुसलमानों में धार्मिक तथा सामाजिक सुधार के लिए बनी संस्थाओं को क्या कहा जाता था तथा 1890 तक इनकी संख्या क्या थी ?
उत्तर-
पंजाब में मुसलमानों में धार्मिक तथा सामाजिक सुधार के लिए बनी संस्थाओं को ‘अन्जुमन-इस्लामिया’ कहा जाता था। 1890 तक इनकी संख्या 60 से अधिक थी।
प्रश्न 37.
मिर्जा गुलाम अहमद का सम्बन्ध किस धार्मिक लहर से है तथा इनका जन्म पंजाब में कब और कहां हुआ ?
उत्तर-
मिर्जा गुलाम अहमद का सम्बन्ध अहमदिया लहर से है तथा उनका जन्म 1835 ई० में जिला गुरदासपुर के कादियां नामक स्थान पर हुआ।
प्रश्न 38.
मिर्जा गुलाम अहमद ने अपने अनुयायी बनाने कब शुरू किए तथा अपने आपको पैगम्बर कब कहना आरम्भ किया ?
उत्तर-
मिर्जा गुलाम अहमद ने 1890 ई० में अपने अनुयायी बनाने शुरू किये। 1900 ई० में उन्होंने अपने आपको पैगम्बर कहना आरम्भ कर दिया।
प्रश्न 39.
अहमदिया लहर में दो सम्प्रदाय कब बन गए तथा उसके केन्द्र कहां थे ?
उत्तर-
अहमदिया लहर में दो सम्प्रदाय 1914 ई० में बने तथा उसके केन्द्र कादियां तथा लाहौर में थे।
प्रश्न 40.
अहमदिया लोगों ने भारत से बाहर अपने मत का प्रचार कौन-से तीन महाद्वीपों में किया ?
उत्तर-
अहमदिया लोगों ने भारत से बाहर अपने मत का प्रचार अफ्रीका, यूरोप तथा अमेरिका में किया।
प्रश्न 41.
निरंकारी सम्प्रदाय के संस्थापक कौन थे तथा इनका जन्म कहां और कौन-से परिवार में हुआ ?
उत्तर-
निरंकारी सम्प्रदाय के संस्थापक बाबा दयाल थे। इनका जन्म पेशावर के एक खत्री सर्राफ के घर हुआ।
प्रश्न 42.
बाबा दयाल ने गुरु ग्रन्थ साहिब की मर्यादा के अनुसार साधारण जीवन के कौन-से चार अवसरों के लिए नीतियां चलाईं ?
उत्तर-
बाबा दयाल ने गुरु ग्रन्थ साहिब की मर्यादा के अनुसार जन्म, नामकरण, विवाह तथा मरण से सम्बन्धित अवसरों पर रीतियां चलाईं।
प्रश्न 43.
बाबा दयाल का देहान्त कब और कहां हुआ तथा दयालसर किस स्थान को कहा जाता है ?
उत्तर-
बाबा दयाल का देहान्त 1855 ई० में रावलपिंडी में हुआ। जिस स्थान पर उनकी देह को नदी में समर्पित किया गया, वहां उनके नाम पर बाद में दयालसर बना।
प्रश्न 44.
बाबा दयाल के उत्तराधिकारी का नाम लिखो तथा उन्होंने किस दोआब में अपने विचारों का प्रचार किया ?
उत्तर-
बाबा दयाल के उत्तराधिकारी का नाम बाबा दरबारा सिंह था। उन्होंने सिन्ध सागर में अपने विचारों का प्रचार किया।
प्रश्न 45.
बाबा दरबारा सिंह का देहान्त कब हुआ तथा उनके दो उत्तराधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
बाबा दरबारा सिंह का देहान्त 1870 ई० में हुआ। उनके दो उत्तराधिकारी साहिब रत्ता जी तथा बाबा गुरदित्तौ सिंह थे।
प्रश्न 46.
1947 ई० से पहले पंजाब के किस दोआब में निरंकारियों ने अपने मत का प्रचार किया तथा आजकल उनका मुख्यालय कौन-सा है ?
उत्तर-
1947 ई० से पहले पंजाब के सिन्ध सागर दोआब में निरंकारियों ने अपने मत का प्रचार किया। आजकल इनका मुख्यालय चण्डीगढ़ में है।
प्रश्न 47.
नामधारी लहर के संस्थापक कौन थे तथा उन्होंने अपने धार्मिक विचारों का प्रचार पंजाब के कौन-से दोआब में किया ?
उत्तर-
नामधारी लहर के संस्थापक बाबा बालक सिंह थे। इन्होंने अपने धार्मिक विचारों का प्रचार पंजाब के सिन्ध सागर दोआब में किया।
प्रश्न 48.
बाबा बालक सिंह का देहान्त कब हुआ तथा उनके श्रद्धालुओं को ‘नामधारी’ क्यों कहा जाता था ?
उत्तर-
बाबा बालक सिंह का देहान्त 1862 ई० में हुआ। ‘नाम’ स्मरण पर विशेष बल देने के कारण उनके श्रद्धालुओं को ‘नामधारी’ कहा जाता था।
प्रश्न 49.
नामधारी लहर को पंजाब के केन्द्रीय जिलों में किसने फैलाया तथा ये किस जिले के रहने वाले थे ?
उत्तर-
नामधारी लहर को पंजाब के केन्द्रीय जिलों में बाबा राम सिंह ने फैलाया। यह लुधियाना जिले (भैनी गांव) के रहने वाले थे।
प्रश्न 50.
नामधारियों के पहरावे की चार विशेषताएं क्या थी ?
