Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 5 गुप्त काल Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 5 गुप्त काल
अध्याय का विस्तृत अध्ययन
(विषय सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)
प्रश्न 1.
मौर्य साम्राज्य के पतन तथा गुप्त साम्राज्य के उत्थान के बीच भारत में महत्त्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
अशोक की मृत्यु के शीघ्र बाद ही मौर्य साम्राज्य का पतन और विघटन आरम्भ हो गया। चौथी शताब्दी ई० के आरम्भ में गुप्त साम्राज्य उभरने लगा था। अत: हम देखते हैं कि इन दोनों साम्राज्यों के बीच लगभग 500 वर्षों का अन्तर है। इन 500 वर्षों में इस देश में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। ये परिवर्तन जहां एक ओर सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन से सम्बन्धित थे, वहां इनका सम्बन्ध राजनीतिक क्षेत्र में भी था। राजनीतिक परिवर्तनों ने गुप्त साम्राज्य के लिए पृष्ठभूमि तैयार की। इन परिवर्तनों का वर्णन इस प्रकार है-
1. मगध में मौर्य वंश के उत्तराधिकारी-अशोक की 232 ई० पू० में मृत्यु हुई। उसके उत्तराधिकारियों की दुर्बलता के कारण उप राजा अपने-अपने क्षेत्र में स्वायत्त बन गए। परिणामस्वरूप साम्राज्य का तेजी से विघटन होने लगा। मौर्य वंश का राज्य अशोक की मृत्यु के पश्चात् आधी शताब्दी तक स्थिर रहा होगा। 180 ई० पू० में अशोक के अन्तिम उत्तराधिकारी की हत्या हो गई।
अशोक के उत्तराधिकारी की हत्या करने वाले का नाम पुष्यमित्र था और वह ब्राह्मण था। कहा जाता है कि उसने बौद्धों पर अत्याचार किये और ब्राह्मणों को संरक्षण प्रदान किया। पुष्पमित्र ने शुंग नाम के एक नये राज्य वंश की नींव रखी। उसके उत्तराधिकारियों ने लगभग सौ वर्ष तक पाटलिपुत्र की गद्दी से मगध पर शासन किया। उस समय मगध राज्य केवल गंगा के मैदान के मध्य भाग तक ही सीमित था। उसके उपरान्त मगध में कण्व नाम के राज्य वंश की स्थापना हुई। 28 ई० पू० में कण्वों का भी अन्त हो गया। इसके बाद मगध राज्य का महत्त्व क्षीण हो गया। परन्तु देश के अन्य भागों में कई महत्त्वपूर्ण राज्य स्थापित हो चुके थे।
2. यूनानी राज्य-अशोक की मृत्यु के थोड़े समय पश्चात् एक मौर्य राजकुमार ने गान्धार प्रदेश में स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया। लगभग उसी समय निकटवर्ती बैक्ट्रिया और पार्थिया सैल्यूकस के उत्तराधिकारियों से स्वतन्त्र हो गए। यहां के यूनानी शासक डिमिट्रियस ने गान्धार प्रदेश और बाद में उसके दक्षिण अफगानिस्तान और मकरान प्रदेश को भी विजय कर लिया। इन प्रदेशों को यूनानी क्रमशः ‘अराकोशिया’ और ‘जेड्रोशिया’ कहते थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि अशोक की मृत्यु के 50 वर्षों के भीतर ही उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम प्रदेश में यूनानियों का आधिपत्य स्थापित हो गया।
इस देश का सबसे अधिक विख्यात यूनानी राज्य मिनाण्डर था। उसे बौद्ध साहित्य में मिलिन्द कहा गया है। मिलिन्द ने 155 ई० पू० से 130 ई० पू० तक अर्थात् 25 वर्ष शासन किया। उसकी राजधानी तक्षशिला थी। उसने शंग राजाओं को गंगा के मैदान से खदेड़ने का असफल प्रयास किया था। तक्षशिला के एक और यूनानी राजा हैल्यिोडोरस ने अपने एक राजदूत को आधुनिक मध्य प्रदेश में स्थित बेसनगर (विदिशा) के शासक के पास भेजा था। इस बात की जानकारी हमें बेसनगर से प्राप्त हैल्योडोरस के स्तम्भ से मिलती है। इस सम्बन्ध में अति महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हैल्योडोरस वासुदेव अर्थात् विष्णु का उपासक था।
3. शक राज्य-पहली शताब्दी ई० पू० के आरम्भ में शक लोगों ने यूनानियों को अफगानिस्तान एवं पंजाब से खदेड़ दिया। शक मध्य एशिया के भ्रमणशील कबीलों में से थे। उन्हें वहां से यू-ची लोगों ने निकाल दिया था और अब शकों ने यूनानियों पर दबाव डाला और उन्हें पहले बैक्ट्रिया से तथा बाद में भारत के उत्तर-पश्चिम से निकाल दिया। भारत में पहला शक राजा भोज था। शकों के आरम्भिक राजाओं में सबसे विख्यात गोंडोफार्नीज था जिसका काल पहली शताब्दी के पूवार्द्ध में था।
इसी सदी के उत्तरार्द्ध में शकों को यू-ची लोगों ने फिर खदेड़ दिया। अब शक लोगों ने भारत के उत्तर-पश्चिम में गुजरात तथा मालवा की ओर अपना राज्य स्थापित किया। उनका सबसे प्रसिद्ध राजा रुद्रदमन था। उसका शासन गुजरात, मालवा और पश्चिमी राजस्थान पर था। रुद्रदमन के उत्तराधिकारी उसके समान शक्तिशाली न थे। फिर भी गुजरात में उनका राज्य लगभग 200 वर्ष तक स्थिर रहा। शक राज्य का अन्त गुप्त वंश के राजाओं द्वारा पांचवीं सदी ई० के आरम्भ में हुआ।
4. कुषाण राज्य-जिन राजाओं ने शकों को अफगानिस्तान और पंजाब में खदेड़ा था वे यू-ची की कुषाण शाखा के दो राजा थे-कजुल और विम कडफीसिज़। उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिम में कुषाण राजवंश की स्थापना की। इस राजवंश का सबसे प्रसिद्ध राजा कनिष्क था। उसकी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) थी। कनिष्क का राज्य पेशावर, बनारस और सांची तक फैला हुआ था। इसमें मथुरा भी शामिल था। मथुरा को कुषाण राज्य की दूसरी राजधानी समझा जाता था। कहा जाता है कि कनिष्क मध्य एशिया में लड़ता हुआ मारा गया। वह बौद्ध धर्म का महान् संरक्षक था। कनिष्क की मृत्यु के पश्चात् उसके उत्तराधिकारियों ने लगभग सौ वर्षों तक शासन किया। तीसरी शताब्दी ई. के मध्य में ईरान के सासानी राजाओं ने पेशावर और तक्षशिला को जीत कर कुषाणों को अपने अधीन कर लिया।
5. राजा खारवेल-अशोक की मृत्यु के कुछ ही समय पश्चात् मौर्य साम्राज्य का पूर्वी प्रान्त मौर्यों के हाथ से निकल गया। यहां के कलिंग प्रदेश में सत्ता खारवेल के हाथ में आ गई। हाथी-गुफा अभिलेख से पता चलता है कि वह जैन धर्म का संरक्षक था। उसने कई युद्ध किए। उसने भारत के उत्तर-पश्चिम में यूनानियों पर आक्रमण किया और दक्षिण में पाण्डेय राज्य को पराजित किया। उसका यह भी दावा है कि उसने उत्तर तथा दक्षिण में अनेक राजाओं को हराया। खारवेल को प्राचीन उड़ीसा का सबसे महान् राजा माना जाता है।
6. सातवाहन राज्य-अशोक के देहान्त के थोड़े ही समय बाद विन्ध्य पर्वत के दक्षिण के इलाके मौर्य साम्राज्य से छिन गये। पश्चिमी दक्कन में एक नये राज्य का उत्थान हुआ जिसके शासक सातवाहन के नाम से प्रसिद्ध हुए। सातवाहन राज्य के संस्थापकों को अशोक ने अपने शिलालेख में आन्ध्र कहा है। सम्भवतः वह मौर्य सम्राटों के अधीन अधिकारी रहे थे। सातवाहन राजा शातकर्णि इतना शक्तिशाली था कि खारवेल भी उसे हरा न सका। शातकर्णि के राज्य में गोदावरी नदी की सम्पूर्ण घाटी शामिल थी।
7. दक्षिण के राज्य-सातवाहन सत्ता का पतन तीसरी सदी ई० पू० तक आरम्भ हो चुका था। उनके उतार-चढ़ाव के बाद कदम्ब वंश दक्षिणी-पश्चिमी दक्कन में शक्तिशाली बन गया। इधर पल्लवों ने सातवाहनों के दक्षिणी-पूर्वी प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। पल्लव राजाओं की राजधानी कांचीपुरम थी। यह बौद्ध, जैन, आजीविका तथा ब्राह्मणिक विद्या के केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध हुई। पल्लव वंश का शासन छठी सदी ई० तक रहा।
इस समय वाकाटक वंश भी बड़ा शक्तिशाली हुआ। यह राज्य आधुनिक बरार और मध्य प्रदेश में तीसरी सदी ई० से छठी सदी तक रहा। कृष्णा नदी के निचले भाग में तीन मुख्य राज्य थे, जिनके अधीन कई छोटी-छोटी रियासतें भी थीं। इन तीन बड़े राज्यों पर चोल, चेर और पाण्डेय वंशी राजाओं का शासन था। कृष्णा नदी के पूर्वी तट पर चोल, पश्चिमी तट पर चेर तथा प्रायद्वीप के छोर पर पाण्डेय राजा राज्य करते थे। प्रायः ये राज्य आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। किन्तु इनमें से किसी एक के पास अन्यों का राज्य हथियाने की शक्ति न थी। इनमें चेर कभी चोलों से मिल जाते थे तो कभी पाण्डेयों से।
सच तो यह है कि इस अवधि में देश अनेक छोटे-छोटे राज्यों से विभाजित था। गुप्त राजाओं ने फिर से इस देश में राजनीतिक एकता स्थापित की।
प्रश्न 2.
गुप्त साम्राज्य के प्रशासन के सन्दर्भ में इसके उत्थान तथा विस्तार की चर्चा करें।
उत्तर-
मौर्य साम्राज्य पतन के पश्चात् भारतीय उपमहाद्वीप के लगभग सभी भागों में अनेक राजनीतिक परिवर्तन आए। इन सभी परिवर्तनों के मध्य चक्रवर्ती शासक के आदर्श की महत्ता बराबर बनी रही। यहां कई राजाओं ने भारत के उत्तर तथा दक्षिण में अश्वमेघ यज्ञ किये और चक्रवर्तिन होने का दावा किया। इनमें गुप्त वंश का स्थान सर्वोच्च है। इस वंश ने देश के सभी छोटे-बड़े राज्यों का अन्त कर दिया और यहां राजनीतिक एकता स्थापित की। समाज में गुप्त साम्राज्य के उत्थान, विस्तार तथा पतन की कहानी का वर्णन इस प्रकार है-
1. चन्द्रगुप्त प्रथम-लगभग 319 ई० पू० में गुप्त वंश के शासक चन्द्रगुप्त ने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की। वह गुप्त वंश का तीसरा शासक था। इस राजवंश के संस्थापक आरम्भ में सम्भवतः धनी ज़मींदार थे। परन्तु चन्द्रगुप्त ने अपनी वीरता के कारण अपना स्तर उन्नत किया। उसकी 335 ई० में मृत्यु हो गई। तब चन्द्रगुप्त का राज्य बिहार के कुछ भागों में और पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित था। यह लगभग वही प्रदेश था जिस पर 600 वर्ष पहले कभी अजातशत्रु शासन किया करता था।
2. चन्द्रगुप्त-मगध के गुप्त राज्य को साम्राज्य में परिणित करने वाला गुप्त शासक समुद्रगुप्त था। उसने 335 ई० से 375 ई० तक शासन किया। इलाहाबाद प्रशस्ति के अनुसार उसने उत्तर में चार राज्यों को जीता। पूर्व और दक्षिण के कई राजा उसकी प्रभुता मानते थे। राजस्थान के नौ गणराज्यों को उसे नज़राना देना पड़ा। भारत के मध्य भाग और दक्कन के कबायली राजाओं और आसाम तथा नेपाल के शासकों ने भी चन्द्रगुप्त को नज़राना दिया। समुद्रगुप्त अपने दक्षिणी अभियान से पूर्वी तट पर स्थित पल्लव राज्य की राजधानी कांचीपुरम तक गया। यह आधुनिक मद्रास (चेन्नई) के निकट है। समुद्रगुप्त ने एक शक राजा और लंका के राजा से भी नज़राना लिया। सच तो यह है कि उसने गुप्त साम्राज्य का खूब विस्तार किया। उसका गंगा के लगभग सारे मैदान पर सीधा अधिकार था तथा राजस्थान के कबीले उसको नज़राना देते थे। इस प्रकार समुद्रगुप्त को गुप्त साम्राज्य का संस्थापक समझा जा सकता है। वह कला का संरक्षक भी माना जाता है।
3. चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य-समुद्रगुप्त के बाद उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय गद्दी पर बैठा। उसने भी चालीस वर्ष (375415 ई०) तक राज्य किया। उसका सबसे बड़ा युद्ध शकों के विरुद्ध था। यह 388 ई० से 410 ई० तक चलता रहा। बीस वर्षों के लम्बे युद्ध के अन्त में शकों की पराजय हुई। पूरा पश्चिमी भारत अब गुप्त साम्राज्य में मिल गया। चन्द्रगुप्त ने वाकाटक राजा रुद्रसेन द्वितीय से अपनी पुत्री का विवाह कर वाकाटक राज्यवंश से राजनीतिक सन्धि की। जब रुद्रसेन की 390 ई० में मृत्यु हुई तो राज्य की देखभाल रानी के हाथ में आ गई। वह लगभग 410 ई० तक राज्य करती रही। इन वर्षों में वाकाटक राज्य एक तरह से गुप्त साम्राज्य का ही अंग बना रहा। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ‘विक्रमादित्य’ अर्थात् ‘वीरता का सूर्य’ की उपाधि धारण की। अपने बल एवं वीरता के दृश्यों को उसने अपने सिक्कों पर भी अंकित किया।
प्रश्न 3.
