Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions Chapter 4 योग Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Physical Education Chapter 4 योग
PSEB 11th Class Physical Education Guide योग Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
आसन कितने प्रकार के होते हैं ?
(How many types of Asanas are there ?)
उत्तर-
आसन तीन प्रकार के होते हैं—
- ध्यानात्मक आसन (Meditative Asanas)पद्मासन, सिद्ध आसन, सुख आसन, वज्र आसन।
- आरामदायक आसन (Relaxative Asanas)-. शवासन और मक्रासन।
- कल्चरल आसन (Cultural Asanas)पवनमुक्तासन, कटिंचचक्रासन, पर्वतासन, चक्रासन, शलभासन, वृक्षासन, उष्ट्रासन, गोमुखासन आदि।
प्रश्न 2.
योग की परिभाषा, अर्थ तथा महत्त्व के बारे में लिखें।
(Write the definition, meaning and importance of Yoga.)
उत्तर-
योग का अर्थ (Meaning of Yoga)-भारतीय विद्वानों ने आत्मबल, द्वारा “योग विज्ञान” के सम्बन्ध में जानकारी दी है तथा इसमें बताया है कि मनुष्य का शरीर तथा मन अलग-अलग हैं। ये दोनों ही मनुष्य को अलग.. अलग दिशाओं में आकर्षित करते हैं जिसके कारण मनुष्य को शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों का विकास रुक जाता है। शरीर तथा मन को एकाग्र करके परमात्मा से मिलने का मार्ग बताया गया है जिसे योग की सहायता से जाना जा सकता है।
‘योग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द ‘युज’ से हुई है, जिसका अभिप्राय है जोड़’ अथवा ‘मेल’। इस प्रकार शरीर तथा मन के सुमेल को योग कहते है। योग वह क्रिया अथवा साधन है जिससे आत्मा का मिलाप परमात्मा से होता है।
इतिहास (History)-‘योग’ शब्द काफी समय से प्रचलित है। गीता में भी योग के बारे में लिखा हुआ मिलता है। रामायण तथा महाभारत युग में भी इस शब्द का काफी प्रयोग हुआ है। इन पवित्र ग्रन्थों में योग द्वारा मोक्ष (Moksha) की प्राप्ति करने के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक लिखा हुआ मिलता है। इन विद्वानों में से प्रसिद्ध विद्वान् पतंजलि का नाम प्रमुख है। उसने योग के सम्बन्ध में काफी विस्तार में लिखा परन्तु योग के सम्बन्ध में सभी विद्वानों का एक मत नहीं है। पतंजलि ऋषि के अनुसार, “मनोवृत्ति के विरोध का नाम ही योग है।”
गीता में भगवान् कृष्ण जी लिखते हैं, कि सही ढंग से काम करने का नाम ही योग है।
डॉक्टर सम्पूर्णानन्द (Dr. Sampurnanand) के अनुसार, “योग आध्यात्मिक कामधेनु है जिससे जो मांगो, वही मिलता है।”
श्री व्यास जी (Sh. Vyas Ji) ने लिखा है कि “योग का अर्थ समाधि है।”
ऊपर दी गई विचारधाराओं से पता चला है कि “योग का शाब्दिक अर्थ जोड़ना है।” मानवीय शरीर स्वस्थ तथा मन शुद्ध होने से उसका परमात्मा से मेल हो जाता है। योग द्वारा शरीर स्वस्थ रहता है तथा मन की एकाग्रता में वृद्धि होती है। इससे परमात्मा से मिलाप आसान हो जाता है।
“योग विज्ञान मनुष्य का मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक रूप से सम्पूर्ण विकास होता है।”
इस प्रकार आत्मा का परमात्मा से मेल ही योग है। इस मधुर मिलन का माध्यम शरीर है। स्वस्थ तथा शक्तिशाली शरीर के बल पर ही आत्मा पर परमात्मा से मिलन हो सकता है तथा उस सर्वशक्तिमान प्रभु के दर्शन हो सकते हैं। योग शरीर को स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनाता है। इसलिए ही आत्मा का परमात्मा में विलीन होने का यह एकमात्र साधन है। परमात्मा अलौकिक, गुण, कर्म एवं विद्या युक्त है। वह आकाश के समान व्यापक है। प्राणी तथा परमात्मा का आपस में सम्बन्ध होना अति आवश्यक है। योग इन सम्बन्धों को मजबूत बनाने में सहायक होता है।
मनुष्य का उद्देश्य-संसार के सभी सुखों को प्राप्त करते हुए अन्त में जीवात्मा को परमात्मा में विलीन होना है ताकि आवागमन के चक्करों से मुक्ति प्राप्त की जा सकें।
योग का मुख्य लक्ष्य शरीर को स्वस्थ, लचकदार, जोशीला एवं चुस्त रखना तथा महान् शक्तियों (Great Powers) का विकास करके मन पर विजय प्राप्त करना है जिससे आत्मा का परमात्मा से मिलन हो सके। आत्मा को परमात्मा में विलीन करके आवागमन अर्थत् जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा प्राप्त करना ही वास्तव में मोक्ष (Moksha) अथवा मुक्ति है। शारीरिक शिक्षा से योग के केवल दो साधन-आसन (Asanas) और प्राणायाम (Pranayama) सम्बन्ध रखते हैं। योग विज्ञान द्वारा मनुष्य शारीरिक रूप में स्वस्थ, मानसिक रूप में दृढ़ चेतना तथा व्यवहार मे अनुशासनबद्ध रहता हुआ मन पर विजय प्राप्त करके परमात्मा में लीन हो जाता है।
योग का महत्त्व
(Importance of Yoga)
योग विज्ञान का मनुष्य के जीवन के लिए बहुत महत्त्व है। योग केवल भारत का ही नहीं बल्कि संसार का प्राचीन ज्ञान है। देश-विदेशों के डॉक्टरों तथा शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों ने इसके महत्त्व को स्वीकार किया है। योग से शरीर तथा मन स्वस्थ रहता है तथा इसके साथ-साथ शरीर की नाड़ियां लचकदार एवं मज़बूत रहती हैं। योग शरीर को रोगों से दूर रखता है और यदि कोई बीमारी लग भी जाए तो आसन अथवा किसी अन्य योग क्रिया द्वारा इसे दूर किया जा सकता है। योग जहां शरीर को स्वस्थ, सुन्दर एवं शक्तिशाली बनाता है, वहां यह प्रतिभा को चार चांद लगा देता है। योग हमें उस दुनिया में ले जाता है जहां जीवन है, स्वास्थ है, परम सुख है, मन की शान्ति है। योग ज्ञान की ऐसी गंगा है जिसकी एक-एक बूंद में अनेक रोगों को समाप्त करने की क्षमता है। योग परमात्मा से मिलने का सर्वोत्तम साधन है। शरीर आत्मा और परमात्मा के मिलन का माध्यम है। स्वस्थ शरीर के द्वारा ही परमात्मा के दर्शन किये जा सकते हैं। योग मनुष्य को स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनाने के साथ-साथ सुयोग्य एवं गुणवान् भी बनाता है। यह हमारे शरीर में शक्ति पैदा करता है। योग केवल रोगी व्यक्ति के लिए ही लाभदायक नहीं बल्कि स्वस्थ मनुष्य भी इसके अभ्यास से लाभ उठा सकते हैं। योग प्रत्येक आयु के व्यक्तियों के लिए लाभदायक है।
1. “Yoga can be defined as Science of healthy and better living physically, mentally, intellectually and spiritually.”
