Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 20 संविधान की प्रस्तावना Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 20 संविधान की प्रस्तावना
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर एक आलोचनात्मक नोट लिखो। (Write a critical note on the Preamble to the Indian Constitution.)
अथवा
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की क्या महत्ता है ? (What is the significance of the Preamble to the Constitution of India ?)
उत्तर-
प्रत्येक देश की मूल विधि का अपना विशेष दर्शन होता है, हमारे देश के संविधान का मूल दर्शन (Basic Philosophy) हमें संविधान की प्रस्तावना से मिलता है जिसे के० एम० मुन्शी ने राजनीतिक जन्मपत्री (Political Horoscope) का नाम दिया है।
प्रस्तावना (Preamble)-संविधान सभा ने 1947 में एक उद्देश्य सम्बन्धी प्रस्ताव पास किया था जिसमें उसने अपने सामने कुछ उद्देश्यों को रखा था और उसी प्रस्ताव के आधार पर संविधान का निर्माण हुआ। संविधान के बनने के बाद संविधान सभा ने प्रस्तावना सहित ही उस संविधान को स्वीकार किया। संविधान की प्रस्तावना में उन भावनाओं का वर्णन है, जो 13 दिसम्बर, 1946 को पं० जवाहरलाल नेहरू के उद्देश्य प्रस्ताव (Objective Resolution) के तत्त्व थे। उद्देश्य प्रस्ताव में कहा गया है कि संविधान-सभा घोषित करती है कि इसका ध्येय व दृढ़ संकल्प भारत को सर्वप्रभुत्व सम्पन्न, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाना है और इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल प्रस्तावना में किया गया है। 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में संशोधन करके समाजवाद (Socialist), धर्म-निरपेक्ष (Secular) तथा अखण्डता (Integrity) के शब्दों को प्रस्तावना में अंकित किया गया है। हमारे वर्तमान संविधान की प्रस्तावना इस प्रकार है-
हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने तथा समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतन्त्रता, प्रतिष्ठा तथा अवसर की समता प्राप्त कराने और उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर, अपनी इस संविधान सभा में, आज 26 नवम्बर, 1949 ई० (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, सम्वत् दो हज़ार छ: विक्रमी) को एतद् द्वारा, इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित तथा आत्मार्पित करते हैं।
“We, the people of India, having solemnly resolved to constitute India into a Sovereign, Socialist, Secular, Democratic Republic, and to secure to all its citizens, Justice, social, economic and political liberty of thought, expression, belief, faith and worship, Equality of status and of opportunity, and to promote among them all, Fraternity assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation.
In our Constituent Assembly, this twenty-sixth day of November 1949, do hereby Adopt, Enact, and Give to ourselves this Constitution.”
संविधान की प्रस्तावना बहुत ही महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है जो संविधान के मूल उद्देश्यों, विचारधाराओं तथा सरकार के उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालता है। जब संविधान की कोई धारा संदिग्ध हो और उसका अर्थ स्पष्ट न हो तो न्यायालय उसकी व्याख्या करते समय प्रस्तावना की सहायता ले सकते हैं। वास्तव में प्रस्तावना को ध्यान में रखकर ही संविधान की सर्वोत्तम व्याख्या हो सकती है। प्रस्तावना से हमें यह पता चलता है कि संविधान निर्माताओं की भावनाएं क्या थीं।
“प्रस्तावना संविधान बनाने वालों के मन की कुंजी है।”
सर्वोच्च न्यायालय के भू० पू० मुख्य न्यायाधीश श्री सुब्बाराव ने एक निर्णय देते हुए कहा था, “जिस उद्देश्य की प्राप्ति की संविधान से आशा की गई है, वह स्पष्ट रूप से इसकी प्रस्तावना में दिया गया है। इसमें इसके आदर्श तथा आकांक्षाएं निहित हैं।” इस प्रकार हमारे संविधान की प्रस्तावना के उद्देश्यों, लक्ष्यों, विचारधाराओं तथा हमारे स्वप्नों का स्पष्ट पता चल जाता है। सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री गजेन्द्र गडकर के अनुसार, संविधान की प्रस्तावना से संविधान के मूल दर्शन का ज्ञान होता है। संविधान सभा के सदस्य पंडित ठाकुर दास भार्गव ने प्रस्तावना की सराहना करते हुए कहा था, “प्रस्तावना संविधान का सबसे मूल्यवान अंग है। यह संविधान की आत्मा है। यह संविधान की कुंजी है। यह संविधान का रत्न है।” कुछ वर्ष पूर्व श्री० एन० ए० पालकीवाला ने सुप्रीमकोर्ट में 28वें और 29वें संशोधनों की आलोचना करते समय कहा था कि प्रस्तावना संविधान का एक अनिवार्य अंग है।
1973 में केशवानन्द भारती के मुकद्दमे के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से यह कहा था कि प्रस्तावना संविधान का अंग है।
वी० एन० शुक्ला (V.N. Shukla) ने प्रस्तावना के महत्त्व के सम्बन्ध में लिखा है, “यह सामान्यतया राजनीतिक, नैतिक व धार्मिक मूल्यों का स्पष्टीकरण करती है जिन्हें संविधान प्रोत्साहित करना चाहता है।”
भारतीय संविधान की प्रस्तावना स्पष्ट रूप से तीन बातों पर प्रकाश डालती है-
(क) संवैधानिक शक्ति का स्रोत क्या है ? (ख) भारतीय शासन-व्यवस्था कैसी है ? (ग) संविधान के उद्देश्य या लक्षण क्या हैं ?
