PSEB 11th Class History Solutions Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
1924 से 1934 तक के स्वतन्त्रता संघर्ष की मुख्य घटनाओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1922 में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। श्री चितरंजन दास ने अधिवेशन में यह योजना रखी कि कांग्रेस को परिषदों के चुनावों में भाग लेना चाहिए और सरकार का विरोध करना चाहिए। लेकिन गांधी जी और उनके साथियों के विरोध के कारण यह योजना रद्द कर दी गई। परिणामस्वरूप श्री चितरंजन दास ने कांग्रेस से त्याग-पत्र दे दिया। उन्होंने परिषदों के चुनावों में भाग लेने के लिए एक पृथक् दल की स्थापना की। उस दल का नाम था-स्वराज्य पार्टी। पं० मोती लाल नेहरू ने भी इस . पार्टी के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

1. स्वराज्य पार्टी की गतिविधियां-1919 ई० के एक्ट के अन्तर्गत 1923 ई० में दूसरे चुनाव हुए। स्वराज्य दल ने भी इसमें भाग लिया। उन्होंने विधानसभा की 145 में से 45 सीटें प्राप्त की। इस प्रकार विधानसभा में उनका स्पष्ट बहुमत स्थापित हो गया। चुनावों के पश्चात् स्वराज्य दल ने परिषदों में प्रवेश किया। उन्होंने दोहरी शासन प्रणाली के अन्तर्गत प्रशासन करना असम्भव बना दिया। 21 फरवरी, 1924 ई० को श्री चितरंजन दास ने यह घोषणा की कि वह जब तक बंगाल में अपना मन्त्रिमण्डल नहीं बनायेंगे तब तक संविधान में परिवर्तन नहीं किया जाएगा। इसी प्रकार दूसरे प्रान्तों में भी स्वराज्य दल ने अपनी मांगें जारी रखीं। अन्त में फरवरी, 1924 ई० में एक कमेटी (मुद्दीमेन कमेटी) स्थापित की गई। इस कमेटी का उद्देश्य दोहरे शासन में आई कमियों को दूर करना था।

स्वराज्य पार्टी ने 1924-25 ई० में केन्द्रीय विधानसभा में वित्तीय बिल अस्वीकार कर दिया। इसमें गवर्नर-जनरल को अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करना पड़ा। इसके पश्चात् 1925-26 ई० में उन्होंने कुछ राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग की परन्तु सरकार ने उनकी मांगों की ओर कोई ध्यान न दिया। 1925 ई० के पश्चात् स्वराज्य पार्टी अवनति की ओर जाने लगी। 1926 ई० के चुनावों में स्वराज्यवादियों को अधिक सीटें न मिल सकीं। परिणामस्वरूप स्वराज्य दल का महत्त्व कम होने लगा। अन्ततः स्वराज्य दल और कांग्रेस के अन्य नेता एक बार फिर एक हो गए।

2. साइमन कमीशन-माण्टेग्यू फोर्ड सुधारों (1919) की एक धारा यह भी थी कि 10 वर्ष के पश्चात् यह जांच की जाएगी कि इस अधिनियम के अनुसार शासन ने कितनी प्रगति की है। यह कार्य 1929 में होना था, परन्तु भारतीय जनता तथा नेताओं की बढ़ती हुई बेचैनी को दूर करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने, 1928 में ही एक कमीशन की नियुक्ति कर दी जो अगले वर्ष भारत आया। इस कमशीन को ‘साइमन कमीशन’ कहा जाता है। इस कमीशन में सात सदस्य थे, परन्तु उनमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था। इस लिये गान्धी जी तथा कांग्रेस के अन्य नेताओं ने इसका बॉयकाट किया। हर नगर में कमीशन के विरुद्ध जलूस निकाले गये। स्थान-स्थान पर इसे काले झण्डे दिखाए गए और ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे लगाए गए। लाहौर में जलूस का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। पुलिस ने इस पर खूब लाठियां बरसाईं। उन्हें काफी चोटें आईं जिसके कारण कुछ ही दिनों पश्चात् उनकी मृत्यु हो गई। क्रान्तिकारी नवयुवकों ने मि० सांडर्स को गोली से उड़ाकर उनकी मृत्यु का बदला लिया। इन क्रान्तिकारियों में भगत सिंह, राजगुरु आदि प्रमुख थे।

3. पूर्ण स्वराज्य की मांग-साइमन कमीशन का प्रत्येक स्थान पर भारी विरोध किया गया था। परन्तु कमीशन ने विरोध के बावजूद अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। साइमन कमीशन की रिपोर्ट को भारत के किसी भी राजनीतिक दल ने स्वीकार नहीं किया। अत: अंग्रेज़ी सरकार ने भारतीयों को सर्वसम्मति से अपना संविधान तैयार करने की चुनौती दी। इस विषय में भारतीयों ने अगस्त, 1928 ई० में नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की, परन्तु अंग्रेजी सरकार ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। परिणामस्वरूप भारतीयों की निराशा और अधिक बढ़ गई।

1929 ई० में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में हुआ। यह अधिवेशन भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। पण्डित जवाहर लाल नेहरू इस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गये। गांधी जी ने ‘पूर्ण स्वराज्य’ का प्रस्ताव पेश किया जो पास कर दिया गया। 31 दिसम्बर की आधी रात को नेहरू जी ने रावी नदी के किनारे स्वतन्त्रता का तिरंगा झण्डा फहराया। यह भी निश्चित हुआ कि हर वर्ष 26 जनवरी को स्वतन्त्रता दिवस मनाया जाये। 26 जनवरी, 1930 को यह दिन सारे भारत में बड़े जोश के साथ मनाया गया और लोगों ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने की प्रतिज्ञा की। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने सरकारी कानूनों तथा संस्थाओं का बहिष्कार करने की नीति अपनाई।

4. सविनय अवज्ञा आन्दोलन-सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 में चलाया गया। इस आन्दोलन का उद्देश्य सरकारी कानूनों को भंग करके सरकार के विरुद्ध रोष प्रकट करना था। आन्दोलन का आरम्भ गान्धी जी ने डांडी यात्रा से किया। 12 मार्च, 1930 ई० को उन्होंने साबरमती आश्रम से अपनी यात्रा आरम्भ की। मार्ग में अनेक लोग साथ मिल गये। 24 दिन की कठिन यात्रा के बाद वे समुद्र तट पर पहुंचे और उन्होंने समुद्र से नमक लाकर नमक कानून भंग किया। इसके बाद सारे देश में लोगों ने सरकारी कानूनों को भंग करना आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन को दबाने के लिए सरकार ने बड़ी कठोरता से काम लिया। हजारों देशभक्तों को जेल में डाल दिया गया। गान्धी जी को भी बन्दी बना लिया गया। यह आन्दोलन फिर भी काफी समय तक चलता रहा। गांधी इरविन समझौते (1931) के बाद गान्धी जी ने दूसरी गोलमेज़ कांफ्रेंस में भाग लिया। परन्तु वापसी पर उन्हें बन्दी बना लिया गया। इस तरह देश में 1934 तक सविनय अवज्ञा आन्दोलन जारी रहा।

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प्रश्न 2.
1935 से 1947 तक के स्वतन्त्रता संघर्ष की मुख्य घटनाओं की चर्चा करें।
उत्तर-
1935 के एक्ट के पश्चात् देश की राजनीति ने नया मोड़ लिया। 1937 में प्रान्तों में चुनाव हुए। कांग्रेस ने 11 में से 8 प्रान्तों में सरकारें स्थापित की। परन्तु द्वितीय महायुद्ध के आरम्भ ने सारी स्थिति ही बदल डाली।

दूसरे महायुद्ध का प्रभाव-1939 में दूसरा महायुद्ध आरम्भ हो गया। अंग्रेजी सरकार ने भारतीय नेताओं से पूछे बिना ही जर्मनी के विरुद्ध भारत के युद्ध में भाग लेने की घोषणा कर दी। इसके विरोध में सभी कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र दे दिए और गांधी जी ने ‘सत्याग्रह’ आरम्भ कर दिया। उन्होंने जनता से कहा-“न दो भाई, न दो पाई।” गांधी जी के इन शब्दों का अर्थ है कि कोई भी भारतीय इस युद्ध में अंग्रेज़ी साम्राज्य की सहायता नहीं करेगा। कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों के त्यागपत्र देने से मुस्लिम लीग के नेता मिस्टर जिन्नाह बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने 22 दिसम्बर, 1939 का दिन ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया। 1940 में उन्होंने पाकिस्तान की मांग की। दूसरे महायुद्ध में अंग्रेजों की दशा शोचनीय होती चली जा रही थी।

जापान बर्मा तक बढ़ आया था। भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा गया। उन्होंने भारतीय नेताओं से बातचीत की और भारत को ‘डोमीनियन स्टेट्स’ देने की सिफारिश की। यह बात कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों को स्वीकार नहीं थी। कांग्रेस देश की स्वतन्त्रता तुरन्त चाहती थी, परन्तु क्रिप्स के सुझाव में अधिराज्य की व्यवस्था (Dominion Status) थी और वह भी युद्ध के बाद दिया जाना था। अतः गान्धी जी ने इस सुझाव की तुलना एक ऐसे चैक से की जिस पर बाद की तिथि पड़ी हुई है और ऐसे बैंक के नाम पर है जो फेल होने वाला है।

भारत छोड़ो आन्दोलन-जापान के आक्रमण का भय दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। वह हिन्द-चीन को जीत चुका था। उसका अगला निशाना भारत ही था। जापानी लोग अंग्रेजों के कारण ही भारत पर आक्रमण करना चाहते थे। अतः महात्मा गान्धी ने अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने का सुझाव दिया और कहा कि हम जापान से अपनी रक्षा स्वयं कर लेंगे। 8 अगस्त, 1942 को बम्बई (मुम्बई) में कांग्रेस ने ‘अंग्रेज़ो ! भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पास कर दिया। प्रस्ताव की व्याख्या करते हुए गांधी जी ने जनता को ‘करो या मरो’ की बात कही। अगले दिन सरकार ने गांधी जी तथा अन्य नेताओं को बन्दी बना लिया। देश भर में आन्दोलन बड़ी तेज़ी से चला। दुकानदारों, किसानों, मज़दूरों, छात्रों सभी ने जलूस निकाले । सरकारी इमारतों पर तिरंगे झण्ड़े लहरा दिए गए। ‘अंग्रेज़ो, भारत छोड़ो’, ‘गान्धी जी की जय’, ‘टोडी बच्चा हाय हाय’ के नारे से भारत का नगर-नगर गूंज उठा। तोड़-फोड़ भी हुई। आन्दोलन को कुचलने के लिए सरकार ने पूरा जोर लगाया। लाखों लोगों को जेलों में ढूंस दिया गया। सैंकड़ों को गोली से भून दिया गया। लोगों को मार्ग दिखाने वाला कोई भी नेता बाहर नहीं था। फलस्वरूप आन्दोलन शिथिल पड़ गया।