गुप्तकाल के सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन पर लेख लिखें।
उत्तर-
गुप्तकालीन समाज एक निखरा हुआ रूप लिए हुआ था। भारतीय जीवन का प्रत्येक पक्ष उन्नति की चरम सीमा पर था। व्यापार काफ़ी उन्नत था। उद्योग विकसित थे। लोग समृद्ध तथा धन-धान्य से परिपूर्ण थे। अधिक धन ने वेशभूषा, खान-पान तथा अन्य सामाजिक पहलुओं को प्रभावित किया। हिन्दू धर्म का समुद्र फिर ठाठे मारने लगा। ऐसा लगता था मानो बौद्ध धर्म इसी समुद्र में डूब रहा हो। इतना होने पर भी बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए हुए थे। वास्तव में यह धार्मिक सहनशीलता का युग था। यदि गुप्त समाज को एक आदर्श समाज कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। गुप्तकाल के समाज की पूरी झांकी इस प्रकार है-
I. सामाजिक जीवन –
गुप्तकाल के शिलालेख तथा मुद्रायें इस काल की सामाजिक व्यवस्था पर काफ़ी प्रभाव डालते हैं। गुप्तकाल की सामाजिक अवस्था का वर्णन इस प्रकार है
i) वस्त्र और भोजन-गुप्तकालीन सिक्कों पर बने चित्रों को देख कर कहा जा सकता है कि लोग गर्मियों में धोती और उत्तरीय (चादर) तथा सर्दियों में पायजामा और कोट पहनते थे। स्त्रियां चोली और साड़ी का प्रयोग करती थीं। विशेष अवसरों पर लोग रेशमी वस्त्र पहना करते थे। बालियां, चूड़ियां, हार, अंगूठियां तथा कड़े आदि आभूषणों का बड़े चाव से प्रयोग होता था। लोगों का जीवन सादा था। मांस का अधिक प्रयोग नहीं होता था।
ii) स्त्रियों का स्थान-इस काल में स्त्रियां शिक्षा प्राप्त कर सकती थीं तथा गायन विद्या सीख सकती थीं। लड़कियों का विवाह छोटी आयु में ही कर दिया जाता था। विधवा विवाह की प्रथा भी प्रचलित थी। परन्तु सती प्रथा का प्रचलन अधिक नहीं था। बहुत कम स्त्रियां सती हुआ करती थीं।
iii) जाति-प्रथा-इस काल में जाति-प्रथा के बन्धन कठोर नहीं थे। किसी भी जाति का व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कोई भी व्यवसाय अपना सकता था। शूद्रों से बड़ा अच्छा व्यवहार किया जाता था।
iv) आमोद-प्रमोद-इस काल में लोग शतरंज तथा चौपड़ खेलते थे। वे रथ-दौड़ों में भी भाग लिया करते थे। शिकार खेलना, नाटक, संगीत तथा तमाशे आदि आमोद-प्रमोद के अन्य साधन थे।
II. आर्थिक जीवन–
गुप्त शासकों ने प्रजा के प्रति बड़ी उदार नीति अपनाई। देश में चारों ओर शान्ति थी। शान्त वातावरण पाकर देश में कृषि, उद्योग, व्यापार आदि में असाधारण उन्नति हुई। परिणामस्वरूप देश धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। संक्षेप में, गुप्त काल में लोगों की आर्थिक दशा का वर्णन इस प्रकार है-
1. कृषि-गुप्त काल में अधिकतर लोग कृषि का व्यवसाय अपनाये हुए थे। वे चावल, गेहूं, जौ, मटर, तेल निकालने के बीजों, विभिन्न सब्जियों, जड़ी-बूटियों आदि की कृषि करते थे। इन सभी उपजों का वर्णन हमें ‘अमरकोष’ तथा ‘वृहत् संहिता’ से उपलब्ध होता है। भूमि समस्त परिवार की सांझी सम्पत्ति मानी जाती थी। ग्राम-पंचायत की आज्ञा के बिना भूमि बेची नहीं जा सकती थी। सिंचाई के लिए कृषक वर्षा पर निर्भर रहते थे। वैसे सरकार की ओर से नहरों और झीलों आदि का समुचित प्रबन्ध किया गया था। स्कन्दगुप्त के गवर्नर पर्णदत्त के पुत्र ने सुदर्शन झील की मुरम्मत करवाई थी। गुप्त सम्राटों ने कृषि के विकास में बड़ा उत्साह दिखाया था।
2. उद्योग-धन्धे-गुप्तकालीन उद्योग-धन्धे भी काफ़ी विकसित थे। यूनसांग के अनुसार, “सातवीं शताब्दी में लोग रेशम, मलमल, लिनन और ऊन का प्रयोग करते थे। बाण ने भी लिनन से बुने हुए रेशम आदि का उल्लेख किया है। राज्यश्री के विवाह में क्षौम, दुकूल तथा ललातंतु के बने हुए वस्त्रों का प्रदर्शन किया गया था। कपड़ा उद्योग बंगाल, बनारस तथा मथुरा में केन्द्रित था। .. हाथी दांत का काम भी जोरों पर था। हाथी दांत की अनेक चीजें बनती थीं। हाथी दांत का फर्नीचर तथा मुद्राओं में भी प्रयोग किया जाता था। सोना, चांदी, सीसा, तांबा तथा कांसा आदि से सम्बन्धित व्यवसाय भी प्रचलित थे। लोहे की ढलाई की जाती थी। महरौली का स्तम्भ इस उद्योग की शान का सबसे सुन्दर नमूना है। महात्मा बुद्ध की तांबे की मूर्ति भागलपुर के पास सुल्तानगंज में मिली है। यह भारतीय कारीगरी का प्राचीन गौरव है।
3. व्यापार-गुप्त काल में व्यापार की दशा उन्नत थी। व्यापार सड़कों तथा नदियों द्वारा होता था। देश के मुख्य नगर अर्थात् भड़ौच, उज्जयिनी, पैठन, प्रयाग, विदिशा, बनारस, गया, पाटलिपुत्र, वैशाली, ताम्रलिप्ति, कौशाम्बी, मथुरा, अहिच्छत्र और पेशावर आदि सड़कों द्वारा एक-दूसरे से मिले हुए थे। गाड़ियां, पशु तथा नावें यातायात के मुख्य साधन थे। भारतीय लोगों ने ऐसे जहाज़ भी बनाए हुए थे जिसमें 500 आदमी एक-साथ यात्रा कर सकते थे। देश में अनेक बन्दरगाहें थीं जिनके द्वारा पूर्वी द्वीपसमूह तथा पश्चिमी देशों से व्यापार होता था। गुजरात और पश्चिमी तट की प्रसिद्ध बन्दरगाहें कल्याण, चोल, भड़ौच और कैम्बे थीं। भारत से विदेशों को मणियां, मोती, सुगन्धित पदार्थ, कपड़ा, गर्म मसाले, नील, नारियल, औषधियां और हाथदांत की वस्तुएं भेजी जाती थीं। विदेशों से सोना, चांदी, तांबा, टीन, जस्ता, कपूर, रेशम, मूंगा, खजूर और घोड़े आदि आयात किए जाते थे।
4. श्रेणियां-गुप्त काल की आर्थिक व्यवस्था की सबसे बड़ी विशेषता श्रेणी अथवा ‘गिल्ड प्रणाली’ थी। प्रत्येक . . व्यवसाय के लोग अपने व्यवसाय के प्रबन्ध के लिए एक संस्था बना लेते थे। व्यापारियों और साहूकारों की श्रेणियों के अतिरिक्त जुलाहों, तेलियों और संगतराशों ने भी अपनी-अपनी श्रेणियां बना ली थीं। प्रत्येक श्रेणी की एक कार्यकारिणी होती थी। वही उसका कार्य चलाती थी। वैशाली से 274 मोहरें प्राप्त हुई हैं। इन्हें प्रत्येक श्रेणी अपने पत्रों को बन्द करने में प्रयोग करती थी। श्रेणियों के अपने अलग नियम थे। इन नियमों को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त थी। श्रेणी के सभी झगड़े श्रेणी का मुखिया निपटाया करता था। इन श्रेणियों के कारण व्यापार तथा उद्योग खूब फले-फूले।
III. धार्मिक जीवन-
गुप्त काल में हिन्दू धर्म पुनः लोकप्रिय हुआ। डॉ० कीथ (Dr. Keith) ने इस विषय में इस प्रकार लिखा है-“The Gupta empire signified revival of Brahmanism and Hinduism.” गुप्त शासक स्वयं भी हिन्दू धर्म के अनुयायी थे। उनके शासन काल में ‘विष्णु’ तथा ‘सूर्य’ की उपासना की जाने लगी। इनकी मूर्तियां बनाकर मन्दिरों में रखी जाती थीं। देश में फिर से यज्ञ आदि भी होने लगे। यद्यपि गुप्त सम्राट् हिन्दू धर्म के अनुयायी थे तो भी वे हठधर्मी नहीं कहे जा सकते। इस काल में बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म भी लोकप्रिय थे। गुप्त राजा इन धर्मों को भी आर्थिक सहायता देते थे। अफगानिस्तान, कश्मीर और पंजाब में बौद्ध धर्म अत्यन्त लोकप्रिय था। जैन धर्म की दो सभाएं इसी काल में हुईं।
सच तो यह है कि गुप्तकाल में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बड़ी उन्नति हुई। गुप्तकाल का समाज एक आदर्श समाज था। व्यापार तथा अन्य उद्योग-धन्धे विकसित थे। फलस्वरूप लोगों का जीवन-स्तर ऊंचा था। धर्म के क्षेत्र में भी कुछ नवीन विचारधाराओं का उदय हुआ। गुप्त कालीन समाज निःसन्देह प्रत्येक क्षेत्र में समृद्ध था।
प्रश्न 4.