(क) संवैधानिक शक्ति का स्रोत (Source of Constitutional Authority)—प्रस्तावना से ही हमें पता चलता है कि इस संविधान को बनाने वाला कौन है। संविधान का निर्माण करने वाले और उसे अपने पर लागू करने वाले भारत के लोग हैं, कोई अन्य शक्ति नहीं। प्रस्तावना इन्हीं शब्दों से आरम्भ होती है, “हम भारत के लोग………उस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित तथा आत्मार्पित करते हैं।” ये शब्द इस बात को स्पष्ट करते हैं कि भारतीय संविधान का स्रोत जनता की सर्वोच्च शक्ति है। संविधान को विदेशी शक्ति ने भारतीयों पर नहीं लादा बल्कि जनता ही समस्त शक्ति का मूल स्रोत है।
(ख) भारतीय शासन व्यवस्था का स्वरूप (Nature of Indian Constitutionl System)—संविधान की प्रस्तावना से हमें भारत की शासन व्यवस्था के स्वरूप का भी पता चलता है। प्रस्तावना में भारत को प्रभुत्व-सम्पन्न लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाए जाने के लिए घोषणा की है। 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में समाजवादी व धर्म-निरपेक्ष शब्दों को अंकित किया गया है, अतः भारतीय शासन व्यवस्था की निम्नलिखित पांच विशेषताएं हैं
- भारत सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न राज्य है (India is a Sovereign State)
- भारत समाजवादी राज्य है (India is a Socialist State)
- भारत धर्म-निरपेक्ष राज्य है (India is a Secular State)
- भारत लोकतन्त्रीय राज्य है (India is a Democratic State)
- भारत एक गणराज्य है (India is a Republic State)
(ग) संविधान के उद्देश्य (Objectives of the Constitution)—प्रस्तावना से इस बात का भी स्पष्ट पता चलता है कि संविधान द्वारा किन उद्देश्यों की पूर्ति की आशा की गई है। वे उद्देश्य कई प्रकार के हैं-
- न्याय (Justice)-संविधान का उद्देश्य है कि भारत के सभी नागरिकों को न्याय मिले और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक व राजनीतिक किसी भी क्षेत्र में नागरिकों के साथ अन्याय न हो। इस बहुमुखी न्याय से ही नागरिकों के जीवन का पूर्ण विकास सम्भव है और इसकी प्राप्ति लोकतन्त्रात्मक ढांचे से ही हो सकती है।
- स्वतन्त्रता (Liberty)—प्रस्तावना में नागरिकों की स्वतन्त्रताओं का उल्लेख किया गया है, जैसे कि विचार रखने की स्वतन्त्रता, विचारों को प्रकट करने की स्वतन्त्रता, अपनी इच्छा और बुद्धि के अनुसार किसी भी बात में विश्वास रखने की स्वतन्त्रता, अपनी इच्छानुसार अपने इष्टदेव की उपासना करने की स्वतन्त्रता।
- समानता (Equality)—प्रस्तावना में नागरिकों को प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता प्रदान की गई है। प्रतिष्ठा की समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्ति कानून की दृष्टि में समान हैं तथा सभी को कानून की समान सुरक्षा प्राप्त है। अवसर की समानता का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता के आधार पर विकसित होने का समान अवसर प्राप्त है।
- बन्धुत्व (Fraternity)-प्रस्तावना में बन्धुत्व की भावना को विकसित करने पर बल दिया गया है।
- प्रस्तावना में व्यक्ति के गौरव को बनाए रखने की घोषणा की गई है।
- संविधान का उद्देश्य राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता को बनाए रखना है।
निष्कर्ष (Conclusion)-संविधान की प्रस्तावना सत्तारूढ़ दल के लिए, चाहे वह कोई भी हो, मार्गदर्शक का काम देती है और संविधान के विभिन्न उपबन्धों की व्याख्या करने और उसके बारे में उत्पन्न मतभेद या वाद-विवाद को सुलझाने में सहायता करती है। (“It is a key to open the minds of the maker.”) प्रस्तावना उद्देश्य है, जबकि संविधान उसकी पूर्ति का साधन है, इसलिए प्रस्तावना के महत्त्व को हम कम नहीं कर सकते। एम० वी० पायली (M.V. Pylee) के अनुसार, “प्रस्तावना संविधान की आत्मा है। इसमें भारतीय लोगों का एक संकल्प है कि वे मिलकर न्याय, स्वतन्त्रता, समानता और भ्रातृभाव के कार्य की पूर्ति के लिए प्रयत्न करेंगे।”
प्रश्न 2.