आज़ाद हिन्द फ़ौज-इसी बीच नेता जी सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज़ी सरकार की नज़रों से बचकर भारत से भाग निकले। वे जर्मनी गये और वहां से जापान पहुंचे। वहां उन्होंने जापान द्वारा कैद किए गए भारतीय कैदियों को संगठित किया और आज़ाद हिन्द फ़ौज की कमान सम्भाली। नेता जी इस सेना के बल पर भारत को स्वतन्त्र कराना चाहते थे। उन्होंने भारत पर आक्रमण किया और इम्फाल का प्रदेश जीत लिया, लेकिन इसी बीच जापान की हार हुई जिससे आज़ाद हिन्द फ़ौज की शक्ति भी कम हो गई। कुछ ही समय बाद नेता जी का एक हवाई दुर्घटना में देहान्त हो गया। ब्रिटिश सरकार ने दस हज़ार आज़ाद हिन्द सैनिकों को रंगून में बन्दी बनाया।

सेना के तीन उच्चाधिकारियों शाह नवाज़ खां, प्रेम कुमार सहगल तथा गुरबख्श सिंह ढिल्लों पर राजद्रोह का आरोप लगा कर लाल किले में मुकद्दमा चलाया गया। पण्डित जवाहर लाल नेहरू, भोला शंकर देसाई तथा तेज बहादुर सप्रू ने इनकी वकालत की। 1857 ई० में बहादुरशाह के बाद राजद्रोह के आरोप में चलाया गया यह भारतीय इतिहास का दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण मुकद्दमा था। सैनिक अदालत ने अभियुक्तों को आजन्म कारावास की सजा सुनाई। निर्णय सुनते ही जनता में रोष फैल गया और सरकार के विरुद्ध भारी प्रदर्शन हुए। उन दिनों बच्चे-बच्चे की जुबान पर ये शब्द थे’लाल किले से आई आवाज़-सहगल, ढिल्लों शाहनवाज़।” भारतीय सेना में भी विद्रोह की भावना फैल गई। फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा और तीनों अभियुक्त छोड़ दिए गए।

कैबिनेट मिशन-दूसरे विश्वयुद्ध के कारण इंग्लैण्ड की आर्थिक दशा काफी खराब हो गई। साथ ही इंग्लैण्ड की सत्ता ‘लेबर पार्टी’ के हाथ में आ गई। नये प्रधानमन्त्री एटली की भारत से काफी सहानुभूति थी। उसने सितम्बर, 1945 में एक ऐतिहासिक घोषणा की जिसमें भारत के स्वाधीनता के अधिकार को स्वीकार किया गया। भारतीयों को सन्तुष्ट करने के लिए ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल के तीन सदस्यों का एक दल भारत आया। इसे ‘कैबिनेट मिशन’ कहा जाता है। इसने भारत को स्वतन्त्रता के लिए योजना पेश की जिसमें यह कहा गया कि भारत एक संघ राज्य रहेगा और सारा देश एक केन्द्र के अधीन तीन खण्डों में बांटा जायेगा। केन्द्र में 14 मन्त्री होंगे जिसमें 6 कांग्रेसी, 5 मुस्लिम लीग के और 3 अन्य होंगे। सभी दलों ने इसे मान लिया। इसी योजना के अनुसार देश भर में संविधान सभा के चुनाव हुए जिसमें 296 सीटों में से मुस्लिम लीग को केवल 73 स्थान प्राप्त हुए। इस चुनाव को देख कर मि० जिन्नाह ने कैबिनेट मिशन योजना अस्वीकार कर दी।

मुस्लिम लीग की सीधी कार्यवाही तथा भारत की स्वतन्त्रता-मुस्लिम लीग ने अपनी पाकिस्तान की मांग दोहराई और सीधी कार्यवाही करने की धमकी दी। 16 अगस्त, 1946 को देश भर में सीधी कार्यवाही दिवस मनाया गया। स्थान-स्थान पर जलूस निकाले गए जिन में यह नारा लगाया गया-मारेंगे, मर जाएंगे पाकिस्तान बनाएंगे। कलकत्ता (कोलकाता) में हज़ारों हिन्दू कत्ल कर दिए गए। हिन्दुओं ने बिहार में मुसलमानों की हत्याएं कीं। यह देश का दुर्भाग्य था कि हिन्दू-मुसलमान इकट्ठे मिलकर न रह सके और सारे देश में साम्प्रदायिक दंगे फैल गए। इन परिस्थितियों में देश के विभाजन का वातावरण तैयार हो गया। ब्रिटिश सरकार ने यह समझ लिया कि कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में समझौता नहीं हो सकता।

नये वायसराय लॉर्ड माऊंटबेटन ने गांधी जी, नेहरू,पटेल और मौलाना आज़ाद से बातचीत की और उन्हें यह समझाया कि साम्प्रदायिक झगड़ों को रोकने के लिए भारत का विभाजन आवश्यक है। नेताओं ने भी देश के वातावरण को देख कर भारत का बंटवारा मान लिया। आखिर 3 जून, 1947 को लॉर्ड माऊंटबेटन ने पाकिस्तान बनाये जाने की घोषणा कर दी। जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद् ने भारत स्वतन्त्रता कानून पास कर दिया। इसके अनुसार 14 अगस्त को पाकिस्तान बन गया और 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत स्वतन्त्र हो गया।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

नोट : ये प्रश्न अध्याय 21 में ही दे दिए गए हैं।

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1921 में पंजाब में कौन-से राजनीतिक दल ने चनाव जीता तथा इसके दो नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
1921 में पंजाब में सर फज़ल-ए-हुसैन तथा सर छोटू राम के नेतृत्व में यूनियनिस्ट पार्टी ने चुनाव जीता।

प्रश्न 2.
स्वराज्य पार्टी का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
स्वराज्य पार्टी का मुख्य उद्देश्य था-चुनाव में भाग लेना तथा कौंसिलों में रहकर स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करना।

प्रश्न 3.
स्वराज्य पार्टी के दो नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
पण्डित मोती लाल नेहरू और देशबन्धु चितरंजन दास स्वराज्य पार्टी के नेता थे।

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प्रश्न 4.
स्वराज्य पार्टी के प्रभाव अधीन कौन-से दो एक्ट स्थगित हो गए ?
उत्तर-
स्वराज्य पार्टी के प्रभाव अधीन रौलेट एक्ट और प्रेस एक्ट स्थगित हो गए।

प्रश्न 5.
1920 में गुरुद्वारा सुधार के लिए कौन-से दो संगठन अस्तित्व में आए ?
उत्तर-
1920 में गुरुद्वारा सुधार के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी और शिरोमणि अकाली दल अस्तित्व में आए।

प्रश्न 6.
गुरुद्वारा सुधार के लिए दो महत्त्वपूर्ण मोर्चों के नाम तथा वर्ष बताइए।
उत्तर-
इनमें गुरु का बाग (1921) तथा जैतो (1923) के मोर्चे प्रसिद्ध हैं।

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प्रश्न 7.
गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन में लगभग कितने लोग मारे गए तथा कितने घायल हुए ?
उत्तर-
इस दौरान लगभग 400 लोग मारे गए तथा 2,000 लोग घायल हुए।

प्रश्न 8.
‘गुरुद्वारा एक्ट’ कब पास हुआ तथा इसके द्वारा गुरुद्वारे कौन-सी संस्था के नियन्त्रण में आ गए थे ?
उत्तर-
गुरुद्वारा एक्ट 1925 में पास हुआ तथा इसके द्वारा सब गुरुद्वारे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के नियन्त्रण में आ गए।

प्रश्न 9.
1922 में चल रहे कौन-से दो आन्दोलन अहिंसा पर आधारित थे ?
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन और खिलाफत आन्दोलन अहिंसा पर आधारित थे।

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प्रश्न 10.
‘बब्बर अकाली’ किस प्रकार के संघर्ष में विश्वास रखते थे तथा इनका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
बब्बर अकाली हिंसात्मक संघर्ष में विश्वास रखते थे तथा इनका उद्देश्य स्वराज्य प्राप्त करना था।।

प्रश्न 11.
किन वर्षों में तथा कौन-सा इलाका बब्बर अकालियों की सरगर्मियों का गढ़ रहा ?
उत्तर-
1922 से 1924 तक जालन्धर दोआब इनका गढ़ रहा।

प्रश्न 12.
‘नौजवान भारत सभा’ की नींव कब और कौन-से प्रान्त में रखी गई ?
उत्तर-
नौजवान भारत सभा की नींव 1926 में लाहौर प्रान्त में रखी गई।

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प्रश्न 13.
जिन दो क्रान्तिकारी संगठनों की स्थापना में भगत सिंह ने योगदान दिया था, उनके नाम बताएं।
उत्तर-
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में भगत सिंह ने योगदान दिया था।

प्रश्न 14.
‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के साथ सम्बन्धित दो क्रान्तिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ सम्बन्धित थे।

प्रश्न 15.
1929 में केन्द्रीय असैम्बली में बम फेंकने वाले दो क्रान्तिकारी कौन थे तथा इनका क्या मन्तव्य था ?
उत्तर-
1929 में केन्द्रीय असैम्बली में बम फेंकने वाले भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त थे तथा उनका मन्तव्य किसी को मारना नहीं बल्कि अंग्रेज़ सरकार के प्रति भारतीयों का रोष प्रकट करना था।

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प्रश्न 16.
भगत सिंह को किस पुलिस अफसर को मारने के अपराध में तथा कब फांसी दी गई ?
उत्तर-
भगत सिंह को सान्डर्स को मारने के अपराध में 23 मार्च, 1931 को फांसी दी गई।

प्रश्न 17.
भगत सिंह के साथ किन दो अन्य क्रान्तिकारियों को फांसी हुई ?
उत्तर-
सुखदेव और राजगुरु को भगत सिंह के साथ फांसी हुई।

प्रश्न 18.
चन्द्रशेखर आजाद ने कौन-से क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना करने में योगदान दिया तथा वह कब मारा गया ?
उत्तर-
चन्द्रशेखर आजाद ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट-रिपब्लिकन एसोसिएशन के संगठन की स्थापना करने में योगदान दिया और वे 1931 में मारे गए।