गुप्त काल में कला, साहित्य, विज्ञान तथा तकनॉलोजी की उन्नति की चर्चा करें।
उत्तर-
गुप्तकाल का भारत के प्रचीन इतिहास में विशेष स्थान है। विद्वानों ने इसे ‘स्वर्ण काल’ का नाम दिया है। इस काल में अनेक मन्दिर तथा गुफाओं का निर्माण हुआ। उन दिनों कालिदास जैसे महान् साहित्यकार पैदा हुए। विज्ञान तथा तकनॉलोजी के क्षेत्र में भी भारत ने खूब उन्नति की। इन सब सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-
I. कला के क्षेत्र में विकास–
1. भवन निर्माण कला तथा मूर्तिकला-गुप्त सम्राटों को भवन निर्माण कला से विशेष लगाव था। उन्होंने अपने राज्य में अनेक आकर्षक मन्दिर बनवाए। भूमरा का शिव मन्दिर, देवगढ़ का मन्दिर तथा भितरी गांव का मन्दिर देखने योग्य हैं। मन्दिरों के अतिरिक्त गुप्त काल की गुफाएं भी उस समय की श्रेष्ठ भवन निर्माण कला की प्रतीक हैं। मध्यप्रदेश में भीलसा के निकट उदयगिरी का गुफा-मन्दिर भी कला का उच्च नमूना प्रस्तुत करता है। गुप्तकालीन मठों में सांची और गया में स्थित मठ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
गुप्त काल में भवन निर्माण कला के साथ-साथ मूर्ति कला ने खूब उन्नति की। गुप्तकाल में सबसे अधिक मूर्तियां महात्मा बुद्ध तथा बौधिसत्वों की बनीं। इनमें से कुछ मूर्तियां मथुरा तथा सारनाथ से प्राप्त हुई हैं। बुद्ध की ये मूर्तियां गुप्त कालीन शिल्पकला के सौन्दर्य का प्रतीक हैं। मथुरा से प्राप्त खड़े बुद्ध की मूर्ति गुप्तकाल की शिल्प-कला का सजीव उदाहरण है। इसमें बुद्ध के धुंघराले बाल, बारीक वस्त्र तथा आकर्षक आभूषण बड़ी बारीकी से तराशे गए हैं। बुद्ध की मूर्तियों के अतिरिक्त इस काल में विष्णु, शिव, सूर्य आदि देवताओं की भी अनेक सुन्दर मूर्तियां बनाई गई हैं। देवगढ़, ग्वालियर आदि स्थानों से प्राप्त मूर्तियों से हमें गुप्त काल की अनोखी शिल्प-काल के दर्शन होते हैं।
2. चित्रकला-गुप्तकाल में चित्रकला भी उन्नति की चरम सीमा को छूने लगी। गुप्तकाल की चित्र-कला के दर्शन हमें मध्य भारत में अजन्ता की गुफाओं तथा ग्वालियर में बाघ की गुफाओं में होते हैं। अजन्ता की गुफाओं पर अनेक प्रकार के चित्र चित्रित हैं। तत्कालीन चित्रकारों ने अपने चित्रों में महात्मा बुद्ध की जीवनी को बड़ी निपुणता से चित्रित किया है। इसके अतिरिक्त अन्य देवी-देवताओं के चित्र, पशु-पक्षियों के चित्र, राजकुमारियों के रहन-सहन के चित्र तथा वृक्षों के चित्रों को बड़ी बारीकी से चित्रित किया गया है। सभी चित्रों में बड़े ही गूढ भावों को उभारा गया है। बाघ की गुफाओं के चित्र भी कला की दृष्टि से कुछ कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। इनके चित्र प्रायः अजन्ता के चित्रों से मिलते-जुलते हैं।
3. संगीत-कला-विद्वानों का मत है कि गुप्त काल में संगीत-कला में भी असाधारण विकास हुआ। गुप्त सम्राटों के संगीत-प्रेम का परिचय हमें इलाहाबाद स्तम्भ लेख तथा गुप्त काल की मुद्राओं से मिलता है। इलाहाबाद स्तम्भ लेख हमें समुद्रगुप्त के महान् संगीतज्ञ होने की जानकारी देता है। इसके अतिरिक्त उनकी कुछ मुद्राएं भी प्राप्त हुई हैं। इन मुद्राओं में उसे वीणा पकड़े हुए दिखाया गया है। स्पष्ट है कि उसे संगीत-कला से अगाध प्रेम था। संगीत-कला प्रेमी सम्राट ने संगीत के विकास में अवश्य ही विशेष रूचि दिखाई होगी। इसी प्रकार स्कन्दगुप्त भी बड़ा संगीत प्रेमी था। उसके संरक्षण में संगीत उन्नति की पराकाष्ठा को छने लगा।
4. धातु-कला तथा मुद्रा-कला-गुप्त काल में धातु-कला काफ़ी विकसित थी। उस समय के उपलब्ध धातु-कला के नमूने कारीगरों की निपुणता के द्योतक हैं। नालन्दा से प्राप्त बुद्ध की तांबे की मूर्ति अत्यन्त आकर्षक है। फुट 7 1/2 ऊंची यह मूर्ति धातु-कला की दृष्टि से अपना उदाहरण आप ही है। इस प्रकार दिल्ली के निकट महरौली में स्थित गुप्त काल का लौहस्तम्भ भी इस कला का उत्कृष्ट नमूना है। इस स्तम्भ की प्रमुख विशेषता यह है कि सदियां बीतने पर भी यह स्तम्भ ज्यों का त्यों खड़ा है। इस पर आंधी, धूप, वर्षा, तूफान आदि किसी भी प्रकार की प्राकृतिक शक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। गुप्त काल ने मुद्रा-कला में भी अद्भुत सफलता प्राप्त की। लगभग सभी गुप्त सम्राटों के सिक्के प्राप्त हुए हैं। सोने, चांदी तथा तांबे के बने ये सिक्के गुप्त काल की विकसित मुद्रा-कला के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। यद्यपि गुप्त काल के आरम्भिक सिक्कों पर विदेशी प्रभाव झलकता है, फिर भी चन्द्रगुप्त द्वितीय तथा कुमारगुप्त के सिक्के स्पष्ट रूप से भारतीयता के प्रतीक हैं।
II. साहित्य में उन्नति-
गुप्त काल में अनेक साहित्यकारों ने अपनी साहित्यिक कृतियों में गुप्तकाल की शान में वृद्धि की। कालिदास इस युग का अद्वितीय रत्न था। वह संस्कृत का महान् कवि तथा नाटककार था। उसने इतने उत्कृष्ट नाटक लिखे कि प्रशंसा में उसे भारतीय शेक्सपियर के नाम से याद किया जाता है। उसकी प्रमुख रचनाएं ये हैं-‘रघुवंश’, ‘मालविकाग्निमित्रम’, ‘ऋतु संहार’, ‘कुमारसम्भव’, ‘विक्रमोर्वशी’ आदि। ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ नाटक उसकी अमर कृति है। गुप्त काल की दूसरी महान् विभूति ‘विशाखदत्त’ था। उसकी अमर कृतियों में ‘मुद्राराक्षस’ तथा ‘देवीचन्द्रगुप्तम’ के नाम लिये जा सकते हैं। शूद्रक चौथी शताब्दी का सुप्रसिद्ध नाटककार था। उसने मृच्छकटिक नामक नाटक की रचना की। विष्णु शर्मा ने इस काल में भारत को पंचतन्त्र नामक एक अमूल्य अमर कृति दी। इस युग में पुराणों को नवीन रूप दिया गया। स्मृतियां भी इसी युग की देन हैं। कहते हैं, इस युग में ‘रामायण’ तथा ‘महाभारत’ के संशोधित संस्करण तैयार किए गए। ईश्वर कृष्ण, वात्स्यायन तथा प्रशस्तपाद इस युग के महान् दार्शनिक थे। ईश्वर कृष्ण ने ‘सांख्यकारिका’ की रचना की। वात्स्यायन ने न्यायसूत्र पर ‘न्याय भाष्य’ की रचना की। इसी प्रकार प्रशस्तपाद ने ‘पदार्थ धर्म’ संग्रह लिखा। इनके अतिरिक्त ‘असंग’, ‘वसुबन्धु’, ‘धर्मपाल’, ‘चन्द्रकर्ति’ आदि अन्य कई दार्शनिक हुए। इस काल में समुद्रगुप्त के दरबारी हरिषेण ने इलाहाबाद प्रशस्ति लिखी जो समुद्रगुप्त की सफलताओं पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालती है।
III. विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति-
गुप्त काल में गणित, ज्योतिष तथा चिकित्सा विज्ञान में काफ़ी प्रगति हुई-
1. आर्यभट्ट गुप्त युग का महान् गणितज्ञ तथा ज्योतिषी था। उसने ‘आर्यभट्टीय’ नामक ग्रन्थ की रचना की। यह अंकगणित, रेखागणित तथा बीजगणित के विषयों पर प्रकाश डालता है। उसने गणित को स्वतन्त्र विषय के रूप में स्वीकार करवाया। संसार को ‘बिन्दु’ का सिद्धान्त भी उसी ने दिया। आर्यभट्ट पहला व्यक्ति था जिसने यह घोषणा की कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। उसने सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण के वास्तविक कारणों पर भी प्रकाश डाला।
2. गुप्त युग का दूसरा महान् ज्योतिषी अथवा नक्षत्र-वैज्ञानिक वराहमिहिर था। उसने ‘पंच सिद्धान्तिका’, ‘बृहत् संहिता’ तथा ‘योग-यात्रा’ आदि ग्रन्थों की रचना की।
3. ब्रह्मगुप्त एक महान् ज्योतिषी तथा गणितज्ञ था। उसने न्यूटन से भी बहुत पहले गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त को स्पष्ट किया।
4. वाग्यभट्ट इस युग का महान् चिकित्सक था। उसका ‘अष्टांग संग्रह’ नामक ग्रन्थ चिकित्सा जगत् के लिए अमूल्य निधि है। इसमें चरक तथा सुश्रुत नामक महान् चिकित्सकों की संहिताओं का सार दिया गया है।
5. इस काल में पाल-काव्य ने ‘हस्त्यायुर्वेद’ की रचना की। इस ग्रन्थ का सम्बन्ध पशु चिकित्सा से है। लोगों को उस समय रसायनशास्त्र तथा धातु विज्ञान का भी ज्ञान था।
IV. तकनॉलाजी (तकनीकी) –
गुप्त काल में धातु-कला की तकनीकी में बड़ा विकास हुआ। उस समय के उपलब्ध धातुकला के नमने कारीगरों की निपुणता के द्योतक हैं। नालन्दा से प्राप्त बुद्ध की तांबे की मूर्ति अत्यन्त आकर्षक है। इसी प्रकार दिल्ली के निकट महरौली में स्थित गुप्त काल का लौह-स्तम्भ भी कला का उत्कृष्ट नमूना है। इस स्तम्भ की प्रमुख विशेषता यह है कि सदियां बीतने पर भी यह स्तम्भ ज्यों का त्यों खड़ा है। इस पर आंधी, धूप, वर्षा, तूफान आदि किसी प्राकृतिक शक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। गुप्तकाल ने मुद्रा-कला में भी अद्भुत सफलता प्राप्त की। लगभग सभी गुप्त सम्राटों के सिक्के प्राप्त हुए हैं। सोने, चांदी तथा तांबे के बने ये सिक्के गुप्त काल की विकसित मुद्रा-कला के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। भारतीय इतिहास में मुद्रा-कला में वास्तविक निखार का प्रमाण हमें गुप्तकालीन सिक्कों से ही मिलता है। गुप्तकालीन सिक्कों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये पूर्णतया भारतीय रंग में रचित है। इनकी हर बात में भारतीयता झलकती है। भारतीय भाषा, भारतीय चित्र तथा भारतीय सम्वत् इन सिक्कों की मुख्य विशेषताएं हैं। यद्यपि गुप्त काल के आरम्भिक सिक्कों पर विदेशी प्रभाव झलकता है फिर भी चन्द्रगुप्त द्वितीय तथा कुमारगुप्त के सिक्के स्पष्ट रूप से भारतीयता के प्रतीक हैं।
सच तो यह है कि गुप्त काल में भवन-निर्माण कला, चित्रकला, शिल्पकला, संगीत-कला, धातु-कला, मुद्रा-कला आदि सभी कलाओं में आश्चर्यजनक विकास हुआ। सुन्दर भवनों से देश अलंकृत हुआ, मूर्तियों में चेतना का संचार हुआ और भारतीय संगीत से समस्त वातावरण गूंज उठा। साहित्य का रूप निखरा । कालिदास की रचनाओं, पुराणों तथा स्मृतियों ने धार्मिक साहित्य की शोभा बढ़ाई। आर्यभट्ट, वराहमिहिर तथा ब्रह्मगुप्त ने नक्षत्र सम्बन्धी इतने महान् ग्रन्थों की रचना की कि वे आज भी वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। इस सबका श्रेय गुप्त सम्राटों को प्राप्त है।
महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक
प्रश्न 1.
गुप्त वंश का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त था।
प्रश्न 2.
भारत आने वाले पहले चीनी यात्री का नाम क्या था ?
उत्तर-
भारत आने वाले पहले चीनी यात्री का नाम फाह्यान था।
प्रश्न 3.
इलाहाबाद का स्तम्भ लेख किस गुप्त शासक के बारे में है ?
उत्तर-
समुद्रगुप्त।
प्रश्न 4.
कौन से गुप्त शासक को ‘भारतीय नैपोलियन’ कह कर पुकारा जाता है ?
उत्तर-
समुद्रगुप्त।
प्रश्न 5.
गुप्त वंश के किस राजा द्वारा अश्वमेध यज्ञ रचाया गया था ?
उत्तर-
गुप्त वंश के राजा समुद्रगुप्त द्वारा अश्वमेध यज्ञ रचाया गया था।
प्रश्न 6.
समुद्रगुप्त के उत्तराधिकारी का क्या नाम था ?
उत्तर-
समुद्रगुप्त के उत्तराधिकारी का नाम रामगुप्त था।
प्रश्न 7.
गुप्तकाल के दो सुन्दर मन्दिरों के नाम लिखो।
उत्तर-
भूमरा तथा देवगढ़ के मंदिर।
प्रश्न 8.
गुप्तकालीन चित्रकारी के श्रेष्ठ नमूनों के कोई दो स्थान बताइये।
उत्तर-
गुप्तकाल की चित्रकारी के श्रेष्ठ नमूने अजन्ता तथा एलोरा की गुफाओं में मिलते हैं।
प्रश्न 9.
गुप्तकाल का प्रसिद्ध चिकित्सक कौन था ?
उत्तर-
गुप्तकाल का प्रसिद्ध चिकित्सक चरक था।
प्रश्न 10.
गुप्तकालीन धातुकला का उत्कृष्ट नमूना कौन-सा था ?
उत्तर-
गुप्तकालीन धातुकला का उत्कृष्ट नमूना महरौली का लौह-स्तम्भ है।
प्रश्न 11.
किस काल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है ?
उत्तर-
गुप्तकाल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है।
2. रिक्त स्थानों की पूर्ति-
(i) शकुंतला नामक नाटक का लेखक ………….. था।
(ii) गुप्त शासक ………………. धर्म के अनुयायी थे।
(iii) गुप्त वंश का सबसे पराक्रमी राजा …………. था।
(iv) चीनी यात्री फाह्यान ……….. के दरबार में 6 वर्ष तक रहा।
(v) गुप्तकाल का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय …………….. था।
उत्तर-
(i) कालिदास
(ii) हिंदू
(iii) समुद्रगुप्त
(iv) चंद्रगुप्त विक्रमादित्य
(v) नालंदा।
3. सही/ग़लत कथन-
(i) तोरमाण तथा मिहिरकुल प्रसिद्ध हूण शासक थे। –(√)
(ii) श्वेताम्बर तथा दिग़म्बर बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय थे। –(×)
(iii) चंद्रगुप्त द्वितीय के समय गुजरात तथा काठियावाड़ में शक वंश का शासन था। –(√)
(iv) गुप्तकाल की राजभाषा संस्कृत थी। –(√)
(v) कुमारगुप्त, स्कंदगुप्त का उत्तराधिकारी था। –(×)
4. बहु-विकल्पीय प्रश्न-
प्रश्न (i)
‘मेघदूत’ का लेखक कौन था ?