उत्तर-
नामधारी सफेद खद्दर का कुर्ता तथा कछहरा पहनते थे। वे सीधी पगड़ी बांधते थे तथा गले में सफेद ऊन की माला डालते थे।
प्रश्न 51.
नामधारियों में बहुसंख्या समाज के कौन-से तीन वर्गों की थी तथा बाबा राम सिंह का पारिवारिक व्यवसाय क्या था ?
उत्तर-
नामधारियों में बहुसंख्या तरखानों, जाटों तथा मजहबी सिक्खों की थी। बाबा राम सिंह का पारिवारिक व्यवसाय बढ़ईगिरी था।
प्रश्न 52.
बाबा राम सिंह ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए कौन-सी दो बातों पर बल दिया ?
उत्तर-
बाबा राम सिंह ने लड़कियों को पैदा होते ही मार देने की प्रथा का विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया।
प्रश्न 53.
लोग नामधारियों को कूका क्यों कहने लग गए ?
उत्तर-
नामधारी लोग शब्द बाणी पढ़ते समय ऊंची आवाज़ में बोलने या चीख (कूक) मारने लगते थे। इसलिए उन्हें कूका कहा जाने लगा।
प्रश्न 54.
बाबा राम सिंह ने अपने श्रद्धालुओं के साथ सम्पर्क रखने के लिए कौन-सी दो विधियां अपनाईं ?
उत्तर-
बाबा राम सिंह ने अपने श्रद्धालुओं के साथ सम्पर्क रखने के लिए विभिन्न जिलों में अपने प्रतिनिधि या सूबे नियुक्त किए। उन्होंने अपनी डाक व्यवस्था भी बना ली।
प्रश्न 55.
1871 ई० में नामधारियों ने किन दो स्थानों पर कसाइयों को मारा था तथा उन्हें क्या सजा दी गई ?
उत्तर-
1871 ई० में नामधारियों ने अमृतसर तथा रायकोट में कसाइयों को मारा था। उन्हें फांसी की सजा दी गई।
प्रश्न 56.
नामधारियों ने मालेरकोटला पर हमला कब किया तथा उन्हें क्या सज़ा दी गई ?
उत्तर-
नामधारियों ने मालेरकोटला पर 1872 ई० में हमला किया। इस कारण उन्हें गिरफ्तार करके तोपों से उड़ा दिया गया।
प्रश्न 57.
बाबा राम सिंह को रंगून कब भेजा गया तथा उन्हें क्या सज़ा दी गई ?
उत्तर-
बाबा राम सिंह को 1872 ई० में रंगून भेजा गया। उन्हें देश निकाला मिला था।
प्रश्न 58.
बाबा राम सिंह के बाद नामधारियों का नेतृत्व करने वाले दो गुरु कौन थे ?
उत्तर-
बाबा राम सिंह के बाद नामधारियों का नेतृत्व करने वाले दो गुरु-बाबा हरि सिंह और बाबा प्रताप सिंह थे।
प्रश्न 59.
सब से पहले दो सिंह सभायें कब तथा कहां स्थापित की गई ?
उत्तर-
पहली सिंह सभा 1873 ई० में अमृतसर और दूसरी 1879 में लाहौर में स्थापित की गई।
प्रश्न 60.
19वीं सदी में सिंह सभाओं की संख्या कितनी हो गई तथा इनका सदस्य कौन बन सकता था ?
उत्तर-
19वीं सदी में सिंह सभाओं की संख्या 120 हो गई। कोई भी सिक्ख इनका सदस्य बन सकता था।
प्रश्न 61.
सिंह सभाओं में कौन-से चार वर्गों के लोग शामिल थे ?
उत्तर-
सिंह सभाओं में उच्च वर्ग के ज़मींदार, साधारण किसान, नौकरी पेशा तथा व्यापारी शामिल थे ।
प्रश्न 62.
‘चीफ खालसा दीवान’ कब स्थापित हुआ तथा इसने क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर-
चीफ खालसा दीवान 1902 में स्थापित हुआ। इसने सिंह सभा लहर का नेतृत्व किया तथा सिक्खों के प्रतिनिधि की भूमिका निभाई।
प्रश्न 63.
‘खालसा ट्रस्ट सोसाइटी’ कब स्थापित हुई तथा इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
खालसा ट्रस्ट सोसाइटी 1894 ई० में स्थापित हुई। उसका उद्देश्य पंजाबी भाषा तथा गुरुमुखी लिपि में नए विचारों का प्रचार करना था।
प्रश्न 64.
सिंह सभा लहर के प्रभाव अधीन निकाली जाने वाली दो पत्रिकाओं के नाम बताएं।
उत्तर-
सिंह सभा लहर के प्रभाव अधीन निकाली जाने वाली दो पत्रिकाएं खालसा समाचार’ तथा ‘खालसा एडवोकेट’ थीं।
प्रश्न 65.
सिंह सभाओं ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए किन दो बातों पर जोर दिया ?
उत्तर-
सिंह सभा ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए लड़कियों की शिक्षा तथा स्त्री-पुरुष समानता पर बल दिया।
प्रश्न 66.
सिंह सभा लहर के शिक्षा के कार्यक्रम का क्या प्रयोजन था ?
उत्तर-
सिंह सभा लहर के शिक्षा के कार्यक्रम का प्रयोजन विज्ञान तथा अंग्रेज़ी को नैतिक और धार्मिक शिक्षा के साथ जोड़ना था।
प्रश्न 67.
सिंह सभा लहर के प्रयत्नों से बनी सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा संस्था कब तथा कहां स्थापित हुई ?
उत्तर-
सिंह सभा लहर के प्रयत्नों से 1892 ई० में अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना हुई ।
प्रश्न 68.