“भारत प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतन्त्रीय गणराज्य है।” व्याख्या कीजिए।
(“India is a Sovereign Socialist, Secular, Democratic, Republic.” Explain and Discuss.)
उत्तर-
संविधान की प्रस्तावना से हमें भारत की शासन व्यवस्था के स्वरूप का पता चलता है। प्रस्तावना में भारत को प्रभुत्व-सम्पन्न, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाए जाने की घोषणा की गई है। 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में समाजवादी व धर्म-निरपेक्ष शब्दों को अंकित किया गया है। इस प्रकार अब भारत को प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतन्त्रीय गणराज्य घोषित किया गया है। ये पांचों शब्द भारतीय संवैधानिक प्रणाली के मुख्य आधार हैं-
- भारत सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न राज्य है (India is a Sovereign State)
- भारत समाजवादी राज्य है (India is a Socialist State)
- भारत धर्म-निरपेक्ष राज्य है (India is a Secular State)
- भारत लोकतन्त्रीय राज्य है (India is a Democratic State)
- भारत एक गणराज्य है (India is a Republic State)
1. भारत सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न राज्य है (India is a Sovereign State)-प्रस्तावना में भारत को प्रभुत्वसम्पन्न राज्य घोषित किया गया है। इसका अभिप्राय यह है कि भारत पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है। वह किसी बाहरी शक्ति के अधीन नहीं है। भारत न तो अब ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन है जैसा कि यह 15 अगस्त, 1947 से पहले था तथा न ही अधिराज्य अथवा उपनिवेश जैसा कि यह 15 अगस्त, 1947 से लेकर 26 जनवरी, 1950 तक रहा है। इसके विपरीत, भारत वैसे ही पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है जैसे कि इंग्लैण्ड, अमेरिका, रूस आदि। किसी भी विदेशी शक्ति को इसकी विदेशी नीति तथा गृह-नीति में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। यह ठीक है कि भारत आज भी राष्ट्रमण्डल का सदस्य है, परन्तु इसकी सदस्यता स्वतन्त्रता पर कोई बन्धन नहीं है। भारत जब चाहे राष्ट्रमण्डल की सदस्यता को छोड़ सकता है।
भारत का संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य होना भी उसकी स्वतन्त्रता पर कोई प्रभाव नहीं डालता। भारत अपनी इच्छा से सदस्य बना है और जब चाहे इसकी सदस्यता को छोड़ सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत एक प्रभुत्त्व-सम्पन्न राज्य है और राष्ट्रमण्डल का सदस्य और संयुक्त राष्ट्र का सदस्य होने से इसकी प्रभुसत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
2. भारत समाजवादी राज्य है (India is a Socialist State)-42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में संशोधन करके ‘समाजवादी’ (Socialist) शब्द अंकित किया गया है। समाजवाद के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ही 42वें संशोधन के अन्तर्गत राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों को मौलिक अधिकारों से श्रेष्ठ घोषित किया गया। सरकार ने समाजवादी समाज की स्थापना के लिए अनेक कदम उठाए हैं। 42वें संशोधन द्वारा राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों में कुछ समाजवादी सिद्धान्त सम्मिलित किए गए हैं। उदाहरण के लिए अनुच्छेद 39 (F) में यह लिखा गया है कि, “राज्य विशेष रूप से ऐसी नीति का निर्माण करे जिसके द्वारा……… बच्चों को स्वतन्त्रता तथा गौरव की अवस्थाओं में समग्र रूप में विकसित होने के लिए अवसर तथा सुविधाएं प्राप्त हो सकें तथा बच्चों तथा युवकों की रक्षा हो सके।” अनुच्छेद 39-A द्वारा निःशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था की गई है। इस धारा के अन्तर्गत आर्थिक पक्ष से कमज़ोर लोगों के लिए निःशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था के लिए सरकार को निर्देश दिया गया।
अनुच्छेद 43-A में यह व्यवस्था की गई है कि, “राज्य उचित कानूनी या किसी अन्य विधि से इस कानून के लिए प्रयत्न करेगा कि किसी उद्योग से सम्बन्धित कारोबार के प्रयत्न में अथवा अन्य संस्थाओं में श्रमिकों को भाग लेने का अवसर प्राप्त हो।”