योग का अभ्यास करने से शरीर के सभी अंग ठीक प्रकार से कार्य करने लगते हैं। योग अभ्यास द्वारा मांसपेशियां मज़बूत होती हैं तथा मानसिक संतुलन में वृद्धि होती है। योग की आवश्यकता आधुनिक युग में भी उतनी ही है जितनी प्राचीन युग में थी। हमारे देश से कहीं अधिक विदेशों ने इस क्षेत्र में प्रगति की है। उन देशों में मानसिक शान्ति के लिए इसका अत्यधिक प्रचार होता है। साथ ही उन देशों में योग के क्षेत्र में बहुत विद्वान् हैं । यह विचारधारा भी गलत है कि आजकल के लोग योग करने के योग्य नहीं रहे। आज के युग में भी मनुष्य योग से पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकता है। योग-विज्ञान व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास में इस प्रकार योगदान देता है—
1. मनुष्य की शारीरिक और मानसिक आधारभूत शक्तियों का विकास (Development of Physical, Mental and Latent Powers of Man)-योग-ज्ञान मनुष्य निरोग रहकर दीर्घ-आयु का आनन्द प्राप्त करता है। योग नियम और आसन व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक विकास में सहायक होते हैं । विभिन्न आसनों का अभ्यास करने से शरीर के विभिन्न अंग क्रियाशील होते हैं। इनसे उनका विकास होता है। इसके अतिरिक्त यह शरीर की विभिन्न प्रणालियों जैसे-पाचन प्रणाली, श्वास प्रणाली और मांसपेशी प्रणाली के ऊपर भी अच्छा प्रभाव डालता है और व्यक्ति की कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी होता है। प्राणायाम और अष्टांग योग द्वारा मनुष्य की गुप्त शक्तियों (Latent Powers) का विकास होता है।
2. शरीर की आन्तरिक शुद्धता (Cleanliness of Body)—योग की छः अवस्थाओं द्वारा शरीर का सम्पूर्ण विकास (All Round Development) होता है। आसनों से जहां शरीर स्वस्थ होता है वहां योगाभ्यास द्वारा मन नियन्त्रण तथा नाड़ी संस्थान और मांसपेशी संस्थान को आपसी तालमेल भी बना रहता है। प्राणायाम द्वारा शरीर चुस्त तथा स्वस्थ रहता है। प्रत्याहार द्वारा दृढ़ता में वृद्धि होती है। ध्यान और समाधि से सांसारिक चिन्ताओं से मुक्ति प्राप्त होती है। इससे आत्मा-परमात्मा में विलीन हो जाती है। इसी तरह ध्यान, समाधि, यम और नियमों की भान्ति षटकर्म भी आन्तरिक सफाई में सहायक होते हैं। षट कर्मों में धोती, नेती, बस्ती, त्राटक, नौली से कपाल, छाती, जिगर और आंतों की सफाई होती है।
आत्मा का परमात्मा से मेल कराने में शरीर माध्यम है और षट कर्मों, आसनों तथा प्राणायाम इत्यादि क्रियाओं से शरीर की आन्तरिक सफाई के लिए योग सहायता करता है।
3. शारीरिक अंगों में शक्ति एवं लचक का विकास करना (Development of Strength and Elasticity)-प्रायः देखने में आता है कि यौगिक क्रियाओं में भाग लेने वाले व्यक्ति की सेहत उन व्यक्तियों के बेहतर होती है जो योग क्रियाओं में रुचि नहीं रखते। योग द्वारा मनुष्य का केवल शारीरिक विकास ही नहीं होता बल्कि आसनों द्वारा जोड़ों और हड्डियों का विकास भी होता है। खून का प्रवाह तेज हो जाता है। धनुष आसन तथा हलआसन रीढ़ की हड्डी में लचक पैदा करते हैं जिससे मनुष्य शीघ्र बूढ़ा नहीं होता। इस प्रकार योग क्रियाओं द्वारा शरीर में शक्ति तथा लचक पैदा होती है।
4. भावात्मक विकास (Emotional Development) आधुनिक मानव मानसिक और आत्मिक शान्ति की इच्छा करता है। प्रायः देखने में आता है कि हम अपनी भावनाओं के प्रवाह में बहकर कभी तो उदासी की गहरी खाई में डूब जाते हैं और कभी खुशी के मारे पागलों जैसे हो जाते हैं। एक साधारण-सी असफलता अथवा दुःखदाई घटना हमें इतना दुःखी कर देती है कि संसार की कोई भी वस्तु हमें अच्छी नहीं लगती। हमें जीवन नीरस तथा बोझिल दिखाई देता है। इसके विपरीत कई बार साधारण-सी सफलता अथवा प्रसन्नता की बात हमें इतना खुश कर देती है कि हमारे पांव ज़मीन पर नहीं लगते। हम अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठते हैं। इन बातों में हमारी भावात्मक अपरिपक्वता (Emotional Immaturity) की झलक होती है।
योग हमें अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण रखना एवं सन्तुलन में रहना सिखाता है। यह हमें सिखाता है कि असफलता अथवा सफलता, प्रसन्नता अथवा अप्रसन्नता एक ही सिक्के के दो पहलू (Two sides of the same coin) हैं। यह जीवन दुःखों तथा सुखों का अद्भुत संगम है। दुःखों और खुशियों से समझौता करना ही सुखी जीवन का भेद है। हमें अपने जीवन में विजय और पराजय को, शोक और प्रसन्नता को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। यदि भाग्य में सफलता हमारे पांव चूमती है तो हमें खुशी के मारे स्वयं के नियन्त्रण से बाहर नहीं होना चाहिए। इसके विपरीत यदि हमे असफलता का मुंह देखना पड़ता है। तो हमें मुंह लटकाना नहीं चाहिए। इसलिए योग क्रियाएं भावात्मक विकास में विशेष महत्त्व रखती है।
5. रोगों की रोकथाम और रोगों से प्राकृतिक बचाव (Prevention of Diseases and Immunization) योग क्रियाओं से रोगों से बचाव होता है। यदि किसी कारण वश-बीमारियां लग जाएं तो उनसे छुटकारा पाने की विधियों और रोगों से प्राकृतिक बचाव शामिल हैं। रोगों के कीटाणु (Germs And Bacteria) एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य के शरीर पर आक्रमण करके रोग फैलाते हैं। इन रोगों से बचाव करने के ढंग अर्थात् रोगों का मुकाबला किस प्रकार किया जाए। रोगों से छुटकारा किस प्रकार पाया जाए और मनुष्य को निरोग किस प्रकार रखा जाए। यह आसन, धोती, नौली इत्यादि जिनसे आन्तरिक अंग शुद्ध होते हैं, योग ज्ञान ही बताता है।
6. त्याग एवं अनुशासन की भावना (Spirit of Sacrifice and Discipline) योग ज्ञान द्वारा व्यक्ति में त्याग एवं अनुशासन की भावना का संचार होता है। त्यागी तथा अनुशासन में रहने वाले नागरिक ही वास्तव में आदर्श नागरिक कहलाने के अधिकारी होते हैं। इन गुणों से भरपूर व्यक्ति ही कठिन कार्य आसानी से कर सकते हैं। अष्टांग योग में अनुशासन को मुख्य स्थान दिया जाता है। अनुशासन के सांचे में ढलकर नागरिक अपने देश को महान् बना सकते हैं। योग के नियमों की पालना करने वाला व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं, अनुशासित इच्छाओं, मानवीय भावनाओं, संवेग, विचार इत्यादि पर नियन्त्रण रखता है।
7. सुधारात्मक महत्त्व और शिथिलता (Corrective value and Relexation) आसनों से योग का सुधारात्मक महत्त्व भी बहुत अधिक है। यह हमें उचित आसन (Correct positive) बनावट रखने में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। योग क्रियाओं और आसनों द्वारा ठीक ढंग से बैठने, ठीक ढंग से खड़े होने तथा ठीक ढंग से चलने आदि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
प्रश्न 3.
योग करने से पूर्व किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
(What precautions are needed to taken before performing Yoga ?).
उत्तर-
- योग आसन करते समय सबसे पहले सूर्य नमस्कार करना चाहिए।
- यौगिक व्यायाम करने का स्थान समतल होना चाहिए। जमीन पर दरी या कम्बल डाल कर यौगिक व्यायाम करने चाहिएं।
- यौगिक व्यायाम करने का स्थान एकान्त, हवादार और सफाई वाला होना चाहिए।
- यौगिक व्यायाम करते हुए श्वास और मन को शान्त रखना चाहिए।
- भोजन करने के बाद कम से कम चार घण्टे के पश्चात् यौगिक आसन करने चाहिएं।
- सबसे पहले आरामदायक तथा फिर कल्चरल आसन करने चाहिए।
- यौगिक आसन धीरे-धीरे करने चाहिएं और अभ्यास को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
- अभ्यास प्रतिदिन किसी योग्य प्रशिक्षक की देख-रेख में करना चाहिए।
- दो आसनों के मध्य में थोड़ा विश्राम शव आसन द्वारा कर लेना चाहिए।
- शरीर पर कम-से-कम कपड़े पहनने चाहिएं, लंगोट, निक्कर, बनियान आदि और सन्तुलित भोजन करना चाहिए।
- योग आसन के समय श्वास अन्दर तथा बाहर निकालने की क्रिया की तरतीब ठीक होनी चाहिए।
- योग करने से पहले मौसम के अनुसार गरम या ठंडे पानी से स्नान कर लेना चाहिए या फिर बाद में कमसे-कम आधे घंटे का अन्तराल होना चाहिए।
प्रश्न 4.