सिक्ख एजुकेशनल कान्फ्रेंस कब स्थापित की गई तथा उसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
सिक्ख एजुकेशनल कान्फ्रेंस 1908 ई० में स्थापित की गई। इसका उद्देश्य शिक्षा सम्बन्धी विचार-विमर्श करना तथा शिक्षा के क्षेत्र का विस्तार करना था। .
प्रश्न 69.
सिंह सभा लहर के चार नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
सिंह सभा लहर के चार नेता बाबा खेम सिंह बेदी, सरदार ठाकुर सिंह संधावालिया, प्रो० गुरुमुख सिंह और ज्ञानी . दित्त सिंह थे।
प्रश्न 70.
बीसवीं सदी के पहले दो दशकों में सभाओं ने गुरुद्वारों के सुधार के लिए कौन-से दो प्रकार के यत्न किए ?
उत्तर-
बीसवीं सदी के पहले दो दशकों में सभाओं के प्रयत्नों से हरमंदर साहिब के बाहरी हिस्सों से मूर्तियों को उठा लिया गया। सिंह सभाओं ने इन्हीं गुरुद्वारों से महन्तों को निकलवाने के लिए सरकार से भी टक्कर ली।
II. छोटे उत्तर वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
किस विचारधारा के प्रभाव अधीन ब्रह्म समाज की स्थापना हुई तथा इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
ब्रह्म समाज की स्थापना पश्चिमी विचारधारा तथा भारतीय विचारधारा के संगम के कारण हुई। ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय पश्चिमी विज्ञान तथा तकनीकी को भारतीयता का रंग देना चाहते थे। इसी बात से प्रेरित हो कर उन्होंने ब्रह्म समाज की 1829 ई० में स्थापना की। इस सभा का उद्देश्य एक परमात्मा की उपासना पर बल देना और वेदों एवं उपनिषदों की तर्कसंगत व्याख्या करना था। मूर्ति-पूजा और सामाजिक त्रुटियों का विरोध करना भी इसका एक उद्देश्य था। जाति-पाति के भेद-भाव समाप्त करना भी सभा का महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम था। स्त्रियों की पुरुषों के साथ समानता भी इसके आदर्शों में सम्मिलित था। अतः राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न 2.
रामकृष्ण मिशन की विचारधारा तथा कार्यक्रम बताएं।
उत्तर-
रामकृष्ण मिशन की स्थापना सन् 1896 में स्वामी विवेकानन्द ने कलकत्ता (कोलकाता) में की। यह मिशन विवेकानन्द ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर चलाया था। रामकृष्ण की रुचि विशेष रूप से धार्मिक सुधार में थी। स्वामी विवेकानन्द का विचार था कि मुक्ति प्राप्त करने के बहुत से मार्ग हैं। वे मुसलमानों और ईसाइयों के साथ भी सम्पर्क रखते थे। उनका यह भी विचार था कि मनुष्य की सेवा करना परमात्मा की सेवा है। स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरु के विचारों का प्रचार करने के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि धर्म के द्वारा ही समाज का पुनर्निर्माण हो सकता है। वे वेदान्त के पक्ष में थे। उन्होंने जाति-पाति का जोरदार खण्डन किया। वे कर्मकाण्ड की व्यर्थ रीतियों और अन्ध-विश्वासों का भी सख्ती से विरोध करते थे। रामकृष्ण मिशन स्थापित करने के छः वर्ष पश्चात् स्वामी विवेकानन्द का देहान्त हो गया। परन्तु तब तक भारत के बहुत-से नगरों में इसको केन्द्र खुल चुके थे। समाज-सुधार और सेवा के क्षेत्र में रामकृष्ण मिशन ने बहुत से स्कूल स्थापित किये, अस्पताल खोले, अनाथ आश्रम चलाये और पुस्तकालय खोले।
प्रश्न 3.
महाराष्ट्र में समाज सुधारकों ने किस बात पर जोर दिया ?
उत्तर-
महाराष्ट्र में सुधार लहर के उद्देश्य लगभग अन्य सुधारकों से मेल खाते थे। 1849 ई० में ‘परमहंस सभा’ स्थापित हुई। इसका उद्देश्य परमात्मा की एकता का प्रचार करना और जाति-पाति का विरोध करना था। ज्योतिबा फूले ने स्त्री शिक्षा पर बल दिया। वे विधवा-विवाह के पक्ष में भी थे। कुछ समय पश्चात् एक ‘विधवा पुनर्विवाह सभा’ स्थापित हुई। इसी तरह गोपाल हरि देशमुख ने अपने प्रगतिशील विचारों द्वारा सामाजिक त्रुटियों का खण्डन किया।
महाराष्ट्र में सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था 1867 में ‘प्रार्थना सभा’ के नाम से स्थापित हुई। इसके प्रतिनिधि धार्मिक सुधार की अपेक्षा सामाजिक सुधार में अधिक रुचि रखते थे। जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे और रामकृष्ण गोपाल भण्डारकर ने इस सभा द्वारा समाज की सेवा की। अनाथों के लिए आश्रम खोले गए। सामाजिक सुधार और सेवा की यह रुचि 20वीं सदी के आरम्भ तक चलती रही।
प्रश्न 4.
स्वामी दयानन्द के सामाजिक तथा धार्मिक विचार क्या थे ?
