Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 21 संविधान की मुख्य विशेषताएं Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 21 संविधान की मुख्य विशेषताएं
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करो।
(Describe the chief features of the Indian Constitution.)
अथवा
भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करो।
(Discuss the salient features of the Indian Constitution.)
उत्तर- भारत का संविधान एक संविधान सभा ने बनाया और इस संविधान को 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। इस संविधान की अपनी कुछ विशेषतायें हैं जो कि निम्नलिखित हैं-
1. लिखित तथा विस्तृत संविधान (Written and Detailed Constitution)-अमेरिका, स्विट्ज़रलैंड, साम्यवादी चीन, फ्रांस और जापान के संविधानों की तरह भारत का संविधान भी लिखित तथा विस्तृत है। संविधानसभा ने भारत का संविधान 2 वर्ष, 11 महीने तथा 18 दिनों में बनाया और इस संविधान को 26 जनवरी, 1950 को लागू किया। भारतीय संविधान लिखित होने के साथ-साथ अन्य देशों के संविधानों के मुकाबले में बहुत विस्तृत संविधान है। हमारे संविधान में 395 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियां हैं और इन्हें 22 भागों में बांटा गया है।
सर आइवर जेनिंग्स (Sir Ivor Jennings) का कहना है कि, “भारतीय संविधान संसार में सबसे लम्बा एवं विस्तृत संविधान है।”
2. प्रस्तावना (Preamble)—प्रत्येक अच्छे संविधान की तरह भारत के संविधान में भी प्रस्तावना दी गई है। इस प्रस्तावना में संविधान के मुख्य लक्ष्यों, विचारधाराओं तथा राज्य के उत्तरदायित्वों का वर्णन किया गया है।
3. सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य की स्थापना (Creation of a Sovereign, Socialist, Secular, Democratic Republic)-भारतीय संविधान ने भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य घोषित किया है। इसका अर्थ है कि अब भारत पूर्ण रूप से स्वतन्त्र तथा सर्वोच्च सत्ताधारी है और किसी अन्य सत्ता के अधीन नहीं है। भारत का लक्ष्य समाजवादी समाज की स्थापना करना है और भारत धर्म-निरपेक्ष राज्य है। यहां पर लोकतन्त्रीय गणराज्य की स्थापना की गई है। राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक-मण्डल द्वारा 5 वर्ष की अवधि के लिए होता है।
4. जनता का अपना संविधान (People’s own Constitution)-भारत के संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वह जनता का अपना संविधान है और इसे जनता ने स्वयं अपनी इच्छा से अपने ऊपर लागू किया है। यद्यपि हमारे संविधान में आयरलैण्ड के संविधान की तरह कोई अनुच्छेद ऐसा नहीं है जिससे यह स्पष्ट होता हो कि भारतीय संविधान को जनता ने स्वयं बनाया है तथापि इस बात की पुष्टि संविधान की प्रस्तावना करती है-
“हम भारत के लोग, भारत में एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य स्थापित करते हैं। अपनी इस संविधान सभा में 26 नवम्बर, 1949 ई० को इस संविधान को अपनाते हैं।”
5. अनेक स्रोतों से तैयार किया हुआ संविधान (A Unique Constitution Derived from many Sources) हमारे संविधान की यह भी एक विशेषता है कि इसमें अन्य देशों के संविधान के अच्छे सिद्धान्तों तथा गुणों को सम्मिलित किया गया है। हमारे संविधान निर्माताओं का उद्देश्य एक अच्छा संविधान बनाना था, इसलिए उनको जिस देश के संविधान में कोई अच्छी बात दिखाई दी, उसको उन्होंने संविधान में शामिल कर लिया। संसदीय शासन प्रणाली को इंग्लैण्ड के संविधान से लिया गया है। संघीय प्रणाली अमेरिका तथा राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त आयरलैण्ड के संविधान से लिए गए हैं। इस प्रकार भारत का संविधान, अनेक संविधानों के गुणों का सार है।
6. संविधान की सर्वोच्चता (Supremacy of the Constitution)-भारतीय संविधान की एक अन्य विशेषता यह है कि यह देश का सर्वोच्च कानून है। कोई कानून या आदेश इसके विरुद्ध जारी नहीं किया जा सकता है। सरकार के सभी अंगों को संविधान के अनुसार कार्य करना पड़ता है। यदि संसद् कोई ऐसा कानून पास करती है जो संविधान के विरुद्ध हो या राष्ट्रपति आदेश जारी करता है जो संविधान के साथ मेल नहीं खाता तो न्यायपालिका ऐसे कानून और आदेश को अवैध घोषित कर सकती है, अतः संविधान सर्वोच्च है।
7. धर्म निरपेक्ष (Secular State)-भारत के संविधान के अनुसार भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है। 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में धर्म-निरपेक्ष शब्द जोड़ कर स्पष्ट रूप से भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ है कि राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है और राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान हैं। नागरिकों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त है और वे अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को अपना सकते हैं, अपनी इच्छानुसार अपने इष्ट देव की पूजा कर सकते हैं, अपने धर्म का प्रचार कर सकते हैं। अनुच्छेद 25 से 28 तक में धार्मिक स्वन्त्रता प्रदान की गई है।
