Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
प्रजातन्त्र क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
(What is democracy ? Explain.)
उत्तर-
लोकतन्त्र का अर्थ (Meaning of Democracy)-आधुनिक युग प्रजातन्त्र का युग है। संसार के अधिकांश देशों में प्रजातन्त्र को अपनाया गया है। अधिकांश साम्यवादी देशों में साम्यवादी दल की तानाशाही समाप्त करके लोकतन्त्र की स्थापना की गई है। प्रजातन्त्र का अर्थ है वह शासन प्रणाली जिसमें राज्य की सत्ता प्रजा अर्थात् जनता के हाथ में हो। अरस्तु ने इसे बहुतन्त्र या शुद्ध जनतन्त्र (Polity) कहा है और इसे ही सर्वोत्तम शासन बताया है। यह ग्रीक भाषा के दो शब्दों डिमोज (Demos) और क्रेटिया (Cratia) से मिल कर बना है। डिमोज का अर्थ है ‘लोक’ और क्रेटिया का अर्थ है शक्ति या ‘सत्ता’। इसलिए डैमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ वह शासन है जिसमें शक्ति या सत्ता लोगों के हाथों में हो। दूसरे शब्दों में, प्रजातन्त्र सरकार का अर्थ है प्रजा का शासन।
लोकतन्त्र की मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-
- प्रो० डायसी (Prof. Dicey) का कहना है कि, “प्रजातन्त्र ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासक वर्ग समाज का अधिकांश भाग हो।” (“Democracy is a form of government in which the governing body is comparatively a large fraction of the entire nation.”)
- प्रो० सीले (Prof. Seeley) के विचारानुसार, “प्रजातन्त्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।” (“Democracy is a government in which everyone has a share.”)
- ग्रीक लेखक हैरोडोटस (Herodotus) का कहना है कि, “प्रजातन्त्र ऐसा शासन है जिसमें सर्वोच्च सत्ता समस्त जाति को प्राप्त हो।” (“Democracy is that form of government in which the supreme power of the State is in the hands of the community as a whole.”)
- प्रजातन्त्र की बहुत ही सरल, सुन्दर तथा लोकप्रिय परिभाषा अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन (Abraham Lincoln) ने इस प्रकार दी है कि, “प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।” (“Democracy is a government of the people, by the people and for the people.”)
उपर्युक्त परिभाषाओं के फलस्वरूप हम यह कह सकते हैं कि प्रजातन्त्र एक ऐसी सरकार को कहा जाता है जिसमें जनता को राजसत्ता का अन्तिम स्रोत समझा जाता है और जनता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से या अपने प्रतिनिधियों द्वारा सरकार के कार्यों में भाग लेती हो, परन्तु श्री गुरमुख निहाल सिंह के शब्दों के अनुसार न तो जनता तथा न ही उसमें से अधिक संख्या शासन का संचालन कर सकती है और न ही उनमें शासन करने की योग्यता और निपुणता होती है। जिस बात की जनता से प्रजातन्त्र में मांग की जाती है वह है योग्य प्रतिनिधियों का चुनाव करना, शासन तथा प्रबन्ध की नीतियों सम्बन्धी उचित और अनुचित का निर्णय करना-शासन तथा उसके चलाने के लिए अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के कार्यों के सम्बन्ध में सावधान रहना आदि।
प्रजातन्त्र की विशेषताएं (Characteristics of Democracy)-प्रजातन्त्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं
- जनता की प्रभुसत्ता-प्रजातन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।
- जनता का शासन-प्रजातन्त्र में शासन जनता द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर चलाया जाता है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।
- जनता का हित-प्रजातन्त्र में शासन जनता के हित के लिए चलाया जाता है।
- समानता-समानता प्रजातन्त्र का मूल आधार है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक मनुष्य को समान समझा जाता है। जन्म, जाति, शिक्षा, धन आदि के आधार पर मनुष्यों में भेद-भाव नहीं किया जाता। सभी मनुष्यों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। कानून के सामने सभी व्यक्ति समान होते हैं।
- शासन में भाग लेने का अधिकार-प्रजातन्त्र में प्रत्येक नागरिक को शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त होता है।
- स्वतन्त्रता-सभी नागरिकों को स्वतन्त्रता के अधिकार प्राप्त होते हैं। प्रत्येक नागरिक को वोट देने का अधिकार, चुने जाने का अधिकार, सरकार की आलोचना करने का अधिकार, अपने विचार प्रकट करने का अधिकार इत्यादि प्राप्त होते हैं।
- कानून के समक्ष समानता-प्रजातन्त्र में कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं होता। कानून के सामने सभी व्यक्ति समान होते हैं।
- सरकार की आलोचना करने का अधिकार-प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त होता है।
- मौलिक अधिकार-प्रजातन्त्र में नागरिकों को मौलिक अधिकार प्राप्त होते हैं जिनकी रक्षा न्यायाधीशों द्वारा की जाती है।
- स्वतन्त्र न्यायपालिका-प्रजातन्त्र में स्वतन्त्र न्यायपालिका का होना आवश्यक है ताकि लोगों के अधिकारों की रक्षा की जा सके और सरकार को तानाशाही बनने से रोका जा सके।
- राजनीतिक दल-बिना राजनीतिक दलों के प्रजातन्त्र को सफल नहीं बनाया जा सकता। लोकतन्त्र का आधार जनमत होता है और राजनीतिक दल जनमत को संगठित करते हैं। जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है वह दल शासन चलाता है और अन्य दल विरोधी दल के रूप में कार्य करते हैं।
- धर्म-निरपेक्षता-प्रजातन्त्रीय राज्य का धर्म-निरपेक्ष होना आवश्यक है जिसमें किसी विशेष धर्म को विशेष स्थिति प्राप्त नहीं होनी चाहिए तथा सभी धर्मों के लोगों को पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए।
- वयस्क मताधिकार-प्रजातन्त्रीय सरकार में वयस्क मताधिकार लागू किया जाता है। प्रजातन्त्र में मताधिकार प्राप्त करते समय जन्म, जाति, रंग, नसल, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता।
प्रश्न 2.
प्रजातन्त्र के गुणों और दोषों की व्याख्या करें। (Discuss the merits and demerits of democracy.)
उत्तर-
प्रजातन्त्र के गुण (Merits of Democracy)-
प्रजातन्त्र में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं
1. यह सर्वसाधारण के हितों की रक्षा करता है (It Safeguards the Interest of the Common Man)प्रजातन्त्र की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें राज्य के किसी विशेष वर्ग के हितों की रक्षा न करके समस्त जनता के हितों की रक्षा की जाती है। प्रजातन्त्र में शासक सत्ता को एक अमानत मानते हैं और उसका प्रयोग सार्वजनिक कल्याण के लिए किया जाता है। इसीलिए अब्राहम लिंकन ने कहा था, प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।
2. यह जनमत पर आधारित है (It is based on Public Opinion)—प्रजातन्त्र शासन जनमत पर आधारित है अर्थात् शासन जनता की इच्छानुसार चलाया जाता है। जनता अपने प्रतिनिधियों को निश्चित अवधि के लिए चुनकर भेजती है। यदि प्रतिनिधि जनता की इच्छानुसार शासन नहीं चलाते तो उन्हें दोबारा नहीं चुना जाता है। इस शासन प्रणाली में सरकार जनता की इच्छाओं की ओर विशेष ध्यान देती है।
3. यह समानता के सिद्धान्त पर आधारित है (It is based on the Principal of Equality)—प्रजातन्त्र में सभी नागरिकों को समान माना जाता है। किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म, लिंग के आधार पर कोई विशेष अधिकार नहीं दिए जाते। प्रत्येक वयस्क को बिना भेदभाव के मतदान, चुनाव लड़ने तथा सार्वजनिक पद प्राप्त करने का समान अधिकार प्राप्त होता है। सभी मनुष्यों को कानून के सामने समान माना जाता था।
4. यह स्वतन्त्रता तथा बन्धुता पर आधारित है (It is based on Liberty and Fraternity)—प्रजातन्त्र सरकार में नागरिकों को जितनी स्वतन्त्रता प्राप्त होती है उतनी अन्य किसी सरकार से प्राप्त नहीं होती। नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए जाते हैं ताकि नागरिक अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकें। चूंकि प्रजातन्त्र में स्वतन्त्रता तथा समानता का वातावरण होता है, इसलिए नागरिकों में बन्धुता की भावना उत्पन्न होती है। एक नागरिक दूसरे को भाई समझता है और वे परस्पर सहयोग से कार्य करते हैं।
5. स्थायी तथा उत्तरदायी शासन (Stable and Responsible Government)—प्रजातन्त्र में शासन जनमत पर आधारित होता है। इसलिए शासन में शीघ्रता से परिवर्तन नहीं आ पाता है। स्थायी शासन के साथ-साथ सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। सरकार सदा जनमत के अनुसार कार्य करती है। सरकार जनता की नौकर होती है और जिस तरह नौकर का कर्त्तव्य अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करना होता है, उसी तरह प्रजातन्त्र में शासकों का कर्तव्य जनता की इच्छाओं की पूर्ति करना होता है।
6. दृढ़ तथा कुशल शासन-व्यवस्था (Strong and Efficient Government)—प्रजातन्त्र में शासन दृढ़ तथा कुशल होता है। प्रजातन्त्र में शासकों को जनता का समर्थन प्राप्त होता है, जिस कारण वे अपने निर्णयों को दृढ़ता से लागू करते हैं। शासकों पर जनता का नियन्त्रण होता है और वे अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। इससे शासक अधिक कुशलता से कार्य करते हैं।
7. जनता को राजनीतिक शिक्षा मिलती है (People get Political Education)-प्रजातन्त्र में नागरिकों को अन्य शासन प्रणालियों की अपेक्षा अधिक राजनीतिक शिक्षा मिलती है। प्रजातन्त्र में चुनावों में प्रत्येक राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों के लिए प्रचार करते हैं और अपनी नीतियों की घोषणा करते हैं। देश की समस्याओं को जनता के सामने रखा जाता है और प्रत्येक राजनीतिक दल इन समस्याओं को सुलझाने के लिए अपने सुझाव जनता के सामने पेश करते हैं। जनता को इस तरह राजनीतिक शिक्षा मिलती है और साधारण नागरिक भी शासन में रुचि लेने लगता है।
8. क्रान्ति का डर नहीं (No fear of Revolution)—प्रजातन्त्र में क्रान्ति की सम्भावना बहुत कम होती है। प्रजातन्त्र में सरकार जनता की इच्छानुसार कार्य करती है। वास्तव में जनता ही शासन नीतियों को निर्धारित करती है। यदि सरकार जनता की इच्छाओं के अनुसार शासन न चलाए तो जनता सरकार को बदल सकती है। इससे क्रान्ति की सम्भावना नहीं रहती है।
9. यह देशभक्ति या राष्ट्रीय एकता की भावना में वृद्धि करता है (It promotes the spirit of patriotism and national unity)-प्रजातन्त्र जनता में देश भक्ति तथा राष्ट्रीय एकता की भावना उत्पन्न करती है। प्रजातन्त्र में जनता यह समझती है कि यह सरकार उनकी अपनी है, इसलिए उन्हें इसको पूरा सहयोग देना चाहिए। जनता राष्ट्र को अपना राष्ट्र समझती है और देश की रक्षा के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान करने को तैयार रहती है।