उत्तर-
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती थे। उन्होंने समाज का सुधार करने के लिए 1875 ई० में आर्य समाज की स्थापना की। थोड़े ही समय पश्चात् सारे देश में इसकी शाखाओं का जाल-सा बिछ गया। स्वामी दयानन्द के अपने स्वतन्त्र विचार थे जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
- ईश्वर एक है। वह सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है। उसका कोई आकार नहीं है। अतः उसकी मूर्ति बनाकर पूजा करना व्यर्थ है।
- वेद सत्य हैं। वेद ईश्वर की वाणी हैं। वेद ही हमें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिला सकते हैं।
- ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान के अन्धकार का नाश करना चाहिए।
- शुद्धि द्वारा प्रत्येक धर्म का अनुयायी हिन्दू बन सकता है।
- पूर्वजों के श्राद्ध, बाल-विवाह तथा छूतछात के भेदभाव वैदिक धर्म के विपरीत हैं। इस संस्था ने पंजाब के साथ-साथ पूरे देश में धार्मिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए।
प्रश्न 5.
‘अलीगढ़ आन्दोलन’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अलीगढ़ आन्दोलन एक मुस्लिम आन्दोलन था। यह आन्दोलन सर सैय्यद अहमद खां ने मुसलमानों में जागृति पैदा करने के लिए चलाया। उस समय मुसलमान काफ़ी पिछड़े हुए थे। वे अरबी और फारसी को छोड़कर अन्य किसी भी भाषा की शिक्षा प्राप्त करना अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। इसलिए वे सरकारी नौकरियों से वंचित थे। ऐसी दशा में सर सैय्यद अहमद खां ने मुसलमानों को ऊंचा उठाने का निश्चय किया। उन्होंने मुसलमानों को अंग्रेज़ी शिक्षा प्राप्त करने की प्रेरणा दी। मुस्लिम समाज की कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्होंने ‘तहजीब-उल-अकल’ नामक एक पत्रिका निकालनी आरम्भ की। 1875 ई० में उन्होंने अलीगढ़ में ऐंग्लो-ओरियण्टल कॉलेज की स्थापना की। यह कॉलेज 1920 ई० में मुस्लिम विश्वविद्यालय बना। इस विश्वविद्यालय ने अनेक विचारकों को जन्म दिया।
प्रश्न 6.
बाबा राम सिंह की शिक्षाएं क्या थी ?
उत्तर-
बाबा राम सिंह प्रमुख नामधारी नेता थे। उनकी शिक्षाएं बड़ी सरल एवं प्रभावशाली थीं। वह जाति प्रथा के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने सभी धर्मों के लोगों को अपना शिष्य बनाया। हिन्दू-मुसलमान आदि सभी लोग कूका मत में सम्मिलित हो सकते थे। वे ब्राह्मणों, महन्तों तथा बेदियों के प्रभुत्व को स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने मूर्ति पूजा का भारी विरोध किया। उन्होंने अन्तर्जातीय विवाह तथा विधवा विवाह पर बल दिया। बाबा रामसिंह जी ने लोगों को उच्च नैतिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने शिष्यों को आडम्बर, झूठ तथा धोखेबाज़ी से दूर रहने का आदेश दिया। उन्होंने ब्राह्मणों के धार्मिक पाखण्डों के विरुद्ध आवाज़ उठाई तथा सती-प्रथा बन्द करवाने का प्रयास किया। वह बाल-विवाह, कन्या-वध तथा लड़कियों के विक्रय के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने अपने शिष्यों में विवाह की आनन्द कारज प्रथा प्रचलित की। फलस्वरूप विवाह सादा और कम खर्चीला हो गया। कूका लोगों को पवित्र स्थानों पर नंगे सिर जाने की आज्ञा नहीं थी। गुरु राम सिंह ने नामधारियों के लिए दोहरी पगड़ी पहनना आवश्यक बताया। उन्होंने अपने अनुयायियों को दसवें गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा रचित ‘ग्रन्थ साहिब’ के अध्ययन करने की प्रेरणा दी।
प्रश्न 7.
सिंह सभा लहर के उद्देश्य तथा कार्यक्रम के बारे में बताएं।
उत्तर-
सिंह सभा लहर का आरम्भ 1873 ई० में हुआ। 1890 ई० तक 120 स्थानों पर सिंह सभाएं स्थापित हो चुकी थीं। इस लहर का मुख्य उद्देश्य प्राचीन सिक्ख परम्पराओं और खालसा आचरण को फिर से लागू करना था। इनका दूसरा उद्देश्य पंजाबी भाषा तथा गुरुमुखी लिपि का प्रचार करना था। शिक्षा का प्रसार करना भी इस लहर का एक उद्देश्य था।
इस लहर को संगठित करने के लिए 1902 में ‘चीफ खालसा दीवान’ बनाया गया। पंजाबी भाषा के विकास के लिए ‘खालसा ट्रैक्ट सोसाइटी’ स्थापित की गई। अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना हुई। 1908 में सिक्ख एजूकेशनल कांफ्रैंस का गठन हुआ। इस तरह सिंह सभा लहर ने गुरुद्वारों को महन्तों से आजाद कराया और सिक्खों में सामाजिक तथा राजनीतिक जागृति पैदा की।
प्रश्न 8.
अहमदिया लहर का धार्मिक पक्ष क्या था ?