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प्रश्न 19.
ऊधम सिंह ने कब, कहां और किस अंग्रेज़ को गोली मारी थी ?
उत्तर-
ऊधम सिंह ने 1940 में लन्दन में माइकल ओडवायर को गोली मारी थी।

प्रश्न 20.
साइमन कमीशन कब तथा किस उद्देश्य से नियुक्त किया गया ?
उत्तर-
1927 में साइमन कमीशन नियुक्त किया गया था जिस का उद्देश्य था कि यह मांटेग्यू चैम्सफोर्ड विधान की कारवाई की रिपोर्ट दे और भविष्य में किए जाने वाले परिवर्तनों के बारे में सुझाव दे।

प्रश्न 21.
भारतीयों ने ‘साइमन कमीशन’ का विरोध क्यों किया तथा पंजाब के कौन-से नेता इस विरोध में घायल हुए तथा उनका देहान्त कब हुआ ?
उत्तर-
भारतीयों ने साइमन कमीशन का विरोध इसलिए किया क्योंकि कोई भी भारतीय इस कमीशन का सदस्य नहीं था। लाला लाजपतराय इस विरोध में घायल हुए और 1928 में उनकी मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 22.
1929 में कांग्रेस का अधिवेशन कहां हुआ ? इसका सबसे महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव क्या था तथा इसको किसने प्रस्तुत किया ?
उत्तर-
1929 में कांग्रेस का अधिवेशन लाहौर में हुआ। इसका महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पूर्ण स्वतन्त्रता का प्रस्ताव था जिसे जवाहर लाल ने पेश किया था।

प्रश्न 23.
1929 के कांग्रेस के अधिवेशन में कौन-सा झण्डा लहराया गया तथा कौन-सा दिन स्वतन्त्रता दिवस निश्चित हुआ ?
उत्तर-
1929 के कांग्रेस के अधिवेशन में तिरंगा झण्डा लहराया गया तथा 26 जनवरी, 1930 को स्वतन्त्रता दिवस निश्चित हुआ।

प्रश्न 24.
महात्मा गान्धी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरम्भ किस स्थान से, कब तथा किस तरह किया ?
उत्तर-
महात्मा गान्धी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरम्भ 6 अप्रैल, 1930 ई० को समुद्र तट पर नमक बना कर किया।

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प्रश्न 25.
खान अब्दुल गफ्फार खां किस नाम से प्रसिद्ध हुए तथा उन्होंने कौन-सी संस्था का संगठन किया ?
उत्तर-
खान अब्दुल गफ्फार खाँ सीमान्त गांधी के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने खुदाई खिदमतगारों की संस्था का संगठन किया।

प्रश्न 26.
पहली गोलमेज़ कांफ्रैंस कब, कहां तथा किस लिए बुलाई गई ?
उत्तर-
पहली गोलमेज़ कांफ्रैंस 1930 ई० में लन्दन में बुलाई गई। यह कांफ्रैंस साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार करने के लिए बुलाई गई।

प्रश्न 27.
महात्मा गान्धी ने कब और कौन-सी गोलमेज़ कांफ्रेंस में हिस्सा लिया ?
उत्तर-
महात्मा गान्धी ने 1931 में दूसरी गोलमेज़ कांफ्रेंस में हिस्सा लिया।

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प्रश्न 28.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब आरम्भ हुआ तथा इसमें कितने सत्याग्रही गिरफ्तार हुए ?
उत्तर-
सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 ई० में आरम्भ हुआ। इसमें महात्मा गान्धी सहित 90 हज़ार सत्याग्रही गिरफ्तार हुए।

प्रश्न 29.
पंजाब के चार नगरों के नाम बताएं जिनमें सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान नमक का कानून तोड़ा गया ?
उत्तर-
पंजाब में लाहौर, अमृतसर, लायलपुर तथा लुधियाना में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान नमक कानून तोड़ा गया।

प्रश्न 30.
तीसरी गोलमेज़ कांफ्रैंस कब बुलाई गई तथा इसमें किस अधिनियम का ढांचा तैयार किया गया ?
उत्तर-
नवम्बर, 1932 में तीसरी गोलमेज़ कांफ्रैंस बुलाई गई तथा इसमें 1935 के अधिनियम का ढांचा तैयार किया गया।

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प्रश्न 31.
1935 के एक्ट में केन्द्र में कौन-सी चार संस्थाएं स्थापित करने का फैसला किया गया ?
उत्तर-
1935 के एक्ट में केन्द्र में विधानसभा और परिषद् के अतिरिक्त एक संघीय अथवा फैडरल तथा फैडरल पब्लिक सर्विस कमीशन कोर्ट स्थापित करने का फैसला किया गया।

प्रश्न 32.
1935 के एक्ट के अधीन प्रान्तों में चुनाव कब हुए तथा कितने प्रान्तों में कांग्रेस के मन्त्रिमण्डल बने ?
उत्तर-
1935 के एक्ट के अधीन प्रान्तों के चुनाव 1937 में हुए और सात प्रान्तों में कांग्रेस के मन्त्रिमण्डल बने।

प्रश्न 33.
1937 में किन दो प्रान्तों में कांग्रेस की सरकार नहीं बनी थी ?
उत्तर-
सिंध एवं पंजाब में कांग्रेस की सरकार नहीं बनी थी।

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प्रश्न 34.
स्वतन्त्रता से पूर्व भारत की दो साम्प्रदायिक राजनीतिक पार्टियों के नाम बताएं।
उत्तर-
भारत की दो साम्प्रदायिक राजनीतिक पार्टियों के नाम थे : मुस्लिम लीग तथा हिन्दू महासभा।

प्रश्न 35.
पाकिस्तान की मांग कब की गई तथा यह किस सिद्धान्त पर आधारित थी ?
उत्तर-
पाकिस्तान की मांग 1940 में की गई। यह मांग ‘दो राष्ट्रों के सिद्धान्त’ पर आधारित थी।

प्रश्न 36.
‘आल इण्डिया स्टेट्ज़ पीपुल्स कांफ्रैंस’ की स्थापना कब हुई तथा जवाहर लाल नेहरू इसके अध्यक्ष कब चुने गए ?
उत्तर-
आल इण्डिया स्टेज़ पीपुल्स कांफ्रैंस की स्थापना 1927 में हुई। 1939 में जवाहर लाल नेहरू इसके अध्यक्ष चुने गए।

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प्रश्न 37.
दूसरा विश्व युद्ध कब हुआ और कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र कब दिए ?
उत्तर-
दूसरा विश्व युद्ध सितम्बर, 1939 में शुरू हुआ था। 1940 में कांग्रेस के सभी मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र दे दिए।

प्रश्न 38.
1942 में जापानियों की कौन-सी विजय के पश्चात् अंग्रेज़ सरकार ने किस मन्त्री को भारत भेजा ?
उत्तर-
1942 में जापानियों ने रंगून पर अधिकार कर लिया तो अंग्रेज़ सरकार ने सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा।

प्रश्न 39.
भारत छोड़ो प्रस्ताव कब पास हुआ तथा इस आन्दोलन में कितने लोग मारे गए ? ।
उत्तर-
भारत छोड़ो प्रस्ताव 8 अगस्त, 1942 को बम्बई (मुम्बई) में पास हुआ तथा इस आंदोलन में 10,000 से अधिक लोग मारे गये।

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प्रश्न 40.
पंजाब में कौन-से चार नगरों में ‘भारत-छोड़ो’ आन्दोलन के समय लोगों ने विरोध प्रकट किया ?
उत्तर-
पंजाब में लाहौर, अमृतसर, लुधियाना तथा लायलपुर में लोगों ने विरोध प्रकट किया।

प्रश्न 41.
सुभाषचन्द्र बोस ने कौन-से दो संगठन बनाये थे ?
उत्तर-
सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फ़ौज और फारवर्ड ब्लाक नाम के दो संगठन बनाए थे।

प्रश्न 42.
दूसरे विश्व-युद्ध के समाप्त होने पर ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ के किन तीन अफसरों पर मुकदमा चलाया गया तथा इसकी पैरवी किसने की ? ।
उत्तर-
दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने पर आज़ाद हिन्द फ़ौज के जनरल शाहनवाज, जनरल गुरदियाल सिंह ढिल्लों और जनरल प्रेम सहगल पर मुकद्दमा चलाया गया। उनके मुकद्दमे की पैरवी पंडित जवाहर लाल ने की।

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प्रश्न 43.
दूसरे विश्व-युद्ध के बाद कौन-सा राजनीतिक दल ब्रिटेन में सत्ता में आया तथा विश्व के कौन-से दो बड़े देश भारत की स्वतन्त्रता के समर्थक थे ?
उत्तर-
दूसरे विश्व युद्ध के बाद लेबर पार्टी सत्ता में आ गई। अमेरिका और रूस भारत की स्वतन्त्रता के समर्थक थे।

प्रश्न 44.
1946 के चुनावों में कौन-से दो मुख्य राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया ?
उत्तर-
1946 के चुनावों में राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने हिस्सा लिया।

प्रश्न 45.
ब्रिटिश सरकार ने ‘कैबिनेट मिशन’ को कब भारत भेजा तथा उसको क्या आदेश था ?
उत्तर-
ब्रिटिश सरकार ने ‘कैबिनेट मिशन’ को 1946 में भारत भेजा। इसको आदेश था कि एक ऐसा विधान तैयार किया जाए जिसमें भारत की एकता को बनाये रखते हुए स्थानीय स्वायत्तता को भी स्थान दिया जाए।

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प्रश्न 46.
‘इंटेरियम कैबिनेट’ कब बनाई गई तथा इसके प्रधानमन्त्री कौन थे ? ।
उत्तर-
इंटेरियम कैबिनेट सितम्बर, 1946 में बनाई गई तथा इसके प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे।।

प्रश्न 47.
1946-47 में भारत में कौन-से चार प्रान्तों में साम्प्रदायिक दंगे-फसाद हुए ?
उत्तर-
1946-47 में भारत में बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश (वर्तमान) में साम्प्रदायिक दंगे-फसाद हुए।

प्रश्न 48.
किस गवर्नर-जनरल ने तथा कब देश के विभाजन की रूपरेखा की घोषणा की ?
उत्तर-
3 जून, 1947 को गवर्नर-जनरल माऊंटबेटन ने देश के विभाजन की रूपरेखा की घोषणा की।

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प्रश्न 49.
विभाजन का प्रभाव भारत के किन चार प्रान्तों पर पड़ा ?
उत्तर-
विभाजन का प्रभाव भारत के बंगाल, पंजाब, सिंध तथा उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्तों पर पड़ा।