8. लचीला तथा कठोर संविधान (Flexible and Rigid Constitution)—भारत का संविधान लचीला भी है और कठोर भी। संविधान के कुछ भाग में संशोधन करना बड़ा सरल है जिसमें संसद् साधारण बहुमत से उसमें संशोधन कर सकती है। संविधान के कुछ अनुच्छेद ऐसे हैं, जिनमें संशोधन करना बड़ा ही कठोर है जैसे राष्ट्रपति के निर्वाचन की विधि, सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र तथा शक्तियां, संघ तथा राज्यों में शक्ति विभाजन, संसद् में राज्यों का प्रतिनिधित्व आदि विषयों में संशोधन करने के लिए यह आवश्यक है कि ऐसा प्रस्ताव संसद् के दोनों सदनों के दो-तिहाई बहुमत से पास होने के अतिरिक्त कम-से-कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा भी पास होना चाहिए। संविधान के शेष उपबन्धों को संशोधित करने के लिए संसद् का दो-तिहाई बहुमत आवश्यक है।
9. संघात्मक संविधान परन्तु एकात्मक प्रणाली की ओर झुकाव (Federal Constitution with Unitary Bias) यद्यपि हमारे संविधान में किसी अनुच्छेद द्वारा ‘संघ’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया, फिर भी मूल रूप में भारतीय संविधान भारत में संघात्मक सरकार की स्थापना करता है। संविधान की धारा 1 में कहा गया है कि “भारत राज्यों का एक संघ है।” (India is a Union of States) इस समय भारत में 29 राज्य और 7 संघीय क्षेत्र हैं जिसमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली भी शामिल है। इसमें संघात्मक शासन व्यवस्था की सभी बातें पाई जाती हैं-
- भारत का संविधान लिखित तथा कठोर है।
- भारत का संविधान सर्वोच्च कानून है।
- केन्द्र और राज्यों में शक्तियों का बंटवारा करने के लिए तीन सूचियों का वर्णन किया गया है।
- न्यायपालिका को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। केन्द्र और राज्यों के झगड़ों तथा राज्यों के परस्पर झगड़ों का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाता है।
- संसद् के दो सदन हैं-लोकसभा तथा राज्यसभा। लोकसभा सारे देश का प्रतिनिधित्व करती है जबकि राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है।
इस प्रकार भारत के संविधान में संघात्मक सरकार की सभी विशेषताएं पाई जाती हैं, परन्तु इसके बावजूद भी हमारे संविधान का झुकाव एकात्मक स्वरूप की ओर है। यह प्रायः कहा जाता है कि “भारतीय संविधान आकार में संघात्मक है और भावना में एकात्मक है।” (“Indian Constitution is federal in form but unitary in spirit.”) व्हीयर (Wheare) का कहना है कि, “भारतीय संविधान ने अर्ध-संघीय शासन प्रणाली की व्यवस्था की है।” निम्नलिखित कारणों के कारण संविधान का झुकाव एकात्मक स्वरूप की ओर है-
- केन्द्र के पास राज्यों की अपेक्षा अधिक शक्तियां हैं । केन्द्रीय-सूची में 97 विषय हैं, जबकि राज्य-सूची में 66 विषय हैं।
- समवर्ती-सूची में 47 विषय हैं। केन्द्र और राज्यों को इस सूची में दिए गए विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है यदि इन विषयों पर केन्द्र और राज्य सरकारें दोनों कानून बनाती हैं तो केन्द्र का ही कानून लागू होता है।
- अवशेष शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास हैं।
- यदि राज्यसभा दो-तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव पास कर दे कि राज्य-सूची में दिया गया कोई विषय राष्ट्रीय महत्त्व का है तो संसद् उस पर एक वर्ष के लिए कानून पास कर सकती है।
- संकटकाल में संविधान का संघात्मक स्वरूप एकात्मक स्वरूप में बदल जाता है।
- संसद् राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है।
- राज्यों को अपना संविधान बनाने का अधिकार नहीं है।
- नागरिकों को केवल भारत की नागरिकता प्राप्त है।
- राज्य वित्तीय सहायता के लिए केन्द्र पर निर्भर करते हैं।
- सारे देश के लिए आर्थिक और सामाजिक योजनाएं बनाने का अधिकार केन्द्रीय सरकार के पास है।
- संविधान में संशोधन की विधि बहुत कठोर नहीं है।
यद्यपि भारत के संविधान में संघात्मक सरकार की सभी विशेषताएं पाई जाती हैं, परन्तु इसके बावजूद भी हमारे संविधान का झुकाव एकात्मक स्वरूप की ओर है।
10. संसदीय सरकार (Parliamentary form of Government) भारतीय संविधान ने भारत में संसदीय शासन प्रणाली की व्यवस्था की है। राष्ट्रपति राज्य का अध्यक्ष है, परन्तु उसकी शक्तियां नाम-मात्र हैं, वास्तविक नहीं। राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिपरिषद् की सलाह से ही करता है और मन्त्रिपरिषद् का संसद् के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। मन्त्री संसद् सदस्यों में से लिए जाते हैं और वे अपने कार्यों के लिए संसद् के निम्न सदन और लोकसभा के प्रति उत्तरदायी हैं। लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव पास करके मन्त्रिपरिषद् को जब चाहे अपदस्थ कर सकती है अर्थात् मन्त्रिपरिषद् लोकसभा के प्रसाद-पर्यन्त ही अपने पद पर रह सकती है।
11. द्वि-सदनीय विधानमण्डल (Bicameral Legislature)-हमारे संविधान की एक अन्य विशेषता यह है कि इसके द्वारा केन्द्र में द्वि-सदनीय विधानमण्डल की स्थापना की गई है। संसद् के निम्न सदन को लोकसभा (Lok Sabha) तथा ऊपरि सदन को राज्यसभा (Rajya Sabha) कहा जाता है। लोकसभा की कुल अधिकतम संख्या 552 हो सकती है परन्तु आजकल 545 सदस्य हैं। राज्यसभा की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है परन्तु आजकल 245 सदस्य हैं। लोकसभा की शक्तियां और अधिकार राज्यसभा की शक्तियों और अधिकारों से अधिक हैं।
12. मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)-भारतीय संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि संविधान के तीसरे भाग में भारतीयों को 6 मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। ये अधिकार हैं-(i) समानता का अधिकार, (ii) स्वतन्त्रता का अधिकार, (iii) शोषण के विरुद्ध अधिकार, (iv) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार, (1) सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार तथा (vi) संवैधानिक उपचारों का अधिकार। इसके द्वारा नागरिकों को जाति, धर्म, रंग, जन्म, लिंग आदि के आधार पर बने भेदभाव के बिना समान घोषित किया गया है और उन्हें कई प्रकार की स्वतन्त्रताएं प्रदान की गई हैं जैसा कि भाषण देने, अपने विचार प्रकट करने, घूमने-फिरने, सभा व समुदाय बनाने, कोई भी व्यवसाय करने का अधिकार। धार्मिक स्वतन्त्रता के साथ ही उन्हें अपनी इच्छानुसार शिक्षा ग्रहण करने तथा अपनी भाषा व संस्कृति की रक्षा व विकास करने का अधिकार भी दिया गया है।