सूर्य नमस्कार से क्या अभिप्राय है ? इसके कुल कितने अंग है ?
(What is meant by Surya Namaskara ? How may parts does it have in total ?)
उत्तर-
‘सूर्य’ से अभिप्राय ‘सूरज’ और ‘नमस्कार’ से अभिप्राय है-प्रणाम करना। क्रिया करते हुए सूर्य को प्रणाम करना, सूर्य नमस्कार कहलाता है। सूर्य नमस्कार में कुल 12 क्रियाएं होती हैं जो कि व्यायाम करते हुए पूरे शरीर की लचक बढ़ाने में मदद करती हैं। प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करने से व्यक्ति में बल और बुद्धि का विकास होता है। इसके साथ व्यक्ति की उम्र भी बढ़ती है। सूर्य नमस्कार के साथ हमारा सारा शरीर चुस्त हो जाता है। शरीर, साँस और मन एकसार हो जाते हैं। अग्रअंकित चित्र को देखकर इसकी एक से बारह तक की क्रियाएं स्पष्ट होती हैं। सूर्य नमस्कार की विधि इस प्रकार है।
सूर्य नमस्कार विधि
ढंग—
स्थिति 1. प्रणामासन
- यदि सम्भव हो तो सूर्य की तरफ मुंह करके खड़े हो जाएं।
- पाँव सीधे तथा हाथों को छाती के केन्द्र में आराम की स्थिति में रखें।
- चेतना में धीरे-धीरे साँस लेते रहें।
- शरीर को बिल्कुल ढीला तथा पीठ सीधी रखें।
लाभ-इस स्थिति में ध्यान और शांति को बनाने में मदद मिलती है।
स्थिति 2. हस्त उत्थानासन
- धीरे-धीरे सांस लेते हुए बाजू को ऊपर की तरफ लेकर जाएं। बाजुओं को कंधों की चौड़ाई अनुसार खोल कर रखें।
- पीठ को धीरे-धीरे पीछे की तरफ खींचो तथा धीरे-धीरे बाजुओं को पीछे की तरफ ले जाओ।
- धीरे-धीरे अभ्यास से कमर में लचकता आ जाएगी।
लाभ-इस आसान से पेट की मांसपेशियां अच्छी तरह खुल कर फैल जाती हैं। बाजू, कंधे तथा रीढ़ की हड्डी टोन हो जाती है। इसके अभ्यास के साथ फेफड़े भी खुल जाते हैं।
स्थिति 3. पद-हस्तासन
- साँस बाहर छोड़ते हुए आगे की तरफ को झुको, टांगे सीधी रखो तथा अपने हाथों की ऊंगलियों के साथ फर्श को छूने की कोशिश करो।
- रीढ़ की हड्डी को कमर के जोड़ को उतना ही झुकाओ जितना की दर्द महसूस ना हो या फिर जितना झुका जा सके।
लाभ-इस आसन से पेट की कई बिमारियों से मुक्ति मिलती है तथा आराम पहुंचता है। ये पेट की फालतू चर्बी को घटाता है।
स्थिति 4. अश्व संचालनासन
- हाथों की ऊंगलियों को फर्श के साथ छूते हुए बाईं टांग मोड़ते हुए दाईं टांग को पीछे की तरफ सीधा कर के ले जाओ।
- सिर और गर्दन को आगे की ओर रीढ़ की हड्डी की सीध में रखें। छाती को आगे की ओर झुकाकर न रखें।
लाभ-ये आसन पेट की मांसपेशियों को टोन करता है तथा टांगों और पैरों की मांसपेशियों को मजबूत करता है।
स्थिति 5. पर्वतासन
- साँस बाहर छोड़ते हुए, बाईं टांग को पीछे की तरफ दाईं टाँग की तरफ सीधा रखो।
- सिर को दोनों बाजुओं के बीच रखते हुए शरीर के सारे भार को बाजुओं तथा पैरों पर डालो और यही स्थिति बनाकर रखो।
लाभ-ये आसन कन्धों तथा गर्दन की मांसपेशियों को टोन करता है। टांगों तथा बाजुओं की मांसपेशियों को भी मज़बूत करता है।
स्थिति 6. अष्टांग आसन
- पिछले आसन से धीरे-धीरे घुटनों को ज़मीन की तरफ ले जाओ।
- छाती और ठोड़ी को ज़मीन से छुआओ।
- दोनों बाजुओं को छाती के बराबर मोड़ कर रखो तथा चूल्हों को जमीन से ऊपर की तरफ खींच कर रखो।
लाभ-ये आसन कन्धों तथा गर्दन की मांसपेशियों को टोन करता है। टांग तथा हाथ की मांसपेशियों को मज़बूत बनाता है तथा छाती को विकसित करता है।
स्थिति 7. भुजंगासन
- धीरे-धीरे साँस अन्दर लेते हुए टांगें तथा कमर को ज़मीन पर रखो।
- बाजुओं को खींचते हुए छाती वाले भाग को पीछे की तरफ खींचों।
- सिर को धीरे-धीरे पीछे की तरफ ले जाओ।
लाभ-ये आसन पेट की तरफ खून के दौरे को तेज़ करता है तथा कई पेट की बिमारियों से छुटकारा दिलवाता है; जैसे कि बदहज़मी कब्ज आदि। रीढ़ की हड्डी को मज़बूती मिलती है तथा खून संचार में सुधार होता है।
स्थिति 8. पर्वतासन
- धीरे-धीरे दोनों पैरों पर वापिस जा के सीधे खड़े हो जाओ।
- छाती वाले भागों को पेट की तरफ लेकर जाओ तथा दोनों हाथों से जमीन को छू लो। ये बिल्कुल 5वीं स्थिति जैसा हो सकता है।
स्थिति 9. अश्व संचालनासन
- धीरे-धीरे सांस अन्दर खींचते हुए दाएं पैर को दोनों हाथों के बीच ले जाओ तथा बाईं टांग को पीछे की तरफ सीधा रखो। इसके साथ ही कन्धों को पीछे की तरफ सीधे खींचों तथा छाती वाले भाग को पीछे की तरफ ले जाओ तथा पीठ का आर्क बनाओ।
स्थिति 10. पद-हस्तासन
- धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए टांगें सीधी रखो तथा हाथों के साथ फर्श से छूने की कोशिश करो। ऐसे करते समय घुटने सीधे हों।
स्थिति 11. हस्त-उत्थानासन
- धीरे-धीरे सांस लेते समय बाजुओं को ऊपर की तरफ ले जाओ। बाजुओं को कन्धों की चौड़ाई अनुसार खोल . के रखो।
- पीठ को धीरे-धीरे पीछे की तरफ खींचों तथा धीरे-धीरे बाजू पीछे की तरफ ले जाओ।
- अभ्यास से कमर में लचकता आ जाएगी।
स्थिति 12. प्रणामासन
- पैर सीधे तथा हथेली को छाती के केन्द्र में आराम की स्थिति में रखो।
- चेतना में धीरे-धीरे सांस लेते रहो।
- शरीर बिल्कुल ढीला तथा पीठ सीधी रखो।
लाभ—
- सूर्य नमस्कार शरीर की अतिरिक्त चर्बी को भी घटा देता है।
- सूर्य नमस्कार शरीर के बल, शक्ति और लचक में विस्तार करता है।
- यह एकाग्रता बढ़ाने में सहायता करता है।
- यह शरीर को गर्म करता है।
- यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।
- यह आसन बच्चों का कद बढ़ाने में भी मदद करता है।
प्रश्न 5.
किसी एक आरामदायक तथा कल्चरल आसन की विधि तथा लाभ के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें।
(Write in detail the method and benefits of any one of Relaxative and Cultural asana.)