प्रजातन्त्र में सभी नागरिकों को समान अधिकार तथा स्वतन्त्रताएं प्राप्त होती हैं। सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का पूरा अवसर दिया जाता है इससे नागरिकों में बन्धुता की भावना उत्पन्न होती है जिससे राष्ट्रीय एकता का विकास होता है।
10. यह राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करता है (It builds National Character)-जे० एस० मिल के मतानुसार प्रजातन्त्र की मुख्य विशेषता जनता के चरित्र को सुन्दर तथा स्वच्छ बनाना है। प्रजातन्त्र जनता का अपना शासन होता है जिससे मनुष्यों में आत्मनिर्भरता, निर्भीकता तथा स्वावलम्बन के गुणों को बढ़ावा मिलता है। स्वतन्त्रता तथा स्वशासन से न केवल मनुष्य का चरित्र-निर्माण होता है बल्कि इससे राष्ट्रीय चरित्र का भी निर्माण होता है।
11. व्यक्ति के जीवन का पूर्ण विकास (Fullest Development of the Individual)-राज्य का उद्देश्य व्यक्ति के जीवन का विकास करना है और इस उद्देश्य की पूर्ति प्रजातन्त्र में ही हो सकती है। इसका कारण यह है कि शासन प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति को अधिक-से-अधिक अधिकार और स्वतन्त्रता प्राप्त होती है जिनका प्रयोग करके वह अपनी इच्छानुसार अपने जीवन का सर्वोत्तम विकास कर सकता है। यह बात अन्य किसी शासन-प्रणाली में सम्भव नहीं
12. उदारवादी सरकार (Liberal Government)—प्रजातन्त्र में सरकार उदारवादी होती है जिस कारण देश की बदलती परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक सुधार सम्भव हो सकते हैं।
13. कला, विज्ञान तथा संस्कृति में अधिक वृद्धि (Better progress in Art, Science and Literature)प्रजातन्त्र में कला, विज्ञान तथा संस्कृति का अच्छा विकास होता है क्योंकि नागरिकों को किसी प्रकार के प्रतिबन्धों के अधीन काम नहीं करना पड़ता।
14. संकटकाल में प्रजातन्त्र सरकार सर्वोत्तम होती है (In time of Emergency, Democratic Government is the Best)-दो महायुद्धों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि संकटकाल में प्रजातन्त्र सरकार तानाशाही से अधिक अच्छी है। तानाशाही में शासन की शक्ति एक व्यक्ति के पास होती है और जनता को शासन के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं होती जिसका परिणाम यह होता है कि यदि संकटकाल में शासक की मृत्यु हो जाए तो जनता हतोत्साहित हो जाती है। द्वितीय महायुद्ध में हिटलर और मुसोलिनी के हट जाने से जर्मनी और इटली की ऐसी ही दशा हुई। परन्तु प्रजातन्त्र में यदि एक नेता किसी कारण हट जाता है तो अन्य नेता शासन की बागडोर सम्भाल लेता है। सरकार जनता के सहयोग एवं समर्थन से बड़े-से-बड़े संकट का मुकाबला कर सकती है।
15. सभी शासन प्रणालियों में उत्तम (Best among all fiilms of Governments)-प्रजातन्त्र अन्य शासन प्रणालियों से उत्तम है क्योंकि लोकतन्त्र में सभी व्यक्तियों की ३-छाओं की ओर ध्यान दिया जाता है। इस सम्बन्ध में लावेल (Lowell) ने लिखा है, “एक पूर्ण लोकतन्त्र में कोई भी यह शिकायत नहीं कर सकता कि उसे अपनी बात कहने का अवसर नहीं मिला।”
प्रजातन्त्र के दोष (Demerits of Democracy) –
प्रजातन्त्र में जहां अनेक गुण पाए जाते हैं वहां दूसरी ओर इसमें अनेक दोष भी पाए जाते हैं। प्रजातन्त्र में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-
1. यह अज्ञानियों, अयोग्य तथा मूों का शासन है (It is the Government of Ignorant, Incapable and Fools)-प्रजातन्त्र को अयोग्यता की पूजा (Cult of Incompetence) बताया जाता है। इसका कारण यह है कि जनता में अधिकतर व्यक्ति अज्ञानी, अयोग्य तथा मूर्ख होते हैं। सर हेनरी मेन (Sir Henry Maine) का कहना है, “प्रजातन्त्र अज्ञानी और बुद्धिहीन व्यक्तियों का शासन है।”
2. यह गुणों के स्थान पर संख्या को अधिक महत्त्व देता है (It gives Importance of Quantity rather than to Quality)-प्रजातन्त्र में गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से किया जाता है। यदि किसी विषय को 50 मूर्ख ठीक कहें और 49 बुद्धिमान ग़लत कहें तो मूों की बात मानी जाएगी। समाज में मूल् तथा अज्ञानियों की संख्या अधिक होने के कारण उनके प्रतिनिधियों को ही बहुमत प्राप्त होता है। इस प्रकार प्रजातन्त्र में बहुमत के शासन को मूल् का शासन भी कहा जा सकता है।
3. यह उत्तरदायी शासन नहीं है (It is not a Responsible Government)—प्रजातन्त्र सैद्धान्तिक तौर पर उत्तरदायी शासन है, परन्तु व्यवहार से यह अनुत्तरदायी है। वास्तव में प्रजातन्त्र में नागरिक चुनाव वाले दिन ही सम्प्रभु होते हैं। चुनाव से पहले बड़े-बड़े नेता साधारण नागरिक के पास वोट मांगने आते हैं, परन्तु चुनाव के पश्चात् वे जनता की इच्छाओं की परवाह नहीं करते। जनता अपने प्रतिनिधियों का अगले चुनाव से पहले कुछ नहीं बिगाड़ सकती, जिससे प्रतिनिधि जनता की इच्छाओं के प्रति लापरवाह हो जाते हैं।
4. राजनीतिक दलों के अवगुण (Defects of Political Parties)—प्रजातन्त्र में राजनीतिक दलों के सभी अवगुण आ जाते हैं। राजनीतिक दलों का नागरिकों के चरित्र तथा राष्ट्रीय चरित्र का बुरा प्रभाव पड़ता है। राजनीतिक दल अपने सदस्यों से वफादारी की मांग करते हैं जिससे उनकी स्वतन्त्रता नष्ट हो जाती है। राजनीतिक दल एकता को भी नष्ट करते हैं क्योंकि सारा देश उतने भागों में बंट जाता है जितने राजनीतिक दल होते हैं।
5. यह बहुत खर्चीला है (It is Highly Expensive)—प्रजातन्त्र शासन प्रणाली बहुत खर्चीली है। प्रजातन्त्र में निश्चित अवधि के पश्चात् संसद् के सदस्यों का चुनाव होता है। प्रजातन्त्र में आम चुनावों के प्रबन्ध पर बहुत धन खर्च हो जाता है। मन्त्रियों के वेतन और भत्तों पर जनता का बहुत-सा धन खर्च होता रहता है। मन्त्री देश के धन को बिना सोचे-समझे खर्च करते रहते हैं।
6. यह अमीरों का शासन है (It is a Government of the Rich)—प्रजातन्त्र कहने में तो प्रजा का शासन है परन्तु कस्तव में अमीरों का शासन है। चुनाव लड़ने के लिए धन की आवश्यकता होती है। चुनावों में लाखों रुपये खर्च होते हैं। इसलिए या तो अमीर व्यक्ति ही चुनाव लड़ सकते हैं या उनकी सहायता से ही चुनाव लड़ा जा सकता है। राजनीतिक दल भी चुनाव लड़ने के लिए पूंजीपतियों से पैसा लेते हैं।
7. बहुमत की तानाशाही (Dictatorship of Majority)-प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से किया जाता है जिस कारण प्रजातन्त्र में बहुमत की तानाशाही की स्थापना हो जाती है। मन्त्रिमण्डल उसी दल का बनता है जिस दल को विधानमण्डल में बहुमत प्राप्त होता है। जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है वह अगले चुनाव तक मनमानी करता है।
8. यह वास्तव में बहुमत का शासन नहीं है (In Reality it is not a Rule of Majority)-आलोचकों का कहना है कि प्रजातन्त्र वास्तव में बहुमत का शासन नहीं है। यह देखा गया है कि अधिकतर व्यक्ति शासन में रुचि नहीं लेते और न ही अपने मत का प्रयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त जो दल सरकार बनाता है उसके समर्थन में डाले गए वोट कुल डाले गए वोटों का बहुमत नहीं होता।
9. यह राष्ट्र की सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक उन्नति को रोकता है (It Checks the Cultural and Scientific Development of the Nation)—प्रजातन्त्र में राजनीति पर बहुत ज़ोर दिया जाता है पर साहित्य, कला, विज्ञान आदि की उन्नति की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। ____10. अस्थायी तथा कमज़ोर शासन (Unstable and Weak Government)-जिन देशों में बहु-दलीय प्रणाली होती है वहां पर सरकारें जल्दी-जल्दी बदलती हैं। बहु-दलीय प्रणाली के अन्तर्गत किसी भी दल को बहुमत प्राप्त न होने के कारण मिली-जुली सरकार बनायी जाती है जो किसी भी समय टूट सकती है। मिली-जुली सरकार अस्थायी होने के कारण कमज़ोर भी होती है।
11. नैतिकता का स्तर गिर जाता है (The Standard of Morality is Lowered Down)-राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए झूठ, बेईमानी तथा रिश्वतखोरी का सहारा लेते हैं। चुनाव जीतने के पश्चात् मन्त्री सभी साधनों से अधिक-से-अधिक धन इकट्ठा करने का प्रयत्न करते हैं। इस तरह प्रजातन्त्र में नैतिकता का महत्त्व बहुत कम हो जाता
12. संकटकाल का मुकाबला करने में कमज़ोर (It is weak in time of Emergency)—किसी भी संकट का सामना करने के लिए एकता और शक्ति की ज़रूरत होती है। संकटकाल के समय निर्णय शीघ्र लेने होते हैं और उन्हें दृढ़तापूर्वक लागू करना आवश्यक होता है। परन्तु प्रजातन्त्र में निर्णय शीघ्र नहीं लिए जाते और न ही दृढ़ता से लागू किए जाते हैं। तानाशाही सरकारें संकटकाल का मुकाबला प्रजातन्त्र की अपेक्षा अधिक अच्छी प्रकार कर सकती हैं।
13. प्रजातन्त्र एक कल्पना है (Democracy is a Myth)—प्रजातन्त्र को कई लेखक व्यावहारिक नहीं मानते और उसे केवल कल्पना कहते हैं। उनका कहना है कि जनता को शासन में भाग लेने का अधिकार वास्तविक नहीं होता। केवल वयस्कों को ही वोट देने का अधिकार मिलता है और चुनाव के बाद बहुमत दल अपनी मनमानी करता है, मतदाताओं को कोई नहीं पूछता।
14. समातना का सिद्धान्त अप्राकृतिक है (Principle of Equality is Unnatural)—प्रजातन्त्र का मुख्य आधार समानता का सिद्धान्त है। परन्तु आलोचना के अनुसार समानता अप्राकृतिक है। प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान पैदा नहीं किया। जब प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान नहीं बनाया तो, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समानता कैसे स्थिर रह सकती है।
15. राजनीति एक व्यवसाय बन जाता है (Politics becomes a Profession)-प्रजातन्त्र में राजनीतिज्ञों का बोलबाला रहता है और उनका एक अलग वर्ग बन जाता है। ये लोग जनता को जोशीले भाषणों और झूठे वायदों से अपने पीछे लगा लेते हैं। आम व्यक्ति चालाक और स्वार्थी राजनीतिज्ञों की बातों में आ जाते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)-प्रजातन्त्र के लाभ भी हैं और दोष भी। परन्तु दोषों के होते हुए भी इस प्रणाली को आजकल सर्वोत्तम माना जाता है। यही एक शासन प्रणाली है जिस में लोगों को व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, राजनीतिक अधिकार, समानता, शासन की आलोचना करने और उसे प्रभावित करने का अवसर तथा अपने जीवन का विकास करने का अवसर सबसे अधिक मिलता है। मेजिनी का कथन है कि प्रजातन्त्र में, “सबसे अधिक बुद्धिमान और श्रेष्ठ व्यक्तियों के नेतृत्व में सर्वसाधारण की प्रगति सर्वसाधारण के द्वारा होती है।”
प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र से क्या अभिप्राय है ? प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की विशेष संस्थाओं की विवेचना करें।
(What do you understand by direct democracy ? Discuss the special institutions of direct democracy.)