नागरिकों को शोषण के विरुद्ध भी अधिकार दिया गया है। कोई भी सरकार इन अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकती तथा उच्च न्यायालयों व सर्वोच्च न्यायालय को इनकी रक्षा के लिए पर्याप्त अधिकार व शक्तियां प्रदान की गई हैं। न्यायालय किसी भी कानून या सरकारी आदेश को जो इन अधिकारों के विरुद्ध हो, रद्द कर सकते हैं और प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि वह अपने इन अधिकारों की रक्षा के लिए उच्च तथा सर्वोच्च न्यायालय का द्वार खटखटा सकता है। अब तक मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले बहुत से कानून अवैध घोषित किए जा चुके हैं। इन अधिकारों को लागू करना सरकार का कर्तव्य है। 1967 में गोलकनाथ केस के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने संसद् को मौलिक अधिकारों में संशोधन करने के अधिकार से वंचित कर दिया था, परन्तु संविधान के 24वें संशोधन के अनुसार संसद् को पुन: यह अधिकार देने की व्यवस्था की गई है तथा सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पूर्व निर्णय (गोलकनाथ के केस में) को रद्द करते हुए संसद् के इस अधिकार को वैध घोषित कर दिया है।
13. मौलिक कर्त्तव्य (Fundamental Duties)_42वें संशोधन द्वारा संविधान में ‘मौलिक कर्त्तव्यों’ के नाम पर चतुर्थ भाग-ए (Part IV-A) शामिल किया गया है। इसमें नागरिकों के 11 कर्तव्यों का वर्णन किया गया है जो कि इस प्रकार हैं-
- संविधान का पालन करना तथा उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रीय झण्डे और राष्ट्रीय गान का सम्मान करना।
- स्वतन्त्रता संग्राम को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को बनाए रखना और उनका पालन करना।
- भारत की प्रभुसत्ता, एकता और अखण्डता में विश्वास रखना तथा उसकी रक्षा करना।
- देश की सुरक्षा करना और आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा करना।
- भारत के सभी लोगों में मेल-मिलाप और बन्धुत्व की भावना का विकास करना तथा ऐसी रीतियों को त्यागना जो त्रियों की प्रतिष्ठा के विरुद्ध हों।
- राष्ट्र की मिली-जुली संस्कृति की सम्पन्न परम्परा का आदर करना और उसे सुरक्षित रखना।
- प्राकृतिक वातावरण को सुरक्षित रखना और उसे उन्नत करना तथा सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया की भावना रखना।
- दृष्टिकोण में वैज्ञानिकता, मानवता, जिज्ञासा और सुधार की भावना को विकसित करना।
- सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखना और हिंसा से बचना।
- व्यक्तिगत तथा सामूहिक क्रिया-कलापों के सभी क्षेत्रों में ऊंचा उठाने का प्रयत्न करना।
- छ: साल से 14 साल की आयु के बच्चे के माता-पिता या अभिभावक अथवा संरक्षक द्वारा अपने बच्चे को शिक्षा दिलाने के लिए अवसर उपलब्ध कराना।
14. राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्त (Directive Principles of State Policy) भारतीय संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि संविधान के चौथे भाग में अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों का वर्णन किया गया है। राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों का अभिप्राय यह है कि केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों के लिए संविधान में कुछ आदर्श रखे गए हैं ताकि उनके अनुसार अपनी नीति का निर्माण करके जनता की भलाई के लिए कुछ कर सके। यदि इन सिद्धान्तों को लागू किया जाए तो भारत का सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक विकास बहुत शीघ्र हो सकता है।
15. स्वतन्त्र न्यायपालिका (Independent Judiciary)-भारत के संविधान में स्वतन्त्र न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है। भारत के संविधान में उन सभी बातों का वर्णन किया गया है जो स्वतन्त्र न्यायपालिका के लिए आवश्यक हैं। सर्वोच्च न्यायलय तथा राज्यों के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति सम्बन्धित अधिकारियों की सलाह से करता है। राष्ट्रपति इन न्यायाधीशों को अपनी इच्छा से नहीं हटा सकता। सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को संसद् महाभियोग द्वारा ही हटा सकती है। इस प्रकार न्यायाधीशों की नौकरी सुरक्षित की गई। न्यायाधीशों का कार्यकाल भी निश्चित आयु पर आधारित है। सर्वोच्च न्यायलय का न्यायाधीश 65 वर्ष तथा राज्यों के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु में रिटायर होते हैं। न्यायाधीशों को बहुत अच्छा वेतन दिया जाता है तथा रिटायर होने के पश्चात् पेंशन भी दी जाती है।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 2,80,000 रुपए मासिक वेतन तथा अन्य न्यायाधीशों को 2,50,000 हज़ार रुपए मासिक वेतन मिलता है जबकि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों को 2,50,000 और अन्य न्यायाधीशों को 2,25,000 रुपए मासिक वेतन मिलता है। न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते उनके कार्यकाल में कम नहीं किए जा सकते। ऐसी व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि न्यायाधीश सरकार के विरुद्ध बिना किसी डर के निर्णय दे सकें। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की योग्यताओं का वर्णन संविधान में किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश रिटायर होने के पश्चात् किसी न्यायालय में वकालत नहीं कर सकते और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश उस न्यायालय में वकालत नहीं कर सकते जहां से वे रिटायर हुए हों।