उत्तर-
सभ्याचारक आसन (मुद्रा)
(Cultural Asanas)
शवासन की विधि (Technique of Shavasana)-शवासन में पीठ के बल सीधा लेटकर शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ा जाता है। शवासन करने के लिए जमीन पर पीठ के बल लेट जाओ और शरीर के अंगों को ढीला छोड़ दें। धीरेधीरे लम्बे सांस लो। बिल्कुल चित्त लेटकर सारे शरीर के अंगों को ढीला छोड़ दो। दोनों पांवों के बीच में एक डेढ फुट की दूरी होनी चाहिए। हाथों की हथेलियों की आकाश की ओर करके शरीर से दूर रखो। आंखें बन्द कर अन्तर्ध्यान होकर सोचो कि शरीर ढीला हो रहा है। अनुभव करो कि शरीर विश्राम की स्थिति में है। यह आसन 3 से 5 मिनट तक करना चाहिए। इस आसन का अभ्यास प्रत्येक आसन के शुरू तथा अन्त में करना जरूरी है।
शवासन
महत्त्व (Importance)—
- शवासन से उच्च रक्त चाप और मानसिक तनाव से छुटकारा मिलता है।
- दिल और दिमाग को ताजा करता है।
- इस आसन द्वारा शरीर की थकावट दूर होती है।
हलासन (Halasana) -इस आसन के पूर्ण रूप में आने पर मनुष्य की आकृति बिल्कुल हल जैसी हो जाती है।
हलासन
विधि (Procedure)- भूमि पर कम्बल बिछा कर पीठ के बल लेट जाइए। हाथों को दोनों ओर भूमि पर रखिये। हथेलियां ज़मीन की ओर हों। दोनों पांवों को मिला कर धीरे-धीरे सांस भीतर की ओर कीजिए और बहुत धीरे-धीरे अपनी टांगों को ऊपर उठाते हुए पीछे सिर की ओर ले जाइए। टांगों के साथ-साथ शरीर को भी पीछे की ओर मोड़ते जाएं जब तक की पंजे ज़मीन को न छू लें। घुटनों को मिला कर टांगें बिल्कुल सीधी रखें। ठोड़ी को सीने ऊपर दबा दें और फिर नासिका द्वारा सांस लें और छोड़ें। जब तक सम्भव हो बिना कष्ट के इस आसन में रहें अन्यथा इसी प्रकार बिना किसी झटके के वापस पहली वाली मुद्रा में लौट आइए।
इस आसन में हाथों से पांवों की उंगलियों को छुआ भी जा सकता है या सिर के पीछे हाथों से एक दूसरी कोहनी को भी पकड़ा जा सकता है। किसी प्रकार का कोई झटका नहीं लगना चाहिए। आसन समाप्त कर धीरे-धीरे उसी प्रकार अपनी मूल स्थिति में आ जाएं।
लाभ (Advantages)- इस आसन से रीढ़ की नसें, कमर की मांसपेशियां, रीढ़ की हड्डी एवं नाड़ी प्रणाली (Nervous System) स्वस्थ रहता है। इससे नाड़ियों में रीढ़ रज्जू (Spins Cord) संवेदनशील ग्रन्थियों में पर्याप्त भागों में रक्त इकट्ठा होता है। इसलिए इनका पोषण अच्छी तरह होता है। इस आसन से मेरुदंड (Spinal Cord) अधिक लचकीला एवं मुलायम होता है। यह आसन मेरु (Spine) सम्बन्धी हड्डियों के शीघ्र विकास (Enlargement) को रोकता है। अस्थियों के विकास (Enlargement) से हड्डियों में जल्दी विकार पैदा होता है। इससे बुढ़ापा जल्दी आता है। हलासन करने वाला व्यक्ति अधिक फुर्तीला एवं बलवान् होता है। पीठ की मांसपेशियों को अधिक मात्रा में रक्त प्राप्त होता है तथा वे अच्छी तरह से पोषित होती हैं। आलस दूर होता है। इस आसन से मोटापा दूर होता है, चर्बी कम होती है। कब्ज दूर होती है। रक्त संचार तेज़ होता है।
ध्यानशील आसन मुद्रा
(Meditative Poses)
पद्मासन (Padamasana)-इसमें टांगों की चौकड़ी लगाकर बैठा जाता है।
पद्मासन की विधि (Technique of Padamasana)-चौकड़ी मारकर बैठने के बाद दायां पांव बायीं जांघ पर इस तरह रखो कि दायें पांव की एड़ी बाईं जांघ पर पेडू हड्डी को छुए। इसके पश्चात् बायें पांव को उठाकर उसी प्रकार दायें पांव की जाँघ पर रख लें। रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। बाजुओं को तानकर हाथों को घुटनों पर रखो। कुछ दिनों के अभ्यास द्वारा आसन को बहुत ही आसानी से किया जा सकता है।
सुखासन
लाभ (Advantages)—
- इस आसन से पाचन शक्ति बढ़ती है।
- यह आसन मन की एकाग्रता के लिए सर्वोत्तम है।
- कमर दर्द दूर होता है।
- दिल तथा पेट के रोग नहीं लगते।
- मूत्र के रोगों को दूर करता है।
प्रश्न 6.
अष्टांग योग के अंगों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें। (Write in detail about the parts of Astanga Yoga.)
उत्तर-
अष्टांग योग
(Ashtang Yoga)
अष्टांग योग के आठ अंग हैं, इसलिए इसका नाम अष्टांग योग है।
योगाभ्यास की पतजंलि ऋषि द्वारा आठ अवस्थाएं मानी गई हैं। इन्हें पतजंलि ऋषि का अष्टांग योग भी कहते हैं—
- यम (Yama, Forbearmace)
- नियम (Niyama, Observance)
- आसान (Asana, Posture)
- प्राणायाम (Pranayama, Regulation of Breathing)
- प्रत्याहार (Pratyahara, Abstracition)
- धारणा (Dharma, Concentration)
- ध्यान (Dhyana, Meditation)
- समाधि (Samadhi, Trance)।
योग की ऊपरी बताई गई आठ अवस्थाओं में से पहली पांच अवस्थाओं का सम्बन्ध आन्तरिक यौगिक क्रियाओं से है। इन सभी अवस्थाओं को आगे फिर इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है—
- यम (Yama, Forbearance)-यम के निम्नलिखित पांच अंग हैं—
- अहिंसा (Ahimsa, Non-violence)
- सत्य (Satya, Truth)
- अस्तेय (Astey, Conquest of the sense of mind)
- अपरिग्रह (Aprigraha, Non-receiving)
- ब्रह्मचर्य (Brahmacharya, Celibacy)
- नियम (Niyama, Observance)-नियम के निम्नलिखित पांच अंग हैं :
- शौच (Shauch, Obeying the call of nature)
- सन्तोष (Santosh, Contentment)
- तप (Tapas, Penance)
- स्वाध्याय (Savadhyay, Self-study)
- ईश्वर परिधान (Ishwar Pridhan, God Consciousness)।
- आसन (Asana or Posture) आसनों की संख्या उतनी है जितनी कि इस संसार में पशु-पक्षियों की। आसन-शारीरिक क्षमता, शक्ति के अनुसार, प्रतिदिन सांस द्वारा हवा को बाहर निकलने, सांस रोकने और फिर सांस लेने से करने चाहिएं।।
4. प्राणायाम (Pranayma, Regulation of Breathing) प्राणायाम उपासना की मांग है। इसको तीन भागों में बांटा जा सकता है—- पूरक (Purak, Inhalation)
- रेचक (Rechak, Exhalation) और
- कुम्भक (Kumbhak, Holding of Breath)
कई प्रकार से सांस लेने तथा इसे रोककर बाहर निकालने को प्राणायाम कहते हैं।
- प्रत्याहर (Pratyahara)-प्रत्याहार से अभिप्रायः है वापिस लाना तथा सांसारिक प्रसन्नताओं से मन को मोड़ना।
- धारणा (Dharna)-अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखने को धारणा कहते हैं जो बहुत कठिन है।
- ध्यान (Dhyana)-जब मन पर नियन्त्रण हो जाता है तो ध्यान लगना आरम्भ हो जाता है। इस अवस्था में मन और शरीर नदी के प्रवाह की भान्ति हो जाते हैं जिसमें पानी की धाराओं का कोई प्रभाव नहीं होता।
- समाधि (Samadhi)-मन की वह अवस्था जो धारणा से आरम्भ होती है, समाधि में समाप्त हो जाती है। इन सभी अवस्थाओं का आपस में गहरा सम्बन्ध है।
Physical Education Guide for Class 11 PSEB योग Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
प्रश्न 1.