श्रीमती इन्दिरा गांधी की सरकार ने समाजवादी समाज की स्थापना के लिए 20-सूत्रीय कार्यक्रम अपनाया और इस 20-सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करने के लिए राज्यों को कड़े निर्देश दिए गए। 10 जून, 1976 को मास्को में एक सार्वजनिक सभा में भाषण देते हुए प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कहा था, “हम एक ऐसे समाज का निर्माण करने के लिए यत्न कर रहे हैं जिनसे लोगों को राजनीतिक निर्णय करने तथा आर्थिक विकास में भाग लेने के पूर्ण अवसर प्राप्त होंगे। हम चाहेंगे कि प्रत्येक व्यक्ति को गणना का एक अंक नहीं मिलेगा बल्कि एक विशेष व्यक्तित्व का स्वामी समझा जाये।”
मार्च, 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी। जनता पार्टी की सरकार ने स्पष्ट शब्दों में समाजवादी समाज की स्थापना करने की घोषणा की। जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री चन्द्रशेखर ने 1 मई, 1977 को जनता पार्टी की सभा में भाषण देते हुए समाजवादी समाज के निर्माण के लिये भरसक प्रयत्न करने की घोषणा की। श्री राजीव गांधी की सरकार ने समाजवादी समाज की स्थापना करने के लिए भरसक प्रयत्न किए और 20-सूत्रीय कार्यक्रम लागू करने के लिए राज्यों को कड़े निर्देश दिए थे।
3. भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है (India is a Secular State)-42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द अंकित करके भारत को स्पष्ट शब्दों में धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है, भारतीय संविधान में ऐसी ही व्यवस्था की गई है जो भारत को निःसन्देह धर्म-निरपेक्ष राज्य बनाती है। भारत में सभी धर्म के लोगों को धार्मिक स्वतन्त्रता दी गई है। कोई व्यक्ति जिस धर्म को चाहे मान सकता है, धर्म का प्रचार कर सकता है और राज्य धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। राज्य किसी विशेष धर्म की किसी प्रकार की सहायता नहीं कर सकता।
4. भारत एक लोकतान्त्रिक राज्य है (India is a Democratic State)-संविधान की प्रस्तावना में भारत को लोकतन्त्रीय राज्य घोषित किया गया है। इसका अभिप्राय यह है कि शासन शक्ति किसी एक व्यक्ति या वर्ग विशेष के हाथों में नहीं बल्कि समस्त जनता के पास है। लोग शासन चलाने के लिए अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं और ये प्रतिनिधि अपने कार्यों के लिए समस्त जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। भारत के प्रत्येक नागरिक को चाहे वह किसी भी धर्म, सम्प्रदाय तथा जाति से सम्बन्धित हो, समान अधिकार दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली को समाप्त करके संयुक्त चुनाव प्रणाली को अपनाया गया है। भारत में राजनीतिक प्रजातन्त्र की स्थापना के साथ-साथ प्रस्तावना में आर्थिक व सामाजिक प्रजातन्त्र की स्थापना का आदर्श भी प्रस्तुत किया गया है।
5. भारत एक गणराज्य है (India is a Republican State)—प्रस्तावना में भारत को लोकतन्त्र के साथ-साथ गणराज्य भी घोषित किया है। गणराज्य की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि राज्य का मुखिया कोई पैतृक राजा या रानी नहीं होता बल्कि जनता द्वारा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। इसी कारण इंग्लैण्ड व जापान गणराज्य नहीं है, क्योंकि इन देशों में अध्यक्ष पद पैतृक है, परन्तु भारत एक गणराज्य है क्योंकि यहां पर राष्ट्रपति निर्वाचक मण्डल द्वारा पांच वर्ष के लिये चुना जाता है। अत: भारत अमेरिका व स्विट्जरलैंड की तरह पूर्ण रूप से गणराज्य है।
कुछ लोगों का कहना है कि भारत की गणराज्य की स्थिति उसकी राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से मेल नहीं खाती है। आस्ट्रेलिया के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री सर राबर्ट मेन्ज़ीज़ (Sir Robert Menzies) ने 1949 में कहा था, “यह समझ नहीं आता कि भारत एक तरफ़ गणराज्य है और उसकी ब्रिटिश क्राऊन के प्रति कोई निष्ठा नहीं है। दूसरी तरफ़ वह राष्ट्रमण्डल का सदस्य है जिसकी ब्रिटिश क्राऊन के प्रति पूर्ण और अविच्छेद निष्ठा है।” परन्तु अब राष्ट्रमण्डल की वह स्थिति नहीं है जो पहले थी। अब यह ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल के स्थान पर केवल राष्ट्रमण्डल है जिसके सदस्य स्वतन्त्र राज्य हैं जो पारस्परिक हितों के कारण एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। भारत का अध्यक्ष ब्रिटिश सम्राट् न होकर भारत का राष्ट्रपति है। भारतीयों की ब्रिटिश सम्राट् के प्रति कोई निष्ठा नहीं है, अतः राष्ट्रमण्डल की सदस्यता भारत की गणराज्य की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं डालती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