प्रश्न 50.
बांटे जाने वाले क्षेत्रों (भारत विभाजन सम्बन्धी) को निश्चित करने के लिए कौन-सा ‘कमीशन’ बनाया गया तथा पंजाब में इसकी अध्यक्षता किसने की ?
उत्तर-
बांटे जाने वाले क्षेत्रों को निश्चित करने के लिए सीमा कमीशन बनाया गया तथा इसकी अध्यक्षता रैडक्लिफ ने की।

प्रश्न 51.
कितनी देशी रियासतों ने तथा किसके प्रयत्नों से भारत में मिलने का निर्णय किया ?
उत्तर-
500 से अधिक रियासतों ने भारत में सम्मिलित होने का निर्णय किया। यह निर्णय सरदार वल्लभभाई पटेल के यत्नों से हुआ।

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प्रश्न 52.
भारत में शामिल होने वाली उत्तर तथा दक्षिण की दो प्रमुख देशी रियासतों के नाम बताएं।
उत्तर-
भारत में शामिल होने वाली उत्तर की प्रमुख देशी रियासत जम्मू-कश्मीर तथा दक्षिण की प्रमुख रियासत हैदराबाद थीं।

प्रश्न 53.
स्वतन्त्र भारत तथा पाकिस्तान के पहले गवर्नर-जनरलों के नाम बताएं।
उत्तर-
स्वतन्त्र भारत के पहले गवर्नर-जनरल लॉर्ड माऊंटबेटन थे। पाकिस्तान के पहले गवर्नर-जनरल का नाम मुहम्मद अली जिन्नाह था।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
माण्टेग्यू चैम्सफोर्ड विधान की क्या कार्यवाही थी? महात्मा गांधी ने इसका बहिष्कार क्यों किया ?
उत्तर-
माण्टेग्यू चैम्सफोर्ड विधान अशुभ परिस्थितियों में लागू हुआ। इस विधान के अन्तर्गत हुए चुनावों का कांग्रेस ने बहिष्कार किया। परन्तु कुछ भारतीय नेताओं ने स्वराज्य पार्टी की स्थापना की और चुनावों में भाग लिया। उनका विश्वास था कि वे कौंसिलों में रहकर भारतीय हितों की अच्छी प्रकार रक्षा कर सकते हैं। वे अपने उद्देश्य में काफी सीमा तक सफल रहे। उनके प्रयत्नों से 1910 ई का प्रेस एक्ट और 1919 ई० का रौलेट एक्ट रद्द कर दिए गए। सेना में अधिक संख्या में भारतीय अधिकारियों को लेने का निश्चय किया गया। यह भी निर्णय हुआ कि सिविल सर्विस के उच्च पदों पर कम-से-कम आधे अधिकारी भारतीय होने चाहिएं। शिक्षा के क्षेत्र में भी कुछ महत्त्वपूर्ण सुधार हुए।

महात्मा गांधी ने माण्टेग्यू चैम्सफोर्ड विधान का विरोध इसलिए किया क्योंकि इसकी चुनाव व्यवस्था साम्प्रदायिकता पर आधारित थी। दूसरे, भारतीय नेता ‘स्वराज्य’ चाहते थे। परन्तु यह विधान उससे कोसों दूर था।

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प्रश्न 2.
भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में क्रान्तिकारियों की भूमिका का विवेचन करो।
उत्तर-
स्वतन्त्रता आन्दोलन में क्रान्तिकारियों ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई। इनका उदय 20वीं शताब्दी के पहले दशक में हुआ था। इनके मुख्य कार्य-क्षेत्र बंगाल, महाराष्ट्र और पंजाब थे। उन्होंने गुप्त रूप से अपना आपसी सम्पर्क स्थापित किया हुआ था। जब ब्रिटिश सरकार ने अनेक राष्ट्रीय नेताओं को कारावास में डाल दिया तो इन क्रान्तिकारियों ने अपनी गतिविधियों को तेज़ कर दिया । क्रान्तिकारियों ने बदनाम पुलिस अधिकारियों, मैजिस्ट्रेटों तथा सरकारी गवाहों की हत्या की। धन और शस्त्र एकत्र करने के लिए उन्होंने विभिन्न स्थानों पर डाके डाले। इसके अतिरिक्त उन्होंने दो वायसरायों मिन्टो और हार्डिंग की हत्या करने का भी प्रयत्न किया। यद्यपि क्रान्तिकारी भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने में सफल न हुए, तो भी उनकी वीरता और आत्म-बलिदान से अनेक भारतीयों को प्रेरणा मिली। केवल इतना ही नहीं, क्रान्तिकारियों के कारण जनसाधारण में राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ। देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन में क्रान्तिकारियों ने जो भूमिका निभाई, उसे कभी भी नहीं भुलाया जा सकता।

प्रश्न 3.
साइमन कमीशन की नियुक्ति किस उद्देश्य से की गई थी ? इसके प्रति महात्मा गांधी का क्या दृष्टिकोण था और इसका क्या परिणाम निकला ?
अथवा
साइमन कमीशन के बारे में विस्तार से लिखो।
उत्तर-
ब्रिटिश सरकार ने 1927 ई० में भारत में साइमन कमीशन भेजने का निश्चय किया। साइमन कमीश्न इस उद्देश्य से नियुक्त किया था कि यह माण्टेग्यू-चैम्सफोर्ड विधान की कारवाई की जांच-पड़ताल के आधार पर रिपोर्ट दे। साथ में भविष्य के लिये किये जाने वाले परिवर्तनों के बारे में भी सुझाव दे। इस कमीशन का कोई भारतीय सदस्य नहीं बनाया गया था। इसलिये भारतीय नेताओं ने इस कमीशन का विरोध किया। देश भर में जुलूस निकाले गये और हड़तालें हुईं। कमीशन को काली झंडियां दिखाई गईं। प्रत्येक स्थान पर ‘साइमन गो बैक’ के नारे लगाये गये। सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर सख्ती की। लाहौर में ऐसे ही प्रदर्शन में लाला लाजपतराय भी पुलिस की लाठियों से घायल हुए और उनका देहान्त हो गया। ऐसे विरोध के बावजूद भी कमीशन ने भारत का भ्रमण किया और इंग्लैण्ड की सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश कर दी।

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प्रश्न 4.
पूर्ण स्वराज्य की मांग किन परिस्थितियों में की गई और इसके लिए संघर्ष के ढंग में क्या परिवर्तन आया ?
उत्तर-
1928 ई० में साइमन कमीशन भारत आया था । इस कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था, इसलिए भारत में प्रत्येक स्थान पर इसका भारी विरोध किया गया। परन्तु कमीशन की रिपोर्ट को भारत के किसी भी राजनीतिक दल ने स्वीकार नहीं किया था। अत: अंग्रेज़ी सरकार ने भारतीयों को सर्वसम्मति से अपना संविधान तैयार करने की चुनौती दी। इस विषय में भारतीयों ने अगस्त, 1928 ई० में नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की, परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। परिणाम यह हुआ कि भारतीयों की निराशा और अधिक बढ़ गई।

1929 ई० में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में हुआ। यह अधिवेशन भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। पण्डित जवाहर लाल नेहरू इस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गये। गान्धी जी ने ‘पूर्ण स्वराज्य’ का प्रस्ताव पेश किया जो पास कर दिया गया। 31 दिसम्बर की आधी रात को नेहरू जी ने रावी नदी के किनारे स्वतन्त्रता का तिरंगा झण्डा फहराया। यह भी निश्चित हुआ कि हर वर्ष 26 जनवरी को स्वतन्त्रता दिवस मनाया जाये। 26 जनवरी, 1930 ई० को यह दिन सारे भारत में बड़े जोश के साथ मनाया गया और लोगों ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने की प्रतिज्ञा की। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने सरकारी कानूनों तथा संस्थाओं का बहिष्कार करने की नीति अपनाई।

प्रश्न 5.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वर्णन कीजिए। इसका हमारे स्वतन्त्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 ई० में चलाया गया। इस आन्दोलन का उद्देश्य सरकारी कानूनों को भंग करके सरकार के विरुद्ध रोष प्रकट करना था। आन्दोलन का आरम्भ गान्धी जी ने अपनी डांडी यात्रा से किया। 12 मार्च,1930 ई० को उन्होंने साबरमती आश्रम से अपनी यात्रा आरम्भ की। मार्ग में अनेक लोग उनके साथ मिल गये। 24 दिन की कठिन यात्रा के बाद वे समुद्र तट पर पहुंचे और उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून भंग किया। इसके बाद देश में लोगों ने सरकारी कानून को भंग करना आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन को दबाने के लिए सरकार ने बड़ी कठोरता से काम लिया। हज़ारों देशभक्तों को जेल में डाल दिया गया। गान्धी जी को भी बन्दी बना लिया गया। यह आन्दोलन फिर भी काफी समय तक चलता रहा। इस प्रकार इस आन्दोलन का हमारे स्वतन्त्रता संग्राम पर गहरा प्रभाव पड़ा। अब देश की जनता इसमें बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगी।

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प्रश्न 6.
दूसरे विश्व-युद्ध का भारतीय आन्दोलन पर प्रभाव लिखो।
उत्तर-
दूसरे विश्व युद्ध से पूर्व ‘1935 के एक्ट’ के अनुसार देश में चुनाव हुए थे। कांग्रेस 11 प्रान्तों में से 8 प्रान्तों में अपनी सरकार बनाने मे सफल हुई थी। 1939 में दूसरा महायुद्ध आरम्भ हो गया। अंग्रेज़ी सरकार ने भारतीय नेताओं से पूछे बिना ही जर्मनी के विरुद्ध भारत के युद्ध में शामिल होने की घोषणा कर दी। इसके विरोध में सभी कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र दे दिए और गान्धी जी ने ‘सत्याग्रह’ आरम्भ कर दिया। उन्होंने जनता से कहा कि युद्ध के लिए सरकार को सहयोग न दिया जाये। उन्होंने यह नारा लगाया ‘न दो भाई, न दो पाई’। इस सत्याग्रह में लगभग 25 हज़ार लोग जेलों में गए। इतिहास में इसे ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ कहा जाता है। कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों के त्याग-पत्र देने से मुस्लिम लीग के नेता मिस्टर जिन्नाह बहुत प्रसन्न हुए, क्योंकि उनका विचार था कि कांग्रेसी राज्य में मुसलमानों के साथ न्याय नहीं हुआ है। उन्होंने 22 दिसम्बर,1939 का दिन ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया। मि० जिन्नाह के इस कार्य से कांग्रेस और मुस्लिम लीग में कटुता आ गई। 1940 ई० में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग की। इस प्रकार देश के बंटवारे की स्थिति उत्पन्न हो गई।