“ठीक ढंग से कार्य करना ही योग है।” किसका कथन है ?
उत्तर-
भगवान् श्री कृष्ण जी का।
प्रश्न 2.
अष्टांग योग के अंग हैं—
(a) 6
(b) 8
(c) 10
(d) 12.
उत्तर-
(d) 12.
प्रश्न 3.
आसनों की किस्में हैं—
(a) 2
(b) 4
(c) 6
(d) 8.
उत्तर-
(a) 2.
प्रश्न 4.
सूर्य-भेदी प्राणायाम, उजयी प्राणायाम किसके भेद हैं ?
उत्तर-
यह प्राणायाम के भेद हैं।
प्रश्न 5.
श्वास बाहर निकालने की क्रिया को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
श्वास बाहर निकालने की क्रिया को रेचक कहते हैं।।
प्रश्न 6.
जब श्वास अंदर खींचते हैं तो उस क्रिया को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
जब श्वास अन्दर खींचते हैं तो उस क्रिया को पूरक कहते हैं।
प्रश्न 7.
श्वास अंदर खींचने के पश्चात् उस क्रिया को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
श्वास अंदर खींचने के पश्चात् वहां ही रोकने की क्रिया को कुंबक कहते हैं।
प्रश्न 8.
प्राणायाम के भेद हैं—
(a) 8
(b) 6
(c) 4
(d) 2.
उत्तर-
(a) 8.
प्रश्न 9.
सूर्य नमस्कार की कितनी अवस्थाएँ हैं ?
(a) 12
(b) 8
(c) 6
(d) 4.
उत्तर-
(a) 12.
प्रश्न 10.
अष्टांग योग के अंग हैं ?
(a) यम
(b) आसन
(c) नियम
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 11.
योग शब्द का अर्थ बताओ।
उत्तर-
योग का अर्थ जुड़ना या मिलना है।
प्रश्न 12.
आसन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
आसन दो तरह के होते हैं।
प्रश्न 13.
सूर्य नमस्कार में कितनी अवस्थाएं हैं ?
उत्तर-
12.
प्रश्न 14.
सूर्य नमस्कार कब करना चाहिए?
उत्तर-
सूर्य नमस्कार आसन करने से पहले करना चाहिए।
प्रश्न 15.
योग क्या है ?
उत्तर-
आत्मा को परमात्मा से मिलाने को योग कहते हैं।
प्रश्न 16.
आत्मा और परमात्मा के मिलने को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
योग।
प्रश्न 17.
योग संस्कृति के किस शब्द से बना है ?
उत्तर-
यूज से बना है, जिसका अर्थ है मेल।
प्रश्न 18.
सूर्य नमस्कार कब करना चाहिए ?
उत्तर-
सूर्य नमस्कार आसन करने से पहले करना चाहिए।
अति छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
योग का कोई एक महत्त्व लिखो।
उत्तर-
- मनुष्य की शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास करना।
- बिमारियों का रोकथाम और लोगों को बचाओ।
प्रश्न 2.
सूर्य नमस्कार करने के दो लाभ लिखो।
उत्तर-
- सूर्य नमस्कार ताकत, शक्ति और लचक में वृद्धि करता है।
- इससे एकाग्रता बढ़ती है।
प्रश्न 3.
आसन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
आसन दो प्रकार के होते हैं।
- सभ्याचारक आसन
- आरामदायक आसन।
प्रश्न 4.
शव आसन के लाभ लिखो।
उत्तर-
इस आसन को करने से शरीर ताज़ा हो जाता है। शव आसन करने से माँसपेशियां और नाड़ियां आराम की हालत में आ जाती हैं।
प्रश्न 5.
पवनमुक्तासन या पर्वत आसन के लाभ लिखें।
उत्तर-
- पाचन प्रणाली को मज़बूत करता है।
- गैस की बीमारी ठीक होती है।
- पेट के आस-पास भाग में बनी चर्बी कम हो जाती है।
प्रश्न 6.
प्राणायाम के कोई चार भेद लिखो।
उत्तर-
- सूर्यभेदी प्राणायाम
- शीतली प्राणायाम
- शीतकारी प्राणायाम
- उजयी प्राणायाम।
छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
योग का अर्थ अपने शब्दों में लिखो। (Write the meaning of yoga in your own words.):
उत्तर-
‘योग’ शब्द संस्कृत की ‘युज्’ धातु से लिया गया है। इसका अर्थ है : जोड़ना या बाँधना। जोड़ने या बाँधने से अभिप्रायः है कि शरीर, दिमाग और आत्मा को एकसार करना। नीरोग शरीर में ही नीरोग मन का निवास होता है। योग के द्वारा हम मन और शरीर दोनों को चिंता और रोगों से मुक्त करके स्वस्थ शरीर प्राप्त कर लेते हैं।”
प्रश्न 2.
योग आसन करते समय कोई चार दिशा निर्देश लिखो।
उत्तर-
- यौगिक व्यायाम करने स्थान समतल होना चाहिए। ज़मीन पर दरी या कम्बल डाल कर यौगिक व्यायाम करने चाहिए।
- यौगिक व्यायाम करने वाला स्थान एकान्त, हवादार और सफाई वाला होना चाहिए।
- यौगिक व्यायाम करते हुए श्वास और मन को शान्त रखना चाहिए।
- भोजन करने के बाद कम से कम चार घण्टे के पश्चात् यौगिक आसन करने चाहिएं।
प्रश्न 3.
सूर्य नमस्कार में पहली चार मुद्रा के बारे में लिखो।
उत्तर-
- दोनों हाथ और पैर जोड़कर नमस्कार की मुद्रा में सीधे खड़े हो जाओ।
- साँस अंदर खींचते हुए दोनों बाजुओं को सिर के ऊपर ले जाओ और कमर को मोड़ते हुए थोड़ा पीछे को झुक जाओ।
- साँस को बाहर छोड़ते हुए दोनों हाथों के साथ ज़मीन को छूना है और माथा घुटनों को लगाना है। इस स्थिति में घुटने सीधे होने चाहिए।
- दाहिनी टांग पीछे को सीधी कर दो। बायाँ पैर दोनों हथेलियों में रहेगा। इस स्थिति में कुछ सेकिंड के लिए रुको।
प्रश्न 4.
योग करने के कोई दो महत्त्व लिखो।
उत्तर-
- योग करने से मनुष्य की शारीरिक, मानसिक शक्तियों का विकास होता है।
- योग से शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ रहता है। इससे शरीर के सभी अन्दरूंनी अंगों में ताकत मिलती है।
प्रश्न 5.
अष्टांग योग के अंगों के नाम लिखो।
उत्तर-
- यम
- नियम
- आसन
- प्राणायाम
- प्रत्याहार
- धारणा
- ध्यान
- समाधि।
प्रश्न 6.
पद्मासन की विधि लिखें।
उत्तर-
चौकड़ी मारकर बैठने के बाद दायां पांव बायीं जांघ पर इस तरह रखो कि दायें पांव की एड़ी बाईं जांघ पर पेडू हड्डी को छुए। इसके पश्चात् बायें पांव को उठाकर उसी प्रकार दायें पांव की जाँघ पर रख लें। रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। बाजुओं को तानकर हाथों को घुटनों पर रखो। कुछ दिनों के अभ्यास द्वारा आसन को बहुत ही आसानी से किया जा सकता है।
प्रश्न 7.
शवासन के लाभ लिखें।
उत्तर-
शवासन के लाभ-
- शवासन से उच्च रक्त चाप और मानसिक तनाव से छुटकारा मिलता है।
- दिल और दिमाग को मजा करता है।
- इस आसन द्वारा शरीर की थकावट दूर होती है।
बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)
‘प्रश्न 1.