उत्तर-
प्रजातन्त्र के दो रूप हैं-
- प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र तथा
- अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र।
1. प्रत्यक्ष या शुद्ध प्रजातन्त्र (Direct or Pure Democracy)-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र ही प्रजातन्त्र का शुद्ध या वास्तविक रूप है। जब जनता स्वयं कानून बनाए, राजनीति को निश्चित करे तथा सरकारी कर्मचारियों पर नियन्त्रण रखे, उस व्यवस्था को प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कहते हैं। समय-समय पर समस्त नागरिकों की सभा एक स्थान पर बुलाई जाती है
और उनमें सार्वजनिक मामलों पर विचार होता है तथा शासन सम्बन्धी प्रत्येक बात का निर्णय होता है। प्राचीन समय में ऐसे प्रजातन्त्र विशेष रूप से यूनान और रोम में विद्यमान थे, परन्तु आधुनिक युग में बड़े-बड़े राज्य हैं जिनकी जनसंख्या भी बहुत अधिक होती है और भू-भाग भी लम्बा-चौड़ा है। नागरिकों की संख्या भी पहले से अधिक हो गई है। आज प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र सम्भव नहीं है। रूसो (Rousseau) प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का ही पुजारी था। इसलिए तो उसने कहा कि इंग्लैंड के लोग केवल चुनाव वाले दिन ही स्वतन्त्र होते हैं।
2. अप्रत्यक्ष या प्रतिनिधि प्रजातन्त्र (Indirect or Representative Democracy)-अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में प्रभुत्व शक्ति जनता के पास होती है, परन्तु जनता उसका प्रयोग स्वयं न करके अपने प्रतिनिधियों द्वारा करती है। अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधि चुन लेती है और वे प्रतिनिधि जनता की इच्छानुसार कानून बनाते तथा शासन करते हैं। इन प्रतिनिधियों का चुनाव एक निश्चित अवधि के लिए होता है। भारत में ये प्रतिनिधि पांच वर्ष के लिए चुने जाते हैं। ब्लंटशली (Bluntschli) के शब्दों में, “प्रतिनिधि प्रजातन्त्र का यह नियम है, कि जनता अपने अधिकारियों द्वारा शासन करती है और प्रतिनिधियों द्वारा कानून का निर्माण करती है तथा प्रशासन पर नियन्त्रण रखती है।”
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की संस्थाएं (Institutions of Direct Democracy)—प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र पूर्ण रूप से लागू करना तो आज के युग में सम्भव नहीं, परन्तु अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के दोषों को कम करने के लिए कुछ देशों में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की कुछ संस्थाएं अपनाई गई हैं। इसके लिए स्विट्ज़रलैंड बड़ा प्रसिद्ध है। स्विट्ज़रलैंड को प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का घर (Home of Direct Democracy) कहा जाता है। इन संस्थाओं द्वारा नागरिकों को कानून बनवाने और संसद् के कानूनों को लागू होने से रोकने का अधिकार दिया जाता है। स्विट्ज़रलैण्ड के कुछ कैंटनों (Cantons) में समस्त मतदाता एक स्थान पर एकत्र होकर कानून आदि बनाते हैं तथा सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति करते हैं। परन्तु समस्त देशों में ऐसा सम्भव नहीं। प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की आधुनिक संस्थाएं कुछ देशों में मिलती हैं जैसे प्रस्तावाधिकार (Initiative), जनमत संग्रह (Referendum), प्रत्यावर्तन या वापसी (Recall) तथा लोकमत संग्रह (Plebiscite), इनका सविस्तार वर्णन दिया जाता है-
1. प्रस्तावाधिकार (Initiative)-इसके द्वारा मतदाताओं को अपनी इच्छा के अनुसार कानून बनाने का अधिकार होता है। यदि मतदाताओं की एक निश्चित संख्या किसी कानून को बनवाने की मांग करे तो संसद् अपनी इच्छा से उस मांग को रद्द नहीं कर सकती। यदि संसद् उस प्रार्थना के अनुसार कानून बना दे तो सबसे अच्छी बात है। यदि संसद् उस मांग से सहमत न हो तो वह समस्त जनता की राय लेती है और यदि मतदाता बहुमत से उस मत का समर्थन कर दें तो संसद् को वह कानून बनाना ही पड़ता है। स्विट्ज़रलैंड में एक लाख मतदाता कोई भी कानून बनाने के लिए संसद् को कह सकते हैं।
2. जनमत संग्रह (Referendum)—जनमत संग्रह द्वारा संसद् के बनाए हुए कानून लोगों के सामने रखे जाते हैं। वे कानून तभी पास हुए समझे जाते हैं यदि मतदाताओं का बहुमत उनके पक्ष में हो, नहीं तो वह कानून रद्द हो जाता है। इस प्रकार यदि संसद् कोई ऐसा कानून बना भी दे जिसे जनता अच्छा न समझती हो तो उसे लागू होने से रोक सकती है। स्विट्ज़रलैण्ड में यह नियम है कि कानूनों को लागू करने से पहले जनता की राय ली जाती है। वहां पर जनमतसंग्रह दो प्रकार के होते हैं-(i) अनिवार्य जनमत संग्रह (Compulsory Referendum) तथा (ii) ऐच्छिक जनमत संग्रह (Optional Referendum) । महत्त्वपूर्ण कानून लागू होने से पहले जनमत संग्रह के लिए भेजा जाता है। यदि बहुमत कैन्टनों में तथा कुल मतदाताओं का बहुमत उनके पक्ष में हो तो, उसे लागू कर दिया जाता है अन्यथा वह कानून रद्द हो जाता है। ऐच्छिक जनमत संग्रह में संसद् की इच्छा होती है कि वह साधारण कानून को लागू होने से पहले जनता की राय के लिए भेजे या न भेजे । ऐसा साधारण कानून पर होता है। परन्तु यदि 50,000 मतदाता इस बात की मांग करें कि कानून पर जनमत-संग्रह कराया जाए तो वह कानून भी जनता की राय के लिए अवश्य भेजा जाता है। ऐसे कानून पर जब बहुमत का समर्थन मिल जाए तभी वह लागू होता है। रूस में ऐच्छिक जनमत-संग्रह का सिद्धान्त अपनाया गया है। 23 अप्रैल, 1993 को रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसीन ने अपनी आर्थिक सुधार नीतियों के पक्ष में जनमत-संग्रह करवाया और लोगों ने भारी बहुमत से उनके पक्ष में मतदान किया।
3. वापसी (Recall)-इस नियम द्वारा जनता को अपने प्रतिनिधि अवधि समाप्त होने से पहले भी वापस बुलाने और दूसरा प्रतिनिधि चुन कर भेजने का अधिकार दिया जाता है। इस अधिकार द्वारा मतदाताओं की एक निश्चित संख्या अपने प्रतिनिधि को वापस बुलाने का प्रस्ताव रख सकती है। इससे प्रतिनिधियों पर मतदाताओं का स्थायी प्रभाव बना रहता है और वे कभी भी उनकी इच्छा की अवहेलना नहीं कर सकते। अमेरिका के कुछ राज्यों तथा स्विट्जरलैंड में यह नियम लागू है।
4. लोकमत संग्रह (Plebiscite)-लोकमत संग्रह राजनीतिक प्रश्न पर होता है। कानूनों पर जनता की राय जनमतसंग्रह कहलाती है। पाकिस्तान यह मांग करता है कि कश्मीर में लोकमत-संग्रह कराया जाए कि वहां के लोग भारत में रहना चाहते हैं या पाकिस्तान में ? 1935 में लोकमत-संग्रह के आधार पर ही सार (Saar) को जर्मनी में मिलाया गया। उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्तों (N.W.F.P.) को भी पाकिस्तान में लोकमत संग्रह के आधार पर ही मिलाया गया था। लोकमत-संग्रह का एक अन्य रूप भी है जिसे मतसंख्या (Opinion Poll) कहते हैं। सन् 1967 में गोवा, दमन और दियू में यह जानने के लिए कि वहां के लोग संघीय क्षेत्र ही चाहते हैं या महाराष्ट्र अथवा गुजरात में मिलना चाहते हैं। लोकमत संग्रह करवाया गया और लोगों ने संघीय क्षेत्र में बने रहने की ही इच्छा व्यक्त की।
निष्कर्ष (Conclusion)—प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की संस्थाएं देखने में बहुत अच्छी प्रतीत होती हैं। ये संस्थाएं अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के कुछ दोषों को दूर करती हैं। परन्तु सभी देशों में इन संस्थाओं का संचालन ठीक नहीं हो सकता। इनका सफलतापूर्वक प्रयोग तो ऐसे राज्यों में हो सकता है जो छोटे हों और जहां लोग पढ़े-लिखे हों।
प्रश्न 4.
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र के बीच अन्तर बताइए।
(Distinguish between Direct and Indirect Democracy.)
उत्तर-
आधुनिक युग प्रजातन्त्र का युग है। प्रजातन्त्र एक सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली मानी जाती है। प्रजातन्त्र एक ऐसी सरकार को कहा जाता है जिसमें जनता को राजसत्ता का अन्तिम स्रोत समझा जाता है। प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता के द्वारा सरकार है।
प्रजातन्त्र के दो रूप हो सकते हैंप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र (Direct Democracy)-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता प्रत्यक्ष रूप में शासन में भाग लेती है।
अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र (Indirect Democracy)-अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में शासन जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के बीच अन्तर को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
- प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में लोग स्वयं शासन में प्रत्यक्ष रूप में भाग लेते हैं, जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में शासन जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है।
- प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को शासक समझता है, जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में केवल प्रतिनिधि ही शासक समझते जाते हैं।
- प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता स्वयं कानून के निर्माण में भाग लेती है। इसलिए जनता अपने ही बनाए गए कानूनों का अधिक पालन करती है जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता स्वयं कानून निर्माण में भाग लेने के कारण कानूनों के पालन की मात्रा इतनी अधिक नहीं होती।
- प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र की अपेक्षा जनता को अधिक राजनीति शिक्षण प्राप्त होता है।
- प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र जनता की प्रभुसत्ता पर आधारित है। प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में ही जनता अपनी इच्छा को ठीक ढंग से प्रकट कर सकती है। अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधियों द्वारा अपनी इच्छा को ठीक ढंग से प्रकट नहीं कर सकती और न ही अपनी सत्ता का ठीक ढंग से प्रयोग कर सकती है।
- प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में मतदाताओं का अपने प्रतिनिधियों के साथ समीप का सम्बन्ध बना रहता है, परन्तु अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में चुनाव के पश्चात् प्रायः यह समाप्त हो जाता है।
- प्रत्यक्ष लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों का महत्त्व इतना अधिक नहीं होता जितना कि अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों का महत्त्व होता है।
- यद्यपि प्रत्यक्ष लोकतन्त्र अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र की अपेक्षा अधिक लोकतन्त्रीय होता है, परन्तु प्रत्यक्ष लोकतन्त्र जनसंख्या और आकार की दृष्टि से बड़े-बड़े राज्यों में व्यावहारिक नहीं है जबकि अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र एक व्यावहारिक व्यवस्था है।
प्रश्न 5.
उन शर्तों का उल्लेख कीजिए जो प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक हैं। (Describe the conditions which are necessary for the success of Democracy.)
अथवा
प्रजातन्त्र की सफलता के लिए किन-किन स्थितियों का होना आवश्यक है ? आपके विचार में भारत में वे कहां तक मौजूद हैं ?
(What conditions are necessary for the successful working of Democracy ? In your opinion, how far do they exist in India ?)
उत्तर-
प्रजातन्त्र शासन व्यवस्था सबसे उत्तम मानी जाती है, परन्तु वास्तव में यह ऐसा शासन है जो प्रत्येक देश में सफल नहीं हो सकता। यदि उपयुक्त वातावरण में लागू किया जाए तो इसके लाभ हैं, नहीं तो इसका बुरा परिणाम निकल सकता है। इसकी सफलता के लिए एक विशेष वातावरण चाहिए। द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् बहुत-से देशों ने लोकतन्त्र शासन को अपनाया, परन्तु इसमें से कई देशों में यह प्रणाली अधिक देर तक न चल पाई। इसका प्रमुख कारण यह था कि इन देशों में वह वातावरण और परिस्थितियां उपस्थित नहीं थीं जो कि प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक मानी जाती हैं। लोकतन्त्र के सफलतापूर्वक काम के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का होना आवश्यक समझा जाता है-
1. जागरूक नागरिकता (Englihtened Citizenship)-जागरूक नागरिकता प्रजातन्त्र की सफलता की पहली शर्त है। निरन्तर देख-रेख ही स्वतन्त्रता की कीमत है। (Eternal vigilance is the price of liberty.) नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने चाहिएं। सार्वजनिक मामलों पर हर नागरिक को सक्रिय भाग लेना चाहिए। राजनीतिक समस्याओं और घटनाओं के प्रति सचेत रहना चाहिए। राजनीतिक चुनाव में बढ़-चढ़ कर भाग लेना चाहिए आदि-आदि।