16. न्यायिक पुनर्निरीक्षण (Judicial Review)-न्यायिक पुनर्निरीक्षण का अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय संसद् द्वारा बनाए गए कानूनों तथा राज्य विधानमण्डलों के बनाए हुए कानून की संवैधानिक जांचपड़ताल कर सकती है और यदि कानून संविधान के विरुद्ध हो तो उसे अवैध घोषित कर सकती है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित किया गया कोई भी कानून, अध्यादेश, आदेश या सन्धि अवैध मानी जाती है और सरकार उसे लागू नहीं कर सकती। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने इस अधिकार का इस्तेमाल कई बार किया है।
17. इकहरी नागरिकता (Single Citizenship) भारत में नागरिकों को एक ही नागरिकता प्राप्त है। सभी नागरिक चाहे वे किसी राज्य के हों, भारत के नागरिक हैं। नागरिकों को अपने राज्य की नागरिकता प्राप्त नहीं है।
18. वयस्क मताधिकार (Adult Franchise)-भारत के संविधान की एक अन्य विशेषता व्यस्क मताधिकार है। 61वें संशोधन एक्ट के अनुसार प्रत्येक नागरिक को जिसकी आयु 18 वर्ष अथवा इससे अधिक हो बिना किसी भेदभाव के वोट डालने का अधिकार प्राप्त है।
19. संयुक्त चुनाव प्रणाली (Joint Electorate System)-साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली को समाप्त करके संयुक्त चुनाव प्रणाली की व्यवस्था की गई है। अब सभी सम्प्रदाय मिलजुल कर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं।
20. कानून का शासन (Rule of Law)-भारत के संविधान की यह विशेषता है कि इसके द्वारा कानून के शासन की स्थापना की गई है। कानून के सम्मुख सभी नागरिक समान हैं, कोई व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है। अमीर-गरीब, पढ़े-लिखे तथा अनपढ़, शक्तिशाली तथा कमज़ोर सभी देश के कानून के सामने समान हैं कानून से कोई ऊंचा नहीं है।
21. अल्पसंख्यकों, अनुसूचित व पिछड़ी जातियों तथा कबीलों का संरक्षण (Protection of Minorities, Scheduled and Backward Classes and Tribes)—भारत के संविधान की अन्य विशेषता यह है कि इसमें एक ओर तो समानता की घोषण की गई है और दूसरी ओर इसमें अल्पसंख्यकों, अनुसूचित व पिछड़ी हुई जातियों तथा कबीलों के हितों के संरक्षण के लिए विशेष धाराओं की व्यवस्था की गई है। संसद् तथा राज्यों के विधानमण्डलों में अनुसूचित तथा पिछड़ी जातियों के लिए कुछ स्थान सुरक्षित रखे जाते हैं। 95वें संशोधन द्वारा इस अवधि को 2020 ई० तक कर दिया गया है।
22. कल्याणकारी राज्य (Welfare State) भारत को कल्याणकारी राज्य घोषित किया गया है। उद्देश्य प्रस्ताव, संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार तथा राज्य के निर्देशक सिद्धान्तों को पढ़ कर यह स्पष्ट हो जाता है कि संविधान निर्माताओं का उद्देश्य भारत में एक ऐसा कल्याणकारी राज्य स्थापित करना था जिसमें व्यक्ति के लिए आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था की जा सके।
23. विश्व शान्ति तथा अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा का समर्थक (Advocate of World Peace and International Security) भारतीय संविधान विश्व शान्ति का प्रबल समर्थक है। राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों में स्पष्ट लिखा गया है कि भारत राष्ट्रों के बीच न्याय तथा समानतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा करेगा, अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा बनाये रखने के लिए विधि तथा सन्धि बन्धनों के प्रति आदर का निर्माण करेगा और अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता के द्वारा हल करने का प्रयत्न करेगा। व्यवहार में भी भारत सरकार ने अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बनाये रखने के लिए अनेक प्रयास किये हैं।
24. एक सरकारी भाषा (One Official Language) भारत में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं, इसलिए संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है। हिन्दी को देवनागरी लिपि में संघ सरकार की सरकारी (Official) भाषा घोषित किया गया है।
25. छुआछूत की समाप्ति (Abolition of Untouchability)-भारतीय संविधान की यह विशेषता है कि इसके अनुच्छेद 17 द्वारा छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है। जो व्यक्ति छुआछूत की समाप्ति के विरुद्ध बोलता है उसे कानून के अनुसार दण्ड दिया जा सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion)-उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह संविधानों में एक अनूठा संविधान है। न्यायाधीश पी० वी० मुखर्जी के अनुसार, “यद्यपि हमारे संविधान ने विश्व के संवैधानिक प्रयोगों से बहुत-सी बातों को लिया है, केवल यही नहीं बल्कि अपने चरित्र और समन्वय में यह अनूठा संविधान है।” संविधान निर्माताओं का उद्देश्य कोई मौलिक या अद्वितीय संविधान बनाना नहीं था बल्कि वे एक अच्छा तथा कार्यसाधक संविधान बनाना चाहते थे।
प्रश्न 2.
भारतीय संविधान में संशोधन करने के विभिन्न तरीकों का वर्णन करें।
(Describe the various methods of amending the Indian Constitution.)