योग का अर्थ तथा मानव जीवन में इसके महत्त्व के बारे में जानकारी दें।
उत्तर-
योग का अर्थ-‘योग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द ‘युज’ से हुई है, जिसका अभिप्राय है ‘जोड़ . अथवा ‘मेल’। शरीर, दिमाग तथा मन का सुमेल योग कहलाता है। योग वह साधन है जिससे आत्मा का मिलाप परमात्मा से होता है।
मानव जीवन में इसका महत्त्व-योग विज्ञान का मनुष्य के जीवन के लिए बहुत महत्त्व है। योग केवल भारत का ही नहीं बल्कि संसार का प्राचीन ज्ञान है। देश-विदेशों के डॉक्टरों तथा शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों ने इसके महत्त्व को स्वीकार किया है। योग से शरीर तथा मन स्वस्थ रहता है तथा इसके साथ-साथ शरीर की नाड़ियां लचकदार एवं मज़बूत रहती हैं ! योग शरीर को रोगों से दूर रखता है और यदि कोई बीमारी लग भी जाए तो आसन अथवा किसी अन्य योग क्रिया द्वारा इसे दूर किया जा सकता है। योग जहां शरीर को स्वस्थ, सुन्दर एवं शक्तिशाली बनाता है, वहां यह प्रतिभा को चार चांद लगा देता है। योग हमें उस दुनिया में ले जाता है जहां जीवन है, स्वास्थ है, परम सुख है, मन की शान्ति है। योग ज्ञान की ऐसी… गंगा है जिसकी एक-एक बूंद में अनेक रोगों को समाप्त करने की क्षमता है। योग परमात्मा से मिलने का सर्वोत्तम साधन है। शरीर आत्मा और परमात्मा के मिलन का माध्यम है। स्वस्थ शरीर के द्वारा ही परमात्मा के दर्शन किये जा सकते हैं। योग मनुष्य को स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनाने के साथ-साथ सुयोग्य एवं गुणवान् भी बनाता है। यह हमारे शरीर में शक्ति पैदा करता है। योग केवल रोगी व्यक्ति के लिए ही लाभदायक नहीं बल्कि स्वस्थ मनुष्य भी इसके अभ्यास से लाभ उठा सकते हैं। योग प्रत्येक आयु के व्यक्तियों के लिए लाभदायक है। इसका अभ्यास करने से शरीर के सभी अंग ठीक प्रकार से कार्य करने लगते हैं। योग अभ्यास द्वारा मांसपेशियां मज़बूत होती हैं तथा मानसिक संतुलन में वृद्धि होती है। योग की आवश्यकता आधुनिक युग में भी उतनी ही है जितनी प्राचीन युग में थी। हमारे देश से कहीं अधिक विदेशों ने इस क्षेत्र में प्रगति की है। उन देशों में मानसिक शान्ति के लिए इसका अत्यधिक प्रचार होता है। साथ ही उन देशों में योग के क्षेत्र में बहुत विद्वान् हैं। यह विचारधारा भी गलत है कि आजकल के लोग योग करने के योग्य नहीं रहे। आज के युग में भी मनुष्य योग से पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकता है।
प्रश्न 2.
प्राणायाम क्या है ? इसकी विधि और महत्त्व लिखें।
उत्तर-
प्राणायाम दो शब्दों के मेल से बना है “प्राण” का अर्थ है ‘जीवन’ और ‘याम’ का अर्थ है ‘नियन्त्रण’ जिससे अभिप्राय है जीवन पर नियन्त्रण अथवा सांस पर नियन्त्रण।
प्राणायाम यह क्रिया है जिससे जीवन की शक्ति को बढ़ाया जा सकता है और इस पर नियन्त्रण किया जा सकता है। मनु-महाराज ने कहा है, “प्राणायाम से मनुष्य के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं और कमियां पूरी हो जाती है।”
प्राणायाम के आधार
(Basis of Pranayam)
सांस को बाहर की ओर निकालना तथा फिर अन्दर की ओर करना और अन्दर ही कुछ समय रोक कर फिर कुछ समय के बाद बाहर निकालने की तीनों क्रियाएं ही प्राणायाम का आधार है।
प्राणायाम
रेचक-सांस बाहर की ओर छोड़ने की क्रिया को ‘रेचक’ कहते हैं।
पूरक-जब सांस अन्दर को खींचते हैं तो इसे ‘पूरक’ कहते हैं।
कुम्भक-सांस को अन्दर खींचने के बाद उसे वहां ही रोकने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं।
प्राण के नाम
(Name of Prana)
व्यक्ति के सारे शरीर में प्राण समाया हुआ है। इसके पांच नाम हैं—
- प्राण-यह गले से दिल तक है। इसी प्राण की शक्ति से सांस शरीर में नीचे जाता है।
- अप्राण-नाभिका से निचले भाग में प्राण को अप्राण कहते हैं। छोटी और बड़ी आंतों में यही प्राण होता है। यह शौच, पेशाब और हवा को शरीर में से बाहर निकालने के लिए सहायता करता है।
- समान-दिल और नाभिका तक रहने वाली प्राण क्रिया को समान कहते हैं। यह प्राण पाचन क्रिया और ऐडरीनल ग्रन्थि की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है।
- उदाण-गले से सिर तक रहने वाले प्राण को उदाण कहते हैं। आंखों, कानों, नाक, मस्तिष्क इत्यादि अंगों का काम इसी प्राण के कारण होता है।
- ध्यान- यह प्राण शरीर के सभी भागों में रहता है और शरीर का अन्य प्राणों से मेल-जोल रखता है। शरीर के हिलने-जुलने पर इसका नियन्त्रण होता है।
प्राणायाम करने की विधि
(Technique of doing Pranayama)
प्राणायाम श्वासों पर नियन्त्रण करने के लिए किया जाता है। इस क्रिया से श्वास अन्दर की ओर खींच कर रोक लिया जाता है और कुछ समय रोकने के बाद फिर बाहर छोड़ा जाता है। इस प्रकार सांस पर धीरे-धीरे नियन्त्रण करने के समय को बढ़ाया जा सकता है। अपनी दाईं नासिका को बन्द करके, बाईं से आठ गिनते समय तक सांस खींचो। फिर नौ और दस गिनते हुए सांस रोको। इससे पूरा सांस बाहर निकल जाएगा। फिर दाईं नासिका से गिनते हुए सांस खींचो। नौ-दस तक रोको। फिर दाईं नासिका बन्द करके बाईं से आठ कर गिनते हुए सांस बाहर निकालो तथा नौ-दस तक रोको।
प्राणायाम के भेद
(Kinds of Pranayama). शास्त्रों में प्राणायाम कई प्रकार के दिये गये हैं परन्तु प्राय: यह आठ होते हैं—
- सूर्य–भेदी प्राणायाम
- उजयी प्राणायाम
- शीतकारी प्राणायाम
- शीतली प्राणायाम
- भस्त्रिका प्राणायाम
- भरभरी प्राणायाम
- मूछ प्राणायाम
- कपालभाती प्राणायाम।
इन आठों का संक्षेप वर्णन इस प्रकार है—
1. सूर्यभेदी प्राणायाम-यह प्राणायाम शरीर में गर्मी पैदा करता है। इससे इच्छा शक्ति में वृद्धि होती है। इसे पदम आसन लगा कर करना चाहिए। पीठ, गर्दन, छाती और रीढ़ की हडी सीधी रखनी चाहिए। बायें हाथ की अंगुली के साथ नाक का बायां छेद बन्द कर लिया जाता है। दायें छेद से सांस लिया जाता है। सांस अन्दर खींच कर कुम्भक की जाती है। जब तक सांस रोका जा सके, रोकना चाहिए। इसके बाद दायें होती है, दिमाग के रोग दूर होते हैं और नाड़ियों की सफाई होती है।
अंगूठे से दायें छेद को दबा कर बायें छेद से आवाज़ करते हुए सांस को बाहर निकाला जाना चाहिए। पहले तीन बार अभ्यास होने से पन्द्रह बार किया जा सकता है।
इसमें सांस धीरे-धीरे लेना चाहिए। कुम्भक सांस रोकने का समय बढ़ाना चाहिए।