प्रश्न 7.
क्रिप्स मिशन भारत क्यों आया ? इसका क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर-
दूसरे महायुद्ध में इंग्लैण्ड की स्थिति बड़ी खराब हो गई थी । इसलिए उसे भारतीयों के सहयोग की आवश्यकता थी। परन्तु अंग्रेजों की ग़लत नीतियों के कारण भारतीय उनसे नाराज़ थे और उन्हें किसी प्रकार का कोई सहयोग देने को तैयार नहीं थे। इस समस्या को सुलझाने के लिए ही ब्रिटिश सरकार ने सर स्टेफोर्ड क्रिप्स को 1942 ई० में भारत भेजा। उसने भारतीय नेताओं के सामने अपनी योजना रखी। इसमें कहा गया था कि भारतीय दूसरे महायुद्ध में अंग्रेज़ों का साथ दें तो उन्हें युद्ध के बाद ‘अधिराज्य’ दिया जायेगा। गान्धी जी ने इस योजना की तुलना एक ऐसे चैक से की जिस पर बाद की तिथि पड़ी हुई हो और जो ऐसे बैंक के नाम हो जो फेल होने वाला हो। इस प्रकार सभी भारतीय नेताओं ने क्रिप्स की योजना को स्वीकार न किया । क्रिप्स महोदय को निराश होकर वापस लौटना पड़ा।

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प्रश्न 8.
भारत छोड़ो आन्दोलन का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत छोड़ो आन्दोलन 1942 ई० में चलाया गया। इस आन्दोलन का नेतृत्व गान्धी जी ने किया। कांग्रेस ने 9 अगस्त, 1942 ई० को आन्दोलन चलाने का प्रस्ताव पास किया और अंग्रेजों को भारत छोड़ देने के लिए ललकारा। सारा देश ‘भारत छोड़ो’ के नारों से गूंज उठा। अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए बड़ी कठोरता से काम लिया । प्रस्ताव पास होने के दूसरे ही दिन सारे नेता बन्दी बना लिए गए। परिणामस्वरूप जनता भड़क उठी। लोगों ने सरकारी दफ्तरों, रेलवे स्टेशनों तथा डाकघरों को लूटना और जलाना आरम्भ कर दिया। सरकार ने अपनी नीति को और भी कठोर कर दिया और असंख्य लोगों को जेलों में डाल दिया गया। सारा देश एक जेलखाने के समान दिखाई देने लगा। इतने बड़े आन्दोलन के कारण ब्रिटिश सरकार की नींव हिल गई।

प्रश्न 9.
आज़ाद हिन्द फ़ौज (सेना) की स्थापना तथा कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना श्री सुभाषचन्द्र ने की थी। उन्होंने इस फ़ौज की स्थापना जापान और जर्मनी की सहायता से की थी। इस फ़ौज का उद्देश्य भारत को स्वतन्त्र कराना था। सुभाष चन्द्र बोस ने अपने सैनिकों में राष्ट्रीयता की भावनाएं कूट-कूट कर भर दीं। फलस्वरूप इस सेना ने कई स्थानों पर विजय भी प्राप्त की। जर्मनी और जापान की दूसरे महायुद्ध में पराजय होने के कारण यह सेना बिखर गई। अंग्रेजों ने इस सेना के कुछ बड़े-बड़े अफसरों को पकड़ लिया और उन पर राजद्रोह का मुकद्दमा चलाया। परन्तु बाद में जनता के दबाव के कारण अंग्रेज़ी सरकार ने इन अफसरों को छोड़ दिया।

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प्रश्न 10.
देशी रियासतों में राजनीतक जागृति लाने के बारे में क्या प्रयास किये गये ?
उत्तर-
1935 के अधिनियम में एक व्यवस्था यह भी थी कि भारतीय संघ में देशी रियासतें शामिल की जायें । इसलिए भारतीय रियासतों में भी राजनीतिक जागृति लाने का प्रयास आवश्यक हो गया । इस सम्बन्ध में कांग्रेस नेता विशेष रूप से जवाहर लाल नेहरू ने, काफी प्रयत्न किये। दूसरे असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रभाव भी देशी रियासतों की जनता पर पड़ा। उनको तो साम्राज्य के सीधे प्रशासित क्षेत्रों में मिलने वाली सुविधायें एवं अधिकार भी प्राप्त नहीं हुए थे। तीसरे 1927 में ‘ऑल इण्डिया स्टेट्ज़ पीपुल्ज़ कान्स’ की स्थापना हो चुकी थी। चौथे कांग्रेस के 1938 के अधिवेशन में की जाने वाली पूर्ण स्वतन्त्रता की व्याख्या में देशी रियासतों को भी शामिल कर लिया था। 1939 में जवाहर लाल नेहरू ‘ऑल इण्डिया स्टेट्ज़ पीपुल्ज़ कान्फ्रेंस’ के अध्यक्ष चुने गए। यद्यपि 1935 का नियम रियासतों पर लागू नहीं हुआ था, तो भी वहां की जनता जागरूक हुई और उन्होंने स्वतन्त्रता के लिए प्रयास तीव्र कर दिए।

प्रश्न 11.
कामागाटामारू की घटना का वर्णन करें।
उत्तर-
कामागाटामारू एक जहाज़ का नाम था। इस जहाज़ को एक पंजाबी वीर नायक बाबा गुरदित्त सिंह ने किराये पर ले लिया। बाबा गुरदित्त सिंह के साथ कुछ और भारतीय भी इस जहाज़ में बैठकर कनाडा पहुंचे। परन्तु उन्हें न तो वहां उतरने दिया गया और न ही वापसी पर किसी नगर हांगकांग, शंघाई, सिंगापुर आदि में उतरने दिया। कलकत्ता(कोलकाता) पहुंचने पर यात्रियों ने जुलूस निकाला। जुलूस के लोगों पर पुलिस ने गोली चला दी जिससे 18 व्यक्ति शहीद हो गए और 25 घायल हो गए। इस घटना से विद्रोहियों को विश्वास हो गया कि राजनीतिक क्रान्ति ला कर ही देश का उद्धार हो सकता है। इसीलिए उन्होंने गदर नाम की पार्टी बनाई और क्रान्तिकारी आन्दोलन आरम्भ किया।

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प्रश्न 12.
गुरुद्वारों से सम्बन्धित सिक्खों तथा अंग्रेजों में बढ़ते रोष पर नोट लिखो।
उत्तर-
अंग्रेज़ गुरुद्वारों के महन्तों को प्रोत्साहन देते थे। यह बात सिक्खों को प्रिय नहीं थी। महंत सेवादार के रूप में गुरुद्वारों में प्रविष्ट हुए थे। परन्तु अंग्रेजी राज्य में वे यहां के स्थायी अधिकारी बन गए। वे गुरुद्वारों की आय को व्यक्तिगत सम्पत्ति समझने लगे। महन्तों को अंग्रेजों का आशीर्वाद प्राप्त था। इसलिए उन्हें विश्वास था कि उनकी गद्दी सुरक्षित है। अतः वे ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे थे। सिक्ख इस बात को सहन नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 13.
गुरु के बाग के मोर्चे की घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महन्त सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० में दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया। इस घटना से सिक्ख भड़क उठे। सिक्खों ने कई और जत्थे भेजे जिन के साथ अंग्रेजों ने बहुत बुरा व्यवहार किया। सारे देश के राजनीतिक दलों ने सरकार की इस कार्यवाही की कड़ी निन्दा की।

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प्रश्न 14.
‘जैतों के मोर्चे की घटना पर प्रकाश डालिये।
उत्तर-
जुलाई, 1923 में अंग्रेजों ने नाभा के महाराजा रिपुदमन सिंह को बिना किसी दोष के गद्दी से हटा दिया। शिरोमणि कमेटी तथा अन्य सभी देश-भक्त सिक्खों ने सरकार के इस कार्य की निन्दा की और 21 फरवरी, 1924 को पांच सौ अकालियों का एक जत्था गुरुद्वारा गंगसर (जैतों) के लिए चल पड़ा। नाभा की रियासत में पहुंचने पर उनका सामना अंग्रेज़ी सेना से हुआ। इस संघर्ष में अनेक सिक्ख मारे गए तथा घायल हुए। अन्त में सिक्खों ने सरकार को अपनी मांग स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया।

प्रश्न 15.
स्वराज्य पार्टी के उद्देश्य तथा योगदान के बारे में बताएं ।
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन के समाप्त होने के पश्चात् पंडित मोती लाल नेहरू और देश-बन्धु चितरंजन दास ने स्वराज्य पार्टी नामक एक नई राजनीतिक पार्टी स्थापित की। इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य था-चुनाव में भाग लेना तथा कौंसिलों में रहकर स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करना। इस पार्टी को 1924 के चुनावों में भारी सफलता मिली। इसका इतना प्रभाव हुआ कि केन्द्रीय विधान सभा तथा प्रान्तीय परिषदों के सदस्य कोई ऐसा काम नहीं होने देते थे जो देश के हितों के विपरीत हो। परिणामस्वरूप कई अच्छे काम भी हुए जैसे रौलेट एक्ट और 1910 के प्रेस एक्ट का स्थगित होना। सेना में भी अधिक भारतीय अफसरों को लेने का निर्णय किया गया। सरकार द्वारा नियुक्त ‘ली कमीश्न’ ने सिफारिश की कि सिविल सर्विस के उच्च पदों के लिए कम-से-कम आधे भारतीय अफसरों को नियुक्त किया जाये। कुछ ऐसे कानून भी बनाये गये जिनसे खानों और कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को भी काफी लाभ हुआ।

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प्रश्न 16.
गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुरुद्वारा सुधार लहर 20वीं शताब्दी में अकालियों ने चलाई। इस समय तक गुरुद्वारों का वातावरण बड़ा दूषित हो चुका था। इनमें रहने वाले महन्त बड़े ठाठ-बाठ से रहते थे। उन्होंने गुरुद्वारों को भोग-विलास, शराब तथा जुएबाजी का अड्डा बना रखा था। अंग्रेज़ इन महंतों को संरक्षण देते थे क्योंकि वे सिक्खों और महन्तों में लड़ाई करवा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते थे। सिक्खों के विरोध करने पर भी महंतों के चरित्र में कोई सुधार न आया। वे अपनी इच्छा से अपने ही किसी सम्बन्धी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर देते थे। सिक्ख इस बात को सहन न कर सके और उन्होंने गुरुद्वारों का प्रबन्ध अपने हाथों में लेने का निश्चय कर लिया। अन्त में उनके बलिदान रंग लाये और गुरुद्वारों का प्रबन्ध उनके अपने हाथ में आ गया।