(A) विशाखादत्त
(B) कालिदास
(C) चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
(D) हरिषेण ।
उत्तर-
(B) कालिदास
प्रश्न (ii)
गुप्तकाल का एक प्रसिद्ध नाटककार था
(A) भास
(B) भारवि
(C) बाणभट्ट
(D) वराहमिहिर ।
उत्तर-
(A) भास
प्रश्न (iii)
आर्यभट्ट था-
(A) प्रसिद्ध नाटककार
(B) विख्यात सेनापति
(C) ज्योतिष तथा गणित का विद्वान्
(D) धर्म-प्रवर्तक।
उत्तर-
(C) ज्योतिष तथा गणित का विद्वान्
प्रश्न (iv)
दक्षिण के राजाओं को हराने वाला गुप्त शासक था-
(A) चन्द्रगुप्त द्वितीय
(B) समुद्रगुप्त
(C) चन्द्रगुप्त प्रथम
(D) स्कंदगुप्त ।
उत्तर-
(B) समुद्रगुप्त
प्रश्न (v)
‘शाकारि’ की उपाधि धारण करने वाला गुप्त शासक था-
(A) चन्द्रगुप्त द्वितीय
(B) समुद्रगुप्त
(C) रामगुप्त
(D) कुमार गुप्त।
उत्तर-
(A) चन्द्रगुप्त द्वितीय
II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
कौन-सी दो विदेशी भाषाओं में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद के काल के बारे में बताने वाले स्रोत मिलते
उत्तर-
मौर्य साम्राज्य के पतन के काल की जानकारी के स्रोत यूनानी तथा चीनी भाषाओं में मिले हैं।
प्रश्न 2.
शंग तथा कण्व वंशों के संस्थापकों के नाम बताओ।
उत्तर-
शुंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र शुंग तथा कण्व वंश का संस्थापक वसुदेव था।
प्रश्न 3.
उत्तर-पश्चिम भारत में सबसे प्रसिद्ध यूनानी राजा तथा उसकी राजधानी का नाम बताएं।
उत्तर-
उत्तर-पश्चिम में सबसे प्रसिद्ध यूनानी राजा मिनाण्डर था। उसकी राजधानी स्यालकोट थी।
प्रश्न 4.
पहले पहलव (पार्थियन) शासक तथा उसकी राजधानी का नाम बताएं।
उत्तर-
पहला पहलव शासक गोंडोफर्नीज़ था। उसकी राजधानी तक्षशिला थी।
प्रश्न 5.
शकों का राज्य कौन-से चार प्रदेशों पर था ?
उत्तर-
शकों का राज्य गुजरात, मालवा, मथुरा तथा पश्चिमी राजस्थान में था।
प्रश्न 6.
सबसे प्रसिद्ध शक शासक तथा उससे सम्बन्धित अभिलेख का नाम बताएं।
उत्तर-
सबसे प्रसिद्ध शक शासक का तथा इससे सम्बन्धित अभिलेख का नाम है-जूनागढ़ अभिलेख।
प्रश्न 7.
कुषाण कबीले के पहले दो शासकों के नाम बताओ।
उत्तर-
कुषाण कबीले के पहले दो शासक थे-कजुल केडफीसिज़ और विम केडफीसिज़।
प्रश्न 8.
कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक तथा उसकी राजधानी का नाम बताएं।
उत्तर-
कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक कनिष्क था जिसकी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) थी।
प्रश्न 9.
कुषाण काल में बौद्ध धर्म की कौन-सी सभा हुई तथा यह कहां बुलाई गई थी ?
उत्तर-
कुषाण काल में बौद्ध धर्म की चौथी सभा हुई। यह महासभा कश्मीर में बुलाई गई थी।
प्रश्न 10.
कुषाण काल में कौन-सी कला-शैली का विकास हुआ तथा यह किस धर्म से सम्बन्धित थी ?
उत्तर-
कुषाण काल में गान्धार कला-शैली का विकास हुआ। यह कला-शैली बौद्ध धर्म से सम्बंधित थी।
प्रश्न 11.
कुषाण कला के कौन-से शासक के साथ शक सम्वत् जोड़ा जाता है और यह आज किस देश का सरकारी सम्वत् है ?
उत्तर-
शक सम्वत् कुषाण शासक कनिष्क के साथ जोड़ा जाता है। यह आज भारत का सरकारी सम्वत् है।
प्रश्न 12.
कौन-से शासक को उसके सिक्के पर धनुष, पगड़ी, कोट तथा जूतों के साथ दिखाया गया है और उसका राज्य कहां से कहां तक फैला हुआ था ?
उत्तर-
कनिष्क को उसके सिक्के पर धनुष, पगड़ी, कोट और जूतों के साथ दिखाया गया है। उसका राज्य मध्य एशिया में खुरासान से लेकर भारत में बनारस और सांची तक फैला हुआ था जिसमें पंजाब भी शामिल था।
प्रश्न 13.
कार्ली का चैत्य तथा अमरावती का स्तूप कौन-से राजवंश के समय में बनाए गए तथा इसका सबसे महत्त्वपूर्ण शासक कौन था और उसका राज्य किस प्रदेश में फैला हुआ था ?
उत्तर-
कार्ली का चैत्य तथा अमरावती का स्तूप सातवाहन राजवंश के समय में बनाए गए। इस वंश का सबसे महत्त्वपूर्ण शासक, गौतमीपुत्र शातकर्णि था जिसका राज्य पश्चिमी दक्कन में फैला हुआ था।
प्रश्न 14.
प्राचीन दक्कन के किस राजवंश का काल रोम के साथ व्यापार के लिए प्रसिद्ध है और उसके समय में किन दो धर्मों को संरक्षण दिया गया ?
उत्तर-
प्राचीन दक्कन के सातवाहन राजवंश का काल रोम के साथ व्यापार के लिए प्रसिद्ध है। इस राजवंश के समय में वैष्णव धर्म तथा बौद्ध धर्म को प्रोत्साहन दिया गया।
प्रश्न 15.
तीसरी सदी ई० में दक्षिण में उभरने वाले चार नए राज्यों के नाम बताएं।
उत्तर-
तीसरी सदी ई० में दक्षिण में उभरने वाले चार राज्य थे-कदम्ब, पल्लव, वाकाटक, चेर।
प्रश्न 16.
तीसरी सदी में कृष्णा नदी के दक्षिण में तीन मुख्य राज्य कौन से थे ?
उत्तर-
तीसरी सदी में कृष्णा नदी के दक्षिण में तीन मुख्य राज्य थे-चोल, चेर और पाण्डेय।
प्रश्न 17.
गुप्त वंश के तीसरे शासक का नाम तथा उसने किस वंश की राजकुमारी के साथ विवाह किया था ?
उत्तर-
गुप्त वंश का तीसरा शासक चन्द्रगुप्त प्रथम था। उसने लिच्छवी वंश की राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया था।
प्रश्न 18.
समुद्रगुप्त की विजयों के बारे में बताने वाला अभिलेख किस शासक द्वारा बनाए गए स्तम्भ पर मिलता है और यह कहां है ?
उत्तर-
समुद्रगुप्त की विजयों के बारे में वर्णन अशोक द्वारा बनाए गए स्तम्भ पर मिलता है। यह स्तम्भ इलाहाबाद में है।
प्रश्न 19.
चीनी यात्री फाह्यान कौन-से शासक के समय में भारत आया था और उसका राज्यकाल क्या था ?
उत्तर-
फाह्यान गुप्त शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय में भारत आया था। उसका राज्य काल 375 ई० से 415 ई० तक था।
प्रश्न 20.
कौन-सा गुप्त शासक अपने सिक्के पर वीणा बजाता हुआ दर्शाया गया है तथा उसका राज्यकाल क्या था ?
उत्तर-
गुप्त शासक समुद्रगुप्त को अपने सिक्के पर वीणा बजाते हुए दिखाया गया है। उसका राज्यकाल 335 ई० से 375 ई० तक था।
प्रश्न 21.
कौन-सा गुप्त शासक अपने सिक्के पर धनुषधारी के रूप में दर्शाया गया है और उसकी सबसे बड़ी विजय कौन-सी थी ?
उत्तर-
गुप्त शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को अपने सिक्के पर धनुषधारी के रूप में दर्शाया गया है। उसकी सबसे बड़ी विजय गुजरात तथा पश्चिमी मालवा के शासकों के विरुद्ध थी।
प्रश्न 22.
कौन-सी जाति के विदेशी आक्रमणकारियों ने गुप्त साम्राज्य के पतन में योगदान दिया और यह किन दो बातों में गुप्त सैनिकों से आगे थे ?
उत्तर-
गुप्त साम्राज्य के पतन में हूण जाति ने योगदान दिया। हूण घुड़सवारी और तीर-अंदाज़ी में गुप्त सैनिकों से आगे थे।
प्रश्न 23.
गुप्त साम्राज्य के सीधे प्रशासन के अधीन कौन-से क्षेत्र थे ?
उत्तर-
गुप्त साम्राज्य के सीधे प्रशासन के अधीन उत्तरी बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र सम्मिलित थे।
प्रश्न 24.
गुप्त साम्राज्य के प्रान्तों के प्रशासकों के कौन-से दो नाम थे ?
उत्तर-
गुप्त साम्राज्य में प्रान्तों के प्रशासकों को कुमारामात्य अथवा उपारिक महाराज कहा जाता था।
प्रश्न 25.
गुप्त काल में भारत का व्यापार कौन से चार देशों से था ?
उत्तर-
गुप्त काल में भारत का व्यापार बर्मा, चीन, रोम तथा श्रीलंका से होता था।
प्रश्न 26.
गुप्त काल में बनाये जाने वाले कपड़े की चार किस्में बतायें।
उत्तर-
गुप्त काल में बनाये जाने वाले कपड़े की चार किस्में थीं-रेशमी, सूती, मलमल तथा लिलन।
प्रश्न 27.
मनु की लिखी हुई पुस्तक का क्या नाम है और इसमें समाज के किस वर्ग की श्रेष्ठता पर बल दिया गया है।
उत्तर-
मनु द्वारा लिखी पुस्तक का नाम मानवधर्मशास्त्र है। इसमें ब्राह्मण वर्ग की श्रेष्ठता पर बल दिया गया हैं।
प्रश्न 28.
मनु के अतिरिक्त कानून के क्षेत्र में ग्रन्थ लिखने वाले चार प्रसिद्ध विद्वानों के नाम लिखो।
उत्तर-
मनु के अतिरिक्त कानून के क्षेत्र में ग्रन्थ लिखने वाले चार प्रसिद्ध विद्वान् थे-याज्ञवल्क्य, नारद, बृहस्पति तथा कात्यायन।
प्रश्न 29.
चिकित्सा के क्षेत्र में दो प्रसिद्ध गुप्तकालीन विद्वानों के नाम बताओ।
उत्तर-
चिकित्सा के क्षेत्र में दो प्रसिद्ध गुप्तकालीन विद्वान् थे-चरक और सुश्रुत।
प्रश्न 30.
गुप्त काल में बने लौह स्तम्भ की ऊँचाई क्या है, यह कहां है ?
उत्तर-
लौह स्तम्भ 23 फुट से भी ऊंचा है। यह दिल्ली में स्थित है।
प्रश्न 31.
‘हिन्द’ से क्या भाव है ?
उत्तर-
‘हिन्द’ से भाव है-अंक।
प्रश्न 32.
वराहमिहिर की लिखी पुस्तक का नाम बताओ। यह किस क्षेत्र में लिखी गई ?
उत्तर-
वराहमिहिर की पुस्तक का नाम ‘पंच सिद्धान्तिका’ है। यह खगोल विज्ञान के क्षेत्र में लिखी गई।
प्रश्न 33.
बुद्ध की कौन-सी मूर्ति से सुन्दरता, ओज तथा दया की पूर्ण एकसारता प्रकट होती है तथा यह वर्तमान भारत के कौन-से नगर के निकट पाई गई है ?
उत्तर-
बुद्ध की सारनाथ में मिली मूर्ति में सुन्दरता, ओज तथा दया की पूर्ण एकसारता प्रकट होती है। यह वर्तमान पटना के निकट पाई गई है।
प्रश्न 34.
अवलोकितेश्वर बोधिसत्व का चित्र कहां मिला है तथा यह बौद्ध धर्म के किस सम्प्रदाय से सम्बन्धित
उत्तर-
अवलोकितेश्वर बोधिसत्व का चित्र अजन्ता की एक गुफा में मिला है। यह बौद्ध के महायान सम्प्रदाय से सम्बन्धित है।
प्रश्न 35.
उदयगिरी में विष्णु के कौन-से अवतार की मूर्ति मिली है और यह वर्तमान भारत में किस राज्य में है ?