2. प्रजातन्त्र से प्रेम (Love for Democracy)—प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों के दिलों में प्रजातन्त्र के लिए प्रेम होना चाहिए। बिना प्रजातन्त्र के प्रेम के प्रजातन्त्र कभी सफल नहीं हो सकता।
3. शिक्षित नागरिक (Educated Citizens)—प्रजातन्त्र की सफलता के लिए शिक्षित नागरिकों का होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक प्रजातन्त्र शासन की आधारशिला है। शिक्षा से ही नागरिकों को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान होता है। शिक्षित नागरिक शासन की जटिल समस्याओं को समझ सकते हैं और उनको सुलझाने के लिए सुझाव दे सकते हैं।
4. स्थानीय स्व-शासन (Local Self-Government) प्रजातन्त्र की सफलता के लिए स्थानीय स्वशासन का होना आवश्यक है। स्थानीय संस्थाओं के द्वारा नागरिकों को शासन में भाग लेने का अवसर मिलता है। ब्राइस (Bryce) का कहना है कि लोगों में स्वतन्त्रता की भावना स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के बिना नहीं आ सकती। स्थानीय शासन को प्रशासनिक शिक्षा की आरम्भिक पाठशाला कहा जाता है। लॉर्ड ब्राइस (Lord Bryce) प्रजातन्त्र की सफलता के लिए स्थानीय स्वशासन को सर्वोत्तम स्कूल और गारंटी बताता है।
5. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा (Protection of Fundamental Rights)-प्रजातन्त्र में लोगों को कई तरह के मौलिक अधिकार दिए जाते हैं जिनके द्वारा वे शासन में भाग ले सकते हैं और अपने जीवन का विकास कर सकते हैं। इन अधिकारों की सुरक्षा संविधान द्वारा की जानी चाहिए ताकि कोई व्यक्ति या शासन उनको कम या समाप्त करके प्रजातन्त्र को हानि न पहुंचा सके।
6. आर्थिक समानता (Economic Equality)-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आर्थिक समातना का होना अति आवश्यक है। लॉस्की (Laski) के कथनानुसार, “आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतन्त्रता निरर्थक है।” राजनीतिक प्रजातन्त्र केवल एक हास्य का विषय बन जाता है यदि इससे पहले आर्थिक, प्रजातन्त्र को स्थापित न किया जाए। लोगों को वोट डालने के अधिकार से पहले पेट भर भोजन मिलना चाहिए।
7. सामाजिक समानता (Social Equality)—प्रजातन्त्र की सफलता के लिए सामाजिक समानता की भावना का होना आवश्यक है। समाज में धर्म, जाति, रंग आदि के आधार पर भेद-भाव नहीं होना चाहिए।
8. प्रेस की स्वतन्त्रता (Freedom of Press)—प्रेस को प्रजातन्त्र का पहरेदार (Watchdog of Democracy) कहा गया है। समाचार-पत्र सरकार की आलोचना करने के साथ-साथ लोगों को राजनीति की भी जानकारी देते हैं और उनको देश में होने वाली सभी घटनाओं से सूचित भी करते हैं। इन समाचार-पत्रों पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए, नहीं तो लोगों को ठीक जानकारी नहीं मिल सकेगी और सरकार की आलोचना भी न हो सकेगी।
9. आपसी सहयोग की भावना (Spirit of Mutual Co-operation)—वैसे तो सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में लोगों के आपसी सहयोग की आवश्यकता होती है, परन्तु लोकतन्त्र में इस भावना का विशेष महत्त्व है। यदि लोगों में फूट और एक-दूसरे के प्रति असहयोग की भावना होगी, तो प्रजातन्त्र शासन प्रणाली की सफलता असम्भव है।
10. सहनशीलता (Toleration)-लोगों के अन्दर सहनशीलता की भावना का होना भी प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक समझा जाता है। यदि लोगों में सहनशीलता की भावना न होगी तो वे शान्ति से एक-दूसरे की बात न सुनकर आपस में लड़ते-झगड़ते रहेंगे।
11. सुसंगठित राजनीतिक दल (Well-Organised Political Parties)-दलों का संगठन जाति, धर्म, प्रान्त के आधार पर न होकर आर्थिक तथा राजनीतिक आधारों पर होना चाहिए। जो दल आर्थिक तथा राजनीतिक आधारों पर संगठित होते हैं उनका उद्देश्य देश का हित होता है। यदि देश में दो दल हों तो बहुत अच्छा है। इंग्लैंड तथा अमेरिका में प्रजातन्त्र की सफलता का मुख्य कारण इन देशों की दो दलीय प्रणाली है।
12. विवेकी और ईमानदार नेता (Wise and Honest Leaders)-नेताओं को जनता का नेतृत्व करने में विवेक और ईमानदारी से काम लेना चाहिए। यदि नेता स्वार्थी और विवेकहीन होंगे तो नाव मंझधार में फंस जाएगी और प्रजातन्त्र असफल हो जाएगा। “प्रजातन्त्र में नेता ऐसे होने चाहिएं जो दृढ़ निर्णय ले सकें और जो वास्तविक योग्यता, असाधारण कार्य सम्पदा वाले और महान् चरित्रवान् हों।”
13. शान्ति और सुरक्षा (Peace and Order)-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए देश में शान्ति और सुरक्षा का वातावरण होना आवश्यक है। जिस देश में अशान्ति की व्यवस्था रहती है वहां पर नागरिक अपने व्यक्तित्व का विकास करने का प्रयत्न नहीं करते। युद्धकाल में न तो चुनाव हो सकते हैं और न ही नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। इसलिए प्रजातन्त्र की सफलता के लिए शान्ति की व्यवस्था का होना आवश्यक है।
14. न्यायपालिका की स्वतन्त्रता (Independence of Judiciary)—प्रजातन्त्र को सफल बनाने में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता भी आवश्यक है। स्वतन्त्र न्यायपालिका लोगों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखती है और लोग अपने अधिकारों का स्वतन्त्रता से प्रयोग कर सकते हैं।
15. लिखित संविधान (Written Constitution)-कुछ विद्वानों का विचार है कि प्रजातन्त्र की सफलता के लिए लिखित संविधान का होना भी आवश्यक है। लिखित संविधान में सरकार की शक्तियों का स्पष्ट वर्णन होता है जिसके कारण सरकार जनता पर अत्याचार नहीं कर सकती। जनता को भी सरकार की सीमाओं का पता होता है।
16. स्वतन्त्र चुनाव (Independent Election)-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि देश में चुनाव निष्पक्ष रूप से करवाये जाएं।
17. लोगों का उच्च नैतिक चरित्र (High Moral Character of the People)-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए लोगों का चरित्र बड़ा उच्च होना भी आवश्यक है। लोग ईमानदार, निःस्वार्थी, देश-भक्त तथा नागरिकता के गुणों से ओत-प्रोत होने चाहिएं।
18. सेना का अधीनस्थ स्तर (Subordinate Status of Army)-देश की सेना को सरकार के असैनिक अन्य (Civil Power) के अधीन रखा जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा तो सेना प्रजातन्त्रात्मक संस्थाओं की सबसे बड़ी विरोधी सिद्ध होगी।
19. स्वस्थ जनमत (Sound Public Opinion)-प्रजातन्त्रात्मक सरकार जनमत पर आधारित होती है, जिस कारण प्रजातन्त्र की सफलता के लिए स्वस्थ जनमत होना अति आवश्यक है।
20. अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व (Representation of Minorities) प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व दिया जाए। यदि अल्पसंख्यकों को संसद् में प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा सकता तो सदैव असन्तुष्ट रहेंगे। मिल (Mill) का कहना है कि “प्रजातन्त्र के लिए यह आवश्यक है कि अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो।”
क्या ये शर्ते भारत में विद्यमान हैं ? (Are these Conditions Present in India ?) –
यह प्रश्न बहुत-से लोगों के मन में उत्पन्न होता है कि क्या भारत में प्रजातन्त्र की सफलता के लिए उचित वातावरण है ? भारतवर्ष में प्रजातन्त्र की स्थापना के इतने वर्षों बाद भी बहुत-से लोगों का विचार है कि भारत प्रजातन्त्र के लिए उपर्युक्त नहीं है। जिन लोगों को इसमें सन्देह है कि भारत में प्रजातन्त्र सफल नहीं हो सकता है, उनका कहना है कि भारत में प्रजातन्त्र की सफलता के लिए उचित वातावरण नहीं है। भारतवर्ष में निम्नलिखित परिस्थितियों का अभाव है-
- सचेत नागरिकता का अभाव- भारत के नागरिक शासन में रुचि नहीं लेते और न ही अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करते हैं।
- अशिक्षित नागरिक-भारत के अधिकतर नागरिक अनपढ़ तथा गंवार हैं। अशिक्षित नागरिक चालाक नेताओं की बातों में आकर अपने मत का प्रयोग करके गलत प्रतिनिधियों को चुन लेते हैं।
- उच्च नैतिक स्तर का अभाव-भारत के नागरिकों का नैतिक स्तर ऊंचा नहीं है। आज कोई भी कार्य रिश्वत और सिफारिश के बिना नहीं होता है।
- आर्थिक असमानता-देश का धन कुछ ही लोगों के हाथ में एकत्रित है। लाखों बेरोजगार हैं जिन्हें दो समय भर पेट भोजन भी नहीं मिलता। गरीब व्यक्ति अपनी वोट को बेच देते हैं।
- सामाजिक असमानता–छुआछूत अभी व्यवहार में पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हुई। जात-पात का बहुत बोलबाला है।
- बहु-दलीय प्रणाली-भारत में बहुत-से दल विद्यमान हैं। रोज किसी नए दल की स्थापना हो जाती है। कई दल धार्मिक आधार पर संगठित हैं। कई दल हिंसात्मक साधनों में विश्वास करते हैं। बहु-दलीय प्रणाली के कारण केन्द्र में सरकारें बड़ी तेजी से बदलती रहती हैं। भारत में मई, 1996 से अप्रैल, 1999 तक बहु-दलीय प्रणाली के कारण चार प्रधानमन्त्रियों को त्याग-पत्र देना पड़ा।
- चुनावों में हिंसा-चुनावों में हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, जो लोकतन्त्र के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
इन सब बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में प्रजातन्त्र का भविष्य उज्ज्वल नहीं है। इसलिए कुछ लोगों का विचार है कि भारत में प्रजातन्त्र को समाप्त करके तानाशाही की स्थापना करनी चाहिए।
इसमें कोई शक नहीं कि भारत में वे सब बातें नहीं है जो प्रजातन्त्र को सफल बनाने में सहायक हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रजातन्त्र को समाप्त कर दिया जाए। भारत सरकार ने आरम्भ से ही ऐसे कार्य करने शुरू कर दिए हैं जिससे उचित वातावरण उत्पन्न हो जाए। शिक्षा के प्रचार की ओर विशेष ध्यान दिया गया। आर्थिक समानता को लाने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं अपनाई गई हैं। स्वशासन की स्थापना की गई है। पिछले सोलह आम चुनावों ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय जनता अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों को समझती है। भारतीय जनता में अब जाग्रति आ चुकी है। हमारे देश के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू ने लोकतन्त्र को सफल बनाने के लिए बहुत प्रयत्न किया। श्री लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान के हमले के समय देश का बहुत अच्छा नेतृत्व किया।
भारत में अब तक 16 आम चुनाव हो चुके हैं। भारत में प्रत्येक आम चुनाव ने सिद्ध कर दिया कि भारतीय जनता लोकतन्त्र में पूरी-पूरी श्रद्धा रखती है। भारत में प्रजातन्त्र के विकास और प्रगति के बारे में कोई शंका निराधार नहीं होगी। पाकिस्तान के साथ हुए 1965 और 1971 के युद्धों ने सिद्ध कर दिया कि भारतीय प्रजातन्त्र बहुत सबल है। भारतीय जनता में राजनीतिक परिपक्वता (Political Maturity) को देखते हुए कई विदेशी विद्वानों ने भी भारतीय प्रजातन्त्र के अच्छे स्वास्थ्य की गवाही दी है।
नि:संदेह भारतीय जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करना जानती है और प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्ते हैं। अन्त में, हम नि:संकोच यह कह सकते हैं कि भारत में लोकतन्त्रीय परम्पराओं की नींव दृढ़ होती जा रही है।
प्रश्न 6.
आप किस प्रकार की सरकार को समग्रवादी या अधिनायकवादी सरकार कहेंगे ? उदाहरण दें।
(Which government would you call a totalitarian government ? Give examples.)
अथवा अधिनायकवाद या तानाशाही क्या है ? संक्षेप में व्याख्या करें।
(What is dictatorship ? Explain briefly.)
उत्तर-
यद्यपि आधुनिक युग को प्रजातन्त्र का युग कहा जाता है, परन्तु वास्तविकता यह है कि यह युग अधिनायकतन्त्र का युग बनता जा रहा है। यह सत्य है कि सुन्दर व उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रजातन्त्र का होना अनिवार्य है, परन्तु आज संसार के कई देशों में तानाशाही पाई जाती है। लेटिन अमेरिका, अफ्रीका व एशिया के कई देशों में अधिनायकतन्त्र व्यवस्थाओं का बोलबाला है।
अधिनायकतन्त्र का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of Dictatorship)-तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है। अधिनायक अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता है और वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक शासन की शक्ति उसके हाथ में रहती है।
फोर्ड (Ford) ने तानाशाही की परिभाषा देते हुए कहा है, “तानाशाही राज्य के अध्यक्ष के द्वारा गैर कानूनी शक्तियां प्राप्त करना है।” (“Dictatorship is the assumption of extra legal authority by the Head of state.”Ford).