उत्तर-
अहमदिया लहर को कादियानी लहर भी कहा जाता है। इसके संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद थे। उनका जन्म 1835 ई० में गुरदासपुर जिले के कादियां नामक स्थान पर हुआ था। उसे देश में प्रचलित सभी धार्मिक लहरों के विषय में पूरी-पूरी जानकारी थी। वह भी देश में अपने ही ढंग से धर्म-सुधार करना चाहता था। वह यह भी चाहता था, कि देश में ईसाई मिशनरियों तथा आर्य समाज के बढ़ते हुए प्रभाव को रोका जाये। अतः उसने लोगों के सामने इस्लाम की एक नई व्याख्या प्रस्तुत की। कुरान के महत्त्व पर अत्यधिक बल दिया और इसकी व्याख्या करना उचित ठहराया। उसकी यही विचारधारा अहमदिया लहर के नाम से प्रसिद्ध हुई। 1890 ई० में अनेक लोग उसके अनुयायी बन गये। उसका प्रभाव इतना बढ़ गया कि 1900 ई० में उसने अपने आपको मसीहा तथा पैगम्बर कहना आरम्भ कर दिया। 1908 ई० में उसकी मृत्यु हो गई। परन्तु उसके उत्तराधिकारियों ने इस आन्दोलन को जारी रखा। 1914 ई० में यह आन्दोलन दो शाखाओं में बंट गया। एक का केन्द्र कादियां में रहा और दूसरी शाखा ने लाहौर में अपना केन्द्र स्थापित किया।
प्रश्न 9.
धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों ने मुख्य रूप से किन दो विषयों पर बल दिया ?
उत्तर-
धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों ने मुख्य रूप से दो महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्याओं पर बल दिया : स्त्रियों की भलाई तथा जाति भेद को समाप्त करना। इन कार्यक्रमों का आधार मानवीय समानता की विचारधारा थी। परन्तु समानता की यह विचारधारा केवल धर्म के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं थी। इसका राजनीतिक महत्त्व भी था। अंग्रेजों के राज्य में कानूनी रूप से तो सभी भारतीय समान थे, परन्तु सामाजिक या राजनीतिक रूप से नहीं थे।
भारत में स्त्रियों की संख्या देश की जनसंख्या से लगभग आधी थी। विश्व के अन्य समाजों की भान्ति भारत में भी स्त्री पुरुष के अधीन थी। धर्म और कानून की व्यवस्था भी उसके पक्ष में नहीं थी। पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि कुप्रथाएं इसी असमानता का परिणाम थीं। धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों ने स्त्रियों की भलाई पर बल दिया। उनके प्रयासों का परिणाम भी अच्छा निकला। धीरे-धीरे स्त्रियों ने राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों में स्वयं भाग लेना आरम्भ कर दिया। उन्होंने समानता की मांग की। देश के प्रमुख नेताओं ने इसका जोरदार समर्थन किया। परिणामस्वरूप स्त्रीपुरुष की समानता का आदर्श स्वीकार कर लिया गया।
प्रश्न 10.
आर्य समाज के संस्थापक कौन थे ? इस संस्था द्वारा किए गए किन्हीं चार धार्मिक तथा सामाजिक सुधारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
19वीं शताब्दी में समाज-सुधार के क्षेत्र में आर्य समाज की क्या भूमिका रही ?
उत्तर-
आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने की थी। इस संस्था द्वारा किए गए चार धार्मिक तथा सामाजिक सुधारों का वर्णन निम्नलिखित है–
- इस संस्था ने जाति-प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठाई और भाईचारे की भावना पर बल दिया।
- इस संस्था ने सती-प्रथा, बाल-विवाह तथा कन्या-वध आदि सामाजिक कुप्रथाओं का विरोध किया।
- इसने विधवाओं को पुनः विवाह करने की अनुमति देने तथा स्त्री शिक्षा के प्रसार पर जोर दिया।
- इस संस्था ने समाज में प्रचलित मूर्ति-पूजा तथा अन्ध-विश्वास का खण्डन किया।
प्रश्न 11.
मुसलमानों में जागृति लाने के लिए सर सैय्यद अहमद खां ने क्या-क्या कार्य किए ?
उत्तर-
सर सैय्यद अहमद खां ने मुसलमानों में जागृति लाने के लिए निम्नलिखित कार्य किए-
1. उनका विश्वास था कि मुसलमानों में केवल पश्चिमी शिक्षा के प्रसार द्वारा ही जागृति लाई जा सकती है, इसलिए उन्होंने मुसलमानों को पश्चिमी शिक्षा प्राप्त करने और पश्चिमी साहित्य का अध्ययन करने की प्रेरणा दी।
2. उन्होंने अलीगढ़ में एम० ए० ओ० कॉलेज की स्थापना की। यहां मुसलमान विद्यार्थियों को पश्चिमी ढंग से शिक्षा दी जाती थी।
3. उनका विचार था कि मुसलमानों के उत्थान के लिए अंग्रेजों की सहानुभूति प्राप्त करना आवश्यक है, इसलिए उन्होंने मुसलमानों को अंग्रेजों के प्रति वफ़ादार रहने की प्रेरणा दी।
4. उन्होंने मुसलमानों के दृष्टिकोण को आधुनिक बनाने के लिए कुरान की वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की।
प्रश्न 12.
भारतीय नारी की दशा सुधारने के लिए आधुनिक सुधारकों द्वारा किए गए कोई चार कार्य लिखिए।
उत्तर-
1. सती-प्रथा के कारण स्त्री को अपने पति की मृत्यु पर उसके साथ जीवित ही चिता में जल जाना पड़ता था। आधुनिक समाज-सुधारकों के प्रयत्नों से इस अमानवीय प्रथा का अन्त हो गया।
2. विधवाओं को पुनः विवाह करने की आज्ञा नहीं थी। समाज-सुधारकों के प्रयत्नों से उन्हें दोबारा विवाह करने की आज्ञा मिल गई।
3. आधुनिक सुधारकों का विश्वास था कि पर्दे में बन्द रहकर नारी कभी उन्नति नहीं कर सकती, इसलिए उन्होंने स्त्रियों को पर्दा न करने के लिए प्रेरित किया।
4. स्त्रियों को ऊंचा उठाने के लिए समाज-सुधारकों ने स्त्री शिक्षा पर विशेष बल दिया।
प्रश्न 13.