उत्तर-
उदयगिरी में विष्णु के वराह अवतार की मूर्ति मिली है। यह स्थान वर्तमान भारत के मध्य-प्रदेश राज्य में है।
प्रश्न 36.
संस्कृत व्याकरण में प्राचीन भारत के सबसे प्रसिद्ध दो विद्वानों के नाम बताओ।
उत्तर-
संस्कृत व्याकरण में प्राचीन भारत के सबसे प्रसिद्ध दो विद्वानों के नाम हैं-पाणिनी और पातंजलि।
प्रश्न 37.
गुप्त काल में संस्कृत कौन-से वर्ग की भाषा थी और नाटकों में कौन-से दो प्रकार के पात्र प्राकृत का प्रयोग करते थे ?
उत्तर-
गुप्त काल में संस्कृत कुलीन वर्ग की भाषा थी। नाटकों में स्त्रियां तथा समाज के निम्न वर्गों के पात्र प्राकृत का प्रयोग करते थे।
प्रश्न 38.
पुराणों का संकलन किस काल में हुआ तथा किस काल में लिखे गये ?
उत्तर-
पुराणों का संकलन गुप्त काल में हुआ। ये भविष्य काल में लिखे गए हैं।
प्रश्न 39.
महाभारत तथा रामायण का संकल्प किस काल में हुआ तथा इनसे सम्बन्धित दो अवतार कौन थे ?
उत्तर-
महाभारत तथा रामायण का संकलन गुप्त काल में हुआ। इनसे सम्बन्धित दो अवतार क्रमशः कृष्ण तथा राम थे।
प्रश्न 40.
शद्रक के नाटक का तथा संस्कृत के गद्य साहित्य के बेहतरीन नमूने का नाम बताओ।
उत्तर-
शूद्रक का नाटक ‘मृच्छकटिकम्’ था। संस्कृत के गद्य साहित्य का बेहतरीन नमूना पंचतन्त्र को माना जाता है।
प्रश्न 41.
कालिदास से पहले के संस्कृत के दो प्रसिद्ध नाटककारों के नाम लिखो।
उत्तर-
कालिदास से पहले के संस्कृत के दो प्रसिद्ध नाटककारों के नाम थे : अश्वघोष तथा भास।
प्रश्न 42.
कालिदास की दो प्रसिद्ध रचनाओं के नाम लिखो।
उत्तर-
‘मेघदूत’ तथा ‘शाकुन्तलम्’ कालिदास की दो प्रसिद्ध रचनाएं हैं।
प्रश्न 43.
गुप्त काल में अधिकांश बौद्ध साहित्य किस भाषा में लिखा गया तथा बौद्ध धर्म से सम्बन्धित मूर्तियां किन दो स्थानों पर मिली हैं ?
उत्तर-
गुप्त काल में अधिकांश बौद्ध साहित्य पाली भाषा में लिखा गया। बौद्ध धर्म से सम्बन्धित मूर्तियां सारनाथ और मथुरा में मिली हैं।
प्रश्न 44.
गुप्त काल में दक्षिण की कौन-सी भाषा में साहित्य लिखा गया तथा इस साहित्य को क्या कहा जाता
उत्तर-
गुप्तकाल में दक्षिण की तमिल भाषा में साहित्य लिखा गया और इसे संगम (शंगम) साहित्य कहा गया।
प्रश्न 45.
गुप्त वंश के शासकों में से किस शासक को भारतीय नेपोलियन कहा गया है ?
उत्तर-
समुद्रगुप्त को।
III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
कुषाण शासकों का भारत के इतिहास में क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
बहुत समय पहले मध्य एशिया में यू-ची नामक जाति बसी हुई थी। कुषाण इसी यू-ची जाति की एक शाखा थी। इस वंश के लोगों ने भारत में एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया। कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक कनिष्क था। वह सम्भवतः 120 ई० में सिंहासन पर बैठा। कनिष्क ने कश्मीर, पंजाब, मथुरा तथा मगध पर विजय प्राप्त की। उसने चीन पर आक्रमण करके खोतान तथा यारकन्द को अपने साम्राज्य का अंग बना लिया। इस प्रकार इसका राज्य उत्तर में बुखारा से लेकर दक्षिण में यमुना नदी तक फैल गया। पूर्व में यह बनारस से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान तक फैल गया। कुषाण शासकों ने भारत में रह कर पूरी तरह अपना भारतीयकरण कर लिया था। कनिष्क द्वारा बौद्ध धर्म को अपनाना इस बात का बहुत बड़ा प्रमाण है।
प्रश्न 2.
सातवाहन राजाओं का भारतीय इतिहास में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
सातवाहन राजा दक्षिण-पश्चिम में राज्य करते थे। सम्भवत: आरम्भिक सातवाहन मौर्य साम्राज्य के अधीन कार्य करते थे। अशोक की मृत्यु के बाद इन्होंने अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित कर ली। इस वंश के राजा शातकर्णि ने अपनी शक्ति का काफ़ी विस्तार किया। उसने मगध के शुंग वंश से मालवा का प्रदेश छीन लिया। ईसा की पहली शताब्दी में पश्चिम-दक्षिण पर शकों ने अधिकार कर लिया। इसलिए सातवाहन शासकों ने पूर्व के प्रदेशों को जीत कर इस हानि को पूरा किया। यह प्रदेश उनके नाम पर ही बाद में आन्ध्र प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। दूसरी शताब्दी ई० पूर्व में सातवाहन वंश से एक अन्य पराक्रमी शासक हुआ जिसका नाम गौतमीपुत्र शातकर्णि था। उसने पश्चिमी दक्षिण में शकों को बाहर निकाल दिया। ईसा की दूसरी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में सातवाहन राज्य में क़ाठियावाड़ से लेकर आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी तक फैल गया। सातवाहनों ने कुल मिला कर लगभग 450 वर्षों तक शासन किया। इसके बाद उनका पतन हो गया।
प्रश्न 3.
गुप्त साम्राज्य के सैनिक प्रशासन की मौर्य सैनिक प्रबन्ध के साथ तुलना करें।
उत्तर-
गुप्त साम्राज्य का सैनिक प्रशासन मौर्य काल के सैनिक प्रबन्ध की भान्ति ही सुव्यवस्थित था। दोनों ही कालों में प्रधान सेनापति की सहायता घुड़सवार सेना तथा हाथी सेना के मुख्य अधिकारी करते थे। इसके अतिरिक्त दोनों ही युगों में सेना को नकद वेतन दिया जाता था। परन्तु दोनों के सैनिक प्रबन्ध में कुछ भिन्नताएं भी थीं। मौर्य शासकों के पास विशाल सेना थी। परन्तु जागीरदारी प्रथा के कारण गुप्त शासकों को युद्ध के समय अपने अधीनस्थ राजाओं की सेना पर निर्भर रहना पड़ता था। सैनिक अधिकारियों के नाम भी दोनों कालों में भिन्न-भिन्न थे। इसके अतिरिक्त मौर्य काल की भान्ति गुप्त काल में सैनिक व्यवस्था के लिए विशेष समितियां नहीं थीं।
प्रश्न 4.
गुप्त काल में स्त्रियों की दशा कैसी थी ?
उत्तर-
गुप्त काल में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। परन्तु मौर्य काल की तुलना में स्त्री के मान और स्वतन्त्रता में कमी आ गई थी। इस काल में बाल-विवाह तथा सती प्रथा के प्रचलन से स्त्री के व्यक्तिगत विकास में बाधा पड़ी। प्रायः स्त्री से यही आशा की जाती थी कि वह घर की चारदीवारी में रह कर घरेलू जीवन ही व्यतीत करे। परिवार में उनकी स्थिति पुरुषों के अधीन थी। रामायण तथा महाभारत में उनकी पुरुषों के अधीन रहने की दशा का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। मनुस्मृति में भी इस स्थिति की पुष्टि की गई है। फिर भी कुछ स्त्रियां घरेलू जीवन से हटकर स्वतन्त्र जीवन भी व्यतीत करती थीं। इनमें नर्तकियां, भिक्षुणियां तथा नाटकों में भाग लेने वाली स्त्रियां सम्मिलित थीं।
प्रश्न 5.
भारत के इतिहास में यूनानियों का क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
भारत के इतिहास में यूनानियों का बहुत महत्त्व रहा है। यूनानी साम्राज्य के अधीन भारत का मध्य एशिया, पश्चिमी एशिया तथा चीन से काफ़ी व्यापार होने लगा और भारतीय संस्कृति विदेशों में फैली। भारत के व्यापारियों ने मलाया, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो आदि कई देशों में उपनिवेश स्थापित किए। ये सभी देश धीरे-धीरे भारतीय संस्कृति का केन्द्र बन गए। यूनानियों का भारतीय कला पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। भारतीय तथा यूनानी मूर्तिकला के सम्मिश्रण से एक नई कला शैली का जन्म हुआ। इस कला शैली को गान्धार कला शैली के नाम से पुकारा जाता है। इस कला शैली में महात्मा बुद्ध की कई सुन्दर मूर्तियां बनाई गईं। यूनानी शासक मिनांडर ने अपने राजदूत बेसनगर (विदिशा) में भेजा था। जिससे यूनानियों तथा भारतीयों का आपसी सहयोग बढ़ा।
प्रश्न 6.
भारतीय इतिहास में शकों ने क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर-
शक लोक मध्य एशिया के एक खानाबदोश कबीले से सम्बन्धित थे। इन्हें यू-ची जाति के लोगों ने वहां से खदेड़ दिया था। पहली शताब्दी ई० पूर्व के प्रारम्भ में शकों ने यूनानियों से बैक्ट्रिया तथा उत्तर-पश्चिमी भारत की राजसत्ता छीन ली। भारत में पहला शक शासक भोज था। परन्तु गोंडोफर्नीस नामक इनका सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक हुआ। गोंडोफर्नीस प्रथम शताब्दी पूर्व हुआ था। शक लोक उत्तर-पश्चिमी भारत में अधिक समय तक न रह सके। यहां से भी उन्हें यू-ची जाति के लोगों ने मार भगाया। यहां से वे गुजरात तथा मालवा गए तथा इन प्रदेशों को उन्होंने अपनी राजसत्ता का केन्द्र बनाया। यहां का सर्वाधिक प्रसिद्ध शक शासक रुद्रदमन था जिसने कई महत्त्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त की। जूनागढ़ से प्राप्त एक अभिलेख में उसे एक महान् शासक बताया गया है। परन्तु रुद्रदमन के उत्तराधिकारी उसकी भान्ति योग्य तथा शक्तिशाली नहीं थे। इसलिए ईस्वी की पांचवीं शताब्दी के प्रारम्भ में गुप्त शासकों ने उनकी सत्ता का अन्त कर दिया।
प्रश्न 7.
खारवेल को प्राचीन उड़ीसा का सबसे महान् शासक क्यों समझा जाता है ?
उत्तर-
प्राचीन उड़ीसा मौर्य साम्राज्य के पूर्वी प्रान्त का एक भाग था। अशोक की मृत्यु के बाद यह प्रान्त अधिक समय तक मौर्यों के अधीन न रह सका। लगभग पहली शताब्दी ई० पूर्व में यहां के कलिंग प्रदेश का शासन खारवेल के हाथों मेंcआ गया। उसने कई सफलताएं प्राप्त की जिनका उल्लेख हाथी-गुफा अभिलेख में मिलता है। यह अभिलेख भुवनेश्वर के निकट खण्डगिरि से प्राप्त हुआ है। इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि खारवेल ने कई सैन्य-अभियानों का नेतृत्व किया। उसने सबसे पहले उत्तर-पश्चिम में यूनानियों पर हमला किया तथा दक्षिण भारत में पाण्डेय राज्य की शक्ति को कुचला। उसने पश्चिम-दक्षिण के राजाओं को भी हराया तथा मगध पर अपना अधिकार कर लिया। उसकी इन सफलताओं के आधार पर ही उसे प्राचीन उड़ीसा का सबसे महान् शासक समझा जाता है।
प्रश्न 8.
ईसा की आरम्भिक शताब्दियों में चोल राज्य का वर्णन करो।
उत्तर-
चोलों ने सबसे पहले पाण्डेय राज्य के उत्तर-पूर्व में पेन्नार तथा वेलूर नदियों के बीच के प्रदेश पर शासन किया। उनकी राजनीतिक सत्ता का मुख्य केन्द्र उर्युर था। चोलों का विश्वसनीय इतिहास दूसरी शताब्दी ई० में राजा कारिकाल के समय से मिलता है। उसने 100 ई० के लगभग शासन किया। उसकी सबसे बड़ी सफलता पुहार की स्थापना करना था जो बाद में कावेरीपत्तम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह कावेरी नदी पर स्थित लगभग 160 किलोमीटर लम्बा तटबन्ध था। इसे श्रीलंका से बन्दी बनाये गये 12,000 दासों के श्रम से बनाया गया। यही तटबन्ध चोल राज्य की राजधानी बना और वाणिज्य-व्यापार के केन्द्र के रूप में उभरा। चोलों के पास एक विशाल सेना भी थी। परन्तु चौथी शताब्दी ई० पू० के लगभग चेरों और पल्लवों ने उनकी शक्ति का अन्त कर दिया।
प्रश्न 9.