उत्तर-
प्रत्येक राज्य का संविधान एक निश्चित समय पर तैयार किया जाता है, परन्तु समय के अनुसार देश की सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक परिस्थितियां बदलती रहती हैं। एक अच्छा संविधान वही होता है जिसे परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तित किया जा सके। इसलिए प्रत्येक लिखित संविधान में संशोधन की प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लेख कर दिया जाता है। ___ संविधान को संशोधित करने की प्रक्रिया का वर्णन अनुच्छेद 368 में किया गया है। अनुच्छेद के अनुसार संविधान में संशोधन करने के लिए दो विधियों का वर्णन किया गया है, परन्तु भारतीय संविधान में निम्नलिखित तीन विधियों द्वारा संशोधन किया गया है-
- संसद् द्वारा साधारण बहुमत से संशोधन ;
- संसद् द्वारा दो तिहाई बहुमत से संशोधन ;
- संसद् के विशेष बहुमत तथा कम-से-कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों की स्वीकृति से संशोधन।
1.संसद द्वारा साधारण बहुमत से संशोधन (Amendment by the Parliament by a Simple Majority)संविधान की कुछ धाराएं ऐसी हैं जिन्हें भारतीय संसद् उसी प्रकार से और उतनी ही आसानी से बदल सकती है जितना कि ब्रिटिश संसद् ब्रिटिश संविधान को अर्थात् संसद् साधारण बहुमत से संविधान के कुछ भाग में संशोधन कर सकती है। इसमें मुख्य विषय सम्मिलित हैं-नए राज्यों का निर्माण, राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करना, नागरिकता की प्राप्ति और समाप्ति, सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार बढ़ना इत्यादि।
2. संसद् द्वारा दो-तिहाई बहुमत से संशोधन (Amendment by the Parliament by a two-third Majority) संविधान की कुछ धाराएं ऐसी हैं जिन्हें संसद् दो-तिहाई बहुमत से संशोधन कर सकती है। संविधान के अनुच्छेद 368 में स्पष्ट कहा गया है कि संविधान में संशोधन का प्रस्ताव संसद् के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। दोनों सदनों में सदन की कुल संख्या के बहुमत तथा उपस्थित व मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पास होने के बाद वह संशोधन प्रस्ताव राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा और स्वीकृति मिलने पर ही संविधान इस प्रस्ताव की धाराओं के अनुसार संशोधित समझा जायेगा लोकसभा और राज्यसभा को संवैधानिक संशोधन के क्षेत्र में बिल्कुल बराबर की शक्तियां प्राप्त हैं।
3. संसद के विशेष बहुमत तथा राज्य विधानपालिका के अनुसमर्थन द्वारा संशोधन (Amendment by the special majority of Parliament and ratification by State Legislature) संविधान की कुछ धाराएं ऐसी भी हैं जिन्हें और भी कठोर बनाया गया है और जिसमें संसद् स्वतन्त्रतापूर्वक परिवर्तन नहीं कर सकती। संविधान के कुछ भाग में संसद् के दोनों सदनों के दो तिहाई बहुमत और आधे राज्यों के विधानमण्डलों के समर्थन से ही संशोधन किया जा सकता है। जिन विषयों में इस विधि से संशोधन किया जा सकता है उनमें मुख्य हैं-राष्ट्रपति का चुनाव और चुनाव विधि, केन्द्र और राज्यों के वैधानिक सम्बन्ध, संघीय सरकार और राज्य सरकारों की कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियों की सीमा इत्यादि।
संशोधन प्रक्रिया की आलोचना (Criticism of the Procedure of Amendment)-
भारतीय संविधान की संशोधन प्रक्रिया की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की जाती है-
- राज्य को संशोधन प्रस्ताव पेश करने का अधिकार नहीं-संविधान में संशोधन का प्रस्ताव केवल केन्द्रीय संसद् द्वारा ही पेश किया जा सकता है। राज्यों को संशोधन का समर्थन करते हुए ही अपनी राय देने का अधिकार है।
- सभी धाराओं में संशोधन करने के लिए राज्यों की आवश्यकता नहीं-संविधान की कुछ धाराओं पर ही आधे राज्यों के विधानमण्डलों के समर्थन की आवश्यकता है। संविधान का एक बहुत बड़ा भाग संसद् स्वयं ही संशोधित कर सकती है।
- राज्यों के अनुसमर्थन के लिए समय निश्चित नहीं-संविधान में इस बात का उल्लेख नहीं है कि किसी संशोधन प्रस्ताव पर राज्य के विधानमण्डल कितने समय के अन्दर अपना निर्णय दे सकते हैं।
- दोनों में मतभेद-भारतीय संविधान इस बारे में भी मौन है कि यदि संसद् के दोनों सदनों में किसी संशोधन प्रस्ताव पर मतभेद उत्पन्न हो जाए तो उसे कैसे सुलझाया जाएगा। ऐसी दशा में संशोधन प्रस्ताव रद्द समझा जाएगा या यह प्रस्ताव दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में रखा जाएगा।
- संशोधन प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की स्वीकृति-संविधान में इस बात का उल्लेख नहीं है कि क्या राष्ट्रपति को संशोधन के प्रस्ताव पर निषेधाधिकार (Veto-Power) प्राप्त है या नहीं। संविधान के 24वें संशोधन के अनुसार इस बात के विषय में जो सन्देह थे वे दूर कर दिए गए हैं। इस संशोधन के अनुसार संशोधन बिल पर राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर नहीं रोक सकता।
- जनमत संग्रह की व्यवस्था नहीं है-हमारे संविधान में कोई ऐसी व्यवस्था नहीं कि जिसके अनुसार जनता की इच्छा किसी अमुक प्रस्तावित संशोधन बिल पर ली जा सके अर्थात् संविधान में संशोधन जनता को पूछे बिना ही संसद् कर सकती है। आलोचकों का कहना है कि ऐसी व्यवस्था अन्यायपूर्ण एवं अलोकतन्त्रीय है।
निष्कर्ष (Conclusion)-उपर्युक्त दोषों के होते हुए भी भारतीय संविधान के बारे में हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि यह एक ऐसा प्रलेख है जो काफ़ी सोच-विचार के बाद तैयार किया गया है और जिसे न तो इतनी आसानी से बदला जा सकता है कि यह सत्तारूढ़ दल के हाथों में खिलौना-मात्र बन कर रह जाए और न ही इतना कठोर है कि समय के अनुसार बदलती हुई आवश्यकताओं के अनुसार इसमें परिवर्तन न किया जा सके और यह अतीत की एक वस्तु बन कर रह जाए। हमारा संविधान न तो अमेरिकन संविधान की भान्ति कठोर है और न ही ब्रिटिश संविधान की तरह लचीला। प्रो० ह्वीयर (Wheare) ने ठीक ही कहा है कि, “भारतीय संविधान अधिक कठोर तथा अधिक लचीलापन के मध्य एक अच्छा सन्तुलन स्थापित करता है।”
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
संविधान का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
संविधान ऐसे नियमों तथा सिद्धान्तों का समूह है, जिसके अनुसार शासन के विभिन्न अंगों का संगठन किया जाता है, उसको शक्तियां प्रदान की जाती हैं, उनके आपसी सम्बन्धों को नियमित किया जाता है तथा नागरिकों और राज्य के बीच सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं। इन नियमों के समूह को ही संविधान कहा जाता है।
पिनॉक (Pennock) और स्मिथ (Smith) के अनुसार, “संविधान केवल प्रक्रिया एवं तथ्यों का ही मामला नहीं बल्कि राजनीतिक शक्तियों के संगठनों का प्रभावशाली नियन्त्रण भी है एवं प्रतिनिधित्व, प्राचीन परम्पराओं तथा भविष्य की आशाओं का प्रतीक है।”
प्रश्न 2.