न्यूमैन (Newman) ने तानाशाही की परिभाषा करते हुए लिखा है कि, “तानाशाही एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का वह शासन है जिन्होंने राज्य में सत्ता पर नियन्त्रण कर लिया है। वह उस सत्ता का उपभोग बिना किसी रोक से करते हैं।”
अल्फ्रेड (Alfred) ने अधिनायकतन्त्र की बड़ी सुन्दर और व्यापक परिभाषा यों दी है : “अधिनायकतन्त्र उस एक व्यक्ति का शासन है जिसने स्तर और स्थिति को पैतृक अधिकार से प्राप्त न करके शक्ति या स्वीकृति सम्भवतः दोनों के मिश्रण द्वारा प्राप्त किया हो। उसके पास निरंकुश प्रभुसत्ता का होना अनिवार्य है अर्थात् यह समस्त राजनीतिक सत्ता का स्रोत है और उस सत्ता पर सीमा नहीं होनी चाहिए। वह शक्ति का प्रयोग कानून के द्वारा नहीं बल्कि स्वेच्छापूर्ण ढंग से आदेशों द्वारा करता है। अन्ततः उसकी सत्ता किसी निश्चित कार्यकाल तक सीमित नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इस प्रकार की सीमा निरंकुश शासन से मेल नहीं खाती है।”
अल्फ्रेड की तानाशाही की परिभाषा के विश्लेषण से निम्नलिखित बातें मालूम होती हैं-
- यह एक व्यक्ति का शासन है।
- यह शक्ति या स्वीकृति या दोनों के मिश्रण पर आधारित होती है।
- किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता।
- तानाशाह की शक्तियां असीमित होती हैं।
- तानाशाह शासन को कानून की बजाय आदेश के अनुसार चलाता है।
- तानाशाही की अवधि निश्चित नहीं होती।
प्रथम महायुद्ध के पश्चात् प्रजातन्त्र शासन के विरुद्ध ऐसी प्रतिक्रिया हुई कि अनेक देशों में तानाशाही की स्थापना हुई। रूस में साम्यवादी दल की तानाशाही स्थापित हो गई। जर्मनी में हिटलर ने अपनी तानाशाही स्थापित कर ली और इटली में मुसोलिनी ने फासिस्ट पार्टी के आधार पर अपनी तानाशाही को स्थापित कर लिया।
आधुनिक तानाशाही के लक्षण (Features of Modern Dictatorship)-
आधुनिक तानाशाही के निम्नलिखित लक्षण हैं-
1. राज्य की निरंकुशता (Absoluteness of the State)-आधुनिक तानाशाही में राज्य निरंकुशवादी होते हैं। तानाशाही सरकार की शक्तियां असीमित होती हैं। जिन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता। हिटलर और मुसोलिनी का कहना था, “सब कुछ राज्य के अन्दर है, राज्य के बाहर कुछ भी नहीं तथा राज्य के ऊपर कुछ भी नहीं है।”
राज्य सर्वशक्ति-सम्पन्न होता है। तानाशाही सरकार जो चाहे कर सकती है। जनता को सरकार का विरोध करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।
2. राज्य साध्य है और व्यक्ति एक साधन है (State is an End and individual is a Means) तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। तानाशाही के समर्थकों का कहना है कि राज्य के हित में ही नागरिक का हित है। अतः नागरिकों का कर्त्तव्य है कि वे राज्य की आज्ञाओं का पालन करें और राज्य के हित के लिए अपना बलिदान करने के लिए सदा तैयार रहें।
3. राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं किया जाना (No distinction is made between State and Society)-आधुनिक तानाशाही में राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं माना जाता। आधुनिक तानाशाही के समर्थकों के अनुसार राज्य को व्यक्ति के प्रत्येक क्षेत्र को नियमित करने तथा उसके प्रत्येक कार्यों में हस्तक्षेप करने का अधिकार
है।
4. राजनीतिक दल का अभाव या एकदलीय (Either Partyless or One Party System)-अधिनायकतन्त्र में या तो कोई भी राजनीतिक दल नहीं होता जैसा कि पाकिस्तान में अयूब खां और याहिया खां के समय में था या फिर एक दल होता है। तानाशाही में एक दल का शासन होता है। जर्मनी में नाजी पार्टी तथा इटली में फासिस्ट पार्टी का शासन था। चीन में साम्यवादी दल का शासन है। अतः तानाशाही राज्यों में विरोधी दल का निर्माण नहीं किया जा सकता।
5. एक नेता का गुण-गान (Glorification of one Leader)-तानाशाही में एक पार्टी का शासन होता है, . पार्टी के नेता को ही देश का नेता माना जाता है। नेता को दूसरे व्यक्तियों से श्रेष्ठ माना जाता है। नेता में पूर्ण विश्वास किया जाता है और उसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक माना जाता है। उसकी सत्ता का कोई विरोध नहीं कर सकता। इस प्रकार तानाशाही में एक पार्टी, एक नेता तथा एक प्रोग्राम होता है।
6. अधिकारों और स्वतन्त्रताओं का न होना (Absence of Rights and Liberties) तानाशाही में नागरिकों को अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं से वंचित कर दिया जाता है। यदि नागरिकों को अधिकार दिए भी जाते हैं तो वे नाममात्र के होते हैं। तानाशाही में नागरिकों को जो अधिकार प्राप्त हैं वे वास्तव में अधिकार नहीं होते क्योंकि उनके अधिकार तानाशाह की दया पर निर्भर करते हैं।
7. कार्यकाल निश्चित नहीं होता (Term not Fixed)-अधिनायक का कार्यकाल निश्चित नहीं होता। जब तक वह अपनी सैनिक शक्ति को बनाए रखेगा वह अपने पद पर आसीन रह सकता है।
8. हिंसा तथा शक्ति में विश्वास (Faith in Violence and Force)-आधुनिक तानाशाही शक्ति पर आधारित है। तानाशाही शासन शान्ति तथा अहिंसा के स्थान पर युद्ध तथा हिंसात्मक साधनों में विश्वास करते हैं।
9. साम्राज्यवादी नीति (Imperialistic Policy) तानाशाही साम्राज्यवादी नीति में विश्वास करते हैं। तानाशाह शक्ति के बल पर अपने राज का विस्तार करने के पक्ष में है।
10. प्रेस तथा रेडियो पर नियन्त्रण (Control over Press and Radio) तानाशाही में प्रेस तथा रेडियो पर नियन्त्रण होता है। प्रेस तथा रेडियो का प्रयोग सरकार की नीतियों का प्रसार करने के लिए किया जाता है।
11. अन्तर्राष्ट्रीयवाद का विरोध (Opposed to Internationalism) आधुनिक तानाशाह अन्तर्राष्ट्रीयवाद में विश्वास नहीं करते। तानाशाह प्रत्येक समस्या का समाधान शक्ति के आधार पर करना चाहते हैं। 1965 ई० में पाकिस्तान ने कश्मीर को शक्ति द्वारा हड़पना चाहा। 1962 में साम्यवादी चीन ने भारत पर आक्रमण करके भारत के एक विस्तृत भाग पर कब्जा कर लिया।
12. धर्म के विरुद्ध (Hostile to Religion)—सर्वशक्तिमान राज्य धर्म के विरुद्ध होता है। साम्यवादी देशों में धर्म को ‘जनता के लिए अफीम’ माना जाता है।
13. जातीयता (Racialism)-तानाशाही अपनी जाति को अन्य जातियों के मुकाबले में श्रेष्ठ मानते हैं और इसका प्रचार भी करते हैं। जर्मनी के लोग अपने आप को संसार के सब लोगों से श्रेष्ठ मानते थे। मुसोलिनी ने अपनी जाति की श्रेष्ठता का प्रचार किया था।
प्रश्न 7.
अधिनायकवादी सरकार के गुण एवं दोषों की व्याख्या करें। (Describe the merits and demerits of Dictatorship.)
उत्तर-
अधिनायकवाद अथवा तानाशाह के गुण-तानाशाही में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं-
1. दृढ़ तथा स्थिर शासन (Strong and Stable Government) तानाशाही का प्रमुख गुण यह है कि इस शासन व्यवस्था में शासन दृढ़ तथा स्थिर होता है। शासन की सब शक्तियां एक ही व्यक्ति में निहित होती हैं और शक्ति के आधार पर ही तानाशाही सरकार स्थापित की जाती है। तानाशाह अपनी पदवी के लिए किसी पर निर्भर नहीं करता। उसे चुनाव लड़ने नहीं पड़ते और न ही वह किसी के प्रति उत्तरदायी होता है। वह एक बार जो संकल्प कर लेता है उसी पर दृढ़ रहता है। शासन में स्थिरता आती है जिससे शासन की नीति में निरन्तरता बनी रहती है।
2. शासन में कुशलता (Efficiency in Administration)-तानाशाह ऊंचे पदों पर योग्य व्यक्तियों को नियुक्त करता है और शासन में से घूसखोरी, लाल फीताशाही (Red Tapism) तथा पक्षपात को समाप्त करता है। वह आवश्यकता के अनुसार निर्णय ले सकता है। इस प्रकार तानाशाह शीघ्र ही निर्णय लेकर शासन की नीति को जल्दी लागू करता है और शासन में कुशलता आती है।
3. संकटकाल के लिए उचित सरकार (Suitable Government in time of Emergency) तानाशाही सरकार संकटकाल के लिए उचित है। शासन की समस्त शक्तियां तानाशाह में केन्द्रित होती हैं। निर्णय शीघ्र हो सकते हैं और उन निर्णयों को दृढ़ता से लागू किया जा सकता है।
4. नीति में एकरूपता (Consistent Policy) तानाशाही में नीति में एकरूपता रहती है। जब तक एक तानाशाही सत्ता में रहता है तब तक नीति में एकरूपता बनी रहती है। तानाशाह प्रायः अपनी नीतियों में परिवर्तन नहीं करते क्योंकि ऐसा करना उन के हित में नहीं होता।
5. राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण (Building of National Character)-अधिनायकतन्त्र में शिक्षा प्रणाली में सुधार करके नवयुवकों में देशभक्ति, आत्मत्याग तथा बलिदान की भावनाएं भरी जाती हैं। अधिनायकतन्त्र में राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण पर बहुत अधिक जोर दिया जाता है।
6. उचित नियमों पर आधारित (It is based on sound Principles)-तानाशाही इस उचित नियम पर आधारित है कि प्रत्येक शासन चलाने के योग्य नहीं है। योग्य व्यक्ति ही देश का शासन चला सकते हैं। तानाशाही में योग्य व्यक्तियों को ही उचित पदों पर नियुक्त किया जाता है। तानाशाही में तानाशाह सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति होता है, जो जनता का नेतृत्व करता है।
7. प्रशासन खर्चीला नहीं है (Administration is not Costly)-प्रजातन्त्र में चुनावों पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं और राज्यों में दर्जनों मन्त्री, गवर्नर, सैंकड़ों संसद् सदस्य होते हैं जबकि तानाशाही में एक व्यक्ति का शासन होता है। तानाशाही में चुनाव नहीं होते जिसमें करोड़ों रुपयों की बचत होती है।
8. राष्ट्र का सम्मान बढ़ता है (National Prestige is Enhanced)-तानाशाही व्यवस्था में शक्तिशाली सरकार
की स्थापना की जाती है जिससे राष्ट्र की शक्ति बढ़ती है और शक्ति की वृद्धि से राष्ट्र का सम्मान बढ़ता है। हिटलर ने जर्मनी की प्रतिष्ठा को बढ़ाया और मुसोलिनी ने इटली की खोई हुई प्रतिष्ठा को फिर से कायम किया। साम्यवादी क्रान्ति के बाद सोवियत संघ ने अपने राज्य का अत्यधिक विकास किया था क्योंकि वहां साम्यवादी दल की तानाशाही पाई जाती थी।
9. सामाजिक तथा उत्सर्धक विकास (Social aod Economic Progress).- तानाशाही में देश की सामाजिक तथा आर्थिक उन्नत बहुत होती है । तानाशाही जनता क आर्थिक विकास की ओर विशेष ध्यान देता है और देश को आत्मनिर्भर बनाने का यह करता है। कृषि वियोग, साहिरक कला आदि क्षेत्रों में बहुत उन्नति होती है।
10. राष्ट्रीय एकता (National Solidarity)-तानाशाही में शासक का लोगों पर और लोगों के हर पक्ष पर पूर्ण नियन्त्रण होता है। लोगों को चुनाव, भाषण आदि सम्वनी अधिकार नहीं मिलते। ये अधिकार लोगों में किसी हद तक फूट आदि के कारण बन जाते हैं। दूसरे तानाशाह युद्ध का वातावरण बनाए रखते हैं। इन सब बातों से देश के लोगों में आपसी एकता और देशभवित की भावना प्रकण्ड हो अन्दा है।
तानाशाही शासन के दोष (Demerits Of Dictattirship)-
तानाशाही में अनेक गुण के होते हुए भी इस शास:: :: गली का अच्छा नहीं समझा जाता। तानाशाह व्यवस्था में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-
- यह शक्ति और हिंसा पर आधारित है (It is based on Force and Violence) तानाशाही शासन शक्ति पर आधारित होता है। इसमें शक्ति और हिंसात्मक साधनों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। वास्तव में राज्य का आधार शक्ति न हो कर जनता की इच्छा होनी चाहिए। जो शासनवता की इच्छा पर निर्भर करता है वही स्थिर हो सकता
- व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता (No Importance is given to the Individual) तानाशाही में व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। शासन का उद्देश्य व्यक्ति का विकास न होकर राज्य का विकास करना होता है।
- नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती (No rights and Liberties to the Citizens)तानाशाही में नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रताएं प्राप्त नहीं होतीं। अधिकारों के बिना व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता ! इस शासन-व्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को समाप्त कर दिया जाता है।
- अन्तर्राष्ट्रीयता का विरोध करता है (It opposes Internationalism)-आज का युग अन्तर्राष्ट्रीयता का युग है। एक देश दूसरे देश के सहयोग पर निर्भर करता है, परन्तु तानाशाही व्यवस्था अन्तर्राष्ट्रीयता में विश्वास नहीं करती। मुसोलिनी तथा हिटलर ने लीग ऑफ नेशन्ज़ (League of Nations) को असफल बनाने के भरसक प्रयत्न किए। इस प्रकार तानाशाही अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के लिए खतरा है।
- विस्तार की नीति (Policy of Expansion) तानाशाही साम्राज्यवाद में विश्वास करती है। तानाशाह सदैव राज्य के विस्तार की नीति को अपनाता है। मुसोलिनी कहा करता था—“इटली का विस्तार करो या मिट जाओ।” विस्तार की नीति से युद्धों का उदय होता है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि तानाशाह सदैव युद्ध में लगे रहते हैं।
- निर्बल उत्तराधिकारी (Weak Successors)—यह आवश्यक नहीं कि तानाशाह का उत्तराधिकारी योग्य और बुद्धिमान् हो। इतिहास से पता चलता है कि बुद्धिमान् तानाशाह के उत्तराधिकारी अयोग्य और निर्बल ही हुए हैं। मुसोलिनी और हिटलर के पश्चात् इटली तथा जर्मनी को कोई योग्य उत्तराधिकारी नहीं मिल सका।
- क्रान्ति का डर (Fear of Revolution)-तानाशाह शक्ति के ज़ोर पर शासन चलाता है और अपने प्रतिद्वन्द्वियों को कुचल डालता है। तानाशाह के विरोधियों को शासन बदलने के लिए क्रान्ति का सहारा लेना पड़ता है।
- चरित्र के विकास में बाधा (It hinders the development of Character) तानाशाही में लोगों में आत्मनिर्भरता की भावना का अभाव होता है। उनका धैर्य कम हो जाता है और उनकी सार्वजनिक मामलों में रुचि कम हो जाती है। इससे उनके चरित्र के निर्माण में बाधा उत्पन्न होती है जिससे उनके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता।
- यह नागरिकों में उदासीनता उत्पन्न करता है (It creates a feelins of apathy among the Citizens)- तानाशाही में शासन की सत्ता एक काका के पास केन्द्रित होती है। साधारण जनता को शासन से दूर रखा जाता है, जिससे जनता में शासन के प्रति उदासीनत उत्पन्न हो जाती है अतः वे राज्य के कार्यों में रुचि लेना बन्द कर देते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)-तानाशाही के गुणों तथा अवगुणों के अध्ययन के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि तानाशाही सरकार संकटकाल के लिए तथा आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए अच्छी सरकार है। परन्तु स्थायी रूप में यह शासन प्रणाली अच्छी नहीं है। तानाशाही प्रजातन्त्र का विकल्प नहीं हो सकता। प्रजातन्त्रीय सरकार के मुकाबले में तानाशाही सरकार दोषपूर्ण है, क्योंकि इसमें व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को नष्ट किया जाता है। आज का युग तानाशाही का युग नहीं है। इसलिए संसार के अधिकांश देशों में प्रजातन्त्र को अपनाया गया है।
प्रश्न 8.