संविधान की प्रस्तावना से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्येक देश की मूल विधि का अपना विशेष दर्शन होता है। हमारे देश में संविधान का मूल दर्शन हमें संविधान की प्रस्तावना से मिलता है। विश्व के अन्य संविधानों की तरह हमारे संविधान का आरम्भ भी प्रस्तावना से होता है। संविधान की प्रस्तावना बहुत ही महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है जो संविधान के मूल उद्देश्यों, विचारधाराओं तथा सरकार के उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालता है। जब संविधान की कोई धारा संदिग्ध हो और इसका अर्थ स्पष्ट न हो तो न्यायालय उसकी व्याख्या करते समय प्रस्तावना की सहायता ले सकते हैं। वास्तव में प्रस्तावना को ध्यान में रखकर ही संविधान की सर्वोत्तम व्याख्या हो सकती है। प्रस्तावना से यह पता चलता है कि संविधान निर्माताओं की भावनाएं क्या थीं। चाहे यह संविधान का कानूनी अंग नहीं है फिर भी यह संविधान की कुंजी, संविधान की आत्मा और संविधान का रत्न है। इसीलिए के० एम० मुन्शी ने प्रस्तावना को राजनीतिक जन्म पत्री का नाम दिया है।
प्रश्न 2.
भारत के संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त ‘गणराज्य’ शब्द की व्याख्या करो।
अथवा
गणराज्य शब्द का अर्थ बताओ।
उत्तर-
प्रस्तावना में भारत को लोकतन्त्र के साथ-साथ ‘गणराज्य’ भी घोषित किया गया है। ‘गणराज्य’ में राज्य का मुखिया कोई पैतृक राजा या रानी नहीं होता बल्कि जनता द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। इसी कारण इंग्लैंड और जापान गणराज्य नहीं हैं, क्योंकि इन देशों में अध्यक्ष पद पैतृक हैं, परन्तु भारत एक गणराज्य है, क्योंकि यहां पर राष्ट्रपति निर्वाचक मण्डल द्वारा पांच वर्ष के लिए चुना जाता है। गणराज्य की परिभाषा करते हुए मिस्टर मैडीसन (Madison) ने कहा है कि, “गणराज्य एक ऐसी सरकार है जिसकी शक्तियों का स्रोत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में जनता का महान् समूह है तथा जिसकी शक्तियों का प्रयोग उन लोगों द्वारा होता है जो अपने पद पर निश्चित समय के लिए जनता की प्रसन्नता या अपने सद्व्यवहार तक रहते हैं।” मैडीसन द्वारा दी गई परिभाषा भारत पर पूर्ण रूप से लागू होती है। भारत में सरकार की शक्तियों का अन्तिम स्रोत जनता है और शासन जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता है। संविधान में संशोधन करने का अधिकार भी संसद् को दिया गया है। राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, मन्त्री, संसद् सदस्य, राज्यपाल आदि का कार्यकाल संविधान द्वारा निश्चित किया गया है।
प्रश्न 3.
सार्वभौमिक लोकतन्त्रात्मक गणराज्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
संविधान की प्रस्तावना में भारत को सार्वभौमिक लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाये रखने की घोषणा की गई है। सार्वभौमिक का अर्थ है कि भारत पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है और वह किसी बाहरी शक्ति के अधीन नहीं है। प्रस्तावना में भारत को लोकतन्त्रीय राज्य घोषित किया गया है। इसका अभिप्राय यह है कि शासन शक्ति किसी एक व्यक्ति या वर्ग विशेष के हाथों में नहीं बल्कि समस्त जनता के पास है। लोग शासन चलाने के लिए अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं, प्रतिनिधि अपने कार्यों के लिये समस्त जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। प्रस्तावना में लोकतन्त्र के साथ-साथ गणराज्य भी घोषित किया गया है। भारत एक गणराज्य है क्योंकि राष्ट्रपति निर्वाचक मण्डल द्वारा पांच वर्ष के लिए चुना जाता है।
प्रश्न 4.
संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त ‘सामाजिक’, ‘आर्थिक’ तथा ‘राजनीतिक न्याय’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
सामाजिक न्याय (Social Justice) सामाजिक न्याय का अर्थ है कि किसी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, लिंग, रंग आदि के आधार पर भेद-भाव नहीं होने दिया जाएगा। सामाजिक न्याय की प्राप्ति के लिए संविधान के तीसरे भाग में समानता का अधिकार दिया गया है।
आर्थिक न्याय (Economic Justice)-आर्थिक न्याय से अभिप्राय है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीविका कमाने के समान अवसर प्राप्त हों तथा उसके कार्य के लिए उचित वेतन प्राप्त हो। आर्थिक न्याय के लिए यह आवश्यक है कि उत्पादन के साधन कुछ व्यक्तियों के हाथों में नहीं होने चाहिएं। राष्ट्रीय धन पर सभी का नियन्त्रण और अधिकार समान होना चाहिए। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संविधान के चौथे भाग में राजनीति के निर्देशक सिद्धान्त दिए गए
राजनीतिक न्याय (Political Justice)—राजनीतिक न्याय का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को धर्म, जाति, रंग, लिंग आदि के भेदभाव के बिना समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों।
प्रश्न 5.
संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त बन्धुत्व’ की स्थापना का अर्थ एवं महत्त्व बताइए।
उत्तर-
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में बन्धुत्व की भावना को विकसित करने पर बल दिया गया है। डॉ० अम्बेदकर के अनुसार, बन्धुत्व का तात्पर्य सभी भारतीयों में भ्रातृ-भाव है। उनके शब्दों में यह एक ऐसा सिद्धान्त है जो सामाजिक जीवन को एकत्व एवं सुदृढ़ता प्रदान करता है। डॉ० अम्बेदकर के मतानुसार, “बिना बन्धुत्व के स्वतन्त्रता और समानता केवल ऊपरी रंग की तरह अधिक टिकाऊ नहीं रह सकती। स्वतन्त्रता और समानता और बन्धुत्व के उद्देश्यों को हम एक-दूसरे से पृथक नहीं कर सकते, बल्कि हमें इन तीनों को एक साथ लेकर चलना पड़ेगा।” साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद इत्यादि बुराइयों को तभी जड़ से उखाड़ कर फैंका जा सकता है जब सभी नागरिकों में बन्धुत्व की भावना पाई जाती हो।
प्रश्न 6.
संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त राष्ट्र की एकता’ और ‘अखण्डता’ शब्दों का महत्त्व बताइए।
उत्तर-
संविधान निर्माता अंग्रेज़ों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति से अच्छी तरह वाकिफ थे। अंग्रेज़ों की इसी नीति के कारण भारत का विभाजन हुआ था। इसीलिए संविधान निर्माता भारत की एकता को बनाए रखने के लिए बड़े इच्छुक थे। अतः संविधान की प्रस्तावना में राष्ट्र की एकता को बनाए रखने की घोषणा की गई। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य बनाया गया, सभी नागरिकों को भारत की नागरिकता प्रदान की गई, समस्त देश के लिए एक ही संविधान की व्यवस्था की गई तथा 22 भारतीय भाषाओं को मान्यता दी गई। 42वें संशोधन द्वारा राष्ट्र की एकता के साथ अखण्डता (Integrity) शब्द जोड़ा गया है।
प्रश्न 7.
संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त ‘धार्मिक विश्वास, निष्ठा तथा उपासना की स्वतन्त्रता’ का क्या महत्त्व है ?
उत्तर–
प्रस्तावना में धार्मिक स्वतन्त्रता तथा धर्म-निरपेक्षता पर बल दिया गया है। प्रस्तावना में सभी नागरिकों को किसी भी धर्म में विश्वास रखने तथा अपनी इच्छानुसार इष्टदेव की उपासना करने की स्वतन्त्रता दी गई है। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि वह जिस धर्म में चाहे, विश्वास रखे और अपने देवता या परमात्मा की जिस तरह चाहे पूजा करे। किसी भी नागरिक को कोई विशेष धर्म ग्रहण करने के लिए या किसी विशेष ढंग से पूजा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। राज्य को नागरिक के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। भारत के विभिन्न धर्मों के लोगों में सद्भावना एवं सहयोग की भावना को बनाए रखने के लिए धर्म की स्वतन्त्रता पर बल देना अति आवश्यक था।
प्रश्न 8.
42वें संवैधानिक संशोधन (1976) के द्वारा प्रस्तावना में कौन-कौन से परिवर्तन किए गए ?
उत्तर-
42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा प्रस्तावना में प्रभुसत्ता सम्पन्न, लोकतन्त्रीय, गणतन्त्र शब्दों के स्थान पर, प्रभुसत्ता सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतन्त्रीय, गणराज्य शब्द शामिल किए गए हैं। इसके अतिरिक्त राष्ट्र की एकता शब्द की जगह पर राष्ट्र की एकता और अखण्डता शब्द शामिल किए गए हैं।
प्रश्न 9.