प्रश्न 17.
भगत सिंह आदि क्रान्तिकारियों की गतिविधियां बंगाल तथा महाराष्ट्र के आतंकवादियों से किस प्रकार भिन्न थीं ?
उत्तर-
भगत सिंह आदि क्रान्तिकारियों की गतिविधियां बंगाल तथा महाराष्ट्र के आतंकवादियों से काफी भिन्न थीं। भगत सिंह आदि क्रान्तिकारी धर्म के नाम का अथवा धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग नहीं करते थे। वे अंग्रेज़ अफसरों की हत्या करने में भी अधिक विश्वास नहीं रखते थे। भगत सिंह और उसके साथी भारत के लोगों में जागृति उत्पन्न करना अति आवश्यक समझते थे। भविष्य के विषय में इनकी विचारधारा तथा रूपरेखा बिल्कुल स्पष्ट थी। वे ब्रिटिश सरकार को स्पष्ट रूप से बता देना चाहते थे कि भारत के नौजवान किसी प्रकार भी विदेशी साम्राज्य को सहन नहीं करेंगे।

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प्रश्न 18.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कार्यक्रम क्या था ?
उत्तर-
लाहौर के अधिवेशन में निर्णय किया गया कि सरकार से अपनी मांगों को मनवाने के लिए सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया जाए। इस कार्य का दायित्व महात्मा गान्धी को सौंपा गया। महात्मा गान्धी ने इस आन्दोलन को चलाने का एक अत्यन्त कारगर उपाय ढूंढा। उन्होंने निर्णय लिया कि वह अपने साबरमती आश्रम से पैदल चल कर समुद्र तट पर स्थित डांडी नामक गांव में जाएंगे और स्वयं नमक बनायेंगे। उस समय नमक तैयार करना सरकारी कानून के विरुद्ध था। गान्धी जी का अनुसरण करते हुए शीघ्र ही देश के प्रत्येक भाग में लोगों ने नमक तैयार करना आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन का प्रभाव देश के कोने-कोने में अर्थात् मालाबार के मोपनों तक, असम के नागाओं तक और सीमान्त सूबे के पठानों तक भी पहुंच गया। पठानों में खान अब्दुल गफ्फार खां ने ‘खुदाई खिदमतगारों’ का संगठन किया और वह सीमान्त गान्धी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

प्रश्न 19.
किन परिस्थितियों में ब्रिटेन की सरकार ने भारत को स्वतन्त्रता देने का फैसला कर लिया ?
उत्तर-
ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने भारत में संवैधानिक असैम्बली बनाने के लिए चुनाव करवाए और 1946 ई० में कैबिनेट मिशन को भारत भेजा। भारत में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में इन्टेरिम कैबिनेट बनाई गई। मुस्लिम लीग ने इस कैबिनेट में शामिल होना तो स्वीकार कर लिया परन्तु संवैधानिक असैम्बली का बहिष्कार किया। मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन करने का निर्णय किया । इसके परिणामस्वरुप बंगाल तथा बिहार में दंगे हुए जिन में बहुत से हिन्दू तथा मुसलमान मारे गए। इन दंगों के कारण कांग्रेस के नेताओं ने दो राज्य स्थापित करने की बात मान ली। 3 जून, 1947 ई० को गवर्नर-जनरल माऊंटबेटन ने घोषणा की कि अगस्त में भारत और पाकिस्तान दो स्वतन्त्र देश बना दिए जाएंगे।

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प्रश्न 20.
देश का विभाजन किन परिस्थितियों में हुआ तथा इसका पंजाब पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र चाहती थी। अतः उस ने सीधी कार्यवाही अथवा ‘डायरेक्ट एक्शन’ करने का निर्णय किया। इस के कारण बंगाल तथा बिहार में दंगे फसाद हुए। इन दंगों में बहुत से हिन्दू तथा मुसलमान मारे गए। अब सभी यह चाहते थे कि देश में इस प्रकार के दंगे न हों। अतः कांग्रेस के नेताओं ने देश को दो भागों में बांटने की बात मान ली। अतः सरकार ने 3 जून,1947 ई० को यह घोषणा कर दी कि अगस्त में भारत तथा पाकिस्तान नामक स्वतन्त्र राज्य बना दिए जाएंगे। इस प्रकार देश का विभाजन कर दिया गया। इस विभाजन का सब से बुरा प्रभाव पंजाब पर पड़ा। पंजाब दो भागों में बंट गया। पंजाब का जो भाग पाकिस्तान में गया, वहां हिन्दुओं की हत्या की जाने लगी। इसके परिणामस्वरूप लाखों लोग शरणार्थी के रूप में भारत आए। इन सभी लोगों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1935 ई० के बाद साम्प्रदायिक गतिविधियों में वृद्धि कैसे हुई ?
उत्तर-
1935 ई० के अधिनियम में साम्प्रदायिक विचारधारा को मान्यता दी गई थी। इसके कारण साम्प्रदायिक राजनीति और भी बल पकड़ गई। चुनाव में असफलता से मुस्लिम लीग का आक्रोश बढ़ गया। मुहम्मद अली जिन्नाह के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने यह प्रचार करना आरम्भ कर दिया कि कांग्रेस एक हिन्दू समुदाय है। धीरे-धीरे यह भी कहा जाने लगा कि भारत में वास्तव में दो राष्ट्र हैं, एक हिन्दू और दूसरा मुसलमान और इन दोनों में कोई सांझ नहीं हो सकती। हिन्दुओं की बहुसंख्या होने के कारण साधारण मुसलमानों को भी इस विचार ने आकर्षित किया। इसका एक कारण यह भी था कि हिन्दू महासभा जैसी कुछ राजनीतिक पार्टियां भी स्थापित हो चुकी थीं जोकि भारतीय राष्ट्र के स्थान पर हिन्दू राष्ट्र का नारा लगाती थीं। परिणाम यह निकला कि 1940 ई० में मुस्लिम लीग ने यह प्रस्ताव पास कर दिया कि भारत में एक नहीं दो स्वतन्त्र राज्य स्थापित होन चाहिएं। इस प्रकार मुसलमानों के राज्य के तौर पर पाकिस्तान की मांग अस्तित्व में आई।

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प्रश्न 2.
पंजाब में गुरुद्वारा सुधार के लिए अकालियों द्वारा किए गए संघर्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
अकाली आन्दोलन किन कारणों से आरम्भ हुआ ? इसके किन्हीं तीन बड़े-बड़े मोर्चों का संक्षेप में वर्णन करो।
अथवा
अकाली आन्दोलन से जुड़े किन्हीं पांच मोर्चों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गदर आन्दोलन के बाद पंजाब में अकाली आन्दोलन चला। यह 1921 ई० में आरम्भ हुआ और 1925 ई० तक चलता रहा। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

  • गुरुद्वारों का प्रबन्ध महन्तों के हाथ में था। वे गुरुद्वारों की आय को ऐश्वर्य में उड़ा रहे थे। इस कारण सिक्खों में रोष था।
  • महन्तों को अंग्रेज़ों का आश्रय प्राप्त था। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने गदर सदस्यों पर बड़े अत्याचार ढाए थे। इनमें से 99% सिक्ख थे। इसलिए सिक्ख अंग्रेजी सरकार के भी विरुद्ध थे।
  • 1919 ई० के कानून से भी सिक्ख असन्तुष्ट थे। इसमें जो कुछ उन्हें दिया गया वह उनकी आशा से बहुत कम था।

प्रमुख घटनाएं अथवा मोर्चे

1. ननकाना साहिब की घटना-ननकाना साहिब का महंत नारायण दास बड़ा ही चरित्रहीन व्यक्ति था। उसे गुरुद्वारे से निकालने के लिए 20 फरवरी, 1921 ई० के दिन एक शान्तिमय जत्था ननकाना साहिब पहुंचा। महंत ने जत्थे के साथ बड़ा बुरा व्यवहार किया। उसके पाले हुए गुण्डों ने जत्थे पर आक्रमण कर दिया। जत्थे के नेता भाई लक्ष्मणदास तथा उसके साथियों को जीवित जला दिया गया।

2. हरिमंदर साहिब के कोष की चाबियों की समस्या-हरिमंदर साहिब के कोष की चाबियां अंग्रेजों के पास थीं। शिरोमणि कमेटी ने उनसे गुरुद्वारे की चाबियां माँगी, परन्तु उन्होंने चाबियां देने से इन्कार कर दिया। अंग्रेजों के इस कार्य के विरुद्ध सिक्खों ने बहुत-से प्रदर्शन किए। अंग्रेजों ने अनेक सिखों को बन्दी बना लिया। कांग्रेस तथा खिलाफत कमेटी ने भी सिक्खों का समर्थन किया। विवश होकर अंग्रेजों ने कोष की चाबियां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को सौंप दीं।

3. ‘गुरु का बाग’ का मोर्चा-गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महंत सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० को दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया। इस घटना से सिक्ख और भी भड़क उठे। उन्होंने और अधिक संख्या में जत्थे भेजने आरम्भ कर दिए। इन जत्थों के साथ बुरा व्यवहार किया गया। अंत में सिक्खों ने यह मोर्चा शान्तिपूर्ण ढंग से जीत लिया।

4. पंजा साहिब की घटना-‘गुरु का बाग’ गुरुद्वारा आन्दोलन में भाग लेने वाले एक जत्थे को अंग्रेज़ों ने रेलगाड़ी द्वारा अटक जेल में भेजने का निर्णय किया। पंजा साहिब के सिक्खों ने सरकार से प्रार्थना की कि रेलगाड़ी को पंजा साहिब में रोका जाए ताकि वे जत्थे के सदस्यों को भोजन दे सकें। परन्तु सरकार ने जब सिक्खों की इस प्रार्थना को स्वीकार न किया तो भाई कर्म सिंह तथा भाई प्रताप सिंह नामक दो सिक्ख रेलगाड़ी के आगे लेट गए और शहीदी को प्राप्त हुए। यह घटना 30 अक्तूबर, 1922 ई० की है।