ब्रह्म समाज की सामाजिक उपलब्धियों पर नोट लिखें।
उत्तर-
ब्रह्म समाज की स्थापना 1828 ई० में राजा राममोहन राय ने की। इस संस्था की सामाजिक उपलब्धियों का वर्णन इस प्रकार है-
1. राजा राममोहन राय ने सती प्रथा का अन्त करने का प्रयास किया। उनके प्रयत्नों से लॉर्ड विलियम बैंटिक ने 1829 ई० में एक कानून पास करके सती प्रथा को अवैध घोषित कर दिया।
2. ब्रह्म समाज ने जातीय भेद-भाव, छुआछूत, मानव-बलि, बहु-पत्नी विवाह तथा अन्य अनेक सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई।
3. ब्रह्म समाज ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल दिया।
4. ब्रह्म समाज ने देश में पश्चिमी शिक्षा और पश्चिमी सभ्यता के प्रसार पर बल दिया। 1817 ई० में राजा राममोहन राय ने कलकत्ता (कोलकाता) में एक अंग्रेजी स्कूल का संचालन किया। उन्होंने 1825 ई० में एक वेदान्त कॉलेज की स्थापना की जहां पश्चिमी ढंग से शिक्षा का प्रसार होता था।
प्रश्न 14.
आर्य समाज की राजनीतिक उपलब्धियों के बारे में लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक क्षेत्र में भी आर्य समाज का योगदान बड़ा ही महत्त्वपूर्ण था। स्वामी दयानन्द पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने ‘स्वराज्य’ शब्द का प्रयोग किया। स्वामी जी ने लोगों को कहा कि वे विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करें। साथ ही उन्होंने लोगों को स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग के लिए प्रेरणा दी। उन्होंने हिन्दी को राज्यभाषा का पद दिलाने की पहल की। स्वतन्त्रता आन्दोलन में कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले कुछ व्यक्ति भी आर्य समाज से प्रभावित थे। इस आन्दोलन में भाग लेने वाले लाला लाजपतराय, मदन मोहन मालवीय, स्वामी श्रद्धानन्द, रामभज आदि व्यक्ति आर्य समाज से ही सम्बन्ध रखते थे। इसके अतिरिक्त क्रान्तिकारी आन्दोलन में आर्य समाज ने काफ़ी योगदान दिया।
IV. निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ब्रह्म समाज की उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर-
ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय थे। वह एक उच्चकोटि के समाज सुधारक थे। उन्होंने हिन्दू समाज में से न केवल प्रचलित कुप्रथाओं का ही अन्त किया, बल्कि उसे इसाई धर्म के प्रभाव से भी बचाया। उन्होंने सबसे पहले आत्मीय सभा की स्थापना की। इसके पश्चात् 1828 ई० में उन्होंने ब्रह्म समाज की नींव डाली। उन्होंने ब्रह्म समाज के माध्यम से समाज में प्रचलित अनेक कुप्रथाओं का विरोध किया। उन्होंने लोगों का ध्यान वेदों तथा उपनिषदों की महानता की ओर दिलाया और उनसे वेदों द्वारा बताये गये मार्ग पर चलने को कहा।
राजा राममोहन राय की मृत्यु के पश्चात् ब्रह्म समाज दो शाखाओं में बंट गया। पहली शाखा आदि समाज की थी जिसका नेतृत्व देवेन्द्रनाथ टैगोर ने किया। दूसरी शाखा साधारण समाज की थी जिसका नेतृत्व केशवचन्द्र सेन ने किया। ब्रह्म समाज अथवा राजा राममोहन राय की उपलब्धियों का वर्णन इस प्रकार है-
1. सामाजिक जागृति-
- राजा राममोहन राय ने सती-प्रथा का अन्त करने का प्रयास किया। उनके प्रयत्नों से 1829 ई० में लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने एक कानून पास करके सती-प्रथा को अवैध घोषित कर दिया। यह राजा राममोहन राय तथा ब्रह्म समाज की बहुत बड़ी विजय थी।
- उन्होंने जातीय भेद-भाव, छुआछूत, मानव बलि तथा अन्य सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई।
- उन्होंने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल दिया।
2. धार्मिक जागृति-
- उन्होंने मूर्ति-पूजा तथा अन्ध-विश्वासों का जोरदार खण्डन किया।
- उन्होंने लोगों को एक ही ईश्वर में विश्वास रखने के लिए प्रेरित किया।
- उन्होंने लोगों को पापों से दूर रहने और अच्छे कर्म करने का उपदेश दिया। उनका कहना था कि ईश्वर की भक्ति ही मोक्ष-प्राप्ति का एकमात्र साधन है।
3. सांस्कृतिक जागृति-राजा राममोहन राय ने देश में पश्चिमी शिक्षा और पश्चिमी सभ्यता के प्रसार पर बल दिया। उनका कहना था कि पश्चिमी विचारों के प्रसार से सामाजिक कुरीतियाँ अपने-आप दूर हो जाएंगी। शिक्षा के प्रसार के लिए उन्होंने 1817 ई० में कलकत्ता (कोलकाता) में एक अंग्रेजी स्कूल का संचालन किया। ब्रह्म समाज ने 1825 ई० में एक वेदान्त कॉलेज की स्थापना की जहां पश्चिमी ढंग से शिक्षा का प्रसार किया जाता था। .. सच तो यह है कि राजा राममोहन राय ने भारतीय समाज को कई कुरीतियों से मुक्त कराने में महान् कार्य किया। इसलिए उन्हें नये युग का अग्रदूत और भारतीय राष्ट्रवाद का पिता कहा जाता है। मिस कोलिट के अनुसार, “उन्होंने भारत को उसके अतीत से आधुनिक युग में लाने के लिए एक पुल का कार्य किया।”
प्रश्न 2.