प्रस्तावना के अनुसार भारत में शक्ति का स्रोत क्या है ?
उत्तर-
प्रस्तावना के अनुसार भारत में शक्ति का स्रोत संविधान का निर्माण करने वाले और उसे अपने पर लागू करने वाले भारत के लोग हैं, कोई अन्य शक्ति नहीं। प्रस्तावना इन शब्दों से आरम्भ होती है, “हम भारत के लोग ……… इस संविधान को स्वीकृत, अधिनियमित और आत्म-अर्पित करते हैं। ये शब्द इस बात को स्पष्ट करते हैं कि भारतीय संविधान का स्रोत जनता ही सर्वोच्च शक्ति है। संविधान को किसी विदेशी शक्ति ने भारत पर नहीं थोपा है बल्कि यह सम्पूर्ण शक्ति का स्रोत है।”
प्रश्न 10.
“भारत प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष लोकतन्त्रीय गणराज्य है।” व्याख्या करो।
उत्तर-
- भारत पूर्ण रूप से प्रभुत्व सम्पन्न राज्य है। भारत अपने आन्तरिक मामलों और बाहरी मामलों में स्वतन्त्र है।
- संविधान की प्रस्तावना के अनुसार भारत सरकार का लक्ष्य समाजवादी समाज की स्थापना करना है।
- भारत धर्म-निरपेक्ष राज्य है। भारत का अपना कोई धर्म नहीं है। सभी नागरिकों को धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है।
- भारत में लोकतन्त्र है। शासन की सभी शक्तियों का स्रोत जनता है। शासन जनता के प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है।
- भारत एक गणराज्य है। राष्ट्रपति भारत राज्य का अध्यक्ष है जोकि अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है।
प्रश्न 11.
प्रस्तावना में शामिल संविधान के उद्देश्य कौन-से हैं ?
उत्तर-
प्रस्तावना में शामिल संविधान के उद्देश्य इस प्रकार हैं-
- संविधान का उद्देश्य यह है कि सभी नागरिकों को न्याय मिले और जीवन के किसी भी क्षेत्र में नागरिकों के साथ अन्याय न हो।
- प्रस्तावना में नागरिकों की स्वतन्त्रता का उल्लेख किया गया है; जैसे-विचार प्रकट करने, विचार रखने, अपनी इच्छानुसार अपने इष्टदेव की उपासना करने की स्वतन्त्रता।
- प्रस्तावना में नागरिकों को प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता प्रदान की गई है।
- प्रस्तावना में बन्धुत्व की भावना को विकसित करने पर बल दिया गया है।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
संविधान की प्रस्तावना से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्येक देश की मूल विधि का अपना विशेष दर्शन होता है। हमारे देश में संविधान का मल दर्शन हमें संविधान की प्रस्तावना से मिलता है। विश्व के अन्य संविधानों की तरह हमारे संविधान का आरम्भ भी प्रस्तावना से होता है। संविधान की प्रस्तावना बहुत ही महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है जो संविधान के मूल उद्देश्यों, विचारधाराओं तथा सरकार के उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालता है।
प्रश्न 2.
भारत के संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त ‘गणराज्य’ शब्द की व्याख्या करो।
उत्तर-
प्रस्तावना में भारत को लोकतन्त्र के साथ-साथ ‘गणराज्य’ भी घोषित किया गया है। ‘गणराज्य’ में राज्य का मुखिया कोई पैतृक राजा या रानी नहीं होता बल्कि जनता द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। इसी कारण इंग्लैंड और जापान गणराज्य नहीं हैं, क्योंकि इन देशों में अध्यक्ष पद पैतृक हैं, परन्तु भारत एक गणराज्य है, क्योंकि यहां पर राष्ट्रपति निर्वाचक मण्डल द्वारा पांच वर्ष के लिए चुना जाता है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-
प्रश्न 1. प्रस्तावना में किस प्रकार के न्याय का वर्णन किया गया है ?
उत्तर-प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 2. प्रस्तावना किसे कहते हैं ?
उत्तर-प्रस्तावना एक संविधान का आमुख होता है, जिसमें उसके कारणों एवं उद्देश्यों का वर्णन किया गया होता है।
प्रश्न 3. भारतीय संविधान में कितनी भाषाओं को मान्यता दी गई है ?
उत्तर-भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है।
प्रश्न 4. संविधान की प्रस्तावना में अखंडता’ शब्द किस संवैधानिक संशोधन द्वारा समाविष्ट किया गया है ?