हमें संविधान की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर–
प्रत्येक राज्य में संविधान का होना आवश्यक है। संविधान के बिना राज्य का शासन नहीं चल सकता। इसीलिए संविधान के बिना एक राज्य-राज्य न होकर अराजकता का शासन होता है। संविधान का होना आवश्यक है ताकि शासन के विभिन्न अंगों की शक्तियां तथा कार्य निश्चित किए जा सकें। संविधान का होना आवश्यक है ताकि देश का शासन सिद्धान्तों तथा नियमों के अनुसार चलाया जा सके।
प्रश्न 3.
भारतीय संविधान का निर्माण किस द्वारा किया गया है ?
उत्तर-
भारत का संविधान एक संविधान सभा द्वारा बनाया गया है। भारत के लिए संविधान सभा की मांग सबसे पहले 1922 में महात्मा गांधी ने, 1935 में कांग्रेस ने और 1940 में मुस्लिम लीग ने भी अलग से संविधान सभा की मांग की थी। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान संविधान सभा के गठन की मांग तेज़ हो गई। ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं की इस मांग को ध्यान में रखते हुए 15 मार्च, 1946 को कैबिनेट मिशन की स्थापना है। कैबिनेट मिशन ने अपनी योजनाओं में संविधान सभा की रचना के बारे में खुला वर्णन किया है। संविधान सभा में कुल 389 सदस्यों की व्यवस्था की गई। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को बुलाई गई और काफी मेहनत और विचार-विमर्श के बाद 26 नवम्बर, 1949 को संविधान बन कर तैयार हो गया। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा के प्रधान ने मसौदे पर हस्ताक्षर कर दिए। 26 जनवरी, 1950 को यह संविधान लागू कर दिया गया।
प्रश्न 4.
भारतीय संविधान की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
- लिखित एवं विस्तृत संविधान-भारत के संविधान की प्रथम विशेषता यह है कि यह लिखित एवं विस्तृत है। इसमें 395 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियां हैं और इन्हें 22 भागों में बांटा गया है। इसे 2 वर्ष, 11 महीने तथा 18 दिनों के समय में बनाया गया।
- प्रस्तावना-प्रत्येक अच्छे संविधान की तरह भारतीय संविधान में भी प्रस्तावना दी गई है। इस प्रस्तावना में संविधान के मुख्य लक्ष्यों, विचारधाराओं तथा राज्य के उद्देश्यों का वर्णन किया गया है।
- सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष लोकतन्त्रात्मक गणराज्य की स्थापना- इसका अर्थ यह है कि भारत पूर्ण रूप से प्रभुता सम्पन्न है। इसका उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना करना है। भारत धर्म-निरपेक्ष और लोकतन्त्रात्मक गणराज्य है।
- भारतीय संविधान की एक अन्य विशेषता वयस्क मताधिकार है।
प्रश्न 5.
धर्म-निरपेक्ष राज्य किसे कहते हैं ? क्या भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है ? व्याख्या करो।
उत्तर-
धर्म-निरपेक्ष राज्य वह राज्य है जिसका कोई राज्य धर्म नहीं होता। राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता। राज्य न तो धार्मिक और न ही अधार्मिक और न ही धर्म-विरोधी होता है। धर्म के आधार पर नागरिकों के साथ भेद-भाव नहीं किया जाता। सभी धर्म के लोगों को समान रूप से बिना किसी भेद-भाव के अधिकार दिए जाते हैं।
42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में धर्म-निरपेक्ष शब्द जोड़ कर भारत को स्पष्ट रूप से धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है और न ही राज्य धर्म को महत्त्व देता है। सभी धर्म समान हैं। किसी धर्म को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म का पालन कर सकता है। सभी धर्मों को प्रचार एवं उन्नति के लिए समान अधिकार प्रदान किए गए हैं। साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली का अन्त कर दिया गया है।
प्रश्न 6.
भारतीय संविधान की सफलता के लिए चार उत्तरदायी तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारतीय संविधान की सफलता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
- देश की परिस्थतियों के अनुकूल–भारतीय संविधान की सफलता का महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि संविधान निर्माताओं ने देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर संविधान बनाया।
- लिखित तथा विस्तृत संविधान-लिखित तथा विस्तृत संविधान के कारण जनता के प्रतिनिधियों, शासकों तथा सरकारी कर्मचारियों को शासन चलाते हुए पथ-प्रदर्शन के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता बल्कि हर प्रकार की सलाह और मार्गदर्शन संविधान से ही मिल जाता है।
- विश्व के संविधान की अच्छी बातों को ग्रहण करना-भारतीय संविधान में अन्य देशों के संविधानों के अच्छे सिद्धान्तों तथा गुणों को सम्मिलित किया गया है।
- भारतीय संविधान सभी धर्मों, समुदायों एवं वर्गों को साथ लेकर चलता है।
प्रश्न 7.
भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को ही क्यों लागू किया गया ?
अथवा
26 जनवरी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। 26 जनवरी का दिन भारत के इतिहास में एक विशेष महत्त्व रखता है। दिसम्बर, 1929 में कांग्रेस ने पण्डित जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए लाहौर अधिवेशन में भारत के लिए पूर्ण स्वतन्त्रता की मांग का प्रस्ताव पास किया और 26 जनवरी, 1930 का दिन स्वतन्त्रता दिवस के रूप में निश्चित किया गया और इस दिन सभी भारतीयों ने देश को स्वतन्त्र कराने का प्रण लिया। इसके पश्चात् हर वर्ष 26 जनवरी का दिन स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। इसलिए यद्यपि संविधान 26 नवम्बर, 1949 को तैयार हो गया था परन्तु इसको 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया।
प्रश्न 8.