आर्य समाज पर एक विस्तृत नोट लिखो।
उत्तर-
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द जी थे। उन्होंने 1875 ई० में बम्बई (मुम्बई) के स्थान पर आर्य समाज की स्थापना की। लाहौर में आर्य समाज की स्थापना अप्रैल, 1877 में हुई। शीघ्र ही लाहौर आर्य समाज का मुख्य केन्द्र बन गया।
उद्देश्य तथा आदर्श-आर्य समाज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य वेदों का प्रचार करना तथा मूर्ति पूजा और खोखले रीतिरिवाजों का खण्डन करना था। स्वामी जी ने कर्म व मोक्ष पर भी बल दिया। उन्होंने लोगों को “पुनः वेदों की ओर चलो” का आदेश दिया। उनके द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश में वेदों का ज्ञान भण्डार छिपा है।
उन्होंने स्त्री व पुरुष की समानता पर बल दिया। इसलिए उन्होंने कन्या वध तथा सती प्रथा जैसी कुरीतियों का विरोध किया। वह विधवा विवाह के पक्ष में थे। स्वामी जी ने जाति-पाति का भी कड़ा विरोध किया।
उन्होंने समाज में अज्ञानता को दूर करने के लिए अनिवार्य शिक्षा का समर्थन किया। वह स्त्री शिक्षा के भी समर्थक थे। उन्होंने हिन्दी भाषा को राष्ट्रीय भाषा बनाने का तर्क प्रस्तुत किया।
30 अक्तूबर, 1883 ई० को स्वामी दयानन्द का देहान्त हो गया। उनके पश्चात् भी उनके अनुयायियों ने आर्य समाज के कार्य का प्रसार किया।
धार्मिक कार्य-धार्मिक क्षेत्र में आर्य समाज ने मूर्ति पूजा व कर्मकाण्डों का त्याग करने की शिक्षा दी।।
सामाजिक कार्य-
(i) आर्य समाज ने जाति-पाति की कड़ी आलोचना की। निम्न वर्ग का स्तर ऊँचा उठाने के लिए शिक्षा तथा आर्थिक सहायता का प्रबन्ध किया। इस दिशा में उनका दूसरा प्रयास शुद्धि आन्दोलन था।
(ii) समाज ने अनाथ बच्चों के लिए अनाथालय स्थापित किए।
(iii) विधवा स्त्रियों की सहायता के लिए विधवा आश्रम स्थापित किए गए। शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा के क्षेत्र में आर्य समाज का बहुमूल्य योगदान है। स्वामी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उनके अनुयायियों ने 1886 ई० में दयानन्द ऐंग्लो वैदिक (D.A.V.) के नाम पर शिक्षण संस्थाएं स्थापित की।
राजनीतिक क्षेत्र में स्वामी जी की स्वराज्य की प्राथमिकता ने इनके अनुयायियों को देश प्रेम से ओत-प्रोत कर दिया। लाला लाजपत राय, स्वामी हंसराज, स्वामी श्रद्धानन्द, मदन मोहन मालवीय तथा रामभज जैसे बहुत से आर्य समाजियों ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।।
प्रश्न 3.
नामधारी (कूका) आन्दोलन पर विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
नामधारी आन्दोलन का आरम्भ-नामधारी लहर का आरम्भ 1857 ई० में हुआ। इस वर्ष वैशाखी के दिन बाबा रामसिंह ने एक सम्प्रदाय की स्थापना की, जिसे ‘नामधारी’ सम्प्रदाय कहा जाता है। ‘नामधारी’ लोग मन्त्रों को मस्ती में उच्च स्वर में गाते थे। ऊंचे स्वर में गाए जाने वाले गीत अथवा कूक के कारण उन्हें कूका कहा जाने लगा और उनके प्रचार कार्य को ‘कूका आन्दोलन’ का नाम दिया गया। इस लहर का प्रमुख केन्द्र भैणी गांव था जोकि ज़िला लुधियाना में स्थित है। बाबा रामसिंह जी स्वयं भी यहीं के रहने वाले थे।
नामधारी आन्दोलन के सिद्धान्त अथवा शिक्षाएं-इस आन्दोलन के प्रमुख सिद्धान्त और शिक्षाएं निम्नलिखित थी-
- एक ईश्वर में श्रद्धा।
- श्वेत वस्त्र तथा श्वेत ऊन के मनकों की माला पहनना और सीधी पगड़ी पहनना।
- श्री गुरु ग्रन्थ साहिब पर अटल विश्वास रखना तथा इसका पाठ करना।
- गुरु गोबिन्द सिंह को अपना गुरु मानना।
- बाल विवाह, कन्या वध, गो हत्या, दहेज तथा जाति-पाति का विरोध करना।
- सादा जीवन, नशीली वस्तुओं का निषेध, पुरोहित वाद, मूर्ति पूजा का खण्डन तथा अन्धविश्वासों का विरोध करना।
- पांच ककार धारण करना।
बाबा रामसिंह अंग्रेज़ विरोधी थे तथा स्वदेशी को महत्त्व देते थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को अंग्रेज़ सरकार की नौकरी अस्वीकार करने के लिए कहा। यहां तक कि उन्होंने लोगों को रेल, सरकारी विद्यालय, नौकरियां, कार्यालय, अदालतें, सरकारी डाक-तार आदि का बहिष्कार करने के लिए भी कहा। बाबा राम सिंह ने लोगों को विदेशी वस्तुओं तथा कपड़े का भी बहिष्कार करने की शिक्षा दी। उन्होंने लोगों को चर्खे पर बने खद्दर का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया।
अंग्रेजी सरकार से टकराव-नामधारी सिक्खों ने शीघ्र ही शस्त्र धारण कर लिए। फलस्वरूप अंग्रेजों के साथ उनकी सीधी टक्कर आरम्भ हो गई। उस समय अनेक इसाई मिशनरी सिक्खों के विरुद्ध प्रचार करते थे और अंग्रेजों की ओर से ‘गो हत्या’ की भी खुली छूट थी। नामधारी सिक्ख इन बातों को सहन न कर सके और उन्होंने रायकोट के बूचड़खाने पर आक्रमण करके अनेक गो-हत्यारों को मार डाला। इस आरोप में 66 नामधारियों को तोपों से उड़ा दिया गया। बाबा रामसिंह जी को भी देश-निकाला देकर रंगून भेज दिया गया। यहीं पर 1885 ई० में उनका देहान्त हो गया। इसके बाद भी कुछ नामधारियों ने अपना धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रम जारी रखा।
प्रश्न 4.