लोकतान्त्रिक और अधिनायकतन्त्रीय सरकारों में क्या अन्तर है ? उदाहरण सहित समझाइए।
(What is the distinction between a D mocratic and an authoritarian Governacht? Give example.)
अथवा
यदि तुम से प्रजातन्त्र और तानाशाही में से एक को चनन को कहा जाmissing तो किस चुनोगे ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
(If you were to choose between Democracy and Dictatorship which one would you prefer? Give arguments to support your answer.)
उत्तर-
प्रथम महायुद्ध के पश्चात् इटली तथा जर्मनी से प्रनारान्त्रिक सरकारों को समाप्त करके मुसोलिनी तथा हिटलर ने तानाशाही को स्थापित किया। द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् चीन, युगोस्लाविया, बुल्गारिया, रूमानिया, हंगरी, पोलैंड इत्यादि साम्यवादी देशों में साम्यवादी दल की तानाशाही स्थापित की गई। परन्तु अब रूमानिया, पोलैंड, युगोस्लाविया, हंगरी, रूस आदि देशो में बहु-दलीय पद्धति को अपनाया गया है। चीन, क्यूबा, उत्तरी कोरिया आदि देशों में साम्यवादी दल की तानाशाही ही पाई जाती है।
परन्तु संसार के अधिकांश देशों में प्रजातन्त्रीय सरकारें पाई जाती हैं । इंग्लैण्ड, अमेरिका, फ्रांस, कनाडा, स्विट्ज़रलैण्ड, जापान तथा भारत इत्यादि महान् देशों में प्रजातन्त्र को ही अपनाया गया है। 1989 में अनेक साम्यवादी देशों में साम्यवादी दल की तानाशाही समाप्त करके बहु-दलीय लोकतन्त्र को अपनाया गया है। यहां तक कि साम्यवाद के आधार स्तम्भ सोवियत संघ का विघटन होने के बाद वहां भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था को अपनाया गया है। प्रजातन्त्र तथा तानाशाही शासन एक-दूसरे के विरोधी हैं। दोनों एक-दूसरे के विपरीत हैं। प्रजातन्त्र और तानाशाही शासन में तुलनः ऋना बड़ा ही मनोरंजक है। यदि मुझे प्रजातन्त्र और तानाशाही में से एक चुनने को कहा जाए तो मैं प्रजातन्त्र को करूंगा। इन दोनों में अन्तर करने पर हम देखते हैं कि अग्र कारणों से लोकतन्त्र को तानाशाही की अपेक्षा अधिक किया जाता है
प्रजातन्त्र (Democracy) –
- जनता का शासन-प्रजातन्त्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है। प्रजातन्त्र में जनता स्वयं प्रत्यक्ष तौर पर अथवा अपने प्रतिनिधियों के द्वारा शासन में भाग लेती है।
- जनमत पर आधारित-प्रजातन्त्र जनमत पर आधारित है।
- सरकार को शान्तिपूर्ण साधनों द्वारा बदला जा सकता है-जनता जिस सरकार को पसन्द नहीं करती, उसे चुनावों में हटा दिया जाता है। प्रजातन्त्र में निश्चित अवधि के पश्चात् चुनाव करवाए जाते हैं, जिससे नागरिकों को सरकार बदलने का अवसर प्राप्त हो जाता है।
- व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास-प्रजातन्त्र में व्यक्ति को महत्त्व दिया जाता है। राज्य का उद्देश्य करना न होकर राज्य का विकास करना होता है। राज्य साध्य तथा व्यक्ति साधन होता है।
- व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर बल-प्रजातन्त्र में नागरिकों के अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।
- समानता पर आधारित-सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का समान अधिकार प्राप्त होता है और कानून के सामने भी नागरिकों को समान माना जाता है।
- शान्ति तथा व्यवस्था में विश्वास-प्रजातन्त्र शान्ति तथा व्यवस्था में विश्वास रखता है। प्रजातन्त्र हिंसात्मक साधनों को अनुचित मानता है।
- साम्राज्यवाद के विरुद्ध-प्रजातन्त्र साम्राज्यवाद के विरुद्ध है। प्रजातन्त्र का विश्वास है कि प्रत्येक राष्ट्र को पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए अर्थात् प्रत्येक राष्ट्र का राज्य होना चाहिए।
- प्रत्येक निर्णय तर्क तथा वाद-विवाद से लिया जाता है-प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय पर पहुंचने से पहले वाद-विवाद होता है और फिर निर्णय किया जाता है।
- सरकार की आलोचना का अधिकार-प्रजातन्त्र में जनता को सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त होता है।
- दलों का होना अनिवार्य-प्रजातन्त्र में कम-से- कम दो दल अवश्य होते हैं। बिना राजनीतिक दलों के प्रजातन्त्र को सफल नहीं बनाया जा सकता।
- राज्य और सरकार में भेद-प्रजातन्त्र में राज्य और सरकार में भेद किया जाता है। सरकार राज्य का एक अंग होती है। सरकार की शक्तियां सीमित होती हैं। सरकार अपनी शक्तियां जनता से प्राप्त करती है।
- सरकार का उत्तरदायित्त्व-प्रजातन्त्र में सरकार अपने सब कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होती है और विशेष कर संसदीय शासन प्रणाली में विधानमण्डल के प्रति भी उत्तरदायी होती है।
तानाशाही (Dictatorship) –
- एक व्यक्ति अथवा एक पार्टी का शासन तानाशाही के शासन की सत्ता एक व्यक्ति में केन्द्रित होती है। साधारण जनता को शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त नहीं होता।
- शक्ति पर आधारित तानाशाही का आधार निरंकुश शक्ति है।
- सरकार को केवल क्रान्ति द्वारा बदला जा सकता है-तानाशाही में सरकार को केवल विद्रोह अथवा क्रान्ति के द्वारा ही बदला जा सकता है। सरकार को शान्तिपूर्ण ढंग से नहीं बदला जा सकता, क्योंकि इस शासन-व्यवस्था में चुनाव की कोई व्यवस्था नहीं होती।
- राज्य का विकास-तानाशाही में राज्य को महत्त्व दिया जाता है। प्रजातन्त्र में राज्य का उद्देश्य व्यक्तियों का विकास व्यक्तियों के व्यक्तित्व का विकास करना होता है।
- अधिकार व स्वतन्त्रताएं नाममात्र की तानाशाही में नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रताएं नाममात्र की ही प्राप्त होती हैं। तानाशाही में नागरिकों के कर्त्तव्य पर बहुत बल दिया जाता है।
- समानता के सिद्धान्त को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता-तानाशाही में कुछ व्यक्तियों को श्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त नहीं होता।
- युद्ध तथा हिंसा में विश्वास-तानाशाही युद्ध तथा हिंसा में विश्वास रखता है। तानाशाह का विश्वास है कि प्रत्येक समस्या का समाधान शक्ति द्वारा किया जा सकता है।
- साम्राज्यवाद में विश्वास-तानाशाह विस्तार की नीति में विश्वास रखता है। तानाशाही में यह नारा लगाया जाता है कि “विस्तार करो या मिट जाओ।” तानाशाही अन्तर्राष्ट्रीयता का विरोध करता है।
- वाद-विवाद का कोई महत्त्व नहीं- तानाशाही में वाद-विवाद से काम नहीं किया जाता। तानाशाह बिना किसी की सलाह लिए भी निर्णय कर लेता है।
- सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता-तानाशाही में किसी को सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता।
- कोई दल नहीं अथवा एक दल-तानाशाही में या तो दल होता ही नहीं और यदि होता है तो केवल एक दल। तानाशाह उसी दल का नेता होता है।
- राज्य और सरकार में कोई भेद नहीं-तानाशाह को ही राज्य तथा सरकार माना जाता है। राज्य की समस्त शक्तियां तानाशाह के पास होती हैं और उस पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं होता।
- अनुत्तरदायित्व सरकार-तानाशाही में शासक जनता अथवा विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। शासक अपनी मनमानी कर सकता है और शासक पर किसी प्रकार का अंकुश नहीं होता है।
कौन-सी प्रणाली सबसे अधिक अच्छी है (Which of them is better ?)-दोनों प्रणालियों के गुणों और दोषों को सम्मुख रखते हुए यह कहा जा सकता है कि प्रजातन्त्र अधिक अच्छी प्रणाली है। इस प्रणाली में व्यक्ति को व्यक्ति ही समझा जाता है, पशु नहीं। व्यक्ति के विकास और उत्थान के लिए आवश्यक वातावरण केवल प्रजातन्त्र में ही मिल सकता है। अनेक साम्यवादी देशों में बहु-दलीय लोकतन्त्र की स्थापना हो जाना लोकतन्त्र की श्रेष्ठता को ही साबित करता है।
इसमें शक नहीं कि प्रजातन्त्र के कई दोष भी हैं परन्तु ये दोष प्रजातन्त्र शासन प्रणाली के अपने नहीं हैं बल्कि लोगों में कुछ आवश्यक गुणों के अभाव से उत्पन्न होते हैं। अनुभव इस बात को स्पष्टतया सिद्ध करता है कि जिन देशों में ये आवश्यक गुण और परिस्थितियां जितनी अधिक विद्यमान होती हैं, प्रजातन्त्र उतना ही सफलतापूर्वक काम करता है। इंग्लैण्ड में राजतन्त्रीय ढांचे के होते हुए भी लोकतन्त्रीय प्रणाली बड़े अच्छे ढंग से कार्य कर रही है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लोकतन्त्र का अर्थ बताओ।
उत्तर-
आधुनिक युग लोकतन्त्र का युग है। लोकतन्त्र ग्रीक भाषा के दो शब्दों डिमोस (Demos) और क्रेटिया (Cratia) से मिलकर बना है। डिमोस का अर्थ है लोग और क्रेटिया का अर्थ है ‘शक्ति’ या ‘सत्ता’। इस प्रकार डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ वह शासन है जिसमें शक्ति या सत्ता लोगों के हाथ में हो। दूसरे शब्दों में लोकतन्त्र सरकार का अर्थ है प्रजा का शासन।
- प्रो० डायसी का कहना है कि, “प्रजातन्त्र ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें शासक वर्ग समाज का अधिकांश भाग हो।”
- प्रो० सीले के अनुसार, “प्रजातन्त्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।”
- लोकतन्त्र की बहुत सुन्दर, सरल तथा लोकप्रिय परिभाषा अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राह्म लिंकन ने इस प्रकार दी है कि, “प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”
प्रश्न 2.
लोकतन्त्र की चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
लोकतन्त्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
- जनता की प्रभुसत्ता-प्रजातन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।
- जनता का शासन-प्रजातन्त्र में शासन जनता द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर चलाया जाता है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।
- जनता का हित-प्रजातन्त्र में शासन जनता के हित के लिए चलाया जाता है।
- समानता-समानता प्रजातन्त्र का मूल आधार है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक मनुष्य को समान समझा जाता है। जन्म, जाति, शिक्षा, धन आदि के आधार पर मनुष्यों में भेद-भाव नहीं किया जाता। सभी मनुष्यों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। कानून के सामने सभी व्यक्ति समान होते हैं।
प्रश्न 3.