भारतीय संविधान के विस्तृत होने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
भारतीय संविधान लिखित होने के साथ ही विश्व के अन्य देशों के संविधानों के मुकाबले बहुत विस्तृत है। हमारे संविधान में 395 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां हैं जिन्हें 22 भागों में बांटा गया है। भारतीय संविधान निम्नलिखित तथ्यों के कारण विशाल है-
- भारत में केन्द्र और राज्यों के लिए एक ही संयुक्त संविधान की व्यवस्था की गई है। प्रान्तों के लिए कोई पृथक् संविधान नहीं है।
- संविधान के तृतीय भाग में मौलिक अधिकारों की विस्तृत व्याख्या की गई है।
- संविधान के चौथे भाग में राजनीति के निर्देशक सिद्धान्त शामिल किए गए हैं।
- संविधान के 18वें भाग में अनुच्छेद 352 से लेकर 360 तक राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों की व्यवस्था की गई है।
प्रश्न 9.
भारतीय संविधान में संशोधन करने के विभिन्न तरीकों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
अनुच्छेद 368 के अन्तर्गत संविधान में संशोधन करने के लिए दो विधियों का वर्णन किया है। परन्तु भारतीय संविधान में निम्नलिखित तीन विधियों द्वारा संशोधन किया जा सकता है-
- संसद् द्वारा साधारण बहुमत से संशोधन-संविधान की कुछ धाराएं ऐसी हैं जिन्हें भारतीय संसद् उसी प्रकार से और उतनी ही आसानी से बदल सकती है जितना कि ब्रिटिश संविधान को अर्थात् उनमें साधारण बहुमत से संशोधन किया जा सकता है।
- संसद् द्वारा दो-तिहाई बहुमत से संशोधन-संविधान की कुछ धाराएं ऐसी हैं जिनमें संसद् दो-तिहाई बहुमत से संशोधन कर सकती है। दोनों सदनों के सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मत देने वाले दो तिहाई सदस्यों की स्वीकृति के पश्चात् संशोधन प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तथा राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति मिलने के पश्चात् ही उन धाराओं को संशोधित किया जाता है।
- संसद् के विशेष बहुमत तथा आधे राज्य विधानमण्डलों के अनुसमर्थन द्वारा संशोधन-संविधान की कुछ धाराएं ऐसी भी हैं जिन्हें और भी कठोर बनाया गया है और जिनमें संसद् स्वतन्त्रतापूर्वक परिवर्तन नहीं कर सकती। संविधान के कुछ भाग में संसद् के दो-तिहाई बहुमत और आधे राज्यों के विधानमण्डलों के समर्थन से ही संशोधन किया जा सकता है।
प्रश्न 10.
भारतीय संविधान में संशोधन प्रक्रिया के किन्हीं चार आधारों पर आलोचना करें।
उत्तर-
भारतीय संविधान की संशोधन प्रक्रिया की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की जाती है-
- राज्य को संशोधन प्रस्ताव पेश करने का अधिकार नहीं-संविधान में संशोधन का प्रस्ताव केवल केन्द्रीय संसद् द्वारा ही पेश किया जा सकता है। राज्यों को संशोधन का समर्थन करते हुए ही अपनी राय देने का अधिकार है।
- सभी धाराओं में संशोधन करने के लिए राज्यों की आवश्यकता नहीं-संविधान की कुछ धाराओं पर ही आधे राज्यों के विधानमण्डलों के समर्थन की आवश्यकता है। संविधान का एक बहुत बड़ा भाग संसद् स्वयं ही संशोधित कर सकती है।
- राज्यों के अनुसमर्थन के लिए समय निश्चित नहीं-संविधान में इस बात का उल्लेख नहीं है कि किसी संशोधन प्रस्ताव पर राज्य के विधानमण्डल कितने समय के अन्दर अपना निर्णय दे सकते हैं।
- दोनों में मतभेद-भारतीय संविधान इस बारे में भी मौन है कि यदि संसद् के दोनों सदनों में किसी संशोधन प्रस्ताव पर मतभेद उत्पन्न हो जाए तो उसे कैसे सुलझाया जाएगा। ऐसी दशा में संशोधन प्रस्ताव रद्द समझा जाएगा या यह प्रस्ताव दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में रखा जाएगा।
प्रश्न 11.
भारतीय संविधान की संशोधन प्रक्रिया की विशषताएं बताएं।
उत्तर-
- संविधान के प्रत्येक भाग में संशोधन किया जा सकता है। केशवानन्द भारती और मिनर्वा मिल्स के मुकद्दमे में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि संसद् संविधान के बुनियादी ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती।
- भारतीय संविधान लचीला और कठोर भी है।
- संवैधानिक संशोधन बिल संसद् के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है।
- राज्य विधान मण्डल को संशोधन का प्रस्ताव पेश करने का कोई अधिकार नहीं है।
- संवैधानिक संशोधन सम्बन्धी दोनों सदनों की शक्तियां बराबर हैं।
- संवैधानिक संशोधन को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
प्रश्न 12.
“भारतीय संविधान लचीला और कठोर भी है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
भारतीय संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह न तो पूर्णतः लचीला है और न ही पूर्णतः कठोर है। लचीला संविधान उसे कहा जाता है जिसमें संशोधन उतनी ही सरलता से किया जा सकता है जितनी सरलता से कोई कानून बनाया जा सकता है। भारतीय संविधान की कुछ धाराओं को, जैसे कि राज्यों के नाम बदलना, उनकी सीमाओं में परिवर्तन करना, राज्यों में विधान परिषद् को बनाना या उसे समाप्त करना आदि को संसद् के दोनों सदनों द्वारा उपस्थित सदस्यों के साधारण बहुमत से बदला जा सकता है। इस तरह भारतीय संविधान लचीला है। संविधान की कुछ धाराओं को बदलने के लिए संसद् के दोनों सदनों का दो-तिहाई बहुमत आवश्यक है। इस प्रक्रिया के अनुसार संविधान कुछ कठोर हो गया है, परन्तु संघात्मक प्रणाली की आवश्यकताओं को देखते हुए इस अवस्था को भी लचीला कहा जा सकता है।
परन्तु कुछ महत्त्वपूर्ण धाराओं को बदलने के लिए संसद् को दो-तिहाई बहुमत के बाद कम-से-कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा संशोधन प्रस्ताव पर समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है। यह तरीका बड़ा कठोर है और इसको देखते हुए संविधान को कठोर कहा गया है।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारतीय संविधान की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
- लिखित एवं विस्तृत संविधान-भारत के संविधान की प्रथम विशेषता यह है कि यह लिखित एवं विस्तृत है। इसमें 395 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियां हैं और इन्हें 22 भागों में बांटा गया है। इसे 2 वर्ष, 11 महीने तथा 18 दियं के समय में बनाया गया।
- प्रस्तावना-प्रत्येक अच्छे संविधान की तरह भारतीय संविधान में भी प्रस्तावना दी गई है। इस प्रस्तावना में संविधान के मुख्य लक्ष्यों, विचारधाराओं तथा राज्य के उद्देश्यों का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 2.