2. उज्जयी प्राणायाम (मानस श्वास)-उज्जयी प्राणायाम उचित श्वसन की नींव है, क्योंकि यह अभ्यास किया जाने वाला आम व्यायाम है। योग में ऐसा विश्वास किया जाता है कि जीवन का आंकलन साँसों की संख्या से किया जाता है। इसलिए श्वास के प्रवाह को निर्बाध बनाने के लिए तथा जीवन-काल में वृद्धि के लिए उज्जयी प्राणायाम की सलाह दी जाती है।
बैठने की मुद्रा-पैरों को क्रॉस करके आराम की मुद्रा में बैठे। धीरे-धीरे अपनी आँखों को बंद करें। अपने शरीर तथा मस्तिष्क को विश्रामावस्था में लाएँ।
उज्जयी प्राणायाम
तकनीक-गहराई से भीतर की ओर श्वास लें तथा धीरे से श्वास बाहर निकालें। अपनी गर्दन की मांसपेशियों को मजबूत करें तथा श्वास लेते वक्त अपने बंद मुँह से आवाज़ निकालें। जब फेफड़े हवा से भर जाएँ, तब जितना देरं तक संभव हो सके, साँसों को रोककर रखें। दाई नाक को बंद करें। धीरे-धीरे बाई नाक से श्वास बाहर निकालें। यह उज्जयी प्राणायाम का प्रथम चक्र है। इस प्राणायाम को 10 से 15 बार दोहराएँ।
सावधानियाँ—
- प्रारंभिक अवस्था में इस व्यायाम को बिना साँस रोके करना चाहिए।
- इस व्यायाम को हमेशा एक योगा शिक्षक के निरीक्षण में किया जाना चाहिए।
- जो लोग उच्च रक्तचाप तथा दिल की बीमारी से ग्रसित हैं, उन्हें ऐसा व्यायाम नहीं करना चाहिए।
लाभ—
- खरटि की तकलीफ को ठीक करता है।
- जुकाम को ठीक करता है तथा गला साफ़ करता है।
- हृदय की मांसपेशियों को ठीक करता है।
- थायरॉइड के रोगियों के लिए यह व्यायाम लाभदायक है।
- श्वसन प्रणाली में सामंजस्य स्थापित करता है।
- शरीर के निचले भाग के लिए उपयोगी है तथा कमर के चारों ओर के मांस को कम करता है।
3. शीतकारी प्राणायाम (सिसकारीयुक्त श्वसन)-यह शीतली प्राणायाम का ही एक भिन्न रूप है। ‘शी’ का तात्पर्य वैसी आवाज़ से है, जो श्वास लेने के दौरान उत्पन्न की जाती है तथा ‘कारी’ का अर्थ है जो उत्पन्न किया जाता है। इस प्रकार शीतकारी प्राणायाम को वैसी श्वसन क्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें ‘शी’ की आवाज़ उत्पन्न होती है। बैठने की मद्रा-किसी भी आसन में आराम से बैठिए। धीरेधीरे अपनी आँखों को बंद कीजिए तथा अपने शरीर तथा मस्तिष्क को विश्राम दीजिए।
शीतकारी
तकनीक-अपने ऊपरी तथा निचले दाँतों को मिलाइए। अपने होंठ को जितना संभव हो सके, उतन, फैलाइए। अपनी जीभ को इस प्रकार मोडिए कि इसके सिरे मुँह के ऊपरी भाग को स्पर्श करें। ‘शी’ की आवाज़ के साथ धीरे-धीरे किंतु गहरी साँस लें। श्वास लेने के पश्चात् अपने होठों को बंद रखें तथा जीभ को आराम दें। अपने श्वास को जितना हो सके, रोकें। धीरे-धीरे नासिका की सहायता से श्वास को बाहर निकालें, लेकिन अपना मुंह न खोलें। यह ‘शीतकारी-प्राणायाम’ का प्रथम चरण है। इसे 10 से 15 बार नियमित दोहराएँ।
सावधानियाँ—
- जो व्यक्ति सर्दी, जुकाम या अस्थमा से पीड़ित हों, उन्हें शीतकारी प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
- जो व्यक्ति उच्च रक्तचाप से पीड़ित होते हैं, उन्हें इस अभ्यास से बचना चाहिए।
- इसका अभ्यास ठंडे मौसम में नहीं करना चाहिए।
लाभ—
- शरीर तथा मस्तिष्क को ठंडा रखता है।
- यह आसन पायरिया को ठीक करता है तथा मुँह को साफ़ करता है, जो दाँत तथा मसूड़ों के लिए उचित है।
- शरीर से अतिरिक्त ऊष्मा को हटाता है।
- तनाव प्रबंधन में बहुत ही प्रभावकारी है।
4. शीतली प्राणायाम श्वास को शीतल करना-यह ‘हठ योग’ का एक भाग है। शीतल का अर्थ है-शांत। यह एक श्वसन व्यायाम है, जो आंतरिक ऊष्मा को कम करता है तथा मानसिक, शारीरिक तथा भावात्मक संतुलन को कायम रखता है।
बैठने की मुद्रा-पैरों को क्रॉस की तरह मोड़कर आराम से ज़मीन पर इस प्रकार बैठें, जिससे कि पैर जाँघों के ऊपर रहें तथा पैरों का तलवा ऊपर की ओर हो। अपने पैरों तथा मेरुदंड को सीधा रखें। तर्जनी अंगुली के सिरों को अँगूठों के सिरों से मिलाएँ। अपनी बाकी अंगुलियों को या तो फैलाएँ या ढीला छोडें। धीरे-धीरे अपनी आँखों को बंद करें तथा अपने मस्तिष्क
शीतली तथा शरीर को विश्राम दें।
शीतलता
तकनीक-अपना मुँह खोलें तथा धीरे-धीरे जीभ को बाहर की ओर निकालते हुए मोड़ने की कोशिश करें। शांति से भीतर की ओर फुफकार की आवाज़ के साथ साँस लें तथा श्वास लेने की शीतलता को महसूस करें। अब अपनी जीभ को भीतर की ओर ले जाएँ तथा अपनी आँखों को बंद रखते हुए जब तक संभव हो, साँसों को रोककर रखें। अब इस बात का अहसास करें कि साँसें आपके मस्तिष्क को अनुप्राणित कर रही हैं तथा धीरे-धीरे समस्त तंत्रिका तंत्र में फैल रही हैं। धीरे-धीरे नासिका से श्वास छोड़ते हुए शीतलता का अनुभव करें। यह ‘शीतली प्राणायाम’ का प्रथम चरण है। इसे 10 से 15 बार नियमित दोहराएँ।
सावधानियाँ—
- इसका अभ्यास ठंडे मौसम में नहीं करना चाहिए।
- ऐसे लोग जिन्हें ठंड, जुकाम, अस्थमा, आर्थराइटिस, ब्रानकाइटिस तथा दिल की बीमारी है, उन्हें प्राणायाम से बचना चाहिए।
लाभ—
- यह क्रोध, चिंता तथा तनाव को कम करता है।
- यह रक्त को शुद्ध रखता है तथा शरीर और मस्तिष्क को तरोताज़ा रखता है।
- यह आसन उन लोगों के लिए लाभदायक है, जो सुबह उठते वक्त अथवा पूरे दिन थकावट, सुस्ती तथा आलस्य का अनुभव करते हैं।
- यह शरीर तथा मस्तिष्क को शांत रखता है।
- यह न केवल पाचन-क्रिया को सुधारता है, बल्कि उच्च रक्तचाप तथा अम्लता के लिए भी लाभकारी
5. भस्त्रिका प्राणायाम-इस प्राणायाम में लोहार की धौंकनी की तरह सांस अन्दर और बाहर लिया और निकाला जाता है। पहले नाक के एक छेद से सांस लेकर दूसरे से बाहर की ओर छोड़ा जाता है। इसके बाद दोनों छेदों द्वारा सांस बाहर तथा अन्दर किया जाता है। भस्त्रिका प्राणायाम आरम्भ में धीरे-धीरे करना चाहिए तथा बाद में इसकी गति को बढ़ाया जा सकता है। इस प्राणायाम के करने से मोटापा दूर होता है। मन की इच्छा बलवान् होती है। विचार ठीक रहते हैं।
6. भ्रमरी प्राणायाम-किसी आसन में बैठ कर कुहनियों को कन्धों के बराबर करके सांस लिया जाता है। थोडी देरं सांस रोकने के बाद निकालते समय भँवरे की आवाज़ के समान गले में से आवाज़ निकाली जाती है। इस प्रकार आवाज़ करते हुए सांस अन्दर खींचा जाता है। इस प्राणायाम का अभ्यास सात से दस बार किया जा सकता है। रेचक जहां तक हो सके, लम्बा किया जाना चाहिए। आवाज़ तथा रेचक करते हुए मुँह बन्द रखना चाहिए।
लाभ (Advantages)—इसका अभ्यास करने से आवाज़ साफ तथा मधुर होती है। गले के रोग दूर होते हैं।