प्रजातन्त्र के चार गुण लिखें।
उत्तर-
प्रजातन्त्र में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं
- यह सर्वसाधारण के हितों की रक्षा करता है-प्रजातन्त्र की यह सब से बड़ी विशेषता है कि इसमें राज्य के किसी विशेष वर्ग के हितों की रक्षा न करके समस्त जनता के हितों की रक्षा की जाती है।
- यह जनमत पर आधारित है-प्रजातन्त्र शासन जनमत पर आधारित है अर्थात् शासन जनता की इच्छानुसार चलाया जाता है। जनता अपने प्रतिनिधियों को निश्चित अवधि के लिए चुनकर भेजती है। यदि प्रतिनिधि जनता की
इच्छानुसार शासन नहीं चलाते तो उन्हें दोबारा नहीं चुना जाता है। इस शासन प्रणाली में सरकार जनता की इच्छाओं की ओर विशेष ध्यान देती है। - यह समानता के सिद्धान्त पर आधारित है-प्रजातन्त्र में सभी नागरिकों को समान माना जाता है। किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म, लिंग के आधार पर कोई विशेष अधिकार नहीं दिए जाते। प्रत्येक वयस्क को बिना भेदभाव के मतदान, चुनाव लड़ने तथा सार्वजनिक पद प्राप्त करने का समान अधिकार प्राप्त होता है। सभी मनुष्यों को कानून के सामने समान माना जाता है।
- जनता को राजनीतिक शिक्षा मिलती है-प्रजातन्त्र में नागरिकों को अन्य शासन प्रणालियों की अपेक्षा अधिक राजनीतिक शिक्षा मिलती है।
प्रश्न 4.
लोकतन्त्र के चार दोष लिखें।
उत्तर-
जहां एक ओर लोकतन्त्र में इतने गुण पाए जाते हैं वहीं दूसरी ओर इसमें निम्नलिखित अवगुण भी पाए जाते हैं-
- यह अज्ञानियों, अयोग्य तथा मूल् का शासन है-प्रजातन्त्र को अयोग्यता की पूजा बताया जाता है। इसका कारण यह है कि जनता में अधिकांश व्यक्ति अयोग्य, मूर्ख, अज्ञानी तथा अनपढ़ होते हैं।
- यह गुणों के स्थान पर संख्या को अधिक महत्त्व देता है-प्रजातन्त्र में गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है। यदि किसी विषय को 60 मूर्ख ठीक कहें और 59 बुद्धिमान् ग़लत कहें तो मूों की ही बात को माना जाएगा। इस प्रकार लोकतन्त्र में मूल् का शासन होता है।
- यह उत्तरदायी शासन नहीं है-वास्तव में प्रजातन्त्र अनुत्तरदायी शासन है। इसमें नागरिक केवल चुनाव वाले दिन ही सम्प्रभु होते हैं । परन्तु चुनावों के पश्चात् नेता जानते हैं कि जनता उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती अतः वे अपनी मनमानी करते हैं।
- बहुमत की तानाशाही-प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से किया जाता है, जिस कारण प्रजातन्त्र में बहुमत की तानाशाही की स्थापना हो जाती है।
प्रश्न 5.
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
प्रत्यक्ष या शुद्ध प्रजातन्त्र-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र ही प्रजातन्त्र का वास्तविक रूप है। जब जनता स्वयं कानून बनाए, राजनीति को निश्चित करे तथा सरकारी कर्मचारियों पर नियन्त्रण रखे, उस व्यवस्था को प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कहते हैं। समय-समय पर समस्त नागरिकों की सभा एक स्थान पर बुलाई जाती है और उसमें सार्वजनिक मामलों पर विचार होता है तथा शासन-सम्बन्धी प्रत्येक बात का निर्णय होता है। प्राचीन समय में ऐसे प्रजातन्त्र विशेष रूप से यूनान और रोम में विद्यमान थे, परन्तु आधुनिक युग में बड़े-बड़े राज्य हैं जिनकी जनसंख्या भी बहुत अधिक है और भू-भाग भी बड़ा है। नागरिकों की संख्या भी पहले से अधिक हो गई है। अतः प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र सम्भव नहीं है। रूसो प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का ही पुजारी था इसीलिए उसने कहा है कि इंग्लैंड के लोग केवल चुनाव वाले दिन ही स्वतन्त्र होते हैं।
प्रश्न 6.
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की संस्थाओं के नाम लिखें और किन्हीं दो का वर्णन करें।
उत्तर-
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की संस्थाएं कुछ देशों में मिलती हैं जैसे प्रस्तावाधिकार, जनमत संग्रह, प्रत्यावर्तन या वापसी, लोकमत संग्रह आदि।
1. प्रस्तावाधिकार-इसके द्वारा मतदाताओं को अपनी इच्छा के अनुसार कानून बनाने का अधिकार होता है। यदि मतदाताओं की एक निश्चित संख्या किसी कानून को बनवाने की मांग करे तो संसद् अपनी इच्छा से उस मांग को रद्द नहीं कर सकती। यदि संसद् उस प्रार्थना के अनुसार कानून बना दे तो सबसे अच्छी बात है। यदि संसद् उस मांग से सहमत न हो तो वह समस्त जनता की राय लेती है और यदि मतदाता बहुमत से उस मत का समर्थन कर दें तो संसद् को वह कानून बनाना ही पड़ता है। स्विट्ज़रलैंड में 1,00,000 मतदाता कोई भी कानून बनाने के लिए संसद् को कह सकते हैं।
2. जनमत संग्रह-जनमत संग्रह द्वारा संसद् के बनाए हुए कानून लोगों के सामने रखे जाते हैं। वे कानून तभी पास हुए समझे जाते हैं यदि मतदाताओं का बहुमत उनके पक्ष में हो, नहीं तो वह कानून रद्द हो जाता है। इस प्रकार यदि संसद् कोई ऐसा कानून बना भी दे जिसे जनता अच्छा न समझती हो तो जनता उसे लागू होने से रोक सकती है। स्विट्जरलैंड में यह नियम है कि कानूनों को लागू करने से पहले जनता की राय ली जाती है। रूस में ऐच्छिक जनमतसंग्रह का सिद्धान्त अपनाया गया है।
प्रश्न 7.
आधुनिक युग में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र क्यों नहीं सम्भव है ?
उत्तर-
आधुनिक युग में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र सम्भव नहीं है। इसका कारण यह है कि आधुनिक राज्य आकार और जनसंख्या दोनों ही दृष्टियों में विशाल है। भारत, चीन, अमेरिका, रूस आदि देशों की जनसंख्या करोड़ों में है। इन देशों में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र को अपनाना सम्भव नहीं है। भारत में जनमत-संग्रह करवाना आसान कार्य नहीं है और न ही प्रस्तावाधिकार या उपक्रमण (Initiative) द्वारा जनता की इच्छानुसार कानून बनाए जा सकते हैं। भारत में आम चुनाव करवाने पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं और चुनाव व्यवस्था पर बहुत अधिक समय लगता है। अतः प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की संस्थाओं को लागू करना सम्भव नहीं है। आधुनिक युग में लोकतन्त्र का अर्थ लोगों द्वारा अप्रत्यक्ष शासन ही है।
प्रश्न 8.
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में चार अन्तर लिखें।
उत्तर-
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के बीच अन्तर को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
- प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में लोग स्वयं शासन में प्रत्यक्ष रूप में भाग लेते हैं जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में शासन जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है।
- प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को शासक समझता है जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में केवल प्रतिनिधि ही शासक समझे जाते हैं।
- प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता स्वयं कानून के निर्माण में भाग लेती है। इसलिए जनता अपने ही बनाए गए कानूनों का अधिक पालन करती है जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता के स्वयं कानून निर्माण में भाग लेने के कारण कानूनों के पालन की मात्रा इतनी अधिक नहीं होती।
- प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की अपेक्षा जनता को अधिक राजनीतिक शिक्षण मिलता है।
प्रश्न 9.
प्रजातन्त्र की सफलता के लिए किन्हीं चार आवश्यक शर्तों का वर्णन करें।
उत्तर-
लोकतन्त्र के सफलतापूर्वक काम करने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का होना आवश्यक समझा जाता है-
- जागरूक नागरिक-जागरूक नागरिकता प्रजातन्त्र की सफलता की पहली शर्त है। निरन्तर देख-रेख ही स्वतन्त्रता की कीमत है। नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने चाहिएं।
- प्रजातन्त्र से प्रेम-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों के दिलों में प्रजातन्त्र के लिए प्रेम होना चाहिए। बिना प्रजातन्त्र से प्रेम के प्रजातन्त्र कभी सफल नहीं हो सकता।
- शिक्षित नागरिक-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए शिक्षित नागरिकों का होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक प्रजातन्त्र शासन की आधारशिला हैं। शिक्षा से ही नागरिकों को अपने अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का ज्ञान होता है।
- स्थानीय स्वशासन-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए स्थानीय स्वशासन का होना आवश्यक है। स्थानीय संस्थाओं के द्वारा नागरिकों को शासन में भाग लेने का अवसर मिलता है।
प्रश्न 10.
अधिनायकवाद या तानाशाही का अर्थ एवं परिभाषा लिखें।
उत्तर-
तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है। अधिनायक अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता है और वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक शासन की शक्ति उसके हाथों में रहती है।
फोर्ड ने तानाशाही की परिभाषा देते हुए कहा है, “तानाशाही राज्य के अध्यक्ष द्वारा गैर-कानूनी शक्ति प्राप्त करना है।”
अल्फ्रेड ने अधिनायकतन्त्र की बड़ी सुन्दर और विस्तृत परिभाषा इस प्रकार दी है, “अधिनायकतन्त्र उस व्यक्ति का शासन है जिसने स्तर और स्थिति के पैतृक अधिकार से प्राप्त न करके शक्ति या स्वीकृति सम्भवतः दोनों के मिश्रण से प्राप्त किया हो। उसके पास निरंकुश प्रभुसत्ता का होना अनिवार्य है अर्थात् वह समस्त राजनीतिक सत्ता का स्रोत है और उस सत्ता पर सीमा नहीं होनी चाहिए। वह शक्ति का प्रयोग कानून के द्वारा नहीं स्वेच्छापूर्ण ढंग से आदेशों द्वारा करता है। अन्ततः उसकी सत्ता किसी निश्चित कार्यकाल तक सीमित नहीं होनी चाहिए क्योंकि इस प्रकार की सीमा निरंकुश शासन से मेल नहीं खाती है।”
प्रश्न 11.
आधुनिक तानाशाही की चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
आधुनिक तानाशाही की निम्नलिखित चार विशेषताएं हैं-
- राज्य की निरंकुशता-आधुनिक तानाशाही में राज्य निरंकुशवादी होते हैं। तानाशाही सरकार की शक्तियां असीमित हैं जिन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।
- राज्य साध्य है और व्यक्ति एक साधन है-तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। तानाशाही के समर्थकों का कहना है कि राज्य के हित में ही नागरिक का हित है। अत: नागरिकों का कर्तव्य है कि वे राज्य की आज्ञाओं का पालन करें और राज्य के हित के लिए अपना बलिदान करने के लिए सदा तैयार रहें।
- राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं किया जाता-आधुनिक तानाशाही में राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं माना जाता। आधुनिक तानाशाही के समर्थकों के अनुसार राज्य को व्यक्ति के प्रत्येक क्षेत्र को नियमित करने तथा उसके प्रत्येक कार्य में हस्तक्षेप करने का अधिकार है।
- अधिकारों और स्वतन्त्रताओं का न होना-तानाशाही में नागरिकों को अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं से वंचित कर दिया जाता है।
प्रश्न 12.
तानाशाही के चार गुण लिखो।।
उत्तर-
तानाशाही में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं –
- दृढ़ तथा स्थिर शासन-तानाशाही का प्रथम गुण यह है कि इससे शासन में स्थिरता आती है। वह एक बार जो संकल्प कर लेता है उसी पर दृढ़ रहता है, इससे शासन में स्थिरता और नीतियों में निरन्तरता आती है।
- शासन में कुशलता-तानाशाह ऊंचे पदों पर योग्य व्यक्तियों को नियुक्त करता है और शासन में घूसखोरी, लाल फीताशाही तथा पक्षपात को समाप्त करता है। वह आवश्यकता के अनुसार निर्णय लेता है। इस प्रकार तानाशाह शीघ्र ही निर्णय लेकर शासन की नीतियों को लागू करता है जिससे शासन में कार्यकुशलता आती है।
- संकटकाल के लिए उचित सरकार-तानाशाही सरकार संकटकाल के लिए उचित है। शासन की समस्त शक्तियां तानाशाह में केन्द्रित होती हैं। निर्णय शीघ्र ही ले लिए जाते हैं और उन निर्णयों को कठोरता एवं दृढ़ता से लागू किया जाता है।
- नीति में एकरूपता-तानाशाही में नीति में एकरूपता बनी रहती है।
प्रश्न 13.
तानाशाही के कोई चार दोष लिखो।
उत्तर-
तानाशाही में अनेक गुणों के होते हुए भी इस शासन प्रणाली को अच्छा नहीं समझा जाता। इसमें निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-
- यह शक्ति और हिंसा पर आधारित है-तानाशाही शासन शक्ति पर आधारित होता है। इसमें शक्ति और हिंसात्मक साधनों को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
- व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता-तानाशाही में व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। शासन का उद्देश्य व्यक्ति का विकास न होकर राज्य का विकास करना होता है।
- नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती-तानाशाही में नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रताएं प्राप्त नहीं होतीं। अधिकारों के बिना व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता। इस शासन व्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को समाप्त कर दिया गया है।
- विस्तार की नीति-तानाशाही विस्तार की नीति अर्थात् साम्राज्यवाद में विश्वास करती है।
प्रश्न 14.