सिंह सभा लहर क्या थी और यह किस प्रकार अस्तित्व में आई ?
उत्तर-
पंजाब में नामधारी आन्दोलन की गति धीमी होने के बाद सिक्खों में एक अन्य लहर चली। यह लहर थी-सिंह सभा लहर। यह लहर बड़ी ही महत्त्वपूर्ण थी। इस लहर का राजनीति से इतना सम्बन्ध नहीं था जितना कि सिक्खों की सामाजिक तथा धार्मिक गतिविधियों से था। सिंह सभा आन्दोलन का आरम्भ सिक्खों ने अपनी कौमी सुरक्षा के लिए किया।
पहली सिंह सभा की स्थापना 1873 ई० को हुई। खेम सिंह बेदी, विक्रम सिंह आहलूवालिया और ठाकुर सिंह संधावालिया को इस सभा का प्रधान चुन लिया गया। 1879 ई० में लाहौर में एक और सभा की स्थापना की गई। इस सभा के सदस्य मध्यवर्गीय पढ़े-लिखे व्यक्ति थे। पंजाब का गवर्नर सर रॉबर्ट इजर्टन भी इस सभा का सदस्य बन गया और उसने उस समय के वायसराय लॉर्ड लैंसडाऊन को सभा की सहायता करने के लिए कहा। अप्रैल, 1880 ई० को दोनों सभाओं की संयुक्त बैठक हुई परन्तु मामला सुलझ न सका। – 1892-93 ई० में सरदार सुन्दर सिंह मजीठिया नेता के रूप में उभरे। उनका ‘अमृतसर खालसा दीवान’ तथा ‘लाहौर खालसा दीवान’ में समान प्रभाव था। उन्होंने 11 नवम्बर, 1901 ई० को कुछ प्रसिद्ध सिक्ख नेताओं की अमृतसर में सभा बुलाई। इस सभा में एकमत से यह प्रस्ताव पास किया गया कि सिक्खों को एक सर्व-सिक्ख सभा की आवश्यकता है जो उनके हितों की रक्षा करे। लाहौर के खालसा दीवान को भी इसमें शामिल होने के लिए कहा गया जिसने यह बात सहर्ष स्वीकार कर ली। अतः 30 अक्तूबर, 1902 ई० को ‘चीफ खालसा दीवान’ की स्थापना हुई। चीफ खालसा दीवान के उद्देश्य थे-
- उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए खालसा कॉलेज को दृढ़ करना और उसका विकास करना
- सिक्खों में शिक्षा आन्दोलन को संगठित करना तथा स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना करना।
- पंजाबी साहित्य को सुधारना।
प्रश्न 5.
सिंह सभा लहर की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
सिंह सभा की सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है-
(1) अमृतसर में एक खालसा कॉलेज की स्थापना की गई। यह कॉलेज शीघ्र ही पंजाबी साहित्य का एक मुख्य केन्द्र बन गया। पंजाब के बहुत से नगरों में खालसा स्कूल खोले गए। इन स्कूलों में बच्चों को गुरुमुखी भाषा में शिक्षा दी जाने लगी।
(2) 1908 ई० के पश्चात् प्रान्त के अनेक भागों में वार्षिक शिक्षा सभाओं का आयोजन किया गया। इसके परिणामस्वरूप कई नई सिक्ख संस्थाओं की स्थापना हुई। इसमें गुजरांवाला का खालसा कॉलेज तथा फिरोज़पुर में सिक्ख कन्या महाविद्यालय प्रमुख थे।
(3) सिंह सभा ने सिक्ख धर्म के प्रचार की ओर भी पूरा ध्यान दिया। साहबसिंह बेदी, अतरसिंह, खेमसिंह बेदी तथा संगत सिंह ने धर्म प्रचार का बड़ा सराहनीय कार्य किया। इसके परिणामस्वरूप बहुत से हिन्दू सिक्ख धर्म में शामिल हो गए।
(4) भाई वीर सिंह ने ‘खालसा ट्रैक्ट सोसायटी’ की स्थापना की। उन्होंने खालसा समाचार नाम का समाचार-पत्र भी आरम्भ किया। भाई काहन सिंह जी ने इसमें अमूल्य योगदान दिया। उन्होंने सिक्ख धर्म तथा संस्कृति पर विश्व कोष लिखा। भाई दित्त सिंह . तथा अन्य अनेक कवियों तथा गद्य लेखकों ने पंजाब के साहित्य को समृद्ध बनाया।