5. जैतों का मोर्चा-जुलाई 1923 ई० में अंग्रेजों ने नाभा के महाराज रिपुदमन सिंह को बिना किसी दोष के गद्दी से हटा दिया। शिरोमणि अकाली कमेटी तथा अन्य सभी देश-भक्त सिक्खों ने सरकार के विरुद्ध गुरुद्वारा गंगसर (जैतों) में बड़ा भारी जलसा करने का निर्णय किया। 21 फरवरी, 1924 ई० को पाँच सौ अकालियों का एक जत्था गुरुद्वारा गंगसर के लिए चल पड़ा। नाभा की रियासत में पहुंचने पर उसका सामना अंग्रेजी सेना से हुआ। सिक्ख निहत्थे थे। फलस्वरूप 100 से भी अधिक सिक्ख शहीदी को प्राप्त हुए और 200 के लगभग सिक्ख घायल हुए।

6. सिक्ख गुरुद्वारा अधिनियम-1925 ई० में पंजाब सरकार ने सिक्ख गुरुद्वारा कानून पास कर दिया। इसके अनुसार गुरुद्वारों का प्रबन्ध और उनकी देखभाल सिक्खों के हाथ में आ गई। धीरे-धीरे बन्दी सिक्खों को मुक्त कर दिया गया।

इस प्रकार अकाली आन्दोलन के अन्तर्गत सिक्खों ने महान् बलिदान दिए। एक ओर तो उन्होंने गुरुद्वारे जैसे पवित्र स्थानों से अंग्रेजों के पिट्ठ महंतों को बाहर निकाला और दूसरी ओर सरकार के विरुद्ध एक ऐसी अग्नि भड़काई जो स्वतन्त्रता प्राप्ति तक जलती रही।

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प्रश्न 2.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है
कारण-

  • 1928 ई० में ‘साइमन कमीशन’ भारत आया। इस कमीशन ने भारतीयों के विरोध के बावजूद भी अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। इससे भारतीयों में असन्तोष फैल गया।
  • सरकार ने नेहरू रिपोर्ट की शर्तों को स्वीकार न किया।
  • बारदौली के किसान आन्दोलन की सफलता ने गाँधी जी को सरकार के विरुद्ध आन्दोलन चलाने के लिए प्रेरित किया।
  • गाँधी जी ने सरकार के सामने कुछ शर्ते रखीं। परन्तु वायसराय ने इन शर्तों को स्वीकार न किया। इन परिस्थितियों में गाँधी जी ने सरकार के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ कर दिया।

आन्दोलन की प्रगति (1930-1931 ई०)-सविनय अवज्ञा आन्दोलन गाँधी जी की डाँडी यात्रा से आरम्भ हुआ। उन्होंने साबरमती आश्रम से पैदल यात्रा आरम्भ की और वह डाँडी के निकट समुद्र के तट पर पहुँचे। 6 अप्रैल, 1930 को वहाँ उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाया और नमक कानून भंग किया। वहीं से यह आन्दोलन सारे देश में फैल गया। अनेक स्थानों पर लोगों ने सरकारी कानूनों का उल्लंघन किया। सरकार ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए दमन-चक्र आरम्भ कर दिया। गांधी जी सहित अनेक आन्दोलनकारियों को जेलों में बन्द कर दिया गया। परन्तु आन्दोलन की गति में कोई अन्तर न आया। इसी बीच गांधी जी और तत्कालीन वायसराय में एक समझौता हुआ। समझौते के अनुसार गाँधी जी ने दूसरी गोलमेज़ परिषद् में भाग लेना तथा आन्दोलन बन्द करना स्वीकार कर लिया। इस तरह 1931 ई० में सविनय अवज्ञा आन्दोलन कुछ समय के लिए रुक गया।

आन्दोलन की प्रगति ( 1930-33) तथा अन्त-1931 ई० में लन्दन में दूसरी गोलमेज परिषद् बुलाई गई। इसमें कांग्रेस की ओर से गाँधी जी ने भाग लिया, परन्तु इस परिषद् में भी भारतीय प्रशासन के लिए कोई उचित हल न निकल सका। गाँधी जी निराश होकर लौट आये और उन्होंने अपना आन्दोलन फिर से आरम्भ कर दिया। सरकार ने आन्दोलन का दमन करने के लिए आन्दोलनकारियों पर फिर से अत्याचार करने आरम्भ कर दिये। सरकार के इन अत्याचारों से आन्दोलन की गति कुछ धीमी पड़ गई। अन्त में कांग्रेस ने 1933 ई० में इस आन्दोलन को बन्द कर दिया।

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प्रश्न 3.
भारत छोड़ो आन्दोलन का विवरण दीजिए।
अथवा
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के आरम्भ होने के कारणों तथा महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आन्दोलन प्रारम्भ होने का कारण-भारत छोड़ो आन्दोलन 9 अगस्त, 1942 ई० को आरम्भ हुआ। इसके आरम्भ होने का कारण यह था कि दूसरे महायुद्ध में जापान ने बर्मा पर अधिकार कर लिया था। इससे यह भय उत्पन्न होने लगा कि जापान अंग्रेजों को हानि पहुँचाने के लिये भारत पर भी आक्रमण करेगा। इस समय कांग्रेस ने गाँधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पास किया। यह प्रस्ताव इसलिए पास किया गया क्योंकि महात्मा गाँधी तथा अन्य नेताओं का यह विचार था कि यदि अंग्रेज़ भारत छोड़ जायें तो जापान भारत पर आक्रमण नहीं करेगा। प्रस्ताव पास करने के अतिरिक्त कांग्रेस की बैठक में यह निश्चय किया गया कि भारतीय पूर्ण स्वतन्त्रता से कम कोई चीज़ स्वीकार नहीं करेंगे।

आन्दोलन का आरम्भ तथा प्रगति-9 अगस्त, 1942 ई० को यह आन्दोलन आरम्भ हो गया जिसका नेतृत्व गाँधी जी ने किया। उन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ देने के लिए ललकारा। सारा देश भारत छोड़ो’ के नारों से गूंज उठा। अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए बड़ी कठोरता से काम लिया। प्रस्ताव पास होने के दूसरे ही दिन सारे नेता बन्दी बना लिये गये। परिणामस्वरूप जनता भी भड़क उठी। लोगों ने सरकारी दफ्तरों, रेलवे स्टेशनों तथा डाकघरों को लूटना और जलाना आरम्भ कर दिया। सरकार ने अपनी नीति को और भी कठोर कर दिया और असंख्य लोगों को जेलों में डाल दिया गया।.सारा देश एक जेलखाने के समान दिखाई देने लगा।

फरवरी 1943 ई० तक ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ बड़ी सफलता से चलता रहा। परन्तु कुछ समय पश्चात् सरकार की दमन नीति के कारण यह आन्दोलन शिथिल पड़ गया और धीरे-धीरे यह बिल्कुल समाप्त हो गया।

आन्दोलन का महत्त्व-‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के कारण ब्रिटिश सरकार यह बात भली-भान्ति जान गई कि जनता में असन्तोष कितना व्यापक है। सरकार समझ गई कि भारतीय जनता अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति चाहती है और वह इसे प्राप्त करके ही रहेगी। सरकार ने निःसन्देह आन्दोलन को कुचल दिया, परन्तु वह स्वतन्त्रता की भावनाओं को न कुचल सकी। परिणामस्वरूप आन्दोलन की समाप्ति के तीन वर्षों बाद ही उन्हें भारत को स्वतन्त्र कर देना पड़ा।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता आन्दोलन में गाँधी के योगदान की विवेचना कीजिए।
अथवा
महात्मा गाँधी के आरम्भिक जीवन तथा कार्यों का वर्णन करो।
अथवा
गांधी जी द्वारा चलाए गए तीन प्रमुख जन-आन्दोलनों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
आधुनिक आरम्भिक भारत के इतिहास में महात्मा गाँधी को सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त है। भारत को स्वतन्त्र कराने में सबसे अधिक योगदान उन्हीं का रहा। उनके आगमन से ही राष्ट्रीय आन्दोलन को ऐसा मार्ग मिला जो सीधा स्वतन्त्रता की मंज़िल पर ले गया। उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के द्वारा शक्तिशाली अंग्रेजी साम्राज्य से टक्कर ली और अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। भारत के इस महान् स्वतन्त्रता सेनानी के जीवन तथा कार्यों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है जन्म तथा शिक्षा-महात्मा गाँधी जी का बचपन का नाम मोहनदास था। उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 ई० को काठियावाड़ में पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ। इनके पिता का नाम कर्मचन्द गांधी था जो पोरबन्दर के दीवान थे। गाँधी जी ने अपनी आरम्भिक शिक्षा भारत में ही प्राप्त की। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें इंग्लैण्ड भेजा गया। वहाँ से उन्होंने वकालत पास की और फिर लौट आये।

राजनीतिक जीवन-गाँधी जी के राजनीतिक जीवन का आरम्भ दक्षिणी अफ्रीका से हुआ। उन्होंने इंग्लैण्ड से आने के बाद कुछ समय तक भारत में वकील के रूप में कार्य किया। परन्तु फिर वह दक्षिण अफ्रीका चले गए।

गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में-गाँधी जी जिस समय दक्षिणी अफ्रीका पहुँचे, उस समय वहाँ भारतीयों की दशा बड़ी बुरी थी। वहाँ की गोरी सरकार भारतीयों के साथ बहुत बुरा व्यवहार करती थी। गाँधी जी इस बात को सहन न कर सके। उन्होंने वहाँ की सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन चलाया और भारतीयों को उनके अधिकार दिलवाये।

गाँधी जी भारत में-1914 ई० गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। उस समय प्रथम विश्व-युद्ध छिड़ा हुआ था। अंग्रेजी सरकार इस युद्ध में उलझी हुई थी। उसे धन और जन की काफी आवश्यकता थी। अत: गाँधी जी ने भारतीयों से अपील की कि वे अंग्रेज़ों को सहयोग दें। वह अंग्रेजी सरकार की सहायता करके उसका मन जीत लेना चाहते थे। उनका विश्वास था कि अंग्रेजी सरकार युद्ध जीतने के बाद भारत को स्वतन्त्र कर देगी, परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने युद्ध में विजय पाने के बाद भारत को कुछ न दिया। इसके विपरीत उन्होंने भारत में रौलेट एक्ट लागू कर दिया। इस काले कानून के कारण गाँधी जी को बड़ी ठेस पहुंची और उन्होंने अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन चलाने का निश्चय कर लिया।