समुद्रगुप्त की प्रमुख सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
समुद्रगुप्त गुप्त वंश का एक महान् शासक था। वह 335 ई० में राजगद्दी पर बैठा। आर्यवर्त की पहली लड़ाई में उसने तीन राजाओं के संघ को हराया। दक्षिणी भारत की विजय उसकी बहुत बड़ी सफलता मानी जाती है। वह 346 ई० में अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से चला। दक्षिण में अनेक राजाओं को रौंदता हुआ विशाल धन सम्पदा के साथ वापस लौट आया। वापसी पर उसने आर्यवर्त के नौ राजाओं के संघ को तोड़ा। तत्पश्चात् उसने अश्वमेघ यज्ञ रचाया और ‘चक्रवर्ती सम्राट्’ की उपाधि धारण की। उसकी इन विजयों के कारण उसे भारतीय नेपोलियन कह कर पुकारा जाता है। समुद्रगुप्त कला और साहित्य का भी प्रेमी था। वीणा बजाने में वह इतना निपुण था कि उसकी तुलना प्रायः नारद से की जाती है।
प्रश्न 10.
फाह्यान द्वारा वर्णित भारतीय जीवन का वर्णन करो।
अथवा
फाह्यान कौन था ? भारत के सम्बन्ध में उसने क्या कहा है ?
उत्तर-
फाह्यान एक चीनी यात्री था। वह चन्द्रगुप्त विक्रमादिव्य के समय में बौद्ध तीर्थ स्थानों की यात्रा करने और बौद्ध ग्रन्थों का अध्ययन करने के लिए भारत आया था। उसने अपने लेखों में तत्कालीन भारतीय जीवन का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है। वह लिखता है कि लोग सदाचारी, समृद्ध और दानी थे। वे मांस तथा नशीले पदार्थों से घृणा करते थे। समाज में छुआछूत की भावना बहुत अधिक थी। उस समय की सरकार श्रेष्ठ थी और प्रजा के हितों का पूरा ध्यान रखती थी। दण्ड अधिक कठोर नहीं थे, फिर भी लोगों को चोर-डाकुओं का कोई भय नहीं रहता था। सरकारी कर्मचारी योग्य और ईमानदार थे। पाटलिपुत्र नगर की शोभा निराली थी। यहां स्थित अशोक का महल विशेष दर्शनीय था। देश में हिन्दू धर्म लोकप्रिय था। परन्तु बौद्धधर्म की लोकप्रियता अभी कम नहीं हुई थी।
प्रश्न 11.
गुप्त काल की चित्रकला के नमूने कहां मिलते हैं और उनका क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
गुप्त काल की चित्रकला के नमूने अजन्ता की गुफाओं की दीवारों पर मिलते हैं। यहां के एक चित्र में एक राजकुमारी को मृत्यु शैय्या पर दिखाया गया है। इस चित्र में भावों को बड़े सुन्दर ढंग से उभारा गया है। चित्र देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि राजकुमारी के रोग का इलाज नहीं हो सका है और उसके सम्बन्धी अपनी लाचारी पर बहुत दुःखी हैं। एक अन्य चित्र में गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) को घर छोड़ते हुए दिखाया गया है। चित्र में वे पत्नी और बच्चों पर अन्तिम दृष्टि डाल रहे हैं। एक चित्र में महात्मा बुद्ध को सुजाता नामक स्त्री चावल खिला रही है। एक चित्र में माता और पुत्र दिखाए गये हैं। बच्चे के हाथ भिक्षा के लिए फैले हुए हैं। ये सभी चित्र कला की दृष्टि से बड़े ही महत्त्वपूर्ण हैं। इन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि भारत में चित्रकला एक लम्बे समय से विकसित हो रही थी जो गुप्त काल में अपनी उन्नति की चरम सीमा पर पहुंच गई।
प्रश्न 12.
गुप्त काल की मूर्तिकला का सर्वोत्तम नमूना कौन-सा है और उसकी क्या विशेषता है ?
उत्तर-
गुप्त काल में मूर्तिकला के क्षेत्र में अद्वितीय विकास हुआ। इस काल में अधिकतर महात्मा बुद्ध और बौधिसत्वों की मूर्तियां बनाई गईं। इनमें से सारनाथ में बुद्ध की मूर्ति इस कला का सर्वोत्तम नमूना है। इसमें महात्मा बुद्ध को रत्न जड़ित आसन पर बैठे दिखाया गया है। वह प्रचार करने की मुद्रा में हैं। उनके चेहरे पर बिखरी मुस्कान मूर्तिकारों की कारीगरी की उच्चता को प्रकट करती है। इस मूर्ति को देखकर यूं लगता है मानो बुद्ध विश्व कल्याण की भावना से प्रेरित होकर अपना उपदेश दे रहे हों। भारतीय शैली में बनी यह मूर्ति गान्धार शैली की मूर्तियों से कहीं अधिक सुन्दर है। इसमें बुद्ध के धुंघराले बाल,बारीक वस्त्र तथा आकर्षक आभूषणों को बड़े ही कलात्मक ढंग से दिखाया गया है।
प्रश्न 13.
“चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने उत्कर्ष पर पहुंच गया।” इस कथन पर प्रकाश डालो।
अथवा
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की मुख्य उपलब्धियों पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त द्वितीय समुद्रगुप्त का वीर पुत्र था। वह 375 ई० में राजगद्दी पर बैठा। उसने वैवाहिक सम्बन्धों द्वारा अपनी शक्ति को बढ़ाया और अनेक विजयें प्राप्त की। सबसे पहले उसने बंगाल को जीता और फिर वहलीक जाति और अवन्ति गणराज्य पर विजय प्राप्त की। उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता मालवा, काठियावाड़ और गुजरात की विजय थी। यहां के शक राजाओं को पराजित करके ही उसने ‘विक्रमादित्य’ अर्थात् वीरता का सूर्य की उपाधि धारण की। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय में कला और साहित्य का भी बड़ा विकास हुआ। संस्कृत का महान् कवि कालिदास उसी के समय में ही हुआ था। इसके अतिरिक्त चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय में शासन-प्रबन्ध बड़ी कुशलता से चलता था। जनता हर प्रकार से सुखी और समृद्ध थी। अतः हम कह सकते हैं कि उसके समय में गुप्त साम्राज्य अपने उत्कर्ष पर पहुंच गया।
प्रश्न 14.
5वीं शताब्दी में भारत पर हूणों के आक्रमण के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर-
पांचवीं शताब्दी में भारत पर हूण आक्रमणों के ये परिणाम निकले :
- इन आक्रमणों से गुप्त साम्राज्य का अन्त हो गया। स्कन्दगुप्त के उत्तराधिकारी बड़े अयोग्य थे, इसलिए वे हूणों का सामना न कर पाये। परिणामस्वरूप गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न होकर रह गया।
- भारत की राजनीतिक एकता समाप्त हो गई और देश छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया।
- हूणों ने बहुत से ऐतिहासिक भवन नष्ट कर डाले तथा अमूल्य पुस्तकों को जलाकर राख कर दिया। इस प्रकार उन्होंने बहुत से ऐतिहासिक स्रोतों को नष्ट कर दिया।
- अनेक हूण भारत में ही बस गये। उन्होंने भारतीय स्त्रियों से विवाह कर लिये और हिन्दू समाज में अपनी जातियाँ बना लीं। इस प्रकार भारत में नई जातियों तथा उपजातियों का जन्म हुआ।
प्रश्न 15.
आर्यभट्ट का खगोल विज्ञान में क्या योगदान था ?
उत्तर-
आर्यभट्ट गुप्त काल का एक महान् वैज्ञानिक एवं खगोलशास्त्री था। उसने अपनी नवीन खोजों द्वारा खगोलशास्त्र को काफ़ी समृद्ध बनाया। ‘आर्य भट्टीय’ उसका प्रसिद्ध ग्रन्थ है। उसने यह सिद्ध किया कि सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण, राहू और केतू नामक राक्षसों के कारण नहीं लगते बल्कि जब चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो चन्द्रग्रहण होता है। आर्यभट्ट ने स्पष्ट रूप में यह लिख दिया था कि सूर्य नहीं घूमता बल्कि पृथ्वी ही अपनी धुरी के चारों ओर घूमती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि खगोल विज्ञान में आर्यभट्ट ने महान् योगदान दिया।
प्रश्न 16.
‘षटशास्त्र’ के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुप्त काल में ब्राह्मणों ने उपनिषदों के गूढ़ विचारों की व्याख्या के लिए दर्शन की छः प्रणालियों का विकास किया। यही छः प्रणालियां ‘षट्शास्त्र’ अथवा षट्दर्शन के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये प्रणालियां हैं
(क) कपिल का सांख्य दर्शन-इसके अनुसार प्रकृति और आत्मा अमर है। इसे नास्तिक दर्शन भी माना जा सकता है क्योंकि इसमें पदार्थ और आत्मा के दोहरे अस्तित्व को स्वीकार किया गया है।
(ख) पातंजलि का योग दर्शन-पातंजलि के विचार में आत्मा और प्रकृति के साथ-साथ परमात्मा भी अमर है। (ग) गौतम का न्याय दर्शन-इस दर्शन के अनुसार मनुष्य ज्ञान द्वारा परमात्मा को पा सकता है।
(घ) कणाद का वैशेषिक दर्शन-इसमें कणाद लिखता है कि संसार की रचना अदृश्य अणु शक्तियों के मेल से हुई है।
(ङ) जैमिनी का पूर्व मीसांसा दर्शन-इस दर्शन में वेद में बताई गई धार्मिक क्रियाओं को अपनाने पर अधिक बल दिया गया है।
(च) व्यास का उत्तर मीसांसा दर्शन-इस दर्शन में व्यास जी कहते हैं कि प्रकृति की प्रत्येक वस्तु में परमात्मा का हाथ है। ईश्वर के अतिरिक्त सब कुछ मिथ्या है।
प्रश्न 17.
भारत का दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के साथ किस प्रकार का सम्बन्ध था ?
उत्तर-
भारत के दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के साथ व्यापारिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्ध थे। इन देशों में भारतीय संस्कृति का प्रभाव भारतीय व्यापारियों तथा धर्म प्रचारकों द्वारा पहुंचा। फलस्वरूप कुछ देशों में बौद्ध धर्म और कुछ में ब्राह्मण धर्म अत्यन्त लोकप्रिय हुए। भारतीय व्यापारियों की सहायता से विशेष रूप से थाईलैण्ड, कम्बोडिया और जावा में कई छोटी बस्तियों का विकास हुआ। समय पाकर इन देशों में ब्राह्मणीय संस्कार और रिवाज बौद्ध मत से भी अधिक प्रचलित हो गए। राजकाज की भाषा के रूप में संस्कृत का प्रयोग होने लगा। थाईलैंड की प्राचीन राजधानी को रामायण की अयोध्या के नाम पर ‘अयूधिया’ कहा जाता था। इन देशों में भारतीय प्रभाव हर स्थान पर एक समान नहीं था। इसके अतिरिक्त दक्षिणी-पूर्वी एशिया के लोगों ने भारतीय संस्कृति के कुछ विशेष पहलुओं को ही अपनाया और उन्हें अपने ही ढंग से विकसित किया।
प्रश्न 18.
कालिदास पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
कालिदास संस्कृत का श्रेष्ठ कवि तथा महान् नाटककार था। उसे प्रायः ‘भारतीय शेक्सपीयर’ कह कर पुकारा जाता है। कालिदास गुप्त काल में उत्पन्न हुआ और वह चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के दराबर की शोभा था। एक जनश्रुति के अनुसार उसका जन्म एक ब्राह्मण के यहां हुआ था। बचपन में ही उसके पिता की मृत्यु हो गई। उसका पालन-पोषण एक ग्वाले ने किया। फिर भी वह बड़ा होकर महान् कवि तथा नाटककार बना। कालिदास की प्रसिद्ध रचनाएं ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’, ‘मेघदूत’, ‘ऋतु संहार’, ‘रघुवंश’, ‘मालविकाग्निमित्र’, ‘कुमार सम्भव’ हैं। इनमें से ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ उसकी सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। इस विषय में एक बात कही जाती है, “सभी काव्य में नाट्य कला श्रेष्ठ है, सभी नाटकों में ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ श्रेष्ठ है। ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ नाटक में चौथा अंक श्रेष्ठ है और चौथे अंक में वे पंक्तियां श्रेष्ठ हैं, जब कण्व ऋषि अपनी दत्तक पुत्री शकुन्तला को विदा कर रहे हैं।”
प्रश्न 19.