लोकतन्त्र तथा तानाशाही में कोई चार अन्तर बताएं।
उत्तर-
लोकतन्त्र तथा तानाशाही में निम्नलिखित मुख्य अन्तर पाए जाते हैं
प्रजातन्त्र
- जनता का शासन-प्रजातन्त्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है। प्रजातन्त्र में जनता स्वयं प्रत्यक्ष तौर पर अथवा अपने प्रतिनिधियों के द्वारा शासन में भाग लेती है।
- जनमत पर आधारित-प्रजातन्त्र जनमत पर आधारित है।
- सरकार को शान्तिपूर्ण साधनों द्वारा बदला जा सकता है-जनता जिस सरकार को पसन्द नहीं करती, उसे चुनावों में हटा दिया जाता है।
- व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास-प्रजातन्त्र में राज्य का उद्देश्य व्यक्तियों के व्यक्तित्व का विकास करना होता है।
तानाशाही
- एक व्यक्ति अथवा एक पार्टी का शासन तानाशाही के शासन की सत्ता एक व्यक्ति में केन्द्रित होती है। साधारण जनता को शासन में भाग लेने का
अधिकार प्राप्त नहीं होता। - शक्ति पर आधारित-तानाशाही का आधार निरंकुश शक्ति है।
- सरकार को केवल क्रान्ति द्वारा बदला जा सकता है-तानाशाही में सरकार को केवल विद्रोह अथवा क्रान्ति के द्वारा ही बदला जा सकता है।
- राज्य का विकास-तानाशाही राज्य में राज्य का उद्देश्य व्यक्तियों का विकास करना न होकर राज्य का विकास करना होता है।
प्रश्न 15.
यदि आपको प्रजातन्त्र व राजतन्त्र में चयन करने के लिए कहा जाए तो आप किस सरकार को पसन्द करेंगे ? अपने मत के समर्थन में चार तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर-
यदि मुझे प्रजातन्त्र और राजतन्त्र में चयन करने के लिए कहा जाए तो मैं प्रजातन्त्र को पसन्द करूंगा। प्रजातन्त्र को पसन्द करने के कई कारण हैं, जिनमें महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं-
- प्रजातन्त्र जनता का अपना शासन है। शासन जनता के हित में चलाया जाता है जबकि राजतन्त्र में एक व्यक्ति का शासन होता है।
- प्रजातन्त्र में नागरिकों को मौलिक अधिकार प्राप्त होते हैं, परन्तु राजतन्त्र में ऐसा अनिवार्य नहीं।
- प्रजातन्त्र में चुनाव होते हैं जिससे लोगों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है, परन्तु राजतन्त्र में जनता को राजनीतिक शिक्षा नहीं मिलती।
- प्रजातन्त्र में लोगों को अपने विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होती है, जबकि राजतन्त्र में ऐसा नहीं होता।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लोकतन्त्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
आधुनिक युग लोकतन्त्र का युग है। लोकतन्त्र ग्रीक भाषा के दो शब्दों डिमोस (Demos) और क्रेटिया (Cratia) से मिलकर बना है। डिमोस का अर्थ है लोग और क्रेटिया का अर्थ है ‘शक्ति’ या ‘सत्ता’। इस प्रकार डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ वह शासन है जिसमें शक्ति या सत्ता लोगों के हाथ में हो। दूसरे शब्दों में लोकतन्त्र सरकार का अर्थ है प्रजा का शासन।
प्रश्न 2.
प्रजातन्त्र (लोकतंत्र) की कोई दो परिभाषाएं दें।
उत्तर-
- प्रो० सीले के अनुसार, “प्रजातन्त्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।”
- लोकतन्त्र की बहुत सुन्दर, सरल तथा लोकप्रिय परिभाषा अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने इस प्रकार दी है कि, “प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”
प्रश्न 3.
लोकतन्त्र की दो विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
- जनता की प्रभुसत्ता– प्रजातन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।
- जनता का शासन-प्रजातन्त्र में शासन जनता द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर चलाया जाता है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।
प्रश्न 4.
अधिनायकवाद या तानाशाही का अर्थ लिखें।
उत्तर-
तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है। अधिनायक अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता है और वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक शासन की शक्ति उसके हाथों में रहती है।
प्रश्न 5.
आधुनिक तानाशाही की दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
- राज्य की निरंकुशता-आधुनिक तानाशाही में राज्य निरंकुशवादी होते हैं।
- राज्य साध्य है और व्यक्ति एक साधन है-तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। तानाशाही के समर्थकों का कहना है कि राज्य के हित में ही नागरिक का हित है। अत: नागरिकों का कर्तव्य है कि वे राज्य की आज्ञाओं का पालन करें और राज्य के हित के लिए अपना बलिदान करने के लिए सदा तैयार रहें।
प्रश्न 6.
तानाशाही के दो गुण लिखो।
उत्तर-
- दृढ़ तथा स्थिर शासन-तानाशाही का प्रथम गुण यह है कि इससे शासन में स्थिरता आती है। शासन की समस्त शक्तियां एक ही व्यक्ति के हाथों में केन्द्रित होती हैं।
- शासन में कुशलता-तानाशाह शीघ्र ही निर्णय लेकर शासन की नीतियों को लागू करता है जिससे शासन में कार्यकुशलता आती है।
प्रश्न 7.
तानाशाही के कोई दो दोष लिखो।
उत्तर-
- यह शक्ति और हिंसा पर आधारित है-तानाशाही शासन शक्ति पर आधारित होता है। इसमें शक्ति और हिंसात्मक साधनों को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
- व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता-तानाशाही में व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। शासन का उद्देश्य व्यक्ति का विकास न होकर राज्य का विकास करना होता है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-
प्रश्न 1. प्रजातन्त्र का क्या अर्थ है ?
उत्तर-प्रजातन्त्र का अर्थ है वह शासन प्रणाली जिसमें राज्य की सत्ता प्रजा अर्थात् जनता के हाथ में हो।
प्रश्न 2. प्रजातन्त्र (Democracy) किन दो शब्दों से मिलकर बना है ?
उत्तर-
- डिमोस (Demos)
- एवं क्रेटिया (Cratia)।
प्रश्न 3. डिमोस (Demos) और क्रेटिया (Cratia) का क्या अर्थ है ?
उत्तर-डिमोस का अर्थ है, लोक और क्रेटिया का अर्थ है शक्ति या सत्ता। इसलिए डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ वह शासन है, जिसमें शक्ति या सत्ता लोगों के हाथों में हो।
प्रश्न 4. प्रजातन्त्र की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-अब्राहिम लिंकन के अनुसार, “प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”
प्रश्न 5. प्रजातन्त्र की कोई एक विशेषता लिखें।
उत्तर-प्रजातन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।
प्रश्न 6. किस देश में प्रजातन्त्र नहीं पाया जाता है?
उत्तर-चीन में प्रजातन्त्र नहीं पाया जाता ।
प्रश्न 7. एक पार्टी का शासन किसकी विशेषता है?
उत्तर-एक पार्टी का शासन तानाशाही की विशेषता है।
प्रश्न 8. तानाशाही शासन का एक लक्षण लिखें।
उत्तर-तानाशाही शासन में राज्य निरंकुश होता है।
प्रश्न 9. तानाशाही का कोई एक रूप लिखें।
उत्तर-सैनिक राज तानाशाही का एक रूप है।
प्रश्न 10. किसी एक तानाशाही शासन का नाम लिखें।
उत्तर-हिटलर एक तानाशाही शासक था।
प्रश्न 11. मुसोलिनी ने किस देश में अपनी तानाशाही स्थापित की ?
उत्तर-मुसोलिनी ने इटली में अपनी तानाशाही स्थापित की।
प्रश्न 12. हिटलर ने किस देश में अपनी तानाशाही स्थापित की?
उत्तर-हिटलर ने जर्मनी में अपनी तानाशाही स्थापित की।
प्रश्न 13. अंग्रेजी भाषा का ‘डैमोक्रेसी’ (Democracy) शब्द किस से लिया गया है?
उत्तर-यूनानी भाषा के शब्द डीमास (Demos) और क्रेटीआ (Cratia) से लिया गया है।
प्रश्न 14. आजकल कौन-सा लोकतन्त्र अधिक प्रचलित है?
उत्तर-आजकल प्रतिनिधि लोकतन्त्र अधिक प्रचलित है।
प्रश्न 15. प्रत्यक्ष लोकतन्त्र (Direct Democracy) शासन किसे कहते हैं?
उत्तर-लोग देश के शासन में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेते हैं, उसे प्रत्यक्ष लोकतन्त्र कहते हैं।
प्रश्न 16. प्रजातन्त्र में किस प्रकार का शासन होता है?
उत्तर-प्रजातन्त्र में जनता का शासन होता है।
प्रश्न 17. भारत में मतदान करने की कम-से-कम आयु कितनी है?
उत्तर-भारत में मतदान करने की कम-से-कम आयु 18 वर्ष है।
प्रश्न 18. प्रजातन्त्र का एक गुण लिखें।
उत्तर-प्रजातन्त्र में सर्वसाधारण के हितों की रक्षा की जाती है।
प्रश्न 19. प्रजातन्त्र का एक दोष लिखें।
उत्तर-प्रजातन्त्र में गुणों के स्थान पर संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
प्रश्न 20. स्विट्ज़रलैण्ड में कितने मतदाता एक कानून बनाने के लिए संसद् को कह सकते हैं?
उत्तर-स्विट्ज़रलैण्ड में एक लाख मतदाता एक कानून बनाने के लिए संसद् को कह सकते हैं।
प्रश्न 21. स्विट्जरलैण्ड में कितने मतदाता इस बात की मांग कर सकते हैं, कि किसी कानून पर जनमत संग्रह कराया जाए।
उत्तर-स्विट्ज़रलैण्ड में 50000 मतदाता इस बात की मांग कर सकते हैं, कि किसी कानून पर जनमत संग्रह कराया जाए।
प्रश्न 22. प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में कोई एक अन्तर लिखें।
उत्तर-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में लोग स्वयं शासन में प्रत्यक्ष रूप में भाग लेते हैं, जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में शासन जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता है।
प्रश्न 23. भारत में प्रजातन्त्र की असफलता का क्या कारण है?
उत्तर-सचेत नागरिकता का अभाव।
प्रश्न 24. अधिनायकतन्त्र का कोई एक गुण लिखें।
उत्तर-अधिनायकतन्त्र में नीति में एकरूपता बनी रहती है।
प्रश्न 25. अधिनायक तन्त्र का कोई एक दोष लिखें।
उत्तर-अधिनायक तन्त्र हिंसा पर आधारित होता है।
प्रश्न 26. प्रजातन्त्र एवं अधिनायकतन्त्र में कोई एक अन्तर लिखें।
उत्तर-प्रजातन्त्र जनता का शासन है, जबकि अधिनायक तन्त्र एक व्यक्ति या एक पार्टी का शासन है।
प्रश्न II. खाली स्थान भरें-
1. ……………. शासन जनमत पर आधारित है।
2. प्रजातन्त्र में सभी नागरिकों को …………… माना जाता है।
3. प्रजातन्त्र स्वतन्त्रता एवं …………… पर आधारित है।
4. आलोचकों द्वारा प्रजातन्त्र को ………….. की पूजा बताया गया है।
5. ………….. को प्रत्यक्ष लोकतन्त्र का घर कहा जाता है।
उत्तर-
- प्रजातन्त्र
- समान
- बन्धुता
- अयोग्यता
- स्विट्ज़रलैण्ड।
प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-
1. प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को शासक समझता है, जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में केवल प्रतिनिधि ही शासक समझे जाते हैं।
2. प्रजातन्त्र की सफलता के लिए नागरिकों की जागरूकता आवश्यक नहीं है।
3. तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है।
4. तानाशाह की शक्तियां सीमित होती हैं।
5. तानाशाही की अवधि निश्चित नहीं होती।
उत्तर-
- सही
- ग़लत
- सही
- ग़लत
- सही।
प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
अधिनायकतन्त्र उस एक व्यक्ति का शासन है, जिसने अपने स्तर और स्थिति को पैतृक अधिकार से प्राप्त न करके शक्ति या स्वीकृति, सम्भवतः दोनों के मिश्रण द्वारा प्राप्त किया हो।” किसका कथन है ?
(क) अरस्तु
(ख) प्लेटो
(ग) अल्फ्रेड
(घ) ग्रीन।
उत्तर-
(ग) अल्फ्रेड
प्रश्न 2.
अधिनायकतन्त्र के गुण हैं
(क) स्थिर शासन
(ख) नीति में एकरूपता
(ग) संकटकाल के लिए उचित
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 3.
अधिनायकतन्त्र के दोष हैं
(क) हिंसा पर आधारित
(ख) क्रान्ति का डर
(ग) अधिकारों का अभाव
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 4.
प्रजातन्त्र एवं अधिनायकतन्त्र में अन्तर है
(क) प्रजातन्त्र जनता का शासन है, जबकि अधिनायकतन्त्र एक व्यक्ति या एक पार्टी का शासन है।
(ख) प्रजातन्त्र जनमत पर आधारित होता है, जबकि अधिनायकतन्त्र जनमत पर आधारित नहीं होता।
(ग) प्रजातन्त्र में लोगों को अधिकार प्राप्त होते हैं, जबकि अधिनायकतन्त्र में नहीं।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।