26 जनवरी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। 26 जनवरी का दिन भारत के इतिहास में एक विशेष महत्त्व रखता है। दिसम्बर, 1929 में कांग्रेस ने पण्डित जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए लाहौर अधिवेशन में भारत के लिए पूर्ण स्वतन्त्रता की मांग का प्रस्ताव पास किया और 26 जनवरी, 1930 का दिन स्वतन्त्रता दिवस के रूप में निश्चित किया गया और इस दिन सभी भारतीयों ने देश को स्वतन्त्र कराने का प्रण लिया। इसके पश्चाता हर वर्ष 26 जनवरी का दिन स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। इसलिए यद्यपि संविधान 26 नवम्बर, 1949 को तैयार हो गया था परन्तु इसको 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया।
प्रश्न 3.
भारतीय संविधान के विस्तृत होने के दो कारण लिखें।
उत्तर-
- भारत में केन्द्र और राज्यों के लिए एक ही संयुक्त संविधान की व्यवस्था की गई है। प्रान्तों के लिए कोई पृथक् संविधान नहीं है।
- संविधान के तृतीय भाग में मौलिक अधिकारों की विस्तृत व्याख्या की गई है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-
प्रश्न 1. वर्तमान भारतीय संविधान में कुल कितनी अनुसूचियां हैं ?
उत्तर-वर्तमान भारतीय संविधान में कुल 12 अनुसूचियां हैं।
प्रश्न 2. वर्तमान संविधान में कुल कितने अनुच्छेद हैं ?
उत्तर-वर्तमान भारतीय संविधान में कुल 395 अनुच्छेद हैं।
प्रश्न 3. भारतीय संविधान के मौलिक ढांचे की धारणा का विकास किस मुकद्दमें में हुआ ?
उत्तर-भारतीय संविधान के मौलिक ढांचे की धारणा का विकास 23 अप्रैल, 1973 को स्वामी केशवानंद भारती के मुकद्दमें में हुआ।
प्रश्न 4. भारतीय संघ में कितने राज्य एवं संघीय क्षेत्र शामिल हैं ?
उत्तर-29 राज्य एवं 7 संघीय क्षेत्र।
प्रश्न 5. भारत में कौन-सी शासन प्रणाली है?
उत्तर-भारत में संसदीय शासन प्रणाली है।
प्रश्न 6. भारत में कितने वर्ष के आयु के नागरिक को वोट डालने का अधिकार है?
उत्तर-18 वर्ष।
प्रश्न 7. भारत की राष्ट्र भाषा क्या है?
उत्तर-भारत की राष्ट्र भाषा हिंदी है।
प्रश्न 8. भारत गणतन्त्र कब बना?
उत्तर-भारत गणतन्त्र 26 जनवरी, 1950 को बना।
प्रश्न 9. संविधान के किस अनुच्छेद में संशोधन विधि का वर्णन किया गया है?
उत्तर-अनुच्छेद 368 में।
प्रश्न II. खाली स्थान भरें-
1. 91वां संवैधानिक संशोधन ……….. में किया गया।
2. 61वें संशोधन द्वारा मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर ………. कर दी गई।
3. 1985 में दल-बदल रोकने के लिए संविधान में ………….. संशोधन किया गया।
4. भारतीय संविधान …………. है।
5. संशोधन विधि का वर्णन संविधान के अनुच्छेद ……….. में किया गया।
उत्तर-
- 2003
- 18 वर्ष
- 52वां
- लिखित
- 368.
प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें।
1. जीवंत संविधान उसे कहा जाता है, जिसमें समयानुसार परिवर्तन नहीं होते।
2. भारतीय संविधान एक जीवंत संविधान है।
3. भारतीय संविधान विकसित एवं अलिखित है।
4. राजनीतिक दल-बदल की बुराई को दूर करने के लिए 1980 में 42वां संशोधन पास किया गया।
उत्तर-
- ग़लत
- सही
- ग़लत
- ग़लत !
प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में वोट डालने का अधिकार—
(क) 18 वर्ष के नागरिक को प्राप्त है
(ख) 21 वर्ष के नागरिक को प्राप्त है
(ग) 25 वर्ष के नागरिक को प्राप्त है
(घ) 20 वर्ष के नागरिक को प्राप्त है।
उत्तर-
(क) 18 वर्ष के नागरिक को प्राप्त है
प्रश्न 2.
भारत की राष्ट्र भाषा
(क) हिंदी
(ख) तमिल
(ग) उर्दू
(घ) अंग्रेजी।
उत्तर-
(क) हिंदी
प्रश्न 3.
भारत का संविधान-
(क) संसार के सभी संविधानों से छोटा है
(ख) संसार में सबसे अधिक लंबा तथा विस्तृत है
(ग) जापान के संविधान से बड़ा और अमेरिका के संविधान से छोटा है
(घ) सोवियत संघ के संविधान से छोटा है।
उत्तर-
(ख) संसार में सबसे अधिक लंबा तथा विस्तृत है
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा वाक्य ग़लत सूचना देता है ?
(क) 1935 का एक्ट भारतीय संविधान का महत्त्वपूर्ण स्रोत है
(ख) संसदीय शासन प्रणाली ब्रिटिश शासन की देन है
(ग) अमेरिकन संविधान का भारत पर प्रभाव पड़ा है
(घ) पाकिस्तानी संविधान का भारत पर प्रभाव पड़ा है।
उत्तर-
(घ) पाकिस्तानी संविधान का भारत पर प्रभाव पड़ा है।