गुप्त साम्राज्य के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की मृत्यु के पश्चात् गुप्त साम्राज्य का पतन आरम्भ हो गया। इस साम्राज्य के पतन के अनेक कारण थे-
- चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के उत्तराधिकारी निर्बल थे। फलस्वरूप वे देश का शासन ठीक ढंग से न चला सके।
- गुप्त शासकों में उत्तराधिकार का कोई नियम नहीं था। इसलिए लगभग प्रत्येक शासक की मृत्यु के पश्चात् राजगद्दी के लिए गृह-युद्ध हुआ करते थे। इन युद्धों से गुप्त साम्राज्य की शक्ति शीण होती गई।
- निर्बल शासकों के काल में विद्रोही शक्तियों ने ज़ोर पकड़ना आरम्भ कर दिया। फलस्वरूप गुप्त वंश के पतन की प्रक्रिया तेज़ हो गई।
- चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के पश्चात् किसी गुप्त राजा ने राज्य की सीमाओं की सुरक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
- बाद में गुप्त राजाओं को अनेक युद्ध लड़ने पड़े जिससे उनका राजकोष खाली हो गया। धन के अभाव में वे ठीक ढंग से शासन न कर सके।
- इसी समय हूणों के निरन्तर आक्रमण होने लगे। गुप्त शासक उनके आक्रमणों का अधिक समय तक सामना न कर सके। फलस्वरूप गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।
IV. निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
“कनिष्क बौद्ध धर्म, कला एवं साहित्य का महान् संरक्षक था।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
अथवा
बौद्ध धर्म के संरक्षक के रूप में सम्राट् कनिष्क का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
कला तथा साहित्य के विकास में कनिष्क के योगदान की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
कनिष्क कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा था। वह लगभग 78 ई० में राजगद्दी पर बैठा और पुरुषपुर को अपनी राजधानी बनाया। उसके समय में बौद्ध धर्म की नई शाखा ‘महायान’ का उदय हुआ। उसने इस नई शाखा का खूब प्रचार किया।
कनिष्क को कला और साहित्य से बड़ा प्रेम था। उसने अनेक विहार, मठ तथा स्तूप बनाए। प्रसिद्ध विद्वान् अश्वघोष तथा नागार्जुन उसी के समय में ही हुए थे। बौद्ध धर्म, कला तथा साहित्य के संरक्षक के रूप में कनिष्क के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है
बौद्ध धर्म को संरक्षण कनिष्क आरम्भ में पारसी-धर्म का और फिर हिन्दू धर्म का अनुयायी रहा, परन्तु अश्वघोष के प्रभाव में आने के बाद उसने बौद्ध धर्म अपना लिया। उसने अशोक की भान्ति बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित कार्य किए जिनका वर्णन इस प्रकार है-
बौद्ध धर्म को संरक्षण-
- बौद्ध धर्म में उत्पन्न मतभेदों को दूर करने के लिए कनिष्क ने कुण्डलवन में चौथी बौद्ध सभा बुलाई। इसमें 500 भिक्षु शामिल हुए। इसके सभापति वसुमित्र तथा उप-सभापति अश्वघोष थे। इस सभा में सारे बौद्ध साहित्य क निरीक्षण किया गया। सभा में हुए निर्णयों को ताम्रपत्रों पर लिखकर पत्थर के सन्दूकों में बन्द करवा दिया गया। इस प्रकार बौद्ध धर्म की 18 शाखाओं के आपसी मतभेद दूर हो गए।
- कनिष्क ने विदेशों में प्रचारक भेजे। फलस्वरूप चीन, जापान, मध्य एशिया के कई देशों में बौद्ध-धर्म का प्रचार हुआ।
- कनिष्क के समय में बौद्ध धर्म हीनयान तथा महायान नामक दो शाखाओं में बंट गया। कनिष्क ने महायान शाखा के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। .
- उसने बौद्ध भिक्षुओं की आर्थिक रूप में सहायता की। उसने भिक्षुओं के लिए अनेक मठ तथा विहार बनवाए।
कला तथा साहित्य का विकास-
- कलाकृतियां-कनिष्क एक महान् निर्माता भी था। उसने चार नए नगर बसाए। ये नगर हैं-पेशावर, मथुरा, कनिष्कपुर तथा तक्षशिला। इन नगरों में बने विहार तथा मूर्तियां बड़ी ही सुन्दर हैं।
- कला शैलियां-कनिष्क के संरक्षण में मूर्तिकला की अनेक नई शैलियां विकसित हुईं। ये मथुरा, सारनाथ, अमरावती तथा गान्धार में पनपती रहीं, परन्तु इन शैलियों का मुख्य स्रोत गान्धार कला शैली थी। इस शैली के अनुसार भारतीय विचारों तथा धर्म के अंगों को यूनानी कला में उतारा गया। इस काल में मुद्रा कला का भी विकास हुआ।
- विद्या तथा साहित्य-कनिष्क कला-प्रेमी होने के साथ-साथ विद्या तथा साहित्य का प्रेमी भी था। अनेक विद्वान उसके दरबार की शोभा थे। अश्वघोष उसके दरबार का रत्न था। उसने ‘बुद्ध चरित्’ तथा ‘सूत्रालंकार’ की रचना की थी। नागार्जुन, चरक आदि उच्चकोटि के विद्वान् भी कनिष्क के दरबार की शोभा थे।
प्रश्न 2.
समुद्रगुप्त ने किस प्रकार अपने राज्य को विशाल तथा शक्तिशाली बनाया ?
अथवा
समुद्रगुप्त की सैनिक सफलताओं का वर्णन करो। उसे भारतीय नेपोलियन क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
समुद्रगुप्त गुप्तवंश का एक प्रतापी राजा था। वह विद्वान्, संगीतज्ञ, कला प्रेमी और प्रजा हितकारी शासक था। उसने सैनिक के रूप में बहुत अधिक यश पाया। उसकी सफलताओं का महत्त्वपूर्ण विवरण हमें इलाहाबाद प्रशस्ति’ में मिलता है। उसकी प्रमुख सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है-
1. उत्तरी भारत की विजय-समुद्रगुप्त ने सबसे पहले आर्यावर्त की पहली लड़ाई में अच्युत, नागसेन तथा गणपति नाग नामक राजाओं को परास्त किया। नागसेन और गणपति नाग ने अपनी पराजय का बदला लेने के लिए उत्तरी भारत के अन्य सात राजाओं के साथ मिलकर एक संघ बना लिया। समुद्रगुप्त उस समय दक्षिण विजय के लिए गया हुआ था। उसने लौट कर इन सभी राजाओं को बुरी तरह पराजित किया।
2. दक्षिण भारत की विजय-समुद्रगुप्त ने दक्षिणी भारत के राजाओं को पराजित किया। इनमें से सबसे पहले उसने दक्षिणी कोशल के राजा पर विजय प्राप्त की। इसी बीच दक्षिण के कई राजाओं ने मिलकर एक संघ बना लिया। कांची नरेश विष्णुगोप इस संघ का नेता था। समुद्रगुप्त ने इस संघ से टक्कर ली और इसे पराजित किया। समुद्रगुप्त ने पालघाट, महाराष्ट्र और खान देश आदि राजाओं को भी परास्त किया। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि समुद्रगुप्त ने दक्षिणी भारत के किसी भी राज्य को अपने साम्राज्य में शामिल नहीं किया। वह इन राज्यों से केवल कर प्राप्त करता रहा।
3. अन्य विजयें-समुद्रगुप्त ने कई सीमावर्ती राज्यों जैसे समतट, कामरूप, कर्तृपुर और नेपाल आदि पर भी विजय प्राप्त की। इन राज्यों ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। कई जातियों ने समुद्रगुप्त से युद्ध किए बिना ही उसकी अधीनता स्वीकार ली। ये जातियां थीं-मालव, आभीर, यौद्धेय, शूद्रक और अर्जुनायन।
समुद्रगुप्त भारतीय नेपोलियन क्यों ?- समुद्रगुप्त की महान् विजयों के कारण इतिहासकार उसे भारतीय नेपोलियन का नाम देते हैं। वह नेपोलियन की भान्ति एक पराक्रमी विजेता था। जिस प्रकार नेपोलियन ने अपनी सैनिक शक्ति से समस्त यूरोप को भयभीत कर दिया था उसी प्रकार समुद्रगुप्त ने अपने सैनिक अभियानों से लगभग सारे भारत में अपना दबदबा बैठा लिया था। अपने विजयी जीवन में उसे न कभी ‘ट्राफाल्गार’ तथा ‘वाटरलू’ जैसी पराजय का सामना करना पड़ा और न ही उसे आजीवन कारावास का दण्ड मिला। समुद्रगुप्त के महान् कार्यों को देखते हए डॉ० वी० ए० स्मिथ ने ठीक ही कहा है, “समुद्रगुप्त वास्तव में एक प्रतिभाशाली व्यक्ति था जो भारतीय नेपोलियन कहलाने का अधिकारी है।”
प्रश्न 3.
समुद्रगुप्त की सांस्कृतिक (कला एवं साहित्य संबंधी) सफलताओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
(i) कला-प्रेमी-समुद्रगुप्त एक महान् कला-प्रेमी था। योद्धा होते हुए भी उसकी कोमल प्रवृत्तियां सुरक्षित रहीं। उसे संगीत से विशेष लगाव था। अपनी मुद्राओं पर वह वीणा बजाते हुए दिखाया गया है। इससे सिद्ध होता है कि वह वीणावादन में भी प्रवीण था। उसके प्रसिद्ध दरबारी कवि हरिषेण के वाक्यों में “वह संगीत-कला में नारद तथा तुम्बरु को भी लज्जित करता था।” उसकी मुद्राएं उसकी कलाप्रियता का प्रमाण हैं। ये मुद्राएं सोने की थीं। इस पर राजा के अतिरिक्त हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र अंकित थे। इतनी आकर्षक मुद्राएं बनाने का श्रेय समुद्रगुप्त को ही जाता है।
(ii) साहित्य प्रेमी-समुद्रगुप्त विद्वानों का आश्रयदाता था। वह उच्च कोटि का कवि तथा साहित्यकार था और उसे कविराज की उपाधि प्राप्त थी। अनेक विद्वान् उसके दरबार की शोभा थे। हरिषेण उसके समय का एक महान् विद्वान् माना जाता था। ‘इलाहाबाद प्रशस्ति’ हरिषेण की एक प्रसिद्ध साहित्यिक रचना है जो काव्य का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करती है। असंगत तथा वसुबन्ध भी उसके दरबार की शोभा थे। उनकी रचनाएं समुद्रगुप्त के लिए गौरव का विषय थीं।
प्रश्न 4.
चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के राज्यकाल तथा सैनिक सफलताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य समुद्रगुप्त का योग्य पुत्र था। वह 380 ई० में सिंहासन पर बैठा। सबसे पहले उसने वैवाहिक सम्बन्धों द्वारा अपनी शक्ति को बढ़ाया। उसने स्वयं नाग वंश की राजकुमारी कुबेरनाग से विवाह किया। अपनी कन्या का विवाह उसने रुद्रसेन द्वितीय से कर दिया। इस सम्बन्ध के कारण ही वह गुजरात तथा सौराष्ट्र के शक राजाओं को पराजित करने में सफल हो सका।
विजयें-चन्द्रगुप्त द्वितीय की विजयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-
- बंगाल विजय-चन्द्रगुप्त ने सबसे पहले बंगाल के विद्रोही राजाओं को हराया और बंगाल को अपने राज्य में मिला लिया।
- अवन्ति की विजय-चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अवन्ति के गणराज्य पर भी विजय प्राप्त की। इसके अतिरिक्त उसने कुषाण गणतन्त्रों को भी हराया।
- वाहलीक जाति पर विजय-महरौली के स्तम्भ-लेख से पता चलता है कि चन्द्रगुप्त ने सिन्धु नदी के मुहानों की सातों शाखाओं को पार किया और वाहलीक जाति को हराया।
- मालवा, गुजरात तथा काठियावाड़ की विजय-चन्द्रगुप्त द्वितीय ने इन प्रदेशों पर 388 ई० से 409 ई० के बीच के समय में विजय प्राप्त की। इस विजय के पश्चात् उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। – मालवा, गुजरात तथा काठियावाड़ की विजयों के कारण भारत में शकों की शक्ति समाप्त हो गई और चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का राज्य अरब सागर तक फैल गया। .
प्रश्न 5.
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (द्वितीय) के राज्य प्रबंध की मुख्य विशेषताएं बताओ। क्या उसने कला एवं साहित्य को भी संरक्षण दिया ?
उत्तर-
चन्द्रगुप्त द्वितीय एक उच्च कोटि का शासन-प्रबन्धक था। प्रजा की भलाई करना वह अपना कर्त्तव्य समझता था। फाह्यान ने उसके शासन-प्रबन्ध की बड़ी प्रशंसा की है। शासन की सभी शक्तियां सम्राट् के हाथ में थीं। सम्राट् को शासन कार्यों में सलाह देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् थी। मन्त्रियों की नियुक्ति वह स्वयं करता था। चन्द्रगुप्त द्वितीय का राज्य चार प्रान्तों में बंटा हुआ था। प्रत्येक प्रान्त का प्रबन्ध गवर्नर के हाथ में था। प्रान्त विषयों (जिलों) में तथा विषय गांवों में बंटे हुए थे। विषय का प्रबन्ध ‘विषयपति’ तथा ग्राम का प्रबन्ध ‘ग्रामक’ करता था।
चन्द्रगुप्त द्वितीय बड़ा न्यायप्रिय शासक था। वह निष्पक्ष न्याय करता था। दण्ड बहुत नर्म थे। मृत्यु दण्ड किसी को नहीं दिया जाता था। फिर भी देश में शान्ति थी। सड़कें सुरक्षित थीं और चोर-डाकुओं का कोई भय नहीं था। सरकार की आय का मुख्य साधन भूमि-कर था। यह कर उपज का 1/3 भाग होता था। सरकारी कर्मचारियों को नकद वेतन दिया जाता था। वे बहुत ईमानदार थे और प्रजा के साथ अच्छा व्यवहार करते थे।
कला और साहित्य को संरक्षण-अपने पिता समुद्रगुप्त की तरह चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य भी कला और साहित्य का प्रेमी था। उसके अधीन सभी प्रकार की कलाओं और साहित्य ने बड़ी उन्नति की। उसके शासन में महात्मा बुद्ध तथा अनेक हिन्दू देवी-देवताओं की सुन्दर मूर्तियां बनीं। ये मूर्तियां कला की दृष्टि से बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं। उसके शासन काल में अनेक शानदार मन्दिरों का निर्माण भी हुआ।
चन्द्रगुप्त द्वितीय एक उच्च कोटि का विद्वान् था और वह विद्वानों का बड़ा आदर करता था। उसके समय में संस्कृत भाषा और संस्कृत साहित्य का बड़ा विकास हुआ। संस्कृत का सबसे प्रसिद्ध कवि कालिदास उसी के समय में हुआ था। उसने मेघदूत, रघुवंश आदि उच्च कोटि के संस्कृत ग्रन्थों की रचना की थी।
प्रश्न 6.