7. मूर्छा प्राणायाम-इस प्राणायाम से नाड़ियों की सफाई होती है। सिद्ध आसन में बैठ कर नाक की बाईं नासिका से सांस लेना चाहिए। सांस लेकर कुम्भक किया जाए। इसके बाद दूसरी नासिका द्वारा सांस धीरे-धीरे बाहर छोड़ा जाता है। कुछ समय के लिए आन्तरिक कुम्भक किया जाता है और साथ बाईं नासिका द्वारा सांस बाहर छोड़ा जाता है। इसमें 1: 2: 2 का अनुपात होना चाहिए जैसे सांस लेने में पांच सैकिंड, सांस छोड़ने में दस सैकिंड इस तरह धीरे-धीरे कुम्भक का समय बढ़ाया जा सकता है। कुम्भक द्वारा ऑक्सीजन फेफड़ों के सभी छेदों में पहुँच जाती है। रेचक से फेफड़े सिकुड़ जाते हैं तथा हवा बाहर निकल जाती है।
लाभ (Advantages)—इस प्राणायाम से फेफड़ों के रोग दूर होते हैं और दिल की कमज़ोरी दूर होती है।
8. कपालभाति प्राणायाम (अग्रमस्तिष्क का धौंकना)कपालभाति शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है। कपाल का अर्थ है-‘ललाट’ तथा भाति का अर्थ है-‘चमकना’। इस प्रकार कपालभाति का तात्पर्य है-आंतरिक कांति के साथ चेहरे का चमकना। यह एक अत्यधिक ऊर्जा देने वाला उदर का व्यायाम है। इस तरह के प्राणायाम में तेज़ी से श्वास छोड़ा जाता है तथा सामान्य तरीके से श्वास लिया जाता है।
कपालभाति प्राणायाम
बैठने की मुद्रा-पीठ को सीधा रखते हुए पैरों को क्रॉस करते हुए बैठें। अपने हाथों को घुटनों पर आरामदायक अवस्था में रखें। अपने शरीर तथा मन को सहज रखें।
तकनीक-उदर को फैलाते हुए धीरे-धीरे गहराई से दोनों नाक की सहायता से श्वास भीतर लाएँ। अब उदर को अंदर खींचते हुए श्वास को बाहर निकालें। अब सहज हो जाएँ। फेफड़े स्वतः ही वायु से भर जाएँगे। 10 से 15 बार तेजी से श्वास लें तथा छोड़ें। तत्पश्चात् गहराई से श्वास लें तथा छोड़ें।
सावधानियां—
- दिल के रोगियों, उच्च रक्तचाप, हर्निया तथा अस्थमा के रोगियों को इस व्यायाम से बचना चाहिए।
- अगर दर्द या चक्कर का अनुभव होता है, तो इसे रोक देना चाहिए।
- इसका अभ्यास खाली पेट ही करना चाहिए।
लाभ—
- शरीर को अतिरिक्त ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है।
- रक्त को शुद्ध करता है।
- चिंतन-मनन के लिए मस्तिष्क को तैयार करता है।
- पाचन तंत्र को सुधारता है।
- यह फेफड़ों तथा समस्त श्वसन प्रणाली के लिए उपयुक्त है।
प्राणायाम का महत्त्व
(Importance of Pranayama)
जिस प्रकार शरीर की सफाई के लिए स्नान करना आवश्यक है, उसी प्रकार मन की सफाई के लिए प्राणायाम ज़रूरी है। प्राणायाम से स्मरण शक्ति में वृद्धि, नाड़ी संस्थान (Nervous System) शक्तिशाली होता है और मन की चंचलता दूर होती है।
जिस प्रकार आग में सोना अथवा चांदी डालने से इनकी मैल समाप्त हो जाती है, उसी प्रकार प्राणायाम से मन और बुद्धि की मैल धुल जाती है। इन्द्रियों पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
प्राणायाम करने से मनुष्य की आत्मा शक्तिशाली बनती है। आत्मा के बुरे संस्कार समाप्त होते हैं और अच्छे संस्कार बनते हैं।
प्राणायाम करने से पेट, छाती की मांसपेशियां मज़बूत बनती हैं और पेट के काफ़ी अंगों पर मालिश हो जाती है। अंगों के स्वस्थ और शक्तिशाली रहने से भोजन के पचने में बहुत लाभ होता है।
सांस भली प्रकार आने से शरीर में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में मिलने लगती है। दिल की कार्यक्षमता बढ़ती है और यह शक्तिशाली हो जाता है। इससे रक्त संचार ठीक तरह होता है। रक्त संचार के भली प्रकार कार्य करने से नाड़ीसंस्थान और ग्रन्थि संस्थान के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। शरीर में इन दोनों संस्थानों के कारण शरीर के सभी अंग ठीक तरह से काम करने लगते हैं। यह दोनों ही स्वास्थ्य का आधार हैं।
प्राणायाम से थकावट दूर हो जाती है। अधिक ऑक्सीजन के कारण रक्त साफ होता है। एक प्रसिद्ध कहावत है”आधा सांस, आधा जीवन।” पूरा तथा संतुलित सांस लेने से आयु लम्बी होती है। सांस के रोगों, गले के रोगों, जैसे गले पड़ना (Tonsils) से छुटकारा मिलता है।
आवाज़ मधुर तथा स्पष्ट हो जाती है। इच्छा शक्ति (Will Power) में वृद्धि होती है। गले, नाक, कान आदि के रोगों से मुक्ति मिलती है। इसके अतिरिक्त चेहरा प्रभावशाली आंखें साफ हो जाती हैं। सुषुम्ना-नाड़ी के साफ हो जाने से भूख लगने लगती है। स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
प्रश्न 3.
भुजंगासन और सर्वांगासन की विधि और लाभ बताओ।
उत्तर-
भुजंगासन (Bhujangasana)—इसमें चित्त लेटकर धड़ को ढीला किया जाता है।
भुजंगासन की विधि (Technique of Bhujangasana)-इसे सर्पासन भी कहते हैं।
इसमें शरीर की स्थिति सर्प के आकार जैसी होती है। सर्पासन करने के लिए भूमि पर पेट के बल लेटें। दोनों हाथ कन्धों के बराबर रखो। धीरे-धीरे टांगों को अकड़ाते हुए हथेलियों के बल छाती को इतना ऊपर उठाएं कि भुजाएं बिल्कुल सीधी हो जाएं। पंजों को अन्दर की ओर करो और सिर को धीरे-धीरे पीछे की ओर लटकाएं। धीरे-धीरे पहली स्थिति में लौट आएं। इस आसन को तीन से पांच बार करें।
भुजंगासन
लाभ (Advantages)—
- भुजंगासन से पाचन शक्ति मिलती है।
- जिगर और तिल्ली के रोगों से छुटकारा मिलता है।
- रीढ़ की हड्डी और मांसपेशियां मज़बूत बनती हैं।
- कब्ज़ दूर होती है।
- बढ़ा हुआ पेट अन्दर को धंसता है।
- फेफड़े शक्तिशाली होते हैं।
सर्वांगासन (Sarvangasana)—इसमें कन्धों पर खड़ा हुआ जाता है।
सर्वांगासन की विधि (Technique of Saravangasana)-सर्वांगासन में शरीर की स्थिति अर्द्ध हल आसन की भांति होती है। इस आसन के लिए शरीर को सीधा करके पीठ के बल जमीन पर लेट जाएं। हाथों को जंघाओं के बराबर रखें। दोनों पांवों को एक बार उठाकर हथेलियां द्वारा पीठ को सहारा देकर कुहनियों को ज़मीन पर टिकाएं। सारे शरीर को सीधा रखें। शरीर का भार कन्धों और गर्दन पर रहे। ठोडी कण्ठकूप से लगी रहे। कुछ समय इस स्थिति में रहने के पश्चात् धीरेधीरे पहली स्थिति में आएं। आरम्भ में आसन का समय बढ़ाकर 5 से 7 मिनट तक किया जा सकता है। जो व्यक्ति किसी कारण शीर्षासन नहीं कर सकते उन्हें सर्वांगासन करना चाहिए।
सर्वांगासन
लाभ—
- इस आसन से कब्ज दूर होती है, भूख खूब लगती है।
- बाहर को बढ़ा हुआ पेट अन्दर की ओर धंसता है।
- शरीर के सभी अंगों में चुस्ती आती है।
- पेट की गैस नष्ट होती है।
- रक्त संचार तेज़ और शुद्ध होता है।
- बवासीर के रोग से छुटकारा मिलता है।