असहयोग आन्दोलन-1920 ई० में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन आरम्भ कर दिया। जनता ने गाँधी जी का पूरापूरा साथ दिया। सरकार को गाँधी जी के इस आन्दोलन के सामने झुकना पड़ा। परन्तु कुछ हिंसक घटनाएँ हो जाने के कारण गाँधी जी को अपना आन्दोलन वापस लेना पड़ा।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन-1930 ई० में गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ कर दिया। उन्होंने डांडी यात्रा की और नमक के कानून को भंग कर दिया। सरकार घबरा गई। उसने भारतवासियों को नमक बनाने का अधिकार दे दिया। 1935 ई० में सरकार ने एक महत्त्वपूर्ण एक्ट भी पास किया।

भारत छोड़ो आन्दोलन-गाँधी जी का सबसे बड़ा उद्देश्य भारत को स्वतन्त्र कराना था। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने 1942 ई० में भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया। भारत के लाखों नर-नारी गाँधी जी के साथ हो गये। इतने विशाल जनआन्दोलन से अंग्रेजी सरकार घबरा गई और उसने भारत छोड़ने का निश्चय कर लिया। आखिर 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत स्वतन्त्र हुआ। इस स्वतन्त्रता का वास्तविक श्रेय गाँधी जी को ही जाता है।

अन्य कार्य-गाँधी जी ने भारतवासियों के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए अनेक काम किये। भारत से गरीबी दूर करने के लिए उन्होंने लोगों को खादी पहनने का सन्देश दिया। अछूतों के उद्धार के लिए गाँधी जी ने उन्हें ‘हरिजन’ का नाम दिया। देश में साम्प्रदायिक दंगों को समाप्त करने के लिए गाँधी जी ने गाँव-गाँव में घूमकर लोगों को भाईचारे का सन्देश दिया।

देहान्त-30 जनवरी, 1948 ई० की संध्या को गाँधी जी को एक युवक ने गोली का निशाना बना दिया। उन्होंने तीन बार ‘हे राम’ कहा और अपने प्राण त्याग दिए। उनकी मृत्यु पर सारे देश में शोक छा गया। भारतवासी गाँधी जी की सेवाओं को नहीं भुला सकते। आज भी उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ के नाम से याद किया जाता है।

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प्रश्न 5.
1935 के भारत सरकार के अधिनियम की क्या मुख्य विशेषताएं थीं ? इसके किन प्रावधानों को नहीं लागू किया गया और क्यों ?
अथवा
1935 के भारत सरकार अधिनियम द्वारा किए गए केंद्रीय अथवा प्रांतीय परिवर्तनों की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
1935 के भारत सरकार अधिनियम की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं। केन्द्रीय सरकार में परिवर्तन-

1. केन्द्र में एक संघात्मक सरकार की स्थापना की गई। इस संघ में प्रान्तों का सम्मिलित होना आवश्यक था, जबकि रियासतों का सम्मिलित होना उनकी इच्छा पर निर्भर था।

2. संघीय विधान मण्डल के ‘राज्य परिषद्’ और ‘संघीय सभा’ दो सदन बनाये गये। राज्य परिषद् में प्रान्तों के सदस्यों की संख्या 156 और रियासतों की संख्या 140 निश्चित की गई। संघीय सभा में प्रान्तों के सदस्यों की संख्या 250 और रियासतों की संख्या 125 निश्चित की गई।

3. यह भी निश्चित किया गया कि प्रान्तों के प्रतिनिधि जनता द्वारा चुने जायें और रियासतों के प्रतिनिधि राजाओं के द्वारा मनोनीत हों।

4. केन्द्र के विषयों को रक्षित (Reserved) और प्रदत्त (Transferred) दो भागों में बाँटकर दोहरा शासन स्थापित किया गया। रक्षित विषय गवर्नर-जनरल के अधीन थे, जबकि प्रदत्त विषय मन्त्रियों को सौंपे गये। मन्त्रियों को विधान मण्डल के सामने उत्तरदायी ठहराया गया।

5. विधान मण्डल को बजट के 20 प्रतिशत भाग पर मत देने का अधिकार दिया गया।

6. गवर्नर-जनरल को कुछ विशेषाधिकार दिये गये।

7. जब तक भारतीय संघात्मक सरकार की स्थापना नहीं हो जाती तब तक केन्द्र का शासन 1919 ई० के एक्ट में किये गये संशोधन के अनुसार चलाया जायेगा।

प्रान्तीय सरकारों में परिवर्तन-

  • बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया। इसके अतिरिक्त उड़ीसा और सिन्ध के दो नये प्रान्त बनाये गये।
  • बंगाल, बिहार, असम, बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) और उत्तर प्रदेश में विधानमण्डल में दो सदनों की व्यवस्था की गई और शेष प्रान्तों में एक ही सदन बनाया गया। उच्च सदन का नाम विधान परिषद् और निम्न सदन का विधान सभा रखा गया।
  • विधान परिषद् के कुछ सदस्य गवर्नर द्वारा मनोनीत किये जाते थे और विधान सभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता था।
  • प्रान्तों में मत देने का अधिकार स्त्रियों, परिगणित जातियों और मजदूरों को भी दे दिया गया।
  • प्रान्तों से दोहरे शासन को सदा के लिए समाप्त कर दिया और उनके स्थान पर स्वायत्त शासन (Autonomy) की स्थापना की गई। सभी प्रान्तीय विषय एक मन्त्रिमण्डल को सौंप दिये गये। मन्त्रियों का चुनाव बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल में से किया जाता था। प्रधानमन्त्री शासन विभाग का कार्य मन्त्रियों में बाँट देता था। मन्त्रिमण्डल विधानमण्डल के सामने उत्तरदायी था।
  • प्रान्तों के गवर्नरों को विशेष अधिकार दिये गये।
  • प्रान्त में विशेष परिस्थिति उत्पन्न होने पर गवर्नर विधान सभा को भंग करके प्रान्त का शासन अपने हाथ में ले सकता था।
  • गवर्नरों को अध्यादेश तथा गवर्नरी एक्ट जारी करने का भी अधिकार था।

इण्डिया कौंसिल में परिवर्तन-इण्डिया कौंसिल भंग कर दी गई। भारतमन्त्री को कम-से-कम तीन और अधिक-सेअधिक 6 सलाहकारों को नियुक्त करने का अधिकार दिया गया।

अन्य परिवर्तन-

  • उच्च न्यायालयों के विरुद्ध अपील सुनने के लिए दिल्ली में फैडरल कोर्ट (Federal Court) की स्थापना की गई।
  • शासन के विषयों को केन्द्रीय और प्रान्तीय विषयों में बाँट दिया गया और कुछ विषयों की एक साँझी सूची तैयार की गई। वे प्रावधान जिन्हें लागू नहीं किया गया-1935 के अधिनियम के संघीय पक्ष को कभी लागू नहीं किया गया। परन्तु प्रान्तीय पक्ष को शीघ्र लागू कर दिया गया। प्रान्तों में हुए चुनावों ने यह सिद्ध कर दिया कि देश की अधिकांश जनता कांग्रेस के साथ है। क्योंकि कांग्रेस ने 1935 के अधिनियम का कड़ा विरोध किया था, इसलिए सरकार इस अधिनियम के संघीय पक्ष को लागू करने का साहस न कर सकी।

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प्रश्न 6.
भारत को दो भागों में क्यों बांटा गया ? इसके लिए उत्तरदायी किन्हीं पांच कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
भारत 15 अगस्त, 1947 ई० को स्वतन्त्र हुआ। स्वतन्त्रता के समय भारत को दो भागों में बांट दिया गया-भारत तथा पाकिस्तान। यह विभाजन निम्नलिखित कारणों से हुआ-

1. ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति-1857 ई० के विद्रोह के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत में ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति अपना ली। उन्होंने भारत के विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे के प्रति खूब लड़ाया। उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों को एक-दूसरे के विरुद्ध भड़काया। इसका परिणाम यह हुआ कि वे एक-दूसरे से घृणा करने लगे।

2. मुस्लिम लीग के प्रयत्न-1906 ई० में मुसलमानों ने मुस्लिम लीग नामक संस्था की स्थापना भी कर ली। फलस्वरूप हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव बढ़ने लगा। मुस्लिम लीग ने मुस्लिम समाज में साम्प्रदायिकता फैलानी आरम्भ कर दी। 1940 ई० तक हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव इतने बढ़ गए कि मुसलमानों ने अपने लाहौर प्रस्ताव में पाकिस्तान की मांग की।

3. कांग्रेस की कमजोर नीति-मुस्लिम लीग की मांगें दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं और कांग्रेस इन्हें स्वीकार करती रही। 1916 ई० के लखनऊ समझौते के अनुसार कांग्रेस ने साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली को स्वीकार कर लिया। कांग्रेस की इस . कमज़ोर नीति का लाभ उठाते हुए मुसलमानों ने देश के विभाजन की मांग करनी आरम्भ कर दी।

4. साम्प्रदायिक दंगे-पाकिस्तान की मांग मनवाने के लिए मुस्लिम लीग ने ‘सीधी कार्यवाही’ आरम्भ कर दी और सारे देश में साम्प्रदायिक दंगे होने लगे। इन घटनाओं को केवल भारत विभाजन द्वारा ही रोका जा सकता था।

5. अन्तरिम सरकार की असफलता-1946 में बनी अन्तरिम सरकार में कांग्रेस और मुस्लिम लीग को साथ-साथ कार्य करने का अवसर मिला, परन्तु लीग कांग्रेस के प्रत्येक कार्य में कोई-न-कोई रोड़ा अटका देती थी। परिणामस्वरूप अन्तरिम सरकार असफल रही। इससे यह स्पष्ट हो गया कि हिन्दू और मुसलमान एक होकर शासन नहीं चला सकते।

6. इंग्लैण्ड द्वारा भारत छोड़ने की घोषणा-20 फरवरी, 1947 को इंग्लैण्ड के प्रधानमन्त्री एटली ने जून, 1948 ई० तक भारत को छोड़ देने की घोषणा की। घोषणा में यह भी कहा गया कि अंग्रेज़ केवल उसी दशा में भारत छोड़ेंगे जब मुस्लिम लीग और कांग्रेस में समझौता हो जाएगा, परन्तु मुस्लिम लीग पाकिस्तान प्राप्त किए बिना किसी समझौते पर तैयार न हुई। फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने भारत विभाजन की योजना बनानी आरम्भ कर दी।

7. भारत का विभाजन-भारत विभाजन के उद्देश्य से लॉर्ड माऊंटबेटन को भारत का वायसराय बनाकर भारत भेजा गया। उन्होंने अपनी सूझ-बूझ से एक ही मास में नेहरू और पटेल को विभाजन के लिए तैयार कर लिया। आखिर 1947 में भारत को दो भागों में बांट दिया गया।

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