गुप्त काल में भारत की सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक दशा का वर्णन करो।
उत्तर-
गुप्त काल में भारत की सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक दशा का वर्णन इस प्रकार है-
1. सामाजिक दशा-इस काल में लोग बड़ा सादा और पवित्र भोजन करते थे। मांस तथा शराब का प्रयोग नहीं किया जाता था। लोग लहसुन तक नहीं खाते थे। वे गर्मियों में धोती तथा चद्दर और सर्दियों में पायजमा तथा कोट पहनते थे। स्त्रियां चोली और साड़ी का प्रयोग करती थीं। विशेष अवसरों पर लोग रेशमी कपड़े पहना करते थे। स्त्रियों और पुरुषों दोनों को आभूषण पहनने का बड़ा शौक था। वे बालियां, चूड़ियां, हार, अंगूठियां तथा कड़े आदि पहनते थे। स्त्रियों की दशा काफ़ी अच्छी थी। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने और संगीत सीखने की पूरी स्वतन्त्रता थी। जाति-प्रथा के बन्धन कठोर नहीं थे। किसी भी जाति का व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कोई भी व्यवसाय अपना सकता था। लोग अपना मन बहलाने के लिए शतरंज तथा चौपड़ खेलते थे। कभी-कभी वे रथदौड़ों में भी भाग लिया करते थे। शिकार खेलने, नाटक तथा तमाशे देखना उनके मनोरंजन के अन्य साधन थे।
2. धार्मिक दशा-गुप्त काल में हिन्दू धर्म फिर से लोकप्रिय हुआ। गुप्त शासक हिन्दू धर्म के अनुयायी थे। इस काल में हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं जैसे ‘विष्ण’, ‘शिव’ तथा ‘सर्य’ की उपासना की जाने लगी। इनकी मूर्तियां बना कर मन्दिरों में रखी जाती थीं। इस काल में यज्ञों आदि पर खूब जोर दिया जाता था। यद्यपि गुप्त सम्राट् हिन्दू धर्म के अनुयायी थे तो भी वे हठधर्मी नहीं कहे जा सकते। लोगों को कोई भी धर्म अपनाने की पूरी स्वतन्त्रता थी।
3. आर्थिक दशा-इस काल में लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। किसान गेहूँ, जौ, चावल, कपास, बाजरा आदि की कृषि करते थे। जहाज़ बनाना, कपड़ा बुनना तथा हाथी दांत का काम करना भी लोगों के व्यवसाय थे। इस काल में व्यापार भी काफ़ी उन्नत था। विदेशी व्यापार तो विशेष रूप से चमका हुआ था। अतः भारत के धन-धान्य में काफ़ी वृद्धि हुई। उस समय वस्तुओं के भाव भी कम थे। लोगों का जीवन बहुत सुखी था।
प्रश्न 7.
गुप्त साम्राज्य के पतन के कारणों का विवेचन करें।
अथवा
गुप्त साम्राज्य के पतन के किन्हीं पांच कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
गुप्त साम्राज्य का पतन बड़े आश्चर्य की बात है। गुप्त वंश ने समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, स्कन्दगुप्त जैसे प्रतापी राजाओं को जन्म दिया। उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार भी किया और कुशल प्रबन्ध की व्यवस्था भी की। फिर भी इस वंश का पतन हो गया। वास्तव में बाद के गुप्त राजा इस महान् साम्राज्य को सम्भालने में असमर्थ रहे। एक तो शासक कमज़ोर थे, दूसरे हूणों के आक्रमण आरम्भ हो गए। ऐसी अनेक बातों के कारण गुप्त वंश का पतन हुआ। इन सभी का वर्णन इस प्रकार है-
1. निर्बल उत्तराधिकारी-गुप्त साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण उत्तरकालीन गुप्त शासकों की निर्बलता थी। स्कन्दगुप्त के पश्चात् पुरुगुप्त, नरसिंह गुप्त, बालादित्य गुप्त, बुद्धगुप्त और भानुगुप्त आदि सभी गुप्त शासक विशाल साम्राज्य को सम्भालने में असमर्थ रहे। उनमें महान् शासकों जैसे गुण नहीं थे। वे न तो महान् सैनिक ही थे और न ही महान् शासक प्रबन्धक। अतः कमज़ोर उत्तराधिकारी राज्य को सम्भालने में असफल रहे।
2. उत्तराधिकार के नियम का अभाव-गुप्त राजाओं में उत्तराधिकार का निश्चित नियम नहीं था। लगभग प्रत्येक राजा की मृत्यु के पश्चात् गृह युद्ध छिड़ते रहे। इससे राज्य की शक्ति क्षीण होती गई और उसकी मान-मर्यादा को काफ़ी ठेस पहुंची। यही बात अन्त में गुप्त साम्राज्य को ले डूबी।
3. सीमान्त नीति-चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के पश्चात् किसी गुप्त राजा ने राज्य की सीमा सुरक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वहां न तो कोई दुर्ग बनवाए गए और न ही वहां सेनाएं रखी गईं। जब देश पर हूणों ने आक्रमण किए तो वे सीधे देश के भीतरी भागों में चले आए। यदि हूणों को सीमाओं पर ही खदेड़ दिया जाता तो गुप्त वंश का पतन शायद रुक जाता, परन्तु उचित सीमा व्यवस्था न होने के कारण गुप्त वंश का पतन हो गया।
4. साम्राज्य की विशालता-गुप्त साम्राज्य काफ़ी विशाल था। इतने बड़े साम्राज्य को उन दिनों सम्भालना कोई आसान कार्य नहीं था। यातायात के साधन सुलभ न थे। शक्तिशाली गुप्त शासकों ने साम्राज्य पर पूरा नियन्त्रण रखा। इसके विपरीत दुर्बल राजाओं के काल में साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।
5. आन्तरिक विद्रोह-समुद्रगुप्त तथा चन्द्रगुप्त की असीम सैनिक शक्ति के सामने अनेक भारतीय राजाओं ने घुटने टेक दिए थे। परन्तु बाद के गुप्त राजाओं के काल में इन शक्तियों ने फिर जोर पकड़ लिया। राज्य में अनेक विद्रोह होने लगे जिसके कारण गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न होता चला गया।
6. कमजोर आर्थिक दशा-धन सुदृढ़ शासन व्यवस्था की आधारशिला माना जाता है। इतिहास साक्षी कि धन के अभाव के कारण कई साम्राज्य पतन के गड्ढे में जा गिरे। गुप्त साम्राज्य के साथ भी यही हुआ। बाद के गुप्त राजाओं को युद्धों में काफ़ी धन व्यय करना पड़ा। इससे सरकारी कोष खाली हो गया। अत: आर्थिक रूप से कमजोर राज्य एक दिन रेत की दीवार के समान गिर पड़ा।
7. हूण जातियों के आक्रमण-हूणों के आक्रमण ने भी गुप्त साम्राज्य को काफ़ी आघात पहुंचाया। इनका पहला आक्रमण स्कन्दगुप्त के काल में हुआ। उसने उन्हें बुरी तरह पराजित किया, यह आक्रमण स्कन्दगुप्त के बाद भी जारी रहे। इन आक्रमणों से साम्राज्य निर्बल हुआ और विद्रोही शक्तियों ने सिर उठाना आरम्भ कर दिया। अप्रत्यक्ष रूप से गुप्त राज्य पहले ही खोखला हो चुका था। इस पर हूणों ने बार-बार आक्रमण करने आरम्भ कर दिए। जब तक गुप्त शासकों में इसका मुकाबला करने की क्षमता थी, वे मुकाबला करते रहे। आखिर गुप्त साम्राज्य इसका प्रहार सहन न कर सका और यह पतन के गड्ढे में जा गिरा।
8. सैनिक निर्बलता-गुप्त काल समृद्धि और वैभव का युग था। सभी सैनिकों को अच्छा वेतन मिलता था। लम्बे समय तक युद्ध न होने के परिणामस्वरूप सैनिक आलसी तथा कमजोर हो गए। अतः जब देश पर आक्रमण होने आरम्भ हुए तो वे आक्रमणकारियों का सामना करने में असफल रहे। आन्तरिक विद्रोह को भी वे न कुचल सके। अत: जिस साम्राज्य की सैनिक शक्ति ही दुर्बल पड़ गई हो तो उस राज्य का पतन अवश्यम्भावी हो जाता है। सच तो यह है कि साथ-साथ अनेक बातों के घटित होने के कारण गुप्त वंश का पतन हो गया।
प्रश्न 8.
गुप्त काल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ? किन्हीं पांच महत्त्वपूर्ण कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
गुप्त काल में भारत उन्नति की चरम सीमा पर था। इस युग में समाज नवीन आदर्शों में ढला। देश को राजनीतिक एकता प्राप्त हुई तथा महान् ग्रन्थों की रचना हुई। सुन्दर मन्दिरों तथा मूर्तियों ने देश की शोभा को बढ़ाया। देश के धन-धान्य में वृद्धि हुई। अतः इस युग को इतिहासकारों ने ‘स्वर्ण-युग’ का नाम दिया। संक्षेप में, गुप्त काल को अग्रलिखित कारणों से प्राचीन भारत का ‘स्वर्ण-युग’ कहा जाता है-
1. राजनीतिक एकता–मौर्यवंश के बाद देश अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया था। शक, कुषाण आदि विदेशी जातियों ने भारत के अधिकांश भागों पर अपना अधिकार कर लिया। परन्तु चौथी शताब्दी में गुप्त शासकों ने भारत को इन विदेशी शक्तियों से मुक्त कराया और देश में राजनीतिक एकता की स्थापना की।
2. आदर्श शासन-समुद्रगुप्त तथा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य जैसे महान् गुप्त राजाओं ने देश में एक आदर्श शासन स्थापित किया। वे प्रजा के सुख का ध्यान रखते थे। देश में चारों ओर शान्ति, सुख और समृद्धि थी।
3. आदर्श समाज-गुप्त कालीन समाज एक आदर्श समाज था। लोगों का नैतिक जीवन बहुत ऊंचा था। चोरी का चिन्ह मात्र नहीं था। लोग दयालु थे और किसी भी प्राणी की हत्या नहीं करते थे। मांस और मदिरा का तो कहना ही क्या, वे प्याज और लहसुन भी नहीं खाते थे।
4. हिन्दू धर्म की उन्नति-गुप्त काल में हिन्दू धर्म ने विशेष उन्नति की। गुप्तवंश के शासक हिन्दू धर्म के अनुयायी थे तथा विष्णु के उपासक थे। उन्होंने देश में हिन्दू मन्दिरों की स्थापना करवाई और अपने सिक्कों पर गरुड़, कमल, यक्ष आदि के चित्र अंकित करवाये।
5. धार्मिक सहनशीलता-गुप्त काल धार्मिक सहनशीलता का युग था। इसमें कोई सन्देह नहीं कि गुप्त शासक हिन्दू धर्म में विश्वास रखते थे, परन्तु उन्होंने लोगों को पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की हुई थी। वे हिन्दू धर्म के साथ साथ अन्य धर्मों का मान करते थे और उन्हें आर्थिक सहायता देते थे।
6. शिक्षा और साहित्य में उन्नति-गुप्त काल में नालन्दा, कन्नौज, तक्षशिला, उज्जैन तथा वल्लभी के विश्वविद्यालय शिक्षा के विख्यात केन्द्र थे। इन विश्वविद्यालयों में हजारों छात्र निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करते थे। इस काल में साहित्य की बड़ी उन्नति हुई। महाकवि कालिदास ने ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’, ‘मेघदूत’ एवं ‘रघुवंश’ आदि विश्वविख्यात ग्रन्थों की रचना इसी काल में की।
7. संस्कृत भाषा की उन्नति-गुप्त सम्राटों ने संस्कृत भाषा के उत्थान में बड़ा योगदान दिया। चन्द्रगुप्त द्वितीय स्वयं संस्कृत का एक प्रकाण्ड पण्डित था। अनेक विद्वानों ने अपनी पुस्तकें संस्कृत भाषा में लिखीं।
8. ललित कलाओं की उन्नति-गुप्त काल में बनी अजन्ता की गुफाएं चित्रकला का सुन्दर नमूना है। भगवान् बुद्ध और हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां तथा भूमरा का शिव मन्दिर उस समय की उन्नत कलाओं के अनूठे उदाहरण हैं।
इन बातों से स्पष्ट होता है कि गुप्त काल वास्तव में ही भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग था।