उत्तर-42वें संशोधन द्वारा।
प्रश्न 5. संविधान में प्रस्तावना का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-संविधान की प्रस्तावना से संवैधानिक शक्ति के स्रोतों, भारतीय शासन व्यवस्था के स्वरूप एवं संविधान के उद्देश्यों का पता चलता है।
प्रश्न 6. भारतीय संविधान की मौलिक प्रस्तावना में भारत को क्या घोषित किया गया था?
उत्तर- भारतीय संविधान की मौलिक प्रस्तावना में भारत को एक प्रभुत्व सम्पन्न लोकतान्त्रिक गणराज्य घोषित किया गया था।
प्रश्न 7. भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आरम्भ किससे होता है?
उत्तर- भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आरम्भ ‘हम भारत के लोग’ से आरम्भ होता है।
प्रश्न 8. संविधान के उद्देश्य का वर्णन कहां पर होता है?
उत्तर-संविधान के उद्देश्य का वर्णन प्रस्तावना में होता है।
प्रश्न 9. कौन-से संशोधन द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ व ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए हैं?
उत्तर-42वें संशोधन द्वारा।
प्रश्न 10. भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत को क्या घोषित करती है ?
उत्तर-भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत को प्रभुसत्ता संपन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, प्रजातन्त्रात्मक गणतन्त्र घोषित करती है।
प्रश्न 11. भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर किस देश के संविधान की प्रस्तावना का प्रभाव पड़ा?
उत्तर-अमेरिका।
प्रश्न 12. संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करने का अधिकार किसके पास है?
उत्तर-संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करने का अधिकार संसद् को है।
प्रश्न 13. संविधान की प्रस्तावना में अब तक कितनी बार संशोधन किया जा चुका है?
उत्तर-एक बार।
प्रश्न 14. प्रस्तावना में किस प्रकार के न्याय का वर्णन किया गया है?
उत्तर-प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 15. प्रस्तावना किसे कहते हैं ?
उत्तर-प्रस्तावना एक संविधान का आमुख होता है, जिसमें उसके कारणों एवं उद्देश्यों का वर्णन किया गया होता है।
प्रश्न 16. भारतीय संविधान में कितनी भाषाओं को मान्यता दी गई है?
उत्तर-भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है।
प्रश्न 17. संविधान की प्रस्तावना में ‘अखंडता’ शब्द किस संवैधानिक संशोधन द्वारा समाविष्ट किया गया है?
उत्तर-42वें संशोधन द्वारा।
प्रश्न II. खाली स्थान भरें-
1. भारत के संविधान का मूल दर्शन ……… में निहित है।
2. भारतीय संविधान की प्रस्तावना ………… से आरंभ होती है।
3. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद व धर्म-निरपेक्ष शब्द ………. द्वारा जोड़े गए हैं।
4. ………….. ने प्रस्तावना को जन्म-पत्री कहा है।
5. 13 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा में ………. ने उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया।
उत्तर-
- प्रस्तावना
- हम भारत के लोग
- 42वें संशोधन
- के० एम० मुंशी
- पं० नेहरू।
प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें।
1. भारत के संविधान का मूल दर्शन प्रस्तावना में निहित है।
2. भारतीय संविधान की प्रस्तावना “भारत एक गणराज्य है” से आरंभ होती है।
3. संविधान सभा में 1949 में एक उद्देश्य संबंधी प्रस्ताव पास किया गया था, जिसमें उसने अपने सामने कुछ उद्देश्यों को रखा और उसी प्रस्ताव के आधार पर संविधान का निर्माण हुआ।
4. के० एम० मुंशी के अनुसार, प्रस्तावना संविधान बनाने वालों के मन की कुंजी है।
5. 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में संशोधन करके समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष तथा अखंडता के शब्दों को अंकित किया गया है।
उत्तर-
- सही
- ग़लत
- ग़लत
- ग़लत
- सही।
प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आरंभ कैसे होता है ?
(क) हम भारत के लोग
(ख) भारत के लोग
(ग) भारत को संपूर्ण
(घ) भारत एक समाजवादी।
उत्तर-
(क) हम भारत के लोग
प्रश्न 2.
संविधान के दर्शन में शामिल होते हैं-
(क) न्याय
(ख) स्वतंत्रता
(ग) समानता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 3.
प्रभुत्व संपन्न कौन है ?
(क) लोकसभा
(ख) राष्ट्रपति
(ग) जनता
(घ) संविधान।
उत्तर-
(ग) जनता
प्रश्न 4.
संविधान के उद्देश्य का वर्णन कहां मिलता है ?
(क) प्रस्तावना में
(ख) मौलिक अधिकारों में
(ग) संकटकालीन धाराओं में
(घ) राज्यनीति के निर्देशक सिद्धांत में।
उत्तर-
(क) प्रस्तावना में।